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Erotica फागुन के दिन चार

komaalrani

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फागुन के दिन चार भाग ४०

सुलझायी पहेली रीत ने पृष्ठ ४३०

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फागुन के दिन चार भाग ४०

सुलझायी पहेली रीत ने

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रीत ने मेरी पिटाई का काम टेम्पोरेरी तौर पे स्थगित करते हुए ये रहस्योद्घाटन किया की वो क्यों बेवकूफ है।

“ये देखिये गंगाजी…” वो बोली।



नक़्शे में नदी हम लोगों को भी दिख रही थी।

“तो फोन वाला आदमी अगर नाव पे हो तो इन सारी जगहों पे जो टाइम दिखाया गया है वो पहुँच सकता है हमें जगह देखकर लग रहा था लेकिन लोकेशन तो 100 मीटर के आसपास ही होगी…”रीत कुछ सोचते हुए बोली

“हाँ एकदम…” और फिर मैंने एक सवाल डी॰बी॰ से किया- “क्या आप लोगों ने फोन चेक करने वाली वैन तो नहीं चला रखी हैं…” मैंने पूछा।

“हाँ करीब 10 दिन से जब से दंगे की अफवाहें आनी शुरू हुई हैं, लेकिन तुम्हें कैसे पता चला? तीन गाड़ियां हैं, और 24 घंटे चल रही हैं…” डी॰बी॰ बोले।

“उनकी रेंज नदी तक है…” मैंने दूसरा सवाल पूछा।

“हाँ और नहीं। घाट और घाट के पास तक का इलाका कवर होगा लेकिन कोई नदी के बीच में या रामनगर साइड में होगा तो नहीं…” वो बोले।

“बस तो ये साफ है। कोई जरूरी नहीं है की उस आदमी को पता हो इन वान्स के बारे में। लेकिन वो कोई प्रोफेशनल है जो पूरी प्रीकाशन ले रहा है और इन फोन की लोकेशन के बारे में और ओनरशिप के बारे में ज्यादा पता नहीं चल पायेगा वो भी मैंने पता कर लिया है।इन दो घंटो के अलावा। इन नम्बरों का पन्द्रह दिनों में और कोई इश्तेमाल नहीं किया गया। ये सिम बहुत पुराने हैं और प्री पेड़ हैं, आशंका है किसी डेड आदमी के ये सिम होंगे और दो घंटो के अलावा सिवाय आज जब होस्टेज वाले टाइम, एक काल आई थी। उनकी लोकेशन भी नहीं पता चल रही है…”



मैंने पूरी इन्फोर्मेशन उनसे शेयर की।

अब डीबी चिंता में डूबे थे और उनकी निगाह रीत पे टिकी थी, शायद उम्मीद की एक किरण यहीं से आये

निगाहें तो मेरी भी रीत पे टिकी थी, उसके गोरे चिकने गाल, एकदम मक्खन जैसे, जिनका रस रंग लगाने के बहाने मेरे हाथों ने खुल के लुटा था, और जिस तरह रीत झुक के बैठी थी, उसके दोनों गोरे गोरे कपोत, टाइट कुर्ती से एकदम खुल के झाँक रहे थे, और उन बगुलों के पंखों पे जो मेरे हाथों ने लाल, नीले कर बैंगनी रंग की कॉकटेल लगाई थी, और उसी बहाने जम के मसला था, साफ़ साफ़ दिख रहे थे, ाकाहिर गुड्डी उसे दी कहती थी तो रिश्ता तो साली का ही हुआ, भले बड़ी साली हो,

और मेरी पापी निगाहें रीत ने पहचान ली, मुस्करायी और कस के टेबल के नीचे मेरे पैरों पर उसका पद प्रहार हुआ जबरदस्त
हल्की सी मेरी चीख निकली, पर डीबी ने इग्नोर कर दिया, उनकी निगाहें अभी भी रीत पर थीं।
 
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मैं हूँ ना…”-- रीत

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डी॰बी॰ अब पूरी तरह चिंतित लग रहे थे।

फिर उन्होंने रुक रुक कर बोलना शुरू किया-

“तीन बातें हैं। पहली, तुम्हारे इन टेलीफोन नंबरों के अलावा, अगर कोई कनेक्शन मिल सकता था तो वो चुम्मन का था। लेकिन वो एस॰टी॰एफ॰ वालों के कब्जे मैं है। शायद ही वो चुम्मन से सीधे मिला हो। कट आउट इश्तेमाल किया होगा। या फिर फोन के जरिये…”

रीत ने मुझसे कान में पूछा- “कट आउट क्या? कोई बिजली का…”

“अरे नहीं यार। कोई बिचौलिया…” मैंने फुसफुसा के समझाया।

डी॰बी॰ बोल रहे थे- “दूसरी बात टाइम बहुत कम है तीन दिन बाद होली है। तीन दिन के अन्दर पता करना, न्यूट्रलाइज करना और सबसे बड़ी ये है की किसपे भरोसा करूँ किस पे नहीं…”
“मैं हूँ ना…” रीत हिम्मत से बोली।

डी॰बी॰ के चेहरे पे एक हल्की सी मुश्कान दौड़ गई- “वो तो है। बट। कुछ तो करना पड़ेगा ना…” वो बोले।

“एकदम…” रीत बोली।

लेकिन मैं बीच में कूदा-

“मेरी बात तो पूरी होने दो। इन दो नंबरों के और भी डिटेल पता चले हैं। पिछले 10 दिनों में इसी समय यानी 8-10 के बीच, इन्हीं लोकेशंस से। कोयम्बटूर, हैदराबाद, मुम्बई, वड़ोदरा और भटकल। लेकिन ज्यादातर फोन मुंबई वड़ोदरा और हैदराबाद के लिए हैं। जिन नंबरों को ये फोन किये गए थे वो टैग कर लिए गए हैं और उनकी लोकेशन और प्रोफाइल भी घंटे दो घंटे में मिल जायेगी…” मैंने बोला।

इसी बीच मेरे फोन पे तीन-चार मेसेज आ गए थे।
 
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मल्टी टार्गेट
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लेकिन मैं बीच में कूदा- “मेरी बात तो पूरी होने दो। इन दो नंबरों के और भी डिटेल पता चले हैं। पिछले 10 दिनों में इसी समय यानी 8-10 के बीच, इन्हीं लोकेशंस से। कोयम्बटूर, हैदराबाद, मुम्बई, वड़ोदरा और भटकल। लेकिन ज्यादातर फोन मुंबई वड़ोदरा और हैदराबाद के लिए हैं। जिन नंबरों को ये फोन किये गए थे वो टैग कर लिए गए हैं और उनकी लोकेशन और प्रोफाइल भी घंटे दो घंटे में मिल जायेगी…” मैंने बोला।

इसी बीच मेरे फोन पे तीन-चार मेसेज आ गए थे।

“आफ। ये तो और चक्कर है। इसके दो मतलब है की उसको बाकी जगहों के भी थ्रू कोई हेल्प मिल सकती है और दूसरा कोई मल्टी टार्गेट प्लान है। मुझे इसमें क्लीयरली हुजी और आई॰एम॰ दोनों के फिंगर प्रिंट्स नजर आ रहे हैं…” डी॰बी॰ बोले।



“हुजी कौन…” रीत ने फिर धीरे से पूछा।

“हरकत-उल-जिहाद-अल-इस्लामी…” मैंने समझाने की कोशिश की लेकिन डी॰बी॰ ने सुन लिया। वो बोले- “एक संगठन है जिसके हाथ कई जगह फैले हैं, 2006 में यहाँ…”

“संकटमोचन मंदिर और रेलवे स्टेशन पे…” रीत बात काटकर बोली।

“हाँ वही उसमें भी हुजी का हाथ सस्पेक्ट था। साउथ इंडिया और नेपाल बंगला देश से जुड़े इलाकों में थोड़ा सपोर्ट बेस है। ये ज्यादातर सेकंड या थर्ड लेवल के लोकल बदमाशों की मदद से हरकतें करते हैं…” डी॰बी॰ ने समझाया।



इसका मतलब की ये साजिश बड़ी लेवल की है। डी॰बी॰ फिर थोड़े चिंतित हो गए।

“देखिये परेशानी तो है लेकिन चिंता की कोई बात नहीं है…” रीत बोली- “बी पाजिटिव…”



डी॰बी॰ ने तुरंत मुश्कुराते हुए हाथ बढ़ाया- “इट्स ग्रेट। मैं भी पाजिटिव हूँ…”

मेरे फोन पे एक मेसेज आया। मैंने डी॰बी॰ से उनके सारे मेल आई॰डी॰ पूछ के और अपने दो-तीन मेल आई डी, फेस बुक ऐकौन्ट्स के साथ मेसेज वापस कर दिए।
 
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बाम्ब ब्लास्ट कैसे हुआ?
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रीत फिर शुरू हो गई थी…”मैं बताऊँ की बाम्ब ब्लास्ट कैसे हुआ?”

हम दोनों समझ गए थे की ये अपनी कहानी सुनाये बिना रहेगी नहीं। अभी तक न तो मुझे क्लियर था ना डी॰बी॰ को ये कैसे हुआ होगा। जबकि हम दोनों वहीं थे। लेकिन हमने साथ एक बोला- “चलो सुना दो…”

उल्टे रीत ने मुझसे सवाल पूछा- “जब बाम्ब एक्सप्लोड हुआ तो तुम लोग कहाँ थे…”

“अरे यार तुम्हें मालूम है, हम लोग सीढ़ी पे थे बाहर से किसी ने ताला बंद कर दिया था। ये तो अच्छा हुआ बाम्ब एक्सप्लोजन से वो दरवाजा टूट गया…”

रीत ने मेरी बात काटी और अगला सवाल दाग दिया, मुझी से- “और पुलिस बाम्ब एक्सप्लोजन के बाद अन्दर गई…”


“हाँ यार…” मैं किसी तरह से अपनी झुंझलाहट रोक पा रहा था।“बताया तो था की हम लोग बाहर आ गए एक्सप्लोजन के बाद तब पोलिस वाले, कुछ पैरा मेडिक स्टाफ और फोरेंसिक वाले अन्दर गए थे मेरे सामने…”

डी॰बी॰ ने मेरी ताईद की और अपनी मुसीबत बुला ली।

“अच्छा आप बताइये। जब पुलिस वाले और फोरेंसिक टीम अन्दर गई तो उन्होंने चुम्मन और रजऊ को किस हालत में और कहाँ पर देखा…” रीत ने सवाल दगा।

“वो दोनों बरामदे में थे। पीछे वाली सीढ़ी जिस बरामदे में खुलती है वहाँ… दोनों गिरे हुए थे। रजऊ के ऊपर छत का कुछ हिस्सा गिरा था और चुम्मन के ऊपर कोई अलमारी गिर गई थी। जिस कमरे में बाम्ब था वहां नहीं थे…” डी॰बी॰ ने पूरी पिक्चर साफ कर दी।

“करेक्ट। तो तुम लोग तो सीढ़ी पे थे और वो दोनों बरामदे में और तुमने पहले ही बता दिया था की वो बंम्ब बिना टाइमर के था और रिमोट से भी एक्सप्लोड नहीं हो सकता था…”रीत अब मेरी और फेस की थी- “तो सवाल है की वो एक्सप्लोड कैसे हुआ?”

“इसका जवाब तो तुम देने वाली थी…” मेरा धैर्य खतम हो रहा था। मैंने थोड़ा जोर से बोला।

“चूहे से…” वो मुश्कुराकर आराम से बोली।

डी॰बी॰ खड़े हो गए।

मैं डर गया,..... मुझे लगा की वो नाराज हो गए।

लेकिन खड़े होकर पहले तो उन्होंने क्लैप किया फिर रीत की ओर हाथ मिलाने के लिए हाथ बढ़ाया। रीत भी उठ गई और उसने तपाक से हाथ मिलाया।



डी॰बी॰ बैठ गए और बोले-

“यही चीज मुझे समझ में नहीं आ रहा थी। फोरेंसिक एवीडेंस यही इंडिकेशन दे रहे थे। लेकिन इस तरह कोई सोच नहीं रहा था, ना सोच सकता था। तार पर बहुत शार्प निशान थे, वो चूहे के बाईट मार्क रहे होंगे और लाजिक तुमने सही लगाया, न ये लोग थे वहाँ, ना चुम्मन था और ना पुलिस। तो आखीरकार, कैसे एक्सप्लोड हुआ और फोरेंसिक एविडेंस से कन्फर्म भी होता है। एक मरा चूहा भी वहां मिला…”



“उस चूहे ने बहुत बड़ा काम किया बाम्ब के बारे में पता चल गया…” रीत बोली।



मुझे डर लगा की अब वो कहीं दो मिनट मौन ना रहें।
 
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बाम्ब
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लेकिन डी॰बी॰ बोले और मुझसे मुखातिब होकर- “यू नो, इट वाज अ परफेक्ट बाम्ब जो रिपोर्ट्स कह रही हैं। मेजर समीर के लोगों ने भी चेक किया और अपने फोरेंसिक वालों ने भी। सैम्पल्स बाईं प्लेन हम लोगों ने दिल्ली सेन्ट्रल फोरेंसिक लेबोरटरी में, हाँ वही जो लोदी रोड में है, भेजे थे। प्रेलिमिनरी रिपोर्ट्स का वाई मेसेज आया है। सिर्फ टाइमर और डिटोनेटर फिट नहीं थे…”

“फिट नहीं थे मतलब…” मैं बोला। ये मेरी पुरानी आदत है की ना समझ में आये तो पूछ लो और इस चक्कर में कई लोग नाराज हो चुके हैं।


“मतलब ये…” डी॰बी॰ मुश्कुराते हुए बोले जैसे टीचर क्लास में ना समझ बच्चों को देखकर मुश्कुराते हैं। “वो लगाकर निकाल लिए गए थे। इसमें डिटोनेटर टी॰एन॰टी॰ के इश्तेमाल हुए थे जो नार्मली मिलेट्री ही करती है। इसके पहलेकर एक्स्प्लोजंस में नार्मल जो क्वेरी वाले डिटोनेटर्स, पी॰ई॰टी॰एन॰ इश्तेमाल करते हैं वो वाले होते हैं। दूसरी बात, इसमें डबल डिटोनेटर्स लागए गए थे। दूसरा डिटोनेटर्स स्लैप्पर डिटोनेटर्स।

अब बात काटने और ज्ञान दिखाने की जिम्मेदारी मेरी थी।

“वही जो अमेरिका में लारेंस वालों ने बनाए हैं। वो तो बहुत हाई ग्रेड। लेकिन मुझे वहां दिखा नहीं…” मैंने बोला और मुड़कर रीत की तरफ देखा की वो कुछ मेरे बारे में भी अच्छी राय बनाये लेकिन वो डी॰बी॰ को देख रही थी। और डी॰बी॰ ने फिर बोलना शुरू कर दिया।

“बात तुम्हारी भी सही है और मेरी भी की डिटोनेटर्स लगाकर निकाल लिए गए थे। लेकिन इन के माइक्रोस्कोपिक ट्रेसेस थे। और तीसरी बात। इसकी डिजायन इस तरह की थी की फिजिकल बैरियर्स के बावजूद सेकेंडरी शाक्वेव्स 200 मीटर तक पूरी ताकत से जायेंगी। जिसका मतलब ये की उस समय जो भी उसकी जद में आएगा, सीरियसली घायल होगा। लेकिन डिटोनेटर की तरह शार्पनेल भी अभी नहीं लगे थे बल्की डालकर निकाल लिए गए थे…”

बाम्ब की शाक वेव्स से मुझसे ज्यादा कौन परिचित हो सकता है, उसने सीढ़ी का दरवाजा जिस तरह तोड़कर उड़ा दिया था। सर्टेनली जबर्दस्त बाम्ब था।

“इसके अलावा इसमें एंटी पर्सोनेल माइंस के भी एलिमेंट्स हैं…” डी॰बी॰ ने बात बढ़ाई लेकिन रीत ने काट दी।

“इसका मतलब मेरा गेस सही था…” वो बोली।

“मतलब…” हम दोनों साथ-साथ बोले।
“मतलब साफ है…” अपनी प्लेट की चाट खतम करने के बाद मेरी प्लेट की चाट खतम करते वो बोली।

“तुम फालतू के सवाल कर रहे थे। ताला किसने लगाया, फायरिंग किसने करवाई, इत्यादि सही सवाल पूछो सही जवाब मिलेगा…” वो चाट साफ करते बोली।



मैं और डी॰बी॰ दोनों सही सवाल का इन्तजार कर रहे थे। एक मिनट रुक के थोड़ा पानी पीकर जवाब मिला।



“सही सवाल है। क्यूं किया? किसका इंटरेस्ट हो सकता है। करने वाला तो कोई भी हो सकता है। वो माध्यम मात्र है…” रीत गुरु गंभीर स्वर में बोली।



“जी गुरु जी। सत्य वचन…” मैंने हाथ जोड़ कर कहा।



“बच्चा प्रसन्न रहो, सारी इच्छाएं पूरी हों…” रीत ने आशीर्वाद की मुद्रा में हाथ उठाकर जवाब दिया और डी॰बी॰ को देखकर अपनी बात आगे बढ़ाई।



“आपने जो बाम्ब का डिस्क्रिप्शन दिया ना उससे मेरा शक सही लग रहा है, कोई है जो ये नहीं चाहता था की चुम्मन जिन्दा बचे और आप लोगों के हाथ लगे। उससे भी ज्यादा वो ये नहीं चाहता था की ये, उसने मेरी और इशारा करके बोला की जिन्दा बचे। मतलब किसी हालत में उस बाम्ब का डिस्क्रिप्शन आप लोगों तक पहुँचे। उसकी प्लानिंग ये रही होगी की चाहे उस सी॰ओ॰ के जरिये या उसने बाम्ब डिस्पोजल स्क्वाड में किसी को पटा रखा हो जो बाम्ब बदल दे। उसकी जगह कोई टूट पुंजिया जैसे बाम्ब नार्मल गुंडे रखते हैं, वो रखवा दे। जिससे उस डिटोनेटर के बारे में, जो मिलेट्री के टाईप के बारे में, उसके एक्सप्लोसिव क्षमता के बारे में किसी को पता ना चले। क्योंकि बड़ी मुश्किल से उसने ये बाम्ब इकट्ठे किये होंगे, कहीं बनाये होंगे, और उसके डिटोनेटर शार्पनेल अलग रखे होंगे।



तो बाम्ब के बारे में पता चलने से अब उनकी पूरी प्लानिंग खतरे में पड़ सकती है और सबसे ज्यादा खतरा इनसे इसलिए था की इन्होंने बाम्ब को देखा था। इन्हें और किसी चीज की समझ हो न हो। इन सब चीजों की थोड़ी बहुत समझ तो है और अगर बाम्ब बदला जाता तो ये बाद में पहचान सकते थे की ये वो बाम्ब नहीं है। और अभी भी सबसे ज्यादा खतरा इन्हीं पे है। क्योंकि और किसी को भले ही ना मालूम हो आपके सी॰ओ॰ को तो मालूम ही है की वो लड़कियां कैसे छूटीं और इनका क्या रोल है। तो इसका मतलब की उन लोगों की भी मालूम होगा। इसलिए…”



रीत ने बात पूरी की और हम में से कोई नहीं बोला।



डी॰बी॰ ने चुप्पी तोड़ी- “तुमने एकदम सही कहा। तुम लोग घबड़ा जाओगे इसलिए मैंने नहीं बताया था। जब ये लोग यहाँ से निकले तो मैंने टेल करने के लिए एक एल॰आई॰यू॰ (लोकल इंटेलिजेंस यूनिट) के आदमीं को बोला था तो उसने ये देखा की कोई और भी इन लोगों का पीछा कर रहा है और वो थोड़े प्रोफेशनल भी थे। जब ये लोग माल से रुक के चले तो आदमी बदल गया, लेकिन मोटर साइकिल नहीं बदली। सड़क पे भीड़ कम थी इसलिए उसको देखन मुश्किल नहीं था।



तुम लोगों के घर के दो चौराहे पहले एक नाकाबंदी पे एल॰आई॰यू॰ वाले ने मेसेज दे दिया था। वहां वो नाकेबंदी में पकड़ा गया। मैं यहाँ से लौटकर जाऊँगा तो उससे पूछताछ खुद करूँगा। लेकिन मुझे पूरी उम्मीद है की कुछ खास नहीं निकलेगा। उसे किसी ने फोन पे बोला होगा और बैंक में पे कर दिया होगा। दूसरी जो ज्यादा खतनाक बात है, वो ये की यहाँ के खतरनाक प्रोफेशनल गैंग्स को किसी ने तुम्हारी फोटो दी है, अभी सिर्फ वाच करने के लिए…”



डी॰बी॰ की बात सुनकर मैं नहीं डरा ये कहना गलत होगा।



रीत भी थोड़ी सहम गई, लेकिन कुछ रुक कर बोली- “लेकिन अब करना क्या है?”



फिर कुछ रुक कर वो बोली- “मेरे ख्याल से पहली चीज तो ये है की तुम यहाँ से गुड्डी को लेकर जल्दी से जल्दी चले जाओ और अब इस घटना से किसी भी तरह से जुड़े मत रहो। वहां जाकर बस जिस काम के लिए तुम आये थे उस तरह से रहो, किसी को भी कानोंकान खबर न हो। न तुम्हारे चाल चलन से ये लगे की तुम्हारे दिमाग में क्या चल रहा है?”



“एकदम फौरन से पेश्तर…” डी॰बी॰ ने भी बड़ी जोर से सिर हिलाया।


“लेकिन…” मैंने बोला।


लेकिन डी॰बी॰ और रीत एक साथ बोले लेकिन वेकिन कुछ नहीं।
चाहता तो मैं भी यही था की गुड्डी के साथ जल्द से जल्द घर के लिए निकलूं, गुड्डी ने इतनी प्लानिंग की थी, कल शाम मुझे ले जाकर मेरे सामने मुझे दिखाकर आई पिल, माला डी, वैसलीन की बड़ी सी शीशी खरीदी, और आँख नचा के बोली, ' क्या पता कल किसी का फायदा हो जाए " और आज होली के बाद नहा के बाल धो के निकली तो जिस तरह से मुस्करा के वो बोली थी, ' पांच दिन वाली छुट्टी ख़तम " तो उससे बढ़ के ग्रीन सिग्नल क्या होता, फिर कल चंदा भाभी ने ट्रेनिंग दी, पहली बार मैंने स्त्री सुख भोगा, देह के सब रहस्य जाने और आज फिर दिन में संध्या भाभी के साथ बाथरूम में, लेकिन ये सब ट्रेनिंग और प्रैक्टिस थी, असली खेल तो आज रात गुड्डी के साथ था, और अगर मैं रुक जाता तो सब गड़बड़ हो जाता और ये मुझसे ज्यादा रीत जानती थी,

इसलिए जैसे ही मैंने कहा की मैं रुक जाता हूँ, जोर का पाद प्रहार रीत का मेरे टखनों पर हुआ

और मैं मान गया की मैं वापस चला जाऊँगा अभी बस थोड़ी देर में और यहाँ का मोर्चा रीत के हवाले
 
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रीत-चाचा चौधरी

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“लेकिन मैं। मेरा मतलब आई वूड लाइक टू इन्वोल्व माइसेल्फ़…” मैंने धीरे से बोला। फिर मैंने ही रास्ता सुझाया- “ठीक है, आप रीत के जरिये मुझसे टच में रहिएगा। और मैं जो भी जानकारी मिलेगी। रीत से तीन फायेदे होंगे…”

रीत ने मुझे घूर के देखा और बोली- “हे अपनी तारीफ करने के मामलें में मैं आत्म निर्भर हूँ। मुझे किसी की हेल्प नहीं चाहिए…”


मैंने उसकी ओर देखा तक नहीं। देखता तो फिर सरेंडर कर देता। और अपनी बात जारी रखी-

“पहली बात रीत के बारे में “उन लोगों…” को कुछ पता नहीं है। ना वो मेरे साथ पोलिस स्टेशन पे थी, हम लोगों की मुलाकात भी आज ही हुई है, इसलिए उससे इस घटना का कनेक्शन कोई नहीं जोड़ पायेगा और मैं रीत के थ्रू आपसे कान्टैक्ट में रह सकता हूँ…”

दूसरी बात नेटवर्किंग और जगह की जानकारी, तो रीत को बनारस के एक-एक गली कूचे, घाट, तालाब सब की नालेज है। उसके दोस्तों का सर्किल बहुत बड़ा है और सबसे उसकी अच्छी बांडिंग है…”

और तीसरी बात। रीत सुपर इंटेलिजेंट है। लोग कहते हैं चाचा चौधरी का दिमाग कम्पूटर से भी तेज चलता है लेकिन उसका दिमाग चाचा चौधरी से भी तेज चलता है…”

मेरी बात खतम होते ही डी॰बी॰ बोल पड़े- “दिमाग की बात तो सही है…” फिर रीत की ओर मुड़कर मुश्कुराते हुए बोले- “अगर तुम्हारा ½ दिमाग भी इसके पास होता न तो देश का भला हो जाता…”


“और जो भी है, वो बस सिर्फ एक जगह खर्च होता है…” रीत ने पलीता लगाया।

जब तक रीत और डी॰बी॰ की बात चल रही थी। मैं फोन में आये मेसेज देख रहा था। मार्लो के मसेज थे।

डी॰बी॰ अचानक सपने से जागे और रीत से बोले- “चाचा चौधरी। हे तुम पढ़ती हो क्या?”

“एकदम और आप…” रीत ने पूछा।

और चौथी बार उन लोगों ने हाथ मिलाया।


“चाचा चौधरी का ट्रक…” डी॰बी॰ ने इम्तहान लिया।

“डगडग…” रीत बोली और उसने सवाल दाग दिया- “चाचा चौधरी का कुत्ता…”

“राकेट…” डी॰बी॰ ने जवाब दिया।

सही जवाब रीत उछल कर बोली।

और वो लोग फिर हाथ मिलाते उसके पहले ही मैंने धमाका कर दिया।


हम सब लोगों के फोन मेल सब बुरी तरह हैक हो रहे हैं और पिछले दो घंटे से ये शुरू हुआ है और डी॰बी॰ को मैंने उसके ई-मेल के डिटेल दिखाए जिसमें दो तो उन्होंने अपनी फियान्सी को किये थे। मेरे भी सारे ई-मेल हैक हो चुके थे। यही नहीं जो भी एड्रेसेज मेल में थे कुकी वहां तक पहुँचकर उनके कम्प्यूटर को भी खंगाल रही है…”

मेरे मेसेज को ध्यान से देखते हुए डी॰बी॰ बोले- “कैसे पता चला…”

“मैंने बताया था ना की मेरे कुछ फ्रेंड्स है। ये मार्लो है। पहले हैकिंग करता था अब एक सिक्योरिटी फर्म में…” मैंने बताया।

“अरे उसे कैसे तुमने पकड़ लिया। मालूम है मुझे मिटनिक का राईट हैंड। फिर तो अब क्या करना होगा…” फोन मुझे वापस करते हुए वो बोले।

“हाँ और उन्होंने मिटनिक सिकुरिटी कंसल्टेंसी की पूरी ताकत हमारे साथ लगा दी है। तीन चीजें उसने बतायीं हैं। पहली तो हम इन मेल्स और मोबाइल का इश्तेमाल पहले जैसे ही करते रहें जिससे उनको शक नहीं होगा, फिर जिन कूकीज के जरिये हम्मारी इन्फोर्मेशन लीक हो रही है, उसी पे पिगी बैकिंग करके वो उन कम्प्यूटरों का पता लगायेंगे।

दूसरी बात ये की हमें नए मोबाइल, नए सिम इस सम्बन्ध में कम्युनिकेट करने के लिए इश्तेमाल करने के लिए करने होंगे। उसके लिए भी वो एक एनक्रिप्शन प्रोग्राम भेज रहा है। और इन के नंबर मैं उसे बता दूंगा। वो सारे मेसेज एक सर्वर के थ्रू रूट होंगे जिसमें एक क्रिप्टो सिस्टम है जो इन्फोर्मेशन थ्योरीटीकली सेक्योर्ड। और तीसरी बात हम सोशल नेटवर्किंग साइट्स का और चैटिंग साइट्स का इश्तेमाल करें…”

“मेरी कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है…” रीत मुँह बनाकर बोली।

मैंने उसे चिढ़ाया- “विकिपीडिया देवी की शरण में जाओ…”

डी॰बी॰ एक मिनट तक शांत बैठे रहे, फिर अंगड़ाई लेकर बोले ये तो बहुत अच्छा हुआ, अब हम डिसइन्फोर्मेंशन भी फैला सकते हैं।



“मतलब गलत सूचना देकर गुमराह करना…” मैंने रीत को फिर समझाया।

“इतना मुझे भी मालूम है…” वो मुँह बनाकर बोली।

डी॰बी॰ ने कागज कलम निकाली और मुझे और रीत को समझाना शुरू किया।
 
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रीत, डीबी और मैं

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डी॰बी॰ एक मिनट तक शांत बैठे रहे, फिर अंगड़ाई लेकर बोले ये तो बहुत अच्छा हुआ, अब हम डिसइन्फोर्मेंशन भी फैला सकते हैं।

“मतलब गलत सूचना देकर गुमराह करना…” मैंने रीत को फिर समझाया।

“इतना मुझे भी मालूम है…” वो मुँह बनाकर बोली।

डी॰बी॰ ने कागज कलम निकाली और मुझे और रीत को समझाना शुरू किया।


“अब ये साफ हो गया। ये हमले की तैयारी है। इसका स्ट्रकचर सेल बेस्ड होगा।

यानी एक आदमी जो यहाँ पे काम करने वाला है, वो अपनी टीम खुद रिक्रूट करेगा, लेकिन उससे कम से कम सम्बन्ध रखेगा। वो अपने एक कंट्रोलर को जानकारी देगा वो भी बहुत जरूरत पे और एक ओवर आल कंट्रोलर होगा जो शायद ओवर सीज में हो। जो इसका डायरेक्ट कंट्रोलर है, वो खुद या अपने किसी साथी की सहयता से सपोर्ट सर्विसेज देगा। जैसे इस केस में बाम्ब की सप्प्लाई, इन्फार्मेशन सिकुरिटी एक तीसरा आदमी कंट्रोल करेगा, जो सीधे रिपोर्ट करेगा।


दूसरी बात ये है की इसका मतलब ये मल्टी प्रांग अटैक है और अब हमें इसके हिसाब से प्लान करना होगा…”



रीत बहुत धयान से उस प्लान को देख रही थी और हुंकारी भर रही थी।

“तो पहला काम होगा, अपना कम्युनिकेशन नेटवर्क ठीक करना…” मैंने बोला।

मेरा ध्यान उस बैग पे गया जिसमें महक ने दो ब्लैक बेरी, दो आई पैड और दो टैबलेट रखे थे। दो ब्लैकबेरी और एक टैबलेट निकालकर रीत को पकड़ा दिया।

“ये एक फोन तुम रखो और दूसरा गुंजा के दे देना और ये टैबलेट भी। मैं इनमें इन्क्रिप्शन प्रोग्राम ट्रांसफर कर दे रहा हूँ। तुम इनसे ही मुझसे कान्टैक्ट करना और डी॰बी॰ से भी। बीच-बीच में गुंजा के फोन से…”

“और तुम…” रीत ने सीरियस होकर पूछा।

“मैं तुम्हारे साथ फेसबुक, चैट और ट्विटर के जरिये कान्टैक्ट में रहूँगा…”

मैंने दूसरे टैबलेट की ओर इशारा किया। मेरे फोन पे रिंग करके तुम इशारा कर सकती हो और।

मेरी बात डी॰बी॰ ने बीच में काट दी। उन्होंने अपने कुरते की जेब से लम्बा सा पर्स निकाला और उसमें से 6 सिम निकालकर रख दिए। दो मैंने उठा लिए।

डी॰बी॰ ने मुझे घूर कर देखा और रीत को समझाया- “ये सारे सिम एक्टिव हैं इसमें से तीन फारेन के हैं एक आस्ट्रेलिया, एक साउथ अफ्रीका और एक कनाड़ा और तीन लोकल हैं सारे अन लिमिटेड प्री पेड़ हैं। तुम इसको इश्तेमाल करो और साथ में ये डाटा कार्ड जो प्रीपेड भी है, बहुत फास्ट है और इसकी रेंज बहुत ज्यादा है। मैंने अपना एक फोन एक्टिव करके नम्बर तुम्हें बता दूंगा…”

जब तक डी॰बी॰ रीत को समझा रहे थे मैंने वो नंबर भी मार्लो को भेज दिए। मानिटरिंग के लिए।

रीत ने इसी बीच फोन में सिम लगा भी लिया और बोली मेरे खयाल से एक और आइडिया है मेरा। अगर मैं एक नया अकाउंट फेस बुक पे बनाऊं तो किसी को शक हो सकता है।

कितने एकाउंट है तुम्हारे फेस बुक पे। मैंने पूछा

चार। एक लड़कों के नाम वाला भी है। तो क्या तुम्हीं लोग हर जगह मल्टी एकाउंट बना सकते हो। तो मैं ये कह रही थी की मैं अपनी दो-चार सहेलियों से उनके एकाउंट ले लेती हूँ और उनको बोल दूंगी की जीतनी देर तक मैं इश्तेमाल करूँगी वो लाग आन ना करे…”

“और पासवर्ड…” मैं चौंक कर देख रहा था।

“दे देंगी। हम लोग तुम लोगों की तरह स्वार्थी नहीं होते…” रीत ने आँख नचाकर चिढ़ाया।

डी॰बी॰ ने बोला। नेक्स्ट।

रीत बोली- “मैंने भी कई साइट्स पे जासूसी सीरयल पढ़ा है। हमें उसका जो फोन करता रहता है, कोई कोड रखना पड़ेगा। कब तक ये वो करके बात करते रहेंगे…”

डी॰बी॰ ने कुछ सोचा फिर फैसला सुना दिया। उसका कोड नेम होगा । और मेरी और इशारा करके बोले, तुम्हारा A और रीत तुम्हारा A 2।



रीत ने मेरी ओर देखा। मैंने समझाया अभी शंघाई पिक्चर आई थी ना वो एक ग्रीक सिनेमा पे बनी थी। ग्रीक भाषा में जेड के कई मतलब होते हैं और उसमें से एक मतलब होता है डेथ। उस आदमी के पीछे हम और तुम पड़े हैंउसका कोड होगा Z



डी॰बी॰ ने कहा हम लोगों के पास दो वर्केबल जानकारी है। एक तो नाव से एक खास टाइम पे बात करने वाला आदमी और दूसरा।

मैंने बात पूरी की चुम्मन।



“हाँ उन्होंने बात आगे बढ़ाई, मैं कोशिश करूँगा की किसी तरह उसे वापस ले आऊं लेकिन तब तक जेड के बारे में पता करना पड़ेगा घाट वालों से…”

“वो आप रहने दीजिये। मेरा मतलब मैं जानती हूँ एक सज्जन को। उन्हें बनारस के सारे घाटों के बारे में वहां काम करने वालों के बारे में मालूम है हम लोग उनसे कान्टैक्ट कर सकते हैं। नाम है फेलू दा, पहले कलकत्ता में रहते थे लेकिन उनके एक मित्र थे मानिक दा। उनके गुजरने के बाद से बनारस आ गए हैं और सन्देश भी बहुत अच्छा खिलाते हैं खास तौर से गुड का…” रीत बोली- “मैं आपको उनके पास ले चलती हूँ…”


तो अब तक तीन बातें तय हो गयी थीं और हम तीनो का रोल भी,

मुझे हैकर्स से कांटेक्ट में रहना था, जो इंटेलिजेंस रीत को मिलेगी, या हैकर्स से मिलेगी उसे अनलाइज करना होगा, लेकिन सबसे बड़ी बात, मुझे एकदम बैकग्राउंड में रहना होगा, रीत के अलावा किसी और से कांटेक्ट से बचना होगा, और आज ही जल्द से जल्द गुड्डी के साथ अपने घर आजमगढ़ जाना होगा,

रीत भी यही चाहती थी, गुड्डी के पीछे वही पड़ी थी की तेरा वाला बुद्धू है, तुझे ही कुछ पहल करनी होगी, और कल जो गुड्डी ने मेरे साथ मेरे सामने आई पिल, माला डी और वैसलीन की बड़ी शीशी खरीदी थी, फिर साफ़ होली के बाद बताया था की उसकी पांच दिन वाली छुट्टी ख़तम हो गयी तो फिर आज की रात, और रीत ने साफ़ साफ़ मुझे बोल भी दिया था, " स्साले, चिकने अगर तू मेरी छोटी बहन का माल न होता न तो बिना तुझे निचोड़े छोड़ती नहीं, हाँ एक बार उसके साथ मस्ती कर ले फिर तो होली के बाद लौटोगे ही, उसी अपनी छोटी बहन के सामने तेरा रेप नहीं किया तो उसकी बड़ी बहन नहीं,

और मैं भी चाहता था की मैं जल्द से जल्द घर पहुंचूं गुड्डी के साथ, तीन साल से सपने देख रहा था और आज जब गुड्डी को ले जाने का टाइम आया तो पहले गुड्डी की सहेली की दूकान पे छोटे चेतन और उसके साथियों से, फिर गूंजा के स्कूल में और अब ये, फिर सबसे बड़ी ाबत मैं बनारस में रुकने का भाभी को क्या बताता, तो मेरा यह रोल मुझे भी सूट कर रहा था और डी बी को भी, डीबी ने मुझे अपने रिस्क पर स्कूल में घुस के गूंजा, महक और शाजिया को निकलवाने का काम किया था और ये बात किसी को ऑफिसियली नहीं बतायी गयी थी

और रीत के जिम्मे बनारस की जिम्मेदारी, बनारस के गली कूचों की उससे ज्यादा किसी को जानकारी नहीं थी, फिर डीबी उसके इंटेलीजेंश के कायल हो गए थे और उन्हें उसपर विशवास भी हो गया था

अब तीन बातें साफ़ साफ़ थी, जिसका कोड z हम लोगो ने रखा था वो लोकल किंग पिन है, दुसरे वो नाव में से गंगा जी से ही चुम्मन से बात करता था और बाकी लोगों से भी नाव से ही कांटेक्ट करता होगा जिससे उसकी काल ट्रेस न हो सके, और तीसरी बात अगर z के फोन का या सिम का भी पता चल जाए और z किसी तरह ट्रेस हो जाए तो लोकल नेटवर्क कम से कम पकड़ में आ सकता है और उसी के साथ उस की काल ट्रेस कर के अगर ये पता चल जाए की उसका आका कौन है तो बाकी प्लानिंग का भी कुछ अंदाजा लग जाएगा।


बिल डी॰बी॰ ने पहले ही पे कर दिया था। हम लोग उतर कर रीत के साथ चल दिए।
 
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komaalrani

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तीन कहानियों में दो के अपडेट आ गए यानि अगस्त में पांच पोस्ट्स हो गयीं

और अब कुछ दिन में तीसरी कहानी का भी अपडेट आ ही जाएगा

लेकिन अब बारी पाठक मित्रों की है वो कितना कहानी का साथ देते हैं।

पिछली बार के अपडेट पर दो मित्रों ने कहानी पर और दो ने मेरे कमेंट पर कमेंट किया था, ढांढस बधाने का

देखती हूँ इस बार कितने कमेंट आते हैं
 
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