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Incest बिदाई

S_Kumar

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बिदाई

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यह कहानी पूरी तरह से काल्पनिक है, वास्तविकता से तो इसका कोई नाता है नहीं, अब अगर कहीं कुछ वास्तविकता से मेल खा जाए तो उसे संयोग ही समझना।

मालती राजपुरा गांव की सबसे सुंदर स्त्रियों में से थी, तीखे नैन नक्ष, गोरा रंग, कामुक कटावदार बदन, उन्नत कसे हुए दो दुग्ध कलश, गांव के मर्दों पर कहर ढाते रहते थे, खेत खलिहान और घर में काम धाम करते रहने से मालती की उम्र मानो थम सी गई थी, और फिर सरोजा वो तो अपनी मां से एक नहीं दो तीन कदम आगे थी, हूबहू अपनी मां की तरह मादक जिस्म की मालकिन सरोजा को भी देख देख कर लार टपकाने वालों की कमी नहीं थी।

सरोजा की चूचियां भी लगभग अपनी मां की कसावदार चूचियों के बराबर हो चली थी, जिन्हें अक्सर महसूस कर सरोजा खुद ही शर्मा जाती, ज्यादातर वो सूट सलवार ही पहनती थी और हमेशा चुन्नी सलीके से बांधे रहती, मालती ज्यादातर साड़ी ही पहनती थी, इन दोनों मां बेटी ने राजपुरा के मर्दों का मन बेचैन कर रखा था, सब लखन को भाग्यशाली समझते, पर किसी की हिम्मत नहीं थी कि कोई कभी मालती और सरोजा से बद्तमीजी कर जाए, लखन का शरीर किसी पहलवान से कम नहीं था, था वो देसी किसान, अक्सर धोती कुर्ता ही पहनता था, दिन भर किसानी में ही लगा रहता था, करता भी क्यों नहीं उसके बाप दादा की पुश्तैनी जमीन ही इतनी थी कि कभी उसको आमदनी के लिए दूसरे रस्ते नहीं ढूंढने पड़े, खुद भी खेती करता और गांव के कमजोर किसानों की मदद भी करता, जिससे गांव में उसकी इज्जत बहुत थी, कद कठी लंबी होने की वजह से गांव का कोई आदमी वैसे भी उससे बैर नहीं लेना चाहता था, राजपुरा गांव का वो एक दमदार किसान था, यही वजह थी मालती और सरोजा को देखकर मुंह में पानी तो जरूर आता था पर कोई मर्द उनका रस पीने की हिम्मत नहीं कर सकता था।

राजपुरा गांव मझली बसावट का एक खूबसूरत गांव था , पश्चिम की तरफ एक नदी भी बहती थी जिसकी वजह से गांव में हरियाली भरपूर थी, जमीन उपजाऊ और सिंचाई के अच्छे साधन होने की वजह से वहां के लोग जमकर खेती करते और खेती ही उनका आमदनी का मुख्य श्रोत थी।

जिस तरह लखन की गांव के मर्दों में अच्छी अहमियत थी उसी तरह मालती की भी गांव की सभी स्त्रियों में खूबसूरती, गुण, व्यवहार, चाल चलन, को लेकर बहुत अहमियत थी, आस पास की औरतों का जब भी कोई काम फंसता उनको बस मालती ही याद आती, पिछले कुछ वर्षों से मालती ने पूजा पाठ कुछ ज्यादा ही क्या शुरू कर दिया, पूरे गांव की महिलाओं की गुरु ही बन गई थी, कौन सा व्रत कब रखना है, किस व्रत में क्या क्या करना चाहिए, ये सब जानकारी अक्सर गांव की दूसरी महिलाएं मालती से ही लेती रहती थीं, मालती थोड़ा पढ़ी लिखी थी जिस कारण भी सभी औरतों में उसकी अच्छी जगह बनी हुई थी, बिल्कुल पड़ोस की बेला काकी मालती और सरोजा को बहुत मानती थी, उनकी पोती सुनीता, सरोजा के साथ ही कॉलेज जाती थी, सरोजा ने अपने बाबू से कहकर सुनीता के लिए भी एक साईकिल खरीदवाई थी। मालती घर और बाहर का काम, जानवरों की देखभाल, किसानी में लखन की मदद, और पूजा पाठ बराबर करते रहने के साथ साथ अब भी लखन को रात में अपनी गुलाबी मखमली बूर की रसीली गहराई का मजा बराबर देती थी, उसका एक कारण लखन का गठीला शरीर और दमदार लन्ड था, न न करते करते वो रात के अंधेरे में कब अपने भारी नितंब नीचे से उछाल उछाल के लखन के मूसल से अपनी ओखली पिटवाने लगती थी, इसका पता उसे खुद भी नहीं लग पाता था, लखन भी जब तक मालती को जमकर चोद नहीं लेता तब तक जल्दी उसको नींद नहीं आती थी, पहले तो ये रोज का काम था पर अब जब से सरोजा सयानी होती जा रही है,मालती ने लखन को जन्नत की सैर कराना थोड़ा कम कर दिया है,पर मालती भी कितनी ज्यादा दिन दूर नहीं रह पाती थी।
आखिर घर का मर्द दमदार हो, तो औरत हमेशा जवान रहती है। और स्त्री अगर वाकई स्त्री हो तो मर्द कभी बूढ़ा नहीं होता।
बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत मनमोहक अपडेट हैं भाई मजा आ गया
अगले रोमांचकारी धमाकेदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
 

Gokb

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Bahut badhiya update diya hai apne
 
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chutmar aashik

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Motaland2468

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Update -1

"सरोजा मै घास लेने खेत में जा रही हूं, तू हाथ मुंह धो के खाना खा ले।"

(जैसे ही सरोजा कॉलेज से आई, उसकी मां मालती ने खांची और खुरपी उठाते हुए कहा)

सरोजा - अरे अम्मा तूने खाना खाया कि नहीं?

मालती - अरे मै आ के खा लूंगी, तुझे भूख लगी होगी, तू खा ले, सब चली गई घास काटने, देर से गई तो एक घास नहीं मिलने की, भैंस को क्या खिलाऊंगी... खाली भूसा, तेरे बाबू ये जो नई भैंस लाएं है न....महारानी को बिना हरे चारे के एक कवर गले के नीचे नहीं उतरता, निमोना और चावल बनाया है, निकाल के खा ले, तेरे बाबू और मैने सुबह खाया था, मुझे अभी भूख नहीं है, तू निकाल के खा ले।

( मालती इतना कहते हुए खांची और खुरपी ले कर दूर वाले खेतों की तरफ जाने लगी)

"और हां सुन -----"दो घंटे बाद आ जाना खेत में घास उठाने, अकेली कैसे लाऊंगी मैं इतनी सारी घास"

सरोजा - अच्छा अम्मा ठीक है आ जाऊंगी, जरा देख के घास काटना, बरसात में सांप बिच्छू भी बहुत निकलते हैं उधर वाले खेत में।

(सरोजा ने अपनी साइकिल दालान में खड़ी करते हुए कहा)

सरोजा है तो 20 बरस की, पर लगती अपनी मां से भी कातिल है, अभी अभी बारहवीं पास करके कॉलेज में गई है, कॉलेज थोड़ा सा दूर है तो उसके बाबू ने अपनी इकलौती लाडली बिटिया के लिए साइकिल खरीद दी।

मालती और लखन की इकलौती बेटी है सरोजा, लाडली होने के बावजूद भी बड़ा सीधा सा स्वभाव है सरोजा का, हां शरारती तो है, पर जैसे जैसे जवानी सर चढ़ रही है, बचपना धीरे धीरे उतर रहा है...पर बहुत धीरे धीरे।
Welcome back Bhai mene aapki sabhi story padi hai aapko dubara yahan dekh kar bahut khushi huyi .asha karta hu aapki ye story bhi aapki pichhli story Jaisi hi behtreen hogi
 

S_Kumar

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Update-3

मालती ने खांची खुरपी उठाई और घर के द्वार पर उत्तर की तरफ बने हैंडपंप के पास रखे पत्थर पर खुरपी को कुछ देर घिसकर धार तेज करने के बाद, दूर वाले खेत की तरफ जाने वाली डगर पर जैसे ही कदम बढ़ाया, एकदम उसे याद आया कि हंसिया तो लेना ही भूल गई, एकदम से भाग के घर में आई।

मालती - सरोजा, अरे! हंसिया कहां है? यहीं तो रखी थी कल।

सरोजा - अम्मा मुझे नहीं पता, जहां रखी होगी वहीं होगी न, अब उसके हाथ पैर थोड़ी है, जो भाग जाएगी।

मालती - अच्छा, एक तो देर हो रही है, ऊपर से तू भी मसखरी शुरू कर दे.......(कुछ देर बाद) यहां रखी है, किताब के नीचे, तेरे बाबू भी न, किताब को जहां रखना है वहां नहीं रखेंगे, बस इधर उधर कहीं भी फेंक देंगे।

सरोजा - अम्मा मेरे बाबू को ऐसे मत बोलो, वो मेरे लाडले बाबू हैं।

(सरोजा ने वहीं बरामदे में सूट बदलते हुए कहा)

मालती - क्या?,....तू उनकी लाडली है या वो तेरे लाडले हैं, कुछ भी बोलती है।

सरोजा - अरे अम्मा वही, मै उनकी लाडली हूं, तो वो भी मेरे लाडले है।

मालती - वाह रे लाडले बाप बेटी।

सरोजा - हां और नहीं तो क्या, इसीलिए कुछ मत बोलना मेरे बाबू को।

मालती - हां जब तेरी बिदाई होगी न तो बांधे जाना अपने बाबू को भी...।

(सरोजा थोड़ा बनावटी गुस्से से अपनी अम्मा को देखती है)

मालती - (हंसते हुए) अच्छा चल आ जाना घास लेने।

सरोजा- जाओ नहीं आऊंगी, कितनी बार बोला है कि मुझे नहीं करना ब्याह... व्याह।

मालती - अच्छा नहीं बोलूंगी....अब जा रही हूं....आ जाना जरूर, नहीं तो सब चली आएगी और मैं वही बैठी तेरा इंतजार करती रहूंगी।

सरोजा - ठीक है आ जाऊंगी...बेला काकी भी गई होंगी न, खेत में?

मालती - हां गई होंगी?

सरोजा - मै और सुनीता आ जाएंगे, वो भी जाएगी न अपनी दादी की घास उठाने।

मालती - ठीक है पर जल्दी आना।

इतना कहकर मालती चली जाती है, सरोजा कपड़े बदलकर रसोई में जाकर बटुई में से निमोना और पतीली में से भात थाली में निकालकर बरामदे में लेकर आती है और जैसे ही खाने के लिए बैठती है, सुनीता आ जाती है।

सुनीता - सरोजा....कहां गई तू?

सरोजा - अरे यहां हूं बरामदे में....क्या हुआ विश्व सुंदरी सुनीता रानी?

सुनीता - अरे यार मजाक नहीं, यहां मेरी जान अटक गई है और तुझे मजाक सूझ रहा है।

सरोजा - क्या हुआ जानेमन? बता तो, किसने अटका दी मेरी जान की जान?
 

Napster

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Update-3

मालती ने खांची खुरपी उठाई और घर के द्वार पर उत्तर की तरफ बने हैंडपंप के पास रखे पत्थर पर खुरपी को कुछ देर घिसकर धार तेज करने के बाद, दूर वाले खेत की तरफ जाने वाली डगर पर जैसे ही कदम बढ़ाया, एकदम उसे याद आया कि हंसिया तो लेना ही भूल गई, एकदम से भाग के घर में आई।

मालती - सरोजा, अरे! हंसिया कहां है? यहीं तो रखी थी कल।

सरोजा - अम्मा मुझे नहीं पता, जहां रखी होगी वहीं होगी न, अब उसके हाथ पैर थोड़ी है, जो भाग जाएगी।

मालती - अच्छा, एक तो देर हो रही है, ऊपर से तू भी मसखरी शुरू कर दे.......(कुछ देर बाद) यहां रखी है, किताब के नीचे, तेरे बाबू भी न, किताब को जहां रखना है वहां नहीं रखेंगे, बस इधर उधर कहीं भी फेंक देंगे।

सरोजा - अम्मा मेरे बाबू को ऐसे मत बोलो, वो मेरे लाडले बाबू हैं।

(सरोजा ने वहीं बरामदे में सूट बदलते हुए कहा)

मालती - क्या?,....तू उनकी लाडली है या वो तेरे लाडले हैं, कुछ भी बोलती है।

सरोजा - अरे अम्मा वही, मै उनकी लाडली हूं, तो वो भी मेरे लाडले है।

मालती - वाह रे लाडले बाप बेटी।

सरोजा - हां और नहीं तो क्या, इसीलिए कुछ मत बोलना मेरे बाबू को।

मालती - हां जब तेरी बिदाई होगी न तो बांधे जाना अपने बाबू को भी...।

(सरोजा थोड़ा बनावटी गुस्से से अपनी अम्मा को देखती है)

मालती - (हंसते हुए) अच्छा चल आ जाना घास लेने।

सरोजा- जाओ नहीं आऊंगी, कितनी बार बोला है कि मुझे नहीं करना ब्याह... व्याह।

मालती - अच्छा नहीं बोलूंगी....अब जा रही हूं....आ जाना जरूर, नहीं तो सब चली आएगी और मैं वही बैठी तेरा इंतजार करती रहूंगी।

सरोजा - ठीक है आ जाऊंगी...बेला काकी भी गई होंगी न, खेत में?

मालती - हां गई होंगी?

सरोजा - मै और सुनीता आ जाएंगे, वो भी जाएगी न अपनी दादी की घास उठाने।

मालती - ठीक है पर जल्दी आना।

इतना कहकर मालती चली जाती है, सरोजा कपड़े बदलकर रसोई में जाकर बटुई में से निमोना और पतीली में से भात थाली में निकालकर बरामदे में लेकर आती है और जैसे ही खाने के लिए बैठती है, सुनीता आ जाती है।

सुनीता - सरोजा....कहां गई तू?

सरोजा - अरे यहां हूं बरामदे में....क्या हुआ विश्व सुंदरी सुनीता रानी?

सुनीता - अरे यार मजाक नहीं, यहां मेरी जान अटक गई है और तुझे मजाक सूझ रहा है।

सरोजा - क्या हुआ जानेमन? बता तो, किसने अटका दी मेरी जान की जान?
बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत मनमोहक अपडेट हैं भाई मजा आ गया
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मालती - सरोजा, अरे! हंसिया कहां है? यहीं तो रखी थी कल।

सरोजा - अम्मा मुझे नहीं पता, जहां रखी होगी वहीं होगी न, अब उसके हाथ पैर थोड़ी है, जो भाग जाएगी।

मालती - अच्छा, एक तो देर हो रही है, ऊपर से तू भी मसखरी शुरू कर दे.......(कुछ देर बाद) यहां रखी है, किताब के नीचे, तेरे बाबू भी न, किताब को जहां रखना है वहां नहीं रखेंगे, बस इधर उधर कहीं भी फेंक देंगे।

सरोजा - अम्मा मेरे बाबू को ऐसे मत बोलो, वो मेरे लाडले बाबू हैं।

(सरोजा ने वहीं बरामदे में सूट बदलते हुए कहा)

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सरोजा - अरे अम्मा वही, मै उनकी लाडली हूं, तो वो भी मेरे लाडले है।

मालती - वाह रे लाडले बाप बेटी।

सरोजा - हां और नहीं तो क्या, इसीलिए कुछ मत बोलना मेरे बाबू को।

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(सरोजा थोड़ा बनावटी गुस्से से अपनी अम्मा को देखती है)

मालती - (हंसते हुए) अच्छा चल आ जाना घास लेने।

सरोजा- जाओ नहीं आऊंगी, कितनी बार बोला है कि मुझे नहीं करना ब्याह... व्याह।

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Bhai update thoda bade do pls
 
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Dharmendra Kumar Patel

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बहुत ही शानदार अपडेट
 
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