• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Thriller बारूद का ढेर (Complete)

Kingfisher

💞 soft hearted person 💞
7,475
26,124
204
Brother mujhe nhi lagta ki jo aap dhada dhad story post karte ho, unko apne likha . Agar aisa hai to thread shuru karne se pehle story ke janmdata ka name mention karna chahiye na bhai . It's bhayankar wrong brother .. next time will take care of this
 
Last edited:
  • Like
Reactions: Smith_15

Hero tera

Active Member
1,166
3,223
144
Brother mujhe nhi lagta ki jo aap dhada dhad story post karte ho, unko apne likha . Agar aisa hai to thread shuru karne se pehle story ke janmdata ka name mention karna chahiye na bhai . It's bhayankar wrong brother .. next time will take care of this
Kuchh story copy hain baaki apni hain
 

Hero tera

Active Member
1,166
3,223
144
चचा...उसे विला में किस जगह रखा गया है
भूप त ने बताया।
ठीकी हैं चचा...तुम अपनी पुड़ियों की फिक्र मत करना। मैं हर रोज तुम्हारा कोटा तुम तक पहुंचा दिया करूंगा। तुम पूनम तक सिर्फ इतनी खबर
पहुंचा देना कि वह घबराए नहीं। मैं बहुत जल्द उसे मिलूगा ।'
' पहूंचा दूंगा बाबू।'
उसके बाद लाम्बा उसे कार से उतारकर आगे बढ़ गया।

वह पुड़ियाँ जे ब में डाले वापस लौट चला। अब उसे वापस विला में पहुंचने की जल् दी थी। नशे का वक्त गुजर चुका था और वह नशे की सख्त जरूरत महसूस कर रहा था।
विला में दाखिल होते समय उसकी चाल में अतिरिक्त तेजी थी।
'क्यों भूपत... मक्खन नहीं लाए। ' पिछे से उभरने वाले दरबान के तीखे स्वर ने उसके दिल में हलचल मचा दी।
सचमुच मक्खन लेने वह न तो गया था और ना ही लेकर आया था। उस ने तो बहाना बनाया था।
उसकी हालत उस समय उस चोर जैसी थी जिसे रंगे हाथों पकड़ लिया गया हो । ' व . ..वो...वो...मक्खन मिला...मिला नहीं। हां...मैं सच कह रहा हूं। ' उसने अपनी
.
.
.
.
.
सफाई देने की कोशिश की तो उसकी जुबान-लड़खड़ा गई।
दरबान हंसा।
बोला- ' तो मैंने कब कहा कि तुम झूठ कह रहे हो । नहीं मिला होगा। मगर तुम इस तरह से अचानकी ही बौखला क्यों गए ?'
'न... न... नहीं। नहीं तो।'

'लगता है कुछ परेशान हो। आज अंटा मिला नहीं क्या ?'
'मजाक मत करो यार। ' अपने आपको संयत करते हुए उसने बात बनाई और यहां से चलता हुआपोर्टिको की ओर बढ़ता चला गया।
रंजीत लाम्बा ने देशमुख के रसोइए भूपत को माध्यम बना लिया। इग्ज की उसकी कमी लाम्बा के लिए लाभकारी सिद्ध हुई। ?'
कॉर्डलैस टेलीफोन जिस पर कि पहले से ही लाम्बा ने संपर्की बनाया हुआ था, भूपत खाने के सामान की ट्रा ली में रखकर पहरेदारों की नजरों से बचाकर पूनम के कमरे के अंदर ले गया।
' ले जाओ ये खाना ! नहीं खाना मुझे!' पूनम गला फाड़कर चिल्लाई।
'ऐसा नहीं कहते मालकिन। खाना खा लो। ' भूपत उसके करीब पहुंचकर रहस्यपूर्ण स्वर में बो
ला।'
'नहीं खाऊंगी।'
' खा ओ तो छोटी मालकिन... आज स्पेशल डिश है। 'ट्राली की और देखते हुए वह असमंजस की स्थिति में आ गई भूपत द्वारा किए जाने वाले इशारों को वह पूरी तरह सम झ नहीं पा रही थी।
'खाकर तो देखो मालकिन.. .आपका सारा गुस्सा दूर हो जाएगा । ' भूपत ने डोंगे का ढाक्कन उठाते हुए कहा।
उसने डोंगे में देखा।
डोंगे में खाने की वस्तु के स्थान पर फोन रखा था। छोटा-सा रिसीवरनु मा फोन जिसके लिए क्रेडिल की आवश्यकता नहीं होती।
फोन को देखने के-बाद शह भूपत की ओर देखने लगी।
'मालकिन , मैं पहरेदारों को देखता हूं आप बात कर लें। ' भूपत फुसफुसाहट भरे स्वर में कहता हुआ वहां से दरवाजे की ओर बढ़ गया।
अचम्भित-सी स्थिति में पूनम ने टेलीफोन रिसीवर उठाकर कान से लगा लिया।
हैल्लो...। ' सस्पेंस में भरी हुई वह अत्यत धीमे स्वर में बोली।
___'पूनम.. . पूनम तुम कैसी हो?' दूसरी ओर से लाम्बा का उत्तेजनापूर्ण स्वर उभरा।
रंजीत...ओह रंजीत...तुम कहां हो ?' उसकी तड़प उसके स्वर से झलकने लंगी।
' मैं जहां भी हूं ठीकी हूं। तुम बताओ?'

'म... मैं कैद में हूं।'
'घबराओ नहीं।'
'मुझे यहां से ले चलो रंजीत। ले चलो।'
' ले चलूंगा। मैं तुम्हें वहां उस कैद मै नहीं रहने दूंगा। यही कहने के लिए तुमसे संपर्की बनाया है। मुझे मालूम हो गया था कि तुम्हें एक कमरे में बंद किया हुआ है। मैं सिर्फ तुम्हारी स्वीकृति चाहता था।'
'मुझे यहां घुट न हो रही है। एक-एक सांस भारी पड़ रही है।'
'तुमने खाना छोड़ रखा है ?'
'कुछ अच्छा नहीं लग रहा था। तुम्हारी याद करके पड़ी रोती रहती थी।'
'मूर्खता छोड़ो। खाना खाओ। मै कभी भी तुम्हें आजाद कराने को आ सकता हूं। '
'जल्दी आना।'
' बहुत जल्दी।' ' मैं इंतजार करूंगी।'
ओ० के० ! फिर बंद कर रहा हूं।'
' अभी ठहरों।'
'क्यों?'
'एक पप्पी...। ' कहते हुए पूनम ने माउथपीस पर चुम्बन अंकित कर दिया।'
दूसरी ओर से भी चुम्बन की आवाज उभरी। उसके बाद संपर्की कट गया।
पूनम ने फोन पुन: डोंगे सें रखकर ऊपर से उसका ढक्कन बंद कर दिया।
'काका! ' उसने दरवाजे के निकट खड़े भूपत को बुलाया।
'हां मालकिन ?'
'आज मैं पेट भर खाऊंगी। तुम ने बहुत अच्छा खाना बनाया है।'
' आपका नमकी खाया है छोटी मालकिन। आपके लिए तो कुछ न कुछ करना ही था।'
'ठीकी है...तुम इसे ले जाओ। ' उसने डों गे की ओर संकेत किया।
'कोई जल्दी नहीं हैं छोटी मालकिन...आप आराम से खा , लें फिर जैसे इसे लाया हूं वैसे ही वापस भी ले जाऊंगा।'
__'नहीं, अभी ले जाओ। क्योंकि अगर दूसरी तरफ से किसी ने इसका नम्बर डायल कर दिया तो यह फौरन बजने लगेगा और पहरेदारों के कान खड़े हो जाएंगे।'
' हां...यह तो मैंने सोचा ही नहीं था।'
'जल्दी -ले जाओ।'
'जो आज्ञा छोटी मालकिन। ' कहने के साथ ही भूपत ने डोंगा उठा लिया। वह उसे लेकर इस प्रकार चलने लगा मानो खाने की कोई वस्तु उसमें लिए जा रहा हो। कमरे
के दरवाजे के समीप पहुंचकर वह ठिठका। उसके दिल को धड़कनें बढ़ने लगीं
उसने कमरे के बाहर कदम रखा।
खिला दिया जाना ?' एक पहरेदार ने उसे-कठो र स्वर में पूछा।
वह घबरा गया।हाँ ... हाँ... खिला दिया। '
'बङी जल्दी खिला दिया। ' दूसरा पहरेदार बोला।
'नहीं...वो दरअसल छोटी मालकिन ने अभी शुरू किया है। मेरा मतलब...खाना शुरू करने से है वरना वो तो खा ही नहीं रही थी। '
_ 'तो फिर खिला न बैठकर , जा कहा रहा है
'खीर लेने। खीर के डोंगे की जगहमैं दूसरा डोंगा गलती से रख लाया। '
'थोड़ी खीर हमको भी टेस्ट करा ना । '
'हां-हां कराऊंगा।' की हने के साथ भी भूपत ने कदम आगे बढ़ा दिए।
अभी वह दो कदम ही चल पाया था कि डोंगे में रखा फोन बज उठा।
उसके हाथ कप गए।
डों गा , हाथों से छूटते-फूटते बचा।
दिल उसे अपने हलकी में घजूता महसूस हो ने लगा । धड़कनें हथौड़े की तरह ब जने लगीं।
डोंगा पकड़े व ह कंपकंपाती टांगों से तेजी से अग्रसर हुआ।
टेलीफोन था कि बजे चल्जा रहा था।
दोनो गार्ड चौंके।
'ऐई ठहरो! ' एक गार्ड हाथ उठाकर चिल्लाया।
भूपत को लगा जैसे कोई उसकें जिस्म से उसके प्राण खींचकर बाहर निकालने का प्रयत्न कर रहा हो।
वह अपनी जगह इस तरह का ठ होकर रह गया मानो उसका तमाम जिस्म एकाएक जादू के
जोर से पत्थर का बना दिया गया हो।'
उसकी ऊपर की सांस ऊपर और नीचे की
नीचे।
टेलीफोन अभीभी बज रहा था ।
उसकी घंटी की आवाज उसके दिमाग में भयानकी धमाकों की तरह टकरा रही थी।
दोनों गार्ड तेजी से चलते हुए उसके निकट पहुंचे। उन्हें जो शंका थी व ह सच नि कला। टेलीफोन निश्चित रूप से डों गे के अन्दर से बज रहा था।
भूपत की स्थिति रंगे हाथों पकड़े गए चोर जैसी ही थी।
पसीने-पसीने हो रहा था बह और उसके चेहरे पर राख जैसी सफेदी फैल गई थी।
तो खीर लेने जा रहा है ?' एक गार्ड अपनी गन कंधे पर रखता हुआ गुर्राया।
वह इस प्रकार खामोश खड़ा रहा जैसे उसके मुंहमें जुबान ही न हो।
खीर घंटी वाली लगती है। ' दूसरे गार्ड ने फिकरा कसा।
पहले वाले गार्ड में हाथ बढ़ा कर डोंगे का दक्कन हटा दिया। .
डोंगे के अन्दर रखा टेलीफोन साफ नजर आने लगा।
तो यह है वह खीर जिसे तुम गुपचुप-गुपचुप पका रहे थे... क्यों ?'
भूपत को ऐसा लग रहा था कि किसी तरह जमीन फट जाए और वह उसमें समां जाए। उसने बोल ने की कोशिश जरूर की मगर उसके मुंह से बोल न फूट सका।
कमरा बन्द कर और बड़े मालिकी के सामने इसे पेश कर दे वरना कोई बात अगर हो गई तो हम दोनों को सजा मिलेंगी। ' दूसरा गार्ड निर्णायकी स्वर में बोला।
'नहीं-नहीं..। ' भूपत यकायकी ही गिड़गिड़ाने लगा- ' ऐ सा गजब मत करो। मालिकी मुझे नौकरी से निकाल देंगे। मुझ पर दया करो! '
'तेरे पर दया की तो हम नौकरी से हाथ धो बैठेंगे।'
किसी को पता नहीं चलेगा। मुझे जाने दो। ' उसने आगे बढ़ना चाहा किन्तु आगे वाले गार्ड ने उसका कॉलर पीछे से थाम लिया। फिर उसके गिड़गिड़ाने का गार्ड पर कोई असर नहीं हुआ! वह
उसे माणिकी देशमुख के सामने पेश करके ही माना।

रंजीत लाम्बात माम तैयारियों के साथ अपनी कार ड्राइव करता माणिकी देशमुख की विला की ओर बढ़ता चला जा रख था।
कार की गति सामान्य थी और वह सिगरेट के कश लगाने के साथ व्हि स्की की बोतल से चूंट भी
भरता जा रहा था। कई बार उसने लम्बे-लम्बे चूंट भरे।
हल्का नशा भी हो चला था उसे।
आगे मोड़ आया। मोड़ काटने के बाद सड़की वीरान नजर आने
लगी।
अचानक।
अचानकी ही पीछे से एक कार उसकी कार को ओवरटेकी करती हुई निकली। उसकी खिड़की से एक गन की बैरल झांकी रही थी।
गन के दहाने ने आग उगलनी शुरू कर दी।
दनदना ती हुई गोलियां उसकी कार की वि न्ड स्की री न को छलनी करती चली गई । अगर वह फिरती से झुकी न गया होता तो अभी तक उसकी
लाश कार में पड़ी होती क्योंकि गोलियां उसका भेजा उड़ा देने में किसी भी प्रकार की देरी न करतीं।
उसने नीचे झुकने के साथ ही साथ ब्रेकी भी लगा दिए थे।
उसकी कार ची-चीं की ध्वनि , करती घिसटती चली गई । आक्रमणकारी कार से अभी भी फायरिंग जारी थी, जबकि वह कार आगे बढ़ती ही जा रही
थी।
उसने फुर्ती से कार -हल की , अपनी साइड का दरवाजा खोला और गन सीधी करता हुआ सड़की पर लुढ़की आया।
दूर होती आक्रमणकारी कार को लक्ष्य करके उसने भी गोलियां बरसानी आरंभ कर दी।
स्वचालित गन से गोलियों की बाड़ छूटी और आगे वाली कार के दाहिने पहिए का काम तमाम हो गया।
वह कार बुरी तरह लड़खड़ाई। उलट ही जाती , अगर उसके ड्राइवर ने अपने कुशल संचालन से बचा न लिया होता।
फिर भी संतुलन बिगड़ने से बचाने की कोशिश में का र सड़की के किनारे के खंभे से भिड़ गई।'
लाम्बा निरंतर कार को दिशा में गोलियां बरसाए जा रहा था।
कार के अन्दर से थोड़े से अन्तराल के बाद कई गनों के दहाने झांककर गोलियों का जवाब गोलियों से देने लगे। लाम्बा को अपनी कार की ओट में पोजीशन संभालनी पड़ी।
दोनों तरफ से गोलियां चलने लगीं।
दुश्मन पक्ष फ्रट पर युद्ध करने वाले सैनिकों की भांति नपी-तुली फायरिंग कर रहा था।
लम्बा को लगा कि वह पुलिस के आने पर भाग नहीं सकेगा। इसलिए उस खेल को शीघ्र ही समाप्त कर देने के लिए उसे अगला कदम उठाना पड़ा।
यूं भी उसे देशमुख की बेटी को उसके विल से निकालने की बहुत जल्दी थी।
__ वह कोहनियों के बल रेंगता हुआ कार के दरवाजे के समीप पहुंचा और फिर अंदर से उसने एक बड़ी-सी खतरनाक आकार की गन निकाल ली।
गन को लोड करके वह सड़की पर फैलता हुवा पोजीशन लेने लगा।
सामने से चलने बाली गोलियां उसकी कार की बॉडी से टकरा रही थीं।
उसने कार को लक्ष्य लेकर गन का ट्रेगर खींचा।
यूं लगा जैसे गन से प्रक्षेपास्त्र छूटा हो ।
पलकी झ पकते आग का गोला दुश्मन की कार से टकरा गया
विस्फोट !
विस्फोट हुआ और विस्फोट के साथ ही दुश्मन की कार के परखच्चे उड़ गए। कार आग के शोलों में लिपटी हुई हवा में उछलने के बाद टुकड़ों में विभक्त होती हुई नीचे आ गिरी।
 

Hero tera

Active Member
1,166
3,223
144
खतर नाकी बारूदी करतब दिखाने के बाद लाम्बा ने डरावनि गन को कार के अन्दर फेंका और दूसरी मन उठाकर वह घटनास्थल की ओर दौड़ पड़ा।
वहां सड़की का दृW अत्यन्त डरावना बना हुआ था।
तीन-स्थानों पर कार के टुकड़ों में आग लगी हुई थी।
दो आदमियों की क्षत-विक्षित लाशों के टुकड़े थे और घने धुएं के बीच एक घायल व्यक्ति था जिसे अपनी अन्तिम सांसों में भयानकी पीड़ा का सामना करना पड़ रहा था।
लम्बात जी से उसके निकट पहुंचा।
उस व्यक्ति का बायां हाथ विध्वंकी बिस्फोट में कहां उड़ गया था। कुछ पता नहीं चल रहा था। पेट की चर्बी जलकर बाहर आ गई थी।
हौलनाकी दृश्य था।
' किसके आदेश से मुझे मारने आए थे? लाम्बा उसके निकट बैठता हुआ बोला।
'पीटर...पीटर के आदेश से। ' वह घायल बड़बड़ाया।
'कौन-कौन था तुम्हारे साथ ? पीटर कहा है ?
वह पीड़ा से छटपटाया।
उसने बोलने की कोशिश की मगर वह बोल न सका । ऐढ़िया रगड़ने के बाद उसने दम तोड़ दिया।
उसी समय पुलिस का कर्कश सायरन दूर से बजता हुआ सुनाई पड़ा।
लम्बा एक पल को ठिठका तत्पश्चात् उसने अपनी कार की ओर दौड़ लगा दीं। वह तेजी से कार के अंदर जा बैठा। कार का इंजन स्टार्ट था ही। उसने उसे गेयर में डालकर आगे बढ़ा दिया।
कर तोप से छूट गोले की भांति वहां से निकल भागी।
वह कार की रफ्तार निरंतर बढ़ाता चला जा रहा था।
वीरान पड़ी सड़की पर कार जेट विमान जैसी रफ्तार से भागती चली जा रही थी। बड़ी तेजी से उसने एक पतली गली की सहायता से सड़की बदल
ली।
वह दुर्घटनाग्रस्त सड़की पर पुलिस के हाथों पड़ना नहीं चा हता था।
दूसरी के बाद तीसरी सड़की और फिर वह घनी गलियों का क्षेत्र पार , कर घटनास्थल से बहुत दूर -निकल गया।

םם
लम्बा ने फोन पर भूपत से संपर्की स्थापित करने का प्रयास किया। पहली बार किसी गार्ड ने फोन रिसीव किया। दूसरी बार विनायकी देशमुख ने।
विनायकी का स्वर वह भली-भांति पहचानता था।
उसकी आवाज सुनते ही लाम्बा ने फोन डिस्कनेक्ट कर दिया। उसकी समझ में इतना नहीं आ रहा था कि जो नम्बर भूपत ने उसे दिया था , उस पर अब भूपत मिल क्यों नहीं रहा था।

तीसरी कोशिश में भी उसे नाकामयाबी ही मिली।
वह दो तरह के फैसलों में अटककर रह गया।
एक तो यह कि या तो भूपत किसी तरह फंस गया है या फिर उसने ज्यादा नशा कर लिया है, इस वजह से अंटा गाफिल हुआ वह किसी कोने में पड़ा है
चौथी कोशिश उसने नहीं की।
वह विला के पिछले भाग में पहुंचा और फिर उसने एक संकरी-सी गली में अपनी कार छिपा दी।
वह गली नहीं दो कोठियों के बीच का खाली गैप था। वहां रोशनी नहीं पहुंच पा रही थी , इस वजह से वह छोटी गली अंधेरे में डूबी थी।
गली , कोठियों की उस लाइन के अगले और पिछले भाग को जोड़ती थी।
पीछे पतली सड़की और सामने मुख्य सड़क।
कार का दरवाजा खोलकर लम्बा बाहर निकला।
उसके ओवरकाट के कॉलर खड़े थे और फैल्ट हैट चेहरे पर झुकी हुई थी। सिगरेट के कश लगाता हुआ वह चेदी सड़की की ओर निकल आया।
सड़क पर ट्रैफिकी हल्का था।
रात के अंधेरे में पैदल चलने वाले मुश्किल से ही नजर आपा रहे थे।
ज्यादातर अंधकार भरे भागों में होता हुआ वहमाणिकी देशमुख की विला के सामने से गुजरा।
आयरन गेट से ज ब उसने अन्दर झांका तो उसे पो र्टि को के समीप अच्छी-खासी हलचल नजर आई। पहली बार में वह कोई फैसला न कर सका। उसे लगा कि वहां की सुर क्षा व्यवस था अवश्य कुछ मजबूत कर दी गई है।
उस सुरक्षा व्यवस्था के होते वह विला में दाखिल होते ही पकड़ा जा सकता था।
और!
पकड़े जाने की सूरत में जो नतीजा होना था , उससे नावाकिफ नहीं था।
उसे मालूम था कि उसके पकड़े जाते ही उसे चला दी जाने वाली थी।
उसने जल्दबाजी मैं कदम उठाने से बेहतर विला का चक्कर लगाना उचित समझा। दूसरे चक्कर में उसे कुछ लोगो कारों में बैठते नजर आ वह तेज कदमों से अपनी कार की ओर बढ़ गया।
कुछ दूर जाने के बारद जब उसने मुड़कर देखा तो उसे सफेद रंग की रह रॉयस आयरन गेट से बाहर निकलती नजर आई।
उस सफेद रालस को वह अच्छी तरह पहचानता था।
वह जानता था कि उस शानदार कार में उस विला का मालिकी माणि की देशमुख ही यात्रा किया
करता था।
रॉल्स के पीछे एक एंबेसडर और एंबेसडर के पीछे एक जिप्सी थी।
वह समझ गया कि माणिकी देशमुख अपने लाव-लश्कर के साथ कहीं जा रहा है और वह यह भी समझ गया था कि वह लाव-लश्कर उसकी बजह से ही था।
देशमुख को अपनी जान का खत रा था।
तीनों कारें बाहर सड़की पर आ गई ।
लम्बा लपकता हुआ कार तक पहुंचा। उसके बाद वह बहु त सावधानी के साथ उन तीनों कारों के पीछे अपनी कार को दौड़ाने लगा।
उसने अपनी कार की सभी लाइटें ऑफ कर रखी थी । वह आगे चलने वाली कारों की लाइटों के मार्गदर्शन पर ही चल रहा था।
कारें दौड़ती रहीं।
पीछा होता रहा।
और अन्त में !
अन्त में रॉ ल स रॉ ल स , एंबेसडर और जिप्सी तीनों कारें एक विशाल इमारत के कम्पाउण्ड में दाखिल हो गई।
इमारत के आधे भाग में रोशनथी, आधे में अंधेरा।'
लाम्बा ने अपनी कार उस इमारत से बहुत पहले ही रोकी ली।
वह कार से बहार निकलकर पैदल ही इमारत की ओर बढ़ चला। उसकी आंखेंइधर-उधर घूम रही थीं।
उसने पूरी सावधानी के साथ इमारत का चक्कर लगाया। तत्पश्चात् वह इमारत के पिछले भाग से बाउंड्री ताल पार करके कम्पाउण्ड में आ गया।
पिछले भाग में कुछ सामान और ड्रम आदि पड़े थे और वहां से ऊपर चढ़ने , वाली सीढ़ियां भी थी । किन्तु सीढ़ियों के दरवाजे पर ताला पड़ा था।
उसने दीवार के सा थ सटकर खड़े होते हुए जेब से चाबियों का गुच्छा निकाल लिया , फिर वह उस ताले को खोलने की कोशिश में जुट गया।
___आठ चाबियां बदलने के बाद नवी चौबी ने काम किया और ताला खुल गया।
कुण्डी निकालकर उसने दरवाजे को अंदर की तरफ ठेला।दरवाजा हल्की चरमराहट के साथ खुल गया।
उसने ओ व रकोट के अन्द र वाली जेब से पिस्तौल निकाली और फिर वह बिना आहट किए सीढ़ियां चढ़कर ऊपर पहुंच गया।
ऊपर गलियारा था। गलियारे के बाद एक अंधेरे भरा हॉल और आगे पुराने डिजाइन की रेलिंग।
रेलिंग चरों तरफ बनी थी। बीच में एकदम समान्तर टंगा बडा-सा झूमर बता रहा था कि वह झूमर किसी बड़े हॉल की शोभा बना हुआ था।
धानी वह भाग इमारत के ग्राउंड फ्लोर पर बना हुआ एक बड़ा हॉल था ।
कुछ लोगों की बातों का हल्का -सा शोर हॉल में उ भर रहा था।
वह धीरे-धीरे दबे पांव रेलिंग के करीब आया । उसने झांककर नीचे देखा फिर तुरन्त ही पीछे हट गया ।
हॉल में कितने ही लोग थे।
उसे ओट की जरूरत थी । यूँ एकएक ही सामने आजाने से किसी की भी नजर ऊपर उठ स की ती थी।
वह दबे पांव रे लिंग के उस खम्बें की ओट में पहुंचा जिसका रेलिंग को साधने के लिए बीच में सपोर्ट दिया गया था।
नीचे झुककर उसने अपने आपको खं भे की ओट में छिपा लिया।
वहां से उसे नीचे देखने में न तो कठिनाई हो रही थी और ना ही उसके देख लिए जाने का ख तरा
था।
उसने देखा।
हॉल में लम्बी-सी टेबल पड़ी थी।
टेबल के एक सिरे पर चार लम्बे-चौड़े व्यक्ति थे। उन चारों के कंधों पर लम्बी-लम्बी स्वचालित गनेल ट की हुई थीं और सिर से लेकर गर्दन त की का हिस्सा आंखों को छोड़की र कपड़े से डंका हुआ था
देखने से ही वे बेहद खतरनाकी नजर आ रहे
थे।
टेबल के दूसरे किनारे पर था मालिकी देश मुख अफने लैफ्टीनेंट कोठारी के साथ । कोठारी के पीछे मौ जूद आदमियों में जोजफ सबसे आगे था।
बराबर में मै जूद था वि नायकी देश मुख , माणिकी देश मुख का बेटा।
एक नकाबपोश में लाल रंगा का सूटकेस खोलकर उसे माणिकी देशमुख की ओर धकेल दिया |सुटकेश नोटों की गड्डियों से भरा हुआ था ।
वह ज्यादा दूर न घिसट सका ।
टेबल के मध्य मे पहुंचकर रुकी गया।
__'बीस लाख पूरे हैं...चाहो तो गिन लो! ' एक नकाबपोश जो शायद अपनी आर्गेनाइजेशन का कोई औहदेदार था , अपनी खतरनाकी आंखों से माणिकी देशमुख को घूरता हुआ बोला।
कोठारी ने सूटकेस उठाने के लिए आगे बढ़ना चाहा , लेकिन माणिकी देशमुख ने उसे आगे न बढ़ने दिया।
'जोजफ! ' उसके स्वर में मानो जोजफ के लिए आदेश समाहित था।
जोजफ तुरन्त पीछे से आगे निकला। उसने सूटकेस उठाया और उसे ले जाकर माणिकी देशमुख के सामने रख दिया।
देशमुख ने दो-चार गाड्डियां उलट-पलटकर
देखीं।
फिर संतुष्टिपूर्ण ढंग से उसने सूटकेसब द करके विनायकी की ओर बढ़ा दिया।
काम हो जाएगा। ' उसने चारों नकाबपोशों की ओर नजरें उठाते हुए कहा।
'काम इतनी सफाई से होना चाहिए कि किसी को बाद में कुछ पता न चल सके। पुलिस उस विस्फोट के गुब् बार में कुछ भी तलाश न कर सके।' नकाबपोश उसे समझाता हुआ बोला।
' ऐसा ही होगा।'
'एक बात और।'
'कहो ?'
' आर० डी० एक्स० की मिकदार इतनी ज्यादा कर देना कि आसपास सिर्फ मलबा ही मलबा बाकी रह जाए। उस मलबे मैं लाशों के ऐसे टुकड़े होने चाहिए जिनसे किसी की शिनाख्त भी न हो सके।'
_' इसके लिए तुम्हें ज्यादा आर० डी० एक्सल सप्लाई करना होगा।'
' जितना कहोगे...हो जाएगा।'
'एक बात का ध्यान रखना , पुलिस आजकल कुछ ज्यादा ही सरगर्म है। जगह-जगह छापे पड़ रहे हैं , तलाशियां हो रही हैं। '
'हमजाते हैं। पुलिस की फिक्र मत करो, अगर पुलिस हमारे रास्ते में आई तो हम पुलिस से भी टकरा जाएंगे।'
'सवाल टकराने का नहीं, सवाल है सफाई के साथ अपना काम निकाल लेने का।'
'वैसा ही होगा।'
'रिस्की आर० डी० एक्स० को इधर से उधर पहुंचाने में है।'
'हमारा काम एकदम सटीकी होगा। जहां कहोगे...हम आर० डी० एक्स० पहुंचा देंगे। आगे उसे सैट करना तुम्हारा काम होगा।'
'कितना आर० डी० एक्स ० दे सकते हो ?'
'हम आर० डी० एक्स० का ढेर लगा सकते हैं। इतना आर० डी० एक्स० दे सकते हैं जो इस शहर के एक चौथाई हिस्से को मलबे की शक्ल में तब्दील कर सके।'
'नहीं...इतना नहीं चाहिए।'
जितनी भी जरूरत हो, बला दो। '
विनायकी ने तुरन्त माणिकी देशमुख के कान में कुछ कहा जिसके उत्तर में उसने स्वीकृति में गर्दन हिला दी।
'कोई खासबात है क्या ?'
'नहीं...कुछ नहीं । '
' तो फिर हमारा सौदा पक्का हुआ न ?' ' बिल्कुल पक्का।'
'नेता श्याम दुग्गल के जिस्म के टुकड़े भी नहीं मिलने चाहिएं।'
 

Hero tera

Active Member
1,166
3,223
144
नहीं मिलेंगे।'
' उसे विशेष सुरक्षा सुविधा हासिल है। ध्यान रखना , कहीं हल्की-सी भी चूकी न हो जाए। तुम्हारी
तरफ से की जाने वाली कोई भी छोटी से छोटी गलती तुम्हे बड़ी मुश्किल में पहुंचा देगी । '
'जानता हूं।'
'अब यह बताओ कि आ र० डी० एक्स० किस ऐड्रेस पर भेज दूं?'
माणिकी देशमुख ने एक पता बताया जिसे सुनते ही लाम्बा ने अपने दिमाग में नोट कर लिया।
' वहां कौन मिलेगा?'
' मेरा बेटा। ' माणिकी देशमुख ने विनायकी के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा।
'ठीकी है तो सारा प्लान तय हुआ। अब हम चलते हैं। कल आर० डी० एक्स ० उस जगह पहुंच जाएगा।'
माणिकी देशमुख ने उन चारों का अभिवादन किया।
वे चारों एक कतार में हॉल से बाहर निकल
गए।
लम्बा अपने स्थान पर छिपा रहा ।

उसका दिमाग तेजी से काम कर रहा था। उसने तुरन्त ही उसब विल्डिंग से बाहर निकलने का फैसला कर लिया।
वह उन चारों खतरनाकी नकाबपोशों के पीछे जाना चाहता था , लेकिन जब तक उसने सीढियां उतरकर बाउंड्री वॉल पार की , तब तक किसी कार के इंजन का शोर उभरकर दूर होता चला गया।
वह यह भी न देख सका कि इमारत से बाहर निकलने वाली कार कौन-सी थी और उसका नम्बर
क्या था।
उसके हाथ कुछ न लग सका।
उसे मालूम था , उसब विल्डिंग में माणिकी देशमुख का हीं कारोबार चलता था।
अभी तक वे तीनों कारें जिनमें देशमुख अपने आदमियों समेत वहां पहुंचा था , अन्दर ही थीं । इसका साफ मतलब था कि माणिकी देशमुख अभी
अन्दर व्यस्त था।
उसने एक मिनट सोंचा , अग ले ही क्षण वह अपनी कार की ओर चल पड़ा।
उसके दिमाग में नई योजना जन्म ले चुकी थी।
कार में बैठते ही उसने उसे स्टार्ट करके गति दे दी। वह तूफानी रफ्तार से अपनी कार माणिकी
देशमुख की विला की ओर दौड़ा ए चला जा रहा था।
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
रंजीत लाम्बा ने माणिकी देश मुख के विला में उस समय सीधा धावा बोल देना उचित अवसर माना था। उसे मालूम था , उस समय विला में माणिकी देशमुख , विनायकी देशमुख , कोठारी और जोजफ में से कोई नहीं था।
उसकी कार धड़धड़ाती हुई विला के फाटकी को उड़ाकर अन्दर दाखिल होती चली गई।
वह यूं भी पूरी तैयारी के साथ आ रहा था। उरसका प्लान थोड़ा-सा लेट हो गया। दो कुत्ते भौंकते हुए कार की ओर दौड़ने लगे।
उसने एक हाथ से स्टेरिंग संभालते हुए पिस्तौल नि का ली और फिर दो ही फायरों ने कुत्तों
का भौंकना बंद कर दिया।
लेकिन!
विला के फाटकी के उड़ने का शोर , कुत्तों का भौंकना और पीछे से दरबान द्वारा
ललकारा जाना , कुल मिलाकर इतना बड़ा शोर हो गया था कि समूचे विला में जाग ही गई थी।
गार्ड अंधाधुंध गोलियां बरसने लगे थे।
उनकी समझ में नहीं आ रहा था कि क्या हुआ था।
लाम्बा ने तेजी से धावा बोला था ।
कुत्तों को निशाना बनाने के तुरन्त बाद उसने दो दस्ती बम विला के पोर्टिको वाले क्षेत्र में फेंके।
दीवारों को थर्रा देने वाले दो विस्फोट हुए।
विला के विभिन्न भागों से गोलियां चलाई जाने लगीं। लम्बा ने गैरेज वाली दिशा में अपनी कार रोकते ही पांच-छ: धुएं के बम आसपास के क्षेत्र में उछाल दिए।
धुएं के बमों ने आनन-फानन में वहां इतना धुवां फैला दिया मानों वहां कोई बहुत बड़ी काली घटा उतर आयी हो।
बारूद की तीखी गंध वहां हर तरफ फैल चुकी थी।
लाम्बा ने कुछ इस तेजी से हमला बोला था कि विला के हर क्षेत्र में अफरा-तफरी फैल गई।
किसी की कुछ समझ में नहीं आ रहा था।
और!
उसी अफरा-तफरी का फायदा उठाता लम्बा

विला में दाखिल होकर जा पहुंचा उस
कॉरीडोर में जिसके सिरे वाले कमरे में पूनम की मौजूदगी की खबर उसके पास थी।
कॉरीडोर एकदम खाली पड़ा था।
उसे लगा उसका रास्ता साफ था।
गन संभाले वह दबे कदमों से उस तरफ बढ़ने लगा। उसके कान आसपास की आहट सुनने के लिए पूरी तरह सजग थे।
नीचे मचे हड़कम्प की वजह से शायद ऊपर का ध्यान किसी को नहीं था।
उसे लगा उसके लिए रास्ता एकदम साफ है।
वह बिना आहट किए भूपत द्वारा बताए गए कमरे तक पहुंच गया।
कमरे के दरवाजे बंद थे।
उसने इधर-उधर देखा और फिर गन की बैरल से दरवाजे को अंदर की तरफ ठेला।

दरवाजा खुलता चला गया। पूनम उसे सामने ही बैड पर नजर आ गई।
वह तेजी से पूनम की ओर बढ़ने लगा। उस क्षण उसे लगा , पूनम के चेहरे पर विचित्र-से भाव आए हो।
___ अंतिम समय में पूनम ने जोर से इंकार में सिर हिलाया।
उसी क्षण।
एकदम से नीचे गिरते हुए उसने कुलांच लगाई। उसकी गन के दहाने ने आग उगली।
पीछे से प्रकट होने वाले दोनो गार्ड गोलियां के वेग के साथ पीछे वालो दीवार से जा टकराए और दीवार पर खून के दुब बे छोड़ते हुए फर्श पर ढेर हो गए।
चीख मारती पूनम फटी-फटी आंखों से उन दोनों लाशों को देखने लगी।
'पूनम चलो! जल्दी निकलो यहां से! ' फुर्ती से कमरे के बाहर निकलता हुआ लाम्बा उत्तेजनापूर्ण स्वर में चिल्ला या।
पूनम भयभीत अवस्था में उसके पीछे भागी
दोनों एक साथ कॉरीडोर में दौड़ने लगे! बाल कनी के समीप से गुजरते हुए लम्बा ने एक स्मोकी बम हॉल में फेंकी दिया।'
हल्के ध मा के के साथ विला के अंदर धुओं ही धुआ फैलता चला गया।
विला में मौत का तक छा गया।
हर एक बौखलाया हुआ था।
लम्बा वहां ऐसा टेरर फैला चुका था जिससे उबरने का अवसर किसी को भी नहीं मिल पा रहा
था। गार्ड इधर से उधर भाग रहे थे।
पूनम ने उचित समय पर लम्बा को नया रास्ता सुझाया।
विला को स्थिति से लम्बा की इतनी अच्छी वाकफियत नहीं थी जितनी अच्छी पूनम को थी। पूनम ने उसे दायी ओर वाले हॉल से । बाहर निकाल दिया। बाहर दायीं और संकरा पैसेज था जो आगे जाकर ड्राइव-वे से जुड
जाता था।
लेकिन अचानकी ही ड्राइ व- वे दो गार्ड पहुंचे और उनकी नजर लम्बा पर पड़ गई । उस तरफ धु आ कुछ कम हो गया था।
दोनों गार्ड ने जैसे ही अपनि -अपनी गर्ने तनी, पूनम तुरन्त लाम्बा के सामने आ गई।
'खबरदार , जो किसी ने गोली चलाई। ' उसने चिल्लाकर धमकी भरे स्वर में कहा।
गार्ड कर्त्तव्यविमुढ़ स्थिति में खड़े के खड़े रह
गए।
उनकी समझ में नहीं आ रख था कि वे किस तरह से पूनम को रोकें।
पूनम के पीछे से लम्बा ने भी अपनी गन उन दोनों की ओर ता नी हुई थी। वह अपलकी दोनों गा
डों को देख रहा था।
अगर गार्ड हलाकि-सी भी हरकत करते तो वह गोली चलाने को तत्पर था ।
दोनों ओं र तनावपूर्ण स्थिति थी।
सिर्फ पूनाम थी जो बीच में दीवार बनी हुई थी।
त म लोग रास्ते से हट जाओ !' पूनम ने आह त स्वर में कहा।
' नहीं ... हम देशमुख साह व को क्या जवाब देंगे। ' उनमें से एक गार्ड बोला।
_ 'तो! तुम मुझ पर गोली चला दो फिर जवाब दे देना।'
'नहीं !'
'तो फिर यहां से हट जाओ।'
'नहीं !'
पूनम असमंजस की स्थिति में कसमसाई।वहां उसे एक-एक पल भरी प्रतीत हो रहा था। वह नहीं चाहती थी कि हाथ आया वह अवसर खाली चला।
जाए। उसे विला की कैद में गुजरा वक्त किसी खतरनाकी जेल से कम नहीं लगा था। इसलिए वह नहीं चाहती थी कि उसे उसका बाप फिर से उसी जेल
जैसी कैद में पहुंचा दे।
एकाएक उसने नया कदम उठाया।
रंजीत लाम्दा के होलक्टर में फंसे रिवॉल्वर को खींचकर उसने फुर्ती के साथ अपनी कनपटी पर उसकी नाल चिपटा ली।
'खबरदार! अगर तुम लोगों ने रास्ता नहीं छोड़ा तो मैं अपने-आपको गोली मार लूंगी ! ' उसने तीखे स्वर में चेतावनी दी।
'नहीं! हम रास्ता नहीं छोड़ेंगे।'
'रास्ता नहीं छोड़ोगे तो मुसीबत में पड़ जाओगे।'
'नहीं।'
'मेरी लाश यह कहने वाली नहीं कि मुझे किसने गोली मारी। मेरी मौत पर डैडी का बौखला
जाना स्वाभाविकी होगा और बौखलाहट में वह क्या कर जाएंगे , कुछ मालूम नहीं।'
दोनों गार्ड अभी उलझन में फंसे विचार कर ही रहे थे कि पूनम के पीछे से लाम्बा ने एक और धुएं का बम फेंका।
दोनों गार्ड चिल्लाते हुए पीछे हटे।
पलकी झपकते बादलों जैसा घना धुआ वहां फैल गया।
लाम्बा पूनम को अपनी बांहों मे उठाकर तेजी से बायीं ओर की दीवार से सटता हुआ भाग निकला।
हालांकि उसे कुछ नजर नहीं आ रहा था फिर भी अच्छा जे से भाग रहा था।
गोलियां चलने लगी थीं।
लेकिन उसकी , चालाकी कारगर साबित हुई थी। अगर वह उसी लाइन में भागता तो मुमकिन था कि गोलियों का शिकार हो जाता।
फिर उसने भागते-भागते आगे के रास्ते पर दो स्मोकी बम और फेंके। उसके बाद पीछे मुड़कर हैंड ग्रेनेड की पिन दांतों से खींचकर ग्रेनेड पीछे की दिशा में उछाल दिया।
कानों के पर्दे हिला देने वाला धमाका हुआ।
स्मोकी बम के ठहरते धुएं को यकायकी ही उड़ता ग्रेनेड का धुआ किसी तूफान की तरह भड़कता नजर आया।
पीछे उभरने वाली पगचा उस विस्फोट के साथ ही खत्म हो गई।
निकट ही लम्बा की कार थी।
वह फुर्ती से कार की ओर झपटा।
तभी अचानक!
कार की ओट से एक गनर सामने आया।
उसकी गन ने आग उगली।
लम्बा नीचे गिरा। उसने नीचे गिरते हुए अपनी गन से गोलियां बरसानी चाही थीं, लेकिन वह गनर कुछ ज्यादा ही खतरनाकी साबित हुआ।
उसने गजब की फुर्ती से अपनी गन पूनम की ओर तान दी।
'खबरदार! अगर कोई हरकत की तो इसका भेजा उड़ा दंगा। ' वह लम्बा की ओर देखता हुआ गुर्राया।
'नहीं।' लाम्बा चिल्लाया।
'गन वहीं छोड़ दो और दोनों हाथ सिर पर रखकर खडे हो जाओ।'
उसने तुरन्त आ ज्ञा का पालन करते हुए गन वहीं छोड़ दी और वह अपने दोनों हाथों को सिर पर रखकर धीरे-धीरे खड़ा होने लगा।
गनर पूरी तरह सावधान था।
वह कभी पूनम की ओर देखता तो कभी लाम्बा की ओर । उसे देखने से प्रतीत हो रहा था जैसे वह दोनों से बराबर का खतरा महसूस कर रहा था।
'देखो...मुझे जाने दो। ' पूनम प्रतिरोध पूर्ण स्वर में बोली।

'नहीं! खबरदार! कोई हकरत न करना !' वह बार-बार अपनी गन पूनम और लाम्बा की ओर घुमाता हुआ जोर-से बोला।
लाम्बा ने जान-बूझकर अपने हाथ नीचे करने का प्रयास किया।
'हाथ ऊपर ही रहने चाहिएं वरना। ' गनर उत्तेजना की अधिकता में सांस रोककर दांत पीसता हुआ कुछ इस प्रकार गुर्राया कि उसके गले की तमाम
नसें फूल गई।
लम्बा ने इस प्रकार उदास होकर हाथ ऊपर उठाने शुरू किए मानो गनर की सजगता की वजह से उसका कोई होता हुआ काम होत-होते रह गया हो।
'हाथ बीच में मत रोको। सिर तक पहुंचा
दो।'
ये लो।' लाम्बा ने खीझ के साथ दोनों हाथ अपने सिर पर रख लिए।
__' हमें जाने दो...प्लीज हमें जाने दो! ' पूनम ने गनर से विनती करते हुए कहा।
'नहीं!'
'हमें रोककर तुम्हारा कोई फायदा होने वाला नहीं।'
'फायदा नुकसान देशमुख साहब जानें। मेंने अपनी ड्यूटी करनी है।'
लाम्बा देख रहा था।
गनर उस समय पूनम की बातों में उलझा हुआ था। उसके अपने हाथ सिर पर थे ही। गनर के ठीकी पीछे पीठ वाले होलस्टर में उसका रिवाल्वर मौजूद था।
उसने बहुत छोटी-सी हरकत मात्र करनी थी।
पून म से बातों में व्यस्त समय को उचित अवसर मानते हुए उसने दायां हाथ थोड़ा-सा गर्दन के पीछे किया।
कोई हरकत हो रही है , यह जानकारी गनर को भी हुई।
उसकी पुतली फिरने से भी पहले लाम्बा फुर्ती के साथ पीठ वाले होलस्टर से रिवाल्वर खींचकर फायर झोंकी चुका था।
गोली बंदूकधारी का भेजा उड़ाती हुई निकल
गई।
बह प्रतिरोध स्वरूप कुछ भी न कर सका।
उसकी लाश लहराती हुई-सी नीचे गिरने
लगी।
लम्बात जी से दौडता हुआ अपनी कार में जा घुसा।पूनम भी दूसरी ओर वाले दरवाजे को खोलकर अन्दर दाखिल हो गई।
उसके कार में बैठने से पहले ही कार स्टार्ट हो चुकी थी।
तत्पश्चात्।
यूं लगा मानो कार को पंख लग गए हों। वह तूफानी रफ्तार से दौड़ती हुई विला का फाटकी वाला स्थान पार कर गई।
फाटकी अब अपनी जगह बाकी नहीं था। उसे लाम्बा आते समय अपनी कार की टक्कर से उडा चुका था।
00
पुलिस के चले जाने के बाद माणिकी देश मुख विला के भूमिगत भाग में कोठारी और जोजफ से मिला।
उसका चेहरा बता रहा था कि वह बहुत अधिकी क्रोध में है।
कोठारी और जोजफ दोनों समझ रहे थे कि उनकी शामत आनी है अब। जो भी
होना था उसे बर्दाश्त करने के लिए वे चुपचाप सिर
झुकाकर उसके सामने खड़े हो गए।
कुछ देर तक वह खामोश रहकर अपलकी उन दोनों को घूरता रहा और फिर तीखे स्वर में गुर्राया - ' कितने सारे आदमियों के बीच से वह हरामजादा लाम्बा मेरी बेटी को उड़ा ले गया और-ये तमाम आदमी तेरे चुने हुए हैं कोठारी। तेरे हिसाब से तूने चु नींदा आदमी मेरी फौज के लिए इकट्ठे किए थे। योग्यताओं से भरपूर थे ये लोग...हां?'
.
.
.
कोठारी को ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे किसी ने उसे ऊपर से ठोंककर जमीन में घुटनों तक गाड़ दिया हो।
'वो ले गया...ले गया मेरी बेटी को उड़ाकर और तेरे ये मिट्टी के शे र उसके सामने घुटने टेककर खड़े हो गए।
-
-
'मेरे चुने आदमियों की कोई गलती नहीं है साहब। ' कोठारी दबे हुए स्वर में बोला।
'फिर मेरी गलती होगी।'
'नहीं।'
'फिर?'
'आप अगर याद करें तो आपको याद आएगा कि रंजीत लाम्बा का चुनाव भी मैंने ही किया था और कहा था कि वह वाहिद शख्स इतना ज्यादा खतरनाकी है कि बीस-तीस आदमियों पर भी भारी पड़ सकता है। वह बारूद है बारूद। ऐसा बारूद जिसे छूते ही छूने वाला जलकर राख हो जाया करता है। इसीलिए मैं नहीं चाहता था कि उससे किसी तरह की दुश्मनी हो।'
'दुश्मनी मैंने की है...मैंने ?' माणिकी देशमुख क्रोध में चिल्लाया।
मैं उस मामले को सुलझा सकता था। वह समझदार आदमी है। अगर मैं उसे समझाता तो वह पूनम बेबी के रास्ते से हट जाता। '
'कोठारी तू पागल हो गया है। क्या तू नहीं जानता कि माणिकी देशमुख की बेटी की तरफ गलत इरादों से उठने वाली आंख को निकाल लिया जाता है।'
'इस दुनिया में हर किसी को बाप बनाया गया है। 'कोठारी धीमे स्वर में बड़बड़ाया।
'तूने कुछ कहा ?'
' मैं यह कह रहा हूं साहब कि रंजीत लाम्बा अब कुछ नहीं कर सकेना। अगर उसने दोबारा विला में कदम रखने की कोशिश की तो वह बच के जा नहीं सकेगा।'

'अरे बेवकूफ, अब वह विला में कदम रखेगा ही क्यों.. उसने जो करना था वह वो कर
चुका। उसने बंदूकों के साए में छिपी पूनम को बड़ी आसानी से किडनेप कर लिया। '
उसने हम लोगों की गैर मौजूदगी का फायदा उठाकर यह काम किया है। '
'उसने जैसे भी किया मूर्ख! वहमेरी बेटी को ले उड़ा है और अब हमारे सामने सिर्फ एक ही रास्ता रह गया है।'
'कौन-सा रास्ता?'
'जितनी जल्दी हो सके हम उसे तलाश कर
लें।'
' पहले उसे तलाश किया जाए या फिर नेता श्याम दुग्गल के केस पर काम शुरू किया जाए? हमें वह काम भी जल्द से जल्द पूरा करना है। '
' हां... वह काम भी...।'
' ऐसे ही कामों के लिए रंजीत लाम्बा को रखा गया था। अगर इस वक्त वह हमारे साथ होता तो हमारे लिए किसी भी तरह की उलझन न होती। वह
अकेला ही श्याम दुग्गल का काम तमाम कर डालता।
'कोठारी!'
'यसब ॉस ?'
कुछ भी हो जाए , तेरे मुंह से उसके लिए तारीफ ही निकलती है। '
'वह है ही तारीफ के काबिल। '
 

Hero tera

Active Member
1,166
3,223
144
मैं समझ रहा हूं।'
'अब आप यह भी बताएं, किया क्या जाए
'सुन..।'
'जी?'

' ते रा एक ही काम है।'
'लाम्बा की तलाश न ?'
'हा।'
' और दुग्गल वाला मामला?'
'उसे फिलहाल जोजफ देखेगा।'
' समझ ले बॉस... वहमामला बहुत सीरियस है। बच्चों का खेल नहीं। जिन लोगों ने बी स लाख एडवांस दिए हुए है। उन्हें अपने काम में किसी तरह का नुक्स नहीं चाहिए होगी।'

'तू फिक्र मत कर। मुझे किसी भी कीमत पर लम्बा चाहिए । तू लाम्बा को ले आ। दुग्गल का काम मैं पूरी करवा दूंगा।'
'लगता नहीं।'
'क्या नहीं लगता ?'
' दोनों में से एक भी काम होता। '
'तुझे जो करने को बोला है वो कर...बस! '
.
.
.
'जो आज्ञा बॉस।'
'अब तुझे यहां रुकने की जरूरत नहीं है।'
कोठारी ने कनखियों से जोजफ की तरफ देखा और फिर वह चुपचाप तहखाने की सीढियों की
ओर बढ़ गया।
उसके चले जाने के बाद देशमुख धीमे स्वर में जोजफ को कुछ समझाने लगा।
लम्बा ने सलीम के गोरव में अपनी खस्ता हालत कार बनने को छोड़ दी थी। उसका नया ठिकाना समीप ही था। जिस तरह की जिन्दगी वह जी रहा था , उसके लिए उसे कितने ही ठिकाने दरकार थे।

यह एक पुरानी बिल्डिंग थी।
उस क्षेत्र में बिखरी हुई आबादी थी।
बिल्डिंग में जरूरत का तमाम सामान पहले से ही जमा था। इस तरह के इंतजाम वह करके रखता
था।
उसे विश्वास था कि उसे आसानी से वहां तलाश नहीं किया जा सकता था।
उसके ठिकानों से मकान मालिकों के अलावा अगर कोई वाकिफ होता था , तो वह खुद होता था।
पूनम को मुक्त कराने के बाद उसे जो शांति मिली थी, उसके आगे जैसे उसे और कुछ चाहिए ही
नहीं था।
वह शाम उसने शानदार कॉकटेल पार्टी करके सेलीब्रेट को थी।
उस पार्टी में उसके और पूनम के अतिरिक्त तीसरा कोई न था।
नशे में दोनों अपने-आपको दुनिया का सब से खुशकिस्मत व्यक्ति महसूस कर रहे थे।
बैडरूम में दाखिल होते ही पूनम एका एक ही ठोकर लगने के बाद बड़बड़ाई- ' ऐई धक्का देते हो?'
वह हंसा।
'हंसना ' नहीं।'
वह फिर हंसा।
प्रत्युत्तर में पूनम भी हंसी।
उसकी हंसी में नशे की आजादी को स्पष्ट अनुभव किया जा सकता था। उस समय उसने हल्के पीले रंग का स्वेटर और ब्राउन जींस पहनी हुई थी।
नशे की वजह से उसकी आंखो में चमकी उभर आयी। उसके गोरे विकसित कपोल तपकर लाल हो चले थे।
जिस अंदाज से वह देख रही थी , उससे लाम्बा के दिल में विचित्र-सी हलचल मचती जा रही थी।
__कैद से मुक्त पंछी जिस त रह खुश होता है, वैसी ही खुशी पूनम के चेहरे पर देखी जा सकती थी। शराब के नशे ने उस खुशी में चार-चांद लगा दिए थे।
उस उच्छृखल खुशी के आगे दुनिया की कोई भी खुशी उसके लिए फीकी थी।
लाम्बा आदतन अपने आसपास का ध्यान रखे हुए था। वह एक पेशेवर हत्यारा था और उसके लिए हमेशा अपने कान और आंखों को खुला रखना
होता था।
उसने खिड़की से बाहर झांका फिर वापस लौट आया।
हालांकि उस खुले क्षेत्र में किसी प्रकार के खतरे की आ शा नहीं थी , लेकिन फिर भी वह चूंकि सजग रहने का आदी था-इसलिए हर त रफ उसकी निगाहें घूमती रहती थीं।
धीरे-धीरे पूनम की मस्ती बढ़ती जा रही थी।
नशा उसकी आंखों में मस्ती को बढ़ाता जा रहा था।
लम्बा का ध्यान जब उसे इधर-उधर भटकता-सा लगा तो वह स्वयं आगे बढकी और उसने अपनी सुडौल बांहों का हार लम्बा की गर्दन में पहना दिया।
लाम्बा के हाथ उसकी कमर पर जा पहुंचे ।
उसके बाद गर्म सांसें घुलने लगीं। अधरों से अधर जुगाये। एक प्रगाढ़ चुम्बन!
उस ए की चुम्बन ने पैट्रोल में चिंगारी का काम किया।
वासना की आग भड़की उठी।
पूनम के दोनों हाथों की उंग लिया लाम्बा के सिर के बालों में घूमनी आरंभ हो गई। उसका नि चला
अधर लम्बा के मुंह के अंदर जा चुका था।
दोनों एक-दूसरे के आलिंगन में गुंथ गए ।
फिर लम्बा ने पूनम को एकाएक ही अपनी बांहों में उठा लिया।
__ 'हाय रे...क्या कर रहे हो?' वह उसे आंख मारती हुई नशे में डूबे स्वर में बोली।
' प्यार।।
' कैसे करोगे प्यार ?'
' प्यार से करूँगा...प्यार।'
'हाय।'
'बहुत खुश नजर आ रही हो?'
'तुम्हारे पास किसी भी हाल में खुश हूं।'
'किसी भी हाल में ?'
'हां...किसी भी हाल में।'
मुस्कराते हुए लाम्बा ने पूनम को ऊपर से ही बैड पर छोड़ दिया।
'उई मां।' वह नीचे गिरती हुई बनावटी क्रोध के साथ चिल्लाई।
'मुलायम डनलप बैड पर गिरने से चोट लगने का सवाल ही नहीं उठता था ।
हंसता हुआ लाम्बा उसके ऊपर ही ढेर हो
गया।
उसके बाद दोनों ने एक-दूसरे के शरीर से उनके वस्त्र उतार फे के। निर्वसन, स्निग्ध ब द न। करंट लगने जैसा स्पर्श और तेज होती हुई सांसें।
एकाकार होते हुए आलिंगनबद्ध हो गए वे।
दोनों ही एक-दूसरे को विभिन्न स्थानों पर चूम रहे थे। पूनम नीचे आ चुकी थी।
उसके मुख से कामुकी सत्कार निकले आरंभ हो गए। उसकी सांसें लम्बा की सांसों के साथ ही तीव्र होती जा रही थीं।
अंत में वह क्षण भी आया जब आनन्द के चरमोत्कर्ष पर पहुंचती पूनम के दांत लाम्बा के कंधे में गढ़


गए।
वह लम्बा से कसकर लिपट गई।
दोनों एक-दूसरे के आलिंगन में देर तक जकड़े रहे।
और!
उसी स्थिति मे उन्हें नीद ने आ दबोचा।
कोठारी ने रंजीत लाम्बा की तलाश में कुछ आदमियों को भेजने के साथ-साथ स्वयं भी भाग-दौ ड़ की थी और उस समय वह थका-हारा निराशा में डूबा विला में दाखिल हुआ ही था कि एक गार्ड ने उसे सूचित किया की विदेशमुख साहब उसे अपने कमरे में बुला रहे हैं।
वह सीधा माणिकी देशमुख के कमरे में जा पहुंचा।
कमरे में कदम रखते ही वह चैका ।
वहां देशमुख अकेला नहीं था।
जोजफ था और जोजफ के अतिरिक्त था जार्ज पीटर। अ ण्ड रवर्ल्ड का एक अहम मोहरा।
'कुछ पता चला ?' उसे देखते ही मुणिकी देशमुख ने पूछा।
' अभी नहीं। ' उसने अपेक्षाकृत धीमे स्वर में कहा।

'पी टर तेरी मदद करेगा रंजीत लम्बा की तलाश करने में।'
'क्यों बॉस...क्या मैं लाम्बा को तलाश कर नहीं सकूँगा?'
'अभी तक तो नहीं ही कर सका है न और पीटर ने लम्बा से अपना कुछ उधार
भी चुकता करना है। ' देशमुख जार्ज पीटर की ओर देखता हुवा विषैले अंदाज में मुस्कराया।
'ले किन बॉस...।'
.
.
.
.
.
.
'नो इफ एण्ड नो बट . ..जो मैं कह रहा हू वह तू कर। लम्बा की तलाश में पीटर की तू हर तरह की मदद करेगा। पीटर भी तुझे मदद करेगा और उसकी यहमदद फ्री ऑफ कॉस्ट होगी। अगर इसे लम्बा का मर्डर भी करना पड़ा तो उसका भी कोई चार्ज नहीं।'
कोठारी खामोश रहा। लेकिन उसकी खामोशी के बावजूद इस बात को भली-भांति समझा जा सकता था कि वह अपने बॉस के उस फैसले से नाखुश था।
जार्ज पीटर का दखल उसकी समझ में नहीं आ रह था।

'तू समझ रहा है न मैं क्या कह रहा हूं?' माणिकी देशमुख उसके चेहरे को पढने की चेष्टा करता हुआ बोला।
'जी।'
'तो अब जा...जाकर पीटर की मदद कर।'
पीटर उठ खड़ा हुआ।
कोठारी माणिकी देशमुख से कुछ कहना चाहता था किन्तु फिर उसने इरादा बदल दिया।
पीटर उसके चलने के इंतजार में उससे दो कदम आगे खड़ा उसे निहार रहा था।
मजबूरन उसे पीटर के साथ चल देना पड़ा।
वह पीटर को लेकर बाहरले हॉल में जा पहुंचा।
हॉल में उन दोनों के अतिरिक्त कोई नहीं था।
पीटर ने कोई भी औपचारिकी ता निभाए बिना सिगरेट सुलगाई और फिर आराम के साथ उसके कश लगाने लगा।
'तुमने लाम्बा को कहां-कहां तलाश किया ?' कुछ देर बाद उसने धुवां उगलते हुए अपने और कोठारी के बीच की खामोशी को तोड़ा।
'उसके जितने भी ठिकानों की जानकारी और उसने जोजफ के नाम की जानकारी तुमसे हासिल करने के बाद तुम्हें गोली नहीं मारी। वरना तो वह अपने किसी भी दुश मन को कभी क्षमा नहीं करता। वह ए ग्जीक्यूशनर है। जल्लाद! और जल्लाद बेरहम होता है।'
'मुझे गोली मारने के लिए शेर का कलेजा चाहिए।'
'वह शेर ही है।'
'शेर नहीं-गीदड़ है , इसीलिए तो दुम-दबाए भागा फिर रहा है। शेर होता तो कब का सीना ताने मेरे सामने आ चुका होता।'
शेर जब अपना शिकार करता है तो उसे पहले तो छिपना ही पड़ता है घात लगाने के लिए। अगरु वह सामने आ गया तो फिर शिकार ने तो भाग ही जाना होगा न। ' कोठारी ने अपलकी उसकी
आंखों में झांकते हुए बेझिझकी कहा।
वह पीटर के बारे में जानता था-लेकिन उसका अपना दबदबा भी अण्डर वर्ल्ड में कुछ कम नहीं था। वह खुद एक बहुत बड़ा दादा हुआ करता
था।'
वह पीटर जैसे लोगों से खौफ खाने वालों में नहीं था। पीटर कोठारी की शक्ति से वाकिफ था।
__'बहुत तारीफ कर रहे हो उसकी?' पीटर उसके चेहरे को पड़ने की कोशिश करता हुआ बोला।
 

Hero tera

Active Member
1,166
3,223
144
तारीफ नहीं...उसकी वाकफियत करा रहा
'अच्छा अब यह बताओ , व हमिल कहां सकता है ?'
'उसके सभी ठिकाने जो मैं जानता था , उन्हें देख चुका।'
' वहां वह नहीं मिला ?'
'नहीं।'
'कहीं वह शहर छोड़कर भाग तो नहीं गया ?'
' किसी भी संभावना से कैसे इंकार किया जा सकता है।'
'तुम्हारे बॉस ने तुम्हें मुझे सहयोग करने को कहा है।'
' हां।'
' मैं लाम्बा को तलाश करना चाहता हूं।'
'ठीकी है। उसके लिए तुम जो बताओ मैं वो करने को तैयार हूं।'
-
' मैं यह जानता हूं कि लम्बा का देशमुख साहब की बेटी पूनम से कुछ था और उसी कुछ के नतीजतन यहां इतना सारा झमेला हुआ। लड़की लाम्बा के साथ चली गई।'
कोठारी ने उसे घूरकर देखा , बोला कुछ नहीं।
'वह किसी कार में आया था। उसने विला के बाहरले फाटकी को कार की ठोकर से उड़ा डाला था। उड़ा डाला था न ?'
'हां।'
' इसका मतलब वह कार...| ' पीटर एकाएक ही खामोश होकर विचारों में डू बता चला गया।
'वह कार क्या ?'
' वह कार जरूर टूटी-फूटी होगी।' ' वह उसकी पर्सनल कार थी ?' 'ऐसे लोगों का कुछ भी पर्सनल नहीं होता। '
'यानी पर्सनल नहीं थी।'
'नहीं।'

' अच्छा कौन-सी कार थी' उसका नम्बर कलर आदि ?'
कोठारी ने उसे सब बता दिया।
वह एक-एक बात नोट की र ता चला गया ।
'उस कार से तुम क्या मालूम कर लोगे?' को ठारी ने विचारपूर्ण स्वर में कहा।
'शायद कर लूं।'
'कैसे?'
' उसकी कार में इतनी सारी विशेषताएं हैं। तलाश आसान नहीं , फिर भी तलाश हो तो सकती
है।।
' कैसे?'
'जाहिर है , वह टूटी-फूटी कार का इस्तेमाल तो कर नहीं रहा होगा। जरूर कहीं न कहीं उसकी मरम्मत हो रही होंगी। हमें तो महज गिनती के गैराज झांकने , होंगे। छोटे-मोटे गैराज नही। बड़े गैराज देखने होंगे और बड़े गैराज को देखना कोई बड़ा काम नहीं।'
कोठारी को लगा कि पीटर- सही कह रहा
था।
जहां तक पीटर का दिमाग पहुंचा था वहां वह स्वयं नहीं पहुंच सका था।
'क्यों...कैसा लगा मेरा आइडिया ?'
.
.
.

'आइडिया अच्छा है , लेकिन यह आ इडिया तभी लागू हो सकेगा जबकि लाम्बा इसी शहर में होगा , शहर छोड़कर कहीं चला नहीं गया होगा। '
_ 'हां.. .ये चांस तो लेना ही पड़ेगा। ' कहता हुआपीटर टेलीफोन की ओर बढ़ गया।
उसने चार जगह फोन किया और चारों जगह कार का हुलिया बयान करते हुए खामोशी के साथ उसकी तलाश का काम करने का आदेश दे डाला। -
फिर कोठारी से बोला-'चलो...अब हम भी कुछ करते हैं।'
'चलो।' कुछ ठहरकर उसने स्वीकृति दे दी।
पीटर तो तैयार था ही। कोठारी को निकलने में थोड़ा-सा वक्त लगा। उस वक् फे में वह पीटर को छोड़कर एक बार तन्हा माणिकी देशमुख से मिलने गया।
'बॉस..! ' वह आदर प्रदर्शित करता हुआ बोला-'पीटर चाहता है मैं उसके साथ जाऊं।'
' लाम्बा की तलाश में न?'
। हां।'
'मुझे भी लगता है।'
___ 'फिर देर मत कर...फौरन उसके साथ जा और सुन... उसके साथ रहने के साथ-साथ तुझे अपने दिमाग का
इस्तेमाल भी करना होगा। क्या समझा ?'
'जी...समझ गया।'
'क्या समझ गया ?'
'जैसे - ही किसी तरह की कोई खबर लगे, मैं तुरन्त आपको सूचित कर दू।'
' हां।'
'मैं जाऊं?'
'तू अभी तक यहीं खड़ा है। अरे , मुझे
अपनी बेटी की खातिर एक-एक पल भारी हो रहा है। जा मेरे बाप...जा और जल्द से जल्दी उस हरामखोर की कोई खबर भेज।
जा! ' -
कोठारी तुरंत ही वहां से निकलकर पीटर के साथ चला गया ।
सुबह के चार बजे लाम्बा की आंख खुल गई।
वह उठना नहीं चाहता था-लेकिन मजबूरन उसे उठना पड़ा। सर्दी ने उसे उठा दिया था। उसने देखा , साइड मे पूनम चादर को अस्त-व्यक्त स्थिति में लपेटे पड़ी थी।
.
-
-
.
चादर उस की कम र से लिपटकर टांगों में जा उलझी थी।
उसके बदन पर चादर के अतिरिक्त कोई कपड़ा नहीं था। उसकी कमर का खम और गोल पुष्ट नितम्बों का गोरा उभार स्पष्ट चमकी रहा था।
दायीं टांग पूरी तरह न ग न थी। केले के तने-सी चिकनी और चमकदार। '
उस स्थिति मैं वह बेहद सैक्सी नजर आ रही थी। लम्बा उसका वह कामोत्तेजकी रूप देख सब-कुछ भूल गया। न उसे सर्दी याद रह गई, न नींद। वह अपलकी उसके यौवन का रसपान करने लगा।
कितनी ही देर तक वह उसके पासब ठा उसे जगाने न जगाने के बारे में विचार करता रहा।
अन्त में।
वह अपने पर संयम न रख सका ।
उसका हाथ पूनम के नग्न नितम्ब से फिसलता हुआ उसकी कमर पर जा पहुंचा। '
तत्पश्चात् वह उस पर झुकता चला गया और उसके अधर पूनम के रक्त म अधरों से जा चिपके । वह उससे सटता चला गया।
गहरी नींद में डूबी पूनम कस मसा ई।
और नींद में ही वह लाम्बा की सशक्त बांहों में सिमट गई- क्यों सता रहे हो इतना। मै थककर चूर हो
चुकी है।'
प्यार करने में बार-बार थकने का ही तो मजा है। ' उसकी चिकनी पीठ पर हाथ फेरता हुआ लाम्बा उत्तेजकी स्वर में बड़बड़ाया।
पूनम ने पूरी आँखें खोल दीं।
प्यार भरे अंदाज से उसने लम्बा की आँखें में देखा। देखती ही रही वह।
फिर उसने एक झटके के साथ लाम्बा का चेहरा अपने वक्षों में भींच लिया।'
उसके बाद!
सांसों का शोर उमड़कर शांत हो गया और वे दोनों एक-दूसरे की बांहों में गुथकर बेहोशी की नींद सो गए।
0
खबर शीघ्र ही पीटर तक पहुंच गई।
सलीम के गैराज में वह कार मौजूद है जिसका हुलिया बताया गया था।
पीटर कोठारी के साथ तेजी से सलीम के गैराज जा पहुंचा।
सलीम एक परिश्रमी युवकी था।
उसे पीटर ने उसके गैराज में ही जा घेरा।
पीटर के साथ कोठारी के अतिरिक्त दो आदमी और थे। चार आदमियों के घेरे में घिरकर सलीम एकाएक ही घबरा-सा गया।
'क्या बात है साहब ?' ग्रीस से काले हो रहे हाथों को कपड़े से साफ करते हुए उसने तनिकी बौखलाए हुए स्वर में पूछा।
' इस कार का मालिकी कौन है ?' पीटर ने क्षतिग्रस्त कार की ओर संकेत करते हुए पूछा।
' मालूम नहीं साहब। '
'ज्यादा चालाकी बनने की कोशिश मत कर ! ' एकाएक ही पीटर के तेवर बदल गए। वह दांत पीसता हुआ क्रोधित स्वर में गुर्राया।
'नहीं साहब , मैं सच कह रहा हूं।'
'तू अपने ग्राहकों को जा ने बिना ही उनकी गाड़ी ले लेता है ?'
'ज्या द तर ग्राहकी मेरी पहचान के ही हैं, लेकिन कुछ ग्राहकी तो नए होते ही हैं । उन्हीं नए ग्राहकों में इस गाड़ी का मालिकी भी था।'कैसा था वह ? उसका हुलिया बता?'
कोठारी ने बीच में दखल देते हुए पूछा।
सलीम ने हुलिया बताया।
हुलिया रंजीत लाम्बा का ही था।
वह संतुष्ट हुआ। ' उसने तुझे क्या बोला?'
'वह जल्दी से जल्दी अपनी कार की मरम्मत कराना चाहता था। लेकिन मैंने उसे बोला कि जितना काम उसकी गाड़ी में है उतना काम इतनी जल्दी नहीं हो सकता। गाड़ी में काम बहुत था। उसे मैं इतनी जल्दी पूरा नहीं कर सकता था।'
' तूने गाड़ी कब बनाकर देने को कहा है ? जार्ज पीटर पुन: बीच में बोल उठा।
'कोई टाइम नहीं दिया। मैंने उसे बोला था कि चक्की र लगाता रहे। गाड़ी में बीच-बीच में कोई बड़ी जरूरत भी पड़ सकती है । इसलिए उस जरूरत को पूरा कर ने के लिए उसे पैसा लगाना होगा।'
'वह कितनी बार आया अब तक ?'
'सिर्फ एक बार।'
'त ब तक कुछ बना था ?' 'काम ही शुरू नहीं हुआ था तब । '
' फिर ?'
' फिर वहमुझे एक हजार रुपया देकर चला
गया।।
दोबारा कब आने को कहा था ?'
'दो एक दिन बाद।'
' आर्ह सी।'
__' तूने उसे पूछा नहीं कहां रहता है वह ?' कोठारी ने आतुर स्वर में उससे पूछा।
'नहीं।'
'तूने पूछना तो चाहिए था न ?'
सलीम खामोश रहा। उसे उस पुलिस प्रकार कि तहकीकात पर गुस्सा तो आ रहा था, लेकिन क्या करता वह। मजबूरन उसे सवालों के जवाब देने पड़ रहे थे। पीटर ने कोठारी को पीछे आने का संकेत किया। कोठारी उसके पीछे-पीछे आ गया।
'क्या लगता है ?' अपनी कार के निकट पहुंचकर उसने कोठारी से धीमे स्वर में पूछा।
'किसबारे में?'
' इ स छोकरे के बारे मैं ?'
'लगता तो सच्चा है।'
'मक्कार भी हो सकता है न ?'
'मक्कारी होगी तो हाई क्लास की होगी। बड़ा एक्टर साबित होगा वो।'
'हां...।'
' वैसे मेरा तजुर्बा कहता है कि वह सच कह रहा है।'
'हो सकता है, कह रहा हो। लेकिन सवाल इस बात का है अब किया क्या जाए ?'
'इंतजार।'
' यानी यहां अपने आदमी छोड़ने पड़ेंगे?'
'गैराज में नहीं।'
' फिर ?'
'गैराज का ज्यादातर हिस्सा खुला हुआ है। वह सामने उस कोने में जो चाय की छोटी-सी दुकान है, वहां से आसानी से नजर रखी जा सकती है। '
'ठीकी है।'
उसके बाद पीटर ने अपने दो आदमी वहां छोड़ दिए।
और !
कोठारी चला गया माणिकी देशमुख को फोन करने।
उसने टेलीफोन बूथ से फोन किया।
'कौन है ?' दूसरी- ओर से पूछा गया।
'कोठारी बोल रहा हूं बॉस। ' व ह देशमुख की आवाज पहचानता हुआ बोला।
'हां....बोल ?'
'गाड़ी मिल गई।'
' किसकी? लाम्बा की?'
'यसबॉस।'
' और लाम्बा ?'
'वो भी मिल जाएगा । आप चार आदमी भेज दें। यहां पीटर ने अपने आदमी छोड़ रखे हैं, लेकिन मैं चाहता हूं कि उस से पहले लाम्बा का पता हमें लगे।'
___ 'तू जगह बता , मैं आदमी भेजता हूं।'
कोठारी ने तुरन्त सलीम के गैराज का पता बता दिया। उसके बाद वह वहां तब तक चक्कर लगाता रहा जब तक कि माणिकी देशमुख द्वारा भेजे हुए आदमी वहां पहुंच नहीं गए।
उन आदमियों को निर्देश देकर वह वहां से लौट आया।
अपने हिसाब से उसने चतुराई से काम लिया था-लेकिन वहां स्थिति डाल -डाल और पात-पात वाली थी।
कोठारी-ने जो हिसाब लगाया था , जार्ज पीटर उससे भी दो कदम आगे था।
उसकी गणित के अनुसार जिस क्षेत्र में सलीम का गैराज था , रंजीत लाम्बा का ठिकाना भी उसके हिसाब से आसपास ही होना चाहिए।
उसने बिस आदमी वहां बुलवाए।
सभी को रंजीत लाम्बा का हुलिया अच्छी तरह समझाने के पश्चात् उसने उन्हें उस क्षेत्र में फैला दिया। उन बीस आदमियों में से तीन आदमी ऐसे भी थे जो लाम्बा से वाकिफ थे।'
उन्हें उसका हुलिया जानकर पहचानने की जरूरत नहीं थी। वे सीधे-सीधे ही लम्बा को पहचान सकते थे।
पीटर अपना हिसाब बराबर करने को आतुर
था।
उसका एक आदमी उसी क्षेत्र में रहता था। उसी के पलैट में उसने डेरा जमा लिया। वह वहां की खबर दूर कहीं अपने किसी ठिकाने पर बैठकर नहीं सुनना चाहता था।
उसे वहीं की वहीं खबर सुननी थी।
जिस ढंग से उसने अपने आदमियों का जाल वहां फैलाया था, उस हिसाब से कामयाबी उसे मिल सकती थी।
םם
लम्बा की आंख खुली तब जब चाय की खुशबू के साथ उसे कोम ल स्पर्श के साथ जगाया गया।
उसने देखा।
लजाई- शरमाई पूनम उसके लिए चाय लेकर आई थी।
नहाकर उसने अपने बाल सुखा लिए थे और कपड़ों की जगह चादर लपेट रखी थी।
'चाय पी लीजिए । ' वह दृष्टि झुकाए हुए ही बोली।
हाएं ! चाय पी लीजिए ... लाइए। ' लम्बा ने कुछ ऐसे अंदाज में कहा कि उसे बरबस ही हंसी आ गई। वहमुंह छिपाकर हंसी तो बालों की लम्बी लटों से उसका आधा चेहरा छिप गया।खुले हुए लम्बे बालों में वह कुछ अधिकी ही सुन्दर प्रतीत हो रही थी।
'बड़े वो हो।'
'किसलिए?'
' मेरे लिए।
पूनम ने गहरी निगाहों से उसकी ओर देखा।
उसने चाय की प्याली नीचे रखकर पूनम को अपने ऊपर खींच लिया।
'नहीं... नहीं ... अब कोई शरारत नहीं चलेगी।'
'शरारत नहीं कर रहा। यहां बैठो , मेरे पास और यह बताओ कि मुझसे प्यार करती हो ?'
उसने अपलकी लाम्बा की आंखों में दे खना आरंभ कर दिया।
दोनों कितनी ही देर तक एक- दूसरे की आंखों में खोए रहे।
दिल की धड़कनें निगाहों के उस टकराव से स्वत: ही बढ़ती चली गई।
'तुमने मेरे सवाल का जवाब नहीं दिया ?' लाम्बा पूनम को अपनी बांहों में भर ता हुआ बोला।
'कौन-सा सवाल ?' वह उसके अधरों से अपने अधर सटाती हुई फुसफुसाहट भरे स्वर में बोली।
' प्यार करती हो या नहीं? '
' मुझसे क्यों पूछ रहे हो ?'
'तुमसे ही तो पूछना है।'
_ ' न पूछो ... मुझसे न पूछो।'
'फिर किससे पूर्छ ?' लाम्बा उसके अधरों से अपने अधर तनिकी दूर हटाता हुआ बोला।
 

Hero tera

Active Member
1,166
3,223
144
अपने दिल से। ' उसने लाम्बा की आंखों में अपलकी झांकते हुए कहा।
' मेरा दिल ? '
' हां...तुम्हारा दिल मेरे प्यार के बारे में सच-सच बता देगा। उससे पूछकर देखो।'
लाम्बा मुस्कराया।
पूनम ने उसके अधरों पर चुम्बन अंकित कर
दिया।
लम्बा ने उसे मदहोशी भरे अंदाज में देखते हुए अपने और अधिकी नजदीकी खींच लिया और ऐसा करते हुए ही उसके हाथ पूनम के संगमरमरी जिस्म से लिपटी चादर के भीतर खिसकी गए।
पूनम ने बनाबटी क्रोध द र्शाते हुए उसकी ओर देखा।
वहमुस्कराया। ' बहुत शैतान हो गए हो।'
' कहां शैतान हो गया हूं। कुछ भी तो नहीं किया मैंने।' लम्बा ने भोलेपन से कहा।
_' सारी रात सताते रहे और कह रहे हो कुछ नहीं किया।
'बीती रात को याद करने से क्या फायदा। '
'क्यों...क्यों न याद करू बीती रात ?'
.
.
.
'जोरात गुजर गई उसे भूल ही जाओ। ब र्तमान को याद रखा करो। रात गई...बात गई।'
'सुबह हो चुकी है।'
'हां।'
'सूरज सिर पर चढ़ आया है।'
'हां। चढ़ आया है।'
'सो ते ही रहोगे ? उठोगे नहीं ?'
' उठता हूं बाबा उठता हूं।' कहने के साथ ही लाम्बा ने पून म को छोड़ दिया। फिर वह बिस्तर से उठ खड़ा हुआ। अंगड़ाई लेने के बाद उसने चाय पी डाली। तत्पश्चात्नि त्यप्रति के कामों में व्यस्त हो गया
इसी बीच पूनम ने नाश्ता तैयार कर लिया।
नाश्ते के बाद उस ने तैयार होना शुरू कर
दिया।
'क्यों.. .कहीं जा रहे हो क्या ?' पूनम ने उसे तैयार-होते देख पूछा।
'हां...जा रहा हूं।'
'कहां?'
' नाश्ते के बाद भी तो कुछ होता है न ? हो ता है न ?'
'खाना?'
'राइट खाना। '
'तो खाने के लिए बाहर जाने कीक्या जरूरत है?'
'क्यों जरूरत क्यों नहीं है बाहर जाने की ?'
'क्या जरूरत है। जैसे नाश्ता बनाया वैसे ही खाना बना दूंगी।'
' नहीं बना सकोगी।'
'क्यों?'
' क्योंकि खाना बनाने की लिए कुछ है ही नहीं। इसलिए सामान लेने जाना पड़ेगा।'
' ब्रैड रखी हैं। अण्डे हैं। काम चल जाएगा।'
'नहीं। ब्रैड नाश्ते में ही बासी लग रही थी , खाने में तो खट्टी क्या ने लगेगी।'
'लेकिन...।'
___ 'तुम फिक्र बिल्कुल न करो । मैं जल्दी ही सारा सामान लेकर लौट आ ऊंगा।'
'लौट तो आओगे , मग र न जाने क्यों मेरा दिल डर रहा हैं।'
'पागल हो गई हो।'
'हां हो गई हु । ' पूनम रूठने का अभिनय करती हुई बोली- ' तुम्हारे अलावा मेरा कोई नहीं, अगर तुम्हें कुछ हो गया तो ... म ...मैं यूं ही मर जाऊंगी।'
कहते-कहते उसके नेत्र डबडबा गए और गला रुध गया।
वह एकाएक ही भाबुकी हो उठी थी।
लाम्बा ने प्यार से उसे गले लगा लिया।
उसकी भी आंसू आंखों को चूम-चुमकर उसके आंसू पोंछ डाले।
'नहीं रोते। नहीं पून म नहीं। जब तक मैं जिन्दा हूं, अपने-आपको अकेला कभी नहीं समझना। मैं हूं न। सब ठीकी हो जाएगा।'
'मुझे डर लगता है अपने डैडी के आदमियों
से।'
' उनकी चिन्ता मत करो।'
'अकेले बाहर जाओगे, कहीं उन सबने मिलकर तुम्हें घेर लिया तो?'
'मुझे घेरना इतना आसान नहीं और फिर किसे मालूम है कि मैं यहां रह रहा हूं।'
'वो लोग तुम्हारी तलाश में लगे होंगे। '
'तुम्हारे डैडी पूरे शहर में अपने आदमियों का जाल नहीं फैला सकते।'
'कुछ भी हो , मेरे डैडी खामोश नहीं बैठ सकते। उनके आदमी चारों तरफ हम दोनों की तलाश में घूम रहे होंगे।'
'मानता हूं। घूम रहे होंगे, लेकिन मुझे विश्वास है वो लोग यहां तक कभी नहीं पहुंच पाएंगे।
मेरा दिल तो डर रहा है न।'
' अपने दिल को संभालो।'
पूनम ने उसे तिरछी नजरों से देखा। उसके चेहरे पर भय की हल्की-सी छाया को स्पष्ट देखा जा सकता था। लम्बा ने उसके दोनों गालों पर चुम्बन अंकित करने के बाद प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरा। उसे समझाया और फिर बाहर निकल आया।
सबसे पहले रेडीमेड वस्त्रों की एक दुकान के शो-रूम में झूलती एक ड्रेस उसे पूनम के लिए बहुत पसंद आई। पहले उसने उसी दुकान में दाखिल होना चाहा किन्तु अंतिम समय पर उसने इरादा बदल दिया।
वह पहले नम्बर पर कपड़े खरीदकर उन्हें लटकाए हुए पूरा बाजार करना नहीं चाहता था। कार के बिना उसे परेशानी हो रही थी , इसलिए उसे कार भी देखनी थी। लेकिन खाने के सामान को उसने प्राथमिकता देते हुए अव्वल नम्बर पर वही काम शुरू किया।
खाने के सामान को खरीदते-खरीदते उसने फल , मिठाई, मक्खन के अलावा अण्डे भी खरीद डाले।
अण्डे खरीदकर वह फंस गया।
अण्डे फूट न जाएं, इसके लिए वह सामान लेकर रिकुस पर बैठा और जा पहुंचा सीधा अपने ठिकाने पर।
सामान उतारकर अन्दर पहुंचने पर उसने पूनम को अपनी प्रतीक्षा करते पाया।
__'आ गए। ' वह प्रफुल्लित होती हुई उसकी ओर बढ़ी।
'आ तो गया मगर मुझे फौरन ही लौटकर बापस जाना है।'
'क्यों?'
क्योंकि बहुत जरूरी काम बाकी रह गया है।
'अब क्या बाकी रह गया ?'
' रह गया। मैं अभी आता हूं। ' इतना कहकर लाम्बा उसे बिना कोई अवसर दिए बाहर निकल गया
वह वहां से सीधा कपड़ों की दुकान में जा घुसा और फिर उसने कितनी ही अच्छी-अच्छी ड्रेसि ज पूनम के लिए खरीद डालीं।
mmmmmmmmmmmmmmmmm00

पूनम को वह दिल की गहराइयों से प्यार करने लगा था।
उसने मन ही मन फैसला कर लिया कि कार ठीकी होते ही वह पूनम को लेकर कहीं द र निकल जाएगा। किसी ऐसी अनजानी जगह जहां माणिकी देशमुख के हाथ
न आ सके।
वह कार देखने सलीम के गैरज पहुंचा।
सलीम ने उसे बता दिया कि अभी कार ठीकी होने में दो-तीन दिन और लग जाने थे।
नतीजतन वह वापस लौट चला।लौटते हुए उसने पूनम के लिए एक खूबसूरत-सी रिंग खरीदी। डायमंड रिंग। कपड़ों के पैकेट ढेर सारे हो रहे थे । रिक्शे पर बैठने के बाद उसने वह पैकेट तलाश करके सबसे ऊपर रख लिया जिसमें शादी का जोड़ा था।
वह पूनम से शादी करने का निश्चय कर चुका था। अपने निश्चय की बावत अभी तक उसने पूनम को कुछ बताया नहीं था , लेकिन आज वह अपने दिल की बात उसे बता देना चाहता था।
उस सस्पैंस को खोलने के लिए ही उसने शादी के जोड़े वाला पैकेट सबसे ऊपर रख लिया।
उसे यकीन था कि उस पैकेट को खोलते ही पूनम का चेहरा गुलाब की तरह खिल उठेगा और उसके बाद वह आजयुक्त मुस्कान के साथ उसकी ओर देखे गी। फिर शरमाकर पलकें झुका लेगी।
वह विचारों में खोया हुआ रिकुश पर बैठा चला जा रहा था।
चौंका उस समय जब उसका ठिकाना पीछे छूटने लगा।
उसने तुरन्त रिकुश रुकवाया। किराया अदा किया और सामान उठाकर खुशी से उछलता हुआ
मकान में दाखिल हो गया।

मकान के अन्दर वाले दरवाजे से दाखिल होते ही वह चौंका।
अन्दर वाला दरवाजा तो पूनम ने बंद करके रखना चाहिए था।
'पूनम! ' उसने तेजी से आगे बढ़ते हुए पुकारा।
प्रत्युत्तर में खामोशी छायी रही। 'पूनम! ' वह उत्तेजित स्वर में चिल्लाया।
दूसरे कमरे कि ओर बढ़ते उसके कदम एकाएक ही ठिठकी गए।
फर्श पर जूतों के निशान खून से बने थे। कितने ही निशान थे।
उस सन्नाटे में उसे अपना दिल अपने दिमाग में धड़कता महसूस होने लगा। कितनी ही देर तक वह एक जगह खड़ा फटी-फटी आंखों से उस दृश्य को देखता रहा। फिर हिम्मत जुटाकर उसने अन्दर वाले कमरे में झांका। कमरे का तमाम सामान उल्टा-पुल्टा पड़ा था।
खून के छींटे यहां-वहां नजर आ रहे थे।
और!
बीचों-बीच पुनम अपने ही खून के तालाब में पडि थी। उसके जिस्म पर लिपटी चादर खून में डूबकर उसके निर्वसन जिस्म से चिपकी गई थी।
उसका वक्ष , उसका सपाट पेट और टांगें सभी कुछ नग्न था।
उसके पेट और कंधे पर घाव के निशान स्पष्ट नजर आ रहे थे। घाव कुछ और भी थे लेकिन वो छोटे
थे।
स मान लाम्बा के हाथ से छूटकर जा गिरा। ऊपरला पैकेट गिरते ही खुल गया।
शादी का जोड़ा पूनम के खून में डूबता चला गया। लाम्बा के चेहरे पर विचित्र से भाव आ-जा रहे थे। उसने बगली होलस्टर से रिवाल्वर निकाला, सेपटीकैच हटाया और फिर रिवाल्वर की नाल अपनी कनपटी से लगा ली।
वह बुरी तरह टूट जाने के बाद अचानकी ही आत्महत्या के फैसले पर जा पहुंचा था।
ट्रेगर पर उंगली रखते हुए उसने नेत्र बंद किए।
तभी!
हल्की सिसकी ने उसे चौंका दिया ।
उसने जल्दी से पूनम की ओर देखा , फिर वह लपककर उसके नजदीकी पहुंचा। उसने उसके वक्ष पर हाथ रखकर देखा।
दिल धडकी रहा था।
सास चल रही थी।
यानी अभी-वह जिन्दा थी।
अगले ही पल उसने पूनम को बैडशीट में लपेटकर उठाया और लम्बे-लम्बे डग भरता बाहर की
ओर निकल पड़ा।
टैक्सी भाग्यवश उसे तुरन्त ही मिल गई।
उसके बाद बीच रास्ते वह पूनम को होश में लाने का प्रयास करने लगा।
'पूनम! पूनम! पूनम आँखें खोलो पूनम ...आंखेंखोले!'
कुछ देर बाद पूनम ने आँखें खोलि ।
' किसने किया पूनम ? कौन है वह जिसने यह सब किया ?' लाम्बारौद्र स्वर में बोला।
पूनम इस प्रकार, उसके चेहरे की ओर देखती रही मानो शून्य में ताकी रही हों।
__'बोलो पूनम बोलो! मुझे उसका नाम बताओ' प... प... पीटर...।'

'पीटर! ' एकाएक ही लम्बा के नेत्र क्रोध से दहकी उठे।
पूनम पुन: मूर्छि त हो गई।
'ड्राइवर! और तेज चलो! ' उसे मूर् छित होता देख वह चिल्लाकर बोला।
स्थिति की नजाकत को समझते हुए टैक्सी ड्राइवर ने रफ्तार बदा दी।
टैक्सी कार हवा से बातें करने लगी।
ड्राइवर ने उसे तब ही रोका जब हॉस्पिटल का एमरजेंसी वार्ड सामने आ गया।
लम्बा खून से लथपथ पूनम को दोनों बाहों में उठाकर अंदर दौड़ा चला गया।
00
माणिकी देशमुख के चार आदमी सलीम के गैराज के आसफस फैले हुए थे। जैसे ही लाम्बा वहां पहुंचा चारों में से एक तुरन्त ही कोठारी को फोन करने चला गया।
शेष तीन में से दो लम्बा के पीछे चल पड़े।
एक वहीं रुका रहा।
 

Hero tera

Active Member
1,166
3,223
144
कुछ देर बाद कोठारी की कार तूफानी रफ्तार से दौडती हुई वहां आकर रुकी। कोठारी बाहर निकला।
बचा हुआ आदमी अभी उसे रिपोर्ट देकर हटा ही था कि पीछा करने वाले दोनों आदमी वहां आपहुंचे।
'पता चला क्या ?' उन्हें देखते ही उसने आतुर स्वर में पूछा।
' हां...।' एक आदमी ने उत्तर दिया ।
'कहां है लम्बा का ठिकाना ?'
' मेरे साथ चलो।'
कोठारी ने तुरन्त उन्हें कार में बिठाया और वहां से चल पड़ा।
उसकी कार ज्यों ही बाहरले क्षेत्र में बनी बिल्डिंग की ओर बढ़ी और एक आदमी ने उसब शिल्डिंग की ओर उंगली उठाई-त्यों ही लम्बा खून में लथपथ पूनम को लिए बदहवास स्थिति में बिल्डिंग से बाहर निकलता दिखाई दिया।
फिर टैक्सी कार में बैठकर वह निकल चला।
'उसे रोकें बॉस ?' एक आदमी ने कोठारी से पूछा।
'नही। रोको नहीं सिर्फ पीछा करो।' अपने-आप पर संयम रखते हए उसने आदेश दिया। खून में डूबी पूनम ने उसका दिल दहला दिया था।
हॉस्पि टल तक उसने लम्बा का पीछा किया।
फिर वह छिपता-छिपाता अन्दर दाखिल हुआ। एक डाक्टर से कुछ जानकारी हासिल की। उसके बाद बाहर आकर एक टेलीफोन बूथ में जा
घुसा।
उसने कांपती उंगलियों से माणिकी देशमुख के नम्बर डायल किए।
'देशमुख साहब. . .मैं कोठारी बोल रहा हू।' लाइन मिलने पर वह धीमे स्वर में बोला।
'सुन रहा हूं. . . । बो ल...बोल कुश पता चला लम्बा का या अभी भी ख्याली घो ड़े ही दौड़ा रहा है। 'दूसरी ओर से माणिकी देशमुख का उखड़ा हुआ
स्वर उभरा।
'पता चला साहब , लेकिन...।'
'क्या लेकिन ?'बॉस , बात कुछ समझ में नहीं- आ रही है।
'पहेलियां मत बुझा। साफ-साफ बता , क्या मामला है ?'
उसने झिझकते हुए बतायया।
'कोठारी...!' सुनने के बाद दूसरी और से माणिकी देशमुख का तीखा स्वर उभरा- ' मेरी बेटी जिन्दा तो है न ?'
हां बॉस ।'
'फिर वह हरामजादा लम्बा अभी तक जिन्दा क्यों है ?'
'वह...बॉस...व ह पूनम बेबी को बचाने की कोशिश की र रहा है।'
'मा रने की कोशिश भी उसी ने की होगी।'
'मुझे नहीं लगता।'
'तुझे लगना चाहिए।'
' नहीं बॉस...वह ऐसा नहीं कर सकता। ' 'क्यों! क्यों नहीं कर सकता ?'
'इ... इसलिए कि वह बेबी को लव करता है।

'नहीं ! वह...वह किडनेपर है। उसने पूनम को किडनेप किया है । तूं उधर ही ठहर और जब तक मैं वहां पहुंच न जाऊं , उसे वहां से निकलेने मत देना।'
'लेकिन बॉस ...?'
शटअप ! ' चिल्लाती हुई आवाज के साथ ही दूसरी ओर से लाइन डिस्कनेक्ट हो गई।
फोन करने के बाद कोठारी उलझन में पड
गया।
उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि करे तो की रे क्या। वहमाणिकी देशमुख के क्रोध से वाकिफ था । उसे मालूम था कि उसका बॉस तूफान की तरह वहां आकर लाम्बा पर टूट पड़ेगा।
उसे विश्ववास था कि लाम्बा ने पूनम के साथ वह सब नहीं लिया।
__ अगर किया होता तो वह पूनम को बचाने की इस तरह की कोशिश न कर रहा होता।
'कोठारी साहब...! ' एकाएक ही उसके एक आदमी ने सामने आते हुए कहा- ' लाम्बा टैक्सी का र पकड़कर जल्दी में कहीं चला कि गया।'
कोठारी एकदम हरकत में आया।
उसे लम्बा की बावत देशमुख के सम्मुख जवाबदेह होना था।
अपने आदमियों को बाहर ही छोड़कर वह तेजी से एमरजेंसी वार्ड में दाखिल हो गया। जिस डाक्टर से उसने पहले पूछा था उसी से उसने पूनम की बावत दोबारा पूछा।
' अब कैसी है वह डाक्टर ?'
'खून बहुत बह गया है। उसके ग्रुप का खून लेने वह लडका गया है जो उसे यहां लेकर आया है। 'डाक्टर ने उसे बताया।'
खबर सुनकर उसकी जान में जान आई।
'पूनम की जान को तो कोई खतरा नहीं डाक्टर?'

.
हो भी सकता है। ''
'प्लीज डाक्टर , उसे कैसे भी बचा लो। खर्चे की फिक्र बिल्कुल नहीं करो। '
__'पूरी कोशिश की जा रही है। फिलहाल-सबसे ज्यादा जरूरी है। '
'खून...मैं अभी...।'
'वह लड़का गया है खून लेने। आप बाहर ही रहे। कभी भी कोई दूसरी जरूरत पड़ सकती है।'
'ओ० के०।'
चिंतित अवस् था में कोठारी बाह र निकल आया।
डाक्टर की बातों से वह समझ चुका था की पूनम खतरे में है और उसकी पहली जरूरत खून है! हालांकि खून लेने वह खुद ब्लड बैंकी जा सकता था, लेकिन डाक्टर के आदेशानुसार उसे बाहर ही रुकना पड़ रहा था।
उसके दोनों आदमी सड़की की तरफ चहलकदमी कर रहे थे।
थोड़ी देर बाद!
अचानक!
अचानकी ही गोलियों की आवाज ने उसे चौंका दिया।
वह उछलकर बाहर की ओर भागा।
फाटकी के बा हर दायीं ओर सड़की पर ही उसे लम्बा फायर करता नजर आया। उसने बाएं हाथ से खून की दो बोतलों को अपने सीने से लगा रखा था
और दाहिने हाथ में संभाल रखी पिस्तौल से करवटें बदलता हुआ आगे खड़ी कार पर फायरिंग करता चला जा रहा था।
इसी बीच !
एक और कार वहां आपहुंची।
उस कार से माणिकी देशमुख और जोजफ झांक रहे थे। उन दोनों ने लाम्बा को देखते ही गोलीबारी शुरू कर दी।
नहीं... नही ! ' कोठारी पागलों की तरह चिल्लाया। उसने दौड़कर बीच में आना चाहा। लेकिन जिस तरह उस क्षेत्र में गोलियां बरस रही थीं, उसे देखते हुए वह झिझकी कर रुकी गया । वह जानता था कि गोलियों की उसब रसात में अपने-आपको झोकना , मौत को दावत देने के अति रिक्त कुछ नहीं होगा।
वह इस सच्चाई से वाकिफ था कि पूनम की जान बचाने के लिए रंजीत लम्बा सिर पर कफन बांधकर उसके लिए खून लेने गया था।
और!
इस हकीकत से अनजान माणिकी देशमुख उस पर गोलियों की बौछार किए जा रहा था । एक प्रकार से बाप खुद अपनी बेटी की जान का दुश्मन बना हुआ था।
उसकी कार बाद में आती खुद , कोठारी ने अपनी आंखों देखी थी। वह यह नही समझ पा रहा था कि जिस कार से पहले ही गोलियां बरसाई जा रही थीं , उसमें कौन था।
 
Top