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Adultery बीती यादें

SKYESH

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good writing skill ............dear..............

waiting for next update.............................:happy:
 

Coquine_Guy

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संजू अपने प्लान के मुताबिक़ मुझे लेकर अपने घर के पीछे पहुँच गया. दूर तक फैला एक खेत था उसके घर के ठीक पीछे जिसमें चाँदनी में नहाई हरी भरी फसलें लहलहा रही थी. एक दम सुनसान जगह थी वो. दूर-दूर तक कोई दिखाई नहीं दे रहा था.
उसने साइकिल रोक कर चारो तरफ नज़र दौड़ाई और धीरे से बोला, “कोई नहीं है हमें यहाँ देखने वाला. चल उतर जल्दी.”
“वो तो स्वाभाविक ही है. इस समय ऐसी जगह कौन घूमेगा,” मैंने साइकिल से उतरते हुए कहा.
“बहुत सारे नमूने हैं हमारे गाँव में. कब कौन कहाँ पहुँच जाए कोई नहीं कह सकता,” वो साइकिल खड़ी करते हुए बोला और उस दीवार कि तरफ चल दिया जिस पर चढ़ कर हम उसके घर में घुसने वाले थे.
मैंने दीवार को गौर से देखा. लगभग पांच फुट ऊँची दीवार थी वो. उस पर चढ़ना कोई मुश्किल काम नहीं था. आराम से चढ़ सकती थी मैं उस पर. मगर मेरा दिल ऐसा करने को नहीं मान रहा था.
“संजू रहने दो…,” मैंने कहा.
“क्यों… क्या हुआ?”
“मुझे दीवार फाँद कर अन्दर जाना अच्छा नहीं लग रहा.”
“अरे डरने की कोई बात नहीं है. मैं कईं बार कर चुका हूँ ये काम. कोई दिक्कत नहीं होगी.”
“तुम्हारी बात अलग है. ये घर है तुम्हारा. तुम जैसे मरजी इसमें जा सकते हो. मेरी बात अलग है.”
उसने गहरी साँस ली और बोला,“ जैसी तेरी मरजी. मैं तो पहले ही मना कर रहा था… तो कहाँ जाए अब? कार के पास चले तेरी? वही इंतज़ार करेंगे नोनू का.”
“हाँ वही ठीक रहेगा.”
“चल बैठ फिर…” वो बोला और साइकिल पर चढ़ गया.
जब मैं साइकिल पर बैठने वाली थी तो मुझे अपना मन बदलता हुआ महसूस हुआ. मुझे एक बार फिर अपने घर बात करने की ललक सताने लगी. मैंने दीवार की तरफ देखा और बोली, “संजू क्या तुम्हे यकीन है कि हम बिना किसी दिक्कत परेशानी के फ़ोन तक पहुँच पायेंगे?”
“ये क्यों पूछ रही है जब तेरा दीवार फाँदने का मन नहीं है?”
“मैं सोच रही थी कि एक बार कोशिश कर लेते हैं…”
वो साइकिल से उतर गया और उसे खड़ी करके दीवार की तरफ जाते हुए बोला, “तू भी ना अजीब है… कभी हाँ… कभी ना… इस हाँ ना के चक्कर में मत पड़ और दीवार पे चढ़ जल्दी. जो होगा देखा जाएगा.”
मैं डरी सहमी दीवार की तरफ बढ़ी.
“मदद करूँ या तू चढ़ जायेगी?” वो बोला.
“मैं चढ़ जाउंगी,” मैंने तुरंत जवाब दिया. मैं नहीं चाहती थी कि वो मुझे दीवार पर चढाने के बहाने यहाँ वहाँ छुए.
“चल चढ़ फिर. ज्यादा ऊँची नहीं है दीवार. कोई दिक्कत नहीं होगी तुझे,” वो मेरी तरफ देखते हुए बोला. ये तो मैं जानती ही थी. मेरा मन तो बस ऐसा अजीब काम करने से घबरा रहा था.
मैंने गहरी साँस ली और दीवार का उपरी छोर पकड कर उस पर चढ़ गई. उस पल ऐसा लगा मुझे जैसे कि मैं कोई बहुत बड़ी चोरी को अंजाम देने जा रही हूँ. मन हो रहा था कि वापिस कूद जाऊँ नीचे. मगर वैसा करना ठीक नहीं था. जैसे तैसे मैं मन बना कर दीवार पर चढ़ी थी. अब आगे बढ़ते रहना ही उचित था.
अगले ही पल संजू भी दीवार पर चढ़ गया और धीरे से बोला, “पहले मैं कूदुंगा नीचे. तुम मेरे बाद कूदना.”
मैंने सहमती में गर्दन हिलाते हुए चारो तरफ नज़र दौडाई. उसके घर के पीछे का आँगन काफी बड़ा था. एक कोने में टूटा फूटा सामान पड़ा था. और एक कोने में छोटा सा कमरा जैसा कुछ था. उस कमरे के नजदीक ही एक बड़ा आम का पेड़ था.
संजू ऐसे कूदा जमीन पर जैसे कि उसका ये रोज का काम हो. आवाज तो हुई उसके कदमों की मगर बहुत कम.
“आ मैं तुझे उतारता हूँ,” वो धीरे से बोला.
“नहीं मैं उतर जाउंगी,” मैं बोली और जैसे दीवार के छोर को पकड़ कर चढ़ी थी वैसे ही दीवार के छोर को पकड़ कर नीचे उतर गई. मेरे क़दमों की जरा भी आहाट नहीं हुई.
“अरे वाह... तू तो दीवार फाँदने में माहिर लग रही है,” वो मुझे कोहनी मारता हुआ बोला.
“श्श्ह… बातें मत करो. मुझे जल्दी लैंडलाइन तक ले चलो,” मैं अपने मुँह पर ऊँगली रखते हुए बोली.
“मेरे पीछे आओ,” वो धीरे से बोला. “जरा भी आवाज मत करना. हम बापू के कमरे के नजदीक से निकलेंगे. वैसे बापू को कम सुनाई देता है मगर फिर भी हम रिस्क नहीं ले सकते.”
मैंने हामी में सिर हिलाया और उसके पीछे-पीछे चल पड़ी. मेरी छाती में मेरा दिल जोर-जोर से धड़क रहा था. धक-धक की आवाज मुझे मेरे कानो तक सुनाई दे रही थी. मगर मैं आगे बढती गई संजू के पीछे-पीछे. हमने बिना कोई आवाज किए घर के पीछे वाले आँगन को पार किया और फिर उसके बापू के कमरे के नजदीक से गुजरते हुए घर के सामने वाले आँगन तक पहुँच गए. सामने वाले आँगन में ही बैठक थी घर के मुख्य दरवाजे के पास. वहाँ तक पहुंचना ज्यादा रिस्की महसूस हो रहा था. मगर मैं संजू के पीछे-पीछे अपनी साँस थामे चलती गई. शुक्र है कोई गड़बड़ नहीं हुई. हम बिना आवाज किए बैठक में घुस गए. लंबी राहत की साँस ली मैंने उस वक्त. ऐसा लग रहा था जैसे कि कोई बहुत बड़ी जंग जीत ली हो मैंने.
बैठक में बिलकुल अँधेरा था. मुझे कुछ दिखाई नहीं दे रहा था. कुछ देर बाद वहां के अँधेरे के लिए मेरी आँखों ने खुद को ढाल लिया तो खिड़की से आ रही चाँद की रौशनी में मुझे हल्का-हल्का दिखाई देने लगा. तीन लोगों के बैठने लायक एक बड़ा सोफ़ा रखा हुआ था दीवार के नजदीक. उस से नब्बे डिग्री पर दो लोगों के बैठने लायक दूसरा सोफ़ा रखा था. साथ ही एक कुर्सी भी रखी हुई थी. जो कि ऐसी लग रही थी जैसे कि वहां गलती से रखी गई हो. एक सेंट्रल टेबल भी रखी हुई थी सोफों के बीच. दोनों सोफे जुड़ कर जो वर्गाकार जगह बना रहे थे उसमें एक छोटा सा स्टूल रखा था. उसी पर लैंडलाइन फ़ोन रखा हुआ था.
“वो रहा कोने में फ़ोन. जल्दी से बात कर ले. और आवाज धीमी रखना,” संजू ने फ़ोन की तरफ इशारा करते हुए कहा.
मैं बिना देरी किए फ़ोन के पास पहुँची और महेश का नंबर मिलाया. रिंग बज रही थी मगर महेश फ़ोन नहीं उठा रहा था. पता नहीं क्या माजरा था.
तभी मुझे उसकी आवाज आई, “हैलो कविता… शुक्र है तुमने फ़ोन किया. तुम्हारा फ़ोन क्यों नहीं लग रहा? कब से फ़ोन कर रहा हूँ… सुनो मैं बैंक के काम से मुंबई जा रहा हूँ.”
“मुंबई… अचानक… क्या हुआ?” मैं बोली.
“जरुरी मीटिंग है वहाँ. चंडीगढ़ एयरपोर्ट पर हूँ मैं. प्लेन में बैठ चुका हूँ. तुम कब घर पहुँचोगी?”
मैं निराशा में डूब गई. मैं तो उसे गाँव बुलाने का सोच रही थी पर वो तो प्लेन में चढ़ चुका था. अब क्या फायदा होगा उस से बात करके? लेकिन फिर भी मैंने उसे अपनी दिक्कत कि जानकारी देना उचित समझा. “मेरी कार ख़राब हो गई है महेश. उसी को ठीक करवाने में लगी हूँ. थोड़ी देर हो जायेगी.”
“अंजलि भी तुम्हारे साथ है ना?”
“हाँ वो साथ ही है,” मैंने झूट बोल दिया. मैं नहीं चाहती थी कि महेश मेरी चिंता में पड़े अपने काम पर जाते वक्त.
“देखो रात ज्यादा हो गई है. कार तो ठीक करवा लो मगर आज रात वहीँ गाँव में रुक जाओ किसी के घर. अंजलि तो जानती ही होगी किसी को गाँव में. तुम कह रही थी कि वो कईं बार जा चुकी है वहां पहले.”
सुझाव तो अच्छा था महेश का. अगर अंजलि साथ होती तो ज़रूर सोचती मैं इस बारे में. मगर मैं तो अकेली थी. इसलिए मैं बात को टालते हुए बोली, “पहले कार ठीक हो जाए फिर देखती हूँ.”
“रुकना ही पड़ेगा तुम्हे. रात को मत निकलना. रात का सफ़र ठीक नहीं है.”
“अच्छा सोचती हूँ बाबा...”
“मम्मी की चिंता है तो उन्हें मैं बोल दूंगा. तुम आराम से वहीँ रुको… सुनो फ़ोन बंद करना पड़ेगा. प्लेन टेक ऑफ करने वाला है. बाय. टेक केयर.”
फ़ोन कट गया और मैंने मायूसी में फोन पटक दिया. फ़ोन जिस मकसद से किया था वो तो पूरा हुआ ही नहीं था. मायूसी तो होनी ही थी. एक तो महेश प्लेन में बैठा था ऊपर से बहुत जल्दी में था. मैं उसे ठीक से कह ही नहीं पाई अपनी मुसीबत के बारे में. खैर अब क्या हो सकता था. मुझे अब अपनी योजना के अनुसार ही इस मुसीबत से निपटना था. कोई और नहीं आने वाला था वहाँ मेरी मदद के लिए.
“हो गई बात?” संजू धीरे से बोला.
मैं पलटी और बोली, “हाँ हो गई. चलो चलते हैं.”
किस से बात कि तूने? अपने पति से?”
“तुम्हे क्या लेना देना?” मैं थोडा गुस्से में बोली.
“वैसे ही पूछ रहा था.”
“मुझे अच्छे नहीं लगते ऐसे सवाल... चलो अब यह से चलते हैं.”
“हाँ हाँ चलो... मैं तो तैयार खड़ा हूँ.”
हम दबे पाँव बैठक से बाहर निकले और घर के सामने वाले आँगन से होते हुए घर के पिछले आँगन की तरफ चल दिए. मैं संजय से बात करके इतनी निराशा में डूबी हुई थी कि मेरा ध्यान नहीं गया स्टील की बाल्टी पर और मैं गलती से उस से टकरा गई.
बाल्टी लुडक गई और उसके कारण हुई आवाज रात के सन्नाटे को चीरती हुई हर तरफ फ़ैल गई. मैं दांत भींच कर जहाँ थी वहीँ खड़ी हो गई. संजू भी रुक गया और अपने माथे पर हाथ मारा मेरी इस बेवकूफी पर अपनी प्रतिक्रिया देने के लिए.
तभी एक आवाज आई. “कौन है?”
मेरी सिट्टी पिट्टी गुम हो गई वो आवाज सुन कर.
“चल वापिस बैठक में चलना पड़ेगा,” संजू दौड़ता हुआ बोला.
मेरे पास कोई और उपाय नहीं था इसलिए मैं भी तुरंत भागते हुए उसके साथ दुबारा बैठक में घुस गई.
“तूने बाल्टी में लात क्यों मारी?” वो हांफते हुआ बोला. हम दोनों दरवाजे से दूर दीवार के पीछे खड़े थे.
“मैंने जानबूझ कर नहीं मारी. गलती से लग गई,” मैं अपनी साँसे थामने की कोशिश करते हुए बोली. जरा सा भाग कर ही मेरी साँस इतनी उखड गई थी कि साँस लेना मुश्किल हो रहा था.
संजू ने आगे बढ़ कर दरवाजे से बाहर झाँका और तुरंत पीछे हट कर बोला, “बापू है आँगन में औरे वो इधर ही आ रहा है.”
“हे भगवान अब क्या होगा?” मैं बोली, मेरे माथे पर चिंता की लकीरें उभर आई थी.
“हमें छुपना होगा. उसने हमें देख लिया तो मुसीबत हो जायेगी.”
मैंने चारो तरफ नज़र दौड़ाई. बैठक में सोफों के अलावा कोई छुपने की जगह नहीं थी. और वो छुपने के लिए उचित नहीं लग रहे थे.
“तुम उस तीन सीट वाले सोफ़े के पीछे छुप जाओ,” संजू लडखडाती आवाज में बोला. मेरी तरह वो भी बहुत डरा हुआ लग रहा था. उसकी ऐसी हालत देख कर मेरा डर और बढ़ता जा रहा था.
“वो-वो ठीक रहेगा क्या छिपने के लिए?” मैं कांपती आवाज में बोली.
“बातें मत कर जल्दी छुप,” वो फिर बोला. उसकी आवाज में बड़ी बेचैनी थी.
मैंने तुरंत उसकी बात पर अमल किया और सोफे के पीछे जा कर बैठ गई. वो सब देख रहा था कि मैं कैसे छिपी हूँ और झल्लाहट में बोला, “ऐसे कैसे बचेगी तू बापू की नज़रों से? वो सोफे के पास आया तो तुझे देख लेगा. नीचे लेट जा.”
बात सही थी उसकी. इसलिए मैं बिना देरी किए पेट के बल नीचे लेट गई. बड़ी कम जगह थी सोफे और दीवार के बीच. मैं बड़ी मुश्किल से उसमें फिट हो पा रही थी. सिर से लेकर पाँव तक बुरी तरह काँप रही थी मैं. ऐसा लग रहा था जैसे कि कुछ बहुत बुरा होने वाला है.
संजू यहाँ वहां दौड़ रहा था बैठक में छुपने के लिए. मगर उसे कोई जगह नहीं मिल रही थी.
“संजू तू है क्या?” संजू के बापू कि आवाज आई. वो बैठक के नजदीक पहुँच चुका था. उसके क़दमों कि आहट साफ़ सुनाई दे रही थी. किसी भी वक्त वो अंदर आने वाला था. मैं तो ठीक से छुपी हुई थी. मगर संजू अभी भी छुपने की जगह तलाश रहा था.
तभी संजू उस सोफे के पास आया जिसके पीछे मैं छुपी हुई थी और आनन फानन में मेरे ऊपर लेट गया. मैं हैरान रह गई. ये क्या बदतमीजी थी? ऐसे कैसे लेट सकता था वो मेरे ऊपर. मैं छटपटाई उसे अपने ऊपर से उतारने के लिए.
“श्श्ह… शांत रहो.. बापू दरवाजे पर है…” संजू मेरे कान में बोला.
मरती क्या ना करती. मैं शान्त हो गई. इसके सिवा कोई चारा भी तो नहीं था. दरवाजे पर वाकई में उसका बापू खड़ा था. अगर उसे नीचे उतारने के लिए मैं जद्दोजहद करती तो हम दोनों मुश्किल में पड़े जाते. इसलिए मैं चुपचाप दम साधे पड़ी रही
 
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मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि मेरी ज़िंदगी में एक दिन ऐसा आएगा जब मैं किसी ग़ैर मर्द के नीचे लेटने को मजबूर हो जाऊँगी. कुछ बुरा होने का जो अंदेशा हो रहा था मुझे संजू के घर आने से पहले वो सच हो गया था. काश मुझे पता होता कि ऐसा होने वाला है मेरे साथ वहाँ तो मैं उस घर में कभी ना आती. एक शादीशुदा महिला के लिए ऐसी स्थिति में होना बहुत कष्टकारी था. बड़ा गन्दा गन्दा लग रहा था मुझे. सिर से पाँव तक संजू ने मेरे शरीर को ढका हुआ था पीछे से. ऐसा लग रहा था जैसे कि मैं उसके नीचे संभोग करने के लिए लेटी हुई हूँ. छी…
सच में बड़ा ही गन्दा अहसास था ये. ये तो उस सुनसान सड़क पर फँस जाने से भी बुरा था. ना मैं उसे अपने ऊपर से उतरने को बोल सकती थी और ना ही उसे उतारने के लिए कुछ कर सकती थी. जरा सी आहट संजू के बापू का ध्यान हमारी और खींच सकती थी. इसलिए संजू को अपने ऊपर लिए चुपचाप पड़े रहने में ही भलाई थी.
और सबसे बड़ी दिक्कत की बात ये थी कि संजू का बापू बैठक के दरवाजे के आस पास ही घूम रहा था. जाने का नाम ही नहीं ले रहा था. हालाँकि अभी एक मिनट ही हुआ था उसे कमरे में आये हुए और मुझे संजू के नीचे पड़े हुए मगर मुझे ऐसा लग रहा था जैसे कि सदियाँ बीत गई हों. ऊपर से बैठक में पंखा भी नहीं चल रहा था. गर्मी से बुरा हाल हुआ जा रहा था मेरा. मैं मन ही मन बस यही दुआ कर रही थी कि उसका बापू जल्द से जल्द कमरे से चला जाए और मुझे संजू के नीचे पड़े रहने से छुटकारा मिले. मगर ऐसा होता दिख नहीं रहा था. संजू का बापू दरवाजे के पास ही डटा हुआ था.
संजू भी मेरी तरह चुपचाप दम साधे पड़ा था मेरे ऊपर. जरा भी नहीं हिल रहा था. वो तो शायद मुझसे भी ज्यादा डरा हुआ था. जैसी बाते उसने अपने बापू के बारे में मुझे बताई थी, उनके मद्देनज़र ऐसा डर स्वाभाविक भी था.
बैठक के बाहर मुझे क़दमों की आहट सुनाई दी. मैं अचंभित रह गई. क्या संजू का बापू बाहर चला गया था? उसके बाहर निकलने की तो कोई आहट नहीं हुई थी. ऐसे कैसे बिना आवाज के वो बाहर चला गया? पर जो भी हो… बाहर से आ रही उन कदमों की आहट से मुझे राहत मिली और मैं संजू को अपने ऊपर से उतारने के लिए मचलने लगी.
बिना कुछ बोले मैं छटपटाई संजू को इशारा करने के लिए कि अब वो मेरे ऊपर से उतर जाए. मगर वो ऐसा करने की बजाए मेरे कान में बोला, “क्या कर रही है? चुपचाप पड़ी रह.”
मुझे गुस्सा आ गया. ये क्या बात हुई? क्यों चुपचाप पड़ी रहूँ मैं? क्या उसने सारी रात मेरे ऊपर ऐसे ही पड़े रहने की ठान रखी थी?मैं ऐसा हरगिज़ नहीं होने देने वाली थी. इसलिए मैं जोर से छटपटाई.
तभी संजू की माँ की आवाज सुनाई दी. “क्या हुआ संजू के बापू…? कौन था?”
मैं समझ गई कि बाहर से आ रही क़दमों की आहट संजू की माँ की थी. छटपटाना छोड़ कर मैं तुरंत शांत हो गई.
“बिल्ली थी शायद,” संजू के बापू की आवाज आई. उसकी आवाज से ऐसा लग रहा था जैसे कि वो अभी भी बैठक के दरवाजे के आस पास था.
“बिल्ली ही होगी. आज दोपहर भी बड़े चक्कर काट रही थी एक.”
“ये नालायक कहाँ मर गया?” संजू का बापू गुस्से में बोला.
“अरे वो दवाई लाने ही गया होगा. तभी इतनी देर हो गई,” संजू की माँ बोली.
“दवाई लाने में इतनी देर नहीं लगती संजू की माँ. वो नालायक अपने ही किसी काम में लगा होगा. बड़ा नालायक बेटा पैदा किया है तुमने,” संजू का बापू बोला.
मेरा मन हुआ कि बोल कर समर्थन करूँ संजू के बापू की बात का. बिलकुल सही बोल रहा था वो. संजू नालायक ही नहीं बल्कि कमीना भी था. अगर उसके माँ बापू को पता चले कि क्या शर्त रखी थी उसने मेरी मदद के बदले तो वो उसका असली चरित्र पहचानेंगे. मगर जिस स्थिति में मैं सोफे के पीछे संजू को अपने ऊपर लिए लेटी हुई थी वैसे में मैं चूँ भी नहीं कर सकती थी. चुपचाप पड़े रहना ही बेहतर था मेरे लिए.
“आप भी ना… हमेशा संजू को ऐसे ही कोसते रहते हो. कितनी मदद करता है वो आपकी खेत में दिन भर. सारा दिन खेत में रहता है. शाम को फसलों को पानी देकर घर आता है. और रात को वापिस फसलों की रखवाली के लिए वापिस खेतों में जाता है,” संजू की माँ बोली. उसकी बात से ऐसा लगा मुझे जैसे कि संजू उसका लाडला बेटा था. शायद उसके लाड प्यार ने ही उसे बिगाड़ा था.
“ये तो हर किसान का बेटा करता है. इसमें कौन सी बडी बात है. तुझे नहीं पता कितना कामचोर है वो नालायक. बार बार बोलना पड़ता है किसी काम के लिए तब जाकर वो काम हो पाता है. आज कईं बार बोला था उसे दवाई लाने को… देखो अब तक दवाई नसीब नहीं हुई,” संजू का बापू बोला.
“आ जाएगा… आ जाएगा… आप बार-बार उसे कोसो मत. चलो लेट जाओ जाकर और मन को शांत करो,” संजू की माँ बोली.
हाँ बिलकुल. मैंने मन ही मन संजू की माँ से सहमती जताई. वो दोनों अपने कमरे में जाएँ और वहाँ जी भर कर बातें करें. वहाँ खड़े रह कर क्यों मेरे लिए मुसीबत खड़ी कर रहे थे वो. हर गुजरते लम्हे के साथ मेरे लिए संजू के नीचे पड़े रहना और ज्यादा दूभर हुआ जा रहा था.
मुझे पूरा यकीन था कि संजू का हाल ऐसा नहीं था. वो डरा सहमा होने के बावजूद खूब लुत्फ़ उठा रहा होगा इस पल का. उठाये भी क्यों ना. मेरे मादक शरीर की ऐसी नजदीकी उसे सपने में भी नसीब नहीं होनी थी. मगर क़िस्मत का खेल देखो. वो मजे से मेरे ऊपर पसरा हुआ था. कितना क़िस्मत वाला था. पाजी कहीं का. बस अब उसका बापू अपने कमरे में वापिस जाए तो मेरी जान छूटे उस से.
“तुम जाओ संजू की माँ. मैं यहीं बैठता हूँ बैठक में,” संजू के बापू ने कहा.
मैं तो हक्की बक्की रह गई ये सुन कर. ये क्या पागलों जैसी बातें कर रहा था संजू का बापू? उसे बैठक में रुकने की क्या जरुरत थी? उसे अपने कमरे में आराम करना चाहिए जाकर.
“यहाँ बैठ कर क्या करोगे जी आप? सुबह जल्दी खेत पर निकलोगे. चलो आराम कर लो,” संजू की माँ बोली. सही बात थी. आराम ही करना चाहिए था बूढ़े को.
“मुझे पूरा यकीन है वो आज रात दीवार फांद कर घुसेगा घर में. आज उसे सीधा करूँगा मैं. तुम सो जाओ जाकर. मैं यहीं बैठक के दरवाजे के पास खुली हवा में कुर्सी लगा कर बैठूँगा,” संजू का बापू बोला.
“जैसी आपकी मरजी. आप जानो आपका बेटा जाने. मैं तो चली सोने. ज्यादा मत मारना उसे. प्यार से बात करना,” संजू की माँ बोली और चली गई. उसके दूर जाते कदमों की आहट रात के सन्नाटे में साफ़ सुनाई दे रही थी.
गई भैंस पानी में. संजू की माँ तो उसके बापू को लिए बिना अपने कमरे में चली गई. अब क्या होग?. मैं तो यही दुआ कर रही थी बार-बार कि संजू का बापू वहाँ से जाए और मैं संजू के नीचे से निकल कर अपनी आजादी पाऊँ. मगर सब दुआएँ धरी रह गई. संजू का बापू तो वहीँ कुर्सी लगा कर बैठने वाला था.
कैसा पागलपन था ये?
कैसा पागलपन?
मन हो रहा था कि जोर से चिल्ला कर बूढ़े को वहाँ से भगा दूँ. पर मन जो भी हुआ करे मेरा. कर तो मैं कुछ भी नहीं सकती थी. सोफे के पीछे, संजू के नीचे, चुपचाप पड़े रहने में ही मेरी भलाई थी.
कुछ देर बाद फर्श पर कुर्सी सरकाने की आहट हुई. संजू का बापू कुर्सी खींच रहा था. थोड़ी देर बाद शान्ति छा गई. वो शायद दरवाजे के पास कुर्सी लगा कर बैठ गया था.
जब आप ना चाहते हुए भी किसी के नीचे लेटें हुए हों और हर तरफ सन्नाटा छा जाए तो आपको ऐसा लगेगा कि अब किसी भी पल कुछ और बुरा होने वाला है. हर कोई इस बात को नहीं समझ पाएगा. जो मेरी जैसी मुसीबत में फँसा होगा कभी… वही समझ पाएगा. दिल को बेचैन करने वाली उस शांति में मैं खुद को संजू के नीचे दबा हुआ और ज्यादा तीव्रता से महसूस कर रही थी. और ये तीव्र अहसास मुझे बेचैन कर रहा था. मुझे बुरे बुरे ख्याल दे रहा था. ये तो होना ही था. मेरा सारा वजूद सिमट कर संजू के नीचे जो आ गया था. मैं पूरी तरह उसके काबू में थी. वो जो चाहे कर सकता था मेरे साथ. मुझे कहीं भी छू सकता था. मेरे शरीर के किसी भी अंग को अपने हाथों का खिलौना बना सकता था.
अगर संजू के बजाय मेरे ऊपर कोई और होता तो शायद मैं ऐसे बुरे ख्याल मन में ना आने देती. पर संजू तो एक नंबर का बदमाश था. अभी तो खैर वो चुपचाप किसी सज्जन व्यक्ति की तरह मेरे ऊपर लेटा हुआ था. मगर कब तक? देर सबेर जब उसका अपने बापू को लेकर डर थोडा कम होगा तो वो जरुर कमीनेपन पे उतर आएगा.
‘हे भगवान मैं क्या करूँ इस मुसीबत से बचने के लिए?’ मैंने गहरी साँस लेते हुए मन ही मन सोचा.
तभी मैं सिहर उठी. संजू मेरे कान में कुछ बोल रहा था. “तू ठीक है ना?”
ये क्या सवाल था? वो मेरे ऊपर पसरा पड़ा था. मैं पूरी तरह उसके नीचे दबी हुई थी. ऐसे में मैं ठीक कैसे हो सकती थी?
चुप रहो. तुम्हारा बापू सुन लेगा,” मैं बोली. मैं नहीं चाहती थी कि वो कोई बातचीत करे इस वक्त. मैं पहले से उसके नीचे दबे होने के कारण परेशान थी. अगर उसने गन्दी बातें भी शुरू कर दी तो और ज्यादा मुसीबत हो जाएगी. इसलिए उसे चुप रखना ही बेहतर था.
“बताया था ना मैंने तुझे… बापू को कम सुनता है. उसे हमारी आवाज सुनाई नहीं देगी.”
“बाल्टी की आवाज सुन कर तो वो भागा आया था बाहर और तुम कह रहे हो कि कम सुनता है उसे,” मैंने हैरानी जताई.
“माँ ने बोला होगा उसे कि बाल्टी की आवाज आई है बाहर से. उसे नहीं सुनाई दी होगी ठीक से,” संजू बोला.
“क्या उसे बहुत कम सुनाई देता है?”
“हाँ तभी तो बात कर रहा हूँ तुझसे.”
“ये सब छोडो और मेरे ऊपर से हटो जल्द से जल्द…” मैं बोली.
“कैसे हटूँ? बापू दरवाजे पे कुर्सी लगाये बैठा है. कान से जरुर कम सुनता है उसे मगर आँखें बड़ी तेज हैं उसकी. और वैसे भी हट कर मैं जाऊँगा कहाँ… कोई और जगह नहीं है यहाँ छुपने की.”
“तो क्या हम ऐसे ही पड़े रहेंगे? मेरा बदन दर्द करने लगा है.”
“कोई और चारा नहीं है. चुपचाप पड़ी रह,” वो मेरे कंधे दबाते हुए बोला.
“तुम्हारे लिए ये कहना आसान है. नीचे तो मैं दबी पड़ी हूँ.”
“क्या तेरा पति नहीं चढ़ता तेरे ऊपर ऐसे? शादीशुदा हो. तुम तो आदी होगी ऐसे नीचे लेटने की.”
“तुमने फिर निजी बातें शुरू कर दी. या तो मेरे ऊपर से उतर जाओ या फिर चुपचाप लेटे रहो. मैं पहले से ही परेशान हूँ. मुझे अपनी बातों से और परेशान ना करो,” मैं धीरे से सख़्त आवाज़ में बोली.
“ये वक्त सैंटी होने का नहीं है. देखो हम कैसे एक दुसरे के ऊपर पड़े हुए हैं. तुम्हे नहीं लगता कि हमें इस वक्त कुछ और करना चाहिए?”
“क्या कर सकते हैं हम इस वक्त?” मैं झल्ला कर बोली.
उसने अपने कूल्हे थोड़ा ऊपर उठा कर हल्का सा धक्का मारा मेरे नितंबों पर और बेशर्मी से बोला, “ये कर सकते हैं.”
मैं शर्म से पानी पानी हो गई. कुछ बोलने को मुँह ही नहीं खुला. उसने संभोग के दौरान लगने वाले धक्के से अवगत कराया था मेरे नितंबों को. वो भी बड़े गंदे तरीके से.
हे भगवान जिस बात का डर था वही हो गया. संजू अपने कमीनेपन पर उतर आया था.
अब क्या होगा?
 
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अब क्या होगा?
मैं संजू के नीचे पड़ी इस सवाल में उलझी हुई थी. अगर उसने दुबारा धक्का मारा तो क्या करूँगी मैं? कैसे सहूँगी उसे? कितना गंदा लगेगा.
मुझे कुछ करने की ज़रूरत थी. किसी भी तरह उसे अपने ऊपर से उतारने की ज़रूरत थी.
मगर कैसे?
सोफ़े के पीछे जरा सी भी जगह नहीं थी जहाँ मैं उसे अपने ऊपर से उतार कर फेंक सकूँ. वहाँ तो एक इंच दाँये बाएँ सरकना भी मुश्किल था. और उस कमरे में कोई और जगह नहीं थी उसे भेजने के लिए. ये पक्की बात थी.
फिर कैसे उसे अपने ऊपर से उतारा जाए?
कैसे?
मैं इसी उधेड़बुन में उलझी हुई थी कि उसने एक और धक्का लगा दिया और बोला, “बोल ना... करें क्या ये?”
“संजू प्लीज़... हिलना डुलना बंद करो और चुपचाप लेटे रहो,” मैं गिड़गिड़ाई.
“ये मेरे बस में नहीं है.”
”क्यों बस में नहीं है? चुपचाप लेटे रहने में क्या दिक़्क़त है तुम्हें? मैं भी तो चुपचाप लेटी हुई हूँ.”
“अरे कैसी बात करती है? तेरे जैसी खूबसूरत औरत के ऊपर पड़ा आदमी कैसे चुपचाप लेट सकता है? ये नामुमकिन है,” वो धीरे से बोला और फिर से एक धक्का लगा दिया.
इस बार धक्के के साथ साथ मैंने उसका लिंग भी महसूस किया अपने नितंबों पर. मैं सिर से पाँव तक काँप गई और पहले से ज़्यादा शर्मसार हो गई. मन हुआ कि उसे अपने ऊपर से फेंक कर खड़ी हो जाऊँ तुरंत. जो होगा देखा जाएगा. पर फिर वही मज़बूरी सामने आ गई. बैठक के दरवाजे के पास उसका बापू बैठा था. खड़े हो कर इस से ज्यादा मुसीबत हो जाने वाली थी. इसलिए पड़ी रही चुपचाप.
मेरी ये मज़बूरी वो भी जानता था. वो जानता था अच्छी तरह कि मैं उसके नीचे पड़े रहने को मजबूर हूँ. तभी तो वो इतनी बेशर्मी से धक्के लगा रहा था.
लेकिन एक बात अजीब लगी मुझे. उसका लिंग पहले क्यों नहीं महसूस हुआ मुझे? जो अभी-अभी उसने धक्का लगाया था उसी के साथ क्यों महसूस हुआ? धक्के तो उसने पहले भी लगाए थे. शायद ये उसके बापू के कारण था. जैसे वो डरा सहमा चुपचाप पड़ा था थोड़ी देर पहले मेरे ऊपर, वैसे ही डरा सहमा उसका लिंग भी दुबका पड़ा होगा उसकी पैंट में.
उसने अपने लिंग को जोर से मेरे नितंबों पर दबाया और बोला, “देख मेरा तो खड़ा हो गया तेरे ऊपर लेटे होने के कारण. और तू कह रही है कि मैं चुपचाप लेटा रहूँ. पत्थर नहीं हूँ मैं. जवान मर्द हूँ.”
मेरे गाल फिर से लाल हो गए इस हरकत के कारण. वो बड़ी बेशर्मी से अपने लिंग को मेरे नितंबों पर दबा रहा था. शुक्र है कि उसका लिंग उनकी दरार से थोडा दूर दाएँ नितंब पर टिका हुआ था. अगर दरार पर होता तो मुझे और ज्यादा गन्दा और बुरा लगता.
“क्या तुझे मेरा औजार महसूस हो रहा है?”
अब ये क्या बेतुका सवाल हुआ? वो तो महसूस हो ही रहा था. ऐसा गन्दा सवाल करने की क्या जरुरत थी उसे?
“बोल ना,” वो अपना मुहँ मेरे कान के बिलकुल पास लाकर बोला.
मन तो बिलकुल नहीं था उसके बेतुके सवाल का जवाब देने का. मगर मुझे ये डर था कि कहीं वो अपना लिंग मेरे नितंबों की दरार पर ना सटा दे मुझे उसे महसूस करवाने के चक्कर में. इसलिए मैंने जवाब दे दिया. “हाँ हो रहा है. ऐसे ही चुपचाप लेटे रहो.”
“कैसा है मेरा?” वो बेशर्मी से बोला.
“तुम चुप नहीं रह सकते? ये कोई वक्त है ऐसी बातें करने का. तुम्हारा बापू बैठा है नजदीक और तुम…”
“अरे कितनी बार बताऊँ तुझे… उसे कम सुनाई देता है.”
“कम सुनाई देता है… बहरा तो नहीं है ना?”
“बहरा नहीं है पर उसे हमारी आवाज बिलकुल सुनाई नहीं देगी. मैं गारंटी लेता हूँ.”
“मुझे गारंटी वारंटी नहीं चाहिए. जल्द से जल्द इस मुसीबत का कोई हल ढूँढो. हमें कार के पास भी पहुँचना है. ऐसा ना हो कि हम यहीं रह जाएँ और नोनू आकर चला जाए.”
“अरे अभी बहुत वक्त है. इतनी जल्दी नहीं पहुँचेगा वो वहाँ. उसने बताया था ना कि उसकी बीवी के घर आने के बाद ही निकलेगा वो घर से. इसलिए चिंता मत कर. चुपचाप पड़ी रह.”
“कैसे चुपचाप पड़ी रहूँ? कितना वजन है मुझ पर. ऊपर से तुम वो चीज़ भी महसूस करवा रहे हो और गंदे सवाल जवाब भी कर रहे हो.”
“अरे अब तो खुल जा मेरे साथ. अब तो थोड़ी देर बाद हमने मजे करने ही हैं.”
“देखो मैं खुल वुल नहीं सकती तुम्हारे साथ. मेरे लिए संभव नहीं है ऐसा. जब वक्त आएगा तब जो मरजी कर लेना. अभी तुम…”
मेरी बात पूरी होने से पहले ही उसने मेरी बात काट दी. “वो तो करूँगा ही. जैसे मेरा मन होगा वैसे मजे करूँगा. आखिरकार सौदा हुआ है अपना.”
सौदा शब्द बड़ा बुरा लगा मुझे उस पल. ऐसा लगा जैसे कि मैंने अपनी कार ठीक करवाने के लिए उसे अपना शरीर बेच दिया हो. इसलिए मैं उसकी बात का विरोध करते हुए बोली, “सब कुछ कार ठीक होने के बाद होना था. पर तुम तो उस से पहले ही शुरू हो गए.”
“क्या शुरू कर दिया मैंने… क्या बोल रही है?”
“इतने मासूम मत बनो. अभी तुम धक्के नहीं लगा रहे थे क्या थोड़ी देर पहले?”
“हद हो गई. उसको भी तू सेक्स समझती है. वो तो बस मैं पूछ रहा था कि क्या हम सेक्स करलें.”
“ये कोई पूछने की बात है. तुम्हारा बापू बैठा है नजदीक. कैसे सेक्स होगा यहाँ. और वैसे भी कार ठीक होने से पहले तुम सेक्स का सोच भी कैसे सकते हो?”
“बुरा मत मानों. मैं तो बस पूछ रहा था.”
“मुझसे कोई ऐसा सवाल मत किया करो जो मुझे परेशान करता है.”
“लो कर लो बात. फिर तो मैं तुझसे कुछ भी नहीं बोल पाऊँगा. तू तो बात बात पर बुरा मान जाती है.”
“इसका मतलब क्या तुम सिर्फ गन्दी बातें ही करना चाहते हो मेरे साथ?”
“इसमें हर्ज़ क्या है. मैं तेरे ऊपर लेटा हुआ हूँ. मेरा सामान तेरी दुकान को छू रहा है. बड़ी मस्त पोजीशन में हैं हम. ऐसे में मैं तेरे साथ सेक्सी बातों की बजाय क्या धर्म कर्म की बातें करूँ?”
एक पल को मैं हैरत में पड़ गई कि ये सामान और दुकान का क्या मतलब है. मगर थोड़ी देर बाद अहसास हुआ मुझे कि सामान वो अपने लिंग को कह रहा था और दुकान मेरे नितंबों को. ये समझ आते ही मेरे गाल शर्म से लाल हो गए. “बातें करने की जरुरत ही क्या है? क्या तुम चुपचाप नहीं पड़े रह सकते?”
“ठीक है… मैं कुछ नहीं बोलूँगा… मगर मुझे धक्के मारने से मत रोक. मजा आ रहा है,” वो बोला और जोर का धक्का लगा दिया. उसका लिंग फिसल कर मेरे नितंबों की दरार में जाने वाला था. मगर शुक्र है ऐसा नहीं हुआ.
उसकी बात पर मैंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी. उसके धक्के मुझे लज्जित तो कर रहे थे मगर मैंने फैसला किया कि करने दो उसे जो करना है. मेरा क्या जाएगा? उसका लिंग मेरे अन्दर तो जाने वाला था नहीं किसी भी तरीके से. कपड़ों की दीवार थी हमारे बीच. उसके कपड़ों की भी और मेरे कपड़ों की भी. कम से कम इस बहाने उसकी गन्दी बातों से तो छुटकारा मिल जाएगा. उसके धक्के और गन्दी बातें दोनों साथ सहन नहीं कर सकती थी मैं.
मेरी चुप्पी से वो समझ गया कि मैं उसके धक्को का विरोध नहीं करुँगी और तुरंत मेरे नितंबों पर एक के बाद एक धक्के लगाने लगा. वो सिर्फ अपने कुल्हे उठा कर मेरे नितंबों पर वार कर रहा था. उसका बाकी का पूरा शरीर स्थिर था. यक़ीनन ये उसके बापू के कारण था. उसके मन में उसे लेकर थोडा बहुत डर तो था ही अभी भी. वरना वो ऐसे शांत धक्के नहीं लगा रहा होता.
मेरे लिए तो ये ठीक ही था. लगातार पड़ रहे धक्को के बावजूद उसका लिंग अभी भी मेरे नितंबों की दरार से दूर था. ऐसी मुसीबत की घडी में, जब मैं उसके नीचे पड़े होने के साथ-साथ उसके अश्लील धक्को को सहने को मजबूर थी, ये चीज़ मेरे लिए किसी बलैसिंग से कम नहीं थी.
हाँ मगर एक बात जरुर थी. रह-रह कर मुझे ये ख्याल जरुर आ रहा था कि मैं उसके साथ संभोग कर रही हूँ. ये स्वाभाविक भी थी. चुपचाप उसके नीचे पड़ी हुई मैं संभोग के धक्के ही तो झेल रही थी. ऐसे में ऐसा ख्याल आना वाजिब ही था कि मैं संभोग कर रही हूँ उसके साथ.
था तो बड़ा गन्दा और विचलित करने वाला अहसास ये. मगर इस अहसास को दिल में दबाए पड़ी रही मैं उसके नीचे और उसके धक्को को सहती रही.
अब तो वो रुक ही नहीं रहा था. लगातार धक्के लगाए जा रहा था. उसकी साँसे भी तेज हो गई थी. वो इस सब को संभोग से कम नहीं समझ रहा था. पूरा मग्न हो गया था वो इसमें.
तभी मुझे ख्याल आया कि अगर उसका वीर्य स्खलित हो जाए इस दौरान तो कितना अच्छा हो. पुरुष वीर्य स्खलन के लिए ही तो तडपता है सेक्स के दौरान. अगर वो हो गया तो बाकी क्या बचा? ऐसे में हमारा जो सौदा हुआ था वो पूरा माना जाएगा.
तभी वो अचानक रुक गया. उसकी साँसे तेज चल रही थी. मुझे ऐसा लगा जैसे कि उसका वीर्य स्खलन हो गया हो.
बात तो नहीं करना चाहती थी मैं उस से मगर उत्सुकता इतनी थी कि खुद को रोक नहीं पाई.
मैंने गले में अटका थूक गटका और बोली, “क्या तुम्हारा हो गया?”
“अब क्यों बात कर रही है मुझसे?” वो गहरी साँस लेते हुए बोला.
उसकी साँस अभी भी उखड़ी हुई थी. उसका पक्का स्खलन हुआ था. “वैसे ही पूछ रही हूँ.”
“तुझे क्या लेना इस बात से?” वो बोला. शायद वो मुझसे थोडा उखड़ा हुआ था. तभी वो मुझसे सीधे मुहँ बात नहीं कर रहा था. क्या वो इस बात से खफा था कि मैंने उसे चुप रहने को बोल दिया था? शायद ऐसा ही था.
अगर मुझे ये जानने की उत्सुकता नहीं होती कि उसका स्खलन हुआ है कि नहीं तो मैं बात वहीँ खत्म कर देती. मगर मेरी उत्सुकता मुझे चुप नहीं रहने दे रही थी. मैं ये पक्का करना चाहती थी कि उसका स्खलन हुआ है कि नहीं. “वैसे ही पूछ रही हूँ… बताओ ना?” मैंने कहा.
“अच्छा अब समझा… तू शायद ये जानना चाहती है कि तेरे मस्त तरबूजों पर रगड़े खा कर मेरा पानी निकला या नहीं… हैं ना?”
मेरे गाल एक बार फिर शर्म से लाल हो गए उसकी बात पर. चुप्पी साधने का मन हुआ मेरा. मगर जिस उत्सुकता ने मेरी चुप्पी तोड़ी थी वो मुझ पर अभी भी हावी थी और उसने मुझे उसकी बात पर प्रतिक्रिया देने के लिए मजबूर कर दिया. “ऐसा ही समझ लो.”
“लगता है तुझे….”
वो बोलता बोलता चुप हो गया. उसका बापू जिस कुर्सी पर बैठा था उसमें हलचल हुई और उसके अगले ही पल क़दमों कि आहट हुई.
मैंने दम साध लिया. साँस भी बिलकुल धीरे-धीरे लेने लगी. यही हाल संजू का था. एक बार फिर हम दोनों पर पकडे जाने का डर हावी हो गया था. उस पल मुझे अहसास हुआ कि इस पल से अच्छे तो वही पल थे जब संजू मेरे नितंबों पर धक्के लगा रहा था. पकडे जाने का डर तो नहीं सता रहा था तब.
पता नहीं संजू का बापू क्या कर रहा था उस वक्त. अब कोई आवाज नहीं आ रही थी. बिलकुल शांति छा गई थी. वो खड़ा था या कुर्सी पर बैठ गया था दुबारा कुछ मालूम नहीं था. ये अनिश्चितता मेरे रोंगटे खड़ी कर रही थी. वो कहीं भी हो सकता था. ये भी हो सकता था कि वो इस वक्त सोफे के ऊपर से झाँक कर हमें देख रहा हो. इस ख्याल से मैं थर-थर कांपने लगी. मन हो रहा था कि संजू से पूछूँ कि क्या हो रहा है. मगर उस पल कुछ भी बोलना ठीक नहीं था.
कुछ देर तक हम यूँ ही चुपचाप पड़े रहे. फिर संजू ने थोडा ऊपर उठ कर सोफे के ऊपर से झाँक कर देखा और तुरंत बिना देरी किए वापिस मेरे ऊपर गिर गया.
“बापू कुर्सी पर ही बैठा है. चिंता की कोई बात नहीं है,” संजू मेरे कान में बोला.
मैंने राहत कि साँस ली और बोली, “तुम्हारा बापू कब तक बैठा रहेगा यहाँ?”
“चिंता मत कर. देर सबेर जाएगा ही यहाँ से. सारी रात यहीं नहीं बैठा रहेगा… अच्छा हम क्या बातें कर रहे थे?”
“तुम्हें याद नहीं?”
“इतना तो याद है कि तू मुझसे पूछ रही थी कि मेरा हुआ कि नहीं. मैं तुझे कुछ कहने वाला था... क्या कहने वाला था अब याद नहीं आ रहा.”
जरुर कोई गन्दी बात ही होगी. इसलिए मैंने इस बात को टालना ही सही समझा. “वो सब छोडो. तुम मेरे सवाल का जवाब दो.”

“अरे याद आया. मैं तुझसे ये पूछना चाहता था कि क्या तुझे बहुत गुमान है अपनी दुकान पर?”
“ये कैसा सवाल है? मेरे सवाल का जवाब देने की बजाए ऐसा बेतुका सवाल पूछ रहे हो.”
“अरे बता ना. शरमा मत.”
“मुझे नहीं बताना कुछ भी.”
“तो तू क्यों जानना चाहती है कि मेरा हुआ की नहीं?”
“मैं इसलिए जानना चाहती थी कि अगर हुआ होगा तुम्हारा तो ये माना जाएगा कि हमारा सौदा पूरा हुआ.”
“ये क्या बकवास है?” वो बोला.
उसकी झल्लाहट से जाहिर हो रहा था कि उसका वीर्य स्खलन हुआ था. तभी तो वो ऐसे झल्ला रहा था. “ये बकवास नहीं… सही बात है.”
“कैसे सही बात है? अपनी बात सेक्स करने की हुई थी.”
“हाँ तो तुमने कर तो लिया सेक्स,” मैं बोली.
“कहाँ कर लिया सेक्स? मैं तो सिर्फ सूखे धक्के मार रहा था. सेक्स करना तब माना जाता अगर मैंने तेरे अंदर डाल कर धक्के मारे होते.”
“सेक्स के दौरान आदमी का क्या निकलता है?” मैंने पूछा.
“पानी,” वो तपाक से बोला.
“तो तुम मानते हो कि सेक्स के दौरान आदमी का पानी निकलता है,” मैं उसे बातों में फंसाते हुए बोली.
“मेरे मानने या ना मानने से क्या होता है? सेक्स के दौरान सबका पानी निकलता है.”
“तो जब तुम्हारा पानी निकल चुका है तो क्यों बोल रहे हो कि सेक्स नहीं किया तुमने मेरे साथ?”
“अच्छा अब समझ में आया कि तू क्यों पूछ रही थी कि मेरा हुआ कि नहीं. तू तो बड़ी चालाक है.”
“इसमें चालाकी की क्या बात है? तुम्हारे नीचे पड़ी हुई हूँ मैं कब से. तुम्हारी हवस भी सह रहीं हूँ चुपचाप पड़े पड़े. जब तुम्हारा हो गया है तो मुझे थोडा लाभ तो मिलना चाहिए इस बात का. ऐसा नहीं होना चाहिए कि मैं तुम्हे अभी भी मजे दूँ और कार ठीक होने के बाद भी मजे दूँ. वो तो हमारे सौदे के खिलाफ हो जाएगा.”
“ये बात जब लागू होगी जब मेरा निकला हो. मेरा पानी निकला ही कहाँ है.”
“अच्छा... झूट मत बोलो.”
“झूट नहीं बोल रहा. देख मेरा अभी तक खड़ा है. अगर हुआ होता तो क्या अब तक खड़ा रहता?” वो अपने लिंग को मेरे नितंब पर जोर से दबाते हुए बोला.
उसका लिंग मेरे बायें नितंब पर था इस वक्त. जब वो दुबारा लेटा था मेरे ऊपर अपने बापू को देखने के बाद तब पोजीशन चेंज हो गई थी उसकी. अच्छी बात ये थी कि वो अभी भी मेरे नितंबों की दरार से थोडा दूर था. और वो सही कह रहा था. उसका अभी भी सख्त था. बिलकुल लकड़ी की तरह."
“इस से कुछ साबित नहीं होता.”
“क्यों कुछ साबित नहीं होता? इस से पता नहीं चलता क्या तुझे कि मेरा पानी नहीं निकला है.”
“मैं सब जानती हूँ. तुम दूसरी पारी की तैयारी में हो.”
“ऐसा कुछ नहीं है मेरी जान. अभी एक पारी पूरी नहीं हुई और तू दूसरी की बात बोल रही है.”
मेरी जान बोला उसने मुझे. वो भी बड़े प्यार से. लेकिन मैं जानती थी कि ये सब उसकी मक्कारी थी. उसका यही इरादा था कि अब भी जी भर के मजे ले लिए जाएँ और बाद में कार ठीक होनें के बाद भी मजे ले लिए जाएँ. हालाँकि मैं कार ठीक होनें के बाद उसे कोई मौका देने वाली नहीं थी. मगर जब बात अभी खत्म हो रही थी तो बाद तक क्यों टाला जाए. क्या पता बाद में मैं उसकी बात मानने को मजबूर हो जाऊँ. ये सच था कि मैंने खूब सोच समझ कर एक प्लान बनाया हुआ था मगर आने वाले पल पर मेरा कोई बस नहीं था. कुछ भी हो सकता था उस आने वाले पल में. इसलिए समझदारी की बात यही थी कि सब कुछ अभी सुलझा लिया जाए.
“मैं कैसे मान लूँ ये बात? इतनी देर तक लगे हुए थे तुम. इतनी देर में तो चार बार हो जाए.”
“तेरे पति का होता होगा चार बार इतनी देर में. गाँव का छोरा हूँ मैं. असली दूध घी खाता हूँ. इतनी जल्दी नहीं गिरता पानी मेरा.”
“मेरे पति को बीच में मत लाओ.”
 
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“चल ठीक है. उसे बीच में नहीं लाता. तू मेरी बात का यकीन कर मेरा पानी नहीं निकला है.”
“मैं कैसे यकीन करूँ?”
“तू हाथ से छू के देख मेरी पैंट. पूरी सूखी पड़ी है.”
आईडिया तो अच्छा था. मुझे छू कर देखना चाहिए. सब दूध का दूध पानी का पानी हो जाएगा. मगर मैं झिझक रही थी ऐसी जगह हाथ लगाने से. अच्छे से जांच पड़ताल करने के लिए मुझे हर तरफ हाथ फिराना पड़ेगा. और उसके लिंग को छुए बिना ये काम मुमकिन नहीं था.
“क्या हुआ? छू कर देख ना. मैं पांच तक गिनूंगा. अगर तूने छू कर नहीं देखा तो तो जो मैं कह रहा हूँ वही सच माना जाएगा,” वो बोला और गिनती शुरू कर दी.
ऐसा लग रहा था जैसे कि वो हर हाल में अपनी बात मनवाना चाहता था. तभी तो वो ऐसे गिनती गिन कर मेरे ऊपर दबाव डाल रहा था. और वक्त भी कितना कम दे रहा था वो मुझे. उसे यकीन था शायद कि मैं छू कर नहीं देखूंगी. तभी तो वो ऐसा खेल खेल रहा था.
मैं बहुत ज्यादा असमंजस में थी. छू कर देखने का मन तो था मेरा मगर ऐसा उसके लिंग पर हाथ लगाए बिना कैसे किया जाए ये समझ नहीं आ रहा था. फिर मुझे ख्याल आया कि क्या बड़ी बात हो जाएगी अगर मेरा हाथ उसके लिंग को छू ले तो? वैसे भी तो मैं उसके लिंग को अपने नितंबों पर महसूस कर ही रही थी. हाथ से छू कर कुछ नया तो हो नहीं जाएगा. इसलिए जब उसने चार बोला तो मैं अपना हाथ पीछे ले गई और बोली, “रुको मैं छू कर देखूंगी. थोडा ऊपर उठो.”
“मुझे लगा तू मेरी बात मान गई. पर तू तो पूरी शक्की है. चल देख ले छू के. मेरा क्या बिगड़ेगा? मुझे तो उलटा मजा आएगा,” वो थोडा ऊपर उठते हुए बोला.
मैंने उसकी पैंट के उस भाग पर हाथ रख दिया जिसने उसके गुप्तांग को ढक रखा था. बुरी तरह काँप रहा था हाथ मेरा. दिल भी जोर जोर से धड़क रहा था. और शर्म से भी बुरा हाल था. मगर मैंने अपना हाथ वापिस नहीं खींचा और हलके से उसे उसकी पैंट पर फिराना शुरू कर दिया. उसके उत्तेजित लिंग ने जो उभार बनाया हुआ था उसकी पैंट में उसे बड़ी स्पष्टता से महसूस कर पा रही थी मैं. बहुत अजीब और गन्दा लग रहा था मुझे मगर मैं रुकी नहीं. मैं तलाशती रही उस गीलेपन को जो उसके वीर्य ने छोड़ा होगा. मगर आश्चर्य की बात ये थी कि वो कहीं मिल ही नहीं रहा था. मैं हाथ घुमाती रही यहाँ वहाँ मगर कोई फायदा नहीं हुआ. बस बार बार उसका उत्तेजित लिंग ही महसूस होता रहा.
“मिला कुछ गीला गीला?” वो बेशर्मी से बोला.
“यहाँ क्या गीलापन मिलेगा. तुम्हारी पैंट का कपडा मोटा है. बाहर तक आ ही नहीं पाएगा कुछ भी,” मैं हाथ उसकी पैंट से हटाते हुए बोली.
“अरे मान मेरी बात… ऐसा कुछ नहीं हुआ. अगर तुझे अभी भी शक है तो मेरी पैंट में हाथ डाल के देख ले,” वो पैंट कि चेन खोलते हुए बोला.
“नहीं… नहीं… वहाँ हाथ नहीं डालूंगी मैं,” मैंने कहा.
“तो मेरी बात मान फिर… मान ले कि मेरा पानी नहीं गिरा.”
“ये बात मैं मान ही नहीं सकती. तुम इनती देर तक लगे हुए थे. तुम्हारी साँसे भी तेज थी…”
“ले चेन खुली पड़ी है मेरी. हाथ अन्दर डाल और देख ले कि मेरा कच्छा गीला है कि नहीं.”
मैं एक बार फिर असमंजस में पड़ गई. इस बात की तह तक तो जाना चाहती थी मगर उसकी पैंट में हाथ कैसे डालूँ. उसका लिंग ज्यादा नजदीकी से महसूस होगा मुझे. बड़ा भद्दा और अश्लील काम था ये.
तभी मुझे एक उपाय सुझा. उपाय ऐसा था कि मेरा काम भी बन जाएगा और उसके लिंग पर मेरा हाथ भी स्पर्श नहीं होगा. मैंने गहरी साँस ली और बोली, “तुम ऐसा करो अपने अंडरवियर में हाथ डाल कर अपने लिंग को ढक लो.”
“क्यों?”
“अगर तुम उसे हाथ से ढक लोगे तो मैं अंडरवियर में हाथ डाल कर चैक कर लूंगी.”
“तू भी ना… ये क्या ड्रामा कर रही है? हाथ अन्दर डाल और चैक कर ले.”
“या तो जो मैं कह रही हूँ वो करो या फिर ये स्वीकार करो कि तुम्हारा पानी गिरा है,” मैंने कहा. मैं उसी का पत्ता अब उस पर फेंक रही थी.
उसने मेरी बात मान ली. वो अपने लिंग को हाथ से ढक कर बोला, “चल कर ले चैक अब इत्मीनान से.”
क्योंकि अब मुझे कोई डर नहीं था उसके लिंग पर हाथ के टकराने का इसलिए मैंने तुरंत उसके अंडरवियर में हाथ डाल दिया और उसे अच्छे से चैक करने लगी. मेरी तरकीब काम कर रही थी. मेरा हाथ सिर्फ संजू के हाथ से टकरा रहा था. हाथ का एक कोना भी उसके लिंग को नहीं छू रहा था.
मगर बड़ी हैरानी की बात थी. मुझे उसके अंडरवियर पर वीर्य की एक बूंद भी नहीं मिली. जरा सा गीलापन था एक जगह मगर वो उसका वीर्य नहीं था. वह वो पदार्थ था जो उत्तेजना होने पर लिंग को चिकना करने के लिए निकलता है. महेश के लिंग पर अक्सर देखा था मैंने उसे. इसलिए मैं जानती थी. अगर उसका वीर्य स्खलन हुआ होता तो काफी गीलापन मिलता मुझे उसके अंडरवियर में. मगर ऐसा नहीं था.
निराशा में मैंने हाथ बाहर खींच लिया.
“हो गई तस्सली? बेकार का नाटक किया तूने,” वो मेरे कान में बोला.
मैं कुछ नहीं बोली. बोलती भी क्या. मुझे खुद यही लग रहा था कि बेकार में मैंने ये सब किया. उसके लिंग को छुआ… उसके अंडरवियर में हाथ डाला.
और हासिल क्या हुआ?
कुछ नहीं.
मुझे बहुत बुरा लग रहा था. जब मैंने एक अच्छा प्लान बना रखा था संजू से निपटने के लिए तो फिर क्या जरुरत थी मुझे ये सब बेवकूफी करने की?
मैंने गहरी साँस ली और दोनो हाथ फ़र्श पर रख कर उस पर सिर टिका लिया और इस सोच में डूब गई कि ये जो संजू के नीचे पड़े रहने की यातना मिल रही थी मुझे वो कब ख़त्म होगी.
 
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एक दम शांति छाई हुई थी मेरे और संजू के बीच. हमारे बीच जो बहसबाजी हुई थी उसका स्खलन होने को लेकर उसने थोडा तनाव का रूप ले लिया था. मेरे लिए तो ये अच्छा ही था. उसकी गन्दी बातों और उसके गंदे धक्को, दोनों से ही मुझे नजात मिल रही थी. लेकिन मैं जानती थी कि ये शांति ज्यादा देर तक नहीं चलेगी. कुछ ना कुछ शैतानी तो वो जरुर करेगा देर सबेर. और यही हुआ.
कुछ देर बाद वो हलके हलके धक्के लगाने लगा. मैं सिहर उठी. बोल नहीं रहा था वो कुछ भी. बस अपने कुल्हे को हल्का सा ऊपर उठा कर हल्का सा धक्का लगा रहा था मेरे नितंबों पर. वो मुझे परख रहा था कि मैं कोई विरोध करुँगी कि नहीं. मैं समझ गई कि अगर मैंने विरोध नहीं किया तो वो पहले की तरह बेशरमी पर उतर आएगा. इसलिए मैं बोल पड़ी, “तुम फिर शुरू हो गए. बंद करो ये सब.”
“अरे क्या बिगड़ेगा तेरा इस सब से? कौन सा तेरे अन्दर घुसा रहा हूँ,” वो अपना लिंग जोर से मेरे नितंब पर दबाते हुए बोला. मेरी साँसे थम गई. उसका लिंग मेरे नितंबों की दरार के बहुत ज्यादा करीब था.
“संजू ये सब करने की बजाए यहाँ से निकलने पर ध्यान दो अब.”
“जब तक बापू यहाँ से नहीं जाता तब तक हम कुछ नहीं कर सकते.”
“मेरी कार का क्या होगा फिर? इतनी मुश्किल से नोनू को राजी किया था कार ठीक करने के लिए. ऐसा ना हो कि वो आकर चला जाए. दुबारा मनाना मुश्किल होगा उसे.”
“फिर वही बात. ऐसा नहीं करेगा नोनू. वैसे भी अभी बहुत टाइम है हमारे पास. ज्यादा टेंशन मत ले. पड़ी रह चुपचाप और मुझे मजे करने दे.”
“मैं कोई लाश नहीं हूँ. कब तक पड़ी रहूंगी ऐसे तुम्हारे नीचे.”
“कितनी बार बोल चुका हूँ तुझे. सब शर्म हया छोड़ कर मजे कर,” वो एक और धक्का लगाते हुए बोला.
“देखो अगर तुम ऐसे करते रहे तो बाद में कुछ नहीं करने दूंगी मैं तुम्हे,” मैंने चेतावनी दी.
“मेरा पानी निकलेगा तब लागू होगी ना ये बात?” वो मेरे कान में बोला.
“वो तो निकलेगा ही अगर ऐसे करते रहे तुम.”
“नहीं निकलेगा.”
“और अगर निकल गया तो?”
“तो मैं मान लूँगा कि सेक्स हो गया है अपना और कार ठीक होने के बाद तुझसे कुछ नहीं माँगूँगा.”
मैंने विचार किया उसकी बात पर. मन हुआ कि उसकी बात मान लूँ. धक्के तो उसने लगाने ही थे. इसलिए कोई हर्ज़ नहीं था इसमें. मगर फिर मेरा मन बदल गया. अगर वीर्य स्खलन हो जाने के बावजूद वो नहीं माना कि उसका हुआ है तो मुझे दोबारा उसे छू कर देखना पड़ेगा. और ऐसा मैं हरगिज़ नहीं करना चाहती थी. कैसा बेवकूफी भरा काम था वो. छी…
“छोडो ये सब… और चुपचाप लेटे रहो.”
“अब क्या दिक्कत है तुझे? अब तो मैं तेरी बात मान रहा हूँ.”
“तुम तो सच बोलने से रहे अगर तुम्हारा निकल भी गया तो. मुझे ही छू कर देखना पड़ेगा. और वो मैं करना नहीं चाहती दोबारा.”
“तेरे जैसी शक्की औरत मैंने आज तक नहीं देखी. जब तेरा पति निकालता है पानी तेरे अन्दर तब भी क्या ऊँगली डाल के देखती है कि उसने निकाला कि नहीं.”
मेरा चेहरा शर्म से लाल हो गया. “चुप रहो. मुझे कोई बात नहीं करनी इस बारे में.”
वो कुछ देर चुपचाप पड़ा रहा मेरे ऊपर. और फिर अचानक उठ कर सोफे के ऊपर से अपने बापू की तरफ नज़र दौड़ाई. मुझे लग रहा था कि शायद वो अब कोई उपाय ढूंढ रहा है इस स्थिति से निकलने का. मगर जब मैंने पीछे मुड कर देखा तो मेरे होश उड़ गए. वो तो अपना लिंग बाहर निकाल रहा था. मैंने तुरंत सिर घुमा लिया अपना. मेरे दिल की धड़कन तेज हो गई. दिल में बुरे बुरे ख्याल आने लगे.
“ये-ये क्या कर रहे हो तुम?” मैंने कांपती आवाज में कहा.
वो मेरे ऊपर लेट गया और मेरे कान में बोला, “तेरी समस्या का समाधान कर दिया मैंने. अगर मेरा पानी निकला तो तेरी दुकान पे गिरेगा. तू जब मरजी अपने तरबूज छू कर देख लेना कि मेरा निकला है कि नहीं.”
बात तो उसने बहुत गन्दी बोली थी. मगर उसकी इस बात से ज्यादा मुझे उसका लिंग परेशान कर रहा था. वो पूरा मेरे नितंबों की दरार पर टिक गया था. ये उसने जानबूझ कर किया था या अपने आप हो गया था कहना मुश्किल था. एक बात और परेशान करने वाली थी. क्योंकि उसका लिंग उसकी पैंट से बाहर था इसलिए बहुत स्पष्टता से महसूस हो रहा था वो मुझे अपने नितंबों की दरार पर.
“स-संजू ऐसा मत करो. मेरी सलवार गन्दी हो जाएगी.”
“अरे चिंता मत कर. मेरा गिरने वाला नहीं है. ये तो मैं तेरी तसल्ली के लिए बोल रहा हूँ,” वो बोला और हल्का सा पीछे हट कर धक्का लगा दिया.
मेरे नितंब बहुत टाइट हैं. चंद्रमा रूपी दोनों भाग कसे हुए हैं एक दुसरे के साथ. इसलिए उसके लिंग को उनके फटाव में घुसने का मौका नहीं मिला. लेकिन वो जिस बेशर्मी से टिका हुआ था उस पर उस से मैं घबराई हुई थी.
“संजू सेक्स ऐसी चीज़ है जिसमें इंसान कभी भी काबू खो सकता है. मानो मेरी बात. अगर निकल गया तुम्हारा तो तुम बाद में वो सब करने से चूक जाओगे जो तुम बड़े दिल से चाहते थे.”
“अरे कुछ नहीं होगा. तू किसी बात की चिंता मत कर और मजे कर मेरी तरह,” वो बोला और जोर से धक्का मारा. मेरी साँसे उखड गई. उसका लिंग नितंबों की दरार में घुस तो नहीं पाया मगर ऐसा लग रहा था कि अगर वो ऐसे ही धक्के लगाता रहा तो देर सबेर वो इसमें कामयाब हो जाएगा.
“मैं मजे नहीं कर सकती ऐसे. तुम्हारा बापू बैठा है हमारे नजदीक. प्लीज मेरी बात समझो.”
“उसे कहाँ कुछ सुनाई दे रहा है. तू भी ना बेकार के बहाने बना रही है. मैं तो कहता हूँ कि तू सलवार थोड़ी नीचे करले. जो होना है यहीं हो जाए. मेरा बड़ा मन कर रहा है.”
“नहीं-नहीं… मैं ऐसा नहीं करुँगी. तुम्हारी तरह पागल नहीं हूँ मैं.”
“तो फिर चुपचाप पड़ी रह और मुझे मजे करने दे. वाह…. क्या मस्त दुकान है तेरी,” वो बोला और एक और अश्लील धक्का लगा दिया.
उस से बात करने का कोई फायदा नहीं था इसलिए मैं चुप हो गई और सब वक्त पर छोड़ दिया.
वो बिना रुके बार बार धक्के लगाता रहा. हर गुजरते लम्हे के साथ उसकी साँस तेज होती जा रही थी. ऐसा लग रहा था जैसे कि वो पहले से ज्यादा मजे कर रहा है. यक़ीनन लिंग को बाहर निकाल कर उसे ज्यादा गहरा स्पर्श मिल रहा था मेरे नितंबों का. यही बात उसका मजा बढ़ा रही थी.
मैं कब तक अछूती रहती इस अश्लील क्रिया से. मुझे भी तो उसका लिंग बड़ी प्रबलता से महसूस हो रहा था. वो भी ऐसी जगह जो कि बहुत कामुक थी मेरे शरीर की. ना चाहते हुए भी मुझे ऐसा अहसास होने लगा जैसे कि मैं संभोग में लिप्त हो गई हूँ उसके साथ. बड़ा विचलित करने वाला अहसास था ये और मैं पूरी कोशिश कर रही थी इस अहसास को दिल से दूर रखने के लिए. मगर जब आपके नितंब की दरार पर उत्तेजित लिंग ताबड़तोड़ हमला कर रहा हो तो आप कैसे बच सकते हैं इस गंदे अहसास से. मैं बच नहीं पाई और इस अहसास में डूब गई. और ऐसी डूबी कि फिर निकल नहीं पाई.
खुद पर नियंत्रण खोने का प्रभाव तुरंत दिखने लगा मेरे मन और तन पर. मेरी साँसे तेज हो गई. मेरे उभार फूल कर बड़े हो गए. मेरी योनि उत्तेजित हो कर गीली हो गई. और मेरा मन तो उलझ ही गया संजू के फूहड़ धक्को में.
बड़ी शर्म की बात थी ये. मैं चाहती थी कि ये सब रुक जाए. मगर ना तो मेरा संजू पर कोई बस था और ना ही खुद पर. इसलिए जो हो रहा था वो हो जाने दिया.
तभी संजू धक्के मारता मारता रुक गया और मेरे कान में बोला, “मजा आ रहा है तुझे भी... हैं ना?”
मैं शर्म से पानी पानी हो गई. मेरी तेज साँसों ने मेरा राज खोल दिया था शायद.
“ए-ऐसा कुछ नहीं है,” मैं बोली.
“शर्मा मत. खुल कर मजे कर. ऐसा मौका रोज रोज नहीं मिलता.” वो अपने लिंग को बहुत जोर से दबाते हुए बोला मेरे नितंबों की दरार पर. मगर घुस वो फिर भी नहीं पाया दरार में. बाहर ही रुकना पड़ा उसे.
“तू थोड़ी सलवार सरका ले ना नीचे,” वो बोला.
“नहीं… मैं ऐसा नहीं कर सकती,” मैंने तुरंत जवाब दिया.
उसने मेरे कूल्हों पर हाथ ले जा कर सलवार को पकड़ लिया दोनों तरफ से और उसे खींचते हुए बोला, “सरका ले ना थोड़ी सी.”
मैंने उसके हाथ पकड़ कर दूर हटाये और बोली, “कार ठीक हो जाने के बाद सब मिल जाएगा तुम्हे. अभी नहीं.”
“अरे मैं बस तेरे नंगे तरबूजों पर अपना हथियार रगड़ना चाहता हूँ. अन्दर नहीं डालूँगा… भगवान कसम.”
कामुकता के सागर में मैं जरुर डूबी हुई थी. मगर इतनी नहीं कि सब शर्म हया छोड़ कर अपनी सलवार सरका दूँ. वो नामुमकिन था. “संजू बात को समझो. वैसा करना ठीक नहीं होगा यहाँ.”
“बाद में जब हम कुटिया में होंगे कार ठीक होने के बाद तुझे ये सलवार उतारनी पड़ेगी,” वो जिद्दी बच्चे की तरह बोला.
“हाँ-हाँ उतार दूंगी. पर अभी नहीं,” मैंने तुरंत जवाब दिया. हालाँकि उस वक्त मैं मस्ती के मूड में आ गई थी मगर फिर भी मेरा बाद का प्लान वही था. मैं उसे कोई मौका देने वाली नहीं थी बाद में.
वो थोडा सा ऊपर उठा कूल्हों से और अपने लिंग को पकड़ कर थोडा नीचे सरका दिया. बिलकुल मेरी योनि के ऊपर.
मेरी तो हालत पतली हो गई. मैं पहले से ही उसके अश्लील धक्को के कारण खुद पर काबू खो चुकी थी. अब वो अगर सीधा मेरी योनि पर धक्के लगाएगा तो मेरा क्या होगा? मैं विचलित हो गई. मन हुआ कि पीछे हाथ ले जाकर उसका लिंग पकड़ कर अपनी योनि से हटा दूँ. मगर हिम्मत नहीं हो रही थी. किसी तरह जैसे तैसे मैंने खुद को तैयार किया मगर तभी उसने एक धक्का लगा दिया मेरी योनि पर.
मेरी योनि जो पहले से ही गीली थी मचल उठी संभोग के लिए और पहले से ज्यादा उत्तेजित होकर तर बतर हो गई. मैं हैरान थी कि मेरी योनि ऐसे बर्ताव कर रही थी. इतना गीला तो मैंने उसे कभी महसूस नहीं किया था. मन हो रहा था कि डांटू उसे जोर से चिल्ला कर. मगर मेरी सब हैरानी परेशानी छू मंतर हो गई जब संजू ने दूसरी बार धक्का लगाया मेरी योनि पर. वो बिलकुल हल्का सा पीछे हटा था और फिर जोर से वार कर के ठहर गया था. ऐसा लग रहा था जैसे कि वो मेरी योनि की पिटाई करके उसे लाड प्यार कर रहा हो. बड़ा ही अजीब सा अनुभव था ये मेरे लिए.
“तेरी वो गर्म हुई की नहीं,” वो एक और धक्का लगाते हुए बोला.
मैं कुछ नहीं बोली. कुछ बोलती भी कैसे. शर्म से पानी पानी जो हो रही थी. बेशक उसका लिंग मेरी योनि के अन्दर नहीं था. मगर एक तरह से संभोग ही हो रहा था हमारे बीच. और ये अहसास विचलित करने के साथ साथ मुझे उत्तेजित भी कर रहा था. बड़ा ही अजीब सा पल था वो मेरे लिए.
“ये ले…” संजू जोर से धक्का मारते हुए बोला. “एक और ले…”
फिर तो वो ताबड़तोड़ शुरू हो गया. एक के बाद एक धक्का सहना पड़ रहा था मेरी योनि को. मुझे डर लग रहा था कि उसका लिंग मेरी सलवार और पैंटी को चीर कर मेरी योनि में ना समा जाए. हालाँकि ऐसा होना मुश्किल था मगर फिर भी दिल तो घबरा ही रहा था.
मुझे यकीन था कि अगर संजू ऐसे ही धक्के लगाता रहा तो उसका वीर्य जरुर निकल जाएगा इस बार. और मैं मन ही मन कामना भी कर रही थी इस बात की.
मगर अचानक मेरा बदन अकड़ने लगा. मेरा रोम रोम थरथराने लगा. मेरी साँसे बहुत ज्यादा तेज हो गई. हे भगवन. मैं आनंद के चरम की तरफ दौड़ी जा रही थी. ऐसा कैसे हो गया? मैं नहीं चाहती थी कि ऐसा हो. इसलिए मैं लडखडाते शब्दों में बोली तुरंत, “र-रुक जाओ संजू… थोड़ी देर रुक जाओ.”
पर वो नहीं रुका और जोर जोर से धक्के मार कर पिटता रहा मेरी योनि को.
जिस का डर था वो हो गया. उसके धक्को ने मुझे आनंद के चरम पर पहुंचा दिया. महेश के साथ अक्सर मेरे मुहँ से आवाज़ें निकलती थी इस दौरान. उस वक्त ऐसा ना हो इसलिए मैंने अपना हाथ मुहँ में ठूंस लिया.
मुझे चरम पर पहुँचा कर भी वो नहीं रुका. लगातार धक्के लगाए जा रहा था. ऐसा लग रहा था जैसे कि मैं एक और चरम को छू लूँगी.
मगर तभी कुर्सी हिलने कि आवाज आई और संजू रुक गया. मैंने मन ही मन उसके बापू का धन्यवाद किया. पहली बार उसका वहाँ होना मेरे काम आया था.
अपनी साँसें थामने की कोशिश करते हुए मैं सुनने की कोशिश कर रही थी. कुर्सी हिलने के बाद कोई और आवाज नहीं आई थी. तभी क़दमों की आहट हुई और फिर संजू के बापू की आवाज आई, “संजू की माँ… मैं रामलाल के पास जाकर आता हूँ.”
“कहीं भी जाओ जी. मैं तो सो रही हूँ,” संजू की माँ की आवाज आई. उसके तुरंत बाद क़दमों की आवाज आई. संजू का बापू वाकई वहाँ से जा रहा था.
मैंने मन ही मन राहत की साँस ली और बोली, “चलो अब चलने की तैयारी करो.”
“उतार दे ना सलवार. अब बापू भी नहीं है. मजे कर लेते हैं अभी. बाद में कार ठीक करवा कर अपने घर निकल जाना. वक्त बचेगा तेरा,” संजू मेरी योनि पर लिंग को दबाते हुए बोला.
“हम लेट हो रहे हैं संजू. हमें जल्द से जल्द कार के पास पहुंचना चाहिए.”
“प्लीज बहुत मन कर रहा है,” वो गिडगिडाया.
“पागलों जैसी बातें मत करो संजू. उठो जल्दी,” मैं सख्त आवाज में बोली.
उसने गहरी साँस ली और मेरे ऊपर से उतर गया. उसकी साँस में भारी निराशा थी. मेरे लिए ये बहुत राहत का पल था. ऐसा लग रहा था जैसे कि सौ किलो का वजन मेरे ऊपर से उतर गया हो. अब बस मुझे जल्द से जल्द संजू के साथ अपनी कार तक पहुँचना था. और कार ठीक होने के बाद मैं वही करने वाली थी जो मैंने सोच रखा था. बस सब ठीक रहे.
 
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