शाम होने को आई। किंजल और सोनिया गुसलखाने में चली गई। किंजल को अपने आप से बु आ रही थी। किंजल पूरी नंगी अपने आप को रगड़ रगड़ कर धो रही थी। उसे अपने बदन से बाबा की गंदगी निकालनी थी। उधर सोनिया नीचे बैठ कर अपने कपड़े धो रही थी। उसकी चूत रात की धुआंधार चुदायी से फैल गई थी।
वही गुसलखाने में दो और औरतें नहा रही थी। एक तो इंद्रा थी। दूसरी कोई मद्रासी औरत थी। रंग गेहुआ था। पर शरीर बिलकुल साफ था। यही कोई 40 साल की होगी। पेट थोड़ा मोटा, मोटे मोटे पर टाइट चूचे, उभरी हुई गांड़। इंद्रा बार बार पलट पलट कर उसकी और देख रही थी। नंगी होके भी वो औरत अमीर लग रही थी। पर इंद्रा की हिम्मत नही थी उसकी और देख के कुछ बोल सके। वो एक नेता थी। एक मंत्री की बेटी। एक घोटाले के चलते अंदर थी। जेल का सबसे आलीशान बैरक था उसका। एक नौकर हमेशा उसके साथ रहती थी।
तभी शिफा भी अंदर आ गई। तब तक वो मद्रासी औरत कपड़े पहन रही थी। उसने नीचे बैठी सोनिया को गौर से देखा जो तौलिए में लिपटी नीचे बैठी कपड़े धो रही थी। उसने ध्यान से उसकी चूत को देखा और वापिस घूम गई। वापिस निकलते वक्त उसने शिफा को ऊपर से नीचे देखा और बिना कुछ बोले बाहर निकल गई। शिफा अपने शावर के नीचे नंगी हो नहाने लगी। तभी इंद्रा भी उसके शावर में घुस गई।
"तुझे एक काम बोला था। कब होगा?"
शिफा – "आज तैयार रहना। माल तैयार रखना। रात को हो जायेगा।"
इंद्रा बाहर निकल गई। कपड़े पहने और वापिस अपने बैरक की तरफ निकल गई। शिफा ने नहाते हुए सोनिया और किंजल की तरफ देखा। सोनिया तो अपने काम में लगी थी। किंजल शावर के नीचे खड़ी सबकी तरफ पीठ किए रो रही थी। शिफा अपने शावर से निकल कर किंजल के शावर में आ गई और उसको कंधों से पकड़ कर अपनी तरफ घुमा लिया। किंजल की आंखे और गोरा चेहरा रो रो कर लाल हो चुका था।
"क्या हुआ? क्यों इतना रो रही है? शिफा ने पूछा
किंजल कुछ नही बोली। बस ऐसे ही सुबकती रही।
"देख इतना रोने से कुछ नही होने वाला। जेल में पैसा चाहिए जिंदा रहने के लिए। और तुझे तो इतनी facilty दे रखी है। ये सब फ्री नही मिलता। कीमत चुकानी पड़ती है। अब या तो वापिस चली जा या कीमत देती रह। बाकी तेरा ध्यान मैं रखूंगी। ये तो पहली बार था इसलिए तुझे ऐसा लग रहा है। चल अब जल्दी से कपड़े पहन ले। ऐसे रोना बंद कर। तेरा वकील भी काम पर लगा हुआ है। क्या पता तेरी किस्मत पलट जाए।"
शिफा वापिस अपने शावर में चली गई। किंजल भी तौलिया लपेट के अपने कपड़े धोने में लग गई। बेचारी की टाइट चूत अब खुली हुई थी। इस बार मोटे लन्ड से जो चूदी थी। शिफा नहा के निकल गई।
जेलर ऑफिस
मनीषा अपनी कुर्सी पर कुछ फाइल देख रही थी। सामने शिफा खड़ी थी। शिफा ने एक लिफाफा उसके टेबल पर रखा।
"कितना है?" मनीषा ने बिना नजर उठाए पूछा।
"जी 4 है।" शिफा ने धीमी आवाज में कहा।
"कितना बोला था तुझे?" मनीषा ने नजर उठा के शिफा को घूरा। शिफा उसकी नजर से ही सकपका गई
"जी मैडम बहुत कोशिश की। पर इतने ही बन पाए।" शिफा आत्मविश्वास दिखा रही थी। पर अंदर से डर रही थी।
"तुझसे नही होता है तो बोल। और बहुत है तेरी जगह लेने को।" मनीषा ने फिर फाइल के पन्ने पलटते हुए कहा।
"नही मैडम। अगले हफ्ते आपको निराश नहीं करूंगी।" शिफा ने अब थोड़ा सामान्य होते हुए कहा।
"3 दिन बाद होम मिनिस्टर साहब आयेंगे इंस्पेक्शन के लिए। उनकी खिदमत के लिए तैयार रहना। कोई कमी नहीं रहनी चाहिए। अंदर गेस्ट हाउस में रुकेंगे। किसी और को पता नही लगना चाहिए। बाकी कुछ और होगा तो तुझे बता दूंगी।" मनीषा ने शिफा की आंखों में देखते हुए बोला और वापिस अपने काम में लग गई।
"जी मैडम।" शिफा बोल कर ऑफिस से बाहर निकल गई।
"साली बदन जला जला कर, काट काट कर पैसे कमा कर दो फिर भी कम हैं इन हरामियों को।" शिफा बड़बड़ाती हुई अपने बैरक में आ गई।
शिफा ने फोन पर किसी से बात की। कुछ देर बाद वो बाहर निकली और वीआईपी बैरक की तरफ चल दी। वो सीधी इंद्रा के बैरक के बाहर पहुंची। और खटखटाया।
"कौन है?" अंदर से आवाज आई।
"मैं हूं।" शिफा ने कहा। "आ जाओ।"
शिफा बैरक का गेट खोल कर अंदर चली गई। शिफा ने देखा इंद्रा अपनी आराम कुर्सी पर बैठी किताब पढ़ रही थी। शिफा उसके सामने बेड पर जाकर बैठ गई।
"बोलो" इंद्रा ने किताब पढ़ते हुए बिना नजर उठाए पूछा।
" आज शाम को मांगा दूं??" शिफा ने पूछा।
"कौन है आदमी?" इंद्रा ने शिफा की तरफ देख कर पूछा।
"नाइजीरियन है। जैसा आपने मांगा था बड़े साइज वाला। चलेगा आपको?" शिफा ने मुस्कुराते हुए इंद्रा की आंखों में देखा।
"कहा से आएगा? सब safe है ना?" इंद्रा ने सोचते हुए पूछा ।
"वो मेरी जिम्मेदारी है। कहा से आएगा ये आपको नही बता सकती। पर आपका काम हो जायेगा और किसी को पता भी नही चलेगा।" शिफा ने कहा।
"ठीक है फाइनल कर दो। पर आदमी सही होना चाहिए। सर्विस सही होनी चाहिए। और खबरदार जो आसपास के बैरक में किसी को खबर हुई।" इंद्रा ने ठोकते हुए कहा।
"मैडम वो मुझपे छोड़ दीजिए। उसकी खुद की जरूरत है। काम सही नही हुआ तो पूरा पैसा वापिस दूंगी।" शिफा ने मुस्कुराती हुई बोली।
"कितना दू?" इंद्रा के चेहरे पर कोई मुस्कुराहट नही थी। इतने बड़े बैंक की डायरेक्टर थी। बिना बात पक्की किए आगे नहीं बढ़ती थी।
"3" शिफा ने बिना किसी हिचकिचाहट के सीधा बोल दिया।
"3!! कुछ ज्यादा नही है। पहले जो ये लडकिया आती थी 20 30 में काम हो जाता था।" इंद्रा चौंकते हुए बोली।
"मैडम ये बाहर से आना है। मुझे पता है कैसे कर रही हूं। कोई जेल में आने को तैयार होता है क्या? हर कदम पे पैसा बांटना पड़ता है। बाकी आपको सर्विस पूरी मिलेगी। पूरी रात टिकेगा। आपके ऊपर है आप कितनी ताकत लगाती हो।" शिफा इंद्रा की आंखों में देखते बोली।
इंद्रा को उसका घूरना खल रहा था। किसी की हिम्मत नही होती थी उसकी आंखों में देख के बात कर सके। पर आज उसके आगे एक दल्ली उसके सामने कॉन्फिडेंस से बैठी थी।"ठीक है।" इंद्रा ने उठ कर अपने पर्स से फिर एक आधा कटा हुआ 10 का नोट निकाला और उसमे कुछ लिख कर अपने साइन किए और शिफा को दे दिया। "रात को तैयार रहिएगा। मैं खुद आऊंगी लेने।" शिफा ने नोट पकड़ा और खड़ी होते हुए बोली।
"लेने! कहां जाना है?? यहां सैल में नही होगा क्या? मैं ऐसे कहीं नहीं जाने वाली।" इंद्रा चौंकते हुए बोली।
"घबराइए मत। बाहर का आदमी यहां allowed नही है। और यहां safe नहीं है अगर किसी को पता चला तो। जेल में ही किसी सेफ जगह आपका काम हो जायेगा। बाकी मैं साथ रहूंगी।" शिफा ने समझाया। इंद्रा बिना बोले उसकी तरफ देख रही थी। शिफा इसे इंद्रा की मौन स्वीकृति समझ के बाहर निकल गई।