कहानी :
वो सत्ताईस दिन.
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( ये आज से करीब 5000 साल पहले की एक काल्पनिक पौराणिक गाथा है, इसलिए जहाँ तक संभव हो सका है, मैंने उस समयानुसार कहानी लेखन में अपने शब्दों का चयन किया है, कहानी बयां करते समय Modern शब्दों का प्रयोग है और किरदारों के बातचीत के समय उस वक़्त की बोलने की शैली. कितना सफल रहा हूँ, ये मैं पाठकों पर छोड़ता हूँ )
EPISODE 2
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अपने भैया भाभी के शयनकक्ष से निकलकर राजकुमार विजयवर्मन अपने कक्ष की ओर चल पड़े. उनके मन में कई सारे ख्यालों का उधेड़बुन चल रहा था - अपने बड़े भाई का आपत्तिजनक व्यवहार, भाभी की मीठी मीठी बातों में छिपी कुटिलता, और सबसे बड़ी बात, उनका और अवंतिका का भविष्य ! उनका मन अभी तय कर ही रहा था की वो एक बार अपनी छोटी बहन राजकुमारी अवंतिका से मिलते चलें, की उनके कदम अवंतिका के शयनकक्ष की ओर ऐसे बढ़ चले, मानो सब कुछ पहले से ही तय हो चुका हो.
राजकुमार विजयवर्मन को आते देख राजकुमारी अवंतिका के शयनकक्ष के बाहर खड़ी दासी दौड़ कर अंदर चली गई, और फिर राजकुमार विजयवर्मन के द्वार तक पहुँचते पहुँचते वापस जल्दी से बाहर आ गई, और उनसे कहा.
" आपका स्वागत है राजकुमार... परन्तु राजकुमारी अवंतिका ने आपसे क्षमा मांगी है, उनके सोने का समय हो चला है ! ".
" अगर ऐसी बात है तो मुझे स्वयं उनसे मिलकर उन्हें क्षमा करना होगा ! ". राजकुमार विजयवर्मन ने ब्यंग भरी मुस्कान के साथ कहा, और दरवाज़े से अंदर दाखिल होने के लिए आगे बढे तो दासी सिर झुकाकर एक ओर खड़ी हो गई और उन्हें अंदर प्रवेश करने का रास्ता दे दिया.
कमरे के अंदर एक बड़े से आईने के सामने राजकुमारी अवंतिका बैठी हुई थी और उनके अगल बगल दो दासीयां उनके बाल बना रही थीं. राजकुमारी अवंतिका ने बिना पीछे मुड़े आईने में राजकुमार विजयवर्मन के प्रतिबिम्ब से नज़रें मिलाते हुए कहा.
" औरतों के शयनकक्ष में दासीयों के रहने का कोई तो उद्देश्य होगा ना भैया ??? ".
" अवश्य ! राजकुमारी की सेवा करना, ना की अपने ही प्रियजनों को उनसे मिलने से रोकना... ". विजयवर्मन तपाक से बोलें.
अवंतिका ने उठ कर खड़े होते हुए अपनी दोनों दासीयों को बाहर जाने का इशारा किया, तो उन दोनों के साथ साथ बाकि की दासीयां भी बाहर चली गईं. अवंतिका टहलते हुए विजयवर्मन के समीप जा खड़ी हुई और बोली.
" लगता है आपको मेरी दासी के कथन पर यकीन नहीं हुआ ! ".
" अब हो गया... ". विजयवर्मन ने अपनी बहन को चिढ़ाने के मकसद से घूरते हुए कहा. " आपकी आँखे देखकर ! सचमुच में आपको नींद आ रही है... ".
" अगर कोई अति आवश्यक बात है तो कहिये भैया, नहीं तो सुबह होने की प्रतीक्षा कीजिये... आँख खुलते ही सबसे पहले आपसे ही मिलूंगी ! ". अवंतिका ने अपना मुँह घुमाते हुए कहा.
विजयवर्मन अपनी छोटी बहन की रग रग से वाकिफ थें, उन्हें पता था की उनके मन में क्या चल रहा है, जिस वजह से वो ऐसा ब्यवहार कर रही है. फिर भी उन्होंने अवंतिका की बांह पकड़कर उन्हें अपनी ओर घुमाते हुए पूछा.
" इतना रुखापन किसलिए अवंतिका ??? कम से कम मेरा दोष क्या है, यही बता दीजिये ! ".
" रात्रि को मैं स्नान नहीं करती राजकुमार... मुझे हाथ लगाकर गंदा ना कीजिये ! ". अवंतिका ने अपने भाई की पकड़ से अपनी बांह छुड़ाते हुए कहा.
" और इस रोष का कारण ??? ".
" आप अभी कहाँ से और क्या करके आ रहें हैं, ये शायद आपको सामान्य लगता हो, पर मुझे नहीं ! ".
अवंतिका की बात सुनकर विजयवर्मन थोड़ी देर शांत रहें, और फिर बोलें.
" आपको तो ये हमेशा से पता था अवंतिका... मैंने तो ये बात आपसे कभी नहीं छुपाई. फिर अचानक आज ही मुझसे इतनी घृणा क्यूँ ??? ".
" मेरी बात रहने दीजिये भैया... परन्तु क्या आपको खुद से घृणा नहीं होती ? ".
" नहीं होती अवंतिका, क्यूंकि मुझे पता है की मैं ये सब क्यूँ करता हूँ... ". विजयवर्मन ने कठोर स्वर में कहा. " और ये आपको भी ज्ञात है, मगर चुंकि आपने फिर से उस बात को उठाया है, तो मैं फिर से आपके सामने सब कुछ स्पष्ट किये देता हूँ. भैया देववर्मन नपुंसक हैं !!! वो एकमात्र उपाय जिससे उनके शरीर में कामोत्तेजना आती है, ये है की मैं उनकी पत्नि के साथ सम्भोग करूँ और वो ये देखें. भैया भाभी के वैवाहिक जीवन में मेरी भूमिका तय करने वाला ना ही मैं स्वयं हूँ, ना ही भैया, और ना ही भाभी. ये सारा कुछ तो नियति का किया धरा है... ये ही सत्य है, अवंतिका !!! ".
" आप इस बात पर विश्वास करते हैं की बड़े भैया नपुंसक हैं ??? ". अवंतिका ने ब्यंग भरी मुस्कान के साथ कहा. " नहीं... मैं तो नहीं मानती ! अपनी घृणित और विकृत मानसिकता को नपुंसकता की आड़ में छुपाने का ये एक छलावा मात्र है... एक बहाना... बस एक षड़यंत्र ! ".
विजयवर्मन को अपनी बहन की बात में सच्चाई दिखी, उन्हें याद आ गया, की कुछ देर पहले कैसे राजकुमार देववर्मन अपनी पत्नि के मुख से अवंतिका के बारे में अभद्र बातें सुनकर वासना से भर गएँ थें, और फिर उन्होंने अपनी पत्नि के साथ सफलतापूर्वक सहवास भी किया ! एक नपुंसक ब्यक्ति के लिए ये संभव होगा ??? कदापि नहीं. मतलब ये, की अपनी पत्नि को अपने ही छोटे भाई के साथ सोते हुए देखने की लालसा, नपुंसकता नहीं, बल्कि मानसिक विकृति है ! आज तक विजयवर्मन को लग रहा था की वो बस अपने भैया भाभी का वैवाहिक जीवन बचाने में उन दोनों की सहायता कर रहें हैं , परन्तु असल में तो देववर्मन मात्र अपनी विकृत इच्छाओ की पूर्ति हेतु उनका उपयोग कर रहे थें. और इन सारे घटनाक्रम में चित्रांगदा का कितना योगदान है, ये भी मात्र समझने भर की बात है !
विजयवर्मन ने एक ठंडी आह भरी, जैसे की वो हार चुके हों, और फिर अवंतिका की दोनों बांहे पकड़कर नरमी के साथ बोलें.
" मुझे पूरा यकीन है की आपका कथन ही सत्य है. परन्तु शायद अब मैं इस भंवर में फंस चुका हूँ ! "
अवंतिका चुपचाप खड़ी रही, उन्होंने अपनी नज़रें दूसरी ओर घुमा रखी थीं, और उनके सुंदर मुखड़े पर आक्रोश साफ झलक रहा था. उनका गुस्सा देखकर ना जाने क्यूँ विजयवर्मन को अचानक से हँसी आ गई, और उन्होंने आगे बढ़कर अवंतिका के गाल चूम लिए. अवंतिका कुछ ना बोली, तो विजयवर्मन ने उनका चेहरा अपने दोनों हाथों में लेकर अपनी ओर घुमाया और उनके होंठ अपने होंठों से स्पर्श करने गये, मगर अवंतिका ने इस बार अपना चेहरा परे हटा लिया.
" अब इन सब बातों का कोई अर्थ नहीं भैया... ". अवंतिका ने विजयवर्मन के हाथों से अपना चेहरा छुड़ाते हुए कहा. " मेरा विवाह तय हो चुका है ! ".
" क्या आप ख़ुश हैं राजकुमारी ? ". विजयवर्मन ने पूछा.
" राजघरानों में विवाह के मामले में औरतों की ख़ुशी कब से पूछी जाने लगी भैया ??? ". अवंतिका ब्यंगात्मक हँसी हँसते हुए बोली.
" मैं आपके विवाह के बारे में नहीं पूछ रहा अवंतिका... ". विजयवर्मन बोलें. " क्या आप मुझसे अलग होकर खुश रह पाएंगी ? ".
" इस प्रश्न का उत्तर आप स्वयं ढूंढिये भैया... ". अवंतिका ने कहा और फिर जाने के लिए मुड़ते हुए सख़्त स्वर में बोली. " रात बहुत हो चुकी है... अब आप जाइये ! "
विजयवर्मन से और नहीं सहा गया, उन्होंने लपक कर अवंतिका का हाथ पकड़ कर उन्हें अपनी ओर खींच लिया, और उन्हें अपनी बाहों में जकड़ कर उनके होंठों से अपने होंठ सटा दियें. अवंतिका कुछ देर तक तो खुद को उनकी पकड़ से छुड़ाने का भरसक प्रयास करती रही, लेकिन फिर उनका विरोध ढीला पड़ने लगा और अंततः उन्होंने अपने हाथ विजयवर्मन के पीठ से लपेट दियें, और चुम्बन में उनका साथ देने लगीं..................................
मन भर कर एक दूसरे को चूमने के बाद जब दोनों अलग हुए तो विजयवर्मन ने देखा की अवंतिका की आँखे आंसुओं से झिलमिला रहीं हैं.
" आप रो रहीं हैं बहन ??? ". विजयवर्मन ने पूछा.
अवंतिका अपने आप को और ज़्यादा कठोर नहीं रख पाई, झट से अपने भाई से लिपट गई और उनके सीने में अपना चेहरा छुपा कर सुबक सुबक कर रोने लगी, मगर आवाज़ दबा कर, ताकि कोई सुन ना ले.
" रो लीजिये राजकुमारी... आज मैं आपको नहीं रोकूंगा ! ". विजयवर्मन ने अवंतिका का सिर सहलाते हुए कहा.
कुछ देर बाद अवंतिका ने अपने भाई के सीने से अपना चेहरा बाहर निकाला तो विजयवर्मन उसके गाल पर से उसके आंसू पोंछने लगें.
" कल सुबह पिताश्री ने अपने कक्ष में एक छोटी सी सभा बुलाई है... ". अवंतिका ने अपनी भींगी पलकें ऊपर उठाकर विजयवर्मन की आँखे में देखते हुए कहा. " हम सभी परिवार के लोगों को आमंत्रित किया है, मुझे, आपको, बड़े भैया, भाभी ! "
" अच्छा ??? मगर किसलिए ? ". विजयवर्मन ने आश्चर्य से पूछा.
" पता नहीं भैया... पुरोहित जी आने वाले हैं. कुछ विचार विमर्श करने हेतु, मेरे विवाह से सम्बंधित ! ".
" हाँ... मगर किसलिए ??? ".
" पता नहीं... ".
" कल उस पुरोहित की कहीं मेरे हाथों हत्या ही ना हो जाये ! ". विजयवर्मन ने गुस्से से दाँत पिसते हुए कहा.
रोते रोते भी अवंतिका को अचानक से हँसी आ गई.
" अरे... ये क्या भैया... भला इसमें पुरोहित जी का क्या दोष ? ".
" मैं सारा जीवन ना ही किसी से विवाह करूँगा और ना ही किसी से प्रेम ! ".
विजयवर्मन ने कहा, तो अवंतिका ने तुरंत उनके होंठों पर अपनी उंगलियां रख कर उन्हें चुप करा दिया और बोलीं.
" ये आप क्या कह रहें हैं भैया ? ".
" सच कह रहा हूँ अवंतिका... ".
" आप पुरुष हैं... आपको अधिकार है. मैं तो ऐसा कह भी नहीं सकती ! ". अवंतिका ने नज़रें झुकाते हुए कहा.
विजयवर्मन चुप हो गएँ, तो फिर अवंतिका ने विषय बदलने हेतु हँसते हुए उनसे कहा.
" वैसे आपको विवाह की आवश्यकता भी क्या है राजकुमार ? विवाह के सारे आनंद तो चित्रांगदा भाभी आपको दे ही रहीं हैं. है ना ? ".
" ठिठोली ना कीजिये राजकुमारी... मुझे ये बिल्कुल पसंद नहीं ! ". विजयवर्मन ने गुस्से में अवंतिका को अपनी बाहों से अलग करते हुए कहा.
" अरे अरे... ये क्या... आप मुझे तंग करें तो ठीक है ??? ये तो न्याय नहीं... ". अवंतिका ने विजयवर्मन का हाथ पकड़ लिया.
विजयवर्मन थोड़े से शांत हुए, तो उन्होंने अपना हाथ अवंतिका की गर्दन पर रखते हुए उनके ललाट को चूम लिया, और बोलें.
" अपना ध्यान रखियेगा राजकुमारी... ".
अवंतिका ने झट से आगे बढ़कर विजयवर्मन के गाल पर एक चुम्बन जड़ दिया, और मुस्कुराते हुए कहा.
" ये पुरोहित जी के प्राण ना लेने के लिए ! ".
विजयवर्मन ने एक नज़र मन भर कर अपनी बहन को देखा, और फिर बिना कुछ कहे शीघ्रता से शयनकक्ष से बाहर निकल गएँ !
Awesome Updateकहानी :
वो सत्ताईस दिन.
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( ये आज से करीब 5000 साल पहले की एक काल्पनिक पौराणिक गाथा है, इसलिए जहाँ तक संभव हो सका है, मैंने उस समयानुसार कहानी लेखन में अपने शब्दों का चयन किया है, कहानी बयां करते समय Modern शब्दों का प्रयोग है और किरदारों के बातचीत के समय उस वक़्त की बोलने की शैली. कितना सफल रहा हूँ, ये मैं पाठकों पर छोड़ता हूँ )
EPISODE 2
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अपने भैया भाभी के शयनकक्ष से निकलकर राजकुमार विजयवर्मन अपने कक्ष की ओर चल पड़े. उनके मन में कई सारे ख्यालों का उधेड़बुन चल रहा था - अपने बड़े भाई का आपत्तिजनक व्यवहार, भाभी की मीठी मीठी बातों में छिपी कुटिलता, और सबसे बड़ी बात, उनका और अवंतिका का भविष्य ! उनका मन अभी तय कर ही रहा था की वो एक बार अपनी छोटी बहन राजकुमारी अवंतिका से मिलते चलें, की उनके कदम अवंतिका के शयनकक्ष की ओर ऐसे बढ़ चले, मानो सब कुछ पहले से ही तय हो चुका हो.
राजकुमार विजयवर्मन को आते देख राजकुमारी अवंतिका के शयनकक्ष के बाहर खड़ी दासी दौड़ कर अंदर चली गई, और फिर राजकुमार विजयवर्मन के द्वार तक पहुँचते पहुँचते वापस जल्दी से बाहर आ गई, और उनसे कहा.
" आपका स्वागत है राजकुमार... परन्तु राजकुमारी अवंतिका ने आपसे क्षमा मांगी है, उनके सोने का समय हो चला है ! ".
" अगर ऐसी बात है तो मुझे स्वयं उनसे मिलकर उन्हें क्षमा करना होगा ! ". राजकुमार विजयवर्मन ने ब्यंग भरी मुस्कान के साथ कहा, और दरवाज़े से अंदर दाखिल होने के लिए आगे बढे तो दासी सिर झुकाकर एक ओर खड़ी हो गई और उन्हें अंदर प्रवेश करने का रास्ता दे दिया.
कमरे के अंदर एक बड़े से आईने के सामने राजकुमारी अवंतिका बैठी हुई थी और उनके अगल बगल दो दासीयां उनके बाल बना रही थीं. राजकुमारी अवंतिका ने बिना पीछे मुड़े आईने में राजकुमार विजयवर्मन के प्रतिबिम्ब से नज़रें मिलाते हुए कहा.
" औरतों के शयनकक्ष में दासीयों के रहने का कोई तो उद्देश्य होगा ना भैया ??? ".
" अवश्य ! राजकुमारी की सेवा करना, ना की अपने ही प्रियजनों को उनसे मिलने से रोकना... ". विजयवर्मन तपाक से बोलें.
अवंतिका ने उठ कर खड़े होते हुए अपनी दोनों दासीयों को बाहर जाने का इशारा किया, तो उन दोनों के साथ साथ बाकि की दासीयां भी बाहर चली गईं. अवंतिका टहलते हुए विजयवर्मन के समीप जा खड़ी हुई और बोली.
" लगता है आपको मेरी दासी के कथन पर यकीन नहीं हुआ ! ".
" अब हो गया... ". विजयवर्मन ने अपनी बहन को चिढ़ाने के मकसद से घूरते हुए कहा. " आपकी आँखे देखकर ! सचमुच में आपको नींद आ रही है... ".
" अगर कोई अति आवश्यक बात है तो कहिये भैया, नहीं तो सुबह होने की प्रतीक्षा कीजिये... आँख खुलते ही सबसे पहले आपसे ही मिलूंगी ! ". अवंतिका ने अपना मुँह घुमाते हुए कहा.
विजयवर्मन अपनी छोटी बहन की रग रग से वाकिफ थें, उन्हें पता था की उनके मन में क्या चल रहा है, जिस वजह से वो ऐसा ब्यवहार कर रही है. फिर भी उन्होंने अवंतिका की बांह पकड़कर उन्हें अपनी ओर घुमाते हुए पूछा.
" इतना रुखापन किसलिए अवंतिका ??? कम से कम मेरा दोष क्या है, यही बता दीजिये ! ".
" रात्रि को मैं स्नान नहीं करती राजकुमार... मुझे हाथ लगाकर गंदा ना कीजिये ! ". अवंतिका ने अपने भाई की पकड़ से अपनी बांह छुड़ाते हुए कहा.
" और इस रोष का कारण ??? ".
" आप अभी कहाँ से और क्या करके आ रहें हैं, ये शायद आपको सामान्य लगता हो, पर मुझे नहीं ! ".
अवंतिका की बात सुनकर विजयवर्मन थोड़ी देर शांत रहें, और फिर बोलें.
" आपको तो ये हमेशा से पता था अवंतिका... मैंने तो ये बात आपसे कभी नहीं छुपाई. फिर अचानक आज ही मुझसे इतनी घृणा क्यूँ ??? ".
" मेरी बात रहने दीजिये भैया... परन्तु क्या आपको खुद से घृणा नहीं होती ? ".
" नहीं होती अवंतिका, क्यूंकि मुझे पता है की मैं ये सब क्यूँ करता हूँ... ". विजयवर्मन ने कठोर स्वर में कहा. " और ये आपको भी ज्ञात है, मगर चुंकि आपने फिर से उस बात को उठाया है, तो मैं फिर से आपके सामने सब कुछ स्पष्ट किये देता हूँ. भैया देववर्मन नपुंसक हैं !!! वो एकमात्र उपाय जिससे उनके शरीर में कामोत्तेजना आती है, ये है की मैं उनकी पत्नि के साथ सम्भोग करूँ और वो ये देखें. भैया भाभी के वैवाहिक जीवन में मेरी भूमिका तय करने वाला ना ही मैं स्वयं हूँ, ना ही भैया, और ना ही भाभी. ये सारा कुछ तो नियति का किया धरा है... ये ही सत्य है, अवंतिका !!! ".
" आप इस बात पर विश्वास करते हैं की बड़े भैया नपुंसक हैं ??? ". अवंतिका ने ब्यंग भरी मुस्कान के साथ कहा. " नहीं... मैं तो नहीं मानती ! अपनी घृणित और विकृत मानसिकता को नपुंसकता की आड़ में छुपाने का ये एक छलावा मात्र है... एक बहाना... बस एक षड़यंत्र ! ".
विजयवर्मन को अपनी बहन की बात में सच्चाई दिखी, उन्हें याद आ गया, की कुछ देर पहले कैसे राजकुमार देववर्मन अपनी पत्नि के मुख से अवंतिका के बारे में अभद्र बातें सुनकर वासना से भर गएँ थें, और फिर उन्होंने अपनी पत्नि के साथ सफलतापूर्वक सहवास भी किया ! एक नपुंसक ब्यक्ति के लिए ये संभव होगा ??? कदापि नहीं. मतलब ये, की अपनी पत्नि को अपने ही छोटे भाई के साथ सोते हुए देखने की लालसा, नपुंसकता नहीं, बल्कि मानसिक विकृति है ! आज तक विजयवर्मन को लग रहा था की वो बस अपने भैया भाभी का वैवाहिक जीवन बचाने में उन दोनों की सहायता कर रहें हैं , परन्तु असल में तो देववर्मन मात्र अपनी विकृत इच्छाओ की पूर्ति हेतु उनका उपयोग कर रहे थें. और इन सारे घटनाक्रम में चित्रांगदा का कितना योगदान है, ये भी मात्र समझने भर की बात है !
विजयवर्मन ने एक ठंडी आह भरी, जैसे की वो हार चुके हों, और फिर अवंतिका की दोनों बांहे पकड़कर नरमी के साथ बोलें.
" मुझे पूरा यकीन है की आपका कथन ही सत्य है. परन्तु शायद अब मैं इस भंवर में फंस चुका हूँ ! "
अवंतिका चुपचाप खड़ी रही, उन्होंने अपनी नज़रें दूसरी ओर घुमा रखी थीं, और उनके सुंदर मुखड़े पर आक्रोश साफ झलक रहा था. उनका गुस्सा देखकर ना जाने क्यूँ विजयवर्मन को अचानक से हँसी आ गई, और उन्होंने आगे बढ़कर अवंतिका के गाल चूम लिए. अवंतिका कुछ ना बोली, तो विजयवर्मन ने उनका चेहरा अपने दोनों हाथों में लेकर अपनी ओर घुमाया और उनके होंठ अपने होंठों से स्पर्श करने गये, मगर अवंतिका ने इस बार अपना चेहरा परे हटा लिया.
" अब इन सब बातों का कोई अर्थ नहीं भैया... ". अवंतिका ने विजयवर्मन के हाथों से अपना चेहरा छुड़ाते हुए कहा. " मेरा विवाह तय हो चुका है ! ".
" क्या आप ख़ुश हैं राजकुमारी ? ". विजयवर्मन ने पूछा.
" राजघरानों में विवाह के मामले में औरतों की ख़ुशी कब से पूछी जाने लगी भैया ??? ". अवंतिका ब्यंगात्मक हँसी हँसते हुए बोली.
" मैं आपके विवाह के बारे में नहीं पूछ रहा अवंतिका... ". विजयवर्मन बोलें. " क्या आप मुझसे अलग होकर खुश रह पाएंगी ? ".
" इस प्रश्न का उत्तर आप स्वयं ढूंढिये भैया... ". अवंतिका ने कहा और फिर जाने के लिए मुड़ते हुए सख़्त स्वर में बोली. " रात बहुत हो चुकी है... अब आप जाइये ! "
विजयवर्मन से और नहीं सहा गया, उन्होंने लपक कर अवंतिका का हाथ पकड़ कर उन्हें अपनी ओर खींच लिया, और उन्हें अपनी बाहों में जकड़ कर उनके होंठों से अपने होंठ सटा दियें. अवंतिका कुछ देर तक तो खुद को उनकी पकड़ से छुड़ाने का भरसक प्रयास करती रही, लेकिन फिर उनका विरोध ढीला पड़ने लगा और अंततः उन्होंने अपने हाथ विजयवर्मन के पीठ से लपेट दियें, और चुम्बन में उनका साथ देने लगीं..................................
मन भर कर एक दूसरे को चूमने के बाद जब दोनों अलग हुए तो विजयवर्मन ने देखा की अवंतिका की आँखे आंसुओं से झिलमिला रहीं हैं.
" आप रो रहीं हैं बहन ??? ". विजयवर्मन ने पूछा.
अवंतिका अपने आप को और ज़्यादा कठोर नहीं रख पाई, झट से अपने भाई से लिपट गई और उनके सीने में अपना चेहरा छुपा कर सुबक सुबक कर रोने लगी, मगर आवाज़ दबा कर, ताकि कोई सुन ना ले.
" रो लीजिये राजकुमारी... आज मैं आपको नहीं रोकूंगा ! ". विजयवर्मन ने अवंतिका का सिर सहलाते हुए कहा.
कुछ देर बाद अवंतिका ने अपने भाई के सीने से अपना चेहरा बाहर निकाला तो विजयवर्मन उसके गाल पर से उसके आंसू पोंछने लगें.
" कल सुबह पिताश्री ने अपने कक्ष में एक छोटी सी सभा बुलाई है... ". अवंतिका ने अपनी भींगी पलकें ऊपर उठाकर विजयवर्मन की आँखे में देखते हुए कहा. " हम सभी परिवार के लोगों को आमंत्रित किया है, मुझे, आपको, बड़े भैया, भाभी ! "
" अच्छा ??? मगर किसलिए ? ". विजयवर्मन ने आश्चर्य से पूछा.
" पता नहीं भैया... पुरोहित जी आने वाले हैं. कुछ विचार विमर्श करने हेतु, मेरे विवाह से सम्बंधित ! ".
" हाँ... मगर किसलिए ??? ".
" पता नहीं... ".
" कल उस पुरोहित की कहीं मेरे हाथों हत्या ही ना हो जाये ! ". विजयवर्मन ने गुस्से से दाँत पिसते हुए कहा.
रोते रोते भी अवंतिका को अचानक से हँसी आ गई.
" अरे... ये क्या भैया... भला इसमें पुरोहित जी का क्या दोष ? ".
" मैं सारा जीवन ना ही किसी से विवाह करूँगा और ना ही किसी से प्रेम ! ".
विजयवर्मन ने कहा, तो अवंतिका ने तुरंत उनके होंठों पर अपनी उंगलियां रख कर उन्हें चुप करा दिया और बोलीं.
" ये आप क्या कह रहें हैं भैया ? ".
" सच कह रहा हूँ अवंतिका... ".
" आप पुरुष हैं... आपको अधिकार है. मैं तो ऐसा कह भी नहीं सकती ! ". अवंतिका ने नज़रें झुकाते हुए कहा.
विजयवर्मन चुप हो गएँ, तो फिर अवंतिका ने विषय बदलने हेतु हँसते हुए उनसे कहा.
" वैसे आपको विवाह की आवश्यकता भी क्या है राजकुमार ? विवाह के सारे आनंद तो चित्रांगदा भाभी आपको दे ही रहीं हैं. है ना ? ".
" ठिठोली ना कीजिये राजकुमारी... मुझे ये बिल्कुल पसंद नहीं ! ". विजयवर्मन ने गुस्से में अवंतिका को अपनी बाहों से अलग करते हुए कहा.
" अरे अरे... ये क्या... आप मुझे तंग करें तो ठीक है ??? ये तो न्याय नहीं... ". अवंतिका ने विजयवर्मन का हाथ पकड़ लिया.
विजयवर्मन थोड़े से शांत हुए, तो उन्होंने अपना हाथ अवंतिका की गर्दन पर रखते हुए उनके ललाट को चूम लिया, और बोलें.
" अपना ध्यान रखियेगा राजकुमारी... ".
अवंतिका ने झट से आगे बढ़कर विजयवर्मन के गाल पर एक चुम्बन जड़ दिया, और मुस्कुराते हुए कहा.
" ये पुरोहित जी के प्राण ना लेने के लिए ! ".
विजयवर्मन ने एक नज़र मन भर कर अपनी बहन को देखा, और फिर बिना कुछ कहे शीघ्रता से शयनकक्ष से बाहर निकल गएँ !