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सुनीता एक दम बेसुध अस्पताल में बैठी थी। उसे अपने कीये पर बहुत पछतावा था। लेकीन अब जो होना था वो तो हो गया था।
सुनीता की आंखो से आसूं , सुखने का नाम ही नही ले रहा था।
अस्पताल में सभी लोग मौजुद थे, अनन्या , आरती , कीरन और राजू।
ईन सब को तो ये पता भी नही था की, आखीर सुनीता ने सोनू को कीसलीये मारा!
खैर अनन्या से सुनीता काकी की हालत देखी नही गयी। अनन्या सुनीता के पास जाकर , उसके कंधे पर हाथ रखते हुए बोली -
अन्नया - अब चुप हो जा काकी, सोनू बील्कुल ठीक है।
सुनीता , अनन्या की बात सुनकर और जोर -जोर से रोने लगती है।
तभी वँहा फातीमा भी आ जाती है। वो कीसी तरह सुनीता को चुप कराके उसे घर ले कर आ जाती है।
सुनीता जैसे ही घर पहुचीं , वो फीर से रोने लगती है।
सुनीता - मुझे मेरे बेटे के पास जाना है।
फातीमा , सुनीता को समझाते हुए बोली-
फातीमा - देख सुनीता, इस समय तेरा सोनू के सामने जाना ठीक नही होगा! वो तूझे देखना भी नही चाहता!
फातीमा की बात सुनकर, सुनीता ने रोते हुए कहा-
सुनीता - हां तो , मैं उसकी मां हूं। अगर गलती से मार दीया तो। क्या वो मुझसे इतना नाराज़ हो जायेगा की बात भी नही करेगा!
फातीमा को सुनीता की बात पर बहुत तेज गुस्सा आया!
फातीमा - जब इतना ही प्यार था तूझे , तो मारने से पहले सोचा नही क्या? और तू कस्तूरी जब गांड मराने की औकात नही थी तो, क्यूं गांड मराने लगी उससे?
फातीमा का गुस्सा देख, सुनीता भी शांत हो गयी। तभी पास में खाट पर लेटी कस्तुरी ने बोला-
कस्तुरी - वो.....वो। फातीमा दीदी मैं तो बुर ही चुदवा रही थी। लेकीन पता नही मेरे मुहं से क्या नीकल गया जीस पर सोनू गुस्सा हो गया!
कस्तुरी की बात सुनकर , सुनीता बोली-
सुनीता - सब मेरी गलती है, जानते हुए भी की ये सब गलत है। फीर भी मैने सोनू को नही रोका लेकीन, अब आगे से वो तुम लोग के नज़दीक भी नही भटकेगा!
इस बात पर फातीमा को कुछ ज्यादा झटका लगा, लेकीन वो भी समझती थी की ॥ इस समय ये सब के उपर बात करना अच्छा नही होगा!
'' दीन गुजरता गया करीब दस दीन लगे , उसके बाद सोनू को अस्पताल से घर लाया गया!
इन दस दीनो में सुनीता को सोनू से मीलने नही दीया गया! और ये दस दीन सुनीता के लीये दस साल जैसे लगे!
''सुनीता आज बहुत खुश थी, क्यूकीं आज़ सोनू घर जो आने वाला था। इन दस दीनो में कस्तुरी भी खाट पर से उठ तो गयी थी, लेकीन सोनू ने उसकी ऐसी गांड मारी थी की, वो अभी तक अच्छे से चल नही पा रही थी।
खैर, राजू और उसके पापा ने सोनू को अस्पताल से सीधा घर ले कर आयें। सुनीता सुबह से ही कभी अंदर तो कभी बाहर आती जाती.....वो सोनू को देखने के लीये इतना बेताब थी की। जैसे ही सोनू घर पर आया , सुनीता सोनू की तरफ बढ़ी , लेकीन तभी फातीमा ने उसे रोक लीया और ना में सर हीलाते हुए बोली 'अभी नही'
सुनीता की पलके एक बार फीर भीग गयी, और जैसे भीख मागते हुए बोली !
सुनीता - बस एक बार! फातीमा
फातीमा - ठीक है, तेरा ही बेटा है। मैं कौन होती हूं रोकने वाली, लेकीन एक बार उसे खाना खाने दे, फीर मील लेना!
सुनीता बेचारी , मरती क्या ना करती अपनी आंखो में आशूं लीये दुसरे कमरे में चली गयी!
॥ बात तो सच है की, जीतना प्यार मां अपने बेटे से करती है, उसके आगे दुनीया का कोयी भी प्यार फीका है॥ एक औरत अगर वफा कर सकती है तो , सीर्फ मां के रुप में। क्यूकीं इस प्यार में कोयी स्वार्थ नही....ना ही पैसो का और ना ही जीस्म का।
वो तो कुछ नसीब वाले होते है, जीन्हे अपनी मां का प्यार सारी हदें तोड़ने के बाद मील जाता है।
सोनू खाना खाने के बाद, खाट पर लेटा अपनी आंखे बंद कर के, कुछ सोच रहा था की तभी उसके हाथ पर कीसी का हाथ महसुस हुआ।
सोनू ने अपनी आंखे खोली तो देखा की उसकी 'मां' बैठी थी।
सुनीता बीना कुछ बोलो सोनू को बड़े प्यार से , एकटक नीहारती रही......उसकी पलके अभी भी नम थी......सोनू भी अपनी नज़रे चुराई नही और उसने भी अपनी नज़रें अपनी मां के नज़रो से टकरा ली!
सुनीता - गुस्सा तो बहुत होगा तू मुझपे? लेकीन तेरे गुस्से से कहीं ज्यादा पछतावा मुझे हो रहा है।
सुनीता ने प्यार से सोनू के चेहरे को अपनी हथेलीयौं में भरती हुई फीर बोली-
सुनीता - मुझे माफ़ कर दे मेरे लाल ! कसम खाती हूं, आज के बाद कभी तूझ पर हाथ नही उठाउगीं! तेरे बीना मैं जी नही सकती.....
सोनू थोड़ा उठकर बैठता हुआ बोला-
सोनू - तूने सही कहा मां, तेरे बीना जीने का मतलब ही नही। सीर्फ ये जनम ही नही आने वाले हर जनम में मैं तेरे साथ जीना चाहता हूं। अब हर जनम में मैं तेरा बेटा बनूगां की नही ये तो नही पता। लेकीन सुना है की जो भी जोड़ा सात फेरे लेता है वो सात जनम तक का साथ पाता है। तो इसी लीये मैं अब तेरे साथ सात फेरे लूगां और सात जनम तक तेरे साथ तो जरुर रहूगां॥ भले ही हर जनम में तेरा पहला पती मेरा बाप ही क्यूं ना हो।
सुनीता की आंखे फटी की फटी रह गयी, वो कभी सोच भी नही सकती थी की, सोनू ऐसा भी सोच सकता है। उसके बदन में ना जाने कैसी कपकपीं दौड़ने लगी, मानो ज़मीन पैरो तले खीसक गयी हो।
सुनीता - ये....ये.....तू कैसी बाते कर रहा है। पागल हो गया है क्या....शरम नही आती तूझे?
सोनू थोड़ा मुस्कुराया और फीर बोला-
सोनू - शरम तो तूझे आनी चाहीए, अपने होने वाली पति से कोयी ऐसे बात करता है ?
सोनू ने अभी अपनी बात, पूरी भी नही की थी की- उसके गाल पर जोर का तमाचा सुनीता ने जड़ दीया!
सोनू अपना गाल थामे फीर एक बार मुस्कुराया और बोला-
सोनू - ओ.....हो! अभी कुछ देर पहले तो बड़ी कसमें खायी जा रही थी की, आज के बाद कभी हाथ नही उठाउगीं तो अभी क्या था? अच्छा.........मै भी कीतना पागल हूं! वो कसम तो मां के नाते ना मारने की थी, शायद ये थप्पड़ मेरी होने वाली पत्नी ने मारा है!
सुनीता अपने दोनो हाथो सें अपने कान को दबाती हुई बोली-
सुनीता - चुप.......हो जा.......भगवान के लीये चुप हो जा! ये सब सुनने.........
तभी सोनू ने अपनी मां की बात काटते हुए बोला-
सोनू - पुराना हो गया है!
सुनीता अपने कानो पर से हाथ हटाते हुए बोली !
सुनीता - क्या बोला तूने?
सोनू - यहीं की ये सब पुराना हो गया है!
सुनीता - क्या पुराना हो गया है?
सोनू - यही अभी जो तू बोल रही थी की, ये सब सुनने से पहले मै मर क्यूं नही गयीं.....अगैरा - बगैरा!
सुनीता - हे भगवान! इतनी बड़ी बात कह कर अभी तू मज़ाक कर रहा है। मेरे मार से तेरा उपर का ढीला तो नही हो गया!
सोनू - अरे ऐसा क्या कह दीया मैने?
सुनीता चौकंते हुए) - हे भगवान ! तूने अभी कहा की तू मुझसे शादी करेगा और बोल रहा है की ऐसा क्या कह दीया तूने!
सोनू अपने चेहरे पर एक हल्की मुस्कान लाते हुए बोला -
सोनू - हां तो सीर्फ शादी करने के लीये बोला है, ताकी एक बार तू मेरी पत्नी बन जाये तो तू मुझे मार ना सके। नही तो तू मेरी जान ही ले लेगी........बाकी और कुछ गंदा मत सोच तू!
ये सुनते ही सुनीता, इतनी जोर से हसने लगी की, मारे हसीं के ओ कुछ बोल नही पा रही थी। सुनीता को हसता देख सोनू भी हसने लगा!
सुनीता - हे भगवान ! तूने तो मेरी जान ही नीकाल दी थी। मुझे लगा की तू........
सोनू बीच में ही बात काटते हुए बोला-
सोनू - तूझे लगा की मैं सच में तूझसे शादी करुगां!
सुनीता - हां !
सोनू - मेरा दीन इतना भी खराब नही है की, मै बुडंढ़ीयों से शादी करुं!
ये बात शायद सुनीता को अच्छा नही लगा, और वो मज़ाक में ही बोली -
सुनीता - अच्छा........अगर बुड्ढ़ीया पसंद नही है, तो फीर फातीमा और कस्तुरी के तलवे क्यूं चाटता है?
सोनू - तूने शायद ध्यान से देखा नही, मै नही बल्की वो लोग चाटती है मेरा ....लं
सोनू आगे कुछ बोलता , इससे पहले ही सुनीता ने उसके मुह पर अपना हाथ रखते हुए बोली-
सुनीता - चुप कर बेशरम, अपनी मां के सामने ऐसी बात करते हुए शरम नही आती!
सोनू - जब मां को देखने में शरम नही आयी, तो भला मुझे बोलने में क्या शरम ?
सुनीता मारे शरम के पानी - पानी हो गयी....लेकीन फीर भी उसने अपना सर नीचे कीये बोली-
सुनीता - मैने क्या देख लीया?
सोनू - क्यूं उस दीन देखा नही तो मारा क्यूं?
सुनीता के पास अब कोयी जवाब''नही था! लेकीन फीर भी शरम करते हुए बोली-
सुनीता - अरे.....वो....'वो ....मैं!
सोनू - क्या ......वो.....वो मैं?
सुनीता अपने गीर हुए बालो के लटो को अपने कानो पर चढ़ाती हुए हीचकीचाते हुए बोली-
सुनीता - वो....तो मैं.....उस दीन पानी लेने आंगन में गयी थी तो, मुझे चीखने चील्लाने की आवाज़ सुनायी दी । तब मैं उपर आयी, नही तो मुझे क्या पड़ी थी?
सोनू - चल अच्छा हुआ मां की तू ''औरत'' नही है,॥
सुनीता ने झट से अपनी नज़रे सोनू के तरफ करते हुए बोली-
सुनीता - तू पागल - वागल हो गया है क्या? मैं औरत नही हूं क्या?
सोनू को आज पहली बार अपनी मां से बात करने में बहुत मज़ा आ रहा था!
सोनू - अगर तू औरत होती तो, तेरा भी मन करता ये सब करने को!
सुनीता को अंदाजा भी न था की, सोनू ये बात भी बोल देगा!
सुनीता - तू तो बेशरम है ही, मुझे भी बना रहा है, लेकीन जब तूझे शरम नही तो भला मै तेरे सामने क्यूं शरम करु। तूझे जानना है ना मेरा मन करता है की नही। अरे पागल मैं भी एक औरत हूं , कभी - कभी मन करता है।
सोनू - तो फीर क्या करती है मां तू (अपना हाथ जगन्नाथ)
ये बोलकर सोनू हंसने लगता है.......इस पर सुनीता बोली-
सुनीता - मतलब क्या है इसका?
सोनू जोर - जोर से हंसते हुए अपनी एक उगंली बंद मुठ्ढी में से खोलकर आगे - पीछे करते हुए इशारा कीया!
ये देखकर सुनीता शरम से लाल हो गयी, वो थोड़ा मुस्कुराते हुए सोनू को मज़ाकीया अँदाज में मारने लगी!
सुनीता - मैं तेरे साथ बात नही कर पाउगीं, इतनी गंदी बात अपने मां से ऐसे कर लेता है की मुझे भी पता नही लगता!
सोनू - हां तो गलत क्या बोल दीया? अब मन करता है तो, पापा तो है नही ! बाहर का तो सवाल ही नही उठता तो बचा तो वहीं ना!
सुनीता - बेटा ये बात तू भी अच्छी तरह से जानता है की पूरे गांव के मर्द मेरे एक इशारे पर क्या-क्या कर सकते है,. (और फीर सुनीता मज़ाकीया अंदाज में) - लेकीन फीर सोचती हूं की, अगर बाहर कही कुछ मैने कर दीया तो , तू कहीं मुह दीखाने लायक नही रहेगा!
सोनू - रुको........ये क्या बात हुई की , मुह तू काला करवाये और बाहर मैं मुह दीखाने लायक नही रहुगां?
सुनीता हंसते हुए बोली - हां बेटा, क्यूकीं बाहर तो तू ही घुमता हे। तो लोग तूझे ताना मारेगें ना की इसकी मां क्या-क्या गुल खीला रही है।
सोनू - तो इसका मतलब, तू मेरे लीये इतना कुछ सहती है मां!
सुनीता नाटकी अंदाज में मुहं बनाते हुए बोली!
सुनीता - और नही तो क्या ?
सोनू - नही मां मैं अब तूझे और नही सहने दे सकता , कल से मैं आ जाउगां रात में ॥ अब तूझे और उंगली करने की जरुरत नही!
सुनीता ये सुनकर हंसने लगी और बोली -
सुनीता - ओ.......हो, जरा इन शाहबजादे को देखो कैसे मौका मार रहे है!
सोनू - इसमे मौका मारने की क्या बात है, जब तू मेरे लीये इतना कर रही है, तो मेरा भी फर्ज़ तो बनता है ना मां!
सुनीता - तो.......तू ही क्यूँ? तू बाहर कीसी के साथ भी तो बोल सकता था ना!
सोनू - क्यूं मुझसे डर लग रहा है?
सुनीता - तुझसे क्यूं डर लगेगा?
सोनू - अरे मेरा मतलब, मेरे उस चीज से!
सुनीता को समझते देर नही लगी, की सोनू अपने लंड के बारे में बात कर रहा है।
सुनीता - बेशरम! कही का, अभी इतना भी बड़ा नही हुआ है तू!
सोनू - अच्छा.......तो इसका मतलब अभी और बड़ा होगा?
सुनीता मरती क्या न करती, इस बात पर जो हंसना चालू कीया तो रुकने का नाम ही नही ले रही थी.......सोनू भी हस -हस कर थक चुका था!
सोनू - अच्छा.......मां अब तू जा। मुझे थोड़ा आराम करने दे!
सुनीता - क्यूं मन भर गया क्या मां से , बेशरम!
सोनू - नही मां, बस थोड़ा आराम करने का मन कर रहा है।
सुनीता - अच्छा.......ठीक है तू, आराम कर ॥ और हां तूझे बुरा लगा हो तो माफ कर देना!
सोनू - कीस बात का मां?
सुनीता - वही ......बाहर कीसी के साथ मैं चक्कर चलाउ तो, 'उस बात का!
सोनू - और मुझे भी माफ़ कर देना मां !
सुनीता - कीस बात के लीए?
सोनू - वही ........मेरे साथ चक्कर चलाने वाली बात के लीये!
सुनीता कुछ देर तक कुछ नही बोली ॥ लेकीन फीर मुस्कुरा कर बोली!
सुनीता - मां के साथ चक्कर चलाना इतना आसान नही...........!
सोनू - मुश्कील भी नही !
सुनीता - हां......बल्की बहुत मुश्कील है!
सोनू - मुश्कील से हासींल की हुई चीज ही ''सुख देती है।
सुनीता - दुनीया - समाज क्या बोलेगी?
सोनू - मेरी दुनीया तो तू हैं॥
सुनीता - मुझे छोड़ दे मेरे हाल पर.......तू शादी कर ले!
सोनू - अब तो दुनीया गयी भाड़ में माँ। अब तू ही मेरी पत्नी बनेगी!
सुनीता - बस ........बेटा। सपने मत दीखा......अकेले रहने की आदत हो गयी है। मेरी कीस्मत में जीवनसाथी नही बल्की सुनी राहें है ! बस
सोनू - एक बात पुछुं ?
सुनीता - ह्मम्म्म.....
सोनू - सुनी राहों पर साथ चलने का हक देगी मुझे?
सुनीता - तुझसे अच्छा हमसफर कोई नही। लेकीन इसका हक़ मैं नही दे सकती!
सोनू - अब तू मुझे पागल कर रही है मां, तुझे पता है । मन कर रहा है तूझे बाहों में भरकर अपना बना लू! लेकीन बीना तेरी सहमती के कर भी नही सकता!
सुनीता - तूझे क्या ? तेरे पास तो दो - दो है।
सोनू - पर तेरी बांहो में जो मज़ा है, वो कही नही!
सुनीता - मां ऐसी ही होती है। मां बनकर बाहों में भरे तो सारे दुख समेट ले। और पत्नी बनकर बाहों में ले तो आनंद की चरम पर बीठा दे!
सोनू - तो हमे रोक कौन सी चीज रही है मा।
सुनीता - मा - बेटे का पवीत्र रीश्ता!
सोनू - जीस दीन ये रीश्ते की दीवार टुटी.....उस दीन.!
तभी सुनीता ने अपनी एक उगंली सोनू के मुह पर रख कर चुप कराते हुए बोली-
सुनीता - मुझे पता है....तेरी..............बेरहमी!
सोनू - सह तो लोगी ना .!
सुनीता ने ऐसी शरम की लालीमा अपने चेहरे पर बीखेर कर बोली की .........सोनू का दील धड़कने लगा.!
सुनीता -- वो ........तो हर औरत करती है।