अन्तिम भाग (3)
आज अनामिका सबसे दूर अपने पीछे एक अधूरी कहानी छोड़कर चली गई जिसका अंजाम शायद उसके बिना कभी भी मुमकिन न हो। आज फिर वो अपने डर से हार गई और इसी लिए एक बार फिर से अनामिका मिलती हुई खुशियो से डरकर कही दूर जा रही थी पर शायद किस्मत को इस बार कुछ और ही मंजूर था।
अनामिका अपनी नई दुनिया के सफर पर पीछे कुछ बहुत प्यारे रिश्तों को छोड़कर चल दी थी। एक नए सफर की शुरुआत के लिए, वो रिश्ता जो शायद लोगो को पूरी जिंदगी में एक बार भी नसीब नही होता है लेकिन अनामिका ने वो छोड़ दिया। एक लम्बे थकान भरे सफर के बाद अनामिका आखिरकार मुम्बई पहुँच ही गई और जितनी खुश वो अपनी दोस्त से मिलकर थी उससे कही ज्यादा खुश उसकी दोस्त उससे मिलकर लग रही थी । अनामिका ने एक पूरा दिन आराम करने का सोचा लेकिन इतनी थकान के बाद भी उसके दिमाग से अरुण का ख्याल जा ही नही रहा था। आँखे बंद करते ही उसके सामने अरुण की ही तस्वीर आ जाती थी वो चाहकर भी कुछ नही कर पा रही थी उसका दिल और उसका दिमाग आपस मे जंग सी लड़ रहे थे और उस जंग में अनामिका खुद को असहाय महसूस कर रही थी। इसी लड़ाई के बीच न जाने कब उसकी आँखें लग गई और वो सपनों की दुनिया मे खो गई।
अरुण को कुछ भी समझ नही आ रहा था उसके ऊपर तो जैसे आसमान से कोई बिजली गिर पड़ी हो। उसने अनामिका के भाई से अनामिका के बारे में जानने की बहुत कोशिश की लेकिन भाई ने बहन की कसम में बंधकर कुछ भी नही बताया। अरुण की तबीयत दिन-ब-दिन खराब होती चली गई, उसने सबसे बातें करना बंद कर दिया। बस हमेशा ही न जाने किस सोच में लगा रहता था हर कोई उसकी चिंता करता था पर कोई भी उसके लिए कुछ नही कर पा रहा था। विवेक ने हर तरह से उसका दिल बहलाने की कोशिश की लेकिन कोई भी फायदा नही हुआ अरुण और ज्यादा शांत और गुमसुम रहने लगा। विवेक के पास अब अनामिका को ढूंढने के अतिरिक्त कोई भी रास्ता नही बचा था। उसने सोच लिया था चाहे जो कुछ भी हो जाये वो अनामिका को ढूंढ कर ही रहेगा तभी विवेक को चिराग का ख्याल आया जो कि रेलवे में काम करता था और उसके जरिये वो अनामिका की टिकट निकलवा सकता था और अनामिका तक पहुँच सकता था।
अगले दिन सुबह अनामिका को याद आता है कि उसके भाई ने उसे एक चिठ्ठी दी थी और उसे किसी दोस्त को देने के लिए कहा था लेकिन उसका नाम क्या था उसे वो याद नही आ रहा था। वो सोचने लगती है आखिर क्या था उसका नाम...? हम्म्म्म डॉ अभिषेक, हाँ यही नाम था।अनामिका ने वो चिठ्ठी उठाई और आज ही उसको डॉ अभिषेक को देने का निश्चय किया। अनामिका ने ऑटो किया और भाई के बताए पते पर पहुँच गई जो कि एक बहुत बड़ा अस्पताल था अनामिका ने रिसेप्शन पर जाकर डॉ अभिषेक के नाम के पत्र को दिखाया और इशारों में ही डॉ साहब के बारे में पूछा तो वहाँ पर बैठी अधेड़ उम्र की महिला ने डॉ साहब को कॉल मिलाया और अनामिका के पत्र के बारे में बताया तो डॉ साहब ने उसको इंतजार करने को कहा। अनामिका पास में रखे सोफे पर जाकर बैठ गई और अस्पताल की सुंदरता और साफ-सफाई को ध्यान से देख रही थी वो सोच रही थी कि ये अस्पताल किसी होटल से कम नही लग रहा है इसमें इलाज कराने में तो बहुत ज्यादा खर्च आता होगा इसी सब के बीच मे उस महिला ने अनामिका नाम की आवाज लगाई तो अनामिका अपने ख्यालो से बाहर आई उस महिला ने अनामिका को एक केबिन की ओर इशारा करते हुए अन्दर जाने को कहा अनामिका उस केबिन की तरफ चल दी। केविन को हल्का खोलकर देखा तो अंदर बैठे डॉ अभिषेक ने कहा "आओ अनामिका, मैं तुम्हारा काफी दिनों से इंतजार कर रहा था आओ बैठो" अनामिका अभी भी उसको देख ही रही थी उसे लगा जैसे उसका भाई ही उसके सामने बैठा हुआ है क्योंकि उनके भाई और अभिषेक की उम्र और कद काठी एक जैसी ही थी। अनामिका डॉ साहब के सामने रखी कुर्सी पर आकर बैठ गई और रंजन का दिया हुआ पत्र अभिषेक को दे दिया अभिषेक ने पत्र को बड़े ध्यान से पढ़ा और पत्र पढ़ते हुए बोला
अभिषेक : अनामिका, तुम मुझे नही जानती हो लेकिन मैं तुम्हे अच्छे से जनता हूँ। मैं और रंजन बहुत ही अच्छे दोस्त थे। मेरे पापा का ट्रांसफर यहाँ पर हो गया था इसलिए हमें वहाँ से यहाँ पर आना पड़ गया उस समय तुम बहुत छोटी थी इसलिए तुम मुझे नही जानती हो लेकिन अब तुम्हे किसी भी बात के लिए परेशान होने की जरूरत नही है हमे आज ही तुम्हारे कुछ टेस्ट करने होंगे उसके बाद ही आगे का इलाज करेंगे।
अभिषेक की बाते सुनकर अनामिका के चहरे की सारी हवाइयां उड़ गई उसे तो पहले ही ये अस्पताल बहुत महँगा लग रहा था और उसका इलाज वो भी यहाँ पर? नही कभी नही। अनामिका ने तुरंत ही न में सर हिला दिया।
अभिषेक ने मुस्कुराते हुए कहा तुम्हें परेशान होने की कोई जरूरत नही है तुम्हारे इलाज का सारा खर्च तुम्हारे भाई ने पहले ही दे दिया है इसलिए तुम्हे ज्यादा सोचने की जरूरत नही है बस इलाज पर ध्यान दो।
अनामिका अभी भी केवल अभिषेक का चेहरा ही देख रही थी और कुछ भी बोलने की कोशिश नही कर रही थी जैसे उसे उसके सारे सवालों के जबाब एक ही बार मे मिल गए हो।
अभिषेक ने बाहर से चपरासी को बुलाया और एक पेपर पर कुछ टेस्ट के नाम लिखकर कहा
अभिषेक : मैडम को अपने साथ लैब में ले जाओ इनके ये टेस्ट करवाने है और इनकी रिपोर्ट मुझे आज शाम तक ही चाहिए।
चपरासी ने बस हाँ में सर हिला दिया और अनामिका भी उसके साथ चल दी।
अभिषेक अभी भी उन दोनों को जाते हुए देख रहा था और सोच रहा था कि अभी जैसे कल की ही बात हो जब वो अनामिका को अपनी गोद मे लिए पूरे शहर में घूमता था और आज देखो कितनी बड़ी हो गई है।
विवेक ने चिराग की मदद से आखिरकार पता लगा ही लिया कि अनामिका मुम्बई गई है और अब विवेक ने मुम्बई जाने का फैसला कर लिया और अगले दिन की गाड़ी का टिकट ले लिया। विवेक बस अरुण को फिर से खुश देखना चाहता था और वो जनता था कि इसका केवल एक ही तरीका है और वो है अनामिका।
अगले दिन विवेक ट्रैन में बैठा यही सोच रहा था कि मुम्बई जा तो रहा हूँ लेकिन क्या मैं अनामिका को ढूंढ पाऊँगा? क्या अनामिका उसे मिल पाएगी? इन सब सवालों के बीच उलझा हुआ विवेक ट्रैन को स्टेशन को छोड़ते हुए देख रहा था और ऊपरवाले से यही दुआ मांग रहा था कि काश ! अनामिका का कोई पता चल जाये और इन्ही सब बातों के बीच उसे कब नींद आ गई उसे पता भी नही चला।
लगभग एक घंटे बाद जब उसकी आंखें खुली तो उसने सामने वाली सीट पर एक उसी की हम उम्र या शायद उससे कुछ बड़ी, एक साधारण और परिपक्व दिख रही लड़की को बैठा पाया। वो तुरंत अपनी नींद से बाहर आया और खुद को थोड़ा ठीक-ठाक करते हुए हल्की-सी मुस्कुराहट के साथ हेलो बोला जिसका जबाब उस लड़की ने मुस्कान के साथ हेलो में ही दे दिया।
विवेक चेहरा साफ करने बाथरूम जाता है और फिर ट्रेन के गेट पर खड़ा होकर बाहर की तरफ देखने लग जाता है
वो लड़की उसे गेट पर खड़ा हुआ देख रही थी और सोच रही थी "शायद ये लड़का बहुत परेशान है। लगता है शायद कोई जानने वाला बीमार होगा इसका"। शमा ने अभी अभी अपनी मेडिकल की पढ़ाई पूरी की थी और एक नई डॉक्टर इससे ज्यादा और सोच भी क्या सकती है?
विवेक वापस आकर अपनी सीट पर बैठ गया। सफर बहुत लंबा था लेकिन करने को कुछ था ही नही। विवेक ने आस पास देखा तो उसे उस लड़की के पास एक अखबार रखा हुआ दिखाई दिया।
विवेक : क्या मैं वो अखबार पढ़ सकता हूँ?
शमा विवेक की तरफ देखती है उसे लगा जैसे उसकी तो कोई मुराद पूरी हो गई हो क्योंकि वो तो बातों की शैकीन है लेकिन पिछले 2 घंटे से उसने एक शब्द भी नही बोला था।
शमा : हाँ बिल्कुल
शमा ने अखबार विवेक की ओर बढ़ाते हुए कहा।
शमा : आपका नाम क्या है?
विवेक : विवेक, और आपका?
शमा : शमा, आप कहाँ जा रहे है?
विवेक : जी, मै मुम्बई जा रहा हूँ।
शमा : फिर तो बहुत अच्छा है, मैं भी मुम्बई जा रही हूँ चलो फिर तो सफर कट जाएगा अब तो।
विवेक : हम्म्म्म
शमा कुछ हिचकिचाती हुई पूछती हुई पूछती है।
शमा : अगर आप बुरा न माने तो आपसे एक बात पूंछ सकती हूँ?
विवेक : हाँ पूछिये
शमा : मैंने देखा कि आप गेट पर खड़े कुछ सोच रहे थे और परेशान भी लग रहे थे अगर आप चाहे तो अपनी परेशानी मुझे बता सकते है शायद में आपकी कोई मदद कर सकूँ और अगर ऐसा न भी हुआ तो कम से कम मन की बात बताने से आपका मन हल्का तो जरूर हो ही जायेगा और हम दोनों का सफर भी कट जाएगा।
विवेक अभी भी शमा का चेहरा ही देख रहा था और सोच रहा था कि कितनी लम्बी बात इस लड़की ने केवल एक साँस में ही बोल दी? कितना बोलती है ये पर चलो कोई नही इस बहाने सफर कट जाएगा।
विवेक : ह्म्म्म। अपने सही पहचान
शमा : हम्म मुझे पता है पक्का आपका कोई जानकार बीमार होगा इसलिए ही आप मुम्बई जा रहे हों।
विवेक हँस कर बोला
विवेक : नही ऐसा नही है।
शमा : तो कैसा है?
विवेक : मेरी एक दोस्त खो गई है या शायद गुस्सा होकर चली गई है और मुझे पता चला है कि वो मुम्बई गई है तो बस अब उसी को ढूंढने मुम्बई जा रहा हूँ।
शमा मुस्कुराते हुए बोली
शमा : अच्छा तो प्यार का मामला है।
विवेक हँसते हुए बोला
विवेक : हाँ प्यार का तो मामला है लेकिन मेरे नही, मेरे दोस्त अरुण के प्यार का। मेरा दोस्त उससे बहुत प्यार करता है और अब उसके चले जाने से बहुत ही ज्यादा परेशान और बीमार रहता है और उसे तो ये भी नही पता कि मैं मुंबई जा रहा हूँ अनामिका को ढूंढने।
शमा : अच्छा तो ये बात है।
विवेक ने उसे शुरू से पूरी कहानी शुरू की और देखते ही देखते समय कब निकल गया पता ही नही चला। रात के 9 बज गए थे और विवेक की कहानी भी खत्म हो गई थी
शमा अभी भी विवेक को देख ही रही थी और उसकी सुनाई कहानी में ही कहीं खोई हुई थी तभी ट्रेन एक स्टेशन पर रुकी गई। विवेक स्टेशन पर उतरा और 2 गिलास चाय ले आया और एक गिलास शमा को देता है शमा गिलास को पकड़ते हुए
शमा : विवेक तुम सच मे बहुत अच्छा काम कर रहे हो। तुम जैसा दोस्त केवल किस्मत वालो को ही मिलता है।
विवेक हँसते हुए
विवेक : नही ऐसा नही है, मैं तो बस इन दोनों के बीच की गलतफहमियों को दूर करना चाहता हूँ और इसमें मेरा ही फायदा है किसी और का नही।
शमा : कैसे?
विवेक : मुझे भी तो दो अच्छे दोस्त वापस मिल जाएंगे।
शमा : ये तो तुमने बिल्कुल सच बात कही।
और दोनों चाय पीने लगे
विवेक : तुमने मेरे बारे में तो सब कुछ जान लिया लेकिन अपने बारे में कुछ नहीं बताया?
शमा : अरे मेरे बारे में जानने को ऐसा कुछ नही है बस मेडिकल की स्टूडेंट हूँ अभी-अभी अपनी पढ़ाई पूरी की है और मुम्बई में, एक अस्पताल में काम करने जा रही हूँ सफर दोस्त बनाना बहुत पसंद है। बाते करने में मेरा कोई जबाब ही नही है ये तो तुम जान ही गए होंगे।
विवेक : हाँ ये तो तुमने बिल्कुल सही कहा।
और दोनों हँसने लगे
ट्रैन सुबह 6 बजे मुम्बई पहुँचनी थी और अभी पूरी रात बची थी लेकिन अब शमा बिल्कुल खामोश हो गई था न जाने किस सोच में खो गई थी। कभी खिड़की से बाहर देख रही थी तो कभी विवेक को देख रही थी लेकिन विवेक इन सबसे अनजान बस यही सोच रहा था कि मुम्बई मै जाकर अनामिका को ढूंढेगा कहाँ पर? तभी शमा को याद आया कि विवेक का मोबाइल नंबर तो ले लिया जाए न जाने ऐसा दोस्त फिर कब मिले
शमा : विवेक, तुम्हारा मोबाइल नंबर तो दो यार कभी किसी काम के लिए जरूरत पड़ी तो कोई तो होना चाहिए न अपना।
विवेक : मुंबई आ रहा था तो बड़ी मुश्किल से ये मोबाइल खरीदा है पर शायद इससे मैं तुम्हे शायद ही कॉल कर पाऊंगा क्योंकि इसमें पैसे नही है और वैसे भी मैं तुम्हारी क्या मदद कर पाऊंगा? मैं तो खुद यह पर नया हूँ फिर तुम नोट कर लो शायद कोई काम आ जाये 904XXXXX1 ।
शमा : अच्छा मैं तुमको मिस कॉल कर देती हूँ मेरा नंबर सेव कर लेना और अगर तुमने मेरे कॉल टाइम पर नही उठाया न, तो याद रखना फोन से निकल कर ही तुम्हे मारूंगी।
और दोनों ही एक साथ हँसने लगे और जल्द ही विवेक सो सो गया। शमा अभी भी अपनी चादर को ओढ़कर विवेक को देख रही थी और इसी सब के बीच उसे भी कब नींद आ गई पता ही नही चला और सुबह विवेक ने ही शमा को जगाया और फिर दोनों अपने-अपने रास्ते पर चल दिये। शमा को तो अपना रास्ता पता था लेकिन विवेक को कुछ भी नही पता था कि कहाँ जाना था उसने अपने एक दोस्त का पता निकाला और ऑटो स्टैंड की तरफ चल दिया।
एक हफ्ता बीत गया था लेकिन अनामिका का कोई भी पता नही चला था विवेक भी धीरे-धीरे अपनी हिम्मत हारने लगा था और उसे भी अब यकीन हो चला था कि शायद वो अनामिका को गलत जगह ढूंढने आ गया है। शाम को उदास बैठा विवेक यही सब सोच रहा था कि उसके मोबाइल पर एक कॉल आया उसने देखा तो शमा का नाम स्क्रीन पर आ रहा था विवेक ने कॉल रिसीव किया
विवेक : हेलो
शमा : हेलो विवेक।
विवेक : हम्म
शमा : पहचाना मुझे? मैं शमा बोल रही हूँ।
विवेक : हम्म पहचान लिया और शमा कैसी हो तुम?
शमा : मैं तो बढ़िया हूँ, तुम अपनी बताओ तुम्हारी दोस्त मिली या नही?
विवेक : नही यार। मुझे लग रहा है मैं उसे गलत जगह ढूंढ रहा हूँ। अब वापस जाने की सोच रहा हूँ।
शमा : अरे ऐसे कैसे . तुम मुझसे मिले बिना वापस नही जा सकते हो।
विवेक : नही यार अब यहां रुकने का कोई फायदा नही है।
शमा : तो मैं कौन सा तुम्हे रोक रही हूँ बस मुझसे एक बार मिल लो फिर चले जाना।
विवेक : अच्छा बताओ कहाँ मिलना है।
शमा : कल शाम 5 बजे को माँ सरस्वती हॉस्पिटल में आ जाना मैं वही जॉब करती हूँ।
विवेक : ठीक है, कल मिलते है।
शमा से विवेक की कोई बहुत पुरानी दोस्ती नही थी लेकिन फिर शमा चाहती थी कि विवेक किसी भी वजह से यही पर रुक जाए। ऐसा नही था कि शमा इससे पहले और लड़कों से नही मिली थी या उसके दोस्तो में लड़के नही होते थे लेकिन शायद इस बार कुछ अलग-सा था। विवेक की सादगी और मासूमियत उसे उन सभी लड़को से अलग कर देती थी जिनको वो आज तक जानती थी और शायद यही वजह थी जो उसने आज खुद से विवेक को फोन किया।
अगले दिन शाम 5 बजे
विवेक हॉस्पिटल की कैंटीन बैठा हुआ था लेकिन शमा का कोई अता-पता न था। विवेक ने उसे कॉल करना ही ठीक समझा और शमा का मोबाइल नम्बर मिला दिया।
विवेक : हेलो शमा मैं हॉस्पिटल की कैंटीन तुम्हारा इंतजार कर रहा हूँ तुम कहाँ हो?
शमा : यार मैं एक ऑपरेशन में हूँ अभी बस थोड़ा समय और लगेगा। सॉरी यार तब तक तुम कुछ खा लो मैं जल्द ही आती हूँ।
इतना कहते ही शमा ने कॉल काट दिया ।
विवेक अकेला बैठा आस-पास बैठे लोगों को देख रहा था।
विवेक ने चाय पीने की सोच और चाय लेने के लिए काउंटर की तरफ चल दिया।
विवेक ने एक कप चाय ली और अपनी सीट की तरफ चल दिया लेकिन उसकी सीट पर तो पहले से ही कोई लड़की बैठी थी जिसका चेहरा उसे दिखाई नही दे रहा था विवेक दूसरी सीट की तरफ जाने लगा लेकिन जैसे ही उसने उस लड़की का चेहरा देखा तो उसके कदम बर्फ की तरह जम गए और वो चाहकर भी खुद को हिला नही पा रहा था। वो लड़की कोई और नही अनामिका ही थी जिसे विवेक पूरी दुनिया में ढूंढ रहा था। विवेक ने देखा कि अनामिका के गले मे पट्टी बंधी हुई है तो वो समझ गया कि अनामिका यहाँ पर इलाज कराने आई है लेकिन उसने बताया क्यों नही?
विवेक ने एक गिलास चाय और ली और सीधी उसी सीट की तरफ चल दिया। जैसे ही अनामिका ने विवेक को देखा तो न चाहते हुए भी उसकी आँखों मे आँसू आ गए और उसने अपना चेहरा नीचे कर लिया उसे विश्वास ही नही हो रहा था कि विवेक उसे ढूंढते-ढूंढते यहाँ तक आ गया। आज वो कितनी खुश थी ये खुद वो भी नही जानती थी क्योंकि जिनको खोने के डर से वो रातो को सो नही पाती थी और जिन लोगो को वो न चाहते हुए भी छोड़ आई थी वो एक बार फिर से उसके साथ थे। अनामिका मन ही मन अपने भगवान का शुक्रिया अदा कर रही थी क्योंकि अब उसके पास सब कुछ था दोस्त, परिवार, और सबसे बढ़कर उसकी आवाज जिसकी वजह से वो दुनिया से भागती थी आज वो भी उसके पास थी और इससे ज्यादा खुशी की बात उसके लिए कुछ और हो भी नही सकती थी। विवेक ने धीरे से चाय का गिलास अनामिका के तरफ बढ़ दिया। अनामिका अभी भी उस गिलास को देख रही थी फिर उसने विवेक की तरफ देखा और धीरे से कुछ बोलने की कोशिश की लेकिन उसकी आवाज विवेक तक न पहुँच पाई विवेक ने अनामिका को शांत रहने का इशारा किया और बोला हमारे पास बात करने के लिए बहुत समय है अगर तुम दोबारा से कहीं भाग न जाओ तो। अनामिका के चेहरे पर एक मुस्कान आ गई और अनामिका चाय पीने लगी।
विवेक को पता था कि अभी अनामिका के लिए बोलना काफी ज्यादा मुश्किल होगा इसलिए उसने बात करने पर ज्यादा जोर नही दिया जबकि उसके दिमाग में हज़ारों सवाल थे अनामिका से पूछने के लिए लेकिन उसने अभी
कुछ न पूछना ही बेहतर समझा और चाय पीने लगा तो उसने सामने से शमा को आते हुए देखा शमा ने दूर से ही हाथ हिलाया
विवेक भी उसको देखकर मुस्कुरा दिया
शमा : सॉरी विवेक आज आपरेशन काफी देर हो गई
विवेक : कोई बात नही। तुम्हारी देर की वजह से मेरा फायदा हो गया।
शमा : वो कैसे?
विवेक अनामिका की तरफ इशारा करते हुए कहता है
विवेक : इससे मिलो ये है अनामिका।
शमा : अरे इसे तो मैं अच्छे से जानती हूँ।
विवेक : वो कैसे?
शमा : इसका इलाज मैं ही तो कर रही हूँ।
विवेक ने अपना माथा पकड़ लिया और खुद पर ही गुस्सा होने लगा कि उसने शमा को पूरी कहानी तो सुना दी लेकिन एक बार भी अनामिका की तस्वीर नही दिखाई।
विवेक : शमा, ये वही लड़की है जिसे ढूंढने में इतनी दूर से अपना सब कुछ छोड़कर मुम्बई आया हूँ और अगर तुम देर से न आती तो शायद मैं इससे मिल भी नही पाता।
शमा : सॉरी विवेक। मुझे पता नही था और होता भी कैसे? न तो तुमने उस लड़की का नाम बताया था और न ही कोई फ़ोटो दिखाया था।
विवेक : हाँ शायद गलती मुझसे ही हो गई। चलो अब कोई बात नही। अनामिका मिल गई बस इतना ही काफी है।
तीनो बैठकर बाते करने लगे और विवेक, अनामिका की तबीयत के बारे में पूछने लगा शमा ने उसे बताया कि अनामिका की तबियत काफी बेहतर है और अब तो वो धीरे-धीरे बोलने भी लगी है लगभग एक हफ्ते में वो बिल्कुल ठीक हो जाएगी।
अब विवेक का रोज ही हॉस्पिटल आने लगा और उसकी शमा के साथ अनामिका की तबियत पर खूब लंबी बाते हुआ करती थी और धीरे-धीरे दोनों एक-दूसरे को जानने भी लग गए थे। विवेक ने घर पर फ़ोन करके बता दिया था कि अनामिका उसे मिल गई है और जल्द ही वो उसे अपने साथ ले आएगा। अरुण की तबियत में बस इस बात को सुनकर ही काफी सुधार आने लगा। विवेक ने अनामिका से भी काफी बाते की और अनामिका की भी पूरी बात सुनी तो अनामिका भी उसे गलत नही लगी। बस ये सब उसके स्वाभिमान की वजह से हुआ था जो कि उसके लिए सबसे ज्यादा जरूरी था क्योंकि वो दुनिया मे किसी की कमजोरी नही ताकत बनना चाहती थी।
दो हफ्ते बाद विवेक अनामिका को अपने साथ अपने शहर ले गया और घर पहुँचते ही उसने अपने भाई को गले से लगा लिया और बहुत रोने लगी। भाई ने उसे चुप कराया और अपने साथ उसके कमरे में ले गया और उससे पूरी कहानी सुनने लगा। अनामिका उसको सारी बाते धीरे-धीरे बताने लगा सब बातें सुनकर रंजन अपने आँसू रोक न पाया और अनामिका को लगे से लगा लिया।
शाम को सब लोग अनामिका की तबीयत जानने के लिए रंजन के घर पर इक्कठा हुए थे और वही सबके बीच रंजन ने अपना फैसला सुना दिया।
रंजन : मैं आप सबके सामने आज कुछ कहना चाहता हूँ
आज मैं अपनी बहन और अरुण की शादी तय कर दी है लेकिन होगी उस दिन जब अरुण और अनामिका आपने-अपने पैरों पर खड़े हो जाएंगे।
सभी उसकी बात पर बहुत खुश हुए और विवेक को लग रहा था जैसे उसने उसने कोई जंग जीत ली हो और उसका इनाम था उसकी दोस्ती।
अरुण और अनामिका दोनों की ही आंखों में आँसू थे और दोनों ही रंजन के गले से लिपट गए।
अब तीनो लोग फिर से कॉलेज जाने लगे लेकिन इस बार कुछ अलग था वो ये कि उनके बीच एक सुंदर सी आवाज थी और वो थी अनामिका।
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