• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Adultery प्रीत +दिल अपना प्रीत पराई 2

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
12,401
86,358
259
#29

जिंदगी बस उस मंदिर और इस टूटे चबूतरे के बीच सिमट कर रह गयी थी, मैं समझने लगा था की हो न हो इस का और मंदिर के बीच कोई तो सम्बन्ध है कोई तो बात है , पर क्या ये कौन बताये कौन राह दिखाए मुझे , पर वो सुबह मेरे लिए रोशन होने वाली थी ,

“कबीर, उठो , उठो न कबीर ” मेरे कानो में वो शोख आवाज जैसे उतर कर सीधा दिल पर दस्तक दे गयी, उस सुबह आँखे खोलते ही मैंने सबसे पहले जिस चेहरे को देखा, उसे मैं बार बार देखना चाहता था हर बार देखना चाहता था .

“तुम यहाँ कैसे, ” मैंने पूछा

“ढूंढने वाले तलाश कर ही लेते है , ” मेघा बोली

मैं मुस्कुरा दिया

मैं- मुझे मालूम होता तो मैं थोडा संवार लेता, सब कुछ अस्त व्यस्त पड़ा है

मेघा- क्या फर्क पड़ता है ,तुम हो पास मेरे बस और क्या कहूँ मैं

मैं- तू बैठ तेरे लिए कुछ लाता हु खाने को मैं, बस अभी गया और अभी आया

मेघा- जरुरत नहीं, मैं यही कुछ बना लेती हु, सामान तो है न

मैं- तुम चूल्हा जलओगी

मेघा- क्यों, आखिर तुम्हारा चूल्हा मुझे ही जलाना है

उफ्फ्फफ्फ्फ़ इन लडकियों की ये शोख अदाए, इकरार भी नहीं करती और सब कह भी जाती है

“अब उठ भी जाओ, कब तक पड़े रहोगे यूँ इस तरह ” कहा उसने

मैं उठा और बाहर हाथ मुह धोने चला गया, आया तब तक उसने चाय चढ़ा दी थी .

मैं- तुम्हे यहाँ नहीं आना चाहिए था , इस माहौल में भटकना ठीक नहीं

मेघा- यही बात मैं भी कहती हूँ तुम्हे, मेरा कहना माना है क्या कभी तुमने

मैं- क्या करू, तुमसे मिलने को दिल करता है मैं रोक नहीं पाता खुद को

मेघा- ये भी नहीं सोचते की की तुम्हे कुछ हो गया तो............. समझते क्यों नहीं अब तुम अकेले नही हो, कोइऔर भी है जो तुम्हे देख कर जीता है, और क्या जरुरत थी ये तमाशा करने का, मैं बहुत नाराज हूँ तुमसे , कब तक तक़दीर के भरोसे रहोगे तुम,

मैं- मेरी तक़दीर तुम हो मेघा,

मेघा- इसीलिए डरती हूँ मैं , मैं किस से कहू अपनी पीड़ा, किसी ने जरा सा उकसाया और तुम तैयार हो गए, मर्द के अहंकार को कुछ नहीं होना चाहिए , सोचा तुमने मेरे बारे में, ये जो दम भरते हो न मोहब्बत का, ऐसे निभाओगे इसे

गुस्से में उबलती चाय को फूंक मारते देखना उसे, दिल हार जाता कोई भी उस पल , वो न जाने क्या कह रही थी , किसे खबर थी , मेरे होंठो पर एक मुस्कान थी , मेरी निगाहे बस उसे देख रही थी और देखे भी क्यों ना, हमारे घर हमारी तक़दीर जो आई थी, आज मैं बादलो से कहना चाहता था की ए बादल आज तू बरस , मेरा महबूब आया है आज तू इतना बरस की वो भीग जाए मेरे रंग, में.


“सुन रहे हो न ” थोडा नाराजगी से बोली वो

“आंह, क्या कहा ” मैंने कहा

“चाय और क्या , और इस तरह से न देखो मुझे, ये नजरे कलेजे में उतरती है ” बोली वो

“कातिल खुद को बेगुनाह बताये तो इस से बड़ा क्या गुनाह ” मैंने कहा

मेघा- बाते बड़ी अच्छी करते हो तुम

एक दुसरे को देखते हुए चाय की चुसकिया ले रहे थे हम,

मेघा- कबीर, रतनगढ़ की तरफ थोडा कम करो आना जाना

मैं- तुमसे मिले बिना नहीं रह सकता

मेघा- मैं उसी बारे में सोच रही हु, कोई ऐसी जगह जहाँ हम मिल सके, क्योंकि आज नहीं तो कल हम लोगो की नजरो में आ जायेंगे और फिलहाल के लिए मैं ऐसा नहीं चाहती

मैं- एक न एक दिन तो सबको मालूम होगा ही

मेघा- जानती हु, बस थोडा समय चाहिए,

मैं- ज़माने का डर तो हमेशा रहा है प्रेमियों को

मेघा- प्रेमिका नहीं पत्नी बनना चाहती हूँ पर क्या ये खेल है

मैं- समझता हूँ तुम्हारी बात को ,

मेघा- खैर जाने दो, और बताओ

मैं- बस उलझा हूँ अपने आप में,

मेघा- ये जो बातो को गोल घुमाते हो न तुम मेरा जी करता है मैं मार दू तुम्हे

मैं- सौभाग्य हमारा

मेघा- कमीने

उसने हलके से मेरी छाती में मारा और अपना चेहरा मेरे सीने में छुपा लिया. उसका मेरे आगोश में यु आना ऐसा लगा जैसे रेत पर मेघ की दो बूँद गिर गयी हो.

“धडकने बेकाबू है तुम्हारी ” बोली वो

मैं- तुम्हारे कारण

मेघा- दवाइया समय से ले रहे होना, दुबारा कब मिल रहे हो डॉक्टर से

मैं- जल्दी ही

मेघा- देखू जरा,

मैं- नहीं, ठीक हु मैं , इतनी फ़िक्र मत करो

मेघा- तो किसकी करूँ

मैंने उसे थोडा और कस लिया. फिर मैं उसे बाहर ले आया,

मैं- देखो इस जगह को यही हम अपना आशियाँ बनायेंगे

मेघा- हमारे घर की दीवारों को मैं खुद रंगुंगी, मुझे बेहद पसंद है रंगों से खेलना

मैं- जैसे तुम चाहो.

“तुम कैसे रह लेते हो यूँ अकेले , मेरा मतलब ”

मैं- आदत हो गई है ,

“ये साइकिल तुम्हारी है ” पूछा उसने

मैं- हाँ,

वो- सैर कराओ मुझे , दिखाओ अपना इलाका

मैं- फिर कभी , अभी बस तुम पास रहो मेरे

मेघा- पास ही तो हूँ तुम्हारे,

बहुत देर तक हम बाते करते रहे, ये एक शानदार दिन था , मैंने कभी सोचा नहीं था की कोई ऐसा दिन आएगा जो मुझे इतनी ख़ुशी देगा. दोपहर में हमने खाना बनाया और बाहर पेड़ के निचे बैठ कर खा रहे थे,

मैं- जानती हो तुम बहुत अच्छा खाना बनाती हो ,

मेघा- मेरी माँ से सीखा है वो बहुत पारंगत है

मैं- ओह, , वैसे मेघा मैं तेरे गाँव आने का सोच रहा हूँ , जानता हूँ तू नाराज होगी पर एक बार तो मेरा जाना बहुत जरुँरी है

मेघा- तुझ पर असर तो होना नहीं है, करेगा तू अपने मन की ही, पर किसलिए कबीर किसलिए

मैं- मुझे किसी से मिलना है

मेघा- किस से

मैं- सुमेरी सिंह की दादी से

मेघा- उसकी कोई दादी नहीं है अनाथ है वो .

मेघा ने जैसे बम फोड़ दिया मेरे ऊपर, मेरा निवाला गले में ही अटक गया .
 

Rahul

Kingkong
60,514
70,676
354
waiting next :)
 
Last edited:

SKYESH

Well-Known Member
3,257
7,871
158
उफ्फ्फफ्फ्फ़ इन लडकियों की ये शोख अदाए, इकरार भी नहीं करती और सब कह भी जाती है...............

wah......................wah......................wah........................
 
Top