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Adultery बीती यादें

Coquine_Guy

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नोनू के जाने के बाद मैं कार का दरवाजा खोल कर चालक वाली सीट पर बैठ गई. संजू भी तुरंत दरवाजा खोल कर मेरे पास वाली सीट पर बैठ गया और बोला, “जल्दी चल… मुझसे अब रुका नहीं जा रहा.”
मैंने गहरी साँस ली और कार सड़क पर सीधी करके आगे बढ़ा दी.
“वाह... तू तो बड़ी अच्छी कार चलाती है.”
“थोड़ी देर पहले तो बड़ी शालीनता से बात कर रहे थे तुम... फिर तू तडाक पर उतर आए…” मैंने कहा.
“वो नोनू था ना साथ. और थोडा तुझे मना भी रहा था. अब नोनू साथ नहीं है और तू मान भी गई है. इसलिए क्या फायदा फ़ालतू का नाटक करने का.”
“बड़े चालाक हो तुम,” मैं बोली.
“चालाक शेर ही तेरे जैसी सुंदर हिरणी का शिकार कर सकता है. वरना तू कहाँ हाथ आने वाली थी,” वो मेरी जाँघ पर हाथ रखते हुए बोला.
मैं सिहर उठी उसकी छुवन से और उसका हाथ झटक दिया अपनी जाँघ से. “छुवो मत मुझे. चुपचाप बैठे रहो.”
“अरे... तू अभी भी शरमा रही है. अब तो हम मजे करने जा रहे हैं. अब काहे की शर्म?”
“बात शर्म की नहीं है. अगर तुम मुझे यहाँ वहां छुओगे तो मैं कार ठीक से नहीं चला पाऊँगी. तूम्हें जल्द से जल्द कुटिया तक पहुँचना हैं ना?”
“हाँ… मैं तो मरा जा रहा हूँ वहाँ पहुँचने के लिए.”
“तो फिर चुपचाप बैठे रहो.”
“देखते हैं भाई क्या होगा आज मेरे साथ. तू तो अभी भी शर्म हया को पकडे हुए है. ये लक्षण ठीक नहीं लग रहे.”
“कैसी बात करते हो? मुश्किल से कार ठीक हुई है मेरी. मैं नहीं चाहती कि फिर से कोई गड़बड़ हो जाए. इसलिए बोल रही हूँ कि चुपचाप बैठे रहो. हर बात पर जिद करना ठीक नहीं होता.”
“ठीक है-ठीक है समझ गया तेरी बात. क्या करूँ दिल मचल रहा है तुझे अपना बनाने के लिए.”
“थोड़ी देर की बात और है संजू. थोडा धैर्य रखो.”
“हाँ ये तो है. बस दो मिनट की बात और है. फिर तू मेरे नीचे होगी,” वो बेशर्मी से बोला. वो पूरी तरह अपने कमीनेपन वाले अंदाज़ में आ गया था.
मैंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी उसकी बात पर. चुपचाप कार चलाती रही.
अचानक वो बोल पड़ा, “रोक-रोक… हम पहुँच गए.”
मैंने ब्रेक लगाई तुरंत और बोली, “तुम तो अभी दो मिनट कह रहे थे. अभी तो एक मिनट भी नहीं हुआ.”
“अंदाज़ा था. अंदाज़ा गलत भी हो सकता है. चल निकल बाहर,” उसने कहा.
“तुम निकलो पहले. मैं कार को अच्छे से साइड में लगा कर निकलूँगी.”
“मैं तेरे से पहले नहीं निकलूँगा. तू कार चला कर भाग गई तो?”
“कैसी बात करते हो? मैं ऐसा क्यों करुँगी?” मैंने कहा. मगर उसकी इस बात से जाहिर हो गया कि उसे शक था कि मैं अपना वादा पूरा किए बिना भागने की कोशिश करुँगी. ये अच्छी बात नहीं थी. मुझे हर कदम बड़ी सावधानी से उठाने की जरुरत थी.
“देख मुझे डर लग रहा है कि तू भाग जाएगी. इसलिए मैं तेरे बाद ही कार से निकलूँगा.”
“ठीक है… बैठे रहो फिर,” मैंने कहा और कार को सड़क किनारे करके इंजन बंद कर दिया. “चलें अब?”
“पहले तू निकल,” वो बोला.
मैंने अपना पर्स उठाया पिछली सीट से, कार की चाबी उसमें डाली और दरवाजा खोल कर बाहर आ गई.
वो अपनी तरफ़ का दरवाजा खोल कर बाहर आया और बोला, “दरवाजे से दूर हट जा थोड़ी सी.”
मैं सिर हिलाते हुए दरवाजे से दूर हट गई. वो दरवाजा बंद करके मेरे पास आया और बोला, “माफ करना. मैं अपने डर के कारण मजबूर था.”
“कोई बात नहीं… चलो अब.”
हम दोनों सडक किनारे बनी झाड़ियों में घुस गए. बस चार पांच कदम चल कर हम एक खेत में पहुँच गए.
“ये मेरा खेत है. देख कैसे लहलहा रहीं हैं मेरी फसलें,” वो गर्व से बोला.
मैंने चारों तरफ नज़र दौड़ाई. गेंहूँ की फसल फैली हुई थी दूर दूर तक. बहुत बड़ा खेत था उसका. कोई चालीस फुट की दूरी पर एक छोटा सा कमरा जैसा कुछ दिख रहा था. शायद वही उसकी कुटिया थी. “क्या वो है तुम्हारी कुटिया?” मैं पूछे बिना ना रह पाई.
“हाँ वही है.”
मैं मन ही मन मुस्कुराई. जैसा कि उसने बताया था पहले, सड़क से ज्यादा दूर नहीं थी कुटिया. मैं आराम से बिना किसी परेशानी के संजू को उसमें बंद करके कार तक पहुँच सकती थी. रास्ता सीधा ही था. कोई अडचन नहीं थी किसी बात की.
“बहुत सुंदर खेत हैं तुम्हारे,” मैंने कहा.
“खेतों की सुंदरता छोड़… अभी तेरी सुंदरता भोगने का वक्त है. चल कुटिया में चलते हैं,” वो मेरे नितंबों पर हाथ फिराते हुए बोला.
मैंने कोई विरोध नहीं किया उसका और उसे अपने नितंबों पर हाथ फिराने दिया. उसे विश्वास जो दिलाना था कि मैं अब उसकी इच्छा पूरी करने के लिए तैयार हूँ.
“हाँ चलो… मैं अब पूरी तरह तैयार हूँ तुम्हारी इच्छा पूरी करने के लिए,” मैं शरमाते हुए बोली.
“ये हुई ना बात. बड़ा मजा आएगा सच में…”
हम चल पड़े उसकी कुटिया की तरफ. चलते चलते संजू लगातार मेरे नितंबों पर हाथ फिराए जा रहा था. एक पल को भी नहीं हटा रहा था हाथ अपना वो. और अपनी प्लानिंग के मुताबिक़ मैं भी उसे हाथ हटाने को नहीं बोल रही थी. ऐसा नहीं था कि मैं सहज महसूस कर रही थी. शर्म बहुत आ रही थी मुझे. मगर मैं चुपचाप आगे बढे जा रही थी.
“एक दम मस्त है,” वो मेरे नितंबों पर थप्पड़ मरते हुए बोला और फिर उन्हें सहलाने लग गया.
जब हम उसकी कुटिया के पास पहुँच गए तब उसने मेरे नितंबों से हाथ हटाया. ऐसा करना उसकी मज़बूरी थी तब. उसे हाथों से ताला जो खोलना था. वरना वो अभी भी लगा रहता.
उसने तुरंत ताला खोल कर दरवाजा खोल दिया मेरे लिए और बोला, “चल अंदर.”
मैं सहम गई. ऐसा लग रहा था जैसे कि वो कोई कुटिया नहीं जेल हो जिसमें घुस कर मैं बाहर नहीं आ पाऊँगी.
“क्या सोच रही है? आ ना.” वो अंदर कदम रखते हुए बोला.
मैंने उसके प्रश्न को अनसुना किया और ठहरी रही दरवाजे के मुहाने पर. दिल को पक्का कर रही थी मैं अपने प्लान को अच्छे से अंजाम देने के लिए. सब ठीक चल रहा था. मुझे बस ये निश्चित करने की जरुरत थी कि आगे भी सब उसी तरह से हो जैसे मैं चाह रही थी. उसके लिए ये बहुत जरुरी था कि मैं खुद पर काबू रखूं. अपनी भावनाओं को काम के वेग में ना बहने दूँ. ज्यादा मुश्किल काम नहीं था ये. मगर क्योंकि मैं एक बार खुद पर काबू खो चुकी थी उसके साथ इसलिए घबरा रही थी.
‘मैं कर सकती हूँ ये. मुझे खुद पर विश्वास है,” मैंने मन ही मन खुद को मजबूत किया.
“क्या हुआ? तू बुत बन कर यहाँ क्यों खड़ी हो गई है? संजू फिर बोला.
मैं अपनी दुविधा उसे क्यों बताती. मैंने कुछ और बहाना लगा दिया. “अ-अंदर अँधेरा है.” वैसे ये बहाना नहीं था. अंदर वाकई में घनघोर अँधेरा था. उसे देख कर दिल थोडा घबरा रहा था मेरा.
उसने तुरंत दीवार की तरफ हाथ बढाया और लाइट जल गई. “मेरी कुटिया में लाइट है. चल आजा बिना किसी डर के.”
बिना किसी डर के उसकी कुटिया में घुसना असंभव था मेरे लिए. पर कब तक खड़ी रहती दरवाजे पर? उसे फिर शक हो जाता मेरे मकसद का. इसलिए मैं अंदर प्रवेश कर गई. मेरे अंदर आते ही उसने दरवाजा बंद कर लिया और कुंडी लगा दी.
मैं सहम उठी. “कुंडी क्यों लगा रहे हो?”
“देख वैसे तो किसी के यहाँ आने का चांस नहीं है. मगर कोई आ गया तो पहले दरवाजा खटकाएगा. सीधा अंदर नहीं आ जाएगा. इसलिए कुंडी लगा रहा हूँ.”
“तुम्हारी बातों से ऐसा लगता है कि तुम्हें किसी के आने का अंदेशा है.”
“बस बापू का डर है. आज वो गुस्सा था ना मुझसे. इसलिए डर लग रहा है कि कहीं वो यहाँ ना आ जाए मुझे ढूंढ़ता हुआ.”
मैं सहम गई. “फिर तो यहाँ रहना ठीक नहीं.”

“अरे घबरा मत. बस एक प्रतिशत चांस है उसके यहाँ आने का. वो रात को खेत में कभी नहीं आता.”
“जो भी हो... चांस तो है ना?” मैंने कहा.
“देख मेरे पास यही जगह है. यहीं करना है हमें जो भी करना है.”
मैंने दरवाजे की कुंडी की तरफ देखा. अगर कुशलता से काम लिया जाए तो मैं फुर्ती से उसे खोल कर बाहर निकल सकती थी. फिर उतनी ही फुर्ती से बाहर वाली कुंडी लगा भी सकती थी. कोई दिक्कत की बात नहीं थी. बस संजू को आभास ना होने पाए मेरी प्लानिंग का.
मैंने गहरी साँस ली और चारो तरफ देखते हुए बोली, “चलो ठीक है. हम यहीं रुकते हैं.” कुटिया की दीवारों पर पलस्तर नहीं हो रखा था. एक-एक ईंट साफ़ दिखाई दे रही थी. मेरे बायीं तरफ दीवार के साथ एक बान की चारपाई पड़ी थी. उस पर पतली सी चादर अस्त-व्यस्त पड़ी थी. एक छोटा सा तकिया भी पड़ा था बीच में उस पर. चारपाई के पास ही जमीन पर मिटटी का एक घड़ा रखा था. चारपाई के विपरीत दूसरी दीवार के पास कुछ बोरियाँ रखी हुई थी. शायद उनमें खेती बाड़ी का सामान भरा था. उनमें फसलों के बीज भी हो सकते थे.
“ये हुई ना बात. चल अपना काम शुरू करते हैं,” संजू मेरे उभारों की तरफ हाथ बढ़ाते हुए बोला.
मैं तुरंत पीछे हट गई.
“क्या हुआ… अब किस बात की शर्म?” संजू बोला.
“खेत में तो तुम मेरे नितंब देखने को मरे जा रहे थे. उनसे शुरुआत करो ना,” मैं शरमाते हुए बोली. मैं नहीं चाहती थी कि उसे मेरे स्तन छूने का मौक़ा मिले. अपने प्लान के मुताबिक़ मुझे बस उसे अपने नितंब दिखाने थे.
“हाँ हाँ क्यों नहीं… मैं तो मरा जा रहा हूँ देखने के लिए.. चल सलवार उतार कर चारपाई पे लेट जा.”
“अभी नहीं उतारूंगी कपडे मैं. अभी ऐसे ही देखो,” मैं नज़रें चुराते हुए बोली.
“जैसी तेरी मरजी… सलवार उतार कर नीचे तो सरकाएगी ना?” वो बोला.
“हाँ हाँ वो तो करुँगी…”
“चल फिर कर… देर किस बात की,” वो बेसब्री से बोला.
वो दरवाजे के बहुत करीब खड़ा था उस वक्त. मुझे उसे दरवाजे से दूर ले जाने की आवश्यकता थी ताकि जब मैं दरवाजे की तरफ भागूँ उसे थोड़ी देर लगे दरवाजे तक पहुँचने में. मैं मटकते हुए चारपाई की तरफ बढ़ी ताकि वो भी मेरे पीछे पीछे आए. वही हुआ. वो तुरंत मेरी तरफ़ बढ़ने लगा. वो मेरे जाल में फँसता जा रहा था.
जब वो मेरे पीछे आकर खड़ा हो गया तो मैंने सलवार का नाडा खोलते हुए मन ही मन प्रण किया कि मैं दो मिनट से ज्यादा नहीं देखने दूंगी उसे अपने नितंबों को और पूरी कोशिश करुँगी कि वो उन पर ही लगा रहे. ये प्रण लेने के बाद मैंने एक और प्रण लिया कि कुछ भी हो जाए मैं खुद पर संयम बनाए रखूंगी और खुद को बहकने नहीं दूंगी और हर हाल में ये खेल दो मिनट में खत्म करुँगी.
“क्या हुआ? शर्म आ रही है सलवार नीचे करने में?” संजू मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए बोला.
“शर्म तो आती ही है… ऐसा काम करते वक्त. मैं रोज थोड़े ही ना गैर मर्द के लिए सलवार उतारती हूँ.”
“हाँ ये तो है. आज की रात तू मुझे अपना पति समझ और खुल कर मजे कर.”
“छी… मैं तुम्हें अपना पति कैसे समझ सकती हूँ?”
“पति ना समझ पर ये शरमाना तो छोड़ दे. अब मजे करने का वक्त है. ऐसे शरमाती रहेगी तो कैसे बात बनेगी.”
अब शरमाना कैसे छोड़ा जाए? ये नहीं हो सकता था. हाँ पर मुझे अपने प्लान के मुताबिक आगे बढ़ने की जरुरत थी ताकि मैं जल्द से जल्द उस कुटिया से निकल पाऊँ.
मैंने मन ही मन अपने प्रण फिर से दोहराए और गहरी साँस लेते हुए सलवार नीचे गिरा दी.
वो तुरंत मेरे पीछे घुटनों पर बैठ गया और बोला, “कमीज़ ऊपर उठा.”
“वो तुम खुद उठाओ,” मैं धीरे से बोली.
“अरे मैं सारा ध्यान तेरी बैक पर रखना चाहता हूँ. उठा ना कमीज़ प्लीज,” वो बोला.
मैंने गहरी साँस ली और दोनों हाथों से पकड़ कर कमीज़ को ऊपर उठा लिया. मेरे क़मीज़ उठाते ही उसने तुरंत मेरी पैंटी मेरे घुटनों तक नीचे सरका दी. मेरे गाल लाल हो गए लज्जा से. अब मेरे नग्न नितंब उसकी आँखों के सामने थे.
उसकी कोई आवाज नहीं आ रही थी. बिलकुल सन्नाटा छा गया था. वो मेरे नितंब देख कर मर गया था या जी रहा था कुछ पता नहीं चल रहा था. उत्सुकता में मैंने पीछे मुड कर देखा तो मैं ना चाहते हुए भी शरमा गई. वो घुटनों के बल बैठा हुआ टकटकी लगा कर मेरे नितंबों को ऐसे देख रहा था जैसे कि दुनिया का सबसे अनमोल दृश्य उसकी आँखों के सामने हो. ऐसा पहली बार नहीं हो रहा था मेरे साथ. महेश ने जब हमारी सुहागरात के समय मेरे नितंबों को पहली बार देखा था तब उसकी भी ऐसी ही हालत हुई थी. मेरे नितंब है ही ऐसे. ज़रा भी कहीं कोई दाग धब्बा नहीं है. ना ही कहीं कोई बाल है. बिलकुल सिल्क की तरह चिकनें हैं.
‘ बोलती बंद कर दी है मेरे नितंबों ने इसकी हाहाहा….’ मैं मन ही मन मुस्कुराई
उसने मुहँ ऊपर करके मेरी आँखों में झांकते हुए आँख मारी और बोला, “एक दम मस्त है भाई. मजा आ गया.”
किस औरत को तारीफ़ अच्छी नहीं लगती अपनी. मगर उसकी तारीफ शर्मसार करने वाली थी. इसलिए मैंने तुरंत अपना सिर घुमा लिया.
“कुछ बोलो मत. चुपचाप देखो जो देखना है,” मैंने कहा. मेरे गाल टमाटर जैसे लाल हो गए थे.
“चुप कैसे रहूँ ऐसी सुन्दर चीज़ देख कर? तारीफ़ तो करनी बनती ही है,” उसने कहा.
“ऐसी बातें मत करो प्लीज. मुझे शर्म आती है.”
“क्यों शरमा रही है? तेरा पति नहीं करता क्या तारीफ कभी?”
ऐसा कुछ नहीं था. महेश भी खुल कर तारीफ करता था मेरे नितंबों की. मगर संजू की तारीफ़ ज्यादा अश्लील और भद्दी लग रही थी. इसलिए मैं उसे चुप करा रही थी. “संजू कितनी बार कहा है तुम्हें. मेरे पति की बातें मत करो. निजी बातें करना मुझे अच्छा नहीं लगता.”
“सैंटी मत हो… मुझे मजे करने दे.”
“मैं कहाँ रोक रही हूँ तुम्हें. बस थोडा चुप रहो.” मैं ये बोल कर हटी ही थी कि मुझे उसका हाथ महसूस हुआ अपने बाएँ नितंब पर. मैं सकपका गई और उछल कर थोडा आगे बढ़ गई. “ये-ये क्या कर रहे हो? हाथ क्यों लगाया तुमने?” मैं बोली.
“करंट लग गया क्या तुझे हाथ लगाने से? चुपचाप खड़ी रह.”
“तुम बस देखो ठीक है... हाथ मत लगाओ.”
“ये क्या बात हुई. यहाँ हम मजे करने आये हैं या सिर्फ देखने दिखाने?”
मैंने कोई जवाब नहीं दिया और आँखे बंद कर ली. लगा लेने दो इसे हाथ. क्या बिगड़ेगा मेरा? थोड़ी देर बाद तो मुझे यहाँ से भागना ही है.
“वाह कितने कोमल हैं ये,” वो मेरे नग्न नितंबों पर हाथ फिराता हुआ बोला.
मैं सिहर उठी. उसे खुली छूट मिल गई थी अब. बड़ी बेशर्मी से मेरे कोमल नितंबों पर हाथ फिरा रहा था वो. कोई भी भाग, कोई भी कोना छुए बिना नहीं छोड़ रहा था. मैं उसके हाथों की छुवन महसूस नहीं करना चाहती थी. मगर मेरे कामुक नितंब इतनी तीव्रता से उसकी छुवन मेरे दिल तक पहुंचा रहे थे कि मैं खुद को उसकी छुवन के अहसास से अलग नहीं कर पा रही थी. ना चाहते हुए भी मेरा पूरा ध्यान उसके हाथों की छुवन पर सिमट गया था.
ऐसे में मेरी योनि कैसे अछूती रहती उसकी छुवन से. उसकी अश्लील छुवन उस तक भी पहुँच गई. फिर क्या था. वो तो तुरंत गीली हो गई.
हे भगवान. मैं बहक रही थी. मुझे कुछ हो रहा था. ये क्या कर बैठी थी मै? मुझे उसे मेरे नितंब छूने कि इजाजत नहीं देनी चाहिए थी. मुझे ये ध्यान रखना चाहिए था कि ये इतना आसान नहीं था. ऐसा ही कुछ उसके घर पर हुआ था मेरे साथ. मैंने उसे मेरे नितंबों पर धक्के लगाने की छूट दे दी थी ये सोच कर कि उसका पानी निकल जाएगा तो अपना सौदा पूरा माना जाएगा. उसका तो पानी नहीं निकला था मगर मैं खुद जरुर शर्मसार हो गई थी अपना पानी छोड़ कर.
“संजू बस रुक जाओ…” मैं कांपती आवाज में बोली.
“मजाक कर रही है क्या? इतनी मस्त चीज़ लिए घूम रही है और ठीक से छूने भी नहीं देती.”
“म-मुझे कुछ हो रहा है संजू… प्लीज,” मैं बोल पड़ी और फिर पछताई. ये उस कमीने को बताने की क्या जरुरत थी?
“क्या हो रहा है?”
“क-कुछ नहीं… बस शर्म आ रही है,” मैंने बात को संभालने की कोशिश की.
“तेरी शर्म ही तो मिटानी है. तभी तो इतनी मेहनत कर रहा हूँ मैं.”
 
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वाह जी वाह… कर तो रहा था मजे और बोल रहा था कि मेहनत कर रहा हूँ. बेशर्मी की भी कोई हद होती है.
तभी अचानक उसने मेरे नितंबों की दरार पर कामुक तरीके से अपनी ऊँगली फिराई और मेरी साँसे थम गई. उसकी इस हरकत के कारण कामुकता की ऐसी प्रचंड लहर उठी मेरे नितंबों से कि वो एक बार फिर मेरी योनि को भिगो गई. मेरे मुहँ से सिसकी निकलने वाली थी मगर मैंने खुद को किसी तरह से सँभाल लिया. अभी मैं इस लहर के झटकों से सँभल भी नहीं पाई थी कि वो मेरे नितंबों को फैलाने लगा. तुरंत एक कामुक लहर और उठी और मेरी योनि को और ज्यादा उत्तेजित कर गई.
“क-क्या कर रहे हो?” मैंने कहा.
“देखना चाहता हूँ कि इन दो तरबूजों के बीच क्या छिपा है… हाहाहा,” वो बेशर्मी से हँसते हुए बोला.
मैं शर्म से पानी पानी हो गई. पर उसे कोई परवाह नहीं थी मेरी शर्म हया की. वो मेरे नितंबों को बेशर्मी से फैलाता चला गया. जैसा कि मैंने पहले बताया था आपको कि मेरे नितंब बहुत कसे हुए हैं. मगर फिर भी वो उसके सामने फैलने को मजबूर हो गए.
“वाह... क्या नज़ारा है. कितना सुंदर दरवाजा है तेरी दुकान का. मजा आ गया देख कर… अब ऐसा कर थोड़ी झुक जा. लगे हाथ तेरी जन्नत भी देख ली जाए.”
मैं हैरान रह गई. वो मेरी योनि को जन्नत बोल रहा था. मेरे नितंब दुकान हैं... तरबूज हैं.. और मेरी योनि जन्नत. वाह... कैसे कैसे नाम रखे हुए थे उसने इनके. पर मेरे लिए तो ये ठीक ही था. अगर वो गंदे शब्द प्रयोग करता तो सह नहीं पाती मैं. शर्म से मर जाती. लेकिन जो वो चाह रहा था इस वक्त, वो मैं नहीं कर सकती थी. मेरी योनि उसकी अश्लील हरकतों के कारण भीगी पड़ी थी. अगर उसने उसे छू लिया तो वो समझ जाएगा कि मेरी क्या हालत हुई पड़ी है. मैंने दरवाजे की तरफ देखा और भागने का मन बनाया.
“एक मिनट रुक… पहले तेरे गोल गोल चंद्रमा तो चूम लूँ,” वो बोला और मेरे नितंबों को चूमने लगा.
वो मेरे नितंबों को अब चंद्रमा बोल रहा था. कहाँ चंद्रमा और कहाँ मेरे नितंब. मगर ये मुझे बहुत अच्छा लगा और मैं सिहर उठी. मेरा रोम रोम कांपने लगा. उसके होंठों की छुवन ने एक अजीब सी हलचल पैदा कर दी थी मेरे तन बदन में. ऐसा लग रहा था कि अगर मैं एक मिनट भी और रुकी उस कुटिया में तो मैं इस कदर बहक जाऊँगी कि खुद पर काबू पाना मुश्किल हो जाएगा. इस संभावना ने मुझे और ज्यादा व्याकुल कर दिया उस कुटिया से निकलने के लिए.
एक कारण और था जो मुझे जल्द से जल्द वहाँ से निकलने के लिए प्रेरित कर रहा था. मेरे नितंबों को चूम कर संजू बहुत ज्यादा मजे लूट रहा था. मेरी कार ठीक करवाने के बदले उसे जितना इनाम मिलना चाहिए था मिल चुका था. बल्कि बहुत ज़्यादा मिल गया था. अब हर हाल में मेरा वहाँ से निकल जाना ही बेहतर था.
मगर एक दिक्कत थी. वक्त उपयुक्त नहीं था वहाँ से निकलने के लिए. संजू जमीन पर था. मैं अगर दरवाजे की तरफ दौड़ी तो वो भी तुरंत दौड़ पड़ेगा दरवाजे की तरफ. शायद वो मुझे कुंड़ी खोलने से पहले ही पकड़ ले. दरवाज़े की तरफ़ दौड़ने से पहले मुझे उसे किसी काम में लगाने की जरुरत थी ताकि उसका ध्यान भटके. वो भी कुछ इस तरह कि वो मेरे से थोडा दूर हो जाए. वो मेरे करीब रहेगा तो मेरा भागने का प्लान सफल नहीं हो पाएगा.
तभी मेरी नज़र चारपाई पर पड़ी और मेरे मन में एक योजना बन गई. “संजू जब इस कुटिया में चारपाई है तो हम क्यों खुद को उसके सुख से वंचित कर रहे हैं. चलो चारपाई पर चादर ठीक से बिछा दो ताकि हम अच्छे से मजे कर सकें,” मैंने कहा. मेरी योजना ये थी कि जब वो चादर बिछा रहा होगा तब मैं सलवार ऊपर उठा कर दरवाजे की तरफ भाग लूंगी. नाडा बाँधने में समय बरबाद नहीं करुँगी मैं. अगर मैं बाहर निकल कर कुंड़ी लगाने में कामयाब हो गई तो मेरे पास वक्त ही वक्त था नाडा बाँधने के लिए.
“वाह तूने दिल जीत लिया मेरा ये बोल कर. मुझे बस एक मिनट दे. अभी तेरे तरबूजों से हटने का मन नहीं कर रहा… बहुत स्वादिष्ट हैं ये,” वो बोला और फिर से टूट पड़ा मेरे नितंबों पर. वो बहुत जुनून से चूम रहा था उन्हें. कभी दाएँ को चूम रहा था… कभी बाएँ को चूम रहा था. अपने मुख रस से उसने मेरे नितंबों को भिगो दिया था. उसके होंठों की छुवन के कारण मेरी योनि और ज्यादा गीली होती जा रही थी. ये अच्छी बात नहीं थी. इस से पहले कि कामवासना मुझे अपने वश में कर ले मुझे वहाँ से निकलने की जरुरत थी.
“चारपाई पर चढ़ कर करते रहना ये सब. बस एक मिनट ही तो लगेगा इसमें,” मैंने एक बार फिर उसे चादर बिछाने की विनती की.
“बिछाता हूँ… बिछाता हूँ… क्यों उतावली हो रही है? थोडा झुक पहले. मुझे तेरी जन्नत भी देखनी है.”
“चारपाई पे चढ़ कर देख लेना ना,” मैं बोली.
“जो मैं करना चाहता हूँ वो चारपाई पे चढ़ कर नहीं हो पाएगा ठीक से. थोडा झुक जा…”
मैं असमंजस में पड़ गई. ऐसा क्या करने का इरादा था उसका? “क्या करना चाहते हो तुम?”
“झुक तो सही… सब पता चल जाएगा तुझे एक मिनट में.”
मरती क्या न करती मैं झुक गयी.
“वाह…,” वो बोला. उसके एक शब्द में ही ढेर सारी प्रशंसा छुपी थी मेरी योनि के लिए.
मैं सिहर उठी. मैं और ज्यादा उत्तेजित हो गई थी.
“कितनी मुश्किल से दर्शन हुए इसके. कपटी कहीं की…” वो बोला.
मैं पूछना चाहती थी उस से कि वो कपटी क्यों बोल रहा था मेरी योनि को. मगर मेरे मुँह से एक शब्द नहीं निकला. हुआ ही कुछ ऐसा था मेरे साथ. उसने अपने होंठ टिका दिए थे मेरी योनि पर और मैं इतनी अचंभित हो गयी थी इस घटना से कि मेरी बोलती बंद हो गई थी. ये क्या कर दिया था उसने? मुझे इसकी कदापि उम्मीद नहीं थी. बिलकुल नया अनुभव था ये मेरे लिए. आज तक कभी मैंने अपनी योनि पर पुरुष के मुँह को महसूस नहीं किया था. हाँ जानती जरुर थी मैं कि ऐसा होता है मगर मुझे अपनी शादीशुदा जिंदगी में एक बार भी इसका अनुभव नहीं मिला था.
इस अनुभव ने मेरी योनि को विद्रोही बना दिया. मैं बहुत कोशिश कर रही थी कि वो और उत्तेजित ना हो मगर वो मेरी एक नहीं सुन रही थी. उसके होंठों की छुवन पाकर ऐसे उत्तेजित हो रही थी वो जैसे कि जन्मों से उसके होंठों की ही प्रतीक्षा हो उसे. संजू सही कह रहा था. वो सच में कपटी थी. थी तो वो मेरी पर इशारों पर उसके नाच रही थी.
ये सही नहीं हो रहा था. अगर मैंने ये सब नहीं रोका तो जैसे मेरी योनि उसके इशारों पर नाच रही थी वैसे ही मैं भी नाचूंगी.
मैं तुरंत सीधी खड़ी हो गई.
“क्या हुआ...? झुकी रह ना एक मिनट,” वो मेरी पीठ को नीचे की तरफ दबाते हुए बोला. मगर मैं नहीं झुकी और बोली, “मैं खड़ी खड़ी थक गई हूँ. चारपाई पर चादर बिछाओ जल्दी.”
“देख मेरा पीछे से तेरी जन्नत को प्यार करने का मन है… एक फिल्म में देखा था ऐसा सीन मैंने. रोज रोज तो मुझे ऐसी सुंदर… साफ़-सुथरी जन्नत मिलेगी नहीं. बस एक मिनट और दे दे मुझे. झुक जा एक मिनट के लिए.”
मैंने दरवाजे की तरफ देखा और सोचा कि क्या मुझे भाग लेना चाहिए? मगर स्थिति अभी भी वही पहले वाली बनी हुई थी. जब तक संजू किसी काम में ना उलझे तब तक भागने की कोशिश करना बेवकूफी थी.
“क्यों वक्त बरबाद कर रही है? झुक जा ना एक मिनट के लिए,” वो बोला.
“बस एक मिनट… ठीक है,” मैं पीछे उसकी तरफ देखते हुए बोली.
“ठीक है… झुक तो सही,” वो मेरे नितंबों पर थप्पड़ मारते हुए बोला.
मन तो नहीं हो रहा था मेरा दोबारा झुकने का. डर लग रहा था कि कहीं कुछ गड़बड़ ना हो जाए. पर मेरे पास कोई चारा नहीं था. ये सोच कर कि बस एक मिनट की ही तो बात है मैं झुक गई.
उसने तुरंत अपना मुँह टिका दिया मेरी योनि पर.
मैं सिहर उठी. पहले से ज्यादा प्रबलता से महसूस हो रहा था मुझे उसका मुँह. उसने पूरी तरह तरह ढक लिया था मेरी योनि को. ऐसा लग रहा था जैसे कि वो उसे खाने की तैयारी कर रहा हो.
अचानक मुझे मेरी योनि के प्रवेश द्वार पर उसकी जीभ महसूस हुई. इस नए अहसास ने कामुकता की एक तीव्र लहर को जन्म दे दिया मेरी योनि में और ये लहर पलक झपकते ही मेरे पूरे शरीर में घूम गई. खुद पर जो काबू बना कर रखा हुआ था मैंने वो बिखरता हुआ महसूस हुआ मुझे इस प्रचंड कामुक लहर के कारण.
मैं विचलित हो उठी और तय किया कि मैं अब सीधी हो जाऊँगी. एक मिनट तक झुके रहना संभव नहीं था मेरे लिए. मैं इस विचार पर अमल करने ही वाली थी कि उसने अपनी जीभ घुसा दी मेरी योनि में.
मेरी तो साँसे थम गई. सोचने समझने की शक्ति गायब हो गई. मैंने तो कल्पना भी नहीं की थी कि वो ऐसा कर देगा. और न मैंने ये कल्पना की थी कि ऐसा होने पर मुझे कामुक आनंद की अनोखी अनुभूति होगी. मगर ऐसा हो रहा था. मेरी योनि में घुसी उसकी जीभ वाकई में मुझे कामुक आनंद दे रही थी. और अभी उसने जीभ बस घुसाई ही थी.
जब उसने अपनी जीभ अंदर बाहर करनी शुरू की तो आनंद कईं गुणा बढ़ गया और मैंने खुद को कामवासना के मजबूत जाल में फ़ँसा पाया. ये ऐसा जाल था जिस से मेरी निकलने की इच्छा कमजोर हो चुकी थी. होती भी क्यों ना? सब कुछ भूल कर मैं मौखिक संभोग के आनंद में जो खोती जा रही थी.
 

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अभी कुछ पल ही हुए थे उसे मेरी योनि में अपनी जीभ को अंदर बाहर करते हुए कि मेरी सिसकियाँ निकलने लगी. आनंद बढ़ता जा रहा था. अचानक मुझे अहसास हुआ कि मैं आनंद के चरम की तरफ बढ़ रही हूँ.
बड़ी अजीब बात थी. कितनी जल्दी ऐसा हो गया था. मेरी इच्छा हुई कि इस चरम को जल्दी छू लूँ ताकि मैं दोबारा खुद पर काबू पा सकूँ.
मगर ऐसा नहीं हो पाया. मैं चरम को छूने ही वाली थी कि वो रुक गया और अपनी जीभ बाहर निकाल ली. मेरी हालत जल बिन मछली जैसी हो गई. कामुक आनंद के चरम पर पहुँचने को मेरा रोम-रोम तड़प रहा था मगर जो चीज़ मुझे वहाँ पहुँचा सकती थी वो अब मेरी योनि में नहीं थी.
क्या वो मुझे सता रहा था?
या फिर तड़पा रहा था?
मैं इन सवालों में उलझी थी और उसने मेरी पैंटी पकड़ कर पूरी नीचे सरका दी और मेरी दायीं टाँग पकड़ कर बोला, “उठाओ थोडा इसे.”
“क्यों?”
“उठाओ ना… जल्दी करो…”
मैंने सोचा कि शायद वो मेरे बदन से सलवार और पैंटी को अलग करके दोबारा मुझसे मुख मैथुन करेगा. और मैं इसके लिए इतना तड़प रही थी कि तुरंत टाँग उठा ली. ये भी नहीं सोचा कि जब भागने की बारी आएगी तब बिना सलवार के कैसे भागूँगी. सोचती भी कैसे? मेरा सारा ध्यान तो आनंद के उस चरम को छूने पर लगा था जिसे मैं छूते छूते रह गई थी.
एक टाँग से सलवार और पैंटी निकालने के बाद उसने मुझे दूसरी टाँग उठाने को कहा. मैंने वो भी उठा दी.
अगले ही पल मेरी सलवार और पैंटी मेरे बदन से अलग हो गई. मैंने पीछे मुड कर देखा तो पाया कि उसने उन्हें जमीन पर ही रख दिया था. उस पल मुझे हल्का सा होश आया कि मैं ये क्या कर बैठी हूँ? मगर जब वो पागलों की तरह मेरी जाँघे चूमने लगा तो ये होश पल में मेरा साथ छोड़ गया.
“तेरा हर अंग स्वादिष्ट है,” वो बोला और दोबारा मेरी जाँघों को चूमने लगा. बड़े गीले चुंबन थे उसके. हर चुंबन के बाद वो अपना थूक छोड़ रहा था मेरी जाँघों पर जो कि मेरी कामोत्तेजना को और ज्यादा बढ़ा रहा था.
अचानक वो उठा और बोला, “चल अब चारपाई पे चलते हैं.”
वो चारपाई पर चादर बिछाने लगा तो मुझे फिर से होश आया. मैं अपने कपड़ों की तरफ लपकी. आनन-फ़ानन में मैंने बस अपनी सलवार उठाई और उसे लेकर दरवाजे की तरफ दौड़ी.
जब मैं कुण्डी खोल रही थी तब वो चादर बिछाने में ही मगन था. मगर कुण्डी खुलने की आवाज सुनकर वो तुरंत पलटा और चिल्लाया, “अरे कहाँ जा रही है तू?”
मैं तुरंत कुटिया से बाहर निकल आई और दरवाजा बाहर से बंद कर दिया.
वो तुरंत दरवाजा पीटने लगा. “ये क्या नाटक है? दरवाजा क्यों बंद किया बाहर से.”
“मैं ये सब नहीं कर सकती संजू. मुझे माफ़ करना. मैं जा रही हूँ,” मैंने अपनी सलवार पहनते हुए कहा.
“नहीं! तू ऐसा नहीं कर सकती मेरे साथ.”
“मैं शादीशुदा हूँ संजू. मेरी मज़बूरी है. और तुम बहुत मजे कर चुके हो. इस से ज्यादा की जरुरत नहीं है.”
“प्लीज ऐसा मत कर. मेरे बहुत मन है तेरे साथ प्यार करने का. मैं मर जाऊँगा अगर तू मुझे ऐसे छोड़ कर गई तो.”
मुझे हलकी से हंसी आ गई उसकी बात पर. “हवस किसी की जान नहीं लेती संजू. ये बस तुम्हे तड़पाएगी. मुझे पूरा यकीन है कि तुम जल्द ही वासना के इस जाल से बाहर आ जाओगे. अगर मैं इस से बच सकती हूँ तो तुम भी बच सकते हो.”
“मुझे शुरू से लग रहा था कि तू मुझे धोखा देगी. तूने वही कर दिया. तुम शहरी लोग गाँव वालों को बेवकूफ बनाना जानते हो बस. मेरा इंसानियत से विश्वास उठ गया आज.”
“तुम्हारा विश्वास अब उठा है. मेरा तो तभी उठ गया था जब तुमने मेरी कार ठीक करवाने के बदले गन्दी शर्त रख दी थी.”
“मैंने तुझे मजबूर किया था क्या मेरी शर्त मानने के लिए?”
“नहीं मजबूर तो नहीं किया था मगर तुम जानते थे कि मेरे पास तुम्हारी शर्त मानने के अलावा कोई चारा नहीं है.”
“देख मैं इस सड़क पर मस्ती के मूड में आया था. मेरा चंपा के साथ मजे करने का मन था. मगर वो कहीं नहीं दिखी तो निराश हो गया. जब तूने मुझसे मदद मांगी तो मैंने सोचा कि क्यों ना तुमसे बात की जाए इस बारे में. मुझे माफ़ कर दे. मुझ पर हवस हावी हो गई थी. मैं हर हाल में सेक्स करना चाहता था आज. अगर तू किसी और दिन मिलती इस सडक पर तो अपनी माँ की कसम खा कर कहता हूँ तेरी मज़बूरी का फायदा उठाने का सोचता भी नहीं.”
“अच्छी बात है कि तुम्हे अहसास हो रहा है. आगे से ऐसा कभी मत करना किसी के साथ. मैं चलती हूँ.”
“मत जा प्लीज. मुझे ऐसे तड़पता छोड़ कर मत जा. अगर जाना ही है तो मुझे मार कर जा. मैं ये तड़प नहीं संभाल पाऊंगा.”
“ये सब नाटक करने की जरुरत नहीं है संजू. ये तड़प तुम्हारी जान नहीं लेगी. और भगवान ने हाथ किसलिए दिए हैं तुम्हे. उनकी शरण में जाओ,” मैं बोली.
“कार ठीक होते ही तेरे तेवर बदल गए.”
“अच्छी बात है ये. तुम्हारी फिजूल की बातें मान मान कर मैं खुद को परेशान कर रही थी. अब मैं और परेशान नहीं होना चाहती इसलिए यहाँ से निकलती हूँ. अलविदा.”
“मत जा प्लीज. मेरी हालत पर तरस खा.”
“क्या तुमने खाया था तरस मेरी हालत पर?”
“चल ठीक है... जैसी तेरी मरजी. ये कुण्डी तो खोल दे. मैं वादा करता हूँ कि तेरे पीछे नहीं आऊँगा.”
“तुम्हारे जैसे इंसान का भरोसा नहीं किया जा सकता संजू. तुम्हे यही बंद रहना होगा,” मैंने कहा और चल दी.
एक मिनट बाद मैं सड़क पर थी. वो अभी भी पहले जैसी सुनसान पड़ी थी. मगर पहले से कम डरावनी लग रही थी वो. या फिर ये भी कह सकते हैं कि इतना लंबा वक्त उस पर बिताने के बाद मैं उसके डरावने सन्नाटे की आदी हो गई थी.
जैसे ही मैं कार में बैठी मुझे अहसास हुआ कि जिस उत्तेजना ने मुझे जकड़ा था कुटिया में वो अभी भी मेरे साथ थी. ये अहसास मेरी योनि से उठ रहा था. वो अभी भी संभोग की लालसा में ज्यों की त्यों गीली पड़ी थी. ये स्वाभाविक था. मैं अपनी इच्छा से बाहर नहीं आई थी कुटिया से. जो प्रण मैंने किये थे उनके कारण आई थी बाहर. वो प्रण मैंने ना किये होते तो शायद मैं इस वक्त संजू के साथ संभोग में मगन हो गई होती.
चलने से पहले ये उत्तेजना शांत कर लूँ वरना ये रास्ते भर परेशान करेगी.
मैंने चारो तरफ नज़र दौड़ाई. वहाँ कोई नहीं था मुझे देखने वाला. मैंने गहरी साँस ली और अपना दायाँ हाथ सलवार में घुसा दिया. था तो ये पागलपन ही पर मैं खुद को रोक नहीं पा रही थी. अगले ही पल मैं अपनी योनि से ऐसे खेल रही थी जैसे कि उसकी जन्मों की प्यास बुझानी हो.
मगर बात नहीं बनी. मेरी योनि तो संभोग के लिए इस कदर तड़प रही थी कि हाथ से काबू ही नहीं आ रही थी. वो उस इंसान के पास वापिस जाना चाहती थी जिसने उसमें इतनी उत्तेजना जगाई थी.
मैंने हाथ वापिस खींच लिया और वहाँ से निकलने का फैसला किया. लेकिन जब इंजन स्टार्ट किया मैंने तो एक तीव्र कामुक तड़प मेरे सिर से पाँव तक दौड़ गई. ऐसा लगा एक पल को जैसे कि मेरे अन्दर से कोई चिल्ला कर मुझे संजू के पास वापिस जाने को बोल रहा हो.
अगले ही पल मैंने खुद को इस तड़प में जकड़ा पाया. इस से पहले कि मैं खुद को इस जकडन से निकाल पाती ये मुझ पर इस कदर हावी हो गई कि मैं होश खो बैठी और इंजन बंद करके कार से बाहर आ गई. अगले ही पल मैं वापिस कुटिया की तरफ जा रही थी. अपनी कपटी योनि की प्यास बुझाने.
हद हो गई ये तो!
हैं ना!
मगर उस वक्त ये सब सोचने का होश ही कहाँ था.
 

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कामवासना इंसान पर हावी हो जाए तो वो सब मान मर्यादा भूल जाता है. उसे बस एक ही चीज़ याद रहती है—कामवासना की तृप्ति. संजू तो कामवासना में पूरा डूबा ही हुआ था. उसने अपनी गन्दी हरकतों से मुझे भी इसमें डूबा दिया था. ऐसा ना होता तो मैं उस कुटिया में वापिस ना जाती और ना ही उसके करीब खड़े होकर उसके लिंग को निहारती. पता नहीं क्या हो गया था मुझे उस वक्त. बेशरमी की सारी हदें पार करती जा रही थी मैं.
मुझे होश तब आया जब वो मेरी तरफ बढ़ा. मैंने उसके लिंग से नज़रें हटाई और उसके चेहरे की तरफ ले गई. वो भद्दे तरीके से मुस्कुराता हुआ मेरी तरफ बढ़ा आ रहा था.
मैं सकपका गई और पीछे कदम बढ़ाने लगी. मगर उसने मुझे आगे बढ़ कर बाहों में भर लिया और बोला, “बस देखती रहेगी इसे या प्यार भी देगी?”
उसका लिंग अब मेरी योनि से टकरा रहा था मेरी कमीज़ के ऊपर से. मैं शरमा गई. “मैं चारपाई की तरफ उसी के लिए तो जा रही थी,” मैं उस से नज़रें चुराते हुए बोली. मेरे मन में उस वक्त क्या था मैं खुद नहीं जानती थी. मुझे जो समझ आ रहा था मैं बोले जा रही थी.
उसने मेरी कमीज़ उठाई थोड़ी ऊपर और अपने उत्तेजित लिंग को मेरी नग्न योनि से सटा दिया. मैं सिर से पाँव तक काँप गई. इस कंपन में भय भी था और कामुकता भी. मेरी योनि अछूती ना रह पाई इस मिलाप से और तुरंत फिर से नम हो गई.
“शरमा रही है तू अभी भी… कोई बात नहीं… जब घुसेगा ना मेरा तेरे अंदर सारी शरम हया भाग जाएगी तेरी.”
“कितनी गन्दी बातें करते हो तुम?”
वो हंस दिया और अपने लिंग को मेरी योनि पर दबाते हुए बोला, “चल ना अब चारपाई पे… या यहीं खड़े खड़े करना है सब?”
“तुम फिर मुझे जकड़े खड़े हो… कैसे जाऊँ मैं चारपाई तक?”
उसने मुझे अपनी बाहों से आज़ाद किया और मेरा हाथ पकड़ कर चारपाई की तरफ चल दिया. मैं चुपचाप उसके पीछे पीछे खिंची चली जा रही थी.
चारपाई के पास पहुँच कर उसने मेरे कन्धों पर हाथ रख कर मुझे उस पर बैठा दिया और खुद मेरे सामने खड़ा हो गया. उसका उत्तेजित हथियार मेरे चेहरे के बिलकुल सामने था और मैं एक बार फिर उसे मदहोश निगाहों से देख रही थी.
“देखना छोड़ और लेट जा,” वो मुस्कुराते हुए बोला.
मैंने उसके लिंग से नज़रे हटाई और चारपाई पर लेट गई. वो भी तुरंत चढ़ गया चारपाई पर और मेरी कमीज़ उतारने की कोशिश करने लगा. मगर मैंने उसके हाथ पकड़ लिए और बोली, “इसे रहने दो.”
“क्यों? पूरी तरह नंगे हो कर ज्यादा मजा आएगा,” वो मेरी नग्न जाँघों पर अपने हाथ फिराते हुआ बोला.
वैसे तो मैं पूरी तरह कामवासना के काबू में थी मगर मैंने फिर भी इस बात का विरोध किया, “नहीं… मुझे बहुत शर्म आएगी.”
“चल ठीक है... जैसी तेरी मरजी,” वो बोला और मेरे कंधे पकड़ कर मुझे चारपाई पर नीचे दबाने लगा. मैं इतनी निर्बल हो चुकी थी कामवासना के कारण कि बिना किसी विरोध के नीचे लेट गई.
मुझे लग रहा था कि वो थोड़ी देर मेरे ऊपर लेटेगा मगर उसने ऐसा नहीं किया. वो इतना आतुर हो रहा था संभोग के लिए कि मेरी टाँगे फैला कर उनके बीच बैठ गया घुटनों के बल और मेरी योनि को प्यार से सहलाते हुए बोला, “अब आएगा मजा जिंदगी का.”
उसके हाथ की छुवन से एक कंपन पैदा हो गई मेरे शरीर में और मैं उछल पड़ी.
“तू भी तड़प रही है सेक्स के लिए... हैं ना? अभी मिटाता हूँ तेरी तड़प,” उसने कहा और मेरी टाँगों को उठा कर अपने कंधे पर रख लिया. वो पूरी तरह मुझ पर छा गया था.
मेरी साँसे थम गई. रोम-रोम थर थर कांपने लगा. जो होने जा रहा था वो सही नहीं था. मगर उसे रोकने की ना तो मुझमें ताकत थी और ना ही इच्छा. मैं तो उल्टा चाहती थी कि ये हो और पूरे जोर शोर से हो.
बस एक झटका मारा संजू ने.
बस एक झटका.
मेरी योनि इस कदर गीली थी कि उसका पूरा लिंग अंदर समा गया.
मैं कराह उठी. ये दर्द की कराह नहीं थी. ये उस आनंद की कराह थी जो मुझे उसका लिंग अपनी योनि में महसूस करके हो रही थी.
बड़ा अजीब हुआ था वैसे. वो अनपढ़ गंवार देहाती लड़का, मुझ जैसी पढ़ी लिखी शहरी औरत की योनि में अपना लिंग डालने में कामयाब हो गया था. ये उसके लिए गर्व की बात थी. और मेरे लिए पानी में डूब मरने वाली बात. मगर तब ऐसा ख्याल कहाँ था. तब तो मैं आनंद के सागर में गोते लगा रही थी.
“कितनी प्यारी जन्नत है तेरी. मजा आ गया घुसा के,” संजू अपना मुँह मेरे मुँह के पास लाकर बोला और मेरे होंठों को चूसने लगा. मजा और बढ़ गया. एक तरफ उसका लिंग मुझे आनंद दे रहा था दूसरी तरफ उसके होंठ मुझे रोमांचित कर रहे थे. मेरी साँसे उखड़ने लगी और मैं भी उसे पागलों की तरह चूमने लगी. अचानक उत्तेजना में मैं उसका होंठ चबा बैठी.
“ये क्या किया?” वो अपना मुँह पीछे करते हुए बोला.
“सॉरी,” मैंने शरमाते हुए कहा.
उसने अपने लिंग को बाहर की तरफ खींचा और पूरे जोर से वापिस अंदर घुसा दिया. “सॉरी से बात नहीं बनेगी. तुझे सजा मिलेगी इस बात की.”
मैं एक बार फिर कराह उठी. मुझे बहुत मजा आया इस धक्के के बाद. इतना मजा कि मैं बता नहीं सकती.
“कैसा लगा?” वो बोला.
“बस इतनी ही ताकत है तुम में?” मैंने उसे चिढाया. मैं चाहती थी कि वो फिर से जोर का धक्का लगाए.
जैसा मैं चाहती थी वैसा ही हुआ. उसने गुस्से में अपने लिंग को बाहर खींचा और इतने वेग से वापिस मेरी योनि में भेजा कि मैं थर्रा गई.
लेकिन जो मजा आया वो अतुलनीय था. ऐसा मजा… ऐसा आनंद मुझे कभी महेश के साथ नहीं मिला था. ये आनंद गन्दा था… ये घृणित भी था. मगर मैं इसका परित्याग नहीं कर पा रही थी. कामवासना में डूबी, मैं दिल खोल कर इसे गले लगा रही थी.
मैं भूल गई थी उस वक्त मैं कि मैं शादीशुदा औरत हूँ. भूल गई थी कि मेरा पति मुझे कितना प्यार करता है. मेरा व्यक्तित्व बस एक ऐसी औरत पर आकर सिमट गया था जो कि संभोग के आनंद को बिना कोई परवाह किए भोगना चाहती थी.
“तू ये कमीज़ उतार देती तो तेरे संतरे चूसते हुए करता मैं…” संजू मेरे उभारों को सहलाते हुए बोला.
“मुझे शरम आएगी… समझा करो… ऐसे ही कर लो,” मैं बोली. हालाँकि मैं बहुत खुल गई थी उसके साथ. मगर अभी भी थोड़ी झिझक थी मुझे. इसलिए मैं कमीज़ उतारने से मना कर रही थी.
“तू बड़ी अड़ियल है,” वो जोर का धक्का मारते हुए बोला.
“त-तुम भी कम नहीं,” मैं कराहते हुए बोली.
“तू ऐसे नहीं सुधरेगी… तेरी अच्छे से ठुकाई करनी पड़ेगी,” वो बोला और ताबड़तोड़ धक्के लगाने लगा.
मेरी साँसे उखड़ने लगी. बहुत तेजी से अंदर बाहर हो रहा था उसका लिंग मेरी चिकनी योनि में. और हर धक्का इतना आनंद दे रहा था मुझे कि मैं बता नहीं सकती.
कुछ देर बाद मैंने महसूस किया कि पूरे कमरे में हमारे संभोग की आवाज गूंज रही थी.
थप… थप… थप…
ऐसा लग रहा था जैसे कि कामुक संगीत बज रहा हो चारो दिशाओं में. चारपाई से आ रही चूँ-चूँ की आवाज इस संगीत के साथ मिल कर एक अलग ही समा बांध रही थी.
वो एक पल को भी नहीं थम रहा था. ऐसा लग रहा था जैसे कि वो अब मेरी योनि में वीर्य छोड़ कर ही रुकेगा.
अचानक मैंने खुद को आनंद के चरम के नजदीक पाया. मेरी साँसे और ज्यादा उखड़ने लगी. मेरा रोम-रोम कांपने लगा.
तभी वो चिल्लाया, “गिराने वाला हूँ मैं पानी तेरे अंदर आह्ह्ह…”
जैसे ही उसका वीर्य निकलना शुरू हुआ मैं भी झड़ गई. मैं हैरान रह गई. हम दोनों एक साथ आनंद के चरम पर पहुँचे थे.
जब उसका सारा वीर्य निकल कर मेरी योनि में समा गया तो वो निढाल हो कर गिर पड़ा मेरे ऊपर. उसकी साँसे भी मेरी तरह उखड़ी हुई थी. ना मैं कुछ बोल रही थी. ना वो कुछ बोल रहा था. हम दोनों पड़े पड़े अपनी-अपनी साँसों को थामने की कोशिश कर रहे थे.

थोड़ी देर बाद वो हल्का सा उठा और मेरी आँखों में देखते हुए बोला, “मजा आया?”
मेरे गाल शर्म से लाल हो गए. एक तो उसका लिंग अभी भी मेरी योनि में फँसा हुआ था ऊपर से वो ऐसा सवाल कर रहा था. मैं कुछ नहीं बोल पाई.
“तेरा तो सब कुछ करने के बाद भी वही हाल है… अभी भी शरमा रही है,” वो मेरा दायाँ स्तन दबाते हुए बोला.
मैं और ज्यादा शरमा गई. “उतरो मेरे ऊपर से,” मैंने उसे धकेलते हुए कहा.
“पड़ा रहने दे ना थोड़ी देर. मजा आ रहा है,” वो प्यार से बोला.
“हटो संजू मैं लेट हो रही हूँ.”
“रुक जा ना आज यहीं. क्या करेगी इतनी रात को घर जाकर.”
“मैं यहाँ नहीं रुक सकती... हटो,” मैं गुस्से में बोली.
“बुरा मत मान. मैं तो बस ऐसे ही बोल रहा था,” वो बोला और अपने लिंग को धीरे से मेरी योनि से बाहर निकाल कर मेरे बाजू में लुढक गया.
मैंने अपनी कमीज़ तुरंत नीचे सरका ली और अपनी योनि को ढक लिया.
एक अजीब सी शांति छा गई हम दोनों के बीच उस वक्त. ये ऐसी शांति थी जो कि दो अजनबियों के बीच नाजायज सेक्स करने के बाद होती है. मेरा मन ग्लानि से भरने लगा और मैं तुरंत चारपाई से उतर कर अपने कपडे पहनने लगी. मेरे हाथ पाँव काँप रहे थे मगर फिर भी मैंने कपडे जल्दी पहन लिए. अपना पूरा बदन ढकने के बाद मैं उसकी तरफ पलटी तो मेरे गाल शर्म से लाल हो गए. वो अपने लिंग को सहलाते हुए एक टक मेरी तरफ देखे जा रहा था. ऐसा लग रहा था जैसे कि वो एक बार और सेक्स करने के लिए खुद को तैयार कर रहा था.
मैंने आगे बढ़ कर चारपाई से अपना पर्स उठाया और बोली, “अच्छा मैं चलती हूँ अब.”
“क्या हम एक बार और नहीं कर सकते?”
“नहीं मुझे अब निकलना होगा,” मैं बोली और पलट कर दरवाजे की तरफ चल दी.
“रुक... अकेली कहाँ जा रही है. मैं आता हूँ तेरे साथ,” वो चारपाई से उतरते हुए बोला.
मैं भी यही चाहती थी कि वो मुझे मेरी कार तक छोड़ दे. इसलिए मैं दरवाजे के नजदीक पहुँच कर रुक गई. मगर मैंने मुँह उसकी तरफ नहीं किया. बस खड़ी खड़ी दरवाजे को देखती रही.
वो कपडे पहन कर मेरे पास आया और बोला, “पानी पीयेगी?”
“पीने का पानी है यहाँ?” मैंने उसकी तरफ मुड़ते हुए पूछा.
“बिलकुल है... पूरा घडा भरा रखा है.”
घड़ा देखा तो था मैंने मगर ये नहीं सोचा था कि उसमें पानी होगा. “हाँ दे दो थोडा सा,” मैं बोली. मुझे अपने गले को पानी से तर करने की जरुरत महसूस हो रही थी.
एक गिलास पानी मैंने पिया और एक उसने और फिर हम दोनों कुटिया से निकल कर मेरी कार की तरफ चल पड़े. हम साथ साथ आगे बढ़ रहे थे. ना वो कुछ बोल रहा था और ना मैं. ये अच्छा ही था. अगर वो कुछ बोलता तो मैं शर्मसार ही होती. इसलिए मैं चुप्पी साधे आगे बढती गई.
कुछ देर बाद हम सड़क पर पहुँच गए कार के पास. मैं जब दरवाजा खोलने लगी तो उसने अपना गला साफ़ किया और बोला, “तेरा बहुत बहुत शुक्रिया कि तू वापिस आई मेरे लिए. सच में बहुत अच्छा लगा मुझे. काश तू थोड़ी देर और रुक जाती.”
“मैं नहीं रुक सकती संजू. अब मुझे जाना होगा.”
“देख ले... हम एक बार और मजे कर सकते हैं.”
मैंने गहरी साँस ली. मैं वासना के जाल में फिर से नहीं फंसना चाहती थी. “इतना लालच ठीक नहीं. जो हुआ उतना ही बहुत है. अलविदा,” मैंने हाथ आगे बढाते हुए कहा.
उसने तुरंत मेरा हाथ पकड़ लिया और बोला, “प्लीज बस आधे घंटे के लिए रुक जा. ज्यादा वक्त नहीं लूँगा तेरा.”
“मैं वो सब दोबारा नहीं कर सकती. तुम नहीं जानते क्या हालत है मेरी. मेरा दिल ग्लानि से भरा हुआ है.”
“अगर ऐसा है तो तू वापिस क्यों आई थी मेरे पास?”
 

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“ये तुम नहीं समझोगे,” मैंने कहा और कार का दरवाजा खोल कर चालक सीट पर बैठ गई. मैंने इंजन स्टार्ट किया ही था कि वो गिलास थपथपाने लगा.
मैंने झल्लाहट में गिलास नीचे किया खिड़की का और बोली, “अब क्या है?”
“तेरा अकेले जाना ठीक नहीं रहेगा. मैं भी तेरे साथ चलता हूँ हाईवे तक.”
मैंने उसकी बात पर विचार किया. बात उसकी सही थी. रात के सन्नाटे में उस सुनसान सड़क पर अकेले सफ़र करना कदापि उचित नहीं था. और जैसा पहले हुआ था मेरे साथ वैसा ही दोबारा भी हो सकता था. घबराहट में मेरी कार फिर से पेड़ से टकरा सकती थी. अगर वो साथ रहेगा तो मैं आराम से बिना किसी चिंता के हाईवे तक पहुँच जाऊँगी.
मैंने गहरी साँस ली और बोली, “ठीक है...बैठो.”
वो मुस्कुराया और फट से दूसरी तरफ का दरवाजा खोल कर मेरे साथ वाली सीट पर बैठ गया. “चलो.”
“कुछ बोलना मत ठीक है. मुझे कार चलाने में दिक्कत होगी अगर तुम कुछ बोले तो.”
“चिंता मत कर... तू आराम से अपनी कार चला. मैं तेरे साथ बस तुझे हाईवे तक सुरक्षित पहुँचाने जा रहा हूँ. मैं तुझे बिलकुल परेशान नहीं करूँगा.”
देखते हैं, मैंने मन ही मन कहा और कार को सुनसान सड़क पर दौड़ा दिया. मुझे लग रहा था कि वो मुझे शर्मसार करने के लिए जरुर कुछ ना कुछ बोलेगा मगर उसने कुछ नहीं कहा. वो चुपचाप बैठा रहा मेरे बाजू में. जब हाईवे दिखने लगा तो वो बोला, “वो रहा हाईवे.”
मैंने हाईवे से कुछ दूरी पर कार रोक दी ताकि उसे उतार सकूँ. “थैंक यू संजू. यहाँ से मैं आराम से चली जाऊँगी.”
“मैं तेरे साथ पटियाला तक भी चल सकता हूँ अगर तू कहे तो.”
“इतनी मेहरबानी किस लिए?” मैंने मुस्कुराते हुए कहा.
“ये दिन मेरी जिंदगी का बहुत खूबसूरत दिन बन गया है तेरे कारण. सच कहता हूँ तुझसे बिछड़ने का मन नहीं कर रहा मेरा. दिल चाहता है कि ये रात यहीं रुक जाए ताकि तेरा साथ यूँ ही बना रहे.”
“उतना ही बोलो जितना हजम हो जाए. ये सब नाटक करने की जरुरत नहीं है तुम्हे. तुम जो चाहते थे तुम्हे मिल गया. अब वो सब दोबारा नहीं करुँगी मैं.”
“मैं तुझे कुछ भी करने को नहीं बोल रहा यार. मैं बस अपने दिल की बात बता रहा था. चल छोड़... ये सब बेकार की बातें हैं. आराम से जाना. अलविदा,” वो बोला और कार का दरवाजा खोल कर बाहर निकल गया.
मेरे दिल में जोर की टीस उठी उस पल. और ये टीस इस कदर हावी हो गई मुझ पर कि मैं कार को एक इंच भी आगे नहीं बढ़ा पाई. बस स्टीयरिंग पकडे बैठी रही चुपचाप. कुछ अजीब सा हो रहा था मेरे साथ उस पल. मुझे आगे बढ़ने से पहले संजू से बात करने की इच्छा हो रही थी. कुछ देर मैंने खुद पर काबू रखा. खुद को समझाया कि मुझे तुरंत निकलना चाहिए वहां से. मगर पता नहीं मुझे क्या हो गया था. संजू से बात करने की इतनी ललक सवार हो गई थी मुझ पर कि मैं दरवाजा खोल कर बहार निकल आई उस सुनसान सड़क पर. तब तक संजू थोडा दूर जा चुका था.
“संजू रुको!” मैं चिल्लाई.
वो तुरंत रुक गया और मुड कर मेरी तरफ आने लगा. मन तो हो रहा था कि मैं भी कदम बढाऊं उसकी तरफ मगर मैं कार के पास ही खड़ी रही. वो मेरी तरफ बढ़ते हुए मुझे देखता रहा. मैं भी उसे देखती रही.
मेरे नजदीक आकर वो बोला, “क्या हुआ?”
“कुछ नहीं... तुम्हे थैंक यू बोलना था पर तुम अचानक निकल गए कार से.”
“तू क्यों थैंक यू बोल रही है. थैंक यू तो मुझे बोलना चाहिए तुझे. तूने मुझ जैसे अनपढ़ गंवार लड़के को आज वो मौका दिया है जो मुझे शायद सौ जन्मों में भी नहीं मिलेगा. सच में बहुत याद आएगी तेरी.”
मैं भावुक हो गई उसकी बात सुन कर और मैंने आगे बढ़ कर अपने होंठ उसके होंठो पर टिका दिए और इतना गहरा चुंबन लिया उसके होंठो का कि मैं बता नहीं सकती. वो भी हैरान था मेरी इस हरकत पर. तभी तो उसके होंठो में कोई हरकत नहीं हो रही थी. मगर ये कुछ देर के लिए ही था. कुछ देर बाद वो भी मेरे होंठो को वैसे ही चूम रहा था जैसे मैं उसके होंठो को चूम रही थी.
जब उसके हाथ मुझे अपने उभारों पर महसूस हुए तो मुझे अहसास हुआ कि मैं ये क्या कर रही हूँ. मैं तुरंत पीछे हट गई. मेरे गाल एक दम टमाटर की तरह लाल हो रखे थे और मेरी साँसे तेज चल रही थी. “अपना ख्याल रखना संजू,” मैं उस से नज़रे चुराते हुए बोली.
“क्या हम दोबारा मिल सकते हैं?”
“नहीं!” मैंने कहा और पलट कर कार में बैठ गई. इस से पहले कि मैं कोई और पागलपन कर बैठूं मैं वहां से निकल जाना चाहती थी. अगले ही पल मैं कार को हाईवे की तरफ बढ़ा रही थी. मैंने कार के शीशे से देखा कि वो सड़क पर खड़ा मेरी कार को देखे जा रहा था. मन तो हो रहा था कि कार घुमाऊं उसकी तरफ उसे एक बार और अलविदा बोलने के लिए. मगर मैंने खुद पर काबू रखा.
जब हाईवे पर पहुँच कर मैंने बायीं तरफ कार घुमाई तो वो मेरी नजरों से ओझल हो गया. मगर अगले ही पल मुझे वो फिर दिखाई दिया. वो हाईवे पर आ गया था भाग कर.
मेरा फिर से मन हुआ उसे एक बार और अलविदा बोलने का मगर मैंने ऐसा नहीं किया. “अलविदा संजू!” मैंने मन ही मन कहा और कार की रफ़्तार बढ़ा दी. थोड़ी देर बाद वो मेरी नज़रों से ओझल हो गया.
तो ये थी उस बीते दिन की यादें जो अक्सर मुझे रातों को जगाती हैं. जब भी मैं ये सब सोचती हूँ तो शर्मसार हो जाती हूँ और खुद से ये सवाल करती हूँ कि मैं क्यों संजू की कुटिया में वापिस गई थी उस रात. मैं उसके चंगुल से निकल कर अपनी कार में वापिस आ गई थी. क्या जरुरत थी उसकी कुटिया में वापिस जाने की मुझे? क्या मैं हवस पर काबू नहीं पा सकती थी?
ये ऐसे विचलित करने वाले सवाल हैं जिनके जवाब मेरे पास नहीं है. मुझे कई बार लगता है कि शायद मेरा कोई रिश्ता है संजू के साथ किसी जन्म का. वरना जो मैंने किया था उस रात वो मैं कभी ना करती. और ना ही वो सब दोबारा याद करती. बहुत विचलित होता है मेरा मन वो सब सोच कर. मगर ये बात भी सच है कि इन यादों के साथ मैं एक ऐसी दुनिया में चली जाती हूँ जहाँ मैं हूँ और संजू है. ये दुनिया बस हम दोनों की है. कई बार मन करता है कि वापिस गाँव जाकर संजू से मिलूँ और पूछूं कि क्या वो भी ये सब याद करता है. मगर ये ख्वाहिश मैं दिल में दबाए रखती हूँ. क्या करूँ. शादीशुदा जो हूँ. और मैं अपनी शादीशुदा जिंदगी में खुश भी हूँ. कोई भी कारण नहीं है मेरे पास अपने पति को दोबारा धोखा देने का.
 
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