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एक तो मुझे लग रहा था की कुछ है जो कहीं फिट नहीं बैठ रहा है। मेरा हाथ जेब में चला गया और वहां चुम्मन का मोबाइल था, जो मैंने फर्श से उठाया था, मुझे चाकू लगने के बाद।
और दूसरी बात यह थी की रीत नहीं दिखी थी अभी तक, अब वह पडोसीनो के बीच तो हो नहीं सकती थी।
और अचानक किसी ने मेरी आँखें पीछे से बंद कर ली। ले पहचान तो मैं गया लेकिन देर तक उस छुवन के अहसास के लिए मैंने बहाना बनाया।
मैं बोला- “कौन छोड़ो न…”
“एलो एलो। एलो जी सनम हम आ गए, आज फिर दिल लेकर…”
उछल कर वो सारंग नयनी मेरे सामने आ गई। अपनी बड़ी-बड़ी आँखें नचाते, दो उंगलियों के बीच दुपट्टे की कोर पकड़े।
रीत मेरे सामने खड़ी थी,
बोली- “मैंने बोला था ना की मेरी बायीं आँख फड़क रही है। तुम शाम को जाने के पहले वापस आओगे…”
मैं एक-एक पल को पी रहा था। मुझे कुछ सुनाई नहीं दे रहा था। घचर पचर। नीचे कहीं चल रहा टीवी, सरसराती हवा। कुछ भी नहीं। मैं सिर्फ देख रहा था।
रीत मेरे सामने चुटकी बजाते हुए बोली- “ये बाबू जी। मैं हूँ। भूल गए क्या?”
और अब मेरा कान उसके हाथ में था।
“एकदम नहीं …” मैं मुश्कुरा रहा था।
बाहर बरामदे में पडोसीनो की घचर पचर चल रही थी, और चंदा भाभी के कमरे की एक एक चीज बरामदे से दिख भी रही थी और सुनाई भी दे रही थी और स्कूल की सब बातें बिना पूछे वो रहेगी नहीं, और बिना बताये मैं मानूंगा नहीं, लेकिन ये सब बाते मैं नहीं चाहता था पडोसीनो तक पहुंचे, उनके लिए ऑफिसयल वर्ज़न ठीक था, पुलिस ने बचाया। तो मैंने रीत से बोला
“हे नीचे चलें। तुम्हारे कमरे में…” मैंने बोला।
गुंजा से सवाल जवाब कम हो गए थे, और दो-तीन औरतें अब मेरी ओर देख रही थी।
“एकदम सही आइडिया है…” और रीत ने मेरा हाथ पकड़ा और हम लोग सीढ़ी से नीचे।
मेरा हाथ रीत की कमर में था। मैंने रीत से कहा- “सुन तेरे कमरे में चलते हैं…”
“एकदम। अभी आधे घंटे तक तो ऊपर कहानी गाथा चलेगी। तब तक तो नीचे कोई झांकने नहीं आयेगी। टाइम तो बहुत है, तुम टाइम बहुत लगाते हो लेकिन एक क्विकी तो हो ही सकती है…” रीत ने छेड़ा।
“धत्त तुम ना…” मैंने बोला।
और जवाब में रीत ने अपना एक हाथ मेरी कमर में डाल दिया और बोली, अबकी उसकी टोन बहुत कंसर्न्ड थी, और आवाज बहुत हल्की- “चोट कैसी है, ज्यादा थी ना?”
“हाँ। लेकिन अब ठीक है…” मैंने बोला।
मेरे दिमाग का कीड़ा अब और तेजी से रेंग रहा था। बार-बार मेरा हाथ जेब में चुम्मन के मोबाइल पे जा रहा था। हम लोग नीचे रीत के कमरे में पहुँच गए थे।
“हे तेरी कोई सहेली है। मेरा मतलब जिसके पास लैपी हो…” मैंने रीत से पूछा।
“एकदम है यार। आजकल लैपी और टैबलेट बहुत कामन हो गए हैं। ले आऊं…” वो बोली।
“हाँ और हो सके तो इंटरनेट डाटा कार्ड भी…” मैंने बोला।
वो दरवाजे पे ठहर गई और मुश्कुराकर आँखें नचाकर बोली-
“अब ये मत कहना की साथ में लैपी वाली को भी। वैसे बुरी नहीं है वो लैप पे बिठाने के लिए। कहो तो। …”
“जी नहीं वैसा कोई इरादा होता ना तो तुम्हें बख्शता क्या?” मैंने भी उसी तरह जवाब दिया।
“ना बाबा ना। और वैसे भी गुड्डी को ले जा रहे हो ना। आज तो उसका किला फतह होना है। अपनी ताकत बचाकर रखना…छोटी बहन है इसलिए बख्श दिया, वरन सुबह से इतने मौके थे बिना निचोड़े छोड़ती, हाँ एक बार गुड्डी के किले में सेंध लग जाए, मुझे उसे छेड़ने का मौका मिल जाए न , तो फिर तुझसे पूछूँगी क्या, खुद रेप कर दूंगी। ”
और वो कमरे से बाहर। लेकिन फिर आयी मुड़ के और वो सारंग नयनी अपनी बड़ी बड़ी कजरारी आँखे नचाती, मुझे छेड़ते बोली,
वैसे लैपी तो मेरा भी है वो नहीं चलेगा, तुझे मेरी सहेली का ही चाहिए, मुझे सब मालूम है, गुंजा की सहेलियों के देख के स्साले ललचा गए हो। सोच रहे हो, मूल तो है ही सूद पे भी हाथ मारा जाए, वैसे मारने लायक है, बुरा भी नहीं मानने वाली हैं सब मेरी सहेलियां,
मेरे मुंह से निकलते निकलते रह गया, " मैं बुर वालियों की बात का बुरा नहीं मानता",
चंदा भाभी का असर हो रहा था लेकिन चुप रह गया, इसलिए रीत झट्ट से बाहर चली गयी थी और दूसरे जवाब में वो सोनपरी, मेरे किस किस मायकेवाली को नाम ले ले कर गरियाती
मैंने जान बूझ के रीत का लैपी नहीं इस्तेमाल किया था, क्या पता चुम्मन के मोबाइल में कोई डाटा ट्रैकर, कोई ट्राजन कुछ और हो, और ढूंढने वाले उसी तार को पकड़ के रीत के पास, तो ये मैं कतई नहीं चाहता था। हाँ रीत की सहेली के लैपी का भी मैं शुद्धिकरण करता ही, इस्तेमाल के पहले भी बाद भी लेकिन उसमे वायरस का पता चल जाएगा, और रीत कहीं से भी नहीं ट्रैक हो सकती थी
आज का दिन खतरनाक था, पहले गुड्डी का चक्कर चला, सेठजी की दूकान पे वही रीत की सहेली के बाबू जी वाली दूकान पे पहले छोटा चेतन और उसके जमूरे, फिर पुलिस वाले गुड्डी के पीछे, और उसके बाद बेचारी गुंजा बाल बाल बची और एक बार नहीं कितनी बार और अब मैं रीत पे कोई आफत नहीं आने देना चाहता था, रीत तो खैर खुद काफी थी, लेकिन अगर मुझे रुकना पड़ गया तो गुड्डी के साथ का सब प्रोग्राम खटाई में
मैंने टेबल पे रखे रीत के लैपी को देखा, पासवर्ड प्रोटेक्टेड था। मैंने जब बायोस खोला तो। पास वर्ड आज ही चेंज किया गया था। पासवर्ड खोलना तो मेरा बाएं हाथ का खेल था। मेरा नाम रिवर्स करके और आज की डेट। ये नया पासवर्ड उसने आज ही सेट किया था। मैंने फिर से बंद करके रख दिया और टेबल पे ढूँढ़ने लगा, एक ब्रिज केबल दिख गया। मैंने जेब से चुम्मन का मोबाइल निकालकर टेबल पे रख दिया।
तब तक रीत लैपी लेकर आ गई। डाटा कार्ड लगा हुआ था। उसके आते ही मैंने अगली मांग रखी- “हे एक कप चाय मिलेगी क्या?”
वो कमर पे हाथ रखकर खड़ी हो गई और बोली-
“इत्ती अच्छी लड़की सामने खड़ी है और इन्हें कभी लैपी कभी चाय। भुक्क्कड़…स्साले, तुझे तेरी माँ बहन किसी ने सिखाया नहीं क्या की लड़कियों के और भी इस्तेमाल होते हैं। ”
और मुड़कर मुझे दिखाते हुए अपने चूतड़ मटकाते हुए चली गई और बाहर से बोली- “बस दो मिनट में लाती हूँ। तुम आराम करो…”
मैंने झट से लैपी खोलकर एक नया फोल्डर बनाया और चुम्मन के मोबाइल का सारा डेटा उसमें ट्रांसफर कर दिया। और अब इंटरनेट से मैंने सारा डाटा एक क्लाउड सर्वर पे ट्रांसफर कर दिया।
उस के पहले रीत की सहेली की लैपी की जांच पड़ताल की, कोई वायरस इत्यादि तो नहीं, कोई सुन तो नहीं रहा, फिर अपना एंटी वायरस लगा के झाड़ू पोंछा किया, बहुत कीड़े मरे, और उसके बाद पासवर्ड चेंज किया, बायोस में भी घुसा, मैं यह नहीं चाहता की अब मैं अगले दस मिनट तक जो करने वाला था उसकी खबर कोई एनी डेस्क या ऐसे सॉफ्टवेयर से न ले ले,
हाँ कुछ और मजेदार चीजे दिखी, अच्छी वाली फिल्मे, और मुझे अहसास हुआ सिर्फ मेरे लैपी में ही नहीं उनका अगाध भण्डार है , सबसे पहले तो कन्या रस वाली और फिर मर्दो का भी नंबर लगा, और वो भी एकदम हार्डकोर, डीपी, ब्लोजॉब क्या नहीं था। पर मुझे काम की भी कुछ चीजे मिल गयी और मैंने चुरा ली, उस सहेली की पिक्स थीं रीत के साथ और फिर रीत के क्लास की और कोई रीत की सहेली हो और गुड्डी की न हो तो ये हो नहीं सकता तो गुड्डी की भी स्कूल की पिक्स थीं और उसकी सहेलियों की और वो सब मेरे पेसल मेल पे चली गयीं। और काम शुरू करने के पहले लैपी के चारो कोनो पे चार चौकी दार बैठा दिए और फिर काम शुरू किया।
मेरे काम का पहला पार्ट पूरा हो चुका था।
अब उसी सर्वर से मैंने खुद को, अपने चार ई-मेल आई॰डी॰ पे पहले तो सारा डाटा ट्रांस्फाटर कर दिया लेकिन इस तरह से की वो मेरे इनबाक्स या हार्ड डिस्क पे ना रहे सर्वर पे ही रहे। ये सर्वर बहुत सिक्योर और अक्सेसिबिल था। एक मैगजीन में साइबर सिक्योरिटी पे मेरी आर्टिकिल सेकंड आई थी और इनाम में मुझे 50 जीबी स्पेस उस सर्वर पर मिला था।
अब ये ट्रेस करना बहुत मुश्किल था की मैंने किस आईपी एड्रेस से इसे भेजा।
और उसके बाद फिर रीत की सहेली के लैपी से लाग आन करके अपने 4 दोस्तों, जिसे अखबार वाले हैकिंग कहते हैं, उससे जुड़े हुए लोगों के पास मेल भेजा। उसमें एक जयपुर में बाकी सब बाहर थे।
एक लन्दन, एक अमेरिका और एक साउथ अफ्रीका में था। इसमें लन्दन वाला परफेक्ट ब्लैक हैट था, दो ग्रे हैट और एक व्हाईट हैट। एक ने स्टालमेन और मिटनिक दोनों के साथ काम किया था। सबसे बड़ी बात ये थी की वो अलग रिंग के मेम्म्बर्स थे।
हैकिंग की दुनियां में ब्लैक हैट वो होते हैं जो सिर्फ अपने लिए, मजे के लिए या कभी-कभी फायदे के लिए हैक करते हैं। व्हाईट हैट वो होते हैं जो कंप्यूटर सिक्योरिटी के लिए काम करते हैं, और ग्रे हैट वो होते हैं जो इन दोनों के बीच में होते हैं। कई बार रोल बदल भी जाते हैं।
केविन मिटनिक अपने जमाने का नामी हैकर था, 16 साल की उम्र में उसने डिजिटल इलेक्ट्रानिक कारपोरेशन का कम्प्यूटर हैक किया, इसके आलावा उसने पैसिफिक बेल टेलीफोन कंपनी के नेटवर्क में हैकिंग की। पुलिस ने उसे पकड़ने के लिए एक हैकर शियोमुरा की सहायता से उसे पकड़ा और उसे जेल की सजा हुई। मिटनिक ने मोटोरोला, नोकिया, सन माइक्रोसिस्टम, एन॰इ॰सी॰, पेंटागन और एफ॰बी॰आई के भी नेटवर्क हैक किये थे। जेल से निकलने के बाद वो मिटनिक सिक्योरिटी कंसल्टेंसी चलाते हैं। उन्होंने कई किताबें लिखी लेटेस्ट है- घोस्ट इन वायर्स।
मैंने उन्हें रेड एलर्ट किया और मुझे पूरा विश्वास था की 15 मिनट के अन्दर वो इस पे काम शुरू कर देंगे।
अब मैंने उसकी सहेली के लैपी से पहले तो वो फोल्डर डिलिट कर दिया, फिर उसे रजिस्ट्री से भी। अब एक साफ्टवेयर मैंने डाउन लोड किया जो काल की एनलिसिस कर सकता है और चुम्मन के फोन के सिम को उससे कनेक्ट करके देखने लगा।
और रीत की सहेली के लैपी को जस का तस कर दिया, पहले वाला पासवर्ड, बायोस सब कुछ। हाँ और माइक और कैमरे पे मैंने कागज़ चिपका दिया था, ये ब्राउजर वाले भी तांक झाँक करते रहे हैं तो उन के भी आँख कान बंद करने जरूरी थे और कोई भी सॉफ्टवेयर इस्तेमाल करो वो अपने चरण चिन्ह छोड़ देता है।
तब तक रीत चाय लेकर आ गई।
रीत ने पूछा- “क्या कर रहे हो?” फिर टेबल पे रखे मोबाइल को देखकर बोली- “यही चुम्मन का मोबाइल है क्या?”
इसका मतलब गुड्डी ने इसको अनएब्रिज्ड वर्ज़न बता दिया था।
“असल में हुआ ये की जब मैं…” मैंने उसको बताने की कोशिश की तो उसने बीच में रोक दिया।
“नहीं मैं दो बार पूरी कहानी सुन चुकी हूँ। एक बार गुड्डी से फोन पे और एक बार यहाँ…”
“नहीं मैं ये कह रहा था की कुछ बातें समझ में नहीं आ रही हैं…” मैंने रीत को बताने की कोशिश की।
लेकिन रीत के बोलने और समझने दोनों की स्पीड सुपर फास्ट है।
रीत बोली- “हाँ मुझे गुड्डी ने बताया था की तुम लोगों के वो पीछे वाले दरवाजे पे किसी ने ताला बंद कर दिया था…”
“हाँ। तो वही मैं चुम्मन के काल की एनलिसिस कर रहा हूँ। तुम भी देखो ना…” मैं चाय पीते हुए बोला।
मेरे बिना कहे उसकी आँख स्क्रीन पे गड़ी हुई थी। नंबर जिनसे काल आई थी, उनके नंबर स्क्रीन पे फ्लश हो रहे थे साथ में काल ड्यूरेशन, टाइम, डेट। एक के बाद एक नंबर जा रहे थे।
“गड़बड़ तो है कुछ…” रीत बोली।
“क्यों क्या हुआ?” मैं बोला। देख मैं भी रहा था लेकिन मुझे कुछ खास अलग या डिफरेंट नहीं लगा।
“वापस जाओ…” रीत बोली। मैंने नंबर को फिर से स्क्राल किया।एक नंबर जैसे आया रीत बोली- “रोको ये देखो…”
मैंने रोक दिया।
“ये नम्बर देखो…” वो बोली।
“अरे क्यों? ये तो लोकल नम्बर है कोई बाहर का या आई॰एस॰डी॰ नम्बर थोड़े ही है…” मैं बोला।
“ड्यूरेशन देखो, 15 से 20 सेकंड। आगे बढ़ाओ, फिर वही नंबर 11 सेकंड। आज कल कौन लड़का मोबाइल पे 7-8 मिनट से कम बात करता है? कोई भी काल आधे मिनट की भी नहीं लगती। ड्यूरेशन वाइज शार्ट कर सकते हैं…” रीत ने मेरी ओर देखकर पूछा।
बंदी के बात में दम था। मैंने ड्यूरेशन वाइज शार्ट किया, एक मिनट में बात साफ हो गई। एक हफ्ते में सिर्फ दो नंबर थे, जिनसे 7-26 सेकंड तक बात की गई थी। सारी काल्स रात में 8 से 10 बजे के बीच हुई थी।
“और पीछे देखो?” रीत बोली।
मैंने एक हफ्ते और चेक किया। वही पैंटर्न था। सिर्फ ये की पिछले हफ्ते में सिर्फ आखीर के तीन दिनों में उन दो नंबरों से काल आई थी। उसके पहले उन नंबरों से कोई कान्टैक्ट नहीं हुआ था।
रीत की दूसरी बात भी सही थी। इसके अलावा सारे नंबरों से उसकी बात 4-6 मिनट तक हुई थी। मैंने उन दो नम्बरों के सारे काल डिटेल्स सेव कर लिए, और रीत के लैपी पे भी ट्रांसफर कर दिए।
“जरा आउटगोिंग काल भी चेक करो…” रीत बोली।
चुम्मन के फोन से उन दोनों नंबरों के लिए कोई भी आउटगोिंग काल नहीं हुई थी। मतलब साफ था कोई है जो किसी काम के लिए चुम्मन को इंस्ट्रक्शन दे रहा है, और चुम्मन को उसे फोन करने की इजाजत नहीं थी। कौन है वो? फिर चुम्मन के पास वो बाम्ब कहाँ से आया?
“एक मिनट…” मैं बोला- “जितने पीरियड तक चुम्मन वहां था जब गुंजा होस्टेज थी। उस समय का काल चेक करें…”
“हाँ…” और रीत ने टाइम सेट किया।
मैंने रीत को बताया की ने बताया था की चुम्मन ने आउटगोिंग काल, शाजिया के फोन से ही की थी, केबल नेटवर्क वालों को भी और पोलिस स्टेशन को भी। लेकिन उसकी कोई इनकमिंग काल भी आई थी जो उसने अलग हटकर सुना था। तो इसका मतलब इस पे उस पीरियड में इनकमिंग काल मिलनी चाहिए। पुलिस, चूँकि उसने शाजिया के नंबर से पोलिस स्टेशन फोन किया था, शाजिया का नंबर ट्रेस कर रही थी।
तब तक उस समय का काल खुल गया था, कोई आउटगोिंग काल नहीं थी।
लेकिन दो इनकमिंग काल थी। एक नंबर तो वही था, जिससे 7 से 26 सेकंड तक काल आती थी, और दूसरा नम्बर भी पहचाना लगता था। मैंने अपना मोबाइल खोलकर फोन बुक चेक किया।
ये फोन तो सी॰ओ॰ कोतवाली अरिमर्दन सिंह का है, तो अरिमर्दन सिंह ने चुम्मन को फोन किया था क्यों? और उन्होंने डी॰बी॰ को बताया क्यों नहीं।
मेरे दिमाग में फिर ड्राइवर की बात गूंजी, जिसे मैंने पीछे वाले दरवाजे पे खड़े रहने को कहा था। उसने बोला था की सी॰ओ॰ साहब ने ही उसे हटाकर गुड्डी के पास भेज दिया था, जिसकी पुष्टि गुड्डी ने भी की थी। और उसने ये भी बोला था की उन्होंने ये भी बोला था की वो वहां दो आर्म्ड गार्ड लगायेंगे, लेकिन जब हम उतरे तो वहां ताला बंद था। तो क्या वो? मेरा दिमाग घूम गया था।
मैंने रीत को बात बताई।
रीत बोली- “एक मिनट जरा सोचने दो…”
तब तक मैंने फिर ग्रे हैट इयान स्मिथ को फिर से उन दोनों नंबरों के बारे में मेल किया। वो आज कल लन्दन में था ओलम्पिक की साइबर सिक्योरिटी के लिए। वो टेलीफोन और लोकेशन पता करने का एक्सपर्ट था। आफिसियली वो ब्लैक बेरी का साइबर सिक्योरिटी एक्सपर्ट था। मुझे यकीन था की आधे पौन घंटे में वो पूरी रिसर्च कर प्रोफाइल दे देगा।
रीत बोली- “ठीक है मैंने सोच लिया। जो चीज नहीं क्लियर हैं, उनको लिस्ट करते हैं फिर डी॰बी॰ से कान्टैक्ट करते हैं, फोन पे सिर्फ कहीं मिलने के लिए बुलाना, लेकिन पुलिस एरिया में नहीं…”
6-7 चीजें गड़बड़ थीं-
01॰ बाहर से ताला?
02॰ बाम्ब किसने एक्स्प्लोड किया?
03॰ वो दो नंबर किसके हैं?
04॰ कोई चुम्मन को क्या आर्डर दे रहा था?
05॰ सी॰ओ॰ को चुम्मन का नंबर कहाँ से मिला, और उसने क्यों बात किया?
06॰ फायरिंग क्यों और किसके आर्डर पे हुई?
एक चीज मैंने और जोड़ी-
07॰ वो बाम्ब चुम्मन को कहाँ से मिले? बाम्ब में निश्चित आर॰डी॰एक्स॰ था।
मैंने डी॰बी॰ को फोन लगाया। सारे नम्बर इंगेज या नो रिस्पांस आ रहे थे।
मैंने डी॰बी॰ को मेसेज किया, बनारस की चाट खानी है, जैसे जीवन-मृत्यु पिक्चर देखते समय खायी थी वैसे ही है।
दो मिनट बाद ही डी॰बी॰ का फोन आया- “क्या मामला है, जीवन-मृत्यु?”
मैं बोला- “हाँ वही समझो। बनारस की सबसे सुन्दर लड़की को चाट खिलाना है। जरूरी है वरना वो मेरी जान ले लेगी…”
डी॰बी॰ ने पूछा- “ओके कब और। …”
“अभी काशीराज से मिलना है मुझे, तो 7:00 बजे बल्की आधे घंटे बाद…” मैं बोला।
“ओके…” और डी॰बी॰ ने फोन रख दिया।
“काशीराज तो राम नगर में रहते हैं और साढ़े सात। तुम्हें जाना नहीं है क्या?” रीत बोली।
“अक्ल लगाओ?” मैंने चिढ़ाया।
“वो तो समझ गई मैं। काशी चाट भण्डार गोदौलिया।
इत्ती भीड़ होती है वहाँ, और जितनी ज्यादा भीड़ उतनी ज्यादा प्राइवेसी। लेकिन टाइम मैं नहीं समझी और वो लड़की कौन?” रीत बोली।
“ये हम लोगों का कोड है। आधे घंटे बाद का मतलब ढाई पहले, और लड़की और कौन। तुम…” और मैंने बोला- “जल्दी तैयार हो जाओ…”
रीत पांच मिनट में हेलमेट और एक दुपट्टा लेकर आ गई और बोली- “चलो…”
मैंने रीत की सहेली का लैपी एकदम से क्लीन कर दिया था रजिस्ट्री ट्रेल, और रीत के लैपटाप में एक इन्क्रिप्शन प्रोग्राम और एक एक्स्ट्रा फायर वाल लोड कर दी थी।
अचानक रीत रुक गई, कुछ सोच में पड़ गई फिर हँसने लगी, और बोली- “एक बात भगवान करे ना सच हो। लेकिन मुझे लग रहा है की इन सारी बातों का एक मतलब था। कोई है जो नहीं चाहता था की वहां से कोई जिन्दा बचे। ताला, बिना बात की फायरिंग और अगर सी॰ओ॰ उनके लूप में है तो सबसे बड़ा खतरा तुमको है। क्योंकि उसे मालूम था की तुम्हीं उन लड़कियों को निकालने गए हो। बचाने की बात तो नेचुरल है लेकिन अगर तुम अभी भी उन लोगों के पीछे पड़ोगे तो उन्हें जरूर शक हो जाएगा और हँसी इस बात पे की मेरे ख्याल से बाम्ब किसने फोड़ा वो मैं समझ गई हूँ…”
बाहर एक मोटर साइकिल थी। मैं चौंका- “मोटर साइकिल से चलेंगे हम?”
रीत बोली- “और क्या? शाम को गाड़ी से गोदौलिया कौन जा सकता है? फिर इससे मैं गली-गली ले जाऊँगी। पीछा करने की कोई सोच नहीं सकता। बनारस का हर शार्ट कट हर गली मुझे मालूम है। फिर हेलमेट से मेरा चेहरा छिपा रहेगा और वैसे भी बनारस में लड़कियां कम ही मोटर साईकिल चलाती हैं। और तुम ये दुपट्टा ओढ़ लो…”
“दुपट्टा मैं…” मैंने बहुत बुरा सा मुँह बनाया।
रीत बोली- “सुबह साड़ी ब्लाउज़, ब्रा सब कुछ पहने थे और अब जरा सा दुपट्टा ओढ़ने में। अरे यार तुम्हारा चेहरा मेरे पीछे रहेगा। और जो बचा खुचा है वो दुपट्टे में। बाल तुम्हारे लम्बे हैं ही। गुड्डी ने सुबह ही चिकनी चमेली बना दिया था। घास फूस साफ। हाथ में जो नेल पालिश मैंने लगाई थी वो अभी भी चमक रही है और पैर का महावर भी। हाँ अपना जूता उतर के मेरी सैंडल पहन लो। बस 10 मिनट बचा है। एक बार चाट भण्डार पहुँच गए तो प्राब्लम साल्व। कोई पीछे-पीछे आया होगा तो यहीं तक। चलो…”
बात में उसके दम था।
हम चल दिए।
लम्बी गलियां, पतली गलियां, संकरी गलियां। 10 मिनट में हम काशी चाट भण्डार पहुँच गए।
गंगा पेईंग गेस्ट हाउस की ओर एक रिक्शा आया।
उसमें से एक सज्जन उतरे धोती कुरता आँख पे चश्मा, और माथे पे त्रिपुंड। एक बार उन्होंने मुझे देखा। मुझे लगा की शायद कोई पंडित जी होंगे मुझे पहचानते होंगे। मैं नहीं याद कर पा रहा हूँ। मैंने झुक कर प्रणाम किया और उन्होंने आशीर्वाद दिया। आवाज कुछ जानी पहचानी लगी और जब मैंने सिर उठाया तो वो मुश्कुरा रहे थे।
Wonderful update Madam...proper thriller and suspense..with all the officers (Collector, SP, etc) being part of the story...
"Danga to nahi hua"...lekin ab shayad ab Guddi ke saath "danga hoga" as Chanda Bhabhi had suggested correctly