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Adultery बैंक की कार्यवाही मजे लेकर आई (Completed)

Kahani kaisi hai?

  • Achhi hai.

    Votes: 12 100.0%
  • Buri hai.

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  • Total voters
    12
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kumarrajnish

kumaruttem
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ऑफिस में पूरा दिन ऐसे ही गुजर गया। एक तो मनीषा और रामया आई नहीं, और उपर से सुमित का कल मनीषा ने दिल तोड़ दिया तो वो तो बेचारा उसी गम में डूबा हुआ था और फिर बॉस भी नहीं आये।
मुझे हंसी भी आ रही थी, और बेचारे सुमित पर तरस भी आ रहा था। हुआ कुछ यूं कि उसने कल शाम को ही मनीषा को परपोज कर दिया। अब चार-पांच दिन में ही कोई किसी को परपोज करेगा तो दिल तो टूटेगा ही, शुक्र तो इस बात का था कि थप्पड़ नहीं पड़ा।
पूरी बात क्या हुई, ये तो उसने बताई नहीं और पूरे दिन गुमशुम बैठा रहा, मैंने कोशिश भी की बेचारे का गम बांटने की, पर अब मैं भी क्या कर सकता था।
तो पूरा दिन ऐसे ही बोर होते हुए बीत गया। बॉस भी बस एक बार आये और कोमल भी उनके साथ ही चली गई। जब तक वो ऑफिस में रही, तो बॉस के केबिन में ही रही। तो उससे भी बस हाय-हैल्लो के अलावा कुछ बात नहीं हो पाई।
कुछ अपना गम और बेचारे सुमित का गम और मिल गया उसमें तो थोड़ा ज्यादा ही सेंटी हो गया, तो 3 बजे ही बॉस को फोन किया और घर जाने की कह दी। सुमित भी मेरे साथ ही निकल लिया। पियोन ने लॉक लगाकर चाबी मुझे दे दी और मैं घर के लिए चल पड़ा।

हैल्लो, दिन में भी सोते रहते हो, रात को तारे गिन रहे थे, अभी हल्की सी आंख लगी ही थी कि मुझे नवरीत की आवाज सुनाई दी। एकबार तो समझ में नहीं आया कि क्या है, परन्तु ही पल में उठकर बैठ गया।
हाय, सामने नवरीत खड़ी थी, उसने जींस और शर्ट पहनी हुई थी। मैंने आंखें मसलते हुए उसकी तरफ देखा।
हाय, कैसे हो, नवरीत ने मेरे बालों में हाथ डालकर बालों को बिखेरते हुए कहा।
ठीक हूं, बैठो, मैंने थोड़ा साइड में होते हुए कहा।
नवरीत मेरे से सट कर बैठ गई।

कल तुम इस तरह भाग गई, बहुत बुरा लगा, मैंने रसोई में पानी पीते हुए कहा।
अब मैं क्या करती, नवरीत ने बस इतना ही कहा।
ऐसे एकदम से इस तरह थोड़े ही भागकर जाते हैं, मैंने बैठते हुए कहा।
छोड़िये ना उस बात को, आज मैं किसी और काम के लिए आई हूं, नवरीत ने कहा।
किस काम के लिए, मैंने उसकी तरफ देखते हुए कहा।
नवरीत के गालों पर लाली चमक रही थी और उसके होंठ हल्के हल्के कांप रहे थे।
थोड़ी देर तक नवरीत कुछ भी नहीं बोली और नीचे नजरें करके बैठी रही। मैं उसके बोलने के इंतजार में उसकी तरफ देखता रहा।
मुझे तुम्हारे साथ प्यार करना है, उसने एकदम से कहा और अपना चेहरा दूसरी तरफ कर लिया।
उसकी बात सुनकर मैं एकदम से शॉक्ड रह गया और गौर से उसकी तरफ देखने लगा। मैंने उसका चेहरा अपनी तरफ घुमाया, उसकी आंखें बंद थी और गाल होंठों के साथ फड़क रहे थे। चेहरा एकदम लाल हो गया था और सांसे तेज चल रही थी।
ये क्या कह रही हो तुम, तबीयत ठीक है ना तुम्हारी, मैंने उसकी ठोडी से पकड़कर चेहरा उपर उठाते हुए कहा।
उसने एक झटके से अपनी आंखें खोली और उसके हाथ मेरे सिर पर आकर टिक गये और अगले ही पल उसके होंठ मेरे होंठों पर थे और वो बुरी तरह उन्हें चूस रही थी। एक पल को तो मैं हड़बड़ा गया, पर फिर उसे धीरे से खुद से अलग किया।
देखो, अभी प्रीत भी यहीं पर है, वो उपर आ गई तो प्रॉब्लम हो जायेगी, मैंने उसकी आंखों में देखते हुए कहा।
प्रीत आज दिन में ही अपने मामा के यहां चली गई है, नवरीत ने कहा और फिर से मेरे होंठों पर टूट पड़ी।
तुम्हें कैसे पता, बड़ी मुश्किल से उसको खुद से दूर कर पाया था इस बार मैं।
मैं दिन में आई थी, नवरीत ने जल्दी से कहा और अपनी शर्ट के बटन खोलने लगी। आई तो सोनल से मिलने थी, पर वो यहां पर नहीं थी, वो अपने मामा के यहां गई है, फिर आंटी के कहने पर प्रीत भी मामा के यहां चली गई, सोनल कल सुबह आ जायेगी, नवरीत के शर्ट के सभी बटन खुल चुके थे और लाल ब्रा में कैद उसके उन्नत उरोज अनावरत हो चुके थे।
पर---- मेरे मुंह से इतना ही निकला था, कि नवरीत की उंगली आकर मेेर होंठों पर टिक गई।
सीसससश्श्श्श्श्श्श्----- उसके होंठों से निकला और उसने अपनी शर्ट को उतार कर एक तरफ रख दिया।
उसके संगमरमरी बदन को देखकर मेरी नियत भी खराब होने लगी, परन्तु मैंने खुद पर कट्रोल रखने की कोशिश की।

देखो, ये सही नहीं है, मैं तुम्हारी बहन से प्यार करता हूं, मैंने कहा।
तो क्या हुआ, इस हिसाब से मैं तुम्हारी साली लगी ना, और वैसे भी अब तुम्हारी शादी उससे नहीं हो सकती, नवरीत ने ब्रा के हुक खोलते हुए कहा। वो बहुत ही जल्दबाजी से अपने कपड़े उतार रही थी।

पर यहां पर कोई भी आ सकता है, तुम सम-------- उसके ब्रा से आजाद हुए उभारों ने मेरी सिटीपिटी गुम कर दी, मेरा मुंह खुला का खुला रह गया, एक पल को दिमाग ने काम करना ही बंद कर दिया। एकदम कसे हुए, उसकी तेज चलती सांस के साथ ऐसे उपर नीचे हो रहे थे जैसे निमंत्रण दे रहे हैं, न ज्यादा बड़े और न ही छोटे, आराम से एक हाथ में समा जाये, एकदम गोल-गोल और हद से ज्यादा गोरे, उन पर हल्के गुलाबी गोले के बीच लालिमा लिये छोटे छोटे निप्पल।
नवरीत को मेरी हालत पर हंसी आ गई। मैं एकदम से झेंप गया। ‘पसंद आये तुम्हें’, नवरीत ने मेरा हाथ खींचकर अपने एक उभार रख दिया। मेरी तो नजर वहां से हटने का नाम ही नहीं ले रही थी। इतना नर्म की रूई भी शर्मा जाये।
मैंने अपने सिर को झटका और उसकी शर्ट उठाते हुए उसे पहनाने लगा। मेरी इस हरकत से नवरीत एकदम बौखला गई और धक्का देकर मुझे बेड पर गिरा दिया और मेरी दोनों तरफ पैर करके मेरी जांघों पर बैठ गई। मेरे हाथों की उंगलियां उसके हाथों की उंगलियों में फंस चुकी थी और नवरीत मेरी तरफ देखकर मंद मंद मुस्करा रही थी।
लगता है आज घर से पूरी तैयार होके आई हो, मैंने थोड़ा कसमसाते हुए कहा।
सोच रही थी कि जब तुम मेरी शर्ट के बटन खोलेगे तो मुझे कितनी शर्म आयेगी, पर यहां तो सब कुछ उलटा है, शर्म करूंगी तो कुछ नहीं मिलने वाला, नवरीत ने कहा और मेरे उपर लेट गई। अगले ही पल मेरे होंठ उसके फडफड़ाते होंठों के बीच कैद थे। नवरीत ने अपने हाथ नीचे किये और मेरी शर्ट को उपर की तरफ खींचने लगी। मेरी कमर नीचे से हल्की सी उठ गई और नवरीत ने अपने शरीर को मेरे शरीर से थोड़ा सा उपर उठाते हुए शर्ट को उपर गले तक खींच दिया और वापिस मेरे उपर लेट गई। उसके होंठ एक पल के लिए भी मेरे होठों से अलग नहीं हुए। उसके उभार मेरी छाती पर दब गये। शरीर में एक आनंद की लहर दौड़ गई। कुछ देर बाद नवरीत ने मेरे होंठों को छोड़ा और हांफती हुई मेरे चेहरे की तरफ देखने लगी। उसके हाेंठों पर कातिल मुस्कान थी।
तुम इस तरह कैसे मुस्करा सकती हो, जबकि तुम्हारी बहन की शादी किसी ऐसे से हो रही है जिससे वो नहीं चाहती।
नवरीत का चेहरा एकदम सीरियस हो गया, परन्तु अगले ही पल उसके होंठों पर फिर से मुस्कान फैल गई। ‘वो उसकी गलती है, मैं उसे बहुत समझा चुकी हूं, पर वो तो तुमसे बात भी नहीं करना चाहती, तो भुगतना तो उसको ही पड़ेगा, मैं क्यों परेशान होउं, जब वो मेरी बात ही नहीं मानती, मैंने तो उसे भाग जाने की भी कह दी, पर वो तो तुमसे बात ही नहीं करना चाहती’, नवरीत के चेहरे पर थोड़ी सी मुस्कराहट के साथ ही बैचेनी भी थी। ‘अब ऐसा ना हो कि मुझे तुम्हें भी समझाना पड़े, क्योंकि मैं अभी समझाने के मूड में बिल्कुल नहीं हूं’। नवरीत खड़ी हुई और अपनी जींस खोलने लगी। मैं आंखें फाड़े उसे देखे जा रहा था। वो जिस तरह से हड़बड़ा रही थी, जल्दबाजी दिखा रही थी जींस उतारने में, मुझे एक अलग ही आनंद आ रहा था, इसलिए मैं बस लेटे हुए उसे देखता रहा। उसकी जींस उसके जिस्म से अलग हो चुकी थी और वो वैसे ही मेरे उपर खड़ी हुई मुस्कराते हुए मुझे देख रही थी। उसका अंग अंग फड़क रहा था। उसका पेट बार-बार उछल रहा था। गाल एकदम से लाल हो चुके थे और आंखों में लाल डौरे तैर रहे थे। एकदम सपाट पेट और उपर से नीचे की तरफ लम्बी नाभि, भरी हुई मांसल जांघे, और उनके बीच व्हाईट पेंटी में छुपी पानी बहाती स्वर्ग की देवी, अपने सामने साक्षात काम की देवी को देखकर मेरा बुरा हाल हो चुका था।
नवरीत थोड़ा सा पिछे हुई और मेरे घुटनों पर बैठ गई। उसने एकबार कातिल निगाहों से मेरी तरफ देखा और फिर मेरी जांघों पर नजर गड़ा दी। उसने बहुत ही धीरे से अपने कांपते हुए हाथों को जींस में बने उभार पर रखा और महसूस करने लगी। मेरे लिंग को तो बुरा हाल हो गया। वो बाहर आने के लिए फड़फड़ाने लगा।
नवरीत तो जैसे उसी में खो चुकी थी। वो उसकी फड़फड़ाहट को अपने नाजुक हाथ पर महसूस कर रही थी। उसने धीरे से अपने कांपते हाथों से मेरे हुक को खोला और फिर डरते हुए चैन को खोलने ली। चैन को खोलने की गति इतनी धीमी थी मानों वो कोई पिटारा खोल रही हो। चैन खुलते ही लिंग ने थोड़े चैन की सांस ली और अगले ही पल और भी भयंकर तरीके से फुंफकारते हुए छटपटाने लगा। नवरीत ने धीरे से जींस के दोनों सिरों को एक दूसरे से अलग किया और फ्रेंची के उपर से ही अपना हाथ लिंग पर रख दिया। लिंग की मुंडी अभी भी जींस के नीचे दबी हुई थी। परन्तु अब पहले से ज्यादा बड़ा उभार बन चुका था।
नवरीत थोड़ा सा पिछे को हुई और जींस को खींचकर घुटनों तक कर दिया और वापिस घुटनों पर बैठ गई। उसकी मुडी हुई नंगी जांघे मेरी जांघों से टकरा रही थी। मैंने शर्ट को उतार दिया था और उसकी मासूम सी हरकतों को देख रहा था।
जांघों की तरफ जाते हुए उसके हाथ तो कांप ही रहे थे, उसके होंठ भी फड़क रहे थे। उसने नजरें उठाकर मेरी तरफ देखा और मुझे खुदको ही घूरते पाकर एकदम से शर्मा कर खुद में ही सिमट गई और मेरे उपर लेटकर अपना चेहरा मेरे पेट में छुपा लिया।
मेरे हाथ उसके सिर पर पहुंच गये और कभी उसके गाल को तो कभी बालों को सहलाने लगे। नवरीत की उंगलियां मुझे अपने लिंग पर महसूस हुई। उसने बहुत ही हौले से उसे फ्रेंची के उपर से ही पकड़ा था। मेरे शरीर में तो एक झरनाटा सा दौड़ गया। मुझे उसका हाथ अपनी फ्रेंची के किनारों पर महसूस हुआ और अगले ही पल फ्रेंची थोड़ी सी उपर उठती हुई महसूस हुई। कुछ देर बाद नवरीत का हाथ मेरे नंगे लिंग पर था और वो उसे अपनी नाजुक उंगलियों से महसूस कर रही थी। फ्रेंची सरककर नीचे हो चुकी थी। नवरीत की तेज चलती गर्म सांसे मुझे अपने पेट पर महसूस हो रही थी।
मैंने उसे पकड़कर उपर की तरफ खींचा और उसके उभार मेरे पेट से रगड़ते हुए दब गये। अब उसका सिर मेरी छाती पर था उसका आधा शरीर बेड पर और आधा मुझपर था। परन्तु उसकी उंगलियां अभी भी मेरे लिंग पर ही हरकत कर रही थी। अचानक उसने लिंग को मुट्ठी में भर लिया और चेहरे को उपर की तरफ करते हुए मेरी तरफ देखा। उसके काम वासना में लिप्त इस चेहरे को देखते ही मैं पागल हो गया और उसे उपर खींचते हुए उसके होंठों को अपनी गिरफत में ले लिया।
नवरीत का शरीर मेरे नीचे पूरी तरह से दब चुका था। लिंग गीली पेंटी के उपर से उसकी योनि पर दस्तक दे रहा था। नवरीत के बाल उसके चेहरे पर बिखर चुके थे जिन्हें संवारकर मैंने पिछे की तरफ करके बेड पर फैला दिया। उसकी जोरों से उपर नीचे होती छाती मेरी छाती में दब रही थी। उसकी आंखें बंद थी और तेज गर्म गर्म सांसे मुझे अपने चेहरे पर महसूस हो रही थी। जिस सिद्दत के साथ वो मेरे होंठों को चूस रही थी उसकी बैचेनी साफ झलक रही थी।
नवरीत ने वैसे ही लेटे हुए अपने हाथ नीचे की तरफ किए और उसके कुल्हें एक बार थोड़े से उपर उठे और वापिस नीचे हो गये। अब लिंग उसकी नग्न योनि से भिड़ गया था। अपने ही रस में नहाकर चिकनी हो चुकी उसकी योनि पर लिंग का स्पर्श मुझे पागल कर गया और मेरे हाथ नीचे की तरफ गये और मेरी फ्रेंची और रीत की पेंटी और भी नीचे घुटनों से नीचे सरक गई। वहां से नीचे का काम पैरों ने संभाला और दोनों की अंडरवियर अब बेड से नीचे पहुंच चुके थे। नवरीत के हाथ मेरी कमर पर कस चुके थे। मैंने अपने कुल्हों को थोड़ा सा उपर उठाया और लिंग उसकी योनि की फांकों के बीच सैट हो गया। हमारे होंठ उसी तरह एक दूसरे से उलझे हुए थे। मैंने कुल्हों का थोड़ा सा नीचे की तरफ दबाव बनाया और लिंग फिसल कर उसकी योनि के द्वार पर जाकर रूक गया। नवरीत की सांसे और भी तेजी से चलने लगी और उसके पेट की फड़क मुझे अपने पेट पर महसूस होने लगी।
मैंने थोड़ा सा दबाव बढ़ाया, नवरीत एकदम कसमसा गई। लिंग पर उसकी योनि की गिरफत महसूस हो रही थी। नवरीत के पैर मेरे कुल्हों पर कस चुके थे और अपनी पकड़ बढ़ाते ही जा रहे थे। लिंग धीरे धीरे अंदर जा रहा था और उसकी योनि का दबाव उसे बुरी तरह जकड़े जा रहा था। आधा लिंग अंदर जा चुका था, परन्तु अब ऐसा लग रहा था जैसे उसकी योनि लिंग को भींच कर मार देगी। नवरीत के कुल्हें बार बार उठ रहे थे और लिंग को और अंदर लेने की कोशिश कर रहे थे। मुझे उसका शरीर अकड़ता हुआ महसूस हुआ और उसकी योनि की पकड़ और भी टाइट हो गई। मैंने धीरे से लिंग को बाहर की तरफ खींचा और एक जोरदार धक्का मार दिया। लिंग उसकी योनि की दीवारों से घिसता हुआ जड़ तक समा गया। नवरीत का शरीर अकड़ कर बेड से उपर उठ गया था और उसके दांत मेरे होंठों पर गड़ गये थे। उसके हाथों की पकड़ इतनी बढ़ गई थी कि मुझे दम घुटता हुआ महसूस हुआ और पैरों के पेंज और एड़ियां कुल्हों पर गड़ गये थे।
थोड़ी देर बार वो नोर्मल हुई और उसकी पकड़ कुछ कम हुई। मैं धीरे धीरे लिंग को योनि में अंदर बाहर करने लगा। ऐसा महसूस हो रहा था जैसे लिंग अंदर गहराई तक जाकर आ रहा है और आगे जाने के लिए कोई जगह नहीं है। धीरे धीरे धक्कों की स्पीड़ बढ़ती गई और जब तूफान रूका तो हम दोनों ही आनंद के सागर में गोते लगा रहे थे।
मैं नवरीत के उपर ही लेट गया और नोर्मल होने की कोशिश करने लगा। नवरीत की बांहों की पकड़ अभी भी मेरी कमर पर बनी हुई थी। कुछ देर बाद नवरीत ने आंखें खोली और मेरे चेहरे पर छोटी छोटी प्यार भरी किस्सी करने लगी।

ऐसे मत देखो, मुझे शरम आ रही है, नवरीत ने जींस पहनते हुए कहा। परन्तु मैं वैसे ही उसे प्यार से देखता रहा। आखिर देखूं भी क्यों नहीं हुस्न की मल्लिका को।
नवरीत कुछ देर और वहीं पर रही। चाय पीने के बाद वो फ्रेश होकर चली गई। मैं बाहर आकर बैठ गया।
मजे ही मजे हैं तुम्हारे तो, इतनी सारी कमसीन लड़कियां, एक से बढकर एक खूबसूरत,------- जैसे ही मेरे कानों में आवाज पड़ी मैंने चौंककर आवाज की तरफ देखा, पूनम खड़ी खड़ी हंस रही थी।

अरे तुम कब आई------
जब तुम उस हुस्न परी के साथ गोते लगा रहे थे, पूनम ने चेयर पर बैठते हुए कहा। ‘सोनल नहीं दिखाई दे रही आज’। पूनम के चेहरे पर हंसी लगातार बनी हुई थी।
वो अपने मामा जी के यहां गई है, कल आयेगी। मैं पूनम के शरीर को गौर से देख रहा था। वो खिल चुकी थी, उसका शरीर भर सा गया था और चेहरा दमक रहा था। पहले से काफी बदलाव आ चुका था उसमें।
काफी देर तक हम बातें करते रहे। उसके जाने के बाद मैं बाहर घूमने आ गया। चलते चलते ऐसे ही मैं पार्क की तरफ पहुंच गया, तो सोचा आज कुछ देर पार्क में बैठ लेता हूं।
अंदर घूसते ही सामने मोनी दिखाई दी। हमारी नजरें मिलते ही मैं मुस्करा दिया। उसने भी एक फीकी सी मुस्कान दी और आगे बढ़ गई। मुझे थोड़ी सी हैरानी तो हुई, पर अब हर लड़की मेरे पिछे ही थोड़े भागेगी, तो मैंने ज्यादा धयान नहीं दिया और एक बेंच पर बैठ गया। मोनी अचानक नजरों से ओझल हो गई थी। बैठे बैठे मैं पार्क में घूमने वालों को देखने लगा। काफी नए चेहरे दिखाई दे रहे थे, पुराने भी थे, पर कुछ पुराने चेहरे गायब थे।
फिर सोनल का फोन आया और उसने बताया कि वो दोपहर तक पहुंच जायेगी। उसने शाम को मूवी के लिए टिकटें बुक करने को कहा।
घर आने पर मैंने खाना तैयार किया और खा पीकर लेटा हुआ था कि नवरीत का फोन आ गया। जब उसे पता चला कि कल मूवी जा रहे हैं तो उसने भी चलने के कहा। सोने से पहले मैंने तीन टिकटें बुक कर ली।
अगले दिन ऑफिस में सोनल का फोन आया कि वो आ गई है तो मैं ऑफिस से छुट्टी लेकर जल्दी आ गया। प्रीत घर पर नहीं थी तो सोनल को किसी बात की टेंशन नहीं थी। आंटी भी पड़ोस में हो रहे धार्मिक पूजा पाठ में गई हुई थी। पांच बजने से पहले नवरीत भी आ गई और हम मूवी के लिए निकल गये।

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आहहहहहहहहहहहहहहहहहह.................... नींद खुली तो सिर में पिछे की तरफ तेज दर्द का अहसास हुआ और जैसे ही हाथ को उठाना चाहा, तो हाथ में कुछ लगा हुआ महसूस हुआ। मैंने धीरे से सिर उठाकर देखना चाहा, पर सिर को हिलाते ही बहुत ज्यादा दर्द का अहसास हुआ और एक दर्द भरी कराह निकल गई। मैंने अपने आसपास देखा तो समझ में नहीं आया कि मैं कहां हूं। तभी दरवाजा खुलने की आवाज आई और एक नर्स अंदर आई और एक इंजेक्शन लगा दिया। आंखें वापिस बंद होने से पहले मैंने मम्मी-पापा, छूटकू और नवरीत के मम्मी-पापा को खड़े देखा था। मैंने वापिस आंखें खोलनी चाही परन्तु आधी ही खुल पाई और मैं वापिस नींद के आगोश में चला गया।
 

kumarrajnish

kumaruttem
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रूह-जिस्म का ठौर-ठिकाना चलता रहता है ,
जीना-मरना ,खोना-पाना चलता रहता है !
सुख-दुःख वाली चादर घटती-बढती रहती है ,
मौला तेरा ताना-बाना चलता रहता है !
याद दफ्फतन दिल में आती-जाती रहती है ,
सांसों का भी आना-जाना चलता रहता है !
इश्क करो तो जीते जी मर जाना पड़ता हैं ,

मर कर भी लेकिन जुर्माना चलता रहता है !
बार-बार दिलवाले धोखे खाते रहते हैं ,
बार-बार दिल को समझाना चलता रहता है !
लोग-बाग़ भी वक़्त बिताने आते रहते हैं ,
अपना भी कुछ गाना-वाना चलता रहता है !
दुनिया वाले पी कर गिरते-पड़ते रहते हैं ,
उसकी नज़रों का मयखाना चलता रहता है !
जिन नज़रों ने रोग लगाया गजलें कहने का ,
आज तलक उनको नजराना चलता रहता है ...!"

आहहहहहहहहहहहहहहहहहहण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण् नींद खुली तो सिर में पिछे की तरफ तेज दर्द का अहसास हुआ और जैसे ही हाथ को उठाना चाहाए तो हाथ में कुछ लगा हुआ महसूस हुआ। मैंने धीरे से सिर उठाकर देखना चाहाए पर सिर को हिलाते ही बहुत ज्यादा दर्द का अहसास हुआ और एक दर्द भरी कराह निकल गई। मैंने अपने आसपास देखा तो समझ में नहीं आया कि मैं कहां हूं। तभी दरवाजा खुलने की आवाज आई और एक नर्स अंदर आई और एक इंजेक्शन लगा दिया। आंखें वापिस बंद होने से पहले मैंने मम्मी-पापाए छूटकू और नवरीत के मम्मी-पापा को खड़े देखा था। मैंने वापिस आंखें खोलनी चाही परन्तु आधी ही खुल पाई और मैं वापिस नींद के आगोश में चला गया।

नींद खुली तो दर्द हल्का हल्का ही महसूस हो रहा था। मैंने धीरे-धीरे आंखें खोली, नाईट बल्ब की रोशनी में इधर उधर देखा तो रूम मेरा ही था। सिर में दर्द क्यों हो रहा था, ये बात समझ नहीं आ रही थी। मैंने दिमाग पर कुछ जोर डाला तो एकदम से हड़बड़ा कर उठ कर बैठ गया और अपने इधर उधर देखा। शरीर पर कुर्ता पायजामा था। घड़ी की तरफ नजर गई तो 2 बजने वाले थे।
सोनल कहां है, वो ठीक तो है और,,,, और,,,, नवरीत--- सबकुछ धयान आते ही मैें तुरंत खड़ा हुआ और बाहर की तरफ जाने लगा। फिर मोबाइल याद आया, परन्तु ढूंढने पर कहीं मिला नहीं। ये भी नहीं समझ आ रहा था कि मैं रूम पर कैसे आया। परन्तु ये बात कोई मायने नहीं रखती थी, उस बात के सामने जो शाम को घटित हुई थी।
मोबाइल नहीं मिला तो मैं बाहर आ गया। मेरे आश्चर्य का कोई ठिकाना नहीं रहा, आंटी (नवरीत की मॉम), मेरी मॉम, और छूटकू बाहर चेयर पर बैठे हुए थे।
तू उठ क्यूं आया, आराम कर ले, मम्मी ने मुझे देखते ही खड़े होते हुए कहा और मेरे पास आ गई।
नवरीत कहां है और सोनल,,, मैंने उनकी बात पर धयान ना देते हुए पूछा। आंटी भी उठकर खड़ी हो गई थी।
चल अंदर चल, आराम से लेट जा, फिर बताती हूं, मॉम ने कहा और अंदर ले आई। आंटी और छूटकू भी अंदर आ गये।

अब दर्द तो नहीं है, मॉम ने पूछा।
नहीं, हल्का हल्का है बस, मैंने कहा और सिर पर हाथ लगाकर देखा, सिर पर पिछे की तरफ हल्का सा फोड़ा सा बन गया था, शायद अब कम रह गया था।
नवरीत और सोनल कहां है, मैंने आंटी की तरफ देखते हुए कहा।
मॉम ने मुझे बैड पर बैठा दिया और खुद भी बैठ कर मेरा सिर अपनी गोद में रखते हुए मुझे लेटा दिया। परन्तु मुझे चैन कहां था, मैं वापिस बैठ गया।
मॉम ने मेरी तरफ देखा, वो समझ गई थी कि जब तक मुझे सोनल और नवरीत के बारे में पता नहीं चलेगा मुझे चैन नहीं आयेगा।
सोनल मेडीकल में है, वो अभी होश में नहीं आई है, मॉम ने कहा और फिर मेरी तरफ देखने लगी।
क्या हुआ है उसे, मैंने बैचेन होते हुए पूछा।
सिर में गहरी चोट लगी है, डॉक्टर सीरियस बता रहे हैं, तेरे पापा और अंकल वहीं पर हैं, तेरी नीचे वाली आंटी भी वहीं पर है, मम्मी ने कहा।
और नवरीत, वो कहां पर है, मैंने आंटी की तरफ देखते हुए पूछा। आंटी की आंखों में आंसु थे।
उसका कुछ पता नहीं है, मॉम ने कहा।
क्या मतलब है कुछ पता नहीं है, मैं एकदम से बैचेन हो उठा था।
हुआ क्या था, तुम दोनों को ये चोट कैसे लगी थी, मॉम ने उलटा सवाल कर दिया।
मैं सही तरफ से याद करने की कोशिश करने लगा कि क्या हुआ था, क्योंकि अभी तक मुझे भी सही सही समझ में नहीं आ रहा था कि क्या हुआ था।
हम शाम को मूवी देखने गए थे और रेड लाइट पर खड़े हुए थे, मैंने याद करते हुए कहा और सबकुछ याद आता चला गया। ‘मैं नवरीत की स्कूटी पर था और सोनल हमारे आगे अपनी स्कूटी पर थी। एक स्कोरपियो हमारे साइड में आकर रूकी, कुछ देर तो सब ठीक ठाक रहा, लाइट ग्रीन होने ही वाली थी कि स्कोरपियो की खिड़कियां खुली और पांच छः आदमी उसमें से निकले। उनके हाथों में बेसबॉल और हॉकी थी। मैं कुछ समझ पाता, उससे ही पहले मुझे मेरा सिर फटता हुआ महसूस हुआ। उनमें से किसी ने मेरे सिर पर बहुत जोर से मारा था। मैं उसके बाद क्या हुआ मुझे कुछ मालूम नहीं, शायद मैं बेहोश हो गया था’।
और हां, उनमें से कोई कह रहा था, ‘पकड़ लो साली को, अब देखता हूं कैसे बचेगी मुझसे’ वो शायद उनका बॉस था’ मैंने याद करते हुए बताया। बोलने के कारण सिर में फिर से दर्द बढ़ने लगा था और मेरा हाथ पिछे की तरफ सिर पर चला गया और मैं तुरंत खड़ा हो गया।
वो नवरीत को ले गये, सिश्श्श्ट, ये सोचकर ही मेरा सिर चकरा गया। ‘एक ने कहा था कि अब कैसे बचेगी मुझसे, मतलब वो नवरीत को पहले से जानते थे’ मैंने कहा और आंटी की तरफ देखने लगा। आंटी ने कोई जवाब नहीं दिया।
सोनल को कितनी चोट आई है, मैं उसको देखने जा रहा हूं, कहकर मैं मॉम की तरफ देखने लगा।
चोट तो ज्यादा नहीं है, पर सिर में लगी है तो डॉक्टर कह रहे थे कि होश में आने पर ही कुछ कहा जा सकता है, छूटकू ने कहा।
सुबह चला जाइये, इब रात ने फेर गिर-पड़ ज्यागा, तेरे पापा और अंकल वहां पर है ही, मॉम ने कहा और मुझे पकडकर वापस बेड पर बैठा दिया।
आंटी आप बैठिये, मैंने आंटी को कहा। पुलिस में रिपोर्ट की या नहीं अभी तक, मैंने छूटकू की तरफ देखते हुए कहा।
रीत की तो कर दी, तुम दोनों में से कोई होश में ही नहीं था, इसलिए पुलिस वाले सुबह आने की कहकर चले गये, छूटकू ने बताया।
 

kumarrajnish

kumaruttem
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बेटा मुझे तो बहुत टैंशन हो रही है, मेरी बच्ची किस हालत में होगी, मेरी फूल सी बच्ची, कहकर आंटी फूटफूट कर रोने लगी, बहुत मुश्किल से उनहें चुप करवाया, परन्तु उने आंखों से आंसु रूकने का नाम ही नहीं ले रहे थे।
मेरे मोबाइल का पता है क्या, मैंने पूछा और छूटकू की तरफ देखने लगा।
किसको फोन करना है, मॉम ने पूछा।
पापा को करके पूछता हूं, सोनल की तबीयत कैसी है, मैंने कहा।
छूटकू ने अपना मोबाइल निकाल कर दे दिया। आंटी की आंखों से लगातार आंसू छलक रहे थे। मैंने पापा को फोन मिलाया।
सोये नहीं के इब ताई, उधर से पापा की आवाज आई।
नमस्ते पिता जी, मैं बोल रहा हूं समीर, मैंने कहा।
उठ गया, अब तबीयत कैसी है, पापा ने पूछा।
मैं ठीक हूं, सोनल को होश आया क्यो, मैंने पूछा।
नहीं बेटा, उसको अभी तक होश नहीं आया है, आईसीयू में है वो, पापा ने कहा।
डॉक्टर क्या कह रहे हैं, मैंने पूछा।
डॉक्टरा नै के कहना था, नूए कवै सै के होश आने पर ही कुछ बतावैंगे, पापा ने कहा।
नवरीत का कुछ पता चला, मैंने पूछा।
अभी तो कुछ पता ना चाल्या है, ले तेरे अंकल बात करै हैं, कहकर पापा ने नवरीत के पापा को फोन दे दिया।
अब तबीयत कैसी है बेटा, अंकल ने पूछा।
ठीक है अंकल, नवरीत का कुछ पता चला क्या, मैंने अंकल से भी यही पूछा।
नहीं बेटा, कुछ पता नहीं चला, अंकल की आवाज में थर्राहट थी। हुआ क्या था बेटा, अंकल ने पूछा।
ज्यादा तो पता नहीं अंकल, एक स्कोरपियो में पांच-छः आदमी आये और आते ही मेरे सिर पर बेसबैट से मारा, लगते ही मैं बेहोश हो गया, उसके बाद का कुछ पता नहीं, मैंने कहा।
तू आराम कर ले, सिर की चोट है, ज्यादा सोचेगा तो कुछ उंच-नीच ना हो ज्या, पापा की आवाज आई। शायद अंकल ने फोन पापा को दे दिया था।

ठीक है, कहकर मैंने फोन कट कर दिया।
ऐसे ही टेंशन में मैं दिवार से कमर लगाकर बेड पर बैठ गया। और उन आदमियों के चेहरे याद करने की कोशिश करने लगा।
आंख खुली तो सुबह के छः बज चुके थे। कमरे में मैं अकेला ही था। मैं उठकर बाहर आया।
चल जल्दी से मेडिकल में चलना है, मैंने बाहर चेयर पर बैठे छूटकू से कहा।


कुछ देर बाद हम मेडिकल में थे। सामने अंकल (अपूर्वा के पापा) को देखकर मैं एकदम से चौंक गया, परन्तु फिर अगले ही पल दिमाग में आया कि शायद अपूर्वा भी आई हो, परन्तु अंकल अकेले ही आये थे। अंकल ने मुझे गले लगा लिया, मुझे बहुत अजीब लगा, पर कुछ कहा नहीं। मैंने पापा के पैर छुए और फिर अंकल (नवरीत के पापा) को नमस्ते किए। आंटी बेंच पर बैठी दीवार के साथ लगकर उंघ रही थी। मैं उनके पास जाकर बैठ गया। मुझे देखते ही आंटी रोने लगी। मैंने उन्हें दिलाशा दी। अंकल भी हमारे साथ ही आकर बैठ गये।
उन्होंने मुझसे हादसे के बारे में पूछा तो मैंने बता दिया। जैसे ही मैंने बताया कि उनमें से एक ने कहा था कि ‘अब बचकर कहां जायेगी’ तो अपूर्वा के पापा एकदम से खड़े हो गये।
कहीं वही तो नहीं हैं, अंकल (अपूर्वा के पापा) के ने कहा और नवरीत के पापा की तरफ देखने लगे।
आप किसकी बात कर रहे हो अंकल, मैंने उनसे पूछा।
अंकल कुछ देर तक तो चुप बैठे रहे फिर गहरी सांस लेते हुए मेरी तरफ देखा।
मैं तुम्हें कुछ बताना तो नहीं चाहता था बेटा, क्योंकि मैं खामखां तुम्हें किसी प्रॉब्लम में नहीं डालना चाहता था, परन्तु अब स्थिति कुछ ऐसी हो गई कि बताना ही पड़ेगा, अंकल ने एक-एक शब्द ऐसे कहा जैसे उन्हें बोलने में बहुत ही कठिनाई हो रही हो।
दिल्ली के एम-एल-ए- भानुप्रताप का बेटा है, आर्यन, अंकल ने कहा और नीचे की तरफ देखने लगे।
मैंने तुरंत पापा का मोबाइल लिया और उसमें इंटरनेट पर आर्यन के बारे में सर्च किया। ये वहीं आदमी था जिसको कल मैंने स्कोरपियो में बैठे देखा था, वो नीचे उतरकर नहीं आया था।
जब अंकल को मैंने ये बात बताई तो वो सन्न रह गये और उनके चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगी।
हमें अभी पुलिस को बताना चाहिए, मैंने 100 नम्बर डायल करते हुए कहा।
कोई फायदा नहीं है बेटा, मैं पहले भी उसके खिलाफ एफ-आई-आर- करवा चुका हूं, इसका बाप एम-एल-ए- है, और उपर तक उसकी पहुंच है, पुलिस ने उलटा हमें ही परेशान करना शुरू कर दिया था।
पर आपने इसके खिलाफ एफ-आई-आर- क्यों लिखवाई थी, मेरे मन में तरह तरह की शंकाएं पैदा हो रही थी।
अंकल ने फिर से गहरी सांस ली और कुछ सोच में पड़ गये।
दो साल पहले मैं पूरे परिवार के साथ दिल्ली गया था, वहां हम मेरे एक दोस्त की शादी में गये थे। वहां पर आर्यन भी आया हुआ था। उसने अपूर्वा को देखा और हमसे शादी की बात की। मुझे बहुत खुशी हुई थी, अंकल ने कहा और फिर कुछ सोचने लगे।
पर वापिस आकर जब ये बात मैंने भाई साहब को बताई तो पता चला कि आर्यन और उसका बाप एक नम्बर का गुण्डा है, राजनीति में आने से पहले गुण्डागर्दी करते थे और अब राजनीति में आने के बाद तो उनको कोई डर ही नहीं है।
मैंने शादी के लिए मना कर दिया तो उन्होंने जान से मारने की धमकी दे दी। हमने पुलिस में एफ-आई-आर करवाई, पर कोई कार्यवाही नहीं हुई, और कुछ दिन बाद तो पुलिस वाले हमें ही परेशान करने लगे। कुछ दिन बाद मर्डर के केस में सीबीआई ने उसे गिरफतार कर लिया तो हमनें चैन की सांस ली।
पर कुछ दिन पहले वो बरी हो गया, और जब तुम घर गये हुए थे तो घर पर आया था और एक हफते बाद ही बाराम लेकर आने की कहकर गया था। उधर ही उसने नवरीत को देख लिया होगा। इसीलिए हम विदेश चले गये थे, पर अगले हफते वो नहीं आया, तो हम पंजाब आ गये। भाई साहब लगातार घर पर नजर रखे हुए थे। कल ही वो घर पर आये थे और वहां ताला पाकर खूब तोड़फोड़ भी करके गये हैं। कल जब उन्होंने नवरीत को देखा होगा तो उसे पहचान लिया होगा और उठा ले गये।
हमने तुम्हें इस सबसे दूर रखना ही ठीक समझा, इसलिए तुम्हारे साथ ऐसा किया, हमें माफ कर देना बेटा।
अंकल की बात सुनकर मेरे आंखों में आंसु आ गये और खूशी भी हुई कि अपूर्वा बेवफा नही है। परन्तु अब नवरीत उनके पास थी, सबसे बड़ी बात तो यही थी कि नवरीत को कैसे बचाया जाये। पुलिस भी उनकी ही थी, इसलिए पुलिस का सहारा भी नहीं लिया जा सकता था। मैंने प्रैस का सहारा लेने की सोची, और अंकल को बताया।
पिताजी ने तुरंत हमें चुप कराया और बाहर ले आये। आंटी अंदर ही थी। हम एक कॉफी पीने के लिए आ गये। कॉफी बस बहाना था, असली काम तो कुछ प्लान बनाना था। और वहां पर जो प्लान बना, वो सबको पसंद आया।
पिताजी ने सुझाया कि किसी प्रॉफेशनल किलर को आर्यन की सुपारी दे देनी चाहिए, और उससे पहले नवरीत को बचाने के लिए किसी डिटेक्टीव से ये पता करवाना चाहिए कि नवरीत को रखा कहां पर है और फिर पहलवान भेज कर नवरीत को छुड़ा ले और उसके तुरंत बाद ही किलर अपना काम कर दे। नवरीत भी बच जायेगी और आर्यन का खातमा भी हो जायेगा। सभी ने इस प्लान को सही बताया। पर अब किलर कहां से लाया जाये। क्योंकि किसी का भी ऐसे लोगों से कोई सम्बन्ध नहीं था।
फैसला ये लिया गया कि यहां संभालने के लिए अपूर्वा के पिताजी रूकंगे और बाकी मैं, पिताजी और नवरीत के पिताजी दिल्ली जायेंगे। और वहीं से सबकुछ सैट करेंगे। मेरे पिताजी का एक दोस्त दिल्ली में था, जो शायद किलर के मामले में कुछ मददगार साबित होता। मेरे साथ जाने का कारण था दिल्ली में डिटेक्टिव जॉन से मेरी जान-पहचान होना।
हम तुरंत ही दिल्ली के लिए निकल पड़े। भूख लगने पर रस्ते में एक अच्छे से ढाबे पर गाड़ी खड़ी की और हम खाने के लिए बैठ गये। सामने दूसरी टेबल पर बैठे आदमियों को देखते ही मैं चौंक गया। वो वहीं थे जिन्होंने कल हमपर हमला किया था। आर्यन भी इनके साथ ही था। मैंने धीरे से पिताजी और अंकल को उनके बारे में बताया, परन्तु उनकी तरफ देखने को मना किया। हम एक-एक करके आराम से बाहर आ गये। मैंने देखा उनकी स्कोरपियो हमारी गाडी के बगल में ही खड़ी थी। हम अपनी गाड़ी के पास आ गये। अपनी गाड़ी में बैठकर मैंने स्कोरपियो को चैक किया। नवरीत बीच वाली सीट पर बेहोश पडी थी। नवरीत को देखते ही हमारी आंखें चमक उठी। मैं नीचे उतरा और खिड़की खोलने की कोशिश की, परन्तु गाड़ी पूरी तरह लॉक थी। कुछ समझ नहंी आ रहा था क्या किया जाये। स्कोरपियो हमारी सफारी के साइड में छुप गई थी और अंदर से उनको दिखाई नहीं दे रही थी।
समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूं। तभी मेरे दिमाग में एक आइडिया आया। मैंने अंकल को समझाया कि वो एकदम से हॉर्न बजा दे और मैं उसी समय मैं शीशे को तोड़ दूंगा। अंकल ने अपनी पोजीशन ली। मैंने पास में पड़ी एक ईंट उठाई और मेरे तीन कहते ही अंकल ने हॉर्न पर हाथ रख दिया और मैंने ईंट मारकर शीशे को तोड़ दिया। मैंने तुरंत ही स्कोरपियो का लॉक खोला और खिड़की को खोल कर नवरीत को अपनी गाड़ी में बैठाया।
भाई लड़की को ले गये, हमारे कानों में ये आवाज एक बॉम्ब की तरह पड़ी। आर्यन के साथियों में से एक आदमी हमारे सामने खड़ा था। उसकी आवाज सुनते ही आर्यन अपने सभी साथियों के साथ हमारी तरफ दौड़ा। हम जल्दी से गाड़ी में बैठे और गाड़ी को बैक करके मेन रोड़ पर जयपुर की तरफ दौड़ा दिया। हमारी सांसे बहुत ही तेज चल रही थी। पता नहीं अब क्या होगा। अंकल ने गाड़ी को फुल स्पीड पर दौड़ा दिया था। हमारे पिछे ही आर्यन की गाडी फुल स्पीड से आ रही थी। अचानक पिछे से गोलियां चलनी शुरू हो गई। वो हमारी गाड़ी के टायर को निशाना बना रहे थे। और वही हुआ जिसका डर था। एक गोली हमारे अगले टायर में आकर लगी। गाड़ी फुल स्पीड में थी तो अनबैलेंस हो गई और डिवाइडर के उपर से पेड-पौधों को तोड़ती हुई दूसरी साइड वाली लेन पर आ गई।
 

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अच्छा ये हुआ कि दूसरी साइड से कोई गाड़ी नहीं आई, एक ट्रोला आ रहा था जो अभी थोड़ी दूरी पर था। अंकल ने साइड में लेकर गाड़ी को ब्रेक लगाये। गाड़ी एक तरफ से उठ गई। परन्तु अंकल ने तुरंत संभाल लिया और गाड़ी पलटते पलटते बची। ट्रोला नजदीक आ चुका था। पौधे थोड़े बड़े-बड़े थे इसलिए दूसरी साइड का कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। हमें पता नहीं चल रहा था कि आर्यन की गाड़ी किधर है। तभी आर्यन की गाड़ी भी डिवाइडर के उपर से ही हमारी तरफ फुल स्पीड में निकल आई। पेड़ होने की वजह से उनको ट्रोला दिखाई नहीं दिया और ट्रोले के साथ भयंकर भिडंत हो गई। कान गूंज उठे। टक्कर इतनी जोर से हुई थी कि जिस साइड से ट्रोले ने स्कोरपियो को टक्कर मारी थी वो साइड आधी पिचक गई थी। ट्रोले वाले ने स्पीड कम नहीं की और स्कोरपियो को आगे घसीटते हुए ले गया। थोड़ी दूरी पर जाकर स्कोरपियो पलट गई और ट्रोला के सामने से हट गई। ट्रोले वाला फुल स्पीड से ट्रोले को भगा ले गया।
ये साले यहीं पर खत्म हो जाने चाहिए, नही तो दिक्कत हो जायेगी, अंकल ने कहा और गाड़ी से नीचे उतरकर स्कोरपियो की तरफ जाने लगे। सड़क पर खून ही खून बिखरा हुआ था। एक कार थोड़ी स्लो होते हुए पास से गुजर गई। स्कोरपियो हमारी गाड़ी से 200 मीटर की दूरी पर ही होगी। लग नहीं रहा था कि उसमें कोई जिंदा बचा होगा, क्योंकि किसी की बॉडी में कोई भी हलचल नहीं थी।
अंकल ने जेब से सिगरेट निकाली और एक बार इधर उधर देखा, काफी दूर से एक कार आ रही थी, दूसरी साइड का कुछ दिखाई ही नहीं दे रहा था। अंकल ने जल्दी से सिगरेट जलाई और स्कोरपियो से रिस रहे पैट्रोल की तरफ उछाल दी। आग पूरी गाड़ी में फैल गई और गाड़ी धू-धूकर जलने लगी।
अंकल और पापा निश्चिंत होकर वापिस आ गये और गाड़ी आगे बढ़ा दी। पिछे से जो कार आ रही थी वो एकबार थोड़ी सी धीमी हुई और फिर तेजी से आगे बढ़ गई।
अब आर्यन और उसके आदमियों के बचने की कोई उम्मीद नहीं थी। ढाबे को पिछे छोड़ते हुई हम आगे बढ़ गये। काफी आगे चलकर एक ढाबा आया, उसपर पंक्चर की व्यवस्था भी थी। नवरीत अभी भी बेहोश ही थी।
स्टीपनी से टायर चेंज करवाया और पापा और अंकल ने खाने के लिए ऑर्डर दिया और मेरे लिए गाड़ी में ही ले आए। अब हमें किसी चीज की टेंशन नहीं थी। आर्यन और उसके आदमी अब तक तो जलकर खाक हो चुके होंगे। खाना खाने के बाद हम वापिस जचपुर की तरफ चल पड़े।
एक्सीडेंट वाली जगह पर अब काफी हलचल थी। फायर ब्रिगेड की गाड़ी भी खड़ी थी। चारों तरफ जले हुए शरीरों की बदबू फैली हुई थी। हमने गाड़ी साइड में लगाई और नाक पर रूमाल रखकर दूसरी तरफ जाकर देखने लगे कि कहीं कोई जिंदा तो नहीं बच गया है। आग तो बुझ चुकी थी, परन्तु स्कोरपियो जलकर खाक हो चुकी थी। पुलिस और एम्बुलेंस भी पहुंच चुकी थी। स्कोरपियो में बैठे सभी आदमी बुरी तरह जल चुके थे, यहां तक कि उनकी हड्डियां भी नजर आ रही थी जो काली हो चुकी थी। कोई भी नहीं बचा था। हम वापिस अपनी गाड़ी में आ गये।
सारी टेंशन खत्म हो चुकी थी। अब किसी बात का डर नहीं था। मैंने पिछे सीट से कमर लगाई और पिछे की तरफ सिर को रखकर आंखें बंद कर ली, आंखें नम हो गई थी। सोनल को पता नहीं होश आया होगा या नहीं, कहीं कुछ ज्यादा प्रॉब्लम न हो जाये, सोचते सोचते सोच अपूर्वा पर पहुंच गई और दिल में एक कसक सी उठी और मैं अपूर्वा के ख्यालों में गुम हो गया।
अचानक मुझे नवरीत के शरीर में कुछ हलचल सी महसूस हुई। मैंने एकदम से आंखे खोल दी और नवरीत की तरफ देखा। नवरीत ने आंखें खोली और एकदम से खड़ी होकर बैठ गई। उसने बदहवाशी में इधर उधर देखा और फिर आश्चर्य से मेरी तरफ देखने लगी।
हम कहां जा रहे हैं, नवरीत ने पूछा। नवरीत की आवाज सुनते ही पापा और अंकल ने पिछे देखा। अंकल ने गाड़ी तुरंत साइड में खड़ी कर दी।
पापा, हम कहां जा रहे हैं, नवरीत ने अपने पापा की तरफ देखते हुए कहा। तभी वो एकदम से घबरा गई। ‘वो,,,, वो आदमी कहां गये, जिन्होंने मुझे किडनेप किया था’।
वो मर चुके हैं बेटा, अंकल ने कहा और नवरीत के बालों में हाथ फिराने लगे।
और ---- और---- सोनल---- वो कहां है? नवरीत ने घबराते हुए पूछा।
सोनल अभी बेहोश है, वो मेडिकल में है, मैंने कहा। अंकल ने वापिस गाड़ी को जयपुर की तरफ बढ़ा दिया।
मैंने नवरीत को सब कुछ बताया, वो हैरत से सब सुनती रही। नवरीत वापिस मेरी गोद में सर रखकर लेट गई।


हम सीधे मेडिकल ही गये। अंकल (अपूर्वा के पापा), मम्मी, छूटकू, आंटी (नवरीत की मम्मी) और सोनल की मम्मी वहीं पर थे। प्रीत भी आ चुकी थी। सोनल को अभी तक होश नहीं आया था। डॉक्टर्स ने बताया कि अगर होश नहीं आता है तो हो सकता है कि ये कोमा में भी चली जाये। ये सुनते ही सभी बैचेन हो गये। हमने शीशे में से आई-सी-यू- में सोनल को देखा। वो सब कुछ से बेखबर आराम से सो रही थी। चारों तरफ मशीनें और उसके शरीर पर जगह जगह वायर दिखाई दे रही थी। मेरी आंखें नम हो गई। आंसु पौंछते हुए मैंने नवरीत की तरफ देखा, वो भी अपने आंसु पौंछ रही थी। प्रीत हमारे पिछे ही खड़ी थी। उसकी आंखों से आंसु बह रहे थे। मैंने उसे सांत्वना देते हुए उसके आंसु पौंछे। कुछ देर बाद हम वापिस सबके पास आ गये। अंकल रस्ते में घटी घटना के बारे में सभी को बता रहे थे। वो इस बात का पूरा धयान रख रहे थे कि कोई और ये सब ना सुन ले, इसलिए जब कोई आसपास से गुजरता तो सब चुप हो जाते थे।
मैंने यहां पर ये सब बताना ठीक नहीं समझा, इसलिए उन्हें मना करते हुए घर जाने के लिए कहा। नवरीत का चैकअप करवाकर सभी घर चले गये। मैं, प्रीत और आंटी हॉस्पिटल में ही रूक गए। प्रीत ने मेरे कंधे पर सर रख दिया। मैंने उसे खुद से चिपका लिया और सांत्वना देते हुए धीरे धीरे उसके सिर को सहलाने लगा।

शाम को नवरीत और छूटकू भी आ गये। नवरीत ने बताया कि जब वो मुझे उठाने की कोशिश कर रहे थे तो सोनल ने छुड़ाने की कोशिश की थी, एक आदमी ने सोनल को धक्का दे दिया और सोनल का सिर साइड में खड़ी कार से जा टकराया था और सोनल वहीं पर बेहोश हो गई थी। ये सब बहुत जल्दी हुआ था, इसलिए कोई बीच-बचाव नहीं कर सका, और उन्होंने मुझे गाड़ी में बैठाकर बेहोश की दवा सुंघाकर बेहोश कर दिया। उसके बाद जब आंख खुली तो मैं तुम्हारी गोद में थी।
सोनल के शरीर पर और कोई चोट नहीं थी, सिर में चोट लगने की वजह से वो बेहोश थी और होश में आने का नाम ही नहीं ले रही थी। पिछले कुछ दिनों में वो मेरे लिए रातों को जागी थी, और अब खुलकर बदला ले रही थी, उस नींद को पूरी कर रही थी।
रात को मैंने सभी को घर भेज दिया और खुद हॉस्पिटल में अकेला ही रूक गया। मेरे मोबाइल का कोई अता-पता नहीं था। मैंने छूटकू का मोबाइल अपने पास रख लिया था। पूरी रात लड़कियों के फोन आते रहे, जैसे ही आंख लगती किसी का फोन आ जाता। सुबह आंखों में नींद भरी हुई थी। मैं आराम से सोफे पर सो रहा था जब प्रीत आई। उसके साथ नवरीत और कोमल भी थी। लग रहा था कि प्रीत और नवरीत भी रात भर सोई नहीं थी, क्योंकि उनकी आंखें एकदम लाल थी और बार-बार बंद हो रही थी।
सबसे गले मिलने के बाद सभी सोफे पर बैठ गये। मैं फ्रेश होने के लिए टॉयलेट चला गया। प्राइवेट हॉस्पिटल का यही फायदा था कि वहां हर जगह साफ सफाई मिलती थी। निपटने के बाद मैंने अच्छी तरह से मुंह धोया जिससे नींद भाग जाये। वापिस आकर देखा तो छूटकू भी वहीं पर था और मोबाइल को चैक कर रहा था।
ये मोबाइल ना ही लेता तो अच्छा रहता, पूरी रात लड़कियों के फोन पे फोन आते रहे, फालियों ने सोने भी नहीं दिया। मेरी बात सुनकर सभी हंसने लगे।

जब हम आई तब तो बड़े खर्राटे भरे जा रहे थे, प्रीत ने छेड़ते हुए कहा।
बस सुबह ही आंख लगी थी, रात में सबको पता चल गया था कि आज फोन छूटकू के पास नहीं है, इसलिए सुबह कोई फोन नहीं आया, मैंने मुस्कराते हुए कहा। सभी फिर से हंसने लगे।
खाना खा लो, फिर ठण्डा हो जायेगा, छूटकू ने टेबल पर रखे टिफिन की तरफ ईशारा करते हुए कहा। मैंने टेबल पर अखबार बिछा कर खाना लगाया। बाकी सभी ने खाने के लिए मना कर दिया।

सभी बैठे बैठे बतियाते रहे, 11 बजे के आसपास आंटी और मम्मी भी आ गई। डॉक्टर्स ने बताया कि सोनल कोमा में जा चुकी है, और अब कुछ नहीं कहा जा सकता कि कब होश में आये। प्रीत और आंटी तो वहीं पर फूटफूट कर रोने लगी। मम्मी ने आंटी को और मैंने प्रीत को संभाला। सोनल को दूसरे रूम में शिफ्रट कर दिया गया। वहां पर एक और आदमी के रहने की जगह थी। रूम काफी बड़ा था और मरीज के बेड के अलावा दो सोफे और टेबल भी थी। सोनल आराम से सो रही थी, जैसे अब उसे उठना ही ना हो। उसके चेहरे की मासूमियत अपने पूरे शबाब पर थी। माथे पर पट्टी बंधी हुई थी। नर्स ने जब पट्टी चेंज की तो मैंने देखा कि हल्का सा घाव था जो अब काफी ठीक हो चुका था।
नर्स के जाने के बाद बाकी सभी सोफों पर जाकर बैठ गये। मैं उसके पास ही घुटनों के बल बैठ गया और उसके हाथ को अपने हाथ में लेकर उसे निहारने लगा। नम होने के कारण आंखें धुंधला गई। मैंने आंखों को साफ किया और सोनल को गाल को चूम कर सभी के पास आकर बैठ गया।
नवरीत ने बताया कि अंकल (अपूर्वा के पापा) वापिस चले गये हैं और एक दो दिन में अपूर्वा और आंटी को लेकर वापिस आ जायेंगे।
दो दिन बाद ही दीपावली थी, इसलिए शाम को मम्मी-पापा और छूटकू वापिस चले गए। छूटकू जाने से मना कर रहा था, परन्तु मैंने समझा कर उसे भेज दिया और दीपावली के बाद वापिस आने के लिए कह दिया।
रात को मेरे बहुत मना करने के बाद भी प्रीत नहीं मानी और हॉस्पिटल में ही रूक गई।
तुम अपूर्वा से शादी कर लेना। मैं अपने नए फोन के फंक्शन्स चैक कर रहा था कि प्रीत की आवाज बम की तरह मेरे कानों में पड़ी। ‘मैं भी कितनी बेवकूफ हूं, ये भी कोई कहने की बात है, अपूर्वा से ही करोगे, उससे प्यार करते हो तो शादी तो उससे ही करनी चाहिए’। उसकी आंखों में आंसू थे।
मैंने पकड़कर उसे अपनी बाहों में भर लिया और उसके आंसु पौंछने लगा। ‘वो सब बाद की बातें है, अभी पहले सोनल को ठीक होने दो, उसके बारे में बाद में सोचेंगे’। मैं कह तो रहा था, परन्तु खुद ही कुछ समझ में नहीं आ रहा था। सारी भागदौड़ और टेंशन में मैं इस बारे में भूल ही गया था, परन्तु प्रीत की ये बात ऐसे दिमाग पर जाकर लगी कि बस मैं सोचता ही रह गया कि अब क्या करूंगा।
अपूर्वा बेवफा नहीं थी, परन्तु उसके इस कुछ दिनों के बेवफाई के ड्रामे ने सोनल को मेरे इतने करीब ला दिया था कि मैं दोनों के बीच उलझ चुका था।

मैं मोबाइल में गेम खेल रहा था कि दरवाजा खुलने की आवाज हुई। मैंने गर्दन उठाकर देखा तो एकदम से जड़ रह गया। सामने अपूर्वा खड़ी थी। उसके पिछे नवरीत थी। अपूर्वा भी वहीं खड़ी रह गई। नवरीत ने उसका हाथ पकड़कर अंदर खींचा और मेरे सामने आकर खड़ी हो गई।
जीजू, नवरीत ने मेरे चेहरे के सामने चुटकी बजाते हुए कहा। मैं जैसे नींद से जागा हो, एकदम से हड़बड़ा गया। ऐसा नहीं था कि मैं कहीं खो गया था या अपूर्वा के अलावा मुझे और कुछ दिखाई ही नहीं दे रहा था। परन्तु अपूर्वा को मैं जिस हाल में देख रहा था, मैं बस अंदाजा ही लगा सकता था कि वो कितनी तड़पी है। उसके आंखों के नीचे काले घेरे पड़ चुके थे। चेहरा एकदम मुरझा गया था। जो कपड़े हमेशा उसके बदन को कसे हुए रहते थे वो आज ढीले-ढाले दिखाई पड़ रहे थे। मेरी आंखों से दो आंसू टपक गये।
मैं उठा, अपूर्वा ने कुछ कहने के लिए अपने होंठ खोलने चाहे, परन्तु मैंने उसके होंठों को अपनी उंगली से बंद कर दिया। अगले ही पल हम एक दूसरे की बाहों में थे। मेरे सिने से लगते ही अपूर्वा फूट-फूट कर रोने लगी। मेरी आंखों से भी आंसु बहने लगे थे। अपूर्वा के रोने की आवाज सुनकर नर्स अंदर आई और ज्यादा तेज न रोने के लिए कहकर चली गई।
काफी देर तक हम एक-दूसरे की बाहों में खोये रहे। हमारे आंसु सूख चुके थे, परन्तु एक-दूसरे की बाहों में सिमटे हुए जो सुख मिल रहा था, जी चाह रहा था कि बस हमेशा के लिए ऐसे ही एक-दूसरे की बांहों में कैद होकर रह जाये। काफी देर बाद हम अलग हुये।
मैं डर---- अपूर्वा ने इतना कहा था कि मैंने उसके होंठों पर फिर से उंगली रखकर उसे चुप करवा दिया।
‘कुछ कहने की जरूरत नहीं है, अपूर्वा, मुझे सब पता है’ मैंने कहा और वो फिर से मेरी बांहों में कैद हो गई। आंखों से फिर से आंसु बहने लगे, परन्तु अबकी बार आंसुओं में आवाज नहीं थी, बस प्यार के आंसु बह रहे थे।
जब हम कुछ नोर्मल हुए तो एक दूसरे से अलग हुए। प्रीत दरवाजे पर खड़ी खड़ी हमें देख रही थी। मैं अपूर्वा में इतना खो गया था कि वो कब बाथरूम से लौटी पता ही नहीं चला।
वहां क्यों खड़ी रह गई, मैंने उसकी तरफ देखते हुए कहा। वो खड़ी खड़ी बस मुस्करा रही थी। मुस्कराती हुई वो हमारे पास आई और अपूर्वा को देखते ही उसके चेहरे पर हैरत के भाव आ गये।
ये आंखों के नीचे काले धब्बे क्यों पड़े हुए हैं, उसने आश्चर्य से पूछा और हमारी तरफ देखने लगी।
वो बस ऐसे ही, हमेशा चिंता लगी रहती थी इसलिए, अपूर्वा ने झिझकते हुए कहा।
बहुत प्यार करती हो ना समीर से, प्रीत ने उसके गाल पर एक हाथ रखते हुए पूछा।

हूं,,,,, अपूर्वा ने शरमाते हुए कहा और नीचे देखने लगी।
वो सोनल,,,, अपूर्वा ने सोनल की तरफ देखते हुए कहा और उसकी तरफ बढ़ गई।
कोमा में है, प्रीत ने कहा और अपूर्वा के पिछे पिछे सोनल की तरफ चली गई। मैं और नवरीत भी सोनल के पास आ गये।
अपूर्वा बेड के पास बैठ गई और सोनल का हाथ अपने हाथ में ले लिया। ‘जल्दी से उठ जा, अब कितना सोयेगी यार, कहते हुए अपूर्वा की आंखें से आंसू टपक गये। ‘मेरी तो ये भी समझ नहीं आ रहा कि तेरा किस तरह से थैंक्स करूंगी, तुने मेरे समीर को मेरे लिए बचा लिया, उसे टूटने नहीं दिया, मैं तेरा ये अहसान जिंदगी भर नहीं भूलूंगी’। अपूर्वा ने सोनल का हाथ अपने गाल पर रख लिया। प्रीत उसे देखकर मंद-मंद मुस्करा रही थी।
 

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ये लो, फोन पर फोन आ रहे हैं और साहबजादे अभी तक तैयार ही नहीं हुए हैं, जल्दी से तैयार हो जा, नहीं तो ऐसे ही भेज दूंगी, कच्छे कच्छे में ही, भाभी कमरे में आते ही शुरू हो गई।
आज मेरी शादी है। पिछले दो साल से मैं शादी को टालता आ रहा था। परन्तु आखिर मुझे सबके सामने झुकना ही पड़ा और शादी के लिए हां करनी पड़ी। घर में चारों तरफ खुशियों का माहौल है। परन्तु मेरे मन में शादी की वो खुशी नहीं है।
जयपुर से दो बार फोन आ चुका है जल्दी रवाना होने के लिए। आखिरकार 9 बजे बारात जयपुर के लिए रवाना हो गई। शाम को 4 बजे जयपुर पहुंचे। किसी पॉलेस की जगह सारा प्रोग्राम घर पर ही किया गया था। जब अपूर्वा फेरों के लिए आई तो मैं तो बस उसे देखता ही रह गया। मासाल्लाह, क्या लग रही थी, एकदम अप्सरा। उसके बाईं तरफ नवरीत और दाईं तरफ प्रीत उसे पकड़ कर ला रही थी। मेरी और अपूर्वा की नजरें मिली तो मैंने उसे आंखों से इशारा किया कि एकदम परी लग रही हो। पहले तो वो कुछ समझी नहीं, परन्तु जैसे ही उसके समझ आया, एकदम से शरमा गई और चेहरा नीचे कर लिया।
मैंने नवरीत की तरफ आंख दबा दी तो वो हंसने लगी। फेरों के बाद विदाई की रस्म हुई। वापिसी के लिये निकलते निकलते 1 बज गया था। जयपुर से बाहर निकलते ही अपूर्वा ने मेरे कंधे पर सिर टिका दिया और सो गई। सुबह 8 बजे घर पहुंचे। आंखों में नींद भरी हुई थी और शरीर भी दर्द कर रहा था और उपर से इतनी सारी रस्में, शाम के चार बजे तक यही सब चलता रहा। फ्री होते ही मैं जाकर सो गया। बेचारी अपूर्वा, लेडिजों से घिरी हुई, फंसी रही। मैंने निकालना भी चाहा उसे, परन्तु भाभियों ने मुझे झिडक दिया। अब भाभियों के सामने कहां मेरी चलने वाली थी। जब बात नहीं बनी तो मैं आकर सो गया।
फोन की रिंग से आंख खुली। उठाकर देखा तो नवरीत की कॉल थी। मैंने कॉल उठाकर हैल्लो कहा।
हाय, जीजू, उधर से आवाज आई।
क्या हाल-चाल हैं, साली साहिबा के, मैंने उंघते हुए कहा।
उंघ क्यों रहे हो, सो रहे थे क्या? नवरीत ने पूछा।
हां, नींद आ रही थी तो सो गया था, अभी तुम्हारे फोन ने ही उठाया है, मैंने कहा।
सोनल को होश आ गया है, नवरीत ने कहा। उसकी बात सुनते ही मेरी खुशी का ठिकाना न रहा। खुशी की वजह से मैं कुछ बोलना ही भूल गया। आंखें नम हो गई।
‘मैं आ रहा हूं, मैं अभी आ रहा हूं’, मैंने कहा। मैं उससे बात करता हुआ बाहर आ गया। अपूर्वा अभी भी मेरी बहनों और भाभियों से घिरी हुई थी।
मैं उन सबके बीच में गया और अपूर्वा के कान में सोनल के बारे में बताया। अपूर्वा एकदम से खड़ी हो गई। सभी हमें घूर कर देखने लगे। मैंने उसे फोन दे दिया। उसने नवरीत से बातें की।
अभी निकल रहे हैं, जल्दी से कपड़े चेंज कर लो, मैंने अपूर्वा से कहा और मम्मी को बता दिया कि सोनल को होश आ गया है और हम अभी जा रहे हैं।
मम्मी ने थोड़ी बहुत आनाकानी की कि सुबह चले जाना। परन्तु मैंने उन्हें मनाया। तब तक अपूर्वा भी चेंज कर चुकी थी। मम्मी ने छूटकू को भी हमारे साथ भेज दिया।
रस्ते में मैंने फिर से नवरीत का नम्बर मिलाया। सोनल को दोपहर को ही होश आ गया था। डॉक्टर्स ने अभी उसे ऑब्जर्वेशन के लिए रखा हुआ था। वो सभी हॉस्पिटल में ही थे। प्रीत से बात की तो उसकी आवाज भावुक थी। जो बोलते बोलते रूंध जाती थी। रात के दो बजे हम जयपुर पहुंचे। हम सीधे हॉस्पिटल ही गये।
नवरीत के पापा, नवरीत और प्रीत वहीं पर थे। आंटी घर चली गई थी। सबसे दुआ-सलाम की, सोनल सो रही थी। अंकल ने बताया कि अभी कुछ देर पहले ही सोई है, इतने दिनों से लेटी हुई थी तो शरीर एकदम से काम नहीं कर रहा है, डॉक्टर्स ने कहा है दो-चार दिन में नोर्मल हो जायेगी।
जिस कारण से हम तुरंत घर से भागे थे, वो तो कुछ फायदा ही नहीं हुआ। हमारे लिए तो वो अभी भी कोमा में ही लग रही थी। कुछ देर उधर बैठे, फिर अंकल ने जबरदस्ती हमें घर भेज दिया। नवरीत भी हमारे साथ ही आ गई।
अचानक हमें देखकर अंकल-आंटी चौंक गये। शायद उन्हें हमारे आने के बारे में नहीं बताया गया था। अपूर्वा का रूम गिफ्रट और दूसरे सामानों से भरा हुआ था। इसलिए हम उसी रूम में सोये जिस रूम में पहली बार दो साल पहले हम इक्कठे सोये थे, जब सोनल, कोमल, नवरीत और मैं सभी अपूर्वा के घर पर ही सोये थे।
अब सोया तो क्या जा सकता था, चार बजे तो घर ही पहुंचे थे। मैं बेड से कमर लगाकर बैठ गया। अपूर्वा ने मेरे साथ बैठकर मेरे कंधे पर सिर रख दिया। पांच बजे का अलार्म बजते ही मैं उठ गया। अपूर्वा की आंख नहीं खुली।
उठकर मैं बाथरूम गया और फ्रेश होकर अपूर्वा को उठाया। वो भी जल्दी से फ्रेश हुई और छः बजे हम हॉस्पिटल के लिए निकले। अभी हमने गाड़ी गेट से बाहर ही निकाली थी कि पिछे से नवरीत आवाज लगाती हुई भागती हुई आई।
मुझे कहां छोड़कर जा रहे हो, नवरीत ने खिड़की खोलकर अंदर घुसते हुए कहा।
अरे, छूटकू के साथ आ जाती ना तुम, वो बेचारा अकेला रह जायेगा, मैंने कहा।
रह जायेगा तो रह जायेगा, उठा क्यों नहीं, मैं आपके साथ ही चलूंगी, नवरीत ने कहा।

सोनल अभी सो रही थी। हम जाकर अंकल के पास बैठ गये। अंकल उठ चुके थे। प्रीत भी अभी सो रही थी। मैंने अपूर्वा को वहीं पर बैठाया और चाय लेने आ गया।
जब मैं चाय लेकर वापिस आया तो खुशी का ठिकाना नहीं रहा। सोनल उठ चुकी थी। अपूर्वा उसके पास बैठी बातें कर रही थी। मुझे देखते ही सोनल एकदम से उठकर खडी हो गई। मैंने चाय वहीं टेबल पर रखी और सोनल को बाहों में भर लिया। वो मेरी बांहों में सिमट गई। दोनों की आंखों से आंसु बह रहे थे। कितनी ही देर तक हम बांहों में समाये हुए एक दूसरे को महसूस करते रहे।
जब आंसुओं का सैलाब रूक चुका था तो सोनल ने अपनी बांहें खोली और अपूर्वा को भी अपनी बाहों में भर लिया।
‘मुझे बहुत अफसोस है, मैं अपने हाथों से अपूर्वा को शादी का जोड़ा नहीं पहना सकी’, सोनल ने कहा। एकबार फिर से आंसुओं का सैलाब बह निकला और मैंने सोनल को कसके बाहों में जकड़ लिया।
कितना इंतजार किया तुम्हारा, मैंने तो सबको कह दिया था कि तुम्हारे बिना शादी नहीं होगी, पर तुमने तो जैसे कसम ही खा ली थी कि शादी होने के बाद ही जागूंगी, कहते हुए मैंने सोनल को खुद से अलग किया और उसके चेहरे को हाथों में भर लिया। सोनल कुछ देर तक मेरे चेहरे को निहारती रही और फिर से मेरी बांहों में सिमट गई। अपूर्वा उसके बालों में हाथ फिरा रही थी।


‘पापा, अपूर्वा की तो कोई भी मम्मी, मेरी दूसरी मम्मी जितनी दूर नहीं रहती’ जिज्ञासा ने मेरी मूंछों से खेलते हुए कहा।

किस अपूर्वा की बात कर रही हो बेटा, मैंने आश्चर्य से पूछा।
‘धत तेरे की’, जिज्ञासा ने अपने माथे पर हाथ मारा। ‘आपको मैंने बताया ही नहीं उसके बारे में, वो मेरी बहुत अच्छी दोस्त है, मेरी ही क्लास में पढ़ती है, हम दोनों है ना साथ-साथ ही बैठते हैं’, जिज्ञासा ने मासूमियत के साथ कहा।
बेटा, सबकी दो मम्मीयां नहीं होती, वो तो किसी किसी ही होती हैं, कहते हुए मेरी आंखें नम हो गई।
बेटा, चलो अब सो जाओ, नहीं तो सुबह फिर लेट उठोगी, सोनल ने जिज्ञासा को खींचकर अपनी बांहों में भर लिया और अपने उपर लेटा लिया।
प्यारी-सी नन्ही-सी जिज्ञासा बहुत ही नटखट और चुलबुली है, हमेशा शरारतें करती रहती है। सोनल ने उसके लिए अपनी खुशी को कुर्बान कर दिया और खुद के बच्चे को जन्म देने से मना कर दिया। मेरे बहुत समझाने पर भी वो नहीं मानी। हमेशा यही कहकर मुझे चुप कर देती कि हो सकता है मेरे बच्चे होने पर मैं जिज्ञासा को उतना प्यार नहीं दे पाउं, उसे उसका पूरा हक नहीं दे पाउं।
आज अपूर्वा की मौत के दो साल बाद उसकी बरसी पर हम जयपुर आये हैं। अपूर्वा की मृत्यु के बाद से ही आंटी बिमार रहने लगी थी और अब उन्होंने बिस्तर पकड़ लिया है, डॉक्टर्स ने भी हाथ खड़े कर दिये हैं, सभी तरह के टैस्ट होने के बाद भी किसी बिमारी का पता नहीं चल पाया।
‘बेटा, सारे काम तो निपट गये, अब और ज्यादा जीकर करना भी क्या है, मुझे तो बस इसी बात की खुशी है कि मेरी बच्ची को सोनल जैसी मां मिल गई, नहीं तो उसी की चिंता लगी रहती थी’, जब भी मैं आंटी से बात करता हूं, तो उनका यहीं जवाब होता है। ‘अपूर्वा भी बहुत खुश होगी ये देखकर कि सोनल ने एकबार फिर से तुम्हें संभाल लिया है’ आंटी ने कहा और सोनल का हाथ पकड़कर अपने पास बैठा लिया और उसको दुलारने लगी। जिज्ञासा मेरे से हाथ छुड़ाकर नानी की के बेड पर चढ़कर नानी के गालों पर किस्सी करने लगी।
जिज्ञासा को जन्म देने के 7 महीने बाद ही अपूर्वा हमें अकेला छोड़कर चली गई थी। डॉक्टर्स ने बताया था कि उसे कोई बात अंदर ही अंदर खाये जा रही है, जिस कारण से वो बिस्तर पकड़ रही है। धीरे धीरे उसने बिस्तर पर से उठना ही बंद कर दिया।
‘मैं सोनल से उसका हक नहीं छीन सकती, तुम्हारे उपर असली हक सोनल का है’, जाते-जाते उसने कहा था और सोनल से वादा लिया था कि वो जिज्ञासा और समीर को संभाल लेगी। मैंने और सोनल ने उससे बहुत मिन्नतें की थी, परन्तु उसने किसी की परवाह नहीं की, किसी की बात नहीं मानी और हमें अकेला छोड़कर चली गई।



samaapt
 

kumarrajnish

kumaruttem
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कहानी में एक नया मोड़

what a twist......................

:yourock::yourock::yourock::yourock::yourock::yourock::yourock:

कहीं apoorva को मार तो नहीं दिया आपने

Fantastic update

Jabardast twist....

Per Sonal aise kaise Haidarabad se 2 din mein hi wapas aa gayi... Agar Diwali vacation ke karan... To fir jaane ki hi jarurat kya thi????

Nice Update....

Achchhi bhali adultry ko thriller bana diya.
.....
Ab kya twist a gaya
thanks sabhi bhai logo ko saath bane rahne ke liye
 

sunoanuj

Well-Known Member
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Bahut hee jabardast or tufaani update diye mitr ...
 
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