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बाप रे जिस तरह का स्टार्टिंग वाला माहोल दिखाया की बन रही बिल्डिंग के इट रोडे गायब थे. मुजे लगा की अभी भी साली बचाओ अभियान चालू ही है. लगता है एक और हमला होगा. ऊपर से इस औरत के बोलने पर डाउट भी जा रहा था.फागुन के दिन चार भाग ३७ ---
और दंगा नहीं हुआ
४,९०,२१०
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कैसे टला दंगा
और मैं सोचने लगा ये परिवर्तन हुआ कैसे, कुछ तो मैंने सिद्द्की से सुना था, कुछ नेपथ्य से कुछ अंदाज लगाया और कुछ बाद में पता चला।
सबसे बड़ी बात तो यही थी की मैं नहीं चाह रहा था की दंगा हो, अगर दंगा शुरू भी हो जाता तो कर्फ्यू लगना तय था, और एक बार कर्फ्यू लग गया तो फिर तो मैं यहीं फंस के रह जाऊँगा।
वो ड्रैगन छाप पड़ोसन जिस तरह से बोल रही थीं साफ़ था की उन्हें अंदरखाने की खबर थी
![]()
( बाद में पता चला की उनके पति पहले कार्पोरेटर थे, लेकिन पिछली बार हार गए थे और अब कुछ महीनो बाद जो इलेक्शन होना था, उसमे फिर से ताल ठोंकने की तैयारी में थे, दिल्ली तो नहीं पर लखनऊ तक पिछली सरकार वाली पार्टी में उनकी पहुँच थी और १०-१२ क्रिमिनल केस भी थे, पैसे से भी मजबूत थे ) और जिस तरह से उन्होंने कहा था की सबस सांझ हो जाने दो, एक एक कर के कुल मोहल्लों के ट्रांसफार्मर फुकेंगे और जिस तरह से जिन मोहल्लों के उन्होंने नाम गिनवाए, एक तो वही था जहाँ गुड्डी की सहेली रहती थी, और जिस गली से हम लोग आये थे, दो बार गुंजा पर हमला हुआ,
और टीवी के एंकर, खासतौर से लोकल चैनल वाली तो जम के आग में पेट्रोल डाल रही थीं,
लेकिन और किसी को क्या कहूं, जब हम लोग गली से गुजर रहे थे, जाते समय जो टूटते हुए मकानो के पत्थर ईंटे थे वो आते समय सब गायब, मतलब साफ़ था, छतो पर पहुँच गए थे, और फिर जिस तरह दुकाने बंद थीं, सन्नाटा था, सड़क पर ट्रैफिक नहीं थी, जो न समझे वो भी डर जाए टेंशन में पड़ जाए, और उस के बाद अफवाहें, जो सब की बातों से लग रहा था,
एकदम भुस का ढेर था, बस एक चिंगारी की देरी थी,
एक बड़ी चिंगारी तो हम लोगो ने बचा ली, गुंजा के साथ लेकिन आग लगाने वालों के लिए चिंगारी की कोई कमी नहीं होती, हाँ उस केलिए माहौल तेजी से बन रहा था और अगर उसकी दूनी तेजी से उसे रोका नहीं जाता तो शाम के साथ साथ उसे रोकना शायद मुश्किल हो जाता।
कुछ लोग चाहते हैं, दंगा हो, लेकिन बहुत लोग नहीं चाहते और उनके कारण होते हैं
लेकिन मेरा कारण सबसे अलग था,
गुड्डी, और घर
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मैं कितना प्लानिंग कर के आया था की सुबह सुबह गुड्डी को लेके,
.....लेकिन पहले वो सेठजी के यहाँ छोटा चेतन वाला काण्ड हो गया, वार्ना शाम के पहले तो पहुँच ही जाते,
फिर गुंजा के स्कूल वाली बात, वो और उसकी दोनों सहेलियां जिस तरह फंसी थीं
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और उसके बाद अब ये टेंशन, बस मैं यही सोच रहा था कुछ भी हो अब दुकाने वुकाने खुल जाएँ, ( रस्ते में पांडेपुर से गुलाबजामुन लेना था ) और हम लोग अब किसी तरह से घर को निकल पड़ें,
क्या क्या सोचा था रात के लिए, लेकिन अगर कहीं दंगा हो गया, कर्फु लग गया
उधर वो ड्रैगन नुमा महिला आग उगल रही थीं और इधर मैं घबड़ा रहा था, बस यही लग रहा था की किसी तरह हालत ठीक हो और मैं गुड्डी के साथ,
और गुड्डी ने कल शाम को जब दूकान पे आई पिल, माला डी और वैसलीन की बड़ी शीशी खरीदी
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तो मेरी उम्मीद पक्की हो गयी थी आज की रात के लिए, पर ये ससुरे दंगा वाले, इनकी तो
तभी चंदा भाभी की आवाज सुनाई पड़ी, गुंजा के सकुशल घर लौट आने की ख़ुशी में वो लड्डू बाँट रही थी और फिर लड्डू लेकर मेरे पास अपने कमरे में,
" हे मुंह खोलो, आज मैं डालूंगी, तुम डलवाओगे, अरे बड़ा सा खोल, एक बार में पूरा डालूंगी " और सच में बड़ा सा लड्डू उन्होंने मेरे मुंह में और मुंह बंद हो गया
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और चंदा भाभी का मुंह खुल गया, हलके से बोलीं,
" अरे आज रात में गुड्डी को भी ऐसे ही, पूरा डालना,… थोड़ बहुत जबरदस्ती करना हो तो कर लेना। आधे तिहे से किसी को मजा नहीं आता, "
मैं तो कुछ बोलने की हालत में नहीं था, लेकिन मेरे मन की बात चंदा भाभी ने पढ़ भी ली, बोल भी दी। बहुत खुश थीं, मुझे अँकवार में कस के भर लिया और कान में बोलीं,
" मैं दिल से कह रही हूँ, तोहरे मन क बात पूरी होगी। गुड्डी हरदम के लिए, आज तो ऐसे ही ले जा रहे हो, पहली लगन में बिदा करा एके गाँठ जोड़ के, अरे हम और गुड्डी क महतारी अलग नहीं है, और फिर दूबे भाभी की बात वो टाल नहीं सकतीं, और ऐसा लड़का, लेकिन एक बार बात आने मन की बिन्नो के, अपनी भौजी के कान में भी किसी तरह, अरे इशारा कर के भी, तोहरे मन क कुल मुराद पूर होई "
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मेरे पूरे तन बदन में फुरहरी होने लगे, मन में न जाने क्या हो रहा था, बस लग रहा था किसी तरह चंदा भाभी जो कह रही हैं बस हो जाए, बस हो जाए, ये लड़की हरदम के लिए,...
लेकिन चंदा भाभी तो चंदा भाभी, जैसे ही अलग हुयी, एक लड्डू दुबारा मेरे मुंह में और अब अपने स्टाइल में बोलने लगीं
" आज तो बिना फाड़े छोड़ोगे नहीं, कल जो इतना सिखाये पढ़ाये थे, रात भर, नाक मत कटवाना हमार। फाड़ना नहीं बल्कि चीथड़े कर देना, यौर दूसरा लड्डू इसलिए की गुड्डी को भी एक बार में तो छोड़ोगे नहीं, कम से कम दो बार, बल्कि तीन बार, तो दो ठो लड्डू तो खाने की बनती है। "
मेरे लिए एक बार फिर से बोलना मुश्किल था, लेकिन बस यही मन कर रहा था की लड्डू की तरह चंदा भाभी की मीठी मीठी बातें भी एकदम सच हों,
तभी बाहर बरामदे में गुंजा दिखी, अपनी सहेलियों के साथ, और मुझे देखते देख जोर से मुस्करायी और अपनी सहेलियों को दिखा के कस के जीभ निकाल के चिढ़ाया,
चंदा भाभी ने भी देख लिया और मुस्कराते हुए बोलीं
" और ये फाड़ने चीथड़े करने वाली बात खाली गुड्डी के लिए नहीं है, तेरी ससुराल वालो के लिए भी है, जितनी साली सलहज हो, और तेरी ससुराल वाली हो या गुड्डी के ससुराल वाली किसी बुर वाली को बिना भोंसडे वाली बनाये मत छोड़ना। "
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और वो बाहर की ओर मुड़ ली, और जब तक मैं समझ पातागुड्डी के ससुराल वाली मतलब मेरी मायकेवालियाँ और उनसे कुछ बोलता, वो एक बार मुड़ी , मुझे देख के गुंजा की ही तरह जीभ चिढायी और बाहर
लेकिन ये सब तभी होता जब दंगा नहीं होता और
दंगा नहीं हुआ।
तीन चार बातें हुईं।जो मुझे बाद में पता चलीं
Chalo danga rukaफागुन के दिन चार भाग ३७ ---
और दंगा नहीं हुआ
४,९०,२१०
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कैसे टला दंगा
और मैं सोचने लगा ये परिवर्तन हुआ कैसे, कुछ तो मैंने सिद्द्की से सुना था, कुछ नेपथ्य से कुछ अंदाज लगाया और कुछ बाद में पता चला।
सबसे बड़ी बात तो यही थी की मैं नहीं चाह रहा था की दंगा हो, अगर दंगा शुरू भी हो जाता तो कर्फ्यू लगना तय था, और एक बार कर्फ्यू लग गया तो फिर तो मैं यहीं फंस के रह जाऊँगा।
वो ड्रैगन छाप पड़ोसन जिस तरह से बोल रही थीं साफ़ था की उन्हें अंदरखाने की खबर थी
![]()
( बाद में पता चला की उनके पति पहले कार्पोरेटर थे, लेकिन पिछली बार हार गए थे और अब कुछ महीनो बाद जो इलेक्शन होना था, उसमे फिर से ताल ठोंकने की तैयारी में थे, दिल्ली तो नहीं पर लखनऊ तक पिछली सरकार वाली पार्टी में उनकी पहुँच थी और १०-१२ क्रिमिनल केस भी थे, पैसे से भी मजबूत थे ) और जिस तरह से उन्होंने कहा था की सबस सांझ हो जाने दो, एक एक कर के कुल मोहल्लों के ट्रांसफार्मर फुकेंगे और जिस तरह से जिन मोहल्लों के उन्होंने नाम गिनवाए, एक तो वही था जहाँ गुड्डी की सहेली रहती थी, और जिस गली से हम लोग आये थे, दो बार गुंजा पर हमला हुआ,
और टीवी के एंकर, खासतौर से लोकल चैनल वाली तो जम के आग में पेट्रोल डाल रही थीं,
लेकिन और किसी को क्या कहूं, जब हम लोग गली से गुजर रहे थे, जाते समय जो टूटते हुए मकानो के पत्थर ईंटे थे वो आते समय सब गायब, मतलब साफ़ था, छतो पर पहुँच गए थे, और फिर जिस तरह दुकाने बंद थीं, सन्नाटा था, सड़क पर ट्रैफिक नहीं थी, जो न समझे वो भी डर जाए टेंशन में पड़ जाए, और उस के बाद अफवाहें, जो सब की बातों से लग रहा था,
एकदम भुस का ढेर था, बस एक चिंगारी की देरी थी,
एक बड़ी चिंगारी तो हम लोगो ने बचा ली, गुंजा के साथ लेकिन आग लगाने वालों के लिए चिंगारी की कोई कमी नहीं होती, हाँ उस केलिए माहौल तेजी से बन रहा था और अगर उसकी दूनी तेजी से उसे रोका नहीं जाता तो शाम के साथ साथ उसे रोकना शायद मुश्किल हो जाता।
कुछ लोग चाहते हैं, दंगा हो, लेकिन बहुत लोग नहीं चाहते और उनके कारण होते हैं
लेकिन मेरा कारण सबसे अलग था,
गुड्डी, और घर
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मैं कितना प्लानिंग कर के आया था की सुबह सुबह गुड्डी को लेके,
.....लेकिन पहले वो सेठजी के यहाँ छोटा चेतन वाला काण्ड हो गया, वार्ना शाम के पहले तो पहुँच ही जाते,
फिर गुंजा के स्कूल वाली बात, वो और उसकी दोनों सहेलियां जिस तरह फंसी थीं
![]()
और उसके बाद अब ये टेंशन, बस मैं यही सोच रहा था कुछ भी हो अब दुकाने वुकाने खुल जाएँ, ( रस्ते में पांडेपुर से गुलाबजामुन लेना था ) और हम लोग अब किसी तरह से घर को निकल पड़ें,
क्या क्या सोचा था रात के लिए, लेकिन अगर कहीं दंगा हो गया, कर्फु लग गया
उधर वो ड्रैगन नुमा महिला आग उगल रही थीं और इधर मैं घबड़ा रहा था, बस यही लग रहा था की किसी तरह हालत ठीक हो और मैं गुड्डी के साथ,
और गुड्डी ने कल शाम को जब दूकान पे आई पिल, माला डी और वैसलीन की बड़ी शीशी खरीदी
![]()
तो मेरी उम्मीद पक्की हो गयी थी आज की रात के लिए, पर ये ससुरे दंगा वाले, इनकी तो
तभी चंदा भाभी की आवाज सुनाई पड़ी, गुंजा के सकुशल घर लौट आने की ख़ुशी में वो लड्डू बाँट रही थी और फिर लड्डू लेकर मेरे पास अपने कमरे में,
" हे मुंह खोलो, आज मैं डालूंगी, तुम डलवाओगे, अरे बड़ा सा खोल, एक बार में पूरा डालूंगी " और सच में बड़ा सा लड्डू उन्होंने मेरे मुंह में और मुंह बंद हो गया
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और चंदा भाभी का मुंह खुल गया, हलके से बोलीं,
" अरे आज रात में गुड्डी को भी ऐसे ही, पूरा डालना,… थोड़ बहुत जबरदस्ती करना हो तो कर लेना। आधे तिहे से किसी को मजा नहीं आता, "
मैं तो कुछ बोलने की हालत में नहीं था, लेकिन मेरे मन की बात चंदा भाभी ने पढ़ भी ली, बोल भी दी। बहुत खुश थीं, मुझे अँकवार में कस के भर लिया और कान में बोलीं,
" मैं दिल से कह रही हूँ, तोहरे मन क बात पूरी होगी। गुड्डी हरदम के लिए, आज तो ऐसे ही ले जा रहे हो, पहली लगन में बिदा करा एके गाँठ जोड़ के, अरे हम और गुड्डी क महतारी अलग नहीं है, और फिर दूबे भाभी की बात वो टाल नहीं सकतीं, और ऐसा लड़का, लेकिन एक बार बात आने मन की बिन्नो के, अपनी भौजी के कान में भी किसी तरह, अरे इशारा कर के भी, तोहरे मन क कुल मुराद पूर होई "
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मेरे पूरे तन बदन में फुरहरी होने लगे, मन में न जाने क्या हो रहा था, बस लग रहा था किसी तरह चंदा भाभी जो कह रही हैं बस हो जाए, बस हो जाए, ये लड़की हरदम के लिए,...
लेकिन चंदा भाभी तो चंदा भाभी, जैसे ही अलग हुयी, एक लड्डू दुबारा मेरे मुंह में और अब अपने स्टाइल में बोलने लगीं
" आज तो बिना फाड़े छोड़ोगे नहीं, कल जो इतना सिखाये पढ़ाये थे, रात भर, नाक मत कटवाना हमार। फाड़ना नहीं बल्कि चीथड़े कर देना, यौर दूसरा लड्डू इसलिए की गुड्डी को भी एक बार में तो छोड़ोगे नहीं, कम से कम दो बार, बल्कि तीन बार, तो दो ठो लड्डू तो खाने की बनती है। "
मेरे लिए एक बार फिर से बोलना मुश्किल था, लेकिन बस यही मन कर रहा था की लड्डू की तरह चंदा भाभी की मीठी मीठी बातें भी एकदम सच हों,
तभी बाहर बरामदे में गुंजा दिखी, अपनी सहेलियों के साथ, और मुझे देखते देख जोर से मुस्करायी और अपनी सहेलियों को दिखा के कस के जीभ निकाल के चिढ़ाया,
चंदा भाभी ने भी देख लिया और मुस्कराते हुए बोलीं
" और ये फाड़ने चीथड़े करने वाली बात खाली गुड्डी के लिए नहीं है, तेरी ससुराल वालो के लिए भी है, जितनी साली सलहज हो, और तेरी ससुराल वाली हो या गुड्डी के ससुराल वाली किसी बुर वाली को बिना भोंसडे वाली बनाये मत छोड़ना। "
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और वो बाहर की ओर मुड़ ली, और जब तक मैं समझ पातागुड्डी के ससुराल वाली मतलब मेरी मायकेवालियाँ और उनसे कुछ बोलता, वो एक बार मुड़ी , मुझे देख के गुंजा की ही तरह जीभ चिढायी और बाहर
लेकिन ये सब तभी होता जब दंगा नहीं होता और
दंगा नहीं हुआ।
तीन चार बातें हुईं।जो मुझे बाद में पता चलीं
वाह मान गए सेन को. हुण दबंग दबंग दबंग... ऐसा ही रुआब हे ना.मिस्टर सेन और सात खून माफ़ गैंग
बाज़ार
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शुरुआत सेन ने की, प्रेसिडेंसी कालेज वाले, आई ए एस, पहले अटेम्प्ट में और पहली पोस्टिंग अभी एडीम ,
" आधा टेंशन तो इस बात से हो रहा है की दुकाने बंद हैं और सड़के सूनी, और टीवी वाले वही बार बार दिखा रहे हैं , एक बार दुकाने खुली हों , सड़कें भरी हो तो अपने आप नार्मल्सी की फीलिंग आती है और फिर सारा टेंशन धीरे धीरे कम हो जाएगा "
एकदम डीबी मुस्कराते हुए बोले, और एक सीओ को उनके हवाले कर दिया, वो भी सिद्द्की की तरह खास था, एनकाउंटर में मशहूर और उसके अंडर में सात खून माफ़ वाली एक स्पेशल कमांडो यूनिट भी डेवलप की गयी थी जो पर्सनल रूप से लायल थे, जिनकी यूनिफार्म थोड़ी अलग थी और जिन्हे दूर से देख के बदमाशों की रूह काँप जाती थी।
सेन ने सबसे पहले मिठाई वालो को पकड़ा और उससे पहले फ़ूड अडल्ट्रेशन यूनिट को, उनके सरगना को बोला, कंट्रोल रूम आ जाओ लेकिन उसके पहले जितनी टीमें हैं वो सड़क पे होनी चाहिए, दस मिनट के अंदर,
" लेकिन सर, दुकाने तो सब बंद हैं , हम लोग भी घर पे एकदम कर्फ्यू जैसा"
बेचारा दबी जुबान में बोला और उसे जोर की पड़ी ,"
सरकारी नौकरी कर रहे हो की बीबी की, अगर दस मिनट में यहाँ नहीं पहुंचे तो सस्पेंशन आर्डर तेरे घर पहुंच जाएगा और अपनी टीम को भी और एंटी करप्शन में जोफाइले तूने चार साल से दबवा रखी हैं, न शाम को के पहले खुल जायेगीं। "
और सेन ने एरिया और दुकाने सब बता दी और बोला की बीस मिनट में पहुँच के सारी यूनिट रिपोर्ट करें की आगे क्या करना है।
अब फोन के दूसरी ओर जो था उसकी हालत खराब थी, लेकिन तब भी बोला, " लेकिन सर दूकान बंद होगी तो रेड कैसे "
" तभी तो रेड पड़ेगी , अंदर क्रिमनल एक्टिवटी हो , तो ताला नहीं टूट सकता, ….पेपर सब बाद में बन जाएंगे , फोन रखो और काम शुरू करो "
एरिया और दुकाने उन्होंने तय कर ली थीं
मैदागिन, चौक, गौदौलिया, लहुराबीर , लक्सा , और हर जगह पहली प्रायरिटी में सबसे बड़ी बड़ी पांच दुकाने
और फिर अगला फोन मिस्ठान विक्रेता संघ के सचिव को लगा , " एडीम साहेब बात करेंगे "
और उसने रोना शुरू कर दिया, " अरे साहेब आप ने काहें तकलीफ की , होली मिलने तो मैं खुद ही आने वाला था, बस हिम्मत नहीं पड़ रही थी। हुकुम करिये, लेकिन हम लोग लूट गए,, त्योहार का मौसम, हर दूकान ने कई क्विंटल ने गुझिया तैयार कर के रखी है लेकिन अब "
अबकी सात खून माफ़ वाली यूनिट के सीओ के अपनी ठंडी आवाज में बोला, " और अगर कर्फ्यू लगा तो रंगपंचमी के बाद भी नहीं हटेगा , पूरे दस दिन, और जब दूकान जलती है तो आग यही नहीं देखती की किसकी दूकान में लगाई गयी है, लूटने वाले भी नाम नहीं पढ़ते, साहेब जो कह रहे हैं सुन लीजिये, वरना कहिये तो सुनाने के लिए अपने कुछ लौंडो को भेज दूँ "
डर के मारे गुलाबी जाड़े में भी मिस्ठान विक्रेता संघ के सचिव को पसीना छूट गया, और जैसे सेन देख रहे हों
अब अगली आवाज उनकी आई,
" अरे हर साल होली के गिफ्ट आपका संघ देता था लेकिन अबकी प्रशासन आपको गिफ्ट दे रहा है और डबल गिफ्ट। एक तो होली में बड़ेछापे वापे पड़ते हैं की खोये में मिलावट, छेने में मिलावट, पिछले साल १५ क्विंटल मिठाई बर्बाद हुयी, नाम अलग खराब होता है। फिर दूकान बंद करने का टाइम, तो इस साल कोई रेड नहीं पड़ेगी, रंग पंचमी तक, और कप्तान साहेब से बात कर के दूकान का टाइम भी, लेकिन बस मैं आपको एरिया बता रहा हूँ, दूकान का नाम भी अगले आधे घंटे में दुकाने खुल जानी चाहिए। त्यौहार का टाइम है कुछ छूट वूट दीजिये , लोगों को खुश रखिये "
![]()
उधर से जी जी , के बाद जैसे लेकिन की आवाज आयी सेन गरजा , जैसे बंगाल की खाड़ी से बादल गरजे हों
" फ़ूड अडल्ट्रेशन डिपार्टमेंट वाले पहुँच रहे हैं , ये ऑफर लिमिटेड हैं अगले ३० मिनट के लिए उसके बाद वो आपको मालूम है बंद दूकान पर भी रेड पड़ सकती है, सील लग सकती है और एक बार सील लग गयी तो होली तो भूल जाइये दिवाली के बाद खुलेगी। तो बस लग जाइये फोन पे, ये डबल ऑफर जिसकी दुकाने अगले ३० मिनट में खुलेंगीं उनके लिए और आगे तो आप समझदार है और हाँ एक बात। अभी शहर में आप कह रहे थे सन्नाटा है तो उसी का फायदा उठा के अभी मैंने पेपर साइन कर दिए हैं डिमॉलिशन के लिए करीब १२८ दुकानों की भट्ठी और काउंटर नाली के बाहर है कई की तो दूकान भी, तो वो लोग भी पहुँच रहे हैं , इसी को नोटिस समझिये , और बंद दूकान को तोड़ना तो और आसान है, और आपके सब मेंबर को पता भी चल जाएगा की आपको ऑफर दिया गया था लेकिन,
" नहीं नहीं सर अभी सब दुकाने खुलती हैं " वो बोले और सेन ने फोन काट दिया लेकिन उसके पहले बोल दिया सिक्योरिटी की जिम्मेदाररी सी ओ साहेब ने ले ली है तो पहले जो मैंने आपको एरिया बतया और दुकाने फिर बाकी भी, एक घंटे के बाद अगर कोई दूकान बंद दिखी तो मैं हेल्प नहीं कर पाऊंगा। "
सेन ने उन पांच चुने इलाके के हर इलाके के एक सबसे बड़ी दूकान के मालिक से भी बात की।
![]()
और तब तक अडल्ट्रेशन वाले सज्जन पहुँच गए थे और जो बाकी दुकाने थी उनसे भी एक एक करके होली का डबल ऑफर बता दिया
अगले पन्दरह से बीस मिनट में रेड डालने वाली पार्टियां भी कई दुकानों के सामने खड़ी थीं, और दो चार जे सी बी के साथ नगर निगम वाले भी नक़्शे वकशे लेकर नोटिस चिपकाने लगे थे।
बस ३० मिनट को कौन कहे उसके पहले ही आधे से ज्यादा दुकाने खुल गयी थीं और ठीक ३१ वे मिनट पर कुछ दुकाने सील भी हुयी और कुछ की भट्ठी भी टूटी
![]()
और उसके बाद तो भरभरा के सब दुकाने और उनकी देखा देखी बाकी दुकाने भी खुलने लगी, त्योहार में धंधा कौन खराब करता,
और साथ में सात खून माफ़ वाला गैंग, उसके एक दो आदमी काफी थे एक इलाके के लिए ,
वो खुली पिस्तौल लेके दूकान के सामने खड़ा हो गया,
" जिसको आना है आये बस अपने पूरे खानदान के भोज का इंतजान कर के आये होली के पहले, और अगर किसी ने पत्थर भी फेंका, लगे न लगे तो उसके घर की कोई ईंट नहीं बचेगी "
चौक में आठ दस लोगो का हुजूम आया डंडे, पेट्रोल बॉम्ब लिए और उस सात खून माफ़ वाले सब इंस्पेकटर ने पहले दो हवाई फायर बिना कुछ बोले, फिर दो गोली पैरों के पास, और सामने कर के पिस्तौल तान दी।
![]()
आधे से ज्यादा लोग भाग गए, पर किसी ने गली में छुप के एक पत्थर चलाया, बस,
भागने की कोशिश के बाद भी वही पत्थर उस की टांग में लगा, वो गिरा और खिंच के उसे उसी मिठाई की दूकान के सामने, जिसे वो सब बंद कराने आये थे , उसी के सामने आराम आराम से पहले तो दोनों हाथ तोड़े बारी बारी से, फिर घुटनो पे मार के दोनों घुटने, और दूकान के सामने सड़क पे पटक दिया और उसी की बगल में कुर्सी डाल के बैठ गया।
और भविष्य में आने वालों के नाम एक चुनौती भी दे दी, एक त्योहार का आकर्षक ऑफर
" जिसको जिसको अपनी माँ चुदवानी हो आ जाए "
सबको मालूम था ये आदमी गोली पहले चलाता है, बोलता बाद में है, २३ एनकाउंटर कर चुका है, और इसी मोहल्ले के बडबंगी को जिसके घर आने के लिए एम् एल ए तक पूछ के फोन कर के आते थे, दिन दहाड़े, घसीटते हुए घर से निकाला था और घसीटते हुए ही गली से ले जाकर पुलिस की गाडी में पटक दिया था।
लक्सा में एक हलवाई की दूकान पर किसी ने गली में से छुपकर पत्थर फेंकने की कोशिश की, पत्थर तो नहीं लगा लेकिन वो पकड़ा गया और फिर सात खून माफ़ की पारम्परिक सजा, पहले जिस हाथ से पत्थर तोडा था, वो,.... फिर दूसरा हाथ और फिर दोनों पैर,
हड्डी जोड़ने वाला बड़ा से बड़ा डाकटर भी छह महीने से पहले उसे खड़ा नहीं कर सकता था, और फिर उसे मोहल्ले वालो ने ही उठा के उसके घर के सामने ले जाकर पटक दिया।
लक्सा में जो जे सी बी , हलवाई की भट्ठी तोड़ने आयी थी, खाली खड़ी थी, अब वो उस पत्थर बाज के घर के नींव के पत्थर तोड़ने चल पड़ी।
सब जगह खबर फ़ैल गयी, प्रशासन बौरा गया है, बस बच के रहो।
कोई कहता की बंगाली सब तो वैसे ही आधे पागल होते हैं और ये और,
आधे घंटे से पहले ही सब शटर खुल गए।
सेन ने अब अपना ध्यान सड़क खोलने की ओर लगाया और आर टी ओ को पकड़ा और तुरंत उन्हें आने को बोला और कुछ इंस्ट्रकशन दे दिए। कुछ देर में आर टी ओ के लोग टैक्सी स्टैंड ऑटो स्टैंड पर थे,
" चलो चलाओ, स्टेशन से गौदौलिया और लंका से स्टेशन, सवारी न मिले तो अपने घर वालो को बैठाओ, खाली चलाओ वरना अगर खिन पिली लाइन के ऊपर भी दिखे न तो चालान भी होगा और लाइसेंस भी जब्त होगा और ड्राइविंग लाइसेंस भी जब्त होगा।
एस पी ट्रैफिक पहले से कंट्रोल रूम में और वो जोश के साथ इस योजना में जुड़ गए , आधे दर्जन ट्रैफिक पुलिस के इंस्पेकर सब स्टैंड्स पर खड़े हो गए और रिपोर्ट करने लगे।
कहता हूं कि अगले अपडेट की प्लानिंग कीजिएकहती हूँ, ज्यादा प्लानिंग मत किया करो "
bahoot bahoot dhanyvaad , aapka ek comment mujhe inspire karta hai aur story ko aage badhaane men bahoot helpful hota hai thanks sooooooooo much.Kamukupdate hi c cc siiiiii didi
kya likhti ho tum