अपडेट****22
विधायक .......जैसे ही, बंदूक लेकर उठने की कोशीश करता है!! तभी एक गोली उसके सर के आर-पार हो जाता है*** और विधायक 'धड़ाम" से नीचे ज़मीन पर गीर जाता है!!
.........विधायक की हालत देख सब लोग अपनी नज़रें उठाते है, तो देखते है की......पप्पू के हाथ में बदूकं था......!!
विधायक की कहानी तो खत्म हो गयी थी.......बची रज्जो , उसको भी पप्पू मारने ही वाला था की.......उसकी मां सुधा ने रोकते हुए कहा-
सुधा - नही........बेटा, रहने दे.......औरतो को जान से नही मारते!!
सुधा की बात मानते हुए........पप्पू बंदूक ज़मीन पर फेंक देता है, और भाग कर अपनी मां को गले लगा लेता है!!
........सब के चेहरे पर खुशी थी, बरसो बाद एक बेटे को अपनी मां और एक मां को अपना बेटा जो मीला था!!
..........रीतेश और अजय अपने आँख के आंशू पोछते हुए अजय से बोला-
रीतेश - चल अजय......इस कुत्ते की लाश को ठीकाने लगा देते है!!
अजय - अरे भाई.......तुम भी क्या इस मादरचोद को.....
अजय इतना बोला ही था की......रीतेश ने अजय को बगल की ओर देखने का इशारा कीया......कहने का मतलब, सब यहां खड़े है और तू गाली दे रहा है......
अजय रीतेश का इशारा समझते हुए......दुसरी तरफ देखा तो सब उसे ही देख रहे थे!!
अजय शरमा गया.......और बोला-
अजय - हां.......तो नीकल गया मुहं से!! इस हरामी को देखकर!!
..........अजय की बात पर सब हंस पड़ते है......सुधा की भी हंसी नही रुकी और वो भी हसं पड़ती है!! बरसो बाद उसके चेहरे पर हसीं आयी थी......
अजय - अरे इस कुत्ते की लाश को भाई, तूम दो गज़ ज़मीन देना चाहते हो!!
रीतेश - तो फीर क्या करे....?
अजय .......विधायक के मृत शरीर को लात मारते हुए बोला-
अजय - फेंक देते है......पहाड़ी से नीचे .....नदी में!!
रीतेश - ठीक है........
उसके बाद.......रीतेश....अजय और पप्पू मीलकर सब की लाश को पहाड़ी के नीचे फेंक देते है!!!
और अपने घर की तरफ नीकल पड़ते है...........
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"***संकीरा पहाड़ी के मज़ींल के बीच एक घने जंगल में छोटा सा कबीला था!!
और इस कबीले में कुछ आदीवासी रहते थे!! और इस कबीले के सरदार जुम्मन साही एक पेड़ के नीचे.....बैठा था!!
**उसके आस पास सैकड़ो की संख्या में.....लोग खड़े थे!! उनके शरीर पर नाम मात्र का कपड़ा था.........!!
.....जुम्मन साही देखने में ही, खतरनाक लग रहा था!! बड़ी- बड़ी चौड़ी छातीया.......डाढ़ी-मूछ एक प्रकार से दानव ही लग रहा था!!
......उसके सामने एक आदीवासी......रस्सीयों में बधां था......और कुछ लोग अपने हाथो में भाला......लीये जोर से चील्ला रहे थे!!
तभी एक औरत ........दौड़ते हुए जुम्मन साही के पैरो में गीर गयी......और रोते हुए बोली-
...........सरदार ......दया करो.....छोड़ दो मेरे पति को.!!
जुम्मन साही......उस औरत को रोता देखा......जोर-जोर से हसां और बोला-
जुम्मन - माफी.........मैं उन लोग को कभी माफ नही करता , जो नेकी करना चाहते है!! और तेरे इस मरद ने तो........बली चढ़ने वाली बकरी को बचाने का प्रयास कीया!!
...........वो आदमी रस्सी से बधां हुआ ........बोला-
...........तू भी नेकी करना सीख, जुम्मन साही....नही तो एक दीन ऐसा आयेगा जब .....तेरी भी बली चढ़ेगी और उस समय तूझे बचाने वाला कोयी नही होगा!!
उस आदमी की बात सुनकर.......जुम्मन साही, आग बबूला हो गया.....वो पेड़ के बने हुए ओटले पर से उठा और अपना हाथ आगे करते हुए गुस्से में बोला-
जुम्मन - कोड़ा.......ला!!
जुम्मन की आवाज़ की दहशत से सारे आदीवासी सन्न हो कर खड़े हो जाते है!!
.......और तभी एक आदमी कोड़ा लाकर जुम्मन के हाथों में रख देता है!!
जुम्मन कोड़ा लेकर उसकी तरफ बढ़ा!! उस आदमी की औरत फीर से जुम्मन के पैरों को पकड़ कर रोने लगती है!!
ये देख जुम्मन फीर अपनी गुर्राती आवाज़ में बोला-
जुम्मन - क्या बात है......संपूरा? तेरी औरत तो कमाल की है.....मस्त चीज है, मेरा तो ध्यान ही नही रहा!!
जुम्मन की बात सुनकर.....संपूरा, अपने आप को छुड़ाने की कोशीश करता हुआ गुर्रा कर बोला!!
संपूरा - मेरी औरत को हाथ भी लगाया तो, तेरी खाल खींच कर रख दूगां ....जुम्मन!!
ये सुनकर .......जुम्मन जोर-जोर से हसंने लगा और बोला-
जुम्मन - तूने अपना कबीला तो बचा ही नही पाया.......और बात करता है की, तू अपनी औरत को बचायेगा!! बहुत अच्छा लग रहा है......सारड़ी कबीले का सरदार , आज मेरे सामने......रस्सीयों में बधां छटपटा रहा है!! अब वो दीन दुर नही जब........भींटा और तीमरा जैसे कबीलो को भी हांसील करने के बाद........मैं संकीरा तक पहुचं जाउगां!!
संपूरा - तू पागल हो गया है.......जुम्मन!! भींटा और तीहरा मेरे कबीले जैसा छोटा कबीला नही है.......जो तू उसे जीत लेगा!! अगर ऐसा करने का सोचा भी तो, जान से हाथ धो लेगा!!
संपूरा की बात सुनकर.......जुम्मन बोला!!
जुम्मन - अरे.......हट!! जुम्मन की नज़र जीस चीज पर पड़ती है, वो जुम्मन हासील कर लेता है!! तू अपनी जान की फीक्र कर ......!!
जुम्मन के पैरों में गीरी........सपूरां की औरत ! हाथ जोड़कर विनती करने लगती है की, वो संपूरा की जान बक्श दे!!
........उस औरत का गीड़गीड़ाना देख........
जुम्मन - जा.......इसकी जान बक्श दीया,
ये सुनकर संपूरा की औरत खुश हो जाती है......तभी!!
जुम्मन - लेकीन हर रोज़ ये मेरे सामने 20 कोड़े खायेगा.......तब जाकर मुझे सुकुन मीलेगा........|
ये कहकर.......जुम्मन ने अपने हाथ मे लीये कोड़े को.......एक आदमी की तरफ बढ़ाते हुए !! उसे 20 कोड़े लगाने को कहता है--
**वो आदमी कोड़ा लेकर संपूरा की तरफ बढ़ता है...... और वो संपूरा के नज़दीक पहुचं कर उस पर कोड़े बरसाने लगता है!!
..........हर कोड़े पर, संपूरा की चीख नीकल पड़ती......जीसे सुनकर संपूरा की औरत अपना सर नीचे कीये रोने लगती और जुम्मन खुश होता!!
.........करीब 20 कोड़े पड़ने तक.....संपूरा का दर्द से बुरा हाल हो गया......वो बेचारा दर्द ना सह पाने से.......बेहोश हो जाता है!!
जुम्मन - ले जाओ इसे.......और छोटी पहाड़ी के कारागार में डाल दो!!
और तभी जुम्मन पास में खड़ी कुछ औरतो को इशारा करते हुए उसकी औरत को ले जाने को बोला-
..........वो औरते संपूरा की औरत को लेकर चली जाती है, और कुछ लोग संपूरा को ले जाकर कारागार में डाल देते है !!
जुम्मन फीर से पेड़ की ओटले बैठ गया, तभी एक आदमी बोला-
............सरदार , करीब 100 लोग को बंदी बनाये है , और ये संपूरा के सैनीक है!! अब इनका क्या करना है?
जुम्मन कुछ बोलता......उससे पहले ही, संपूरा के सारे सैनीक उसके कदमो गीर जाते है........और जान की भीख मागने लगते है!!
.......जुम्मन अपनी डाढ़ी को सहलाते हुए, मुस्कुराने लगता है!! और अपने हाथ से ना मारने का इशारा करता है!! और बोला-
जुम्मन - तुम सब लोग आज से, हमारी सेना हो!!
......इतना सुनते ही संपूरा के सैनीक......जुम्मन की जय-जय कार करने लगते है!!
हालाकी उनकी भाषा कुछ हद तक अलग ही थी!!
जुम्मन .....एक नीहायती, घटीया और हैवान कीस्म का आदमी था....उसने अपने आदमीयों से कहा की, भीटां कबीले पर नज़र रखे.....और पता करे की उस कबीले का सरदार कौन है!! और उसकी सेना कीतनी है....और ये कहकर वो अपने कमरे में चला जाता है!!
...........शाम हो गयी थी.......बीच घने जंगल में जुम्मन के कबीले में......सब दीये जलाने लगे' कबीला प्रकाश की रौशनी में जगमगा गया, लेकीन तभी............तेज हवायें, चलने लगी!!
......चारो तरफ जंगल होने की वजह से.....हंवाये काफी ठंढ़ी हो गयी......बादल गरजने लगे......और आसमान से एक बूदं धरती पर टपका तो......देखते ही देखते बूदों की बारीश होने लगी!!
........संपूरा की औरत एक कमरे में बैठी थी, और कुछ औरते उसे नये वस्त्र पहना रहे थे......सजा -धजा रहे थे!! वो कुछ समझ नही पा रही थी........उसका दील जोर - जोर से धड़क रहा था.......एक तो बेचारी पहले सै ही!! अपने पति के लीये चीतींत थी.....वो अपने आप को सजता देख.....मिठे सपनो मे खो गयी!!
........उसे याद आया की जब उसका ब्याह, संपूरा से हो रहा था तो, ऐसे ही उसे सजाया-धजाया जा रहा था!!
ये सब सोच कर उसकी आंखो में.......आशूं भर गये!!
उसे रोता देख......एक औरत ने बोला-- अरे तू रो क्यूं रही है? तूझे पता नही क्या की, सरदार को रोने-धोने वाले लोग पसंद नही है|
संपूरा की औरत ने उस औरत से पूछा-- तूम लोग मुझे ऐसे क्यूं सजा - धज़ा रहे हो!!
उसकी बात सुनकर.........पास में खड़ी औरते हसने लगती है.......लेकीन कुछ बोलती नही!!
उन लोगो का हसना देख!! वो हैरान रह जाती है......की ये लोग क्यूं हंस रही है?
तभी वो औरते........वंहा से उठ कर चली जाती है........कमरे में वो अकेली ही कुछ देर बैठी रहती है........और अपने पति के बारे में सोचने लगती है की.......पता नही इन लोग ने कुछ खाने पीने को दीया भी है की नही.......वो ये सोच ही रही थी की तभी एक औरत अँदर आती है!! उसके हाथ में खाना था!!
..........वो औरत खाने की थाली लीये उसके पास आती है.......और बोली - चलो खाना खा लो!!
......संपूरा की औरत गुस्से में बोली - नही मैं नही खाउगीं.....तूम जाओ यहां से!!
वो औरत वंहा से चली जाती है.......संपूरा की औरत कुछ देर बैठने के बाद उठ कर......खीड़की की तरफ जाती है....और खीड़की जैसे ही खोलते ही......बारीश की बूदो का फव्वारा.....हवा के झोकें के साथ ही खीड़की से होते हुए उसके चेहरे पर पड़ने लगती है!! बहुत ही मस्ताना मौसम था.......उपर खीड़की से उसे चारो तरफ अँधेरा ही अँधेरा दीख रहा था........!!
**तभी दरवाज़ा खुलने की आवाज़ आती है!! और वो चौक कर दरवाजे की तरफ देखती है, तो दंग रह जाती है!!
..........दरवाज़े से जुम्मन अँदर आता है!! और फीर अंदर आकर दरवाज़ा बंद कर देता है!!
जुम्मन को देखने के बाद......वो उसे नज़र अंदाज करती हुई.......वापस खीड़की से बाहर देखने लगती है.......!!
जुम्मन अँदर आते ही बीस्तर पर बैठ जाता है......कमरे में दो - तीन चीमनी जल रही थी!! जो अंदर उजाला फैलाये थी.......जुम्मन ने एक छोटी सी सुराही से शराब नीकाल कर एक कटोरे में........डालते हुए एक ही सासं में गटक जाता है!!
..........जुम्मन ने अपनी नज़र खीड़की की तरफ़ की तो, देखा वो बाहर झांक रही थी.......उसके बदन पर एक नया वस्त्र था, जो की आदीवासीयो के जैसा था, कमर से लेकर घुटने तक का एक लाल वस्र था........और फीर पूरा पेट नीरवस्त्र था.......उरोजो को ठकने के लीये एक वस्त्र था जो की पीछे पीठ की तरफ आकर बंधी थी.......जीससे उसकी चौड़ी और गोरी पीठ भी दीख रही थी.......उसकी गोरी बांहे पूरी नगीं थी.......जुम्मन ने उसकी गोरी पीठ देखते हुए अपनी नज़रे नीचे की ओर की......उसकी चीकनी गोरी कमर से होते हुए कीसी पानी के मटके के आकार लीये उसके कमर की कटाव और फीर कमर के नीचे उसके नीतम्ब कीसी मटके के आकार में गोलायी लीये.......जुम्मन के दील की धड़कन को तेज कर दीया!! उसके बाल गुहे हुए थे.......और बालो की लम्बी चोटी उसके चुतड़ो के दरार तक लटक रही थी!!
........इतने सुहाने मौसम में........जंहा बादल गरज रहे थे.......और आसमान मे बीजली चमक रहे थे.......जो बीजली चमकने पर उसकी रौशनी खीड़की तक आती और खीड़की पर खड़ी संपूरा की औरत कयामत ढाते हुए ......जुम्मन के दीलो पर बीज़लीया गीरा देती!!
........यूं तो जुम्मन एक वहसी था.......हर रात वो कीसी ना कीसी औरत को नोच - खसोट कर अपनी हवस पूरी करता था........लेकीन आज ना जाने क्यूं उसने सँपूरा के औरत को गौर से देखने के बाद उसके दील की धड़कन धड़कने लगी|
***जुम्मन ने वापस से उस कटोरे में......शराब उलेड़ ली और फीर एक घुट में ही गटकने के बाद वो कटोरा रख कर उठ गया!! और फीर खीड़की की तरफ बढ़ने लगा!!
..........जुम्मन उसके एकदम नज़दीक आकर बोला-
जुम्मन - वंहा अधेंरे मे क्या देख रही हो?
वो बाहर खीड़की से देखते हुए बोली -- देख रही हूं की, कैसे पल भर में मेरी जीदंगी भी इसी तरह अंधेरे में खो गयी!!
जुम्मन - जो होना था वो हो गया.......अब तुम्हारी जगह यही हैं.......अब कीसी की भी उम्मीद लगा कर मत बैठना.......अब जो है यहीं है..........और ये बोलते हुए जुम्मन उसकी कमर पर हाथ रखकर सहलाने लगता है!!
........वो झट से जुम्मन का हाथ अपने कमर पर से झटक देती है!! ये देख जुम्मन मुस्कुराने लगता है.......और बोला-
जुम्मन - वैसे तुम्हे मैं कीस नाम से पुकारुं....अपना नाम तो तुमने बताया ही नही!!
........वो अब भी खीड़की से बाहर झांकते हुए बोली - अब तो हर चीज तुम्हारी मुट्ठी में ही है!! तो नाम भी कोयी तुम ही रख दो.......और वैसे भी जीसकी जीदंगी अंधेरे में खो गयी हो वहां उसे नाम से बुलाने वाला कौन होगा??
जुम्मन ने एक बार फीर अपना हाथ......उसके कमर पर रख कर सहलाते हुए बोला-
जुम्मन - अंधेरे का राजा हू मैं.......तो तुम्हे अंधेरे में अगर मुझे बुलाना हो.......तो!!
..........इस बार वो जुम्मन का हाथ अपने कमर पर से नही हटाती.......क्यूकीं वो जानती थी की मेरा वीरोध करना ब्यर्थ ही होगा......ये हैवान उसे छोड़ने वाला तो था नही!!
उसने कहा - मरीयम नाम है मेरा......
जुम्मन - वाह.......तुम्हारा नाम भी , तुम्हारी तरह खुबसुरत है.......!
.............और ये कहते हुए.......जुम्मन ने उसे पीछे से खीच कर अपनी बांहो में भर लेता है!! कीसी गैर की बांहो में खुद को पाकर ......मरीयम को अपने आप पर घीन आने लगती है!! लेकीन वो कुछ कर भी नही सकती थी.........!
***जुम्मन, मरीयम को अपनी बांहों में भरकर उसके गदराये पेट को अपनी उगंलीयो से .......सहलाने लगता है!! आखीर मरीयम भी एक औरत ही थी.......जीस्म पर मर्द का हाथ पड़ते ही........औरत बहकने लगती है। चाहे वो मर्द उसका पति हो चाहे कोई गैर!!
...........जुम्मन की उगंलीया इस तरह से मरीयम के पेट पर चल रही थी.....की मरीयम के बदन में कंपकँपी फैल गयी.......!!
'जुम्मन ने मरीयम का पेट सहलाते हुए......उसके गर्दन पर एक चुम्बन जड़ दीया!!
मरीयम - आ..........ह!!
मरीयम के मुह से ऐसी मादक सीसकारी सुनकर......जुम्मन के होठो पर हसीं फैल जाती है!!
जुम्मन ने अपनी उगंलीया.......मरीयम के पेट पर सहलाते-सहलाते एक उंगली उसके नाभी में घुसा देता है......जीससे मरीयम तड़प कर ......अपना मुह उपर करके जैसे ही एक मादक......आ.......ह करती है........जुम्मन पीछे से ही मरीयम के होठो को अपने होठो में.......दबोच लेता है, और उसके होठो को चूसने लगता है!!
***जुम्मन का शरीर इतना कभी भी कीसी भी औरत को चोदते वक्त उत्तेजीत नही हुआ था जीतना आज.......!!
जुम्मन पूरी मस्ती मेँ मरीयम के होठ चूसने का मज़ा ले रहा था!! वो मरीयम के कभी नीचे के होठ को चूसता तो कभी उपर के तो कभी पूरा का पूरा ही उसके मुहँ में घुसा कर चूसता!!
.............घने जंगल के बीच एक कबीले का सरदार........अपने दुश्मन को बंदी बनाकर , कारागर में ढकेल दीया था और उसकी पत्नी को अपनी बांहों में भरे हुए उसकी जवानी चख रहा था.......ये अहेसास जुम्मन के अंदर और जोश भर देता........और वो मरीयम को अपनी बांहों में और कस कर दबोचते हुए .........उसके होठो को चूसने लगता है!!
मरीयम........बस जुम्मन की बांहो में कीसी बेजान गुड़ीया की तरह खड़ी थी!! वो जुम्मन का विरोध तो नही कर रही थी.......लेकीन उसका साथ भी नही दे रही थी!!
........जुम्मन , मरीयम के होठ चूसते-चूसते.......अपने दोनो हाथ मरीयम के पेट से सरकाते हुए........उसके चुचीयों पर लाता है.......और जैसे ही वो उसकी चुचींयो को अपने हथेली में भरकर दबाता है.......उसे मरीयम की चुचीयां कठोर लगी.......इससे वो.....पागल हो जाता है.......मरीयम की चुचीयां सच में काफी बड़ी थी और उतनी ही कठोर भी!!
........जुम्मन , मरीयम की चुचीयां.......जोर-जोर से दबाने लगता है.......जीसके कारण मरीयम दर्द से.....तीलमीला जाती है.......वो चीखी लेकीन उसकी चीख एक दबी हुई घुटन बन कर ......उसके और जुम्मन के मुह मेँ ही गुजंने लगती है!!
मरीयम को तड़पता देख........जुम्मन और जोर -जोर से मरीयम के चुचीयोँ को बेरहमी से मसलने लगता है!!
...........मरीयम.........दर्द से और तड़पने लगती है.........और वो अपना हाथ ......खीड़की पर मारने लगती है!!
.....ये देखकर.......जुम्मन मरीयम की चुचीयों को छोड़ देता है.......और अपने होठ अलग करते हुए बोला-
जुम्मन - क्या हुआ ?
मरीयम..........कुछ बोलती नही और अपना सर नीचे झुका लेती है!!
.........अब जुम्मन , मरीयम को अपनी मज़बुत बाहों में उठा लेता है........और बीस्तर के पास पहुच कर मरीयम को कीसी कागज़ की तरह बीस्तर पर फेंक देता है!!
.......जुम्मन भी.......बीस्तर पर आकर मरीयम के उपर चढ़ जाता है........और फीर से उसके रसीले होठ को चूसने लगता है...........वो मरीयम के होठो को चुसते-चुसते उसके गर्दन और गालो को भी चुसने लगा था!!
......जीससे अब मरीयम को भी मजा आने लगा था......वो मरीयम के गले को चुमता हुआ.... उसके पेट को चुमने लगता है और अपनी जीभ नीकालकर , उसके पेट को चाटने लगता है.!! जीससे मरीयम सीहर जाती है.....
मरीयम - आ..........ह............उ........म्ह्ह्ह्ह.........आ.....ह!
मरीयम अब बीस्तर पर मचलने लगती है.......जुम्मन ने मरीयम का नीचे का अंग वस्त्र एक ही झटके में फाड़ देता है!! उसकी आंखे चौधींया जाती है.......मरीयम की छोटी और खुबसुरत बुर जीसके उपर हल्के-हल्के बाल थे....बहुत ही खुबसुरत लग रहे थे!!
.......अपने आप को जुम्मन के सामधे नीरवस्त्र पाकर.....मरीयम शरम से पानी-पानी हो जा रही थी!! उसने अपनी बुर को अपनी टांगे चीपका कर छुपाना चाहा........लेकीन, तभी जुम्मन ने मरीयम के दोनो टागों को अपर हवा मे...........उठाते हुए चौड़ी कर देता है!! और झट से अपना मुह मरीयम के बूर में लगाकर चाटने लगता है!!
मरीयम -- आह.........मां..........आह......आ....इ
..........मरीयम का बदन पूरी तरह गरम हो गया था........और उसकी बुर......गीली हो चुकी थी........जुम्मन ने......मरीयम की टागें छोड़ दी.....तब भी मरीयम अपनी टागें उपर उठाये थी.......जुम्मन समझ गया की अब ये पूरी तरह उसके काबू मेँ है!! उसने मरीयम के बुर की फाकों को अपने दोनो हाथो की उगंलीयों से चौड़ी करके ......अपनी जीभ जैसे ही मरीयम के बुर के गुलाबी छेंद मे........घुसायी तो मरीयम अपनी गांड उठा कर उछल पड़ी!!!
.......जुम्मन ने अपना पुरा मुहं मरीयम के बुर घुसा दीया और कीसी कुत्ते की तरह उसका बुर चाटने लगा!!
मरीयम -- आ..............ह............ह्म्म्म्म......करते हुए अपना हाथ जुम्मन के सर पर लगा कर अपनी बुर पर दबाने लगी.......ये देख जुम्मन और जोश मे आ गया.......और मरीयम की बुर में अपनी जीभ जैसे ही डाली.........मरीयम अपनी गांड उठा कर जुम्मन के मुह पर अपना बुर दाबाते हुए झड़ने लगती है!!!
.........कुछ देर बाद मरीयम लस्त हो कर हाफने लगती है.......जुम्मन भी अपनी तेज सासें लीये.......मरीयम के बगल में लेटते हुए बोला-
जुम्मन - मजा आया?
मरीयम कुछ बोलती नही और शरम से अपनी नज़रे दूसरी तरफ कर लेती है!!
जुम्मन - कुछ तो बोलो......लगता है मजा नही आया!!
तभी मरीयम धिमी आवाज़ में बोली!!
मरीयम - आया.......!
इतना सुनते ही........जुम्मन मरीयम को अपनी बांहो में भर लेता है.......और उसके होठो को चुसने लगता है.........और इस बार तो मरीयम भी जुम्मन का साथ दे रही थी!!
..........कुछ देर बाद दोनो हाफते हुए अलग हो जाते है!!
जुम्मन मरीयम की नज़रो में देखता हुआ......उसका एक हाथ पकड़ कर नीचे ले जाता है.......और अपने लंड पर मरीयम का हाथ रख देता है!!
...........मरीयम चौकं जाती है.......और नीचे देखती है तो उसकी आंखे फटी पड़ जाती है.....जुम्मन का मोटा लंड जो उसकी मुट्ठी में भी नही आ रहा था!!
जुम्मन - क्या हुआ पसंद नही आया?
........मरीयम शरमाते हुए धिरे से बोली-
मरीयम - बहुत मोटा.......और बड़ा है....!
जुम्मन के अंदर एक जोश सा भर गया , मरीयम के मुह से ये सुनकर........वो उठ कर मरीयम की टागें चौड़ी कर देता है.........मरीयम भी अपनी टागें फैलाये रखती
है.........जुम्मन ने अपने हाथ मे अपना लंड पकड़ कर मरीयम के बुर पर रखते हुए जोर का.....झटका देता है......
मरीयम - आ............इइइइइइइइइ........मर........ग.ईईईईईई!
मरीयम का दर्द से बुरा हाल हो गया था.......क्यूकीं जुम्मन बीना रुके जोर-जोर के धक्के दीये जा रहा था..........मरीयम के चेहरे पर दर्द की सीकुड़न साफ दीख रहा था.......उसकी आंखो से आंशू नीकल आये थे.......और बदन कांप रहा था.......जुम्मन के हर झटके पर मरीयम के साथ-साथ बीस्तर भी हील जाता..........
............आ........ब.........हुत..........दर्द.........हो र.......हा........है.......धिरे.......क.........रो!!
मरीयम की चीखें.........जुम्मन के लंड की ताकत बढ़ा देता ........वो मरीयम को कीसी जानवर के जैसे चोद रहा था..........उसका लंड खून से सन गया था........और मरीयम की बुर पूरी तरह खुल चुकी थी.........मरीयम का चील्ला -चील्ला कर बुरा हाल हो गया था!!
जुम्मन ......मरीयम के उपर लेट जाता है.........और मरीयम के उपर एक ही वस्त्र था जो उसकी..........चुचीयों को ढ़की थी........उसने एक झटके मेँ उसे भी फाड़ कर अलग कर देता है........और मरीयम को चोदते हुए........उसके चुचीयों को मुह में भर लेता है!!
.........दर्द का मंजर थमा तो मरीयम की चीखे.......सीसकीयों मे बदल गया.......उसने अपनी टागे........जुम्मन के कमर पर चढ़ा ली........और अपनी बाहें डालकर जुम्मन के सर को अपनी चुचीयों से चीपका ली!!
..........आ....'ह........आ.......ह..........आ........ह!!
जुम्मन अपनी गांड तक का जोर लगाकर मरीयम के बुर में अपना लंड आखीरी छोर तक घुसा देता..........!!
..........मरीयम का बदन अकड़ने लगा........और वो जुम्मन को कस कर पकड़ कर .........चील्लाते हुए झड़ने लगती है!!
जुम्मन भी मरीयम की कसी बुर को झेल नही पाया........और वो भी जोर का तीन -चार झटके मारता है.......और झड़ने लगता है!!
...........दोनो हाफते -हाफते एक दुसरे चीपके थे.........और अपनी सांसे काबू करने के चक्कर में कब नीदँ की आगोश में चले गये उन्हे पता भी नही चला...............
कहानी जारी रहेगी............