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Incest बदलते रिश्ते......

rohnny4545

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[/URL] [/IMG] रोहन कल्पना में अक्सर अपनीी मा के साथ इस तरह की कल्पना करता था
 

jonny khan

Nawab hai hum .... Mumbaikar
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बेला धीरे धीरे अपनी मतवाली बड़ी बड़ी गांड मटकाते हुए झोपड़ी की तरफ जाने लगी .. पेटीकोट पानी से भीगी होने की वजह से वह बेला के भरावदार नितंबों से पूरी तरह से चिपकी हुई थी। जिससे उसके गोलाकार नितंब वस्त्र के अंदर होने के बावजूद भी साफ-साफ उसकी रचना नजर आ रही थी...
और तो और बेला की बड़ी बड़ी गांड की फाकौ के बीच उसका पेटीकोट घुशने की वजह से बेला का खूबसूरत बदन और भी ज्यादा मादक लग रहा था।
Excellent update dear ..!!!!!
 

Desi Man

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जबरदस्त अपडेट है दोस्त
 
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rohnny4545

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रोहन को खुश देखकर सुगंधा भी खुश हो रही थी ... क्योंकि बच्चों की ही खुशी में तो मां की खुशी होती है ओर सुगंधा भी यही चाहती थी कि उसका बेटा हमेशा खुश रहे...
सुगंधा को अपने बेटे का इस तरह से नहाना अच्छा लग रहा था उसके चेहरे से मासूमियत झलक रही थी तभी रोहन एक लोटा पानी उठाकर अपने ऊपर डाल दिया जिसकी वजह से उसके चेहरे पर साबुन का झाग निकलने लगा वह धीरे धीरे उस की चौड़ी छातियां एकदम गोरी और चमकने लगी.... सुगंधा को अपने बेटे का शरीर देखने में आनंद के साथ साथ गर्व की अनुभूति होने लगी लेकिन सुगंधा एक मां होने के साथ-साथ एक औरत भी थी और जिस तरह का नजारा वहां चोरी-छिपे देख रही थी ऐसे में औरतों के मन में एक जिज्ञासा सी हो जाती है और वही जिज्ञासा सुगंधा के मन में भी पनपने लगी वह अपने बेटे के खूबसूरत बदन के नीचे की तरफ अपनी नजरें ले जाना चाहती थी लेकिन कहीं ना कहीं उसकी मर्यादा उसके संस्कार उसे रोक रहे थे एक तरफ मां का दिल कहता था कि बस इतने ज्यादा देखना ठीक नहीं है तो कहीं एक औरत का दिल कह रहा था कि नीचे की तरफ नजर घुमाया जाए आखिरकार देख लिया जाए की कमर के नीचे उसका बेटा कितना बड़ा हुआ है लेकिन वह काफी असमंजस में पड़ चुकी थी कभी उसका मन देखने को होता तो कभी इंकार करने लगती लेकिन रोहन का गठीला बदन धीरे धीरे सुगंधा को सम्मोहित कर रहा था वह अपने आप से ही मन ही मन में कहने लगी कि देख लेने में क्या हर्ज है आखिरकार वह पूरा नंगा तो होगा ही नहीं नीचे उसने चड्डी पहन रखी होगी दो नीचे देखने में कोई हर्ज नहीं है और अपने आप को ही इस तरह का जवाब देकर वह अपनी नजरों को नीचे की तरफ ले जाने लगी लेकिन जैसे जैसे वह अपनी नजर नीचे की तरफ ले जा रही थी उसके दिल की धड़कन तेज होती जा रही थी यह क्यों हो रहा था यह उसे भी नहीं मालूम था उसके दिल की धड़कन बढ़ती जा रही थी उसके तन बदन में एक अजीब सी हलचल हो रही थी मन में उत्सुकता के बादल मंडराने लगे थे...
रोहन इस बात से अनजान की उसकी मां उसे इस अवस्था में देख रही है वह एकदम मस्त होकर नहाने में जुटा हुआ था कभी व नल चलाने लगता तो कभी पानी उठा कर अपने ऊपर डालने लगता ठंडे ठंडे पानी से उसके तन बदन को और दिमाग को ताजगी महसूस हो रही थी लेकिन दिलो दिमाग की ताजगी से बिल्कुल परे जवानी से भरपूर उसका लंड पूरी तरह से खड़ा था उसमें बिलकुल भी फर्क नहीं पड़ रहा था जिसे वह बार-बार अपने हाथ से सहला दे रहा था और ऐसा करने में उसे मजा भी आ रहा था.....
सुगंधा की नजरें उत्सुकता बस उसकी चौड़ी छाती यू से नीचे की तरफ जा रही थी ... धीरे-धीरे करके सुगंधा की नजरें कमर तक पहुंच गई बस अब वह अपनी नजरों को रोक लेना चाहती थी इससे आगे का दृश्य वह देखना नहीं चाहती थी क्योंकि ऐसा करने में उसे पाप महसूस हो रहा था लेकिन उत्सुकता उसे ऐसा करने से रोक रहे थे वह बार-बार अपने मन को मनाती कि ऐसा ना करें लेकिन वह एकदम मजबूर हो जा रही थी क्योंकि रोहन के गठीले बदन का आकर्षण कहीं ना कहीं उसके दिलो दिमाग पर भी जोर डाल रहा था... और वह मजबूर होकर अपनी नजरों को धीरे-धीरे नीचे की तरफ सरकाने लगी..... रोहन के दिमाग में यह चल रहा था कि आज जब पूरी तरह से निर्वस्त्र होकर नहा रहा हुं. तो क्यों ना साबुन लगाकर अपने लंड की भी सफाई कर ली जाए..... इसलिए वह फिर से साबुन उठा दिया और अपने लंड पर साबुन लगाने के लिए अपना हाथ नीचे की तरफ ले जाने लगा और वहां दूसरी तरफ किवाड़ की दरार में से झांक रही सुगंधा की नजर धीरे धीरे नीचे की तरफ फिसल रही थी और अगले ही पल जैसे उसकी नजर कमर से नीचे की तरफ गई उसकी तो सांसे ही अटक गई कमर के नीचे का नजारा देखकर सुगंधा की सांस ना तो अंदर आ रही थी ना तो बाहर ही जा रही थी ऐसा लग रहा था मानो जैसे उसे सांप सॉन्ग गया हो सुगंधा के लिए जैसे समय थम सा गया था उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि उसकी आंखें जो देख रही है वह सच है उसे अपने आप पर अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था सुगंधा भी क्या करती अंदर का नजारा ही ऐसा था कि उसे अपने आप पर तनिक भर भी भरोसा नहीं हो रहा था कि वह जो देख रही है वह सच है..... रोहन का लंड कुछ इस तरह से खड़ा था कि उस में तनिक भी ढीलापन नहीं था.... उसका वास्तविक आकार कुछ गजब का था जिससे सुगंधा पूरी तरह से आकर्षित हुए जा रही थी तभी उसके देखते ही देखते रोहन साबुन को अपने लंड पर रगड़ने लगा और जैसे-जैसे साबुन लगाते समय रोहन का लंड इधर उधर हो रहा था ...वैसे वैसे सुगंधा की जांघों के बीच सुरसुरा हट मचने लगी थी.... एक अजीब सी हलचल सुगंधा के तन बदन में पैदा हो रही थी उसने वैसे तो अभी तक अपने पति के ही लंड के दर्शन किए थे लेकिन उसके मन में यह धारणा बन गई थी कि उससे ज्यादा या मोटा किसी भी मर्द का नहीं होता है इसलिए उसकी कल्पनाओं में भी अपने पति के सामान ही लंड की रचना होती रहती थी... इसलिए अपनी आंखों के सामने अपने बेटे का इतना तगड़ा मोटा और लंबा लंड देखकर उसे अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था उसकी सारी धारणा धरी की धरी रह गई थी......
पल भर में सुगंधा के तन बदन में गर्माहट का संचार होने लगा सुबह की ठंडी ठंडी हवा भी उसे गर्मी देने लगी अब आलम यह था कि वह चाहकर भी अपनी नजरों को हटा नहीं पा रही थी हालांकि उसे यहां समझ में आ रहा था कि जो वह कर रहे हैं वह गलत है लेकिन फिर भी ना जाने कैसी कशिश बनी हुई थी कि वह अपने बेटे के लंड से अपनी नजरों को हटा नहीं पा रही थी...
देखते ही देखते सब कुछ बदलने लगा था सुगंधा की सारी मर्यादाए संस्कार सब कुछ धुंधली होती नजर आ रही थी....
रोहन बड़ी मस्ती के साथ अपने घर पर साबुन रगड़ रहा था उसे ऐसा करने में बहुत मजा आ रहा था उसके तन बदन में भी गर्माहट पैदा हो रही थी इसलिए अपने आप ही उसके मुंह से गाना गुनगुनाना बंद हो गया था और वह अपना सारा ध्यान अपने लंड पर लगाए हुए था वह इस बात से पूरी तरह से अनजान थाकी बाहर उसकी मां सब कुछ देख रही है.... अपनी मस्ती में अपने खड़े लंड पर साबुन रगड़ रहा था.... अपने बेटे के विशाल लंड को देखकर अपने आप ही सुगंधा की बुर गीली होने लगी..... उसे इस बात का एहसास तब हुआ जब उसे अपनी जांघों के बीच हल्की सी खुजली महसूस हुई और वह अपनी बुर खुजलाने के लिए अपना हाथ नीचे की तरफ ले गई तो उसे अपने बुर के इर्द-गिर्द कुछ ज्यादा ही गीलापन महसूस होने लगा और वह समझ गए कि यह क्या है....
अपने हाल को देखते हुए उसे शर्मिंदगी का एहसास होने लगा वह वहां से हट जाना चाहती थी लेकिन उस नजारे पर से अपना नजर हटाने में उसे दुविधा हो रही थी .... सुगंधा पूरी तरह से आकर्षण में बंध़ती चली जा रही थी.... सुगंधा अपने बेटे को अभी तक मौसम समझ रही थी लेकिन उसके हथियार को देख कर वह अपने बेटे के बारे में कुछ भी फैसला कर पाने में असमर्थ साबित हो रही थी ..... उसके मन में यह ख्याल आ रहा था कि कहीं अपने आवारा दोस्तों के साथ रहकर रोहन भी तो उन आवारा लड़कों की तरह आवारा तो नहीं हो गया कहीं वह भी गंदे सोबत में पड़ कर गंदी हरकतें तो नहीं करने लगा लेकिन तभी उसे इस बात का ख्याल आया कि अभी तक रोहन ने कुछ ऐसी वैसी गंदी हरकत नहीं किया था जिसे देख कर यह कहा जाए कि उसका लड़का भी उन आवारा लड़कों की तरह गंदा हो गया है.... वह अपने आप से ही बात करते हुए मन ही मन में बोली की अपने अंग को इस तरह से साफ करना कोई गलत बात तो नहीं है और उसकी उम्र को देखते हुए यह अपने आप ही हो गया होगा कि उसका लंड खड़ा हो गया...
रोहन के लिए गनीमत वाली बात यह थी कि उसने अभी तक सफाई के अलावा कुछ गंदी हरकत नहीं किया था हालांकि उसके मन में अभी भी उसकी मां और बेला को लेकर गंदी बातें चल रही थी.... इसलिए सुगंधाको यह सब सामान्य ही लग रहा था लेकिन अपने बेटे के हथियार को वह बिल्कुल भी सामान्य तौर पर नहीं ले रही थी क्योंकि जिंदगी में पहली बार उसने इतने तगड़े लंड को जो देखी थी.... सुगंधा की पेंटी पूरी तरह से खेली हो चुकी थी एक अजीब सी हलचल उसके तन बदन को झकझोर से गई क्योंकि ना जाने क्यों उसका मन कर रहा था कि रोहन कुछ गंदी हरकत करें उसकी उत्सुकता बढ़ती जा रही थी वह सोच रही थी कि जैसे दूसरे लड़के अपने लंड के साथ अपने हाथ से गलत हरकत करते हैं उसी तरह की हरकत उसका बेटा भी करे ना जाने तो उसकी आंखों की प्यास बढ़ती जा रही थी उसकी आंखें कुछ और देखना चाह रही थी लेकिन रोहन तो अभी आपने इस ज्ञान से बिल्कुल भी अज्ञान था इसलिए वह ऐसा ना करके जल्दी जल्दी अपने ऊपर पानी डालने लगा और देखते ही देखते अनजाने में ही अपनी मां को मदहोश करते हुए रोहन नहा लिया अपने बेटे को मेहता देख कर आज सुगंधा के तन बदन में ना जाने कैसी हलचल ने दस्तक दे दी थी जो कि एक बहुत बड़े तूफान जो उसकी जिंदगी में आने वाला था ऊसका अंदेशा दे रही थी...
सुगंधा गुसल खाने से थोड़ी दूरी बनाकर खड़ी होकर अपने बेटे के बाहर निकलने का इंतजार करने लगी
रोहन के दिमाग में यह चल रहा था कि आज जब पूरी तरह से निर्वस्त्र होकर नहा रहा हुं. तो क्यों ना साबुन लगाकर अपने लंड की भी सफाई कर ली जाए..... इसलिए वह फिर से साबुन उठा दिया और अपने लंड पर साबुन लगाने के लिए अपना हाथ नीचे की तरफ ले जाने लगा और वहां दूसरी तरफ किवाड़ की दरार में से झांक रही सुगंधा की नजर धीरे धीरे नीचे की तरफ फिसल रही थी और अगले ही पल जैसे उसकी नजर कमर से नीचे की तरफ गई उसकी तो सांसे ही अटक गई कमर के नीचे का नजारा देखकर सुगंधा की सांस ना तो अंदर आ रही थी ना तो बाहर ही जा रही थी ऐसा लग रहा था मानो जैसे उसे सांप सॉन्ग गया हो सुगंधा के लिए जैसे समय थम सा गया था उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि उसकी आंखें जो देख रही है वह सच है उसे अपने आप पर अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था सुगंधा भी क्या करती अंदर का नजारा ही ऐसा था कि उसे अपने आप पर तनिक भर भी भरोसा नहीं हो रहा था कि वह जो देख रही है वह सच है..... रोहन का लंड कुछ इस तरह से खड़ा था कि उस में तनिक भी ढीलापन नहीं था....
उसका वास्तविक आकार कुछ गजब का था जिससे सुगंधा पूरी तरह से आकर्षित हुए जा रही थी तभी उसके देखते ही देखते रोहन साबुन को अपने लंड पर रगड़ने लगा और जैसे-जैसे साबुन लगाते समय रोहन का लंड इधर उधर हो रहा था ...वैसे वैसे सुगंधा की जांघों के बीच सुरसुरा हट मचने लगी थी.... एक अजीब सी हलचल सुगंधा के तन बदन में पैदा हो रही थी उसने वैसे तो अभी तक अपने पति के ही लंड के दर्शन किए थे लेकिन उसके मन में यह धारणा बन गई थी कि उससे ज्यादा या मोटा किसी भी मर्द का नहीं होता है इसलिए उसकी कल्पनाओं में भी अपने पति के सामान ही लंड की रचना होती रहती थी... इसलिए अपनी आंखों के सामने अपने बेटे का इतना तगड़ा मोटा और लंबा लंड देखकर उसे अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था
 

rohnny4545

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कुछ देर बाद ही रोहन नहा कर बाहर आ गया नहाने के बाद वह टावल लपेटा हुआ था... और जैसे ही बाहर आया बाहर अपनी मां को खड़ा देखकर एकदम से घबरा गया और घबराते हुए बोला .....
ममममम....मम्मी तुम यहां इतनी सवेरे.......
( सुगंधा रोहन को देख कर मुस्कुरा रही थी और अपनी मां को इस तरह से मुस्कुराते हुए देखकर रोहन का दिल घबरा रहा था क्योंकि वह जानता था की गुसल खाने के अंदर वह पूरी तरह से नंगा होकर नहा रहा था ..और नहाते समय उसका लंड भी पूरी तरह से खड़ा था... उसे इस बात का डर सताने लगा कि कहीं उसकी मां ने उसे उस अवस्था में नहाते हुए देख तो नहीं ली...)
हां बेटा आज मुझे अंगूर के बाग देखने जाना है.....( सुगंधा मुस्कुराते हुए बोली)....
तुम इतना मुस्कुरा क्यों रही हो.... मम्मी.. . ?
सुगंधा अभी भी मुस्कुरा रही थी क्योंकि रोहन जिस अवस्था में बाहर आया था उसके बदन पर केवल टावल ही था और उसके टावल के आगे वाला हिस्सा अभी भी हल्का सा उठा हुआ था जिसे देख कर सुगंधा मन ही मन मुस्कुरा रही थी लेकिन रोहन की बात सुनकर सुगंधा बाद बदलते हुए बोली...
कुछ नहीं बस ऐसे ही मुस्कुरा रही थी तू नहाते समय जिस तरह से गाना गुनगुना रहा था मुझे मेरे दिन याद आ गए मैं भी इसी तरह से बाथरूम में गाना गुनगुनाते हुए नहाती थी लेकिन अब सब कुछ छूट गया है.....
( रोहन को अपनी मां की बात सुनकर राहत महसूस हुई लेकिन वह बिना कुछ बोले वहीं खड़ा रहा तो सुगंधा बोली)
जाओ अपने कमरे में जाकर कपड़े बदल लो और जल्दी से तैयार हो जाओ तुम्हें मेरे साथ अंगूर के बाग देखने चलना है...
( सुगंधा की बात सुनकर रोहन थोड़ा गुस्सा दिखाते हुए बेमन से बोला)
मम्मी तुम चली जाओ मैं नहीं जाऊंगा....
ऐसे कैसे कह रहे हो रोहन तुम चलोगे नहीं अपने खेत खलियान के बारे में समझोगे नहीं तो आगे कैसे चलाओगे क्या तुम भी अपने बाप की तरह आवारा निकम्मा निकलना चाहते हो ताकि यह जो विरासत है यह जमीदारी है सब का सब जाता रहे.....
( सुगंधा अपने बेटे को थोड़ा गुस्सा दिखाते हुए लेकिन प्यार से समझाते हुए बोली)
लेकिन मम्मी मुझे यह सब अच्छा नहीं लगता....
मैं जानती हूं बेटा कितने सब अच्छा नहीं लगता लेकिन करना ही होगा मैं नहीं चाहती कि तुम भी तुम्हारे बाप की तरह आवारा और निकम्मे निकल जाओ और मैं यह गांव वालों को यह मौका बिल्कुल भी नहीं देना चाहती कि तुम्हारे बारे में भी बातें करके तुम्हारी हंसी उड़ाए तुम सुगंधा के बेटे हो तुम्हें यह सारा काम बड़ी जिम्मेदारी से निभाना होगा इसलिए तुम्हें यह सब सीखना होगा और जाओ जल्दी से तैयार हो जाओ इतना कहकर सुगंधा गुसल खाने की तरफ कदम बढ़ा दी रोहन अपनी मां को जाते हुए देखता रह गया लेकिन जैसे ही कमर के नीचे उसकी नजर पड़ी उसका मयूर मने नाचने लगा क्योंकि रोहन अपनी मां के बड़ी-बड़ी और चौड़ी नितंबों का दीवाना था और जैसे वह गुसल खाने के अंदर जा रही थी... वैसे ही रोहन की नजर अपनी मां की मटकती हुई बड़ी बड़ी गांड पर पड़ी और वह सब कुछ भूल गया... अपनी मां की बड़ी-बड़ी और मटकती हुई गांड को देखकर रोहन गरम आहें भरने लगा........
रोहन करता भी तो क्या करता --- उसकी सबसे बड़ी कमजोरी यही थी। अपनी मां की मटकती हुई बड़ी बड़ी गांड को देखकर उससे रहा नहीं गया। एक बार फिर से उस की सोच ने उसके सोए हुए लंड को जगाना शुरू कर दिया गुसल खाने का दरवाजा बंद हो चुका था रोहन के दिमाग में कुछ और चलने लगा वह वहां से अपने घर जाने के बजाय धीरे धीरे कदम रखता हुआ गुसल खाने की तरफ जाने लगा उसका दिल जोरों से धड़क रहा था क्योंकि वह जो काम करने जा रहा था उसके लिए उसने हिम्मत नहीं थी लेकिन फिर भी ना जाने कैसे आज उसके में इतनी हिम्मत आ गई थी शायद यह औरत के गदराए जवान जिस्म का असर था जो रोहन में इतनी हिम्मत जगा रहा था ।रोहन का तंबू फिर से तन कर सामियाना बन गया था चारों तरफ का माहौल काफी खूबसूरत और ठंडा था सुबह सुबह की ताजी ठंडी हवा रोहन के तन बदन को एक नई ताजगी प्रदान कर रहे थे ।लेकिन यह ताजगी सिर्फ ऊपर से ही थी बदन के अंदर तो लावा फूट रहा था वह अपने आप को संभाल नहीं पा रहा था ।और धीरे-धीरे अपने कदम बढ़ाता हुआ गुसल खाने के बिल्कुल करीब पहुंच गया।
गुसल खाने के दरवाजे के करीब पहुंचते ही रोहन खड़ा होकर चारों तरफ इर्द-गिर्द देखने लगा की कहीं कोई उसे देख तो नहीं रहा है पूरी तरह से तसल्ली कर लेने के बाद रोहन अंदर झांकने का जरिया देखने लगा। कुछ देर मशक्कत करने के बाद उसे भी दरवाजे की वही दरार नजर आई जिसमें से कुछ देर पहले सुगंधा झांक रही थी। आज पहली बार वह चोरी छुपे इस तरह से अपनी मां के जवान बदन को देखने जा रहा था इसलिए उसका दिल बड़ी जोरों से धड़क रहा था चारों तरफ केवल पंछियों के चहकने की आवाजें आ रही थी वैसे भी वह जानता था कि इधर कोई आने वाला नहीं था लेकिन फिर भी एक मन में डर सा बना हुआ था।। सुबह सुबह की ठंडी ताजा हवा में भी रोहन के माथे पर पसीने की बूंदें उपसने लगी थी ।वह धड़कते हुए दिल के साथ अपनी आंख को दरवाजे की दरार से सटा दिया। कुछ पल तो उसे समझ में नहीं आया कि अंदर क्या नजर आ रहा है लेकिन कुछ देर अपने आंखों को स्थिर करते ही उसे वह नजारा सामने नजर आया जिसे देखते ही उसका लंड अपनी मां की जवानी को सलामी भरते हुए ऊपर नीचे होने लगा।
गुसल खाने में सुगंधा केवल पेटीकोट में खड़ी थी उसके बदन के बाकी के वस्त्र उतर चुके थे नंगी चिकनी गोरी पीठ देख कर रोहन टॉवल के ऊपर से ही अपने लंड को मसलने लगा।
अपनी मां के हाथों की हरकत को देख कर उसे समझते देर नहीं लगी कि उसकी मां पेटीकोट की डोरी खोल रही है। अब तो रोहन का दिल धड़कने की बजाय जोर जोर से उछलने लगा उसकी आंखों के सामने मालिश वाले दिन जैसा ही नजारा प्रस्तुत हो रहा था उत्तेजना के मारे उसका लंड एकदम कड़क हो कर किसी लोहे के रोड की भांति हो गया था ।रोहन अपनी नजरों को किवाड़ की पतली दरार से सटाया हुआ था । वह अंदर के एक भी नजारे को चूकने नहीं देना चाहता था ।
बस एक कमी आज भी उसे खल रही थी कि उसकी मां यहां पर भी अपनी पीठ उसकी तरफ की हुई थी।
जिस तरह से रोहन उत्तेजना का अनुभव कर रहा था उसी तरह से आज सुगंधा भी काफी उत्तेजित हो रही थी और उसका एक ही कारण था उसके बेटे का तना हुआ मोटा तगड़ा लंड जिसे देखते ही उसकी आंखें फटी की फटी रह गई थी सुगंधा की आंखों में अपने बेटे के लंड को लेकर उसकी तरफ बढ़ती हुए आकर्षण की चमक साफ नजर आ रही थी। उसे इस बात का अनुभव अच्छी तरह से हो रहा था कि उसकी बुर पूरी तरह से गीली हो चुकी थी। सुगंधा भी बार-बार अपने मन को अपनी बेटी के प्रति बढ़ते आकर्षण से रोक रही थी समझा रही थी कि उसके बारे में इस तरह का ख्याल करना अच्छा नहीं है लेकिन बार-बार उसकी आंखों के सामने रोहन का खड़ा तगड़ा मोटा लंड नजर आ रहा था जिससे वह अपने भटकते हुए मन को रोक नहीं पा रही थी। इस समय यही कहना ठीक था कि आग दोनों तरफ बराबर लगी हुई थी सुगंधा धीरे-धीरे अपनी पेटीकोट की डोरी खोल रही थी और बाहर खड़े रोहन की उत्सुकता और उत्तेजना बढ़ती जा रही थी और अगले ही पल सुगंधा अपने पेटिकोट की डोरी खोल कर एक झटके में पेटीकोट को छोड़ दी और उसकी बेटी को ढीली होकर सीधे जाकर उसके कदमों में गिर गई।
गुलाबी कलर की पेंटी सुगंधा को पूरी तरह से निर्वस्त्र होने से रोक दी । लेकिन फिर भी इस अवस्था में भी एक छोटी सी पैंटी एक मर्द की कल्पना में सुगंधाको नंगी करने में बाधित नहीं हो रही थी क्योंकि कल्पनाओं का घोड़ा तो मन मर्जी का मालिक होता है जहां दौड़ाऔ वहां दौड़ता है। इसलिए अपनी मां के बदन पर एक छोटी सी पैंटी देख कर भी रोहन अपनी मां के नंगे पन के एहसास को महसूस कर रहा था अपनी मां की नंगी नंगी गोरी गांड को देख कर रोहन पूरी तरह से उत्तेजना के परम शिखर पर विराजमान हो गया था।।
रोहन की सांसे पलभर में ही तीव्र गति से चलने लगी । दूसरी तरफ से गंदा ना चाहते हुए भी अपनी बेटी के खड़े लंड को याद करके अपने दोनों हाथों को पीछे की तरफ लाकर अपने नितंबों को सहलाने लगी यह देखकर रोहन की उत्तेजना और बढ़ने लगी रोहन का दिल जोरों से धड़क रहा था उसके टॉवल में इस तरह का तंबू तन कर खड़ा हो गया था कि ऐसा लग रहा था जैसे उसकी टावल नीचे गिर जाएगी।
तभी सुगंधा अपने हाथों से अपनी पेंटी को पकड़कर अपनी बेटी के लंड के प्रति बढ़ते आकर्षण की वजह से मदमस्त होकर उसे नीचे की तरफ सरकाने लगी लेकिन अपनी पेंटी को नीचे की तरफ उतारते हुए वह अपने भारी-भरकम नितंबों को गुसल खाने के किवाड़ की तरह इस तरह से उभरते हुए उठाने लगी जैसे कि ऐसा लग रहा था कि वह अपने बेटे के मदमस्त लंड को सलामी भर रही हो।
तरबूज के जैसे गोल गोल भारी भरकम नितंबों को उठा हुआ देखकर रोहन एकदम से कामोत्तेजना से भर गया। और उसके टॉवल में एक बहुत बड़ा तंबू सा बन गया जिसकी वजह से उसकी टॉवल नीचे गिर गई लेकिन वह अपनी टावल उठाने की तस्दी बिल्कुल भी नहीं ले रहा था क्योंकि उसकी आंखों के सामने बेहद मदमस्त कर देने वाला नजारा जो चल रहा था।
अगले ही पल सुगंधा अपने सारे वस्त्र उतारकर एकदम नंगी खड़ी थी इस समय सुगंधा एकदम काम की देवी लग रही थी उसका चमकता बदन बेहद खूबसूरत और आकर्षक लग रहा था एचएफ का नजारा बन चुका था गुसल खाने के अंदर रोहन की मां संपूर्ण रूप से नंगी खड़ी थी और गुसल खाने के बाहर रोहन एकदम नंगा खड़ा था रोहन बार-बार अपने आप से ही कह रहा था कि काश उसकी मां उसकी तरफ मुंह करके खड़ी हो जाए ताकि उसे उसकी मां की बेहद खूबसूरत बुर देखने को मिल जाए और जैसे उसकी मन की बात उसकी मां सुन ली हो इस तरह से अगले ही पल वह रोहन की तरफ मुंह कर ली रोहन का दिल जोरो से धड़कने लगा उसकी नजर सीधे उसकी मां की टांगों के बीच चली गई लेकिन उसकी किस्मत खराब थी क्योंकि तभी उसकी मां गुसल खाने में टंगी साड़ी उठा ली और अपने हाथ में पकड़ कर उसे देखने लगी जिसकी वजह से साड़ी की किनारी उसकी बुर को ढंक दी रोहन एकदम से तड़प उठा वह साड़ी हटने का इंतजार करने लगा कि तभी पत्तों की सरसराहट की आवाज आने लगी और पीछे मुड़कर देखा तो दूर से बेला चली आ रही थी रोहन तुरंत समय की नजाकत को समझते हुए नीचे गिरी टॉवल को उठाकर अपनी कमर से लपेट लिया और तुरंत वहां से नौ दो ग्यारह हो गया।
 

rohnny4545

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I
सुगंधा तैयार हो चुकी थी और रोहन के साथ अंगूर के बाग देखने के लिए निकल पड़ी। वैसे तो सुगंधा के साथ मुंशी जी भी आने वाले थे लेकिन उनके रिश्तेदार के वहां शादी में जाने की वजह से वह आ नहीं सके। और इसलिए सुगंधा रोहन को लेकर अंगूर के बाग देखने चल दी।
सुगंधा ट्रांसपेरेंट पीली रंग की साड़ी में बहुत ही खूबसूरत लग रही थी ट्रांसपेरेंट साड़ी की वजह से उसका गोरा बदन पीले रंग की साड़ी में भी साफ-साफ नजर आ रहा था। सुगंधा की गहरी नाभि एक छोटी सी बुर के समान बेहद मनमोहक और कामुक लग रही थी जिस पर नजर पड़ते हैं रोहन के तन बदन में उत्तेजना की लहर दौड़ने लगी। सुगंधा आगे आगे चल रही थी और रोहन पीछे पीछे वैसे रोहन जानबूझकर अपनी मां के पीछे पीछे चल रहा था क्योंकि पीछे चलने में उसे आगे का नजारा देखने को जो मिल जा रहा था ऊंची नीची पगडंडियों पर चलते हुए सुगंधा के पेड़ इधर उधर हो रहे थे जिसकी वजह से उसके नितंबों में एक अजीब सा भारीपन और थिरकन नजर आ रहा था और वह फिर कल साड़ी के अंदर होने के बावजूद भी साफ साफ महसूस हो रहा था ऐसा लग रहा था कि जैसे सुगंधा के कमर के नीचे दो बड़े-बड़े गुब्बारे पानी से भरे हुए बांधे हो और चलने पर इधर-उधर हो रहे हैं। रोहन को अपनी मां की मटकती हुई गांड बहुत ही खूबसूरत लग रही थी जिसकी वजह से पजामे में सोया हुआ उसका लंड हरकत कर रहा था।
सुगंधा ऊंची नीची पगडंडी पर संभाल संभाल कर अपने पैर रखते हुए आगे बढ़ रही थी। आसपास के खेतों में काम कर रहे गांव के लोग चोर नजरों से सुगंधा की मदमस्त जवानी से भरपूर बदन का रस पी रहे थे। सुगंधा पहले इन सब बातों पर बिल्कुल भी गौर नहीं करती थी लेकिन अब उसे मर्दों की नजरों के सिधान का पता चलने लगा था उसे अच्छी तरह से समझ में आ रहा था कि मर्दों की नजर अधिकतर उसके कौन से अंगों पर ज्यादा घूमती रहती थी। उसे इस तरह से मर्दों का घूरना खराब भी लग रहा था और अच्छा भी लगने लगा था सुगंधा अपने अगल-बगल आने जाने वाले गांव वासियों की नजरों को तो भाप ले रही थी लेकिन उसे इस बात का अंदाजा भी नहीं था कि उसके पीछे चल रहा उसका ही बेटा उसके भराव दार बड़ी बड़ी गांड को घूर रहा है।
वैसे भी सुगंधा के जमीदारी में जितने भी गांव आते थे उन सारे गांव में हरियाली हरियाली छाई हुई थी चारों तरफ बड़े बड़े पेड़ अपनी ठंडक फैला रहे थे छोटे छोटे तालाब गांव की सुंदरता को और भी ज्यादा बढ़ा दे रहे थे । सुगंधा अपनी जमीदारी पर बहुत गर्व महसूस कर रही थी।
कुछ देर के बाद सुगंधा अपने अंगूर के बाग पर पहुंच गई।
रोहन और सुगंधा दोनों एक छोटी सी मिट्टी के ऊंचे ढेर पर खड़े होकर देख रहे थे जहां से दूर दूर तक सिर्फ अंगूर के बाद ही नजर आ रहे थे रोहन तो यह सब देखकर एकदम दंग रह गया अंगूर के बाद उसे बहुत ही अच्छे लग रहे थे जगह जगह पर ढेर सारे अंगूर के गुच्छे लगे हुए थे जिसे देखने में बहुत ही मनमोहक नजारा लग रहा था रोहन खुश होता हुआ अपनी मां से बोला।
देखो तो मम्मी कितने अच्छे लग रहे हैं ये अंगूर।
इसीलिए तो तुम्हें यहां लाई हूं मुझे मालूम था कि तुम अभी तक अंगूर के बगीचे को नहीं देखे हो।
हां तुम सच कह रही हो मम्मी मैंने अभी तक अंगूर के बगीचे को देखा ही नहीं था नाही अंगूर के पौधे को आज में पहली बार अंगूर के गुच्छो को यूं तने से लगा हुआ देख रहा हूं।
( सुगंधा रोहन के चेहरे पर उत्सुकता और खुशी देखकर अंदर ही अंदर प्रसन्ना हो रही थी उसे रोहन की मासूमियत बहुत ही सुख प्रदान कर रही थी वह कभी रोहन को तो कभी अंगूर के बाग को देख रही थी रोहन अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बोला।)
मम्मी यह सारे के सारे अंगूर के बाग अपने है?
यह सारे के सारे नहीं बल्कि जहां तक तुम्हारी नजर जा रही है वह सारे के सारे अपने ही हैं इसीलिए कहती हूं कि थोड़ी बहुत अपनी जमीन जायदाद के बारे में मालूमात रखो लेकिन तुम हो कि अपने आवारा दोस्तों के साथ इधर-उधर में ही समय बिगाड़ रहे हो।
रोहन अपनी मां की बात सुनकर बोला कुछ नहीं बस आश्चर्य से जहां तक नजर जा रही थी वहां तक देखने की कोशिश कर रहा था और अपने फैली हुई जमीदारी से बहुत खुश हो रहा था मौसम भी काफी सुहावना था रह रह कर धूप हो जा रही थी तो कभी अच्छा हो जा रही थी इसलिए रोहन का मन लग रहा था सुगंधा अपने दोनों हाथों को पीछे की तरफ लाकर अपनी हथेली में हथेली रखकर उसे नितंबों के उभार पर आराम से छोड़ कर खड़ी थी और वह भी अपनी फैली हुई जमीदारी को गर्वित होते हुए देख रही थी रोहन की नजर अपनी मां पर पड़ी तो वह अपनी मां के मदमस्त उभार लिए हुए नितंबों पर आराम से रखी हुई हथेलियों को देख रहा था और कलाई में चमक रही उसकी घड़ी देखकर और भी ज्यादा उत्तेजना का अनुभव कर रहा था तभी रोहन की नजर ऊपर की तरफ आई तो अपनी मां के दोनों बड़े-बड़े संतरो को देखकर रोहन का मन उत्तेजना से भर गया।
क्योंकि सुगंधा के दोनों संतरो पर लगे हुए काले जामुन किसी चॉकलेट की तरह ब्लाउज के अंदर एकदम तनी हुई थी और बहुत ही ज्यादा नुकीली लग रही थी। जो कि ऐसा प्रतीत हो रहा था कि ब्लाउज फाड़कर बाहर आ जाएंगे। सुगंधा का इस तरह से खड़ा रहना भी बेहद कामुक असर कर रहा था कुछ देर तक यूं ही मिट्टी के ढेर पर खड़े रहने के बाद सुगंधा बोली।
आओ रोहन अंगूर के बाग के अंदर चलते हैं देखो तो सही कि करम सिंह किस तरह की रखवाली कर रहे हैं।
करम सिंह कौन मम्मी?
करम सिंह हमारे अंगूर के बगीचे की देखरेख करते हैं यह सब उन्हीं के जिम्मे है।
( इतना कहकर सुगंधा टेकरी पर से उतर कर अंगूर के बगीचे के अंदर जाने लगी चारों तरफ अंगूर के दानों के गुच्छे लटके हुए थे अंगूर के तने को संभाल सके इस तरह से जगह-जगह पर बड़े-बड़े बांस गड़े हुए थे जिस पर लिपटकर अंगूर की लताएं चारों तरफ बिछी पड़ी थी और बहुत ही सुंदर नजारा लग रहा था लेकिन अंदर की तरफ जाने के लिए अंगूर के बाग के नीचे सिर झुका कर जाना पड़ रहा था और सुगंधा थोड़ा सा झुक कर अंदर की तरफ जा रही थी और पीछे पीछे रोहन भी अंदर जा रहा था झुकने की वजह से सुगंधा की बड़ी बड़ी गांड कुछ ज्यादा ही हुई हुई नजर आ रही थी वह हम तो अपनी मां की बड़ी बड़ी गांड देखकर औरों अभी इस तरह से झुककर कर चलने की वजह से नितंबों का जो घेराव था वह कुछ ज्यादा ही दमदार लगने लगा था जिसे देखकर रोहन का लंड सलामी भरने लगा रोहन के मुंह में पानी आने लगा उसके जी में आ रहा था कि इसी तरह से वह अपनी मां को पीछे से पकड़ ले और अपना पूरा लंड उसकी बुर में घुसा कर उसकी चुदाई कर दें लेकिन यह सिर्फ कपोल कल्पना ही थी क्योंकि वह जानता था कि ऐसा कुछ भी नहीं होने वाला है और थोड़ी ही देर में सुगंधा अंगूर के बगीचे के बीचोबीच आ गई जहां पर थोड़ी दूर तक खाली जगह थी और उसमें झुग्गी सी बनी हुई थी जिसमें करम सिंह रहता था और यहीं से अंगूर के बगीचों की देखरेख करता था।
सुगंधा वहीं खड़े होकर चारों तरफ नजर घुमाकर करम सिंह को देखने लगी लेकिन झोपड़ी के बाहर कहीं भी करम सिंग नजर नहीं आया तो वह उसे आवाज लगाने लगी। लेकिन उसे कोई भी जवाब नहीं मिला तो वह समझ गई की झोपड़ी के अंदर करम सिंह नहीं है।
पता नहीं कहां चला गया अंगूर के बगीचे को छोड़कर ऐसा कहते हुए सुगंधा पास में पड़ी खाट को गिरा दी और पेड़ की छांव में खाट पर बैठ गई और रोहन को भी बैठने के लिए बोली रोहन भी उसी खाट पर बैठ गया।
कितना अच्छा नजारा लग रहा है ना मम्मी।
हां बेटा नजारा तो बहुत ही अच्छा है लेकिन यह करम सिंह कहां मर गया देख नहीं रहे हो अंगूर अब एकदम से तैयार हो गए हैं अगर ऐसे ही छोड़ कर जाता रहा तो गांव के लोग सारे अंगूर तोड़ ले जायेंगे।
हो सकता है कहीं काम से गया हो।
हां तुम ठीक कह रहे हो रोहन हो सकता है कहीं काम से गया हो क्योंकि ऐसी लापरवाही वह बिल्कुल भी नहीं करता है चलो कुछ देर तक यहां बैठकर उसका इंतजार करते हैं।
( रोहन और सुगंधा वहीं बैठ कर इधर-उधर की बातें करने लगे सुगंधा मार्केट में अंगूर के खरीदी बिक्री के बारे में समझाने लगी क्योंकि अंगूर की बिक्री के लिए भी वह रोहन को ही भेजने वाली थी ताकि धीरे-धीरे उसे सब कुछ समझ में आने लगे कुछ समय बीतने के बाद सुगंधाको प्यास महसूस होने लगी तो वह रोहन से बोली। )
रोहन बेटा मुझे प्यास लगी है यही पास में अंगूर के बाग से लगके हेडपंप होगा तू वहां से पानी भरला।
ठीक है मम्मी मुझे भी प्यास लगी है। ( और इतना कहकर रोहन वहां से उठकर जहां पर सुगंधा बताई थी उसी और चल दिया अभी कुछ ही देर बीता ही था कि सुगंधाको खूब जोरो की पेशाब लग गई ।
सुगंधा को बहुत जोरों से पेशाब लगी हुई थी वह अपने आप पर बहुत ज्यादा संयम रखने की कोशिश कर रही थी लेकिन u उसके लिए इस समय मोचना बेहद आवश्यक हो चुका था। क्योंकि ज्यादा देर तक वह अपनी पेशाब को रोक नहीं पा रही थी पेट में दर्द सा महसूस होने लगा था। सुगंधा खाट पर से उठी और कुछ देर तक इधर-उधर चहल कदमी करते हुए अपने पेशाब को रोकने की कोशिश करने लगी लेकिन कोई भी इंसान ज्यादा देर तक पेशाब को रोक नहीं सकता था इसलिए सुगंधा को भी मुतना बेहद जरूरी था। इसलिए वह ना चाहते हुए भी अंगूर की डालियों के नीचे से होकर धीरे-धीरे पेशाब करने के लिए जाने लगी और एक जगह पर पहुंच कर वह इधर उधर नजरे दौरा कर देखने की कोशिश करने लगी कि कहीं कोई देख तो नहीं रहा है लेकिन उस अंगूर के बागान में दूसरा कोई नजर नहीं आ रहा था सुगंधा जहां पर खड़ी थी वहां पर कुछ ज्यादा ही झाड़ियां थी और वहां पर किसी की नजर पड़ने की आशंका बिल्कुल भी नहीं थी और वहीं पास में ही एक छोटी सी झुग्गी बनी हुई थी।
दूसरी तरफ रोहन हेड पंप के पास पहुंचकर वही पर रखे बर्तन में पानी भरने लगा और खुद भी पानी से हाथ मुंह धो कर अपने आप को ठंडा करने की कोशिश करने लगा जब वह वहां से चलने को हुआ तभी उसकी आंखों के सामने से एक खरगोश का बच्चा भागता हुआ नजर आया और रोहन उसके पीछे पीछे जाने लगा रोहन उसे पकड़ना चाहता था उसके साथ खेलना चाहता था इसलिए जहां जहां खरगोश जा रहा था रोहन उसके पीछे पीछे चला जा रहा था।
दूसरी तरफ से सुगंधा अपने चारों तरफ नजर दौड़ा कर संपूर्ण रूप से निश्चिंत होने के बाद धीरे-धीरे अपनी सारी ऊपर की तरफ उठाने लगी और ऐसा करते हुए वह बार-बार अपने चारों तरफ देख ले रही थी लेकिन चारों तरफ सिर्फ सन्नाटा ही नजर आ रहा था लेकिन उसे इस बात का डर भी लगा था कि कहीं रोहन उसे ढूंढता हुआ यहां तक ना पहुंच जाए इसलिए वह इससे पहले पेशाब कर लेना चाहती थी वैसे भी पेशाब की तीव्रता उसके पेट में ऐठन दे रही थी सुगंधा धीरे-धीरे अपनी साड़ी को कमर तक उठा दी यह नजारा बेहद ही कामुकता से भरा हुआ था लेकिन इस नजारे को देखने वाला वहां कोई नहीं था धीरे-धीरे सुगंधा पूरी तरह से अपनी कमर तक अपनी साड़ी को उठा दी थी उसकी नंगी चिकनी मोटी मोटी जांगे पीली धूप में स्वर्ण की तरह चमक रही थी बेहद खूबसूरत और मादकता से भरा हुआ यह नजारा देखने वाला वहां कोई नहीं था और वैसे भी सुगंधा यही चाहती थी कि कोई उसे इस अवस्था में ना देख ले सुगंधा साड़ी को अपनी कमर तक उठा कर एक हाथ से अपनी पीली रंग की पैंटी को नीचे की तरफ सरकाने लगी धीरे धीरे सुगंधा अपनी पैंटी को अपनी मोटी चिकनी जांघों तक नीचे कर दी और तुरंत नीचे बैठ गई मुतने के लिए।
दूसरी तरफ रोहन लड़कपन दिखाते हुए खरगोश के पीछे पीछे भागता चला जा रहा था और तभी खरगोश उसकी आंखों के सामने एक घनी झाड़ियों के अंदर चला गया रोहन उस खरगोश को पकड़ लेना चाहता था इसलिए दबे पांव वह धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगा उसके सामने घनी झाड़ियां थी। वह धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा था उसे मालूम था कि इसी झाड़ियों के अंदर खरगोश दुबक कर बैठा हुआ है इसलिए वह घनी झाड़ियों के करीब पहुंचकर धीरे धीरे पत्तों को हटाने लगा लेकिन उसे खरगोश नजर नहीं आ रहा था वह अपनी चारों तरफ नजर दौड़ाने लगा लेकिन वहां खरगोश का नामोनिशान नहीं था वह निराश होने लगा वह समझ गया कि खरगोश भाग गया है और अब उसके हाथ में नहीं आने वाला लेकिन फिर भी अपने मन में चल रही इस उथल-पुथल को अंतिम रूप देते हुए वह अपने मन की तसल्ली के लिए अपना एक कदम आगे बढ़ाकर घनी झाड़ियों को अपने दोनों हाथों से हटाकर देखने की कोशिश करने लगा लेकिन फिर भी परिणाम शून्य ही आया वह उदास हो गया वह अपने दोनों हाथों को झाड़ियों पर से हटाने ही वाला था कि उसकी नजर थोड़ी दूर की घनी झाड़ियों के करीब गई और वहां का नजारा देखकर एकदम सन्न रह गया।
रोहन को एक बार फिर से अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था क्योंकि उसकी आंखों के सामने उसकी मां की बड़ी बड़ी नंगी गांड थी उसका दिमाग काम करना बंद है कर दिया क्योंकि मैं जा रहा है उसके सामने इतना गरमा गरम था कि उसकी सोचने समझने की शक्ति ही खत्म होने लगी थोड़ी देर में उसे इस बात का अहसास हो गया कि उसकी मां वहां पर बैठकर मुत रही थी।
रोहन बार-बार अपनी आंखों को मलता हुआ उस नजारे की हकीकत को समझने की कोशिश कर रहा था।
सुगंधा तैयार हो चुकी थी और रोहन के साथ अंगूर के बाग देखने के लिए निकल पड़ी। वैसे तो सुगंधा के साथ मुंशी जी भी आने वाले थे लेकिन उनके रिश्तेदार के वहां शादी में जाने की वजह से वह आ नहीं सके। और इसलिए सुगंधा रोहन को लेकर अंगूर के बाग देखने चल दी।
सुगंधा ट्रांसपेरेंट पीली रंग की साड़ी में बहुत ही खूबसूरत लग रही थी ट्रांसपेरेंट साड़ी की वजह से उसका गोरा बदन पीले रंग की साड़ी में भी साफ-साफ नजर आ रहा था। सुगंधा की गहरी नाभि एक छोटी सी बुर के समान बेहद मनमोहक और कामुक लग रही थी जिस पर नजर पड़ते हैं रोहन के तन बदन में उत्तेजना की लहर दौड़ने लगी। सुगंधा आगे आगे चल रही थी और रोहन पीछे पीछे वैसे रोहन जानबूझकर अपनी मां के पीछे पीछे चल रहा था क्योंकि पीछे चलने में उसे आगे का नजारा देखने को जो मिल जा रहा था ऊंची नीची पगडंडियों पर चलते हुए सुगंधा के पेड़ इधर उधर हो रहे थे जिसकी वजह से उसके नितंबों में एक अजीब सा भारीपन और थिरकन नजर आ रहा था और वह फिर कल साड़ी के अंदर होने के बावजूद भी साफ साफ महसूस हो रहा था ऐसा लग रहा था कि जैसे सुगंधा के कमर के नीचे दो बड़े-बड़े गुब्बारे पानी से भरे हुए बांधे हो और चलने पर इधर-उधर हो रहे हैं। रोहन को अपनी मां की मटकती हुई गांड बहुत ही खूबसूरत लग रही थी जिसकी वजह से पजामे में सोया हुआ उसका लंड हरकत कर रहा था।
सुगंधा ऊंची नीची पगडंडी पर संभाल संभाल कर अपने पैर रखते हुए आगे बढ़ रही थी। आसपास के खेतों में काम कर रहे गांव के लोग चोर नजरों से सुगंधा की मदमस्त जवानी से भरपूर बदन का रस पी रहे थे। सुगंधा पहले इन सब बातों पर बिल्कुल भी गौर नहीं करती थी लेकिन अब उसे मर्दों की नजरों के सिधान का पता चलने लगा था उसे अच्छी तरह से समझ में आ रहा था कि मर्दों की नजर अधिकतर उसके कौन से अंगों पर ज्यादा घूमती रहती थी। उसे इस तरह से मर्दों का घूरना खराब भी लग रहा था और अच्छा भी लगने लगा था सुगंधा अपने अगल-बगल आने जाने वाले गांव वासियों की नजरों को तो भाप ले रही थी लेकिन उसे इस बात का अंदाजा भी नहीं था कि उसके पीछे चल रहा उसका ही बेटा उसके भराव दार बड़ी बड़ी गांड को घूर रहा है।
वैसे भी सुगंधा के जमीदारी में जितने भी गांव आते थे उन सारे गांव में हरियाली हरियाली छाई हुई थी चारों तरफ बड़े बड़े पेड़ अपनी ठंडक फैला रहे थे छोटे छोटे तालाब गांव की सुंदरता को और भी ज्यादा बढ़ा दे रहे थे । सुगंधा अपनी जमीदारी पर बहुत गर्व महसूस कर रही थी।
कुछ देर के बाद सुगंधा अपने अंगूर के बाग पर पहुंच गई।
रोहन और सुगंधा दोनों एक छोटी सी मिट्टी के ऊंचे ढेर पर खड़े होकर देख रहे थे जहां से दूर दूर तक सिर्फ अंगूर के बाद ही नजर आ रहे थे रोहन तो यह सब देखकर एकदम दंग रह गया अंगूर के बाद उसे बहुत ही अच्छे लग रहे थे जगह जगह पर ढेर सारे अंगूर के गुच्छे लगे हुए थे जिसे देखने में बहुत ही मनमोहक नजारा लग रहा था रोहन खुश होता हुआ अपनी मां से बोला।
देखो तो मम्मी कितने अच्छे लग रहे हैं ये अंगूर।
इसीलिए तो तुम्हें यहां लाई हूं मुझे मालूम था कि तुम अभी तक अंगूर के बगीचे को नहीं देखे हो।
हां तुम सच कह रही हो मम्मी मैंने अभी तक अंगूर के बगीचे को देखा ही नहीं था नाही अंगूर के पौधे को आज में पहली बार अंगूर के गुच्छो को यूं तने से लगा हुआ देख रहा हूं।
( सुगंधा रोहन के चेहरे पर उत्सुकता और खुशी देखकर अंदर ही अंदर प्रसन्ना हो रही थी उसे रोहन की मासूमियत बहुत ही सुख प्रदान कर रही थी वह कभी रोहन को तो कभी अंगूर के बाग को देख रही थी रोहन अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बोला।)
मम्मी यह सारे के सारे अंगूर के बाग अपने है?
यह सारे के सारे नहीं बल्कि जहां तक तुम्हारी नजर जा रही है वह सारे के सारे अपने ही हैं इसीलिए कहती हूं कि थोड़ी बहुत अपनी जमीन जायदाद के बारे में मालूमात रखो लेकिन तुम हो कि अपने आवारा दोस्तों के साथ इधर-उधर में ही समय बिगाड़ रहे हो।
रोहन अपनी मां की बात सुनकर बोला कुछ नहीं बस आश्चर्य से जहां तक नजर जा रही थी वहां तक देखने की कोशिश कर रहा था और अपने फैली हुई जमीदारी से बहुत खुश हो रहा था मौसम भी काफी सुहावना था रह रह कर धूप हो जा रही थी तो कभी अच्छा हो जा रही थी इसलिए रोहन का मन लग रहा था सुगंधा अपने दोनों हाथों को पीछे की तरफ लाकर अपनी हथेली में हथेली रखकर उसे नितंबों के उभार पर आराम से छोड़ कर खड़ी थी और वह भी अपनी फैली हुई जमीदारी को गर्वित होते हुए देख रही थी रोहन की नजर अपनी मां पर पड़ी तो वह अपनी मां के मदमस्त उभार लिए हुए नितंबों पर आराम से रखी हुई हथेलियों को देख रहा था और कलाई में चमक रही उसकी घड़ी देखकर और भी ज्यादा उत्तेजना का अनुभव कर रहा था तभी रोहन की नजर ऊपर की तरफ आई तो अपनी मां के दोनों बड़े-बड़े संतरो को देखकर रोहन का मन उत्तेजना से भर गया।
क्योंकि सुगंधा के दोनों संतरो पर लगे हुए काले जामुन किसी चॉकलेट की तरह ब्लाउज के अंदर एकदम तनी हुई थी और बहुत ही ज्यादा नुकीली लग रही थी। जो कि ऐसा प्रतीत हो रहा था कि ब्लाउज फाड़कर बाहर आ जाएंगे। सुगंधा का इस तरह से खड़ा रहना भी बेहद कामुक असर कर रहा था कुछ देर तक यूं ही मिट्टी के ढेर पर खड़े रहने के बाद सुगंधा बोली।
आओ रोहन अंगूर के बाग के अंदर चलते हैं देखो तो सही कि करम सिंह किस तरह की रखवाली कर रहे हैं।
करम सिंह कौन मम्मी?
करम सिंह हमारे अंगूर के बगीचे की देखरेख करते हैं यह सब उन्हीं के जिम्मे है।
( इतना कहकर सुगंधा टेकरी पर से उतर कर अंगूर के बगीचे के अंदर जाने लगी चारों तरफ अंगूर के दानों के गुच्छे लटके हुए थे अंगूर के तने को संभाल सके इस तरह से जगह-जगह पर बड़े-बड़े बांस गड़े हुए थे जिस पर लिपटकर अंगूर की लताएं चारों तरफ बिछी पड़ी थी और बहुत ही सुंदर नजारा लग रहा था लेकिन अंदर की तरफ जाने के लिए अंगूर के बाग के नीचे सिर झुका कर जाना पड़ रहा था और सुगंधा थोड़ा सा झुक कर अंदर की तरफ जा रही थी और पीछे पीछे रोहन भी अंदर जा रहा था झुकने की वजह से सुगंधा की बड़ी बड़ी गांड कुछ ज्यादा ही हुई हुई नजर आ रही थी वह हम तो अपनी मां की बड़ी बड़ी गांड देखकर औरों अभी इस तरह से झुककर कर चलने की वजह से नितंबों का जो घेराव था वह कुछ ज्यादा ही दमदार लगने लगा था जिसे देखकर रोहन का लंड सलामी भरने लगा रोहन के मुंह में पानी आने लगा उसके जी में आ रहा था कि इसी तरह से वह अपनी मां को पीछे से पकड़ ले और अपना पूरा लंड उसकी बुर में घुसा कर उसकी चुदाई कर दें लेकिन यह सिर्फ कपोल कल्पना ही थी क्योंकि वह जानता था कि ऐसा कुछ भी नहीं होने वाला है और थोड़ी ही देर में सुगंधा अंगूर के बगीचे के बीचोबीच आ गई जहां पर थोड़ी दूर तक खाली जगह थी और उसमें झुग्गी सी बनी हुई थी जिसमें करम सिंह रहता था और यहीं से अंगूर के बगीचों की देखरेख करता था।
सुगंधा वहीं खड़े होकर चारों तरफ नजर घुमाकर करम सिंह को देखने लगी लेकिन झोपड़ी के बाहर कहीं भी करम सिंग नजर नहीं आया तो वह उसे आवाज लगाने लगी। लेकिन उसे कोई भी जवाब नहीं मिला तो वह समझ गई की झोपड़ी के अंदर करम सिंह नहीं है।
पता नहीं कहां चला गया अंगूर के बगीचे को छोड़कर ऐसा कहते हुए सुगंधा पास में पड़ी खाट को गिरा दी और पेड़ की छांव में खाट पर बैठ गई और रोहन को भी बैठने के लिए बोली रोहन भी उसी खाट पर बैठ गया।
कितना अच्छा नजारा लग रहा है ना मम्मी।
हां बेटा नजारा तो बहुत ही अच्छा है लेकिन यह करम सिंह कहां मर गया देख नहीं रहे हो अंगूर अब एकदम से तैयार हो गए हैं अगर ऐसे ही छोड़ कर जाता रहा तो गांव के लोग सारे अंगूर तोड़ ले जायेंगे।
हो सकता है कहीं काम से गया हो।
हां तुम ठीक कह रहे हो रोहन हो सकता है कहीं काम से गया हो क्योंकि ऐसी लापरवाही वह बिल्कुल भी नहीं करता है चलो कुछ देर तक यहां बैठकर उसका इंतजार करते हैं।
( रोहन और सुगंधा वहीं बैठ कर इधर-उधर की बातें करने लगे सुगंधा मार्केट में अंगूर के खरीदी बिक्री के बारे में समझाने लगी क्योंकि अंगूर की बिक्री के लिए भी वह रोहन को ही भेजने वाली थी ताकि धीरे-धीरे उसे सब कुछ समझ में आने लगे कुछ समय बीतने के बाद सुगंधाको प्यास महसूस होने लगी तो वह रोहन से बोली। )
रोहन बेटा मुझे प्यास लगी है यही पास में अंगूर के बाग से लगके हेडपंप होगा तू वहां से पानी भरला।
ठीक है मम्मी मुझे भी प्यास लगी है। ( और इतना कहकर रोहन वहां से उठकर जहां पर सुगंधा बताई थी उसी और चल दिया अभी कुछ ही देर बीता ही था कि सुगंधाको खूब जोरो की पेशाब लग गई ।
सुगंधा को बहुत जोरों से पेशाब लगी हुई थी वह अपने आप पर बहुत ज्यादा संयम रखने की कोशिश कर रही थी लेकिन u उसके लिए इस समय मोचना बेहद आवश्यक हो चुका था। क्योंकि ज्यादा देर तक वह अपनी पेशाब को रोक नहीं पा रही थी पेट में दर्द सा महसूस होने लगा था। सुगंधा खाट पर से उठी और कुछ देर तक इधर-उधर चहल कदमी करते हुए अपने पेशाब को रोकने की कोशिश करने लगी लेकिन कोई भी इंसान ज्यादा देर तक पेशाब को रोक नहीं सकता था इसलिए सुगंधा को भी मुतना बेहद जरूरी था। इसलिए वह ना चाहते हुए भी अंगूर की डालियों के नीचे से होकर धीरे-धीरे पेशाब करने के लिए जाने लगी और एक जगह पर पहुंच कर वह इधर उधर नजरे दौरा कर देखने की कोशिश करने लगी कि कहीं कोई देख तो नहीं रहा है लेकिन उस अंगूर के बागान में दूसरा कोई नजर नहीं आ रहा था सुगंधा जहां पर खड़ी थी वहां पर कुछ ज्यादा ही झाड़ियां थी और वहां पर किसी की नजर पड़ने की आशंका बिल्कुल भी नहीं थी और वहीं पास में ही एक छोटी सी झुग्गी बनी हुई थी।
दूसरी तरफ रोहन हेड पंप के पास पहुंचकर वही पर रखे बर्तन में पानी भरने लगा और खुद भी पानी से हाथ मुंह धो कर अपने आप को ठंडा करने की कोशिश करने लगा जब वह वहां से चलने को हुआ तभी उसकी आंखों के सामने से एक खरगोश का बच्चा भागता हुआ नजर आया और रोहन उसके पीछे पीछे जाने लगा रोहन उसे पकड़ना चाहता था उसके साथ खेलना चाहता था इसलिए जहां जहां खरगोश जा रहा था रोहन उसके पीछे पीछे चला जा रहा था।
दूसरी तरफ से सुगंधा अपने चारों तरफ नजर दौड़ा कर संपूर्ण रूप से निश्चिंत होने के बाद धीरे-धीरे अपनी सारी ऊपर की तरफ उठाने लगी और ऐसा करते हुए वह बार-बार अपने चारों तरफ देख ले रही थी लेकिन चारों तरफ सिर्फ सन्नाटा ही नजर आ रहा था लेकिन उसे इस बात का डर भी लगा था कि कहीं रोहन उसे ढूंढता हुआ यहां तक ना पहुंच जाए इसलिए वह इससे पहले पेशाब कर लेना चाहती थी वैसे भी पेशाब की तीव्रता उसके पेट में ऐठन दे रही थी सुगंधा धीरे-धीरे अपनी साड़ी को कमर तक उठा दी यह नजारा बेहद ही कामुकता से भरा हुआ था लेकिन इस नजारे को देखने वाला वहां कोई नहीं था धीरे-धीरे सुगंधा पूरी तरह से अपनी कमर तक अपनी साड़ी को उठा दी थी उसकी नंगी चिकनी मोटी मोटी जांगे पीली धूप में स्वर्ण की तरह चमक रही थी बेहद खूबसूरत और मादकता से भरा हुआ यह नजारा देखने वाला वहां कोई नहीं था और वैसे भी सुगंधा यही चाहती थी कि कोई उसे इस अवस्था में ना देख ले सुगंधा साड़ी को अपनी कमर तक उठा कर एक हाथ से अपनी पीली रंग की पैंटी को नीचे की तरफ सरकाने लगी धीरे धीरे सुगंधा अपनी पैंटी को अपनी मोटी चिकनी जांघों तक नीचे कर दी और तुरंत नीचे बैठ गई मुतने के लिए।
दूसरी तरफ रोहन लड़कपन दिखाते हुए खरगोश के पीछे पीछे भागता चला जा रहा था और तभी खरगोश उसकी आंखों के सामने एक घनी झाड़ियों के अंदर चला गया रोहन उस खरगोश को पकड़ लेना चाहता था इसलिए दबे पांव वह धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगा उसके सामने घनी झाड़ियां थी। वह धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा था उसे मालूम था कि इसी झाड़ियों के अंदर खरगोश दुबक कर बैठा हुआ है इसलिए वह घनी झाड़ियों के करीब पहुंचकर धीरे धीरे पत्तों को हटाने लगा लेकिन उसे खरगोश नजर नहीं आ रहा था वह अपनी चारों तरफ नजर दौड़ाने लगा लेकिन वहां खरगोश का नामोनिशान नहीं था वह निराश होने लगा वह समझ गया कि खरगोश भाग गया है और अब उसके हाथ में नहीं आने वाला लेकिन फिर भी अपने मन में चल रही इस उथल-पुथल को अंतिम रूप देते हुए वह अपने मन की तसल्ली के लिए अपना एक कदम आगे बढ़ाकर घनी झाड़ियों को अपने दोनों हाथों से हटाकर देखने की कोशिश करने लगा लेकिन फिर भी परिणाम शून्य ही आया वह उदास हो गया वह अपने दोनों हाथों को झाड़ियों पर से हटाने ही वाला था कि उसकी नजर थोड़ी दूर की घनी झाड़ियों के करीब गई और वहां का नजारा देखकर एकदम सन्न रह गया।
रोहन को एक बार फिर से अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था क्योंकि उसकी आंखों के सामने उसकी मां की बड़ी बड़ी नंगी गांड थी उसका दिमाग काम करना बंद है कर दिया क्योंकि मैं जा रहा है उसके सामने इतना गरमा गरम था कि उसकी सोचने समझने की शक्ति ही खत्म होने लगी थोड़ी देर में उसे इस बात का अहसास हो गया कि उसकी मां वहां पर बैठकर मुत रही थी।
रोहन बार-बार अपनी आंखों को मलता हुआ उस नजारे की हकीकत को समझने की कोशिश कर रहा था।
मेरा क्या है जो भी लिया है नेट से लिया है और नेट पर ही दिया है- (इधर का माल उधर)
शरीफ़ या कमीना....
Incest बदलते रिश्ते...
DEV THE HIDDEN POWER ...
Adventure of karma ( dragon king )
 ritesh 
Gold Member
Re: Incest बदलते रिश्ते
 27 May 2019 15:12
उसे अपनी किस्मत पर बिल्कुल भी विश्वास नहीं हो रहा था कि अब तक तो अपनी मां को नंगी देख चुका था लेकिन उसे बिल्कुल भी विश्वास नहीं हो रहा था कि वह अपनी मां को अपनी आंखों से पेशाब करता हुआ देख रहा है। रोहन के मुंह में पानी आने लगा उसकी लार टपकने लगी खुशी अपनी किस्मत पर नाज होने लगा क्योंकि कुछ दिनों से उसकी किस्मत उसके पक्ष में चल रही थी जो वह सोचता था उसकी आंखों के सामने वैसा ही होता जा रहा था इस समय रोहन की आंखों के सामने उसकी मां की बड़ी-बड़ी गोरी गांड थी। जिसे सुगंधा हल्के से उठाए हुए थे और सुगंधा की इस हरकत का उसके बेटे पर बुरा असर पड़ रहा था पलभर में ही उसका लंड पजामे के अंदर तन कर लोहे के रोड की तरह हो गया था। जिसे रोहन अपने हाथों से मसलने लगा था सुगंधा की गुलाबी पुर के गुलाबी छेद में से पेशाब की धार बड़ी तेजी से निकल रही थी जिसकी वजह से उसमें से एक सीटी सी बजने लगी थी और इस समय सुगंधा की बुर से निकल रही सीटी की आवाज रोहन के लिए किसी बांसुरी के मधुर धुन से कम नहीं थी रोहन उस मादकता से भरे नजारे और बुर से आ रही है मधुर धुन में खोने लगा सुगंधा अपनी तरफ से पूरी एहतियात बरतते हुए अपनी चारों तरफ देख ले रही थी लेकिन अपने पीछे नजर नहीं बढ़ा पा रही थी वह इस बात से पूरी तरह से निश्चिंत थी कि उसे इस समय पेशाब करते हुए कोई नहीं देख रहा है लेकिन इस बात से अनजान थी कि उसका ही बेटा झाड़ियों के पीछे से चुपके से खड़ा होकर उसे पेशाब करते हुए देख रहा था। थोड़ी देर में सुगंधा पेशाब कर ली लेकिन उठते उठते वह अपनी गुलाबी पुर की गुलाबी पतियों में से पेशाब की बूंद को गिराते हुए हल्के हल्के अपने नितंबों को झटकने लगी।
लेकिन सुगंधा की यह हरकत बेहद ही कामुकता से भरी हुई थी क्योंकि रोहन खुद अपनी मां की इस हरकत को देखकर एकदम से चुदवासा हो गया था और जोर से अपने लंड को मसलने लगा था।
सुगंधा पेशाब करके खड़ी हो गई और एक हाथ से अपनी पीली रंग की पैंटी को ऊपर चढ़ाने लगी रोहन तो यह नजारा देखकर एकदम कामुकता से भर गया थोड़ी ही देर में सुगंधा अपनी साड़ी को नीचे गिरा दी और अपने कपड़े ठीक कर के जाने को हुई ही थी कि झुग्गी मैं से आ रही खिलखिला ने की आवाज सुनकर उसके कदम रुक गए वह एक पल के लिए झुग्गी की तरफ देखने लगी। तुरंत उसकी आंखों में चमक आ गई उसे वह दिन याद आ गया जब वह गेहूं की कटाई वाले दिन खेतों में आई थी और इसी तरह से झुग्गी मैं से आ रही हसने की आवाज सुनकर उत्सुकतावस अंदर झांकने की कोशिश की थी और अंदर का नजारा देखकर एकदम से सन में रह गई थी। उसे उस समय इस बात का बिल्कुल भी यकीन नहीं था कि झुग्गी के अंदर उनके खेतों में काम कर रहा मजदूर किसी औरत के साथ चुदाई का खेल खेल रहा है और आज ठीक उसी तरह की आवाज सुनकर एक बार फिर से सुगंधा का दिल जोरो से धड़कने लगा।
दूसरी तरफ रोहन अपनी मां को देखते हुए अपने लंड को मसल रहा था लेकिन उसे यह समझ में नहीं आ रहा था कि उसकी मां आखिर वापस जाते जाते वहीं रुक क्यों गई उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था और वह उन्हीं झाड़ियों के पीछे छुप कर देखने लगा
एक अजीब सा अहसास सुगंधा के तनबदन को झकझोर रहा था। सुगंधा की आंखों के सामने वही दृश्य नजर आने लगा जो उस दिन खेतों में हुआ था उसे लगने लगा कि जरूर झुकी में आज भी वही दृश्य हो रहा होगा इसलिए वह धीरे-धीरे उस छोटी सी झोपड़ी की तरफ जाने लगी और पीछे झाड़ियों में छिपा हुआ रोहन अपनी मां के इस हरकत को देख रहा था उसे समझ में नहीं आ रहा था कि उसकी मां कर क्या रही है।
एक तो पहले से ही अपनी मां की नंगी गांड उस और उसे पेशाब करता हुआ देखकर उसकी हालत खराब थी अजीब लंड था कि बैठने का नाम नहीं ले रहा था और उसकी इस तरह की शंका स्पद हरकत रोहन के तनबदन को अजीब सी उत्तेजना प्रदान कर रही थी धीरे धीरे सुगंधा उस झोपड़ी की तरफ आगे बढ़ रही थी और जैसे-जैसे आगे बढ़ेगी वैसे-वैसे अंदर से आ रही आवाज उसके कानों में साफ-साफ सुनाई दे रही थी।
आहहहहह आहहहहहहह करमुआ आहहहहहह और जोर जोर से धक्के लगा।
( जैसे ही उस झोपड़ी में से आ रही एक औरत के मुंह से इस तरह की आवाज सुगंधा के कानों में पड़ी सुगंधा के तन बदन में उत्तेजना की लहर दौड़ गई उसे समझते देर नहीं लगी की झोपड़ी के अंदर क्या चल रहा है और अंगूर के बागानों की रखवाली करने वाला करण सिंह झोपड़ी के अंदर ही किसी औरत की चुदाई कर रहा था अब तो सुगंधा से रहा नहीं जा रहा था वह दबे कदमों से झोपड़ी के बिल्कुल करीब पहुंच गई और अंदर झांकने की कोशिश करने लगी दूर खड़ा रोहन अपनी मां की इस हरकत से बेहाल हुए जा रहा था उसे समझ में नहीं आ रहा था कि उसकी मां करके आ रही है लेकिन इतना तो समझ में आ गया था कि जरूर कुछ ना कुछ झोपड़ी के अंदर चल रहा है जिसे देखने के लिए उसकी मां उत्सुक है।
इधर उधर नजर दौड़ाने पर उसे एक छोटी सी जगह दिख गई जहां से थोड़ी सी दरार बनी हुई थी और सुगंधा तुरंत उस दरार से अपनी आंख लगाकर अंदर के नजारे को देखने लगी और अंदर के नजारे को जैसे ही देखी उसका दिमाग सन्न रह गया उसकी टांगों के बीच हलचल होने लगी। उसे साफ साफ नजर आ रहा था कि झोपड़ी के अंदर एक चारपाई पर एक औरत लेटी हुई थी जिसके बदन पर मात्र एक ब्लाउज था जो कि उसके सारे बटन खुले हुए थे और करम सिंह उस पर लेटा हुआ था और जोर जोर से उसके दोनों खरबूजे को दबाता हुआ उनका रस मुंह लगाकर निचोड़ रहा था। और वह औरत गरम-गरम सिसकारियां लेते हुए उसका जोश और बढ़ा रही थी और करम सिंह अपनी पूरी ताकत लगाते हुए अपनी कमर को जोर जोर से हिला रहा था।
यह नजारा देखकर सुगंधा के तन बदन में उत्तेजना की लहर दौड़ने लगी। पलभर में ही सुगंधा के बदन में गर्माहट फैलने लगी उसकी सांसों की गति तेज होने लगी कर्म सिंह की हिलती हुई कमर को देखकर सुगंधा का अंदाजा गलत नहीं था कि उस औरत को बेहद आनंद की प्राप्ति हो रही है वह जानती थी कि जिस तेजी से कर्म सिंह अपनी कमर हिला रहा है उतनी ही रफ्तार से उसका लंड उसकी बुर के अंदर बाहर हो रहा होगा और उसकी रगड़ से वह औरत मस्त हो रही है तभी तो उसके मुंह से गरम गरम सिसकारियां निकल रही थी।
कसम से कमली जो मजा तेरी बुरी में है वह किसी और बुर में नहीं जब जब मैं तेरी बुर में अपना लंड डालता हूं तो मुझे लगता है मुझे स्वर्ग का मजा मिल रहा है।।
आहहहहहब आहहहहहह और जोर से रे सच करमुवा मुझे भी तेरे साथ में मजा आता है मेरा मरद तो बस दिन-रात दारू और जुआ में ही लगा हुआ है उसका तो ठीक से खड़ा भी नहीं होता तभी तो मुझे तेरे पास आना पड़ता है और तू तो मुझे मस्त कर देता है देखना तेरे लिए एकदम नंगी तेरे नीचे लेटी हूं और बहुत जोर जोर से धक्के लगा मेरा होने वाला है ।
मेरा भी होने वाला है
( और इतना कहने के साथ ही कर्म ने अपने कमर को और जोर जोर से हिलाना शुरू कर दिया इतने में तो सुगंधा पसीने से तरबतर हो गए उससे यह नजारा बहुत ही मनमोहक लग रहा था उसका गला सूखा जा रहा था और जिस तरह से कर्म सिंह अपनी कमर हिला रहा था वह समझ गई थी कि दोनों का काम होने वाला है इसीलिए उसका वहां खड़े रहना ठीक नहीं था और वह दबे पांव वापस लौट गई लेकिन वहां से पीछे हटते समय वह आश्चर्य से अपने मुंह पर हाथ लगा दी जिसे देख कर रोहन समझ गया की झोपड़ी के अंदर जरूर कुछ ना कुछ ऐसा हो रहा है जो कि उसकी मां के लिए आश्चर्य से कम नहीं था सुगंधा वापस लौट चुकी थी रोहन कुछ देर तक वहीं खड़ा रहा उसके मन में हो रहा था कि वह भी झोपड़ी तक जाए और देखें कि अंदर क्या हो रहा है और ऐसा सोचकर वह झाड़ियों से बाहर निकलने वाला था कि तभी अंदर से एक औरत निकली जो कि अपने कपड़ों को व्यवस्थित कर रही थी और साथ ही उसके पीछे पीछे एक लंबा तगड़ा आदमी निकला जो कि अपने पर जाने की डोरी बाद रहा था इतना देखकर रोहन को समझते देर नहीं लगी की झोपड़ी के अंदर दोनों की चुदाई चल रही थी।
यह रोहन के लिए बेहद आश्चर्यजनक तो था ही उससे भी ज्यादा उत्तेजित कर देने वाली बात यह थी कि उसकी मां चोरी-छिपे झोपड़ी के अंदर के नजारे को देख रही थी और यह तय था कि उसकी मां कुछ देर तक वहां खड़े होकर उन दोनों की चुदाई देख रही थी। यह ख्याल मन में आते ही रोहन का लंड फिर से अंगड़ाई लेने लगा।
थोड़ी देर बाद रोहन पानी लेकर उस जगह पर गया वहां देखा तो उसकी मां चारपाई पर बैठी हुई थी और करम सिंह वहीं नीचे बैठा हुआ था और उससे सुगंधा बोल रही थी।
कहां चले गए थे करम सिंह मैं कब से तुम्हारा इंतजार कर रही हूं।
कहीं नहीं मालकिन रात को जंगली जानवर परेशान करते हैं इसलिए अपने बगीचे के किनारे किनारे कटीली झाड़ियां लगाने गया था।
( हरामखोर कटीली झाड़ियां लगाने गया था कमली के मैदान पर हल चलाने गया था हरामखोर चुदाई करके आ रहा है और यह झूठ बोल रहा है सुगंधा मन ही मन में बोली। और यही बात रोहन भी मन ही मन में कह रहा था । सुगंधा उसकी बात सुनकर बोली।)
अब तुम्हें अंगूरों के बाद का ज्यादा देखभाल करना होगा क्योंकि अंगूर तैयार होने वाले हैं अगर जरा सा भी चूक हुई तो गांव वाले सब तोड़ ले जायेंगे इसलिए यहां वहां मैं जाकर तुम बगीचे की देखभाल करो ।
जी मालकिन ऐसा ही होगा।
और तुम कहां चले गए थे बेटा मैं तुम्हारा यहां बैठकर कब से इंतजार कर रही हूं तुम्हें पता है कितनी जोरों की प्यास लगी है अगर इंसान तुम्हारे भरोसे रहे तो वह प्यासा ही मर जाए।
( अपनी मां की बात सुनकर रोहन मन ही मन में बोला कितना झूठ बोल रही है साली वहां अपनी बड़ी बड़ी नंगी गांड दिखाते हुए कैसे मूत रही थी और झोपड़ी में चल रही चुदाई देख कर मस्त हो रही थी और मुझे कह रही है कि मैं यहां बैठकर कब से इंतजार कर रही हूं। )
मम्मी में आने ही वाला था कि( करम सिंह को नमस्ते करते हुए) मुझे खरगोश नजर आ गया और उसे पकड़ने के चक्कर में देर हो गया ।
रोहन की बात सुनकर सुगंधा हसदी और हंसते हुए करम सिंह को देखने लगी और मन ही मन में बोली साला कितना हरामी है इसकी बीवी घर में इसका इंतजार करती होगी और मम्मी सोचती होगी कि उसका पति खेतों में काम कर रहा है लेकिन उस बेचारी को क्या माल है कि यहां पर किसी और औरत के साथ रंगरेलियां मना रहा है क्या किस्मत है।
एक तरफ सुगंधा कर्म सिंह की करतूत से क्रोधित होकर उसे मन ही मन में कोर्स भी रही थी तो दूसरी तरफ उसकी किस्मत पर जल भी रही थी क्योंकि एक यह मर्द था जो कि घर में पत्नी होने के बावजूद भी दूसरी औरतों को मौका मिलते ही अपने नीचे लाने में जरा भी कसर बाकी नहीं रखता था और जिस पागलपन से वह औरत की चुदाई करता था उसे देखकर सुगंधा की टांगों के बीच अभी भी सुरसुरा हाट महसूस हो रही थी कुछ देर तक सुगंधा वहीं बैठी रही काफी समय बीत गया था रोहन भी काफी मस्त नजर आ रहा था क्योंकि उसकी आंखों के सामने उसकी मां ने जबरदस्त नजारा पेश की थी जिसे देख कर रह रह कर उसका लंड अभी भी अंगड़ाई ले रहा था।
थोड़ी देर बाद दोनों घर वापस लौट आए।

उसे अपनी किस्मत पर बिल्कुल भी विश्वास नहीं हो रहा था कि अब तक तो अपनी मां को नंगी देख चुका था लेकिन उसे बिल्कुल भी विश्वास नहीं हो रहा था कि वह अपनी मां को अपनी आंखों से पेशाब करता हुआ देख रहा है। रोहन के मुंह में पानी आने लगा उसकी लार टपकने लगी खुशी अपनी किस्मत पर नाज होने लगा क्योंकि कुछ दिनों से उसकी किस्मत उसके पक्ष में चल रही थी जो वह सोचता था उसकी आंखों के सामने वैसा ही होता जा रहा था इस समय रोहन की आंखों के सामने उसकी मां की बड़ी-बड़ी गोरी गांड थी। जिसे सुगंधा हल्के से उठाए हुए थे और सुगंधा की इस हरकत का उसके बेटे पर बुरा असर पड़ रहा था पलभर में ही उसका लंड पजामे के अंदर तन कर लोहे के रोड की तरह हो गया था। जिसे रोहन अपने हाथों से मसलने लगा था सुगंधा की गुलाबी पुर के गुलाबी छेद में से पेशाब की धार बड़ी तेजी से निकल रही थी जिसकी वजह से उसमें से एक सीटी सी बजने लगी थी और इस समय सुगंधा की बुर से निकल रही सीटी की आवाज रोहन के लिए किसी बांसुरी के मधुर धुन से कम नहीं थी रोहन उस मादकता से भरे नजारे और बुर से आ रही है मधुर धुन में खोने लगा सुगंधा अपनी तरफ से पूरी एहतियात बरतते हुए अपनी चारों तरफ देख ले रही थी लेकिन अपने पीछे नजर नहीं बढ़ा पा रही थी वह इस बात से पूरी तरह से निश्चिंत थी कि उसे इस समय पेशाब करते हुए कोई नहीं देख रहा है लेकिन इस बात से अनजान थी कि उसका ही बेटा झाड़ियों के पीछे से चुपके से खड़ा होकर उसे पेशाब करते हुए देख रहा था। थोड़ी देर में सुगंधा पेशाब कर ली लेकिन उठते उठते वह अपनी गुलाबी पुर की गुलाबी पतियों में से पेशाब की बूंद को गिराते हुए हल्के हल्के अपने नितंबों को झटकने लगी।
लेकिन सुगंधा की यह हरकत बेहद ही कामुकता से भरी हुई थी क्योंकि रोहन खुद अपनी मां की इस हरकत को देखकर एकदम से चुदवासा हो गया था और जोर से अपने लंड को मसलने लगा था।
सुगंधा पेशाब करके खड़ी हो गई और एक हाथ से अपनी पीली रंग की पैंटी को ऊपर चढ़ाने लगी रोहन तो यह नजारा देखकर एकदम कामुकता से भर गया थोड़ी ही देर में सुगंधा अपनी साड़ी को नीचे गिरा दी और अपने कपड़े ठीक कर के जाने को हुई ही थी कि झुग्गी मैं से आ रही खिलखिला ने की आवाज सुनकर उसके कदम रुक गए वह एक पल के लिए झुग्गी की तरफ देखने लगी। तुरंत उसकी आंखों में चमक आ गई उसे वह दिन याद आ गया जब वह गेहूं की कटाई वाले दिन खेतों में आई थी और इसी तरह से झुग्गी मैं से आ रही हसने की आवाज सुनकर उत्सुकतावस अंदर झांकने की कोशिश की थी और अंदर का नजारा देखकर एकदम से सन में रह गई थी। उसे उस समय इस बात का बिल्कुल भी यकीन नहीं था कि झुग्गी के अंदर उनके खेतों में काम कर रहा मजदूर किसी औरत के साथ चुदाई का खेल खेल रहा है और आज ठीक उसी तरह की आवाज सुनकर एक बार फिर से सुगंधा का दिल जोरो से धड़कने लगा।
दूसरी तरफ रोहन अपनी मां को देखते हुए अपने लंड को मसल रहा था लेकिन उसे यह समझ में नहीं आ रहा था कि उसकी मां आखिर वापस जाते जाते वहीं रुक क्यों गई उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था और वह उन्हीं झाड़ियों के पीछे छुप कर देखने लगा
एक अजीब सा अहसास सुगंधा के तनबदन को झकझोर रहा था। सुगंधा की आंखों के सामने वही दृश्य नजर आने लगा जो उस दिन खेतों में हुआ था उसे लगने लगा कि जरूर झुकी में आज भी वही दृश्य हो रहा होगा इसलिए वह धीरे-धीरे उस छोटी सी झोपड़ी की तरफ जाने लगी और पीछे झाड़ियों में छिपा हुआ रोहन अपनी मां के इस हरकत को देख रहा था उसे समझ में नहीं आ रहा था कि उसकी मां कर क्या रही है।
एक तो पहले से ही अपनी मां की नंगी गांड उस और उसे पेशाब करता हुआ देखकर उसकी हालत खराब थी अजीब लंड था कि बैठने का नाम नहीं ले रहा था और उसकी इस तरह की शंका स्पद हरकत रोहन के तनबदन को अजीब सी उत्तेजना प्रदान कर रही थी धीरे धीरे सुगंधा उस झोपड़ी की तरफ आगे बढ़ रही थी और जैसे-जैसे आगे बढ़ेगी वैसे-वैसे अंदर से आ रही आवाज उसके कानों में साफ-साफ सुनाई दे रही थी।
आहहहहह आहहहहहहह करमुआ आहहहहहह और जोर जोर से धक्के लगा।
( जैसे ही उस झोपड़ी में से आ रही एक औरत के मुंह से इस तरह की आवाज सुगंधा के कानों में पड़ी सुगंधा के तन बदन में उत्तेजना की लहर दौड़ गई उसे समझते देर नहीं लगी की झोपड़ी के अंदर क्या चल रहा है और अंगूर के बागानों की रखवाली करने वाला करण सिंह झोपड़ी के अंदर ही किसी औरत की चुदाई कर रहा था अब तो सुगंधा से रहा नहीं जा रहा था वह दबे कदमों से झोपड़ी के बिल्कुल करीब पहुंच गई और अंदर झांकने की कोशिश करने लगी दूर खड़ा रोहन अपनी मां की इस हरकत से बेहाल हुए जा रहा था उसे समझ में नहीं आ रहा था कि उसकी मां करके आ रही है लेकिन इतना तो समझ में आ गया था कि जरूर कुछ ना कुछ झोपड़ी के अंदर चल रहा है जिसे देखने के लिए उसकी मां उत्सुक है।
इधर उधर नजर दौड़ाने पर उसे एक छोटी सी जगह दिख गई जहां से थोड़ी सी दरार बनी हुई थी और सुगंधा तुरंत उस दरार से अपनी आंख लगाकर अंदर के नजारे को देखने लगी और अंदर के नजारे को जैसे ही देखी उसका दिमाग सन्न रह गया उसकी टांगों के बीच हलचल होने लगी। उसे साफ साफ नजर आ रहा था कि झोपड़ी के अंदर एक चारपाई पर एक औरत लेटी हुई थी जिसके बदन पर मात्र एक ब्लाउज था जो कि उसके सारे बटन खुले हुए थे और करम सिंह उस पर लेटा हुआ था और जोर जोर से उसके दोनों खरबूजे को दबाता हुआ उनका रस मुंह लगाकर निचोड़ रहा था। और वह औरत गरम-गरम सिसकारियां लेते हुए उसका जोश और बढ़ा रही थी और करम सिंह अपनी पूरी ताकत लगाते हुए अपनी कमर को जोर जोर से हिला रहा था।
यह नजारा देखकर सुगंधा के तन बदन में उत्तेजना की लहर दौड़ने लगी। पलभर में ही सुगंधा के बदन में गर्माहट फैलने लगी उसकी सांसों की गति तेज होने लगी कर्म सिंह की हिलती हुई कमर को देखकर सुगंधा का अंदाजा गलत नहीं था कि उस औरत को बेहद आनंद की प्राप्ति हो रही है वह जानती थी कि जिस तेजी से कर्म सिंह अपनी कमर हिला रहा है उतनी ही रफ्तार से उसका लंड उसकी बुर के अंदर बाहर हो रहा होगा और उसकी रगड़ से वह औरत मस्त हो रही है तभी तो उसके मुंह से गरम गरम सिसकारियां निकल रही थी।
कसम से कमली जो मजा तेरी बुरी में है वह किसी और बुर में नहीं जब जब मैं तेरी बुर में अपना लंड डालता हूं तो मुझे लगता है मुझे स्वर्ग का मजा मिल रहा है।।
आहहहहहब आहहहहहह और जोर से रे सच करमुवा मुझे भी तेरे साथ में मजा आता है मेरा मरद तो बस दिन-रात दारू और जुआ में ही लगा हुआ है उसका तो ठीक से खड़ा भी नहीं होता तभी तो मुझे तेरे पास आना पड़ता है और तू तो मुझे मस्त कर देता है देखना तेरे लिए एकदम नंगी तेरे नीचे लेटी हूं और बहुत जोर जोर से धक्के लगा मेरा होने वाला है ।
मेरा भी होने वाला है
( और इतना कहने के साथ ही कर्म ने अपने कमर को और जोर जोर से हिलाना शुरू कर दिया इतने में तो सुगंधा पसीने से तरबतर हो गए उससे यह नजारा बहुत ही मनमोहक लग रहा था उसका गला सूखा जा रहा था और जिस तरह से कर्म सिंह अपनी कमर हिला रहा था वह समझ गई थी कि दोनों का काम होने वाला है इसीलिए उसका वहां खड़े रहना ठीक नहीं था और वह दबे पांव वापस लौट गई लेकिन वहां से पीछे हटते समय वह आश्चर्य से अपने मुंह पर हाथ लगा दी जिसे देख कर रोहन समझ गया की झोपड़ी के अंदर जरूर कुछ ना कुछ ऐसा हो रहा है जो कि उसकी मां के लिए आश्चर्य से कम नहीं था सुगंधा वापस लौट चुकी थी रोहन कुछ देर तक वहीं खड़ा रहा उसके मन में हो रहा था कि वह भी झोपड़ी तक जाए और देखें कि अंदर क्या हो रहा है और ऐसा सोचकर वह झाड़ियों से बाहर निकलने वाला था कि तभी अंदर से एक औरत निकली जो कि अपने कपड़ों को व्यवस्थित कर रही थी और साथ ही उसके पीछे पीछे एक लंबा तगड़ा आदमी निकला जो कि अपने पर जाने की डोरी बाद रहा था इतना देखकर रोहन को समझते देर नहीं लगी की झोपड़ी के अंदर दोनों की चुदाई चल रही थी।
यह रोहन के लिए बेहद आश्चर्यजनक तो था ही उससे भी ज्यादा उत्तेजित कर देने वाली बात यह थी कि उसकी मां चोरी-छिपे झोपड़ी के अंदर के नजारे को देख रही थी और यह तय था कि उसकी मां कुछ देर तक वहां खड़े होकर उन दोनों की चुदाई देख रही थी। यह ख्याल मन में आते ही रोहन का लंड फिर से अंगड़ाई लेने लगा।
थोड़ी देर बाद रोहन पानी लेकर उस जगह पर गया वहां देखा तो उसकी मां चारपाई पर बैठी हुई थी और करम सिंह वहीं नीचे बैठा हुआ था और उससे सुगंधा बोल रही थी।
कहां चले गए थे करम सिंह मैं कब से तुम्हारा इंतजार कर रही हूं।
कहीं नहीं मालकिन रात को जंगली जानवर परेशान करते हैं इसलिए अपने बगीचे के किनारे किनारे कटीली झाड़ियां लगाने गया था।
( हरामखोर कटीली झाड़ियां लगाने गया था कमली के मैदान पर हल चलाने गया था हरामखोर चुदाई करके आ रहा है और यह झूठ बोल रहा है सुगंधा मन ही मन में बोली। और यही बात रोहन भी मन ही मन में कह रहा था । सुगंधा उसकी बात सुनकर बोली।)
अब तुम्हें अंगूरों के बाद का ज्यादा देखभाल करना होगा क्योंकि अंगूर तैयार होने वाले हैं अगर जरा सा भी चूक हुई तो गांव वाले सब तोड़ ले जायेंगे इसलिए यहां वहां मैं जाकर तुम बगीचे की देखभाल करो ।
जी मालकिन ऐसा ही होगा।
और तुम कहां चले गए थे बेटा मैं तुम्हारा यहां बैठकर कब से इंतजार कर रही हूं तुम्हें पता है कितनी जोरों की प्यास लगी है अगर इंसान तुम्हारे भरोसे रहे तो वह प्यासा ही मर जाए।
( अपनी मां की बात सुनकर रोहन मन ही मन में बोला कितना झूठ बोल रही है साली वहां अपनी बड़ी बड़ी नंगी गांड दिखाते हुए कैसे मूत रही थी और झोपड़ी में चल रही चुदाई देख कर मस्त हो रही थी और मुझे कह रही है कि मैं यहां बैठकर कब से इंतजार कर रही हूं। )
मम्मी में आने ही वाला था कि( करम सिंह को नमस्ते करते हुए) मुझे खरगोश नजर आ गया और उसे पकड़ने के चक्कर में देर हो गया ।
रोहन की बात सुनकर सुगंधा हसदी और हंसते हुए करम सिंह को देखने लगी और मन ही मन में बोली साला कितना हरामी है इसकी बीवी घर में इसका इंतजार करती होगी और मम्मी सोचती होगी कि उसका पति खेतों में काम कर रहा है लेकिन उस बेचारी को क्या माल है कि यहां पर किसी और औरत के साथ रंगरेलियां मना रहा है क्या किस्मत है।
एक तरफ सुगंधा कर्म सिंह की करतूत से क्रोधित होकर उसे मन ही मन में कोर्स भी रही थी तो दूसरी तरफ उसकी किस्मत पर जल भी रही थी क्योंकि एक यह मर्द था जो कि घर में पत्नी होने के बावजूद भी दूसरी औरतों को मौका मिलते ही अपने नीचे लाने में जरा भी कसर बाकी नहीं रखता था और जिस पागलपन से वह औरत की चुदाई करता था उसे देखकर सुगंधा की टांगों के बीच अभी भी सुरसुरा हाट महसूस हो रही थी कुछ देर तक सुगंधा वहीं बैठी रही काफी समय बीत गया था रोहन भी काफी मस्त नजर आ रहा था क्योंकि उसकी आंखों के सामने उसकी मां ने जबरदस्त नजारा पेश की थी जिसे देख कर रह रह कर उसका लंड अभी भी अंगड़ाई ले रहा था।
थोड़ी देर बाद दोनों घर वापस लौट आए।
 
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rohnny4545

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सुगंधा जो कि अभी तक अपने आप को वासना में हवा से से बचाए हुए थी वह मादकता भरी हवा अब उसके जेहन को झकझोर ने लगी थी ना चाहते हुए भी सुगंधा उस खुशबू की तरह आकर्षित हुए जा रही थी जिस खुशबू को वह बिस्तर पर बरसों पहले छोड़ चुकी थी और वैसे भी किसी भी महिला के सामने अगर बार-बार इस तरह के कामोत्तेजक नजारे देखने को मिल जाए तो वह कितनी भी संस्कारी और मर्यादामई क्यों ना हो उसके पांव फिसल ना लाजमी हैं।
खेत में पहले ही वह चुदाई के दृश्य को देख चुकी थी जैसे बड़ी मुश्किल से वह भुला पाई थी कि तभी अनजाने में ही उसकी आंखों के सामने उसके ही बेटे के खड़े मोटे तगड़े और लंबे लंड को देखकर टांगों के बीच सुरसुराहट महसूस करने लगी थी। और उस पर से आज जो अंगूर के बगीचे में झोपड़ी में उस औरत की करम सिंह के द्वारा ताबड़तोड़ कमर हिलाते हुए जबरदस्त चुदाई देखकर उस पल का एहसास अभी तक उसकी जांघों के बीच महसूस हो रहा था घर पर आकर सुगंधा को इस बात का अहसास हो गया था कि उसकी पैंटी पूरी तरह से गीली हो चुकी थी एक पल के लिए तो उसे अपने आप पर ही गुस्सा आने लगा था कि ऐसा क्यों हो रहा है लेकिन अगले ही पल उसे अपनी किस्मत सबसे बेकार नजर आने लगती क्योंकि वह इतनी अत्यधिक खूबसूरत होने के बावजूद भी शरीर सुख का आनंद बरसों से धरा का धरा रह गया था और गांव की ऐसी वैसी जो की खूबसूरत भी नहीं थी उस तरह की औरतों को खूब मजे लेकर चुदवाते हुए देखकर उनकी किस्मत से सुगंधाको जलन सी महसूस होने लगी थी और अपने पति पर उसे गुस्सा भी आने लगा था वह यही सब सोच रही थी कि तभी बाहर दरवाजे पर दस्तक की आवाज सुनाई दी बाहर रोहन खड़ा था और बार-बार वह अपनी मां को आवाज दे रहा था दरवाजे पर हो रही खटखट की आवाज सुनकर उसका ध्यान टूटा। तो वह बिस्तर पर से उठकर दरवाजे की करीब गई और दरवाजे की कुंडी खोल दी लेकिन इस हड़बड़ाहट में वह वह साड़ी का पल्लू ठीक करना भूल गई जो कि उसके कंधे से नीचे गिरी हुई थी। दरवाजा खुलते ही रोहन कुछ बोलने वाला था कि उसके शब्द मुंह में अटक गए आंखें खुली की खुली रह गई ऐसा लग रहा था कि मानो उसकी आंखें पलक झपकाना ही भूल गई हो। लेकिन जिस तरह के हालात उसकी आंखों के सामने थे ऐसे हालात में रोहन करता भी तो क्या करता दरवाजा खोल दे उसकी आंखों के सामने जो बड़े बड़े खरबूजे दिखाई दिए उसको देखते ही उसकी आंखों की चमक बढ़ गई थी उसके मुंह में पानी आने लगा था इसमें सारा दोष सुगंधा का ही था वह ख्यालातो मैं इस कदर डूब गई थी कि वह अपने ब्लाउज के दो बटन बंद करना ही भूल गई थी और तो और वह अपने साड़ी के पल्लू को कंधे पर रखना भूल गई थी रोहन की प्यासी नजरें तो वैसे ही इस तरह के मालिक ने चारों की प्यासी थी और आंखों के सामने प्यास बुझाने का कुआं नजर आते ही वह सब कुछ भूल कर बस उसी तरफ देखने लगा एक तो पहले से ही सुगंधा के दोनों खरबूजे एकदम पके हुए थे और गोलाई में भी काफी कसे हुए नजर आते थे और ऊपर से उन दोनों खरबूजे को कैद में रखने वाले वस्त्र के ऊपर के दो बटन खुले होने की वजह से आधे से ज्यादा चुचियां ब्लाउज के बाहर झलक रही थी । यह देखकर तो रोहन के मुंह से लार टपकने लगी जी मैं आ रहा था कि दोनों हाथों से अपनी मां के खरबूजे को दबाकर उनका रस निचोड़ डाले।
गजब का नजारा बना हुआ था एक तरफ कमरे के बाहर दरवाजे पर रोहन खड़ा था तो दूसरी तरफ कमरे के अंदर दरवाजे पर उसकी मां खड़ी थी जिसके अस्तव्यस्त वस्त्रों की वजह से रोहन की मां बेहद कामुक लग रही थी इस अवस्था में कोई भी मर्द अगर औरत को अपनी आंखों के सामने देख ले तो वह उसे अपनी बाहों में भर कर उनके दोनों खरबूजो को मुंह में भर कर पीना शुरू कर दे लेकिन रोहन में अभी इतनी हिम्मत नहीं थी दरवाजा खुलते ही सामने रोहन को देखकर सुगंधा बोली
क्या बात है बेटा?
( इतना सुनकर भी जैसे सुगंधा की बातों का रोहन पर बिल्कुल भी असर नहीं हुआ वह तो आंखें फाड़े अपनी मां की दोनों गोलाईयो को देखे जा रहा था इस बात का एहसास है जब सुगंधाको हुआ कि उसका बेटा आंखें फाड़े ब्लाउज में से जांच की उसकी दोनों चूचियों को देखे जा रहा है तो वो एकदम से सकपका गई। वह तुरंत अपनी साड़ी से अपने स्तनों को ढकते हुए कंधे पर रख ली और जैसे ही एक खूबसूरत मादक नजारे पर पर्दा पड़ते ही जैसे रोहन को होश आया हो इस तरह से हड़ बढ़ाते हुए बोला। )
ममममम मम्मी मुझे कुछ पैसे चाहिए।
पैसे चाहिए क्यों पैसे चाहिए और इतनी जल्दी जल्दी तुम पैसे लेते हो पैसों का करते क्या हो( रोहन को आंखें फाड़े अपनी चूचियों को देखता हुआ पाकर सुगंधा थोड़ा गुस्से में थी )
मम्मी मुझे जरूरत है इसलिए चाहिए।
हां मुझे मालूम है तेरी जरूरतों के बारे में उन आवारा लड़कों के पीछे खर्चा करना ही तेरी जरूरत है ना । (इतना कहते हुए सुगंधा कमरे के अंदर अलमारी की तरफ जाने लगी रोहन अभी भी दरवाजे पर खड़ा था और अपनी मां को जाते हुए देखा तो उसकी नजर अपनी मां की कमर के नीचे भराव दार नितंबों पर चली गई जो कि मटकते हुए और भी ज्यादा मादक लग रही थी रोहन थोड़ा हिम्मत जुटा ते हुए कमरे के अंदर गया और अपनी मां को पीछे से उसके गले में अपनी दोनों बाहें डालकर दुलार करते हुए बोला ।)
मेरी प्यारी मम्मी आप खर्चा करने वाला दूसरा कोई है क्या अब मैं ही हूं तो मुझे दे दिया करो।
( सुगंधा अपने बेटे को इस तरह से दुलार करते हुए देखकर पिघल गई कुछ देर पहले जो कि उसकी हरकत की वजह से क्रोधित थी पल भर में उसका गुस्सा फुर्र हो गया और अपने बेटे की हरकत की वजह से सुगंधा मुस्कुरा दी और अलमारी खोलने लगी लेकिन रोहन के तन बदन में उत्तेजना का सैलाब उठने लगा क्योंकि जिस तरह से वह अपनी मम्मी को पीछे से पकड़ कर उसके गले में बाहें डाल कर खड़ा था इस अवस्था में अपनी मां के नरम नरम और बड़े-बड़े गांड का स्पर्श ठीक उसके मोटे तगड़े लंड पर हो रहा था जो कि पलभर में ही तन कर लोहे का रोड हो गया रूम की हालत खराब हो रही थी उसे अपनी मां की तरफ से डर भी लग रहा था लेकिन जिस तरह का आनंद उसे मिल रहा था वह अपने आप को रोक नहीं पा रहा था सुगंधा की बड़ी बड़ी गांड उसके लंड से स्पर्श हो रही थी इस बात से अनजान सुगंधा अलमारी खोलकर डा्ॉअर में से अपना पर्स निकाली और उसमें से सो सो के नोट निकालने लगी लेकिन इतने में उसे इस बात का अहसास हो गया कि उसके नितंबों के बीचो बीच कुछ चुभ रहा है लेकिन इस बात पर उसने ज्यादा ध्यान ना देकर बटुए के पैसे को गिनने लगे और दूसरी तरफ रोहन थोड़ी हिम्मत दिखाते हुए अपनी कमर के नीचे वाले भाग को हल्के से अपनी मां की बड़ी बड़ी गांड पर दबाया ।
और इस बार अपनी गांड पर हो रहे कुछ ज्यादा चुभन की वजह से सुगंधा को समझते देर नहीं लगी कि जो चीज उसकी गांड के बीच भी चुभ रही है वह कुछ और नहीं बल्कि रोहन का लंड है और इस बात का अहसास होते ही उसका पूरा बदन उत्तेजना से गन गना गया। उसे समझ में नहीं आया कि क्या करें रोहन अभी भी उसे उसी अवस्था में पकड़े हुए था बल्कि उसके नथुनों से निकल रही उसकी गर्म गर्म सांसे सुगंधा के गर्दन पर महसूस हो रही थी जिसकी वजह से उसके तन बदन में उत्तेजना की चिंगारी फूट रही थी। पल भर में सुगंधा की सांसे तेज चलने लगी उसे अब यह समझ में नहीं आ रहा था कि अपने बेटे की इस हरकत पर वह गुस्सा करें या इसका आनंद लें लेकिन उसका दिमाग उसे कुछ कहता इससे पहले ही उसके बदन की जरूरत रोहन की इस हरकत को अपनाने लगी जिस तरह से रोहन अपनी मां को बाहों में भर कर अपने लंड के कठोर बन का एहसास उसकी मदमस्त गांड पर करा रहा था उस हरकत को महसूस करके सुगंधा को अपने जवानी के दिन याद आने लगे थे सुगंधा जानबूझकर अब धीरे-धीरे नोट को गिनने लगी। सुगंधा को इस बात का एहसास अच्छी तरह से हो रहा था कि रोहन बार बार अपनी कमर के नीचे वाले भाग को उसके नितंबों पर दबा दे रहा था । रोहन की पूरी तरह से उत्तेजना के सागर में गोते लगाने को तैयार था रोहन अपनी मां के रुई से भी नरम बदन और गुदाज नशीले नितंबों का अनुभव बहुत अच्छी तरह से कर रहा था। उसके जी में तो आ रहा था कि वह अपने दोनों हाथों में अपनी मां की दोनों चुचियों को दबाता हुआ उसकी साड़ी ऊपर उठाकर पूरा लंड उसकी बुर में पेल दे। जिस तरह से उसकी मां बटुए में से ने नोट गिनने में देरी कर रही थी रोहन को समझ में आ रहा था कि उसकी मां को भी उसकी हरकत अच्छी लग रही थी। इसलिए वह अपने मन में ही बोला।
अगर यह सब तुम्हें अच्छा लग रहा है मम्मी तो अपने मुंह से हां क्यों नहीं बोल देती बस एक बार मुझे इशारा तो कर दो मैं तुम्हारी प्यासी बुर को अपने लंड से चोद कर एकदम तृप्त कर दूंगा तुम मस्त हो जाओगी मम्मी बस एक बार हल्का सा इशारा कर दो।
रोहन अपने आप से ही अपने मन में यह सब बातें करके अपने अंदर की भावना को प्रकट कर रहा था लेकिन उसकी मां को क्या मालूम था कि वह क्या चाहता है लेकिन जिस तरह की हरकत वा कर रहा था इतना तो सुगंधा समझ गई थी कि रोहन अब जवान हो गया था कुछ देर तक सुगंधा भी अपने बेटे की इस हरकत का पूरी तरह से आनंद उठाते हुए खड़ी रही लेकिन उसके मन में यह ख्याल आया कि कहीं उसका बेटा उसके बारे में गलत धारणा ना बांध ले इसलिए वह रोहन को अलग करते हुए बोली।
बस बस इतना मस्का लगाने की जरूरत नहीं है मैं तुझे दे रही हूं कैसे अगर तुझे नहीं दूंगी तो किसे दूंगी ।
(इतना कहकर सुगंधा खुद ही रोहन से अलग हो गई और रोहन को सांसों की 5 नोट थमाते हुए चोर नजरों से उसके पजामे की तरफ देखी तो सन्न रह गई पजामे के अंदर रोहन का लंड बुरी तरह से खडा था जो कि पजामे के अंदर तंबू सा बनाया हुआ था यह देखकर सुगंधा की बुर उत्तेजना के मारे फूलने पिचकने लगी सुगंधा अपने बेटे को इस बात का एहसास बिल्कुल नहीं होने दी की जो हरकत उसने किया था उसका अहसास उसे जरा सा भी हुआ है वह एकदम सामान्य तरीके से उससे बातचीत कर रही थी और जानबूझकर अपना ध्यान घर के काम में लगा रह
सुगंधा अपने बेटे को इस बात का एहसास बिल्कुल नहीं होने दी की जो हरकत उसने किया था उसका अहसास उसे जरा सा भी हुआ है वह एकदम सामान्य तरीके से उससे बातचीत कर रही थी और जानबूझकर अपना ध्यान घर के काम में लगा रही थी ताकि वह कमरे से बाहर चला जाए और ऐसा ही हुआ रोहन अपनी मां के हाथों से पैसा लेकर कमरे से बाहर चला गया रोहन को जाते हुए सुगंधा देखती रह गई और उसके बारे में सोचने लगी कि क्या सच में वह खुद की मां को देखकर इस तरह से उत्तेजित हो जाता है क्योंकि जिस तरह से वह हरकत किया था अगर उसके बदन में उत्तेजना बिल्कुल भी नहीं होती तो उसका लंड खड़ा नहीं होता इतना तोड़ सुगंधा समझ गई थी कि वह जानबूझकर अपने लंड का दवा उसकी गांड पर बढ़ा रहा था क्योंकि अगर अनजाने में ऐसा होता तो बार-बार रह-रहकर उसके कमर के नीचे वाला भाग उसके गांड पर दबाव ना बना रहा होता कुछ देर तक सुगंधा अपने बेटे के बारे में सोचते हुए बिस्तर पर बैठी रही लेकिन इस बात से वह इंकार भी नहीं कर सकती थी कि जिस तरह का एहसास उसने करा दिया था उसकी सोई हुई उन्माद उसकी वासना कुछ कुछ जागरूक हो रही थी एक तरफ उसे अपने बेटे की हरकत से प्रसन्नता भी हो रही थी तो किस बात की ग्लानि भी हो रही थी कि एक बेटा अपनी मां के साथ ऐसा कैसे कर सकता है वह इस बारे में सोचती हुई वहीं बैठी रह गई इस बात का एहसास सुगंधा को बिल्कुल भी नहीं था कि रिश्तो में भी आकर्षण बराबर बना रहता है भले वह रिश्ता मां बेटे भाई बहन का हो क्योंकि मर्द को हर रिश्ते में सबसे पहले एक औरत ही नजर आती है रोहन के साथ भी ऐसा ही हो रहा था सुगंधा उसकी मां होने के बावजूद भी रोहन उसे एक औरत के रूप में देखने लगा था क्योंकि उसके नजरिए में आकर्षण ने जन्म ले लिया था और सुगंधा तो वैसे भी खूबसूरती की मिसाल थी
 
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