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Incest "मांगलिक बहन " (Completed)

Lucky..

“ɪ ᴋɴᴏᴡ ᴡʜᴏ ɪ ᴀᴍ, ᴀɴᴅ ɪ ᴀᴍ ᴅᴀᴍɴ ᴘʀᴏᴜᴅ ᴏꜰ ɪᴛ.”
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अजय काफी थका हुआ था लेकिन वो जानता था कि उसे कुछ भी करके आज शाम तक हर हाल में खजुराहो पहुंचना था इसलिए लगातार गाड़ी चला रहा था जबकि शहनाज़ अब पीछे बैठ गई थी और सौंदर्या के साथ बाते कर रही थी और बीच बीच में अजय से भी बात हो रही थी क्योंकि शहनाज़ जानती थी कि सभी लोग पूरी रात सोए नहीं थे इसलिए कहीं नींद ना आए जाए।

सौंदर्या:" भाई और कितनी देर लग जाएगी ? थक गई मैं तो बैठे बैठे गाड़ी में ही ?

अजय:" बस दीदी थोड़ी देर और लगेगी करीब आधा घंटा बस उसके बाद हम पहुंच जाएंगे।

सौंदर्या:" अच्छा फिर तो ठीक है भाई, भूख भी लगी हैं बहुत तेज मुझे।

शहनाज़: अरे भूख तो मुझे भी लगी हैं बहुत जोर से, पेट में चूचे कूद रहे है ।

इतना कहकर शहनाज़ ने शीशे में अजय की तरफ देखा तो अजय मुस्कुरा दिया और थोड़ी देर बाद बाद ही करीब 2बजे वो खजुराहो अा गए थे। अजय ने शहर के बाहर ही एक होटल में तीन कमरे बुक किए और तीनो नहा धोकर खाना खाने के बाद सो गए।

हालाकि शहनाज़ चाहती थी कि सौंदर्या के सोने के बाद वो थोड़ा समय अजय के साथ बिताए लेकिन नींद के आगे उसकी एक नहीं चली और सो गई।

रात में करीब 10 बजे सभी लोग उठ गए और नहा धोकर खजुराहो में जाने के लिए तैयार हो गए।अजय अंदर अाया तो देखा कि सौंदर्या फिर से शहनाज़ की साडी बांधने में उसकी मदद कर रही थी और ये सब देखकर वो मुस्कुरा दिया। अजय नीचे अा गया और गाड़ी को बाहर निकाला। शहनाज़ गाड़ी में आगे ही बैठ गई जबकि सौंदर्या पीछे बैठ गई। शहनाज़ के बदन से उठती हुई मादक परफ्यूम की खुशबू अजय को साफ महसूस हो रही थी और दिमाग को अजीब सी शांति मिल रही थी। वो बार बार मौका मिलते ही शहनाज़ को चोरी चोरी देख रहा था जबकि पीछे बैठी सौंदर्या खिड़की से बाहर प्राकृतिक सौंदर्य को देखने में व्यस्त थी और उसका भाई अपने पास बैठी खूबसूरत शहनाज़ को देख रहा था। शहनाज़ भी बीच बीच में अजय को देख रही थी और जैसे ही दोनो की आंखे टकरा जाती तो शर्म के कारण कभी अजय तो कभी शहनाज़ की आंखे झुक रही थी। शहनाज़ अपने नारी स्वभाव के कारण और अजय उससे उम्र में छोटा होने के कारण शर्मा रहा था शायद।

थोड़ी देर बाद ही वो खजुराहो पहुंच गए और टिकट लेने के बाद जैसे ही अंदर घुसे गेट के पास ही बनी हुई एक बिल्कुल नंगी पत्थर की औरत की मूर्ति पर नजर पड़ी तो सौंदर्या और शहनाज़ दोनो की आंखे खुली की खुली रह गई।



एक नंगी औरत कुर्सी पर बैठी हुई, दोनो गोल गोल चूचियां बिल्कुल खुली हुई पूरी नंगी और उसने एक टांग को घुटने से मोड़कर अपने पैर के तलवे को अपनी जांघो के बीच किया हुआ था जिससे उसकी जांघो के बीच कुछ नजर नहीं आ रहा था।

ये सब देखकर सौंदर्या ने हैरानी से शहनाज़ की तरफ देखा तो शहनाज़ की हालत भी वैसी ही थी। वो खुद ये सब पहली बार देख रही थी। अजय जानता था कि इस वक़्त दोनो के मन में काफी सारे सवाल चल रहे होंगे लेकिन यहां लोगो के बीच बात करना ठीक नहीं होगा इसलिए आगे की तरफ बढ़ गया।

दीवारों पर एक से बढ़कर एक सुंदर मूर्तियां बनी हुई थी। अलग अलग मुद्रा में सेक्स को दर्शाती हुई, सौंदर्या तो इनसे पूरी तरह से अनजान ही थी वहीं अनुभवी शहनाज़ यकीन नहीं कर पा रही थी कि सेक्स की इतनी सारी कलाएं होती है। अमेरिका जैसे आधुनिक और सेक्स फ्री देश में रहने के बाद भी उसने तो इनमें से आधी भी नहीं अपनाई थी।

शहनाज़ ने एक मूर्ती में देखा कि एक ताकतवर मर्द ने एक हल्की मोटी औरत को अपनी गोद में उठा रखा था और औरत ने अपनी दोनो बांहे उसकी गर्दन में लपेट रखी थी और उससे पूरी तरह से चिपकी हुई थी। मर्द सीधा अपनी टांगो खोल जमीन पर खड़ा हुआ था और उसके दोनो हाथ औरत की गांड़ पर टिके हुए थे। दोनो की जांघें पूरी तरह से आपस में चिपकी हुई थी मानो लंड बिलकुल अपनी पूरी गहराई तक अंदर घुसा हुआ हो। औरत के चेहरे पर फैले हुए असीम सुख को महसूस करके शहनाज को पता नहीं क्यों उससे जलन महसूस हुई।
एक नंगी औरत कुर्सी पर बैठी हुई, दोनो गोल गोल चूचियां बिल्कुल खुली हुई पूरी नंगी और उसने एक टांग को घुटने से मोड़कर अपने पैर के तलवे को अपनी जांघो के बीच किया हुआ था जिससे उसकी जांघो के बीच कुछ नजर नहीं आ रहा था।

ये सब देखकर सौंदर्या ने हैरानी से शहनाज़ की तरफ देखा तो शहनाज़ की हालत भी वैसी ही थी। वो खुद ये सब पहली बार देख रही थी। अजय जानता था कि इस वक़्त दोनो के मन में काफी सारे सवाल चल रहे होंगे लेकिन यहां लोगो के बीच बात करना ठीक नहीं होगा इसलिए आगे की तरफ बढ़ गया।

दीवारों पर एक से बढ़कर एक सुंदर मूर्तियां बनी हुई थी। अलग अलग मुद्रा में सेक्स को दर्शाती हुई, सौंदर्या तो इनसे पूरी तरह से अनजान ही थी वहीं अनुभवी शहनाज़ यकीन नहीं कर पा रही थी कि सेक्स की इतनी सारी कलाएं होती है। अमेरिका जैसे आधुनिक और सेक्स फ्री देश में रहने के बाद भी उसने तो इनमें से आधी भी नहीं अपनाई थी।

शहनाज़ ने एक मूर्ती में देखा कि एक ताकतवर मर्द ने एक हल्की मोटी औरत को अपनी गोद में उठा रखा था और औरत ने अपनी दोनो बांहे उसकी गर्दन में लपेट रखी थी और उससे पूरी तरह से चिपकी हुई थी। मर्द सीधा अपनी टांगो खोल जमीन पर खड़ा हुआ था और उसके दोनो हाथ औरत की गांड़ पर टिके हुए थे। दोनो की जांघें पूरी तरह से आपस में चिपकी हुई थी मानो लंड बिलकुल अपनी पूरी गहराई तक अंदर घुसा हुआ हो। औरत के चेहरे पर फैले हुए असीम सुख को महसूस करके शहनाज को पता नहीं क्यों उससे जलन महसूस हुई।



शहनाज़ की आंखे लाल हो गई थी और वो सोच रही थी कि वो लड़का कितना ताकतवर रहा होगा जिसने औरत को अपनी गोद में उठा रखा था। सौंदर्या पागलों की तरह आंखे फाड़ फाड़कर सेक्स में डूबी हुई मूर्तियां देख रही थी और काम कला की अनोखी दुनिया से रूबरू हो रही थी। सौंदर्या अंदर ही अंदर तड़प रही थी कि उसने ज़िन्दगी का सबसे बड़ा आनंद अभी तक महसूस नहीं किया।

अजय:" आप लोग देखो, मैं एक बार यहां पंडित जी से मिलकर आता हूं।

इतना कहकर वो एक दिशा में मुड गया और चला गया। अजय जानता था कि उसके होते हुए दोनो शर्माएगी और ठीक से मूर्ति नहीं देख पाएगी। अब शहनाज़ और सौंदर्या बची थी और दोनो ने एक दूसरे की तरफ देखा और दोनो एक साथ स्माइल करने लगी और सौंदर्या शर्म गई तो शहनाज़ बोली:"

" शरमाओ मत सौंदर्या। ध्यान से देख ले ये सब बड़े काम की चीज है। आगे चलकर तेरे काम आयेगी शादी के बाद।

सौंदर्या पहले तो शर्मा गई लेकिन फिर बोली:" अच्छा जी, लेकिन ये मूर्तियां देखने से मेरी कुंडली का दोष कैसे दूर होगा ?

शहनाज़:" अब मुझे क्या पता, ये तो अजय से ही पता कर लेना तुम कि भाई ये चुदाई की मूर्ति देखकर मेरा दोष कैसे दूर होगा !!

सौंदर्या कांप सी उठी:" उससे कैसे पूछ सकती हूं मैं वो तो मेरा सगा भाई है।

शहनाज़:" लेकिन तुम्हारे पास और कोई रास्ता भी तो नहीं है, और फिर भूल गई क्या पंडित जी ने कहा कि अजय ही तुम्हे मुक्ति दिला सकता है !!

सौंदर्या:" हान ये बात तो हैं, लेकिन फिर भी कैसे बोलूगी, इतना आसान नहीं होगा, आप पूछ लेना उससे प्लीज़।

शहनाज़:" अच्छा ठीक हैं देखती हूं क्या करना है। ।।

इतना कहकर शहनाज़ अगले कमरे में घुस गई और वहां मूर्तियां देखकर उसके बदन में सिरहन सी दौड़ गई। एक औरत झुकी हुई खड़ी थी और पीछे से उसकी गांड़ में एक लंड घुसा हुआ था। शहनाज़ की आंखे फैलती चली गई मानो उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि गांड़ भी मारने की चीज होती हैं। शहनाज़ अभी अभी पूरी तरह से संयत भी नहीं हुई थी कि उसने देखा कि एक मूर्ति में उसने देखा कि एक औरत एक मर्द के ऊपर लेटी हुई थी और उसका लन्ड उसकी चूत में घुसा हुआ था जबकि एक और दूसरा मर्द उस औरत के उपर चढ़ा हुआ और उसकी गान्ड में अपना लंड घुसा रखा था।

ये देखकर शहनाज़ की चूत से आह निकल पड़ी और उसकी गांड़ में चिंगारी सी दौड़ गई। उफ्फ कितने गंदे लोग होते थे पहले जो ऐसी मूर्तियां बनाते थे। वहीं दूसरी तरफ सौंदर्या अब कमरे में अकेली थी तो बिना किसी शर्म के मूर्तियां देख रही थी कि किस प्रकार लोग चुदाई के खुमार में डूबे हुए थे। किसी मूर्ति में झुक कर चुदती हुई औरत, तो कहीं लंड की सवारी करती हुई औरत, सौंदर्या ने आगे देखा कि एक मर्द औरत की टांगो के बीच में अपनी जीभ घुसा कर चाट रहा था। सौंदर्या के मुंह आह निकल पड़ी और सौंदर्या की आंखे बंद हो गई। उसे वो पल याद अा गया जब उस दिन रात में उसके भाई ने मदहोशी में उसकी पेंटी के ऊपर चूम लिया था। सौंदर्या का रोम रोम मस्ती से भर उठा और वो फिर से मूर्तियां देखने लगी। अजय कमरे में अा गया और सौंदर्या तो पूरी तरह से मूर्तियों में डूबी हुई थी और उसे पता ही नहीं चला। अजय आगे बढ़ा और उसने धीरे से एक हाथ सौंदर्या के कंधे पर रखा तो सौंदर्या कांप उठी और अजय को देखते ही वो शर्म से पानी पानी हो गई।

अजय:" क्या हुआ दीदी आप ठीक तो हो ना, मेरे छूने से ही डर गई आप।

सौंदर्या का मुंह शर्म से लाल हो गया था और कुछ नहीं बोली। अजय की आवाज सुनकर शहनाज़ भी बाहर अा गई। शहनाज़ की भी आंखे चौड़ी हो गई थी और आंखो में लालिमा दौड़ रही थी।

अजय;" अच्छा चलो अब हम पीछे की तरफ चलते हैं और वहीं पर आगे की पूजा विधि बताई जाएगी।

मदहोश सी शहनाज़ और सौंदर्या दोनो उसके पीछे पीछे चल पड़ी। जल्दी ही सभी अंतिम कक्ष में अा गए और यहां एक से बढ़कर एक मूर्ति बनी हुई थी। बिल्कुल पूरी तरह से साफ, संगमरमर की तरह चमकती हुई जिनमें महिला और पुरुष के कामांग पूरी तरह से साफ दिख रहे थे। अजय वहीं कमरे में एक चादर डाल कर बैठ गया और दोनो को बैठने का इशारा किया। बदहवाश सी दोनो उसके सामने बैठ गई, सौंदर्या की तो नजरे जमीन में गड़ी जा रही थी जबकि शहनाज़ उसके मुकाबले थोड़ा सहज महसूस कर रही थी और बीच बीच में वो अजय की तरफ देख रही थी और बोली:"

" अजय ये कैसा अजीब मंदिर है, यहां तो देखो ना कैसी कैसी मूर्तियां लगी हुई है।

अजय ने शहनाज़ की तरफ देखा और बोला:" ये काम कला के ऊपर बना हुआ मंदिर है और उससे जुड़ी हुई सभी मुद्राएं यहां फोटो में दिखाई गई है।

शहनाज़ ने अजय की आंखो में देखते हुए कहा:" लेकिन जो काम बंद कमरे के अंदर करना होता है उसकी यहां खुले आम फोटो लगा कर लोगो को दिखाना क्या गलत नहीं है ?

अजय ने देखा कि सौंदर्या अभी भी नजरे नीची किए हुए हैं तो उसने शहनाज़ को इशारा किया तो शहनाज़ ने अपना एक हाथ सौंदर्या के हाथ के उपर रख दिया और हल्का सा दबाते हुए बोली:"

" सौंदर्या तुम सब कुछ ध्यान से सुनना क्योंकि ये सब तुम्हारे लिए आने वाली में सबसे ज्यादा सही साबित होगा।

सौंदर्या ने अपनी गर्दन हान में हिला दी और अजय ने बोलना शुरू किया:" जिस तरह से आदमी खाना खाता है, सोता है, नहाता हैं और अपने रोज के दूसरे काम करता है ठीक उसी तरह से इंसान के लिए सेक्स भी जरूरी है और पहले लोग बिल्कुल इसे आम दिनचर्या के रूप में लेते थे। दूसरी बात सेक्स के बिना दुनिया का अस्तित्व ही संभव नहीं हैं इसलिए इन तस्वीरों में ये सब दिखाया गया है कि आप सेक्स को मजे लेकर कर भी कर सकते हो और ये भी दूसरी बातो की तरह ही बिल्कुल आम बात है।

शहनाज़ और सौंदर्या उसकी बात सुनकर दोनो चुप रही और फिर शहनाज़ धीरे से बोली:"

" अच्छा एक बात तो बताओ सौंदर्या ये पूछना चाहती हैं कि...

इससे पहले की वो कुछ बोलती सौंदर्या ने उसका हाथ पकड़ कर दबा दिया और शहनाज़ चुप गई। अजय समझ गया कि उसकी बहन शर्मा रही हैं इसलिए वो थोड़ा सा आगे को सरका और बिल्कुल शहनाज़ और सौंदर्या के करीब अा गया और बोला:"

"डरने या शरमाने की कोई जरूरत नहीं हैं मेरी दीदी, ये पूजा और इसकी विधियां तो हमे हर हाल में करनी ही होगी। आप बोलिए आप क्या जानना चाहती है ?

सौंदर्या के चेहरे पर पसीना छलक उठा और शहनाज़ ने अपना रुमाल लिया और उसकी तरफ खिसक गई जिससे उसके एक पैर का पंजा अजय के पैर से टकरा गया और शहनाज़ का जिस्म कांप उठा। शहनाज़ ने सौंदर्या का पसीना साफ किया और बोली:"

" अजय सौंदर्या ये जानना चाहती है कि इन मूर्तियों से उसके कुंडली का दोष किस तरह दूर होगा !!

शहनाज़ ने अपनी बात खत्म करी और सौंदर्या की सांसे तेज गति से चलने लगी। वो कुछ पाने की स्थिति में नहीं थी। अजय अपनी बहन की मनोदशा समझ गया था इसलिए थोड़ा सा और आगे को झुका जिससे उसके पैर का दबाव शहनाज़ के पैर पर पड़ा और दोनो के पैरो की उंगलिया आपस में टकरा गई। शहनाज़ ने एक बार अजय की आंखो में देखा और अपनी नजरे नीचे झुका ली मानो उसे मूक सहमति दे दी हो। अजय अपने घुटनों को मोड़ते हुए थोड़ा सा और आगे को सरक बिल्कुल अब सौंदर्या के सामने बैठा था। उसके मुडे हुए पैर के मजबूत पंजे अब पूरी ताकत से शहनाज़ के पैर से टकरा रहे थे और शहनाज़ उसके पंजे की ताकत महसूस करके बहक सी गई और उसने अपने पैर की उंगलियों को जोर से अजय के पैर की उंगलियां से भिड़ा दिया मानो अजय को दर्शा रही हो कि मेरी उंगलियां भी कमजोर नहीं है।

अजय शहनाज़ की तरफ से सहयोग पाकर अब बेफिक्र होकर अपने पैर की उंगलियों को शहनाज़ के पैर से लड़ाने लगा और बोला:"

" एक सुंदर कन्या हेमावती पर चन्द्र देवता मोहित हो गए और उसके साथ सेक्स किया वो बिल्कुल सौंदर्या की तरह जवान और खूबसूरत थी। हेमवती नाराज हो गई लेकिन उसे वरदान मिला और उसकी कोख से पुत्र प्राप्त हुआ जिसने इस मंदिर का निर्माण कराया। चन्द्र देवता को काफी शांत समझा जाता हैं और उनके ही प्रभाव के कारण सौंदर्या का स्वभाव मांगलिक होने के बाद भी बिल्कुल शांत हैं।दोष निकल जाने के बाद सौंदर्या का शांत स्वभाव इसकी सेक्स ज़िन्दगी में बाधा उत्पन्न ना करे बस इसलिए ही इसे यहां लाया गया है ताकि उसके उपर से चन्द्र देवता का प्रभाव हट जाए।

इतना कहकर अजय ने सौंदर्या की तरफ देखा जिसकी गर्दन अभी भी झुकी हुई थी और अजय ने मौके का फायदा उठाते हुए अपने पैर के कठोर अंगूठे से शहनाज़ की कोमल, मुलायम उंगलियों को जोर से मसल दिया तो शहनाज़ के मुंह से आह निकलते निकलते बची। उसने घूर कर अजय की तरफ देखा और अपने पैर के नाखून को उसके पंजो में घुसा दिया।

अजय ने शहनाज़ की तरफ देखा और उसे स्माइल दी और फिर उसने अपना हाथ से सौंदर्या के गाल को सहलाया और बोला:"

" मेरी प्यारी बहन, ध्यान से देख लेना सब कुछ, कहीं बाद में तेरी ज़िन्दगी में कोई दिक्कत ना हो।

सौंदर्या उसके हाथो की छुवन से मस्त हो गई लेकिन कुछ बोली नहीं तो अजय फिर से बोला:"

" ध्यान से देखोगी ना तुम सब कुछ? मैं और शहनाज़ तेरे लिए इतनी मेहनत कर रहे हैं तो तुम्हे भी इसका ध्यान रखना चाहिए।

अजय ने कहा तो इस बार सौंदर्या ने हान में अपनी गर्दन हिला दी। अजय खुश हो गया और शहनाज़ के पैर को रगड़ते हुए खड़ा हो गया और बोला:"

" बाहर पीछे मैदान में एक बहुत ही बड़ी सेक्स करते हुए मूर्ति बनी हुई जो रती की समझती जाती है। अब हम उसके चक्कर काटेंगे। पहले मैं और शहनाज़ और उसके बाद मैं और तुम । टोटल सात चक्कर होंगे। पहले चार चक्कर में तुम्हारी आंखे खुली रहेगी और तुम बिना इधर उधर देखे सीधे मूर्ति पर ध्यान दोगी जबकि बाद में तीन चक्कर में तुम्हारी आंखे बंद रहेगी और आंखे बंद करके मूर्ति का ही ध्यान करोगी।

सभी लोग बाहर अा गए और मैदान में एक बहुत बड़ी मूर्ति बनी हुई थी जिसमें एक तगड़े जवान मर्द ने एक हल्की मोटी चर्बी वाली औरत को गोद में उठाकर अपने लंड पर चढ़ा रखा था। ये एक क्रिकेट के मैदान जितना बड़ा मैदान था और बीच बीच एक मूर्ति लगभग आधे से ज्यादा मैदान को घेरे हुए थी। जैसे ही शहनाज़ ने बाहर आकर मूर्ति देखी तो सब समझ अा गया कि अजय ने शायद जान बूझकर ऐसी विधि बताई हैं क्योंकि एक चक्कर में कम से कम तीन मिनट तो लगने ही थे वो भी पूरी रफ्तार से चलने के बाद। शहनाज़ अंदर ही अंदर मुस्कुरा उठी क्योंकि वो भी तो यही सब चाह रही थी।

अजय ने एक मूर्ति के ठीक सामने सौंदर्या को खड़ा कर दिया और बोला:"

" आप यहीं खड़ी रहोगी और किसी भी दशा में हमारे सात चक्कर पूरे होने तक आपका ध्यान नहीं भटकना चाहिए नहीं तो आपकी आगे की ज़िन्दगी बेहद कष्टकारी हो सकती है।

सौंदर्या:" ठीक है भाई। आप बेफिक्र होकर परिक्रमा कीजिए। मैं पूरा ध्यान रखूंगी।

अजय ने शहनाज़ की तरफ देखा जिसकी आंखे लाल हो गई थी और आगे होने वाली घटनाओं को सोचकर उसके पूरे जिस्म में हलचल सी मची हुई थी कि जाने अजय उसके साथ क्या करेगा। कुछ करेगा भी या नही।

शहनाज़ ने अजय की तरफ देखा और अजय ने उसे चलने का इशारा किया और दोनो के चक्कर शुरू हो गए। दोनो साथ ही चल रहे थे और देखते ही देखते वो मूर्ति के पीछे की तरफ अा गए और सौंदर्या अब उन्हें दिख नहीं रही थी। शहनाज़ का दिल तेजी से धड़क रहा था कि अजय अब क्या करेगा लेकिन अजय खामोशी से चलता रहा और शहनाज़ भी उसके साथ चलती रही और थोड़ी ही देर बाद ही वो एक चक्कर पूरा करके सौंदर्या के पास से निकल गए।

दूसरे चक्कर में भी दोनो ऐसे ही चलते रहे और दोनो की हिम्मत नहीं हो रही थी कि कौन पहल करे। जैसे ही तीसरा चक्कर शुरू हुआ तो शहनाज़ अजय से थोड़ा आगे निकल गई और अपनी गांड़ को पीछे की तरफ उभार कर पूरी तरह से मटका मटका कर चलने लगी। अजय उसकी गांड़ को मटकते हुए देखकर उसकी गांड़ को ललचाई हुई नजरो से देखते हुए उसके पीछे चलने लगा। जैसे ही वो सौंदर्या की नजरो से ओझल होकर मूर्ति के पीछे आए तो शहनाज़ ने एक कामुक स्माइल अजय को दी और अजय ने भी आगे बढ़कर शहनाज़ के साथ में चलने लगा। शहनाज़ अपनी गांड़ को पूरी अदा के साथ मटका रही थी और अजय अपने होश खोता जा रहा था। शहनाज़ जान बूझकर चलते हुए अजय से टकरा रही थी और अजय तो जैसे ऐसे ही मौके की तलाश में था। वो चलते हुए शहनाज़ के ठीक पीछे अा गया और उसके कंधे पर अपना हाथ रख दिया तो शहनाज़ के क़दमों की गति बिल्कुल धीमी हो गई और उसने फिर से अजय को पीछे गरदन घुमा कर देखा और स्माइल दी तो अजय ने अपने हाथ की पकड़ उसके कंधे पर बढ़ा दी तो शहनाज़ का जिस्म मस्ती से भर उठा। लेकिन अब मूर्ति के सामने दोनो चलते हुए अा गए थे और सामने खड़ी हुई सौंदर्या नजर आ रही थी जिसका पुरा ध्यान मूर्ति पर था। जैसे ही दोनो सौंदर्या के पास से चौथे चक्कर के लिए गुज़रे तो शहनाज़ बोली:" उफ्फ कितना लंबा चक्कर हैं, थक गई मैं तो, अब धीरे धीरे लगाने पड़ेंगे।

शहनाज़ की बात सौंदर्या के कानों में पड़ी और अजय के लिए तो जैसे ये खुला आमंत्रण था और शहनाज़ अब पूरी अदा के साथ अपने कूल्हों को मटका रही थी। इस बार जैसे ही चलते हुए दोनो मूर्ति के पीछे आए शहनाज़ ने जान बूझकर अपनी स्पीड को बिल्कुल धीमी कर दिया तो अजय ने शहनाज़ के कंधो को फिर से थाम लिया। शहनाज़ के मुंह से आह निकल पड़ी जिसे अजय ने साफ सुना।

अजय उसके कंधे सहलाते हुए धीरे से उसके कान में बोला:"

" ज्यादा थक गई हो क्या शहनाज़ तुम ?

शहनाज़ अजय के हाथ अपने कंधे पर महसूस करते ही रुक गई और बोली:"

" हान अजय बहुत ज्यादा तो नहीं लेकिन थक तो गई है मैं।

अजय ने अपनी उंगलियों को उसके कंधो में गडा दिया और बोला:" तुम कहो तो तुम्हे अपनी गोद में उठा लू

शहनाज़ तो कबसे खुद ही उसकी गोद में आने के लिए मचल रही थी लेकिन इतनी आसानी से नहीं क्योंकि वो अजय को पूरी तरह से अपना दीवाना बनाना चाह रही थी। शहनाज़ पलट कर अजय की आंखो में देखते हुए स्माइल दी और बोली:"

" शहनाज़ को गोद में उठा लेना इतना आसान नहीं है अजय, इतनी आसानी से हाथ आने वाली चीज नहीं हूं मैं।

इतना कहकर उसने अजय को ठेंगा दिखाया और एक झटके के साथ आगे निकल गई। अजय उसके पीछे तेजी से बढ़ा लेकिन जब तक उसके पास पहुंचा तो शहनाज़ मूर्ति को पार करते हुए सौंदर्या के सामने अा गई तो और उसने अजय को जीभ निकाल कर चिढ़ा दिया। अजय सौंदर्या के पास पहुंच गया और बोला:"

" दीदी हमारे चार चक्कर पूरे हो गए हैं। अब अगले तीन चक्कर पूरे होने तक आप अपनी आंखे बंद करके इस मूर्ति और चन्द्र देवता का ध्यान करोगी। शहनाज़ थक गई है इसलिए अब चक्कर में थोड़ा ज्यादा समय लग सकता हैं इसलिए आप फिक्र मत करना और किसी भी दशा में आपकी आंखे नही खुलनी चाहिए।

इतना कहकर अजय ने सौंदर्या को आंखे बंद करने का इशारा किया और सौंदर्या ने अपनी आंखे बंद कर ली। अजय ने शहनाज़ की तरफ देखा और इशारे से पूछा कि अब कैसे बचोगी तो शहनाज़ ने उसे स्माइल करते हुए फिर से ठेंगा दिखाया और चलने लगी। इस बार तो उसकी चाल बिल्कुल जानलेवा ही थी और वो किसी रबर की गुड़िया की तरह मटक रही थी। अजय बहुत ज्यादा तेजी से चलते हुए उसके पास पहुंच गया और जैसे ही अजय उसके पास आया तो शहनाज़ ने बहाना बनाते हुए भागने की कोशिश करी लेकिन अजय ने उसे पीछे से झपट कर अपनी बांहों में भर लिया। शहनाज़ का जिस्म अजीब से रोमांच से भर गया और उसने थोड़ा जोर लगाते हुए छूटने की कोशिश करी तो अजय ने उसे पूरी ताकत से कस लिया और बोला:"

" अब बताओ भागकर कहां जाओगी शहनाज़? बहुत ज्यादा नखरे कर रही थी तुम ।

अजय की बांहों की ताकत महसूस करके शहनाज का रोम रोम मस्ती से भर गया और उसने खुद को उसकी बांहों में पूरी तरह से ढीला छोड़ दिया तो अजय के होंठो पर स्माइल अा गई और और उसके कान के पास धीमे से सेक्सी आवाज में बोला:"

" इतनी जल्दी हार मान गई क्या तुम? थोड़ी देर पहले तो बड़ी उछल रही थी।

अजय ने अपने हाथो से शहनाज़ के पेट को पकड़ रखा था तो शहनाज़ ने अपने हाथ उसके हाथो के उपर रख दिए और सहलाते हुए बोली:"

" तुम ठहरे जंगली शेर। तुमसे कहां जीत पाऊंगी मैं। हार गई मैं बस अब खुश।

शहनाज़ की बात सुनकर अजय ने अपनी पकड़ को ढीला कर दिया और यहीं उससे गलती हो गई। शहनाज़ बिजली की गति से उसकी पकड़ से निकली और दौड़ पड़ी। अजय तेजी से उसके पीछे भागा और उसने शहनाज़ को पकड़ा तो उसकी साड़ी का पल्लू उसके हाथ में अा गया और शहनाज़ की साडी तेज झटके के साथ खुलती चली गई। शहनाज़ को काटो तो खून नहीं और एक झटके के साथ वो आगे को गिर पड़ी। शहनाज़ अब सिर्फ ब्लाउस और पेंटी में उसके सामने रह गई थी और दोनो हाथो से अपना चेहरा ढक लिया। शहनाज़ अब चाहकर भी नहीं भाग सकती थी। अजय उसके पास अा गया और उसे पकड़ कर उठाया और बोला:"

" देख लिया अपनी ज्यादा होशियारी का अंजाम, वैसे तुम बिना साडी के और भी ज्यादा खूबसूरत लग रही हो।

शहनाज़ ने उसकी तरफ देख कर मुंह फुलाया मानो अपनी नाराजगी जाहिर कर रही हो। अजय उसके पास अा गया और उसके हाथ पकड़ कर अलग किए और ब्लाउस में बंद उसकी चूचियां देखते हुए बोला:"

" मुझे लगता हैं कि मैं चद्र देवता की कृपा सौंदर्या से ज्यादा तुम पर हो रही है शहनाज़। देखो कैसे तुम्हारा अंग अंग खिल कर चमक रहा है।

शहनाज़ ने अजय की नजरे अपनी छाती पर महसूस करी और उसे आंखे दिखाते हुए बोली:"

" बेशर्म कहीं के तुम, लाओ मेरी साडी दो, मुझे चक्कर लगाने हैं अभी बचे हुए।

शहनाज़ जैसे ही आगे को हुई तो उसके पैर में दर्द का एहसास हुआ और अजय ने बिना देरी किए हुए उसे अपनी बाहों में भर लिया और बोला:"

" बस करो शहनाज़ पैर में मोच अा जाएगी।

शहनाज़ ने भी अपने आपको उसकी बाहों में ढीला छोड़ दिया और बोली:"

" अजय मेरी साड़ी तो उठा कर पहन लू मैं ? किसी ने मुझे इस हालत में तुम्हारी बांहों में देख लिया तो ?

अजय ने शहनाज़ के आंखो पर आए हुए उसके बालो को हटाया और बोला:" कोई नहीं देखेगा, बाहर से कोई आएगा नहीं और सौंदर्या की आंखे खुल नहीं पाएगी। साडी एक बार बाद में ही उठा लेना नहीं फिर से खुल गई तो चोट लग सकती हैं।

शहनाज़ ने सुकून की सांस ली लेकिन उसके सवाल ने अजय के दिमाग में एक बात साफ कर दी थी कि शहनाज़ को उसकी गोद में कोई दिक्कत नहीं है बस किसी को पता नहीं चलना चाहिए। अजय उसकी आंखो में देखते हुए धीरे धीरे आगे बढ़ने लगा और शहनाज़ भी प्यार से उसे ही देख रही थी। जैसे ही उन्हें सौंदर्या नजर आईं तो शहनाज़ हल्की सी शर्मा गई और अजय उसे अपनी बांहों में लिए हुए जैसे ही सौंदर्या के पास से गुज़रा तो शहनाज़ उससे कसकर लिपट गई। शहनाज़ ने जान बूझकर अपनी कोहनी को अपनी चूचियों के नीचे दबाकर उपर की तरफ उभार दिया और उसकी आधे से ज्यादा चूचियां बाहर छलक उठी और अजय पागल सा हो गया और उसके लंड में तनाव आने लगा। देखते ही देखते उसका लंड अपनी पूरी औकात पर अा गया और पत्थर की तरह सख्त होता चला गया। शहनाज़ ने अजय की आंखो में देखते हुए अपने होंठो पर जीभ फिराई और उसे स्माइल दी तो अजय थोड़ा सा झुका और उसके होंठ शहनाज़ के होंठो के सामने अा गए। दोनो एक दूसरे को प्यासी नजरो से देख रहे थे और धीरे धीरे उनके होंठो के बीच की दूरी खत्म हो गई। आह एक बार फिर से शहनाज़ के रसीले होंठ अजय के प्यासे होंठो से मिल गए और शहनाज़ पूरी ताकत से उससे लिपटती चली गई। अजय उसे अपनी गोद में लिए हुए खड़ा था और दोनो आंखे बंद किए हुए एक दूसरे के होंठ चूम रहे थे। अजय शहनाज़ के जादुई मुख रस को चूस कर बहकता जा रहा था और उसने अपनी जीभ बाहर निकाली तो शहनाज़ ने अपना मुंह खोल दिया और अजय की जीभ उसके मुंह में घुसती चली गई। शहनाज़ का बचा कुचा धैर्य भी जवाब दे गया और वो मस्त होकर अजय की जीभ से अपनी जीभ लड़ाने लगी। एक लंबे किस के बाद दोनो के होठ अलग हुए और फिर से जुड़ गए। दोनो पूरी होश से एक दूसरे के होंठ चूस रहे थे और अजय धीरे धीरे आगे बढ़ने लगा। जैसे ही किस करते हुए वो चक्कर काटकर सौंदर्या के पास पहुंच गए तो शहनाज़ ने अजय को नीचे उतारने का इशारा किया तो अजय ने उसे नीचे उतार दिया और शहनाज़ ने अजय को बांहे फैलाने का इशारा किया और उसकी गोद में चढ़ गई और अपनी दोनो बांहे उसके गले में डाल दी। अब शहनाज़ अजय की गोद में बिल्कुल ठीक वैसे ही थी जैसे सामने लगी हुई मूर्ति सेक्स करते हुए दिखाई गई थी। अजय ने दोनो हाथ उसकी गांड़ के नीचे लगाए और आगे बढ़ गया। अजय ने जैसे ही उसकी गांड़ को दबाया तो शहनाज़ ने फिर से अपने होठ उसके होंठो पर चिपका दिए और किस शुरू हो गई। अजय अब मजे से उसकी गांड़ अपने हाथ में भर कर मसल रहा था और शहनाज़ पल पल और ज्यादा बहकती जा रही थी।अजय का लन्ड नीचे से झटके पर झटके मार रहा था और शहनाज़ पागल सी हो गई थी। दोनो ऐसे ही किस करते हुए सात चक्कर पूरे करने वाले थे शहनाज़ ने अजय को रोक दिया और अजय ने उसे अपनी गोद से उतार दिया और उसे साडी पहना दी।

दोनो अंतिम चक्कर खत्म करके सौंदर्या के सामने पहुंच गए और अजय बोला:"

" बस दीदी हमारे चक्कर पूरे हो गए, आप अब अपनी आंखे खोल दीजिए।

सौंदर्या ने जैसे ही आंखे खोली तो उसकी आंखे के आगे अजय का लंड उसके पायजामा में खड़ा हुआ नजर आया और सौंदर्या शर्मा गई। मूर्ति को देखने और उसे ही सोचने के कारण उसके बदन में सिरहन सी दौड़ रही थी और वो उसकी चूचियां अकड़ती जा रही थी और चूत में रह रह कार बुलबुले से उठ रहे थे।

अजय:" दीदी अब आप चक्कर के लिए तैयार हो जाए। शहनाज़ आप चाहे तो अंदर जा सकती हैं या यहीं आराम कर सकती है। अब आपकी जरूरत नहीं होगी।

शहनाज़:" ठीक है फिर मैं पीछे घूम कर शादाब से बात कर लेती हूं। तब तक आप लोग चक्कर काट कीजिए।

इतना कहकर शाहनाज पीछे की तरफ घूमने निकल गई और शादाब का नंबर मिलाने लगीं लेकिन नंबर नहीं मिल पाया तो वो पीछे बैठ गई और सोचने लगी कि जो हो रहा है क्या वो सही हैं ?
Awesome update :)
 

sunoanuj

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Theek hai Mitty intezar karte hai 12 baje ne ka …
 

Lucky..

“ɪ ᴋɴᴏᴡ ᴡʜᴏ ɪ ᴀᴍ, ᴀɴᴅ ɪ ᴀᴍ ᴅᴀᴍɴ ᴘʀᴏᴜᴅ ᴏꜰ ɪᴛ.”
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Nice
शहनाज़ एक बड़े से पत्थर पर बैठ गई और सोच में डूब गई। देखते ही देखते उसकी आंख लग गई।

अजय शहनाज़ के ऊपर चढ़ा हुआ था और उसकी चूत में जोरदार धक्के लगा था। हर धक्के पर शहनाज़ का पूरा जिस्म हिल रहा था और शहनाज़ अपनी आंखे मजे से बंद किए हुए नीचे से अपनी गांड़ उठा उठा कर लंड अपनी चूत में ले रही थी। तभी अजय ने एक तगड़ा धक्का लगाया तो दर्द के मारे उसके मुंह से आह निकल पड़ी जिससे शहनाज़ की आंखे खुल गई और और उसे सामने अपना बेटा शादाब खड़ा हुआ नजर आया जिसकी आंखो से आंसू टपक रहे थे और उसने गुस्से से नाराज को देखा और बिना कुछ बोले अपने पैर पटकते हुए चला गया।

शहनाज़ की डर के मारे आंख खुल गई और उसने देखा कि वो सपना देख रही थी तो उसने सुकून की सांस ली। शहनाज़ का पूरा जिस्म पसीने से भीग गया था और उसकी सांसे तेज तेज चल रही थी। शहनाज़ को अजय के साथ कुछ किस याद अा गया और उसकी आंखो से आंसू बह पड़े। नहीं नहीं मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए। मैं किसी भी कीमत पर अपने बेटे को धोखा नहीं दे सकती। मुझे अपने उपर काबू रखना ही होगा। ये ही सब शहनाज़ एक बड़े से पत्थर पर बैठ गई और सोच में डूब गई। देखते ही देखते उसकी आंख लग गई।

अजय शहनाज़ के ऊपर चढ़ा हुआ था और उसकी चूत में जोरदार धक्के लगा था। हर धक्के पर शहनाज़ का पूरा जिस्म हिल रहा था और शहनाज़ अपनी आंखे मजे से बंद किए हुए नीचे से अपनी गांड़ उठा उठा कर लंड अपनी चूत में ले रही थी। तभी अजय ने एक तगड़ा धक्का लगाया तो दर्द के मारे उसके मुंह से आह निकल पड़ी जिससे शहनाज़ की आंखे खुल गई और और उसे सामने अपना बेटा शादाब खड़ा हुआ नजर आया जिसकी आंखो से आंसू टपक रहे थे और उसने गुस्से से नाराज को देखा और बिना कुछ बोले अपने पैर पटकते हुए चला गया।

शहनाज़ की डर के मारे आंख खुल गई और उसने देखा कि वो सपना देख रही थी तो उसने सुकून की सांस ली। शहनाज़ का पूरा जिस्म पसीने से भीग गया था और उसकी सांसे तेज तेज चल रही थी। शहनाज़ को अजय के साथ कुछ किस याद अा गया और उसकी आंखो से आंसू बह पड़े। नहीं नहीं मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए। मैं किसी भी कीमत पर अपने बेटे को धोखा नहीं दे सकती। मुझे अपने उपर काबू रखना ही होगा। ये ही सब सोचते हुए शहनाज़ वहीं बैठी रही और अपने बेटे को याद करती रही।


वहीं दूसरी तरफ अजय और सौंदर्या दोनों ने मूर्ति के चक्कर लगाने शुरू कर दिए। सौंदर्या पहले ही अंदर सेक्स करती हुई मूर्तियां देखकर काफी गर्म हो गई थी और काफी देर से लगातार पूरी तरह से साफ दिखने वाली मूर्ति को चुदाई की मुद्रा में देखकर सौंदर्या का बदन और गर्म होता जा रहा था। दोनो भाई बहन एक साथ चल रहे थे और दोनो में से ही कोई कुछ भी बोलने को तैयार नहीं था। शहनाज़ के साथ हुए रोमांस की वजह से अजय का लन्ड पूरी तरह से खड़ा हो गया था जिससे उसका पायजामा आगे से उठा हुआ था और सौंदर्या बीच बीच में उसे ही देख रही थी। देखते ही देखते उनका चक्कर पूरा हो गया और शहनाज़ उन्हें दूर दूर तक नहीं दिखाई दी और वो दोनो फिर से दूसरे चक्कर के लिए आगे बढ़ गए। हर चक्कर पर सौंदर्या को अपने बदन में पहले के मुकाबले और ज्यादा गर्मी महसूस हो रही थी क्योंकि उसे अब पूजा का फल मिल रहा था और उसका जिस्म पूरी तरह से तपता जा रहा था। सौंदर्या पर काम देव की कृपा हो रही थी और उसका सौंदर्य हर पल पहले से ज्यादा आकर्षक लग रहा था। उसकी चाल अपने आप ही बदल गई और उसकी गांड़ तराजू के पल्डे की तरह ऊपर नीचे होने लगी। उफ्फ अजय ये देखकर बेचैन सा हो गया और उसका लन्ड अब लग रहा था कि पायजामा फाड़ कर बाहर आ जाएगा। सौंदर्या और अजय अब छठे चक्कर की और बढ़ गए थे और ठीक मूर्ति के पीछे थे और तभी उसके आगे चलती हुई सौंदर्या लड़खड़ा गई और अजय ने तेजी से उसे अपनी बांहों में थाम लिया तो सौंदर्या उससे लिपट गई और बोली:"

" ओह भाई, अच्छा हुआ तुमने पकड़ ही लिया नहीं तो मैं तो गिर ही जाती।

अजय के हाथ उसके चिकने सपाट पेट पर बंधे हुए थे और उसका लन्ड उसकी टांगो के बीच घुस गया था जिससे सौंदर्या बेचैन हो गई थी। अजय ने अपने सिर को अपनी बहन के कंधे पर टिका दिया और बोला:"

" ओह मेरी प्यारी दीदी, मेरे होते हुए तुम्हे कुछ नहीं हो सकता।

सौंदर्या अपने भाई की बात सुनकर कसमसा उठी और बोली:" मुझे तुम पर पूरा यकीन है भाई। तुम ही मेरी ज़िन्दगी से सारे कष्ट निकाल दोगो। चलो अब जल्दी से आखिरी चक्कर भी पूरा कर लेते है।

अजय:" हान हान क्यों नहीं मेरी प्यारी बहन। आप थक गई होंगी इसलिए ये चक्कर आप मेरी गोद में लगा लिजिए।

इतना कहकर उसने सौंदर्या को अपनी बांहों में उठा लिया और आगे चल पड़ा। सौंदर्या ने भी अपनी बांहे उसके गले में डाल दी और अपने सिर को उसके सीने पर टिका दिया। आखिरी चक्कर भी पूरा हो गया और सौंदर्या ने खुशी में अपने भाई के गाल को चूमना चाहा और अजय उसे उतारने के लिए नीचे की तरफ झुका तो सौंदर्या के होंठ उसके होंठो से जा टकराए और सौंदर्या ने उसके होंठो को चूम लिया। अजय ने उसकी तरफ देखा और सौंदर्या शर्मा गई। अजय ने उसे प्यार से देखा और शहनाज़ को उधर इधर देखने लगा लेकिन शहनाज़ कहीं नजर नहीं आई। दोनो भाई बहन के माथे पर चिंता की लकीरें उभर आई कि इतनी रात गए शहनाज़ कहां चली गई।

काफी बार पूरे मैदान में देखा लेकिन शहनाज़ कहीं नजर नहीं आई। रात के 12 बजने वाले थे और अजय किसी अनहोनी की आशंका से कांप उठा। उसका थोड़ी देर पहले पत्थर की तरह सख्त लंड सिकुड़ कर छोटा सा हो गया था।

अजय:" दीदी आप एक काम करो, बाहर जाकर गाड़ी में देखो और इधर ही कहीं देखता हूं। अगर शहनाज वहां नहीं मिली तो आप आराम से गाड़ी में ही बैठ जाना और बाहर मत निकलना। फोन पर मुझे बताना सब कुछ ।

इतना कहकर उसने सौंदर्या का हाथ पकड़ा और मंदिर में अंदर की तरफ घुस गया और सौंदर्या तेजी से गाड़ी की तरफ बढ़ गई। अजय मैदान में हर तरफ देख रहा था, पागलों की तरह धुंध रहा था लेकिन शहनाज़ उसे कहीं नजर नहीं आ रही थी। तभी उसका फोन बज उठा और देखा कि सौंदर्या थी तो उसने उठाया और बोला:"

" क्या हुआ दीदी? शहनाज़ दीदी मिल गई क्या ?

सौंदर्या घबराई हुई सी बोली:" नहीं भाई, तुम जल्दी से कुछ करो और उन्हें धुंध लो। नहीं तो हम किसी को मुंह दिखाने के लायक नहीं रहेंगे।

अजय ने फोन काट दिया और तभी उसकी नज़र मैदान के कोने में खड़े हुए एक पेड़ पर पड़ी जिस पर एक रस्सी लटकी हुई थी। अजय जल्दी से पेड़ पर चढ़ा और रस्सी के सहारे बाहर उतर गया। अजय हैरान हो गया क्योंकि बाहर काफी घना जंगल था।

अजय समझ गया कि शहनाज़ फिर से किसी मुसीबत में फंस गई है और उसे हर हाल में बचाना ही होगा। अजय जंगल में तेजी से आगे बढ़ रहा था और चारो और खड़े हुए बड़े बड़े पेड़ जिनके हवा के चलने से हिलते हुए पत्ते खौफ पैदा कर रहे थे लेकिन अजय खुद खौफ का दूसरा नाम था।

जल्दी ही उसे कुछ पुरानी सी बस्तियां नजर आने लगी और अजय अब सावधानी पूर्वक आगे बढ़ रहा था। दूर दूर तक आदमी तो क्या जानवर का भी नामो निशान नहीं, सिर्फ मिट्टी और लकड़ी के बने हुए घर। बस्ती में पूरी तरह से सन्नाटा।

अजय थोड़ा और आगे बढ़ा तो उसे सामने की तरफ कुछ रोशनी दिखाई दी और वो तेजी से उसी दिशा में बढ़ने लगा। दूर से ही उसे एक बहुत बड़ी सी मूर्ति नजर आने लगी जो मशाल की रोशनी में लाल नजर अा रही थी। अजय थोड़ा और पास गया और एक पेड़ पर चढ़ गया। अजय को अब सब कुछ साफ़ साफ़ दिखाई दे रहा था। एक बड़ा सा चबूतरा था जिसके चारों और काफी सारी भीड़ जमा हुई थी। औरतें, मर्द बूढ़े बच्चे सभी। बीच में एक कुर्सी लगी हुई थी और उस पर शायद उनका सरदार बैठा हुआ था। लंबा चौड़ा, बिल्कुल राक्षस जैसा और पूरे शरीर पर भालू की तरह लंबे लंबे बाल।

कुर्सी के ठीक सामने शहनाज पड़ी हुई थी जिसके दोनो हाथ बंधे हुए थे। शहनाज़ को अच्छे से सजाया गया था और उसके गले में एक फूलो की माला पड़ी हुई थी। शहनाज़ की आंखे लगभग पथरा सी गई थी और उसके चहरे पर खौफ के बादल साफ नजर आ रहे थे।

12 बजने में अभी कुछ ही मिनट बाकी थे और सरदार अपनी सीट से खड़ा हुआ तो सभी लोग उसे सलाम करने लगे और उसकी जय जय कार करने लगे।

सरदार:" बस साथियों बस, आज हम सबका इंतजार खत्म हो जाएगा और आज इस मांगलिक लड़की की बलि देती ही मेरी तपस्या पूरी हो जाएगी और मैं दुनिया का सबसे ताकतवर इंसान बन जाऊंगा और फिर सारी दुनिया पर मेरा राज होगा।

इतना कहकर जमुरा ने चबूतरे में अपना पैर जोर से मारा तो चबूतरा एक तरफ से टूट गया और उसकी ताकत देखकर भीड़ उसकी जय जय कार करने लगी।

भीड़:" सरदार जमुरा की जय हो। सरदार जमुरा जिंदाबाद।

जमुरत:" 12 बजने में सिर्फ कुछ ही मिनट बाकी हैं और अभी तक मेरे गुरुजी क्यों नहीं आए हैं ?

एक मंत्री जंगली:" महाराज आते हो होंगे। वो तो खुद आपको बड़े बनते देखना चाहते हैं। लेकिन सरदार आप अपने गुस्से को काबू में रखना। कहीं बना हुआ खेल खराब ना हो जाए।

सरदार बेचैनी से इधर उधर टहल रहा था और अजय समझ गया था कि ये गलती से शहनाज़ को मांगलिक समझ कर उसकी बली देना चाहते है। उसे अब सब कुछ समझ में आ गया था आखिर कार क्यों आचार्य तुलसी दास जी ने सौंदर्या की राशि वाली औरत को पहले विधि करने के लिए कहा था। मतलब शहनाज़ तो मांगलिक है नहीं इसलिए उसकी बलि नहीं दी जानी चाहिए। लेकिन ये तो मूर्ख जंगली हैं इनसे शहनाज़ को कैसे बचाया जाए। अजय ने एक योजना बनाई और पेड़ से नीचे उतर कर उन पर हमला करने के लिए तैयार हो गया।

तभी भीड़ चिल्ला उठी:" गुरु जी अा गए, गुरु जी अा गए।

अजय ने देखा कि एक बूढ़ा जंगली आदमी उनके बीच अा गया था और सभी ने उसे झुक कर सलाम किया और जमुरा ने आगे बढ़कर उनके पैर छुए और बोला:"

" गुरुजी आखिर कार आज वो दिन अा ही गया जिसका हमे बेताबी से इंतजार था। अब बस इसकी बली देकर मैं बेपनाह ताकत का मालिक बन जाऊंगा और पूरी दुनिया पर मेरा राज होगा बस मेरा राज।

गुरु जी आगे बढ़े और उन्होंने शहनाज़ का हाथ पकड़ लिया और अपनी आंखे बंद करके कुछ मंत्र पढ़ने लगे और उनके चहरे पर निराशा और अविश्वास के भाव उभर आए जिन्हे देख कर जमुरा परेशान हो गया aur बोला :"

" क्या हुआ? आप इतने परेशान क्यों हो गए ?

गुरु जी:" तुमने बहुत बड़ी गलती कर दी जमुरा, ये लड़की तो मांगलिक हैं ही नहीं, उसकी बली नहीं दी जा सकती।

जमुरा को मानो यकीन नहीं हुआ और वो चिल्ला उठा:"

" नहीं ऐसा कुछ नहीं हो सकता, आप फिर से देखिए गुरु जी? मेरी तपस्या ऐसी मिट्टी में नहीं मिल सकती।

गुरुजी:" तुमसे भूल हुई जमुरा, अब तुम्हे कोई ताकत नहीं मिल सकती।

जमुरा:" बुड्ढे ये सब तुम्हारी चाल है। तुझे ज़िंदा नहीं छोडूंगा

जमुरा गुस्से से पागल हो गया और उसने एक जोरदार घुसा गुरुजी को मार दिया तो जमीन पर गिर पड़े और मर गए। भीड़ अपने गुरु का ऐसा अपमान देखकर भड़क उठी और चारो तरफ से जमुरा को घेर लिया। अजय तेजी से अंदर घुसा और शहनाज़ को उठाया और बाहर को तरफ दौड़ पड़ा। जंगली एक रको मार रहे थे और चारो तरफ चींखं पुकार मची हुई थी और शहनाज़ अजय के गले से चिपकी हुई थी। कुछ जंगली अजय के पीछे भाग पड़े और अजय मौका देखकर एक पेड़ के पीछे छुप गया और एक एक करके उसने चारो जंगलियों को मौत के घाट उतार दिया और फिर से जंगल से बाहर की तरफ दौड़ पड़ा।

चबूतरे पर खूंखार लड़ाई चल रही थी और जमुरा सब पर भारी पड़ रहा था। देखते ही देखते चारो और लाशे ही लाशे बिछ गई और जमुरा अब अजय के पीछे भागा। दूर दूर तक कोई नजर नहीं अा रहा था और लम्बा चौड़ा राक्षस सा जमुरा तूफान की गति से दौड़ रहा था। अजय मंदिर के पास अा गया और दीवार पर चढ़ ही रहा था कि भूत की तरह से जमुरा प्रकट हो गया और देखते ही देखते उसने अपनी लम्बी तलवार निकाल ली और वार करने के लिए हवा में उठाई तभी पीछे से कुछ तीर आए और जमुरा की पीठ में घुसते चले गए। जमुरा दर्द से तड़प उठा और तलवार उसके हाथ से छूट गई। नीचे खड़े दो जंगलियों के हाथ में फिर से धनुष बाण नजर आए जिनका निशाना अजय और शहनाज़ की तरफ था। इससे पहले कि वो तीर छोड़ पाते जमीन पर दर्द से तड़प रहे जमुरा ने दो चाकू निकाल कर उनकी छाती में फेंक मारे और दोनो जंगली दर्द से तड़पते हुए ढेर हो गए और इसी बीच शहनाज़ अजय की पीठ पर बैठ गई थी और अजय दीवार पर चढ़ गया और जैसे ही जमुरा ने उनकी तरफ चाकू फेंके तो अजय फुर्ती से मंदिर के अंदर कूद गया। जमुरा ने तड़प तड़प कर दम तोड़ दिया। उसकी दर्द भरी चींखें शांत होती चली गई।

शहनाज़ और अजय मंदिर के अंदर दीवार के पास कूद गए थे और अजय जानता था कि अब वो दोनो पूरी तरह से सुरक्षित है। भागने के कारण दोनो की सांसे बुरी तरह से उखड़ी हुई थी। शहनाज़ बुरी तरह से डरी हुई थी और अजय से चिपकी हुई थी। शहनाज़ डर के मारे अभी तक कांप रही थी और अजय उसकी पीठ थपथपाते हुए उसे तसल्ली देते हुए बोला:"

" बस शहनाज़, अब डरने की कोई बात नहीं, मंदिर के अंदर हम पूरी तरह से सुरक्षित हैं। जब तक मैं हूं तुम्हे कुछ नहीं हो सकता।

अजय की बात सुनकर शहनाज़ ने राहत की सांस ली और अपने आपको संभालते हुए बोली:"

" मुझे लगा था कि आज मेरी बली जरूर चढ़ जाएगी। लेकिन तुमने मुझे एक बार फिर से बचा लिया अजय।

अजय ने उसका चेहरा अपने हाथों में लिया और बोला:"

" ऐसे कैसे बली चढ़ जाती तुम्हारी, जब तक मैं जिंदा हूं कोई तुम्हारा बाल भी बांका नहीं कर सकता।

शहनाज़ अजय की बात सुनकर उससे कसकर लिपट गई और बोली:"

" लगता है तुमसे मेरा जरूर कोई ना कोई गहरा रिश्ता हैं, मैं जब भी मुसीबत में होती हूं तुम हमेशा पहुंच जाते हो बचाने के लिए।

अजय ने उसकी पीठ फिर से थपथपा दी और बोला:"

" आपको मैं अपने भाई शादाब से लेकर आया हूं और आप भी बिना जाति धर्म की परवाह किए बिना हमारी इतनी मदद कर रही है। आपको बचाना मेरा शर्म हैं शहनाज़। जरूर कुछ तो जरूर हैं हमारे बीच।

दोनो ऐसे ही एक दूसरे से लिपटे रहे और फिर अजय को सौंदर्या की याद अाई तो वो बाहर की तरफ चल पड़े। अजय ने शहनाज़ के गले में पड़ी हुई फूलो की माला निकाल दी और शहनाज़ अब बिल्कुल पहले कि तरह खुबसुरत लग रही थी।

जल्दी ही दोनो सौंदर्या के सामने गए तो शहनाज़ को देखते ही उसने सुकून की सांस ली।

सौंदर्या:" ओह शहनाज़ दीदी, अच्छा हुआ आप मिल गई, मैं सच में बहुत परेशान थी। वैसे आप कहां चली गई थी ?

शहनाज़ ने सौंदर्या को सारी बात बताई तो सौंदर्या की आंखो से आंसू निकल पड़े और शहनाज़ को अपनी बांहों में कस लिया। शहनाज़ ने उसके आंसू साफ किए और बोली:"

" रोती क्यों है पगली ? देख तेरे सामने बिल्कुल ठीक तो खड़ी हुई हू मैं सौंदर्या।

सौंदर्या हिचकी लेते हुए बोली:" आप मेरे ऊपर आने वाली हर मुसीबत को झेल रही है। अगर आपकी जगह मैं पहले चक्कर लगाती तो मेरी बली जरूर चढ़ जाती क्योंकि मैं तो मांगलिक भी हूं तो बच नहीं सकती।

अजय और शहनाज़ ने उसकी बात पे गौर किया। सौंदर्या बिल्कुल ठीक बोल रही थी और अगर वो होती तो शायद उसका बचना मुश्किल होता।

अजय:" लेकिन एक बात समझ नहीं आई कि वो जंगली मंदिर के अंदर कैसे घुस गए और तुम उनके हाथ लग गई।

शहनाज़:" मैं पत्थर पर बैठी हुई कुछ सोच रही थी कि मेरे कानों में बच्चे के रोने की आवाज पड़ी। मैं उस दिशा में बढ़ गई लेकिन कोई नजर नहीं आया और बच्चा जोर जोर से बचाने के लिए बोल रहा था। आवाज दीवार की तरफ से अा रही थी और मैं देखने के लिए जैसे ही दीवार पर चढ़ी तो एक फंदा मेरे गले में गिरा और मैं उनके हाथ लग गई।

अजय:" ओह, अब मुझे समझ में सब अा गया। चलो अब चलते हैं और हरिद्वार आने का समय अा गया है।

इतना कहकर अजय ने गाड़ी निकाल ली और दोनो उसमे बैठ गई और गाड़ी सड़क पर दौड़ पड़ी। सौंदर्या सीट पर थोड़ी देर बाद ही सो गई और शहनाज़ ने भी अपनी आंखे बंद कर ली। बस अजय ही जाग रहा था और बीच बीच में वो मुड़कर मुड़कर शहनाज़ को देख रहा था।

पूरी रात गाड़ी चलती रही और अगले दिन सुबह 10 वो हरिद्वार पहुंच गए। अजय ने होटल लिया और उसके बाद सभी लोगो ने खाना खाया और सो गए। अजय एक पंडित जी से मिलने चला गया और पंडित जी ने अजय को गंगा के किनारे एक बहुत ही बड़ा क्षेत्र किराए पर दिलवा दिया।

अजय अाया तो शहनाज़ और सौंदर्या दोनो उठ गई थी और अजय बोला:" जल्दी से तैयार हो जाओ, आज रात से पूजा की बाकी विधियां आरंभ हो जाएगी। इसके लिए मैंने गंगा नदी के किनारे एक सुंदर सा घर और उसके आस पास का काफी क्षेत्र बुक कर किया हैं ताकि बिना किसी दिक्कत के हम लोग आगे की पूजा विधि कर सके।

सौंदर्या और शहनाज़ दोनो तैयार होने लगी और जल्दी ही एक बार फिर से गाड़ी गंगा नदी की तरफ चल पड़ी। थोड़ी ही बाद की वोह उतर गए और सामने ही एक बड़ा खूबसूरत घर बना हुआ था। सौंदर्या और शहनाज़ दोनो उसे देखते ही खुश हो गई। चारो और हरे हरे पेड़ पौधे, चारो तरफ से आती हुई खुली हवा, सामने ही थोड़ी दूरी पर कल कल करती हुई गंगा नदी के जल की आवाज। सामने बने हुए गंगा नदी के खूबसूरत घाट। कुल मिलाकर अदभुत।


शहनाज़:" जगह तो बहुत अच्छी हैं सौंदर्या, मुझे पसंद अाई।

सौंदर्या:" हान जी, बिल्कुल सब कुछ कितना अच्छा लग रहा है। मैं तो शादी के बाद हनीमून मनाने यहीं आऊंगी।

शहनाज़ उसकी बात पर हंस पड़ी और उसे अपने बेटे की याद अा गई। उसने मन ही मन फैसला किया कि वो भी थोड़े दिन अपने बेटे के साथ यहीं घूमने आएगी। शहनाज़ काफी अच्छा महसूस कर रही थी क्योंकि ठंडी हवा अपना जादू बिखेर रही थी। जल्दी ही नहा कर अा गई और उसने एक काले रंग की आधी बाजू की ढीली सी गोल टी शर्ट पहनी हुई थी जिसमें वो बेहद खूबसूरत लग रही थी। शहनाज़ ने अपना मेक अप किट निकाला और अपने होंठो पर लाल सुर्ख लिपिस्टिक लगा ली। कुल मिलाकर वो बेहद आकर्षक या कह कीजिए कि कामुक लग रही थी। शहनाज़ अपनी घड़ी पहन ही रही थी कि तभी बाहर से अजय की आवाज आई:"

" खाना लग गया है, शहनाज़ और सौंदर्या दोनो अा जाओ। नहीं तो पूजा के लिए देर हो जाएगी।

शहनाज़ ने जल्दी से अपनी घड़ी पहन ली बाहर की तरफ अा गई। अजय उसे देखते ही रह गया। सचमुच बेहद शहनाज़ बेहद खूबसूरत लग रही थी। अजय उसे लगातार देख रहा था।

शहनाज़:" ऐसे क्या देख रहे हो ? क्या सब ठीक हो तुम ?

अजय:" देख रहा हूं कि आप कितनी सुंदर हो। सच में मेरी बात मानो तो आपको फिर से शादी कर लेनी चाहिए।

शहनाज़ उसे देखते ही मुस्करा उठी और बोली:"

" बाते बनाना तो कोई तुमसे सीखे, कुछ भी बोल देते हो।

अजय:" नहीं शहनाज़ सच कह रहा हूं, ऐसा लग रहा है मानो कल रात कामदेव की कृपया सौंदर्या से ज्यादा तुम पर हो गई है।

इससे पहले की बात आगे बढ़ती सौंदर्या अा गई और टेबल पर बैठ गई और शहनाज़ को देखते ही बोली:"

" सच में आप बेहद खूबसूरत लग रही है, आप हमेशा ऐसे ही हंसती रहे।

शहनाज़ कुर्सी पर बैठ गई और उसे सौंदर्या को स्माइल दी। सभी लोग खाना खाने लगे। सौंदर्या ने थोड़ा ही खाना खाया और बोली;"

" भाई मुझे कॉलेज का कुछ काम होगा। आप लोग खाओ। मैंने खा लिया।

शहनाज़:" अरे सौंदर्या ऐसे नहीं जाते, पहले खाना तो खा लो अच्छे से तुम ।

सौंदर्या:" पेटभर खा लिया मैंने, अभी जरूरी काम हैं कॉलेज का आप लोग खाओ।

इतना कहकर वो चली गई और दोनो खाना खाने लगे। शहनाज़ चावल खा रही थी और अजय मौका देख कर उसकी खूबसूरती का जलवा देख रहा था। शहनाज़ पानी लेने के लिए आगे को झुकी और उसकी चूचियों का उभार सामने बैठे अजय को नजर आया तो उसकी आंखे चमक उठी। शहनाज़ पानी लेकर फिर से पीछे हो गई और पीने लगी। आगे होने की वजह से उसकी टी शर्ट खीच गई थी और उसकी चुचियों का उभार साफ़ नजर आ रहा था और अजय उसे ही बीच बीच में देख रहा था। शहनाज़ ने उसे देखा और बोली:"

" कहां इधर उधर झांक रहे हो तुम? खाना खाओ आराम से।

इतना कहकर उसने मुंह नीचा किया और मंद मंद मुस्काने हुए खाना खाने लगी।

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अजय शहनाज़ की इस अदा पर मर मिटा। शहनाज़ अपना मुंह नीचे किए हुए थी और अजय बिल्कुल तसल्ली से उसकी चूचियां देख रहा था। कितना खूबसूरत लग रहा था शहनाज़ की चूचियों का उभार। शहनाज़ ने मुंह उपर किया तो अजय की नजरो का एहसास हुआ और स्माइल करते हुए बोली'"

" सुधर जाओ तुम, उधर इधर क्या देख रहे हो। आराम से खाना खाओ।

अजय ने प्लेट में ध्यान दिया और खाने लगा। शहनाज़ की खूबसूरती एक बार फ़िर से अजय से दिमाग और दिल पर हावी होती जा रही थी। दोनो ने खाना खाया और उसके बाद अजय ने दोनो को आगे की पूजा विधि के बारे में बताया:"

" अब यहां तीन दिन की पूजा विधि होगी और हो सकता है कि अभी पहले से ज्यादा मुश्किल आए लेकिन हमें सभी बाधाओं को पार करना ही होगा। ध्यान से मेरी सुनना क्योंकि कोई भी विधि ठीक से नहीं हुई तो सारी मेहनत खराब हो जाएगी।

अजय रुका और दोनो उसकी तरफ देखने लगी। अजय ने फिर से बोलना शुरू किया:"

" आज के बाद आप दोनो पूजा के लिए सिर्फ शुद्ध कपड़े धारण करोगी। मेरे द्वारा दिए गए कपड़ों के अलावा आपके जिस्म पर कोई और कपड़ा नहीं होगा। आज से आप दोनो के लिए हर समय मंगल यंत्र पहनना जरूरी हो जाएगा क्योंकि जाते जाते मंगल ग्रह अपना पूरा असर दिखा सकता है और मंगल यंत्र के चलते उसके प्रभाव को कम किया जा सकता है। दूसरी बात मंगल यंत्र आप खुद अपने हाथ से नहीं पहन सकते। शहनाज़ के मंगल यंत्र पहनने के बाद सौंदर्या तुम्हारे शरीर को हाथ भी नहीं लगा पाएगी। इसलिए जरूरी होगा कि पहले शहनाज़ सौंदर्या को मंगल यंत्र पहना दे। मंगल यंत्र को गोलाई में लपेट कर कमर से लेकर नाभि तक बांधना होगा। आप समझ गई ना शहनाज़ ?

शहनाज़ ने हान में सिर हिलाया और अजय उसे मंगल यंत्र दिया और कमरे से बाहर निकल गया।सौंदर्या ने साडी ली और अंदर बाथरूम में घुस गई और उसने अपने कांपते हाथो से अपनी ब्रा पेंटी उतार दी और साडी को अपने जिस्म पर लपेट लिया। सौंदर्या शर्मा गई क्योंकि उसका आधे से ज्यादा जिस्म नंगा चमक रहा था। शहनाज़ ने डिब्बे से मंगल यंत्र बाहर निकाल लिया था। ये एक सोने की बनी हुई चेन के जैसा था जिसने पीछे कमर से लेकर नाभि पर बांधने के लिए काला धागा लगा हुआ था और नीचे दो सोने की पाइप जैसी लाइन निकली हुई थी। बांधने पर नाभि के ठीक नीचे जांघो के बीच घुंघरू उपर से नीचे तक एक सोने की तार पर छोटे अंगूर के आकार के घुंघरू लगे हुए थे। शहनाज़ ये सब देखकर हैरान थी क्योंकि वो नहीं जानती थी बांधने पर क्या होगा।

सौंदर्या सिर्फ साडी में देखते ही शहनाज़ मुस्कुरा उठी और बोली'"

" काफी हॉट लग रही हो ऐसे सौंदर्या। आओ मैं तुम्हे मंगल यंत्र बांध देती हूं।

सौंदर्या कांपती हुई धीरे धीरे आगे बढ़ी और शहनाज़ ने उसकी साडी के अंदर हाथ डालकर उसके पेट को छुआ तो सौंदर्या मचल सी गई। शहनाज़ खुद काफी गर्म हो गई थी और हिम्मत करके शहनाज़ ने मंगल यंत्र को उसकी कमर पर टिकाया और घुमाते हुए उसकी नाभि पर ले अाई। सौंदर्या शहनाज़ के हाथो की छुवण से मचल रही थी। शहनाज़ ने मंगल यंत्र को उसकी दोनो जांघो के बीच से निकाला और उपर पेट पर बांध दिया तो सौंदर्या और शहनाज़ दोनो के मुंह से आह निकल पड़ी। दो सोने के धागों में बीच उसकी चूत फंस सी गई थी। यंत्र पर लगे घुंघरू उसकी चूत के होंठो को छू रहे थे।

सौंदर्या ने एक बार शहनाज़ की तरफ देखा तो शहनाज़ बोली:"

" ज्यादा टाईट तो नहीं बंधा हैं ना सौंदर्या ये मंगल यंत्र।

सौंदर्या ने इंकार में गर्दन हिला दी तो शहनाज़ बोली:"

" जल्दी से अपने सभी काम निपटा लो। फिर पूजा के लिए बाहर गंगा किनारे जाना होगा।

इतना कहकर वो बाहर निकल गई और दूसरे कमरे में अा गई जहां अजय उसका ही इंतजार कर रहा था। शहनाज़ उसे देखते ही कांप उठी क्योंकि आगे जो होने वाला था उस सोचकर ही उसके रोंगटे खड़े हो गए।

अजय:" मंगल यंत्र ठीक से बांध दिया ना आपने ? कोई दिक्कत तो नहीं अाई ?

शहनाज़:" हान कोई दिक्कत नहीं हुई, लेकिन अब एक समस्या हो गई। मुझे तो साडी ही बांधनी नहीं आती तो अब क्या होगा ?

अजय:" तुम चिंता मत करो, मैं बांध दूंगा और तुम सीख भी लेना ताकि आगे दिक्कत ना आए।

अजय की बात सुनकर शहनाज़ बेचैन हो गई क्योंकि उसे पहले अपने ब्रा और पैंटी निकालने थे। मतलब अजय उसके बिल्कुल नंगे जिस्म को छूते हुए साडी बांधने वाला है। ये सोचकर ही शहनाज़ के जिस्म में सनसनी सी दौड़ गई। उसने साडी उठाई और अंदर की तरफ जाने लगी। शहनाज़ ने कांपते हुए हाथो से अपनी ब्रा को उतार दिया तो उसकी मस्त मस्त गोल चूचियां बाहर को छलक पड़ी। शहनाज़ ने दोनो पर प्यार से अपना हाथ फिराया मानो उन्हें समझा रही हो कि ज्यादा उछलना अच्छी बात नहीं होती।

शहनाज़ ने फिर अपने हाथो को नीचे सरका दिया और अपनी पेंटी भी उतार दी। पेंटी चूत वाले हिस्से पर से हल्की सी भीग गई थी। शहनाज़ ने अपनी चूत को अपनी जांघो के बीच में कस लिया और सिसक उठी। उसने पास पड़ी हुई साडी को उठाया और लपेटने लगी लेकिन काफी कोशिश के बाद भी पहन नहीं पाई। अब क्या होगा, उफ्फ अजय मेरी साडी बांधने वाला है, ये सोचकर वो बेचैन हो गई। थक हार कर उसने अजय को आवाज लगाई

"' अजय मुझसे साडी नहीं बंध पा रही, क्या करू ?

अजय उसकी बात सुनकर मन ही मन खुश हो गया क्योंकि वो तो कबसे से उसके बदन को छूने के लिए मरा जा रहा था। अजय प्यार से बोला:"

" लपेटकर बाहर अा जाओ जैसे ही लपेट सकती हो।

शहनाज़ ने साडी के दोनो पल्लू लिए और दुपट्टे की तरह अपने अपनी छाती और गांड़ पर लपेट लिया और कांपते हुए बाहर की तरफ चल पड़ी। शहनाज़ की आंखे लाल सुर्ख हो गई और और जिस्म पूरी तरह से तप रहा था मानो बुखार हो गया हो।

शहनाज़ ने कांपते हाथो से गेट खोला और उत्तेंजना से लगभग लड़खड़ाती हुई बाहर अा गई जिससे उसके एक कंधे पर से साडी सरक गई और शहनाज़ की आधे से ज्यादा चूचियां नजर आ रही थी। शहनाज़ के होंठ कांप रहे थे और शर्म के मारे उसकी निगाह झुक गई।


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अजय शहनाज़ की गोल गोल चूचियां, उसकी गहरी नाभि, उसके कांपते रसीले होंठों को देखकर मदहोश हो गया और उसकी तरफ बढ़ गया। अजय शहनाज़ के पास जाकर खड़ा हो गया और उसका एक चक्कर लगाया। शहनाज़ की चिकनी नंगी कमर देखते ही अजय तड़प उठा। शहनाज़ को आज अजय पूरी तरह से मदहोश करना चाहता था कि ताकि वो खुद ही उसकी तरफ खींची चली आए। उसने शहनाज़ के पीछे खड़े होकर ही अपनी टी शर्ट और बनियान उतार दिया और उपर से पूरी तरह से नंगा हो गया। अजय जान बूझकर शहनाज़ के सामने अा गया और बोला:"

:" बहुत सुंदर लग रही हो शहनाज़, पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा सुंदर। अगर इतनी शर्माओगी तो आगे पूजा किस तरह करोगी। एक बार मेरी तरफ देखो पहले तुम।

शहनाज़ ने हिम्मत करके अपना चेहरा उठाया और उसकी नजर अजय की मजबूत चौड़ी छाती पर पड़ी तो शहनाज़ मचल उठी।

" पहले साड़ी पहना दू या मंगल यंत्र? बाद में मंगल यंत्र पहनाया तो साडी खराब हो सकती हैं।


मंगल यंत्र का नाम सुनते ही शहनाज़ की चूत में चिंगारी सी दौड़ गई। हाय मेरी खुदा, उफ्फ क्या होगा अब।

शहनाज़ ने कुछ जवाब नहीं दिया और अजय ने बिना देरी किए मंगल यंत्र को उठा लिया और उसे बाहर निकालने लगा। शहनाज़ को ऐसा लग रहा था कि अजय मंगल यंत्र नहीं बल्कि अपना लंड निकाल रहा हो। जैसे ही उसने डिब्बे से यंत्र बाहर निकाला तो शहनाज़ ने पूरी जोर से अपनी जांघों को कस लिया।

अजय थोड़ा आगे बढ़ा और शहनाज़ के पीछे जाकर खड़ा हो गया और धीरे से उसके कान में बोला:"

" मंगल यंत्र बंधवाने के लिए तैयार हो ना शहनाज़ ?

शहनाज़ ने हान में अपनी गर्दन हिला दी और अजय ने अपने हाथ आगे करते हुए उसकी कमर को थाम लिया तो शहनाज़ सिसक उठी। अजय ने प्यार से उसकी कमर पर हाथ फिराया और बोला:"

" ओह माय गॉड, तुम्हारी कमर कितनी चिकनी और मुलायम हैं, ना ज्यादा मोटी ना पतली, एक दम मस्त।

शहनाज़ अपनी तारीफ सुनकर पूरी तरह से बहक गई और उसकी चूत पूरी गीले हो गई। अजय ने मंगल यंत्र को उसकी कमर पर टिका दिया तो शहनाज़ का रोम रोम मस्ती में भर गया। अजय की उंगलियां उसकी कमर पर घूमती हुई उसकी नाभि पर अा गई तो शहनाज़ ने उत्तेजना से अपने होंठो को दांतो तले भींच लिया। अजय ने मंगल यंत्र के सोने के धागोर्को पकड़ा और शहनाज़ की दोनो नंगी जांघो को जैसे ही छुआ तो शहनाज़ के मुंह से आह निकल पड़ी और उसकी चूत से बहकर रस ने उसकी जांघो को भिगो दिया। अजय समझ गया कि शहनाज़ पूरी तरह से बहक गई है तो उसने शहनाज़ की जांघो को उंगलियों से हल्का सा छुआ और बोला:"

" शहनाज़ अपनी दोनो नंगी टांगो को थोड़ा सा और खोल लो।

अजय ने जान बूझकर नंगी शब्द का इस्तेमाल किया और शहनाज़ ने अपनी टांगो को खोल दिया और अजय ने उसकी दोनो जांघो के बीच से मंगल यंत्र के धागे निकाले और उपर उसकी कमर पर अच्छे से जोर से खींच कर बांध दिया।


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धागो के बंधते ही शहनाज़ की चूत उनके बीच में पूरी तरह से कसकर फंस गई और अंगूर के जैसे घुंघरू उसकी चूत के मुंह से जा टकराए तो शहनाज़ से बर्दाश्त नहीं हुआ और उसके बदन ने तेज झटका खाया और शहनाज़ जोर से सिसक उठी। झटके के कारण साडी उसके जिस्म से हटकर नीचे गिरने लगी तो शहनाज़ ने तेजी से अपनी साडी को पकड़ लिया लेकिन जब तक साडी उसके घुटनो में पहुंच गई थी।

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शहनाज़ की मोटी मोटी गोल गोल गांड़ पूरी तरह से नंगी होकर उसकी आंखो के सामने अा गई। अजय के लंड ने जोरदार झटका खाया और पूरी तरह से अकड़ कर खड़ा हो गया। शहनाज़ ने जल्दी से साडी को उपर किया और फिर से उल्टी सीधी तरह लपेटने लगी तो अजय ने बीच में उसके हाथ को पकड़ लिया और बोला:"

" लाओ मैं पहना देता हूं, कहीं फिर से ना खुल जाए और तुम्हारी गांड़ फिर से नंगी हो जाए शहनाज़।

अजय के मुंह से गांड़ सुनकर शहनाज़ पागल सी हो गईं। अजय ने साडी के पल्लू को लिया और उसकी कमर में लपेट दिया और उसे गोल गोल घुमाने लगा। शहनाज़ के दोनो कंधे और चूचियां पूरी तरह से नंगी थी। शहनाज़ के खुले हुए बाल उसकी छाती को अा गए और उसकी चूचियों को पूरी तरह से ढक लिया था।


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शहनाज़ की गांड़ पर साडी लिपट गई थी और वो दोनो आंखे बंद किए हुए खड़ी थी। अजय थोड़ा सा निराश हुआ लेकिन वो जानता था कि उसे क्या करना है जिससे शहनाज़ के दोनो खूबसूरत गोल गोल कबूतर उसकी आंखो में सामने होंगे।

अजय उसके बिल्कुल करीब अा गया और उसका खड़ा हुआ लंड उसकी गांड़ से अा लगा तो शहनाज़ ने उसकी साड़ी का दूसरा पल्लू पकड़ लिया और जोर से उपर की तरफ उठाने लगा जिससे एक बार फिर से साडी उसकी गांड़ पर से हटने लगी तो शहनाज़ बावली सी हो गई। अजय ने साडी को उसकी जांघो पर से पकड़ा और मंगल यंत्र के घुंघरू जोर से हिला दिए और जैसे ही घुंघरू शहनाज़ की चूत के टकराए तो शहनाज़ सब कुछ भूलकर पलटी और अजय के होंठ चूसने लगी। अजय ने शहनाज़ के होंठो को अपने होंठो में भर लिया जोर जोर से चूसने लगा।

:" अजय कितनी देर बाद निकलना हैं पूजा के लिए ?

जैसे ही सौंदर्या की आवाज उनके कानो में पड़ी तो दोनो ना चाहते हुए भी अलग हो गए और अजय ने जल्दी से शहनाज़ को साडी पहना दी और फिर दोनो बाहर आ गए।
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