Update 21
लंच ब्रेक में माँ का फोन आया। उन्होंने मुझसे पूछा कि मैं मकान मालिक से मिलकर आया कि नहीं। इस बात के बारे में कल रात माँ से बात हुई थी, और आज मुझे जाना था पर मैं गया नहीं, इसलिए उन्होंने मुझे अब फिर से फोन करके याद दिलाया। मैंने उनसे कहा कि आज घर लौटने के वक्त मिलकर आऊंगा।
और उस चक्कर में रात को लौटते समय थोड़ी देर हो गई। मकान मालिक एक अच्छे इंसान हैं, पर बहुत बातें करते हैं। वह मुझे देखकर ही बोलने लगे कि मेरे नानाजी कैसे हैं, कब आएंगे यहां, वे कितने अच्छे इंसान हैं, उनसे फिर से मिलना चाहते हैं वगैरह वगैरह। मैंने उन्हें बताया कि मैं शादी करके बीवी को लेकर आ रहा हूँ, और घर की सभी व्यवस्थाएँ सुधारना चाहता हूँ। मेरी शादी के बारे में सुनकर हज़ारों सवाल पूछने लग गए। मुझे किसी तरह से उनसे छुटकारा मिला।
रात में डिनर के बाद फिर माँ को फोन किया। मैं दिन भर उनसे उस रिसोर्ट के बारे में बात करना चाह रहा था पर सही तरह से मौका नहीं मिला। मैंने उन्हें रिसोर्ट वालों से हुए सभी बातचीत के बाते में बताया। वे सब सुनकर चुप हो गईं, सिर्फ उनकी सांसों की आवाज़ आ रही थी। मैंने थोड़ी देर बाद चुप्पी तोड़ते हुए पूछा कि क्या वह उस रात वहां रुकना पसंद करेंगी? वो ये बात सुनकर शर्मा गई, मैं महसूस कर पा रहा था कि वे कितनी शर्माई हुई हैं। उसके बाद भी उन्होंने जवाब नहीं दिया। मैंने फिर से पूछा। उन्होंने धीरे से, शर्म से बोला कि उन्हें वहां उनके मम्मी-पापा के सामने शर्म आएगी, और वे सीधे मेरे साथ हमारे नए घर पर आना चाहती हैं। मैं समझ गया कि रिसोर्ट में नाना-नानी के रहते हुए, मेरे साथ यानी की अपने खुद के बेटे के साथ सुहागरात मनाने में उन्हें शर्म और लाज का सामना करना पड़ेगा। इसलिए वे चाहती हैं कि हम यहां आ जाएं, इस घर में जो हम दोनों का नया घर बनेगा, मैं उनकी हर इच्छा को पूरा करने के लिए उत्सुक हूँ। वे ऐसे चुप होकर रह गईं, मेरा मन खुशी से काँप रहा था। मैंने अपने मन में शक्ति जुटाई और धीरे से पूछा,
"ठीक है, हम मुंबई से दोनों यहां आजाएंगे?"
फिर मैं थोड़ा रुक के बोला,
"मैं एक बात पूछ सकता हूँ?"
वह धीरे से बोली,
"पूछिए?"
मैंने प्यार से धीरे से पूछा,
"तुम हनीमून नहीं जाना चाहती हो?"
मुझे लगा कि वो इस बात को सुनकर थोड़ा कांप उठी, शायद अंदर से वह हिल गई थी। उसने काँपती हुई आवाज़ से जवाब दिया, जिससे मुझे लगा कि शायद एक-दो आँसू भी गिर गए हों। वह फुसफुसाते हुए बोली,
"मैंने कभी सोचा नहीं था कि मुझे ज़िंदगी में इतना सुख, इतनी ख़ुशी मिलेगी। मुझे इतना प्यार मिलेगा?"
ये बोलकर माँ रुक गईं। वह चुपके से रो रही थीं। मेरे छाती में कष्ट हुआ। मैं उन्हें रोते हुए नहीं देख सकता था। चाहे वह खुशी के आंसू हों या दुख के, मुझे उनकी आँखों से एक भी बूँद आंसू निकलने नहीं देना था। फिर उन्होंने खुद को थोड़ा कंट्रोल करके कहा,
"मैं जानती थी, कोई भी लड़की आप को पति के रूप में पाएगी तो वह दुनिया की सबसे ज़्यादा खुश नसीब होगी। आपका प्यार पाकर, मेरा यह जन्म सार्थक हो गया। मैं यह प्रार्थना करती हूँ कि मैं आपको हमेशा खुश रख पाऊं। आपकी खुशी में ही मेरी खुशी है। आप मुझे अगर पेड़ की छाँव में घर बसाने के लिए भी कहेंगे तो मैं वहाँ भी आपको सारी खुशियाँ देना चाहती हूँ। ज़िंदगी की आख़िरी सांस में भी मैं आपकी बाँहों में रहना चाहती हूँ। मैं आपका दिया हुआ सिन्दूर मांग में लेकर मरना चाहती हूँ..."
माँ ये बोलकर फिर से रो पड़ी, मैं विचलित हो गया।
उन्हें सांत्वना कैसे दूं, यह समझ नहीं पा रहा था। मेरी सारी बातें, सब कुछ जो मैंने कहा, सारा प्यार, वह सब उनके दिल में अटका हुआ था। मैं भी भावुक हो गया था। मैं धीरे से उनसे बोला,
"अरे, दुनिया की सबसे ज़्यादा खूबसूरत और प्यारी लड़की जब रोती है, तो मुझे सबसे ज़्यादा कष्ट होता है। और वह लड़की अगर मेरी बीवी हो, तो उसी कष्ट से मेरा दिल टूट जाता है। फिर भी तुम रोओगी??"
मेरी उन बातों से उन्होंने खुद को थोड़ा संभाल लिया। फिर संवेदनापूर्ण आवाज में थोड़ा नकली गुस्सा दिखाते हुए बोली,
"बस... हमेशा झूठ बोलकर मुझे खुश करने की ज़रूरत नहीं, मैं जानती हूँ। मैं इतनी खूबसूरत नहीं हूँ, और मैं अभी भी आपकी बीवी नहीं बनी??"
मैं समझ गया कि वह धीरे-धीरे सहज हो रही है। हालांकि अभी भी थोड़ा-थोड़ा सिसकी की आवाज आ रही थी, लेकिन वह खुद को संभाल रही थी। मैंने भी स्थिति को हल्का करने का प्रयास किया। मेरे दिल की बात, मेरी अंतरात्मा की बात को आसानी से व्यक्त करने लगा और कहा,
"मैं सच मुच भाग्यशाली हूं कि ऐसी सुंदर और प्यारी लड़की को अपनी बीवी के रूप में पा सका। क्या तुम खुद के दिल पर हाथ रखकर कह सकती हो कि तुम मेरी बीवी नहीं हो?"
इस बार वह थोड़ा हंसी और शर्मा गई। फिर उसने एक सिसकी के साथ रोना बंद करके धीरे से कहा,
"अगर मैं आपकी बीवी होती तो आप मुझे मेरे नाम से बुलाते??"
मैं उस बात पर खुद ही हंस पड़ा। मैं अक्सर माँ से बात करते समय कुछ नहीं बुलाता हूँ। और वह हमेशा मुझसे कहती हैं कि वह नहीं चाहतीं कि मैं उनका बेटा बनकर रहूं। वह चाहतीं हैं कि मैं उनका पति बनकर अपने आप को उनके पति के रूप में स्वीकार कर लूं। मैंने उनसे कहा,
"मुझे नाना-नानी के सामने नाम से बुलाने में शर्म आएगी।"
उन्होंने कहा,
"तो ठीक है, मम्मी-पापा के सामने न बोलिए, लेकिन जब वे लोग न हो, तब तो कह सकते हैं।"
मैंने थोड़ा रुक-रुक कर कहा,
"हाँ, तब कह सकता हूं?"
बोलते हुए दोनों चुप हो गए, एक दूसरे के साथ फोन पर खामोशी से प्यार जताते हुए। थोड़ी देर बाद मैंने धैर्यपूर्वक पूछा,
"तो अब बताओ?"
वह गले में एक मिठास और प्यार लेकर धीरे से पूछी,
"क्या?"
मैंने आँखें बंद करके फुसफुसाया,
"मेरी मंजु कहाँ जाना पसंद करेगी हमारे हनीमून पर?"
उनको पहली बार नाम से बुलाते हुए खुदको एक अलग नशे में महसूस किया। वह भी मेरे जैसे प्यार के नशे में बंध होकर फुसफुसाई,
"आप जहाँ लेकर जाएंगे, आपकी मंजु आपके साथ जाने के लिए तैयार है?"
इस इमोशनल मोमेंट के बाद से, मैंने उनको उसी नाम से बुलाना शुरू किया है। और पिछले दो दिनों से ऐसा ही चल रहा है। अब माँ खुद को पहले से ज्यादा मेरी पत्नी महसूस कर रही है, और मैं भी उन्हें पहले से ज्यादा मेरी पत्नी महसूस कर रहा हूँ।
Thik hai nahi karunga...Hum log iss story ko bade chao se pad rahe hain...plz isko band mat kijiye....
Bahut hi shaandar update diya hai Esac bhai....Update 22
मैंने मेरी होने वाली बीवी के लिए कुछ गिफ्ट्स खरीदे। जितने दिन से मैं नौकरी कर रहा हूँ, तब से मेरा सारा पैसा बैंक में जमा हो रहा है। मेरी तनख्वाह भी अच्छी है, और पिछले कुछ महीनों से मेरे खाते में काफी पैसा जमा हुआ है। हाँ, मुझे पता है कि मैं अब परिवार शुरू करने जा रहा हूँ, तो मुझे पैसों की जरूरत होगी। फिर भी मैंने माँ के लिए कुछ अच्छे उपहार खरीदे हैं।
एक सुंदर हार खरीदा,
और आजकल के ट्रेंड में जैसे सभी लड़कियाँ एक पैर में पतली चेन जैसी पायल पहनती हैं, वैसे ही मैंने एक पायल खरीदी।
उनके गुलाबी पैरों में वह पायल बंधेगी तो वह और भी आकर्षक दिखेंगी। फिर मैंने कुछ साड़ियाँ भी लीं। ये सब मैंने अलमारी में रख दिया है, उनके लिए। जब वह यहाँ आकर अलमारी खोलेंगी, तो यह उनके लिए एक सरप्राइज होगा।
इन सब व्यस्तताओं के बीच पूरा हफ्ता कैसे निकल गया, यह मुझे पता ही नहीं चला। शायद शादी का दिन जितना नजदीक आ रहा था, मन उतना ही चंचल हो रहा था। इस वजह से शायद मेरे मन ने समय का ख्याल ही नहीं किया। मुझे बस यहाँ एमपी में माँ के आने से पहले सब कुछ ठीक करके रखना था, और वह अब हो गया। अब उनका मायका और ससुराल दोनों ही एक हैं, इसीलिए मैंने एमपी के घर को उनके ससुराल जैसा बनाने की कोशिश की। यही उनके पति का घर होगा।
मैंने ऑफिस में हस्ताक्षर करके घर जाकर बैग वगैरह उठाया और दौड़कर स्टेशन जाकर ट्रेन पकड़ी। हालाँकि मैंने टिकट पहले से बुक कर रखी थी। मैंने अपने कुछ कपड़े और जरूरी सामान लेकर बैग पैक किया। मुझे तीन-चार दिन रहना है, मुंबई भी जाना है। शादी की शेरवानी तो बन गई है, बाकी कुछ नए कपड़े भी खरीदे थे। शादी में माँ के लिए जो भी चाहिए, सब नाना-नानी खरीद रहे हैं। मुझे बस जाना है, शादी करनी है और अपनी बीवी को लेकर आना है। और इस बात पर मैं माँ को दुल्हन के भेष में कैसी लगेगी, आँखें बंद करके उन्हें सोचने लगा।
आज तक मैं केवल उनका खूबसूरत चेहरा, लंबा गला, सुडौल गर्दन, गोल-गोल हाथ, गुलाबी मुलायम छोटे-छोटे पैर, और फ्लैट सेक्सी पेट ही देखा है। बार-बार इन सबकी झलक दिमाग में आने लगती है।
पिछले छह सालों से मैंने उन्हें कितनी बार अपनी बाँहों में, अपने पास, अपने शरीर के साथ मिलाकर कल्पना की है। और आज हमारा नसीब हमें पति-पत्नी बनाकर जिंदगी गुजारने का सुनहरा मौका दे रहा है।
मेरे मन में उनकी ओर प्यार इसलिए बढ़ता जा रहा है क्योंकि वह भी इसे अपनी मन से चाहती हैं। वह भी अपनी जिंदगी केवल मेरी पत्नी बनकर ही गुजारना चाहती हैं। शायद यही हमारे नसीब में लिखा था, और इसी वजह से कुदरत ने उन्हें ऐसा बनाया है। आज भी उन्हें देखकर लगता है कि वह एक कुवारी जवान लड़की हैं, उनका शरीर का गठन ही ऐसा है। कोई नहीं कह सकता कि वह मेरी माँ हैं, जबकि वह अब 36 साल की हैं। मैं 19 का होकर भी अपने मजबूत शरीर और परिपक्वता की वजह से उमर से बड़ा लगता हूँ।
जब माँ मेरे साथ होती हैं, तब आज तक किसी ने भी यह नहीं कहा कि वह मेरी माँ हैं। कुछ लोग तो उन्हें मेरी बहन समझते हैं। अब हमें यह एक फायदा कुदरत ने दिया है। शादी के बाद हमारी उम्र का जो फर्क है, उससे किसी के मन में कोई सवाल नहीं उठेगा। यहाँ नई जगह पर, नए लोग और ऑफिस के सहकर्मियों में से कोई भी यह नहीं समझ पाएगा। यह एक बड़ा भार मेरे दिल से उतर गया है।
क़ुदरत ने तो हमें बहुत कुछ ठीक से दिया, लेकिन एक चीज़ से मैं हमेशा मन ही मन परेशान रहता हूँ। स्कूल जीवन से लेकर आज तक, जितने भी दोस्त बने, वह लोग हमेशा लड़कियों के बारे में बातें करते थे। मुझे नहीं मालूम कि वह लोग कैसे और कहाँ से यह सब जान लेते थे, पर वह लोग कहते थे कि जिस लड़की की हिप्स चौड़ी होती हैं और पेट के नीचे वाला हिस्सा यानी कोख और ग्रोइन एरिया चौड़ा होता है, वह लड़की गर्भ धारण करने के बाद बच्चे को पेट में रखने में आसानी से सक्षम होती है। और उन लड़कियों की चूत भी बड़ी होती हैं।
मैंने आज तक किसी लड़की से कोई रिश्ता नहीं बनाया है।तो मुझे प्रैक्टिकली कुछ पता नहीं था, इसलिए मन में एक डर सा था। माँ की बॉडी की हाईट मुझसे काफी कम है, फ्लैट पेट के साथ पतली कमर और उनके नीचे ऊँचे-ऊँचे हिप्स के साथ उनका पूरा एरिया परफेक्टली शेप्ड है।
न ज़्यादा चौड़ा, न ज़्यादा पतला। उस दिन फ़ोन पर माँ ने अपनी उम्र के कारण दोबारा माँ बनने के बारे में अपनी दुविधा जताई थी। मैं जानता हूँ कि वह अभी भी कई सालों तक बच्चे पैदा करने में सक्षम हैं, लेकिन फिर भी हमें शादी के बाद ही बेबी के लिए कोशिश करनी पड़ेगी।
अगर नसीब में है तो ठीक है, और अगर नसीब साथ न दे, तो भी माँ के प्रति मेरे प्यार में कोई कमी नहीं आएगी। मैं उनसे दिल से प्यार करता हूँ और उनकी ख़ुशी मेरे लिए सबसे महत्वपूर्ण है। मुझे मालूम है कि अगर वह फिर से माँ बनीं, तो वह बहुत खुश होंगी, और मैं उनकी ख़ुशी के लिए सब कुछ करने को तैयार हूँ।
पर एक बात जो मेरे मन को काटे जा रही है, वह यह है कि क्या मैं उनके साथ ठीक से फिजिकल संबंध बना पाऊँगा? क्या मैं उन्हें वह पूर्ण संतुष्टि दे पाऊँगा जिसकी वह हकदार हैं? क्योंकि मैं जानता हूँ कि मेरा लौड़ा बाकी लोगों से मोटा और थोड़ा लंबा तो है ही, पर क्या यह सब हमारे रिश्ते में कोई रुकावट पैदा करेगा? पर असली प्रॉब्लम मेरे लोड़े के टोपे को लेकर है. उत्तेजना से वह फूल के एक गोल बॉल जैसा बन जाता है और बहुत बड़ा हो जाता है. क्या में माँ के नरम और छोटे शरीर के अंदर उनको बिना कष्ट दिए मेरे लोड़े को ठीक से अंदर डाल पाउँगा!! यहि सब बातें मेरे मन को काटती है. क़ुदरत ने न जाने क्या रखा है हमारे नसीब मे।
अहमदाबाद पहुंच कर घर पहुँचने तक मेरे सीने में एक अजीब सी अनुभूति हो रही थी—ख़ुशी भी, थोड़ी शर्म, थोड़ी अन्जान चिंता। सब मिलकर शरीर में हल्का-हल्का कम्पन महसूस करा रहे थे। डोर बेल बजाते समय शायद मेरे हाथ थोड़ा कांप गए। अंदर जो लोग हैं, उनके साथ बस दो दिन बाद से रिश्ते बदल जाएंगे। नाना-नानी मेरे सास-ससुर बन जाएंगे, मैं उनका एकलौता दामाद, माँ मेरी पत्नी और मैं उनका पति बन जाऊंगा।
नानी ने इस बार बेहद खुश होकर और चौड़ी मुस्कान के साथ मुझे अंदर स्वागत किया। नानाजी भी कुर्ता और पायजामा पहनकर, चेहरे पर चौड़ी हंसी लिए मेरी तरफ हाथ फैलाकर आए और गले लगाया। मैं उनके पैर छूकर ड्राइंग रूम में जाकर बैठा। एक तो गर्मी, साथ में एक अंजान अजीब तनाव, पसीने से एकदम भीग गया था। पंखा खोलकर नानाजी भी सोफ़े पर बैठ गए।
माँ तभी पानी लेकर आई। मैंने उन्हें देखा और इस बार अचानक मुझे उनमें बदलाव नज़र आया। हालांकि उनमें वही पुरानी शर्म और लाज थी, लेकिन आज वे थोड़ी अलग लग रही थीं। उनके चेहरे पर जैसे एक ग्लो छाया हुआ था, जो उनकी प्राकृतिक सुंदरता को और बढ़ा रहा था। उनकी ख़ुशी से भरी आंखों और खिलखिलाते चेहरे ने मेरे दिल को छू लिया।
माँ आज बहुत ज़्यादा सुंदर और खूबसूरत लग रही थीं। पिछले हफ़्ते में जब मैंने उन्हें देखा था, तब भी वे सुंदर थीं, लेकिन आज उनकी खूबसूरती और भी उजाली थी। मेरा मन एकदम ख़ुशी से भर गया और मुझे अपनी माँ के लिए नए भाव और भावनाएँ महसूस होने लगीं। आज मेरे मन में एक विश्वास बांध गया कि इस दुनिया में और भी कई खूबसूरत लड़कियाँ हो सकती हैं, पर मेरी नज़र में मेरी माँ से ज़्यादा कोई खूबसूरत नहीं है।
मैं बचपन से ऐसी ही एक लड़की को अपनी बीवी बनाने का सपना देखता था, और दो दिनों में वह खूबसूरत लड़की मेरी पत्नी बनकर मेरी बाँहों में होगीं।
आज शाम को घर पर एक अलग माहौल था। हमेशा की तरह नहीं, बल्कि इस बार सब अलग मूड में थे। नाना-नानी बहुत सारी हंसी के किस्से सुना रहे थे और हम सब मिलकर हंसते थे। माँ भी कभी-कभी ड्राइंग रूम में आती और उनके चेहरे पर भी एक खुशी भरी मुस्कान दिखाई देती थी। हालांकि उन्होंने मेरी ओर सीधे नहीं देखा, पर उनकी नजरें कुछ बार मेरे साथ टकरा गईं और फिर वे शर्माकर अपनी दिशा बदल लीं।
कल हम शाम को मुंबई के लिए निकल रहे हैं। रात की ट्रेन से हम सुबह बांद्रा टर्मिनस पहुंचेंगे और फिर वहां से टैक्सी से रेसोर्ट जाएंगे। वहां हम फ्रेश होंगे, ब्रेकफास्ट करेंगे और फिर शाम को एक रस्म होगी। उसके बाद हम डिनर करके जल्दी सो जाएंगे, क्योंकि अगले दिन शादी का मुहूर्त है। सबने अपनी-अपनी पैकिंग कर ली है। मेरी शेरवानी, माँ का शादी का जोड़ा और शादी के सामान को अलग-अलग सूटकेस में पैक कर लिया गया है।
मैं अभी भी नानीजी को नानी जी ही बुला रहा था इसीलिए बात करते करते एक बार नानी ने मुझे देखा और फिर नाना जी को देखा दोनो कुछ देर तक मेरी ओर नजर टिकाकर रखे। फिर नानाजी ने हंसी में भरकर कहा,
"हो जायेगा सुजाता, धीरे-धीरे सब हो जाएगा।"
मैं समझ नहीं पा रहा था कि वे लोग किस बारे में बात कर रहे थे। नानीजी ने मेरी आँखों में उस सवाल को पढ़ लिया और हंसते हुए कहा,
"मुंबई जाकर फिर ऐसा मत करना बेटा, वहाँ और भी लोग होंगे।"
मैं चुप रहकर सुन रहा था, मेरे दिमाग में माँ छाई हुई थी जिसे मैंने हमेशा सपनों में देखा है। इसलिए बातचीत के बीच मैं एक ज़रा लिंक खो बैठा। मेरी हालत देखकर नानीजी फिर बोली,
"अब तो मुझे नानीजी मत बुलाओ, मम्मी बोलना शुरू कर दो। नहीं तो रिसॉर्ट में नानी बोल दिया तो सब गड़बड़ हो जाएगा।"
वो ये बोलते हुए जोरदार हंसी हसने लगी। नानाजी भी हंस रहे थे, लेकिन उनकी हंसी उतनी ज़ोरदार नहीं थी जितनी नानीजी की थी। इस स्थिति में मुझे थोड़ा अजीब लगने लगा, साथ ही साथ शर्म भी महसूस हो रही थी। क्योंकि बचपन से इन लोगों को नाना-नानी बुलाता आया हूं। अब मुझे मम्मी-पापा ही कहना पड़ेगा। लेकिन करना तो पड़ेगा, नहीं तो हमारे जीवन में बहुत सारी अनचाही समस्याएँ आ सकती हैं। मैंने तय कर लिया है कि अब से उन्हे मैं मम्मी-पापा ही कहूंगा। पर शुरुआत कैसे करें यही प्रॉब्लम था। पर अभी नानीजी ने सीधा बोल दिया और जो बोली, वह सच में ठीक भी है। शादी में नानाजी माँ को सम्प्रदान करेंगे और नानीजी मेरे तरफ से जितनी सारी रस्में हैं, वह सब सम्पन्न करेंगी। मैंने बस हंसते हुए अपनी गरदन झुका ली और इस परिस्थिति को सहज बनाने लगा। फिर बहुत सारी इधर-उधर की बातें होने के बाद हम सबने डिनर कर लिया। आज माँ थोड़ी शांत हैं, पर सामने थोड़ी कम आ रही हैं। मेरी नजरें चारों ओर घूम रही थीं, शायद माँ कहीं दिख जाएं, उन्हें देखने की चाह में। पर आज वह पूरी शाम खाना पकाने में जुटी रहीं और किचन से बाहर कम निकलीं। मैं उन्हें देखने की इच्छा से अपनी सीमा पर था, लेकिन मैं अपने मन को दबाकर सभी के सामने सहज होकर बैठ गया। हम सब अपने अपने कमरों में जाकर सो गए। मैं थोड़ा उत्साहित हो रहा था। अगर रात में माँ एक बार एकांत में मेरे पास आ जाए, तो मैं सभी बाधाओं को तोड़कर उनसे प्यार करना चाहूंगा। जब हमने मानसिक रूप से एक दूसरे को पति-पत्नी मान लिया है और पूरी निष्ठा के साथ एक दूसरे के पास सरेंडर कर दिया है, तो क्यों शारीरिक रूप से नहीं मिल सकते। मैं इसके लिए तैयार हूँ, मेरे मन में कोई शंका नहीं है।
Nice update...Update 22
मैंने मेरी होने वाली बीवी के लिए कुछ गिफ्ट्स खरीदे। जितने दिन से मैं नौकरी कर रहा हूँ, तब से मेरा सारा पैसा बैंक में जमा हो रहा है। मेरी तनख्वाह भी अच्छी है, और पिछले कुछ महीनों से मेरे खाते में काफी पैसा जमा हुआ है। हाँ, मुझे पता है कि मैं अब परिवार शुरू करने जा रहा हूँ, तो मुझे पैसों की जरूरत होगी। फिर भी मैंने माँ के लिए कुछ अच्छे उपहार खरीदे हैं।
एक सुंदर हार खरीदा,
और आजकल के ट्रेंड में जैसे सभी लड़कियाँ एक पैर में पतली चेन जैसी पायल पहनती हैं, वैसे ही मैंने एक पायल खरीदी।
उनके गुलाबी पैरों में वह पायल बंधेगी तो वह और भी आकर्षक दिखेंगी। फिर मैंने कुछ साड़ियाँ भी लीं। ये सब मैंने अलमारी में रख दिया है, उनके लिए। जब वह यहाँ आकर अलमारी खोलेंगी, तो यह उनके लिए एक सरप्राइज होगा।
इन सब व्यस्तताओं के बीच पूरा हफ्ता कैसे निकल गया, यह मुझे पता ही नहीं चला। शायद शादी का दिन जितना नजदीक आ रहा था, मन उतना ही चंचल हो रहा था। इस वजह से शायद मेरे मन ने समय का ख्याल ही नहीं किया। मुझे बस यहाँ एमपी में माँ के आने से पहले सब कुछ ठीक करके रखना था, और वह अब हो गया। अब उनका मायका और ससुराल दोनों ही एक हैं, इसीलिए मैंने एमपी के घर को उनके ससुराल जैसा बनाने की कोशिश की। यही उनके पति का घर होगा।
मैंने ऑफिस में हस्ताक्षर करके घर जाकर बैग वगैरह उठाया और दौड़कर स्टेशन जाकर ट्रेन पकड़ी। हालाँकि मैंने टिकट पहले से बुक कर रखी थी। मैंने अपने कुछ कपड़े और जरूरी सामान लेकर बैग पैक किया। मुझे तीन-चार दिन रहना है, मुंबई भी जाना है। शादी की शेरवानी तो बन गई है, बाकी कुछ नए कपड़े भी खरीदे थे। शादी में माँ के लिए जो भी चाहिए, सब नाना-नानी खरीद रहे हैं। मुझे बस जाना है, शादी करनी है और अपनी बीवी को लेकर आना है। और इस बात पर मैं माँ को दुल्हन के भेष में कैसी लगेगी, आँखें बंद करके उन्हें सोचने लगा।
आज तक मैं केवल उनका खूबसूरत चेहरा, लंबा गला, सुडौल गर्दन, गोल-गोल हाथ, गुलाबी मुलायम छोटे-छोटे पैर, और फ्लैट सेक्सी पेट ही देखा है। बार-बार इन सबकी झलक दिमाग में आने लगती है।
पिछले छह सालों से मैंने उन्हें कितनी बार अपनी बाँहों में, अपने पास, अपने शरीर के साथ मिलाकर कल्पना की है। और आज हमारा नसीब हमें पति-पत्नी बनाकर जिंदगी गुजारने का सुनहरा मौका दे रहा है।
मेरे मन में उनकी ओर प्यार इसलिए बढ़ता जा रहा है क्योंकि वह भी इसे अपनी मन से चाहती हैं। वह भी अपनी जिंदगी केवल मेरी पत्नी बनकर ही गुजारना चाहती हैं। शायद यही हमारे नसीब में लिखा था, और इसी वजह से कुदरत ने उन्हें ऐसा बनाया है। आज भी उन्हें देखकर लगता है कि वह एक कुवारी जवान लड़की हैं, उनका शरीर का गठन ही ऐसा है। कोई नहीं कह सकता कि वह मेरी माँ हैं, जबकि वह अब 36 साल की हैं। मैं 19 का होकर भी अपने मजबूत शरीर और परिपक्वता की वजह से उमर से बड़ा लगता हूँ।
जब माँ मेरे साथ होती हैं, तब आज तक किसी ने भी यह नहीं कहा कि वह मेरी माँ हैं। कुछ लोग तो उन्हें मेरी बहन समझते हैं। अब हमें यह एक फायदा कुदरत ने दिया है। शादी के बाद हमारी उम्र का जो फर्क है, उससे किसी के मन में कोई सवाल नहीं उठेगा। यहाँ नई जगह पर, नए लोग और ऑफिस के सहकर्मियों में से कोई भी यह नहीं समझ पाएगा। यह एक बड़ा भार मेरे दिल से उतर गया है।
क़ुदरत ने तो हमें बहुत कुछ ठीक से दिया, लेकिन एक चीज़ से मैं हमेशा मन ही मन परेशान रहता हूँ। स्कूल जीवन से लेकर आज तक, जितने भी दोस्त बने, वह लोग हमेशा लड़कियों के बारे में बातें करते थे। मुझे नहीं मालूम कि वह लोग कैसे और कहाँ से यह सब जान लेते थे, पर वह लोग कहते थे कि जिस लड़की की हिप्स चौड़ी होती हैं और पेट के नीचे वाला हिस्सा यानी कोख और ग्रोइन एरिया चौड़ा होता है, वह लड़की गर्भ धारण करने के बाद बच्चे को पेट में रखने में आसानी से सक्षम होती है। और उन लड़कियों की चूत भी बड़ी होती हैं।
मैंने आज तक किसी लड़की से कोई रिश्ता नहीं बनाया है।तो मुझे प्रैक्टिकली कुछ पता नहीं था, इसलिए मन में एक डर सा था। माँ की बॉडी की हाईट मुझसे काफी कम है, फ्लैट पेट के साथ पतली कमर और उनके नीचे ऊँचे-ऊँचे हिप्स के साथ उनका पूरा एरिया परफेक्टली शेप्ड है।
न ज़्यादा चौड़ा, न ज़्यादा पतला। उस दिन फ़ोन पर माँ ने अपनी उम्र के कारण दोबारा माँ बनने के बारे में अपनी दुविधा जताई थी। मैं जानता हूँ कि वह अभी भी कई सालों तक बच्चे पैदा करने में सक्षम हैं, लेकिन फिर भी हमें शादी के बाद ही बेबी के लिए कोशिश करनी पड़ेगी।
अगर नसीब में है तो ठीक है, और अगर नसीब साथ न दे, तो भी माँ के प्रति मेरे प्यार में कोई कमी नहीं आएगी। मैं उनसे दिल से प्यार करता हूँ और उनकी ख़ुशी मेरे लिए सबसे महत्वपूर्ण है। मुझे मालूम है कि अगर वह फिर से माँ बनीं, तो वह बहुत खुश होंगी, और मैं उनकी ख़ुशी के लिए सब कुछ करने को तैयार हूँ।
पर एक बात जो मेरे मन को काटे जा रही है, वह यह है कि क्या मैं उनके साथ ठीक से फिजिकल संबंध बना पाऊँगा? क्या मैं उन्हें वह पूर्ण संतुष्टि दे पाऊँगा जिसकी वह हकदार हैं? क्योंकि मैं जानता हूँ कि मेरा लौड़ा बाकी लोगों से मोटा और थोड़ा लंबा तो है ही, पर क्या यह सब हमारे रिश्ते में कोई रुकावट पैदा करेगा? पर असली प्रॉब्लम मेरे लोड़े के टोपे को लेकर है. उत्तेजना से वह फूल के एक गोल बॉल जैसा बन जाता है और बहुत बड़ा हो जाता है. क्या में माँ के नरम और छोटे शरीर के अंदर उनको बिना कष्ट दिए मेरे लोड़े को ठीक से अंदर डाल पाउँगा!! यहि सब बातें मेरे मन को काटती है. क़ुदरत ने न जाने क्या रखा है हमारे नसीब मे।
अहमदाबाद पहुंच कर घर पहुँचने तक मेरे सीने में एक अजीब सी अनुभूति हो रही थी—ख़ुशी भी, थोड़ी शर्म, थोड़ी अन्जान चिंता। सब मिलकर शरीर में हल्का-हल्का कम्पन महसूस करा रहे थे। डोर बेल बजाते समय शायद मेरे हाथ थोड़ा कांप गए। अंदर जो लोग हैं, उनके साथ बस दो दिन बाद से रिश्ते बदल जाएंगे। नाना-नानी मेरे सास-ससुर बन जाएंगे, मैं उनका एकलौता दामाद, माँ मेरी पत्नी और मैं उनका पति बन जाऊंगा।
नानी ने इस बार बेहद खुश होकर और चौड़ी मुस्कान के साथ मुझे अंदर स्वागत किया। नानाजी भी कुर्ता और पायजामा पहनकर, चेहरे पर चौड़ी हंसी लिए मेरी तरफ हाथ फैलाकर आए और गले लगाया। मैं उनके पैर छूकर ड्राइंग रूम में जाकर बैठा। एक तो गर्मी, साथ में एक अंजान अजीब तनाव, पसीने से एकदम भीग गया था। पंखा खोलकर नानाजी भी सोफ़े पर बैठ गए।
माँ तभी पानी लेकर आई। मैंने उन्हें देखा और इस बार अचानक मुझे उनमें बदलाव नज़र आया। हालांकि उनमें वही पुरानी शर्म और लाज थी, लेकिन आज वे थोड़ी अलग लग रही थीं। उनके चेहरे पर जैसे एक ग्लो छाया हुआ था, जो उनकी प्राकृतिक सुंदरता को और बढ़ा रहा था। उनकी ख़ुशी से भरी आंखों और खिलखिलाते चेहरे ने मेरे दिल को छू लिया।
माँ आज बहुत ज़्यादा सुंदर और खूबसूरत लग रही थीं। पिछले हफ़्ते में जब मैंने उन्हें देखा था, तब भी वे सुंदर थीं, लेकिन आज उनकी खूबसूरती और भी उजाली थी। मेरा मन एकदम ख़ुशी से भर गया और मुझे अपनी माँ के लिए नए भाव और भावनाएँ महसूस होने लगीं। आज मेरे मन में एक विश्वास बांध गया कि इस दुनिया में और भी कई खूबसूरत लड़कियाँ हो सकती हैं, पर मेरी नज़र में मेरी माँ से ज़्यादा कोई खूबसूरत नहीं है।
मैं बचपन से ऐसी ही एक लड़की को अपनी बीवी बनाने का सपना देखता था, और दो दिनों में वह खूबसूरत लड़की मेरी पत्नी बनकर मेरी बाँहों में होगीं।
आज शाम को घर पर एक अलग माहौल था। हमेशा की तरह नहीं, बल्कि इस बार सब अलग मूड में थे। नाना-नानी बहुत सारी हंसी के किस्से सुना रहे थे और हम सब मिलकर हंसते थे। माँ भी कभी-कभी ड्राइंग रूम में आती और उनके चेहरे पर भी एक खुशी भरी मुस्कान दिखाई देती थी। हालांकि उन्होंने मेरी ओर सीधे नहीं देखा, पर उनकी नजरें कुछ बार मेरे साथ टकरा गईं और फिर वे शर्माकर अपनी दिशा बदल लीं।
कल हम शाम को मुंबई के लिए निकल रहे हैं। रात की ट्रेन से हम सुबह बांद्रा टर्मिनस पहुंचेंगे और फिर वहां से टैक्सी से रेसोर्ट जाएंगे। वहां हम फ्रेश होंगे, ब्रेकफास्ट करेंगे और फिर शाम को एक रस्म होगी। उसके बाद हम डिनर करके जल्दी सो जाएंगे, क्योंकि अगले दिन शादी का मुहूर्त है। सबने अपनी-अपनी पैकिंग कर ली है। मेरी शेरवानी, माँ का शादी का जोड़ा और शादी के सामान को अलग-अलग सूटकेस में पैक कर लिया गया है।
मैं अभी भी नानीजी को नानी जी ही बुला रहा था इसीलिए बात करते करते एक बार नानी ने मुझे देखा और फिर नाना जी को देखा दोनो कुछ देर तक मेरी ओर नजर टिकाकर रखे। फिर नानाजी ने हंसी में भरकर कहा,
"हो जायेगा सुजाता, धीरे-धीरे सब हो जाएगा।"
मैं समझ नहीं पा रहा था कि वे लोग किस बारे में बात कर रहे थे। नानीजी ने मेरी आँखों में उस सवाल को पढ़ लिया और हंसते हुए कहा,
"मुंबई जाकर फिर ऐसा मत करना बेटा, वहाँ और भी लोग होंगे।"
मैं चुप रहकर सुन रहा था, मेरे दिमाग में माँ छाई हुई थी जिसे मैंने हमेशा सपनों में देखा है। इसलिए बातचीत के बीच मैं एक ज़रा लिंक खो बैठा। मेरी हालत देखकर नानीजी फिर बोली,
"अब तो मुझे नानीजी मत बुलाओ, मम्मी बोलना शुरू कर दो। नहीं तो रिसॉर्ट में नानी बोल दिया तो सब गड़बड़ हो जाएगा।"
वो ये बोलते हुए जोरदार हंसी हसने लगी। नानाजी भी हंस रहे थे, लेकिन उनकी हंसी उतनी ज़ोरदार नहीं थी जितनी नानीजी की थी। इस स्थिति में मुझे थोड़ा अजीब लगने लगा, साथ ही साथ शर्म भी महसूस हो रही थी। क्योंकि बचपन से इन लोगों को नाना-नानी बुलाता आया हूं। अब मुझे मम्मी-पापा ही कहना पड़ेगा। लेकिन करना तो पड़ेगा, नहीं तो हमारे जीवन में बहुत सारी अनचाही समस्याएँ आ सकती हैं। मैंने तय कर लिया है कि अब से उन्हे मैं मम्मी-पापा ही कहूंगा। पर शुरुआत कैसे करें यही प्रॉब्लम था। पर अभी नानीजी ने सीधा बोल दिया और जो बोली, वह सच में ठीक भी है। शादी में नानाजी माँ को सम्प्रदान करेंगे और नानीजी मेरे तरफ से जितनी सारी रस्में हैं, वह सब सम्पन्न करेंगी। मैंने बस हंसते हुए अपनी गरदन झुका ली और इस परिस्थिति को सहज बनाने लगा। फिर बहुत सारी इधर-उधर की बातें होने के बाद हम सबने डिनर कर लिया। आज माँ थोड़ी शांत हैं, पर सामने थोड़ी कम आ रही हैं। मेरी नजरें चारों ओर घूम रही थीं, शायद माँ कहीं दिख जाएं, उन्हें देखने की चाह में। पर आज वह पूरी शाम खाना पकाने में जुटी रहीं और किचन से बाहर कम निकलीं। मैं उन्हें देखने की इच्छा से अपनी सीमा पर था, लेकिन मैं अपने मन को दबाकर सभी के सामने सहज होकर बैठ गया। हम सब अपने अपने कमरों में जाकर सो गए। मैं थोड़ा उत्साहित हो रहा था। अगर रात में माँ एक बार एकांत में मेरे पास आ जाए, तो मैं सभी बाधाओं को तोड़कर उनसे प्यार करना चाहूंगा। जब हमने मानसिक रूप से एक दूसरे को पति-पत्नी मान लिया है और पूरी निष्ठा के साथ एक दूसरे के पास सरेंडर कर दिया है, तो क्यों शारीरिक रूप से नहीं मिल सकते। मैं इसके लिए तैयार हूँ, मेरे मन में कोई शंका नहीं है।