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Romance मंगलसूत्र [Completed]

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mashish

BHARAT
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इस पूरे वार्तालाप में अल्का नीचे की ही तरफ देखती रही।

मैंने बोल तो दिया था, लेकिन मुझे पूरा संदेह था की वो ऐसा कुछ कर भी सकती है। लेकिन अगर उसने यह कर दिया तो मज़ा आ जायेगा। आज पहली बार एक लड़की के अनावृत स्तन और योनि देखने को मिल सकेगा! संभव है, कि वो अपने अंगों को छूने भी दे! काफी देर के बाद हम अंततः अपने तालाब पर पहुँच गए। वहां पहुँच कर हम दोनों ही रुक गए। अल्का सर झुकाए वहां खड़ी हुई थी। मुझे लगा कि मैंने हमारी दोस्ती की सीमा का उल्लंघन कर दिया है, और इसीलिए अल्का उदास या नाराज़ है। यह बात मेरे मन में जैसी ही आई, मैंने उसको अपने गले से लगा लिया।

“अल्का, तुमको ऐसा कुछ करने की ज़रुरत नहीं! आई ऍम सॉरी! मुझे ऐसा नहीं कहना चाहिए था।”

“नहीं चिन्नू… सॉरी मत कहो! मुझे मालूम है कि तुम क्या चाहते हो! लेकिन… मैं नहीं जानती कि तुम्हारी इच्छा पूरी कर पाऊँगी या नहीं!”

“मोलू, ऐसे मत कहो!” मैंने पहली बार अल्का को उसके प्यार के नाम से बुलाया था, “तुमको कुछ करने की ज़रुरत नहीं! समझी?”

“नहीं चिन्नू… मेरी बात सुनो! तुम… मैं.... क्या तुम, मेरे कपड़े उतारोगे?”

“अल्का! तुम क्या कह रही हो?” मेरा सर चकरा गया।

“प्लीज मेरी बात सुन लो! मैं चाहती थी की मुझे बिना कपड़ो के वो देखे जिसे मैं प्यार करती हूँ.…”

उसकी बात सुन कर मैं भौंचक्क रह गया। ‘ये क्या कह रही है अल्का! मुझसे प्यार!?’

“तू तु तु तुम.... मुझसे प्यार?”

“हाँ मेरे भोले बाबू! लेकिन, इतनी जल्दी नहीं! आराम से!”

“आराम से? मतलब?”

“मतलब ये मेरे चिन्नू, कि यह सच है कि मैं तुमको चाहती हूँ.... लेकिन तुमको भी तो मुझसे प्यार होना चाहिए! है न?”

“पर मैं भी तुमसे प्यार करता हूँ।”

“मुझे मालूम है। तुम मुझे प्यार करते तो हो... लेकिन, उस तरह से नहीं!”

“उस तरह से नहीं? मतलब? किस तरह से नहीं?”

“उस तरह जैसे एक प्रेमी, अपनी प्रेमिका को करता है!”

“मैं करुंगा!”

“मुझे मालूम है... तुम ‘करोगे’... लेकिन, तुम अभी तक नहीं करते!” अल्का मंद मंद मुस्कुरा रही थी।

“अल्का,” मैंने संजीदा होते हुए कहना शुरू किया, “मैं तुमको कभी भी, किसी भी तरह से दुःख नहीं दूंगा!”

“मुझे मालूम है, कुट्टन!” अल्का इस समय बहुत प्यार से बोल रही थी, बहुत ही संयत स्वर में! “तुम बहुत अच्छे हो! लेकिन मैं तुम पर किसी तरह का दबाव नहीं डालूँगी! लेकिन मैं तुमसे प्यार करती हूँ! बहुत लम्बे अरसे से करती हूँ।”

मेरे मष्तिष्क में इस समय घंटियां बज रही थीं। ह्रदय धाड़ धाड़ कर धड़क रहा था।

“कितना अच्छा हो, अगर हम दोनों साथ रह सकें! हमेशा!” अल्का बोलती जा रही थी।

“अल्का, मैं तुम्हारे साथ हूँ! और हमारा साथ में रहना आज से शुरू! आज से... अभी से... हमेशा के लिए!” मैंने मन ही मन निर्णय ले लिया था।

“सच में कुट्टन? सोच लो! मुझसे पीछा नहीं छुड़ा पाओगे कभी!”

“मेरी मोलू , मुझे तुमसे पीछा छुड़ाना भी नहीं है।”

अल्का की मुस्कराहट कुछ गहरी हो गई, “अभी तुमको मेरा शरीर नहीं मिला है, इसलिए तुम ऐसे कह रहे हो!”

मुझसे कुछ कहा नहीं गया।

“इसीलिए कह रही हूँ, इतनी जल्दी जल्दी नहीं!”

उसकी बात से मैं निराश हो गया।
lovely update
 

mashish

BHARAT
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उसी समय धनेश (हार्नबिल) पक्षी की आवाज़, उस हरे भरे निस्तब्ध वातावरण में गूंजने लगी। हम दोनों का ही ध्यान उसी तरफ आकर्षित हो गया। आँखें बंद कर के अगर लेट जाओ, तो वो गूँज सुन कर गहरी, सुख भरी नींद आ जाए। अल्का धीरे से मुस्कुरा दी।

“ये आवाज़ सुन रहे हो कुट्टन? इसको वेळम्पल पक्षी कहते हैं।”

“कितनी सुन्दर आवाज़ है!”

“आवाज़ से भी सुन्दर ये दिखने में होता है।”

मैं चारों तरफ देखने लगा कि शायद दिख जाए। अल्का कुछ देर न जाने क्या सोच कर चुप रही, फिर आगे बोली,

“और दिखने से भी अधिक सुन्दर होता है इसका व्यवहार! बहुत ही कम पशु पक्षी हैं कुट्टन, जो अपने पूरे जीवन को केवल साथी के संग बिता देते हैं। नर और मादा वेळम्पल हमेशा साथ-साथ रहते हैं। जब मादा अपने अंडे देती है, तो किसी पेड़ के कोटर के अंदर बैठ जाती है। दोनों उस कोटर को पलस्तर कर के बंद कर देते हैं और सिर्फ उतना खुला रखते हैं जिससे कि नर वेळम्पल अपनी साथी के लिए खाना पानी ला सके।”

अल्का उत्साह के साथ मेरा ज्ञान वर्द्धन कर रही थी।

“नर वेळम्पल यह काम लगातार करता है - पूरी लगन से। मतलब अण्डों से जब बच्चे निकल आते हैं, तो उनके भी खाने पीने की व्यवस्था नर ही करता है। और तब तक करता है, जब तक बच्चे कुछ बड़े नहीं हो जाते। खुद वो बेचारा कमज़ोर हो जाता है, लेकिन अपने परिवार को किसी तरह की कमी नहीं होने देता। पारिवारिक दायित्व संग-संग निभाने में इस पक्षी का कोई जवाब नहीं। वेळम्पल पक्षी का प्रेम हमें पारिवारिक प्रेम के लिए क्या नहीं सिखाता है..!”

अल्का चुप तो हो गई, लेकिन उसकी इस चुप्पी में बड़े रहस्य भरे हुए थे। लेकिन वेळम्पल की गूँज मुझे खुद अपने समर्पण, अपने प्रेम की विवेचना करने पर विवश कर रही थी। वेळम्पल पक्षी - उन पर तो विवाह जैसे सामाजिक बंधन नहीं हैं। फिर भी अपने साथी के लिए उनमें पूर्ण समर्पण का भाव होता है। और दोनों ही उस भाव को पूरे उत्साह से निभाते हैं। क्या मेरे मन भी अल्का के लिए वैसा ही समर्पण का भाव है? या यह सिर्फ शारीरिक आसक्ति है? नहीं नहीं, यह सिर्फ शारीरिक आसक्ति तो नहीं है! रोमांटिक ख्याल तो अभी अभी आने शुरू हुए हैं। लेकिन अल्का के लिए प्रेम और आदर तो हमेशा से ही है। और जहाँ तक परिवार सम्हालने की बात है, तो खेती में जो अभी हाल फिलहाल की बरकत है, उसका कुछ श्रेय तो मुझे जाना ही चाहिए। आगे का आगे सीख लूँगा। अगर अल्का ने मुझे स्वीकार किया है, तो मैं भी तो उसको अपने जीवन में स्वीकार करना चाहता हूँ। बस, उससे यह सब कुछ कहने की हिम्मत नहीं हो रही थी अब तक। सच में कितना अच्छा हो, अगर अल्का और मैं, हम दोनों हमेशा साथ रह सकें! एक परिवार के जैसे! एक विवाहित जोड़े के जैसे! एक पति-पत्नी के जैसे! सच में! कितना अच्छा हो!

‘विवाह!’ वह तो सांसारिक बंधन है। बंधन जो निभाना पड़ता है। लेकिन अलका के साथ मैं मन के बंधन में बंधना चाहता हूँ। बंधन जो मैं निभाना चाहता हूँ। वो बंधन जिससे मैं शरीर से और मन से, अलका से जुड़ जाऊँ। सम्बन्ध ऐसा हो कि हम बस अखंड प्रेम में लीन रहें। आज संसार में जहाँ बच्चे अपने घरों के भीतर भी सुरक्षित नहीं हैं, वहाँ कि वेळम्पल पक्षियों की पारिवारिक अवधारणा कितनी महान है! सच में! वेळम्पल पक्षियों का प्रेम हमें क्या नहीं सिखाता! हम खुद को अन्य जीवों से श्रेष्ठ समझते हैं। लेकिन हम इनसे कितना कुछ सीख सकते हैं!

“कुट्टन मेरे, किस सोच में डूब गए तुम?”

अल्का ने मुझे इतनी देर से चुप और गहराई से सोचते हुए देख कर कहा।

मैंने ‘न’ में सर हिलाया और कहा, “कुछ नहीं मोलू!”

“चिन्नू, मैं तुमको मना नहीं करूंगी - तुम खेलो मेरे शरीर से! तुमको मेरी इजाज़त है! मुझे मालूम है कि तुम्हारा मन होता होगा स्त्री का संसर्ग पाने का। मैं तुमको उस सुख से वंचित नहीं करूँगी। लेकिन तुम मेरे मन के मालिक तभी बनोगे, जब तुमको भी मुझसे प्रेम हो जाएगा!”

“मोलू, तनिक एक पल ठहरो। तुमने इतनी सारी बातें कहीं हैं, अब मेरी भी एक दो बातें सुन लो। मुझे घुमा-फिरा कर कहना तो नहीं आता, लेकिन फिर भी मेरी एक दो बातें सुन लो।” अल्का चुप हो कर मेरी तरफ देखने लगी कि मुझे क्या कहना है।

“घर में सबसे छोटा होने का नुकसान भी है। कोई सीरियसली ही नहीं लेता। कितने ही साल हो गए जब मैंने पहली बार अम्मा से कहा कि मुझे तुम पसंद हो। अम्मा ने पूछा था मुझसे कि तुमको अल्का क्यों पसंद है। तब मैंने उनको कहा कि तुम अकेली हो, लड़की हो, और फिर भी खेती जैसा कठिन काम करती हो। और बखूबी करती हो। अम्मम्मा की पूरी देखभाल करती हो। सब काम सिर्फ अपने दम पर करती हो। किसी से कुछ नहीं माँगती। बस, देती रहती हो। इस समाज के सभी लोग तुमको आदर की नज़र से देखते हैं। मैं ख़ुद तुम्हारा बहुत आदर करता हूँ। तब अम्मा ने मेरी बात को बचपना समझ कर हँसी में उड़ा दिया। बोलीं, कि होने वाली पत्नी का आदर, वो भी अभी से! जैसे कि पत्नी का आदर नहीं करना चाहिए!”

अल्का अवाक् सी हो कर मेरी बात सुन रही थी। पता नहीं उसको मेरी बातों का यकीन भी हो रहा था या नहीं।

“तुम्हारे सब गुण मैंने किसी भी लड़की में नहीं देखे। अम्मा में भी नहीं। तुम कर्मठ हो। लेकिन मृदुभाषी भी हो। अम्मा और अच्चन के जैसे चिड़चिड़ी नहीं हो। तुमने मुझे एक व्यक्ति के रूप में देखा है, और चाहा है। तुमने मुझे अपने तरह से आगे बढ़ने के लिए हमेशा प्रोत्साहित किया है। बाकियों ने बस अपनी मर्ज़ी थोपी है मुझ पर। मुझे तुम्हारे गुण आकर्षित करते हैं। मुझे इन कारणों से लगता है कि तुम मेरे लिए परफेक्ट हो! मैं भले ही तुम्हारे गुणों के सामने नहीं टिकता, लेकिन प्यार तो तुमको बहुत करता हूँ।”

मैं जितनी गंभीरता और सच्चाई से यह बात कर सकता था, वो मैंने कहा।

“बचपन से ही तुम मेरी सबसे ख़ास दोस्त रही हो! मेरी फेवरेट! पूरे घर में किसी से भी ज्यादा ‘तुमको’ मेरे बारे में मालूम है। मुझे दुनिया में तुमसे ही सबसे ज्यादा प्यार है। मैं यह तो नहीं कहूँगा कि मुझे तुम्हारे शरीर में आसक्ति नहीं है। बिलकुल है, और बहुत है। लेकिन उससे अधिक मेरे मन में तुम्हारे लिए एक प्रबल और स्मरणीय स्नेह है। मुझे तुम चाहिए, बस तुम।”

“क्या सच, चिन्नू?” अल्का वाकई मेरी इस बात पर आश्चर्यचकित हो गई। उसकी आँखें नम हो चलीं थीं, “तुमको मालूम है? तुम्हारी इस एक बात ने मुझ पर क्या असर किया है?”

मुझे तो बस यही उम्मीद थी, कि उसको मेरी बात और उसके लिए मेरे मन में प्यार का अनुमान और भरोसा हो सके! उसने मेरे चेहरे को अपनी हथेली में ले कर बहुत देर तक मुझे यूँ ही देखा, और फिर कहना जारी रखा,

“कुट्टन मेरे, मैं तुमको यह अधिकार देती हूँ कि तुम मेरे कपड़े उतार सको! .... तुम मुझे नंगा देख सकते हो!”

“नहीं मोलू, अब उसकी ज़रुरत नहीं है!”
bahut hi pyara update
 
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अल्का मुस्कुराई, “कुट्टन मेरे, ज़रुरत है। तुमको मेरी चाह है, तो मुझको भी तो तुम्हारी चाह है! है न!”

“क्या?” मेरे गले से आवाज़ निकलनी बंद हो गई।

उसने मुस्कुराते हुए बस ‘हाँ’ में सर हिलाया। मैं काफी देर तक जड़वत खड़ा रहा, कुछ कहते या करते नहीं बना!

“जानू, जल्दी ही शाम हो जायेगी! नहाना नहीं है?” अल्का फुसफुसाई। मुझे वो और कितना उकसा सकती है!

बात तो सही थी! लेकिन फिर भी मेरे शरीर में उतनी तेजी नहीं आई - संभवतः, मैं अल्का को निर्वस्त्र करने की जल्दी में नहीं था। लेकिन बस यह ख़याल कि मेरी हर हरकत से उसका मूर्त रूप सामने आता जाएगा, बहुत ही रोमांचक और विलक्षण था। और मैं इस दृश्य के हर एक रसीले पल को अच्छे से अपनी आँखों में सोख लेना चाहता था।

मैंने हाथ बढ़ाया, और उसकी शर्ट का एक बटन खोल दिया, और उसकी आँखों में झाँका। मुझे प्रेरित करने के लिए वो मुस्कुराई। हम दोनों के ही माथे और होंठ के ऊपर पसीने छलक आए थे। गर्मी का प्रभाव था, या फिर घबराहट का? शर्ट के छः बटन खोलने में कम से कम दो मिनट तो लग ही गए होंगे। न जाने मुझे ऐसा क्यों लग रहा था कि यदि यह काम जल्दी में किया तो अल्का को चोट न लग जाए! शर्ट के पट एक दूसरे से अलग तो हो गए, लेकिन अल्का की हरी झंडी के बाद भी मैं शर्ट के पट को उसके शरीर से अलग नहीं कर पा रहा था। मेरी हौसला अफ़ज़ाई के लिए अल्का ने स्वयं ही शर्ट अपने शरीर से उतार कर अलग कर दी। वो सफ़ेद रंग की साधारण सी ब्रा पहने हुए थी। आगे मैंने जो किया वो उसके लिए भी अप्रत्याशित था - संभवतः वो सोच रही होगी कि अगला नंबर उसकी ब्रा का था, लेकिन मैंने उसकी जीन्स को निशाना बनाया। उसकी जीन्स उतारते समय मैं अधिक बेधड़क था।

अल्का कुछ देर ऐसे खड़ी रही - मेरे अगले कदम की प्रतीक्षा में, लेकिन जब मैंने कोई हरकत नहीं दिखाई, तो वो स्वयं ही मेरे सामने मुड़ गई, और इस समय उसकी पीठ मेरे सामने हो गई। मेरे लिए संकेत स्पष्ट था - उसके स्तनों को मुक्त करने का समय आ गया था। काँपते हाथों से उसकी ब्रा का हुक खोला और बाकी का काम उसने ही कर दिया। मुझे मालूम था कि मेरे सामने पीठ किये खड़ी इस लड़की के स्तन अब अनावृत हो चले हैं। लेकिन, काम अभी भी बचा हुआ था। मैं घुटने के बल ज़मीन पर बैठ गया और धीरे धीरे उसकी चड्ढी उतारने लगा। पाँच मिनट तक चले इस वस्त्र-हरण कार्यक्रम को करते हुए मुझे ऐसा लगा कि जैसे घंटो बीत गए!

अपने स्तनों को हाथों से ढके हुए अल्का मेरी तरफ मुड़ी - योनि छुपाने का उसने कोई प्रयास नहीं किया। सच कहूँ, तो मुझे किसी भी तरह की उम्मीद नहीं थी कि हमारे बीच जो बात मज़ाक मज़ाक में शुरू हुई थी, वो इतनी गंभीर हो जाएगी। हम दोनों की सांसे अब धौंकनी के जैसे चलने लगीं थीं, मेरा शिश्न उत्तेजना की पराकाष्ठा पर पहुँच कर ऊर्ध्व हो गया था, और पैंट के अंदर से बाहर होने को आतुर हो रहा था।

मैंने अल्का के दोनों हाथों को प्रेम से पकड़ कर हटाया - जो दिखा उसकी तो मैं बस कल्पना ही कर सकता था! आशा के अनुरूप, अल्का के सीने पर शानदार और ठोस स्तनों की अभिमानी जोड़ी उठी हुई थी। मेरी तर्जनी के नोक के आकार के समान ही गहरे भूरे रंग के चूचक, और उनके चारों तरफ तीन इंच का भूरे रंग का वृत्ताकार घेरा! वो घेरा सपाट नहीं था, बल्कि स्तनों पर से उठा हुआ था। कभी ताजमहल का गुम्बद देखा है? ठीक उसी के जैसे अल्का के स्तनों के तीन भाग थे - सबसे नीचे एक चिकना शुद्ध अर्द्ध-गोला, उसके ऊपर भूरे रंग की एक एक वृत्ताकार टोपी, और उसके भी ऊपर मेरी तर्जनी की नोक के आकार के चूचक! मेरी दृष्टि नीचे की तरफ गई - उसकी दोनों जांघों के बीच बहुत सहेज कर रखा हुआ घने बालों का एक नीड़ (घोंसला) था, और उसी नीड़ में छुपा हुआ था, अल्का का प्रेम-कूप!

“अल्का...” मेरे मुंह से बढ़ाई के शब्द अपने आप ही फूट पड़े, “तुम बहुत सुन्दर हो! आई ऍम सो लकी!”
awesome update
 

mashish

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निर्वस्त्र होते समय तो नहीं, लेकिन अपनी बढ़ाई सुनते ही अल्का के पूरे शरीर में लज्जा की लालिमा दौड़ गई।

“और... मेरा कुट्टन कैसा है?”

हाँ! मुझे भी तो निर्वस्त्र होना था। मैं जल्दी जल्दी अपने कपड़े उतारने लगा। मैं इस काम में इतना मगन हो गया, कि यह मालूम ही नहीं पड़ा कि अल्का मुझे छोड़ कर तालाब के पानी में डुबकी लगा चुकी। वो तो जब पानी की छपछपाहट, और उसके हंसने की आवाज़ आई, तब समझ आया। अब तक मैं भी नंगा हो गया था, और उसकी तरफ मुड़ कर तालाब की तरफ जाने लगा। मेरा शिश्न तो हमेशा की तरह तन कर तैयार हो गया था। इस पूरे घटनाक्रम, और वातावरण के कारण दो प्रकार का प्रभाव हो रहा था - एक तो मेरे शरीर में सिहरन सी दौड़ रही थी, और दूसरा मेरे वृषण की थैली सिकुड़ कर जघन क्षेत्र के बेहद करीब जा कर चिपक गई थी। अच्छी बात यह है की स्तम्भन अपनी पराकाष्ठा पर था - मैं अल्का को दिखाना चाहता था कि अब मैं पहले जैसा बच्चा नहीं रहा।

मेरे चलने पर मेरा शिश्न इधर उधर डोल रहा था, और इस हलचल के कारण लिंगमुण्ड उसी तनी हुई अवस्था में हवा में ही छोटे छोटे वृत्त से बना रहा था। अल्का का हंसना बंद हो गया, और अब वो रूचि ले कर मेरे शिश्न को, और मुझे अपनी तरफ आते हुए देख रही थी। जब मैं पानी के अंदर आकर उसके बगल जा बैठा, तो वो फिर से मुस्कुराई और बोली,

“चिन्नू.... तुम्हारा कुन्ना (लिंग) तो कितना बड़ा हो गया है, और प्यारा भी!”

“तुमको कैसे मालूम?” मैंने अल्का को छेड़ा।

“तुम भूल गए? जब तुम छोटे थे तो मैंने कितनी बार तुम्हे नहलाया है।”

“मुझे सब याद है अम्माई” मैंने उसको छेड़ना जारी रखा, “मुझे यह भी याद है की तुम इसे अपने मुँह में ले कर दुलारती थी। तुम्हे याद है या भूल गई?”

बचपन में हम दोनों का एक बेहद निजी खेल था - जब कभी किसी खेल-प्रतियोगिता में मैं उनसे जीतता था, तो मुझे पुरस्कार स्वरुप यह मिलता था। अल्का मेरे छोटे से शिश्न को अपने मुँह में ले कर दुलारती थी। मुझे बाद में कई बार यह लगता कि वो मुझे जान बूझ कर जीतने देती थी, लेकिन इस बात के लिए कैसी शिकायत भला!

“हाँ लेकिन तब तुम छोटे थे। अब तुम बड़े हो गए हो... और ‘ये’ बहुत बड़ा हो गया है।” अल्का मेरे इस उद्घोषणा, और अपनी कही हुई बात पर पुनः शर्मा गई।

मैं उत्तर में बस मुस्कुराया, और अंजुली में पानी भर कर अल्का के ऊपर फेंकने लगा। अल्का भी अपनी शर्म छोड़ कर मेरे साथ खेल में शामिल हो गई। कुछ ही पलों में हम दोनों पूरी तरह से भीग गए। उसने एक बार मेरे सर को पकड़ कर पानी के अंदर डुबो दिया, मैंने भी इसका पूरा मज़ा उसको चखाया। हमारी इस छीना-झपटी, ज़ोर-आज़माइश, और टाँग-खिंचाई में हमने जाने अनजाने एक दूसरे के पूरे शरीर का जायज़ा ले लिया। ऐसे ही हमने तालाब में कम से कम पंद्रह मिनट तक स्नान किया। और आखिरकार मैं थक कर बाहर निकल आया, और घास पर बैठ गया।

“आ जाओ!” बाहर आ कर मैंने कहा।

अल्का जानती थी कि मैं उसका भीगा हुआ नग्न शरीर देखना चाहता हूँ। वो मुस्कुराती हुई पानी से बाहर निकली - एक एक कर उसके स्तन, फिर पेट और फिर योनि बाहर आ गए। सबसे मज़ेदार बात यह कि भीगे बालों में से भी उसकी योनि की लंबवत दरार मुझे उतनी दूरी से भी दिख रही थी। हर एक कदम पर उसकी कमर में उठने वाले हिचकोले और स्तनों पर उनका प्रभाव! एकदम मस्त कर देने वाला दृश्य था। और सबसे अच्छी बात यह थी कि यह सुंदरी मेरी थी!!
hot update
 

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अल्का मेरे पास आकर लेट गई। मेरे बगल लेटे हुए वो बोली, “जानू, तुमने आज पहली बार किसी लड़की को नंगा देखा है?”

अल्का से मैंने कभी भी झूठ नहीं कहा था, तो मैं आज शुरू नहीं करने वाला था। भले ही मैं अनाड़ी क्यों न लगूँ ,

“हाँ। .... पहली बार है!”

“मुझे लगा!” वो हलके से हंसी - हंसने से उसके दोनों स्तन हिल गए।

“तुम्हे शायद मेरी बात का भरोसा नहीं होगा, लेकिन तुम भी वो पहले मर्द हो जिसको मैंने नंगा देखा है।”

‘क्या उसने मुझे मर्द कहा?’

न जाने क्या सोच कर मैंने पूछा, “तुमने अभी तक शादी नहीं करी, उसका कारण तो मालूम है। लेकिन, कम से कम कोई बॉयफ्रेंड तो बना लेती?”

“इस जगह में और बॉयफ्रेंड? मज़ाक कर रहे हो?” अल्का का हंसना जारी था, “और.... मैंने तो अपना दिल पहले ही तुमको दे दिया था। ऐसे कैसे किसी और से शादी कर लेती या उसको बॉयफ्रेंड बना लेती?”

“तुम्हे कैसे पता था की मैं तुमको अपनी गर्लफ्रैण्ड मान लूँगा?” मैंने पूछा।

“मुझे नहीं मालूम था। लेकिन… अगर तुम मुझे अपना न मानते, तो ही मैं किसी और की तरफ देखती।”

मैं चुप हो गया। अल्का सचमुच मुझे बहुत प्यार करती है, और यह बात तो साफ़ हो चली थी। कुछ देर के बाद उसने करवट बदल कर मेरी तरफ देखा, और बहुत ही शांत स्वर में कहा, “मेरे कुट्टन, मुझे कल के अपने सपने के बारे में बताओ! जिसके कारण तुम्हारा... अह...”

हमने सपने में क्या किया था, वो मैं अल्का को नहीं बताना चाहता था। अभी भी मेरे मन में यह बात थी कि कहीं वो नाराज़ न हो जाय। मैंने टालने की सोची,

“कुछ नहीं! ऐसे ही कुछ हुआ होगा।”

“मेरे कुट्टन, तुमको क्या अभी भी यह लगता है कि तुमको मुझसे किसी तरह का पर्दा करना चाहिए?”

उसकी बात तो सही थी। हमारे बीच में अब क्या पर्दा? अल्का को इतना तो मालूम ही था कि वो मेरे सपने में आई थी, और हमने सपने में जो भी कुछ किया था उसी का परिणाम बिस्तर, चद्दर और मेरे शॉर्ट्स पर अंकित था। जाहिर सी बात है की मैंने मैथुन के बारे में सपना देखा था - अल्का के साथ मैथुन! और वो जानना चाहती थी की मैं अपने अंतर्मन में उसके बारे में क्या कुछ सोचता हूँ, तो उसको बताने में कोई हर्जा नहीं था। और बताना ही क्यों, कर के दिखाना भी चाहिए!

मैं भी वहीं घास पर करवट ले कर अल्का के बगल ही लेट गया - अब हम दोनों एक दूसरे की तरफ ही देख रहे थे। उसकी आँखों में देखते हुए मैं बताना शुरू किया,

“सपने में हम दोनों ऐसे ही लेटे हुए थे, जैसे अभी हैं। लेकिन हम समुद्र के किनारे बीच पर लेटे हुए थे। पूरी तरह नंगे! जैसे अभी हैं। लेकिन हम दोनों एक दूसरे को स्पर्श कर रहे थे।”

कहते हुए मैंने बढ़ाया, और उसके एक स्तन को अपनी हथेली में भर लिया। उस स्तन को प्यार से मसलते हुए मैंने कहा, “मैं कुछ इसी तरह एक हाथ से तुम्हारे मुलाक्कल (स्तन) सहला रहा था।”

और दूसरे हाथ को अल्का की योनि के ऊपर रख कर कहा,

“और दूसरे हाथ से यहाँ, तुम्हारी पूरू (योनि) को सहला और छेड़ रहा था!”

कह कर मैंने अपनी एक उंगली को अल्का की योनि की दरार में फंसाया, और हलके हलके कोमलता से ऊपर नीचे करते हुए उसको सहलाया। अल्का के गले से मीठी सिसकी निकल गई। उसने अपनी एक टांग कुछ ऊपर उठा ली, जिससे मेरे हाथ को अपना कार्य करने के लिए कुछ अधिक स्थान मिल सके। मैंने भी स्वच्छंद हो कर हाथ से ही अल्का की योनि का अच्छे से जायजा लिया।

“तुमने कहा था की हम एक दूसरे को छू रहे थे! क्या मैं तुमको यहाँ छू रही थी?” अल्का ने अपनी हथेली से मेरे स्तंभित लिंग को कसते हुए कहा।

“हाँ!” अल्का की छुवन मदमस्त कर देने वाली थी। मेरी आवाज़ बस एक फुसफुसाहट ही रह गई थी।

“हम एक दूसरे को आनंद दे रहे थे! कामुक आनंद!”

अल्का मुस्कुराई, “तुमको पता है चिन्नू, मैं भी तुम्हारे ही सपने देख रही थी।”

“सच में! क्या देखा?”

“वही… वही, जो तुमने देखा!” कहते हुए अल्का ने अपनी आँखें बंद कर ली, और मंद मंद मुस्कुराने लगी।

मैंने उसका स्तन-मर्दन और योनि-भेदन जारी रखा। वो खुद भी मेरे लिंग को दुह रही थी। उसमें से वीर्य की कुछ बूँदें रिसने लगीं थीं। मुझे आनंद आ रहा था - अल्का की हरकतों से भी, और उसके शरीर की कोमलता / कठोरता और नमी सभी से! वो बहुत उत्तेजित हो गई थी - उसकी योनि रस से सराबोर हो गई थी। मेरी उंगली अभी तक उसकी योनि में प्रविष्ट नहीं हुई थी - लेकिन वहां बढ़ती चिकनाई के कारण एक बार अचानक ही मेरी उंगली उसके प्रेम-कूप में प्रविष्ट हो गई! मेरा लिंग नहीं - कोई बात नहीं - कम से कम मेरी उंगली तो उसके भीतर पहुंची! उंगली भीतर जाने के साथ ही मेरे अंगूठे ने उसके भगनासे को छेड़ना आरम्भ कर दिया। अल्का आनंद से अपने चूतड़ हिलाने लगी - छोटे छोटे वृत्तों में, और कुछ इस प्रकार कि मेरा अंगूठा और उंगली अधिक से अधिक उसकी योनि से छेड़खानी कर सकें! उसका भगनासा आनंद में सूज गया।

अपने हाथ से हस्त-मैथुन करना, और अल्का के हाथ से हस्त-मैथुन होने में काफी अंतर था। यह वो अनुभव था, जैसा न मैंने कभी महसूस किया, और ना ही जिसकी कभी कल्पना करी! मुझे मालूम था की जल्दी ही सपने के जैसे ही अल्का का हाथ भी मेरे वीर्य से भीगने वाला था। मेरे अंदर दबाव बढ़ता जा रहा था। उधर, अल्का ने भी अपने चूतड़ों के घूर्णन की गति बढ़ा दी थी। वो अब कराहने भी लगी थी, और मेरे हाथ में धक्के भी लगाने लगी थी।

अचानक ही उसको न जाने क्या हुआ, उसने मेरा सर अपनी तरफ खींच कर मेरे होंठों पर अपने होंठ रख दिए। ऐसा अप्रत्याशित चुम्बन! और उधर मेरे लिंग का दोहन जारी था। ऐसा आनंद, ऐसा सुख मैंने कभी नहीं पाया था! मुझे उसी क्षण यह ज्ञात हो गया की अब मेरी नियति और अल्का की नियति साथ आ चुकी है। मेरे अंदर बढ़ते दबाव को रोकने वाला बाँध अचानक ही टूट गया! मैंने पहली बार अपने चूतड़ों को अल्का के हाथ में धकेला - और उसी समय वीर्य की एक मोटी धार हवा में छूट निकली। यह पहला विस्फोट अल्का के पेट पर जा कर गिरा, और उसके बाद के छोटे छोटे विस्फोटों ने उसके हाथ को पूरी तरह से भिगो दिया।

मुझसे रहा न गया - आनंदातिरेक से मैं कराह उठा। उधर अल्का भी अपने चरमोत्कर्ष तक पहुँच गई थी।

“हाय अम्मा!” की पुकार के साथ ही उसकी जाँघों ने मेरे हाथ को जकड़ लिया। हम दोनों वहीं पड़े हुए अपने शरीर में उठने वाले अनगिनत कामुक कम्पनों का आनंद लेते रहे। बहुत देर तक हमने कुछ न कहा, और न ही अपनी जगह से हिले। अंत में अल्का ने पूछा,

“सपने में ऐसा ही हुआ था?”

“हा हा! हाँ, कुछ कुछ! लेकिन, सपना याद थोड़े ही रहता है। अभी जो हुआ, वो कहीं ज्यादा बेहतर था! ...और तुम्हारे सपने में?”

“ऐसा ही! लेकिन सच में, वास्तविकता में यह बहुत मज़ेदार है!”

अल्का ही सबसे पहले उठी।

“मेरे चिन्नू बाबू, नहाया धोया सब बेकार गया! चलो जल्दी से नहा लेते है, और घर चलते हैं! बहुत देर हो गई।”

हमने जल्दी से पानी में डुबकी मारी, और अपने कपड़े पहने। न तो अल्का ने, और न ही मैंने अपने अधोवस्त्र पहने। गीले शरीर पर कसी हुई जीन्स और शर्ट पहनने में अल्का को बहुत दिक्कत हुई। एक तरह से कपड़ा उसके शरीर पर चिपक सा गया था। और चलने पर ऐसा लगता जैसे उसके चूतड़, इस कैसे हुआ कपड़े में छटपटा रहे हों!

“अल्का, इसको क्या कहते हैं?” मैंने उसके नितम्ब देखते हुआ पूछा।

“कुण्डी!” अल्का ने मुस्कुराते हुए कहा। मेरा लिंग पुनः तन गया।
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हम्म्म। फिर तो पाठकों से बड़े वाले चू** तो हम लेखक लोग हैं।
मेहनत कर के लिखो, समय नष्ट करो, यहाँ छापो।
ठरकी लोग आ कर, हिला कर निकल लिए। न हमको एक कटी चवन्नी ही मिली, और न ही कमेंट/लाइक।
यहाँ लिखना बंद आज से।

yeah that's the spirit.. kar bhala to ho bhala.. :hehe:
 
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avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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bahut hi pyara update
धन्यवाद भाई! हाँ, इसको लिखने में समय लग गया था मुझको।
 
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avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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Writer ji ye story to romantic hai fir ye incest kese ho gayi waiting for next update
है न रोमांटिक? इन्सेस्ट इसलिए है कि कहानी की हीरोइन हीरो की मौसी है।
इतनी बड़ी बात आपने मिस कैसे कर दी?!
कोई और समय होता तो इसको रोमांटिक कहानी ही बोलता।
लेकिन चूँकि xforum में हैं, तो बिना incest लिखे कोई परिंदा भी पर नहीं मारेगा।
इस बात का गवाह 'कायाकल्प' कहानी है मेरी!
 

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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आज की साँझ पहले से अधिक सुन्दर लग रही थी। और क्यों न हो! अब मेरे पास केरल में रहने का एक और कारण था। सबसे बड़ा कारण। अब तो मुझे यहाँ उम्र भर रहना था। यह अब मेरी जीवन भूमि थी। प्रत्येक पुरुष के जीवन में एक समय आता है जब उसको स्थिरता चाहिए होती है। यह स्थिरता उसको मिलती है अपने कार्य से, अपने व्यवसाय से, और अपने जीवन में प्रेम के आगमन से। यह सब उसको सम्हाले रखती हैं। नहीं तो पुरुष की हालत समुद्र की लहरों पर इधर उधर डोलती नौका जैसी ही रह जाए। यह सब उसको अपने जीवन पर नियंत्रण देती हैं और एक प्रयोजन देती हैं। मुझे अपना कार्य मिल गया, अपना व्यवसाय मिल गया और अब अल्का के रूप में जीवन प्रेम भी! अल्का ने मुझे अपने प्रेमी के रूप में स्वीकारा था - अब मेरे जीवन में एक प्रयोजन था। उसके साथ बंध जाना। कृषि मेरा व्यवसाय और अल्का मेरा प्रेम। यहाँ आ कर मेरे जीवन में तेजी से बदलाव आने लगा था। मुझे मालूम था कि हमारी राह आसान नहीं थी, लेकिन कम से कम हमारी एक राह तो थी। और यदि ईश्वर ने चाहा तो सब कुछ संभव है। अभी से भविष्य की चिंता क्यों करना!

मैं रह रह कर अल्का की तरफ़ देखता। अल्का भी बदली हुई थी - पूरी साँझ उसकी नज़र नीची ही रहीं और होंठों पर मंद मंद मुस्कान! वही लड़की जिसको जब से होश सम्हाला, तब से जानता हूँ - वही लड़की कितनी अलग सी लग रही है! सबसे सुन्दर लग रही है, सबसे अच्छी लग रही है। उसकी मुस्कान... ओह!

‘मुस्कुराती है तो कितनी सुन्दर लगती है’

कहीं सुना था कि ख़ुद को चाहे जाने का एहसास सबसे अनोखा होता है। जब दो लोग एक दूसरे के प्रेम में पड़ जाते हैं, तो अचानक ही उनको यह संसार अलग सा लगने लगता है। अपने प्रियतम के आस पार का संसार अचानक ही सुन्दर सा हो जाता है। प्रेम में पड़े व्यक्ति के अंदर एक नई ऊर्जा का संचार होने लगता है। उसको केवल अपने साथी का ही ख़याल रहता है, जैसे संसार में प्रियतम के अतिरिक्त और कोई न हो!

अल्का कम बोल रही थी। अधिक मुस्कुरा रही थी। काम करते करते, रह रह कर कोई गीत गुनगुना रही थी। एक अलग ही धुन में मगन थी आज। खाना रोज़ की तरह अल्का ने ही पकाया था। लेकिन आज खाने में एक अलग ही स्वाद था - और यह बात मैंने ही नहीं, बल्कि अम्मम्मा ने और चिन्नम्मा दोनों ने ही यह अंतर महसूस किया। अम्मम्मा का तो नहीं मालूम, लेकिन चिन्नम्मा ने अल्का के व्यवहार में अंतर महसूस किया।

“क्या बात है मोलूट्टी, आज तो तू बहुत अधिक प्रसन्न दिख रही है!” चिन्नम्मा ने पूछ ही लिया। उनके प्रश्न पर अल्का के गालों पर एक लाली सी फ़ैल गई, जो उनसे छुपी न रह सकी।

“कुछ नहीं चिन्नम्मा। कल से चिन्नू का काम शुरू हो जाएगा न, वही सोच कर खुश हो रही हूँ!” अल्का ने बड़ी सफाई से अपनी प्रसन्नता का सच कारण छुपा लिया।

“हाँ! प्रसन्नता की बात तो है ही। कौन भला अपने गाँव वापस आता है! थोड़ा भी पढ़ लिख लेते हैं गाँव के लड़के, तो वो शहर की तरफ भागने लगते हैं। लेकिन अपना चिन्नू तो पढ़ लिख कर आया है शहर से वापस! बस मन लगा कर, परिश्रम करना। देखना, ईश्वर ने चाहा, तो इस वर्ष हमारे घर में ढेर सारा हर्ष और उल्लास आएगा!”

कहते हुए चिन्नम्मा ने मुझे और अल्का को बारी बारी से कई बार देखा। उनकी बात सुन कर अल्का के गालों की लालिमा और बढ़ गई।

“अब समझी! कल के शुभ काम के लिए आज का भोजन इतना स्वादिष्ट पकाया है मोलूट्टी ने?”

चिन्नम्मा ने कहा! अल्का और मुझे दोनों को ही लगा कि शायद हमारी पोल खुल गई। चिन्नम्मा ने और कुछ नहीं कहा, बस मुस्कुराते हुए खाना खाने लगीं। उधर अम्मम्मा मुझसे आने वाले दिनों के बारे में बात करती रहीं, और मेरे कार्य के बारे में कई सारे प्रश्न पूछने लगीं। और मैं उनको सब बताता, और समझाता रहा। बीच बीच में मैं अल्का को देखता, वो उसको अपनी तरफ देख कर मुस्कुराता हुआ पाता।
 
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