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ऑफिस में पूरा दिन ऐसे ही गुजर गया। एक तो मनीषा और रामया आई नहीं, और उपर से सुमित का कल मनीषा ने दिल तोड़ दिया तो वो तो बेचारा उसी गम में डूबा हुआ था और फिर बॉस भी नहीं आये।
मुझे हंसी भी आ रही थी, और बेचारे सुमित पर तरस भी आ रहा था। हुआ कुछ यूं कि उसने कल शाम को ही मनीषा को परपोज कर दिया। अब चार-पांच दिन में ही कोई किसी को परपोज करेगा तो दिल तो टूटेगा ही, शुक्र तो इस बात का था कि थप्पड़ नहीं पड़ा।
पूरी बात क्या हुई, ये तो उसने बताई नहीं और पूरे दिन गुमशुम बैठा रहा, मैंने कोशिश भी की बेचारे का गम बांटने की, पर अब मैं भी क्या कर सकता था।
तो पूरा दिन ऐसे ही बोर होते हुए बीत गया। बॉस भी बस एक बार आये और कोमल भी उनके साथ ही चली गई। जब तक वो ऑफिस में रही, तो बॉस के केबिन में ही रही। तो उससे भी बस हाय-हैल्लो के अलावा कुछ बात नहीं हो पाई।
कुछ अपना गम और बेचारे सुमित का गम और मिल गया उसमें तो थोड़ा ज्यादा ही सेंटी हो गया, तो 3 बजे ही बॉस को फोन किया और घर जाने की कह दी। सुमित भी मेरे साथ ही निकल लिया। पियोन ने लॉक लगाकर चाबी मुझे दे दी और मैं घर के लिए चल पड़ा।
हैल्लो, दिन में भी सोते रहते हो, रात को तारे गिन रहे थे, अभी हल्की सी आंख लगी ही थी कि मुझे नवरीत की आवाज सुनाई दी। एकबार तो समझ में नहीं आया कि क्या है, परन्तु ही पल में उठकर बैठ गया।
हाय, सामने नवरीत खड़ी थी, उसने जींस और शर्ट पहनी हुई थी। मैंने आंखें मसलते हुए उसकी तरफ देखा।
हाय, कैसे हो, नवरीत ने मेरे बालों में हाथ डालकर बालों को बिखेरते हुए कहा।
ठीक हूं, बैठो, मैंने थोड़ा साइड में होते हुए कहा।
नवरीत मेरे से सट कर बैठ गई।
कल तुम इस तरह भाग गई, बहुत बुरा लगा, मैंने रसोई में पानी पीते हुए कहा।
अब मैं क्या करती, नवरीत ने बस इतना ही कहा।
ऐसे एकदम से इस तरह थोड़े ही भागकर जाते हैं, मैंने बैठते हुए कहा।
छोड़िये ना उस बात को, आज मैं किसी और काम के लिए आई हूं, नवरीत ने कहा।
किस काम के लिए, मैंने उसकी तरफ देखते हुए कहा।
नवरीत के गालों पर लाली चमक रही थी और उसके होंठ हल्के हल्के कांप रहे थे।
थोड़ी देर तक नवरीत कुछ भी नहीं बोली और नीचे नजरें करके बैठी रही। मैं उसके बोलने के इंतजार में उसकी तरफ देखता रहा।
मुझे तुम्हारे साथ प्यार करना है, उसने एकदम से कहा और अपना चेहरा दूसरी तरफ कर लिया।
उसकी बात सुनकर मैं एकदम से शॉक्ड रह गया और गौर से उसकी तरफ देखने लगा। मैंने उसका चेहरा अपनी तरफ घुमाया, उसकी आंखें बंद थी और गाल होंठों के साथ फड़क रहे थे। चेहरा एकदम लाल हो गया था और सांसे तेज चल रही थी।
ये क्या कह रही हो तुम, तबीयत ठीक है ना तुम्हारी, मैंने उसकी ठोडी से पकड़कर चेहरा उपर उठाते हुए कहा।
उसने एक झटके से अपनी आंखें खोली और उसके हाथ मेरे सिर पर आकर टिक गये और अगले ही पल उसके होंठ मेरे होंठों पर थे और वो बुरी तरह उन्हें चूस रही थी। एक पल को तो मैं हड़बड़ा गया, पर फिर उसे धीरे से खुद से अलग किया।
देखो, अभी प्रीत भी यहीं पर है, वो उपर आ गई तो प्रॉब्लम हो जायेगी, मैंने उसकी आंखों में देखते हुए कहा।
प्रीत आज दिन में ही अपने मामा के यहां चली गई है, नवरीत ने कहा और फिर से मेरे होंठों पर टूट पड़ी।
तुम्हें कैसे पता, बड़ी मुश्किल से उसको खुद से दूर कर पाया था इस बार मैं।
मैं दिन में आई थी, नवरीत ने जल्दी से कहा और अपनी शर्ट के बटन खोलने लगी। आई तो सोनल से मिलने थी, पर वो यहां पर नहीं थी, वो अपने मामा के यहां गई है, फिर आंटी के कहने पर प्रीत भी मामा के यहां चली गई, सोनल कल सुबह आ जायेगी, नवरीत के शर्ट के सभी बटन खुल चुके थे और लाल ब्रा में कैद उसके उन्नत उरोज अनावरत हो चुके थे।
पर---- मेरे मुंह से इतना ही निकला था, कि नवरीत की उंगली आकर मेेर होंठों पर टिक गई।
सीसससश्श्श्श्श्श्श्----- उसके होंठों से निकला और उसने अपनी शर्ट को उतार कर एक तरफ रख दिया।
उसके संगमरमरी बदन को देखकर मेरी नियत भी खराब होने लगी, परन्तु मैंने खुद पर कट्रोल रखने की कोशिश की।
देखो, ये सही नहीं है, मैं तुम्हारी बहन से प्यार करता हूं, मैंने कहा।
तो क्या हुआ, इस हिसाब से मैं तुम्हारी साली लगी ना, और वैसे भी अब तुम्हारी शादी उससे नहीं हो सकती, नवरीत ने ब्रा के हुक खोलते हुए कहा। वो बहुत ही जल्दबाजी से अपने कपड़े उतार रही थी।
पर यहां पर कोई भी आ सकता है, तुम सम-------- उसके ब्रा से आजाद हुए उभारों ने मेरी सिटीपिटी गुम कर दी, मेरा मुंह खुला का खुला रह गया, एक पल को दिमाग ने काम करना ही बंद कर दिया। एकदम कसे हुए, उसकी तेज चलती सांस के साथ ऐसे उपर नीचे हो रहे थे जैसे निमंत्रण दे रहे हैं, न ज्यादा बड़े और न ही छोटे, आराम से एक हाथ में समा जाये, एकदम गोल-गोल और हद से ज्यादा गोरे, उन पर हल्के गुलाबी गोले के बीच लालिमा लिये छोटे छोटे निप्पल।
नवरीत को मेरी हालत पर हंसी आ गई। मैं एकदम से झेंप गया। ‘पसंद आये तुम्हें’, नवरीत ने मेरा हाथ खींचकर अपने एक उभार रख दिया। मेरी तो नजर वहां से हटने का नाम ही नहीं ले रही थी। इतना नर्म की रूई भी शर्मा जाये।
मैंने अपने सिर को झटका और उसकी शर्ट उठाते हुए उसे पहनाने लगा। मेरी इस हरकत से नवरीत एकदम बौखला गई और धक्का देकर मुझे बेड पर गिरा दिया और मेरी दोनों तरफ पैर करके मेरी जांघों पर बैठ गई। मेरे हाथों की उंगलियां उसके हाथों की उंगलियों में फंस चुकी थी और नवरीत मेरी तरफ देखकर मंद मंद मुस्करा रही थी।
लगता है आज घर से पूरी तैयार होके आई हो, मैंने थोड़ा कसमसाते हुए कहा।
सोच रही थी कि जब तुम मेरी शर्ट के बटन खोलेगे तो मुझे कितनी शर्म आयेगी, पर यहां तो सब कुछ उलटा है, शर्म करूंगी तो कुछ नहीं मिलने वाला, नवरीत ने कहा और मेरे उपर लेट गई। अगले ही पल मेरे होंठ उसके फडफड़ाते होंठों के बीच कैद थे। नवरीत ने अपने हाथ नीचे किये और मेरी शर्ट को उपर की तरफ खींचने लगी। मेरी कमर नीचे से हल्की सी उठ गई और नवरीत ने अपने शरीर को मेरे शरीर से थोड़ा सा उपर उठाते हुए शर्ट को उपर गले तक खींच दिया और वापिस मेरे उपर लेट गई। उसके होंठ एक पल के लिए भी मेरे होठों से अलग नहीं हुए। उसके उभार मेरी छाती पर दब गये। शरीर में एक आनंद की लहर दौड़ गई। कुछ देर बाद नवरीत ने मेरे होंठों को छोड़ा और हांफती हुई मेरे चेहरे की तरफ देखने लगी। उसके हाेंठों पर कातिल मुस्कान थी।
तुम इस तरह कैसे मुस्करा सकती हो, जबकि तुम्हारी बहन की शादी किसी ऐसे से हो रही है जिससे वो नहीं चाहती।
नवरीत का चेहरा एकदम सीरियस हो गया, परन्तु अगले ही पल उसके होंठों पर फिर से मुस्कान फैल गई। ‘वो उसकी गलती है, मैं उसे बहुत समझा चुकी हूं, पर वो तो तुमसे बात भी नहीं करना चाहती, तो भुगतना तो उसको ही पड़ेगा, मैं क्यों परेशान होउं, जब वो मेरी बात ही नहीं मानती, मैंने तो उसे भाग जाने की भी कह दी, पर वो तो तुमसे बात ही नहीं करना चाहती’, नवरीत के चेहरे पर थोड़ी सी मुस्कराहट के साथ ही बैचेनी भी थी। ‘अब ऐसा ना हो कि मुझे तुम्हें भी समझाना पड़े, क्योंकि मैं अभी समझाने के मूड में बिल्कुल नहीं हूं’। नवरीत खड़ी हुई और अपनी जींस खोलने लगी। मैं आंखें फाड़े उसे देखे जा रहा था। वो जिस तरह से हड़बड़ा रही थी, जल्दबाजी दिखा रही थी जींस उतारने में, मुझे एक अलग ही आनंद आ रहा था, इसलिए मैं बस लेटे हुए उसे देखता रहा। उसकी जींस उसके जिस्म से अलग हो चुकी थी और वो वैसे ही मेरे उपर खड़ी हुई मुस्कराते हुए मुझे देख रही थी। उसका अंग अंग फड़क रहा था। उसका पेट बार-बार उछल रहा था। गाल एकदम से लाल हो चुके थे और आंखों में लाल डौरे तैर रहे थे। एकदम सपाट पेट और उपर से नीचे की तरफ लम्बी नाभि, भरी हुई मांसल जांघे, और उनके बीच व्हाईट पेंटी में छुपी पानी बहाती स्वर्ग की देवी, अपने सामने साक्षात काम की देवी को देखकर मेरा बुरा हाल हो चुका था।
नवरीत थोड़ा सा पिछे हुई और मेरे घुटनों पर बैठ गई। उसने एकबार कातिल निगाहों से मेरी तरफ देखा और फिर मेरी जांघों पर नजर गड़ा दी। उसने बहुत ही धीरे से अपने कांपते हुए हाथों को जींस में बने उभार पर रखा और महसूस करने लगी। मेरे लिंग को तो बुरा हाल हो गया। वो बाहर आने के लिए फड़फड़ाने लगा।
नवरीत तो जैसे उसी में खो चुकी थी। वो उसकी फड़फड़ाहट को अपने नाजुक हाथ पर महसूस कर रही थी। उसने धीरे से अपने कांपते हाथों से मेरे हुक को खोला और फिर डरते हुए चैन को खोलने ली। चैन को खोलने की गति इतनी धीमी थी मानों वो कोई पिटारा खोल रही हो। चैन खुलते ही लिंग ने थोड़े चैन की सांस ली और अगले ही पल और भी भयंकर तरीके से फुंफकारते हुए छटपटाने लगा। नवरीत ने धीरे से जींस के दोनों सिरों को एक दूसरे से अलग किया और फ्रेंची के उपर से ही अपना हाथ लिंग पर रख दिया। लिंग की मुंडी अभी भी जींस के नीचे दबी हुई थी। परन्तु अब पहले से ज्यादा बड़ा उभार बन चुका था।
नवरीत थोड़ा सा पिछे को हुई और जींस को खींचकर घुटनों तक कर दिया और वापिस घुटनों पर बैठ गई। उसकी मुडी हुई नंगी जांघे मेरी जांघों से टकरा रही थी। मैंने शर्ट को उतार दिया था और उसकी मासूम सी हरकतों को देख रहा था।
जांघों की तरफ जाते हुए उसके हाथ तो कांप ही रहे थे, उसके होंठ भी फड़क रहे थे। उसने नजरें उठाकर मेरी तरफ देखा और मुझे खुदको ही घूरते पाकर एकदम से शर्मा कर खुद में ही सिमट गई और मेरे उपर लेटकर अपना चेहरा मेरे पेट में छुपा लिया।
मेरे हाथ उसके सिर पर पहुंच गये और कभी उसके गाल को तो कभी बालों को सहलाने लगे। नवरीत की उंगलियां मुझे अपने लिंग पर महसूस हुई। उसने बहुत ही हौले से उसे फ्रेंची के उपर से ही पकड़ा था। मेरे शरीर में तो एक झरनाटा सा दौड़ गया। मुझे उसका हाथ अपनी फ्रेंची के किनारों पर महसूस हुआ और अगले ही पल फ्रेंची थोड़ी सी उपर उठती हुई महसूस हुई। कुछ देर बाद नवरीत का हाथ मेरे नंगे लिंग पर था और वो उसे अपनी नाजुक उंगलियों से महसूस कर रही थी। फ्रेंची सरककर नीचे हो चुकी थी। नवरीत की तेज चलती गर्म सांसे मुझे अपने पेट पर महसूस हो रही थी।
मैंने उसे पकड़कर उपर की तरफ खींचा और उसके उभार मेरे पेट से रगड़ते हुए दब गये। अब उसका सिर मेरी छाती पर था उसका आधा शरीर बेड पर और आधा मुझपर था। परन्तु उसकी उंगलियां अभी भी मेरे लिंग पर ही हरकत कर रही थी। अचानक उसने लिंग को मुट्ठी में भर लिया और चेहरे को उपर की तरफ करते हुए मेरी तरफ देखा। उसके काम वासना में लिप्त इस चेहरे को देखते ही मैं पागल हो गया और उसे उपर खींचते हुए उसके होंठों को अपनी गिरफत में ले लिया।
नवरीत का शरीर मेरे नीचे पूरी तरह से दब चुका था। लिंग गीली पेंटी के उपर से उसकी योनि पर दस्तक दे रहा था। नवरीत के बाल उसके चेहरे पर बिखर चुके थे जिन्हें संवारकर मैंने पिछे की तरफ करके बेड पर फैला दिया। उसकी जोरों से उपर नीचे होती छाती मेरी छाती में दब रही थी। उसकी आंखें बंद थी और तेज गर्म गर्म सांसे मुझे अपने चेहरे पर महसूस हो रही थी। जिस सिद्दत के साथ वो मेरे होंठों को चूस रही थी उसकी बैचेनी साफ झलक रही थी।
नवरीत ने वैसे ही लेटे हुए अपने हाथ नीचे की तरफ किए और उसके कुल्हें एक बार थोड़े से उपर उठे और वापिस नीचे हो गये। अब लिंग उसकी नग्न योनि से भिड़ गया था। अपने ही रस में नहाकर चिकनी हो चुकी उसकी योनि पर लिंग का स्पर्श मुझे पागल कर गया और मेरे हाथ नीचे की तरफ गये और मेरी फ्रेंची और रीत की पेंटी और भी नीचे घुटनों से नीचे सरक गई। वहां से नीचे का काम पैरों ने संभाला और दोनों की अंडरवियर अब बेड से नीचे पहुंच चुके थे। नवरीत के हाथ मेरी कमर पर कस चुके थे। मैंने अपने कुल्हों को थोड़ा सा उपर उठाया और लिंग उसकी योनि की फांकों के बीच सैट हो गया। हमारे होंठ उसी तरह एक दूसरे से उलझे हुए थे। मैंने कुल्हों का थोड़ा सा नीचे की तरफ दबाव बनाया और लिंग फिसल कर उसकी योनि के द्वार पर जाकर रूक गया। नवरीत की सांसे और भी तेजी से चलने लगी और उसके पेट की फड़क मुझे अपने पेट पर महसूस होने लगी।
मैंने थोड़ा सा दबाव बढ़ाया, नवरीत एकदम कसमसा गई। लिंग पर उसकी योनि की गिरफत महसूस हो रही थी। नवरीत के पैर मेरे कुल्हों पर कस चुके थे और अपनी पकड़ बढ़ाते ही जा रहे थे। लिंग धीरे धीरे अंदर जा रहा था और उसकी योनि का दबाव उसे बुरी तरह जकड़े जा रहा था। आधा लिंग अंदर जा चुका था, परन्तु अब ऐसा लग रहा था जैसे उसकी योनि लिंग को भींच कर मार देगी। नवरीत के कुल्हें बार बार उठ रहे थे और लिंग को और अंदर लेने की कोशिश कर रहे थे। मुझे उसका शरीर अकड़ता हुआ महसूस हुआ और उसकी योनि की पकड़ और भी टाइट हो गई। मैंने धीरे से लिंग को बाहर की तरफ खींचा और एक जोरदार धक्का मार दिया। लिंग उसकी योनि की दीवारों से घिसता हुआ जड़ तक समा गया। नवरीत का शरीर अकड़ कर बेड से उपर उठ गया था और उसके दांत मेरे होंठों पर गड़ गये थे। उसके हाथों की पकड़ इतनी बढ़ गई थी कि मुझे दम घुटता हुआ महसूस हुआ और पैरों के पेंज और एड़ियां कुल्हों पर गड़ गये थे।
थोड़ी देर बार वो नोर्मल हुई और उसकी पकड़ कुछ कम हुई। मैं धीरे धीरे लिंग को योनि में अंदर बाहर करने लगा। ऐसा महसूस हो रहा था जैसे लिंग अंदर गहराई तक जाकर आ रहा है और आगे जाने के लिए कोई जगह नहीं है। धीरे धीरे धक्कों की स्पीड़ बढ़ती गई और जब तूफान रूका तो हम दोनों ही आनंद के सागर में गोते लगा रहे थे।
मैं नवरीत के उपर ही लेट गया और नोर्मल होने की कोशिश करने लगा। नवरीत की बांहों की पकड़ अभी भी मेरी कमर पर बनी हुई थी। कुछ देर बाद नवरीत ने आंखें खोली और मेरे चेहरे पर छोटी छोटी प्यार भरी किस्सी करने लगी।
ऐसे मत देखो, मुझे शरम आ रही है, नवरीत ने जींस पहनते हुए कहा। परन्तु मैं वैसे ही उसे प्यार से देखता रहा। आखिर देखूं भी क्यों नहीं हुस्न की मल्लिका को।
नवरीत कुछ देर और वहीं पर रही। चाय पीने के बाद वो फ्रेश होकर चली गई। मैं बाहर आकर बैठ गया।
मजे ही मजे हैं तुम्हारे तो, इतनी सारी कमसीन लड़कियां, एक से बढकर एक खूबसूरत,------- जैसे ही मेरे कानों में आवाज पड़ी मैंने चौंककर आवाज की तरफ देखा, पूनम खड़ी खड़ी हंस रही थी।
अरे तुम कब आई------
जब तुम उस हुस्न परी के साथ गोते लगा रहे थे, पूनम ने चेयर पर बैठते हुए कहा। ‘सोनल नहीं दिखाई दे रही आज’। पूनम के चेहरे पर हंसी लगातार बनी हुई थी।
वो अपने मामा जी के यहां गई है, कल आयेगी। मैं पूनम के शरीर को गौर से देख रहा था। वो खिल चुकी थी, उसका शरीर भर सा गया था और चेहरा दमक रहा था। पहले से काफी बदलाव आ चुका था उसमें।
काफी देर तक हम बातें करते रहे। उसके जाने के बाद मैं बाहर घूमने आ गया। चलते चलते ऐसे ही मैं पार्क की तरफ पहुंच गया, तो सोचा आज कुछ देर पार्क में बैठ लेता हूं।
अंदर घूसते ही सामने मोनी दिखाई दी। हमारी नजरें मिलते ही मैं मुस्करा दिया। उसने भी एक फीकी सी मुस्कान दी और आगे बढ़ गई। मुझे थोड़ी सी हैरानी तो हुई, पर अब हर लड़की मेरे पिछे ही थोड़े भागेगी, तो मैंने ज्यादा धयान नहीं दिया और एक बेंच पर बैठ गया। मोनी अचानक नजरों से ओझल हो गई थी। बैठे बैठे मैं पार्क में घूमने वालों को देखने लगा। काफी नए चेहरे दिखाई दे रहे थे, पुराने भी थे, पर कुछ पुराने चेहरे गायब थे।
फिर सोनल का फोन आया और उसने बताया कि वो दोपहर तक पहुंच जायेगी। उसने शाम को मूवी के लिए टिकटें बुक करने को कहा।
घर आने पर मैंने खाना तैयार किया और खा पीकर लेटा हुआ था कि नवरीत का फोन आ गया। जब उसे पता चला कि कल मूवी जा रहे हैं तो उसने भी चलने के कहा। सोने से पहले मैंने तीन टिकटें बुक कर ली।
अगले दिन ऑफिस में सोनल का फोन आया कि वो आ गई है तो मैं ऑफिस से छुट्टी लेकर जल्दी आ गया। प्रीत घर पर नहीं थी तो सोनल को किसी बात की टेंशन नहीं थी। आंटी भी पड़ोस में हो रहे धार्मिक पूजा पाठ में गई हुई थी। पांच बजने से पहले नवरीत भी आ गई और हम मूवी के लिए निकल गये।
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आहहहहहहहहहहहहहहहहहह.................... नींद खुली तो सिर में पिछे की तरफ तेज दर्द का अहसास हुआ और जैसे ही हाथ को उठाना चाहा, तो हाथ में कुछ लगा हुआ महसूस हुआ। मैंने धीरे से सिर उठाकर देखना चाहा, पर सिर को हिलाते ही बहुत ज्यादा दर्द का अहसास हुआ और एक दर्द भरी कराह निकल गई। मैंने अपने आसपास देखा तो समझ में नहीं आया कि मैं कहां हूं। तभी दरवाजा खुलने की आवाज आई और एक नर्स अंदर आई और एक इंजेक्शन लगा दिया। आंखें वापिस बंद होने से पहले मैंने मम्मी-पापा, छूटकू और नवरीत के मम्मी-पापा को खड़े देखा था। मैंने वापिस आंखें खोलनी चाही परन्तु आधी ही खुल पाई और मैं वापिस नींद के आगोश में चला गया।
मुझे हंसी भी आ रही थी, और बेचारे सुमित पर तरस भी आ रहा था। हुआ कुछ यूं कि उसने कल शाम को ही मनीषा को परपोज कर दिया। अब चार-पांच दिन में ही कोई किसी को परपोज करेगा तो दिल तो टूटेगा ही, शुक्र तो इस बात का था कि थप्पड़ नहीं पड़ा।
पूरी बात क्या हुई, ये तो उसने बताई नहीं और पूरे दिन गुमशुम बैठा रहा, मैंने कोशिश भी की बेचारे का गम बांटने की, पर अब मैं भी क्या कर सकता था।
तो पूरा दिन ऐसे ही बोर होते हुए बीत गया। बॉस भी बस एक बार आये और कोमल भी उनके साथ ही चली गई। जब तक वो ऑफिस में रही, तो बॉस के केबिन में ही रही। तो उससे भी बस हाय-हैल्लो के अलावा कुछ बात नहीं हो पाई।
कुछ अपना गम और बेचारे सुमित का गम और मिल गया उसमें तो थोड़ा ज्यादा ही सेंटी हो गया, तो 3 बजे ही बॉस को फोन किया और घर जाने की कह दी। सुमित भी मेरे साथ ही निकल लिया। पियोन ने लॉक लगाकर चाबी मुझे दे दी और मैं घर के लिए चल पड़ा।
हैल्लो, दिन में भी सोते रहते हो, रात को तारे गिन रहे थे, अभी हल्की सी आंख लगी ही थी कि मुझे नवरीत की आवाज सुनाई दी। एकबार तो समझ में नहीं आया कि क्या है, परन्तु ही पल में उठकर बैठ गया।
हाय, सामने नवरीत खड़ी थी, उसने जींस और शर्ट पहनी हुई थी। मैंने आंखें मसलते हुए उसकी तरफ देखा।
हाय, कैसे हो, नवरीत ने मेरे बालों में हाथ डालकर बालों को बिखेरते हुए कहा।
ठीक हूं, बैठो, मैंने थोड़ा साइड में होते हुए कहा।
नवरीत मेरे से सट कर बैठ गई।
कल तुम इस तरह भाग गई, बहुत बुरा लगा, मैंने रसोई में पानी पीते हुए कहा।
अब मैं क्या करती, नवरीत ने बस इतना ही कहा।
ऐसे एकदम से इस तरह थोड़े ही भागकर जाते हैं, मैंने बैठते हुए कहा।
छोड़िये ना उस बात को, आज मैं किसी और काम के लिए आई हूं, नवरीत ने कहा।
किस काम के लिए, मैंने उसकी तरफ देखते हुए कहा।
नवरीत के गालों पर लाली चमक रही थी और उसके होंठ हल्के हल्के कांप रहे थे।
थोड़ी देर तक नवरीत कुछ भी नहीं बोली और नीचे नजरें करके बैठी रही। मैं उसके बोलने के इंतजार में उसकी तरफ देखता रहा।
मुझे तुम्हारे साथ प्यार करना है, उसने एकदम से कहा और अपना चेहरा दूसरी तरफ कर लिया।
उसकी बात सुनकर मैं एकदम से शॉक्ड रह गया और गौर से उसकी तरफ देखने लगा। मैंने उसका चेहरा अपनी तरफ घुमाया, उसकी आंखें बंद थी और गाल होंठों के साथ फड़क रहे थे। चेहरा एकदम लाल हो गया था और सांसे तेज चल रही थी।
ये क्या कह रही हो तुम, तबीयत ठीक है ना तुम्हारी, मैंने उसकी ठोडी से पकड़कर चेहरा उपर उठाते हुए कहा।
उसने एक झटके से अपनी आंखें खोली और उसके हाथ मेरे सिर पर आकर टिक गये और अगले ही पल उसके होंठ मेरे होंठों पर थे और वो बुरी तरह उन्हें चूस रही थी। एक पल को तो मैं हड़बड़ा गया, पर फिर उसे धीरे से खुद से अलग किया।
देखो, अभी प्रीत भी यहीं पर है, वो उपर आ गई तो प्रॉब्लम हो जायेगी, मैंने उसकी आंखों में देखते हुए कहा।
प्रीत आज दिन में ही अपने मामा के यहां चली गई है, नवरीत ने कहा और फिर से मेरे होंठों पर टूट पड़ी।
तुम्हें कैसे पता, बड़ी मुश्किल से उसको खुद से दूर कर पाया था इस बार मैं।
मैं दिन में आई थी, नवरीत ने जल्दी से कहा और अपनी शर्ट के बटन खोलने लगी। आई तो सोनल से मिलने थी, पर वो यहां पर नहीं थी, वो अपने मामा के यहां गई है, फिर आंटी के कहने पर प्रीत भी मामा के यहां चली गई, सोनल कल सुबह आ जायेगी, नवरीत के शर्ट के सभी बटन खुल चुके थे और लाल ब्रा में कैद उसके उन्नत उरोज अनावरत हो चुके थे।
पर---- मेरे मुंह से इतना ही निकला था, कि नवरीत की उंगली आकर मेेर होंठों पर टिक गई।
सीसससश्श्श्श्श्श्श्----- उसके होंठों से निकला और उसने अपनी शर्ट को उतार कर एक तरफ रख दिया।
उसके संगमरमरी बदन को देखकर मेरी नियत भी खराब होने लगी, परन्तु मैंने खुद पर कट्रोल रखने की कोशिश की।
देखो, ये सही नहीं है, मैं तुम्हारी बहन से प्यार करता हूं, मैंने कहा।
तो क्या हुआ, इस हिसाब से मैं तुम्हारी साली लगी ना, और वैसे भी अब तुम्हारी शादी उससे नहीं हो सकती, नवरीत ने ब्रा के हुक खोलते हुए कहा। वो बहुत ही जल्दबाजी से अपने कपड़े उतार रही थी।
पर यहां पर कोई भी आ सकता है, तुम सम-------- उसके ब्रा से आजाद हुए उभारों ने मेरी सिटीपिटी गुम कर दी, मेरा मुंह खुला का खुला रह गया, एक पल को दिमाग ने काम करना ही बंद कर दिया। एकदम कसे हुए, उसकी तेज चलती सांस के साथ ऐसे उपर नीचे हो रहे थे जैसे निमंत्रण दे रहे हैं, न ज्यादा बड़े और न ही छोटे, आराम से एक हाथ में समा जाये, एकदम गोल-गोल और हद से ज्यादा गोरे, उन पर हल्के गुलाबी गोले के बीच लालिमा लिये छोटे छोटे निप्पल।
नवरीत को मेरी हालत पर हंसी आ गई। मैं एकदम से झेंप गया। ‘पसंद आये तुम्हें’, नवरीत ने मेरा हाथ खींचकर अपने एक उभार रख दिया। मेरी तो नजर वहां से हटने का नाम ही नहीं ले रही थी। इतना नर्म की रूई भी शर्मा जाये।
मैंने अपने सिर को झटका और उसकी शर्ट उठाते हुए उसे पहनाने लगा। मेरी इस हरकत से नवरीत एकदम बौखला गई और धक्का देकर मुझे बेड पर गिरा दिया और मेरी दोनों तरफ पैर करके मेरी जांघों पर बैठ गई। मेरे हाथों की उंगलियां उसके हाथों की उंगलियों में फंस चुकी थी और नवरीत मेरी तरफ देखकर मंद मंद मुस्करा रही थी।
लगता है आज घर से पूरी तैयार होके आई हो, मैंने थोड़ा कसमसाते हुए कहा।
सोच रही थी कि जब तुम मेरी शर्ट के बटन खोलेगे तो मुझे कितनी शर्म आयेगी, पर यहां तो सब कुछ उलटा है, शर्म करूंगी तो कुछ नहीं मिलने वाला, नवरीत ने कहा और मेरे उपर लेट गई। अगले ही पल मेरे होंठ उसके फडफड़ाते होंठों के बीच कैद थे। नवरीत ने अपने हाथ नीचे किये और मेरी शर्ट को उपर की तरफ खींचने लगी। मेरी कमर नीचे से हल्की सी उठ गई और नवरीत ने अपने शरीर को मेरे शरीर से थोड़ा सा उपर उठाते हुए शर्ट को उपर गले तक खींच दिया और वापिस मेरे उपर लेट गई। उसके होंठ एक पल के लिए भी मेरे होठों से अलग नहीं हुए। उसके उभार मेरी छाती पर दब गये। शरीर में एक आनंद की लहर दौड़ गई। कुछ देर बाद नवरीत ने मेरे होंठों को छोड़ा और हांफती हुई मेरे चेहरे की तरफ देखने लगी। उसके हाेंठों पर कातिल मुस्कान थी।
तुम इस तरह कैसे मुस्करा सकती हो, जबकि तुम्हारी बहन की शादी किसी ऐसे से हो रही है जिससे वो नहीं चाहती।
नवरीत का चेहरा एकदम सीरियस हो गया, परन्तु अगले ही पल उसके होंठों पर फिर से मुस्कान फैल गई। ‘वो उसकी गलती है, मैं उसे बहुत समझा चुकी हूं, पर वो तो तुमसे बात भी नहीं करना चाहती, तो भुगतना तो उसको ही पड़ेगा, मैं क्यों परेशान होउं, जब वो मेरी बात ही नहीं मानती, मैंने तो उसे भाग जाने की भी कह दी, पर वो तो तुमसे बात ही नहीं करना चाहती’, नवरीत के चेहरे पर थोड़ी सी मुस्कराहट के साथ ही बैचेनी भी थी। ‘अब ऐसा ना हो कि मुझे तुम्हें भी समझाना पड़े, क्योंकि मैं अभी समझाने के मूड में बिल्कुल नहीं हूं’। नवरीत खड़ी हुई और अपनी जींस खोलने लगी। मैं आंखें फाड़े उसे देखे जा रहा था। वो जिस तरह से हड़बड़ा रही थी, जल्दबाजी दिखा रही थी जींस उतारने में, मुझे एक अलग ही आनंद आ रहा था, इसलिए मैं बस लेटे हुए उसे देखता रहा। उसकी जींस उसके जिस्म से अलग हो चुकी थी और वो वैसे ही मेरे उपर खड़ी हुई मुस्कराते हुए मुझे देख रही थी। उसका अंग अंग फड़क रहा था। उसका पेट बार-बार उछल रहा था। गाल एकदम से लाल हो चुके थे और आंखों में लाल डौरे तैर रहे थे। एकदम सपाट पेट और उपर से नीचे की तरफ लम्बी नाभि, भरी हुई मांसल जांघे, और उनके बीच व्हाईट पेंटी में छुपी पानी बहाती स्वर्ग की देवी, अपने सामने साक्षात काम की देवी को देखकर मेरा बुरा हाल हो चुका था।
नवरीत थोड़ा सा पिछे हुई और मेरे घुटनों पर बैठ गई। उसने एकबार कातिल निगाहों से मेरी तरफ देखा और फिर मेरी जांघों पर नजर गड़ा दी। उसने बहुत ही धीरे से अपने कांपते हुए हाथों को जींस में बने उभार पर रखा और महसूस करने लगी। मेरे लिंग को तो बुरा हाल हो गया। वो बाहर आने के लिए फड़फड़ाने लगा।
नवरीत तो जैसे उसी में खो चुकी थी। वो उसकी फड़फड़ाहट को अपने नाजुक हाथ पर महसूस कर रही थी। उसने धीरे से अपने कांपते हाथों से मेरे हुक को खोला और फिर डरते हुए चैन को खोलने ली। चैन को खोलने की गति इतनी धीमी थी मानों वो कोई पिटारा खोल रही हो। चैन खुलते ही लिंग ने थोड़े चैन की सांस ली और अगले ही पल और भी भयंकर तरीके से फुंफकारते हुए छटपटाने लगा। नवरीत ने धीरे से जींस के दोनों सिरों को एक दूसरे से अलग किया और फ्रेंची के उपर से ही अपना हाथ लिंग पर रख दिया। लिंग की मुंडी अभी भी जींस के नीचे दबी हुई थी। परन्तु अब पहले से ज्यादा बड़ा उभार बन चुका था।
नवरीत थोड़ा सा पिछे को हुई और जींस को खींचकर घुटनों तक कर दिया और वापिस घुटनों पर बैठ गई। उसकी मुडी हुई नंगी जांघे मेरी जांघों से टकरा रही थी। मैंने शर्ट को उतार दिया था और उसकी मासूम सी हरकतों को देख रहा था।
जांघों की तरफ जाते हुए उसके हाथ तो कांप ही रहे थे, उसके होंठ भी फड़क रहे थे। उसने नजरें उठाकर मेरी तरफ देखा और मुझे खुदको ही घूरते पाकर एकदम से शर्मा कर खुद में ही सिमट गई और मेरे उपर लेटकर अपना चेहरा मेरे पेट में छुपा लिया।
मेरे हाथ उसके सिर पर पहुंच गये और कभी उसके गाल को तो कभी बालों को सहलाने लगे। नवरीत की उंगलियां मुझे अपने लिंग पर महसूस हुई। उसने बहुत ही हौले से उसे फ्रेंची के उपर से ही पकड़ा था। मेरे शरीर में तो एक झरनाटा सा दौड़ गया। मुझे उसका हाथ अपनी फ्रेंची के किनारों पर महसूस हुआ और अगले ही पल फ्रेंची थोड़ी सी उपर उठती हुई महसूस हुई। कुछ देर बाद नवरीत का हाथ मेरे नंगे लिंग पर था और वो उसे अपनी नाजुक उंगलियों से महसूस कर रही थी। फ्रेंची सरककर नीचे हो चुकी थी। नवरीत की तेज चलती गर्म सांसे मुझे अपने पेट पर महसूस हो रही थी।
मैंने उसे पकड़कर उपर की तरफ खींचा और उसके उभार मेरे पेट से रगड़ते हुए दब गये। अब उसका सिर मेरी छाती पर था उसका आधा शरीर बेड पर और आधा मुझपर था। परन्तु उसकी उंगलियां अभी भी मेरे लिंग पर ही हरकत कर रही थी। अचानक उसने लिंग को मुट्ठी में भर लिया और चेहरे को उपर की तरफ करते हुए मेरी तरफ देखा। उसके काम वासना में लिप्त इस चेहरे को देखते ही मैं पागल हो गया और उसे उपर खींचते हुए उसके होंठों को अपनी गिरफत में ले लिया।
नवरीत का शरीर मेरे नीचे पूरी तरह से दब चुका था। लिंग गीली पेंटी के उपर से उसकी योनि पर दस्तक दे रहा था। नवरीत के बाल उसके चेहरे पर बिखर चुके थे जिन्हें संवारकर मैंने पिछे की तरफ करके बेड पर फैला दिया। उसकी जोरों से उपर नीचे होती छाती मेरी छाती में दब रही थी। उसकी आंखें बंद थी और तेज गर्म गर्म सांसे मुझे अपने चेहरे पर महसूस हो रही थी। जिस सिद्दत के साथ वो मेरे होंठों को चूस रही थी उसकी बैचेनी साफ झलक रही थी।
नवरीत ने वैसे ही लेटे हुए अपने हाथ नीचे की तरफ किए और उसके कुल्हें एक बार थोड़े से उपर उठे और वापिस नीचे हो गये। अब लिंग उसकी नग्न योनि से भिड़ गया था। अपने ही रस में नहाकर चिकनी हो चुकी उसकी योनि पर लिंग का स्पर्श मुझे पागल कर गया और मेरे हाथ नीचे की तरफ गये और मेरी फ्रेंची और रीत की पेंटी और भी नीचे घुटनों से नीचे सरक गई। वहां से नीचे का काम पैरों ने संभाला और दोनों की अंडरवियर अब बेड से नीचे पहुंच चुके थे। नवरीत के हाथ मेरी कमर पर कस चुके थे। मैंने अपने कुल्हों को थोड़ा सा उपर उठाया और लिंग उसकी योनि की फांकों के बीच सैट हो गया। हमारे होंठ उसी तरह एक दूसरे से उलझे हुए थे। मैंने कुल्हों का थोड़ा सा नीचे की तरफ दबाव बनाया और लिंग फिसल कर उसकी योनि के द्वार पर जाकर रूक गया। नवरीत की सांसे और भी तेजी से चलने लगी और उसके पेट की फड़क मुझे अपने पेट पर महसूस होने लगी।
मैंने थोड़ा सा दबाव बढ़ाया, नवरीत एकदम कसमसा गई। लिंग पर उसकी योनि की गिरफत महसूस हो रही थी। नवरीत के पैर मेरे कुल्हों पर कस चुके थे और अपनी पकड़ बढ़ाते ही जा रहे थे। लिंग धीरे धीरे अंदर जा रहा था और उसकी योनि का दबाव उसे बुरी तरह जकड़े जा रहा था। आधा लिंग अंदर जा चुका था, परन्तु अब ऐसा लग रहा था जैसे उसकी योनि लिंग को भींच कर मार देगी। नवरीत के कुल्हें बार बार उठ रहे थे और लिंग को और अंदर लेने की कोशिश कर रहे थे। मुझे उसका शरीर अकड़ता हुआ महसूस हुआ और उसकी योनि की पकड़ और भी टाइट हो गई। मैंने धीरे से लिंग को बाहर की तरफ खींचा और एक जोरदार धक्का मार दिया। लिंग उसकी योनि की दीवारों से घिसता हुआ जड़ तक समा गया। नवरीत का शरीर अकड़ कर बेड से उपर उठ गया था और उसके दांत मेरे होंठों पर गड़ गये थे। उसके हाथों की पकड़ इतनी बढ़ गई थी कि मुझे दम घुटता हुआ महसूस हुआ और पैरों के पेंज और एड़ियां कुल्हों पर गड़ गये थे।
थोड़ी देर बार वो नोर्मल हुई और उसकी पकड़ कुछ कम हुई। मैं धीरे धीरे लिंग को योनि में अंदर बाहर करने लगा। ऐसा महसूस हो रहा था जैसे लिंग अंदर गहराई तक जाकर आ रहा है और आगे जाने के लिए कोई जगह नहीं है। धीरे धीरे धक्कों की स्पीड़ बढ़ती गई और जब तूफान रूका तो हम दोनों ही आनंद के सागर में गोते लगा रहे थे।
मैं नवरीत के उपर ही लेट गया और नोर्मल होने की कोशिश करने लगा। नवरीत की बांहों की पकड़ अभी भी मेरी कमर पर बनी हुई थी। कुछ देर बाद नवरीत ने आंखें खोली और मेरे चेहरे पर छोटी छोटी प्यार भरी किस्सी करने लगी।
ऐसे मत देखो, मुझे शरम आ रही है, नवरीत ने जींस पहनते हुए कहा। परन्तु मैं वैसे ही उसे प्यार से देखता रहा। आखिर देखूं भी क्यों नहीं हुस्न की मल्लिका को।
नवरीत कुछ देर और वहीं पर रही। चाय पीने के बाद वो फ्रेश होकर चली गई। मैं बाहर आकर बैठ गया।
मजे ही मजे हैं तुम्हारे तो, इतनी सारी कमसीन लड़कियां, एक से बढकर एक खूबसूरत,------- जैसे ही मेरे कानों में आवाज पड़ी मैंने चौंककर आवाज की तरफ देखा, पूनम खड़ी खड़ी हंस रही थी।
अरे तुम कब आई------
जब तुम उस हुस्न परी के साथ गोते लगा रहे थे, पूनम ने चेयर पर बैठते हुए कहा। ‘सोनल नहीं दिखाई दे रही आज’। पूनम के चेहरे पर हंसी लगातार बनी हुई थी।
वो अपने मामा जी के यहां गई है, कल आयेगी। मैं पूनम के शरीर को गौर से देख रहा था। वो खिल चुकी थी, उसका शरीर भर सा गया था और चेहरा दमक रहा था। पहले से काफी बदलाव आ चुका था उसमें।
काफी देर तक हम बातें करते रहे। उसके जाने के बाद मैं बाहर घूमने आ गया। चलते चलते ऐसे ही मैं पार्क की तरफ पहुंच गया, तो सोचा आज कुछ देर पार्क में बैठ लेता हूं।
अंदर घूसते ही सामने मोनी दिखाई दी। हमारी नजरें मिलते ही मैं मुस्करा दिया। उसने भी एक फीकी सी मुस्कान दी और आगे बढ़ गई। मुझे थोड़ी सी हैरानी तो हुई, पर अब हर लड़की मेरे पिछे ही थोड़े भागेगी, तो मैंने ज्यादा धयान नहीं दिया और एक बेंच पर बैठ गया। मोनी अचानक नजरों से ओझल हो गई थी। बैठे बैठे मैं पार्क में घूमने वालों को देखने लगा। काफी नए चेहरे दिखाई दे रहे थे, पुराने भी थे, पर कुछ पुराने चेहरे गायब थे।
फिर सोनल का फोन आया और उसने बताया कि वो दोपहर तक पहुंच जायेगी। उसने शाम को मूवी के लिए टिकटें बुक करने को कहा।
घर आने पर मैंने खाना तैयार किया और खा पीकर लेटा हुआ था कि नवरीत का फोन आ गया। जब उसे पता चला कि कल मूवी जा रहे हैं तो उसने भी चलने के कहा। सोने से पहले मैंने तीन टिकटें बुक कर ली।
अगले दिन ऑफिस में सोनल का फोन आया कि वो आ गई है तो मैं ऑफिस से छुट्टी लेकर जल्दी आ गया। प्रीत घर पर नहीं थी तो सोनल को किसी बात की टेंशन नहीं थी। आंटी भी पड़ोस में हो रहे धार्मिक पूजा पाठ में गई हुई थी। पांच बजने से पहले नवरीत भी आ गई और हम मूवी के लिए निकल गये।
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आहहहहहहहहहहहहहहहहहह.................... नींद खुली तो सिर में पिछे की तरफ तेज दर्द का अहसास हुआ और जैसे ही हाथ को उठाना चाहा, तो हाथ में कुछ लगा हुआ महसूस हुआ। मैंने धीरे से सिर उठाकर देखना चाहा, पर सिर को हिलाते ही बहुत ज्यादा दर्द का अहसास हुआ और एक दर्द भरी कराह निकल गई। मैंने अपने आसपास देखा तो समझ में नहीं आया कि मैं कहां हूं। तभी दरवाजा खुलने की आवाज आई और एक नर्स अंदर आई और एक इंजेक्शन लगा दिया। आंखें वापिस बंद होने से पहले मैंने मम्मी-पापा, छूटकू और नवरीत के मम्मी-पापा को खड़े देखा था। मैंने वापिस आंखें खोलनी चाही परन्तु आधी ही खुल पाई और मैं वापिस नींद के आगोश में चला गया।