Update- 21
सत्तू गुनगुनाता हुआ घर से निकला, गांव वालों की नज़रों से थोड़ा बचता हुआ नहर पर पहुंचा, नहर के किनारे किनारे लहलहाते खेत थे, जिसमे गेहूं और सरसों की फसल लगी हुई थी, कुछ खेतों में मक्के की फसल भी लगी हुई थी, हल्की हवा चल रही थी, लहलहाते हुए गेहूं की फसल देखते ही बनती थी, नहर पर जब वो पहुंचा तो देखा कि वहां तो भटकइयाँ की झाड़ियाँ थी ही नही, एकाध दो ही कहीं कहीं दिख रही थी उसमें भी फल थे नही, नहर की बांध पर चलता हुआ वो भटकइयाँ की झाड़ को ढूंढता ढूंढता थोड़ी दूर गया, बड़े गौर से वो इधर उधर देख ही रहा था कि तभी उसकी नज़र एक दूसरे गांव की कुछ औरतों पर पड़ी जो कि एक खाली पड़े खेत में अपने पशुओं के लिए घास काट रही थी।
एक औरत दूसरी से फुसफुसाकर- अरे देख इंद्रजीत का लड़का, शहर के बच्चे अलग ही दिखते है....है न, एक हमारे गांव के लफंगे हैं।
दूसरी औरत- इसी की शादी है क्या?
पहली औरत- हाँ इसी की शादी है, देख इधर ही आ रहा है।
तभी सत्तू उनके पास से गुजरा, हालांकि वो ऊपर ऊपर नहर के बांध पर से जा रहा था पर जब ठीक उन औरतों के सामने आया तो उसमें से एक बोल ही पड़ी- बाबू तुम, इंद्रजीत भैया के बेटे हो न?
सत्तू- हां काकी।
औरत- क्या नाम है तुम्हारा?
सत्तू- सत्येंद्र
औरत- पर तुम यहाँ नहर पर दोपहरी में काहे घूम रहे हो?
सत्तू- काकी वो...मैं न भटकइयाँ ढूंढ रहा था?
औरत- भटकइयाँ?
सत्तू- हां
औरत- वो क्या करोगे बाबू, वो तो जंगली झाड़ का फल होता है।
दूसरी औरत- अरे होगा न कुछ काम....तू बड़ा पूछती है रे....बाबू वो यहां नहर पर नही मिलेगा तुम छोटकी पहाड़ी पर चले जाओ, वहां बहुत सारी मिल जाएगी, हम लोग जाते रहते हैं न वहां घास छोलने, तो देखा है, आजकल उधर ज्यादा उगती हैं।
सत्तू- ठीक है काकी।
सत्तू भागा-भागा छोटकी पहाड़ी पर गया, कुछ ही दूर पर थी, देखा तो.. वहाँ तो मानो किसी ने फसल लगा रखी हो, लाल लाल पकी पकी भटकइयाँ देखकर सत्तू खुशी से भर गया, नहर पर न मिलने से वो थोड़ा निराश होने लगा था पर अब खुशी से झूम रहा था, पहले तो उसने सोचा कि पकी पकी तोड़ लेता हूँ, फिर सोचा कि ये तो बहुत जल्दी फूट जाएंगी, तो थोड़ा कच्ची सी लेता हूँ, उसमें आएगा मजा, यही सोचकर सत्तू ने अधपके भटकइयाँ के फल तोड़कर अपने रुमाल में रखकर जेब में डाल लिए और घर की तरह आने लगा।
जैसे ही दुबारा वो उसी जगह पर पहुंचा जहाँ वो औरतें उसे मिली थी उसने देखा कि वो औरते घास की खाँची सरपर रखकर उसी नहर की बांध पर चलते हुए जाने लगी थी, उन्होंने पीछे आते हुए सत्तू को नही देखा, सत्तू वैसे तो काफी दूर था उनसे पर इतना भी नही।
तभी सत्तू ने देखा कि चलते चलते वो औरतें रुकी, उसमें से एक औरत ने अपनी घास की खाँची जमीन पर रखी, उसने बाकी की दो औरतों से कुछ कहा और इधर उधर देखकर जैसे ही अपनी साड़ी की उठाने के लिए हाँथ लगाया सत्तू समझ गया कि उसको पेशाब लगी है, वो ये नज़ारा गवाना नही चाहता था, एक बड़ी झाड़ी के पीछे उसने खुद को हल्का सा छुपा लिया, उस औरत ने हल्का सा इधर उधर देखा और अपनी साड़ी जैसे ही कमर तक उठाया, उसकी चौड़ी सी मादक गोरी गोरी गांड देखकर सत्तू की दिल की धड़कन बढ़ गयी, इस बात से वो हैरान भी हुआ कि उसने कच्छी भी नही पहनी थी, जैसे ही वो बैठी उसकी मादक गांड फैलकर और चौड़ी हो गयी, गांव की एक औरत को दूर से मूतते हुए देखकर सत्तू का लंड जो पहले से ही मिलने वाली चुदाई की खुमारी में हल्का हल्का तनाव में ही था और सख्त हो गया, उसने उस औरत की गांड को देखते हुए अपने लंड को धीरे से मसल ही दिया, कुछ देर बाद अच्छे से मूतकर वो औरत उठी और जल्दी से अपनी घास की खाँची उठाकर सर पर रखी और सब जाने लगी, दूर से सत्तू ने देखा कि वो सब किसी बात पर खिलखिलाकर हंस रही थी, कुछ देर सत्तू झाड़ी के पीछे ही खड़ा रहा, वो औरते अब धीरे धीरे काफी दूर निकल गयी, सत्तू झाड़ी से निकलकर जैसे ही थोड़ा आगे गया उस औरत के पेशाब पर उसकी नज़र पड़ी, अभी वो पूरी तरह मिट्टी में सूखा नही था उसे देखकर सत्तू को और मस्ती चढ़ गई।
गांव वालों की नज़रों से बचता हुआ जल्दी से घर पहुंचा।
सत्तू के जाने के बाद अल्का काफी देर तक तो पलंग पर वासना की खुमारी में डूबी पड़ी रही थी फिर अभी कुछ देर पहले जैसे ही उठकर वो रसोई में गयी, बाहर का दरवाजा खुलने की आहट से वो समझ गयी कि भैया उसके आ गए।
शाम हो चुकी थी, उसका किसी भी चीज़ में मन नही लग रहा था, स्तनों के निप्पल अनायास ही रह रहकर सख्त हो जा रहे थे, बूर में जो चीटियाँ रेंग रही थी वो बंद होने का नाम ही नही ले रही थी, मन ही मन वो रह रहकर मुस्कुराती फिर शर्माती, मन में सोचती की कैसे अचानक कुछ ही दिनों में सबकुछ बदल गया, उसका छोटा देवर कैसे उसका भैया बन गया और भाई बहन के बीच वो वाला प्यार....जो कि दुनियाँ की नज़र में महापाप है, पर ये पाप कहाँ... जिसमे मजा हो वो पाप नही हो सकता...सच ही तो कहा मेरे भैय्या ने की घर की बूर का आनंद ही अलग होता है, पर क्या सिर्फ बूर...लंड नही.... जैसे मर्दों के मन मे अपने घर की बूर की चाहत होती है उसी तरह हम लड़कियों के दिल में भी अपने घर के लंड की चाहत होती है वो अलग बात है कि हमे उसका पता नही होता, या हम पहल नही कर सकती पर धन्य है मेरे अजिया ससुर जी जिन्होंने ऐसा कर्म कांड लिखा जिसमे मुझे शामिल किया, ऐसे ससुर सबको मिलें।
यही सब सोचते हुए अल्का बेमन से रसोई में धीरे धीरे काम करते हुए बेसब्री से सत्तू का इंतजार कर रही थी।
सत्तू जैसे ही घर में दाखिल हुआ, अल्का के कमरे में गया वो वहां थी नही।
सत्तू- दीदी
अल्का ने आवाज सुनी पर कुछ बोली नही, सत्तू रसोई में गया, तो अल्का उसे वहां मिली, पीछे से कस के अल्का को बाहों में भर लिया, लंड सीधा गांड की दरार में जा घुसा, अल्का की आंखें मस्ती में बंद हो गयी, "आआआआ हहहहहह......इतनी बेसब्री....तुम्हारी बहन सिर्फ तुम्हारी ही है भैया....और आज तुम्हें ही मिलेगी....कितना मोटा है वो तुम्हारा....ऊऊऊईईईईए.... पागल....धीरे...धीरे.....दर्द होता है न.....साड़ी के ऊपर से ही....आआआहहहहह।
सत्तू- सब्र अब कहाँ हो रहा है दीदी...इतने दिन तो सब्र किया....अब नही होता।
अल्का- ले आये भटकइयाँ।
(तब तक सत्तू ने अल्का की दोनों मोटी मोटी चूचीयाँ हथेली में भर ली, और हल्का हल्का सहलाने लगा, अल्का के होंठों से सिसकारी निकल पड़ी)
सत्तू- हां मेरी जान...मेरी बहना.... मेरी दीदी...ले आया...ये देखो
सत्तू ने जेब से रूमाल निकलकर खोला और भटकइयाँ रसोई की सेल्फ पर रख दी, अल्का ने देखा तो शर्मा गयी कुछ देर उसे देखती रही उसका बदन उसे देखकर गनगना गया जिसे सत्तू ने बखूबी महसूस किया, कुछ देर देखने के बाद अल्का बोली- ये तो ज्यादा पकी नही है...थोड़ी थोड़ी कच्ची सी हैं।
सत्तू- तो फिर
अल्का सत्तू की तरह घूमते हुए बोली- तो फूटेंगी कैसे? (इतना बोलने के बाद जैसे ही अल्का को समझ आया कि वो क्या बोल रही है तो शर्म से चेहरा उसका लाल हो गया, अपने चेहरा उसने सत्तू के सीने में छुपा लिया)
सत्तू- जल्दी न फूटे इसीलिए तो मेरी बहना, हम दोनों जोर लगाकर मिलकर फोड़ेंगे न।
अल्का शर्म से गुलाबी हुई जा रही थी, अजीब से अहसाह को महसूस कर उसकी आंखें बंद हो गयी, सत्तू ने उसे और कस के बाहों में कसा तो फिर से वो हल्का सा सिसक गयी, सत्तू ने अल्का को बाहों में उठा लिया, अल्का ने जल्दी से सेल्फ पर रुमाल में रखी भटकइयाँ को उठाया और सत्तू के गले में बाहें डालकर उसकी गोद में आ गयी, सत्तू अल्का को उठाकर कमरे की तरफ चल दिया, दोनों वासना से भरी आँखों से एक दूसरे को देख रहे थे अलका सत्तू के चेहरे को बड़ी प्यासी नज़रों से एक टक देख रही थी, उसके होंठ हल्का हल्का थरथरा से रहे थे, वासना अपने चरम पर थी। अल्का ने धीरे से कहा- भैया...बाहर का दरवाजा बंद है न....इस वक्त कोई आएगा तो नही।
सत्तू ने अल्का के होंठों को चूम लिया और बोला- बंद करके आया था, इस वक्त कोई नही आएगा, आराम से करेंगे दोनों।
करेंगे शब्द सुनकर अल्का फिर शर्म से सिमट गई, सत्तू रसोई से निकलकर अल्का के कमरे की तरफ जाने लगा, अल्का फिर उसकी आँखों में देखने लगी, दोनों ने एक दूसरे की आंखों में देखते हुए अपने होंठ मिला लिए, एक दूसरे के होंठों को चूमते हुए सत्तू ने अल्का को पलंग पर लिटाया, पलंग पर लिटाते ही वो हल्का सा चरमराई, जिसकी आवाज से दोनों को और मस्ती चढ़ गई,
अल्का ने भटकइयाँ के फल को पलंग के बगल में रखे टेबल पर जैसे ही रखा, सत्तू पूरी तरह अल्का के ऊपर चढ़ गया, दोनों एक दूसरे की बाहों में अमरबेल की तरह लिपट गए, पूरे पलंग पर दाएं बाएं एक दूसरे के अंदर समा जाने की हद तक लिपटकर करवट बदलने लगे, कमरे में सिसकारी गुजने लगी।
"आआआआआहहह.... भैया....मेरे राजा"
"हाहाहाहायययययय....मेरी बहना... मेरी दीदी"
दोनों एक दूसरे को ताबड़तोड़ चूमने लगे, सत्तू ने अल्का के गालों, गर्दन और कान के आस पास चुम्बनों की झड़ी लगा दी, अल्का गर्दन ऊपर कर सत्तू को चुम्बन देने लगी, जैसे जैसे सत्तू चूमता जाता वैसे वैसे अल्का हर चुम्बन पर आह...सी..सी..करती हुई सिसकती और उसका सहयोग करती हुई खुद को उसे परोसती जाती, सत्तू के होठों के गीले गीले चुम्बन अपने चेहरे और गर्दन पर हर जगह महसूस कर उसके पूरे बदन में झनझनाहट होने लगी, वो भी सत्तू को बेसुध होकर सहलाने लगी..."हाय... ओह भैया....कहाँ थे तुम अब तक"।
चूमते चूमते सत्तू ने अल्का के रसभरे होंठों को अपने होंठों में भर लिया, अल्का भी सत्तू के सर के बालों को सहलाते हुए उसके होंठों को सिसकते हुए चूसने लगी, कभी सत्तू अल्का के निचले होंठों को चूसता और कभी अल्का सत्तू के होंठों को चूसती, सत्तू ने वासना के पागलपन में हल्का सा अल्का के होंठों को काट लिया, अल्का थोड़ा जोर से सिसक पड़ी "आआआह...थोड़ा धीरे मेरे भैय्या...दर्द होता है" सत्तू ने उसकी आँखों में देखा, उसका चेहरा पूरी तरह वासना में डूब चुका था, अल्का ने खुद ही मुंह खोलकर सत्तू से और चुम्बन मांगा तो सत्तू उसके मुंह मे जीभ डालकर टूट पड़ा, दोनों एक दूसरे को खा जाने वाली स्थिति में चूमने लगे, सत्तू की जीभ अल्का के मुंह के अंदर हर जगह अल्का के मुंह का रस घूम घूम कर पीने लगी, अल्का के मुंह के अंदर एक एक चप्पे चप्पे को सत्तू ने अपनी जीभ से छुआ, सत्तू की जीभ को अपने मुंह मे मस्ती करती हुई महसूस कर अल्का की बूर में तरंगे जोर मारने लगी, वह कराहते हुए उसे जोर जोर से सहलाने लगी, उसकी T-Shirt के अंदर हाँथ डालकर वह सत्तू की पीठ को कभी सहलाती कभी तेजी से जोश में आकर नाखून तक गड़ा देती, काफी देर अल्का के होठों का रसपान करने के बाद सत्तू उठ बैठा, दोनों घुटने अल्का की कमर के अगल बगल थे, वो अल्का की जांघों पर लगभग बैठा हुआ सा था पर जोर उसका अपने गुटनो पर था। दोनों की आंखों में वासना का नशा चढ़ चुका था, दोनों की सांसें तेजी से चल रही थी, अल्का सत्तू को खुद को निहारते हुए देखकर शर्मा गयी और अपना चेहरा हाथों से ढक लिया।
सत्तू ने अल्का के हाँथ चेहरे पर से हटाए और बोला- दीदी
अल्का- ह्म्म्म
सत्तू- मजा आया
अल्का फिर शर्मा गयी पर धीरे से बोली- बहुत
सत्तू- दीदी....
अल्का- हाँ... मेरे भैया।
सत्तू- चूची दिखा न अपनी
अल्का के चेहरे पर शर्म की लाली एक बार फिर फैल गयी, सत्तू की आंखों में देखते हुए अलका बड़ी मादकता से अपने ब्लाउज के बटन खोलने लगी, सत्तू की सांसें उखड़ती जा रही थी, अल्का हल्का सा उठी और ब्लाउज निकाल कल पलंग के नीचे गिरा दिया, अपनी बहन को ब्रा में देखकर सत्तू बेसुध होने लगा, दोनों बड़ी बड़ी गोरी मदमस्त मखमली चूचीयाँ ब्रा में होने के बावजूद किसी स्पंज की तरह छलक रही थी, अल्का सत्तू की आंखों में देखते हुए पलंग पर लेट गयी और हाँथ पीछे ले जाकर ब्रा का हुक खोल दिया, हुक खोलने के बाद जैसे ही उसने ब्रा को चूचीयों पर से हटाया, दोनों चूचीयाँ छलकते हुए आजाद हो गयी, अल्का ने एक अंगड़ाई लेते हुए ब्रा को भी पलंग के नीचे गिरा दिया और बड़ी मादकता से अपनी चूचीयों को थोड़ा ऊपर की ओर तानकर अपनी गोरी गोरी चूचीयाँ अपने भैया को दिखाते हुए शर्म से अपना चेहरा अपने हाथों से ढक लिया।
सत्तू ने अल्का के हाथो को चेहरे से हटाया और उसका चेहरा गर्दन और नग्न चूचीयाँ देखकर बेसुध सा हो गया, गोरी गोरी सुडौल चूचीयों की आभा देखते ही बन रही थी, कभी वो अल्का के चहरे को देखता कभी गर्दन और नग्न कंधे और कभी नंगी मोटी मोटी गोल गोल गुब्बारे जैसी दोनों चूचीयों को निहारता, अल्का उसे देखकर कभी मुस्कुराती कभी शर्माती, गोरी गोरी विशाल चूचीयों पर गुलाबी निप्पल तनकर खड़े हो चुके थे, जिसे देखकर सत्तू का सब्र टूट गया।
अल्का ने धीरे से सत्तू से कहा- भैया.....खो गए... घर की चूची है ये....इतने दूर क्यों हो इससे....आओ न....ताड़पाओ मत अब अपनी बहन को।
सत्तू- कितनी सुंदर और मनमोहक है तेरी चूची मेरी दीदी....ओह मेरी बहन...
इतना कहकर सत्तू अल्का की चूचीयों पर टूट पड़ा, अल्का के मुंह से फिर से जोर से सिसकारी फूट पड़ी, चूचीयाँ और भी सख्त होती चली गयी निप्पल और भी तन गए, सत्तू दोनों चूचीयों को कस कस कर दबाते हुए निप्पलों को पीने लगा, अल्का मारे जोश से छटपटाने लगी, मस्ती में उसने अपने दोनों पैर सत्तू की कमर पर लपेट दिए, सत्तू का मोटा लंड उसे अपनी बूर पर दस्तक देता हुआ अच्छे से महसूस होने लगा। जैसे जैसे सत्तू अल्का की चूचीयों को निचोड़ निचोड़ कर उसका निप्पल पीता जा रहा था, अल्का जोर जोर से सिसकारी लेते हुए उसके सर और बालों को सहलाते हुए उसे और भी अपनी चूचीयों पर दबाते चली जा रही थी, अपने भाई से चूची दबवाने में कितना मजा आता है ये आज जाकर अलका को महसूस हुआ, भाई का मुँह जब निप्पल पर लगता है तो उसका आनंद अलग ही होता है, अल्का बोझिल आंखों से कभी सत्तू को दोनों चूची मुंह मे भर भरकर पीते हुए देखती तो कभी जोर से सिसकते हुए आंखें बंद कर लेती, कैसे कभी बच्चे की तरह सत्तू उसकी चूचीयों को पी रहा था और कभी बलशाली हाथों से उसकी चूचीयों को बेरहमी से दबा रहा था, सत्तू कभी चूचीयों को दबाता कभी कस कस के पूरी पूरी चूची को चूमता, कभी निप्पल के किनारे किनारे जीभ फिराता, कभी निप्पल को होंठों में भरकर काट लेता। जब भी सत्तू निप्पल को काटता...
अल्का जोर से कराह उठती, "आआआह..... ओओह.... भइय्या...... ऊऊऊऊऊईईईईईई.....आआममम्मा.....धीरे धीरे मेरे भैय्या...... बहन हूँ न आपकी......दर्द होता है....धीरे धीरे पियो मेरी चूची.....आआआह हहहहहहह.....और दबाओ..... ऊऊऊऊऊऊऊईईईईईईई......कितना मजा आ रहा है.....कितना बेदर्द हो भइय्या.....अपनी बहन के साथ ऐसा करते हैं..........ऊऊऊऊईईईईई......माँ......कहाँ थे अब तक.....कितनी प्यासी थी मेरी चूची.....और दबाओ.... पूरा अच्छे से दबाओ...... ओओओओओहहहहहहह.....निप्पल पर कुछ देर तक जीभ लगाओ न भैय्या...... आह...ऐसे ही....
अल्का मस्ती में बड़बड़ाये जा रही थी सत्तू कुछ देर कस कस के चूची दबाने के बाद थोड़ा रुककर उसने दोनों तनी हुई चूची को देखा, दोनों चूचीयाँ फूलकर किसी गुब्बारे की तरह तन गयी थी, गोरी गोरी चूचीयाँ गुलाबी हो चुकी थी, अल्का ने सिसकते हुए सत्तू को देखा और अपनी एक चूची को हाथों में भरकर सत्तू को लजाते हुए बोली- आह भैय्या.... और पियो न....रुक क्यों गए।
सत्तू- तेरी चूचीयाँ बहुत कामुक है मेरी बहन...देख कैसे गुलाबी हो गयी हैं, और निप्पल कैसे तन गए है, इतनी सुंदर चूचीयाँ हैं कि मैं सुध बुध खो बैठा।
अल्का मुस्कुराई, और फिर शर्माते हुए बोली- घर की चूचीयाँ ऐसी ही होती है और खासकर बहन की..... पियो न भैय्या.... दबाओ न....बाद में अच्छे से देख लेना.....अभी प्यार करो इसे खूब।
सत्तू अल्का की चूची पर टूट पड़ा और ऐसा कहते हुए अल्का ने खुद ही अपनी चूची सत्तू के मुँह में घुसेड़ दी, एक हाँथ से सत्तू अल्का की एक चूची को कस कस के मसलने लगा और दूसरे हाँथ से दूसरी चूची को मसलते हुए पीने लगा, अल्का फिर मस्ती में अपने भैया से अपनी चूची दबवाते हुए कराहने लगी। पूरे कमरे में मस्ती की सिसकारियां फिर से गुजने लगी, कुछ देर अल्का की चूचीयाँ दबाने के बाद सत्तू नीचे की ओर लेटने लगा अल्का समझ गयी और अब वो पलटकर सत्तू के ऊपर चढ़ गई, दोनों चूचीयाँ खरबूजे की तरह नीचे की ओर झूलने लगी, अल्का ने फिर अपनी चूची को पकड़ा और सत्तू के मुँह में डाल दिया, एक हाँथ से अलका संतुलन बनाकर सत्तू के ऊपर झुकी हुई थी और दूसरे हाँथ से अपनी चूची पकड़कर उसके मुंह मे डाले हुए आंखें बंद कर सिसक रही थी, इस पोजीशन में काफी देर दोनों चूचीयों का मर्दन करने के बाद सत्तू अलका को लेकर उठ बैठा, दीवार की टेक लगाकर सत्तू उसके सहारे बैठ गया और अपनी बहन अल्का को अपनी गोद में बैठने का इशारा किया, अल्का ने देखा कि trouser में सत्तू का लंड तनकर फुंकार मार रहा है दोनों की नज़रे मिली, अल्का मादकता से मुस्कुराई और सत्तू के लंड पर अपनी गांड रखते हुए उसके गोद में जा बैठी, मोटा सा लंड सीधे उसकी गांड की दरार में घुसा तो वो मस्ती में कसमसा उठी और मचलते हुए बाहें ऊपर को उठाकर सत्तू के गले में लपेट दी, एक अंगड़ाई लेते हुए उसने गर्दन उठाकर सत्तू के गालों को चूमना शुरू कर दिया, एक बार फिर सत्तू ने अल्का की नग्न मदमस्त चूचीयों को पीछे से हाथों में लेकर बेदर्दी से दबाना शुरू कर दिया, अल्का मस्ती में सत्तू को बस कराहते हुए चूमे जा रही थी,
"आआआह मेरे भैय्या.... और दबाओ मेरी चूची आह मेरी जान....अपनी बहन की प्यास बुझा दो आज......आआआआआआहहहहहहहह.....कितना मोटा है तुम्हारा भैय्या......कैसे चुभ रहा है नीचे.....हाय
अल्का की शर्म अब धीरे धीरे जा रही थी वो काफी हद तक खुलती जा रही थी।
सत्तू- "हाय मेरी बहन.....कितनी मस्त है तू.....इतना मजा आजतक नही आया.....तेरी सारी प्यास आज तेरा भैय्या बुझायेगा मेरी बहना.....ओओह मेरी रानी.....अपने भइय्या को देगी न
अल्का मदहोशी में- हां दूंगी...मेरे भैया.... मेरे राजा....सब दूंगी...सब
सत्तू- दीदी.....अपनी बूबूबूबूररररर दिखा न अब....रहा नही जाता....अब वो जन्नत दिखा न....अपनी गोरी गोरी जांघे दिखा न.....उसके बीच में वो फूली फूली अपनी बूबूबूबूररररर दिखा न अब....जहां से तू मूतती है....अपनी साड़ी और कच्छी खोलकर अपनी बूबूबूबूररररर दिखा न अब, कैसी है वो, कैसी है उसकी बनावट, कैसी दिखती है, उसकी फांकें कैसी है दिखा न...अब रहा नही जाता।
अल्का सत्तू के मुँह से ये सुनकर जोर से सिसकी और मचलते हुए उससे बोली- मुझे लिटाओ फिर दिखाती हूँ सब अपने भैया को।
सत्तू ने जल्दी से साइड होते हुए अल्का को जगह दी और वो दुबारा पलंग पर लेट गयी, सत्तू बदहवास सा उसकी टांगों के बीच आ गया, दोनों एक दूसरे की आंखों में देखने लगे, अलका का चेहरा शर्म ले लाल हो चुका था, शर्माते हुए पहले तो उसने साड़ी को ऊपर सरकाने के लिए पकड़ा पर फिर लजाकर अपना मुँह ढकते हुए बोली- खुद ही देख लो मेरे भैया...
सत्तू अलका की इस अदा पर कायल हो गया, उसने जल्दी से साड़ी ऊपर सरकानी शुरू की जैसे ही घुटनों तक साड़ी उठायी अल्का ने अपने पैर को थोड़ा फैलाकर घुटनों से मोड़ लिया और थोड़ी दूर-दूर पर रख लिया, सत्तू ने साड़ी को पूरा नही उठाया बल्की घुटनों के ऊपर तक करके छोड़ दिया अब साड़ी का एक गोल घेरा सा बन गया अल्का ने भी दोनों पैर को फैलाकर साड़ी को तान दिया जिससे अंदर अच्छे से दिख सके, जैसे ही सत्तू की नज़र अंदर गयी अपनी बहन की गोरी गोरी मोटी मांसल जांघे देखकर सत्तू फिर मदहोश होने लगा, केले के तने के समान मोटी मोटी जांघों के बीच काली सी कच्छी, देखकर उसकी सांसे धौकनी की तरह चलने लगी, उधर अल्का भी अपना चेहरा छुपाए सबकुछ महसूस कर रही थी, सत्तू से रहा नही गया, उसने एक हाँथ साड़ी के अंदर डालकर अपनी बहन की जांघों को थोड़ा सहलाया तो अल्का सिसक उठी, जैसे ही सत्तू ने अपना हाँथ कच्छी के ऊपर से ही अल्का की बूर पर रखा, अल्का कराह उठी, उसकी कच्छी बूर-रस से भीगी हुई थी, अल्का ने पैरों को और फैला दिया, साड़ी और ऊपर को खिसक गई, सत्तू ने जैसे ही एक हाँथ से अपनी बहना की कच्छी को साइड किया, बहन की मख्खन जैसी प्यासी सी, कमसिन गुलाबी गुलाबी फाकों वाली बूबूबूबूररररर उसके सामने आ गयी, सत्तू मदहोशी से उसे देखता रह गया, हल्का सा बूर में संकुचन हुआ, अल्का ने ही लजाते हुए अपनी बूर की अंदरूनी मांसपेशियों को भींचकर संकुचन पैदा किया था, जीवन में आज पहली बार वो अपनी अल्का भौजी जो अब उसकी बहन बन चुकी थी उसकी बूबूबूबूररररर देख रहा था, उसे विश्वास नही हो रहा था कि आज उसकी भौजी उसकी बहन बनकर अपनी बूर खोले उसे दिखा रही है, वाकई में घर की बूबूबूबूररररर का अहसास अलग ही होता है, अल्का ने जानबूझकर अपनी जाँघों को और फैला दिया जिससे बूर की फांकें हल्का सा खुल गयी और उसका गुलाबी भगनासा (clitories) निकलकर बाहर आ गया, बूर अच्छे से पनियाने की वजह से महक रही थी, पेशाब और कामरस की मादक खुश्बू ने सत्तू को पागल कर दिया, उसका लंड लोहा बन चुका था, थोड़ी देर तक तो वो दूर से ही बूर को देखता और उसकी मादक गंध सूंघता रहा, फिर एकाएक कच्छी को बिना उतारे ही हाँथ से साइड करके बूर पर " ओह मेरी बहन....क्या बूबूबूबूररररर है तेरी" कहते हुए टूट पड़ा, इससे पहले अल्का संभलती सत्तू अल्का की बूर को मुंह में भरकर चाटने लगा, एक जोर की सिसकारी अल्का के मुँह से निकली "ओओओओओहहहहहहहह.....भैया..... कच्छी तो उतार लो अच्छे से......फिर चाटो मजे से.....आआआहहहहहहहह......
पर सत्तू को होश कहाँ था वो पागलों की तरह चप चप करके अपनी बहन की बूर को चाटने लगा, अल्का ने मदहोश होते हुए अपनी जांघे अच्छे से फैला ही दी और जोर जोर सिसकते हुए उसके सर को सहलाते हुए अपनी बूर पर दबाने लगी, साड़ी पूरी तरह ऊपर को सरक चुकी थी अल्का के दोनों पैर हवा में अच्छे से फैले हुए थे, एकाएक अल्का के पूरे बदन में चींटियां रेंगने लगी उससे रहा नही गया तो उसने खुद ही जल्दी से अपना एक हाथ नीचे ले जाकर अपनी उंगलियों से अपनी बूर की फाकों को अच्छे से फैलाकर उसका चप्पा चप्पा चाटने के लिए अपने भैया को परोस दिया, जैसे जैसे सत्तू मदहोशी में बूर चाटे जा रहा था अल्का के नितंब और बूर मस्ती में थरथरा जा रहे थे, वो अत्यधिक मस्ती में हल्का हल्का अपने नितंबों को नीचे से उछालने लगी, कमरा सिसकियों से भर उठा, अल्का एक तरफ अपनी उंगलियों से अपनी बूर को फैला फैला कर अपने भाई से चटवा रही थी दूसरी तरफ "ओह भैया.....मेरे भैया.... बस करो.....आआआह.... इसलिए बहन जल्दी अपनी बूर अपने भाई को नही दिखाती..... आह...उसे पता है कि देखने के बाद उसका भाई किसी आवारा सांड की तरफ पागल हो जाएगा.....ऊऊऊऊईईईईईई....अम्माआआआ...... काटो मत भैया.... धीरे धीरे चाटो....प्यार से चाटते हैं बहन की बूबूबूबूररररर......आआआह....
अल्का की उंगलियां मदहोशी में बूर पर जहां तहां चल रही थी, कभी वो दोनों फांकों को अच्छे से फैला देती, कभी केवल एक फांक को फैलाती, कभी उंगलियों को थोड़ा नीचे ले जाकर बूर के निचले हिस्से को फैलाती, उसकी बूर सत्तू के थूक से सराबोर हो चुकी थी, वो मस्ती में छटपटाने लगी, बूर की फांकों के बीच भगनासा तनकर सख्त हो गया, बार बार सत्तू उभरे हुए भग्नासे को जीभ से चाट चाट कर छेड़ देता जिससे अल्का का बदन मस्ती में कांप जाता, इतना मजा उसे आजतक नही आया था, उसने बूर को फैलाना छोड़कर कराहती हुई सत्तू के गालों को सहलाना शुरू कर दिया। सत्तू अल्का की बूर का छोटा सा गुलाबी छेद देखकर बौरा गया था, उसे यकीन नही हुआ कि उसकी बहन जो शादीशुदा है उसकी इतनी सुंदर सी प्यारी सी मखमली बूर का छेद इतना छोटा सा है, उसका लंड किसी लोहे की तरह इतना सख्त हो चुका था मानो अभी फट जाएगा। बूर एकदम भट्टी की तरह दहक रही थी, तभी सत्तू ने अपनी दो उंगलियों से बूर की फांक को फैलाकर उसके गुलाबी छेद में जैसे ही जीभ डालने की कोशिश की, अल्का का पूरा बदन सनसना गया, सत्तू ने अपनी जीभ को नुकीला किया और अल्का की बूर के गुलाबी छेद में डाल दिया, अल्का ने तेजी से कराहते हुए सत्तू के सर को पकड़कर अपनी बूर पर दबा दिया, सत्तू की गरम जीभ एक इंच तक बूर की गहराई में महसूस कर अल्का परम आनंद में सिसकने लगी अपने निचले होंठों को मस्ती में वो अपने दांतों से काटने लगी, सत्तू ने एक दो बार जैसे ही जीभ अंदर बाहर किया, अल्का को लगा कि वो झड़ जाएगी, कर्म के अनुसार वो जीभ से नही झड़ना चाहती थी, पहली बार उसे लंड से ही झड़ना था, इसलिए उसने सत्तू के सर को थामकर बोला- आआआह..... भैया रुको न....बस करो..... उससे नही....ओह.... ऊऊऊऊईईईईई..... जीभ से नही मेरे भैय्या.... सुनो न...रुक जाओ.....जीभ से नही... उससे....कर्म के अनुसार करो न भैय्या।
जब अल्का ने बोला कि कर्म के अनुसार करो न भैय्या तब जाकर सत्तू को होश आया, और वो रुक गया, अल्का ने उसे अपने ऊपर खींच लिया, वो अल्का के ऊपर चढ़ गया, उसका मुँह अल्का की बूर रस से भीगा हुआ था, दोनों के होंठ मिल गए, अपनी ही बूर के रस में सने अपने भाई के होंठों को चूसने में अल्का को बड़ा मजा आ रहा था।
सत्तू- जीभ से नही तो किससे...मेरी दीदी
अल्का- उससे
सत्तू- उससे किससे।
अल्का- वही जो बूर का मालिक होता है।
सत्तू- कौन होता है बूर का मालिक? बहन की बूर का मालिक कौन?
अल्का- बूर का मालिक होता है....लंड.... बहन की बूर का मालिक भाई का लंड...... गंदे....बेशर्म.....बदमाश....अब खुश।
सत्तू- अपनी बूर के मलिक को नही देखोगी?
अल्का- दिखाओ न....भैया.... कब से तरस रही हूं।
सत्तू झट अल्का के ऊपर से उठा, दोनों घुटने उसके अल्का की जांघों के अगल बगल थे, trouser में उसका तंबू बना हुआ था, उसने अल्का के और नजदीक जाकर trouser को एक ही झटके में नीचे खींच दिया, करीब 8 इंच का मोटा लंड उछलकर अल्का की आंखों के सामने आ गया, लोहे की तरह सख्त, हल्के हल्के काले बालों से घिरा हुआ, मोटी मोटी नसे मानो फटने को तैयार थी, सत्तू का लंड इतना सख्त हो रखा था कि उसका सुपाड़ा किसी छोटी गेंद की तरह फूला हुआ था और उसपर की चमड़ी उसे अब पूरी तरह ढकने में असमर्थ थी, इसलिए लंड के सुपाड़े के आगे का हिस्सा हल्का सा स्वयं ही खुल चुका था, जिससे पेशाब का छेद साफ दिख रहा था, उस पर लिसलिसा महकता हुआ कामरस लगा हुआ था, लंड देखते ही अल्का की आंखों में वासना की खुमारी चढ़ने लगी, वो एक टक तरसती आंखों से उसे निहारे जा रही थी, उसे देखते ही उसने मन ही मन उसकी तुलना सत्तू के भैया के लंड से कर डाली जो की उसका आधा ही था, लंड को देखे और छुए अल्का को काफी वक्त हो गया था, उसकी तो सांसें ही गले में अटक सी गयी, जब लंड कपड़े के अंदर था तब उसे हल्का हल्का अंदाज तो हो ही रहा था कि उसके भैय्या का लंड बड़ा और मोटा है पर इतना बड़ा होगा ये उसे अंदाजा नहीं था।
अल्का सम्मोहित सी लंड को देखती रही, सत्तू ने जानबूझकर लंड में स्पंदन करके ठुमकी सी मारी, और अल्का का एक हाँथ पकड़कर अपने लंड पर रखा तो अल्का शर्माते हुए उसे ऊपर से नीचे तक सहलाने लगी, पर वो इस बात का ध्यान रख रही थी कि लंड की चमड़ी खुल न जाये, अल्का का हाँथ लगते ही सत्तू की सिसकारी फूट पड़ी, ओओह दीदी.....कबसे प्यासा है ये तुम्हारे नरम नरम हाथों की मालिश के लिए सहलाओ न....आआआह....हाय मेरी बहन....कितना मजा आ रहा है
अल्का- ओह मेरे भैय्या, कितना बड़ा और प्यारा है ये, इसकी महक मुझे मदहोश कर रही है, कितना मोटा है ये।
लंड को देखकर अल्का की बूर में फिर सरसराहट होने लगी, मदहोशी का आलम ये था कि अल्का एक टक लंड को निहारते हुए कभी उसके ऊपर से नीचे तक पूरा सहलाती कभी दोनों अण्डकोषों को हथेली में भरकर सहलाती, सत्तू थोड़ा सा आगे बढ़ा तो अल्का ने इशारा समझकर मदहोशी से पहले तो चेहरे को ऊपर उठाकर लंड को अच्छे से सूंघा, उसकी महक उसके पूरे बदन में अजब ही रोमांच पैदा कर रही थी, फिर उसने हल्का सा मुंह खोलकर लंड को थोड़ा सा मुँह में भरा और बिना चमड़ी पीछे किये लंड के एक चौथाई भाग को मदहोशी से चूसने लगी, अल्का के नरम नरम होंठों के स्पर्श ने सत्तू को सातवें आसमान पर पहुंचा दिया, "ओओहहहहहह....मेरी दीदी...चूसो ऐसे ही....अपने भाई का लंड...., थोड़ी देर तक अल्का मुँह में सत्तू का लंड जितना ले सकती थी आराम से लेकर चूसती रही, वह उसकी चमड़ी नही खुलने देना चाहती थी इसलिए ऊपर ऊपर ही मुँह में अंदर तक भर भरकर लॉलीपॉप की तरह चूसती रही, नरम नरम होंठों की छुवन और अल्का के मुँह की गर्माहट से सत्तू का लंड और भी फ़नफना उठा, काफी देर चूसने के बाद जब अल्का थोड़ा थक सी गयी तो सत्तू ने खुद ही अपना लंड उसके मुँह से बाहर खींचकर उसके ऊपर दुबारा चढ़ता हुआ उसके होंठों को अपने होंठों में भर लिया, दोनों एक दूसरे से कस के लिपट गए। सत्तू अल्का की चूचीयों को मसलने लगा वो हल्का हल्का सिसकने लगी।
अल्का ने सत्तू से हौले से कहा- भैया।
सत्तू- ह्म्म्म...मेरी जान
अल्का- आपका कितना बड़ा है और मोटा भी और प्यार का रास्ता कितना संकरी है।
सत्तू- तो, मेरी जान, प्यार का रास्ता तो है छोटा सा।
अल्का- कर्म के अनुसार उसकी चमड़ी खुलनी नही चाहिए न, फिर कैसे होगा? चमड़ी तो पीछे सरक ही जाएगी न?
सत्तू का तो इस बात पर ध्यान ही नही गया था कि कर्म के अनुसार भटकइयाँ के फल को योनि के छेद पर रखकर उसको बिना लंड की चमड़ी पीछे किये लंड से ही ठेलकर योनि के अंदर गहराई तक पंहुचाना है और फिर कुछ फल योनि में डाल लेने के बाद, स्त्री स्वयं अपने हाँथ से योनि में घुसे लंड की चमड़ी को हल्का हल्का खींचकर योनि के अंदर ही खोलेगी और चमड़ी खुलती हुई महसूस कर उसका आनंद लेगी फिर उसके बाद भटकइयाँ का फल लंड से मसल मसल कर योनि के अंदर ही फोड़ा जाएगा और फिर उसके बाद चुदाई होगी।
सत्तू भी सोचने लगा कि हाँ बूर का छेद तो बहुत छोटा है जब कसके लंड पेलूँगा तो चमड़ी तो पीछे हो ही जाएगी और ऐसे करना नही है...तो कैसे करें?
दोनों एक दूसरे की आंखों में देखने लगे, अल्का हल्का सा मुस्कुराई और बोली- एक तरीका है मेरे भैया।
सत्तू- क्या मेरी रानी।
अल्का- धागा या ऊन।
सत्तू- धागा या ऊन.... मतलब....कैसे? क्या होगा उससे?
अल्का- अरे पगलु....उसके आगे की चमड़ी को ऊन से बांध देती हूं ऐसे बांधूंगी की हल्का सा खींचने पर ऊन खुल जाए, जब काम हो जाएगा तो ऊन को खींचकर बाहर निकाल दूंगी, क्योंकि चमड़ी का मुँह ऊन से बंधा रहेगा तो वो धक्का लगाने पर पीछे नही सरकेगी।
(ऐसा बोलकर अल्का शर्मा गयी)
सत्तू ने अल्का को बाहों में भर लिया- हाय... मेरी जान...मेरी दीदी....क्या उपाय सुझा है तुझे....बहन हो तो ऐसी।
ऐसा कहते हुए सत्तू ने लंड को कच्छी के ऊपर से ही अल्का की बूर पर दबा दिया जिससे वो सिसकते हुए चिहुँक गयी।
सत्तू- तो बता ऊन कहाँ रखा है? लाता हूँ मैं।
अल्का- अम्मा के कमरे में है सामने ही अलमारी में, एक टोकरी होगी उसी में रखा है।
सत्तू झट से उठा और कमरे का दरवाजा खोलकर जल्दी से अपनी माँ के कमरे में गया अलमारी में टोकरी रखी थी उसमें काले रंग का ऊन रखा हुआ था, उसे लेकर जल्दी से वो अल्का के कमरे में आ गया। अल्का ने भटकइयाँ के फल पास में ही लोटे में रखे पानी मे डाल दिया ताकि उसकी धूल मिट्टी धूल जाए, फिर उसको निकालकर दुबारा से रुमाल में ही रख दिया।