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Romance बस यही प्यार है (Completed)

Ashish Jain

कलम के सिपाही
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भाग 1




कॉलेज का पहला टेस्ट था आज और अरुण देर से नही पहुँचना चाहता था। उसने जल्दी से अपना बैग पैक किया और बिना नास्ता किये ही घर से निकल गया। रास्ते में अरुण सोच रहा था कि जल्दी से कॉलेज पहुच कर कुछ पढ़ लिया जाएगा रात को भी पढ़ाई नही हो पाई थी। अरुण ने जल्दी से ऑटो किया तो देखा कि ऑटो में तो पहले से ही कोई सवारी बैठी है लेकिन अब क्या करे? कोई और ऑटो भी नहीं है ।
अरुण : भाई सेंट जोसफ कॉलेज चलोगे?
ऑटो वाला : चलेंगे भाई लेकिन सवारी के साथ चलना पड़ेगा।
अरुण : ठीक है भाई जल्दी चलो।
उसने साथ मे बैठी लड़की को नज़र भर देखा और फिर अपनी किताब को पढ़ने लगा। उसे तो पता ही नही चला कि कब कॉलेज आ गया।
ड्राइवर : कॉलेज आ गया भाई।
अरुण ने अपनी किताब से चेहरा हटाया तो देखा कि वो लड़की तो पहले ही जा चुकी है लेकिन उसे कोई आवाज तो सुनाई ही नही दी पर उसे क्या? अरुण ने जल्दी से किराये के रुपये दिए और कॉलेज में चला गया एग्जाम रूम में पहुचा तो देखा एग्जाम शुरू हो चुका है। दरअसल वो ऑटो में पढ़ते-पढ़ते ही सो गया था और ऑटो वाले ने ही उसे काफी देर बाद उठाया था।
जल्दी से उसने कॉपी और पेपर लिए और उत्त्तर लिखने शुरू कर दिये जैसे ही उसकी नज़र पीछे वाली सीट पर पढ़ी तो उसने देखा की वो ऑटो वाली लड़की उस सीट पर बैठकर पेपर दे रही है वो देखता ही रह गया क्योंकि उसने उस लड़की को क्लास में पहली बार देखा था लेकिन फिर समय कम होने की वजह से अरुण पेपर करने लग गया । पेपर खत्म होने के बाद वो उस लड़की को ढूढने लगा पर वो नही मिली । अरुण का कोई काम नही था उससे पर बस वो जानना चाहता था कि ये नई लड़की है कौन? आज से पहले तो कभी उसे देखा नही था कॉलेज में। फिर आज बीच सेममिस्टर मे कैसे आ गई ? जब कोई न मिला तो अरुण को अपने नाम की आवाज सुनाई दी और ये आवाज थी भी जानी पहचानी। ये कोई और नही उसका बचपन का दोस्त विवेक ही था। विवेक, अरुण के पास आया और पूछने लगा
विवेक : भाई था कहाँ पर तू ?और आज लेट कैसे हो गया?"
अरुण : कुछ नही यार। चल चाय पीते है।
और दोनों कैंटीन से चाय लेकर अपने पसंदीदा जगह आम के पेड़ की टूटी टहनी पर बैठ गए।
विवेक : भाई आज हुआ क्या है तुझे? कैसे खोया खोया सा है?
अरुण : कुछ नही यार बस ऑटो में पढ़ते पढ़ते नींद आ गई थी इसी वजह से लेट हो गया ।
अरुण और विवेक दोनों एक दूसरे की हर छोटी बड़ी बात बखूबी जानते थे। विवेक पहचान गया था कि आज कुछ तो जरूर हुआ है जो अरुण बता नही रहा है । अरुण को खाली चाय का गिलास हाथ मे पकड़े कुछ सोचते हुए देखकर विवेक उठा और दो गिलास चाय और ले आया और बोला ।
विवेक : अब क्या बात है बता, नही तो अब तू मेरे से मार खायेगा।
अरुण : कुछ नही यार बस तूने वो लड़की देखी थी? क्लास में जो मेरे पीछे बैठी थी।
विवेक बोला : हाँ क्यूँ क्या हुआ ?
अरुण : यार उसे पहले तो नही देखा कभी क्लास में?
विवेक : हाँ यार उसने आज ही से कॉलेज जॉइन किया है डिप्लोमा करके आई है वो। तुझे पता भी कैसे होगा पूरा दिन तो तू किताबो में ही घुसा रहता है । भाई किताबो से अलग भी एक दुनिया है।
अरुण : हम्म्म्म।
विवेक : पर तू उसके बारे में क्यों पूछ रहा है?
अरुण : यार कुछ खास नही बस वो मेरे साथ सुबह ऑटो में आई थी और फिर क्लास में भी मिल गई लेकिन पूरे रास्ते मे उसने एक शब्द भी नही बोला और क्लास में भी किसी से बात नही की, पता नही किस बात का घमंड है उसको?
विवेक वही बैठा मुस्कुराने लगा। वो जनता था कि अरुण आज तक किसी लड़की तो क्या गिने चुने लड़को के बाद किसी और से बात भी नही करता था लेकिन आज पहली बार उसने किसी लड़की के बारे में बात की है। विवेक को मुस्कुराता देख अरुण को गुस्सा आने लगा।

अरुण : क्यों मुस्कुरा रहा है कुछ बोलेगा भी?
विवेक : भाई तुझे पता है आज पहली बार तूने किसी किसी लड़की के बारे में बात की है वरना तो तेरे टॉपिक मैथ और फिजिक्स से अलग कुछ होते ही नही है।
अरुण कुछ सोचते हुए
अरुण : हम्म्म्म
विवेक : और वो लड़की कोई घमंडी नही है। उस बेचारी को तो बोलना ही नही आता। गूंगी है वो। अच्छा होगा उसे भूल जा। आसमान से गिरा और खजूर में अटका वाला हाल हो गया है तेरा तो।
अरुण की आंखों के सामने तो बस उस लड़की का ही चेहरा था और वो तो बस विवेक की बातों को अनसुना ही कर रहा था ।
अरुण : क्या नाम बताया तुमने उसका?

विवेक : "अनामिका" लेकिन भाई तू उसके चक्कर मे मत पड़ वो कॉलेज में किसी से बात भी नही करती है और उसके साथ तेरा कोई भविष्य नही है यार।
अरुण : हम्ममम्म।
अरुण चुपचाप विवेक की बाते सुन रहा था लेकिन विवेक जनता था कि उसकी सारी बातों का अरुण पर कोई भी प्रभाव नही पढ़ने वाला है वो हमेशा से अपने मन की ही करता है जो उसने ठान लिया वही करेगा अब विवेक ने अपना माथा पकड़ लिया।

अरुण : क्या हुआ भाई।
विवेक : कुछ नही बस सोच रहा कि अब मेरी बात तो मानेगा नहीं।
अरुण हँसकर : आज तक मानी हैं क्या जो आज मानूँगा।
फिर दोनों वहाँ से लाइब्रेरी की तरफ चल दिये
विवेक : भाई मैं अब नही पढ़ सकता। तू ही पढ़ मै तो बाहर जा रहा हूँ मेरा सिर दर्द कर रहा है।
अरुण : ठीक है लेकिन रात को घर पर आ जाना नही तो कल फेल हो जाएगा।
विवेक : पक्का भाई आ जाऊंगा।
अरुण लाइब्रेरी की तरफ चल दिया और वहाँ जाकर जैसे ही वो किताबो की दुनिया मे डूबने ही वाला था कि उसकी नज़र फिर से अनामिका पर पड़ गई और वो पढ़ते-पढ़ते ही रुक गया। कुछ देर तक कुछ सोचने के बाद न जाने उसके मन मे क्या आया और उसने किताब उठाई और अनामिका के सामने वाली कुर्सी पर बैठ गया। अनामिका अभी भी अपनी किताब ही पढ़ने में लगी हुई थी। आज पहली बार अरुण को किसी और को पढ़ता देखकर अजीब सा गुस्सा आ रहा था पर इस गुस्से की वजह भी वो नही जानता था आज तक और लोग उसकी पढ़ाई खत्म होने का इंतजार करते थे लेकिन आज पहली बार किसी दूसरे के लिये इंतजार कर रहा था और आज उसे अब पता चल रहा था कि इंतजार करना कितना बुरा लगता है पर अभी तक उसे ये समझ नही आया था कि वो अनामिका का इंतजार क्यों कर रहा है। वो अपलक उसे देखे ही जा रहा था और जैसे ही अनामिका की नज़र उस पर पड़ी वो कुछ विचलित से हो गया और अपनी नज़र को अपनी किताब में लगा दिया फिर धीरे से जब उसने फिर से अनामिका की तरफ देखा तो अनामिका उसे ही देख रही थी अबकी बार उसे ऐसा लगा जैसे उसकी चोरी किसी ने पकड़ ली हो और वो फिर उसे बिल्कुल मासूम बच्चे की तरह देखने लगा। अनामिका अरुण का मासूम से चेहरा देखकर मुस्कुरा दी। अब अरुण को उसकी मुस्कान देखकर थोड़ा सा आराम आया और अब उसके भी चहरे पर एक हल्की सी मुस्कान आ गई थी। अनामिका ने अरुण को पास आने का इशारा किया । अरुण अब मेज की दूसरी तरफ अनामिका के पास वाली कुर्सी पर बैठ गया। अनामिका अरुण से अपने हाथों की जुबान ( मूक भाषा ) मे अरुण से पूछने लगी कि तुम वो ही हो न जो सुबह मेरे साथ ऑटो में साथ आये थे पर अरुण तो केवल उसके हिलते हुए हाथो को ही देख रहा था उसकी समझ से सब कुछ बाहर था। उसके चेहरे पर एक प्रशनवाचक चिन्ह उभर आया था। जिसे देखते ही अनामिका ने पहचान लिया था और फिर वो हल्का सा मुस्कुराई और अपने हाथ मैं कॉपी और पेन लेकर उस पर लिखने लगी अरुण अनामिका को वो सब करते हुए देख रहा था और अंदर ही अंदर शर्मिंदगी भी महसूस कर रहा था क्योंकि उसने अनजाने में ही सही अनामिका को गूंगे होने का एक कड़वा अहसास करवा दिया था । अनामिका कागज पर कुछ लिख रही थी और अरुण उसे पढ़ने की कोशिश कर रहा था
अनामिका : तुम वही हो न, जो सुबह मुझको ऑटो में मिले थे?
अरुण उसकी तरफ देख रहा था और कुछ बोलने को ही हुआ पर बोलते बोलते ही चुप हो गया और उसने अनामिका के हाथ से कलाम ले ली और उसी कागज पर लिखने लगा
अरुण : हाँ मैं वही हूं।
अनामिका उसे ऐसे लिखते देख मुस्कुराने लगी क्यूंकि उसे अरुण का बात करने का ये तरीका बहुत अच्छा लगा था।
अरुण : सुबह पेपर की जल्दी में था तो आपको देखा ही नहीं।
अनामिका : कोई बात नही वैसे भी ऑटो में कितने लोग मिलते रहते है पर कोई किसी याद तो नही रखता ना।
अनामिका हल्का सा मुस्कुरा दी अरुण ने भी हां में सिर हिला दिया और दोनों एक दूसरे को देखने लगे।
अरुण : आप किस क्लास में पढ़ती हो ?
अनामिका : आपकी ही क्लास में हूँ।
अरुण को जैसे लगा कि उसकी चोरी फिर से पकड़ी गई अब वो सोच रहा था यार मैं इतने बचकाने सवाल क्यों पूछ रहा हूँ।
अनामिका हल्का सा मुस्कुराई अब अरुण भी हल्का सा मुस्कुरा दिया।
अनामिका : आज मैं आपके साथ ही पेपर दे रही थी और अब कल के पेपर के लिए तैयारी कर रही हूँ।
अरुण का दिमाग तेज़ी से चला और उसने लिखा
अरुण : आप शुरुआत से कॉलेज क्यों नही आई?
अनामिका : वो मैंने डिप्लोमा करके कॉलेज में प्रवेश लिया है ना, तो प्रवेश में देरी हो गई और अभी से ही कॉलेज आना शुरू किया है।
अरुण : अच्छा तो ये बात है।
अनामिका : और पता है, पहले ही दिन टेस्ट हो गया और मुझे तो कुछ आता ही नही था।
अरुण : फिर अपने टेस्ट दिया ही क्यों?
अनामिका : तो क्या हुआ कोशिश तो कर ही सकती हूँ पास या फेल होने तो बाद की बात है ।

अरुण उसकी ये बात पढ़कर सोचने लगा कि यार, ये लड़की कितनी समझदार है। मैं तो इसके सामने बिल्कुल बेबकूफ हूँ मैं तो हमेशा अच्छे नंबर लाने के लिए ही पड़ता हूँ बस।
अरुण : अब तुम कल के पेपर के लिए क्या पढ़ रही हो?
अनामिका : कुछ नही बस कुछ परिभाषा और कुछ सूत्र बस।
अरुण : लेकिन उनसे क्या होगा पेपर में तो काफी कुछ आयेगा।
अनामिका : अब कर भी क्या सकते है यार, टाइम ही नही बचा है लेकिन जितना भी आता है वो तो मैं कर पाऊंगी ना। पर अगर पेपर न दिया तो शायद कुछ पढ़ाई भी न करूं मैं।
अरुण उसकी बातों को पढ़ रहा था और अनामिका उसे ऐसा करते देख हल्का से मुस्कुरा रही थी।

अरुण : मैं भी कल के पेपर की ही तैयारी कर रहा हूँ अगर तुम चाहो तो आप मेरे साथ मे पढ़ सकती है।
अरुण लिखते ही अनामिका की तरफ देख रहा था और उसके उत्तर का इंतजार कर रहा था।
अनामिका : ये तो अच्छा है मुझे तो कुछ समझ ही नही आ रहा कि क्या पढ़ना है और क्या नही।
अरुण, अनामिका को हर शब्द लिखते हुए देख रहा था और हर नए शब्द के साथ ही अरुण के चहरे के भाव बदलते जा रहे थे अरुण कभी भी अपने चेहरे के भावों को छिपा नही पता था लेकिन अनामिका को अपने चेहरे पर उभरे भावो को छिपाने बखूबी आता था।
अरुण : ठीक है फिर हम लोग पढ़ाई शुरू करते है।
फिर दोनों पढ़ाई में लग गए और अरुण उसको अनामिका को ज्यादा से ज्यादा समझने की कोशिश कर रहा था और अनामिका पूरा ध्यान लगा कर सुन रही थी। दोनों इतना ध्यान लगाकर पढ़ रहे थे कि कब शाम हो गई पता ही नही चला।
अनामिका: अब तो काफी अंधेरा हो गया है हमे अब चलना चाहिये।
अरुण ने बाहर की तरफ देखा तो अंधेरा हो चुका था फिर उसने घड़ी की तरफ देखा तो 6 बज चुके थे और जनवरी के महीने में दिन तो छोटे ही होते हैं।
अरुण : अच्छा ठीक है आप घर जाकर एक बार सब फिर से देख लेना।
फिर दोनों लाइब्रेरी से चल देते है दोनों के बीच अजीब सी खामोशी थी जिसे अरुण ने तोड़ने की कोशिश की
अरुण : आपका घर कहाँ पर है?
अनामिका अपनी साइन भाषा मे कुछ बोली लेकिन अरुण कुछ समझ नही पाया ।
अरुण: पक्का आप मेरी घर के पास ही रहती होंगी सुबह वही पर मिली थी न आप मुझको।
अनामिका हल्का सा मुस्कुरा गई फिर दोनों चलने लगे
अनामिका ने अपने हाथ पर कुछ लिखकर अरुण को दिखाया
अरुण : गोलघर चौराहा। अच्छा आप गोलघर चौराहे के पास रहती है फिर तो हम लोग एक ही ऑटो में जा सकते है जिससे हमारा किराया भी कम हो जाएगा।
अनामिका ने फिर से कुछ लिखा अरुण को अब कुछ शर्मिंदगी सी महसूस हो रही थी जैसे वो अनामिका को उसकी न बोल पाने की कमी का अहसास बार-बार करा रहा हो।

अनामिका : लेकिन हम आपके साथ तभी चलेंगे जब हम दोनों किराया आधा-आधा देंगे। आपको मंजूर हैं?
अरुण ने केवल हाँ में सिर हिला दिया और दोनों लोग ओटो की तरफ चल दिये कुछ ही देर में वो लोग गोलघर भी पहुँचने वाले थे लेकिन न तो अरुण को न अनामिका को ही समझ आ रहा था कि बात क्या और कैसे करें?
अनामिका शीशे से बाहर पीछे गुजरते हुए शहर की रौनक देख रही थी और अरुण उसके हवा में उड़ते हुए बालो को देख रहा था अनामिका जानती थी कि अरुण और उसके बीच मे बहुत अंतर है अरुण चाहे कितना भी कोशिश कर ले पर कुछ नही हो सकता क्योंकि अरुण कभी भी उसको नही समझ पायेगा और वो भी कुछ हो दिनों में और दोस्तो की तरह ही उससे दूर चला जाएगा उसको फिर से अकेला छोड़कर ।
अरुण : अनामिका......गोलघर आ गया।
अनामिका ने जैसे ही अरुण की आवाज सुनी तुरंत ही ऑटो से उतरी और आपने हाथो से अरुण को कुछ समझाने की कोशिश की और जल्दी से चली गई और जाते जाते अपने दुपट्टे से अपनी आँखों से निकल रहे आँसुओ पोछ रही थी ये शायद वही आँसू थे जो उसके न बोल पाने के दर्द को बयान कर रहे थे और जिनको छिपाने के लिए वो हर समय अपने चेहरे पर एक मुस्कुराहट का नकाब पहने रखती थी लेकिन आज एक बार फिर से ये आँसू उसके नकाब को तोड़कर उसके दुप्पटे तक आ पहुँचे थे।

अरुण केवल उसे जाते हुए देख रहा था और सोच रहा था कि वो क्या करे कि उसे बार बार अनामिका को शर्मिंदा न करना पड़े तभी अरुण ने एक फैसला लिया वो साइन भाषा सीखेगा चाहे कुछ भी हो जाये और इसी के साथ उसके चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई उसने ऑटो वाले को पैसे दिए और घर की तरफ चल दिया।
जब अरुण घर पहुचा तो विवेक वहाँ पहले से ही बैठा हुआ था अरुण को उसे देखकर याद आया कि उसी ने विवेक को बुलाया था। अरुण विवेक को अपने कमरे में ले गया
और हाथ मुँह धोकर दोनों पढ़ने लग गए। दोनों को पढ़ते-पढ़ते कब 12 बज गए पता ही नही चला। विवेक पढ़ते-पढ़ते ही सो गया लेकिन अरुण की आंखों में नींद नही थी वो तो अब भी लाइब्रेरी की उस कुर्सी पर ही बैठा था जिस पर बैठकर वो अनामिका से बातें कम उसको समझने की कोशिश ज्यादा कर रहा था वो कुछ भी करके अनामिका का साथ पाना चाहता था उसे समझ नही आ रहा था कि वो अनामिका के बारे में इतना क्यों सोच रहा है ऐसा भी नही है कि वो कोई बहुत ज्यादा खूबसूरत हो या बहुत ज्यादा होशियार हो या फिर उसकी कोई पुरानी दोस्त हो लेकिन फिर भी वो अनामिका के बारे में इतना क्यों सोच रहा है कि उनकी आंखों में नींद भी आना भूल चुकी है। तभी अरुण को याद आया कि उसको तो अनामिका की भाषा सीखनी थी वो तो बिल्कुल ही भूल गया था उसे जल्दी से अपने कम्प्यूटर पर इंटरनेट स्टार्ट कर साइन लैंग्वेज के वीडियो ढूढ़ने लगा अरुण ने 4-5 वीडियो डाउनलोड कर लिए और एक विडियो को शुरू कर दिया और पूरे मन से समझने लगा और अपने हाथों को बोलना सिखाने लगा फिर वीडियो बंद कर पलंग पर लेट गया और अपने हाथों से कुछ बोलते-बोलते उसे कब नींद आ गई पता ही नही चला।
सुबह विवेक ने अरुण को उठाया
विवेक: भाई कॉलेज नहीं जान है क्या? देख कितना लेट हो गया है अब तू नाहा भी नही पायेगा अब जल्दी से मुंह धो ले और जल्दी चल नही तो रात भर की पढ़ाई खराब जायेगी।
अरुण ने आँखे खोली तो देखा विवेक बिल्कुल ठीक बोल रहा था 8:30 हो गए थे और 9 बजे से पेपर था और सबसे बड़ी बात 20 मिनट घर से कॉलेज पहुचने में लगते थे अरुण तुरंत उठा और मुह हाथ धोकर जल्दी से अपने पेन और कॉलेज का कार्ड लेने लगा। विवेक अपनी बाइक स्टार्ट कर अरुण को बुला रहा था और अरुण भागते - भागते उसकी बाइक पर बैठ गया और दोनों चल दिये। अरुण की अभी आंखे भी नही खुली थी लेकिन उसे अनामिका ही नज़र आ रही थी अरुण ने खुद से ही बोला भाई तू पागल हो गया है।
दोनों भागते भागते क्लास तक पहुँचे और हांफते हुए पेपर और कॉपी लेकर अपनी अपनी सीट पर जाने लगे। अरुण की नज़र जैसे ही अनामिका पर गई वो उसे देखकर मुस्कुराने लगी। अरुण भी हल्का सा मुस्कुरा दिया और उसके आगे वाली सीट पर जाकर बैठ गया।
पेपर का समय खत्म हो गया था लेकिन अरुण अभी भी लिख ही रहा था और आखिर में अरुण को कॉपी देनी ही पड़ी। कॉपी देते ही अरुण ने पीछे मुड़कर देखा तो अनामिका वहाँ पर नही थी वो जा चुकी थी तभी अरुण को आवाज सुनाई दी।
विवेक : भाई छूट गया न पेपर। थोड़ा और सो लेता फिर दे भी नही पाते।
अरुण ने उसको देखा और कुछ नही बोला उसकी निगाहें तो केवल अनामिका को ही ढूंढ रही थी।
विवेक : चल कोई नही भाई। पेपर तो अच्छा हो गया चल अब चाय पीने चलते है।
अरुण : ह्म्म्म।
अरुण वही पर पेड़ की टूटी टहनी पर जाकर बैठ जाता है और विवेक दो गिलास में चाय लेकर आता है।
विवेक : भाई आज कल तू कहाँ खोया रहता है? जब देखो चुपचाप बैठा रहता हैं ना तो कुछ कहता है और न ही सुनता है।
अरुण : नही भाई ऐसा कुछ नही है बस पेपर के लिए पढ़ाई करनी है उसी वजह से परेशान हूँ चल अब मैं लाइब्रेरी जा रहा हूँ तुझे चलना हो तो चल।
विवेक : नही भाई मुझे तो अभी थोड़ा सा काम है तू ही जा शाम को मिलते है।
अरुण : हम्म्म्म।
अरुण लाइब्रेरी की उसी कुर्सी पर जाकर बैठ गया जिस पर कल वो अनामिका के साथ मे बैठा था पर उसे अनामिका आज नज़र ही नही आ रही थी उसने पूरी लाइब्रेरी में देखा पर अनामिका कही भी नज़र नही आई।
अरुण ने कल के पेपर की एक किताब उठाई और फिर उसी कुर्सी पर जाकर बैठ गया शायद उसे विश्वास था कि अनामिका अगर आयेगी भी तो यही पर बैठेगी अरुण ने किताब खोली तो उसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कान आ गई लेकिन फिर वो अपनी पढ़ाई में लग गया कुछ ही देर में किताब नीचे और अरुण का सिर उसके ऊपर था बेचारा अपनी रात की बची हुई नींद पूरी कर रहा था।
करीब आधे घंटे बाद अनामिका लाइब्रेरी में आई तो उसने देखा अरुण किसी मासूम बच्चे की तरह सो रहा है। अनामिका उसे बड़े प्यार से देखने लगी वो उसे नींद से उठाना नही चाहती थी लेकिन उसे याद आया अगर अरुण को नहीं उठाया तो वो कल के पेपर की तैयारी नही कर पायेगा और कहीं फिर वो पेपर में फेल न हो जाये। अनामिका ने अरुण को कंधे पर हाथ लगाकर धीरे से हिलाया तो अरुण ने उसका हाथ पकड़ते हुए आंखे खोली लेकिन जैसे ही उसने अनामिका को देखा तो तुरंत हाथ छोड़कर खड़ा हो गया और अपनी गलती के लिए सॉरी बोलने लगा । अनामिका ने उसे हाथो से समझाया कोई बात नही सब ठीक है फिर अनामिका ने एक पेपर निकल और उस पर कुछ लिखा
अनामिका : कोई बात नही आपकी कोई गलती नही है आप मुह धो लीजिये नही तो फिर से नींद आ जायेगी।
अनामिका ने हल्की सी मुस्कान के साथ वो पेपर अरुण को दे दिया।
अरुण पेपर पढ़कर मुस्कुराया और मुँह धोने चला गया
अनामिका : लगता है रात को आप ठीक सो नही पाये ?
अरुण : कल विवेक घर पर आ गया था तो उसी को पढ़ते-पढ़ते देर हो गई और अब नींद आ गई।
अनामिका : विवेक कौन?
अरुण हल्का सा मुस्कुरा दिया
अरुण : विवेक मेरे बचपन का दोस्त है हमेशा वही मेरे साथ में रहता है।
अनामिका ने हाँ में सिर हिलाते हुए कुछ समझने की कोशिश की । अरुण अभी भी उसे देखे ही जा रहा था फिर अरुण ने हाथो के इशारों से कुछ बोलने की कोशिश की। अनामिका उसे बस देखती ही रह है उसे विस्वास ही नही हो रहा था कि अरुण उससे उसी की भाषा मे कुछ कह रहा है और देखते ही देखते अनामिका की आँखों मे आँसू आ गए जिनको छिपाने के लिए वो वह से उठकर चली गई क्योंकि वो नही चाहती थी कि अरुण उसके आँसुओ को देख ले। कुछ देर बाद अनामिका वापस आई तो कागज पर कुछ लिखने लगी
अनामिका : तुम ये क्या कर रहे थे?
अरुण : कुछ बोलने की कोशिश कर रहा था।
अनामिका : क्यों तुम्हे ऐसे बोलने की क्या जरूरत पड़ी?
अरुण : क्योंकि मैं जिससे भी बात करता हूँ उससे उसी की भाषा मे ही बात करने की कोशिश करता हूँ।
अरुण के चहरे पर एक आत्मसंतुष्टि से भरी हुई हल्की सी मुस्कान थी वो इस बात को लिखने के बाद बहुत खुश था उसे ऐसा लग रहा था जैसे अब वो अनामिका के बराबर आ चुका हो सबसे बड़ी बात उसे बार-बार अनामिका को शर्मिन्दगी का अहसास नही करवाना पड़ेगा। अरुण एक सीधा-साधा सा संवेदनशील लड़का था शायद अनामिका ने कभी महसूस नही किया था लेकिन जब भी अरुण कुछ बोलता था उसे अनामिका के न बोल पाने का अहसास होता था और वो अनामिका को खुद से बहुत दूर समझता था और वो तो बस कुछ भी करके ये दूरी कम करना चाहता था।
अरुण : क्या तुम मुझे अपनी भाषा सीखा सकती हो?
अनामिका : पर क्यूँ? तुम्हे क्या जरूरत है?
अरुण : क्यूँ सीख नही सकता क्या?
अनामिका : हाँ सीख सकते हो।
अनामिका : भरोसा रखो मैं एक बहुत अच्छा सीखने वाला हूँ तुम्हे ज्यादा परेशान नही करूँगा।
ये पढ़ते ही अनामिका और अरुण दोनों ही हँस पड़े।
अरुण : ठीक है फिर पक्का रहा कि मैं तुमको पेपर के लिए पढ़ा दूंगा और तुम मुझको अपनी भाषा सीखा दोगी।
अनामिका : पक्का।
अरुण : ऐसे नही
अनामिका : फिर कैसे?
अरुण : हाथो से बोलकर बताओ
अनामिका उसे हाथो से बोल कर बताने लगी अरुण भी उसी तरह दोहराने लगा और जल्द ही सिख गया।
अनामिका : अब पढाई की जाए ?
अरुण : बिल्कुल।
अनामिका : पहले ये बताओ कल का किराया कितना हुआ
अरुण : अरे यार वो हो गया
अनामिका : हमने आपसे पहले ही बोल था कि हम आपके साथ तभी जाएंगे जबकि आप किराया आधा आधा करेंगे।
अरुण : अरे बाबा ठीक है दे देना।
अनामिका : बताओ कितना हुआ?
अरुण : 30 ₹
अनामिका उसको 30 ₹ दे देती है
अनामिका : मैं नही चाहती कि ₹ की वजह से हमारी दोस्ती में कोई परेशानी हो इसलिए जो भी खर्च होगा आधा-आधा बांट लेंगे।
अरुण : ठीक है अब पढ़ाई शुरू करे?
फिर दोनों पढ़ाई में लग गए और बीच-बीच में अनामिका अरुण को कुछ हाथो से बोलकर बताती और अरुण भी उसी तरह से करने की कोशिश करता और फिर दोनों हँस कर दोबारा से पढ़ाई में लग जाते। शाम कब हो गई दोनों में से किसी को भी पता न चला।
अनामिका : अब घर जाने का समय हो गया हैं
अरुण : ह्म्म्म।
अनामिका : तो चले?
अनामिका ने इस बार हाथो से बोलकर बताया और अरुण भी उसी की तरह करने लगा फिर दिनों मुस्कुराते हुए कॉलेज गेट की तरफ चल दिये। आज अरुण बेचैन नही था उसके चेहरे पर खुशी कोई भी पढ़ सकता था अरुण अनामिका से बीच-बीच मे हाथो की भाषा से कुछ कहने की कोशिश करता और अनामिका भी उसका जवाब उसी भाषा मे देती जिसे समझने के लिए अरुण अपना पूरा दिमाग लगा देता था और फिर दोनों एक साथ हँस देते थे।
आज कॉलेज के बाहर ऑटो नही थे अरुण और अनामिका दोनों ऑटो का इंतजार करने लगे अरुण थोड़ा परेशान सा होने लगा तो अनामिका उसे चलने का इसारा करने लगी ।
अनामिका : हम लोग चलते है और आगे ऑटो मिलेगा तो उसमें बैठ लेंगे।
अरुण : ह्म्म्म।
दोनों धीरे धीरे सड़क पर चलने लगे। सर्दी की शाम कुछ ज्यादा ही सर्द होती है और शायद अनामिका को भी ठंड लग रही थी उसने जोर से दोनों हाथों को आपस मे बाँध रखा था और खुद को सिकोड़ने की कोशिश कर रही थी अरुण को भी अहसास हो गया था कि शायद अनामिका को ठंड लग रही है अरुण अपना कोट अनामिका को देना चाहता था लेकिन उसने सोचा कि कही अनामिका को बुरा न लग जाये लेकिन जब तक वो कुछ और सोच पाता सामने से ऑटो आता दिख गया अरुण ने उसे हाथ देकर रोका और फिर ऑटो वापिस उसी तरफ चल दिया जहाँ से वो ऑटो आ रहा था।
आज भी अनामिका कल की तरह ही बाहर गुजरते हुए शहर को देख रही थी और अरुण तो बस अपलक अनामिका के उड़ते बालो को देखे जा रहा था और सोच रहा था कि जाने क्या है इस लड़की में जो मुझको इसकी तरफ आकर्षित करता है इसके साथ के बाद क्यूँ मैं अपनी हर परेशानी को भूल जाता हूँ? क्यूँ मुझे इसके साथ वक़्त का पता ही नही चलता? यही सब सोचते ही सोचते गोलघर आ गया और वो अनामिका थी जिसने अरुण को सफर के खत्म होने का अहसास कराया। अनामिका ने एक हल्की सी मुस्कान के साथ अरुण को हिलाया। अरुण ने जब उसे अपने सामने देखा तो वो भी मुस्कुरा दिया आज वो अनामिका को अपने ज्यादा करीब महसूस कर रहा था। अरुण ने अनामिका को हाथों से कुछ कहा। जिसे कहने के बाद अनामिका से ज्यादा खुश अरुण था क्योंकि वो आज किसी भी बात पर अनामिका को न बोल पाने का अहसास नही करा रहा था और खुद को अनामिका का दोस्त समझ रहा था।
अरुण : हम्म्म्म। आपके जाने का समय आ गया है आप एक बार सब दोबारा पढ़ लेना।
अनामिका हल्का सा मुस्कुराई और हाँ में सिर हिलाते हुए चल दी।
अरुण कहना तो चाह रहा था कि आप अपना ख्याल रखना लेकिन पता नही क्या हुआ कि उसके मुँह से कुछ और ही निकल गया अरुण के साथ आज पहली बार ऐसा हुआ था कि वो बोलना कुछ चाह रहा था लेकिन निकल कुछ और गया अरुण भी यही सोच रहा था कि यार ये सब हो क्या रहा है?

अनामिका अपने घर की तरफ जा रही थी आज उसके चेहरे पर मुस्कान के साथ डर भी था क्यूंकि अभी तक वो अरुण को केवल एक दोस्त समझ रही थी जो उसकी पढ़ाई में मदद कर रहा है पर आज जब वो उसी की भाषा मे उससे बात कर रहा था तो न जाने क्यूँ वो उसको अपने और ज्यादा करीब महसूस कर रही थी जबकि अभी केवल दो ही दिन हुए है उससे मिले हुए। फिर किसी को क्या जरूरत है उससे इस तरह बात करने की, जबकि उसकी सबसे अच्छी दोस्त या उसके भाई ने भी कभी उससे ऐसे बात लड़ने की कोशिश नही की फिर अरुण ने ऐसा क्यों किया? शायद वो एक अच्छा लड़का है इसलिए उसे सबकी परवाह होती है। यही वजह है जिसके कारण वो ये सब कर रहा है और कुछ भी नही पक्का और कुछ भी नही है। बस बस अब और कोई बात नही। अनामिका खुद से ही बाते कर रही थी और खुद को ही समझाने की कोशिश कर रही थी और इन सब के बीच कब उसका घर आ गया उसे पता ही नही चला। अनामिका जैसी ही घर मे घुसी तो अंदर से एक आवाज आई, जिससे अनामिका सबसे ज्यादा परिचित थी वो और कोई नही, पूरी दुनिया में उसका अकेला सहारा था वो यह उसका भाई।
अनामिका ने हाँ में सिर हिलाया और अंदर चली गई। फिर अपनी आदत के अनुसार भाई के लिए चाय बनाने लग गई उसे पता था कि उसके भाई उसके इलावा किसी और की बनाई चाय कभी पीते ही नही है और शाम को हमेशा उसके आने का इंतजार करते रहते है। शायद यही उनका प्यार है जो उसे वो बचपन से ही करते है। अनामिका चाय बनाते हुए यही सब सोच रही थी कि उसे अचानक अरुण का ख्याल आ गया आज उसके साथ पहली बार ऐसा हुआ था कि वो किसी लड़के के बारे में इतना ज्यादा सोच रही थी। अनामिका चाय लेकर भाई के पास गई और रोज की तरह ही उनके साथ चाय पीने लग बैठ गई। भाई हमेशा ही उससे चाय पर बाते करता था साथ ही पूरे दिन की बातें उससे पूछता था और अनामिका पूरे दिन की बाते उसे बहुत ही बहुत ही प्यार से अपनी हाथो की भाषा से धीरे धीरे कहती जाती और भाई की बातों का जबाब हाँ और न में देती रहती थी अनामिका के लिए शाम का ये वक़्त दिन का सबसे अच्छा वक्त होता था जिसके लिए वो पूरे दिन इंतजार करती थी वो अपने भाई से अपने पूरे दिन की बाते करके खुद को बहुत हल्का महसूस करती थी। पूरी दुनिया मे अगर उसका कोई सहारा था तो वो था उसका भाई । जिसने उसे बचपन से लेकर आज तक पाल पोश कर बड़ा किया था।
अनामिका: भाई आज का दिन बहुत अच्छा गया। आज मैंने पेपर भी दिया और उसके बाद में लाइब्रेरी में बैठकर पढ़ाई भी की अरुण के साथ।
रंजन : क्या? किसके साथ?
अनामिका एक असमंजस से घिर गई फिर उसने सोचा जब मैंने कुछ गलत नही किया तो भाई से झूठ क्यों बोलना?
अनामिका : भाई वो हमारी पढ़ाई छूट गई है तो एक लड़का है। वो हमारी पढ़ाई में मदद कर रहा है और उसी के साथ हम लाइब्रेरी में पढ़ाई करते है।
अनामिका की आँखों मे चमक के साथ-साथ विश्वास भी झलक रहा था।
रंजन : अच्छा। वो लड़का पढ़ाई में अच्छा है क्या?
अनामिका : हाँ भाई। वो हमेशा ही परीक्षा में प्रथम आता है।
रंजन : अच्छा फिर तो वो बहुत होशियार और समझदार होगा।
अनामिका : हाँ भाई शायद। वो होशियार तो है पर समझदार की पता नही।
फिर दोनों चाय पीते हुए हसने लगे।
अरुण घर पहुँचा तो विवेक कल की तरह ही उसका इंतजार कर रहा था अरुण को देखते ही विवेक तुरंत बोल पड़ा।
विवेक : भाई तू रहता कहाँ है आज कल? कॉलेज में भी नही था और घर पर भी नही। चक्कर क्या है ये?
अरुण : भी ऐसा कुछ नही है तुझे पढ़ाई करनी है न? जल्दी तैयार हो जा। मै मुह धोकर आता हूँ।
फिर दोनों ने पढ़ाई शुरू कर दी और आज दोनों ही जल्दी सो गए जिससे सुबह समय पर कॉलेज पहुच सके।

आज दोनों ही समय से पहले कॉलेज पहुँच गए थे लेकिन अरुण की निगाहें तो बस अनामिका को ही खोज रही थी पर अनामिका तो नज़र ही नही आ रही थी। क्या आज वो पेपर नही देगी? अरुण का मन विचलित हो रहा था। अनामिका ठीक तो होगी न? उसे कुछ हुआ तो नही होगा आखिर अभी तक क्यों नही आई वो? यही सब सोच कर अरुण परेशान हो रहा था। पेपर शुरू ही होने वाला था लेकिन अरुण तो कॉलेज के गेट की तरफ जा रहा था।
तभी विवेक ने पीछे से आवाज लगाई।
विवेक : कहाँ जा रहा है भाई?
अरुण : तू पहुँच मैं आता हूँ कुछ काम हैं।
अरुण सीधे कॉलेज के गेट पर पहुँचा तो अनामिका उसे सामने से आती हुई दिखाई दी अरुण को गुस्सा आ रहा था लेकिन फिर उसने खुद संभाला और अनामिका को देखकर एक राहत की साँस ली।
अरुण : आपको आज देर कैसे हो गई?
अनामिका : आज ऑटो नही मिला काफी दूर तक पैदल चलना पड़ा।
अरुण उसके इशारो को धीरे धीरे समझ रहा था फिर उसने अनामिका को जल्दी अंदर जाने का इशारा किया। फिर दोनों अंदर जाने लगे।
पेपर खत्म होने के बाद अनामिका सीधे लाइब्रेरी चली और विवेक अरुण को अपने साथ कैंटीन ले गया।
विवेक : तू गया कहाँ था ये बता?
अरुण : कुछ नही भी बस मैं अपना पैन भूल गया था वही लेने गया था।
विवेक : वो तो तू मुझसे भी ले सकता था? तूझे बाहर जाने की क्या जरूरत पड़ गई?
अरुण : यार मुझे लगा, पता नही तेरे पास हो या नही हो और समय था तो मैं दुकान पर ही लेने गया था। अब तू चाय पिलायेगा या नही?
विवेक : ला रहा हूँ भाई।
ये चाय एक तरह की विवेक की अरुण को पढ़ने के लिए रिशवत होती थी और अरुण का इसके बिना दिमाग काम ही नही करता था।
विवेक अरुण के लिए चाय लेने चला जाता है। अरुण फिर से अनामिका के ख्यालो में खो जाता है। विवेक अरुण को चाय लेकर देता है विवेक चाय पकड़ाते हुए
विवेक : भाई आज मैं तेरे साथ लाइब्रेरी में ही पढ़ाई करूँगा रात को मुझे दीदी के घर जाना है ।
अरुण मन ही मन सोच रहा था यार अब इसका क्या करूँ? आज तो अनामिका को पढ़ाने के लिए बोला है अब इसको भी आज ही लाइब्रेरी में पढ़ना है लेकिन इसको भी मना नही कर सकता हूँ अब क्या करे?
अरुण और विवेक दोनों लाइब्रेरी की तरफ चल दिये
अरुण और विवेक को लाइब्रेरी में आता देख अनामिका के चेहरे पर मुस्कान आ गई लेकिन अरुण का चेहरा पढ़ना उसके लिए मुश्किल न था। वो विवेक के साथ होने की झिझक को जल्द ही पहचान गई और फिर से सामान्य होकर बैठ गई। अरुण और विवेक अनामिका के सामने वाली कुर्सी पर मेज के दूसरी तरफ बैठ गए। विवेक कुछ बोले जा रहा था लेकिन अरुण सुन ही नहीं रहा था। उसका पूरा ध्यान तो अनामिका की तरफ था वो तो बस विवेक को भागकर अनामिका से बातें करना चाहता था। फिर अरुण के मन मे एक नया विचार आया अरुण सोचने लगा यार विवेक को एक न एक दिन तो बताना ही पड़ेगा ये 24 घंटे मेरे साथ रहता है इससे बचने की वजह से, मैं कभी अनामिका से बात ही नही कर पाऊँगा कुछ ऐसा किया जाए जिससे विवेक, अनामिका और मैं तीनो दोस्त बन जाये और फिर मैं अनामिका से विवेक के साथ भी आराम से बात कर पाऊँगा।
विवेक : भाई तू सुन रहा है मैं इतनी देर से क्या कह रहा हूँ? या बस में हवा से बातें किये जा रहा हूँ ?
अरुण : भाई मैं तेरी सारी बात सुन रहा हूँ। ये बता तू शाम को कहाँ जा रहा है?
विवेक : भाई बताया तो था। दीदी के घर जाना है।
अरुण : फिर मुझे सुबह कॉलेज कौन लाएगा?
विवेक : भाई सुबह तेरे घर पर आ जाऊंगा। अब तो ठीक है?
अरुण : अच्छा फिर ठीक है।
अरुण अनामिका की तरफ देखते हुए विवेक से कहता है
अरुण : भाई ये वही डिप्लोमा वाली लड़की है ना?
विवेक : हाँ भाई वही है। अनामिका नाम है इसका। लेकिन ये बेचारी बोल नही पाती है और शायद इसीलिए इसका कॉलेज में कोई दोस्त भी नही है।
अरुण : फिर तो हमको इसकी पढ़ाई में मदद करनी चाहिए।
विवेक : भाई लेकिन वो तो बोल नही पाती है फिर उसको कैसे पढ़ायेगा?
अरुण : वो बोल नही सकती है लेकिन सुन तो सकती है। हम उसे बोलकर पढ़ाएंगे और उसको कुछ पूछने होगा तो वो हमे लिखकर पूछ लेगी।
विवेक : भाई तू सच मे एक बहुत अच्छा इंसान है तू उसकी मदद कर रहा है जबकि तू उसको जनता भी नही है।
अनामिका दोनों की बातें सुनकर हल्का-हल्का मुस्कुरा रही
रही थी और सोच रही थी कि कैसे अरुण ने विवेक को भी अब उसका दोस्त बना रहा है।
अरुण : भाई मैं तो उसे जनता भी नही हूँ। तू उससे पूछ लें अगर वो हमारे साथ पढ़ना चाहे तो?
विवेक : अच्छा ठीक है भाई। पूछता हूँ।
अनामिका अपनी पूरी ताकत से अपनी हँसी को काबू में करके बैठी थी और अरुण केवल उसे ही देख रहा था।
विवेक : अनामिका मेरा नाम विवेक है मैं आपकी ही क्लास में पड़ता हूँ हम लोग कल के पेपर के लिए पढ़ रहे थे। अगर आप चाहो तो हम लोगो के साथ पढ़ सकती हो
जिससे आपकी और हमारी दोनों की पढ़ाई अच्छे से हो जाएगी।
विवेक को खुद भी नही पता था वो क्या कह रहा था। वो तो बस अरुण की तरह किसी की बिना स्वार्थ के मदद करना चाहता था।


अनामिका ने विवेक बात सुनकर हल्का सा मुस्कुराई और हाँ में गर्दन गिला दी।
अब तीनो मेज के एक ही तरफ बैठकर पढ़ने लगे और विवेक अनामिका को समझाने लगा।
विवेक : अनामिका, ये मेरा दोस्त है इसका नाम अरुण है और ये हमारी क्लास में हमेशा प्रथम आता है और यही हमे पढ़ायेगा तो हम लोगो के फेल होने का कोई मतलब ही नही है। तुम बस ये जो बताए उसे ध्यान से सुनते रहना। यकीन मानो मैं पिछले 5 साल से बस यही करता आ रहा हूँ और हमेशा पास हो जाता हूँ।
विवेक अपनी बात बोलकर हँसने लगा और अनामिका अरुण को ध्यान देखने लगी।
अनामिका सोच रही थी ये लड़का इतना अच्छा है पढ़ाई में भी बहुत अच्छा है हमेशा प्रथम आता है इसको तो एक से एक अच्छी लड़की मिल जाएगी फिर ये मेरे पास क्यों आ जाता है? मैं तो इतनी अच्छी भी नही हूँ बोल भी नही पाती हूँ। कोई भी अच्छाई नही है मुझमे। फिर इसको क्या जरूरत है मुझको पढ़ाने की मेरी परवाह करने की? ये तो जिसको चाहेगा वो लड़की इसको मिल जाएगी।
अरुण : अनामिका...।
अनामिका के चहरे पर हल्की सी मुस्कान आ गई और इसी के साथ वो अपने ख्यालो की दुनिया से बाहर आ गई और हाँ में सिर हिलाने लगी।
अरुण : मैं तुमको और विवेक को बोलकर पढ़ाऊंगा तुम्हे जो भी कुछ पूछना हो एक पेपर पर लिख देना।
अनामिका : ह्म्म्म।
फिर तीनो साथ बैठकर पढ़ने लगे। अब तीनो साथ मे ही कॉलेज और घर भी जाने लगे और जल्द ही तीनो बहुत अच्छे दोस्त बन गए जिन्हें पूरे कॉलेज में किसी की भी जरूरत नही थी।
 
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Ashish bhai aapki story bahut hi pyaari lagi .. padhte waqt bilkul aisa lag raha tha jaise ki main koi movie dekh raha hu .. aur likha bhi bahut accha hai .. na koi error aur mistakes .. ladko ka mann kitna complicated aur insecure hota hai .. ye aapne Arun ke maadhyam se hume dikhaya hai .. ki wo jiss ladki ke saath pichle 3 dino se padhai kar raha hai .. usko wo seedhe taur par apne best friend se introduce bhi nahi kara pa raha tha .. ulta Vivedk ko hi mediator bana diya ...

aur update to itna lamba tha ki .. muzhe padhte - padhte ye lagne laga ki .. shayad puri story ko sirf ek hee update mein khatam karne ka vichaar hai lekhak ka .. bhai truly loved your story and the subject of the story .. aapki story padh kar to muzhe bhi Anamika se dosti karne ka mann hone laga hai .. he he :)

by the way congrats for starting a new thread .. and good luck. :congrats:
 
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