तभी ना जाने कौन मादरचोद आके दरवाजे को पीटने लगता है. अचानक शोर के कारण में डर जाता हूं. मां को पता नहीं था कि मैं घर वापस आ चुका हूं इसीलिए दरवाजे पर कौन है यह देखने के लिए मां अपने जगह पर से उठने लगती है.
मां को उठता देख मेरे मुंह से अचानक निकल जाता है - मां तुम रहने दो मैं देख लूंगा.
ये मैंने क्या बोल दिया मैं अपनी गलती को समझता उससे पहले ही मां समझ जाती है कि मैं कहां हूं. इसका अहसास होते ही मां तुरंत अपने साया से अपनी चुत को ढक लेती है और झुक के मुझे छेद से देख लेती है.
जैसे कि हम दोनों की आंखें आपस में मिलती है मैं वहीं पर जम जाता हूं मां की आंखों को देख मेरा दिल जोरो से धड़कने लगता है.
मां को भी कुछ समझ नहीं आ रहा था कि मैं वहां क्या कर रहा हूं उनके लिए इस बात को मानना नामुमकिन था कि उसका जान से ज्यादा प्यारा बेटा उसे नहाते हुए देख रहा है.
काफी लंबे समय तक हम दोनों एक दूसरे को देखने के अलावा और कुछ नहीं करते तभी दरवाजे पर फिर से आवाज आता है और मैं होश में आ जाता हूं और वहां से तुरंत भाग जाता हूं जब जाकर दरवाजा खोलता हूं तो देखता हूं कि बाहर गांव के कुछ लड़के खड़े थे मन तो कर रहा था सबको खूब गाली दूं लेकिन मैं खुद पर काबू रखते हुए केहता हूं - क्या हुआ तुम लोग यहां क्या कर रहे हो.
तभी उसमें से एक लड़का कहता है - क्या दिन भर अपनी मां के पेट में घुसा रहता है चला जाना नहीं मुखिया जी के घर अपनी मां का मड़वा सजाने.
उसके बात को सुन सब लोग हंसने लगता है मन तो कर रहा था एक घुसा लगा दूं उसके नाक पर, लेकिन अपने खराब वक्त को देखते हुए उसके साथ चला जाना ही मैं ठीक समझता हूं और वहां से चला जाता हूं.
घर से सीधा में मुखिया जी के घर चला जाता हूं, जहां उनके घर के बगल में ही एक बड़ा सा पंडाल बन रहा था, उसे के अंदर कई सारे छोटे मंडप बनाया जाएगा और उसी में सबका शादी होगा.
मुझे बहुत बुरा लग रहा था इतने सालों से मां को मेरे ऊपर कभी शक नहीं हुआ लेकिन आज जब वह मुझे कुछ दिनों बाद मिल जाती तब मैं पकड़ा गया. ना जाने मैं कैसे उससे नजरे मिलाऊंगा. शादी के बाद भले ही मैं कुछ भी करता लेकिन उन्हें बुरा लगता.
यही सब सोचते हुए मैं काम कर रहा था, समय कब निकल जाता है मुझे पता ही नहीं चलता, शाम हो जाता है, शादी कराने के लिए पंडित भी आ जाता है, कुछ देर में दादाजी भी आ जाता है उन्होंने एक शेरवानी और धोती पहना था.
शादी में किसी के घर से भी कोई मेहमान नहीं आया था बस गांव के ही लोग मौजूद था मुझे जैसे ही मां का ख्याल आता है मैं उन्हें इधर-उधर देखने लगता हूं लेकिन वह कहीं भी नहीं थी और ना ही वहां पर पापा थे.
कुछ देर बाद जब पंडित वधु को बुलाता है तब मां और बाकी गांव की महिलाएं एक कमरे से बाहर आती है और जाकर अपने अपने जगह पर बैठ जाती है मां जब कमरे से बाहर आती है तब मैं भीड़ में छुप जाता हूं ताकि वह मुझे देख ना सके.
मां शादी के जोड़े में काफी सुंदर लग रही थी पूरा शरीर सोने के गहनों से ढका हुआ था मैं समझ जाता हूं ये गहनों देने वाला मेरा दादाजी है. वह अपने पूरे जीवन की कमाई को मां के ऊपर लुटा चुका था.
मां को तड़ने वाला सिर्फ में एक नहीं था गांव के सारे मर्दों उसे ही ताड़ रहा था, यहां तक कि मंडप पर बैठे सारे मर्द मेरी मां को ही हसरत भरी निगाहों से देख रहा था.
1 घंटे बाद मां और दादा जी की शादी हो जाता है और सब कोई अपने अपने घर जाने लगता है, मैं पहले निकल जाता हूं ताकि मुझे मां से आंखें ना मिलाना पड़े.
और वैसे भी आधे दिन से मैं वही पर था मुझे घर जाकर दादाजी और मां का सुहागरात को देखने की तैयारी भी करना था