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Dear All
I am starting a new thread for another transliterated story. It is very long and so I thought I should start a new thread. I read this story on the net a few years and found to hot, so I am transliterating it(converting into devnagri font). Let me know how you like it.
Warning: It contains incest and a quite raw and graphic description of sexual acts. Those offended by such things should stay away.
बिल्ला अपने भाई रवि को बीडी देते हुए बोला,
बिल्ला: आज तो नशा ही नही आ रहा है.
और देसी दारु की बोतल-जो कि आधी हो चुकी थी- उसको उठाकर मुँह से लगाकर गटकने लगा. रात के सन्नाटे मे दोनो भाई गाँव की एक पुलिया जो उनकी घर से लगभग २०० कदम की दूरी पर थी, वहा बैठ कर दारु का मजा ले रहे थे और साथ मे बीडी के लम्बे लम्बे कश मारते जा रहे थे.
उनका घर उस पुलिया से साफ नजर आता था. उनका घर खपरेल वाला कच्चा मकान था जिस मे एक बडा सा आँगन था और एक पुराने जमाने का बडा सा दरवाजा था जो कि उन्हे उस पुलिया से खुला दिखाई पड रहा था. दरवाजे के बाहर एक रास्ता था जिसे पूरा गाँव पास की नदी पर जाने के लिये इस्तेमाल करता था. उस नदी का घाट भी बिल्ला और रवि के घर से २०० कदम की दूरी पर ही था. उनका यह घर नदी की तरफ का आखरी मकान था.
जिस पुलिया पर ये दोनो बैठे थे उसके पीछे की ओर आम का काफी बडा बगीचा था और उस बगिचे के पीछे से थोडा बहुत जन्गल शुरु हो जाता था. गाँव काफी छोटा था लगभग ४०-५० मकान बने होन्गे. रवि की उमर लगभग २५ साल के करीब थी और बिल्ला उससे २ साल छोटा था. दोनो भाई बचपन से ही दोस्तो की तरह रहते है और वह ऐसे लगते है जैसे जुडवा हो. दोनो हट्टे कट्टे और मजबूत कद काठी के थे.
बिल्ला: यार रवि, चूत मारने का इतना मन करता है लेकिन कोई चूत का जुगाड ही नही बनता है.
रवि: हाँ यार बिल्ला, उस दिन थोडे पैसे जोडकर चूत के जुगाड मे शहर के रन्डी बजार भी हो आये. लेकिन भोसडी की ने हम दोनो भाई से पैसा ले लिया और दो मिनट मे ही बोल दिया कि चल हट रे हो गया. मेरा तो लन्ड भी ठीक से खडा नही हुआ था. उस कुतिया ने दो दो कन्डोम मेरे लन्ड पर लगा दिये थे. भला तू ही बता, ऐसे दो मिनट मे क्या चुदाई हो पाती है.
बिल्ला: यार चोदने के लिये तो हमारे जैसे मोटे लन्ड को कम से कम दो दो घन्टा तो मिलना चहिये. तभी हम खुश हो पायेन्गे.
रवि: हा यार तू ठीक कहता है. एक बात कहूँ, मै जब भी सुधा काकी की मोटी गान्ड को सोच कर मूठ मारता हूँ तो कम से कम आधा घन्टा तो काकी की मोटी मोटी गान्ड को सोच सोच कर मुठियाने मे लग ही जाता है. तब जाकर मेरा माल बाहर निकलता है. तुझे भी तो इतना ही टाईम लगता है ना?
बिल्ला: हाँ यार. तूने कहा सुधा काकी की बात कर दी, मेरा तो लन्ड कडक होने लग गया है.
और लुन्गी के उपर से दोनो भाई अपने अपने लन्ड को मसलने लगे.
सुधा काकी ५० साल के लगभग की होगी पर साली के मोटे चुचे और फैले हुए भारी भारी चुतड देख कर तो कई मर्दोको ऐसा लगता था कि सीधे जाकर इसकी मोटी गान्ड मे लन्ड पेल दू.
दारु की बोतल से बची हुई दारु गटकते हुए दोनो भाई अपना अपना लन्ड मसल रहे थे.
रवि: यार बिल्ला मेरा लन्ड तो मोटी गान्ड का ही दीवाना है.
बिल्ला: रवि, अरे मेरा भी यही हाल है कि मोटे मोटे चुतड मिल जाये तो फाड कर रख दू. मोटे चुतडो को देख कर तो मेरे मुँह से लार टपकने लगती है.
इन दोनो भाईयो का यह रोज का काम था. दिनभर अपने घर के बाहर लुन्गी पहनकर बैठ जाते थे और अपने गाँव की नदी की ओर जाने वाली सारी औरतो के मटकते चुतड देख देख कर अपना लन्ड मसलते बैठे रहते. जब कोई औरत नही दिखाई देती तो पडोस मे रहने वाली सुधा काकी के आँगन की ओर नजर गडा कर उसके आने जाने का इन्तजार करने लगते. सारे गाँव की औरतो के गदराए अन्गो की चर्चा के अलावा इन दोनो भाईयो के पास कोई काम नही था. इत्तेफाक से दोनो के विचार भी बिलकुल एक जैसे थे. शायद ये इनके खून का असर था. सुधा काकी इन दोनो के सगे ताउ की औरत थी, लेकिन सुधा काकी और इन दोनो की माँ कमला की लडाई काफी पुराने समय से थी. उस लडाई की वजहसे दोनो परिवार के लोगो का आपस मे बोलचाल नही था.
इन दोनो की माँ कमला थोडी मोटी और भरे भरे बदन की एक ४५ साल की औरत थी. उसके दूध और मोटे मोटे चुतडो के मुकाबले पूरे गाँव मे किसी भी औरत के दूध और चुतड नही थे. हा सुधा काकी जरुर थोडा बहुत टक्कर जरुर देती थी लेकिन सुधा काकी अगर १९ थी तो कमला २० थी. कमला का पती मनोहर लाल, जो कि दिन और रात शराब के नशे मे धुत रहता था, उसका अधिकतर समय दारु के ठेके पर ही बीत जाता था. मनोहर लाल के बारे मे गाँव मे एक बात दबी आवाजोमे कही जाती थी कि काफी साल पहले नदी के किनारे के एक पेड के पीछे अपनी माँ गोमती- जो कि अब मर चुकी थी- उस को चोद रहा था जिसे गाँव के कुछ लोगो ने देख लिया था.
कमला अपने बेटो के साथ पास के जन्गल से लकडिया काट कर बेचती थी. थोडीबहुत खेती भी थी जो वो दो भाई मिलकर करते थे. ऐसे उनका गुजारा ठीकठाक चल रहा था. कमला रोज सुबह सुबह घर का सारा काम करके दोपहर का खाना बान्ध कर दोनो भाईयोको अपने साथ ही जन्गल ले जाती थी. फिर वहा दोनो बेटे लकडिया काटने लगते और कमला उन लकडियो के गट्ठे बना लेती थी. शाम तक ये लोग लकडिया लेकर घर आ जाते थे और दुकान मे बेच देते थे. कमला की एक बेटी थी जो बिल्ला से २ साल छोटी थी. अभी तीन महिने पहले ही उसकी शादी हो चुकी थी सो अभी वह अपने ससुराल मे थी.
सुधा काकी का एक ही बेटा था- मदन- जिसकी शादी हो चुकी थी. वह शहर मे किसी कारखाने मे रोज की मजदूरी करके वही रहता था. उसकी बीवी सन्ध्या अपने साँस ससुर के पास गाँव मे रहती थी. वह करीब २८ साल की उमर की होगी.
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Warning: It contains incest and a quite raw and graphic description of sexual acts. Those offended by such things should stay away.
बिल्ला अपने भाई रवि को बीडी देते हुए बोला,
बिल्ला: आज तो नशा ही नही आ रहा है.
और देसी दारु की बोतल-जो कि आधी हो चुकी थी- उसको उठाकर मुँह से लगाकर गटकने लगा. रात के सन्नाटे मे दोनो भाई गाँव की एक पुलिया जो उनकी घर से लगभग २०० कदम की दूरी पर थी, वहा बैठ कर दारु का मजा ले रहे थे और साथ मे बीडी के लम्बे लम्बे कश मारते जा रहे थे.
उनका घर उस पुलिया से साफ नजर आता था. उनका घर खपरेल वाला कच्चा मकान था जिस मे एक बडा सा आँगन था और एक पुराने जमाने का बडा सा दरवाजा था जो कि उन्हे उस पुलिया से खुला दिखाई पड रहा था. दरवाजे के बाहर एक रास्ता था जिसे पूरा गाँव पास की नदी पर जाने के लिये इस्तेमाल करता था. उस नदी का घाट भी बिल्ला और रवि के घर से २०० कदम की दूरी पर ही था. उनका यह घर नदी की तरफ का आखरी मकान था.
जिस पुलिया पर ये दोनो बैठे थे उसके पीछे की ओर आम का काफी बडा बगीचा था और उस बगिचे के पीछे से थोडा बहुत जन्गल शुरु हो जाता था. गाँव काफी छोटा था लगभग ४०-५० मकान बने होन्गे. रवि की उमर लगभग २५ साल के करीब थी और बिल्ला उससे २ साल छोटा था. दोनो भाई बचपन से ही दोस्तो की तरह रहते है और वह ऐसे लगते है जैसे जुडवा हो. दोनो हट्टे कट्टे और मजबूत कद काठी के थे.
बिल्ला: यार रवि, चूत मारने का इतना मन करता है लेकिन कोई चूत का जुगाड ही नही बनता है.
रवि: हाँ यार बिल्ला, उस दिन थोडे पैसे जोडकर चूत के जुगाड मे शहर के रन्डी बजार भी हो आये. लेकिन भोसडी की ने हम दोनो भाई से पैसा ले लिया और दो मिनट मे ही बोल दिया कि चल हट रे हो गया. मेरा तो लन्ड भी ठीक से खडा नही हुआ था. उस कुतिया ने दो दो कन्डोम मेरे लन्ड पर लगा दिये थे. भला तू ही बता, ऐसे दो मिनट मे क्या चुदाई हो पाती है.
बिल्ला: यार चोदने के लिये तो हमारे जैसे मोटे लन्ड को कम से कम दो दो घन्टा तो मिलना चहिये. तभी हम खुश हो पायेन्गे.
रवि: हा यार तू ठीक कहता है. एक बात कहूँ, मै जब भी सुधा काकी की मोटी गान्ड को सोच कर मूठ मारता हूँ तो कम से कम आधा घन्टा तो काकी की मोटी मोटी गान्ड को सोच सोच कर मुठियाने मे लग ही जाता है. तब जाकर मेरा माल बाहर निकलता है. तुझे भी तो इतना ही टाईम लगता है ना?
बिल्ला: हाँ यार. तूने कहा सुधा काकी की बात कर दी, मेरा तो लन्ड कडक होने लग गया है.
और लुन्गी के उपर से दोनो भाई अपने अपने लन्ड को मसलने लगे.
सुधा काकी ५० साल के लगभग की होगी पर साली के मोटे चुचे और फैले हुए भारी भारी चुतड देख कर तो कई मर्दोको ऐसा लगता था कि सीधे जाकर इसकी मोटी गान्ड मे लन्ड पेल दू.
दारु की बोतल से बची हुई दारु गटकते हुए दोनो भाई अपना अपना लन्ड मसल रहे थे.
रवि: यार बिल्ला मेरा लन्ड तो मोटी गान्ड का ही दीवाना है.
बिल्ला: रवि, अरे मेरा भी यही हाल है कि मोटे मोटे चुतड मिल जाये तो फाड कर रख दू. मोटे चुतडो को देख कर तो मेरे मुँह से लार टपकने लगती है.
इन दोनो भाईयो का यह रोज का काम था. दिनभर अपने घर के बाहर लुन्गी पहनकर बैठ जाते थे और अपने गाँव की नदी की ओर जाने वाली सारी औरतो के मटकते चुतड देख देख कर अपना लन्ड मसलते बैठे रहते. जब कोई औरत नही दिखाई देती तो पडोस मे रहने वाली सुधा काकी के आँगन की ओर नजर गडा कर उसके आने जाने का इन्तजार करने लगते. सारे गाँव की औरतो के गदराए अन्गो की चर्चा के अलावा इन दोनो भाईयो के पास कोई काम नही था. इत्तेफाक से दोनो के विचार भी बिलकुल एक जैसे थे. शायद ये इनके खून का असर था. सुधा काकी इन दोनो के सगे ताउ की औरत थी, लेकिन सुधा काकी और इन दोनो की माँ कमला की लडाई काफी पुराने समय से थी. उस लडाई की वजहसे दोनो परिवार के लोगो का आपस मे बोलचाल नही था.
इन दोनो की माँ कमला थोडी मोटी और भरे भरे बदन की एक ४५ साल की औरत थी. उसके दूध और मोटे मोटे चुतडो के मुकाबले पूरे गाँव मे किसी भी औरत के दूध और चुतड नही थे. हा सुधा काकी जरुर थोडा बहुत टक्कर जरुर देती थी लेकिन सुधा काकी अगर १९ थी तो कमला २० थी. कमला का पती मनोहर लाल, जो कि दिन और रात शराब के नशे मे धुत रहता था, उसका अधिकतर समय दारु के ठेके पर ही बीत जाता था. मनोहर लाल के बारे मे गाँव मे एक बात दबी आवाजोमे कही जाती थी कि काफी साल पहले नदी के किनारे के एक पेड के पीछे अपनी माँ गोमती- जो कि अब मर चुकी थी- उस को चोद रहा था जिसे गाँव के कुछ लोगो ने देख लिया था.
कमला अपने बेटो के साथ पास के जन्गल से लकडिया काट कर बेचती थी. थोडीबहुत खेती भी थी जो वो दो भाई मिलकर करते थे. ऐसे उनका गुजारा ठीकठाक चल रहा था. कमला रोज सुबह सुबह घर का सारा काम करके दोपहर का खाना बान्ध कर दोनो भाईयोको अपने साथ ही जन्गल ले जाती थी. फिर वहा दोनो बेटे लकडिया काटने लगते और कमला उन लकडियो के गट्ठे बना लेती थी. शाम तक ये लोग लकडिया लेकर घर आ जाते थे और दुकान मे बेच देते थे. कमला की एक बेटी थी जो बिल्ला से २ साल छोटी थी. अभी तीन महिने पहले ही उसकी शादी हो चुकी थी सो अभी वह अपने ससुराल मे थी.
सुधा काकी का एक ही बेटा था- मदन- जिसकी शादी हो चुकी थी. वह शहर मे किसी कारखाने मे रोज की मजदूरी करके वही रहता था. उसकी बीवी सन्ध्या अपने साँस ससुर के पास गाँव मे रहती थी. वह करीब २८ साल की उमर की होगी.