नोनू के जाने के बाद मैं कार का दरवाजा खोल कर चालक वाली सीट पर बैठ गई. संजू भी तुरंत दरवाजा खोल कर मेरे पास वाली सीट पर बैठ गया और बोला, “जल्दी चल… मुझसे अब रुका नहीं जा रहा.”
मैंने गहरी साँस ली और कार सड़क पर सीधी करके आगे बढ़ा दी.
“वाह... तू तो बड़ी अच्छी कार चलाती है.”
“थोड़ी देर पहले तो बड़ी शालीनता से बात कर रहे थे तुम... फिर तू तडाक पर उतर आए…” मैंने कहा.
“वो नोनू था ना साथ. और थोडा तुझे मना भी रहा था. अब नोनू साथ नहीं है और तू मान भी गई है. इसलिए क्या फायदा फ़ालतू का नाटक करने का.”
“बड़े चालाक हो तुम,” मैं बोली.
“चालाक शेर ही तेरे जैसी सुंदर हिरणी का शिकार कर सकता है. वरना तू कहाँ हाथ आने वाली थी,” वो मेरी जाँघ पर हाथ रखते हुए बोला.
मैं सिहर उठी उसकी छुवन से और उसका हाथ झटक दिया अपनी जाँघ से. “छुवो मत मुझे. चुपचाप बैठे रहो.”
“अरे... तू अभी भी शरमा रही है. अब तो हम मजे करने जा रहे हैं. अब काहे की शर्म?”
“बात शर्म की नहीं है. अगर तुम मुझे यहाँ वहां छुओगे तो मैं कार ठीक से नहीं चला पाऊँगी. तूम्हें जल्द से जल्द कुटिया तक पहुँचना हैं ना?”
“हाँ… मैं तो मरा जा रहा हूँ वहाँ पहुँचने के लिए.”
“तो फिर चुपचाप बैठे रहो.”
“देखते हैं भाई क्या होगा आज मेरे साथ. तू तो अभी भी शर्म हया को पकडे हुए है. ये लक्षण ठीक नहीं लग रहे.”
“कैसी बात करते हो? मुश्किल से कार ठीक हुई है मेरी. मैं नहीं चाहती कि फिर से कोई गड़बड़ हो जाए. इसलिए बोल रही हूँ कि चुपचाप बैठे रहो. हर बात पर जिद करना ठीक नहीं होता.”
“ठीक है-ठीक है समझ गया तेरी बात. क्या करूँ दिल मचल रहा है तुझे अपना बनाने के लिए.”
“थोड़ी देर की बात और है संजू. थोडा धैर्य रखो.”
“हाँ ये तो है. बस दो मिनट की बात और है. फिर तू मेरे नीचे होगी,” वो बेशर्मी से बोला. वो पूरी तरह अपने कमीनेपन वाले अंदाज़ में आ गया था.
मैंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी उसकी बात पर. चुपचाप कार चलाती रही.
अचानक वो बोल पड़ा, “रोक-रोक… हम पहुँच गए.”
मैंने ब्रेक लगाई तुरंत और बोली, “तुम तो अभी दो मिनट कह रहे थे. अभी तो एक मिनट भी नहीं हुआ.”
“अंदाज़ा था. अंदाज़ा गलत भी हो सकता है. चल निकल बाहर,” उसने कहा.
“तुम निकलो पहले. मैं कार को अच्छे से साइड में लगा कर निकलूँगी.”
“मैं तेरे से पहले नहीं निकलूँगा. तू कार चला कर भाग गई तो?”
“कैसी बात करते हो? मैं ऐसा क्यों करुँगी?” मैंने कहा. मगर उसकी इस बात से जाहिर हो गया कि उसे शक था कि मैं अपना वादा पूरा किए बिना भागने की कोशिश करुँगी. ये अच्छी बात नहीं थी. मुझे हर कदम बड़ी सावधानी से उठाने की जरुरत थी.
“देख मुझे डर लग रहा है कि तू भाग जाएगी. इसलिए मैं तेरे बाद ही कार से निकलूँगा.”
“ठीक है… बैठे रहो फिर,” मैंने कहा और कार को सड़क किनारे करके इंजन बंद कर दिया. “चलें अब?”
“पहले तू निकल,” वो बोला.
मैंने अपना पर्स उठाया पिछली सीट से, कार की चाबी उसमें डाली और दरवाजा खोल कर बाहर आ गई.
वो अपनी तरफ़ का दरवाजा खोल कर बाहर आया और बोला, “दरवाजे से दूर हट जा थोड़ी सी.”
मैं सिर हिलाते हुए दरवाजे से दूर हट गई. वो दरवाजा बंद करके मेरे पास आया और बोला, “माफ करना. मैं अपने डर के कारण मजबूर था.”
“कोई बात नहीं… चलो अब.”
हम दोनों सडक किनारे बनी झाड़ियों में घुस गए. बस चार पांच कदम चल कर हम एक खेत में पहुँच गए.
“ये मेरा खेत है. देख कैसे लहलहा रहीं हैं मेरी फसलें,” वो गर्व से बोला.
मैंने चारों तरफ नज़र दौड़ाई. गेंहूँ की फसल फैली हुई थी दूर दूर तक. बहुत बड़ा खेत था उसका. कोई चालीस फुट की दूरी पर एक छोटा सा कमरा जैसा कुछ दिख रहा था. शायद वही उसकी कुटिया थी. “क्या वो है तुम्हारी कुटिया?” मैं पूछे बिना ना रह पाई.
“हाँ वही है.”
मैं मन ही मन मुस्कुराई. जैसा कि उसने बताया था पहले, सड़क से ज्यादा दूर नहीं थी कुटिया. मैं आराम से बिना किसी परेशानी के संजू को उसमें बंद करके कार तक पहुँच सकती थी. रास्ता सीधा ही था. कोई अडचन नहीं थी किसी बात की.
“बहुत सुंदर खेत हैं तुम्हारे,” मैंने कहा.
“खेतों की सुंदरता छोड़… अभी तेरी सुंदरता भोगने का वक्त है. चल कुटिया में चलते हैं,” वो मेरे नितंबों पर हाथ फिराते हुए बोला.
मैंने कोई विरोध नहीं किया उसका और उसे अपने नितंबों पर हाथ फिराने दिया. उसे विश्वास जो दिलाना था कि मैं अब उसकी इच्छा पूरी करने के लिए तैयार हूँ.
“हाँ चलो… मैं अब पूरी तरह तैयार हूँ तुम्हारी इच्छा पूरी करने के लिए,” मैं शरमाते हुए बोली.
“ये हुई ना बात. बड़ा मजा आएगा सच में…”
हम चल पड़े उसकी कुटिया की तरफ. चलते चलते संजू लगातार मेरे नितंबों पर हाथ फिराए जा रहा था. एक पल को भी नहीं हटा रहा था हाथ अपना वो. और अपनी प्लानिंग के मुताबिक़ मैं भी उसे हाथ हटाने को नहीं बोल रही थी. ऐसा नहीं था कि मैं सहज महसूस कर रही थी. शर्म बहुत आ रही थी मुझे. मगर मैं चुपचाप आगे बढे जा रही थी.
“एक दम मस्त है,” वो मेरे नितंबों पर थप्पड़ मरते हुए बोला और फिर उन्हें सहलाने लग गया.
जब हम उसकी कुटिया के पास पहुँच गए तब उसने मेरे नितंबों से हाथ हटाया. ऐसा करना उसकी मज़बूरी थी तब. उसे हाथों से ताला जो खोलना था. वरना वो अभी भी लगा रहता.
उसने तुरंत ताला खोल कर दरवाजा खोल दिया मेरे लिए और बोला, “चल अंदर.”
मैं सहम गई. ऐसा लग रहा था जैसे कि वो कोई कुटिया नहीं जेल हो जिसमें घुस कर मैं बाहर नहीं आ पाऊँगी.
“क्या सोच रही है? आ ना.” वो अंदर कदम रखते हुए बोला.
मैंने उसके प्रश्न को अनसुना किया और ठहरी रही दरवाजे के मुहाने पर. दिल को पक्का कर रही थी मैं अपने प्लान को अच्छे से अंजाम देने के लिए. सब ठीक चल रहा था. मुझे बस ये निश्चित करने की जरुरत थी कि आगे भी सब उसी तरह से हो जैसे मैं चाह रही थी. उसके लिए ये बहुत जरुरी था कि मैं खुद पर काबू रखूं. अपनी भावनाओं को काम के वेग में ना बहने दूँ. ज्यादा मुश्किल काम नहीं था ये. मगर क्योंकि मैं एक बार खुद पर काबू खो चुकी थी उसके साथ इसलिए घबरा रही थी.
‘मैं कर सकती हूँ ये. मुझे खुद पर विश्वास है,” मैंने मन ही मन खुद को मजबूत किया.
“क्या हुआ? तू बुत बन कर यहाँ क्यों खड़ी हो गई है? संजू फिर बोला.
मैं अपनी दुविधा उसे क्यों बताती. मैंने कुछ और बहाना लगा दिया. “अ-अंदर अँधेरा है.” वैसे ये बहाना नहीं था. अंदर वाकई में घनघोर अँधेरा था. उसे देख कर दिल थोडा घबरा रहा था मेरा.
उसने तुरंत दीवार की तरफ हाथ बढाया और लाइट जल गई. “मेरी कुटिया में लाइट है. चल आजा बिना किसी डर के.”
बिना किसी डर के उसकी कुटिया में घुसना असंभव था मेरे लिए. पर कब तक खड़ी रहती दरवाजे पर? उसे फिर शक हो जाता मेरे मकसद का. इसलिए मैं अंदर प्रवेश कर गई. मेरे अंदर आते ही उसने दरवाजा बंद कर लिया और कुंडी लगा दी.
मैं सहम उठी. “कुंडी क्यों लगा रहे हो?”
“देख वैसे तो किसी के यहाँ आने का चांस नहीं है. मगर कोई आ गया तो पहले दरवाजा खटकाएगा. सीधा अंदर नहीं आ जाएगा. इसलिए कुंडी लगा रहा हूँ.”
“तुम्हारी बातों से ऐसा लगता है कि तुम्हें किसी के आने का अंदेशा है.”
“बस बापू का डर है. आज वो गुस्सा था ना मुझसे. इसलिए डर लग रहा है कि कहीं वो यहाँ ना आ जाए मुझे ढूंढ़ता हुआ.”
मैं सहम गई. “फिर तो यहाँ रहना ठीक नहीं.”
“अरे घबरा मत. बस एक प्रतिशत चांस है उसके यहाँ आने का. वो रात को खेत में कभी नहीं आता.”
“जो भी हो... चांस तो है ना?” मैंने कहा.
“देख मेरे पास यही जगह है. यहीं करना है हमें जो भी करना है.”
मैंने दरवाजे की कुंडी की तरफ देखा. अगर कुशलता से काम लिया जाए तो मैं फुर्ती से उसे खोल कर बाहर निकल सकती थी. फिर उतनी ही फुर्ती से बाहर वाली कुंडी लगा भी सकती थी. कोई दिक्कत की बात नहीं थी. बस संजू को आभास ना होने पाए मेरी प्लानिंग का.
मैंने गहरी साँस ली और चारो तरफ देखते हुए बोली, “चलो ठीक है. हम यहीं रुकते हैं.” कुटिया की दीवारों पर पलस्तर नहीं हो रखा था. एक-एक ईंट साफ़ दिखाई दे रही थी. मेरे बायीं तरफ दीवार के साथ एक बान की चारपाई पड़ी थी. उस पर पतली सी चादर अस्त-व्यस्त पड़ी थी. एक छोटा सा तकिया भी पड़ा था बीच में उस पर. चारपाई के पास ही जमीन पर मिटटी का एक घड़ा रखा था. चारपाई के विपरीत दूसरी दीवार के पास कुछ बोरियाँ रखी हुई थी. शायद उनमें खेती बाड़ी का सामान भरा था. उनमें फसलों के बीज भी हो सकते थे.
“ये हुई ना बात. चल अपना काम शुरू करते हैं,” संजू मेरे उभारों की तरफ हाथ बढ़ाते हुए बोला.
मैं तुरंत पीछे हट गई.
“क्या हुआ… अब किस बात की शर्म?” संजू बोला.
“खेत में तो तुम मेरे नितंब देखने को मरे जा रहे थे. उनसे शुरुआत करो ना,” मैं शरमाते हुए बोली. मैं नहीं चाहती थी कि उसे मेरे स्तन छूने का मौक़ा मिले. अपने प्लान के मुताबिक़ मुझे बस उसे अपने नितंब दिखाने थे.
“हाँ हाँ क्यों नहीं… मैं तो मरा जा रहा हूँ देखने के लिए.. चल सलवार उतार कर चारपाई पे लेट जा.”
“अभी नहीं उतारूंगी कपडे मैं. अभी ऐसे ही देखो,” मैं नज़रें चुराते हुए बोली.
“जैसी तेरी मरजी… सलवार उतार कर नीचे तो सरकाएगी ना?” वो बोला.
“हाँ हाँ वो तो करुँगी…”
“चल फिर कर… देर किस बात की,” वो बेसब्री से बोला.
वो दरवाजे के बहुत करीब खड़ा था उस वक्त. मुझे उसे दरवाजे से दूर ले जाने की आवश्यकता थी ताकि जब मैं दरवाजे की तरफ भागूँ उसे थोड़ी देर लगे दरवाजे तक पहुँचने में. मैं मटकते हुए चारपाई की तरफ बढ़ी ताकि वो भी मेरे पीछे पीछे आए. वही हुआ. वो तुरंत मेरी तरफ़ बढ़ने लगा. वो मेरे जाल में फँसता जा रहा था.
जब वो मेरे पीछे आकर खड़ा हो गया तो मैंने सलवार का नाडा खोलते हुए मन ही मन प्रण किया कि मैं दो मिनट से ज्यादा नहीं देखने दूंगी उसे अपने नितंबों को और पूरी कोशिश करुँगी कि वो उन पर ही लगा रहे. ये प्रण लेने के बाद मैंने एक और प्रण लिया कि कुछ भी हो जाए मैं खुद पर संयम बनाए रखूंगी और खुद को बहकने नहीं दूंगी और हर हाल में ये खेल दो मिनट में खत्म करुँगी.
“क्या हुआ? शर्म आ रही है सलवार नीचे करने में?” संजू मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए बोला.
“शर्म तो आती ही है… ऐसा काम करते वक्त. मैं रोज थोड़े ही ना गैर मर्द के लिए सलवार उतारती हूँ.”
“हाँ ये तो है. आज की रात तू मुझे अपना पति समझ और खुल कर मजे कर.”
“छी… मैं तुम्हें अपना पति कैसे समझ सकती हूँ?”
“पति ना समझ पर ये शरमाना तो छोड़ दे. अब मजे करने का वक्त है. ऐसे शरमाती रहेगी तो कैसे बात बनेगी.”
अब शरमाना कैसे छोड़ा जाए? ये नहीं हो सकता था. हाँ पर मुझे अपने प्लान के मुताबिक आगे बढ़ने की जरुरत थी ताकि मैं जल्द से जल्द उस कुटिया से निकल पाऊँ.
मैंने मन ही मन अपने प्रण फिर से दोहराए और गहरी साँस लेते हुए सलवार नीचे गिरा दी.
वो तुरंत मेरे पीछे घुटनों पर बैठ गया और बोला, “कमीज़ ऊपर उठा.”
“वो तुम खुद उठाओ,” मैं धीरे से बोली.
“अरे मैं सारा ध्यान तेरी बैक पर रखना चाहता हूँ. उठा ना कमीज़ प्लीज,” वो बोला.
मैंने गहरी साँस ली और दोनों हाथों से पकड़ कर कमीज़ को ऊपर उठा लिया. मेरे क़मीज़ उठाते ही उसने तुरंत मेरी पैंटी मेरे घुटनों तक नीचे सरका दी. मेरे गाल लाल हो गए लज्जा से. अब मेरे नग्न नितंब उसकी आँखों के सामने थे.
उसकी कोई आवाज नहीं आ रही थी. बिलकुल सन्नाटा छा गया था. वो मेरे नितंब देख कर मर गया था या जी रहा था कुछ पता नहीं चल रहा था. उत्सुकता में मैंने पीछे मुड कर देखा तो मैं ना चाहते हुए भी शरमा गई. वो घुटनों के बल बैठा हुआ टकटकी लगा कर मेरे नितंबों को ऐसे देख रहा था जैसे कि दुनिया का सबसे अनमोल दृश्य उसकी आँखों के सामने हो. ऐसा पहली बार नहीं हो रहा था मेरे साथ. महेश ने जब हमारी सुहागरात के समय मेरे नितंबों को पहली बार देखा था तब उसकी भी ऐसी ही हालत हुई थी. मेरे नितंब है ही ऐसे. ज़रा भी कहीं कोई दाग धब्बा नहीं है. ना ही कहीं कोई बाल है. बिलकुल सिल्क की तरह चिकनें हैं.
‘ बोलती बंद कर दी है मेरे नितंबों ने इसकी हाहाहा….’ मैं मन ही मन मुस्कुराई
उसने मुहँ ऊपर करके मेरी आँखों में झांकते हुए आँख मारी और बोला, “एक दम मस्त है भाई. मजा आ गया.”
किस औरत को तारीफ़ अच्छी नहीं लगती अपनी. मगर उसकी तारीफ शर्मसार करने वाली थी. इसलिए मैंने तुरंत अपना सिर घुमा लिया.
“कुछ बोलो मत. चुपचाप देखो जो देखना है,” मैंने कहा. मेरे गाल टमाटर जैसे लाल हो गए थे.
“चुप कैसे रहूँ ऐसी सुन्दर चीज़ देख कर? तारीफ़ तो करनी बनती ही है,” उसने कहा.
“ऐसी बातें मत करो प्लीज. मुझे शर्म आती है.”
“क्यों शरमा रही है? तेरा पति नहीं करता क्या तारीफ कभी?”
ऐसा कुछ नहीं था. महेश भी खुल कर तारीफ करता था मेरे नितंबों की. मगर संजू की तारीफ़ ज्यादा अश्लील और भद्दी लग रही थी. इसलिए मैं उसे चुप करा रही थी. “संजू कितनी बार कहा है तुम्हें. मेरे पति की बातें मत करो. निजी बातें करना मुझे अच्छा नहीं लगता.”
“सैंटी मत हो… मुझे मजे करने दे.”
“मैं कहाँ रोक रही हूँ तुम्हें. बस थोडा चुप रहो.” मैं ये बोल कर हटी ही थी कि मुझे उसका हाथ महसूस हुआ अपने बाएँ नितंब पर. मैं सकपका गई और उछल कर थोडा आगे बढ़ गई. “ये-ये क्या कर रहे हो? हाथ क्यों लगाया तुमने?” मैं बोली.
“करंट लग गया क्या तुझे हाथ लगाने से? चुपचाप खड़ी रह.”
“तुम बस देखो ठीक है... हाथ मत लगाओ.”
“ये क्या बात हुई. यहाँ हम मजे करने आये हैं या सिर्फ देखने दिखाने?”
मैंने कोई जवाब नहीं दिया और आँखे बंद कर ली. लगा लेने दो इसे हाथ. क्या बिगड़ेगा मेरा? थोड़ी देर बाद तो मुझे यहाँ से भागना ही है.
“वाह कितने कोमल हैं ये,” वो मेरे नग्न नितंबों पर हाथ फिराता हुआ बोला.
मैं सिहर उठी. उसे खुली छूट मिल गई थी अब. बड़ी बेशर्मी से मेरे कोमल नितंबों पर हाथ फिरा रहा था वो. कोई भी भाग, कोई भी कोना छुए बिना नहीं छोड़ रहा था. मैं उसके हाथों की छुवन महसूस नहीं करना चाहती थी. मगर मेरे कामुक नितंब इतनी तीव्रता से उसकी छुवन मेरे दिल तक पहुंचा रहे थे कि मैं खुद को उसकी छुवन के अहसास से अलग नहीं कर पा रही थी. ना चाहते हुए भी मेरा पूरा ध्यान उसके हाथों की छुवन पर सिमट गया था.
ऐसे में मेरी योनि कैसे अछूती रहती उसकी छुवन से. उसकी अश्लील छुवन उस तक भी पहुँच गई. फिर क्या था. वो तो तुरंत गीली हो गई.
हे भगवान. मैं बहक रही थी. मुझे कुछ हो रहा था. ये क्या कर बैठी थी मै? मुझे उसे मेरे नितंब छूने कि इजाजत नहीं देनी चाहिए थी. मुझे ये ध्यान रखना चाहिए था कि ये इतना आसान नहीं था. ऐसा ही कुछ उसके घर पर हुआ था मेरे साथ. मैंने उसे मेरे नितंबों पर धक्के लगाने की छूट दे दी थी ये सोच कर कि उसका पानी निकल जाएगा तो अपना सौदा पूरा माना जाएगा. उसका तो पानी नहीं निकला था मगर मैं खुद जरुर शर्मसार हो गई थी अपना पानी छोड़ कर.
“संजू बस रुक जाओ…” मैं कांपती आवाज में बोली.
“मजाक कर रही है क्या? इतनी मस्त चीज़ लिए घूम रही है और ठीक से छूने भी नहीं देती.”
“म-मुझे कुछ हो रहा है संजू… प्लीज,” मैं बोल पड़ी और फिर पछताई. ये उस कमीने को बताने की क्या जरुरत थी?
“क्या हो रहा है?”
“क-कुछ नहीं… बस शर्म आ रही है,” मैंने बात को संभालने की कोशिश की.
“तेरी शर्म ही तो मिटानी है. तभी तो इतनी मेहनत कर रहा हूँ मैं.”