• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Adultery मजबूर (एक औरत की दास्तान) लेखक: तुषार

Rohit Kapoor

Member
234
484
64
मजबूर (एक औरत की दास्तान)

लेखक: तुषार
नोट: यह कहानी मैंने नहीं लिखी है। इस कहानी के मूल लेखक "तुषार/bestforu83" हैं जिन्होंने यह कहानी xossip पर इंग्लिश फॉण्ट में प्रेषित करी थी। मैंने इस कहानी में सिर्फ हिंदी फॉण्ट में लिप्यंतरण किया है और इससे पहले एक दूसरे बंद हो चुके फोरम पर प्रेषित कर चूका हूँ। इस कहानी का सम्पूर्ण श्रेय "तुषार'" को जाता है। आशा है आप लोगो को पसंद आयेगी।

रुखसाना की पहली शादी बी-ए खतम करते ही एक्कीस साल की उम्र में हुई थी... पर शादी के कुछ ही महीनों बाद उसके शौहर की मौत एक हादसे में हो गयी। रुखसाना बेवा हो लखनऊ में अपने माँ-बाप के घर आ गयी। उनका मिडल-क्लास घर था। रुखसाना के वालिद की रेडिमेड गार्मेंट्स की दुकान थी। रुखसाना माँ-बाप पर बोझ नहीं बनना चाहती थी इसलिये वो शहर के एक बड़े अपस्केल लेडिज़ बुटीक में असिस्टेंट के तौर पे काम करने लगी। बुटीक में ही ब्यूटी पार्लर भी था तो रुखसाना के लिये ये अच्छा तजुर्बा था... कपड़े-लत्ते पहनने और बनने संवरने के सलीके सीखने का। इस दौरान उसके माँ-बाप रूकसाना की दूसरी शादी के लिये बहोत कोशिश कर रहे थे। रुखसाना बेहद गोरी और खूबसूरत और स्मार्ट थी लेकिन इसके बावजूद कहीं अच्छा और मुनासिब रिश्ता नहीं मिल रहा था। फिर साल भर बाद एक दिन उसके मामा ने उसकी शादी फ़ारूक नाम के आदमी से तय कर दी। तब फ़ारूक की उम्र अढ़तीस साल थी और रुखसाना की तेईस साल। फ़ारूक की पहली बीवी का इंतकाल शादी के तेरह साल बाद हुआ था और उसकी एक बेटी भी थी। फ़ारूक रेलवे में जॉब करता था। इसलिये घर वालों ने सोचा कि सरकारी नौकरी है... और किसी चीज़ की कमी भी नहीं... इसलिये रुखसाना की शादी फ़ारूक के साथ हो गयी। फ़ारूक की पोस्टिंग शुरू से ही बिहार के छोटे शहर में थी जहाँ उसका खुद का घर भी था।

शादी कहिये या समझौता... पर सच तो यही था कि शादी के बाद रुखसाना को किसी तरह की खुशी नसीब ना हुई.... ना ही वो कोई अपना बच्चा पैदा कर सकी और ना ही उसे शौहर का प्यार मिला। बस यही था कि समाज में शादीशुदा होने का दर्ज़ा और अच्छा माकूल रहन-सहन। शादी के डेढ़-दो साल बाद उसे अपने शौहर पर उसके बड़े भाई की बीवी अज़रा के साथ कुछ नाजायज़ चक्कर का शक होने लगा और उसका ये शक ठीक भी निकला। एक दिन जब फ़ारूक के भाई के बीवी उनके यहाँ आयी हुई थी, तब रुखसाना ने उन्हें ऊपर वाले कमरे में रंगरलियाँ मनाते... ऐय्याशी करते हुए देख लिया।

जब रुखसाना ने इसके बारे में फ़ारूक से बात की तो वो उल्टा उस पर ही बरस उठा। पता नहीं अज़रा ने फ़ारूक पर क्या जादू किया था कि फ़ारूक ने रुखसाना को साफ़-साफ़ बोल दिया कि अगर ये बात किसी को पता चली तो वो रुखसाना को तलाक़ दे देगा... और उसकी बुरी हालत कर देगा। रुखसाना ये सब चुपचाप बर्दाश्त कर गयी। जितने दिन अज़रा उनके यहाँ रुकती… फ़ारूक और अज़रा दोनों खुल्ले आम शराब के नशे में धुत्त होकर हवस का नंगा खेल घर में खेलते। उन दोनों को अब रुखसाना की जैसे कोई परवाह ही नहीं थी.... कभी-कभी तो रुखसाना के बगल में ही बेड पर फ़ारूक और अज़रा चुदाई करने लगते। ये सब देख कर रुखसाना भी गरम हो जाती थी पर अपनी ख्वाहिशों को अपने सीने में दबाये रखती और ज़िल्लत बर्दाश्त करती रहती। रुखसाना के पास और कोई चारा भी नहीं था। बेशक अज़रा बेहद खूबसूरत और सेक्सी थी लेकिन रुखसाना भी खूबसूरती और बनने-संवरने में उससे ज़रा भी कम नहीं थी। अज़रा ने फ़ारूक की ज़िंदगी इस क़दर तबाह कर दी थी कि वो जो कभी-कभार रुखसाना के साथ सैक्स करता भी था.... वो भी करना छोड़ दिया। धीरे-धीरे उसकी मर्दाना ताकत शराब में डूबती चली गयी। कोई दिन ऐसा नहीं होता जब वो नशे में धुत्त गिरते पड़ते घर ना आया हो। इस सबके बावजूद फ़ारूक चुदक्कड़ नहीं था कि कहीं भी मूँह मारता फिरे। उसका जिस्मानी रिश्ता सिर्फ़ अज़रा के साथ ही था जिसे वो दिलो-जान से चाहता था।
 
Last edited by a moderator:

Rohit Kapoor

Member
234
484
64
रुखसाना ने शुरू-शुरू में अपने हुस्न और खूबसूरती और अदाओं से फ़ारूक को रिझाने और सुधारने की बेहद कोशिश की... लेकिन उसे नाकामयाबी ही हासिल हुई। फिर रुखसाना ने सानिया... जो कि फ़ारूक की पहली बीवी से बेटी थी... उसकी परवरिश में और घर संभालने में ध्यान लगाना शुरू कर दिया। अपनी जिस्मानी तस्कीन के लिये रुखसाना हफ़्ते में एक-दो दफ़ा खुद-लज़्ज़ती का सहारा लेने लगी। इसी तरह वक़्त गुज़रने लगा और रुखसाना और फ़ारूक की शादी को दस-ग्यारह साल गुज़र गये। रुखसाना चौंतीस साल की हो गयी और सानिया भी बीस साल की हो चुकी थी और कॉलेज में फ़ायनल इयर में थी। रुखसाना कभी सोचती थी कि सानिया ही इस दुनिया में उसके आने की वजह है... उसका दुनिया में होना ना होना एक बराबर है.... पर कर भी क्या सकती थी... जैसे तैसे ज़िंदगी कट रही थी। इस दौरान रुखसाना ने खुद को भी मेन्टेन करके रखा था लेकिन फ़ारूक़ ने उसकी तारीफ़ में कभी एक अल्फ़ाज़ भी नहीं कहा। शौहर की नज़र अंदाज़गी और सर्द महरी के बावजूद अपनी खुद की खुशी और तसल्ली के लिये हमेशा मेक-अप करके... नये फैशन के सलवार-कमीज़ और सैंडल पहने... सलीके से बन-संवर कर हमेशा तैयार रहती थी। वो उन गिनी चुनी औरतों में से थी जिसे शायद ही कभी किसी ने बे-तरतीब हालत में देखा हो। चाहे शाम के पाँच बजे हों या सुबह के पाँच बजे.... वो हमेशा बनी संवरी रहती थी।

फिर एक दिन वो हुआ जिसने उसकी पूरी ज़िंदगी ही बदल दी। उसने कभी सोचा भी ना था कि ये बेरंग दिखने वाली दुनिया इतनी हसीन भी हो सकती है... पर रुखसाना को इसका एहसास तब हुआ जब उन सब की ज़िंदगी में सुनील आया।

सुनील की उम्र बीस-इक्कीस साल की थी। बीस साल का होते-होते ही उसने ग्रैजूएशन कर लिया था। उसके घर पर सिर्फ़ सुनील और उसकी माँ ही रहते थे। बचपन में ही पिता की मौत के बाद माँ ने सुनील को पाला पोसा पढ़ाया लिखाया। उसके पापा के गुज़रने के बाद माँ को उनकी जगह रेलवे में नौकरी मिल गये थी। सिर्फ़ दो जने थे... इसलिये पैसो की कभी तंगी महसूस नहीं हुई। सुनील की पढ़ायी लिखायी भी एक साधारण से स्कूल और फिर सरकारी कॉलेज से हुई थी... इसलिये सुनील की माँ को उसकी पढ़ायी लिखायी का ज्यादा खर्च नहीं उठाना पढ़ा। सुनील पढ़ायी लिखायी में बेहद होशियार भी था। ग्रैजूएशन करते ही सुनील ने रेलवे में नौकरी के लिये फ़ॉर्म भर दिये थे। उसके बाद परिक्षायें हुई और सुनील का चयन हो गया और जल्दी ही सुनील को पोस्टिंग भी मिल गयी। सुनील बेहद खुश था पर एक दुख भी था क्योंकि सुनील की पोस्टिंग बिहार में हुई थी। सुनील पंजाब का रहने वाला था। इसलिये वहाँ नहीं जाना चाहता था कि पता नहीं कैसे लोग होंगे वहाँ के... कैसी उनकी भाषा होगी... बस यही सब ख्याल सुनील के दिमाग में थे।

सुनील की माँ भी उदास थी पर सुनील के लिये सुकून की बात ये थी कि दस दिन बाद ही सुनील की माँ का रिटायरमेंट होने वाला था। इसलिये वो अब सुकून के साथ बिना किसी टेंशन के सुनील के मामा यानी अपने भाई के घर रह सकती थी। जिस दिन माँ को नौकरी से रिटायरमेंट मिला... उसके अगले ही दिन सुनील बिहार के लिये रवाना हो गया। वहाँ एक छोटे शहर के स्टेशन पर उसे क्लर्क नियुक्त किया गया था। जब सुनील वहाँ पहुँचा और स्टेशन मास्टर को रिपोर्ट किया तो उन्होंने स्टेशन के बाहर ही बने हुए स्टाफ़ हाऊज़ में से एक फ़्लैट सुनील को दे दिया।
 

shakirali

Member
454
828
109
Thanks Rohit bhai for sharing this awesome story. You had an awesome thread on xossip with collection of around 100 + stories of various genres in Hindi fonts. Are you planning to start a similar thread here. Please! ?
 

Rohit Kapoor

Member
234
484
64
Thanks Rohit bhai for sharing this awesome story. You had an awesome thread on xossip with collection of around 100 + stories of various genres in Hindi fonts. Are you planning to start a similar thread here. Please! ?

Thanks Shakir. I haven't actually thought about starting big thread here but you never know. This forum does not seem to be very active.
 
  • Like
Reactions: shakirali

Rohit Kapoor

Member
234
484
64
जब सुनील फ़्लैट के अंदर गया तो अंदर का हाल देख कर परेशान हो गया। फ़र्श जगह -जगह से टूटा हुआ था... दीवारों पर सीलन के निशान थे... बिजली की फ़िटिंग जगह-जगह से उखड़ी हुई थी। जब सुनील ने स्टेशन मास्टर से इसकी शिकायत की तो उसने सुनील से कहा कि उसके पास और कोई फ़्लैट खाली नहीं है... एडजस्ट कर लो यार! स्टेशन मास्टर की उम्र उस वक़्त पैंतालीस के करीब थी और उसका नाम अज़मल था।

अज़मल: “यार सुनील कुछ दिन गुजारा कर लो... फिर मैं कुछ इंतज़ाम करता हूँ!”

सुनील: “ठीक है सर!”

उसके बाद अज़मल ने सुनील को उसका काम और जिम्मेदारियाँ समझायीं! सुनील की ड्यूटी नौ बजे से शाम पाँच बजे तक ही थी। धीरे-धीरे सुनील की जान पहचान स्टेशन पर बाकी के कर्मचारियों से भी होने लगी। जब कभी सुनील फ़्री होता तो ऑफ़िस से बाहर निकल कर प्लेटफ़ोर्म पर घूमने लगता... सब कुछ बहुत अच्छा था। सिर्फ़ सुनील के फ़्लैट को लेकर अज़मल भी अभी तक कुछ नहीं कर पाया था। सुनील उससे बार-बार शिकायत नहीं करना चाहता था। एक दिन सुनील दोपहर को जब फ़्री था तो वो ऑफ़िस से निकल कर बाहर आया तो देखा अज़मल भी प्लैटफ़ोर्म पर कुर्सी पर बैठे हुए थे। सुनील को देख कर उन्होंने उसे अपने पास बुला लिया।

अज़मल: “सॉरी सुनील यार... तुम्हारे फ़्लैट का कुछ कर नहीं पा रहा हूँ!”

सुनील: “कोई बात नहीं सर... अब सब कुछ तो आपके हाथ में नहीं है... ये मुझे भी पता है!”

अज़मल: “और बताओ मैं तुम्हारे लिये क्या कर सकता हूँ... अगर किसी भी चीज़ की जरूरत हो तो बेझिझक बोल देना!”

सुनील: “सर जब तक मेरे फ़्लैट का इंतज़ाम नहीं हो जाता... आप मुझे पास में ही कहीं हो सके तो किराये पर ही रूम दिलवा दें!”

अज़मल (थोड़ी देर सोचने के बाद): “अच्छा देखता हूँ!”

तभी अज़मल की नज़र प्लैटफ़ोर्म पे थोड़ी सी दूर फ़ारूक पर पड़ी। फ़ारूक रेल यातायात सेवा महकमे में ऑफिसर था। उसका ऑफिस प्लैटफ़ोर्म के दूसरी तरफ़ की बिल्डिंग में था। उसे देख कर अज़मल ने फ़ारूक को आवाज़ लगायी।

अज़मल: “अरे फ़ारूक यार ज़रा सुनो तो
 

Rohit Kapoor

Member
234
484
64
फ़ारूक: “हुक्म कीजिये अज़मल साहब!” फ़ारूक उन दोनों के पास आकर खड़ा हो गया। फ़ारूक और अज़मल दुआ सलाम के बाद बात करने लगे।

अज़मल: “फ़ारूक यार! ये सुनील है... अभी नया जॉइन हुआ है इसके लिये कोई किराये पर रूम ढूँढना है... तुम तो यहाँ करीब ही रहते हो कोई कमरा अवैलबल हो तो बताओ!”

फ़ारूक: “जरूर... कमरा मिलने में तो कोई मुश्किल नहीं होनी चाहिये...! कितना बजट है सुनील तुम्हारा?”

सुनील : “अगर दो-तीन हज़ार किराया भी होगा तो भी चलेगा!”

अज़मल: “और हाँ... रूम के आसपास कोई अच्छा सा ढाबा भी हो तो मुनासिब रहेगा ताकि इसे खाने पीने की तकलीफ़ ना हो!”

फ़ारूक (थोड़ी देर सोचने के बाद बोला): “सुनील अगर तुम चाहो तो मेरे घर में भी एक रूम खाली है ऊपर छत पर... बाथरूम टॉयलेट सब अलग है ऊपर... बस सीढ़ियाँ बाहर की बजाय घर के अंदर से हैं... अगर तुम्हें प्रॉब्लम ना हो तो... और रही खाने के बात तो तुम्हें मेरे घर पर घर का बना खाना भी मिल जायेगा... पीने की भी कोई प्रॉब्लम नहीं... है क्या कहते हो?”

सुनील: “जी आपका ऑफर तो बहुत अच्छा है... आपको ऐतराज़ ना हो तो शाम तक बता दूँ आपको?”

फ़ारूक के जाने के बाद सुनील ने अज़मल से पूछा कि क्या फ़ारूक के घर पर रहना ठीक होगा... तो उसने हंसते हुए कहा, “यार सुनील तू आराम से वहाँ रह सकता है... वैसे तुझे पता है कि ये जो फ़ारूक है ना बड़ा पियक्कड़ किस्म का आदमी है... रोज रात को दारू पिये बिना नहीं सोता... वैसे तुझे कोई तकलीफ़ नहीं होगी वहाँ पर... बहुत अच्छी फ़ैमिली है और तुझे घर का बना खाना भी मिल जायेगा!”

शाम को सुनील अपने ऑफिस से निकल कर फ़ारूक के ऑफ़िस में गया जो प्लैटफ़ोर्म के दूसरी तरफ़ था और फ़ारूक को अपनी रज़ामंदी दे दी। फ़ारूक बोला, “तो चलो मेरे घर पर... रूम देख लेना और अगर तुम्हें पसंद आये तो आज से ही रह लेना वहाँ पर!”

सुनील ने फ़ारूक की बात मान ली और उसके साथ उसके घर की तरफ़ चल पढ़ा। वो दोनों फ़ारूक के स्कूटर पर बैठ के उसके घर पहुँचे तो फ़ारूक ने डोर-बेल बजायी। थोड़ी देर बाद दरवाजा खुला तो फ़ारूक ने थोड़ा गुस्से से दरवाजा खोलने वाले को कहा, “क्या हुआ इतनी देर क्यों लगा दी!” सुनील बाहर से घर का मुआयना कर रहा था। घर बहुत बड़ा नहीं था लेकिन बहोत अच्छी हालत में था। अच्छे रंग-रोगन के साथ गमलों में खूबसूरत फूल-पौधे लगे हुए थे। फ़ारूक की आवाज़ सुन कर सुनील ने दरवाजे पर नज़र डाली।
 
Top