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Adultery प्रीत +दिल अपना प्रीत पराई 2

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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#30

“क्या कहा तुमने ” मैंने कहा

मेघा- वही जो तुमने सुना , सुमेर सिंह की कोई दादी नहीं है , अनाथ है वो

मैं- ऐसा कैसे हो सकता है ,

मेघा- क्या हुआ मुझे बताओ तो सही

मैंने मेघा को पूरी बात बताई. वो भी हैरान थी ,

“खाना खत्म करो ” उसने मुझे कहा

उधेड़बुन के बीच हमने जल्दी से खाना खाया और फिर उसने कहा - मेरे साथ चलो

“पर किधर ” मैंने पूछा

मेघा- रतनगढ़

अजीब लड़की थी इतना बड़ा भाषण दिया था मुझे की मैं वहां न जाऊ और अब खुद ही मुझे ले चली थी . आधे घंटे बाद हम मंदिर के पास थे,

“आओ ” लगभग मुझे खींचते हुए वो मंदिर के आँगन में ले आई

“कहाँ थी वो , मेरा मतलब कहाँ मिले थे तुम उस से ” एक साँस में कितने सवाल पूछ गयी थी वो

मैंने उसे तमाम किस्सा बताया हर एक बात .

मेघा के चेहरे पर शिकन थी

“मेघा तुम्हे ये माता की मूर्ति कैसी लगती है ” मैंने पूछा

मेघा- मतलब

मैं- कभी तुमने इसे ध्यान से देखा है

मेघा- नहीं, पर क्यों पूछ रहे हो

मैं- उस दादी ने मुझे बताया था की ये अधूरी है, खंडित है

मेघा- नहीं ऐसा नहीं हो सकता, अधूरी मूर्ति कभी स्थापित नहीं की जा सकती

मैं- मैंने भी उनसे यही कहा था .

“एक बुजुर्ग औरत आती है तुमसे मिलती है , कहती है की सुमेर को मत मारना , तुम्हारे साथ बैठती है , बाते करती है, क्या तुमने देखा कौन सी किताब पढ़ती थी वो ” मेघा बोली

मैं- नहीं ध्यान नहीं दिया मैंने कभी

मेघा- किस तरह का प्रसाद था वो, लड्डू, जलेबी, मखाने , बर्फी , बूंदी

मैं- इनमे से कुछ नहीं

मेघा- तो फिर

मैं- मीठे पानी की कुछ बूंदे

मेघा- बस ,

मैं - बस

तभी मुझे एक बात याद आई,

“वो पानी , वो पानी ”

“वो पानी क्या कबीर, ” झुंझलाते हुए वो बोली

मैं- वो पानी , मेघा वो पानी, याद है अपनी पहली मुलाकात मेघा, उस तम्बू में तुमने मुझे पानी पिलाया था , वो मीठा पानी , वो बिलकुल ऐसा ही था

मेघा- क्या कह रहे हो कबीर, मैं समझ नहीं पा रही

मैं- वो तम्बू किसका था

मेघा- मैं क्या जानू, वो तो बस उस समय घुस गयी थी तुम्हे लेके

मैंने अपना माथा पीट लिया. मेघा ने मंदिर में रखे पंचांग को उठाया और बोली- किस किस दिन तुम्हे मिली थी वो

मैंने तारीख बताई

कुछ देर वो देखती रही और बोली- बीते दिनों कोई खास संयोग नहीं है

मैं- दादी, के कपडे अमीरों जैसे थे, देख कर लगता था की किसी अमीर खानदान की होंगी , एक मिनट क्या वो राणाजी के परिवार से हो सकती है , शायद उनकी मा

मेघा- राणा जी की मा , हम्म , बरसो से वो हवेली से बाहर नहीं निकली है और चलो मान लो अगर वो तुमसे मिली थी तो भी सुमेर से क्या लेना देना उनका.

मैं- अपने को क्या मालूम.

मेघा- जितना मैं सोचती हूँ उतना ही उलझती जाती हूँ इन सब में , लगता है कहीं मैं पागल न हो जाऊ , पर कबीर, ये बात मेरे दिमाग में क्यों नहीं आई

उसने अपने झोले से दो तीन कागज निकाले और कुछ रंग,

मेघा- मुझे दादी का हुलिया बताओ , देखते है वो कैसी दिखती है

बहुत देर तक मेघा कागज पर रेखाओ से खेलती रही और अंत में मेरे कहे अनुसार आखिर उसने तस्वीर बना ही ली

“क्या वो ऐसी दिखती थी ”

मैं- बहुत कुछ ऐसी ही .

मेघा- मैं मालूम करती हु, तलाश करती हु पुरे रतनगढ़ में की कौन है ऐसी बुजुर्ग औरत .

मैं- अगर वो तम्बू वाले भी मिल जाये तो

मेघा- मेले में न जाने कितने लोग आते है , भूसे के ढेर में सुई खोजने जैसी बात करते हो.

मैं- ये सब नियति का खेल है मेघा, मेरा तुमसे उसी खास लम्हे में मिलना, हमारा प्रेम, हम दोनों की जिन्दगी का यु मंदिर और टूटे चबूतरे के बीच सिमट जाना, मेघा कोई तो बात है, कोई तो कहानी लिख रही है तक़दीर , जिसके पात्र हम है .

मेघा- पर ये कहानी आगे तो बढे, हर दो कदम पर पीछे हटना पड़ता है

मैं- अगर हम ये पता लगा सके की टूटे चबूतरे और इस मंदिर का क्या मेल है तो कोई सिरा हाथ आ सके

मेघा- कुछ तो गड़बड़ है , कुछ तो ऐसा है जो नजरो के सामने होकर भी छुपा हुआ है , पर अभी मुझे जाना होगा सांझ ढल रही है और हाँ मैं एक हफ्ते बाद तुमसे मिलूंगी, तुम्हारे खेत पर , तब तक मैं योजना भी बना लुंगी की हमेशा किस स्थान पर मिलना होगा और तब तक मैं कुछ काम भी निपटा लुंगी.

मैं- जो हुकुम सरकार

मेघा ने इधर उधर देखा और फिर मेरे माथे को हौले से चूमा , बोली- अपना ध्यान रखना भटकना मत . मिलती हु जल्दी ही

वो तो चली गयी थी पर बहुत से सवाल छोड़ गयी .

शाम को पुजारी आया तो मैंने उस से पूछा- पुजारी वो जो औरत शाम को आती थी वो कौन थी .

पुजारी- कौन औरत

मैं- अरे वही, जो मंदिर में बैठकर पुस्तक पढ़ती थी,

पुजारी ने चुतिया के जैसे देखा मेरी तरफ और बोला- किस की बात कर रहा है , मैंने तो नहीं देखा ऐसी किसी औरत को

मैं- सुन मेरी बात को ध्यान से समझना और फिर जवाब देना , ये जो माता की मूर्ति है , तुम्हे क्या दीखता है इसमें

पुजारी- कहना क्या चाहता है लड़के

मैं- क्या ये मूर्ति अधूरी है

पुजारी- किसने कहा तुमसे, अधूरी मूर्ति स्थापित नहीं होती

मैं- गौर से देखो तो सही

पुजारी- माफ़ कर मुझे, जब से तू यहाँ आया है कुछ न कुछ उल्टा सीधा हो रहा है , तेरे जाने के बाद कोई पाठ करना पड़ेगा मुझे.

मैं- बढ़िया. पर मेरा सवाल फिर भी वही है वो औरत कौन थी .
 

Rahul

Kingkong
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badhiya update par ye complete nahi lag raha mujhe ishiliye waiting part2
 
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