अपडेट **** 20
चंपा ......अपनी मुट्ठीयों में ठाकुर के लंड को पकड़ लेती है। चंपा की मुट्ठीयों में ठाकुर के लंड की नसे जैसे फटने लगती है।
चंपा - बहुत.......मस्त लंड है मालीक आपका! देखो ना कैसे फड़फड़ा रहा है....ये!
ठाकुर ने .......बीना कुछ बोले, चंपा के बालो को अपने मुट्ठीयों में पकड़ कर उसका ......सर अपने लंड पर झुका देता है, और बोला-
ठाकुर - ज्यादा नाटक मत कर साली......अपना मुह खोल, और चुस जल्दी!
.....चंपा ने अपने होठ को थोड़ा सा खोलकर......ठाकुर के लंड के सुपाड़े पर एक चुम्बन दे देती है|
ठाकुर - आ.......ह, काश ऐसे ही कज़री.....मेरे लंड को पकड़ कर चुसती!
चंपा.......ने ठाकुर का पूरा लंड अपने मुह मे, धिरे-धिरे उतार लेती है| चंपा के मुह की गरमी पाकर......ठाकुर की आंखे बंद होने लगती है!
......चंपा बड़े प्यार से ठाकुर के लंड को अपने मुह में लेकर चुसने लगती है!
चंपा ठाकुर का लंड चुसते हुए.....अपनी नज़र ठाकुर की तरफ डाली तो......देखा ठाकुर अपनी आंखे बंद कीये.....लंड चुसवाने का मज़ा ले रहा था......!
चंपा के चेहरे पर.........एक मुस्कान फैल जाती है! उसने ठाकुर के लंड के सुपाड़े को अपने दात से हल्का सा काट लेती है|
ठाकुर - आह.......साली, मज़ा आ गया! ऐसे ही चुसेगी तो.....तुझे अपनी रंडी बनाकर रखुगां!
"*चंपा ने एक बार फीर......ठाकुर के लंड को पूरा अपने गले तक उतार लेती है! जीससे ठाकुर मस्त हो जाता है!
........कमरे में बीस्तर पर ठाकुर नंगा लेटा.....था| और चंपा अपनी गांड उठाये ठाकुर के लंड को चुस रही थी......वाकयी में क्या मस्त नज़ारा था!
चंपा - मालीक........कैसा चुस रही है , आपकी रंडी?
ठाकुर - पुछ मत.......चंपा। बहुत मज़ा आ रहा है......चुसती रह.......एक बार तो अपने लंड का पानी तुझे पीलाउगां.....जल्दी-जल्दी चुस और नीकाल कर पी जा !
इतना सुनते ही, चंपा ने ठाकुर के लंड को जोर-जोर से चुसने लगती है......ठाकुर की मज़े से हालत खराब होने लगती है!
ठाकुर - आह.......कुतीया, साली.....कीतना मस्त चुसती है.....नीचोड़ कर पूरा पानी नीकाल ले!
......चंपा ने अपने लंड चुसने की गती और तेज कर देती है.....तभी अचानकर से ठाकुर ने चंपा का बाल पकड़ कर अपने उपर खीचं ले ता है!
और चंपा की बड़ी-बड़ी चुचींयो को अपनी हथेलीयों में भर कर दबाने लगता है|
चंपा- आ.........ह मालीक धी......रे! मेरी चुचींया .......आह......आह!
ठाकुर ने झट से चंपा को नीचे.....कर के उसके उपर आ जाता है.......और चंपा के चुचीयों को एक-एक करके बुरीतरह चुसने और काटने लगता है!
चंपा दर्द और मजे से जोर-जोर चील्लाने लगती है.....
चंपा - आ.......आ......मालीक.......और......जोर से.......चुसो,
और ये बोलते हुए चंपा ने अपनी दोनो टागें....उठा कर ठाकुर के कमर पर लपेट लेती है!
चंपा इतनी जोर-जोर से चील्ला रही थी की.....उसकी आवाज़ कमरे के बाहर तक साफ सुनायी दे रही थी......
बाहर खड़े नौकरो का लंड भी इतनी मस्त आवाज़ सुनकर खड़ा होने लगा!
अरे.......यार, रामू......! आज तो लगता है....चंपा की ठाकुर साहब ज़म कर ले रहे है!
सही कहा हीरालाल तुमने......सुन नही रहा तू, कैसे चील्ला रही है.....कुतीया की तरह!
ये बोलकर दोनो हसने लगते है.......! तभी वहीं पर हवेली का झाड़ू पोछा करने वाली शोभा....अपने हाथो में बाल्टी ले कर आ जाती है!
शोभा को देखकर ......रामू और हीरा अपने लंड सहलाने लगते है!
शोभा भी जब चंपा की चीखे सुनती है तो.....वो हीरा से बोली-
शोभा - क्या हुआ हीरा.? ये कौन गला फाड़ कर चील्ला रही है?
हीरा - आज ठाकुर साहब.......चंपा की फाड़ रहे है.......शोभा! वही चील्ला रही है|
हीरा की बात सुनकर.......शोभा शरमा जाती है......! शोभा को शरमाते देख, रामू ने मौके का फायदा उठाते हुए बोला|
रामू - काश हम भी कीसी की फाड़ सकते!
रामू की बात सुनकर 35 साल की शोभा.....शरम से लाल हो जाती है! वो कुछ बोली नही..... वो बाल्टी को जमीन पर रख कर.....अपनी साड़ी को घुटनो तक उठा कर नीचे ज़मीन पर बैठ जाती है!
और बाल्टी में से पोछा नीकाल कर.....फर्श को साफ करने लगती है!
हीरा और रामू ने शोभा की गोरी टागें देखते ही.....मस्त हो जाते है!
***आह.......मालीक.....अब नही रहा जाता! ....डाल दो अपना लंड...... चंपा की ये आवाज़ जैसे ही शोभा के कानो में पड़ती है......वो दंग रह जाती है! उसने अपनी तीरछी नज़र से रामू......और हीरा को देखा तो......वो दोनो पतलून के उपर से ही अपने लंड को मसल रहे थे.......और उसकी तरफ ही देखकर मुस्कुरा रहे थे|
चंपा की मदमस्त चीखे.....और पास में खड़े दो मर्द जो उसके सामने ही अपना लंड मसल रहे थे.......शोभा के अँदर की औरत को जगाने लगे थे.......!
ठाकुर ने चपां की चुचीयों की हालत खराब कर दी.......जगह- जगह पर चंपा की चुचींयो पर लाल नीशान पड़ गये थे!
ठाकुर ने झट से......चंपा को कुतीया बना दीया......और चंपा की बुर में.......अपना लंड एक झटके में पूरा अँदर तक उतार दीया!
......चंपा जोर से चील्लाई......!
चंपा - आ.....इइईईईईईईईई........म........र ग.....यी, मा......ली....क! आ........ह नीकाल लो......माली......क । ब.......हुत मोटा है......आपका!
चंपा की इस आवाज़ ने.......शोभा को अँदर तक हीला दीया......चंपा की चीखे, शोभा के बदन को गरम करने लगी......उसके हाथ फर्श पर चलते-चलते रुक गये! और उसका गला सूखने लगा! शोभा की बुर में हलचल मचने लगी.......और रामू और हीरा भी उस मदमस्त चीख को सुनकर अपना लंड और जोर से मसलने लगे!
ठाकुर ने चंपा की गांड पर जोर का थप्पड़ मार......और चंपा की कमर पकड़ कर अपनी गांड तक का जोर लगाकर अपना......लंड चंपा के बुर में पेलने लगा!
चंपा......छटपटाने लगी.......और अपना गला फाड़ कर चील्लाने लगी......ठाकुर ने चंपा की गांड पर जोर -जोर के थप्पड़ बरसाते हुए.....उसे कीसी कुत्ते की तरह चोदने लगा!
चंपा - आ......ईईईईई.........ईईईईईई........मां| छो.........ड़ दो, मा........लीक.........मर जाउगीं!
गांड पर पड़ रहे थप्पड़ और चंपा की चीखो की आवाज़ .........शोभा के बदन में अगांरे फोड़ने लगे!!
ठाकुर - चुप साली रंडी.........मादरचोद, इतनी कसी - कसी बुर है तेरी, मज़ा आ रहा है.......
चंपा - आ........ह........मालीक........थो......ड़ा॥ धीरे.......चो.......दो!
ठाकुर की गालीयाँ.........सुनकर रामू और हीरा का लंड झटके मारने लगा........और शोभा बेचारी का तो पूछो ही मत!
अब तक ठाकुर ने .........चंपा को 10 मीनट तक जानवरो की तरह चोदा.......चंपा बीस्तर पर छटपटा रही थी......चंपा दर्द सहन नही कर पा रही थी......वो अपना सर कभी इधर झटकती कभी उधर......कभी अपने दोनो हाथ रख कर कुतीया बन कर छटपटा कर चील्लाती तो कभी अपना सर नीचे बीस्तर में गाड़ कर अपनी मुट्ठी में चादर पकड़ कर! लेकीन ठाकुर को उसको छटपटाना देख.......उसके बद न में और जोश भर देता! और वो चंपा के कमर को पकड़े ताबड़ तोड़ झटके मारने लगता!
चंपा तो अब यही चाहती थी की.........कीसी तरह ठाकुर का पानी नीकल जाये........शायद चंपा की भगवान ने सुन ली.......ठाकुर गीनगीनाता हुआ अपने धक्के तेज कर दीया.......और तीन-चार धक्के जोर का मार कर चपां का बाल पकड़ कर.......जोर से खीच कर उसकी पीठ को अपने सीने से लगा लीया!
चंपा मारे दर्द के रोने लगी........और ठाकुर उसकी चुचीयां दबाते......अपने लंड का पानी चंपा के बुर में पूरा उड़ेल दीया!
........चंपा का रो.....रो कर बुरा हाल हो गया था......शायद उसकी बुर अभी तक पूरी तरह से खुली नही थी.......इसी लीये उसे आज चुदाई में मज़े से ज्यादा दर्द का सामना करना पड़ा!
ठाकुर अपना पूरा पानी चंपा के बुर में छोड़ने के बाद.......चंपा को बीस्तर पर ठेल देता है!
चंपा पेट के बल बीस्तर पर गीर जाती है.......वो अब भी सीसक रही थी!
ठाकुर ने चंपा के गांड पर थप्पड़ जड़ते हुए बीस्तर पर से खड़ा हो गया! और एक सीगरेट जला कर कश लेते हुए चंपा के बगल मे लेटते हुए बोला-
ठाकुर - आज तुझे चोदने में बहुत मज़ा आया चंपा रानी......!
चंपा सरक कर ठाकुर के सीने पर अपना सर रख देती है......और ठाकुर के गुच्छेदार सीने के बालो में अपनी उगंलीया घुमाती हुई बोली-
चंपा - आपको तो मज़ा आया.......पर मेरी तो जान नीकाल दी......कीसी कुत्ते की तरह चोद रहे थे......बेरहमीं से!
ये सुनकर ठाकुर.......चंपा का बाल पकड़ कर जोर से खीचता है.......जीससे चंपा की चीख नीकल जाती है!
ठाकुर - तूझे कुत्ते की तरह चोदा या घोड़े की तरह चोदा रे कुतीया!
चंपा (कराहते हुए बोली)- घोड़े की तरह चोदने के लीये घोड़े जैसा लंड होना चाहीए ......मालीक! आपका भी बड़ा है......लेकीन घोड़े जैसा दीखना भी तो चाहीए!
चंपा की बात ठाकुर को लग गयी.......उसने चंपा को खीच कर एक चाटा मारते हुए बोला-
ठाकुर - साली......इतने लंड में ही कुतीया की तरह चील्ला रही थी! और घोड़े जैसा लंड लेगी! चल जा.......मेरे लीये कुछ खाने को ला......मादरचोद!
ठाकुर कीबात सुनकर , चंपा बीस्तर पर से उठ जाती है! और अपनी साड़ी पहन कर भचक- भचक कर कमरे से बाहर जाने लगती है!
चंपा की बीगड़ी हुई चाल देख कर ठाकुर ने कहा-
ठाकुर - चाल तो ठीक कर ले.....जानेमन!
चंपा ने पीछे मुड़ कर ठाकुर को देखा और बोला-
चंपा - ऐसे चोदोगो तो.......चाल तो बीगड़ेगी ही ना!
ये कहकर चंपा कमरे के बाहर नीकल जाती है! चंपा जैसे ही सीढ़ीयों से नीचे उतर रही थी! शोभा की नज़र चंपा पर पड़ती है.....चंपा ठीक से चल नही पा रही थी......चंपा की चाल देखकर शोभा समझ जाती है.......की ठाकुर साहब ने इस कुतीया की जम कर मारी है!
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**विधायक के आदमी पप्पू के कनपटी पर बंदूक लगा देता है........और उसे बाहर ले जाकर गाड़ी मेँ बैठने को बोलते है!
कज़री ने देखा की......विधायक भी साथ में था! और रज्जो भी......कज़री समझ गयी की ज़रुर कुछ गड़बड़ है!
**जैसे ही विधायक की गाड़ी...चली, कज़री भी भागते हुए.....उस गाड़ी का पीछा करने लगती है|लेकीन कज़री बेचारी कहां तक पीछा करती......कुछ ही समय में विधायक की गाड़ी कज़री के नज़रो से......ओझल हो जाती है! लेकीन फीर भी कज़री अभी भी उस गाड़ी का पीछा कीये.....आगे बढ़ी जा रही थी!
कज़री.....भाग - भाग कर थक चुकी थी.....और वो गांव से काफ़ी दूर भी आ चुकी थी!
कज़री भागते-भागते एक मोड़ पर आकर खड़ी हो गयी! जहां से दो रास्ते गुज़रे थे!
वंहा पर दो सड़के दो दीशाओं में.......घुमी थी!
कज़री परेशान हो गयी......उसे कुछ समझ में नही आ रहा था की......आखीर विधायक पप्पू को लेकर कीस रास्ते गया होगा!
*कजरी के बदन पर पसीने ऐसे चढ़ गये थे, मानो वो नहा कर अभी-अभी आयी हो!
लाचार कजरी को कुछ समझ में नही आ रहा था.....तभी उसकी नज़र बांये तरफ मुड़ने वाली सड़क पर पड़ी.....उस सड़क के कीनारे थोड़ा सा कीचड़ था! और उसी कीचड़ में गाड़ी के पहीये का नीशान उसे दीखा!
.......कज़री को समझते देर नही लगी की, जरुर विधायक इसी रास्ते से गया होगा.....लेकीन ये रास्त तो जंगल की तरफ जाता है.....लेकीन फीर कजरी ने अपनी हीम्मत बांध कर खुद से बोली - मुझे कीसी भी हालत में ये पता करना होगा की.....विधायक ने पप्पू के सीर पर बंदूक तानते हुए ॥ उसे गाड़ी में बीठा कर क्यूं ले गया?
*"और यही सोचते हुए कज़री.....उस रास्ते पर अपनी कदम तेजी से बढ़ा देती है|
**रीतेश.....अजय के साथ अपने घर पहुचं कर....अपनी मां को आवाज़ लगता है|
लेकीन उसे उसकी मां की .....कोइ आवाज़ नही आती!
रितेश - अजय.....तू जरा आगंन और छत पर देख.....मां वहीँ होगी! तब तक मैं पैसे नीकाल लेता हूं|
अजय - ठीक है!
'ये कहकर अजय, आंगन की तरफ चल देता है! वो आंगन पहुचं कर कज़री को आवाज़ लगाता है.....लेकीन कज़री कहीं भी नही दिखती , अजय छत की तरफ चल देता है! छत पर पहुचं कर भी उसे कज़री वहा नही दिखी००
अजय छत से उतर कर सिधा रीतेश के पास आता है.....और बोला!
अजय - भाई कज़री काकी कहीं नही दीखी!
रीतेश - अच्छे से देखा था की नही?
अजय - यार ......आवाज़ भी लगायी थी!
रीतेश - फीर कंहा जा सकती है....चल थोड़ा बाहर देखकर आते है!
........अजय और रीतेश घर से बाहर नीकल कर कुछ गांव के लोगो से पुछता है.....लेकीन कीसी को कुछ नही पता था , और ना ही कीसी ने कज़री को देखा!
रीतेश को अपनी मां को ढ़ुढ़ंते हुए काफी समय हो गया......तो वो थोड़ा घबराने लगा! वो भरी धुप में एक पेड़ के छांव में अजय के साथ खड़ा हो गया!
तभी एक गांव का चरवाहा......अपनी बकरीया लीये आ रहा था..... वो जैसे ही रीतेश के पास पहुचां तो बोला!
..........अरे रीतेश बेटा.....तेरी मां ठेरी के जंगल की तरफ क्यूं भागते हुए जा रही थी!
ये सुनकर रीतेश के कान खड़े हो गये......!
रीतेश - दादा आपने......सच में मेरी मां को उधर जाते देखा......!
............अरे हां बेटा.........!
ये सुनकर.......रीतेश अजय की तरफ देखा॥ और फीर दोनो रास्तो पर अपने कदम काफी तेजी के साथ , बढ़ा कर भागने लगते है!
**कज़री अब तक बहुत थक चुकी थी, तेज धुप में भागते -भागते कज़री का ब्लाउज़ पसीने से भीग चुका था.......वो एक पेड़ की छाव में रुक गयी......ठंढ़ी हवाये जब चली तो उसके पसीनो को सुखाते हुए.....उसके थक चुके शरीर में उर्जा का प्रवास होने लगा!
थोड़ी देर कज़री उस पेड़ की छांव में रुकी....लेकीन कुछ समय बाद वो फीर से उठ"कर चल पड़ी!!!
कज़री के लीये वो जंगल का रास्ता ऐकदम नया था......वो कुछ दुर आगे चलने के बाद उसे खंडहर दीखाई पड़ा!
वो हैरान वस अपने कदम धिरे-धिरे उस खंडहर की तरफ बढ़ा दी.......!
कज़री......जैसे ही कुछ दूर आगे गयी! दो लोग पेड़ पर से छलांग लगा कर कज़री के आगे खड़े हो जाते है!
**कज़री उन दो लोग को देखकर डर जाती है**
उसमें से एक आदमी ने अपनी कमर पर बंधे रुमाल में दबी चाकू को नीकाल कर.....कज़री के आगे तानते हुए बोला-
.........कौन हो तुम.......और यंहा क्या कर रही हो!
कज़री तो मानो कीसी मुर्ती की तरह खड़ी रह गयी.....उसके मुह से कुछ आवाज़ ही नही नीकल रहा था!
उस आदमी की नज़र.......कज़री के मासुम और खुबसुरत चेहरे को देखकर.....जैसे वो भी कज़री में खो सा गया!
**उसकी नज़र कज़री के खुबसुरत चेहरे से होते हुए......जैसे ही कज़री के ब्लाउज़ पर पड़ी, तो उसके तो होश ही उड़ गये! कज़री का ब्लाउज़ पूरा पसीने से भीग गया था......और काले रंग की ब्लाउज कज़री की चुचींयो से एकदम चीपक गया था......कज़री की साड़ी भागने की वज़ह से अस्त - ब्यस्त हो गयी थी! और कज़री के ब्लाउज़ का एक बटन भी खुल गया था!! और उस आदमी को कज़री के ब्लाउज़ के बटन की जगह से जन्नत दीख गया.....उस आदमी का गला सुख चला.....वो अपने सुखे होठो पर अपनी जीभ फीराने लगा!!!
कज़री.......देखो मैं रास्ता भूल गयी हूं!! मुझे गांव की तरफ जाना था.....और मैं गलती से इधर आ गयी!!
***कज़री की बात का दोनो पर कोई असर नही हुआ** कज़री ने उन दोनो को गौर से देखा तो वो दोनो की नज़र उसके "* चुचींयो पर और एक की उसके कमर पर थी¡!
॥ कज़री ने झट से अपनी अधखुली चुचीयों और अपनी बीज़ली गीरा देने वाली गोरी और पतली कमर को अपने साड़ी से ठक लीया!!!
वो दोनो तो जैसे.........नीदं से जाग गये हो!! उनमे से एक ने कहा!!
........यार हमने ऐसा क्या पुन्य कर दीया की , हमारे सामने सामने अप्सरा आ कर खड़ी हो गयी!!!
उनकी बात सुनकर कज़री......थोड़ा सकपका गयी......उसने अपने कापंते हुए लफ्ज़ो में कहा-
कजरी - देखीये.....आप लोग मुझे जाने दीजीये....मैं रास्ता भूल गयी थी!! और यंहा गलती से आ गयी!
वो दोनो आदमीयों में से......एक ने बोला- कैसे जाने दे....हमने आज तक तुम्हारी जैसी खुबसुरत औरत सपने में भी नही देखा!!! देखते ही तुम्हारी खुबसुरती के कायल हो गये है!! माशाअल्लाह: क्या जीस्म पाया है तुमने.....हमारी तो देख कर ही पसीने छुट गये!
......कज़री के चेहरे पर ......परेशानी के बादल मड़राने लगे!!! वो कुछ बोलती उससे पहले ही वो दोनो आदमी कज़री की तरफ़ बढ़े--
ये देखकर कज़री.....मारे डर के अपने कदम पीछे लेने लगी!! वो दोनो कज़री की तरफ बढ़े आ रहे थे** कज़री के कदम एक पेड़ से टकरा गये......और वो गीरने को जैसे ही हुई उसे कीसी मजबुत बांहो ने थाम लीया..........
कहानी जारी रहेगी ...........