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Incest "मांगलिक बहन " (Completed)

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इस जन्म में ये कहानी पूरी हो जायेगी क्या भाई..??🙏🏻🙏🏻
Bhai, aap abhi is forum mein new member ho..aap hi ek story likho aur usko "is janam mein poori" kar do...aur haan...daily updates dete rehna apni story kaa...
 

andypndy

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गाड़ी अपनी रफ़्तार से अंधेरे को चीरती हुई आगे बढ़ रही थी और पीछे शहनाज़ और सौंदर्या दोनों आपस में बैठी हुई बाते कर रही थी। अजय का पूरा ध्यान इस समय गाड़ी चलाने पर था क्योंकि कुछ भी करके उसे सुबह दिन निकलने से पहले झालू नदी तक पहुंचना था लेकिन बीच बीच में उसके कानों में उनकी आवाजे भी पड़ रही थी।

सौंदर्या:" आपको किन शब्दो में थैंक्स बोलु मैं समझ नहीं आता। आप मेरे लिए धर्म की दीवार गिराकर अाई हैं।

शहनाज़:" उसकी जरूरत नहीं है, धर्म इंसान की खुशियों से बढ़कर नहीं होता। बस ये समझ लो कि इंसान ही दूसरे इंसान के काम आता है। एक बात और अब आगे से धर्म की बात मत करना तुम समझी। तुम मेरे किए मेरी छोटी बहन जैसी हो बस यही मेरा धर्म हैं।

सौंदर्या ने स्नेहपुर्वक शहनाज़ की तरफ देखा और उसे जवाब में स्माइल दी और बोली:"

" जैसी आपकी आज्ञा मेरी बड़ी बहन शहनाज़ जी।

शहनाज़ ने अपना एक हाथ प्यार से उसके कंधे पर रख दिया और बोली:" वैसे तुम्हे इस मांगलिक होने की वजह से काफी दुख होता होगा ना सौंदर्या।

सौंदर्या ने एक आह भरी और उसके चेहरे पर दर्द के भाव साफ नजर आए और बोली:"

" सच कहूं तो मुझे बहुत बुरा लगता है। मेरे मांगलिक होने में मेरी कुछ भी गलती नहीं, लेकिन काफी अच्छे घरों से रिश्ते आए और सबने पसंद भी किया लेकिन जैसे ही मांगलिक की बात सामने आई तो सभी ऐसे भाग गए जैसे किसी भूत को देखकर डर गए हो वो सभी।

शहनाज़:" अरे कोई बात नहीं सौंदर्या। वो सब छोटी सोच के लोग थे और तुम्हारे लायक नहीं थे। तुम्हारे लिए तो कोई राजकुमार आएगा। बस कुछ दिन की ही तो बात हैं फिर सब ठीक हो जाएगा।

सौंदर्या ने अब तक अपने मांगलिक होने के कारण उसके साथ हुए भेदभाव को याद किया तो उसकी आंखे भर आई और वो भरे हुए गले से बोली:"

"देखो देखो मेरे अंदर क्या कमी हैं, पढ़ी लिखी हूं, सुंदर हूं लेकिन फिर भी लोग मेरी भावनाओं से खेले हैं। दीदी कभी कभी तो मन करता हैं कि जहर खाकर मर ही जाऊं मै।

इतना कहकर सौंदर्या की आंखो से आंसू निकल पड़े तो शहनाज़ ने उसे अपने गले से लगा लिया और उसकी कमर थपकते हुए बोली:"

" बस सौंदर्या बस, ऐसे रोते नहीं है। तुम्हारे बुरे दिन अब खत्म समझो। मैं अा गई हूं ना तेरी ज़िन्दगी में अब।

गाड़ी चला रहा अजय भी अपनी बहन की बाते सुनकर दिल ही दिल में रो पड़ा। उसने गाड़ी की स्पीड और बढ़ा दी क्योंकि वो चाहता था कि अब उसकी दीदी अब जल्दी से जल्दी ठीक हो जाए।

सौंदर्या अभी तक शहनाज़ की छाती से चिपकी हुई सुबक रही थी और शहनाज़ किसी छोटे बच्चे की तरह उसे दिलासा दे रही थी।

सौंदर्या:" दीदी मैं ठीक तो हो जाऊंगी ना ? मुझे मुक्ति मिल जायेगी ना इस मुसीबत से ?

शहनाज़:" हान तुम बिल्कुल ठीक हों जाओगी। हम सब मिलकर सारी विधियां और उपाय बिल्कुल अच्छे से करेंगे ताकि तुम्हे इस मांगलिक योग से छुटकारा मिल जाए मेरी बहन।

सौंदर्या की सिसकियां बंद हो गई और शहनाज़ से चिपकी हुई ही बोली:"

" पता नहीं कैसी विधियां होगी, क्या उपाय होंगे , क्या करना होगा हमे ? कहीं ज्यादा मुश्किल हुई तो फिर दिक्कत होगी ?

शहनाज़ ने उसका चेहरा उपर उठाया और अपने रुमाल से उसके आंसू साफ करते हुए बोली:"

" कोई दिक्कत नहीं होगी। कैसी भी विधि हो चाहे कुछ भी उपाय हो मैं हर हालत में पूरा करूंगी ताकि तुम्हे इस मुसीबत से मुक्ति मिल जाएं। अब तुम्हे बहन बोला हैं तो बड़ी बहन का फ़र्ज़ तो निभाना ही होगा मुझे। और अजय भी तो हैं और मुझे उस पर पूरा भरोसा है कि वो कैसी भी कठिन विधि हो आसानी से करने में हमारी मदद करेगा।

सौंदर्या इस बार फिर से उसके गले लग गई और इस बार उसने शहनाज को कसकर पकड़ लिया। शहनाज़ भी खुश थी कि सौंदर्या उसे समझ रही थी और उस पर यकीन कर रही थीं।

अजय को ये सुनकर बेहद सुकून महसूस हुआ कि सौंदर्या के साथ साथ शहनाज भी उस पर पूरा भरोसा करती हैं। गाड़ी टॉप गियर में चल रही थी और अंधेरे को चीरती हुए आगे बढ़ती ही जा रही थी मानो जल्दी दे जल्दी अपनी आसमान को छूना चाहती हो।

अजय की मेहनत रंग लाई और सुबह करीब पांच बजे के लगभग वो नदी के तट पर पहुंच गया तो उसने राहत की सांस ली क्योंकि उसने अपने मकसद में कामयाब का पहला चरण हासिल कर लिया था। गाड़ी को उसने किनारे पर रोका और उसके बाद गाड़ी से उतर गया। पीछे पीछे शहनाज़ और सौंदर्या भी उतर गई तो बाहर सुबह के मौसम की ठंडी हवाओं ने उनका स्वागत किया तो दोनो के बदन में एक पल के लिए कंपकपी सी दौड़ गई। दोनो ने एक दूसरे की तरफ देखा और उसके बाद दोनो की नजर एक साथ नदी में बह रहे पानी पर पड़ी तो दोनो के चेहरे पर एक मुस्कान अाई और दोनो अजय के पीछे चल पड़ी।

अजय:" आचार्य जी के कहे अनुसार हमे यहीं से अपनी पूजा का पहला चरण शुरू करना हैं। आज मंगलवार है और आज के दिन सुबह सूरज निकलने से पहले नदी के बीच में जाकर हनुमान जी को याद करके आसमान की तरफ अपनी देने से मंगल ग्रह का प्रभाव काफी हद तक कम होता हैं।

शहनाज़ और सौंदर्या दोनो पहले से ही सोच रही थी कि कहीं इस पानी में डुबकी ना लगानी पड़ जाए और वहीं उनके साथ हुआ।

शहनाज़:" ठीक है हम दोनों इसके लिए तैयार हैं। पानी थोड़ा ठंडा होगा लेकिन इससे मुझे कोई फर्क नहीं पड़ेगा।

अजय: ठीक है इस पूजा में काफी सारी बाधाएं और मुश्किल काम आएंगे लेकिन हमें ऐसे ही करना होगा। अब आचार्य जी के कहे अनुसार सबसे पहले आप नदी में जाए और डुबकी लगाकर सौंदर्या को दिखा दीजिए।

जैसे ही अजय ने अपनी बात खत्म करी तो ठंडे पानी के एहसास से ही सौंदर्या के जिस्म के रोंगटे खड़े हो गए और उसने शहनाज़ का हाथ कसकर पकड़ लिया तो शहनाज़ ने उसकी तरफ देखा और अपना हाथ छुड़ाते हुए आगे बढ़ गई। शहनाज ने देखा कि नीचे नदी की बाउंड्री हुई थी और कुछ लोहे की जंजीर एक पाइप के सहारे बंधी हुई थी जिसे पकड़कर लोग नहाते थे। नीचे नदी में उतरने के लिए एक छोटा सा मिट्टी का रास्ता था और आसमान में रोशनी बहुत कम थीं। शहनाज़ सावधानी से कदम रखते हुए धीरे धीरे आगे बढ़ रही थी और लगभग नदी के करीब पहुंच गई थीं। जैसे ही वो नदी के करीब पहुंची तो उसका पैर पत्थर में लगकर फिसल गया और शहनाज़ के मुंह से एक दर्द भरी चींखं निकली और वो तेजी से फिसलती हुई सीधे नदी की धारा के बीच में पूरी और अपने वजन के साथ नीचे डूबती चली गई।

उपर खड़ी सौंदर्या के मुंह से डर और दहशत के मारे चींख निकली और अजय ने समझदारी से काम लेते हुए कपड़ों सहित नदी में छलांग लगा दी। शहनाज़ जितनी तेजी से नीचे गई थी पानी के दबाव के कारण उससे कहीं ज्यादा तेजी से उपर की तरफ अाई और उसने अपनी जान बचाने के लिए पानी में हाथ पैर मारने शरू किए और उम्मीद से अजय और सौंदर्या की तरफ देखा लेकिन अजय उसे दिखाई नहीं दिया। शहनाज के चेहरे पर मौत का खौफ साफ नजर आया तभी उसे पानी में हलचल होती दिखी और अजय तेजी से पानी को धार को चीरता हुआ उसकी ही तरफ बढ़ रहा था तो उसे उम्मीद की एक किरण नजर आईं और देखते ही देखते अजय उसके पास पहुंच गया और अपने एक हाथ को कमर में फंसा कर कंधे से उसे पकड़ लिया और तैरता हुआ किनारे की तरफ आने लगा। शहनाज़ डर के मारे उससे लिपट सी गई थी और देखते ही देखते अजय नदी के किनारे पर पहुंच गया और दोनो बाहर निकल गए। अजय की समझदारी की वजह से शहनाज़ के मुंह के अंदर पानी नहीं घुसा था और पूरी तरह से ठीक थी। पानी से बाहर निकलते ही शहनाज़ अजय से कसकर लिपट गई क्योंकि उसने अभी अभी साक्षात मौत के दर्शन किए थे और अजय की वजह से उसे आज दूसरी बार नई ज़िन्दगी मिली थी। सौंदर्या भी नीचे नदी के पास बनी बाउंड्री पर अा गई और वो भी उन दोनो से लिपट गई। शहनाज ठंडे पानी की वजह से अभी तक कांप रही थी।

शहनाज़:" अजय बेटा समझ नहीं कैसे तुम्हे शुक्रिया कहूं। आज तुम बा होते तो मेरा बचना मुश्किल होता।

अजय:" आप हमारे साथ हमारी मदद के लिए अाई हैं और आपकी किसी भी परिस्थिति में रक्षा करना मेरा फ़र्ज़ है।

थोड़ी देर के बाद धीरे धीरे अंधेरा कम होता जा रहा था और शहनाज़ बोली:"

" अरे धीरे धीरे प्रकाश फैल रहा है मुझे जल्दी से डुबकी लगानी होगी।

अजय नदी में उतर गया और उसने पानी के बीच में जाकर लोहे कि जंजीर को पकड़ लिया और बोला:"

" आप अब बेफिक्र होकर नदी में आइए। मैं आपकी रक्षा के लिए यहीं खड़ा हुआ हूं।

शहनाज धीरे धीरे आगे बढ़ी और देखते ही देखते नदी में उतर गई। उसने एक बार अजय की तरफ देखा और नीचे पानी में डुबकी लगाई। थोड़ी देर के बाद शहनाज़ फिर से पानी में ऊपर अाई और फिर से एक डुबकी लगाई। सौंदर्या ध्यानपूर्वक खड़ी हुई सब देख रही थी और उसने बाद शहनाज़ ने एक और डुबकी लगाकर अपने दोनो हाथो में जल लिया और ऊपर की तरफ देखते हुए आसमान में अर्पित कर दिया। उसके बाद शहनाज़ नदी के किनारे पर आकर खड़ी हो गई। उसके बाद सौंदर्या ने पानी में डुबकी लगाई और जल अर्पित किया। नदी पर जल अर्पित करने की रस्म पूरी हो गई थी और अब धीरे धीरे हल्का हल्का प्रकाश फैल रहा था तभी सौंदर्या ने शहनाज़ को कुछ इशारा किया और वही नदी पर खड़ी झाड़ियों के पीछे अपना पेट साफ करने के लिए चली गई। शहनाज़ ने इस वक़्त एक बुर्का पहना हुआ था और भीग जाने के कारण उसने उसने उतार देना हो बेहतर समझा और उसने अपना अपना भीगा हुआ बुर्का उतार दिया। शहनाज़ के बुर्का उतारते ही वो मात्र एक जामुनी रंग के सूट सलवार में अा गई जो की पहले से काफी टाईट था और अब पानी में भीगने के कारण उसके जिस्म से पूरी तरह से चिपक गया था।


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शहनाज़ के हर एक अंग का कटाव पूरी तरह से निखर कर साफ दिख रहा था। वो अपने गीले बालों से पानी को झाड़ झाड़ कर सुखा रही थी और अजय की तरफ अभी उसकी पीठ थी। उसकी पतली लम्बी सी खूबसूरत गर्दन उसके कंधो का आकार, पीछे से दिखता चिकनी कमर का खूबसूरत हिस्सा जिस पर थोड़े से पहले हुए काले बाल, हल्की सी मोटी लेकिन कामुक कमर और उसकी सूट के उपर से झलकता हुआ उसके पिछवाड़े का उभार पूरी तरह से कहर ढा रहा था। अजय ने आज पहली बार शहनाज़ को बिना बुर्के के देखा था और उसके दिल और दिमाग में उसकी खूबसूरती बस गई थी। अजय समझ रहा था कि पिछवाड़े का उभार तो सौंदर्या के भी जबरदस्त था लेकिन उसमें शहनाज़ के मुकाबले कठोरता अधिक थी जबकि शहनाज़ का पिछ्वाड़ा पूरी तरह से गोल होकर लचकदार हो गया था और सौंदर्या की तुलना में कहीं ज्यादा कामुक प्रतीत हो रहा था। पिछले कुछ महीनों से लगातार सेक्स करने और अमेरिका में जिम में जाकर शहनाज़ जीती जागती क़यामत बन गई थी जिससे अजय आज पहली बार रूबरू हो रहा था।

तभी पीछे से उसे सौंदर्या के आने की आने की आहट हुई तो उसने दूसरी तरफ ध्यान दिया और नदी की तरफ देखने लगा। शहनाज़ भी पलट गई और उसने सौंदर्या को दूर से आते हुए देखा और उसे स्माइल दी।

शहनाज़ के पलटते ही खूबसूरत सा चेहरा अजय के मुंह की तरफ हो गया। शहनाज़ की नजरे सौंदर्या पर टिकी हुई थी जबकि अजय पूरी तरह से शहनाज़ और सिर्फ शहनाज़ की तरफ आकर्षित था। जहां एक ओर उसके गोल से खूबसूरत चेहरे पर बालो से टपकती हुई पानी की बूंदों उसकी सुंदरता में चार चांद लगा रही थी वहीं दूसरी तरफ भीगा हुआ सूट उसके सीने से पूरी तरह से चिपक गया था और उसके सीने का उभार साफ़ नजर आ रहा था। बालो से गिरती पानी की बूंदे उसकी छातियों की गहरी घाटी में गुम होती जा रही थी और अजय कभी उसके चेहरे को देखता तो कभी नजरे बचाकर उसके सीने के खूबसूरत उभारो को। तभी सौंदर्या उनके पास अा गई और उसके बाद सभी लोग गाड़ी में बैठकर आगे की तरफ चल पड़े। हल्की हल्की धूप खिली रही थी और सभी को भूख भी महसूस हो रही थी इसलिए अजय गाड़ी चलाते हुए खाने की खोज कर रहा था।

जल्दी ही उन्हे एक होटल नजर आया और अजय ने अपनी गाड़ी बाहर पार्क करी और उसके बाद तीनो ने एक कमरा लिया और अंदर चले गए।

अंदर जाने के बाद सभी लोग नहा धोकर फ्रेश हुए और अजय ने खाने का ऑर्डर कर दिया। आज मंगलवार होने के कारण सौंदर्या का व्रत था इसलिए वो बेड पर लेट गई और रात की थकी होने के कारण उसे नींद अा गई।

शहनाज़ और अजय ने खाना खाया और इसी बीच अजय उसे बार बार देख रहा था। शहनाज़ ने नहाकर फिर से बुर्का पहन लिया था और बेहद खूबसूरत लग रही थी। खाना खाने के बाद अजय बोला:"

" आंटी एक काम करते हैं सौंदर्या दीदी तो सो गई है और हमे शाम को फिर से लिंगेश्वर के लिए निकलना होगा और वहां पर पूजा की विधि पूरी तरह से बदल जाएगी जिसके लिए हमे कुछ वस्त्र और साड़ियां बाजार से लेने होंगे। जब तक दीदी सोती हैं तब तक हम अपना ये काम निपटा लेते हैं।

खाना खाने के बाद शहनाज़ के जिस्म में नई ऊर्जा का संचार हुआ था और उसका चेहरा पहले से ज्यादा चमक रहा था। अजय की बात उसे ठीक लगी और बोली:"

" ठीक है हम दोनों इतना सभी सामना खरीद लेते हैं ताकि पूजा में कोई दिक्कत ना आए।

उसके बाद दोनो उपर कमरे में गए और उन्होंने सौंदर्या के लिए सन्देश छोड़ दिया कि हम लोग बाजार जा रहे हैं तीन फिक्र मत करना।

जैसे ही वो चलने लगे तो अजय बोला:"

" आंटी एक बात पूछूं आपसे अगर बुरा ना लगे तो ?

शहनाज़ ने उसकी तरफ देखा और बोली:"

" हान बोलो अजय क्या बात है ? भला तुम्हारी बात का मुझे बुरा क्यों लगेगा ?

अजय: क्या आप शादाब के साथ अमेरिका में भी बुर्का पहनती थी ?

शहनाज़ के होंठो पर स्माइल अा गई और बोली:"

"जी नहीं, मैं नहीं पहनती थी।

अजय:" क्यों ऐसा क्यों ?

शहनाज़:" क्योंकि वहां कोई मुझे जानता नहीं था। फिर बुर्का क्यों पहनती मैं ?

अजय:" ओह अच्छा। लेकिन यहां भी तो आपको कोई नहीं जानता और आप सच में बुर्के के बिना ज्यादा सुंदर लगती हैं।

अजय की बात सुनकर शहनाज़ ने गौर से उसके चहेरे को देखा और अजय ने शर्म से अपनी आंखे झुका ली तो शहनाज उसके भोलेपन पर स्माइल करते हुए बोली:"

" अच्छा जी मतलब मै तुम्हे अब अच्छी लगने लगी ?

शहनाज़ इसके दोस्त की अम्मी थी और शहनाज़ की बात सुनकर अजय डर गया और उसका जिस्म कांप उठा।

अजय हकलाते हुए बोला:" जी आंटी.. वो वो मेरा ऐसा मतलब नहीं था। बस आपको कोई नहीं जानता तो बर्क को मत पहनिए अगर आप चाहे तो। वैसे भी अब से आपको दूसरे कपडे ही पहनने होगे जो पूजा के लिए आचार्य जी ने बताए है।

शहनाज़:" अच्छा फिर तो ठीक है, मैं एक काम करती हूं, बुर्का उतार ही देती हूं।

इतना कहकर शहनाज ने अपना बुर्का उतार दिया और अब उसके जिस्म पर नीले रंग का सुंदर सूट और टाइट सलवार थी जिसमे वो बेहद खूबसूरत लग रही थी। सूट गले पर थोड़ा सा ढीला था जिससे उसके सीने की गहराइयों की हल्की सी झलक मिल रही थी।



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बुर्का उतारकर वो पलटी और अजय की तरफ देखते हुए बोली:"

" अब ठीक है ना, देख पहले से ज्यादा सुंदर लग रही हू ना मैं।

अजय के सामने बला की खूबसूरत शहनाज़ खड़ी थी और अजय उसे देखते हुए बोला:"

" हान आंटी आप सच में बेहद खूबसूरत लग रही है इस ड्रेस में बिना बुर्के के।

शहनाज़ : अच्छा चल अब जल्दी से बाजार चलते हैं।

इतना कहकर शहनाज़ बाहर की तरफ चल पड़ी और अजय उसके साथ ही चल पड़ा। दोनो थोड़ी देर बाद कार में बैठे हुए थे और कार सड़क पर दौड़ रही थी।

शहनाज़:" अच्छा अजय आज सुबह में डर ही गई थी जब नदी में गिरी। तुम बिना अपनी परवाह किए मुझे बचाया उसके लिए दिल से धन्यवाद।

अजय:" सच कहूं तो मैं भी डर गया था एक पल के लिए। आपको बचाने के लिए मेरी जान भी चली जाती तो मुझे बुरा नहीं लगता कसम से।

शहनाज ने उसके मुंह पर अपनी एक अंगुली रख दी और बोली:"

" चुप, ऐसी मनहूस बाते जुबान से नहीं निकालते। आज के बाद ऐसी बात करी तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा।

अजय खामोश हो और शहनाज़ की उंगली अभी तक उसके होंठो पर रखी हुई थी। शहनाज़ ने अपनी उंगली हटाई और अजय ने अपनी गलती मान ली और बोला:"

" ठीक है आज के बाद मैं ऐसी कोई बात नही करूंगा जिससे आपको ठेस पहुंचे।

शहनाज़ ने उसके गाल पकड़ कर खींच दिए और बोली:"

" तुम भी ना बिल्कुल शादाब पर गए हो। वो भी ऐसी ही हरकते करता है कभी कभी।

अजय:" ओह आंटी, दर्द होता है मुझे छोड़ दीजिए। मैं उसका दोस्त हूं भाई जैसा। इसलिए शायद दोनो की आदतें मिलती है।

शहनाज़ ने उसका गाल छोड़ दिया और बोली:" दोस्त नहीं अब तुम उसके भाई हो बस। आगे से ध्यान रखना।

अजय ने अपनी गर्दन हान में हिलाई और गाड़ी को आगे बढ़ा दिया। थोड़ी देर बाद ही वो बाजार में पहुंच गए और अजय गाड़ी से बाहर निकला और शहनाज़ के लिए दरवाजा खोल दिया। जैसे ही शहनाज़ आगे को झुक कर उतरी तो उसकी चूचियों का उभार थोड़ा सा उभर अाया और अजय की नजरे उन पर टिक गई। शहनाज़ जैसे ही बाहर निकल कर खड़ी हुई तो अजय ने नजरे बचाते हुए दरवाजा बंद किया और दोनो बाहर में पहुंच गए और सामान खरीदना आरंभ कर दिया।

अजय ने अपनी जेब से लिस्ट निकाली और दुकान वाले को दी तो दुकान वाले ने सभी सामान निकालना शुरू कर दिया।

अजय:" कितना समय लग जाएगा ?

दुकानवाला:" कोई दो घंटे लग जाएंगे। कुछ सामान मेरे पास हैं और बाकी गोदाम से लाना होगा।

अजय:" ठीक है आप सामान निकाल कर रखिए। हम लोग आते हैं।

इतना कहकर अजय आगे बढ़ा तो शहनाज़ भी उसके पीछे चल पड़ी और बोली:"

" अब तुम कहां जा रहे हो ?

अजय:" यहां दुकान पर भी क्या करना ? पास में ही एक चिड़ियाघर है। वहीं चलते हैं अगर आपको पसंद हो तो।

शहनाज़ का चेहरा खिल उठा और बोली:"

" मुझे जानवर बहुत पसंद है। चलते हैं बहुत मजा आएगा।

शहनाज़ और अजय दोनो चिड़ियाघर की तरफ चल पड़े और टिकट लेकर अंदर घुस गए। अंदर काफी चहल पहल थी और काफी लोग घूमने आए हुए थे। बीच बीच में कहीं, और बीच बीच में जानवर। बहुत सारे हिरण, जंगली भालू, टाइगर और दूसरे सभी जानवर।

शहनाज़:" अजय मुझे हाथी सफेद भालू देखने हैं। यहां हैं क्या ?

अजय:" हान बिल्कुल होने चाहिए।

अजय ने बोर्ड पर लिस्ट देखी और एक दिशा में चल पड़ा जहां सफेद भालू थे। आगे जाकर उसने देखा कि एक बड़ा सा जंगल बनाया गया था जिसके बीच में सफेद भालू थे और लोग चारो तरफ से उन्हें देख सकते हैं। भालू अभी शायद किसी पेड़ की पीछे थे और दिख नहीं रहे थे। अजय और शहनाज़ दूसरी तरफ से घूम गए ताकि उधर से दिख सके। आगे कुछ बड़े बड़े पेड़ थे जो नीचे झुक कर जमीन से मिल गए थे। अजय और शहनाज़ उधर ही पहुंच गए और उन्हें भालू थोड़े से नजर आने लगे तो शहनाज़ खुश हो गई। ठीक से देखने के लिए वो पेड़ के पास पहुंच गई और अंदर देखने लगी।

इधर सौंदर्या उठ गई थी और उसने अजय को फोन किया तो अजय अपनी बहन से बात करने लगा। शहनाज़ को अपने पीछे से कुछ हल्की हलकी आवाजे अा रही थी तो उसने उधर पेड़ के पीछे देखा तो उसे पत्तों के बीच कुछ हलचल महसूस हुई। रोमांच के चलते वो थोड़ा सा पीछे हुई और उसके कानों में अब हल्की लेकिन पहले से तेज सिसकियां गूंज रही थी।

शहनाज़ ने अंदर नजर डाली तो उसे पेड़ के नीचे एक लगभग उसकी ही उम्र की औरत नजर अाई जिसके साथ एक युवा नौजवान लड़का था और उसकी चूचियां चूस रहा था।

ये सब देख कर शहनाज़ के जिस्म में हलचल सी मच गई और वो अजय को देखते हुए सावधानी पूर्वक पेड़ के अंदर झांक रही थी। औरत लड़के के सिर को अपनी चूची पर दबा रही थी और शहनाज को चूची चूसने की आवाज अब ठीक से अा रही थी। शहनाज़ को अपने बेटे की कमी महसूस हुई कि काश अगर शादाब भी उसके साथ होता तो आज वो भी इसी पेड़ के नीचे चुद गई होती। शहनाज़ की आंखे वासना के कारण लाल हो रही थी और उसकी सीने के उभार अकड़ कर ठोस हो गए।

तभी उस लड़के ने अपना पायजामा नीचे किया और उसका लंड बाहर निकल अाया तो शहनाज को अपनी चूत में चीटियां चलती हुई महसूस हुई। लंड ज्यादा बड़ा नहीं था और उस औरत ने लंड को अपने हाथ में किया और उसे आगे पीछे करने लगी। देखते ही देखते शहनाज को लंड के आगे कुछ बेहद चमकीला और गुलाबी सा नजर आया। उफ्फ मेरे खुदा ये क्या हैं ? इसका लंड आगे से सुपाड़े से कैसा गुलाबी गुलाबी और चिकना हैं। ये कैसे हो गया कहीं इसे चोट तो नहीं लग गई।

लेकिन उसके के मुंह से तो मस्ती भरी सिसकारियां निकल रही थी इसका मतलब चोट नहीं लगी तो फिर ये इतना गुलाबी और अच्छा क्यों लग रहा है। देखते ही देखते उस औरत ने लंड के सुपाड़े को अपने मुंह में भर लिया और पता नहीं क्यों शहनाज़ को उस औरत से जलन सी महसूस हुई और अपने आप ही आज पहली शहनाज़ के मुंह में पानी अा गया।

तभी अजय ने फोन काट दिया और जैसे ही शहनाज़ की तरफ देखा तो पूरी तरह से बदहवाश सी शहनाज़ उसकी तरफ चल पड़ी। दूर सी आती शहनाज की चल थोड़ी लड़खड़ाई हुई थी और उसके सीने के उभार एक दूसरे को हराने के लिए उछल रहे थे। अजय ये देखकर हैरान हो गया और उसके पास अा गई। उसके चेहरे पर पसीना आया हुआ था और आंखे लाल हो गई थी।

अजय:" क्या हुआ आंटी आप ठीक तो हैं ?

शहनाज को कुछ समझ नहीं आया और बोली:"

" ये कैसा हो सकता है ? वो इतना गुलाबी और मनमोहक मैंने आजतक नहीं देखा।

अजय को कुछ समझ नहीं आया और बोला:"

" क्या हुआ ? क्या देखा आपने आंटी?

शहनाज जैसे होश में अाई और उसे अपने गलती का एहसास हुआ और वो एक लम्बी सांस लेते हुए बोली:"

" वो अजय वो सफ़ेद भालू। मुझे अच्छा लगा लेकिन उसका रंग थोड़ा गुलाबी सा था।

अजय:" गुलाबी तो नहीं था। मुझे तो बिल्कुल सफेद ही दिख रहे हैं। वो देखो ना आप।

शहनाज़ ने उसका हाथ पकड़ लिया और लगभग खींचते हुए बाहर की तरफ लाई और बोली:"

" मैंने देख लिया है बस। और नहीं देखना सौंदर्या रूम पर अकेली होगी। चलो तुम जल्दी से बस।

अजय को कुछ समझ नहीं आया और उसके साथ चल दिया। गाड़ी में बैठने के बाद अजय ने शहनाज़ को पीने के लिए पानी की बोतल दी और मदहोश सी हुई शहनाज़ उसे गटागट पीती चली गई। उसकी चूचियों में अभी तक कंपन हो रहा था और अजय उसकी चूचियों को ना चाहते भी देखने पर मजबूर था।

शहनाज़ ने अपनी आंखे बंद करी तो फिर से वहीं लंड का गुलाबी चिकना सुपाड़ा उसकी आंखो के आगे घूम गया और अपने आप ही उसकी जीभ निकली और उसके होंठो पर घूमने लगी। शहनाज़ की आंखे बंद होने के कारण की नज़रे पूरी तरह से उस पर ही टिकी हुई थी। कभी वो उसके लाल सुर्ख होंठो को देखता तो कभी रसीली पतली सी गुलाबी जीभ को देखता जो शहनाज़ के होंठो की सारी लिपस्टिक खा चूस चूस कर खा गई थी। शहनाज़ की चूचियां के बीच की लकीर अब काफी गहरी हो गई थी और अजय उसके अंदर पूरी अंदर तक अपनी नजरे घुसा रहा था।

अचानक से शहनाज़ अपनी जांघो को एक दूसरे से मसलने लगी और उसका सारा जिस्म कांप उठा तो अजय ने जैसे ही अपना हाथ उसके कंधे पर रखा तो शहनाज़ के मुंह से एक आह निकल पड़ी और जैसे ही उसकी अजय पर पड़ी उसका सारा जोश ठंडा होता चला गया।

अजय गाड़ी से उतरा और उसने दुकानवाले को पैसे दिए और फिर से गाड़ी में बैठ कर होटल की तरफ चल पड़ा। शहनाज़ अब काफी हद तक खुद पर काबू कर चुकी थी और अपने किए पर मन ही मन शर्मिंदा हो रही थी।

दोनो में कोई खास बात नहीं हुई और जल्दी ही होटल पहुंच गए। शाम का समय हो गया था। सौंदर्या ने आसमान की तरफ जल अर्पित करते हुए अपने व्रत को खोल दिया और फिर सबने साथ में खाना खाया।

उसके बाद अजय बोला;"

" पूजा का सभी सामान अा गया है और अब हमे लिंगेश्वर मंदिर जाना होगा।

शहनाज़:" वहां क्यों जाना पड़ेगा ? क्या होता है वहां ?

अजय:" लिंगेश्वर मंदिर यानी काम देवता का मंदिर। एक मांगलिक लड़की की ज़िन्दगी में शादी के बाद उसके और पति के बीच में प्यार बना रहे इसलिए वहां जाना होगा।

शहनाज़:" अच्छा ठीक है समझ गई मैं। कब चलना होगा ?

अजय:" बस आप दोनो तैयार हो जाइए। और हान इसके लिए आप दोनो को ही लाल रंग की साड़ी पहननी होगी। मै होटल वाले का हिसाब करता हूं तब तक आप दोनो साडी पहन लीजिए।

इतना कहकर अजय बाहर निकल गया और जाने से पहले एक एक पैकेट दोनों के हाथ में दे गया। शहनाज़ जब कभी किसी को साडी पहने हुए देखती थी वो उसे बेहद अच्छा लगता था। उसकी खुद इच्छा होती थी कि को भी साडी पहने लेकिन पारिवारिक माहौल के चलते वो पहन नहीं पाई। आज जब उसे पता चला कि उसे साडी पहनने के लिए मिल रही हैं तो उसकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था। शहनाज़ अंदर ही अंदर खुशी से झूम रही थी क्योंकि आज उसका एक बहुत बड़ा ख्वाब पुरा होने जा रहा था। शहनाज़ हाथ में साडी लिए खड़ी थी और उसे बार बार पलट पलट कर देख रही थी लेकिन उसकी समझ में कुछ नहीं अा रहा था कि इसको कैसे पहनना हैं। इसलिए वो सौंदर्या से बोली:"

" साडी तो बहुत सुंदर लग रही हैं लेकिन सौंदर्या मैंने तो आज तक कभी साडी नहीं पहनी और मुझे पहननी नहीं आती।

सौंदर्या:" आप चिंता मत कीजिए। मैं आपको पहना दूंगी।

शहनाज़:" अरे आप बहुत ज्यादा खूबसूरत लगेगी, साडी में आपका ये रूप और भी ज्यादा निखर जाएगा।

इतना कहकर सौंदर्या ने शहनाज़ के हाथ में पकड़े पैकेट को लिया और खोलने लगीं। जल्दी ही उसके हाथ में एक बहुत ही शानदार साडी थी।

सौंदर्या:" अब आप एक काम कीजिए। आप ये कपडे उतार दीजिए ताकि आप साडी पहन सके।

शहनाज़ के होंठो पर स्माइल अा गई और बोली:"

" कपडे क्या तुम्हारे सामने ही उतारू अपने ? मुझसे नहीं होगा। मैं नहीं हो सकती नंगी।


सौंदर्या:" अरे बाबा मेरी प्यारी बहन नंगी होने की जरूरत नहीं है आप बस अपना सूट सलवार उतार दीजिए। ब्रा पेंटी पहने रखिए आप।

शहनाज़ को समझ नहीं आया कि क्या करे लेकिन फिर उसने अपने कपड़े उतारने शुरू कर दिए क्योंकि वो ज्यादा देर नहीं करना चाहती थी ताकि पूजा में कोई देरी ना हो। शहनाज़ के जिस्म पर अब सिर्फ लाल रंग की ब्रा पेंटी थी और उसे हल्की शर्म अा रही थी। शहनाज़ की गोल गोल मोटी चूचियां का उभार खुलकर नजर अा रहा था और खूबसूरत चिकना हल्का सा भरा हुआ पेट जिसमे गहरी नाभि बेहद कामुक लग रही थी। शहनाज़ की गोरी गोरी चिकनी जांघें और उसकी छोटी सी पेंटी में उसके पिछवाड़े का कामुक उभार अपनी जानलेवा छटा बिखेर रहा था।



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शहनाज़ के इस कामुक अवतार और उसके गोरे गोरे भरे हुए जिस्म के कटाव देखकर सौंदर्या को उससे जलन सी महसूस हुई और बोली:"

" ओह माय गॉड। आप तो इस उम्र भी कमाल की है शहनाज़ दीदी। अगर मैं लड़का होती तो आपसे शादी कर लेती अभी।

शहनाज़ अपनी तारीफ सुनकर खुश हो गई और फिर बोली:"

" अच्छा जी। तुम भी सुंदर हो सौंदर्या अपने नाम की तरह। अच्छा चलो जल्दी से मुझे साडी पहननी सिखाओ। मुझे शर्म अा रही हैं ऐसे।

सौंदर्या अपनी आंखो से शहनाज़ के जिस्म का लुत्फ उठाते हुए आगे बढ़ी और उसने साडी को शहनाज़ के हाथ से ले लिया। सबसे पहले उसने शहनाज़ के हाथ से ब्लाउस लिया और शहनाज़ को बताया कि इसे ठीक ब्रा की तरह पहना जाता हैं। सौंदर्या ने ब्लाउस को शहनाज़ की छाती पर टिका दिया और उसे ठीक करने लगी। ये एक बहुत ही आकर्षक साडी से मिलता हुआ छोटा सा लाल रंग का ब्लाउस था जिसमें सौंदर्या का पूरा पेट नंगा नजर अा रहा था। उपर ब्लाउस में उसके दोनो गोरे गोरे कंधे साफ नजर आ रहे थे। सौंदर्या ने ब्लाउस को थोड़ा सा ऊपर किया ताकि वो ठीक से बंध जाएं। ऐसा करने से उसकी उंगलियां शहनाज़ की चूचियों के उभार से छू गई और उसे अजीब सी गुदगुदी का एहसास हुआ।

शहनाज़:" उफ्फ तुम भी ना, क्या करती हो सौंदर्या। ध्यान से बांधो। इधर उधर मत छुओ अजीब सा महसूस होता है।

सौंदर्या:" ध्यान से ही बांध रही हूं दीदी। लेकिन क्या करू आपका जिस्म हैं ही इतना चिकना कि मेरी उंगलियां खुद ब खुद ही फिसल रही हैं।

इतना कहकर उसने उसने फिर से इस बार जान बूझकर अपने हाथ का हल्का सा दबाव उसके उभार पर दिया तो शहनाज़ के जिस्म में एक अजीब सी लज्जत का एहसास हुआ और वो सौंदर्या के गाल खींचते हुए बोली:"

" सुधर जाओ तुम सौंदर्या की बच्ची नहीं तो मुझसे बुरा को नहीं होगा।

सौंदर्या उसके गाल खींचे जाने से मीठे मीठे दर्द को सहते हुए बोली:"

" जो जी अब तारीफ करना भी बुरा हो गया। वैसे क्या बुरा करोगी आप मेरे साथ ?

इतना कहकर सौंदर्या उसकी पीठ के पीछे गई और उसके ब्लाउस के पिन को उसकी पीठ पर लगाने लगी। शहनाज़ की गोरी चिकनी मस्त पीठ पर हाथ फेरते हुए उसे अजीब सा आनंद अा रहा था। शहनाज़ को इससे बेचैनी सी महसूस हो रही थी और बोली:"

" कुछ भी कर दूंगी तेरे साथ में समझी। मुझे परेशान मत करो जल्दी से इसके पिन लगा दो तुम।

सौंदर्या ने अपने अंगूठे का दबाव उसकी कमर पर दिया और उसकी पिन लगा दी तो शहनाज़ ने राहत की सांस ली। सौंदर्या ने अब साडी का एक पल्लू पकड़ लिया और साडी को शहनाज़ को दिखाते हुए गोल गोल घुमाया और फिर वो आगे बढ़ी और उसने साडी के गोल हुए हिस्से को शहनाज़ के पिछवाड़े पर टिका दिया और उसे खोलने लगी। साडी के पल्लू को उसने अंदर की तरफ मोड़ कर साडी को शहनाज़ के गोल गोल घुमाते हुए उसके पिछवाड़े को लपेट दिया और साडी गोल गोल होकर उसकी जांघो से लिपट गई। साडी का दूसरा हिस्सा अभी नीचे ही पड़ा हुआ था। सौंदर्या के हाथो अपने बदन पर लगने से शहनाज़ की सांसे हल्की सी तेज हो गई थी।

सौंदर्या ने साडी के दूसरे पल्लू को हाथ में लेते हुए ऊपर उठाया और उसके ब्लाउस के नीचे घुसा दिया और बोली:"

क्या बात करती हो दीदी आप। किसी लड़के ने तो आज तक मेरे साथ कुछ नहीं किया। आपके पास तो कुछ हैं भी नहीं करने के लिए।

सौंदर्या की बात सुनकर शहनाज़ हंस पड़ी और सौंदर्या भी हंसने लगी। अजय बाहर खड़ा हुआ उनका इंतजार कर रहा था और दोनो के हंसने की आवाजे सुनकर वो अंदर आया तो उसकी नजर शहनाज़ पर पड़ी।

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" क्या हुआ सौंदर्या दीदी क्या मिल गया जो आप दोनो इतना खुश हो....

अजय के आगे के शब्द शहनाज़ पर नजर पड़ते ही उसके मुंह में रह गए। रंग की साड़ी और छोटे से ब्लाउस में वो शहनाज़ को देखते ही ठगा सा खड़ा रह गया।शहनाज़ का गोल गोल सुंदर चेहरा, चेहरे के चारो और फैले हुए खुले काले बाल, गले में एक लाल रंग की ज्वेलरी का खूबसूरत सेट, शहनाज़ के गोरे गोरे चिकने कंधे और ब्लाउस छोटा होने के कारण उसका दूध सा गोरा सफेद पेट संगमरमर की तरह चमक रहा था। पेट में उसकी गहरी नाभि बहुत ही सुन्दर लग रही थी। हल्की सी चर्बी शहनाज़ के पेट को और भी सुंदर बना रही थी।
अजय पूरी तरह से शहनाज़ का दीवाना हुए उसे देख रहा था और शहनाज़ को कहीं ना कहीं अब शर्म महसूस हो रही थी।

सौंदर्या:" क्या हुआ भैया ? देखो सच में मेरी शहनाज़ दीदी कितनी सुंदर लग रही है साडी में ?

अपनी तारीफ सुनकर शहनाज़ के होंठो पर स्माइल अा गई थी और अजय अपने आपको संभालते हुए बोला:""

" सचमुच दीदी, शहनाज़ आंटी ने तो कमाल कर दिया। बिल्कुल स्वर्ग से अाई हुई अप्सरा सी लग रही है।

शहनाज़ अपनी तारीफ सुनकर पूरी खुश थी। उसे आज महसूस हो रहा था कि सच में वो साडी में बहुत ज्यादा सुंदर लगती है। सौंदर्या को अजय का शहनाज़ का आंटी कहना अच्छा नहीं लगा और बोली:"

" भाई देखो शहनाज़ दीदी की मेरी जितनी ही तो उम्र हैं। फिर तो मुझे दीदी कहते हो और इन्हे आंटी जबकि ये किसी भी तरह से आंटी नजर नहीं आती हैं।

अजय ने फिर से मौके का फायदा उठाते हुए एक बार शहनाज़ को ऊपर से नीचे तक हसरत भरी निगाहों से देखा और बोला:"

" बिल्कुल सही कहा आपने दीदी, ये तो बिल्कुल भी आंटी नहीं हो सकती। आप भी बताओ मैं इन्हे क्या कहकर बुलाऊ फिर ?

सौंदर्या:" मुझे दीदी बोलते हो तो उन्हें दीदी ही कह कर बुलाओ तुम, क्यों शहनाज़ दीदी आपको ऐतराज़ तो नहीं हैं ?

शहनाज़ को आज उसकी ज़िन्दगी की बहुत बड़ी सौगात मिली थी अजय और सौंदर्या की वजह से इसलिए सौंदर्या की तरफ देखते हुए बोली:"

" मुझे कोई ऐतराज़ नहीं भला क्यों होगा ? हान सच कहूं तो आंटी सुनकर अजीब सा लगता था मुझे। लेकिन शर्म के मारे बोल नहीं पाई ।

अजय:" ठीक हैं फिर, आज से मैं आपको ठीक ही कहूंगा फिर। अब आप दोनो खुश हो ना।

शहनाज़ और सौंदर्या दोनो ने अजय को स्माइल दी और अजय बोला:"

" अच्छा दीदी आप भी जल्दी से साडी पहन लो। नहीं तो हम लेट हो जाएंगे।

सौंदर्या:" बस दो मिनट रुको मैं अभी अाई।

इतना कहकर सौंदर्या अंदर दूसरे कमरे में चली गई और अब कमरे में शहनाज़ और सौंदर्या दोनो अकेले रह गए थे।

शहनाज़:" अच्छा एक बात सच बताओ अजय क्या मैं सच में बहुत खूबसूरत लग रही हूं साडी पहनकर ?

अजय:" चाहे तो कोई भी कसम ले लो मुझसे, आप सुंदर नहीं बल्कि क़यामत लग रही है मेरी शहनाज़ दीदी।

अजय से मुंह से कयामत शब्द सुनकर सौंदर्या शर्म से लाल हो गई और अजय बोला:"

" आप एक काम कीजिए, ये सामने शीशा लगा हैं खुद ही देख लीजिए आप।

इतना कहकर अजय ने उसकी बांह पकड़ी और उसे शीशे के सामने खड़ा कर दिया। शहनाज़ ने अपने आपको शीशे में देखा और खुद लर ही मोहित हो गई। वो घूम घूम कर खुद को देख रही थी और अजय नजरे बचाकर उसके पेट, उसकी गहरी नाभि को देख रहा था।

शहनाज़ ने मेक अप किट से एक लिपस्टिक उठाई और शीशे में देखते हुए अपने लिप्स को रंगीन बनाने लगी। तभी अचानक से शीशा नीचे गिर कर टूट गया। शहनाज़ अब लिपस्टिक कैसे लगाएं उसे समझ नहीं आ रहा था तो उसने अजय को बोला:"

" अजय देखो ना ये शीशे को अभी टूटना था, अब मैं लिपिस्टिक कैसे लगाऊ ?

अजय को एक विचार समझ में आया और बोला:"

" दीदी अगर आपको बुरा ना लगे तो मैं लगा दू क्या आपके इन प्यारे और खूबसूरत लिप्स पर लिपस्टिक ?

शहनाज़ ने खुशी खुशी अपनी सहमति दे दी और अजय उसके बिल्कुल करीब अा गया तो शहनाज़ के जिस्म से उठती हुई मादक परफ्यूम की खुशबू उसको मदहोश करने लगी। शहनाज़ ने लिपिस्टिक उसकी तरफ बढ़ा दी और अजय ने कांपते हाथो से लिपिस्टिक को थाम लिया। शहनाज़ ने अपने पतले पतले नाजुक रसीले होंठ आगे कर दिए और अजय ने लिपिस्टिक को रोल करते हुए पीछे किया और उसने शहनाज़ के होंठो पर लिपिस्टिक लगानी शुरू कर दी।

शहनाज़ को ये सब बहुत ही रोमांचक लग रहा था क्योंकि कभी उसके बेटे शादाब ने भी उसके होंठो लिपिस्टिक नहीं लगाई थी। शहनाज़ रोमांच के कारण कांप रही थी जिससे उसका चेहरा इधर उधर हिल रहा था तो अजय बोला:"

" ऐसे मत हिलिए आप नहीं तो लिपिस्टिक खराब हो जाएगी। फिर बाद में मुझे मत बोलना।

शहनाज़ :" क्या करू बताओ तुम मुझे गुदगुदी सी हो रही है।

अजय:" फिर तो एक ही तरीका है। मुझे आपके होंठो को इधर उधर हिलने से रोकना होगा।

इतना कहकर अजय ने अपना एक हाथ आगे बढाया और शहनाज़ की ठोड़ी को पकड़ लिया तो शहनाज़ की आंखे शर्म से बंद हो गई और उसके होंठ अपने आप हल्के से खुल गए मानो बोल रहे हो कि आओ जल्दी से हमे लाल कर दो।

अजय ने अपना चेहरा शहनाज़ के मुंह पर झुका दिया और उसके होंठो पर लिपिस्टिक लगाने लगा। दोनो के चेहरे एक बार के बेहद करीब होने के कारण अजय की गर्म भभकती सांस शहनाज़ के चेहरे पर पड़ रही थी जिससे शहनाज़ को बेचैनी से महसूस हो रही थी और उसका पूरा जिस्म कांप रहा था। शहनाज़ के कांपने के कारण उसके लिप्स हिले और लिपिस्टिक खराब हो गई तो अजय बोला:"

" मैं आपको पहले ही बोल रहा रहा था कि हिलिए मत, अब देखो लिपिस्टिक बाहर लग गई, खराब हो गई ना।

शहनाज़:" उफ्फ क्या करू, तुम्हारे छूते ही गुदगुदी इतनी ज्यादा हो रही है। खराब कर दी तो अब ठीक भी तुम ही करो समझे तुम।

अजय ने अपने हाथ से शहनाज़ के चेहरे को ताकत से थाम लिया और अपने उंगली से जैसे ही उसके होंठो को छुआ तो शहनाज़ के जिस्म में उत्तेजना की लहर सी दौड़ गई। अजय ने अपनी उंगली को शहनाज़ के होंठो पर फिराया और लिपिस्टिक हटाने लगा लेकिन हटी नहीं तो बोला:

" छूट नहीं रही मेरी शहनाज़ दीदी। बताओ ना क्या करु ?

शहनाज़;" बुद्धू हो तुम। ऐसे थोड़े ही ना हट जायेगी। रुको मैं मदद करती हूं।

इतना कहकर शहनाज़ ने अपनी साडी का पल्लू लिया और उसे अपने मुंह में डाल कर गीला करने लगी। अजय शहनाज़ की ये कामुक हरकत देखकर पागल सा हो गया और लंड ने एक जोरदार अंगड़ाई ली। शहनाज़ ने साडी के पल्लू को पूरी तरह से गीला किया और अजय की तरफ देखते हुए उसका हाथ में थमाते हुए बोली:"

" लो इससे साफ करो, अब आराम से हो जायेगा बिल्कुल।

अजय ने जैसे ही साडी के पल्लू को छुआ तो उसकी उंगलियां शहनाज़ के मुख रस से भीग गई और अजय से बर्दास्त नहीं हुआ और उसने शहनाज़ के चेहरे को फिर से अपने हाथ में कस लिया और जैसे ही उसने साडी के भीगे हुए पल्लू को उसके होंठो पर फिराया तो दोनो के मुंह से एक आह निकल पड़ी। अजय सिर्फ पल्लू से साफ ही नहीं कर रहा था बल्कि अपनी उंगलियों को शहनाज़ के नाजुक, मुलायम रसीले होंठों पर हल्के हल्के रगड़ भी रहा था। शहनाज़ की आंखे इस अद्भुत एहसास से बंद हो गई थी और लिपिस्टिक तो कब की हट गई थी लेकिन अजय मदहोशी में उसके होंठो को हल्का हल्का रगड़े जा रहा था। पता नही कैसा अमृत रस था ये जो शहनाज़ के होंठो से निकला था जिससे अजय की उंगलियां चिपकी हुई थीं। शहनाज़ से बर्दाश्त करना मुश्किल हो रहा था इसलिए बोली:"

" अजय हो गए मेरे होंठं साफ ?

अजय पुरी तरह से मदहोश था इसलिए बोला

" हान शहनाज़ आपके नाजुक, नरम मुलायम और रसीले होंठ बिल्कुल साफ हो गए हैं मेरी प्यारी खूबसूरत अप्सरा शहनाज़।

अजय के मुंह से अपना नाम सुनकर शहनाज़ हैरान हो गई लेकिन बोला कुछ नहीं। अजय ने उसके चेहरे को थामे रखा और लिपिस्टिक लगाता रहा। शहनाज़ के होंठो पर लिपिस्टिक लग गई थी। अजय ने धीरे से अपनी उंगली को अपने मुंह में भर लिया और चूसने लगा तो उसके आंनद की कोई सीमा नहीं थी। शहनाज के होंठो से निकले गाढ़े, मीठे रसीले रस को चूसकर अजय धन्य हो गया था।


सौंदर्या साडी पहनकर बाहर अा गई और उसने शहनाज़ और अजय को देखा जिनके चेहरे एक दूसरे पर झुके हुए थे। उसे समझ नहीं आया कि क्या करे। हाय भगवान ये तो दोनो किस कर रहे हैं। अजय आखिकार पिघल ही गया शहनाज़ के आगे।

सौंदर्या से बर्दाश्त नहीं हुआ और वो दबे पांव उनके पास पहुंच गई तो उसने देखा कि शहनाज़ की दोनो आंखे बंद हैं और अजय उसके होंठो पर लिपिस्टिक लगा रहा है तो उसने सुकून की सांस ली। अजय ने शहनाज़ के होंठो को पूरी तरह से रसीले बना दिया और जैसे ही उसने शहनाज़ का चेहरा छोड़ा तो शहनाज़ ने अपनी आंखे खोल दी और उसे सामने खड़ी सौंदर्या नजर आईं तो शहनाज़ कांप उठी।

सौंदर्या:" क्या हुआ शहनाज़ दीदी ? आपको लिपिस्टिक भी है लगानी आती क्या ?

सौंदर्या की आवाज सुनकर अजय भी चौंक सा गया और घबराते हुए बोला:"

" दीदी वो शीशा टूट गया था तो इसलिए मुझे लगानी पड़ी।

शहनाज़:" हान सौंदर्या देखो ना वो पड़ा टूटा हुआ शीशा भी उधर !!

इतना कहकर शहनाज़ ने शीशे की तरफ इशारा किया तो सौंदर्या बोली:"

" बस बस दीदी, कोई बात नहीं। आपने दोनो ने अच्छा किया। हम हमे ही तो एक दूसरे के काम आना होगा। अच्छा अजय अब चले क्या कहीं लेट ना हो जाए ?

अजय हड़बड़ाया और बोला:" हान दीदी चलिए आप वैसे भी शाम हो गई है।

इतना कहकर अजय बाहर आया तो पीछे पीछे शहनाज़ और सौंदर्या भी अा गए। अजय ने गाड़ी निकाली और सभी सामान गाड़ी में रखकर वो चल पड़े।

अजय गाड़ी चलाते हुए बार बार शीशे से शहनाज़ को तिरछी नजरों से देख रहा था और शहनाज़ उसे हर पहले से ज्यादा खूबसूरत लग रही थी। पीछे बैठी हुई शहनाज़ सौंदर्या से बाते कर रही थी और अजय उसकी हर एक अदा पर दीवाना हुआ जा रहा था। वो प्यासी नजरो से शहनाज़ के होंठो को देख रहा था मानो उन्हें चूसने के लिए मरा जा रहा हो। बाते करते हुए शहनाज के चेहरा इधर उधर हिलता और अजय उसकी हर एक अदा पर पागल हो रहा था, मचल रहा था, मर रहा था, मिट रहा था।



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अजय के दिल में बस एक ही बात थी कि शहनाज़ सिर्फ मेरी हैं। मुझे शहनाज़ चाहिए, हर हाल में चाहिए, किसी भी कीमत पर चाहिए। बस बेचारे को क्या मालूम था कि शहनाज़ तो हमेशा के लिए अपने बेटे की हो चुकी हैं।
Good job
Shandar kahani chal rhi h 👍
 

andypndy

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सूरज पूरी तरह से डूब चुका था और बाहर अंधेरा नजर आ रहा था। लेकिन गाड़ी में शहनाज़ के रूप सौंदर्य की धूप खिली हुई थी और अजय उस पर पूरी तरह से आकर्षित हो गया था।

पीछे सौंदर्या और शहनाज़ आपस में बाते कर रही थी।

सौंदर्या:" वैसे एक बात है दीदी आप साडी में इतनी ज्यादा खूबसूरत लगेगी इसका अंदाजा नहीं था मुझे।

शहनाज़ के होंठो पर स्माइल अा गई और बोली:"

" अच्छा जी लेकिन सुंदर तो तुम भी हो सौंदर्या। मेरी प्यारी सहेली।

सौंदर्या:" हान जी लेकिन आपकी बात ही कुछ ओर हैं। सच कहूं तो ऐसा रूप सौंदर्य आज तक मैंने भी नहीं देखा। कौन कहेगा कि आपका एक जवान बेटा हैं। सच मानिए आपके लिए तो अभी लडको की लाइन लग जाएगी।

शहनाज़:" चुप कर पगली तुम, कुछ भी बोल देती हो। ऐसा कुछ भी नहीं हैं सौंदर्या।

अजय का दिल किया कि बोल दू एक लड़का तो मैं ही शहनाज़ हो तुम्हारे लिए पागल हो गया हूं लेकिन फिर संयम से काम लेते हुए बोला:"

" शहनाज़ दीदी सच में सौंदर्या दीदी सच ही तो कह रही है। आपके लिए तक लड़के दीवाने हो जाएंगे। वैसे अगर आप बुरा ना माने तो एक सलाह दू आपको ?

शहनाज़:" हान जी आप बोलो, क्या सलाह हैं?

अजय:" आपको एक बार फिर से शादी कर लेनी चाहिए।

अजय की बात सुनकर शहनाज़ के होंठो पर स्माइल फैल गई और मन ही मन सोचने लगी कि शादी तो मैं कर ही चुकी हूं अपनी जान अपने लाडले बेटे शादाब से। लेकिन अपने आपको संभालते हुए हंसते हुए बोली:"

" मतलब तुम कुछ भी बोल दोगे क्या ? मेरी उम्र देखो और मेरा एक जवान बेटा भी है।।

सौंदर्या:" उम्र तो आपकी कुछ भी नहीं है। ध्यान से खुद को देखो तो पता चला जाएगा कि अभी 28 साल से ज्यादा नहीं लगती है। अजय की बात बिल्कुल ठीक हैं आपको शादी कर लेनी चाहिए।

शहनाज: मुझे नहीं करनी शादी। अब तुम दोनों चुप बैठ जाओ और अजय तुम आराम से गाड़ी चलाओ। कहीं शादी के चक्कर में लेट ना हो जाए।

अजय और सौंदर्या चुप हो गए और गाड़ी की रफ्तार अब बहुत तेज हो गई थी। सौंदर्या खामोश बैठी हुई थी अपना मुंह फुलाए।

शहनाज़ समझ गई कि दोनो को बुरा लग गया है इसलिए बोली:"

" आप दोनो मेरी बात का बुरा मत मानिए। अगर दिल दुखा हो तो मुझे माफ़ कर दो तुम दोनों।

सौंदर्या:" अच्छा जी वैसे तो तुम मुझे अपनी सहेली बोलती हो और अभी बूढ़ी अम्मा की तरह हुए डांट दिया। ये अच्छी बात नहीं है।

शहनाज़:" अच्छा बाबा सॉरी, अब आगे से कभी नहीं कहूंगी। अब तो स्माइल करो तुम दोनो।

सौंदर्या:" एक शर्त पर ?

शहनाज़:" वो क्या अब बोलो भी ?

सौंदर्या:" आप मुझे अपनी सहेली समझती हो या बहन?

शहनाज़:" तुम तो मेरी बहन जैसी हो सौंदर्या। सगी से भी ज्यादा और अजय तुम मेरे लिए बिल्कुल मेरे बेटे जैसे हो।

सौंदर्या:" आपने हमें इसलिए डांट दिया क्योंकि आप हमे छोटा समझती है। आज से हम दोनों बराबर और एक दूसरे को नाम से बुलाएंगे नहीं तो आप फिर से डांट सकती हो आगे चलकर।

शहनाज़ ने सौंदर्या का हाथ पकड़ लिया और बोली:" बस इतनी सी बात ठीक से आज से तुम मुझे मेरे नाम से बुला लेना बस अब खुश हो तुम।

सौंदर्या शहनाज़ के गले लग गई और उसका गाल चूम कर बोली:"

" खुश एकदम खुश। थैंक्स शहनाज़ तुम मेरी सबसे अच्छी सहेली हो।

अजय की नाराजगी भी दूर हो गई थी बल्कि वो तो शहनाज़ से नाराज़ ही नहीं हुआ था। रात के करीब 10 बज गए थे और आकाश में चांद निकल आया था जिसकी हल्की रोशनी बाहर फैली हुई थी। अजय ना चाहते हुए भी शहनाज़ को बार बार प्यार भरी नजरो से देख रहा था और शहनाज़ की नजर बीच में एक दो बार उससे टकराई तो शहनाज़ को अजय की नजरे बदली बदली सी महसूस हुई।

सौंदर्या सो गई थी और थोड़ी देर बाद भी उनकी गाड़ी लिंगेश्वर मंदिर के सामने पहुंच गई। अजय ने गाड़ी को पीछे पार्क कर दिया और देखा कि अभी 10:40 हुए थे जबकि मंदिर में उनके घुसने का शुभ मुहूर्त 11:10 था तो उसने शहनाज़ को इशारा किया कि अभी सौंदर्या को सोने ही दो। अजय ने गाड़ी की खिड़की खोली और बाहर निकल गया और पीछे से शहनाज़ की तरफ से खिड़की को खोल दिया। शहनाज़ सावधानी पूर्वक बाहर निकलने लगी लेकिन निकलते हुए उसकी साड़ी नीचे से खिड़की के लॉक में फंस गई और नीचे से खुलती चली गई। शहनाज़ अब नीचे से मात्र पेंटी में अजय के सामने खड़ी हुई थी। साडी का एक पल्लू हवा में झूल रहा था जबकि दूसरा उपर उसके ब्लाउस में कंधे पर फंसा हुआ था।

शहनाज़ के मुंह से डर और शर्म के मारे आह निकल गई और वो साडी को जल्दी से अपने बदन पर लपेटने लगी लेकिन जल्दबाजी में उसकी मुसीबत और बढ़ गई और साडी का उसके ब्लाउस में फंसा हुआ पल्लू भी बाहर निकल गया।शहनाज अब सिर्फ ब्रा पेंटी में अजय के सामने खड़ी हुई थी और अजय उसको ब्रा पेंटी में देखकर पूरी तरह से बौखला गया। शहनाज उससे छुपाने के लिए कभी लाल रंग की ब्रा में कैद अपनी चूचियां साडी से ढकती तो उसकी जांघें नंगी हो जाती। जांघें ढकती को उसकी छाती नंगी हो जाती।

अजय बिना कुछ बोले उसकी तरफ देखे जा रहा था और शहनाज़ नजरे झुकाए अपने आपको साडी से लपेटने का असफल प्रयास कर रही थी क्योंकि उससे साडी बांधनी तो आती नहीं थी।

पार्किंग पीछे की साइड थी और उस तरफ कोई था भी नहीं बस ये ही एक अच्छी बात थी शहनाज़ के लिए लेकिन अजय का सामना करने में उसे दिक्कत हो रही थी। वो चाह कर भी सौंदर्या को नहीं उठा सकती थी तो अब उसकी ये साडी बंधेगी कैसे ये सबसे बड़ा सवाल था। अजय उसके करीब अा गया और बोला:"

" लाइए मुझे दीजिए मैं आपकी साडी बांध देता हूं। आपसे नहीं बंध पाएगी। लाइए मुझे एक पल्लू दीजिए।

अजय को अपने इतने करीब पाकर शहनाज़ की सांसे रुक सी गई थी। शहनाज़ को काटो तो खून नहीं। उसने सपने में भी नही सोचा था कि उसे ये दिन भी देखना पड़ेगा। मरती क्या ना करती। उसके पास कोई और दूसरा उपाय भी नहीं था इसलिए उसने कांपते हाथों से साडी का पल्लू पकड़ा और नजरे नीची किए हुए ही अजय को पकड़ा दिया। शहनाज़ की स्थिति खराब हो गई थी, उसकी सांसे तेज गति से चलती हुई धाड धाड कर रही थी। साडी का पल्लू हाथ में आते ही अजय ने उसे अपनी तरफ खींचा तो उल्टी सीधी लिपटी हुई साडी शहनाज़ के बदन से उतरती हुई चली गई।



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शहनाज़ शर्म से दोहरी होती चली गई और उसने अपना चेहरा अपने दोनो हाथों में छुपा लिया। अजय ने पहली बार ध्यान से शहनाज़ के जिस्म को देखा और आंखे खुली की खुली रह गई। शहनाज़ के गोरे गोरे गोरे कंधे, लंबी सी पतली पतली गर्दन, ब्लाउस से बाहर निकलने को तड़प रही उसकी गोल गोल गुदाज चूचियां जो आधे से ज्यादा बाहर छलक रही थी। उसका दूध सा गोरा चिकना सपाट पेट, केले के तने के समान चिकनी मांसल जांघों को देखते ही अजय के लंड में तनाव आना शुरू हो गया। शहनाज़ से धीरे से अजय को देखा तो उसे अपने जिस्म को घूरते हुए देखकर उसने शहनाज़ को बहुत शर्म महसूस हो रही थी इसलिए कांपते हुए बोली'"

" अजय जल्दी करो ना तुम, मुझे बहुत अधिक शर्म अा रही है, कोई इधर अा गया तो मेरा क्या होगा।

अजय ने आगे बढ़कर साडी का एक पल्लू शहनाज़ की कमर पर रखा तो उसकी छुवन से शहनाज़ के जिस्म ने एक झटका खाया और अजय ने अपनी पूरी हथेली को उसकी गांड़ पर टिकाते हुए साडी को लपेटना शुरू कर दिया। अजय साडी को गोल गोल घुमाते हुए आगे की तरफ अाया। साडी शहनाज़ के जांघो और गांड़ पर लिपट गई थी। अजय धीरे से उसके करीब आया और बोला;"

" ऐसी साडी बांध देता हूं कि आगे से कभी नहीं निकलेगी।

इतना कहकर उसने एक हाथ से साडी का पल्लू लिया और दूसरे हाथ से शहनाज़ की पेंटी को पकड़ लिया। अजय के हाथ अपनी पेंटी पर लगते ही शहनाज़ मचल उठी और उसकी चूचियां उपर नीचे होने लगी। अजय ने जैसे ही अपनी उंगली को शहनाज़ की पेंटी में फंसाया तो के मुंह से धीमी सी आह निकल पड़ी और उसने अपने दांतो से अपने होंठो को हल्का सा चबा दिया। अजय उसकी इस अदा पर बेकाबू हो गया और उसने शहनाज़ की पेंटी को खींचा और उसके बीच में साडी का पल्लू घुसा दिया। शहनाज़ की आंखे अभी भी शर्म से बंद थी और अजय उसकी साड़ी का पल्लू अच्छे से फांसते हुए धीरे से उसके कान में बोला,:_

"लीजिए ऐसा फंस गया है कि अब नहीं निकल पाएगा। सौंदर्या दीदी आपको नाम से पुकार रही है। आपको बुरा ना लगे तो क्या मैं भी आपको शहनाज़ कहकर पुकार सकता हूं !!

इतना कहकर उसने साडी को हाथ में लिया और उसकी कमर से लपेटते हुए उसके सीने पर ले अाया और उसकी चूचियों पर हल्का सा दबाव दिया तो शहनाज़ का जिस्म झटके पर झटके खाने लगा और वो मचलते हुए बोली:"

" आह अजय बुला लो तुम भी मुझे शहनाज़ कहकर।

अजय ने साडी को उसकी छाती से लाते हुए उसके कंधे पर ब्लाउस में साडी का दूसरा पल्लू फंसा दिया और उसके कंधे को हल्का सा सहलाते हुए कहा:"

" थैंक्स शहनाज़। आप सच में बहुत ज्यादा खूबसूरत हो। अल्लाह ने आपको पूरी तसल्ली से बनाया है।

इतना कहकर अजय उससे अलग हो गया और शहनाज़ ने सुकून की सांस ली। उसने अपनी आंखे खोल दी और अपने आपको फिर से साडी में पाकर खुश हो गई और बोली:"

" शुक्रिया अजय। तुमने हमेशा मेरी मदद करी हैं। आज तुम नहीं होते तो मेरा पता नहीं क्या हाल होता यहां।

अजय ने उसका हाथ पकड़ लिया और बोला:" आप बेफिक्र रहिए शहनाज़। मैं हमेशा आपके साथ हूं। आपकी मदद करने के लिए एक अच्छे दोस्त की तरह।

शहनाज़ ने अपने हाथ का दबाव अजय के हाथ में बढ़ा दिया और बोली:"

" ठीक है अजय, फिर आज से हम दोनों दोस्त। तुम अकेले में मुझे सिर्फ शहनाज़ कहकर बुलाओगे।

अजय ने शहनाज़ की आंखो में देखा और शहनाज़ ने उसे स्माइल दी।

शहनाज: अच्छा अजय एक बात बताओ मुझे सच सच तुम?

अजय :" बोलिए आप ?

शहनाज:" ऐसी क्या जरुरत थी जो सौंदर्या के नाम की राशि की दूसरी परिपक्व अौरत की आवश्यकता पड़ी ?

अजय थोड़ी देर के लिए चुप हो गया। उसकी समझ में नहीं अा रहा था कि वो शहनाज़ को कैसे ये बात बताए।

शहनाज़:" बोलो चुप क्यो हो तुम ? कोई तो वजह रही होगी ?

अजय:" देखो मेरी बात ध्यान से सुनना और गलत मत समझ लेना कुछ भी। आचार्य जी के अनुसार जैसे ही पूजा विधियां शुरू होगी तो मंगल अपनी तरफ से पूजा रोकने का हर संभव प्रयास करेगा और इसमें सौंदर्या की जान भी जा सकती हैं लेकिन अगर दूसरी औरत होगी तो मंगल का प्रभाव आधा हो जाएगा जिससे उस औरत पर खतरा भी आधा हो जाएगा। लेकिन आप बेकिफ्र रहिए मैं आपको कुछ नहीं होने दूंगा। मेरी बहन को इस दोष से मुक्ति दिलाने में मदद कीजिए।

इतना कहकर अजय ने अपने दोनो हाथ जोड़ दिए। शहनाज़ थोड़ी देर चुप रहीं और अभी उसे समझ आया कि इतना ध्यान से पैर रखने के बाद भी उसका पैर क्यों फिसल गया था। शहनाज़ की चुप्पी अजय के चेहरे की निराशा बढ़ा रही थी। उसे डर लग रहा था कि कहीं शहनाज़ बीच में ही छोड़ कर ना चली जाए। ।।

शहनाज़ ने थोड़ी देर सोचा और फिर एक गहरी सांस लेते हुए बोली:" अजय वैसे तो ये बहुत मुश्किल भरा काम होगा और इसमें मेरी जान भी जा सकती हैं लेकिन फिर ये जान भी तो तुम्हारी ही दी हुई है। रेहाना और उसके गुंडों से तुमने ही तो मुझे बताया था नहीं तो मैं तो कब की खत्म हो गई होती। मैं वादा करती हूं अपनी आखिरी सांस तक सौंदर्या को मुक्ति दिलाने के लिए कुर्बान कर दूंगी।

अजय:" मैं भी वादा करता हूं कि आप पर आने वाली हर मुश्किल को पहले मेरा सामना करना होगा। मैं हर हाल में आपकी रक्षा करूंगा।

शहनाज़ और अजय दोनो ने राहत की सांस ली। शहनाज़ जानती थी कि अजय खुद मर जाएगा लेकिन उसे कुछ नहीं होने देगा। तभी वहां एक गाड़ी पार्क होने के लिए अाई और उसकी आवाज सुनकर सौंदर्या की आंख खुली तो वो गाड़ी से बाहर निकल गई और अजय, शाहनाज के पास पहुंच गई।

शहनाज उसे देखते ही खुश हुई और बोली:" आओ सौंदर्या हम दोनों तुम्हारा ही इंतजार कर रहे थे सौंदर्या।

अजय:" अच्छा हुआ आप खुद ही उठ गई नहीं तो दर्शन का टाइम हो रहा था इसलिए आपको उठाना पड़ता।

सौंदर्या:" मुझे थोड़ी देर के लिए आंख लगी जरूर थी लेकिन मेरी पूरी ज़िन्दगी दांव पर लगी हो तो कैसे सो सकती हूं मैं।

शहनाज़:" बस सौंदर्या एक हफ्ते की हो तो बात हैं फिर सब कुछ ठीक हो जाएगा। उदास मत हो तुम बिल्कुल भी अब।

अजय:" अच्छा चलिए अंदर चलते हैं। पूजा का वक़्त आने वाला है।

इतना कहकर अजय आगे बढ़ा और उसके साथ साथ दोनो आगे बढ़ गई। जैसे ही अंदर घुसने लगे तो गेट पर एक पुरोहित खड़े हुए थे और उन्होंने अजय को उसके माथे पर तिलक लगा दिया। अजय ने पूरे सम्मान और श्रद्धा के साथ तिलक लगवाया और अंदर घुस गया। उसके बाद सौंदर्या आगे बढ़ी और अपना माथा आगे कर दिया तो पुरोहित की ने उसके माथे पर भी तिलक लगा दिया।



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अब शहनाज़ की बारी थी और अजय के साथ साथ सौंदर्या के मन में भी डर था कि कहीं शहनाज़ तिलक लगाने से मना ना कर दे क्योंकि ये पूजा में एक अपशकुन समझा जाएगा और ये बात अजय उसे बताना भूल गया था। शहनाज़ के चेहरे पर कोई भाव नहीं था और वो आगे बढ़ी उसने पुरोहित जी को देखकर अपना दुपट्टा सिर पर रखा और दोनो हाथ जोड़ दिए। उसकी आंखे बंद थी और चेहरे पर जमाने भर की शालीनता बिखरी हुई थी।

पुरोहित जी ने अपना हाथ आगे बढाया और शहनाज़ के माथे पर तिलक लगा दिया

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अजय और सौंदर्या दोनो ने चैन की सांस ली और शहनाज़ भी अंदर घुस गई और उनके पास पहुंच गई।

सौंदर्या ने उसे गले लगा लिया और बोली:"

" दीदी मैं तो डर गई थी कहीं आप तिलक लगाने के लिए मना ना कर दे क्योंकि अगर आप मना करती तो ये बहुत बड़ा अपशकुन समझा जाता और अजय आपको बताना भूल गया था।

शहनाज़ ने सौंदर्या की आंखो में देखा और बोली:"

" भला मना क्यों करती मैं ? मेरे लिए ये सब चीज़े इतनी मायने नहीं रखती। बस तुम्हे मुक्ति मिल जाय ये बड़ी बात होगी।

उसके बाद सभी लोग पहुंच गए और दर्शन किए। यहां लोगो की काफी भीड़ थी और अजय को समझ नहीं आ रहा था कि महराज ने जो पूजा की जो विधियां बताई थी वो कैसे पूरी होंगी ?

वो उम्मीद में इधर उधर देख रहा था तभी उसे एक बोर्ड नजर अाया जिस पर लिखा था

" मांगलिक समाधान पूजा"

अजय उधर पहुंच गया और उसे एक रास्ता जाता दिखाई दिया। शहनाज़ और सौंदर्या भी उसके पीछे पीछे चल पड़ी। रास्ता नीचे की तरफ जा रहा था और सभी लोग उसी दिशा में बढ़ गए। अब वो मंदिर से तहखाने से पूरी तरह से मंदिर से बाहर निकल गए लेकिन उन्हें इसका बिल्कुल भी अंदाजा नहीं था। नीचे जाकर वो दाई तरफ मुड़ गए और उन्हें एक दरवाजा नजर आया।

अजय ने राहत की सांस ली क्योंकि इसी दरवाजे के बारे में उसे आचार्य जी ने बताया था। लेकिन यहां से आगे की पूजा आसान नहीं होने वाली थी और ये दरवाजा ढूंढने के चक्कर में अजय भूल गया कि पहले उसके साथ शहनाज़ अंदर जाएगी। वो सभी जैसे ही दरवाजे के अंदर घुसने लगे तो सौंदर्या को चक्कर अा गए और गेट पर ही गिरकर बेहोश हो गई।

अजय और शहनाज़ दोनो ये सब देख कर डर गए और दोनो ने उसे वहीं बाहर पड़े एक बेड पर लिटा दिया। अजय को अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने सौंदर्या के मुंह पर पानी के छींटे मारे और शहनाज उसकी मालिश कर रही थी। सौंदर्या होश में अा गई तो दोनो ने सुकून की सांस ली और सौंदर्या को कुछ भी याद नहीं था कि थोड़ी देर पहले क्या हुआ था अभी।

सौंदर्या: भैया चलो अन्दर चलते हैं ना पूजा करने के लिए। नहीं तो देर हो जाएगी।

अजय दूसरी बार ये गलती नहीं करना चाहता था क्योंकि इस बार सौंदर्या का बचना मुश्किल होता। अजय:*


" दीदी आप अंदर नहीं जाएगी, पहले अंदर मैं और शहनाज़ दीदी जायेंगे। मेरी भूल की वजह से एक गलती हो जिसकी खामियाजा अब भुगतना पड़ेगा। आप खिड़की या दरवाजे के पास भी नहीं जा पाएगी क्योंकि मंगल के प्रभाव के चलते वो खुद ही खुल जायेंगे और आप अंदर अपने आप घुस जाओगी। अगर ऐसा हुआ था आपको दिक्कत होगी। अंदर का अनुभव आपको शहनाज़ दीदी आकर बता देगी और आपको उसी के आधार पर मेरे साथ होना होगा बाद में।


सौंदर्या ने अपनी सहमति दे दी और वहीं बेड पर लेट गई। अजय ने कुछ मंत्र पढ़े और वो जानता था कि अब सौंदर्या सुरक्षित है क्योंकि मंत्रित प्रभाव के चलते कोई भी ताकत अब सौंदर्या को बेड से नहीं हिला सकती थी।

अजय और शहनाज दोनो अंदर की तरफ चल पड़े और जैसे ही शहनाज़ ने पैर रखे तो दरवाजा अपने आप खुलता चला गया। जैसे ही दोनो गए तो दरवाजा अपने आप बंद हो गया।

शहनाज़ की नजरे जैसे ही कमरे पर पड़ी तो उसकी आंखे फटी की फटी रह गई। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि जो कुछ वो अपनी आंखो से देख रही हैं वो सच है। एक बहुत ही बड़ा पूजा स्थल बना हुआ था और जिसके बीच में एक लंड की प्रतिमा लगी हुई थी जो आगे सुपाड़े से पूरी तरह गुलाबी थी जिसे देखते ही शहनाज को फिर से वो चिड़िया घर वाला सीन याद अा गया। उसने देखा की प्रतिमा के दोनो तरफ लंड के आकार की कुछ और प्रतिमा लगी हुई थी और बीच में एक गहरा गड्ढा था शायद यही पूजा के लिए बनाया गया था। शहनाज़ ने पूरे कमरे ने नजर डाली तो उसे छत पर काफी सारी लंड की प्रतिमा नजर आई और सबसे खास बात सबके मोटे मोटे सुपाड़े बिल्कुल गुलाबी थे।


अजय भी ये सब देखकर आश्चर्य में पड़ा हुआ था। हालाकि उसे पहली ही आचार्य जी ने सब कुछ बता दिया था लेकिन फिर भी यहां उसकी उम्मीद से कुछ ज्यादा ही था। वहीं ये सब देख कर शहनाज़ शर्म के मारे अपनी नजरे नहीं उठा पा रही थी।

अजय सब समझ रहा था और इसलिए धीरे से चलते हुए उसके पास पहुंच गया। शहनाज़ की नजरे अभी भी झुकी थी।

अजय:" देखो शहनाज़ दीदी ये लिंगेश्वर मंदिर हैं तो यहां लिंग की प्रतिमा तो होनी ही थी। मांगलिक होने के कारण शादी ना होने से सेक्स नहीं होता जिससे इंसान की इच्छाएं बढ़ती जाती है। इसलिए यहां आशीर्वाद लेने के लिए आते हैं ताकि उन्हें सेक्स करने की ताकत मिले और उनकी ज़िंदगी अच्छे से गुजर सके।

शहनाज़ सिर झुकाए चुप चाप खड़ी हुई थी। शहनाज़ को आज पहली बार पता चला कि लंड को लिंग भी बोलते हैं। अजय उसकी हालत समझते हुए बोला:"

" देखिए अगर आपको थोड़ा सा भी दिक्कत हो तो आप जा सकती हैं। मैं आप पर जोर नहीं दूंगा बिल्कुल भी।

शहनाज़ अजीब दुविधा में फंस गई थी। जहां एक ओर उसे ये सब मुश्किल करना लग रहा था वहीं दूसरी और उसके अंदर अजय को मना करने की भी हिम्मत नहीं थी। अजय के एहसान और सौंदर्या का मासूम चेहरा उसकी आंखो के आगे घूम रहा था। शहनाज़ चाहकर भी मना नहीं कर सकती थी। उसने बड़ी मुश्किल से अपनी नजरे उपर की तरफ उठाई और अजय को पूजा के लिए सहमति दे दी।

अजय:" देखिए सबसे पहले तो हम दोनों पूजा करेंगे। इसके लिए हमें आसान पर बैठना पड़ेगा। पूजा करते समय हमारा पुरा ध्यान सिर्फ और सिर्फ पूजा पर ही होना चाहिए। पूजा करने के बाद आपको उपर छत पर लगे घंटे बजाने होंगे लेकिन इसमें आपका हाथ नहीं जाएगा तो मुझे आपकी मदद करनी पड़ेगी। रुको पहले मैं अपने कपड़े बदल लेता हूं।

शहनाज़:" लेकिन क्या तुम मुझे उठा पाओगे इतने उपर तक अजय ?


अजय:" आपकी उसकी फिक्र मत कीजिए। वो मेरा काम तो आप मुझ पर छोड़ दो।
शहनाज़ ने सहमति दी और अजय ने आगे बढ़कर बैग को खोला और उसमे से एक चादर निकल ली। आचार्य जी के अनुसार उसे ये चादर पूजा करते हुए अपने जिस्म पर लपेटनी थी। अजय ने साइड में खड़ा होकर अपने कपड़े निकाल लिए और अब सिर्फ निक्कर में था। अजय अपने जिस्म पर चादर लपेट ली और शहनाज़ के सामने अा गया।

अजय सामने जमीन पर बैठ गया और उसने कुंड में आग जला दी। शहनाज़ ने एक बार आसन की तरफ देखा और उसका बदन कांप उठा। धीरे धीरे आगे बढ़ती हुई वो उसके पास पहुंच गई। शहनाज़ आसान पर बैठने के लिए नीचे को झुकी और उस अपनी आंखे बन्द करते हुए उस पर बैठ गई। शहनाज़ की आंखे लाल सुर्ख हो रही थी और नीचे हो झुकी हुई थी।

अजय ने उसके हाथ में कुछ सामान दिया और उसके बाद कुछ पढ़ा तो शहनाज़ ने हाथ में रखा सामान आगे की तरफ पूरा झुकते हुए देखते हुए आग में डाल दिया। सामने शहनाज़ की नजर बीच में बने हुए लंड पर पड़ी और और उसका सुपाड़ा देखते ही शहनाज़ के बदन में उत्तेजना सी दौड़ गई। आगे झुकने से उसकी साड़ी का पल्लू उसके कंधे से निकल गया और सिर्फ ब्लाउस में अा गई। शहनाज़ को अजय की बात याद थी इसलिए चाहते हुए भी वो अपना पल्लू ठीक नहीं कर पाई।

शहनाज़ की नजरे फिर से झुक गई और इस बार उसकी उस लंड के सुपाड़े पर पड़ी जिस पर बैठी हुई थी। बेचारी शहनाज़। आंखे भी बंद नहीं कर सकती थी क्योंकि एक तो पूजा और दूसरा उसे शर्म तो अा रही थी लेकिन कहीं ना कहीं ये सब देखकर उसे अच्छा लग रहा था।

अजय:" अगर आप इस तरह से नजरे झुका कर रखेंगी या बंद करेगी तो पूजा में समस्या पैदा हो सकती हैं।

शहनाज़ ने अपनी आंखे को सामने की तरफ कर दिया और उसकी नजरे फिर से लंड पर टिक गई। अजय उसके ठीक सामने ही बैठा हुआ था और बीच बीच में शहनाज़ के सुंदर मुखड़े को देख रहा था। कभी उसके ब्लाउस से झांकती उसकी गोलियां तो कभी उसके चिकने कंधे और गोरे गोरे पेट को देख रहा था।

अजय ने फिर से शहनाज़ के हाथ में कुछ सामग्री और घी दिया और कुछ मंत्र पढ़े और शहनाज़ को आग ने डालने का इशारा किया। शहनाज़ जैसे ही आगे को झुकी तो उसकी चूचियां आधे से ज्यादा बाहर की तरफ छलक अाई और उसने सामग्री को आग के हवाले कर दिया। शहनाज़ की चूचियां का उछाल देखते ही अजय की आंखे चमक उठी और उसने शहनाज़ को थोड़ा और आगे होने का इशारा किया ताकि ठीक से उसे अगली बार सब दिखाई दे सके। शहनाज़ आगे को हुई और अब लंड प्रतिमा के सुपाड़े पर बैठी हुई थी और ये सोच सोच कर उसकी सांसे तेज हो गई थी। शहनाज़ की आंखे पूरी तरह से लाल सुर्ख हो गई थी और उसकी छातियां उपर नीचे हो रही थी। उसके पूरे बदन में उत्तेजना भरती जा रही थी और उसकी टांगे कांप रही थी।

अजय ने फिर से कुछ मंत्र पढ़े और शहनाज़ को फिर से सामान आग में डालने का इशारा किया। शहनाज़ थोड़ा सा आगे को हुई और उसने जैसे ही झुककर सामान आग में डाला तो उसकी चूचियों की गहराई फिर से पहले से ज्यादा बाहर झांक पड़ी। अजय ने अपनी प्यासी नजरे बाज की तरफ उन पर टिका दी। शहनाज़ जैसे ही पीछे को हुई तो उसकी चूत लंड प्रतिमा के सुपाड़े पर रगड़ गई और उसके मुंह से आह निकल पड़ी जो सामने बैठे हुए अजय को साफ सुनाई दी। अजय उसे बार बार सामग्री डालने के बहाने आगे बुलाता और उसकी चूचियां घूरता। जैसे ही वो पीछे होती तो उसकी चूत लंड पर रगड़ रही थी और शहनाज़ पूरी तरह से बेचैन हो गई जिससे उसकी चूत में गीलापन अा गया था और अब वो खुद ही पीछे होने के बहाने अपनी चूत पत्थर लिंग के सुपाड़े पर रगड़ रही थी।

पूजा का समय खत्म हो गया था और घंटा बजाने की बारी थी। अजय और शहनाज़ आग के पास बैठने से पसीना पसीना हो गए हो और अजय तो मानो पसीने में नहा सा लगा था।

दोनो आसान से खड़े हो गए और अजय ने चादर को उतार दिया और अपना पसीना साफ करने की। वहीं शहनाज ने अपनी साडी का पल्लू फिर से ठीक किया और अजय को देखने लगी। पहली बार उसने अजय को सिर्फ निक्कर में देखा। अजय के हट्टा कट्टा सांड जैसा लड़का था। उसकी चौड़ी चौड़ी छाती उसकी ताकत अपने आप बयान कर रही थी। उसकी ताकतवर हाथ उसकी ताकत दर्शा रहे थे। शहनाज़ का बदन पूरी तरह से गरम था और उसकी चूचियों में अकड़न सी पैदा हो गई थी और उसकी जांघो के बीच गीलापन बढ़ता जा रहा था। शहनाज़ अजय के बदन को देखकर मन ही मन उसकी तारीफ किए बिना ना रह सकी और चोरी चोरी उसे घूर रही थी। काश वो उसे छू सकती।

चादर पूरी तरह से भीग गई थी तो अजय ने उसे निचोड़ दिया और फिर से अपना पसीना साफ करने लगा लेकिन कमर पर उसका हाथ नहीं जा पा रहा था तो उसने शहनाज़ की तरफ देखा और कहा:"

" आपको अगर बुरा ना लगे तो मेरी कमर से पसीना साफ़ कर दीजिए।

शहनाज़ को भला क्या आपत्ति हो सकती थी उसने खुशी खुशी आगे बढ़ कर चादर को थाम लिया और अजय के पीछे खड़ी हो गई। शहनाज़ अजय के जिस्म को पीछे से देख रही थी और उसके अंदर बहुत सारे अरमान मचल रहे थे।उसने अपने कांपते हाथो से उसकी कमर को चादर से साफ करना शुरू कर दिया और वो सिर्फ साफ ही नहीं कर रही थी बल्कि अपने हाथ से छूकर उसकी मजबूती भी देख रही थी।


शहनाज़ के हाथो की नाजुक उंगलियां अपनी कमर कर महसूस करके अजय भी जोश से भर गया था और उसके लंड में तनाव आने लगा। शहनाज़ उसके दोनो कंधो को साफ करने लगी और थोड़ा सा और करीब से देखने के लिए आगे हो गई। अजय के चौड़े मजबूत कंधे की कठोरता शहनाज़ की जलती हुई आग में घी डाल रही थी।

शहनाज़ की सांसे इतनी तेज चल रही थी मानो उसका ब्लाउस फाड़कर उसकी चूचियां बाहर निकलना चाहती हो।अजय की कमर और कंधे साफ हो गए थे लेकिन इसके सिर से निकल रही पसीने की बूंदे फिर से उसकी गर्दन से होती हुई उसकी छाती को पूरी तरह से भिगो चुकी थी। शहनाज़ ने अजय के हाथ को उपर की तरफ किया तो उसने खुद ही अपने हाथ ऊपर उठा कर अपने सिर पर टिका दिए। ऐसा करने से शहनाज़ पूरी तरह से काबू से बाहर हो गई और थोड़ा आगे होते हुए उसकी बगल को साफ करना शुरू कर दिया। आगे होने से दोनो के बीच की दूरी बस नाम मात्र ही रह गई थी। शहनाज़ की तेजी से चलती हुई सांसे अजय को उसकी हालत बयान कर रही थी और अजय तो खुद बेचैन था क्योंकि उसका लन्ड पूरी तरह से अकड़कर अपनी असली औकात में अा गया और पत्थर की तरह सख्त हो गया था।

शहनाज़ ने अपनी नाजुक उंगलियो से उसकी बगल को साफ करना शुरू कर दिया और धीरे धीरे अजय की छाती की तरफ छूने लगी। शहनाज़ से अब बर्दाश्त नहीं हो रहा था और उसके हाथ लालच में आगे बढ़ गई और जैसे ही उसने अजय की ठोस छाती को छुआ तो दोनो के मुंह से आह निकल पड़ी। शहनाज़ अपने आप आगे को हुई और अजय पीछे को। उससे दोनो के बीच की सारी दुनियां समाप्त हो गई और अजय की कमर शहनाज़ के सीने से टकराई। जैसे ही उसकी चूचियों टकराई तो दोनो फिर से सिसक उठे और शहनाज ने मदहोशी के आलम में उसकी छाती को साफ करना शुरू कर दिया। शहनाज़ उसकी छाती पर अपनी पकड़ बनाने के लिए उससे चिपकी जा रही थी जिससे उसकी चूचियों के तने हुए निप्पल अजय की पीठ में घुसे जा रहे थे और अजय बहकता जा रहा था।
शहनाज़ ने अपनी उंगलियां उसकी छाती पर जमा दी और सहलाते हुए बोली:"

" अजय तुम्हे तो बहुत पसीना आया हुआ है। उफ्फ कितने भीग गए हो।

अजय:" आग के पास बैठने की वजह से पसीना निकल रहा है ज्यादा शहनाज़।

अजय इतना कहकर थोड़ा सा आगे को हुआ और पीछे को हुआ तो उसकी पीठ शहनाज़ की चूचियों से टकराई तो शहनाज़ की चूचियां उसकी कठोर पीठ से मसल सी गई तो शहनाज़ ने अपनी उंगलियां पूरी ताकत से उसकी छाती पर गडा दी और बोली:"

" उफ्फ अजय तुम कितने मजबूत हो। कितना कठोर है तुम्हारा बदन।

अपनी तारीफ सुनकर अजय पिघल गया और उसने फिर से अपनी पीठ को शहनाज़ की चूचियों की तरफ धकेला तो शहनाज़ ने भी पूरी ताकत से अपनी चूचियों को आगे किया और एक जोरदार आवाज के टक्कर हुई। दोनो एक साथ सिसक उठे। चादर शहनाज़ के हाथ से निकल गई और उनसे पहली बार अपनी अजय छाती को अपनी पूरी नंगी हथेली में भर लिया और थोड़े कठोर हाथ से साफ करने लगी। शहनाज की चूत पूरी तरह से भीग गई थी और पानी पानी हो गई थी।

शहनाज अपनी पूरी ताकत से अपनी नंगी हथेली से उसकी छाती को रगड़ रही थी और अपनी चूचियों को उसकी कमर में रगड़ रही थी। पागल से हो चुके अजय ने जैसे ही इस आगे को कदम रखा तो शहनाज़ ने अपनी दोनो टांगे आगे करते हुए उसके पैरो के पंजों पर टिका दी। इससे चूचियों के साथ साथ उसकी जांघें अजय की गांड़ पर कस गई। अब शहनाज़ अजय के पीछे खड़ी हुई उसके उपर झूल सी रही और अपनी गीली चूत को जोर जोर से उसकी गांड़ पर रगड़ रही थी। अजय ने अपने दोनो हाथों को पीछे करते हुए शहनाज़ की चिकनी नंगी कमर पर बांध दिया और शहनाज़ अपनी पूरी ताकत से अपनी उंगलियों से उसकी छाती को रगड़ते हुए अपनी चूत उसकी गांड़ पर रगड़ रही थी और शहनाज़ के मुंह से अब हल्की हल्की मस्ती भरी सिसकारियां निकल रही थी। उसकी चूत में तूफान सा अाया हुआ था और वो झड़ने के कगार पर थी और उसकी गति और बढ़ गई।

तभी अजय की नजर घड़ी पर पड़ी तो उसने समझ अाया कि घंटा बजाने का शुभ समय बीता जा रहा था तो वो बोला:"

" शहनाज़ बस हो गई। घंटा बजाने का मुहूर्त निकला जा रहा है अब।

शहनाज़ ना चाहते हुए भी रुकने को मजबूर थी और अजय से अलग हो गई। उसके चेहरे पर बिखरे हुए बाल, उसकी उछलती हुई चूचिया, तेज सांसे लाल आंखे उसकी सारी हालत बयान कर रही थी।

अजय;" वैसे आप पसीना बहुत अच्छा साफ करती हो। पूरा रगड़ रगड़ कर।

इतना कहकर अजय ने उसे स्माइल तो शहनाज़ शर्म से लाल होकर उसके करीब हुई और उसकी छाती में धीमे धीमे मुक्के बजाने लगी। अजय ने उसे अपनी बांहों में कस लिया तो जिस्म की आग में तप रही शहनाज़ उससे कसकर लिपट गई।

अजय:" अब मैं तुम्हे अपनी गोद में उठा लूंगा और तुम उपर लगे लिंग को हाथ से पकड़कर जोर जोर से हिलाना ताकि घंटा बज सके। जितनी जोर से तुम घंटा बजाओगे सौंदर्या की आने वाली ज़िन्दगी उतनी ही अच्छी होगी।

अजय ने अपने दोनो हाथ शहनाज़ की गांड़ पर रखे और उसे उपर की तरफ उठाने लगा। शहनाज की फुदकती हुई चूचियां उसके मुंह पर रगड़ती हुई उपर चली गई और अजय ने थोड़ी भारी वजनी शहनाज़ को फूल की तरह आसानी से उठा लिया तो शहनाज़ उसके बाजुओं की ताकत की कायल होती चली गई।

इस वक़्त शहनाज़ के पैर अजय की छाती के सामने थे और शहनाज़ ने एक नजर ऊपर लटक रहे लिंगो पर डाली और उनके गुलाबी गुलाबी सुपाड़े देखते ही शहनाज़ की आंखे चमक रही। शहनाज़ के अपने कांपते हाथों से एक लिंग को पकड़ लिया और उसे हिलाने लगी। शहनाज़ की चूचियों में तनाव बढ़ा और वो फूलती चली गई जिससे कटक की आवाज के साथ उसकी ब्लाउस के बटन टूट गए और किसी सूखे हुए पत्ते की तरह नीचे गिरा और अजय की छाती पर अा टंगा। शहनाज़ के मुंह से आह निकल पड़ी और उसके जिस्म ने एक जोरदार झटका खाया और शहनाज़ आगे गिरने को हुई और अजय के हाथ से निकल गई। शहनाज़ इस वक़्त लंड को पकड़े हुए सिर्फ ब्रा पेंटी में झूल रही थी और अजय के हाथ में उसकी साड़ी अा गई थी। हवा में लटकी शहनाज़ डर के मारे चींखं उठी और अजय ने साडी को फेंकते हुए शहनाज़ को उसकी जांघो से थाम तो दोनो ने राहत की सांस ली। ब्रा पेंटी में होने के कारण शहनाज़ की उत्तेजना और बढ़ गई और उसकी चूत से रस टपकना शुरू हो गया जिससे उसकी पेंटी पूरी गीली हो गई थी।

अजय शहनाज़ को ब्रा पेंटी में देखकर पागल सा हो गया और ऊपर उठा उठा कर देखने लगा। शहनाज़ किसी अजंता की तराशी हुई मूर्ति की तरह कामुक लग रही थी। ब्रा में उसकी चूचियां का उभार पहले से ज्यादा छलक रहा था और उसकी चौड़ी मोटी बाहर की तरफ उभरी हुई गांड़ अजय की हालत और ज्यादा खराब कर रही थी।

शहनाज़ अजय से बेखबर हवा में झुकते हुए लंड को पकड़ पकड़ हिलाते हुए घंटे बजा रही थी। शहनाज़ ने देखा कि एक लंड थोड़ा उपर की तरफ था वो सबसे ज्यादा गुलाबी था तो शहनाज़ अजय से सिसकते हुई बोली,:"

" अजय एक ल.. ल ल..

अजय:" ऊपर की तरफ क्या शहनाज़? बोलो ना

शहनाज़ ने शर्म के मारे अपनी आंखे बंद कर ली और कांपते हुए बोली:" वो वो मैं कह रही थी कि एक लंड उपर की तरफ हैं। मुझे थोड़ा और ऊपर उठाओ ना।

लंड बोलते ही शहनाज़ की चूत के पूरी तरह से भीग कर चिकने हो गए लिप्स फड़फड़ा उठे।
शहनाज़ के मुंह से लंड सुनते ही अजय तड़प सा उठा। उसका मन किया कि शहनाज़ को यहीं फर्श पर पटक पटक कर चोद दे लेकिन मजबूर था। अजय ने शहनाज़ के घुटनो को मजबूती से पकड़ लिया और उपर की तरफ उठा लिया। जैसे ही शहनाज़ उपर हुई तो हिलता हुआ एक लंड उसके मुंह को रगड़ता हुआ चला गया। शहनाज़ के होंठो से आह निकल पड़ी और इसका सीधा असर उसकी चूत पर हुआ और चूत से निकला अमृत रस उसकी पेंटी ना थाम सकी और जांघो को भिगोने लगा।

शहनाज़ ने उपर के लंड को हाथ से पकड़ लिया और जोर जोर से हिलाने लगी। जैसे ही इस हवा में हिलता हुआ लंड उसकी आंखो से सामने से गुज़रा तो गुलाबी सुपाड़े को देखकर शहनाज़ के मुंह और चूत दोनो के होंठ खुल गए। शहनाज़ की चूत से टपक रहे अमृत रस की बूंद अजय के मुंह पर पड़ी तो उसकी आंखे जैसे ही ऊपर हुई तो उसकी नजर शहनाज़ की भीगी हुई पेंटी से टपकते हुए रस पर पड़ी तो अजय पूरी तरह से बौखला गया और उसने शहनाज़ के मुंह की तरफ देखा। ऊपर जैसे ही लंड धीमे से हिलता हुआ शहनाज़ के मुंह के आगे से निकला तो शहनाज़ ने सब शर्म लिहाज छोड़ कर पूरी बेशर्मी दिखाते हुए लंड के गुलाबी सुपाड़े को अपने होंठों से चूम लिया। ये सब देखकर अजय से अब बर्दाश्त नहीं हुआ और उसने अपने जलते हुए होंठो को शहनाज़ की टांगो पर टिका दिया। शहनाज़ की चूत में पहले से ही आग लगी हुई और अजय के गर्म गर्म होंठ अपनी टांगों को महसूस करते ही वो जोर जोर से लंड को हिलाने लगी और घंटे की जोर जोर से आवाज गूंज रही थी। अजय ने अपनी जीभ निकाल कर शहनाज़ की टांग पर बहते हुए चूत के अनमोल अमृत रस को जैसे ही छुआ तो लालची शहनाज़ ने अपने मुंह से आगे हिलते हुए लंड के गुलाबी सुपाड़े को मुंह में भर लिया और उसने हाथो में पकड़े हुए लंड पर दबाव दिया। दबाव के चलते वो लंड टूट कर शहनाज़ के हाथ में आ गया और शहनाज़ अजय के हाथो से स्लिप होती चली गई।

शहनाज़ की दोनो टांगे अजय के खड़े हुए लंड पर टंग सी गई और उसके भारी भरकम वजन को सहने के बाद भी लंड थोड़ा सा भी नीचे नहीं झुका तो शहनाज़ अजय की मर्दानगी पर फिदा होती चली गई। शहनाज़ उसके लंड को पेंटी के ऊपर से अपनी चूत पर महसूस करते ही पागल हो गई और उसने मदहोशी में अजय की छाती को चूम लिया। शहनाज़ कुछ भी करके झड़ना चाहती थी इसलिए वो अपनी चूत को लंड पर रगड़ने लगी लेकिन अजय ने उसे थामते हुए नीचे उतार दिया। शहनाज़ प्यासी नजरों से अजय को देखती हुई जल बिन मछली की तरह तड़प रही थी और कुछ भी करके झड़ना चाहती थी । बस अजय के पहल करने की देर थी शहनाज़ खुद ही उसके ऊपर चढ़ जाती।


अजय:" पूजा खत्म हो गई है और थोड़ा ही समय बचा हुआ है इसलिए आप बाहर जाइए और सौंदर्या को अंदर भेज दीजिए।

शहनाज़ बाहर जाना ही नहीं चाहती थी इसलिए बोली:" वो मुझे साडी बांधनी नहीं आती।

अजय उसकी बात सुनकर आगे बढ़ा और साडी को उठाकर उसकी गांड़ पर लपेटते हुए बांध दिया और शहनाज़ ने अपनी गांड़ खुद ही पीछे करके उसके हाथो में थमा दी। अजय ने साडी पहनाने के बहाने उसकी गांड़ को सहलाया तो शहनाज़ अपनी जांघें आपस में रगड़ रही थी। अजय ने साडी का दूसरा पल्लू उपर उठाया और जैसे ही शहनाज़ की चुचियों से सामने हुआ to उसने अपने दोनो हाथ अजय के हाथ के उपर रख दिए। इससे अजय के हाथो का दबाव उसे अपनी चूचियों पर महसूस हुआ और अजय के हाथो की छुअन महसूस करके शहनाज़ एक बार फिर से सिसक उठी और बाहर की तरफ निकल गई और अजय से लिपट गई।

अजय ने साडी का दूसरा पल्लू उसकी ब्रा की स्ट्रिप में लगाया और बोला:"

," शहनाज़ शुभ मुहूर्त निकला जा रहा है, जल्दी से सौंदर्या को अंदर भेज दो जाकर।

शहनाज़ ना चाहते हुए भी अलग हुई और बाहर की तरफ जाने लगी तो पीछे से अजय की आवाज आई

" अपना ब्लाउस तो लेती जाओ शहनाज़ !!

शहनाज़ पलटी और उसने अजय के हाथ से कांपते हाथो से अपना ब्लाउस लिया और बाहर निकल गई।
वाह भाई वाह...क्या लंड तोड़ू दृश्य था मजा आ गया.
लिखने रहो भाई....👍
 

andypndy

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सभी के पूजा के लिए जाने के बाद शादाब और कमला दोनो घर के अंदर अा गए और कमला की अजीब सी स्थिति थी। जहां एक ओर वो खुश थी कि आज से उसकी बेटी के कष्ट निवारण के लिए उपाय आरंभ हो गए हैं वहीं दूसरी ओर क्या ये पूजा और उसकी सभी विधियां ठीक से संपन्न हो पाएगी ये सभी सोच कर वो अंदर ही अंदर परेशान थी। शादाब से उसकी ये हालत छुपी नहीं थी इसलिए शादाब बोला:"

" आंटी क्या हुआ आप कुछ दुखी नजर सा रही हो ?

कमला:" बस बेटा ये ही सोचकर परेशान हूं कि क्या पूजा की सभी विधियां ठीक से पूरी हो जाएगी।

शादाब आत्म विश्वास से भरे हुए शब्दो में बोला:"

" बिल्कुल होगी। आप उसकी कोई चिंता मत कीजिए। मुझे अजय पर पूरा भरोसा है। और फिर मेरी अम्मी शहनाज भी तो गई है सौंदर्या दीदी की मदद करने के लिए। वो किसी भी बाधा को पर कर देगी।

कमला थोड़ी भावुक हो गईं और बोली:" भगवान करे तेरी बात सच हो जाए बेटा। मुझे अजय और शहनाज़ बहन पर पूरा भरोसा है। तुम लोग तो मेरे लिए देवता बनकर आए हो बेटा।

इतना कहकर कमला ने शादाब के सामने हाथ जोड़ दिए तो शादाब ने उसके हाथो को अपने हाथो से थाम लिया और बोला:"

" ना आंटी ना, बेटा भी कह रही हो और हाथ भी जोड़ रही हो। ये तो बिल्कुल भी अच्छी बात नहीं है। अजय मेरे सगे भाई जैसा हैं और आपकी हर परेशानी मेरी अपनी हैं एक दम।

कमला:" बेटा सच में आज कल तेरे जैसे दोस्त मिलने मुश्किल हैं। भगवान से प्रार्थना है कि तुम्हे लंबी आयु प्रदान करे।

शादाब:" जी आपका शुक्रिया आंटी जी। वैसे एक बात तो बताओ मुझे काम क्या क्या करना होगा ? घर के काम, खेत के काम वो सब आप बता दीजिए।

कमला:" बस बेटा घर के सारे काम तो मैं खुद ही कर लूंगी। तुम बस खेत से घास ला देना और बाहर बाजार से किसी सामान की जरुरत हुई तो वो लेते आना।

शादाब:" अच्छा ठीक है, मैं सब कुछ बड़े आराम से कर लूंगा। आप बेफिक्र रहिए। अब आप आराम कर लीजिए।

कमला:" अच्छा ठीक है बेटा, तुम भी थोड़ी देर आराम कर लो। फिर सुबह होने में भी ज्यादा समय नहीं बचा हुआ हैं।

इतना कहकर कमला बाहर ही बरामदे में पड़े हुए बेड पर लेट गई और शादाब अंदर बने हुए कमरे में लेट गया। कमला की आंखो से नींद कोसो दूर थी और उसे अभी भी सौंदर्या के बारे में सोचकर चिंता हो रही थी। पता नही पूजा में कोई अपशकुन मा हो जाए। कहीं मेरी बेटी फिर से मांगलिक ही ना रह जाए। बड़ी मुश्किल से एक मौका मिला उपाय करने का तो ये हाथ से नहीं जाना चाहिए। ये सब सोचते सोचते कब उसकी आंख लग रही उसे पता ही नहीं चला।

सौंदर्या और शहनाज़ के साथ साथ अजय भी पूजा के बाद घर वापिस लौट आए और सभी के चेहरे पर उदासी छाई हुई थी। ये सब देखकर कमला का दिल डर के मारे बैठ गया और घबराते हुए बोली'"

" क्या हुआ ? तुम सब इतनी जल्दी कैसे अा गए?

अजय ने अपना चेहरा नीचे किया और उदासी से बोला'"

" मम्मी वो पूजा ठीक से संपन्न नहीं हो पाई क्योंकि शहनाज़ आंटी ने बीच में ही पूजा की कुछ विधि करने से मना कर दिया।

अजय की बात सुनते ही कमला जोर से चींखं पड़ी और उसकी आंख खुल गई। ये भगवान मैं तो ये सपना देख रही थी। कमला डर के मारे कांप रही थी और उसके माथे पर पसीना आया हुआ था।

कमला की आवाज सुनकर शादाब नींद से जाग गया और उसकी तरफ दौड़ा तो देखा कि कमला लंबी लंबी सांस ले रही थी और पसीने पसीने हो गई थी। कमला बेहोश हो गई शादाब ने जल्दी से अपने बैग में किट निकाली और उसका ब्लड प्रेशर चेक किया जो 260 के आस पास था।

शादाब थोड़ी देर के लिए डर गया लेकिन अगले ही पल उसने एक इंजेक्शन उसे लगाया और कुछ ब्लड प्रेशर की दवा दी। शादाब इसके पास ही बैठ गया और उसका ध्यान रखने लगा।

करीब एक घंटे के बाद कमला का ब्लड प्रेशर कम और उसने अपनी आंखे खोल दी। शादाब ने चैन की सांस ली और बोला:"

" आपको क्या हुआ था आंटी ? आप घबरा क्यों गई थी ?

कमला थोड़ी देर छत को देखती रही और शादाब ने फिर से सवाल किया तो बोली:"

" बेटा वो मैंने एक सपना देखा कि पूजा विधि ठीक से नहीं हुई और मेरी बेटी फिर से मांगलिक ही रह गई। बस इसलिए डर गई थी।

शादाब:' ओह आंटी आप भी ना, सपने तो सपने होते हैं। वो सच थोड़े ही होते हैं।

कमला थोड़ी घबराई हुई आवाज में बोली:" नहीं बेटा, मेरे सपने सच ही होते हैं, और सुबह का देखा हुआ सपना तो कभी झूठ नहीं होता।

शादाब:" ऐसा क्या देख लिया आपने ? क्यों पूजा सफल नहीं हुई ये बताओ ?

शादाब का सवाल सुनते ही कमला बोली:" बेटा हुआ ये कि शहनाज ने पूजा की विधि...


इतना कहकर कमला चुप हो गई क्योंकि उसे समझ नहीं आ रहा था कि किस तरह से शादाब को कहे कि उसकी अम्मी ने पूजा विधि ठीक से नहीं करी। शादाब थोड़ा परेशान होते हुए बोला:"

" हान आंटी बोलो आप, मेरी अम्मी शहनाज ने पूजा विधि क्या ? आगे भी बोलो कुछ अब

कमला ने अपना मुंह नीचे किया और धीरे से बोली:" बेटा मैंने देखा कि शहनाज़ ने पूजा की विधि ठीक से नहीं करी जिससे पूजा सफल नहीं हुई ।

शादाब के चेहरे पर परेशानी के भाव उभर आए। शहनाज़ की वजह से नहीं बल्कि कमला के अंदर का डर देखकर। उसे अपनी अम्मी पर पूरा भरोसा था लेकिन जिस तरह को मनोदशा से कमला गुजर रही है ये उसके लिए घातक हो सकता था। इसलिए शादाब थोड़ा सोचते हुए बोला'"

"आप बेफिक्र रहे। मेरी अम्मी पूजा में कोई बाधा नहीं आने देगी। मुझे उन पर पूरा भरोसा है।

कमला:" भगवान करे ऐसा ही हो। क्या मैं एक बार शहनाज़ से बात कर लू ? मेरा दिल नहीं मान रहा है बेटा।

शादाब ने अपना मोबाइल निकाला और शहनाज का नंबर मिलाया तो शहनाज़ जो कि अजय के बराबर में आगे बैठी हुई थी अपने बेटे का फोन देखकर खुश हुई और घर से निकलने के बाद उसे पहली बार याद अाया की उसका बेटा नहीं उसका शौहर भी हैं तो उसे अपने द्वारा की गई अब तक की हरकतों पर दुख महसूस हुआ और उसने फोन उठा लिया:"

" शादाब कैसे हो बेटा ? अा गई क्या अपनी अम्मी की याद तुम्हे ?

शादाब शहनाज की आवाज सुनकर झूम उठा और बोला:"

" अम्मी आपको भुला ही नहीं हूं तो याद कैसे नहीं नहीं आएगी। लेकिन आपने भी तो फोन नहीं किया अभी तक।

शहनाज़:" वो मैं पूजा की विधि करने में ध्यान पूर्वक लगी हुई थी बस इसलिए नहीं कर पाई।

ये कहते हुए शहनाज़ का चेहरा शर्म से लाल हो गया। शादाब ने चैन की सांस ली और बोला:"

" बिल्कुल सही किया आपने अम्मी, आप चाहे तो जब तक पूजा खत्म नहीं हो जाती मुझसे बात भी ना करे लेकिन पूजा में कोई बाधा उत्पन्न नहीं होनी चाहिए।

तभी कमला ने शादाब को इशारा किया तो शादाब ने फोन उसकी तरफ बढ़ा दिया और बोला:"

" लो अम्मी पहले आप कमला आंटी से बात कर लीजिए।

कमला ने फोन लिया और बोली:"

" शहनाज कैसी हो तुम ? सब ठीक हैं ना वहां, अजय और सौंदर्या।

शहनाज़:" हान जी सब बिल्कुल ठीक हैं, आप फिक्र मत कीजिए। हम जल्दी ही सब काम खत्म करके वापिस आएंगे।

कमला थोड़ी भावुक आवाज में बोली:" मेरी बेटी की ज़िन्दगी अब तुम्हारे हाथ में हैं शहनाज। उसे बर्बाद होने से बचा लेना।

शहनाज़ आत्म विश्वास से भरे हुए शब्दो से बोली:"

" आप बिल्कुल भी चिंता मत कीजिए। सौंदर्या अब सिर्फ आपकी बेटी ही नहीं बल्कि मेरी छोटी बहन भी बन गई हैं। मैं उसके लिए कठिन से कठिन पूजा विधि भी करने से पीछे नहीं हटने वाली। बस आप शादाब का ध्यान रखना।

कमला:" तुमने दिल जीत लिया शहनाज़। शादाब की चिंता मत करो यहां मैं हूं ना उसका ध्यान रखने के लिए।

शहनाज: मुझे आप पर पूरा यकीन है। आप सौंदर्या की तरफ से बेफिक्र रहिए। हम जल्दी ही दोष मुक्त सौंदर्या के साथ घर वापिस आएंगे।

कमला:" भगवान करे तुम्हारे मुंह में घी शक्कर। तुम आओ तो एक बार कामयाब होकर ऐसा स्वागत करूंगी कि तुम मुझे हमेशा याद करोगे।

शादाब सारी बात ध्यान से सुन रहा था और कमला की हालत में सुधार होते देख रहा था। एक डॉक्टर होने के नाते वो बहुत खुश था और उसने कमला को मानसिक रूप से सपोर्ट करने के लिए कमला से फोन लिया और उसका स्पीकर खोल कर बोला:"

" अम्मी मैं यहां बिल्कुल ठीक हूं। कमला आंटी बहुत अच्छी हैं। आप अपना पूरा ध्यान सिर्फ और सिर्फ पूजा पर लगाए। पूजा किसी भी हालत में विधिपूर्वक पूरी होनी चाहिए।

शहनाज़:" हान शादाब बेटा, तुम उसकी चिंता मत करो, मेरा नाम शहनाज़ है और पूजा विधि इतने अच्छे से करूंगी कि तुम्हे अपनी अम्मी पर नाज होगा। अब मैं सौंदर्या को दोष मुक्त करके ही घर वापिस आऊंगी बेटा।

शहनाज़ की बात सुनकर कमला खुश हो गई। शादाब ने उसके चहेरे पर स्माइल देखी तो उसे लगा कि उसकी योजना काम कर रही है।

शादाब:" मुझे बहुत ख़ुशी है कि मैं आपका बेटा हूं। मुझे अपनी अम्मी पर पूरा यकीन है कि आप पूजा खत्म करके ही वापिस आएंगी। चाहे कितनी भी कठिन विधि हो और आपको कुछ भी करना पड़े लेकिन सौंदर्या दीदी बिल्कुल पूरी तरह से दोषमुक्त
होनी चाहिए।

शहनाज़ ने अपने बेटे की बात सुनी और इसके होठो पर स्माइल अा गई और बोली:"

" तुम बेफिक्र रहो और खुश रहो। मैं सौंदर्या के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगा दूंगी।

शादाब:" थैंक्स अम्मी, आप आइए फिर आपका बेटा आपक ऐसा स्वागत करेगा कि आप भी याद रखेगी।

शहनाज कुछ बोल रही थी कि लेकिन उसे आवाज नहीं अा रही थी। उसने देखा कि उसके फोन के नेटवर्क नहीं थे तो उसने फोन काट दिया और अजय की तरफ देखा जो उसकी ही बात सुन रहा रहा था।

पीछे बैठी सौंदर्या शहनाज़ की बाते सुनकर भावुक हो गई और उसकी आंखे भर आई थी कि शहनाज़ उसके लिए कितना कुछ कर रही हैं और आगे भी किसी भी हद से गुजर जाने के लिए तैयार है।

वहीं दूसरी तरफ कमला अब पूरी तरह से सुकून महसूस कर रही थी और बोली:"

" बेटा शहनाज़ बहन की बाते सुनकर तो मुझे लग रहा है कि सपने सिर्फ सपने ही होते हैं और सपने देखकर डरना नहीं चाहिए।

" सपना देखकर डरने की कोई जरुरत भी नहीं हैं आंटी क्योंकि सपना कोई चुड़ैल नहीं बल्कि आपकी बेटी की....


सपना बोलते हुए घर के (सौंदर्या की सहेली) अंदर दाखिल हुई। शादाब को देखते ही उसके बाकी के शब्द उसके मुंह में ही रह गए और उसे देखते हुए बोली:"

" ये कौन हैं आंटी जी ?

कमला:" अरे बेटी ये शादाब हैं अजय का दोस्त। इसकी अम्मी अजय और शहनाज़ के साथ पूजा के लिए हरिद्वार गई है इसलिए ये मेरे साथ ही घर में रहेगा कुछ दिन।

सपना ने एक नजर शादाब को उपर से नीचे तक देखा और फिर बोली:" अजय भाई का दोस्त हैं फिर तो ठीक है आंटी जी। आज कल जमाना खराब हैं चोर उचक्के घूमते रहते हैं सुंदर सी सूरत किए। मैं इधर से अा रही थी तो सोचा सौंदर्या से मिलती जाऊ। लेकिन वो तो हैं ही नहीं यहां।

कमला:" अरे तुम सिर्फ सौंदर्या की सहेली ही नहीं बल्कि मेरी बेटी भी हो। सौंदर्या नहीं तो क्या हुआ मैं तो हूं घर पर। और तूने अच्छा किया जो अा गई, अब घर के काम में मेरी मदद करना। मैं तेरे बाप को बोल दूंगी कि तुझे मेरे पास ही छोड़ दिया काम के लिए दिन में तब तक अजय और सौंदर्या नहीं अा जाते।

सपना:" ठीक है आंटी मैं भला किस दिन काम आऊंगी आपके। मुझे बता दीजिए घर के काम क्या क्या हैं ? मैं खुद कर लूंगी।

कमला:" बस भैंस के कुछ काम हैं और हमारे साथ खेत पर चलना घास लेने के लिए। आज के लिए इतना बहुत हैं।

सपना:" हमारे साथ मतलब ये साहब भी खेत पर जाएंगे क्या ?

कमला:" हान बेटी शादाब भी मदद के लिए साथ में जाएगा हम दोनों के साथ।

सपना:" बस जी बस ये शहरी लोग बड़े नाजुक होते हैं। कहीं तबियत ही खराब ना हो जाए जंगल की हवा में इनकी।

शादाब कुछ बोल नहीं रहा रहा बस वो आराम से सपना को देख रहा था जो बिना रुके बकबक किए जा रही थी।

कमला:" बेटा तुम भी ना कुछ भी बोल देती हो। थोड़ा सोच समझ कर बोला करो। किसी के नाजुक होने से गांव या शहर का क्या मतलब समझी तुम।

सपना:" मुझे ज्यादा नहीं समझना, जो सही लगा बोल दिया। मै एक बार घर जाके आती हूं और अपने बापू को बोल भी आती हूं कि मैं आपके पास रहूंगी।

इतना कहकर सपना शादाब को देखती हूं घर के बाहर चली गई। उसके जाते ही शादाब के कुछ बोलने से पहले कमला खुद ही बोल पड़ी:"

" बेटा ये सौंदर्या की सहेली हैं, थोड़ी बकबक ज्यादा करती हैं, इसकी किसी बात का बुरा मत मानना। दिल की बहुत अच्छी हैं ये लड़की।

शादाब:" जी आंटी, मैं किसी बात का बुरा नहीं मान रहा, हर इंसान की अपनी सोच होती है।

कमला: अच्छा तुम नहा धोकर फ्रेश हो जाओ। फिर खेत में चलते हैं घास लेने के लिए।

शादाब:"ठीक है। मैं आता हूं।


इतना कहकर शादाब बाथरूम के अंदर चला गया और सपना फिर से घर के अंदर अा गई। कमला दूध गर्म कर रही थी और सपना ने उसकी साथ मिलकर जल्दी से परांठे बना दिए।

थोड़ी देर बाद सभी लोग नाश्ता कर रहे थे। शादाब ने दूध का ग्लास खाली किया और कमला ने इसे फिर फिर से भर दिया तो सपना हंस पड़ी और बोली:"

" क्या आंटी एक गल्लास पी लिया वहीं बहुत हैं। इससे ज्यादा कहां पीते है शहर वाले ?

शादाब के होंठो पर उसकी बात सुनकर स्माइल अा गई और बिना कुछ बोले दूध का ग्लास फिर से उठाया और एक ही सांस में पूरा ग्लास खाकी कर दिया।

सपना:" वैसे मुझे लगता है कि तुम्हे दूध पसंद हैं। अच्छी बात है दूध पीना सेहत के लिए अच्छा होता है बहुत।

शादाब:" मुझे दूध बहुत पसंद है सपना मैडम।

सपना शादाब की खूबसूरती से काफी प्रभावित थी और उसके दूध पीने से उसे अच्छा लगा था इसलिए बोली:"

" सपना ही ठीक है मैडम मत बोलो तुम। और हान एक बात और मेरी किसी बात का बुरा मत मान लेना। जुबान थोड़ा ज्यादा ही चलती हैं मेरी।

उसकी बात सुनकर शादाब मुस्कुरा दिया और कमला हंसने लगी। नाश्ता करने के बाद सभी लोग खेत पर जाने के लिए तैयार हो गए तभी कमला की एक सहेली बिमला आ गई तो वो उससे बाते करने लगी। बाहर मौसम भी थोड़ा खराब हो गया था और काले काले बदल आसमान में उमड़ रहे थे।

कमला:" अरे सपना बिमला इतने सालो के बाद अाई हैं मैं उससे बात कर लेती हूं। तुम शादाब के साथ खेत में चली जाओ और घास लेती आओ।

सपना;" हान हान, जी भर कर बात करो। जाती हूं मैं।

इतना कहकर सपना बाहर अा गई और शादाब भी उसके पीछे पीछे चल पड़ा। सपना शादाब को देखते हुए बोली:" अच्छा तुम खेत पर कैसे जाओगे ? ट्रैक्टर चलाना आता है क्या तुम्हे?

शादाब:" नहीं वो तो नहीं आता मुझे।

सपना:" लो जी कर को बात, फिर क्या पैदल जाओगे खेत पर। एक काम करती हूं मैं अपना भैंसा बुग्गी के आती हूं।

इतना कहकर वो अपने पैर पटकती हुई चली गई और थोड़ी देर बाद ही भैंसा बुग्गी लेकर अा गई और बोली:"

" अब खड़े खड़े मेरा मुंह क्या देख रहे हो, आओ बैठो, जाना नहीं है क्या तुम्हे !!

शादाब:" हान हान बैठता हूं रोको तो पहले इसे।

शादाब चलती हुई बुग्गी में बैठ गया लेकिन हल्का सा लड़खड़ा गया और सपना बोली:"

" अरे आप तो गिर ही गए होते। थोड़ा संभाल कर बैठो आप।

इतना कहकर उसने बुग्गी को चला गया और शादाब उसके पास ही बैठ गया। सपना बीच बीच में उसे ही देख रही थी और सोच रही थी कि ये सच में बेहद सीधा और खूबसूरत है। सपना काफी रंगीन मिजाज लड़की थी और गांव के काफी सारे लडको के साथ मस्ती कर चुकी थी। उसे शादाब अच्छा लगा और उसने उस पर डोरे डालने का सोच लिया।

सपना:" क्या करते हो आप शादाब जी ?

शादाब:" मैं डॉक्टर हूं और अमरीका से अपनी पढ़ाई पूरी कर रहा हूं। इंडिया वापिस अाया तो अजय से मिलने अा गया था बस।

सपना अमेरिका का नाम सुनते ही खुश हो गई और बोली:"

" अच्छा मैंने सुना हैं कि वहां काफी गोरी गोरी मेम होती है।

शादाब:" जी बिल्कुल आपने ठीक सुना हैं। ऐसा हो होता है।

सपना:" अच्छा जी। फिर तो आपने काफी सारी मस्ती की होगी वहां। मौसम थोड़ा खराब ही लग रहा है मुझे आज, देखो कितने काले काले बाद उमड़ रहे हैं उपर।


सपना आसमान की तरफ देखते हुए कहा और जैसे ही शादाब ने आसमान में देखा तो अपना ने जान बूझकर शादाब की नजर बचा कर अपनी नीचे रंग की ब्रा का स्ट्रैप सूट से बाहर निकाल कर अपने कंधे पर कर दिया।

शादाब ने जैसे ही उसकी तरफ देखा तो उसे उसके कंधे पर ब्रा का स्ट्रिप नज़र आया और शादाब को थोड़ी सी हैरानी हुई कि ये कैसे बाहर निकल अाया। खैर शादाब ने उसे देखा तो ये सपना के लिए बड़ी बात थी।

सपना:" अच्छा तो मैं पूछ रही थी कि गोरी गोरी मेम तो तुम्हारे उपर फिदा हो गई होगी।

शादाब:" नहीं ऐसा तो कुछ नहीं हुआ। मैं तो वहां अपनी अम्मी के साथ ना।

सपना:" ओहो अब क्या कॉलेज में भी तुम्हारी अम्मी साथ जाती थी। इतने सुन्दर हो तुम, तुम्हारे लिए तो लाइन लग जाएगी लड़कियो की।

इतना कहते हुए सपना ने अपनी एक कोहनी का दबाव अपनी छाती पर दिया तो उसकी चूचियां थोड़ी सी नजर आने लगी और शादाब फैसला नहीं कर पाया कि क्या करे। उन्हें देखे या नहीं। लेकिन मर्द कोई भी हों उसकी जान औरत की गोलाईयों में बसती है और शादाब भी कोई देवता तो था नहीं इसलिए ना चाहते हुए भी उसकी नजर एक पल के लिए सपना की गोलाईयों पर चली गई और बोला:"

शादाब:" मैं इतना भी सुंदर नहीं हूं। वैसे मुझे कोई शोक नहीं कि मेरे पीछे लाइन लगे।

सपना:" अजी तुम्हे क्या पता। मुझसे पूछो तो पता चले।

शादाब:" अच्छा क्या सच में मैं इतना सुन्दर हूं? तुम भी बताओ।

सपना:" और नहीं तो क्या, तुम तो एक बहुत ही खूबसूरत नौजवान हो।

तभी आसमान से बारिश पड़ने लगी और देखते ही देखते दोनो पूरी तरह से भीगते चले गए।सपना का सफेद रंग का सूट उसके बदन से भीग कर पूरी तरह से चिपक गया और उसकी ब्रा तक साफ दिख रही जिसमे कैद उसकी मध्यम आकार की चूचियां अपना वजूद दर्शा रही थी। शादाब उसे बार बार तिरछी नजरो से देख रहा था और सपना बार बार उसकी तरफ ही देख रही थी। भीग जाने के कारण पीछे से उसकी कमर बिल्कुल साफ नजर आ रही थी। शादाब ना चाहते हुए भी ये सब देखकर उत्तेजित हो गया और उसके लंड अपनी औकात दिखाते हुए खड़ा हो गया।

खेत अा गया था और शादाब बुग्गी से उतर गया और सपना ने बुग्गी को खेत के बाहर ही खड़ा कर दिया और खेत में घुस गई और घास काटने लगीं। शादाब का खड़ा हुआ पेंट में बहुत बड़ा उभार बना रहा था और ये देखते ही सपना की आंखे चमक उठी और योजना बनाने लगी। शादाब खेत में अा गया और उसकी मदद करने लगा तो सपना सोच समझ कर बोली:"

" मैं कर लुंगी। आप एक काम कीजिए भैंसे को थोड़ा घास डाल दीजिए। पेट भरकर खा लेगा बेचारा।

शादाब ने थोड़ा सा घास उठाया और भैंसे की तरफ लेकर चल दिया। सपना की आंखे चमक उठी क्योंकि शादाब एक कच्ची सड़क पर था जिस पर पानी भर गया था। सपना ने धीरे से अपना हाथ पीछे ले जाकर अपनी ब्रा का हुक खोल दिया और उसकी चूचियां उसके सूट के अंदर आजाद हो गई।

शादाब ध्यान से आगे बढ़ता रहा और उसने भैंसे को घास दिया और फिर वापिस सपना की तरफ बढ़ गया। रास्ते में हुई कीचड़ से इस बार वो बच नहीं पाया और फिसल कर उसमें गिर गया। शादाब के गिरते ही सपना खुश होती हुई उसकी तरफ दौड़ी जिससे उसकी चूचियां सूट में उछलती हुई नजर आईं और सादाब ये देखकर हैरान हो गया कि इसकी ब्रा कहां चली गई।

सपना ने उसका हाथ पकड़ा और उठाते हुए बोली;"

" उफ्फ तुम भी गिर ही गए, सारे कपड़ो पर कीचड़ लग गया।

उसे उठाने का बहाना करते हुए वो खुद भी उसके उपर गिर पड़ी। दोनो के कीचड से भीगे हुए बदन टकरा गए तो सपना के मुंह से आह निकल पड़ी। शादाब ने उसका हाथ पकड़ लिया और उसे साथ साथ उसे भी खड़ा कर दिया।

सपना:" तुम्हारे चक्कर में मैं भी गिर गई। अब नदी में नहाना होगा तभी ये कीचड़ साफ होगी। आओ मेरे साथ।

इतना कहकर उसने अपना छुडाया और नदी की तरफ बढ़ गई।नदी के पास जाकर शादाब ने अपनी गंदी पेंट को उतार दिया तो सपना समझ गई कि उसकी चाल कामयाब हो गई हैं। दोनो एक साथ उतर गए और साफ पानी में दोनो के शरीर का कीचड़ बिल्कुल साफ हो गया।

सपना:" अरे शादाब देखो मेरी कमर साफ कर दो ठीक से हाथ नहीं जा रहा है।


इतना कहकर वो उसके पास अा गई और शादाब ने अपने दोनो हाथ उसकी कमर पर टिका दिए और साफ करने लगा। कीचड़ तो कहीं नाम के लिए भी नहीं लगी हुई थी और शादाब बस उसकी कमर सहला रहा था। सपना उसकी तरह धीरे धीरे खिसक रही थी और जल्दी ही उसकी गांड़ शादाब के अंडर वियर के उभार से जा टकराई तो सपना की आंखे मस्ती से बंद हो गई। सपना नीचे पेंटी नहीं पहनती थी इसलिए शादाब के लंड का उभार उसकी गांड़ पर अच्छे से रगड़ दे रहा था और सपना खुद ही अपनी गांड़ आगे पीछे कर रही थी।

शादाब उसकी हरकत से जोश में भर गया और उसने अपना हाथ नीचे ले जाकर अपने अंडर वियर को नीचे सरका दिया और जैसे ही सपना की गांड़ पर नंगा लंड का सुपाड़ा छुआ तो उसके मुंह से आह निकल पड़ी। सपना ने अपना हाथ नीचे किया और अपनी सलवार का नाड़ा खोल दिया और उसकी सलवार उसकी टांगो में ही सरक गई। जैसे ही शादाब के लंड का नंगा सुपाड़ा उसकी नंगी गांड़ से छुआ तो शादाब ने उसके कंधों को थाम लिया और जोर से मसल दिया। सपना पूरी तरह से बहक गई और उसने अपनी गांड़ को हल्का सा झुकाया जिससे उसकी चूत उपर की तरफ उभर गई। लंड का सुपाड़ा सीधे उसकी चूत पर अा लगा और उसकी चूत लंड के मोटे तगड़े सुपाड़े से पूरी तरह से ढक गई। सपना सुपाड़े की मोटाई महसूस करके सिसक उठी और अपने दोनो हाथ अपनी चुचियों पर रख दिए। शादाब ने अपने एक हाथ से सपना की टांग को उपर की तरफ उठा दिया और दूसरे हाथ को उसकी गर्दन में कसते हुए लंड का जोरदार धक्का उसकी चूत में जड़ दिया और जैसे ही सुपाड़ा अन्दर घुसा तो सपना के मुंह से आह निकल पड़ी। शादाब ने बिना रुके तेज तेज धक्के लगाए और पूरा लंड उसकी चूत को फैलाते हुए जड़ तक घुस गया। सपना दर्द से कराह रही थी क्योंकि उसकी चूत लंड से फट सी गई थी।

शादाब ने लंड को बाहर की तरफ निकाला और पूरी तेजी से फिर से अंदर घुसा दिया। सपना फिर से तड़प उठी लेकिन इस बार दर्द पहले से कम था। शादाब बिना रुके चूत में धक्के लगाने लगा और सपना के मुंह से अब मस्ती भरी सिसकारियां निकल रहीं थीं। शादाब ने उसकी गर्दन छोड़कर उसकी चूची को पकड़ लिया तो सपना उसकी तरफ पलट गई लंड उसकी चूत से बाहर निकल गया। सपने ने तेजी से अपना सूट निकाला और अपनी एक टांग खुद ही उपर उठा दी और शादाब को लंड घुसाने का इशारा किया तो शादाब ने उसकी दोनो चुचियों को थाम लिया और लंड को एक ही धक्के में घुसा दिया और बिना रुके चोदना चालू कर दिया। शादाब पूरी ताकत से कस कस कर धक्के लगा रहा था और सपना अब मस्ती से सिसक रही थी। शादाब ने उसकी चूचियों को पूरी ताकत से मसला और लंड के धक्कों में पूरी तेजी अा गई तो सपना को अपनी चूत में तूफान सा मचलता हुआ महसूस हुआ और उसकी चूत ने अपना रस छोड़ दिया तो सपना पागल सी होकर शादाब के होंठो को चूसने लगी। शादाब ने भी पूरी ताकत से कुछ धक्के मारे और एक आखिरी धक्का मारते हुए अपना लंड उसकी चूत में जड़ तक घुसा दिया और वीर्य की पिचकारी छोड़ दी। दोनो एक दूसरे से कस कर लिपट गए।

थोड़ी देर के बाद शादाब ने सपना को अपनी बांहों में लिया और खेत में ले आया। सपना चुदाई के बाद काफी अच्छा महसूस कर रही थी इसलिए बोली:"

" लेट हो जाएंगे। मैं पहले घास काट लेती हूं

इतना कहकर वो नंगी ही घास काटने लगीं। शादाब उसकी हिलती हुई गांड़ देख कर पागल सा हो रहा था। अपनी अम्मी अपनी जान शहनाज को वो पूरी तरह से भूल गया था।


सपना ने घास काट दिया और शादाब ने उसे बुग्गी में रख दिया। सपना ने पहली बार शादाब का लंड देखा और उसकी चूत फिर से भीग गई। सपना ने उसकी आंखो में देखते हुए अपने आपको बुग्गी पर झुका दिया और कुतिया सी बन गई। शादाब से बर्दास्त नहीं हुआ और वो उतरा और उसके पीछे आते हुए फिर से लंड को एक तगड़े धक्के के साथ उसकी चूत में घुसा दिया। सपना ने बुग्गी को कसकर पकड़ लिया और शादाब ने उसकी चूत को चोदना शुरू कर दिया। सपना के मुंह से मस्ती भरी सिसकारियां निकल रही थी और उसकी चूचियां उछल उछल पड़ रही थी। शादाब जोर जोर से उसे चोद रहा था और शादाब के सुपाड़े की रगड़ सपना से बर्दाश्त नहीं हुई और फिर से उसकी चूत ने अपना रस छोड़ दिया। शादाब ने उसकी चूत में कुछ धक्के कसकर मारे और अपना वीर्य छोड़ दिया।

उसके बाद दोनो ने कपडे पहने और घर की तरफ चल पड़े। सपना और शादाब ने घास को बुग्गी से उतारा और अंदर रख दिया। सपना अपने घर चली और शादाब नहाकर कर अाया और उसने कमला के साथ खाना खाया और थके होने के कारण सो गया।

रात को करीब आठ बजे उसकी आंख खुली तो देखा कि सपना भी अाई हुई हैं और कमला से बच बच कर उसे रात के लिए इशारे कर रही थी। सभी ने फिर से खाना खाया और कमला बोली:"

" अच्छी बेटी ठीक है रात बहुत ज्यादा हो गई है इसलिए तुम अपने घर चली जाओ अब।

सपना का मन जाने का था ही नहीं क्योंकि वो तो शादाब उसे पूरी रात अपनी चुदाई करवाना चाहती थी इसलिए बोली:"

" आंटी घर जाकर ही क्या करूंगी, सुबह तो फिर आना ही होगा इसलिए यहीं सो जाती हूं।

इससे पहले कि कमला कुछ बोलती सपना के पापा अंदर दाखिल हुए और बोला:"

" कोई बात नहीं बेटी। सुबह कल फिर से अा जाना। मुझे रात में खेत पर जाना और घर में तेरी मा अकेली होगी।

सपना अब चाह कर भी कुछ नहीं कर सकती थी इसलिए ना चाहते हुए अपने पापा के साथ चली गई। वहीं उसके जाने से शादाब भी उदास हुआ लेकिन कर ही क्या सकता था।

कमला ने उसका बिस्तर अंदर कमरे में लगा दिया और खुद बाहर ही सोने के लिए लेट गई लेकिन उसे नींद नहीं आ रही थी इसलिए पड़ी हुई अपनी बेटी के बारे में सोच रही थी। रात के करीब 11 बज गए थे और उसे अपने घर की दीवार पर एक साया नजर आया और वो साया दीवार कूद कर घर के अंदर जैसे ही दाखिल हुआ तो उस पर नजर पड़ते ही कमला हैरान हो गई कि ये सपना इतनी रात को चोरी छिपे क्यों घर के अंदर घुस रही हैं।
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Kahani me koi charitr ata h to uska koi mtlb bhi hota h ummid h ki sakna bhi kpi gul khilayegi
Ka
 

andypndy

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Bhai, aap abhi is forum mein new member ho..aap hi ek story likho aur usko "is janam mein poori" kar do...aur haan...daily updates dete rehna apni story kaa...
भाई उसका तो पता नहीं हमसे मिलिए, कहानी भी लिखते है अपडेट भी रोज़ के 2-3.
जितने पेज उतने अपडेट.
😃
कहानी दिमाग़ मे हो तो अपडेट चुटकीयों मे आते है
 

andypndy

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Bhai, aap abhi is forum mein new member ho..aap hi ek story likho aur usko "is janam mein poori" kar do...aur haan...daily updates dete rehna apni story kaa...
भाई ऐसे किसी को भी अपमानित ना करो....
पाठक ही लेखक की जान होती है.
यदि पाठक को कोई शिकायत है तो वो कह सकता है लेखक उसे अपनी बेहतरीन कहानी से जवाब दे.
पाठक ही ना रहे....तो लेखक कैसा? और हर कोई ही लेखक हो जाये तो पाठक कैसा?
 

Mr.X796

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Guri006

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मैंने कहानी के लिए कुछ अलग ही सोचा था जो कहानी को कहीं अधिक कामुक और उत्तेजक बनाता लेकिन आप लोगो ने बार बार कहानी अपनी दिशा से भटक गई है, incest खत्म हो रहा है, ऐसी काफी सारी बाते करी हैं।

जबकि मैं पहले ही कह चुका था कि कहानी के फीमेल के साथ सिर्फ और सिर्फ incest ही होगा। लेकिन कुछ लोगों को समझना तो हैं ही नहीं। इसलिए अगले अपडेट में कहानी पूरी तरह से बदल जाएगी।

अगर किसी को दुख पहुंचे तो माफी चाहता हूं। 🙏🙏🙏
bhai je kuch aise waise comment karte rehte hai app jyada unke comments dhyan na de story bahut achhi hai.
Apne hissab se likhe
 
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