• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Incest माँ-बेटा:-एक सच्ची घटना

Esac

Maa ka diwana
238
1,158
124
  • Love
Reactions: mahesh_arpita_cpl

curious1964

New Member
58
19
8
Update 1



मै हितेश। बचपन से मैं अपने नाना नानी और माँ के साथ रह के बड़ा हुआ । फादर न रहने के कारन मेरे नाना नानी ने कभी कोई कमी नहीं छोड़ी प्यार और सपोर्ट देने में। माँ ने हमेशा आपनी ममता और प्यार से मुझे पाला। नाना के पास पैसा होने के कारण मुझे कभी कुछ भी चीज़ की कमी महसुस करने नहीं हुई। मैं बहुत ही अच्छा स्टूडेंट था इस लिए सब लोग मुझे प्यार ही प्यार देते थे। मैं बदमाशी भी करता था पर इतना नहीं जो की बिगडे बच्चे करते है। छोटा मोटा शरारत करता वह अपनी तरीके से माफ़ किया कर देते थे। पर हाँ...मुझे हमेशा अच्चा वैल्यूज और मोरालिटी के साथ की पाला । बाहर ज़ादा लोगों के साथ मेरी दोस्ती भी नहीं थी। नाना नानी और माँ सब मेरे दोस्त भी थे और टीचर भी। डांटते भी थे , फिर सीखाते भी थे। हम चारों का एक स्ट्रॉन्ग बॉन्डिंग था। मेरे पिताजी के गुजर जाने के कुछ साल बाद , मेरे नाना नानी ने मेरी माँ की दोबारा शादी करवाने के लिए कोशिश कि थी। तब मेरी माँ 20-21 साल की थी।

Outfits
और आज भी वो 24 - २5 की ही लगती है । बहुत सुन्दर देखने में। स्लिम और गोरी, लम्बे बाल था , पान के पत्ते जैसा मुह का शेप। उनकी आँखे , आय ब्रोव्स , नाक, होठ सब कोई अर्टिस्ट का बना हुआ लगता है। Bsc तक पढ़ी है।
उसके बाद जिन्दगी में हदसा और बाद में मेरी देख भाल करने में जुट गई। मेरी और कोई मौसी या मामा नही है । सो नाना नानी की वही देख भाल करती थी। घर का काम भी करती थी , फिर मुझे पढाती भी थी और टाइम मिलता तो वह बड़े बड़े लेखको के नावेल स्टोरी पड़ने में उस्ताद थी। एक बेटी होने के कारण नाना नानी भी उनका घर में रहने का सब बंदोबस्त कर दिये थे। मेरे नानी भी इतने ओल्ड नहीं थे। पर मेरी माँ मेरे पिताजी का फॅमिली नहीं होने के कारण नाना नानी के फॅमिली को ही अपनी फॅमिली समझ के सब की देखभाल करती थी। शायद इस में उनको ख़ुशी मिलती थी और वक़्त भी गुजारने का तरीका मिला था। वह शांत स्वाभाव की थी पर हंसी की बातों से हस्ती और टीवी में दुःख दर्द भरी फिल्म देखके मायूस भी हो जाती थी।
Bahut Badhia !
 

curious1964

New Member
58
19
8
ये स्टोरी Satish नाम के एक राइटर की है जो बहुत सी साइट्स पर पोस्टेड है इस कहानी का श्रेय पूरी तरह से उनको जाता है । लेकिन इस कहानी में जो एक चीज़ मुझे कम लगी वो थी इसमें पिक्चर्स और gifs का अभाव और लेखन का तरीका जो में पूरा करना चाहता हूं

Picsart-24-04-08-18-29-21-878
Can you provide the link of the original story ?
 

yanky_13111

DO NOT use any nude pictures in your Avatar
104
42
28
Update 24


अगले दिन, यानी कि संडे की सुबह, मुझे जल्दी उठना पड़ा क्योंकि घर में एक पूजा का आयोजन था। यह पूजा उस मन्नत की थी जो नानी ने मेरे लिए रखी थी जब मैं एक बार बीमार होकर अस्पताल में भर्ती था। सब कहते हैं कि शादी जैसे पवित्र बंधन में बंधने से पहले सारे उधार चुका देने चाहिए, इसलिए यह पूजा आयोजित की गई थी।


IMG-20240726-092208

पंडितजी हमारे परिवार के ही पंडितजी थे और उन्हें मेरे शादी के बारे में कुछ भी नहीं पता था। वे केवल मन्नत पूरी करने के लिए आए थे।



ड्राइंग रूम में पूजा हो रही थी। मैं पंडितजी के सामने बैठा था, नाना मेरे पीछे दाईं ओर थे, नानी उनके बगल में और माँ नानी के पास, यानी कि मेरे पीछे बैठी थीं।

पूजा खत्म होने के बाद पंडितजी ने मुझे नाना, नानी और माँ को प्रणाम करने को कहा। मैं अपने आसन से उठकर नाना के पास गया और उनके पैर छुए। फिर नानी के पास जाकर झुककर उनके भी पैर छुए। मेरे मन में यह सवाल नहीं था कि माँ के पैर छूने चाहिए या नहीं, क्योंकि वो मेरी माँ हैं।


हालांकि दो दिन में वह मेरी पत्नी बन जाएंगी, फिर भी मैं ज़िन्दगी भर उनके पैर छू सकता हूँ। पर नानी को लगा कि मैं दुविधा में था कि माँ के पैर अब छूना चाहिए या नहीं। इसलिए जैसे ही मैं नानी के पैर छूने गया, नानी ने मेरे सर पर हाथ रखकर आशीर्वाद दिया और मैं झुककर उनके सामने ही रह गया। तब नानी ने मुझे कहा, "अब जाओ, माँ के पैर छू लो।" शायद उन्होंने मुझे और माँ दोनों को यह संदेश देना चाहा कि शादी न होने तक हम माँ-बेटे ही हैं।

मैं माँ के पास गया और झुककर उनके पैर छुए। माँ सर झुकाकर खड़ी थीं। मुझे हमेशा उनके उन गुलाबी पैरों को चूमने का मन करता है, पर इस परिस्थिति में मैंने अपने मन से, एक बेटे की तरह, उसकी माँ के पैर छूने का भाव रखते हुए उनके पैर छुए।


पूजा थोड़ी देर से खत्म हुई, हम सबने लंच किया और फिर थोड़ा आराम करने लगे, क्योंकि शाम को हमें निकलकर ट्रेन पकड़नी थी और रातभर का सफर तय करना था। मुझे अब कुछ सोचने का मौका नहीं पा रहा था। सब कुछ इतना जल्दी हो रहा था। हम तैयार होकर, सारा सामान लेकर, टैक्सी से स्टेशन पहुँचे और समय होते ही ट्रेन में सवार हो गए।

माँ ने आज एक पिंक साड़ी पहनी हुई थी। उस साड़ी से और उनके चेहरे से जो चमक आ रही थी, वह सब मिलकर उन्हें बेहद खूबसूरत बना रहे थे।



38a9c34ccd4e395ed7e3adfa6ea61f60

मेरे मन में एक खुशी का झोंका सा आ गया। मैं सोच रहा था कि यह प्यारी, सुंदर, खूबसूरत और सेक्सी लड़की कुछ समय बाद मेरी बीवी बन जाएगी। और वह मेरी, केवल मेरी ही हो जाएगी।

मैं उन्हें देखता रहा और वह बस सबके सोने का इंतजाम करने लगीं। नाना-नानी नीचे की बर्थ पर सो गए। मैं और माँ ऊपर की बर्थ में थे। मैं अपने बर्थ पर लेटकर उनकी तरफ घूमकर केवल उन्हें ही देखता रहा। उन्होंने कुछ समय बाद इसे महसूस किया और फिर मेरी तरफ देखकर एक स्माइल दी, फिर शर्माकर मेरी सो गईं। मैं उनकी ओर देखते-देखते बहुत उत्तेजित हो गया। मेरा लन्ड फिर से सख्त होने लगा। उनकी पतली कमर और हिप्स पर नज़र गई।



IMG-20240726-094740

फिर ऊपर जाकर उनकी सुडौल गर्दन पर नजर पड़ते ही मैं उत्तेजना के चरम पर पहुँच गया और अनजाने में मेरा हाथ मेरे पजामे के अंदर जाकर मेरे लोड़े तक पहुंच गया।

मैंने बस एक बार मुठ्ठी से पकड़ के अपना लन्ड छू लिया और फिर थोड़ी देर बाद छोड़ दिया। खुद को नियंत्रित करते हुए, मैंने सोचा कि अब बस दो दिन और हैं। उसके बाद, मेरा लन्ड उस जगह में होगा जहाँ से वो दुनिया में आया था उस वक्त मैं संसार में सबसे अधिक आनंद महसूस करूँगा।

हम सुबह 5:30 बजे बांद्रा टर्मिनस पर उतर गए। गर्मी का मौसम था, और सुबह की नरम शीतल हवा बहुत अच्छी लग रही थी। नाना-नानी मुंबई आकर थोड़े उदासीन भी हो गए। नाना की शादी के बाद वे लोग कुछ दिन मुंबई में रहे थे। यहाँ नानाजी ने बिज़नेस शुरू किया था और बाद में अहमदाबाद शिफ्ट हो गए थे। वहीं माँ का जन्म हुआ था और आज तक वे वहीं अपना घर बना चुके थे। आज यहाँ फिर पूरे परिवार के साथ आकर वे थोड़े भावुक हो गए।

हम स्टेशन से टैक्सी लेकर उसमें सारे लगेज लोड करके रिसॉर्ट के लिए चल पड़े। करीब डेढ़ घंटे का रास्ता था। माँ सुबह से चुपचाप थीं, केवल नानी के साथ कुछ बातचीत कर रही थीं। मैंने नज़र चुराकर दो-चार बार उनको देख लिया। मेरा मन अब खुशी से हंस रहा था। माँ के अंदर भी एक खुशी की उत्तेजना फैली हुई थी, और यह उनके चेहरे, आँखों की हलचल और शारीरिक हरकतों से साफ झलक रहा था।

वह नानी के ही आस-पास घूम रही हैं, नानी के साथ ही चल रही हैं। वह मेरी तरफ देख ही नहीं रही हैं। मैं सोचता हूँ कि माँ के मन में क्या मेरे लिए, मेरे प्यार के लिए कोई तूफ़ान हो रहा है या यह केवल मेरे अंदर ही है? आज बहुत दिन बाद हम पूरी फॅमिली घर से एकसाथ बाहर आए हैं, सबको अच्छा लग रहा है। मैं भी माँ के साथ बहुत दिन से ऐसा दूर कहीं आया नहीं था, इसलिए आज इस मुंबई शहर में हम एकसाथ आकर हमारे बीच की बांडिंग सबको महसूस होने लगी है।

हम एक फॅमिली हैं, सब एक-दूसरे के लिए ही हैं, और अब तो और भी नज़दीक रिश्ते में जुड़ने जा रहे हैं। कोई अंजान लड़की नहीं, इस घर की बेटी ही इस घर की बहु बनकर आ रही है। इसी घर का बेटा इसी घर का दामाद बनकर ज़िन्दगी भर एक-दूसरे से जुड़े रहने का बंधन बाँधने जा रहा है।

टैक्सी में मैं ड्राइवर के पास बैठा हूँ। पीछे नाना, नानी और उनके पास माँ बैठी हुई हैं। आज ऐसा लग रहा है जैसे नानीजी की बेटी शादी करके दूर चली जाएगी, उनका घर खाली हो जाएगा। इसीलिए, जितना समय मिले, माँ और बेटी एक साथ रहकर अपने मन की प्यास मिटा पा रही हैं। नानाजी जाते-जाते एक-एक जगह दिखा रहे हैं और वहां की बातें बता रहे हैं। नानीजी भी बीच-बीच में उनका साथ देकर बातों का लिंक जोड़ रही हैं।

मैं आगे बैठा हूँ, पीछे नाना की बातें सुनने के लिए बीच-बीच में पीछे मुड़कर देख रहा हूँ और तभी एक झलक माँ को देख लेता हूँ। माँ बस बाहर की तरफ नजर टिकाए हुए हैं, लेकिन मालूम पड़ रहा है कि उनका मन हमारे बीच में ही है।


IMG-20240726-095916

उनके होठों पर हल्की सी मुस्कान और आँखों में लाज और शर्म की जो छाया दिख रही है, उससे पता चलता है कि वह मन में एक खुशी की अनुभूति महसूस कर रही हैं, पर एक बार भी मुझसे नजर नहीं मिला रही हैं।

बाहर से हवा आकर माँ के माथे के ऊपर के कुछ बाल उड़ाकर उनके चेहरे पर फेंक रही है।

IMG-20240726-100503
माँ बार-बार हाथ से उन बालों को हटाकर अपने कान के पीछे ले जाकर समेटने की कोशिश कर रही हैं।

उनके इस तरह हलकी-हलकी मुस्कुराते हुए चेहरे से बाल हटाने का स्टाइल देखकर मेरे मन में उनके लिए प्यार और सेक्स दोनों ही जाग रहा है। एक अनिर्वचनीय अनुभूति मुझे घेरे हुए है, और इसका पता चलता है मेरे जीन्स के अंदर मेरे लोड़े की बेचैनी से। मैं अपने लन्ड को दबाकर पैर के ऊपर दूसरे पैर चढ़ाकर, पीछे मुड़ने के लिए दाहिने हाथ को हेडरेस्ट के ऊपर रखकर तिरछा बैठा हुआ हूँ। नानाजी की बातें सुनने से ज्यादा मेरा इरादा माँ को चोरी-चोरी देखने का है। पर मैं इस तरह पीछे मुड़कर बैठा हूँ कि माँ को मेरे देखने का अहसास हो रहा है।

वह मेरे प्रति अपनी संवेदनाओं को शायद महसूस कर रही हैं, लेकिन अपनी नज़रों को बाहर से अंदर की ओर नहीं मोड़ रही हैं। पिछली बार, जब हम घर लौटे थे, मुझे उन्हें छूने का अवसर मिला था, लेकिन इस बार वह मेरे नज़दीक नहीं आ रही हैं। मैं उन्हें अपनी बाहों में भरकर, अपने सीने से लगा लेने की कल्पना कर रहा हूँ। उनके उड़ते बालों में अपनी नाक डूबोकर उनकी खुशबू लेने की इच्छा है, लेकिन शायद यह ख्वाहिश शादी से पहले पूरी नहीं हो सकेगी। सुहागरात में, मैं उनके तन और मन दोनों को प्यार और केवल प्यार से पूरी तरह भर देना चाहता हूँ। हम सुबह की खाली सड़क पर जल्दी से रिसोर्ट पहुँच गये।
Please aage ka update bhi dijiye...Shadi Aur Suhagraat ka bahut besabri se intezaar kar rahe hain....
 

Esac

Maa ka diwana
238
1,158
124
Update 25

हम सुबह के समय की खाली सड़कों को पार करते हुए जल्दी-जल्दी रिसोर्ट पहुंच गए। वहां हमारे स्वागत के लिए दो व्यक्ति पहले से ही मौजूद थे। हमारे आगमन का पूरा इंतजाम उन्होंने पहले से ही कर रखा था। जैसे ही टैक्सी रुकी, वे आगे बढ़कर हमसे परिचय करने लगे और मुझे दूल्हा और माँ को दुल्हन जानकर हम दोनों को बधाई दी।
फिर हमें हमारे ठहरने की जगह की ओर ले जाने लगे। कुल चार सूटकेस थे, क्योंकि माँ शादी के बाद सीधे मेरे साथ एमपी जाने वाली थीं, तो उनका कुछ सामान भी था जो वे अपने साथ रखना चाहती थीं। रिसोर्ट के दो बॉय हमारे सामान को हमारे कमरे तक ले जाने के लिए बुलाए गए।

रिसोर्ट बाहर से जितना बड़ा दिखता था, अंदर जाने पर उसकी विशालता का और भी अधिक अंदाजा हुआ। बाईं ओर रेस्टॉरेंट, डिस्को और पूलसाइड पब था।



images-7

सीधे आगे एक दो-मंजिला इमारत थी। दाईं ओर का पूरा क्षेत्र खाली था, जिसमें हरी घास को अच्छी तरह से मेंटेन किया गया था।

images-8

यहां विभिन्न समारोहों और ओपन मैरिज पार्टियों के लिए जगह थी। गेट के बाहर एक पार्किंग एरिया भी था जिसे मैंने आते समय देखा था।

हम जैसे ही थोड़ा आगे जाकर दाईं ओर मुड़े, वहां एक विशाल क्षेत्र में छोटे-छोटे टेंट जैसे कॉटेज बने हुए थे।
बीच में एक लंबा और संकरा पानी का पूल था, जिसमें से फव्वारे उठ रहे थे, और उसके चारों तरफ वे कॉटेज थे।


IMG-20240729-210932

रिसोर्ट के कर्मचारी हमें वहां ले गए और बताया कि वे सभी शादी में आने वाले मेहमानों और परिवार के सदस्यों को यहां रुकवाते हैं।

उन्होंने यह भी बताया कि वह दो-मंजिला इमारत केवल इनसाइड बुफे और शादी के लिए हॉल के रूप में बनाई गई है, जहां पार्टी भी हो सकती है। बाकी एडमिनिस्ट्रेटिव सेक्शन और पीछे किचन और कैटरिंग का इंतजाम है। फिलहाल दो शादियों का अरेंजमेंट चल रहा है। बुधवार को एक बड़ी शादी की बुकिंग है और कल की शादी के लिए बस हम लोग हैं। हमारा छोटा कार्यक्रम है, इसलिए वो सब कुछ सामने वाली बिल्डिंग के अंदर ही अरेंज किया गया है।

हमारे लिए केवल दो कॉटेज बुक किए गए थे। दोनों फैमिली कॉटेज थे। एक में माँ और नानी चली गईं और दूसरे में मैं और नानाजी। उन दो आदमियों में से एक हमारी बुकिंग का हेड था। उनके देखभाल में ही यह शादी का कार्यक्रम संपन्न होना था।

जैसे ही हम कॉटेज के अंदर घुसे, तो चौंक गए।


IMG-20240729-211614

बाहर से पता नहीं लगता था कि अंदर इतना सुंदर और सुव्यवस्थित होगा। विशाल क्षेत्र में दोनों तरफ दो डबल बेड रूम थे। बैठने का इंतजाम में सोफा और सेंटर टेबल रखा हुआ था। दीवार पर बड़ा एलसीडी टीवी लगा हुआ था। एक फ्रिज था और अपोजिट वाल पर एक बड़ा खिड़की थी,

IMG-20240729-213035

जिसके बाहर पेड़ों की लंबी कतार थी और उसके पार समुद्र था, जहां प्राइवेट जेट बनाकर वे लोग प्राइवेट स्टीमर हनीमून के लिए देते हैं।

मैं बाथरूम चेक करने गया और बड़ा बाथरूम में सभी आधुनिक सुविधाओं का इंतजाम था। बाथरूम से बाहर आते ही वह मैनेजर साहब नानाजी को बताने लगे कि क्या-क्या और कैसे कार्यक्रम सेट किया हुआ है। उन्होंने एक प्रिंटेड पेपर दिया, जिसमें सब डिटेल के साथ टाइम के अनुसार लिखा हुआ था। कब हल्दी की रस्म होगी, कब रिंग सेरेमनी होगी, कब रजिस्ट्री साइनिंग होगी, कब शादी होगी, इत्यादि सब कुछ लिखा हुआ था। हमारे कोई गेस्ट नहीं थे, इसलिए रिसेप्शन और फ़ूड की जगह पर क्रॉस किया हुआ था।

मैं उनसे वह चार्ट लेकर देख रहा था। आज दो रस्में सेट की गई हैं। दोपहर को हल्दी है और शाम को रिंग सेरेमनी। वह आदमी बता रहे थे कि यहाँ के पंडितजी के मुताबिक, उनके दिए हुए समय का पालन करके हमने यह चार्ट बनाया है। सभी रस्में और तरीके शास्त्र सम्मति से यहाँ संपन्न होते हैं। उन्होंने अपना मोबाइल नंबर भी दिया और बताया कि कोई भी समस्या होने पर उन्हें सीधे कॉल कर सकते हैं।

दोपहर में हल्दी रस्म ठीक समय पर शुरू हो जाएगी और हमें लेने के लिए वे आएंगे। वो मैनेजर हमें फ्रेश होने के लिए कहकर और रूम पर ही ब्रेकफास्ट भेजने की सूचना देकर, हमें स्वागत और शुभकामनाएं देकर निकल गए। नानाजी मुझे फ्रेश होने के लिए कहकर, वह प्रिंटेड चार्ट लेकर नानी के रूम पर चले गए। नानी को भी पूरी जानकारी देनी थी। माँ को भी पता चल जाएगा कि कब और कैसे क्या होगा।
मैं फ्रेश होने के लिए बाथरूम में चला गया।

जब मैं फ्रेश होकर बाथरूम से निकला, तब नानाजी रूम में वापस आ गए। उनके हाथ में कुछ कपड़े थे, जो वो उन्होंने नानी के रूम में रखी हुई सूटकेस से लाए थे। मुझे बाहर निकलते हुए देखकर उन्होंने कहा,
"अब तो सोने का ज्यादा समय नहीं मिलेगा। 11:30 बजे हल्दी की रस्म है। मैंने तुम्हारी नानी को भी बता दिया। वह लोग भी फ्रेश होकर ब्रेकफास्ट करके बस थोड़ी देर आराम कर लेंगी और फिर तैयार हो जाएंगी हल्दी के लिए।"

यह सुनकर मैंने थोड़ी शर्म और खुशी महसूस की। नाना-नानी खुद मेरे और माँ के इस रिश्ते को चाहते हैं। वे अपने हाथों से हमारे इस नए रिश्ते को जोड़ रहे हैं और हमें हमारे नए रिश्ते में कदम रखने के रास्ते में हर मोड़ पर हमारा साथ दे रहे हैं। उनका समर्पण और स्नेह मेरे दिल को छू रहा था। वे भी चाहते हैं कि उनकी एकलौती बेटी, जिसने जीवन सिर्फ दुःख और अकेलेपन के सहारे जीया है, अब वह खुशियों के पलों में बदल जाए और उसकी ज़िंदगी हर लड़की की तरह अपने पति के साथ गुजरे और उसमे जो सुख और शांति मिलती है, वह पा सके। और फिर, मैं उनका इकलौता पोता भी हूँ। बचपन से उनका सारा प्यार और ममता मेरे ऊपर ही बरसा है। इसीलिए वे भी चाहते हैं कि उनका ही पोता अब उनके ही घर में दामाद बनकर रहेगा और सब मिलकर एक ख़ुशी के महल में ज़िंदगी गुजारेंगे। इसलिए वे इस शादी को शास्त्रानुसार सारी रस्मों और प्रक्रियाओं के साथ पूरा करना चाहते हैं।

मैं इन सब ख्यालों में खोया हुआ था। नानाजी बाथरूम जाते समय बोले,
"मैं तुम्हारी नानी को बता आया हूँ। वह सूटकेस उनके रूम में है। वह वहां से तुम्हारे नए कपड़े दे जाएंगी।"

जाने लगे तो मैंने सोचकर कहा,
"नानाजी... यह लोग..."

मेरी बात ख़त्म होने से पहले नानाजी मेरी तरफ देखकर मेरी बात काटते हुए, थोड़ी मुस्कान के साथ एकदम साफ लहजे में कहा,
"बेटा... पापा..."

मैं उनकी यह बात सुनकर उनके सामने शर्मिंदा हो गया। फिर हल्का हंसकर उनसे नज़र हटाकर धीरे से कहा, "ठीक है... पापा..."

नानाजी ने मुझे उस हालत से निकालने के लिए और मेरे साथ देने के लिए शांत भाव से कहा,
"कहो, क्या कह रहे थे?"

मेरे अंदर एक तूफ़ान सा चल रहा है। आज पहली बार मैंने नाना को पापा कहा, और हमारा रिश्ता कुछ ही समय में शास्त्र सम्मत तरीके से स्थायी हो जाएगा। मैंने उनकी ओर देखकर कहा,
"रिजॉर्ट वालो ने बताया था कि यहाँ आकर पूरा भुगतान करना होगा। लेकिन इस मैनेजर ने इस बारे में कुछ नहीं कहा।"

नानाजी ने याद किया और उत्तर दिया,
"हाँ, बुकिंग के समय 25% लिया गया था। अब देखते हैं, ब्रेकफास्ट के बाद शायद जानकारी मिल जाए। कोई बात नहीं, जब भी कहेगा, दे देंगे।"

बोलकर नानाजी अपने कपड़े लेकर बाथरूम में चले गए। मैं अकेला होते ही मेरी शर्म धीरे-धीरे कम होने लगी और मैंने फिर से प्रिंटेड शेड्यूल पर ध्यान दिया। आज दो रस्मों के बाद, कल सुबह रजिस्ट्री अधिकारी आएंगे जिसके बाद माँ और मैं कागज़ पर साइन करके हमारी रजिस्ट्री मैरिज करेंगे। आजकल यह आवश्यक हो गया है, वरना भविष्य में इन पेपर्स के बिना बहुत सी समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं। इसलिए यहाँ भी ये लोग कानून के अनुसार सरकारी अधिकारी को बुलाकर मैरिज पार्टी को यह सुविधा उपलब्ध कराते हैं। मुझे भी अपने पासपोर्ट या बैंक अकाउंट में माँ का नाम पत्नी के रूप में दर्ज कराना पड़ेगा। तब ये सभी पेपर्स जरूरी होंगे।

उसके बाद दूल्हा और दुल्हन को यहाँ के मेकअप एक्सपर्ट सजाएँगे। दूल्हा पहले पूजा में बैठेगा। पूजा समाप्त होने तक दुल्हन की सजावट पूरी हो जाएगी और वह दूल्हे के पास बैठेंगी, और शादी का वास्तविक कार्यक्रम शुरू होगा। मैं यह सब पढ़ते-पढ़ते माँ के चेहरे की कल्पना कर रहा था;



images-9

दुल्हन के रूप में वह और भी प्यारी और खूबसूरत लगेंगी। तभी अचानक नानीजी आईं और बताया कि उनके रूम में नया सूटकेस खुल नहीं रहा है। नानाजी बाथरूम में थे, इसलिए मैंने ही जाकर देखा।

मेरे रूम के बगल वाला रूम ही उनका था; मेरे रूम की तरह दो बेड और अन्य सभी सुविधाएँ थीं। माँ फ्रेश होकर एक दूसरी साड़ी पहनकर सूटकेस खोलने की कोशिश कर रही थीं।


IMG-20240729-220332-071

उन्होंने साड़ी को कमर में कसकर और पेट के पास समेट रखा था। साड़ी उनके शरीर के हर कर्व को लपेटे हुए थी। उन्हें देखकर मेरे अंदर एक तीव्र इच्छा जागृत होने लगी। उन्हें अपनी बाहों में लेकर किस्स करने की ख्वाहिश मन में उठने लगी, और जैसे ही दिल और दिमाग ने यह इच्छा की, वह अनुभूति मेरे खून में दौड़ गई और मेरे लोड़े में गहराई से समा गई। हालांकि, मैंने खुद को काबू में रखा।

जब मैं अंदर आया, तो माँ ने मुझे देखकर ऊपर की तरफ नज़र उठाई। जैसे ही हमारी नज़रें मिलीं, उन्होंने झट से अपनी आँखें घुमा लीं और उनके चेहरे पर ख़ुशी और शर्म के मिश्रण से लालिमा आ गई। नानीजी ने सूटकेस दिखाते हुए कहा,
"मैंने और मंजू ने बहुत कोशिश की, फिर भी सूटकेस खुल नहीं रहा है।"

मैंने देखा कि वही सूटकेस था जिसमें शादी के सभी कपड़े और सामग्री रखी हुई थी।

सूटकेस के पास अपने घुटनों के बल बैठी माँ को सूटकेस खोलने की कोशिश करते हुए देख कर मैंने कहा,
"मैं देखता हूँ।"

फिर मैंने आगे बढ़कर माँ के सामने एक घुटना फर्श पर टिकाकर सूटकेस को पकड़ लिया। माँ ने तुरंत अपना हाथ सूटकेस से हटा लिया और दोनों घुटनों के बल फर्श पर बैठ गईं। उनकी नजरें झुकी हुई थीं। नानी मेरे पीछे खड़ी थीं और अहमदाबाद से खरीदे गए उस नए सूटकेस की खराब क्वालिटी के बारे में शिकायत कर रही थीं।

मैंने आँखें चुराकर माँ को देखा और सूटकेस खोलने की कोशिश की। माँ समझ गईं कि मैं उन्हें नानी से छुपकर देख रहा हूँ। हमारे बीच केवल एक सूटकेस का फासला था।

सूटकेस का साइड क्लैप टाइट होकर फंस गया था। माँ और नानी ने कई बार प्रेस करके भी उसे खोल नहीं पाईं। मैं घुटनों के बल बैठकर अपने दोनों कोहनियों से सूटकेस के ऊपर प्रेशर दे रहा था और माँ के साइड पर जो क्लैप था, उसे खोलने की कोशिश कर रहा था। मैं सूटकेस के ऊपर थोड़ा झुक गया था, जिससे मैं माँ के और नज़दीक आ गया।

मैं लगातार माँ को देख-देखकर काम कर रहा था और वह बस घुटनों के बल बैठकर, दोनों हाथ गोद में रखकर, नजरें नीची किए चुपचाप बैठी थीं। वह मुझे देख नहीं रही थीं, पर उनके होंठों पर एक हल्की मुस्कान थी। मुझे मालूम था कि यह मुस्कान मेरे लिए थी। नानी के सामने मेरी उपस्थिति के कारण वह शर्मिंदा हो गई थीं और सहज होने के लिए शांत होकर बैठी थीं।

नानी पीछे दूसरे सूटकेस, जिसमें उनका और नानाजी का सामान था, उसे खोलकर कपड़े निकाल रही थीं। मैंने पीछे एक बार देखा कि नानी हमें देख नहीं रही थीं। हमारी तरफ नानी का पीठ था और उनका ध्यान सूटकेस के सामान पर था। अचानक, प्रेशर देने से वह क्लैप खुल गया और एक हल्की आवाज़ निकली। माँ ने नज़र घुमाकर मेरे हाथ की तरफ देखा और समझ गईं कि सूटकेस खुल गया है। लेकिन मेरे अंदर एक शरारत चढ़ रही थी। मैंने फिर से नानी को देखा; वह अभी भी बकबक करते हुए कपड़े निकाल रही थीं। समझ में आया कि क्लैप खोलने की आवाज़ उन तक नहीं पहुँची थी।

मैंने अपने हाथ से क्लैप को पकड़ रखा था और उसी स्थिति में बैठा था। मैंने माँ की तरफ नज़र उठाकर सीधे उनकी ओर देखा। माँ ने भी एक बार नज़र उठाकर मुझे देखा और फिर नज़रें झुका लीं। मेरी बॉडी उनके पास ही थी, बीच का फासला ज्यादा नहीं था क्योंकि मैं अपने ऊपरी शरीर को सूटकेस के ऊपर लाकर प्रेशर दे रहा था। तभी मैंने जोर से कहा,
"नानीजी, यह तो टाइट होकर बैठ गया है। और प्रेशर लगाना पड़ेगा।"


मेरी इस बात पर माँ झट से मेरे चेहरे की तरफ देखी और कुछ न समझते हुए एक सरप्राइज्ड लुक लेकर मुझे देखती रह गईं। मेरे होंठों पर एक हल्की मुस्कान आई। तब नानी ने हमें पीछे मुड़कर देखा और कहा,
"मंजू, बेटा तू थोड़ा प्रेशर लगा दे,"

और फिर काम में बिजी हो गईं। माँ मेरी तरफ देख कर मेरी बदमाशी समझ गईं। वह और शर्म से लाल हो गईं। कुछ पल वह वैसे ही बैठी रहीं, और मैं उन पर नज़र टिकाए देख रहा था।

थोड़ी देर बाद माँ ने अपने कोमल और नाजुक हाथ बढ़ाकर सूटकेस के ऊपर रखा और घुटनों के बल बैठकर अपनी बॉडी को थोड़ा उठाकर सूटकेस के पास लाईं। अब हमारे बीच कोई दूरी नहीं रही। मैं प्रेशर लगाने की एक्टिंग करता रहा और वह धीरे-धीरे प्रेशर देने लगीं। वह बिलकुल नज़र नहीं उठा रही थीं। मैंने धीरे-धीरे अपने हाथ सूटकेस के क्लैप से हटाकर उनके लंबी-लंबी नरम उँगलियों पर अपने उँगलियाँ टच करने लगा। उनकी उँगलियों पर हल्की गुलाबी नेलपॉलिश लगी हुई थी।


touch-fingers

मैंने अपनी कुछ उँगलियों से उनकी उँगलियाँ पकड़ने की कोशिश की, पर वह अपनी उँगलियाँ मोड़कर हाथ धीरे-धीरे खिसकाकर दूर कर रही थीं। मेरा सिर उनके सिर को टच कर रहा था। मैंने इंटेंशनली अपना सिर उनके माथे पर लगाकर हल्का सा प्रेशर देना शुरू कर दिया।

मेरा दाहिना कंधा अब उनके बाएँ कंधे को छूने को जा रहा था। कुछ पल बाद माँ ने अपने हाथ को मेरे हाथ के स्पर्श से दूर नहीं किया। वह मेरे स्पर्श को रोक नहीं रही थीं। मेरा कंधा अब उनके कंधे से रगड़ने लगा। उनके ब्लाउस की स्लीव के ऊपर से हल्की गर्मी मेरे शरीर में आने लगी। एक हफ्ते बाद हम एक-दूसरे का स्पर्श महसूस कर रहे थे। अब हम दोनों ही समझ गए थे कि हमारा मन और तन एक-दूसरे के प्यार को पाने और महसूस करने के लिए तरस रहे हैं।

IMG-20240730-145130

बस थोड़ी देर बाद हल्दी होगी। हम कानूनी पति-पत्नी बनने की तरफ कदम रखना शुरू करेंगे। इस बात पर दोनों के मन और तन में एक अजीब अनुभूति छाई हुई थी, इसलिए दोनों ही नानी की मौजूदगी में चोरी-चोरी एक-दूसरे को महसूस करने लगे। मैं अपनी नाक उनके कान के ऊपर बालों में हल्का टच करके उनके बालों की खुशबू लेने की कोशिश कर रहा था।

अचानक दरवाज़े पर खटखटाहट हुई। ब्रेकफास्ट लेकर मैनेजर और एक लेडी खड़ी थीं। उन्हें देखते ही माँ झट से सूटकेस के ऊपर से अलग हो गईं। नानी ने उन लोगों को अंदर आकर ब्रेकफास्ट रखने को कहा। तभी मैंने क्लैप खुलने का नाटक करते हुए खड़ा हो गया और नानी से कहा,

"सूटकेस के साइड में कपड़ा फँसकर टाइट बँध गया था।"

नानी मेरी तरफ देखकर हल्की मुस्कान दीं और शायद कुछ कहने ही वाली थीं कि मैनेजर ने मुझे देखकर कहा,

"Sir, Mr. Patel is not in his room. We want to meet him once."

मैं समझ गया कि वह अब पेमेंट की बात करने आए हैं। मैंने उनसे कहा,

"No no, he is there. He has just gone to freshen up."

कहकर मैं वहां से जाने लगा। जाते वक्त एक बार माँ को चुपके से देखा। वह वहीं बैठकर सूटकेस खोल रही थीं और मुझे ऊपर से उनके कंधे और बूब्स का ऊपरी हिस्सा ब्लाउस के ऊपर वाले हिस्से से दिखाई दे रहा था।


Picsart-24-07-30-15-00-38-504

मेरे अंदर उन्हें अपना बनाकर पाने की चाहत और भी तेज़ हो गई।

मैं अपने कमरे में आते ही देखा कि नानाजी बाथरूम से बाहर आ चुके थे। नए कुर्ता-पाजामा में नानाजी अच्छे लग रहे थे। मैनेजर ने उनसे पेमेंट की बात की। नानाजी ने कहा कि नाश्ता करने के बाद वह ऑफिस में जाकर पेमेंट कर देंगे। मैनेजर ने कहा कि वह वहीं रहेगा।

नाश्ता करके जब नानाजी जा रहे थे, तो मैंने कहा,

"पापा, मैं भी चलता हूँ।"

वह मेरी तरफ देखकर मुस्कुराए और शांत आवाज़ में बोले,

"अरे, तुम आराम करो। अभी फिर हल्दी के लिए तैयार होना है। मैं बस यह सब चुका के आ जाता हूँ।"

फिर एक बार मुस्कान देकर नानाजी चले गए। मैं कमरे में अकेला बिस्तर पर आँखें बंद करके लेट गया और थोड़ी देर पहले माँ के स्पर्श की अनुभूति महसूस करने लगा। मुझे आज स्पष्ट पता चल गया था कि वह भी मेरा स्पर्श पाने के लिए, मेरा प्यार पाने के लिए पूरी तरह से समर्पण करने के लिए तैयार हैं। उन्होंने अपने हर रोम-रोम में मेरे प्यार को महसूस करने के लिए खुद को सजाकर रखा हैं। मैं उनके जैसी खूबसूरत और प्यारी पत्नी पाकर सचमुच अपने आप में खोने लगा।

शायद मेरी आँख लग गई थी। अचानक नानी की आवाज़ से नींद टूट गई। नानी ने झुककर चेहरे पर एक मुस्कान के साथ मुझे जगाते हुए कहा,

"उठ जाओ, बेटा। मैंने तुम्हारे नए कपड़े वहां रख दिए हैं। जल्दी से तैयार हो जाओ।"

कहकर हँसते-हँसते मेरे बिस्तर पर बैठ गईं। मुझे दोनों बातों से शर्म आ रही थी। एक तो पिछली रात ट्रेन में न सोने के कारण अब मैं सो गया था, दूसरी बात यह थी कि नानी मुझे इस तरह मुस्कान के साथ हल्दी की रस्म के लिए बुलाने आई थीं। मैं उठकर बैठा और जैसे बहाना देने के लिए बोला,

"सॉरी, नानी... वह..."

नानी ने अब अपने दाहिने हाथ से मेरे गाल को छुआ और आँखों में एक माँ की ममता भरकर प्यार से वैसी ही मुस्कान के साथ धीरे से बोलीं,

"अब तू मेरा दामाद बनने जा रहा है। और दामाद अपनी सास को क्या कहते हैं? उम..."

मैं शर्म के मारे पानी-पानी हो गया। मैंने सिर झुका लिया। और नानी, एक चिंतित माँ की तरह अपनी आवाज़ में एक इमोशन मिलाकर फिर बोलीं,

"मैं अपनी एकलौती बेटी को तुझे सौंप रही हूँ। अब तुझे उसका ख्याल रखना है। ज़िंदगी भर उसे खुश रखना है। रखेगा न मेरी बेटी को खुश?"
 
Top