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Incest बेटा है या.....घोड़(ALL IN ONE)

फीर मचायेगें है की नही?

  • हां

    Votes: 9 81.8%
  • जरुर मचायेगें

    Votes: 8 72.7%
  • स्टोरी कैसी लगी

    Votes: 0 0.0%

  • Total voters
    11
  • Poll closed .

Said ismail

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Jabardast suruwat bhai, ek request hey ki aap ki story ki nam k seth all in one likhkha hey to Ritesh to bahar udham machayega hi sath mey kya Kajri bhi bahar jayegi, agar aapney yesa socha to plz maat koro, dekhtey hey ab agey Ritesh kya karta hey aur ye raat maa beta ka keysey gujarta hey
keep it up and as always waiting for
 
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Hellohoney

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Behtarin or dhamake dar update diya he bhai waiting for next update
 
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Johnboy11

Nadaan Parinda.
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  1. बेटा है या घोड़ा
अपडेट--1



रोज रोज ये सुखी रोटी.....और बकरी का दुध खाकर थक चुका हूं मैं॥

कजरी-- अरे बेटा...यही सुखी रोटी और बकरी का दुध खाकर पहलवान बन गया है....देख जरा खुद को पुरे गांव भर में कीसी का भी शरीर तेरे जैसा नही है।

रितेश.(गुस्से में)-- तो इसका मतलब मैं यही सुखी रोटी खाउं?


कजरी-- गुस्सा मत हो मेरे लाल....आज खा ले कल कुछ इंतजाम करुगीं, और तुझे तो अपनी हालत पता ही है बेटा।

रीतेश(गुस्से में)-- जब हालात ठीक नही थे तो पैदा क्यूं कीया .....ये सुखी रोटी खीलाने के लीये....नही खाना है मुझे ये तू ही खा।

' इतना कह कर रितेश खाने की थाली गुस्से में अपनी मां की तरफ करता है और घर से बाहर की ओर जाने लगता है।

कजरी-- अरे.....बेटा सुना तो...रुक जा थोड़ा ही खा ले। लेकीन तब तक रितेश घर से बाहर जा चुका था।
कजरी वहीं बैठी रितेश को बाहर जाते देखती रहती है.....उसकी आंखो में आंशु आ चुके थे.....वो अपनी कीस्मत को कोस रही थी.....लेकीन कीसी ने सच कहा है ना जो तकदीर में लीखा है भला उसे कौन मीटा पाये फीर कीस्मत को कोस कर क्या फायदा।

कजरी वो....कजरी....कहां है तू।
कजरी के कानो में जैसे ही ये आवाज़ पहुचीं वो रसोई घर से बाहर आती है।

कजरी-- अरे संगीता तू आ बैठ।
संगीता-- तू तो मेरी ख़बर लेने से रही तो सोचा मैं ही तेरी खबर ले आती हूं॥

कजरी-- अरे संगीता अब क्या बताऊ तूझे तो सब पता ही है.....घर का काम और सब चीजे करते करते समय का पता ही नही चलता.....

संगीता-- अच्छा अब रहने दे....चल जल्दी तैयार हो जा।
कजरी-- क्यूं कहां जाना है?

संगीता-- अरे आज ठाकुर साहब का प्रधानी का प्रचार है....और उसमे शामील होने वालो को एक हजार रुपये मील रहे है.....तो गांव की औरते जा रही थी तो सोचा मैं और तुम भी चलते है अपना भी काम हो जायेगा।

कजरी-- बात तो तू ठीक कह रही है.....लेकीन मेरा बेटा?
संगीता-- तेरा बेटा क्या?

कजरी-- अगर कहीं मेरे बेटे ने गांव में घुमते हुए देख लीया तो मेरी खैर नही।

संगीता-- अरे क्या खैर नही लगा रखी है.....एक तो तू इधर उधर से ला के तू उसको खीलाती है.....खुद तो कुछ करता नही और तेरे उपर रौब जमाता है।

कजरी-- ऐसा मत बोल संगीता वो जीदंगी है मेरी....उसके लीये तो सब कुछ कुर्बान।

संगीता-- हां तो वो बच्चा थोड़ी है उसे भी तो सोचना चाहीये....तू चल मै देखती हूं की क्या बोलेगा वो तूझे फीर मैं उसे जवाब दूंगी।

कजरी-- ठीक है रुक चलती हूं॥

कजरी घर के अंदर जाती है और एक लाल साड़ी अपने बक्से में नीकालती है......।

कजरी अपनी पहनी हुई साड़ी अपने बदन पर से नीकाल देती है .....वो अब सीर्फ ब्लाउज और पेटीकोट मे थी....उसका कसा हुआ दुधीया गोरा बदन और ब्लाउज में कसी हुई गोल गोल बड़ी चुचीयां जो शायद ब्लाउज फाड़ कर बाहर आने को उतावली हो रही थी.....कजरी की पतली गोरी कमर तो सुराही दार एक बार कोई देख ले तो उसके कमर को हाथो से रगड़ने को जी मचल जाये......और गांड तो उफ.....क्या बनावट थी उपर वाले की .....एकदम कसी हुई बाहर की तरफ नीकली हुई कयामत ढ़ा रही थी.....ये सब नज़ारा देख कर संगीता की नज़रे ही नही हट रही थी।

कजरी-- ऐसे क्या देख रही है तू?
संगीता-- देख रही हूं की भगवान ने तूझे सच में फुरसत से बनाया है.....कीतनी खुबसुरत है तू कजरी।

कजरी-- अरे अब क्या करुगीं ये खुबसुरती ले के पती तो रहे नही तो फीर इस खुबसुरती का क्या मतलब?

संगीता-- सही कहां तूने....हम दोनो की कीस्मत तो फूटी है.....अच्छा तेरा मन नही करता कजरी की तेरे ये खुबसुरत जीस्म को कोई मसल मसल कर रख दे.....।

कजरी-- अच्छा अब बस कर तू अब चल....मैं तैयार हो गयी हूं॥

संगीता-- हां चल गांव के तेरे सारे आशीक तो आज मर ही जायेगें...।
कह कर दोनो हंसने लगती है.....और घर से बाहर नीकल पड़ते है।


ठाकुर परम सींह के घर के सामने भारी संख्या में भीड़ लगी थी.....ठाकुर के गाड़ीयो में पोस्टर लगे हुए थे.....उनका चुनाव चीन्ह था खाट, कुछ लोगो के हाथों मे झंडे भी थे...।


गांव की कयी सारी औरते एक तरफ खड़ी थी.....उन औरतो में रज्जो एकदम सज धज कर खड़ी थी और कुछ औरतो से बात कर रही थी.....की तभी उनमे से एक औरत बोली.......हाय राम देखो कजरी आ रही है कीतनी सुंदर लग रही है।
ये सुनते ही सारी औरतों की नज़र कजरी पर पड़ती है।
हां....सच में कीतनी सुदंर है कजरी देखो ना सारे मर्दो की नज़र सीर्फ कजरी पर ही है.....काश भगवान ने मुझे इतना सुँदर बनाया होता तो जींदगी के मजे खुब लुटती ॥
उस औरत की बात सुनकर रज्जो बोली॥
रज्जो-- हां लेकीन ये महारानी तो अपने आप को पता नही क्या समझती है....कीसी को घास ही नही डालती।

रज्जो अंदर ही अँदर खुब जल रही थी....॥

संगीता-- देख कजरी सब हरामजादे मर्दो की नज़र तुझ पर ही है....कैसे खा जाने वाली नज़रो से देख रहे है तूझे।

कजरी-- छोड़ जाने दे तू .....चल सीधा प्रचार करेगें और घर चलेंगे....॥
और फीर दोनो ठाकुर के द्वार पर आ जाते है।

ठाकुर अपने दोस्तो के साथ हवेली के अंदर बैठा था.....तभी उसे कीसी ने आवाज़ दी।

ठाकुर साहब......ठाकुर साहब.....। ठाकुर ने पीछे मुड़ कर देखा....

ठाकुर-- अरे दीवान क्यू चील्ला रहा है.....।
दिवान-- वो....वो कजरी आयी है।
इतना सुनना था की 48 साल का ठाकुर कीसी 20 साल के जवान लौडें की तरह बाहर भागते हुए नीकला....।

वहां बैठे ठाकुर के दोस्त सब हैरान रह गये की आखीर ये कजरी कौन है जीसके बारे में सुनते ही ठाकुर कीसी कुत्ते की तरह भागते हुए गया.....यही उत्सुकता ठाकुर के दोस्तो को भी बाहर ले के चला।

ठाकुर-- अरे कजरी.....तुम , आज मेरे घर का रास्ता कैसे याद आ गया?

कजरी तो एकदम से डर गयी थी....क्यूकीं ठाकुर उससे सीधा जो बात करने लगा था.....और गांव के सभी लोग की नज़र उन पर ही थी.....वो सोचने लगी की गांव वाले कही कुछ उल्टा सीधा ना सोच ले.....और कुछ गलत बात गांव में फैल गयी तो मेरा बेटा क्या सोचेगा.....

ठाकुर-- क्या हुआ कजरी क्या सोचने लगी?
कजरी जैसे नीदं से जागी॥

कजरी-- क.....कुछ नही ठाकुर साहब। वो....वो मैने सोचा की मैं भी प्रचार में हीस्सा लूं तो चली आयी।

ठाकुर के खुशी का ठीकाना ना था....वो यकीन नही कर रहा था की कजरी खुद चल कर उसके घर आयी है......

ठाकुर-- बहुत अच्छा कीया.....कजरी।

दिवान-- ठाकुर साहब रैली नीकालने का वक्त हो गया है.....चलीये आप गाड़ी मे बैठ जाईये....।

ठाकुर-- हां....हां चलो कजरी तुम भी गाड़ी में ही मेरे साथ बैठ जाओ।

कजरी-- अरे.....नही ठाकुर साहब.....गांव की औरतो के साथ ही प्रचार कर लूगीं.....और वैसे भी मुझे बहुत अजीब लगेगा अगर मैं अकेली आपके साथ गाड़ी में बैठुगीं तो।

ठाकुर-- हां.....तो संगीता को भी बीठा लो गाड़ी में क्यू संगीता तुम भी बैठ जाओ।

संगीता-- ठीक है ठाकुर साहब....जैसा आप कहे।

कजरी-- लेकीन संगीता?
ठाकुर-- लेकीन वेकीन कुछ नही.....मेरा प्रचार करने आयी हो तो मेरे साथ ही करना होगा।

कजरी और संगीता को अच्छा तो नही लग रहा था लेकीन फीर भी कुछ बोल नही पाई और जीप में बैठ गयी......।

दिवान ने ठाकुर को इशारा करके एक कोने में बुलाया.....ठाकुर दीवान के तरफ चल दीया।

ठाकुर-- अब क्या हुआ दीवान.....?
दिवान-- ठाकुर साहब......राजकरन की रैली नीकल पड़ी है.....आपने जैसा कहा था मैने सब गांव वालो को पैसा देकर बुला लीया है.....मुझे लगता है की उसके चुनाव प्रचार में सीर्फ राजकरन का परीवार ही होगा।

ठाकुर(हंसते हुए)-- हा......हा......हा, अब इस राजकरन को अपनी औकात का पता चलेगा.....ये दलीत नीचे जाती वाला साला ठाकुर परम सींह से टक्कर ले रहा है मादरचोद। देखते है क्या करेगा ?



यार रितेश लगता है चुनाव में पापा खड़े होकर गलती कर गये.....

रितेश-- तू ऐसा क्यू बोल रहा है अजय?
अजय(रितेश का दोस्त)-- अरे देख ना सारे गांव वाले उस ठाकुर के तरफ़ चल दीये एक तू ही है जो गांव से आया है।

रितेश-- अरे भोसड़ी के ये चुनावी दावपेच है दीखाने को कुछ और करने को कुछ वाली हाल है....ये तो सिर्फ रैली है गांव के सारे वोट तो तेरे पापा को ही मीलेंगे।

अजय-- तू बोलता है तो ठीक ही होगा.....चल अब अपनी भी रैली नीकालते है।

रितेश अजय के साथ.....चल देता है राजकरन के रैली में कुछ बीस से पच्चीस आदमी ही होगें वो भी घर वाले और यार दोस्त।

दोनो तरफ से रैली चली आ रही थी ठाकुर जीप में खड़ा हाथ जोड़े और उसके साथ दीवान, कजरी और संगीता थे और पिछे भारी भीड़ जो नारा लगा रहे थे ' वोट हमारा खाट पे, ठाकुर साहब राज पे।

ये नारा ठाकुर के तरफ से लग रहे थे.....राजकरन का चुनाव चिन्ह था इट , लेकीन उनका नारा तो सीधा साधा था.....हमारा प्रधान कैसा हो, राजकरन जी जैसा हो।

इन नारो में जोश था....रितेश अजय के साथ बाकी दोस्त भी जोर जोर से चिल्ला रहे थे।

दोनो की रैली गांव भर से गुजर रही थी.....और फीर आमने सामने भी पहुचं गयी।

अजय-- अरे....यार रितेश तेरी मां तो ठाकुर के तरफ से प्रचार कर रही है लगता है।
ये सुनते ही रितेश चक्का बक्का हो गया.....और नज़र उठा कर देखा तो सच में उसकी मां ही थी जो ठाकुर के जीप में बैठी नारा लगा रही थी......।
रितेश को बहुत गुस्सा आ रहा था......आखीर कार दोनो की रैली आमने सामने पहुचं गयी।

कजरी ने जैसे ही रितेश को देखा तो उसके होश ही उड़ गये कजरी का बदन थर थर कापंने लगा और उसे पसीने आने लगा।

रितेश के गुस्से का ठीकाना न था....लेकीन फीर भी वो अपनी मां को नज़र अदांज कर के चुनाव प्रचार में लग गया......।


पुरे दीन प्रचार हुआ.....शाम को कजरी और संगीता बीना ठाकुर से मीले घर चली आती है.....

संगीता-- अरे कजरी तू इतना घबरा क्यूं रही है...रितेश पुछेगा तो बोल देना सिर्फ प्रचार करने ही तो गयी थी।

कजरी-- पता नही क्यूं मेरा दील घबरा सा रहा है तू रुक जा ना रितेश के आने तक।

संगीता-- अच्छा तू घबरा मत मैं रुकती हू....।

शाम से रात हो गयी करीब 9 बज गये लेकीन रितेश अभी तक घर नही आया था...।

कजरी की तो धड़कन बढ़ने लगी.....वो परेशान होने लगी। अब संगीता भी परेशान होने लगी।

संगीता-- अरे कजरी , होगा वो अपने दोस्तो के साथ आ जायेगा बच्चा थोड़ी है वो....


और इधर रितेश अजय के साथ गांव के पुलीया पर बैठ कर पहली बार शराब पी रहे थे......

अजय-- यार रितेश ये दारु भी कमाल की चिज है....एक बेकार आदमी भी पीने के बाद अपने आप को बादशाह समझने लगता है।


रितेश-- सही कहा यार......मज़ा आ गया।

अजय-- भाई रितेश आज तो बुर चोदने का मन कर रहा है।
रितेश अपनी खाली हो चुकी ग्लास में दारु डालते हुए....

रितेश-- अरे भोसड़ी के मन तो मेरा भी कर रहा है .....लेकीन बुर कोई ऐसी वैसी चीज थोड़ी है जो मील जायेगी....।

अजय-- एक जुगाड़ है.....बोल तो बताऊं॥
रितेश-- अरे बोल तू जल्दी.....।
अजय-- पप्पू की बहन है.....बड़ी चुदक्कड़ है मादरचोद और तेरे घर के बगल में ही रहती है.....पटा ले साली को फीर मजे लूट खूब।

रितेश-- सही कह रहा है.....वैसे भी जब भी वो साली मुझे देखती है तो मचलने लगती है।
अजय-- तो चोद दे साली को......।
रितेश-- हां यार और वैसे भी लंड खड़ा हो कर के झुल जाता है.....ईसको भी अब बुर की जरुरत है...।

अजय-- हां यार सही कहा.....चल अब घर चलते है बहुत देर हो गयी है.....10 बज गया है मेरी मां तो आज चपेट लगायेगी जरुर मुझे।

फीर दोनो उठते है और अपने अपने घर की तरफ नीकल पड़ते है......

अजय अपने घर की तरफ बढ़ा जा रहा था.....रात काफी ज्यादा हो गया था अंधेरा था....रास्ते भी ठीक से नही दीख रहा था।

वो गांव के पुराने स्कूल से जैसे ही गुजर रहा था उसे कुछ खुसुर फुसुर की आवाज सुनाई दीया.....वो थोड़ा हैरान हो गया की ये आवाज़ कहा से आ रही है।
वो वहीं रुक गया और ध्यान से सुनने लगा तो आवाज़ उसे स्कूल के एक कमरे से आती हुई सुनाई दी......

उसने आवाज़ का पीछा कीया और स्कूल के उस कमरे की तरफ बढ़ा.....अजय धीरे धिरे कमरे की तरफ बढ़ रहा था.....वो जैसे ही कमरे के नज़दीक पहुचां तो उसने अंदर झांका उसे एक औरत की सीसकने की आवाज़ आई........आ......ई.......आ.......ह।

आवाज़ इतनी धीमी थी की अजय पता ना लगा सका की ये गांव की कौन औरत है.....लेकीन उसे इतना तो पता चल गया था की इस कमरे में चुदाई हो रही है,॥

अजय ने पहले सोचा की रुक कर पता करता हू की कौन है ये लोग.....लेकीन फीर बाद में सोचा की इस गांव में तो बहुत सी छिनाल औरते है....इन लोग के उपर समय बरबाद करके क्या मतलब....और फीर वो पीछे मुड़ा और घर की तरफ नीकल गया।

रितेश जैसे ही घर पहुचां तो कजरी और संगीता दोनो बैठ कर रितेश का इतंजार कर रहे थे.....रितेश के पैर डगमगा रहे थे।
कजरी और संगीता को समझने में देर नही लगी की रितेश दारु पी के आया है.....।

रितेश की हालत देख कर कजरी को बहुत गुस्सा आया की उसने दारु पीया है।

कजरी(गुस्से में)-- तू दारु पी कर आया है घर पर।

रितेश की आंखे अधखुली थी.....उसने इतना पीया था की ठीक से चलना तो दुर ठीक से खड़ा भी नही हो पा रहा था.....रितेश ने अपने लड़खड़ाते हुए जबान से बोला।

रितेश-- हां.....पी है मैने....तो क्या हुआ तेरी तरह बेशरमो की तरह गांव के ठाकुर के साथ थोड़ी घुम रहा था।

ये सुनते ही कजरी का गुस्सा सातवे आसमान पर पहुंच गया......कजरी ने खीच कर रितेश को 3 , 4 थप्पड़ जम दीया।

कजरी-- नालायक अपनी मां को बारे में ऐसा बोलते हुए शरम नही आयी तूझे।

रितेश-- ओ.....हो मुझे बोलने में शरम आनी चाहीए और तूझे शरम नही आ रही थी ठाकुर के साथ घुमने में और वो भी ठाकुर के जीप पर......॥

कजरी-- मैं अपने मन से नही बैठी थी....ठाकुर साहब ने जबरजस्ती बैठने पर मजबुर कीया तो बैठी।

रितेश-- सही है....यार, तू मुझे ये बता गांव में बहुत सारी औरते है ठाकुर ने तूझे ही बैठने के लीये क्यूं बोला?

रितेश की बात सुनकर कजरी घबरा गयी और समझ नही पा रही थी की क्या जवाब दे और यही हाल संगीता का भी था....क्यूकीं वो दोनो अच्छी तरह से जानती थी की ठाकुर की नीयत उस पर खराब है लेकीन ये बात रितेश को बोलना मतलब खुद के पैर पर कुल्हाड़ी चलाने जैसा था।

इतने में वहां खड़ी संगीता ने बोला.....

संगीता-- तू पागल हो गया है क्या रितेश क्या अनाब शनाब बक रहा है....तूझे पता है हम वहां क्यूं गये थे.....पैसो के लीये गये थे। तूझे सुखी रोटी अच्छी नही लगती ना....तो तेरी मां और मै ठाकुर के चुनाव प्रचार में गये थे हज़ार रुपये मील रहे थे....वो अपने लीये नही गयी थी तेरे लीये गयी थी ताकी तूझे कुछ अच्छा खीला सके.....और एक तू है की अपनी देवी जैसी मां पर ही शक कर रहा है थू।

संगीता की बात सुनकर कजरी रोने लगती है। संगीता कजरी को संभालने लगती है.....और उसे गले से लगा कर बोली।

संगीता-- तू क्यूं रो रही है.....तूने तो अपने मां होने का फर्ज बखुबी नीभाई है....लेकीन ये अपने बेटे होने का फर्ज आज तक नही नीभाया......पुरा गांव इसे नालायक बोलता है......और तूझे एक बात बताती हूं कजरी जो मैने तूझे नही बताया था।

कजरी-- कैसी बात?
संगीता-- ये सच में नालायक है.....मेरी बेटी स्कूल से आती है तो....ये अपने आवारा दोस्तो के साथ उसे छेड़ता है....कल मेरी बेटी आकर मुझे बताने लगी और रोने भी लगी.......।

कजरी को फीर से गुस्सा आया और वो रितेश को मारने के लीए जैसे ही उठी संगीता ने उसे फीर से पकड़ लीया.....

कजरी-- ये इकदम हरामी हो गया है.....अब लड़कीया भी छेड़ने लगा नालायक।

बहुत देर से सुन रहा रितेश ने गुस्से में बोला।

रितेश-- छेड़ता नही उसको पसंद है वो मुझे प्यार करता हू मैं उससे।

संगीता-- ओ.....हो बड़ा प्यार करता है। खीलायेगा क्या उसको काम धंधा तो कुछ करता नही तूझे तो खुद तेरी मां पाल रही है.....अरे तुझ जैसे नालायक को तो कोइ अपनी लगंड़ी लड़की भी ना दे....... मैं मेरी बेटी भला क्यूं दूगीं?

रितेश को अब इतना गुस्सा आया की॥

रितेश-- हां तो ठीक है तू जा और अपनी बेटी की शादी उस ठाकुर के छोकरो से कर दे।

संगीता-- हां तो कर दूंगी वो खुश तो रहेगी वहां यहां करुगीं तो तील तील कर मर जायेगी।

रितेश खड़ा ये सब बाते सुन कर उसे अपनी बेइज्जती महेसुस होने लगी तो वो घर से बाहर लड़खड़ाते हुए नीकलने लगा तो उसे उसकी मां कजरी और संगीता दोनो ने पकड़ लीया।

कजरी-- कहां जा रहा है तू?
रितेश(अपने आप को छुड़ाते हुए)-- कहीं भी जाऊं तूझे उससे क्या ? मैं यहा अपनी बेइज्जती कराने आया हूं क्या.....और तूझसे नही बोला गया तो इसे लेकर आयी है मेरी बेइज्जती करने।

रितेश की आंखो में आशुं आ गये थे.....जिसे देख कजरी और संगीता दोनो घबरा गये उन्होने ने तो ये बात सीर्फ उसे सुधरने के लिये बोला था.....लेकीन ये बात रितेश को लग सी गयी।

रितेश ने अपना हाथ झटका और वो नाजुक सी दोनो औरते इधर उधर गीर गयी......और रितेश अपना आंशु पोछता लड़खड़ाते हुए तेजी से बाहर नीकल गया......और कजरी , संगीता उसे देखती रहती है।



कहानी शुरु कर दी है दोस्तो अपनी राय जरुर बतायें की कहानी में और क्या नया हो सकता है.......आगे आने वाले अपडेट आप सब के लम्बू का चप्पू देर तक जरुर चलायेगा ये वादा रहा......

धन्यवाद
Update to bahpt hi dhasu lga first update k hisab se bhai.
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Ye hero ka character starting mai to pura ka pura khula hua h dheela to bahot dur ki baat h.
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Thakur ne to mauke pe cauka maar diya.
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Ajay ko uss aurat ko dekhna chahiye tha k kon h lagta h koi kaam ki aurat thi wo.
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Kajri aur sangeeta ki baato ka kuch to asar hoga hi hero pe.
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Keep posting.
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