अब रवि में काफी सुधार था। उसके बोर्ड की एग्जाम की तैयारी बढ़िया चल रही थी। बीच बीच में तरुणा उसकी फैंटसी किसी न किसी रूप में पूरी कर देती थी। पर उसने उसे पढाई पर फोकस करने का परमिसे लिया था। मास्टरबेशन बंद था ताकि कमजोरी न हो।
एक दिन तरुणा को यूँ ही बैठे बैठे उस दूकान वाली लड़की की याद आ गई। उसने उसकी मदद जो की थी। एक दिन खाली बैठी थी तो उसने सोचा क्यों न उससे मिला जाए। वो उसकी दूकान पर जा पहुंची। सयोंग से उस दिन कोई नहीं था वहां। लड़की उसे देखते ही खुश हो गई।
बोली - कैसी हैं मैम? आपका काम हुआ ?
तरुणा - हाँ। थैंक्स फॉर हेल्प।
लड़की - थैंक्स कैसा? मुझे आपकी मदद करके अच्छा लगा।
तरुणा - चलो बढ़िया है। पर अफ़सोस रहेगा की मैं बदले में कुछ नहीं कर पाई।
लड़की - आपसे प्रॉमिस तो लिया है। कभी मांग लुंगी।
तरुणा - पक्का। जो कहोगी वो करुँगी। वैसे कभी मेरे घर भी आओ।
लड़की - जरूर।
कुछ देर इधर उधर की बातें करने के बाद लड़की ने पुछा - अआप्का सूट बचा है ?
तरुणा - क्या मतलब?
लड़की - नहीं , मुझे लगा कि आपके आशिक़ ने फाड़ दिया होगा।
तरुणा चौंक कर - क्या कहती हो ?
लड़की - अरे कुछ नहीं जाने दीजिये। बुरा मत मानिये।
पर तीर कमान से निकल चूका था। तरुणा भी जानना चाहती थी कि लड़की के मन में क्या है ? वो तरुणा के बारे में क्या सोचती है ? कितना जानती है ?
उसने पुछा - बुरा मानने कि बात नहीं है। तुमने पहले भी कुछ ऐसी ही बात कि थी और सूट दिलवाने भी चल पड़ी थी। बात क्या है ?
लड़की - आप नाराज़ न हो तो मैं बताऊँ।
तरुणा - मैं नाराज नहीं होउगी तुम सच सच बताओ।
लड़की ने बम फोड़ा - आप रवि की माँ हैं न? और आपने ऐसे कपडे उसके लिए ही पहने थे न?
तरुणा शॉक में थी। बोली - तुम कौन हो ? मुझे और रवि को कैसे जानती हो ?
लड़की - मेरा नाम रेखा है। दरअसल मैं रवि के स्कूल में ही पढ़ती थी । उससे दो साल सीनियर हूँ। आपको स्कूल में एक आध बार उसके देखा था।
तरुणा - तो तुम ये भी जानती होगी की रवि के पापा नहीं हैं फिर मेरे हस्बैंड का जिक्र क्यों किया ?
लड़की - आप मुझे गलत मत समझिये। पहली बार जब आप मिली तो मुझे लगा था की आपको देखा है तो कुछ समझ ही नहीं आया क्या बोलूं। आपको देख मुझे रवि की याद आ गई। दरअसल उसकी इस हालत के लिए मैं ही जिम्मेदार हूँ।
तरुणा - क्या ? रवि ने तो किसी लड़की का जिक्र कभी नहीं किया। उसे तो यंग लड़कियां पसंद भी नहीं। उसकी फैंटसी में सिर्फ बड़ी उम्र की औरतें हैं।
लड़की उदास होकर - जानती हूँ। वो भी मेरी वजह से ही है।
तरुणा का दिमाग घूम गया। उसे कुछ समझ नहीं आया। तभी दूकान पर एक आध कस्टमर आ गये। लड़की ने पेपर पर अपना पता दिया और कहा कल मेरी छुट्टी है। आप मेरे कमरे पर आएं मैं सब बताती हूँ।
तरुणा को कुछ समझ नहीं आया। वो घर चली गई। वैसे भी दूकान पर ये सब बात करना ठीक नहीं था। उसकी पूरी रात टेंशन में गुजरी।
अगले दिन उसने रवि को बताया की कुछ घंटे के बाद आएगी। रवि प्रिपरेटरी लीव्स बे पढाई में बिजी था। उसने कहा ठीक है।
तरुणा उस लड़की के बताये एड्रेस पर पहुंची। वो लड़की किसी मकान के छत पर बने एक रूम में रहती थी। लड़की ने उसे अंदर बुलाया और चाय पानी पिलाई।
तरुणा - ये सब बाद में पहले ये बताओ की तुम रवि की हालत के लिए खुद को क्यों जिम्मेदार बता रही थी।
लड़की - ठीक है मैं सारी बात बता दूंगी पर आपको प्रॉमिस करना होगा की आप मुझसे नाराज़ नहीं होंगी और मेरी हालत भी समझेंगी।
तरुणा - ठीक है, वादा है।
लड़की - पर ये वादा पिछले वादे से अलग है। वो प्रॉमिस आपको अब भी पूरी करनी पड़ेगी।
तरुणा - ठीक है।
लड़की - दरअसल मैं एक अच्छे घर से बिलोंग करती थी। मैं रवि से दो साल सीनियर थी। मेरी माँ भी बचपन में गुजर गईं थी। जब रवि के पिता का देहांत हुआ था तो वो दुखी दुखी रहने लगा था। वो अक्सर खेल के मैदान में अकेला रहता। पार्क में या क्लास में भी। उसके दोस्त काम ही थे। माँ की मौत की वजह से यही हाल मेरा भी था। एक दिन वो स्कूल के छत पर अकेला बैठा रो रहा था की मैं भी वहां पहुँच गई।
मैं खुद भी उदास थी पर उसकी उदासी देख मुझे अजीब लगा। मैंने उससे पुछा की वो क्यों रो रहा है ? शुरू में तो वो चुप रहा पर थोड़ी देर बाद मुझसे अपने गम के बारे में बताया। मैंने भी उसे बताया की मेरी माँ नहीं है। हम दोनों छोटे थे। अपने एक एक पैरेंट को खो चुके थे , एक दूसरे को रिलेट कर पाए। दोनों ने एक दुसरे को रोते रोते अपनी अपनी कहानी सुनाई। उस दिन के बाद से हम दोनों अच्छी दोस्त बन गए पर सेक्रेटेली। हम वहीँ मिलते जहां कोई नहीं होता। हम पढाई से लेकर टीचर्स, क्लासमेट सबकी बात करते। आप तो रवि को बहुत प्यार करती थीं पर मेरी हालत और भी बुरी थी। मेरी पिता एक नंबर के दारुबाज थे। माँ की मौत के बाद और भी पीने लगे थे। दारु पीकर मुझे बहुत मारते भी थे। मुझे घर का सारा काम करना पड़ता था फिर स्कूल और रात में भी घर का काम। घर के काम में कोई भी कमी हो तो पापा बहुत मारते थे। रवि से बात करके मैं सारा दर्द भूल जाती थी। धीरे धीरे जब हम बड़े हुए तो हमें बाकी चीजें भी समझ आने लहि। मैं उससे बड़ी थी तो ज्यादा समझ थी। जब मैंने हाई स्कूल में प्रवेश किया तो मुझे अपने बारे में और भी कुछ समझ आया। दरअसल मुझे लड़को में सिर्फ रवि ही अच्छा लगता था। बाकी सब मर्दों से नफरत सी थी। पर मैं हर जगह माँ को ढूंढती थी। माँ को ढूंढते ढूंढते ये समझ आ गया की मुझे औरते अच्छी लगती हैं। मुझे समझ आ गया की मैं गे हूँ। हम दोनों बाकी बातों की जगह लड़कियों की भी बाते करने लगे थे। ख़ास करके स्कूल की टीचर्स के बारे में। मैं रवि से टीचर्स को लुक्स , उनके बॉडी और फिगर के बारे में भी बात करते थे। खाली समय में हम दोनों किसी न किसी टीचर की बॉडी एनालिसिस कर रहे होते थे। अब सिर्फ मुझे ही नहीं बल्कि रवि को भी बड़ी उम्र की औरतें पसंद आने लगीं थी।
पर रवि के अलावा मेरी एक और दोस्त बनी जो मेरे ही क्लास में थी और मेरी तरह ही लड़कीबाज थी। उसे मुझमे इंटरेस्ट था। धीरे धीरे हम दोनों भी मिलने लगीं। ये बात मैंने रवि से नहीं बताई। मेरा रवि से मिलना काम होने लगा। पर मुझे पता नहीं था की वो मुझे पसंद भी करता है। एक दिन छत पर हम दोनों बैठे थे तभी रवि ने मुझे प्रोपोज़ किया। मैंने उसे जोर से डांट दिया और मना कर दिया। मैंने उसे ये नहीं बताया था की मैं गे हूँ और मुझे रवि सिर्फ एक दोस्त की तरह ही पसंद है। मैं डरती थी की कहीं रवि ये किसी और से न कह दे और मेरी बदनामी न हो जाये। रवि टूट गया। पर कहते हैं न कर बुरा तो हो बुरा। एक दिन फिजिक्स लैब में मैं और मेरी दोस्त आपस में एक दुसरे को किस कर रहे थे। तभी किसी ने देख लिया। ये बात सारे स्कूल में फ़ैल गई। मेरे पिता को जब पता चला तो मुझे बहुत मारा। मेरा स्कूल से नाम भी कटवा दिया और घर बिठा दिया। पर मेरी किस्मत में और भी बुरा लिखा था। कुछ दिनों बाद मेरे पिता का एक्सीडेंट हो गया। दारु पीकर रात में लौट रहे थे तभी किसी ट्रक ने चक्कर मार दिया। असिडेंट के कुछ दिनों बाद उनका देहांत हो गया। मैं पूरी तरह से अकेली पड गई। सब रिश्तेदारों ने दूरी बना ली। मैंने फिर मोहल्ला छोड़ दिया और छोटी मोती नौकरी करके पेट पालने लगी। तब से मैं अकेले ही रहती हूँ , और नौकरी से अपना गुजारा करती हूँ।
इतना सब बता कर लड़की रोने लगी। उसकी कहानी सुन तरुणा को भी रोना आ गया। दोनों वही बेड पर रोने लगीं। तरुणा ने उसे गले लगा लिया। रेखा का सर उसके छाती पर था। तरुणा एक हाथ से उसकी पीठ सहला रही थी और दुसरे से उसके सर को। रेखा ने सिसकना काम कर दिया था और उसने जोर से रेखा को भींच रखा था। थोड़ी देर बाद उसने सर उठाया और रेखा को चूम लिया। तरुणा चौंकी पर कुछ बोली नहीं।
रेखा ने उसकी आँखों में आँख डालते हुए बोला - आई लव यू। मैं आपको बचपन से प्यार करती हूँ। जब आप स्कूल आती तो मैं छुप चुप कर आपको देखती थी। आप जब रवि का हाथ पकडे चलती थी तो मेरा मन करता था की काश मैं भी आपकी उंगलिया पकड़ लू। माँ की तरह देखते देखते कब मैं आपसे प्यार कर बैठी पता ही नहीं चला। स्कूल छूटने के बाद माँ के बाद मुझे आपकी ही याद सबसे ज्यादा आती थी। मेरी उस क्लासमेट के बाद मैंने कभी किसी को अपने शरीर को छूने नहीं दिया। ये सोच रखा था की अकेली जिंदगी गुजार दूंगी। पर उस दिन आपको शॉप में देखा तो दिल पहले तो यकीन ही नहीं किया। पर फिर से उम्मीद जाग पड़ी है।
तरुणा ने उसे अपने से अलग नहीं किया। उसे इस मासूम सी लड़की पर गुस्सा नहीं प्यार आ रहा था।
उसने उसे बाँहों में भरे हुए ही बोला - मैं गे नहीं हूँ पगली।
रेखा ने देखा कि वो नाराज़ नहीं है तो उसने तरुणा को फिर से किस किया और कहा - मुझे फर्क नहीं पड़ता कि आप मुझे प्यार करती हैं या नहीं पर मैं आपको प्यार करती हूँ।
तरुणा ने कहा - तुम दोनों दोस्त एकदम पागल हो।
रेखा - हम दोनों को आपने ही पागल किया है।
तरुणा हँसते हुए - अच्छा , मैंने? अभी तो तुम कह रही थी कि रवि कि इस हालत के लिए तुम जिम्मेदार हो।
रेखा उदास हो गई। बोली - हाँ , शायद अपनी मस्ती के लिए उससे स्कूल कि टीचर्स के बारे में चर्चा नहीं करती तो शायद सब सही रहता। और तो और मैं गे न होकर स्ट्रैट होती और उसके प्रपोजल को मान लेती तो उसे यंग लड़कियों से नफरत नहीं होता।
तरुणा - शायद तुम ठीक कह रही हो पर जो हो गया वो हो गया। अपने आपको दोषी मत मानो। तुम वैसे भी काफी कुछ सह चुकी हो।
रेखा - तो आपने मुझे माफ़ कर दिया ?
तरुणा - मैं तुमसे नाराज़ हो ही नहीं सकती।
रेखा उठ कर बैठ गई और अपने दोनों पैर रेखा के दोनों पैरों को तरफ करके उसके गॉड में बैठ गई। फिर उसने तरुणा के ाणलखो में देखते हुए उसके होठो को चूम लिया। तरुणा पता नहीं क्यों अपने आप को बेबस सा महसूस कर रही थी। रेखा ने उसे फिर से किस किया और बार बार किया। तरुणा ने भी थोड़ी देर बाद उसका जवाद दिया और उसे किस कर लिया। अब दोनों एक दुसरे के होठ चूस रही थी। रेखा ने छोटी सी पेंट और टी-शर्ट पहन राखी थी। तरुणा के हाथ अब रेखा के नंगे चिकने जांघो को सहला रहे थे। रेखा के हाथ तरुणा के मुम्मो को दबोचे हुए थे। थोड़ी ही देर में दोनों टॉपलेस थी। अब हालत ये थी कि कभी रेखा तरुणा के मुम्मे दबाती तो कभी तरुणा रेखा के मुम्मे। तरुणा बेड के सिरहाने पर टेक लगा टांग सीधे किये बैठी थी और तरुणा उसके गोद में। थोड़ी देर ऐसे ही चूमने के बाद तरुणा के सामने रेखा खड़ी हो गई और अपने छोटे से पेंट को उतार दिया। तरुणा के चेहरे के सामने एक कुँवारी चूत थी। एकदम चिकनी , अनछुई। रेखा ने दीवार के सहारा लेते हुए अपने कमर को और आगे बढ़ाया और अपनी चूत को तरुणा के सामने कर दिया। तरुणा पहली बार किसी और चूत को नज़दीक से देख रही थी। रेखा ने अपनी नशीली आवाज़ में कहा - प्लीज इसे प्यार करो। सुनते ही तरुणा ने उसके हिप्स पर हाथ आगया और उसकी चूत को अपनी तरफ करके मुँह लगा दिया। रेखा ने जोर से सिसकी ली। अब तरुणा निचे बैठी थी और रेखा अपनी चूत उसके मुँह पर किये हुए खड़ी थी। तरुणा उसकी चूत पर धीरे धीर जीभ फिराने लगी। रेखा कि सिसकियाँ बढ़ती चली गईं। तरुणा कभी उसके चूत को चाटती कभी उसकी चूत में जीभ दाल देती। रेखा भी अपने कमर को आगे पीछे करके रेखा के मुँह से चुदाई करवा रही थी।
रेखा कि चूत अब पानी छोड़ रही थी। उसने सिसकारी लेते हुए कहा - चूत के पहरेदार कि भी सेवा करो न माँ।
तरुणा ने एकदम से रेखा के क्लीट को दाँतों से दबा दिया। अब वो उसके क्लीट पर टूट पड़ी थी। रेखा कि क्लीट नार्मल से थोड़ी बड़ी थी। एक छोटे से लंड कि तरह। तरुणा उस पर जीभ ऊपर नीचे करके चाट रही थी। रेखा के कमर भी एक रिदम में हिलने कागा था मानो वो खड़े खड़े चुद रही हो। थोड़ी ही देर में उसकी चूत ने खूब सारा पानी छोड़ दिया। पानी छूटते ही रेखा निचे बैठी और तरुणा के मुँह को चूमने चाटने लगी। वो अपने ही चूत के रस को वापस चाट रही थी।
तरुणा - अब खुश ? कर ली अपनी ख्वाहिश पूरी ?
रेखा - अभी तो आधी ही पूरी हुई है। आपका खजाना तो लूटना बचा है। कहकर उसने तरुणा कि पैंटी उतार दी। तरुणा ने अपने सलवार को पहले ही उतार दिया दिया। अब तरुणा बिस्तर पर लेती थी और रेखा उसकी चूत से खेल रही थी थी। पहले तो उसने प्यार से तरुणा के चूत को किस किया फिर उसने जीभी फिरानी शुरू की । अब सिसकियों की बारी तरुणा की थी। अब रेखा अपने जीभ से तरुणा के चूत को छोड़ रही थी। तरुणा ने दोनों हाथो से रेखा के सर को अपने चूत पर दबा दिया था।
तरुणा - हाँ , चाट लो मेरी चूत को। प्यासी है बहुत दिनों से। चूसो , चाटो। आह आआआआह। काट लो मेरी बुर को आहूत दिनों से परेशान कर रही है। बहुत शिकायत थी साली की लंड के इतने नज़दीक होते हुए भी नहीं चुद पा रही। लंड न सही जीभ ही सही।
रेखा - चिंता न करो , इसके अंदर लंड भी जायेगा। रवि के लंड बड़ा है न?
तरुणा मस्ती में थी। बोली - मस्त घोड़े जैसा है। पर ले नहीं सकती। इस लिए मेरी चूत ने भी मुझसे झगड़ा कर रखा है। तड़प रही है ये इसे शांत कर दो थोड़ा।
रेखा उसके क्लीट को चूसते हुए अपने दोनों हाथो को उसके मुम्मे तक ले गई और दबाने लगी। दोनों जगह हाथ लगने से तरुणा एकदम से झड़ने लगी। उसने रेखा को अपने पैरों के बीच में फंसा लिया था। एकदम जबरदस्त ओर्गास्म था। रेखा ने भी उसकी चूत के पूरा पानी पी लिया। फिर वो उसके गिरफ्त के हलके होते ही उसके मुँह के पास पहुंची और उसे किस करने लगी। दोनों ने एक दोस्सरे को फिर से एक जबरदस्त पैशनेट किस किया। दोनों की गर्मी शांत हो गई थी। थोड़ी देर बाद होश आने पर तरुणा को एहसास हुआ की क्या हो गया है। पर वो खुश भी थी। उसे आज पता चला की दीवानगी में क्या क्या हो जाता है। उसके तो दोनों दीवाने उसकी जिस्म के लिए पागल थे।
तरुणा उठी और बाथरूम में शुशु करने जाने लगी। जब वो दरवाजा बंद कर रही थी। तो रेखा ने कहा - दरवाजा बंद मत करना। मुझे तुम्हे मूतते हुए देखना है। तरुणा को भी ना जाने क्या मस्ती चढ़ी उसने दरवाजा बंद नहीं किया और मूतने लगी। रेखा उठ कर बाथरूम में आई और वही उसने सीटी बजाते हुए खड़े खड़े मूतना शुरू कर दिया। तरुणा कमोड पर और रेखा बाथरूम की दिवार पर। दोनों बेशर्मो की तरह एक दुसरे को देखते हुए मूत रही थी।
जब तरुणा बाहर आई तो बोली - तुम दोनों मुझे एकदम बेशर्म बना दोग।
रेखा - अभी तो सिर्फ मैं हूँ। कभी हम दोनों मिलकर एक साथ आपको बेशर्म बनाएंगे।
जिसकी चर्चा हो रही थी वो तो बेचारा पढाई में लगा हुआ था। उसे अपनी माँ को खुश करना था। उसे क्या पता था की उसकी माँ को कोई और भी ख़ुशी दे रहा है।