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Adultery भटकइयाँ के फल

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जबरदस्त अपडेट है कहानी पढ़ने में पूरा मजा आ रहा है । भटकाईया के फल तो मिल गए अब जल्दी ही पहला कर्म भी पूरा हो ही जाएगा । अगले अपडेट का बेसब्री से इंतजार रहेगा
 

S_Kumar

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Update संडे को आ जायेगा, थोड़ा थोड़ा ही लिख पा रहा हूँ, वक्त बहुत कम मिल पा रहा है, संडे को पूरा अपडेट आ जायेगा।
 

sunoanuj

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Update संडे को आ जायेगा, थोड़ा थोड़ा ही लिख पा रहा हूँ, वक्त बहुत कम मिल पा रहा है, संडे को पूरा अपडेट आ जायेगा।

Ok mitr hum Sunday tak wait kar lenge…
 
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Sanju@

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Update संडे को आ जायेगा, थोड़ा थोड़ा ही लिख पा रहा हूँ, वक्त बहुत कम मिल पा रहा है, संडे को पूरा अपडेट आ जायेगा।
Ok Sunday waiting
 
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S_Kumar

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Update- 22

सत्तू ऊन लेकर आया और भटकइयाँ के फल के पास रख दिया, अल्का ने बाहें फैलाकर बड़ी कामुकता से सत्तू को अपने ऊपर चढ़ने के इशारा किया तो सत्तू भूखे भेड़िए की तरह अपनी बहन पर चढ़ गया, अल्का ने सत्तू को सिसकते हुए बाहों में भर लिया, "आआआह भैया"

सत्तू- आह! मेरी बहन, अब खोल न अपनी साड़ी और कच्छी... रहा नही जा रहा बिना बूर के.....मुझे अपनी बहन की बूर चाहिए।

अल्का- आआआह भैय्या! कोई सुन लेगा,जोर से न बोलो।

सत्तू ने फिर धीरे धीरे से अल्का के कान में उसको और उत्तेजित करने के लिए उसके गाल को चूमते हुए फुसफुसाकर बोला- मुझे बूर चाहिए....दीदी...तेरी बूर

अल्का- ईईईईई शशशशश....आआआह..... बेशरम भैया.....गंदे भैया.... बदमाश भैया....

सत्तू- तेरी बूर चोदने का बहुत मन करता है मेरी बहना।

अल्का- हहहहहहह आआआय्य्य्य्ययययययय!....पागल....भैया...बहन हूँ मैं तुम्हारी.....बहन के साथ ये सब करोगे.... पाप है ये

(उत्तेजना के मारे अल्का के कान तक लाल हो गए, वो हल्का हल्का नीचे से अपनी गांड उछालने लगी, सत्तू भी हल्के हल्के सूखे धक्के बूर पर मारने लगा, मारे उत्तेजना के अल्का सत्तू को कस कस के चूमने लगी)

फिर कुछ ही देर बाद सत्तू उठा और अल्का की साड़ी खोलने लगा, अल्का ने खुद ही साड़ी खोलकर पलंग के नीचे गिरा दी, अब सिर्फ एक छोटी सी काली सी कच्छी उसके मखमली बदन पर रह गयी, गोल गोल मोटी मोटी चूचीयाँ
इधर उधर हिलते हुए अलग ही उत्तेजना पैदा कर रही थी। बार बार सत्तू चूचीयों को मुंह मे भरकर पीने लगता और अल्का सिसक पड़ती।

कमरे में अब अंधेरा सा होने लगा था, सत्तू ने पास ही अलमारी में रखा दिया अल्का के कहने पर जला दिया, कमरे में हल्की-हल्की दिए कि मद्धिम रोशनी फैल गयी।

सत्तू झट से अपने सारे कपड़े उतारने लगा, अल्का एक टक, उत्तेजना में सिसकती हुई आपमे भैया को देखती रही, जब सत्तू ने अपना आखिरी वस्त्र उतारा तो जानबूझकर अपनी बहन को दिखाते हुए उतारा, वैसे अलका एक टक तो खुद ही निहारे जा रही थी पर जब सत्तू का मोटा लंड उछलकर बाहर निकला और दोनों की नजरें मिली तो अल्का ने उत्तेजना में सिसकते हुए सत्तू को दिखाते हुए अपनी बूर खुद ही अपने हाथों से सहला दी, सत्तू झट से अल्का की दोनों जांघों के बीच आ गया और अल्का ने सिसकते हुए खुद ही अपने दोनों पैर ऊपर को करते हुए अपनी कच्छी खोलकर अपने भाई के सामने मदरजात नंगी हो गयी, अल्का नंगी तो हो गयी पर शर्म अभी भी कहीं बची हुई थी इसलिए शर्म की अंतिम डोर टूटने से पहले अपनी बूर को जांघों के बीच हल्का सा भींचकर जितना हो सके छुपा लिया।

बूर का आखिरी आवरण हटने से एक बार फिर उसकी पेशाब और कामरस की महक सत्तू के नथुनों तक पहुंची तो सत्तू का लंड बूर में घुसने के लिए हल्का हल्का ठुमकने से लगा, सत्तू अलका के ऊपर चढ़ गया और उसका लंड सीधा अलका की बूर पर जा लगा, दोनों की सिसकियाँ निकलने लगी, अल्का ने पहले तो जानबूझकर अपनी बूर को जांघों के बीच भींचकर छुपा रखा था पर जैसे जैसे लंड की हल्की हल्की ठोकरें बूर के ऊपरी हिस्से पर लगती गयी, अल्का बेसुध होकर सिसकते हुए उस दहकते लंड को अपनी बूर की फांकों के बीच महसूस करने के लिए लालायित होकर धीरे धीरे अपनी जांघे खोलकर अपने पैर हवा में फैलती चली गयी, जैसे जैसे जांघे खुलती गयी, लंड जो पहले ऊपर झांटों पर रगड़ रहा था जैसे ही महकती बूर की फाँकों पर लगा, दोनों मानो जन्नत में पहुंच गए, "आआआआआआआआ हहहहहहह.... भैया.... मेरे भाई.... मेरे साजन.....कितना प्यारा अहसाह है ये"

"ओओह.....दीदी क्या बूर है तेरी....मेरा लंड पागल हो गया है तेरी बूर में घुसने के लिए.....कितनी नरम नरम फांकें हैं इसकी.....बूर भी क्या चीज़ है और वो भी अपनी बहन की"

सत्तू मदहोशी में पागल होकर अपना लंड धीरे धीरे बूर की फाकों पर रगड़ रहा था जिससे अल्का का बदन रह रहकर थरथरा जाता, वो बार बार जोर जोर से सिसकते हुए अपनी बूर को थोड़ा नीचे करती ताकि लंड उसके छेद पर न पड़े, सत्तू कराहते हुए बहुत संभाल संभाल के अपना लंड अपनी बहन की बूर की फाँकों के बीच रगड़ रहा था ताकि उसकी चमड़ी न खुल जाए, पर तभी अल्का धीरे से सिसकी "आह भैय्या... धीरे धीरे"।

कुछ देर बाद सत्तू अल्का की जांघों के बीच उठ कर बैठ गया अल्का ने मदहोशी से भरी बोझिल आंखों से सत्तू को देखा फिर उसकी नज़र सत्तू के लंड पर गयी जो बूर के रस से चमकते हुए रह रहकर अति उत्तेजना में हल्की हल्की ठुमकी मार रहा था, अल्का ने बड़ी वासना भरी नजरों से सत्तू को देखा और मुस्कुराते हुए पास ही पड़े ऊन के गोले को उठाया उसमें से लगभग तीन बित्ता ऊन तोड़ा, थोड़ा उठकर बैठ गयी, सत्तू सिसकता हुआ थोड़ा और आगे आ गया, अल्का ने लंड पर बड़े प्यार से हाँथ फेरा और धीरे से सहलाया, लंड इतना सख्त हो चुका था कि उसका सुपाड़ा अलग ही दिख रहा था, सुपाड़ा फूलकर अपने आकार से थोड़ा और ही बड़ा हो गया उसकी चमड़ी उसे पूरी तरह अब ढक पाने में असमर्थ हो रही थी, अल्का ने चमड़ी को पकड़कर हल्का सा खींचकर आगे इकठ्ठा किया, सत्तू बस अल्का को निहारे ही जा रहा था, लंड की चमड़ी को थोड़ा आगे इकट्ठा करके अल्का ने उसे ऊन से इस कदर बांधा की बचे हुए ऊन को पकड़कर खींचने पर गांठ खुल जाए, गाँठ बांध लेने के बाद दोनों ने एक दूसरे के होंठों को चूमा और अल्का बड़ी मादकता से पलंग पर लेट गयी, सत्तू ने जैसे ही तकिया उठाया अल्का समझ गयी और उसने खुद ही अपनी गांड को ऊपर उठ लिया सत्तू ने तकिया इस कदर गांड के नीचे रखा कि अल्का की मखमली महकती हुई बूर पूरी तरह खुलकर सत्तू के सामने आ गयी, बूर उत्तेजना में फूलकर पावरोटी की तरह हो चुकी थी, ऊपर से अल्का ने मचलते हुए अपनी जांघे फैलाकर अपनी प्यासी बूर को पूरी तरह अपने भैया को खाने के लिए परोस दिया। जांघे फैलाने से बूर मुस्कुराती हुई खुलकर बाहर आ गयी। अल्का ने मस्ती में आंखें बंद कर ली।

सत्तू ने अल्का का दाहिना पैर ऊपर उठाया और अपने कंधे पर रख लिया, शर्म के मारे अल्का ने एक हाँथ से अपना चेहरा ढँक लिया पर अपने भैया को रिझाने के लिए एक हाँथ से धीरे से अपनी बूर की फांकों को चीरकर हल्का सा खोल दिया, बूर का महकता हुआ गुलाबी छेद पूरी तरह दिखने लगा, सत्तू ने एक हाँथ अल्का की मांसल गांड के नीचे लगाया और हल्का सा उठाकर तकिए को और मोड़ा अब अलका की गांड थोड़ा और उठ गई, सत्तू ने अब भटकइयाँ का एक फल लिया और बूर के गुलाबी छेद पर जैसे ही रखा अल्का ने हल्का सा सिसकी ली और बूर को थोड़ा और फाड़ दिया, अल्का की इस अदा और सहयोग को देखकर सत्तू इस कदर उत्तेजित हो गया कि मानो उसका लंड अब बगावत कर देगा और बांधा हुआ ऊन टूटकर खुल जायेगा, किसी तरह खुद को संभाला, जब अल्का ने बूर को और चीरा तो फल हल्का सा छेद में बैठ गया पर अंदर नही गया, सत्तू ने दूसरा फल उठाया और उसे भी बूर के छेद पर रखा, फिर उसने अपने लंड को पकड़ा और कसमसाती हुई अपनी बहन की बूर के छेद पर भिड़ाया, जैसे ही हल्का सा दबाया अल्का सिसकी, बूर के छेद की तुलना में लंड का सुपाड़ा चार गुना मोटा होने की वजह से आसानी से घुस पाना असंभव था ये बात दोनों भाई बहन जानते थे, सत्तू ने जब थोड़ा और जोर लगाया तो अल्का थोड़ा जोर से कराह पड़ी, "ऊऊऊऊऊईईईईईई माँ.....आह, धीरे धीरे भैया, सत्तू झट से उठा और थोड़ी दूर पर रखा नारियल का तेल उठा लाया, नारियल का तेल थोड़ा ठंड होने की वजह से जम गया था पर जैसे ही सत्तू ने उंगली से निकालकर लंड पर लगाया झट से तेल गरम लंड की चमड़ी पर पिघल गया, लंड के मुहाने पर अच्छे से नारियल का तेल लगाया और थोड़ा सा अल्का की बूर के छेद पर लगाया, सत्तू ने अच्छे से पोजीशन ली और एक बार फिर कोशिश करने लगा, लंड को दहकती बूर के छेद से लगाया और थोड़ा जोर लगाकर अल्का की गांड को हथेली से थामकर थोड़ा उठाते हुए लंड का दबाव बूर पर लगाया तो लंड भटकइयाँ के फल को ठेलता हुआ बूर की रसीली फांखों को फैलता हुआ छेद में घुसने लगा। अल्का का हाँथ बूर पर से हट गया और वो जोर से कराही "आआआआआआह आआममम्मा.....आआआह मईया....आआआह धीरे से.....कितना मोटा है भैया आपका.....आआआह मेरी बूर"

तेल की फिसलन से धीरे धीरे लंड अंदर जाने लगा, बूर फैलते हुए लंड को लीलने लगी कराहते हुए एक बार तो अल्का ने सत्तू की कमर को थाम लिया, आज पहली बार सत्तू का लंड बूर चख रहा था, बूर कैसी होती है, क्या चीज़ होती है, अंदर कैसा महसूस होता है आज पहली बार उसे अहसाह हो रहा था, दोनों को ही मानो होश नही था, सत्तू हल्का सा अल्का पर झुका और उसकी चूचीयों को दबाने और सहलाने लगा, कड़क हो चुके निप्पलों को मुंह मे भर भरकर पीने लगा, अल्का का दर्द कम हुआ और वो सिसकने लगी, अपने भाई की पीठ और गांड को सहलाने लगी, लंड एक चौथाई बूर में घुसा हुआ था।

जब दर्द थोड़ा कम हुआ तो सत्तू फिर उठा और लंड को बूर से बाहर निकाला, दो तीन फल और लिए और थोड़ा खुल चुकी बूर के छेद पर रखे, अल्का फिर मचल उठी, उसने अच्छे से अपनी जांघों को फिर फैलाया, सत्तू ने अल्का की गांड को थोड़ा उठाते हुए पोजीशन बनाई और लंड को बूर की छेद पर रखा, हल्का हल्का धक्का देना शुरू किया, तेल की फिसलन और बूर के रस से लंड इस बार थोड़ा आसानी से फांकों को फैलता हुआ फल को ठेलता हुआ अंदर घुसने लगा, दोनों के मुंह से एक साथ मस्ती भरी सिसकारी निकली, सत्तू ने अल्का के ऊपर झुककर उसके नरम नरम होंठो को मुँह में भर लिया, अल्का की आंखें मस्ती में बंद होने लगी, धीरे धीरे लंड बूर में घुसता चला गया, अल्का परम आनंद में सिसकते हुए कस के सत्तू से लिपट गयी, अपने भैया का लंड अपनी बूर में पाकर अल्का के बदन में मस्ती की तरंगें उठने लगी, इतना आनंद उसे कभी नही आया था, सत्तू ने अभी तक पूरा लंड अपनी बहन की बूर में नही पेला था, बस लंड धीरे धीरे सरकता हुआ आधे से थोड़ा ज्यादा ही बूर में समाया हुआ था, दोनों एक दूसरे को पाकर बेसुध हो गए, एक दूसरे को बेतहाशा चूमने लगे, परम उत्तेजना में अल्का का चेहरा गुलाबी हो चुका था, आज एक भाई अपनी बहन को पलंग पर नंगी करके चोदने जा रहा था।

दोनों ने उत्तेजना में बोझिल आंखों से एक दूसरे को देखा, अल्का शर्माते हुए मुस्कुरा उठी।

सत्तू हल्का सा अल्का के ऊपर से उठा और झुककर अपने दहकते लंड को देखने लगा, की वो कैसे रसीली बूर में आधे से ज्यादा समाया हुआ है अल्का ने भी हल्का सा सर उठा कर नीचे देखा, लंड का एक चौथाई भाग बाहर दिख रहा था बाकी का तो बूर लील चुकी थी, बूर की फांके किसी रबर के छल्ले की तरह फैल गयी थी, काला सा ऊन का धागा बाहर निकला हुआ था, दोनों भाई बहन बूर और लंड को देख रहे थे कि तभी सत्तू ने लंड को बड़े प्यार से बाहर खींचा और उसे देखते हुए की वो बहन की बूर में कैसे जा रहा है धीरे धीरे सिस्कारते हुए बूर में पेलने लगा, अल्का मस्ती में मचल उठी, सत्तू की कमर और गांड को मस्ती में सहलाने लगी वो भी अपनी गांड को जब भी लंड बूर में सरकता ऊपर को उठाकर ताल से ताल मिलाती, सत्तू ने ऐसे ही कई बार किया, जब भी लंड सरककर अल्का की रसभरी बूर की गहराई में उतरता वो हर बार गनगना कर कभी सत्तू को बाहों में भींच लेती, कभी पीठ को सहलाते हुए मस्ती में नाखून ही गड़ा देती, कभी सत्तू की गांड को सहलाने लगती, कुछ देर ऐसा करने के बाद सत्तू ने अल्का से कहा-

सत्तू- दीदी

अल्का- हम्म्म्म

सत्तू- कितनी रसीली तेरी ये....

अल्का- "आआआह.......क्या मेरे भैया?

सत्तू - तेरी बूर...मेरी बहन...कितनी नरम नरम और मखमली फांकें है.....आआआह ह ह ह ह।

अलका- हाय.. तो चोदिये न...अपनी बहन की बूर...कितना तरसी है तुम्हारी बहन तुम्हारे लंड के लिए मेरे भैया..... कितना तगड़ा और मोटा है आपका लंड.... आज अपनी बहन की प्यासी बूर को चोद दीजिए।

अल्का आंखे बंद किये मस्ती में ये बोलती गयी पर जब हल्का सा मदहोशी में अपनी आँखें खोली तो सत्तू उसे निहारे जा रहा था, अल्का शर्माकर उससे लिपट गयी।

सत्तू- दीदी...देख कैसे तेरी बूर मेरा लंड खा रही है, जैसे कोई भूखा बच्चा डंडी वाली कुल्फी को मुँह में भरकर लपक लपक के चूसता है।

सत्तू अल्का की आंखों में देखकर बोल रहा था और अल्का मारे शर्म से अपना गुलाबी चेहरा उसकी छाती में छुपा लेती, सत्तू ने उसके चेहरे को ऊपर उठाया और होंठों को चूमते हुए बोला- बोल न दीदी...चुप क्यों हो गयी।

अल्का- भाई के लंड के लिए बरसों से तरसी है तो आज जब उसे मिला है तो निचोड़ निचोड़ कर खाएगी न....कितना मस्त लंड है आपका।

सत्तू- मेरी बहन को पसंद आया मेरा लंड?

अल्का फिर शर्माते हुए- आपकी बहन अब बस आपके लंड की दीवानी हो चुकी है...

सत्तू ने थोड़ा जोर से लंड बूर में और पेल दिया

अल्का- "आआआह ह ह ह....ऊऊई....

कुछ देर ऐसे ही चलता रहा फिर

कुछ देर बाद अल्का ने धीरे से हाँथ नीचे किया तो सत्तू ने अपनी कमर को हल्का सा उठाया और नीचे देखने लगा, अल्का ने ऊन को पकड़ा और हल्का सा खींचा तो वो खुल गया, धीरे से अल्का ने ऊन को खींचकर बाहर निकाला और अपनी बूर के अंदर से सरसराता हुआ ऊन बाहर निकलता हुआ महसूस कर उसे गुदगुदी हुई तो वो हल्का सा गनगना गयी, अल्का ने फिर अपने भैया के आंड़ को हाँथ में लिया और हल्का हल्का सहलाने लगी, सत्तू अल्का के गालों को झुककर चूमने लगा, अल्का ने फिर जितना लंड बूर से बाहर था उस पर हाँथ लगाया और उसकी चमड़ी को धीरे धीरे ऊपर को सरकाने लगी, पांच छः बार ऊपर को चमड़ी खिंचने से बूर के अंदर घुसे सुपाड़े की चमड़ी खुलने लगी और अपनी बूर के अंदर लंड के सुपाड़े पर से उसकी चमड़ी को हटता हुआ महसूस कर अल्का की आँखे मदहोशी में बंद हो गयी, किस तरह उसके भैया के लंड का चिकना सुपाड़ा उसकी बूर के अंदर ही पड़े पड़े खुल रहा था, एक अजीब सी गुदगुदी के अहसाह से अल्का और सत्तू दोनों ही सिसक उठे।

पांच छः बार पीछे की ओर चमड़ी खिंचने से चमड़ी सुपाड़े पर से उतर गई और अल्का अपनी बूर में अपने भैय्या का मोटा चिकना सा सुपाड़ा अच्छे से महसूस कर मस्ती में तड़प गयी, सत्तू ने लंड को थोड़ा तिरछा करके सुपाड़े से एक जोर की दबिश बूर की किनारे की दीवारों पर दी तो अलका ने जोर से सिसकारी लेते हुए सत्तू को चूम लिया "ऊऊऊऊऊईईईईईई भैया..... धीरे से पेलो",
बहन के मुंह से "पेलो" शब्द को सुनकर सत्तू और उत्तेजित होता जा रहा था और हर बार अल्का भी "पेलो" और "चोदो" शब्द बड़ी मादकता से बोलने लगी।

सत्तू ने कई बार हौले हौले ऐसे ही लंड को तिरछा करके बूर की रसीली दीवारों पर रगड़कर दबिश दी, हर बार अल्का मस्ती में कराहते हुए सिसक सिसक कर इस रगड़ाई का आनंद लेते हुए अपनी गांड को ताल से ताल मिलाते हुए मचल उठती, हर बार जब भी लंड बूर की दीवारों से रगड़ता वो कराह कर हर बार "आआआह भैया धीरे से पेलो....धीरे से घुसेडो....हौले हौले डालो....हौले हौले रगड़ो....धीरे धीरे चोदो...मस्ती में जानबूझकर बोलने लगी, हर बार इतना मजा आता कि वो सत्तू की गांड को पकड़कर जोर से भींच देती।

मस्ती और वासना चरम पर थी, भटकइयाँ के पांच छः फल बूर की गहराई में पड़े थे जो कि अल्का को एक अलग ही गुदगुदी का अहसाह करा रहे थे, लंड का सुपाड़ा उन फलों से बस आधा इंच ही दूर था कभी कभी वो दबिश देने से उन फलों से टकरा जाता तो फल इधर उधर हिलकर अल्का की बूर की गहराई में चुभते जिससे अल्का को असीम आनंद और गुदगुदी का अहसास होता और वो हर बार मस्ती में कराह उठती, अपनी बूर की गहराई में उसे सारे फल साफ चुभते हुए गुदगुदाते हुए महसूस हो रहे थे, एक अलग ही रोमांचकारी अहसाह हो रहा था, एक तो दहकता हुआ बलशाली लंड बूर को चीरकर उसमें आधा घुसा हुआ था जो उसे जन्नत की सैर कर ही रहा था ऊपर से वो फल बहुत गुदगुदी पैदा कर रहे थे, जिससे उसके बदन में वासना की मस्ती, गुदगुदाहट, उत्तेजना, मीठी मीठी तरंगे, थरथराहट, हल्का हल्का मीठा मीठा दर्द, सब एक साथ उठ रही थी, अल्का को होश ही नही था कि अब वो कहाँ है, शाम के वक्त वो अपने कमरे में पलंग पर एकदम नंगी लेटी अपने भैया का लंड अपनी बूर में घुसवाये हुए उनसे चुदवा रही थी।

अल्का ने अपने दोनों पैर उठाकर सत्तू की कमर पर लपेट दिए जिससे बूर और खुल गयी बस एक चौथाई ही लंड बहन की बूर से बाहर था, दोनों एक दूसरे से लिपटे एक दूसरे को ऐसे चूम रहे थे जैसे अब दुनियां की कोई ताकत उन्हें अलग नही कर सकती।

सत्तू ने धीरे से अल्का के कान में कहा- और बोल न...और गंदा बोल न दीदी

अल्का- आह....बोला तो...मेरे भैया

सत्तू ने लंड को हल्का सा बूर में रगड़ते हुए बोला- और बोल मेरी बहना

अल्का ने कुछ देर के लिए मस्ती में आँखे बंद की फिर सत्तू के कान में धीरे से बोला- पाप करो न भैया....

सत्तू- आह!

अल्का- दुनिया वाले इसे पाप कहते हैं न.....?

सत्तू- हां मेरी प्यारी बहना... न जाने क्यों?

अल्का- बहन को चोचोचोदददनननना पाप है न...

सत्तू- दुनियां की नज़र में तो है मेरी बहन!

अल्का- पर इसमें मजा कितना आ रहा है....आ रहा है न?

सत्तू- बहुत...बहुत...ऐसा मजा आजतक नही आया.....आह बहन की बूर!

अल्का हल्का सा सिसकते हुए- तो...अपनी बहन को अब चोदकर उसको पाप का मजा दो न मेरे प्यारे भैया...अब पाप करो न...मजा दो न...आपकी बहन प्यासी है....बूर चोदो न

इतना सुनते ही सत्तू बेकाबू हो गया, अल्का मारे शर्म से उससे बुरी तरह सिसकते हुए लिपट गयी, सत्तू ने दोनों हांथों से अल्का की मस्त मांसल गांड को हल्का सा उठाया और एक जोर का धक्का मारकर अपना समूचा लंड एक ही बार मे उसकी दहकती बूर में घुसेड़ दिया, अल्का जोर से कराहते हुए सीत्कार उठी, "आआआआआआआआ हहहहहहह.....भैया...... हाय मेरी बूबूबूबूबूरररररररर.......ओओह..... ऊऊऊऊऊईईईईईई माँ...

पूरा बदन उसका ऐंठ गया, धनुष की भांति उसकी चूचीयाँ ऊपर तो तन गयी। लंड जड़ तक पनियानी बूर में घुस गया। धक्का इतना तेज था कि भटकइयाँ के दो फल पट्ट की आवाज के साथ बूर के गर्भाशय पर फुट गए और उनका रस बूर में फैल गया, अल्का और सत्तू को फल के फूटने की आवाज साफ सुनाई दी, फल का रस बूर की गहराई में फैलता हुआ अलका को परम आनद की अनुभूति कराने लगा, क्योंकि सत्तू ने हथेली से थामकर अलका की गांड को अच्छे से थोड़ा ऊपर उठा रखा था इसलिए फल का रस बहकर बाहर नही आया पर अल्का और सत्तू को फल का रस बखूबी महसूस हो रहा था।

अल्का मीठे मीठे दर्द और उत्तेजना में मचलते हुए सिस्कारने लगी, पूरा कमरा अब उसकी लगातार सिसकी से गूंज रहा था, सत्तू अपनी बहन अल्का को अब धीरे धीरे धक्के मार मार कर चोदने लगा, अल्का का दर्द कम होने लगा, और वो मस्ताने लगी, भटकइयाँ के दो तीन फल जो फूटे नही थे वो सरक कर बूर की गहराई में किनारे पर आ गए जो अल्का और सत्तू को साफ महसूस हो रहे थे, सत्तू रुका और उसने लंड के सुपाड़े से उन फलों को दबाया पर वो कच्चे होने की वजह से फूटे नही बल्कि फिसलकर फिर इधर उधर हो गए, अल्का को बूर के अंदर बहुत गुदगुदी हुई, सत्तू बार बार कोशिश करता पर वो फल बार बार फिसल जाते, सत्तू ने एक बार फिर अल्का की गांड को अच्छे से दुबारा हाँथ में थामा और फिर लंड को तिरछा और इधर उधर करके बूर की गहराई में फलों के ऊपर दबाया, पर फल फिर फिसल गए, इस कोशिश में जब जब भी लंड बूर की गहराई में दबिश देता अल्का हर बार मस्ती और असीम गुदगुदी से कराह उठती, इस खेल में इतना मजा आएगा ये दोनों ने नही सोच था।

अल्का को भी अच्छे से महसूस हो रहा था कि उसकी बूर के अंदर फल बार बार इधर उधर फिसल जा रहे है, बार बार लंड की ठोकर लगने से और फल के इधर उधर फिसलने से उसे और सत्तू को अद्भुत रोमांचकारी आनंद तो मिल रहा था पर फल फूट नही रहे थे, तो उसने और अच्छे से अपनी दोनों जांघे खोलकर अपने भैया की कमर पर लपेट दी और खुद भी अपनी गांड को सत्तू के लंड की ठोकर की दिशा में ताल से ताल मिलाकर गांड उछाल उछाल कर भटकइयाँ के फल फ़ूडवाने में सिस्कारते हुए अपने भैया का सहयोग करने लगी, कुछ देर ऐसे ही चलता रहा दोनों सिसक सिसक कर कोशिश करते रहे इस दौरान इतना मजा आया कि उसकी तुलना करना मुश्किल है, कुछ ही देर की लगातार कोशिश के बाद एक फल फिर पट्ट की आवाज करते हुए बूर के अंदर फूट गया, दोनों मस्ती में जोर से सिसकते हुए लिपट गए, अब न सत्तू से रह जा रहा था न अल्का से, जब बर्दाश्त के बाहर हो गया तो सत्तू ने अल्का की बूर में तेज तेज धक्के लगाते हुए उसकी बूर चोदना शुरू कर ही दिया, अल्का मस्ती में जोर जोर से कराहते हुए अपने भैया से चुदने लगी, उसने अपनी जांघों को बिल्कुल खोल दिया ताकि उसके भैया उसे अच्छे से चोद सकें, पूरे कमरे में मस्ती भरी चुदाई की सिसकारियां गुजने लगी, रहे सहे फल भी अब न जाने कब पट्ट की आवाज करते हुए फुट पड़े, और पूरी बूर लाल रस से भर गई, चुदाई की फच फच की आवाज बखूबी कमरे में गुजने लगी, सत्तू ने अल्का को चोदते हुए उसकी गांड की छेद को हल्का सा सहलाया तो वो और मचल उठी, वो उसे चोदते चोदते उसकी गांड की छेद पर उंगली से सहलाता जा रहा था जिसकी वजह से अल्का मस्ती के सातवें आसमान पर पहुंच चुकी थी, बूर पूरी तरह खुल चुकी थी लंड का आवागमन इतना परम सुख देने वाला था जिसकी कल्पना नही की जा सकती थी।

सत्तू का लंड फल के लाल रस से पूरी तरह सन चुका था और रस अब बाहर रिसने लगा, वो रिसकर सत्तू की उंगलियों और अल्का की गांड के छेद तक जा पहुंचा, जैसे ही गीला गीला महसूस हुआ सत्तू ने रस को अल्का की गांड पर मसल दिया, अल्का मस्ती में सिस्कारते हुए अपनी गांड उछाल उछाल कर सत्तू से चुदवाने लगी, लंड जब जब उसके बच्चेदानी से टकराता वो जोर से कराह उठती, मस्ती से मचल जाती, कितने महीनों बाद आज उसकी बूर की प्यास उसके भैया के लंड से बुझ रही थी, तेज तेज धक्कों से पलंग चर्र चर्र करने लगा, सत्तू ने अब काफी तेज तेज लंबे लंबे धक्के अपनी बहन की बूर में लगाने लगा, हर बार जब लंड भट्टी की तरह दहकती बूर की दीवारों को चीरता हुआ गहराई में उतरता अल्का कराह उठती, "आआआआआआह ह ह ह ह ह ह.......हाय.....दैय्या..... चोदो मेरी बूर..... आआआह......ऊऊई..... ओओओहह ह....भैय्या..... कितना मजा आ रहा है....कितना अच्छा चोदते हो आप.....आह मेरे भैया.... मेरे राजा....मेरे सैयां...... चोद दो मेरी बूर को आज अच्छे से......आआआह.... फाड़ दो आज अपनी बहन की बूर.....बहुत तड़पाती है ये मुझे.......आज अच्छे से चोदो इसे..... ऊऊई माँ.....

इसी तरह अल्का मदहोशी में सिसकते हुए बोले जा रही थी और सत्तू भी उसे लगातार चूमते हुए लंबे लंबे धक्के लगाते हुए उसे चोदे जा रहा था, तेज तेज धक्कों से अल्का का पूरा बदन हिल जा रहा था, दोनों चूचीयाँ खरबूजे की तरह धक्के की ताल में इधर उधर हिल रही थी, निप्पल तनकर खड़े हो चुके थे, पैर हवा में हिलने की वजह से पायल अलग ही झंकार पैदा कर रही थी, बहन की बूर चोदने में इतना परम आनंद आएगा ये सत्तू ने सोचा नही था, हर धक्के पर दोनों की उत्तेजना और बढ़ती जा रही थी, करीब 15 मिनट की लगातार चुदाई से कमरा मस्ती भरी सिसकारियों से भर गया, तभी सत्तू ने फिर से अलका की गांड के नीचे हाँथ लेजाकर उसकी गांड को सहला सहला कर उसे चोदने लगा, अचानक उसने पूरा पूरा लंड बूर से निकाल कर एक ही बार में कस कस के बूर की गहराई में तेज तेज घुसा घुसा कर धक्के मारने लगा और इस मस्ती भरी रगड़ को अल्का अब झेल नही पाई और जोर से सिस्कारते हुए सत्तू से कस के लिपटते हुए अपनी गांड को उछाल उछाल कर झड़ने लगी, "आआआआआआआआआआआ हहहहहहहह हहहहहहहह......भैय्या.......मैं गयी........हाय मेरी बूर......

काफी देर तक अल्का अपनी गांड को उछाल उछाल कर अपनी बूर में अपने भैय्या का लंड पेलवाते हुए झड़ती रही, उसकी बूर की गहराई में काम रस का फव्वारा फुट पड़ा, ऐसा लगा वो आसमान में उड़ रही है, इतना सुखद चरमसुख उसे आज पहली बार मिला था, मस्ती में सत्तू की नंगी पीठ पर उसके नाखून धंस गए, रसीली बूर काफी देर तक संकुचित होते हुए झड़ती रही, और वो असीम अद्भुत आनंद की अनुभूति में सत्तू को ताबड़तोड़ चूमने लगी, सत्तू अभी भी अपनी बहन की बूर में घच-घच लंड पेले जा रहा था, धक्कों की रफ्तार कुछ देर के लिए रुकी जरूर थी पर सत्तू अब पागल हो चुका था, वो फिर से तेज तेज धक्के मारने लगा और अल्का फिर जोर जोर कराहने लगी, फच फच की आवाज से दोनों और उत्तेजित हो रहे थे, बूर के मखमली अहसाह को अब सत्तू झेल नही पाया और एक जोरदार धक्का मरता हुआ अपना पूरा लंड अपनी बहन की बूर में जड़ तक गाड़ता हुआ जोर से कराहते हुए थरथरा कर बूर में झड़ने लगा, भैया के वीर्य की मोटी मोटी गरम धार जैसे ही अल्का को अपने बच्चे दानी पर महसूस हुई वो फिर एक बार गनगना कर झड़ने लगी, अब दोनों सिस्कारते हुए एक साथ झड़ रहे थे, सत्तू ने अल्का के पूरे बदन को रगड़ रगड़ कर तोड़कर रख दिया था, उसका रोम रोम भाई के लंड की चुदाई से पुलकित हो चुका था, काफी देर तक दोनों सिस्कारते हुए एक दूसरे को चूमते सहलाते झड़ते रहे, सत्तू अल्का पर ढेर हो चुका था, भटकइयाँ के सारे फल की पिसाई हो चुकी थी, सारा लाल लाल रस, वीर्य और बूर के रस के साथ बहकर तकिए पर रिस रहा था, तकिया लाल हो चुका था, अल्का और सत्तू हांफते हुए एक दूसरे को चूमने लगे, सत्तू अल्का पर ढेर हो गया, लंड अभी भी पूरा बूर में घुसा हुआ था, अल्का अपने भैय्या को अपने ऊपर लिटाकर बड़े प्यार से उसे चूम चूम कर उसके सर को सहलाने लगी।
 
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Super update Kumar Bhai...thanks for the same..
unfortunately, aapki doosri story kaa updates nahi mil raha hain...but anyway, i know..aap problems se guzar rahe ho..
hope Upar waala aapki har pareshaani door kar de...
Looking forward to the next update...Thanks.
 
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