एक दम भागता दौड़ता हुआ अपडेट दिया है आपने मित्र !रूपलाल और उसकी बीवी के सर से बहुत बड़ी जिम्मेदारी उतरने वाली थी और ऐसा मनोहर लाल के साथ भी था अब उन्हें भी आने वाले समय को लेकर बेहद उत्सुकता दिखाई देती थी वह अपने मन में ही बहू अपने नाती पोतो के साथ अपना जीवन व्यतीत करता हुआ महसूस होने लगा था बहुत जल्द से जल्द अपने बेटे की शादी करा देना चाहते थे,, ताकि जल्द से जल्द अपने पोते पोती का मुंह देख सके,, मनोहर लाल का यही सबसे बड़ा सपना था कि उनका भी परिवार हरा भरा हो जिसमें उनकी बीवी भी शामिल थी लेकिन बदकिस्मती से उनकी बीवी अब इस दुनिया में नहीं थी लेकिन फिर भी जैसे तैसे करके हिम्मत नहीं हर और अपने बेटे की परवरिश करके अब उनकी शादी की तैयारी करने में लगे थे,,,,,, बीवी के न होने का दुख उन्हें अंदर ही अंदर कचोटता था अगर उनकी बीवी की आखिरी निशानी उनका बेटा राकेश ना होता तो शायद वह कब से अपनी जिंदगी को खत्म कर लेते लेकिन अपने बेटे के ही सहारे वह इतनी उम्र गुजार चुके थे,,,।
और यही धैर्य उनके जीवन में अब नए रंग भरने वाला था अब वह भी बहू पोते पोती वाले होने वाले थे,,, उन्हें तो अभी से ही पूरे घर में उनके पोती पोते खेलते हुए नजर आ रहे थे,,, जो उन्हें दादा दादा कहकर उनके कंधों पर चढ़ जा रहे थे इस तरह की कल्पना करके मनोहर लाल मन ही मन बहुत खुश हो रहे थे उनके चेहरे पर प्रशन्नता के भाव नजर आ रहे थे,,। वह जल्द से जल्द पंडित जी से बात कर लेना चाहते थे ताकि सबसे पहले वाली शादी की तारीख नक्की की जा सके,,, और वह रूपलाल से पूछे बिना ही पंडित जी से मिलकर शादी की तारीख नक्की कर लिए,,,। इस बारे में उन्होंने रूप लाल को या उनकी बीवी को बिल्कुल भी खबर नहीं कीए,, क्योंकि उन्हें पूरा विश्वास था कि रूप लाल और उनकी बीवी उनके द्वारा तय की गई तारीख पर बिल्कुल भी ऐतराज नहीं जताएंगे,,,।
इसलिए तारीख नक्की कर लेने के बाद उन्होंने अपने बेटे से भी नहीं बताया कि पंडित जी को दिखाकर शादी की तारीख नक्की कर ली गई है वह फिर से अच्छी सी मिठाई बनवा कर , उसे अच्छे से पैक करवा कर गाड़ी में बैठ गई और ड्राइवर को रूपलाल के घर चलने के लिए कह दिए,,, मनोहर लाल की खुशी देखकर गाड़ी चलाते हुए उनका ड्राइवर बोला,,।
मलिक इस तरह से खुश मैं आपको पहले कभी नहीं देखा था मुझे बहुत खुशी हुई आपको इस तरह से खुश देखकर,,,।
सच कहूं तो मैं भी जिंदगी में इतना खुश कभी नहीं हुआ जब तुम्हारी मालकिन जिंदा थी तब की बात कुछ और थी लेकिन उनके देहांत के बाद मेरे चेहरे पर से हंसी जैसे एकदम से गायब हो गई लेकिन अब ऐसा लग रहा है कि फिर से सारी खुशियां मेरी झोली में आने वाली है,,,।
बात तो सही है मालिक अब आप भी ससुर बन जाएंगे घर के आंगन में पोते पोती खेलेंगे,,, इस उम्र में भला इससे ज्यादा खुशी और क्या होगी,,,।
सच कह रहे हो तुम अपनी अपनी उम्र का सुख भी अलग-अलग होता है इस उम्र में तो यही सुख सबसे बड़ा है जिसे मैं जल्द से जल्द भोगना चाहता हूं,,,, और हां शादी में तुम्हारी जिम्मेदारी सबसे ज्यादा रहेगी खास खास मेहमान को ले आना ले जाना तुम्हारे जिम्मे रहेगा,,,।
आप बिल्कुल भी चिंता ना करें मालिक मैं अपना फर्ज अच्छे से निभाऊंगा,,,।
और हां पूरे परिवार सहित आना उस दिन कोई बहाना नहीं चलेगा,,,।
अगर आप नहीं रहते तो भी मैं पूरा परिवार के साथ ही आता इस दिन की खुशी में मैं अपने पूरे परिवार को शामिल करना चाहता हूं,,,।
बहुत अच्छे,,, तभी तो तुम इतने साल से मेरे ड्राइवर हो तुम पर मैं ज्यादा भरोसा करता हूं,,,।(आगे झुक कर ड्राइवर के कंधे पर हाथ रखते हुए मनोहर लाल बोल और उनके इस व्यवहार से उनका ड्राइवर एकदम गदगद हो गया,, क्योंकि उनका ड्राइवर जानता था कि मलिक हमेशा उसे अपने परिवार का ही सदस्य समझ कर रखते हैं और वह भी अपना फर्ज पूरी जिम्मेदारी से निभाते आ रहा था इसलिए वह जानता था सेठ मनोहर लाल की खुशी और ना खुशी के बारे में,,,, देखते ही देखते रूपलाल का घर आ गया और उनके घर के गेट के सामने गाड़ी एकदम से खड़ी हो गई,,,, ड्राइवर नीचे उतरकर गाड़ी का दरवाजा खोलना है इससे पहले खुद ही मनोहर लाल अपने हाथ से ही गाड़ी का दरवाजा खोलकर गाड़ी से बाहर निकल गए,,,।
हाथ में अपनी ही दुकान का सबसे महंगा और स्वादिष्ट मिठाई लेकर वहां अपने हाथ से ही गेट खोलकर अंदर प्रवेश करने लगे,,, दरवाजे पर पहुंचकर बेल बजाने लगे,,, दोपहर का समय था,, रूपलाल घर पर नहीं थे इस समय रूपलाल की बेटी और उनकी बीवी घर पर थी और उनकी बीवी अपने कमरे में आराम कर रही थी इसलिए दरवाजा खोलने के लिए आरती को ही अपने कमरे से बाहर आना पड़ा उन्हें नहीं मालूम था कि दरवाजे पर उसके होने वाले ससुर खड़े हैं,,, इसलिए वह कोई और होगा इसलिए लापरवाही दिखाते हुए दुपट्टा भी अपने कंधे पर नहीं रखी और उसी तरह से ही दरवाजा खोलने चली गई,,,।
रुक रुक कर दरवाजे की घंटी बज रही थी जिस तरह से घंटी बज रही थी आरती को बहुत गुस्सा आ रहा था क्योंकि उसे भी नींद आ रही थी और वह भी सोने की तैयारी कर रही थी मन तो कर रहा था कि दरवाजा खोले बिना ही उसे भगा दे लेकिन ऐसा वह नहीं कर पाई क्योंकि उसे लगा कि उसके पापा भी हो सकते हैं या कोई और होगा जो काम के सिलसिले से आया होगा इसलिए वह बेमन से दरवाजा खोली और जैसे ही सामने नजर उठा कर देखी उसके होश उड़ गए क्योंकि सामने उसके ससुर मनोहर लाल खड़े थे और वह जिस अवस्था में थी ऐसी अवस्था में उसे अपने ससुर के सामने नहीं आना था,, क्योंकि छाती पर दुपट्टा नहीं था,,,।
मनोहर लाल को भी नहीं लगा था कि दरवाजा उनकी होने वाली बहू खुलेगी और जैसे ही दरवाजा खुला सेठ मनोहर लाल की नजर सामने खड़ी आरती पर गई आरती पर क्या गई सीधे-सीधे उनकी नजर अपनी होने वाली बहू की छातियो पर चली गई जो की,, दुपट्टा ना होने की वजह से दोनों गोलाईयां,, एकदम साफ उभर कर दिखाई दे रही थी सेठ मनोहर लाल भी अनजाने में ही अपनी बहू की छातियो की तरफ देखने लग गए थे,,, इसलिए जल्दी ही वह अपनी नजर को दूसरी तरफ घुमा लिए,,, और उनकी होने वाली बहू तुरंत मौके की नजाकत को समझते हुए झुक कर उनके पैर छूकर आशीर्वाद लेने लगी और उन्हें आशीर्वाद देते हुए सेठ मनोहर लाल बोले,,,।
जीती रहो बेटी,,,(सर पर हाथ रखकर आशीर्वाद देते हुए आगे बोल) लेकिन सर पर दुपट्टा ले लिया करो इस तरह से बिना दुपट्टे के संस्कारी लड़कियां किसी के सामने नहीं आती,,,।
माफी चाहती हूं बाबूजी,,, जल्दी-जल्दी में दुपट्टा लेना भूल गई थी,,,।(आरती एकदम से शरमाते हुए बोली)
चलो कोई बात नहीं आइंदा ध्यान देना,,, तुम्हारे पिताजी कहां है,,,?(घर में प्रवेश करते हुए मनोहर लाल बोले)
वह तो कारखाने गए हैं मम्मी के घर में आप बैठी है मैं उन्हें बुलाती हूं और चाय पानी का बंदोबस्त करती हूं,,,,।
ठीक है,,, चाय में लेकिन शक्कर कम डालना चलो इसी बहाने तुम्हारे हाथ की चाय भी पी लूंगा और देखो तो सही की हमारी बहू चाय कैसी बनाती है,,,।
जी बाबूजी आप बैठीए,,,,(इतना कहकर आरती अपनी मां के कमरे की तरफ जाने लगी और सेठ मनोहर लाल सोफे पर बैठते हुए एक नजर अपनी जाती हुई बहू पर डाल दिए लेकिन इस बार भी उनसे गलती हो गई और उनकी नजर सीधे अपनी बहू के गोलाकार नितंबों पर चली गई जो की सीढ़ियां चलते समय कुछ ज्यादा ही बाहर निकली हुई नजर आ रही थी कुछ सेकेंड तक सेठ मनोहर लाल अपनी नजर को अपनी होने वाली बहू की गोलाकार नितंबों से हटा नहीं पाए,,, और फिर जैसे ही उन्हें एहसास हुआ तुरंत अपनी नजर को घुमा दिए और अपने आप को ही कोसने लगे,,,।
धत्,,,, यह क्या हो रहा है मुझे,,,,छी,,,, ऐसा तो पहले मुझे कभी नहीं हुआ था यह बार-बार मेरी नजर इधर क्यों जा रही है,,,,(अपने आप को ही कोसते हुए अपने आप को ही दिखाते हुए सेठ मनोहर लाल अपने आप से बात करते हुए बोले,,,,,।
और थोड़ी ही देर बाद सीढीओ पर से मुस्कुराते हुए रूपलाल की बीवी नीचे की तरफ आने लगी ,,शेठ मनोहर लाल रूपलाल की बीवी की तरफ देखकर मुस्कुराने लगे,,, और हाथ जोड़कर खड़े होते हुए बोले ,,,।
नमस्ते भाभी जी,,,,।
अरे रहने दीजिए भाई साहब आप तो हमें शर्मिंदा कर रहे हैं वैसे भी हम लड़की वाले हैं हाथ हमें जोड़ना चाहिए,,,।
लड़की वाली बाद में पहले आप हमारे जिगरी दोस्त रूपलाल की बीवी हैं इस नाते से आप हमारी भाभी हैं पहले हम दोनों में भाभी और देवर का रिश्ता है,,,,।
बात बनाना कोई आपसे सीखे,,,, आप बैठीए,,,,,।
ठीक है,,(इतना कह कर शेठ मनोहर लाल अपनी जगह पर बैठ गए,,, और ठीक उनके सामने रूप लड़की बीवी मुस्कुरा कर बैठते हुए बोली,,,)
इतनी दोपहर को कोई खास वजह थी क्या,,,?
क्यों भाभी जी आपको मेरा यहां पर आना ठीक नहीं लगा क्या,,,?
अरे नहीं भाई साहब आप तो कुछ और समझ रहे हैं मेरा मतलब यह नहीं था और वैसे भी अब यह आपका घर है,,, जब मर्जी करे तब आ सकते हैं जा सकते हैं,,,,।
वह तो है भाभी जी लेकिन यहां आने का मेरा एक खास वजह था,,,,, मैंने,,,,(इतना कहना था कि मनोहर लाल की नजर फिर से अपनी बहू पर पड़ी जो कि हाथ में चाय का ट्राय लेकर आ रही थी और आरती को देखते ही से एक मनोहर लाल मुस्कुराते हुए बोले,,,) लो बहु भी चाय बना कर ले आई,,, अब चाय पीते पीते बात करते हैं,,,।
इतने में मुस्कुराते हुए आरती चाय का ट्रे टेबल पर रखकर एक कप अपने होने वाले ससुर की तरफ बढ़ा दी मनोहर लाल भी मुस्कुराते अपना हाथ आगे बढ़कर अपनी बहू के हाथ में से चाय का कप लेने लगे लेकिन,, कब लेते हुए उनकी उंगली अपने होने वाली बहू की नाजुक उंगली से स्पर्श हो गई लेकिन इस स्पर्श का असर मनोहर लाल के बदन में तुरंत हुआ उनका पूरा बदन एकदम से गनगना गया ,, एक बार फिर से मनोहर लाल अपनी स्थिति से झेप गए ,,, वह तुरंत कप लेकर पीना कुछ बोले चाय की चुस्की लेने लगे जिस तरह के हालात मनोहर लाल को नजर आ रहे थे उसे देखते हुए चुस्की लेने के सिवा उनके पास और कोई चारा नहीं था अपने आप को व्यवस्थित करके चुस्की लेने के बाद वह बोले,,,।
वाह बहू मजा आ गया,,, बहुत ही बढ़िया चाय बनाई हो,,,, भगवान का लाख-लाख शुक्र है कि अब ऐसी चाय मुझे रोज पीने को मिलेगी,,,,।
जी बाबूजी,,,(ऐसा कहते हुए थोड़ा सा झुक कर हुआ चाय का कप ट्रे में से लेकर अपनी मां की तरफ आगे बढ़ने लगी लेकिन इस बीच जिस तरह से वह झुकी हुई थी,,, उसकी कुर्ती में से जवानी से भरी हुई तूने चूचियां छलक कर बाहर आने को आतुर थी जिस पर फिर से अनजाने में शेठ मनोहर लाल की नजर पहुंच गई थी,,, शेख मनोहर लाल के साथ जो कुछ भी हो रहा था अनजाने में हो रहा था लेकिन उसे अनजाने में हुआ वाक्या उनके तन बदन में उत्तेजना की लहर को जन्म दे रहा था जिसे वह बरसों पहले अपने अंदर से निकाल कर बाहर फेंक चुके थे,,,, कुछ पल का यह नजारा उन्हें अंदर तक हिला गया था आज तक किसी भी औरत की तरफ वह इस तरह से नहीं देखे थे वैसे तो जाने अनजाने में जिस तरह से आज उनकी नज़र इधर-उधर घूम रही थी वैसे तो उनकी नजर जाने अनजाने में बहुत सी औरतों पर घूम चुकी थी लेकिन इस तरह का एहसास उनके तन बदन में कभी नहीं हुआ था जैसा एहसास आज उन्हें हो रहा था,,,।
अपनी स्थिति से बचने के लिए वह फिर से चाय की चुस्की लेने लगे इस दौरान,,, आरती अपनी मां को चाय का कप थमा कर वहां से जाने लगी थी,, वैसे तो मनोहर लाल अपनी बहू को भी शादी की तारीख बताने के लिए वाहन रोकने वाले थे लेकिन जिस तरह के हालात उनके साथ पैदा हो रहे थे उसे देखते हुए उन्होंने अपनी होने वाली बहू को वहां रोकना मुनासिब नहीं समझा और उसके चले जाने के बाद चाय खत्म करके चाय का कप टेबल पर रखते हुए वह बोले,,,।
भाभी जी आज मैं पंडित जी से मिला था,,,, और उन्होंने ही सा दिन के बाद का दिन विवाह के लिए नक्की किया है और वह बहुत शुभ दिन भी है मैं चाहता हूं कि उसी दिन आरती बहू बनकर मेरे घर प्रवेश करें,,,,।
क्या बात कर रहे भाई साहब वैसे तो यह बहुत खुशी की बात है लेकिन इतनी जल्दी इंतजाम कैसे होगा,,,।(आरती की मां भी चाय खत्म करके उसका खाली कप टेबल पर रखते हुए बोली,,,)
वह सब मुझ पर छोड़ दीजिए भाभी जी मैं अब ज्यादा इंतजार नहीं कर सकता,,,, रूपलाल को भी बता देना और मुझे पूरा विश्वास है कि इसमें आप लोगों को कोई भी परेशानी नहीं होगी और ना ही एतराज होगा,,,।
नहीं नहीं भाई साहब इसमें एतराज वाली कौन सी बात है,,,।
तो तय रहा 7 दिन के बाद आपके घर पर आता है कि और मेरी बहू मेरे घर आ जाएगी,,,(इतना कहते हुए शेख मनोहर लाल अपनी जगह से उठकर खड़े हो गए और साथ में रूपलाल की बीवी भी अपनी जगह से उठकर खड़ी हो गई और मुस्कुराते हुए हाथ जोड़कर बोली,,,)
हमारी खुश किस्मती है भाई साहब,, कि हमारी बेटी आपके घर बहू बनकर जा रही हैं,,,।
ना,,,,ना भाभीजी शोभा की शादी तो हम हैं जो इतनी खूबसूरत सुंदर संस्कार से निपुण बहु हमें मिलने वाली है,,,, अब मैं इजाजत चाहता हूं,,,,।
चलिए आपको दरवाजे तक छोड़ दु,,, ।
रहने दीजिए भाभी जी,,,।
(और फिर रुपलाल की बीवी शेठ मनोहर लाल को मुख्य दरवाजे तक छोड़ने के लिए आई,,,,,। चोरी छुपी आरती अपनी शादी की बात सुन रही थी और वह भी बहुत उत्साहित थी आखिरकार वह दिन आ गया जब शेख मनोहर लाल अपने बेटे की बारात लेकर रूप लाल के घर पहुंच गए,,,, सब कुछ बड़े अच्छे से संपन्न करके अपनी खूबसूरत बहू को अपने घर पर ले आए,,,,।)
Shaandar Mast Updateरूपलाल और उसकी बीवी के सर से बहुत बड़ी जिम्मेदारी उतरने वाली थी और ऐसा मनोहर लाल के साथ भी था अब उन्हें भी आने वाले समय को लेकर बेहद उत्सुकता दिखाई देती थी वह अपने मन में ही बहू अपने नाती पोतो के साथ अपना जीवन व्यतीत करता हुआ महसूस होने लगा था बहुत जल्द से जल्द अपने बेटे की शादी करा देना चाहते थे,, ताकि जल्द से जल्द अपने पोते पोती का मुंह देख सके,, मनोहर लाल का यही सबसे बड़ा सपना था कि उनका भी परिवार हरा भरा हो जिसमें उनकी बीवी भी शामिल थी लेकिन बदकिस्मती से उनकी बीवी अब इस दुनिया में नहीं थी लेकिन फिर भी जैसे तैसे करके हिम्मत नहीं हर और अपने बेटे की परवरिश करके अब उनकी शादी की तैयारी करने में लगे थे,,,,,, बीवी के न होने का दुख उन्हें अंदर ही अंदर कचोटता था अगर उनकी बीवी की आखिरी निशानी उनका बेटा राकेश ना होता तो शायद वह कब से अपनी जिंदगी को खत्म कर लेते लेकिन अपने बेटे के ही सहारे वह इतनी उम्र गुजार चुके थे,,,।
और यही धैर्य उनके जीवन में अब नए रंग भरने वाला था अब वह भी बहू पोते पोती वाले होने वाले थे,,, उन्हें तो अभी से ही पूरे घर में उनके पोती पोते खेलते हुए नजर आ रहे थे,,, जो उन्हें दादा दादा कहकर उनके कंधों पर चढ़ जा रहे थे इस तरह की कल्पना करके मनोहर लाल मन ही मन बहुत खुश हो रहे थे उनके चेहरे पर प्रशन्नता के भाव नजर आ रहे थे,,। वह जल्द से जल्द पंडित जी से बात कर लेना चाहते थे ताकि सबसे पहले वाली शादी की तारीख नक्की की जा सके,,, और वह रूपलाल से पूछे बिना ही पंडित जी से मिलकर शादी की तारीख नक्की कर लिए,,,। इस बारे में उन्होंने रूप लाल को या उनकी बीवी को बिल्कुल भी खबर नहीं कीए,, क्योंकि उन्हें पूरा विश्वास था कि रूप लाल और उनकी बीवी उनके द्वारा तय की गई तारीख पर बिल्कुल भी ऐतराज नहीं जताएंगे,,,।
इसलिए तारीख नक्की कर लेने के बाद उन्होंने अपने बेटे से भी नहीं बताया कि पंडित जी को दिखाकर शादी की तारीख नक्की कर ली गई है वह फिर से अच्छी सी मिठाई बनवा कर , उसे अच्छे से पैक करवा कर गाड़ी में बैठ गई और ड्राइवर को रूपलाल के घर चलने के लिए कह दिए,,, मनोहर लाल की खुशी देखकर गाड़ी चलाते हुए उनका ड्राइवर बोला,,।
मलिक इस तरह से खुश मैं आपको पहले कभी नहीं देखा था मुझे बहुत खुशी हुई आपको इस तरह से खुश देखकर,,,।
सच कहूं तो मैं भी जिंदगी में इतना खुश कभी नहीं हुआ जब तुम्हारी मालकिन जिंदा थी तब की बात कुछ और थी लेकिन उनके देहांत के बाद मेरे चेहरे पर से हंसी जैसे एकदम से गायब हो गई लेकिन अब ऐसा लग रहा है कि फिर से सारी खुशियां मेरी झोली में आने वाली है,,,।
बात तो सही है मालिक अब आप भी ससुर बन जाएंगे घर के आंगन में पोते पोती खेलेंगे,,, इस उम्र में भला इससे ज्यादा खुशी और क्या होगी,,,।
सच कह रहे हो तुम अपनी अपनी उम्र का सुख भी अलग-अलग होता है इस उम्र में तो यही सुख सबसे बड़ा है जिसे मैं जल्द से जल्द भोगना चाहता हूं,,,, और हां शादी में तुम्हारी जिम्मेदारी सबसे ज्यादा रहेगी खास खास मेहमान को ले आना ले जाना तुम्हारे जिम्मे रहेगा,,,।
आप बिल्कुल भी चिंता ना करें मालिक मैं अपना फर्ज अच्छे से निभाऊंगा,,,।
और हां पूरे परिवार सहित आना उस दिन कोई बहाना नहीं चलेगा,,,।
अगर आप नहीं रहते तो भी मैं पूरा परिवार के साथ ही आता इस दिन की खुशी में मैं अपने पूरे परिवार को शामिल करना चाहता हूं,,,।
बहुत अच्छे,,, तभी तो तुम इतने साल से मेरे ड्राइवर हो तुम पर मैं ज्यादा भरोसा करता हूं,,,।(आगे झुक कर ड्राइवर के कंधे पर हाथ रखते हुए मनोहर लाल बोल और उनके इस व्यवहार से उनका ड्राइवर एकदम गदगद हो गया,, क्योंकि उनका ड्राइवर जानता था कि मलिक हमेशा उसे अपने परिवार का ही सदस्य समझ कर रखते हैं और वह भी अपना फर्ज पूरी जिम्मेदारी से निभाते आ रहा था इसलिए वह जानता था सेठ मनोहर लाल की खुशी और ना खुशी के बारे में,,,, देखते ही देखते रूपलाल का घर आ गया और उनके घर के गेट के सामने गाड़ी एकदम से खड़ी हो गई,,,, ड्राइवर नीचे उतरकर गाड़ी का दरवाजा खोलना है इससे पहले खुद ही मनोहर लाल अपने हाथ से ही गाड़ी का दरवाजा खोलकर गाड़ी से बाहर निकल गए,,,।
हाथ में अपनी ही दुकान का सबसे महंगा और स्वादिष्ट मिठाई लेकर वहां अपने हाथ से ही गेट खोलकर अंदर प्रवेश करने लगे,,, दरवाजे पर पहुंचकर बेल बजाने लगे,,, दोपहर का समय था,, रूपलाल घर पर नहीं थे इस समय रूपलाल की बेटी और उनकी बीवी घर पर थी और उनकी बीवी अपने कमरे में आराम कर रही थी इसलिए दरवाजा खोलने के लिए आरती को ही अपने कमरे से बाहर आना पड़ा उन्हें नहीं मालूम था कि दरवाजे पर उसके होने वाले ससुर खड़े हैं,,, इसलिए वह कोई और होगा इसलिए लापरवाही दिखाते हुए दुपट्टा भी अपने कंधे पर नहीं रखी और उसी तरह से ही दरवाजा खोलने चली गई,,,।
रुक रुक कर दरवाजे की घंटी बज रही थी जिस तरह से घंटी बज रही थी आरती को बहुत गुस्सा आ रहा था क्योंकि उसे भी नींद आ रही थी और वह भी सोने की तैयारी कर रही थी मन तो कर रहा था कि दरवाजा खोले बिना ही उसे भगा दे लेकिन ऐसा वह नहीं कर पाई क्योंकि उसे लगा कि उसके पापा भी हो सकते हैं या कोई और होगा जो काम के सिलसिले से आया होगा इसलिए वह बेमन से दरवाजा खोली और जैसे ही सामने नजर उठा कर देखी उसके होश उड़ गए क्योंकि सामने उसके ससुर मनोहर लाल खड़े थे और वह जिस अवस्था में थी ऐसी अवस्था में उसे अपने ससुर के सामने नहीं आना था,, क्योंकि छाती पर दुपट्टा नहीं था,,,।
मनोहर लाल को भी नहीं लगा था कि दरवाजा उनकी होने वाली बहू खुलेगी और जैसे ही दरवाजा खुला सेठ मनोहर लाल की नजर सामने खड़ी आरती पर गई आरती पर क्या गई सीधे-सीधे उनकी नजर अपनी होने वाली बहू की छातियो पर चली गई जो की,, दुपट्टा ना होने की वजह से दोनों गोलाईयां,, एकदम साफ उभर कर दिखाई दे रही थी सेठ मनोहर लाल भी अनजाने में ही अपनी बहू की छातियो की तरफ देखने लग गए थे,,, इसलिए जल्दी ही वह अपनी नजर को दूसरी तरफ घुमा लिए,,, और उनकी होने वाली बहू तुरंत मौके की नजाकत को समझते हुए झुक कर उनके पैर छूकर आशीर्वाद लेने लगी और उन्हें आशीर्वाद देते हुए सेठ मनोहर लाल बोले,,,।
जीती रहो बेटी,,,(सर पर हाथ रखकर आशीर्वाद देते हुए आगे बोल) लेकिन सर पर दुपट्टा ले लिया करो इस तरह से बिना दुपट्टे के संस्कारी लड़कियां किसी के सामने नहीं आती,,,।
माफी चाहती हूं बाबूजी,,, जल्दी-जल्दी में दुपट्टा लेना भूल गई थी,,,।(आरती एकदम से शरमाते हुए बोली)
चलो कोई बात नहीं आइंदा ध्यान देना,,, तुम्हारे पिताजी कहां है,,,?(घर में प्रवेश करते हुए मनोहर लाल बोले)
वह तो कारखाने गए हैं मम्मी के घर में आप बैठी है मैं उन्हें बुलाती हूं और चाय पानी का बंदोबस्त करती हूं,,,,।
ठीक है,,, चाय में लेकिन शक्कर कम डालना चलो इसी बहाने तुम्हारे हाथ की चाय भी पी लूंगा और देखो तो सही की हमारी बहू चाय कैसी बनाती है,,,।
जी बाबूजी आप बैठीए,,,,(इतना कहकर आरती अपनी मां के कमरे की तरफ जाने लगी और सेठ मनोहर लाल सोफे पर बैठते हुए एक नजर अपनी जाती हुई बहू पर डाल दिए लेकिन इस बार भी उनसे गलती हो गई और उनकी नजर सीधे अपनी बहू के गोलाकार नितंबों पर चली गई जो की सीढ़ियां चलते समय कुछ ज्यादा ही बाहर निकली हुई नजर आ रही थी कुछ सेकेंड तक सेठ मनोहर लाल अपनी नजर को अपनी होने वाली बहू की गोलाकार नितंबों से हटा नहीं पाए,,, और फिर जैसे ही उन्हें एहसास हुआ तुरंत अपनी नजर को घुमा दिए और अपने आप को ही कोसने लगे,,,।
धत्,,,, यह क्या हो रहा है मुझे,,,,छी,,,, ऐसा तो पहले मुझे कभी नहीं हुआ था यह बार-बार मेरी नजर इधर क्यों जा रही है,,,,(अपने आप को ही कोसते हुए अपने आप को ही दिखाते हुए सेठ मनोहर लाल अपने आप से बात करते हुए बोले,,,,,।
और थोड़ी ही देर बाद सीढीओ पर से मुस्कुराते हुए रूपलाल की बीवी नीचे की तरफ आने लगी ,,शेठ मनोहर लाल रूपलाल की बीवी की तरफ देखकर मुस्कुराने लगे,,, और हाथ जोड़कर खड़े होते हुए बोले ,,,।
नमस्ते भाभी जी,,,,।
अरे रहने दीजिए भाई साहब आप तो हमें शर्मिंदा कर रहे हैं वैसे भी हम लड़की वाले हैं हाथ हमें जोड़ना चाहिए,,,।
लड़की वाली बाद में पहले आप हमारे जिगरी दोस्त रूपलाल की बीवी हैं इस नाते से आप हमारी भाभी हैं पहले हम दोनों में भाभी और देवर का रिश्ता है,,,,।
बात बनाना कोई आपसे सीखे,,,, आप बैठीए,,,,,।
ठीक है,,(इतना कह कर शेठ मनोहर लाल अपनी जगह पर बैठ गए,,, और ठीक उनके सामने रूप लड़की बीवी मुस्कुरा कर बैठते हुए बोली,,,)
इतनी दोपहर को कोई खास वजह थी क्या,,,?
क्यों भाभी जी आपको मेरा यहां पर आना ठीक नहीं लगा क्या,,,?
अरे नहीं भाई साहब आप तो कुछ और समझ रहे हैं मेरा मतलब यह नहीं था और वैसे भी अब यह आपका घर है,,, जब मर्जी करे तब आ सकते हैं जा सकते हैं,,,,।
वह तो है भाभी जी लेकिन यहां आने का मेरा एक खास वजह था,,,,, मैंने,,,,(इतना कहना था कि मनोहर लाल की नजर फिर से अपनी बहू पर पड़ी जो कि हाथ में चाय का ट्राय लेकर आ रही थी और आरती को देखते ही से एक मनोहर लाल मुस्कुराते हुए बोले,,,) लो बहु भी चाय बना कर ले आई,,, अब चाय पीते पीते बात करते हैं,,,।
इतने में मुस्कुराते हुए आरती चाय का ट्रे टेबल पर रखकर एक कप अपने होने वाले ससुर की तरफ बढ़ा दी मनोहर लाल भी मुस्कुराते अपना हाथ आगे बढ़कर अपनी बहू के हाथ में से चाय का कप लेने लगे लेकिन,, कब लेते हुए उनकी उंगली अपने होने वाली बहू की नाजुक उंगली से स्पर्श हो गई लेकिन इस स्पर्श का असर मनोहर लाल के बदन में तुरंत हुआ उनका पूरा बदन एकदम से गनगना गया ,, एक बार फिर से मनोहर लाल अपनी स्थिति से झेप गए ,,, वह तुरंत कप लेकर पीना कुछ बोले चाय की चुस्की लेने लगे जिस तरह के हालात मनोहर लाल को नजर आ रहे थे उसे देखते हुए चुस्की लेने के सिवा उनके पास और कोई चारा नहीं था अपने आप को व्यवस्थित करके चुस्की लेने के बाद वह बोले,,,।
वाह बहू मजा आ गया,,, बहुत ही बढ़िया चाय बनाई हो,,,, भगवान का लाख-लाख शुक्र है कि अब ऐसी चाय मुझे रोज पीने को मिलेगी,,,,।
जी बाबूजी,,,(ऐसा कहते हुए थोड़ा सा झुक कर हुआ चाय का कप ट्रे में से लेकर अपनी मां की तरफ आगे बढ़ने लगी लेकिन इस बीच जिस तरह से वह झुकी हुई थी,,, उसकी कुर्ती में से जवानी से भरी हुई तूने चूचियां छलक कर बाहर आने को आतुर थी जिस पर फिर से अनजाने में शेठ मनोहर लाल की नजर पहुंच गई थी,,, शेख मनोहर लाल के साथ जो कुछ भी हो रहा था अनजाने में हो रहा था लेकिन उसे अनजाने में हुआ वाक्या उनके तन बदन में उत्तेजना की लहर को जन्म दे रहा था जिसे वह बरसों पहले अपने अंदर से निकाल कर बाहर फेंक चुके थे,,,, कुछ पल का यह नजारा उन्हें अंदर तक हिला गया था आज तक किसी भी औरत की तरफ वह इस तरह से नहीं देखे थे वैसे तो जाने अनजाने में जिस तरह से आज उनकी नज़र इधर-उधर घूम रही थी वैसे तो उनकी नजर जाने अनजाने में बहुत सी औरतों पर घूम चुकी थी लेकिन इस तरह का एहसास उनके तन बदन में कभी नहीं हुआ था जैसा एहसास आज उन्हें हो रहा था,,,।
अपनी स्थिति से बचने के लिए वह फिर से चाय की चुस्की लेने लगे इस दौरान,,, आरती अपनी मां को चाय का कप थमा कर वहां से जाने लगी थी,, वैसे तो मनोहर लाल अपनी बहू को भी शादी की तारीख बताने के लिए वाहन रोकने वाले थे लेकिन जिस तरह के हालात उनके साथ पैदा हो रहे थे उसे देखते हुए उन्होंने अपनी होने वाली बहू को वहां रोकना मुनासिब नहीं समझा और उसके चले जाने के बाद चाय खत्म करके चाय का कप टेबल पर रखते हुए वह बोले,,,।
भाभी जी आज मैं पंडित जी से मिला था,,,, और उन्होंने ही सा दिन के बाद का दिन विवाह के लिए नक्की किया है और वह बहुत शुभ दिन भी है मैं चाहता हूं कि उसी दिन आरती बहू बनकर मेरे घर प्रवेश करें,,,,।
क्या बात कर रहे भाई साहब वैसे तो यह बहुत खुशी की बात है लेकिन इतनी जल्दी इंतजाम कैसे होगा,,,।(आरती की मां भी चाय खत्म करके उसका खाली कप टेबल पर रखते हुए बोली,,,)
वह सब मुझ पर छोड़ दीजिए भाभी जी मैं अब ज्यादा इंतजार नहीं कर सकता,,,, रूपलाल को भी बता देना और मुझे पूरा विश्वास है कि इसमें आप लोगों को कोई भी परेशानी नहीं होगी और ना ही एतराज होगा,,,।
नहीं नहीं भाई साहब इसमें एतराज वाली कौन सी बात है,,,।
तो तय रहा 7 दिन के बाद आपके घर पर आता है कि और मेरी बहू मेरे घर आ जाएगी,,,(इतना कहते हुए शेख मनोहर लाल अपनी जगह से उठकर खड़े हो गए और साथ में रूपलाल की बीवी भी अपनी जगह से उठकर खड़ी हो गई और मुस्कुराते हुए हाथ जोड़कर बोली,,,)
हमारी खुश किस्मती है भाई साहब,, कि हमारी बेटी आपके घर बहू बनकर जा रही हैं,,,।
ना,,,,ना भाभीजी शोभा की शादी तो हम हैं जो इतनी खूबसूरत सुंदर संस्कार से निपुण बहु हमें मिलने वाली है,,,, अब मैं इजाजत चाहता हूं,,,,।
चलिए आपको दरवाजे तक छोड़ दु,,, ।
रहने दीजिए भाभी जी,,,।
(और फिर रुपलाल की बीवी शेठ मनोहर लाल को मुख्य दरवाजे तक छोड़ने के लिए आई,,,,,। चोरी छुपी आरती अपनी शादी की बात सुन रही थी और वह भी बहुत उत्साहित थी आखिरकार वह दिन आ गया जब शेख मनोहर लाल अपने बेटे की बारात लेकर रूप लाल के घर पहुंच गए,,,, सब कुछ बड़े अच्छे से संपन्न करके अपनी खूबसूरत बहू को अपने घर पर ले आए,,,,।)
रूपलाल और उसकी बीवी के सर से बहुत बड़ी जिम्मेदारी उतरने वाली थी और ऐसा मनोहर लाल के साथ भी था अब उन्हें भी आने वाले समय को लेकर बेहद उत्सुकता दिखाई देती थी वह अपने मन में ही बहू अपने नाती पोतो के साथ अपना जीवन व्यतीत करता हुआ महसूस होने लगा था बहुत जल्द से जल्द अपने बेटे की शादी करा देना चाहते थे,, ताकि जल्द से जल्द अपने पोते पोती का मुंह देख सके,, मनोहर लाल का यही सबसे बड़ा सपना था कि उनका भी परिवार हरा भरा हो जिसमें उनकी बीवी भी शामिल थी लेकिन बदकिस्मती से उनकी बीवी अब इस दुनिया में नहीं थी लेकिन फिर भी जैसे तैसे करके हिम्मत नहीं हर और अपने बेटे की परवरिश करके अब उनकी शादी की तैयारी करने में लगे थे,,,,,, बीवी के न होने का दुख उन्हें अंदर ही अंदर कचोटता था अगर उनकी बीवी की आखिरी निशानी उनका बेटा राकेश ना होता तो शायद वह कब से अपनी जिंदगी को खत्म कर लेते लेकिन अपने बेटे के ही सहारे वह इतनी उम्र गुजार चुके थे,,,।
और यही धैर्य उनके जीवन में अब नए रंग भरने वाला था अब वह भी बहू पोते पोती वाले होने वाले थे,,, उन्हें तो अभी से ही पूरे घर में उनके पोती पोते खेलते हुए नजर आ रहे थे,,, जो उन्हें दादा दादा कहकर उनके कंधों पर चढ़ जा रहे थे इस तरह की कल्पना करके मनोहर लाल मन ही मन बहुत खुश हो रहे थे उनके चेहरे पर प्रशन्नता के भाव नजर आ रहे थे,,। वह जल्द से जल्द पंडित जी से बात कर लेना चाहते थे ताकि सबसे पहले वाली शादी की तारीख नक्की की जा सके,,, और वह रूपलाल से पूछे बिना ही पंडित जी से मिलकर शादी की तारीख नक्की कर लिए,,,। इस बारे में उन्होंने रूप लाल को या उनकी बीवी को बिल्कुल भी खबर नहीं कीए,, क्योंकि उन्हें पूरा विश्वास था कि रूप लाल और उनकी बीवी उनके द्वारा तय की गई तारीख पर बिल्कुल भी ऐतराज नहीं जताएंगे,,,।
इसलिए तारीख नक्की कर लेने के बाद उन्होंने अपने बेटे से भी नहीं बताया कि पंडित जी को दिखाकर शादी की तारीख नक्की कर ली गई है वह फिर से अच्छी सी मिठाई बनवा कर , उसे अच्छे से पैक करवा कर गाड़ी में बैठ गई और ड्राइवर को रूपलाल के घर चलने के लिए कह दिए,,, मनोहर लाल की खुशी देखकर गाड़ी चलाते हुए उनका ड्राइवर बोला,,।
मलिक इस तरह से खुश मैं आपको पहले कभी नहीं देखा था मुझे बहुत खुशी हुई आपको इस तरह से खुश देखकर,,,।
सच कहूं तो मैं भी जिंदगी में इतना खुश कभी नहीं हुआ जब तुम्हारी मालकिन जिंदा थी तब की बात कुछ और थी लेकिन उनके देहांत के बाद मेरे चेहरे पर से हंसी जैसे एकदम से गायब हो गई लेकिन अब ऐसा लग रहा है कि फिर से सारी खुशियां मेरी झोली में आने वाली है,,,।
बात तो सही है मालिक अब आप भी ससुर बन जाएंगे घर के आंगन में पोते पोती खेलेंगे,,, इस उम्र में भला इससे ज्यादा खुशी और क्या होगी,,,।
सच कह रहे हो तुम अपनी अपनी उम्र का सुख भी अलग-अलग होता है इस उम्र में तो यही सुख सबसे बड़ा है जिसे मैं जल्द से जल्द भोगना चाहता हूं,,,, और हां शादी में तुम्हारी जिम्मेदारी सबसे ज्यादा रहेगी खास खास मेहमान को ले आना ले जाना तुम्हारे जिम्मे रहेगा,,,।
आप बिल्कुल भी चिंता ना करें मालिक मैं अपना फर्ज अच्छे से निभाऊंगा,,,।
और हां पूरे परिवार सहित आना उस दिन कोई बहाना नहीं चलेगा,,,।
अगर आप नहीं रहते तो भी मैं पूरा परिवार के साथ ही आता इस दिन की खुशी में मैं अपने पूरे परिवार को शामिल करना चाहता हूं,,,।
बहुत अच्छे,,, तभी तो तुम इतने साल से मेरे ड्राइवर हो तुम पर मैं ज्यादा भरोसा करता हूं,,,।(आगे झुक कर ड्राइवर के कंधे पर हाथ रखते हुए मनोहर लाल बोल और उनके इस व्यवहार से उनका ड्राइवर एकदम गदगद हो गया,, क्योंकि उनका ड्राइवर जानता था कि मलिक हमेशा उसे अपने परिवार का ही सदस्य समझ कर रखते हैं और वह भी अपना फर्ज पूरी जिम्मेदारी से निभाते आ रहा था इसलिए वह जानता था सेठ मनोहर लाल की खुशी और ना खुशी के बारे में,,,, देखते ही देखते रूपलाल का घर आ गया और उनके घर के गेट के सामने गाड़ी एकदम से खड़ी हो गई,,,, ड्राइवर नीचे उतरकर गाड़ी का दरवाजा खोलना है इससे पहले खुद ही मनोहर लाल अपने हाथ से ही गाड़ी का दरवाजा खोलकर गाड़ी से बाहर निकल गए,,,।
हाथ में अपनी ही दुकान का सबसे महंगा और स्वादिष्ट मिठाई लेकर वहां अपने हाथ से ही गेट खोलकर अंदर प्रवेश करने लगे,,, दरवाजे पर पहुंचकर बेल बजाने लगे,,, दोपहर का समय था,, रूपलाल घर पर नहीं थे इस समय रूपलाल की बेटी और उनकी बीवी घर पर थी और उनकी बीवी अपने कमरे में आराम कर रही थी इसलिए दरवाजा खोलने के लिए आरती को ही अपने कमरे से बाहर आना पड़ा उन्हें नहीं मालूम था कि दरवाजे पर उसके होने वाले ससुर खड़े हैं,,, इसलिए वह कोई और होगा इसलिए लापरवाही दिखाते हुए दुपट्टा भी अपने कंधे पर नहीं रखी और उसी तरह से ही दरवाजा खोलने चली गई,,,।
रुक रुक कर दरवाजे की घंटी बज रही थी जिस तरह से घंटी बज रही थी आरती को बहुत गुस्सा आ रहा था क्योंकि उसे भी नींद आ रही थी और वह भी सोने की तैयारी कर रही थी मन तो कर रहा था कि दरवाजा खोले बिना ही उसे भगा दे लेकिन ऐसा वह नहीं कर पाई क्योंकि उसे लगा कि उसके पापा भी हो सकते हैं या कोई और होगा जो काम के सिलसिले से आया होगा इसलिए वह बेमन से दरवाजा खोली और जैसे ही सामने नजर उठा कर देखी उसके होश उड़ गए क्योंकि सामने उसके ससुर मनोहर लाल खड़े थे और वह जिस अवस्था में थी ऐसी अवस्था में उसे अपने ससुर के सामने नहीं आना था,, क्योंकि छाती पर दुपट्टा नहीं था,,,।
मनोहर लाल को भी नहीं लगा था कि दरवाजा उनकी होने वाली बहू खुलेगी और जैसे ही दरवाजा खुला सेठ मनोहर लाल की नजर सामने खड़ी आरती पर गई आरती पर क्या गई सीधे-सीधे उनकी नजर अपनी होने वाली बहू की छातियो पर चली गई जो की,, दुपट्टा ना होने की वजह से दोनों गोलाईयां,, एकदम साफ उभर कर दिखाई दे रही थी सेठ मनोहर लाल भी अनजाने में ही अपनी बहू की छातियो की तरफ देखने लग गए थे,,, इसलिए जल्दी ही वह अपनी नजर को दूसरी तरफ घुमा लिए,,, और उनकी होने वाली बहू तुरंत मौके की नजाकत को समझते हुए झुक कर उनके पैर छूकर आशीर्वाद लेने लगी और उन्हें आशीर्वाद देते हुए सेठ मनोहर लाल बोले,,,।
जीती रहो बेटी,,,(सर पर हाथ रखकर आशीर्वाद देते हुए आगे बोल) लेकिन सर पर दुपट्टा ले लिया करो इस तरह से बिना दुपट्टे के संस्कारी लड़कियां किसी के सामने नहीं आती,,,।
माफी चाहती हूं बाबूजी,,, जल्दी-जल्दी में दुपट्टा लेना भूल गई थी,,,।(आरती एकदम से शरमाते हुए बोली)
चलो कोई बात नहीं आइंदा ध्यान देना,,, तुम्हारे पिताजी कहां है,,,?(घर में प्रवेश करते हुए मनोहर लाल बोले)
वह तो कारखाने गए हैं मम्मी के घर में आप बैठी है मैं उन्हें बुलाती हूं और चाय पानी का बंदोबस्त करती हूं,,,,।
ठीक है,,, चाय में लेकिन शक्कर कम डालना चलो इसी बहाने तुम्हारे हाथ की चाय भी पी लूंगा और देखो तो सही की हमारी बहू चाय कैसी बनाती है,,,।
जी बाबूजी आप बैठीए,,,,(इतना कहकर आरती अपनी मां के कमरे की तरफ जाने लगी और सेठ मनोहर लाल सोफे पर बैठते हुए एक नजर अपनी जाती हुई बहू पर डाल दिए लेकिन इस बार भी उनसे गलती हो गई और उनकी नजर सीधे अपनी बहू के गोलाकार नितंबों पर चली गई जो की सीढ़ियां चलते समय कुछ ज्यादा ही बाहर निकली हुई नजर आ रही थी कुछ सेकेंड तक सेठ मनोहर लाल अपनी नजर को अपनी होने वाली बहू की गोलाकार नितंबों से हटा नहीं पाए,,, और फिर जैसे ही उन्हें एहसास हुआ तुरंत अपनी नजर को घुमा दिए और अपने आप को ही कोसने लगे,,,।
धत्,,,, यह क्या हो रहा है मुझे,,,,छी,,,, ऐसा तो पहले मुझे कभी नहीं हुआ था यह बार-बार मेरी नजर इधर क्यों जा रही है,,,,(अपने आप को ही कोसते हुए अपने आप को ही दिखाते हुए सेठ मनोहर लाल अपने आप से बात करते हुए बोले,,,,,।
और थोड़ी ही देर बाद सीढीओ पर से मुस्कुराते हुए रूपलाल की बीवी नीचे की तरफ आने लगी ,,शेठ मनोहर लाल रूपलाल की बीवी की तरफ देखकर मुस्कुराने लगे,,, और हाथ जोड़कर खड़े होते हुए बोले ,,,।
नमस्ते भाभी जी,,,,।
अरे रहने दीजिए भाई साहब आप तो हमें शर्मिंदा कर रहे हैं वैसे भी हम लड़की वाले हैं हाथ हमें जोड़ना चाहिए,,,।
लड़की वाली बाद में पहले आप हमारे जिगरी दोस्त रूपलाल की बीवी हैं इस नाते से आप हमारी भाभी हैं पहले हम दोनों में भाभी और देवर का रिश्ता है,,,,।
बात बनाना कोई आपसे सीखे,,,, आप बैठीए,,,,,।
ठीक है,,(इतना कह कर शेठ मनोहर लाल अपनी जगह पर बैठ गए,,, और ठीक उनके सामने रूप लड़की बीवी मुस्कुरा कर बैठते हुए बोली,,,)
इतनी दोपहर को कोई खास वजह थी क्या,,,?
क्यों भाभी जी आपको मेरा यहां पर आना ठीक नहीं लगा क्या,,,?
अरे नहीं भाई साहब आप तो कुछ और समझ रहे हैं मेरा मतलब यह नहीं था और वैसे भी अब यह आपका घर है,,, जब मर्जी करे तब आ सकते हैं जा सकते हैं,,,,।
वह तो है भाभी जी लेकिन यहां आने का मेरा एक खास वजह था,,,,, मैंने,,,,(इतना कहना था कि मनोहर लाल की नजर फिर से अपनी बहू पर पड़ी जो कि हाथ में चाय का ट्राय लेकर आ रही थी और आरती को देखते ही से एक मनोहर लाल मुस्कुराते हुए बोले,,,) लो बहु भी चाय बना कर ले आई,,, अब चाय पीते पीते बात करते हैं,,,।
इतने में मुस्कुराते हुए आरती चाय का ट्रे टेबल पर रखकर एक कप अपने होने वाले ससुर की तरफ बढ़ा दी मनोहर लाल भी मुस्कुराते अपना हाथ आगे बढ़कर अपनी बहू के हाथ में से चाय का कप लेने लगे लेकिन,, कब लेते हुए उनकी उंगली अपने होने वाली बहू की नाजुक उंगली से स्पर्श हो गई लेकिन इस स्पर्श का असर मनोहर लाल के बदन में तुरंत हुआ उनका पूरा बदन एकदम से गनगना गया ,, एक बार फिर से मनोहर लाल अपनी स्थिति से झेप गए ,,, वह तुरंत कप लेकर पीना कुछ बोले चाय की चुस्की लेने लगे जिस तरह के हालात मनोहर लाल को नजर आ रहे थे उसे देखते हुए चुस्की लेने के सिवा उनके पास और कोई चारा नहीं था अपने आप को व्यवस्थित करके चुस्की लेने के बाद वह बोले,,,।
वाह बहू मजा आ गया,,, बहुत ही बढ़िया चाय बनाई हो,,,, भगवान का लाख-लाख शुक्र है कि अब ऐसी चाय मुझे रोज पीने को मिलेगी,,,,।
जी बाबूजी,,,(ऐसा कहते हुए थोड़ा सा झुक कर हुआ चाय का कप ट्रे में से लेकर अपनी मां की तरफ आगे बढ़ने लगी लेकिन इस बीच जिस तरह से वह झुकी हुई थी,,, उसकी कुर्ती में से जवानी से भरी हुई तूने चूचियां छलक कर बाहर आने को आतुर थी जिस पर फिर से अनजाने में शेठ मनोहर लाल की नजर पहुंच गई थी,,, शेख मनोहर लाल के साथ जो कुछ भी हो रहा था अनजाने में हो रहा था लेकिन उसे अनजाने में हुआ वाक्या उनके तन बदन में उत्तेजना की लहर को जन्म दे रहा था जिसे वह बरसों पहले अपने अंदर से निकाल कर बाहर फेंक चुके थे,,,, कुछ पल का यह नजारा उन्हें अंदर तक हिला गया था आज तक किसी भी औरत की तरफ वह इस तरह से नहीं देखे थे वैसे तो जाने अनजाने में जिस तरह से आज उनकी नज़र इधर-उधर घूम रही थी वैसे तो उनकी नजर जाने अनजाने में बहुत सी औरतों पर घूम चुकी थी लेकिन इस तरह का एहसास उनके तन बदन में कभी नहीं हुआ था जैसा एहसास आज उन्हें हो रहा था,,,।
अपनी स्थिति से बचने के लिए वह फिर से चाय की चुस्की लेने लगे इस दौरान,,, आरती अपनी मां को चाय का कप थमा कर वहां से जाने लगी थी,, वैसे तो मनोहर लाल अपनी बहू को भी शादी की तारीख बताने के लिए वाहन रोकने वाले थे लेकिन जिस तरह के हालात उनके साथ पैदा हो रहे थे उसे देखते हुए उन्होंने अपनी होने वाली बहू को वहां रोकना मुनासिब नहीं समझा और उसके चले जाने के बाद चाय खत्म करके चाय का कप टेबल पर रखते हुए वह बोले,,,।
भाभी जी आज मैं पंडित जी से मिला था,,,, और उन्होंने ही सा दिन के बाद का दिन विवाह के लिए नक्की किया है और वह बहुत शुभ दिन भी है मैं चाहता हूं कि उसी दिन आरती बहू बनकर मेरे घर प्रवेश करें,,,,।
क्या बात कर रहे भाई साहब वैसे तो यह बहुत खुशी की बात है लेकिन इतनी जल्दी इंतजाम कैसे होगा,,,।(आरती की मां भी चाय खत्म करके उसका खाली कप टेबल पर रखते हुए बोली,,,)
वह सब मुझ पर छोड़ दीजिए भाभी जी मैं अब ज्यादा इंतजार नहीं कर सकता,,,, रूपलाल को भी बता देना और मुझे पूरा विश्वास है कि इसमें आप लोगों को कोई भी परेशानी नहीं होगी और ना ही एतराज होगा,,,।
नहीं नहीं भाई साहब इसमें एतराज वाली कौन सी बात है,,,।
तो तय रहा 7 दिन के बाद आपके घर पर आता है कि और मेरी बहू मेरे घर आ जाएगी,,,(इतना कहते हुए शेख मनोहर लाल अपनी जगह से उठकर खड़े हो गए और साथ में रूपलाल की बीवी भी अपनी जगह से उठकर खड़ी हो गई और मुस्कुराते हुए हाथ जोड़कर बोली,,,)
हमारी खुश किस्मती है भाई साहब,, कि हमारी बेटी आपके घर बहू बनकर जा रही हैं,,,।
ना,,,,ना भाभीजी शोभा की शादी तो हम हैं जो इतनी खूबसूरत सुंदर संस्कार से निपुण बहु हमें मिलने वाली है,,,, अब मैं इजाजत चाहता हूं,,,,।
चलिए आपको दरवाजे तक छोड़ दु,,, ।
रहने दीजिए भाभी जी,,,।
(और फिर रुपलाल की बीवी शेठ मनोहर लाल को मुख्य दरवाजे तक छोड़ने के लिए आई,,,,,। चोरी छुपी आरती अपनी शादी की बात सुन रही थी और वह भी बहुत उत्साहित थी आखिरकार वह दिन आ गया जब शेख मनोहर लाल अपने बेटे की बारात लेकर रूप लाल के घर पहुंच गए,,,, सब कुछ बड़े अच्छे से संपन्न करके अपनी खूबसूरत बहू को अपने घर पर ले आए,,,,।)