• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Romance बस यही प्यार है (Completed)

Ashish Jain

कलम के सिपाही
265
446
79
Ashish bhai aapki story bahut hi pyaari lagi .. padhte waqt bilkul aisa lag raha tha jaise ki main koi movie dekh raha hu .. aur likha bhi bahut accha hai .. na koi error aur mistakes .. ladko ka mann kitna complicated aur insecure hota hai .. ye aapne Arun ke maadhyam se hume dikhaya hai .. ki wo jiss ladki ke saath pichle 3 dino se padhai kar raha hai .. usko wo seedhe taur par apne best friend se introduce bhi nahi kara pa raha tha .. ulta Vivedk ko hi mediator bana diya ...

aur update to itna lamba tha ki .. muzhe padhte - padhte ye lagne laga ki .. shayad puri story ko sirf ek hee update mein khatam karne ka vichaar hai lekhak ka .. bhai truly loved your story and the subject of the story .. aapki story padh kar to muzhe bhi Anamika se dosti karne ka mann hone laga hai .. he he :)

by the way congrats for starting a new thread .. and good luck. :congrats:

बोहोत बोहोत धन्यवाद भाई की आपको कहानी इतनी अच्छी लगी... बस ऐसे ही साथ बने रहिए और कुछ नहीं चाहिए...
 

Ashish Jain

कलम के सिपाही
265
446
79
भाग 2



अरुण, विवेक को अनामिका के साथ पढ़ने के लिए मना रहा था और विवेक को अनामिका के पास साथ पढ़ने की पूछने के लिए भेजता है।

अनामिका दोनों की बातें सुनकर हल्का-हल्का मुस्कुरा रही
रही थी और सोच रही थी कि कैसे अरुण ने विवेक को भी अब उसका दोस्त बना रहा है।
अरुण : भाई मैं तो उसे जनता भी नही हूँ। तू उससे पूछ लें अगर वो हमारे साथ पढ़ना चाहे तो?
विवेक : अच्छा ठीक है भाई। पूछता हूँ।
अनामिका अपनी पूरी ताकत से अपनी हँसी को काबू में करके बैठी थी और अरुण केवल उसे ही देख रहा था।
विवेक : अनामिका मेरा नाम विवेक है मैं आपकी ही क्लास में पड़ता हूँ हम लोग कल के पेपर के लिए पढ़ रहे थे। अगर आप चाहो तो हम लोगो के साथ पढ़ सकती हो
जिससे आपकी और हमारी दोनों की पढ़ाई अच्छे से हो जाएगी।
विवेक को खुद भी नही पता था वो क्या कह रहा था। वो तो बस अरुण की तरह किसी की बिना स्वार्थ के मदद करना चाहता था।
अनामिका ने विवेक बात सुनकर हल्का सा मुस्कुराई और हाँ में गर्दन हिला दी।
अब तीनो मेज के एक ही तरफ बैठकर पढ़ने लगे और विवेक अनामिका को समझाने लगा।
विवेक : अनामिका, ये मेरा दोस्त है इसका नाम अरुण है और ये हमारी क्लास में हमेशा प्रथम आता है और यही हमे पढ़ायेगा तो हम लोगो के फेल होने का कोई मतलब ही नही है। तुम बस ये जो बताए उसे ध्यान से सुनते रहना। यकीन मानो मैं पिछले 5 साल से बस यही करता आ रहा हूँ और हमेशा पास हो जाता हूँ।
विवेक अपनी बात बोलकर हँसने लगा और अनामिका अरुण को ध्यान देखने लगी।
अनामिका सोच रही थी ये लड़का इतना अच्छा है पढ़ाई में भी बहुत अच्छा है हमेशा प्रथम आता है इसको तो एक से एक अच्छी लड़की मिल जाएगी फिर ये मेरे पास क्यों आ जाता है? मैं तो इतनी अच्छी भी नही हूँ बोल भी नही पाती हूँ। कोई भी अच्छाई नही है मुझमे। फिर इसको क्या जरूरत है मुझको पढ़ाने की मेरी परवाह करने की? ये तो जिसको चाहेगा वो लड़की इसको मिल जाएगी।
अरुण : अनामिका...।
अनामिका के चहरे पर हल्की सी मुस्कान आ गई और इसी के साथ वो अपने ख्यालो की दुनिया से बाहर आ गई और हाँ में सिर हिलाने लगी।
अरुण : मैं तुमको और विवेक को बोलकर पढ़ाऊंगा तुम्हे जो भी कुछ पूछना हो एक पेपर पर लिख देना।
अनामिका : ह्म्म्म।

फिर तीनो साथ बैठकर पढ़ने लगे। अब तीनो साथ मे ही कॉलेज और घर भी जाने लगे और जल्द ही तीनो बहुत अच्छे दोस्त बन गए जिन्हें पूरे कॉलेज में किसी की भी जरूरत नही थी।
परीक्षा का परिणाम आ गया था और अनामिका का परिणाम उम्मीद से काफी अच्छा था उसने सभी विषयो में पास होने के लिए जरूरी नम्बर पा लिए थे। सभी लोग उसकी तारीफ कर रहे थे पर अनामिका तो केवल अरुण की ही तरफ देख रही थी और उसी की तरफ और ज्यादा खिंचती जा रही थी। ये खिंचाव ऐसा था जिसे वो चाहकर भी रोक नही पा रही थी। ये अरुण की अच्छाई ही थी जो उसे अपनी ओर खींचे जा रही थी अनामिका बार-बार अपना ध्यान अरुण से हटाने की कोशिश करती लेकिन फिर से कोई न कोई ऐसी बात हो जाती जिससे वो फिर से अरुण के और करीब आ जाती थी। उसे शिकायत अरुण से नही थी और न ही जमाने से थी क्योंकि उसकी दुनिया तो केवल अरुण और उसके भाई तक ही सीमित थी। उनके इलावा उसे किसी की भी परवाह नही थी। अनामिका तो बस एक बात से परेशान थी और वो थी अरुण का उसके लिए बढ़ता हुआ प्यार। अनामिका मन ही मन ये तय कर चुकी थी कि वो अरुण को केवल दोस्त ही बनाएगी और उससे ज्यादा कुछ भी नही क्योंकि वो अरुण को चाहे कितना भी प्यार कर ले लेकिन उसका न बोल पाना एक न एक दिन उन दोनों के बीच मे आ ही जायेगा और वो उस दिन को कभी आने नही देना चाहती थी। अनामिका नही चाहती थी कि अरुण उस पर तरस खा कर उसे अपना जीवन साथी बनाये इसी कारण वो हमेशा अरुण से दूर जाने की कोशिश करती थी लेकिन कोई न कोई वजह उसे अरुण के और पास ले ही आती थी।
अरुण, अनामिका और विवेक की तिगड़ी बन गई थी और अब क्लास फिर से शुरू हो गई थी। तीनो क्लास में भी एक साथ ही बैठते थे और पढ़ाई के साथ-साथ मस्ती भी साथ ही करते थे। तीनो का शायद जिंदगी का सबसे अच्छा समय चल रहा था। अरुण को तो जैसे पूरे कॉलेज में अनामिका और किताबो के इलावा कुछ दिखाई ही नही देता था। लेकिन अनामिका को अरुण के बढ़ते हुए लगाव से डर से लगने लगा था उसे एक ही डर था या तो अरुण उसके साथ अपनी जिंदगी का सबसे बड़ा समझौता करेगा या फिर उसे अकेला छोड़कर जिंदगी में आगे बढ़ जायेगा और दोनों में से कोई-सी भी स्थति उसे अच्छी नही लग रही थी क्योंकि न तो वो अरुण पर बोझ बनना चाहती थी और न ही वो ये चाहती थी कि अरुण उसे छोड़कर चला जाये क्योंकि अगर ऐसा हुआ तो वो ऐसे टूट जाएगी कि जिंदगी में दोबारा जुड़ न सके। लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था और किस्मत के आगे किसी भी नही चलती है।
सर्दियों के दिन की धूप किसी सुहावने मौसम से कम नही होती है और ऐसी ही एक सुहावनी दोपहर में अरुण, अनामिका और विवेक तीनो अपनी क्लास पूरी हो जाने के बाद कॉलेज के मैदान में बैठे हुए थे। तीनो ही दोपहर की मंद-मंद धूप से क्लास में 3 घंटे बैठकर मिली ठंडक को मिटाने की कोशिश कर रहे थे।
विवेक : अरुण यार आज तो क्लास में बहुत ज्यादा ठंड लग रही थी अब मैदान में आकर सांस मे सांस आई है वरना क्लास में तो हालात ही खराब ही गई थी।
अरुण : हम्म्म्म ।
विवेक : कौन- कौन चाय पियेगा?
अरुण : भाई मैं तो पियूँगा।
अनामिका ने भी हाँ में सिर हिला दिया।
विवेक : ठीक है फिर मैं चाय लेकर आता हूँ।
विवेक कैंटीन की तरफ चाय लेने चला गया अनामिका उसे जाते हुए देख रही थी अरुण ने अनामिका को, विवेक को इतने गौर से देखते हुए देखकर पूछा
अरुण : क्या हुआ अनामिका? क्या देख रही हो?
अनामिका : कुछ नही।
अरुण : बताओ तो। क्या सोच रही हो?
अनामिका : अरुण, तुमने कभी गौर किया है विवेक कितना अच्छा लड़का है उसके अंदर बिल्कुल भी घमंड नही है। तुम्हारे किसी भी काम के लिए हर वक़्त तैयार रहता है कभी भी तुमसे मना नही करता है । पता है ऐसे दोस्त बहुत किस्मत वालो को मिलते है।
अरुण : हम्म्म्म। ये तो तुम सही कह रही हो। पाता है तुमको, उसमे जान बसती है मेरी। अगर एक दिन भी वो कॉलेज न आये तो मेरा कॉलेज में रहना मुश्किल हो जाता है पूरा दिन साल जितना लम्बा हो जाता है।
दोनों के चहरे पर एक हल्की सी मुस्कान आ गई और दोनों ही विवेक को कैंटीन पर चाय लेते हुए देखने लगे।
अनामिका: अरुण, जिंदगी मैं चाहे कितनी भी मुश्किल आये, चाहे जैसी भी परिस्थिति हो लेकिन कभी भी इसका साथ न छोड़ना क्योंकि एक सच्चे दोस्त की कमी कोई भी पूरी नही कर सकता है।
अरुण : ह्म्म्म पक्का।
अनामिका जानती थी कि अरुण, विवेक को ज्यादा महत्व नही देता है क्योंकि अरुण, विवेक को अपने से कम समझदार समझता है और जब भी उन दोनों की लड़ाई होती थी तो विवेक ही उसे खत्म करता था लेकिन अनामिका चाहती थी उन दोनों की दोस्ती हमेशा बनी रहे और यही वजह थी जिसके कारण वो अरुण को इतना समझ रही थी।
अरुण : और तुम.?
अनामिका : मैं इतनी अच्छी नही हूँ मुझ जैसी तो तुम्हे कितनी भी मिल जाएंगी।
और इसी के साथ दोनों हँसने लगे
विवेक तीनो के लिए चाय लेकर आ गया और दोनों को हँसता देख पूछने लगा
विवेक : क्या बात चल रही है?
अरुण : कुछ नही भाई, बस अनामिका तेरी तारीफ कर रही थी।
विवेक : क्या बात है। लेकिन मैंने ऐसा क्या कर दिया जो मेरी तारीफ हो रही है?
अरुण : ये तो तारीफ करने वाले से ही पूछो।
विवेक, अनामिका की हाथो की भाषा कुछ कम समझ पाता था इसलिए अनामिका को, विवेक को कुछ भी बताने के लिये पेपर और पैन का सहारा लेना पड़ता था और अरुण इस बात का बखूबी फायदा उठाया करता था।
अनामिका ने अरुण को घूरकर देखा क्योंकि अब उसे विवेक को सब लिखकर बताना पड़ता और अरुण, अनामिका को देखते हुए हल्की-हल्की मुस्कान के साथ चाय पी रहा था।
अनामिका भी विवेक को बाद में बताने का इशारा करके अपनी चाय पीने लगी
अरुण : विवेक, आज की चाय तो काफी अच्छी बनी है किसी को और पीनी है? मैं तो एक और लूंगा।
अनामिका और विवेक दोनों ने ही न में सिर हिला दिया
फिर अरुण उन दोनों को वही बैठा छोड़कर कैंटीन की तरफ चल गया।
अनामिका पास ही के पेड़ पर बैठे तोतों को देख रही थी और अपने मन में नजाने क्या-क्या सोच रही थी विवेक की नज़र जैसे ही अनामिका पर पड़ी तो फिर वो अपनी नज़र हटा न सका । अनामिका लाल कुर्ते में हल्के से काजल के साथ आज बहुत ही खूबसूरत लग रही थी उसके चेहरे पर आते हुए बाल, उसका अपलक पंछियो को देखना, विवेक को अपनी ओर आकर्षित कर रहा था अब विवेक अनामिका को कब अपलक देखने लगे गया वो उसे भी नही पता चला वो तो बस अनामिका के उड़ते हुए बालों के साथ खुद भी कहाँ उड़ता जा रहा था ये उसे भी नही पता था। वो अनामिका की शख्शियत का कायल तो था ही अब उनके सौंदर्य से भी प्रभावित हो रहा था। आज अनामिका उसको रोज से कही ज्यादा खूबसूरत दिखाई दे रही थी। जब उसकी नज़र जैसे ही अनामिका की आंखों पर पड़ी तो वो अचानक से अपने सपने से बाहर निकल आया। अनामिका की आंखों से आँसू की हल्की -हल्की बूंदे निकल रही थी जिन्हें देखते ही विवेक खुद को रोक नही पाया और विवेक ने अनामिका के आँसुओ को पोंछते हुए पूछा

विवेक : क्या हुआ अनामिका? क्यों रो रही हो?
फिर अनामिका ने बचे हुए आँसुओ को पोछते हुए एक हल्की सी मुस्कान दी।
अनामिका : कुछ नही विवेक।
विवेक : क्या हुआ अनामिका कुछ बताओ तो?
अनामिका ने एक पेपर लिया और उस पर लिखने लगी
अनामिका कुछ बातें इशारो में और कुछ बातें लिखकर अरुण को बताने लगी।
अनामिका : ये जो पेड़ पर पंछी बैठे देख रहे हो ?
विवेक : हम्म्म्म।
अनामिका : उसमे बीच वाली चिड़िया मेरे जैसी है।
विवेक : क्यों?
अनामिका : वो चिड़िया पहले अकेली, उदास, चुपचाप सी बैठी हुई थी फिर उस झुंड में से दो चिड़िया उसके पास आई और अब देखो तीनो कितने प्यार से खेल रही है।
विवेक चिडियों को देखते हुए
विवेक : ह्म्म्म।
अनामिका : है ना ये तीनो हम तीनों जैसी.,।
विवेक : कितना अच्छा सोचती हो तुम अनामिका।
अनामिका : अब तो तुमको समझ आ गया वो आँसू गम के नही खुशी के थे।
विवेक : हम्म। समझ आ गया अनामिका, और ये भी समझ आ गया कि तुम पागल हो।
अनामिका : पागल क्यों?
विवेक : इतना भी कोई सोचता है क्या ? दोस्त तो बस बन जाते है, कोई जरूरत के दोस्त नही बनाये जाते है।
फिर दोनों हँसने लगे और अरुण अपनी चाय लेकर आ गया अरुण भी दोनों को हँसता देख खुद भी हँसने लगा और अब दोनों ही अनामिका को देख रहे थे जो खुलकर हँस रही थी। ऐसा लग रहा था जैसे न जाने कितने दिनों बाद वो आज खुलकर हँस रही थी आज उसकी हँसी में बिल्कुल भी बनावट नही थी। वो किसी मासूम बच्चे की तरह हँस रही थी। अरुण उसे देखकर बस यही सोच रहा था कि न जाने क्यों अनामिका इतनी प्यारी सी हँसी को उस बनावटी चहरे के पीछे छिपकर रखती है? क्यों हमेशा ऐसे ही खुलकर नही हँसती है? अरुण की चाय खत्म हो चुकी थी और अनामिका की हंसी भी अब बंद हो चुकी थी।
विवेक : अब शाम हो गई है और मुझे एक दोस्त से मिलना है अरुण तू चलेगा भाई?
अरुण : नही भाई। तू जा मुझे थोड़ा काम है। मैं अनामिका के साथ ही चला जाऊंगा।
विवेक : ठीक है भाई। फिर मैं चलता हूँ।
विवेक, अरुण और अनामिका को वही बैठा छोड़कर चला गया। अरुण अभी भी अनामिका को देख रहा था और अनामिका अपनी किताब पढ़ने में व्यस्त थी।
अरुण: अनामिका, घर नही जाना है क्या आज?
अनामिका : ह्म्म्म, चलते है बस एक मिनट।
अनामिका ने अपना काम खत्म किया और चल दी।
अरुण, अनामिका के साथ ऑटो से गोल चक्कर तक पहुँच गया लेकिन आज अरुण और आगे जाना चाहता था।
अरुण : अनामिका, तुम्हारा घर कितना दूर है?
अनामिका : यहाँ से बस थोड़ा सा दूर है।
अरुण : तो फिर चलते है।
अनामिका ने अचानक से अरुण को देखा तो अरुण मुस्कुरा रहा था
अनामिका : पक्का चलना है?
अरुण : ह्म्म्म।
अनामिका : ठीक है फिर चलो।
दोनों धीरे-धीरे अनामिका के घर की ओर चल रहे थे। अनामिका सोच रही थी कि अरुण घर आने से पहले ही चला जायेगा लेकिन अरुण के मन में तो कुछ और ही था।
अनामिका : बस इस गली में ही मेरा घर है ।
अरुण : ठीक है, चलते है घर पर।
अनामिका : पक्का तुमको घर पर चलना है?
अरुण: हाँ, क्यों क्या हुआ?
अनामिका : कुछ नही। बस वो घर पर भैया होंगे न।
अरुण : कोई बात नही उनसे भी मिल लेंगे।
अनामिका अभी भी केवल उसका चेहरा ही देख रही थी और आने वालों पलो को सोच रही थी।
अरुण : अनामिका, कौन-सा घर है तुम्हारा?
अनामिका ने एक घर की ओर इशारा किया।
अनामिका : तुम पक्का आ रहे हो?
अरुण : हाँ जी।
अनामिका और अरुण दोनों घर के अंदर जाने लगे तभी अंदर से अनामिका का भाई आ गया। अनामिका ने भैया से अरुण को मिलवाया और अंदर चाय बनाने चली गई
अरुण और रंजन काफी देर तक बाते करते रहे या यूं कहें कि दोनों एक दूसरे को समझने की कोशिश करने में लगे हुये थे अरुण और रंजन दोनों को एक दूसरे के बारे में काफी मालूम था क्योंकि अनामिका दोनों से ही एक-दूसरे की बाते करती रहती थी बस ये दोनों मिले आज पहली बार थे लेकिन जानते बहुत पहले से थे। अनामिका तीन कप चाय लेकर आ गई आज उसके मन की बेचैनी और खुशी को बयान करना शायद किसी के भी लिए मुमकिन नही था उसे तो ये सब किसी सपने से कम नही लग रहा था।
रंजन : लो अरुण चाय पियो। मेरी बहन बहुत अच्छी चाय बनाती है। तुम्हे पता है इसकी चाय के लिए में पूरे दिन इंतजार करता हूँ।
अरुण चाय पीते हुये
अरुण : ह्म्म्म। चाय तो सच मे बहुत अच्छी है।
रंजन : तुम्हे शक था क्या?
और फिर तीनो हँसने लगे
रंजन : अरुण, तुम्हारे घर मे कौन-कौन है?
अरुण : मेरे लिए तो इस पूरी दुनिया मे बस एक मेरी मौसी ही है। माँ और बाबा तो बचपन मे ही मुझे छोड़कर चले गए थे तब से उन्होंने ही मुझे पाला-पोसा है।
रंजन : अरे ये तो बहुत बुरा हुआ। कोई बात नही कभी-कभी परेशानी भी इंसान को बहुत मजबूत बना देती है।
अरुण : अच्छा भैया अब मैं चलता हूं। काफी देर हो गई है मौसी घर पर इंतजार कर रही होंगी।
रंजन : ठीक है लेकिन आते रहा करो। मुझे भी चाय पर साथ मिल जाएगा।
अरुण : जी बिल्कुल।
अरुण जाने लगा और अनामिका तो बस आज केवल सब कुछ जैसे देख ही रही थी और हर अगले पल का बेसब्री से इंतजार कर रही थी अरुण के जाने के बाद रंजन ने मुस्कुराते हुए अनामिका को देखा।
रंजन : लड़का तो बहुत अच्छा, ईमानदार और सच्चे दिल का है।
अनामिका हाँ में सिर हिलाते हुए अंदर चली गई
आज की रात अनामिका की आंखों से नींद कोसो दूर थी लेकिन इसके बिल्कुल उलट अरुण आज इशारो ही इशारो में अपने दिल की बात कह कर घोड़े बेचकर सो रहा था।
अनामिका जानती थी कि अरुण उसे बेइंतहा मुहब्बत करता है और अरुण की जिंदगी में उससे ज्यादा कुछ भी जरूरी नही है पर एक बात जो अनामिका के मन को अंदर ही अंदर खाये जा रही थी और वो थी अनामिका के जीवन की सबसे बड़ी परेशानी जिससे वो आज तक लड़ती आई थी। उसका न बोल पाना।
वो अरुण के साथ कदम से कदम मिलाकर चलना चाहती थी लेकिन उसके पीछे नही चलना चाहती थी। अनामिका नही चाहती थी कि अरुण को आगे कभी जिंदगी में उसकी वजह से कुछ सुनना पड़े या एक वक्त के बाद उसे अपने फैसले पर अफसोस हो। आज भले ही अरुण को मुझमे कोई कभी न लगती हो लेकिन एक दिन जब उसे ये कमी महसूस होगी उस दिन से हम दोनों में दूरियां बढ़ती ही जाएंगी। इससे तो अच्छा होगा कि हम किसी ऐसे रिश्ते की शुरुआत ही न करे जिससे हमरो दोस्ती खराब हो जाये लेकिन अरुण को ये सब समझायेगा कौन? वो तो किसी की सुनता ही नही है और आज तो अरुण ने भाई को भी मन लिया था।
अनामिका ने मन ही मन निश्चय किया कि वो जिंदगीभर अरुण पर बोझ बनकर नही रहना चाहती है। वो किसी भी कीमत पर अपनी प्यारी सी दोस्ती को यूं खराब नही होने देगी फिर चाहे उसे इसके लिए सब कुछ छोड़कर ही क्यों न जाना पड़े। अनामिका की आँखों से कब आंसू बहने लगे ये उसे भी नही पता चला वो बस अपनी बदनसीबी और बहते आँसुओ से हुई लाल आंखों को लेकर कब नींद की आगोश में चली गई इसका पता न उसे था न किसी और को।
सुबह उठकर अनामिका ने भाई को अपना फैसला सुनाने का निश्चय किया और आज अरुण से आखरी बार मिलकर कही दूर चले जाने का प्रण लिया।
रंजन : अनामिका, उठ गई बेटा।
अनामिका : हाँ भाई। भाई मुझे आपसे कुछ कहना है।
रंजन : बोलो क्या कहना है।
अनामिका : भाई मैं आज शाम को ही यहाँ से सब कुछ छोड़कर अपनी दोस्त के पास मुम्बई जाना चाहती हूँ काफी दिनों से वो मुझे जॉब के लिए वहाँ बुला रही है।
अरुण और मेरे रिश्ते को मैं और आगे नही बढ़ाना चाहती हूँ क्योंकि ये रिश्ता बराबरी का नही है मैं उसके बराबर नही हूँ। एक न एक दिन उसे इस बात का जरूर अहसास होगा और मैं वो दिन देखना नही चाहती हूँ इसलिए भाई मैं यहाँ से कहाँ जा रही हूँ ये आप किसी को भी नही बताएंगे आपको मेरी कसम है।
रंजन की आंखे तो बस अनामिका के इशारे देख-देखकर खुली की खुली ही रह गई वो बेचारा कुछ भी बोलता इससे पहले ही अनामिका ने उसे अपनी कसम दे दी थी। वो भी जनता था कि अनामिका के लिये उसके आत्मसम्मान से बढ़कर कुछ भी नही है।
रंजन : ठीक है बेटा। जैसा तुझे ठीक लगे लेकिन एक बार और अच्छे से सोच लेना खुशियां बार-बार दरवाजे पर नही आती है।
अनामिका ने भाई की बाते सुनी और अपने कमरे की तरफ चल दी।
आज कॉलेज में अरुण बहुत ही खुश था क्योंकि कल उसने अनामिका के भाई से भी बात कर ली थी और उन्होंने अरुण को पसंद भी किया था। आज अनामिका कॉलेज में चश्मा पहनकर आई थी जब विवेक ने उससे पूछा तो उसने कह दिया कि आंख में परेशानी है तो डॉक्टर ने बोला है कुछ दिन लगाने को। जिससे आंखों में दर्द न हो लेकिन सही बात तो ये थी कि अनामिका तो कल रातभर रोने से हुई लाल आंखों को सबसे छिपाना चाहती थी इसीलिए उसने ये चश्मा पहना था।
लेक्चर के बाद तीनों लोग चाय पीने गए तो विवेक आज अनामिका को बहुत परेशान कर रहा था उसे महसूस हो गया था कि अनामिका दुखी है और वो किसी को अपना गम नही बताना चाहती है इसीलिए विवेक उसको हँसाने की कोशिश कर रहा था और अनामिका भी उसकी इस हरकत को खूब समझ रही थी। दोनों ही आज बिना कुछ कहे बहुत कुछ बोल रहे थे लेकिन अरुण तो अपने ही खयालो में मस्त था उसे तो ऐसा लग रहा था कि अब अनामिका को उससे कोई भी नही छीन सकता है। आज उसकी खुशी का कोई भी अंदाजा नही लगा सकता था पर उसको खुद भी नही मालूम था कि ये खुशी मात्र कुछ पल की है। विवेक तीनो के लिये चाय लेने चला गया अनामिका बस अरुण को देखे ही जा रही थी अरुण ने पूछा क्या हुआ है? तो अनामिका ने कुछ भी नही कहा और बस अरुण का हाथ अपने हाथो में लेकर उसके हाथ पर अपने होठों के निशान छोड़ दिया और हल्की सी मुस्कान के साथ वापस अरुण का हाथ उसकी तरफ ही रख दिया। अरुण तो आज जमीन पर ही नही था वो बस बदलो की सैर कर रहा था विवेक चाय ले आया। तीनो आज एक अलग ही तरह से चाय पी रहे थे। अरुण बस अनामिका को देखे ही जा रहा था विवेक, अनामिका को परेशान कर रहा था और अनामिका बस अपनी हल्की मुस्कान के पीछे अपने आँसुओ को छिपा रही थी। चाय खत्म होते ही अनामिका ने घर जाने की बात की।
अनामिका : चलो तुम लोग बैठो मुझे घर जाना है भाई ने आज जल्दी बुलाया है।
अरुण : ठीक है मैं तुमको छोड़ देता हूँ।
अनामिका : नही। आप अपनी पढ़ाई करो मैं चली जाऊंगी। मैं कोई छोटी बच्ची नही हूँ।
तभी विवेक बीच मे बोला
विवेक : लगती तो तुम बिल्कुल बच्ची जैसी ही हो
अरुण और विवेक दोनों ही हँसने लगे।
अनामिका : चुप रहो तुम दोनों।
और फिर वो भी हँसने लगी।
अनामिका : ठीक है फिर चलती हूँ।
अरुण : ठीक है भाई को जाकर मेरा नमस्ते बोल देना।
अरुण दोनों हाथ जोड़कर मजाक में अनामिका से कहने लगा।
अनामिका : हाँ हाँ जरूर बोल दूंगी
और हँसती हुई वो कॉलेज से चली गई फिर कभी लौटकर न आने के लिये। उसकी आँखों मे आसुओ का सैलाब था लेकिन ये वो ही जानती थी कि उसने किस तरह उनको सम्भाल कर रखा था। आज अनामिका बहुत दिनों बाद अपने घर जा रही थी। गुजरता हुआ हर पल हर मोड़ उसे अरुण की याद दिला रहा था लेकिन वो अपने फैसले पर अभी भी कायम थी कि वो अपनी दोस्ती को कभी भी खराब नही करेगी। इसको हमेशा अपनी जिंदगी में एक सुनहरे मोती की तरह रखेगी। अपनी सबसे बड़ी कमी को कभी भी अपनी दोस्ती बीच मे नही आने देगी।
शाम को अनामिका अपना बैग पैक कर रही थी
रंजन : सब समान रख लिया बेटा?
अनामिका : हाँ भाई।
रंजन : एक बार और सोच लो बेटा। अच्छे लोग बार बार नही मिलते है।
अनामिका : भाई इसलिए ही तो उन लोगो से रिश्ता खराब नही करना चाहती हूँ। आपको अपनी कसम याद है न?
रंजन : हम्ममम्म। जैसी तेरी मर्जी। अच्छा सुन वह जाकर मेरा एक दोस्त है डॉ अभिषेक। उसको ये मेरा पत्र दे देना।
अनामिका : ठीक है भाई।
रंजन अनामिका को ट्रेन में बैठा देता है और जाती हुई ट्रेन में से अनामिका को जाते हुए देखता है और खुद से ही अनामिका को अरुण के लिए न मना पाने के लिये खफा से हो जाता है।
आज अनामिका सबसे दूर अपने पीछे एक अधूरी कहानी छोड़कर चली गई जिसका अंजाम शायद उसके बिना कभी भी मुमकिन न हो। आज फिर वो अपने डर से हार गई और इसी लिए एक बार फिर से अनामिका मिलती हुई खुशियो को छोड़कर अपने पीछे अपने एक अधूरी कहानी को छोड़कर जा रही थी पर शायद किस्मत को इस बार कुछ और ही मंजूर था।
 

firefox420

Well-Known Member
3,371
13,845
143
super bhai super!!

Anamika ki vidayi dekh kar to muzhe bhi rona sa aa gaya tha .. mann bhaari - bhaari sa ho gaya hai .. par shayad Anamika ki chasme se dhaki hui aankhen .. jin par Arun ke pyaar ka purdah pada hua hai .. wo aankhen shayad kahi na kahi Vivek ke mann ka haal na samajh payi .. bhai aapka ye update dil ko chu gaya .. bahut hi umda lekhani hai ...
 

Ashish Jain

कलम के सिपाही
265
446
79
अन्तिम भाग (3)




आज अनामिका सबसे दूर अपने पीछे एक अधूरी कहानी छोड़कर चली गई जिसका अंजाम शायद उसके बिना कभी भी मुमकिन न हो। आज फिर वो अपने डर से हार गई और इसी लिए एक बार फिर से अनामिका मिलती हुई खुशियो से डरकर कही दूर जा रही थी पर शायद किस्मत को इस बार कुछ और ही मंजूर था।

अनामिका अपनी नई दुनिया के सफर पर पीछे कुछ बहुत प्यारे रिश्तों को छोड़कर चल दी थी। एक नए सफर की शुरुआत के लिए, वो रिश्ता जो शायद लोगो को पूरी जिंदगी में एक बार भी नसीब नही होता है लेकिन अनामिका ने वो छोड़ दिया। एक लम्बे थकान भरे सफर के बाद अनामिका आखिरकार मुम्बई पहुँच ही गई और जितनी खुश वो अपनी दोस्त से मिलकर थी उससे कही ज्यादा खुश उसकी दोस्त उससे मिलकर लग रही थी । अनामिका ने एक पूरा दिन आराम करने का सोचा लेकिन इतनी थकान के बाद भी उसके दिमाग से अरुण का ख्याल जा ही नही रहा था। आँखे बंद करते ही उसके सामने अरुण की ही तस्वीर आ जाती थी वो चाहकर भी कुछ नही कर पा रही थी उसका दिल और उसका दिमाग आपस मे जंग सी लड़ रहे थे और उस जंग में अनामिका खुद को असहाय महसूस कर रही थी। इसी लड़ाई के बीच न जाने कब उसकी आँखें लग गई और वो सपनों की दुनिया मे खो गई।
अरुण को कुछ भी समझ नही आ रहा था उसके ऊपर तो जैसे आसमान से कोई बिजली गिर पड़ी हो। उसने अनामिका के भाई से अनामिका के बारे में जानने की बहुत कोशिश की लेकिन भाई ने बहन की कसम में बंधकर कुछ भी नही बताया। अरुण की तबीयत दिन-ब-दिन खराब होती चली गई, उसने सबसे बातें करना बंद कर दिया। बस हमेशा ही न जाने किस सोच में लगा रहता था हर कोई उसकी चिंता करता था पर कोई भी उसके लिए कुछ नही कर पा रहा था। विवेक ने हर तरह से उसका दिल बहलाने की कोशिश की लेकिन कोई भी फायदा नही हुआ अरुण और ज्यादा शांत और गुमसुम रहने लगा। विवेक के पास अब अनामिका को ढूंढने के अतिरिक्त कोई भी रास्ता नही बचा था। उसने सोच लिया था चाहे जो कुछ भी हो जाये वो अनामिका को ढूंढ कर ही रहेगा तभी विवेक को चिराग का ख्याल आया जो कि रेलवे में काम करता था और उसके जरिये वो अनामिका की टिकट निकलवा सकता था और अनामिका तक पहुँच सकता था।
अगले दिन सुबह अनामिका को याद आता है कि उसके भाई ने उसे एक चिठ्ठी दी थी और उसे किसी दोस्त को देने के लिए कहा था लेकिन उसका नाम क्या था उसे वो याद नही आ रहा था। वो सोचने लगती है आखिर क्या था उसका नाम...? हम्म्म्म डॉ अभिषेक, हाँ यही नाम था।अनामिका ने वो चिठ्ठी उठाई और आज ही उसको डॉ अभिषेक को देने का निश्चय किया। अनामिका ने ऑटो किया और भाई के बताए पते पर पहुँच गई जो कि एक बहुत बड़ा अस्पताल था अनामिका ने रिसेप्शन पर जाकर डॉ अभिषेक के नाम के पत्र को दिखाया और इशारों में ही डॉ साहब के बारे में पूछा तो वहाँ पर बैठी अधेड़ उम्र की महिला ने डॉ साहब को कॉल मिलाया और अनामिका के पत्र के बारे में बताया तो डॉ साहब ने उसको इंतजार करने को कहा। अनामिका पास में रखे सोफे पर जाकर बैठ गई और अस्पताल की सुंदरता और साफ-सफाई को ध्यान से देख रही थी वो सोच रही थी कि ये अस्पताल किसी होटल से कम नही लग रहा है इसमें इलाज कराने में तो बहुत ज्यादा खर्च आता होगा इसी सब के बीच मे उस महिला ने अनामिका नाम की आवाज लगाई तो अनामिका अपने ख्यालो से बाहर आई उस महिला ने अनामिका को एक केबिन की ओर इशारा करते हुए अन्दर जाने को कहा अनामिका उस केबिन की तरफ चल दी। केविन को हल्का खोलकर देखा तो अंदर बैठे डॉ अभिषेक ने कहा "आओ अनामिका, मैं तुम्हारा काफी दिनों से इंतजार कर रहा था आओ बैठो" अनामिका अभी भी उसको देख ही रही थी उसे लगा जैसे उसका भाई ही उसके सामने बैठा हुआ है क्योंकि उनके भाई और अभिषेक की उम्र और कद काठी एक जैसी ही थी। अनामिका डॉ साहब के सामने रखी कुर्सी पर आकर बैठ गई और रंजन का दिया हुआ पत्र अभिषेक को दे दिया अभिषेक ने पत्र को बड़े ध्यान से पढ़ा और पत्र पढ़ते हुए बोला
अभिषेक : अनामिका, तुम मुझे नही जानती हो लेकिन मैं तुम्हे अच्छे से जनता हूँ। मैं और रंजन बहुत ही अच्छे दोस्त थे। मेरे पापा का ट्रांसफर यहाँ पर हो गया था इसलिए हमें वहाँ से यहाँ पर आना पड़ गया उस समय तुम बहुत छोटी थी इसलिए तुम मुझे नही जानती हो लेकिन अब तुम्हे किसी भी बात के लिए परेशान होने की जरूरत नही है हमे आज ही तुम्हारे कुछ टेस्ट करने होंगे उसके बाद ही आगे का इलाज करेंगे।
अभिषेक की बाते सुनकर अनामिका के चहरे की सारी हवाइयां उड़ गई उसे तो पहले ही ये अस्पताल बहुत महँगा लग रहा था और उसका इलाज वो भी यहाँ पर? नही कभी नही। अनामिका ने तुरंत ही न में सर हिला दिया।

अभिषेक ने मुस्कुराते हुए कहा तुम्हें परेशान होने की कोई जरूरत नही है तुम्हारे इलाज का सारा खर्च तुम्हारे भाई ने पहले ही दे दिया है इसलिए तुम्हे ज्यादा सोचने की जरूरत नही है बस इलाज पर ध्यान दो।
अनामिका अभी भी केवल अभिषेक का चेहरा ही देख रही थी और कुछ भी बोलने की कोशिश नही कर रही थी जैसे उसे उसके सारे सवालों के जबाब एक ही बार मे मिल गए हो।
अभिषेक ने बाहर से चपरासी को बुलाया और एक पेपर पर कुछ टेस्ट के नाम लिखकर कहा
अभिषेक : मैडम को अपने साथ लैब में ले जाओ इनके ये टेस्ट करवाने है और इनकी रिपोर्ट मुझे आज शाम तक ही चाहिए।
चपरासी ने बस हाँ में सर हिला दिया और अनामिका भी उसके साथ चल दी।
अभिषेक अभी भी उन दोनों को जाते हुए देख रहा था और सोच रहा था कि अभी जैसे कल की ही बात हो जब वो अनामिका को अपनी गोद मे लिए पूरे शहर में घूमता था और आज देखो कितनी बड़ी हो गई है।

विवेक ने चिराग की मदद से आखिरकार पता लगा ही लिया कि अनामिका मुम्बई गई है और अब विवेक ने मुम्बई जाने का फैसला कर लिया और अगले दिन की गाड़ी का टिकट ले लिया। विवेक बस अरुण को फिर से खुश देखना चाहता था और वो जनता था कि इसका केवल एक ही तरीका है और वो है अनामिका।

अगले दिन विवेक ट्रैन में बैठा यही सोच रहा था कि मुम्बई जा तो रहा हूँ लेकिन क्या मैं अनामिका को ढूंढ पाऊँगा? क्या अनामिका उसे मिल पाएगी? इन सब सवालों के बीच उलझा हुआ विवेक ट्रैन को स्टेशन को छोड़ते हुए देख रहा था और ऊपरवाले से यही दुआ मांग रहा था कि काश ! अनामिका का कोई पता चल जाये और इन्ही सब बातों के बीच उसे कब नींद आ गई उसे पता भी नही चला।
लगभग एक घंटे बाद जब उसकी आंखें खुली तो उसने सामने वाली सीट पर एक उसी की हम उम्र या शायद उससे कुछ बड़ी, एक साधारण और परिपक्व दिख रही लड़की को बैठा पाया। वो तुरंत अपनी नींद से बाहर आया और खुद को थोड़ा ठीक-ठाक करते हुए हल्की-सी मुस्कुराहट के साथ हेलो बोला जिसका जबाब उस लड़की ने मुस्कान के साथ हेलो में ही दे दिया।
विवेक चेहरा साफ करने बाथरूम जाता है और फिर ट्रेन के गेट पर खड़ा होकर बाहर की तरफ देखने लग जाता है
वो लड़की उसे गेट पर खड़ा हुआ देख रही थी और सोच रही थी "शायद ये लड़का बहुत परेशान है। लगता है शायद कोई जानने वाला बीमार होगा इसका"। शमा ने अभी अभी अपनी मेडिकल की पढ़ाई पूरी की थी और एक नई डॉक्टर इससे ज्यादा और सोच भी क्या सकती है?
विवेक वापस आकर अपनी सीट पर बैठ गया। सफर बहुत लंबा था लेकिन करने को कुछ था ही नही। विवेक ने आस पास देखा तो उसे उस लड़की के पास एक अखबार रखा हुआ दिखाई दिया।
विवेक : क्या मैं वो अखबार पढ़ सकता हूँ?
शमा विवेक की तरफ देखती है उसे लगा जैसे उसकी तो कोई मुराद पूरी हो गई हो क्योंकि वो तो बातों की शैकीन है लेकिन पिछले 2 घंटे से उसने एक शब्द भी नही बोला था।
शमा : हाँ बिल्कुल
शमा ने अखबार विवेक की ओर बढ़ाते हुए कहा।
शमा : आपका नाम क्या है?
विवेक : विवेक, और आपका?
शमा : शमा, आप कहाँ जा रहे है?
विवेक : जी, मै मुम्बई जा रहा हूँ।
शमा : फिर तो बहुत अच्छा है, मैं भी मुम्बई जा रही हूँ चलो फिर तो सफर कट जाएगा अब तो।
विवेक : हम्म्म्म
शमा कुछ हिचकिचाती हुई पूछती हुई पूछती है।
शमा : अगर आप बुरा न माने तो आपसे एक बात पूंछ सकती हूँ?
विवेक : हाँ पूछिये
शमा : मैंने देखा कि आप गेट पर खड़े कुछ सोच रहे थे और परेशान भी लग रहे थे अगर आप चाहे तो अपनी परेशानी मुझे बता सकते है शायद में आपकी कोई मदद कर सकूँ और अगर ऐसा न भी हुआ तो कम से कम मन की बात बताने से आपका मन हल्का तो जरूर हो ही जायेगा और हम दोनों का सफर भी कट जाएगा।
विवेक अभी भी शमा का चेहरा ही देख रहा था और सोच रहा था कि कितनी लम्बी बात इस लड़की ने केवल एक साँस में ही बोल दी? कितना बोलती है ये पर चलो कोई नही इस बहाने सफर कट जाएगा।
विवेक : ह्म्म्म। अपने सही पहचान
शमा : हम्म मुझे पता है पक्का आपका कोई जानकार बीमार होगा इसलिए ही आप मुम्बई जा रहे हों।
विवेक हँस कर बोला
विवेक : नही ऐसा नही है।
शमा : तो कैसा है?
विवेक : मेरी एक दोस्त खो गई है या शायद गुस्सा होकर चली गई है और मुझे पता चला है कि वो मुम्बई गई है तो बस अब उसी को ढूंढने मुम्बई जा रहा हूँ।
शमा मुस्कुराते हुए बोली
शमा : अच्छा तो प्यार का मामला है।
विवेक हँसते हुए बोला
विवेक : हाँ प्यार का तो मामला है लेकिन मेरे नही, मेरे दोस्त अरुण के प्यार का। मेरा दोस्त उससे बहुत प्यार करता है और अब उसके चले जाने से बहुत ही ज्यादा परेशान और बीमार रहता है और उसे तो ये भी नही पता कि मैं मुंबई जा रहा हूँ अनामिका को ढूंढने।
शमा : अच्छा तो ये बात है।
विवेक ने उसे शुरू से पूरी कहानी शुरू की और देखते ही देखते समय कब निकल गया पता ही नही चला। रात के 9 बज गए थे और विवेक की कहानी भी खत्म हो गई थी
शमा अभी भी विवेक को देख ही रही थी और उसकी सुनाई कहानी में ही कहीं खोई हुई थी तभी ट्रेन एक स्टेशन पर रुकी गई। विवेक स्टेशन पर उतरा और 2 गिलास चाय ले आया और एक गिलास शमा को देता है शमा गिलास को पकड़ते हुए
शमा : विवेक तुम सच मे बहुत अच्छा काम कर रहे हो। तुम जैसा दोस्त केवल किस्मत वालो को ही मिलता है।
विवेक हँसते हुए
विवेक : नही ऐसा नही है, मैं तो बस इन दोनों के बीच की गलतफहमियों को दूर करना चाहता हूँ और इसमें मेरा ही फायदा है किसी और का नही।
शमा : कैसे?
विवेक : मुझे भी तो दो अच्छे दोस्त वापस मिल जाएंगे।
शमा : ये तो तुमने बिल्कुल सच बात कही।
और दोनों चाय पीने लगे
विवेक : तुमने मेरे बारे में तो सब कुछ जान लिया लेकिन अपने बारे में कुछ नहीं बताया?
शमा : अरे मेरे बारे में जानने को ऐसा कुछ नही है बस मेडिकल की स्टूडेंट हूँ अभी-अभी अपनी पढ़ाई पूरी की है और मुम्बई में, एक अस्पताल में काम करने जा रही हूँ सफर दोस्त बनाना बहुत पसंद है। बाते करने में मेरा कोई जबाब ही नही है ये तो तुम जान ही गए होंगे।
विवेक : हाँ ये तो तुमने बिल्कुल सही कहा।
और दोनों हँसने लगे
ट्रैन सुबह 6 बजे मुम्बई पहुँचनी थी और अभी पूरी रात बची थी लेकिन अब शमा बिल्कुल खामोश हो गई था न जाने किस सोच में खो गई थी। कभी खिड़की से बाहर देख रही थी तो कभी विवेक को देख रही थी लेकिन विवेक इन सबसे अनजान बस यही सोच रहा था कि मुम्बई मै जाकर अनामिका को ढूंढेगा कहाँ पर? तभी शमा को याद आया कि विवेक का मोबाइल नंबर तो ले लिया जाए न जाने ऐसा दोस्त फिर कब मिले
शमा : विवेक, तुम्हारा मोबाइल नंबर तो दो यार कभी किसी काम के लिए जरूरत पड़ी तो कोई तो होना चाहिए न अपना।
विवेक : मुंबई आ रहा था तो बड़ी मुश्किल से ये मोबाइल खरीदा है पर शायद इससे मैं तुम्हे शायद ही कॉल कर पाऊंगा क्योंकि इसमें पैसे नही है और वैसे भी मैं तुम्हारी क्या मदद कर पाऊंगा? मैं तो खुद यह पर नया हूँ फिर तुम नोट कर लो शायद कोई काम आ जाये 904XXXXX1 ।
शमा : अच्छा मैं तुमको मिस कॉल कर देती हूँ मेरा नंबर सेव कर लेना और अगर तुमने मेरे कॉल टाइम पर नही उठाया न, तो याद रखना फोन से निकल कर ही तुम्हे मारूंगी।
और दोनों ही एक साथ हँसने लगे और जल्द ही विवेक सो सो गया। शमा अभी भी अपनी चादर को ओढ़कर विवेक को देख रही थी और इसी सब के बीच उसे भी कब नींद आ गई पता ही नही चला और सुबह विवेक ने ही शमा को जगाया और फिर दोनों अपने-अपने रास्ते पर चल दिये। शमा को तो अपना रास्ता पता था लेकिन विवेक को कुछ भी नही पता था कि कहाँ जाना था उसने अपने एक दोस्त का पता निकाला और ऑटो स्टैंड की तरफ चल दिया।

एक हफ्ता बीत गया था लेकिन अनामिका का कोई भी पता नही चला था विवेक भी धीरे-धीरे अपनी हिम्मत हारने लगा था और उसे भी अब यकीन हो चला था कि शायद वो अनामिका को गलत जगह ढूंढने आ गया है। शाम को उदास बैठा विवेक यही सब सोच रहा था कि उसके मोबाइल पर एक कॉल आया उसने देखा तो शमा का नाम स्क्रीन पर आ रहा था विवेक ने कॉल रिसीव किया
विवेक : हेलो
शमा : हेलो विवेक।
विवेक : हम्म
शमा : पहचाना मुझे? मैं शमा बोल रही हूँ।
विवेक : हम्म पहचान लिया और शमा कैसी हो तुम?
शमा : मैं तो बढ़िया हूँ, तुम अपनी बताओ तुम्हारी दोस्त मिली या नही?
विवेक : नही यार। मुझे लग रहा है मैं उसे गलत जगह ढूंढ रहा हूँ। अब वापस जाने की सोच रहा हूँ।
शमा : अरे ऐसे कैसे . तुम मुझसे मिले बिना वापस नही जा सकते हो।
विवेक : नही यार अब यहां रुकने का कोई फायदा नही है।
शमा : तो मैं कौन सा तुम्हे रोक रही हूँ बस मुझसे एक बार मिल लो फिर चले जाना।
विवेक : अच्छा बताओ कहाँ मिलना है।
शमा : कल शाम 5 बजे को माँ सरस्वती हॉस्पिटल में आ जाना मैं वही जॉब करती हूँ।
विवेक : ठीक है, कल मिलते है।

शमा से विवेक की कोई बहुत पुरानी दोस्ती नही थी लेकिन फिर शमा चाहती थी कि विवेक किसी भी वजह से यही पर रुक जाए। ऐसा नही था कि शमा इससे पहले और लड़कों से नही मिली थी या उसके दोस्तो में लड़के नही होते थे लेकिन शायद इस बार कुछ अलग-सा था। विवेक की सादगी और मासूमियत उसे उन सभी लड़को से अलग कर देती थी जिनको वो आज तक जानती थी और शायद यही वजह थी जो उसने आज खुद से विवेक को फोन किया।

अगले दिन शाम 5 बजे
विवेक हॉस्पिटल की कैंटीन बैठा हुआ था लेकिन शमा का कोई अता-पता न था। विवेक ने उसे कॉल करना ही ठीक समझा और शमा का मोबाइल नम्बर मिला दिया।

विवेक : हेलो शमा मैं हॉस्पिटल की कैंटीन तुम्हारा इंतजार कर रहा हूँ तुम कहाँ हो?
शमा : यार मैं एक ऑपरेशन में हूँ अभी बस थोड़ा समय और लगेगा। सॉरी यार तब तक तुम कुछ खा लो मैं जल्द ही आती हूँ।
इतना कहते ही शमा ने कॉल काट दिया ।

विवेक अकेला बैठा आस-पास बैठे लोगों को देख रहा था।
विवेक ने चाय पीने की सोच और चाय लेने के लिए काउंटर की तरफ चल दिया।
विवेक ने एक कप चाय ली और अपनी सीट की तरफ चल दिया लेकिन उसकी सीट पर तो पहले से ही कोई लड़की बैठी थी जिसका चेहरा उसे दिखाई नही दे रहा था विवेक दूसरी सीट की तरफ जाने लगा लेकिन जैसे ही उसने उस लड़की का चेहरा देखा तो उसके कदम बर्फ की तरह जम गए और वो चाहकर भी खुद को हिला नही पा रहा था। वो लड़की कोई और नही अनामिका ही थी जिसे विवेक पूरी दुनिया में ढूंढ रहा था। विवेक ने देखा कि अनामिका के गले मे पट्टी बंधी हुई है तो वो समझ गया कि अनामिका यहाँ पर इलाज कराने आई है लेकिन उसने बताया क्यों नही?
विवेक ने एक गिलास चाय और ली और सीधी उसी सीट की तरफ चल दिया। जैसे ही अनामिका ने विवेक को देखा तो न चाहते हुए भी उसकी आँखों मे आँसू आ गए और उसने अपना चेहरा नीचे कर लिया उसे विश्वास ही नही हो रहा था कि विवेक उसे ढूंढते-ढूंढते यहाँ तक आ गया। आज वो कितनी खुश थी ये खुद वो भी नही जानती थी क्योंकि जिनको खोने के डर से वो रातो को सो नही पाती थी और जिन लोगो को वो न चाहते हुए भी छोड़ आई थी वो एक बार फिर से उसके साथ थे। अनामिका मन ही मन अपने भगवान का शुक्रिया अदा कर रही थी क्योंकि अब उसके पास सब कुछ था दोस्त, परिवार, और सबसे बढ़कर उसकी आवाज जिसकी वजह से वो दुनिया से भागती थी आज वो भी उसके पास थी और इससे ज्यादा खुशी की बात उसके लिए कुछ और हो भी नही सकती थी। विवेक ने धीरे से चाय का गिलास अनामिका के तरफ बढ़ दिया। अनामिका अभी भी उस गिलास को देख रही थी फिर उसने विवेक की तरफ देखा और धीरे से कुछ बोलने की कोशिश की लेकिन उसकी आवाज विवेक तक न पहुँच पाई विवेक ने अनामिका को शांत रहने का इशारा किया और बोला हमारे पास बात करने के लिए बहुत समय है अगर तुम दोबारा से कहीं भाग न जाओ तो। अनामिका के चेहरे पर एक मुस्कान आ गई और अनामिका चाय पीने लगी।
विवेक को पता था कि अभी अनामिका के लिए बोलना काफी ज्यादा मुश्किल होगा इसलिए उसने बात करने पर ज्यादा जोर नही दिया जबकि उसके दिमाग में हज़ारों सवाल थे अनामिका से पूछने के लिए लेकिन उसने अभी
कुछ न पूछना ही बेहतर समझा और चाय पीने लगा तो उसने सामने से शमा को आते हुए देखा शमा ने दूर से ही हाथ हिलाया
विवेक भी उसको देखकर मुस्कुरा दिया
शमा : सॉरी विवेक आज आपरेशन काफी देर हो गई
विवेक : कोई बात नही। तुम्हारी देर की वजह से मेरा फायदा हो गया।
शमा : वो कैसे?
विवेक अनामिका की तरफ इशारा करते हुए कहता है
विवेक : इससे मिलो ये है अनामिका।
शमा : अरे इसे तो मैं अच्छे से जानती हूँ।
विवेक : वो कैसे?
शमा : इसका इलाज मैं ही तो कर रही हूँ।
विवेक ने अपना माथा पकड़ लिया और खुद पर ही गुस्सा होने लगा कि उसने शमा को पूरी कहानी तो सुना दी लेकिन एक बार भी अनामिका की तस्वीर नही दिखाई।
विवेक : शमा, ये वही लड़की है जिसे ढूंढने में इतनी दूर से अपना सब कुछ छोड़कर मुम्बई आया हूँ और अगर तुम देर से न आती तो शायद मैं इससे मिल भी नही पाता।

शमा : सॉरी विवेक। मुझे पता नही था और होता भी कैसे? न तो तुमने उस लड़की का नाम बताया था और न ही कोई फ़ोटो दिखाया था।
विवेक : हाँ शायद गलती मुझसे ही हो गई। चलो अब कोई बात नही। अनामिका मिल गई बस इतना ही काफी है।
तीनो बैठकर बाते करने लगे और विवेक, अनामिका की तबीयत के बारे में पूछने लगा शमा ने उसे बताया कि अनामिका की तबियत काफी बेहतर है और अब तो वो धीरे-धीरे बोलने भी लगी है लगभग एक हफ्ते में वो बिल्कुल ठीक हो जाएगी।
अब विवेक का रोज ही हॉस्पिटल आने लगा और उसकी शमा के साथ अनामिका की तबियत पर खूब लंबी बाते हुआ करती थी और धीरे-धीरे दोनों एक-दूसरे को जानने भी लग गए थे। विवेक ने घर पर फ़ोन करके बता दिया था कि अनामिका उसे मिल गई है और जल्द ही वो उसे अपने साथ ले आएगा। अरुण की तबियत में बस इस बात को सुनकर ही काफी सुधार आने लगा। विवेक ने अनामिका से भी काफी बाते की और अनामिका की भी पूरी बात सुनी तो अनामिका भी उसे गलत नही लगी। बस ये सब उसके स्वाभिमान की वजह से हुआ था जो कि उसके लिए सबसे ज्यादा जरूरी था क्योंकि वो दुनिया मे किसी की कमजोरी नही ताकत बनना चाहती थी।

दो हफ्ते बाद विवेक अनामिका को अपने साथ अपने शहर ले गया और घर पहुँचते ही उसने अपने भाई को गले से लगा लिया और बहुत रोने लगी। भाई ने उसे चुप कराया और अपने साथ उसके कमरे में ले गया और उससे पूरी कहानी सुनने लगा। अनामिका उसको सारी बाते धीरे-धीरे बताने लगा सब बातें सुनकर रंजन अपने आँसू रोक न पाया और अनामिका को लगे से लगा लिया।
शाम को सब लोग अनामिका की तबीयत जानने के लिए रंजन के घर पर इक्कठा हुए थे और वही सबके बीच रंजन ने अपना फैसला सुना दिया।
रंजन : मैं आप सबके सामने आज कुछ कहना चाहता हूँ
आज मैं अपनी बहन और अरुण की शादी तय कर दी है लेकिन होगी उस दिन जब अरुण और अनामिका आपने-अपने पैरों पर खड़े हो जाएंगे।
सभी उसकी बात पर बहुत खुश हुए और विवेक को लग रहा था जैसे उसने उसने कोई जंग जीत ली हो और उसका इनाम था उसकी दोस्ती।
अरुण और अनामिका दोनों की ही आंखों में आँसू थे और दोनों ही रंजन के गले से लिपट गए।
अब तीनो लोग फिर से कॉलेज जाने लगे लेकिन इस बार कुछ अलग था वो ये कि उनके बीच एक सुंदर सी आवाज थी और वो थी अनामिका।



------------------------समाप्त---------------------
 
Last edited:
Top