Nice update....Update 29
मैं पंडितजी के सामने बैठकर उनका कहना मान रहा हूँ। पंडितजी ने पूजा शुरू कर दी है। वह नानाजी से दूल्हा और दुल्हन का नाम और उनके माता-पिता का नाम पूछ रहे हैं। नानाजी ने मेरा नाम हीतेश बताया और माता-पिता का नाम दीपिका और अरुण बताया। मुझे थोड़ी देर के लिए समझ नहीं आया, पर जल्दी ही याद आया कि माँ का नाम उनकी जन्म कुंडली में दीपिका ही लिखा हुआ है।.
सब कुछ साफ हो गया फिर दुल्हन का नाम मंजु और माता-पिता के नाम के लिए नानाजी ने खुद का और नानी का ही नाम बताया। पंडितजी ने पूजा शुरू कर दी।.
कुछ महिलाएँ वहीं चारों ओर बैठ गईं। मेरे अंदर एक शर्म और उत्तेजना का मिश्रण महसूस हो रहा है, क्योंकि मुहूर्त का समय आने ही वाला है। तभी पंडितजी ने पूजा के बीच में कहा कि दुल्हन को बुलाइए।
मेरे दिल की धड़कन तेज हो गई। वह पल अब बहुत करीब है, जब मेरी माँ, मेरी मंजु, मेरी पत्नी बनने जा रही है।
मनुष्य का मन और दिमाग उसकी ज़िन्दगी के हर दिन, हर पल, हर क्षण को याद नहीं रख पाता। उसके जीवन में कुछ दिन, कुछ पल, कुछ घटनाएँ ही होती हैं, जो जीवनभर के लिए स्मृतियों में बस जाती हैं। ये स्मृतियाँ कभी-कभी पीड़ा और कष्ट देती हैं, तो कभी-कभी अपार खुशी और आनंद का एहसास कराती हैं। हमारे सभी जीवन इसी नियम से चलते हैं।
आज मेरे जीवन का वह दिन है, जिसे मैं शायद अंतिम सांस तक हर मोमेंट को याद करना चाहूंगा, मेरा मन, ज़िन्दगी में कभी भी, कहीं भी, इन पलों को याद कर, अभी महसूस की गई खुशी के एहसासों को फिर से जीवंत कर, उनके मिठास का एहसास कराता रहेगा।
मैं अपनी जगह पर बैठा था, और वहां मौजूद सभी लोग दुल्हन के आगमन के लिए उत्सुकता से इंतजार कर रहे थे। मेरे मन में एक तूफान सा चल रहा था। यह वही घड़ी थी जिसकी याद में इतने दिन गुजारे थे। यह वह पल था जो मेरे और माँ की जिंदगी को एक नई दिशा में ले जाकर एक नए रिश्ते में जोड़ देगा। हमारे बीच के माँ-बेटे के बंधन के साथ पति-पत्नी का प्यार भरा रिश्ता जुड़ जाएगा। मैं व्याकुल मन लेकर माँ को दुल्हन के रूप में देखने के लिए पागल हो रहा था।
मेरे इस चिंता के बीच, वहां मौजूद सभी लोगों की आनंदमय ध्वनि और मंगलमय आवाजों के साथ मैंने अपने बाईं ओर दरवाजे की ओर देखा। माँ ने अपनी दुल्हन की भेष में हॉल में प्रवेश किया।
दो आदमियों ने उनके ऊपर एक पर्दे जैसा कुछ उठाकर रखा था। वह अपना सिर झुकाकर, धीरे-धीरे कदमों से पूजा की ओर आने लगीं। नानाजी उनके बगल में अपने दोनों हाथों से माँ को पकड़कर ला रहे थे। यह मालूम पड़ रहा था कि माँ ने एक सुंदर लाल, मरून रंग का सुनहरे डिज़ाइन वाला लहंगा पहना हुआ था।
जिसे मैं बचपन से प्यार करता हूँ, जिसने मुझे प्यार देकर बड़ा किया, वह औरत, मेरी मंजू, मेरी मां, आज मेरी धर्मपत्नी बन रही है। हाँ, यह बात सही है कि आज तक मैंने अपने मन की गहराई में, उन्हें सोचकर, उनके शरीर के एक-एक अंग की कल्पना करके, एक आदमी का एक औरत के लिए जो प्यार होता है, वह प्यार उनसे किया है। और आज इस मुहूर्त के बाद बस वह मेरी हो जाएगी, केवल मेरी। जिसके साथ मैं अपना खुद का परिवार बनाकर, पूरी जिंदगी जीने की ख्वाहिश रखता हूँ।
नानीजी ने मुझे देखा, हमारी नज़रें मिलीं। वह बस होंठों पर एक मुस्कान लेकर मुझे देख रही थीं, फिर माँ की तरफ देखकर उनके कान में धीरे-धीरे कुछ बोलीं। मुझे माँ का एक्सप्रेशन तो दिखाई नहीं दिया, पर नानी अपनी मुस्कान को और चौड़ी करके हँसने लगीं। माँ शायद शर्म और खुशी की मिली-जुली अनुभूति से और सिर झुकाकर नानी के हाथ के बंधन के अंदर पिघलने लगीं। चारों तरफ से सब लेडीज की खुशी और मंगलमय आवाजें मेरे कानों में रस घोलने लगीं। सामने मेरी माँ को अपनी दुल्हन के रूप में आते हुए देखकर मैं बस एक नई अनुभूति में डूबने लगा।
इस पल ने मेरे मन को आश्चर्य और आनंद से भर दिया, एक ऐसा एहसास जिसे शब्दों में बयान करना मुश्किल है। माँ का लाल और सुनहरे डिज़ाइन वाला लहंगा उनकी सुंदरता को और भी बढ़ा रहा था। उनके हर कदम के साथ मेरा दिल धड़क रहा था, और मैं सोच रहा था कि अब से थोड़ी ही देर में, वह मेरी धर्मपत्नी बन जाएँगी। इस नए रिश्ते के बंधन में बंधने की खुशी और गर्व मेरे दिल में उमड़ रहा था। यह वह क्षण था जिसे मैं जीवन भर अपने दिल के करीब रखूंगा, एक ऐसी याद जो हमेशा मेरे साथ रहेगी।
माँ मेरे नजदीक आते ही पण्डितजी ने मुझे निर्देश दिया कि आगे के कार्यक्रम के लिए क्या करना है। उनके कहे मुताबिक, मैं पूरी तरह माँ की तरफ घूम गया। अब माँ मेरे नजदीक खड़ी हैं, दुल्हन के भेष मे। मैं उनकी तरफ देखते ही, पण्डितजी के एक आदमी ने मुझे एक फूलों का हार थमा दिया और पण्डितजी ने वरमाला एक्सचेंज करने का निर्देश दिया। सभी औरतें जोर-जोर से हर्षध्वनि करने लगीं। नानी अपने चेहरे पर खुशी की हंसी लेकर माँ को एकदम नजदीक पकड़े हुए थीं।
माँ के सिर के ऊपर चुनरी घूंघट बनकर रखा हुआ था। बालों को अच्छी तरह डिज़ाइन करके पीछे बांधा हुआ था। सिर पर सोने की बिंदिया मांग के ऊपर चमक रही थी। चेहरे पर नई दुल्हन का मेकअप था। माँ की त्वचा हमेशा से मक्खन जैसी मुलायम और गोरी रही है, पर आज वह इस साज में एकदम किसी अप्सरा जैसी लग रही थीं।
वह बस एक 18 साल की जवान लड़की लगने लगीं, जिनका रूप शादी के स्पर्श से और भी निखरने लगा है। आँखें झुकी हुई हैं, पर उनमें काजल और हल्का सा मेकअप किया हुआ है। नाक में सोने की नथ ने उनके चेहरे को एकदम अलग बना दिया है। शादी की ख़ुशी का अनुभव, शर्म, और एक अनजानी उत्तेजना के कारण उनकी नाक का अगला भाग सांस के साथ-साथ थोड़ा-थोड़ा काँप रहा है। मेरे अंदर का वह अज्ञात अनुभव बढ़कर चरम सीमा पर पहुँच गया जब मैंने उनके दो पतले गुलाबी होठों को देखा। उनके होठ स्वाभाविक रूप से गुलाबी हैं, और लिपस्टिक के कारण वे और भी लोभनीय बन गए हैं।
इतने करीब से देखकर मुझे लगा कि वे रस में भरे हुए संतरे के दो मीठे फांक हैं। उन होठों पर एक ख़ुशी की मुस्कान सजी हुई है। मुझे बस अपने अंदर यह इच्छा हुई कि मैं उन होठों को अपने होठों से मिलाकर उनके अंदर भरे हुए रस का स्वाद चख लूँ। मैं अंदर ही अंदर काँपने लगा।
मैं माँ को बचपन से जानता हूँ, बचपन से उन्हें हर रूप में देखते आ रहा हूँ। शायद इसलिए शादी के तनाव से अधिक उन्हें पाने की चाहत मेरे अंदर उमड़ने लगी।
उनके साथ मिलन का इंतजार वर्षों से चल रहा था। आज मेरा मन बस उन्हें पूरी तरह से अपनी बाँहों में समेटने को बेताब था। मैंने कुछ पल उन्हें ऐसे देखा कि खुद सबके सामने शर्मा गया। मेरी नज़र हटते ही नानी की नज़र से मिली। नानी ख़ुशी और ममता भरी निगाहों से मुझे देख रही थीं। वह चाहती थीं कि आज उनकी बेटी को अपने हाथों से मेरे हाथ में सौंपकर हमें एक नए रिश्ते में जोड़ दें, और हम सबकी ज़िंदगी ख़ुशी और शांति से बीते।
माँ मेरे सामने सर को थोड़ा झुका कर, नज़र नीचे करके खड़ी हैं। उनके हाथ में भी मेरे जैसे एक फूलों की वरमाला है। उनके मेहँदी लगे हुए हाथ उनकी दुल्हन के रूप को खूबसूरती से बढ़ा रहे हैं। उनकी गर्दन में सोने का डिज़ाइन किया हुआ चौड़ा नेकलेस और कान में सुंदर सोने के झूमके हैं। हाथों में सोने के विभिन्न डिज़ाइन के कंगन हैं। वह आज मन से अपने बेटे को पति का अधिकार देने के लिए दुल्हन के भेष में मेरे सामने शर्माती हुई खड़ी हैं। चारों ओर ख़ुशी और आनंद का माहौल व्याप्त है।
मेरे पास नानाजी और माँ के पास नानीजी खड़ी होकर हमें अपने बच्चों की तरह पूरी तरह से सहयोग दे रहें हैं। हवन की पवित्र आग के सामने, हम माँ-बेटे पंडितजी के मंत्रों के उच्चारण के बीच एक-दूसरे को पहली बार सबके सामने नज़र उठाकर अपनी चारों आँखें एक करने लगे। मैं माँ को देख रहा था। वह अपनी नज़र धीरे-धीरे उठाकर फिर झुका रही थीं। मुझे मालूम था कि वह एक कुंवारी लड़की की तरह महसूस कर रही थीं। उनकी पलकें बार-बार ऊपर उठ रही थीं और फिर नीचे जाकर मेरी नज़र से मिलाने में शर्मा रही थीं, अपने माँ-पापा के सामने। पंडितजी के मंत्र चल रहे थे। पवित्र आग की आभा ने उनके गालों को और लाल कर दिया। तभी माँ ने अपनी नज़र उठाकर मेरे साथ नज़र मिलाई। सभी लोग ताली बजाकर और ख़ुशी की आवाज़ से इस मुहूर्त को खास बना रहे थे।
माँ की नज़र में मेरे प्रति उनका प्यार, देखभाल, और खुद को मेरे पास सौंपने की चाहत सब कुछ झलक रहा था। उनके चेहरे पर आज जो भावनाओं का साया छाया हुआ था, वह केवल एक पत्नी के भावनाओं का होता है अपने पति के लिए। हम एक-दूसरे को देखकर अपनी आँखों की भाषा और ख़ामोशी की भाषा से कसम खा रहे थे, उस पवित्र अग्नि के सामने, कुछ ही पलों में। वह पल हमारे जीवन का सबसे अहम पल था।
पंडितजी ने वरमाला बदलने का निर्देश दिया। तभी माँ ने अपनी नज़र झुका ली। मैंने अपनी माला धीरे-धीरे ऊपर उठाई, मेरा हाथ थोड़ा काँप रहा था। मैंने अपनी माला उनके सर के ऊपर, उनकी घूँघट के ऊपर से डालकर उनके गले में पहनाई।
फिर मैंने अपना हाथ नीचे कर लिया। माँ ने भी अपने हाथ को ऊपर करके मेरे गले में माला डालने के लिए उठाया। चूंकि मैं माँ से ऊँचाई में था, उन्होंने अपने हाथ को बहुत ऊपर करके डालना पड़ा, इसलिए मैंने माँ को मदद करने के लिए अपना सिर थोड़ा झुका कर उनके हाथ के पास ले आया।
फिर माँ ने धीरे-धीरे मेरे गले में माला डाल दी, अपनी नज़र झुका कर।
मुझे अब बस वही एहसास होने लगा, जो इस दुनिया की किसी भी भाषा से व्यक्त नहीं किया जा सकता। केवल वही समझ सकता है, जिसने इसे महसूस किया हो। मेरा मन माँ के प्रति प्यार से भर गया।
Bohot shandaar bhaijaanUpdate 28
मैनेजर हमारा बहुत ख्याल रख रहा था। वह बार-बार पूछ रहा था कि कोई तकलीफ हो रही है या कुछ चाहिए। दो वेटर सर्व करने लगे, थोड़ी देर बाद नानी उनको देखकर प्यार से हँसते हुए बोलीं कि वे लोग बस यहाँ रख दें, हम खुद सर्व कर लेंगे। फिर नानी हम सबको सर्व करने लगीं। माँ भी हाथ बटा रही थीं। उनके हाथों में मेहंदी के साथ-साथ रेड नेल पॉलिश नजर आई।
मुझे पहली बार माँ का इस तरह का रूप देखने को मिला। वह मेरे सामने एक अलग लड़की जैसी लगने लगीं। वह माँ नहीं, जिसे मैं बचपन से जानता हूँ, कोई नई लड़की, जिसे धीरे-धीरे जान रहा हूँ, जिसका रूप धीरे-धीरे नजर आ रहा है। वह इतनी खूबसूरत लग रही हैं कि मैं मन ही मन खुद को लकी महसूस कर रहा हूँ की ऐसी खूबसूरत और सैक्सी लड़की मेरी जीवनसाथी, मेरी बीवी बनने जा रही है।
माँ सबको सर्व करने लगीं। हम सब एक साथ बहुत दिनों बाद बाहर खाने गए थे, इसलिए सब लोग इस डिनर को एन्जॉय कर रहे थे। हमारी नई जिंदगी शुरू होने से पहले जो भी टेंशन या संकोच था, वह धीरे-धीरे मिट रहा था। अब मैनेजर भी चले गए थे और दोनों वेटर भी साइड में जाकर खड़े हो गए थे। हम बिंदास बातें करने लगे। मैंने नाना और नानी को मम्मी-पापा कहकर बुलाया दो बार। माँ ने उस समय मेरी तरफ एक झलक देखी मुझे उनके चेहरे पर खुशी और होठों पर मुस्कान नजर आई। माँ केवल नानी के साथ कुछ बातें धीरे-धीरे कर रही थीं। इन्हीं सब बातों के बीच, जब माँ ने एक डिश सर्व करने के लिए मेरी प्लेट के पास हाथ लाया, तो मैंने उन्हें देखकर मुस्कुराते हुए, अपने हाथ से इशारा करके ना कहा। वह बस मुस्कुराकर हाथ हटा लीं। जब नानी के पास गईं, तो नानी ने बात करते-करते ध्यान दिया और माँ को बोलीं,
"पहले हितेश को दो, मंजू।"
माँ यह सुनकर शरमा गईं और नजरें झुका लीं। नानी की प्लेट में परोसते हुए धीरे से बोलीं,
"वह नहीं लेंगे। मैंने उन्हें पूछा था।"
यह सुनते ही नानी के चेहरे पर एक हंसी खिल गई और वह खुश होकर नाना की तरफ देखने लगीं।
माँ शर्माकर नजरें झुका लीं और नानी की प्लेट में परोसने लगीं। नानी समझ गईं कि माँ ने इस नए रिश्ते को दिल से स्वीकार कर लिया है। नानी ने बस अपने बाएं हाथ को पीछे से ले जाकर माँ की पीठ पर रखा और माँ को अपनी तरफ खींचते हुए एक मुस्कान के साथ बहुत कुछ समझा और समझा दिया।
सबकी जिंदगी में कुछ पल, कुछ दिन, कुछ ऐसे मोमेंट्स आते हैं जब जिंदगी एक अनजान मोड़ पर आकर एक नई दिशा में मुड़ जाती है। तब हम शायद यह सोच नहीं पाते कि इस नई राह पर कदम रखना कितना जरूरी या जोखिम भरा हो सकता है। पर हम सब इसे अपनी जिंदगी में अनुभव करते हैं और नई सोच और नई उम्मीद के साथ आगे बढ़ते हैं। बाकी लोगों से मेरी जिंदगी एकदम अलग ही है। सबकी शादी होती है, सब अपनी जीवनसाथी पाते हैं। पर मैं अपनी जीवनसाथी, अपनी बीवी के रूप में जिसे पाने जा रहा हूँ, वह मेरी ही सगी माँ है। मुझे मालूम है हमारा यह नया रिश्ता औरों से बिल्कुल अलग है। हम दोनों और नाना-नानी, सबकी सहमति से और हमारे बीच के प्यार और बंधन के कारण, इस रिश्ते को अपनाना चाहते हैं।
माँ अब एक दूसरी लड़की की तरह बन गईं हैं, जिसे मैं प्यार करता हूँ और चाहता भी हूँ। पर एक बात तो सच है, कोई भी रिश्ता, खासकर पति-पत्नी का, तब मजबूत, टिकाऊ और स्वस्थ होता है जब उसमें एक दूसरे के लिए प्यार, विश्वास, और एक दूसरे को माफ करने की ताकत होती है। मेरे और माँ के मन में माँ-बेटे का प्यार तो था ही, अब एक नया प्यार दोनों के मन में छा गया है। हम एक दूसरे को बहुत प्यार करते हैं। बचपन से हम एक दूसरे पर सबसे ज्यादा विश्वास करते आए हैं और हमारी खुशी के लिए हम बहुत कुछ त्याग करने की ताकत भी रखते हैं, जो हम मेरे बचपन से करते आए हैं और अब तो हम सब कुछ करने के लिए तैयार भी हैं।
दुनिया की कोई और लड़की, चाहे कितनी भी सुंदर और खूबसूरत क्यों न हो, मेरे मन में वह जगह नहीं ले सकती जहाँ मेरी मंजू, मेरी होने वाली पत्नी और मेरी मां, मेरे दिल में बसी हुई हैं। हमारे बीच एक हलचल मची हुई है, जो इस नए रिश्ते की शुरुआत को दर्शाती है।
अगले दिन शादी का समय सुबह के मुहूर्त में तय किया गया था। हम सभी सुबह से उठकर तैयारियों में लग गए। कल शाम की रिंग सेरेमनी वाले हॉल में ही शादी की व्यवस्था की गई थी। वहाँ दो कमरे थे: एक दूल्हे और उसके परिवार के लिए, और दूसरा दुल्हन और उसके परिवार के लिए।
हॉल में पहुँचते ही मैं और माँ सबसे पहले रजिस्ट्रार से मिले और उनके दिए हुए कागजात पर हमने हस्ताक्षर किए। नाना-नानी भी साथ थे। माँ को देखा तो वो होठों पर मुस्कान लिए, नज़रें झुकाए नानी के साथ बैठी थीं।
सुबह के इस समय में वह बहुत प्यारी लग रही थीं। मेरे मन में एक अद्भुत अनुभूति दौड़ रही थी, और मैं भी थोड़ी शर्म महसूस कर रहा था।
मैंने धीरे-धीरे हस्बैंड के स्थान पर हस्ताक्षर किए और नानी ने मेरे गार्जियन बनकर गवाह के रूप में हस्ताक्षर किए। फिर माँ ने अपने हाथ से वाइफ के स्थान पर हस्ताक्षर किए और नानाजी ने उनके फादर के रूप में गवाह के हस्ताक्षर किए।
माँ के हस्ताक्षर होते ही रजिस्ट्रार साहब ने हमें पति-पत्नी बनने की बधाई दी और सब लोग तालियाँ बजाकर हमें अभिनंदन करने लगे। कुछ अन्य हस्ताक्षर भी आवश्यक थे, जो वहाँ की कुछ महिलाओं ने किए, और फिर रजिस्ट्रार साहब हमें पुनः बधाई देकर चले गए।
अब, कानूनी तौर पर हम पति-पत्नी बन गए थे। फिर शास्त्रसम्मत रूप से शादी का मुहूर्त जल्दी आ गया। हम दोनों, मैं और माँ, दूल्हा और दुल्हन के कमरों में तैयार होने के लिए चले गए।
मेरे सजने-संवरने में अधिक समय नहीं लगा। केवल शेरवानी पहननी थी और सिर पर साफा बांधना था। दूसरी ओर, दुल्हन के कमरे में हलचल मची हुई थी। माँ को सजाने और शादी का जोड़ा पहनाने के लिए कल वाली कुछ महिलाएं वहां मौजूद थीं। बाहर भी कुछ लोग थे, जो रिसोर्ट की ओर से आए थे और अपनी-अपनी ड्यूटी निभा रहे थे। ऐसी शादी का ना तो कभी आयोजन हुआ था, ना ही इन लोगों ने कभी देखा था। उन्हें यह पता नहीं था कि आज एक माँ और बेटा पति-पत्नी के रिश्ते में बंधने जा रहे हैं, जिसमें पूरे परिवार की सहमति है। वे बस अपनी खुशी से सब कुछ कर रहे थे।
पंडितजी ने भी अपनी तैयारी शुरू कर दी थी। उन्हें भी भनक नहीं थी कि वे आज एक माँ और बेटे की शादी कराने वाले हैं। मैं एक सुंदर डिज़ाइन की हुई शेरवानी पहनकर सोफे पर जाकर बैठ गया।
शादी की एक नई अनुभूति हर वक्त मेरे मन में घूम रही थी। जिस महिला को मैं इस दुनिया में सबसे ज्यादा प्यार करता हूँ, जिसे दिल से पत्नी के रूप में पिछले 6 साल से चाहता आया हूँ, वह खूबसूरत लड़की, मेरी माँ, आज मेरी बीवी बनने जा रही है। मेरी माँ को दुल्हन के रूप में देखने के लिए मेरा मन बेसब्री से इंतजार कर रहा था। बल्कि, यह भी सच है कि माँ को अपनी बीवी बनाकर अपनी बाँहों में भरने की चाहत में मेरा मन अंदर ही अंदर बार-बार चंचल होकर कांप उठ रहा था। पिछले 6 साल से उनके साथ मिलन का जो सपना मन ही मन में देखता आया था, अब हमारा नसीब उसे सच करने जा रहा है। मैं अब अपनी ज़िन्दगी उनके साथ, उनका पति बनकर बिताना चाहता हूँ। और वह भी मेरी पत्नी बनकर ज़िन्दगी की आखिरी सांस तक मेरे साथ जीना चाहती हैं।
कल रात रेस्टोरेंट में डिनर के दौरान, माँ की खुशी, शरम, और दबी हुई उत्तेजना वाला चेहरा देखकर, और उनके नई दुल्हन बनने के खुशी और मेहँदी को देखकर, मैं अत्यंत होर्नी महसूस कर रहा था। मुझे माँ को अपनी बाहों में भरने, और अपने गरम होंठों से उनके पूरे जिस्म को प्यार भरे चुम्बनों से भर देने की तीव्र इच्छा हो रही थी। उसी खुशी को साझा करते हुए, मैंने नाना-नानी से छुपकर माँ को एक SMS भेजा, जिसमें लिखा था:
"You are looking very gorgeous, Hot and sexy. I can't stay away from you anymore."
मेरे SMS के बाद माँ को पता नहीं चला क्योंकि उनका मोबाइल पर्स के अंदर था। मैं अपनी भावनाएं उन तक पहुँचाने के लिए बार-बार उन्हें देख रहा था और इशारे से समझा रहा था। शुरुआत में उन्होंने शायद कुछ नहीं समझा, लेकिन जल्दी ही उन्होंने समझ लिया और मेरी ओर मुस्कुराते हुए नज़र घुमाई। मुझे समझ में नहीं आया कि उन्होंने जानने के बाद भी कोई प्रतिक्रिया क्यों नहीं दी। इस पर मुझे माँ पर गुस्सा आने लगा और मैंने उन्हें दोबारा इशारा करने का मौका ढूंढना शुरू किया।
तभी माँ ने नानी के कान में कुछ कहा, और नानी ने मैनेजर से वाशरूम का रास्ता पूछने के बाद हाथ से इशारा किया। अचानक, माँ चेयर से उठकर अपने पर्स के साथ चल पड़ी और जाते समय एक बार मुझे देख कर मुस्कुराई।
मैं समझ गया कि माँ मेरे SMS का जवाब देने के लिए वाशरूम गई हैं । इसलिए मैं नाना और नानी से अलग होकर बैठ गया। कुछ समय बाद मेरे मोबाइल पर वाइब्रेशन महसूस हुआ। मैंने स्क्रीन खोली और देखा, माँ का जवाब था:
"धत, बदमाश।"
मुझे पता था कि माँ मेरा SMS पढ़कर शर्म से लाल हो गई होंगी। यह भी साफ था कि उनके मन में भी मेरे प्रति वही चाहत उठ रही थी। मैंने जल्दी से टाइप किया:
"It's true Manju Darling. I'm lucky to have you as my beloved wife. I love you so so much and will love you forever."
उनका रिप्लाई तुरंत आया:
"I LOVE YOU TOO SO SO MUCH JANU."
मुझे यह महसूस हुआ कि उनका जवाब दिल से लिखा गया था। जब माँ वापस आईं और उनके चेहरे पर एक नई दुल्हन का अद्भुत अभास था, तो मेरे लन्ड में एक अनोखी सिहरन फैल गई। मैं उस पल का बेसब्री से इंतज़ार कर रहा था जब शास्त्र सम्मति से वह मेरी बीवी बन जाएँगी।
और वह घड़ी आ गई।
Beautiful Update..Update 29
मैं पंडितजी के सामने बैठकर उनका कहना मान रहा हूँ। पंडितजी ने पूजा शुरू कर दी है। वह नानाजी से दूल्हा और दुल्हन का नाम और उनके माता-पिता का नाम पूछ रहे हैं। नानाजी ने मेरा नाम हीतेश बताया और माता-पिता का नाम दीपिका और अरुण बताया। मुझे थोड़ी देर के लिए समझ नहीं आया, पर जल्दी ही याद आया कि माँ का नाम उनकी जन्म कुंडली में दीपिका ही लिखा हुआ है।.
सब कुछ साफ हो गया फिर दुल्हन का नाम मंजु और माता-पिता के नाम के लिए नानाजी ने खुद का और नानी का ही नाम बताया। पंडितजी ने पूजा शुरू कर दी।.
कुछ महिलाएँ वहीं चारों ओर बैठ गईं। मेरे अंदर एक शर्म और उत्तेजना का मिश्रण महसूस हो रहा है, क्योंकि मुहूर्त का समय आने ही वाला है। तभी पंडितजी ने पूजा के बीच में कहा कि दुल्हन को बुलाइए।
मेरे दिल की धड़कन तेज हो गई। वह पल अब बहुत करीब है, जब मेरी माँ, मेरी मंजु, मेरी पत्नी बनने जा रही है।
मनुष्य का मन और दिमाग उसकी ज़िन्दगी के हर दिन, हर पल, हर क्षण को याद नहीं रख पाता। उसके जीवन में कुछ दिन, कुछ पल, कुछ घटनाएँ ही होती हैं, जो जीवनभर के लिए स्मृतियों में बस जाती हैं। ये स्मृतियाँ कभी-कभी पीड़ा और कष्ट देती हैं, तो कभी-कभी अपार खुशी और आनंद का एहसास कराती हैं। हमारे सभी जीवन इसी नियम से चलते हैं।
आज मेरे जीवन का वह दिन है, जिसे मैं शायद अंतिम सांस तक हर मोमेंट को याद करना चाहूंगा, मेरा मन, ज़िन्दगी में कभी भी, कहीं भी, इन पलों को याद कर, अभी महसूस की गई खुशी के एहसासों को फिर से जीवंत कर, उनके मिठास का एहसास कराता रहेगा।
मैं अपनी जगह पर बैठा था, और वहां मौजूद सभी लोग दुल्हन के आगमन के लिए उत्सुकता से इंतजार कर रहे थे। मेरे मन में एक तूफान सा चल रहा था। यह वही घड़ी थी जिसकी याद में इतने दिन गुजारे थे। यह वह पल था जो मेरे और माँ की जिंदगी को एक नई दिशा में ले जाकर एक नए रिश्ते में जोड़ देगा। हमारे बीच के माँ-बेटे के बंधन के साथ पति-पत्नी का प्यार भरा रिश्ता जुड़ जाएगा। मैं व्याकुल मन लेकर माँ को दुल्हन के रूप में देखने के लिए पागल हो रहा था।
मेरे इस चिंता के बीच, वहां मौजूद सभी लोगों की आनंदमय ध्वनि और मंगलमय आवाजों के साथ मैंने अपने बाईं ओर दरवाजे की ओर देखा। माँ ने अपनी दुल्हन की भेष में हॉल में प्रवेश किया।
दो आदमियों ने उनके ऊपर एक पर्दे जैसा कुछ उठाकर रखा था। वह अपना सिर झुकाकर, धीरे-धीरे कदमों से पूजा की ओर आने लगीं। नानाजी उनके बगल में अपने दोनों हाथों से माँ को पकड़कर ला रहे थे। यह मालूम पड़ रहा था कि माँ ने एक सुंदर लाल, मरून रंग का सुनहरे डिज़ाइन वाला लहंगा पहना हुआ था।
जिसे मैं बचपन से प्यार करता हूँ, जिसने मुझे प्यार देकर बड़ा किया, वह औरत, मेरी मंजू, मेरी मां, आज मेरी धर्मपत्नी बन रही है। हाँ, यह बात सही है कि आज तक मैंने अपने मन की गहराई में, उन्हें सोचकर, उनके शरीर के एक-एक अंग की कल्पना करके, एक आदमी का एक औरत के लिए जो प्यार होता है, वह प्यार उनसे किया है। और आज इस मुहूर्त के बाद बस वह मेरी हो जाएगी, केवल मेरी। जिसके साथ मैं अपना खुद का परिवार बनाकर, पूरी जिंदगी जीने की ख्वाहिश रखता हूँ।
नानीजी ने मुझे देखा, हमारी नज़रें मिलीं। वह बस होंठों पर एक मुस्कान लेकर मुझे देख रही थीं, फिर माँ की तरफ देखकर उनके कान में धीरे-धीरे कुछ बोलीं। मुझे माँ का एक्सप्रेशन तो दिखाई नहीं दिया, पर नानी अपनी मुस्कान को और चौड़ी करके हँसने लगीं। माँ शायद शर्म और खुशी की मिली-जुली अनुभूति से और सिर झुकाकर नानी के हाथ के बंधन के अंदर पिघलने लगीं। चारों तरफ से सब लेडीज की खुशी और मंगलमय आवाजें मेरे कानों में रस घोलने लगीं। सामने मेरी माँ को अपनी दुल्हन के रूप में आते हुए देखकर मैं बस एक नई अनुभूति में डूबने लगा।
इस पल ने मेरे मन को आश्चर्य और आनंद से भर दिया, एक ऐसा एहसास जिसे शब्दों में बयान करना मुश्किल है। माँ का लाल और सुनहरे डिज़ाइन वाला लहंगा उनकी सुंदरता को और भी बढ़ा रहा था। उनके हर कदम के साथ मेरा दिल धड़क रहा था, और मैं सोच रहा था कि अब से थोड़ी ही देर में, वह मेरी धर्मपत्नी बन जाएँगी। इस नए रिश्ते के बंधन में बंधने की खुशी और गर्व मेरे दिल में उमड़ रहा था। यह वह क्षण था जिसे मैं जीवन भर अपने दिल के करीब रखूंगा, एक ऐसी याद जो हमेशा मेरे साथ रहेगी।
माँ मेरे नजदीक आते ही पण्डितजी ने मुझे निर्देश दिया कि आगे के कार्यक्रम के लिए क्या करना है। उनके कहे मुताबिक, मैं पूरी तरह माँ की तरफ घूम गया। अब माँ मेरे नजदीक खड़ी हैं, दुल्हन के भेष मे। मैं उनकी तरफ देखते ही, पण्डितजी के एक आदमी ने मुझे एक फूलों का हार थमा दिया और पण्डितजी ने वरमाला एक्सचेंज करने का निर्देश दिया। सभी औरतें जोर-जोर से हर्षध्वनि करने लगीं। नानी अपने चेहरे पर खुशी की हंसी लेकर माँ को एकदम नजदीक पकड़े हुए थीं।
माँ के सिर के ऊपर चुनरी घूंघट बनकर रखा हुआ था। बालों को अच्छी तरह डिज़ाइन करके पीछे बांधा हुआ था। सिर पर सोने की बिंदिया मांग के ऊपर चमक रही थी। चेहरे पर नई दुल्हन का मेकअप था। माँ की त्वचा हमेशा से मक्खन जैसी मुलायम और गोरी रही है, पर आज वह इस साज में एकदम किसी अप्सरा जैसी लग रही थीं।
वह बस एक 18 साल की जवान लड़की लगने लगीं, जिनका रूप शादी के स्पर्श से और भी निखरने लगा है। आँखें झुकी हुई हैं, पर उनमें काजल और हल्का सा मेकअप किया हुआ है। नाक में सोने की नथ ने उनके चेहरे को एकदम अलग बना दिया है। शादी की ख़ुशी का अनुभव, शर्म, और एक अनजानी उत्तेजना के कारण उनकी नाक का अगला भाग सांस के साथ-साथ थोड़ा-थोड़ा काँप रहा है। मेरे अंदर का वह अज्ञात अनुभव बढ़कर चरम सीमा पर पहुँच गया जब मैंने उनके दो पतले गुलाबी होठों को देखा। उनके होठ स्वाभाविक रूप से गुलाबी हैं, और लिपस्टिक के कारण वे और भी लोभनीय बन गए हैं।
इतने करीब से देखकर मुझे लगा कि वे रस में भरे हुए संतरे के दो मीठे फांक हैं। उन होठों पर एक ख़ुशी की मुस्कान सजी हुई है। मुझे बस अपने अंदर यह इच्छा हुई कि मैं उन होठों को अपने होठों से मिलाकर उनके अंदर भरे हुए रस का स्वाद चख लूँ। मैं अंदर ही अंदर काँपने लगा।
मैं माँ को बचपन से जानता हूँ, बचपन से उन्हें हर रूप में देखते आ रहा हूँ। शायद इसलिए शादी के तनाव से अधिक उन्हें पाने की चाहत मेरे अंदर उमड़ने लगी।
उनके साथ मिलन का इंतजार वर्षों से चल रहा था। आज मेरा मन बस उन्हें पूरी तरह से अपनी बाँहों में समेटने को बेताब था। मैंने कुछ पल उन्हें ऐसे देखा कि खुद सबके सामने शर्मा गया। मेरी नज़र हटते ही नानी की नज़र से मिली। नानी ख़ुशी और ममता भरी निगाहों से मुझे देख रही थीं। वह चाहती थीं कि आज उनकी बेटी को अपने हाथों से मेरे हाथ में सौंपकर हमें एक नए रिश्ते में जोड़ दें, और हम सबकी ज़िंदगी ख़ुशी और शांति से बीते।
माँ मेरे सामने सर को थोड़ा झुका कर, नज़र नीचे करके खड़ी हैं। उनके हाथ में भी मेरे जैसे एक फूलों की वरमाला है। उनके मेहँदी लगे हुए हाथ उनकी दुल्हन के रूप को खूबसूरती से बढ़ा रहे हैं। उनकी गर्दन में सोने का डिज़ाइन किया हुआ चौड़ा नेकलेस और कान में सुंदर सोने के झूमके हैं। हाथों में सोने के विभिन्न डिज़ाइन के कंगन हैं। वह आज मन से अपने बेटे को पति का अधिकार देने के लिए दुल्हन के भेष में मेरे सामने शर्माती हुई खड़ी हैं। चारों ओर ख़ुशी और आनंद का माहौल व्याप्त है।
मेरे पास नानाजी और माँ के पास नानीजी खड़ी होकर हमें अपने बच्चों की तरह पूरी तरह से सहयोग दे रहें हैं। हवन की पवित्र आग के सामने, हम माँ-बेटे पंडितजी के मंत्रों के उच्चारण के बीच एक-दूसरे को पहली बार सबके सामने नज़र उठाकर अपनी चारों आँखें एक करने लगे। मैं माँ को देख रहा था। वह अपनी नज़र धीरे-धीरे उठाकर फिर झुका रही थीं। मुझे मालूम था कि वह एक कुंवारी लड़की की तरह महसूस कर रही थीं। उनकी पलकें बार-बार ऊपर उठ रही थीं और फिर नीचे जाकर मेरी नज़र से मिलाने में शर्मा रही थीं, अपने माँ-पापा के सामने। पंडितजी के मंत्र चल रहे थे। पवित्र आग की आभा ने उनके गालों को और लाल कर दिया। तभी माँ ने अपनी नज़र उठाकर मेरे साथ नज़र मिलाई। सभी लोग ताली बजाकर और ख़ुशी की आवाज़ से इस मुहूर्त को खास बना रहे थे।
माँ की नज़र में मेरे प्रति उनका प्यार, देखभाल, और खुद को मेरे पास सौंपने की चाहत सब कुछ झलक रहा था। उनके चेहरे पर आज जो भावनाओं का साया छाया हुआ था, वह केवल एक पत्नी के भावनाओं का होता है अपने पति के लिए। हम एक-दूसरे को देखकर अपनी आँखों की भाषा और ख़ामोशी की भाषा से कसम खा रहे थे, उस पवित्र अग्नि के सामने, कुछ ही पलों में। वह पल हमारे जीवन का सबसे अहम पल था।
पंडितजी ने वरमाला बदलने का निर्देश दिया। तभी माँ ने अपनी नज़र झुका ली। मैंने अपनी माला धीरे-धीरे ऊपर उठाई, मेरा हाथ थोड़ा काँप रहा था। मैंने अपनी माला उनके सर के ऊपर, उनकी घूँघट के ऊपर से डालकर उनके गले में पहनाई।
फिर मैंने अपना हाथ नीचे कर लिया। माँ ने भी अपने हाथ को ऊपर करके मेरे गले में माला डालने के लिए उठाया। चूंकि मैं माँ से ऊँचाई में था, उन्होंने अपने हाथ को बहुत ऊपर करके डालना पड़ा, इसलिए मैंने माँ को मदद करने के लिए अपना सिर थोड़ा झुका कर उनके हाथ के पास ले आया।
फिर माँ ने धीरे-धीरे मेरे गले में माला डाल दी, अपनी नज़र झुका कर।
मुझे अब बस वही एहसास होने लगा, जो इस दुनिया की किसी भी भाषा से व्यक्त नहीं किया जा सकता। केवल वही समझ सकता है, जिसने इसे महसूस किया हो। मेरा मन माँ के प्रति प्यार से भर गया।