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Incest मां बेटे का कामुक संवाद

Ravi pushpak

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"जो भी हो, मैं बाहर ये नहीं पहनूंगी. घर में तेरे सामने ठीक है, तुझे अच्छा लगता है ना"

"वैसे मां,
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सिर्फ़ ब्लाउज़ और साड़ी ही नहीं, मुझे और भी चीजें नयीं लग रही हैं"

"चल बेशरम .... "
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"अरे शरमाती क्यों हो मां? मेरे लिये पहनती भी हो और शरमाती भी हो"

"चल तुझे नहीं समझेगी मां के दिल की बात. वैसे तुझे कैसे पता चला?"

"क्या मां?"

"यही याने ... कैसा है रे ... खुद कहता है और भूल जाता है"

"अरे बोल ना मां, क्या कह रही है?"

"वो जो तू बोला कि सिर्फ़ साड़ी और ब्लाउज़ ही नहीं ... और भी चीजें नयी हैं"

"अरे मां, ये साड़ी शिफ़ॉन की है ... और ब्लाउज़ भी अच्छा पतला है


, अंदर का काफ़ी कुछ दिखता है"


"
हाय राम ... मुझे लगा ही ... ऐसे बेहयाई के कपड़े मैंने ..."

"सच में बहुत अच्छी लग रही हो मां ... देखो गाल


कैसे लाल हो गये हैं नयी नवेली दुल्हन


जैसे ... तू तो ऐसे शरमा रही है जैसे पहली बार है तेरी"

"तू चल नालायक ....


मैं अभी आती हूं सब साफ़ सफ़ाई करके .... फ़िर तुझे दिखाती हूं ... आज मार खायेगा मेरे हाथ की तू बेहया कहीं का"

"मां ... सिर्फ़ मार खिलाओगी ... और कुछ नहीं चखाओगी ..."

"तू तो ...अब इस चिमटे


से मारूंगी. और ये पुलाव


और ले, तू कुछ खा नहीं रहा है, इतने प्यार से मैंने बनाया है"

"मैं नहीं खाता ... तुमसे कट्टी"

"अरे खा ले मेरे राजा ... इतनी मेहनत करता है ... घर में और बाहर ... चल ले ले और ... फ़िर रात को बदाम का दूध पिलाऊंगी"

"एक शर्त पे खाऊंगा मां"

"


कैसी शर्त बेटा?"
 
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Ravi pushpak

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"तू ये साड़ी और ब्लाउज़ निकाल


और मुझे सिर्फ़ वो नयी चीजें पहने हुए परोस"

"ये क्या कह रहा है?


मुझे शरम आती है बेटे"

"मां ... आज ये शरम का नाटक जरा ज्यादा ही हो गया है. अब बंद कर और मैं कहता हूं वैसे कर. कर ना मां, तुझे मेरी कसम ... तूने तो कैसे कैसे रूप में मुझे खाना खिलाया है ... है ना?"

"चल तू कहता है तो
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... और नाटक ही सही पर तुझे भी अच्छा लगता है ना जब मैं ऐसे शरमाती हूं?"

"जरा पास आओ मां तो दिखाऊं कि कितना अच्छा लगता है"

"बाद में मेरे लाल. तू ये खीर ले, मैं अंदर साड़ी ब्लाउज़ रख के आती हूं"

कुछ देर के बाद ....
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"वाह अम्मा, क्या मस्त ब्रा और पैंटी हैं. नये हैं ना? मुझे पहले ही पता चल गया था, तेरे ब्लाउज़ के कपड़े में से इस ब्रा का हर हिस्सा दिख रहा था."

"हां बेटे आज ही लायी हूं. उस दिन तू वो मेगेज़ीन देखकर बोल रहा था ना कि अम्मा ये तुझ पर खूब फ़बेंगी तो आज ले ही आयी. तू कहता था ना कि वो हाफ़ कप ब्रा और यू शेप के स्ट्रैप की ब्रा ला. और ये पैंटी, वो तंग वाली, ऐसी ही चाहिये थी ना तुझे?"

"तू गयी थी मॉल पे अम्मा?"

"और क्या? वो मेगेज़ीन से मेक लिख के ले गयी थी, दो मिनिट में ली और वापस आ गयी"

"क्या दिखते हैं तेरे मम्मे अम्मा इन में, लगता है बाहर आ जायेंगे. पैंटी भी मस्त है, तेरी झांटों का ऊपर का भाग भी दिखता है. सच अम्मा, तू ऐसी ब्रा और पैंटी में अधनंगी खाना परोसती है
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तो लगता है जैसे मेनका या उर्वशी प्रसाद दे रही हों. लगता है कि यहीं तुझे पटक कर ... "

"बस बस ... नाटक ना कर ... वैसे बेटा ऐसे सिर्फ़ ब्रा और पैंटी में मैं ज्यादा मोटी लगती हूं ना? देख ना कैसा थुलथुला बदन हो गया है मेरा ... तेरी कसी जवानी के आगे मेरा ये मोठा बदन ...
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मुझे अच्छा नहीं लगता बेटे"

"मां ... मेरी ओर देख ... मेरी आंखों में देख ... तेरा रूप देख कर मेरा क्या हाल होता है देख रही ऐ ना? तू ऐसी ही मुझे बहुत अच्छी लगती है मां ... नरम नरम मुलायम बदन ... हाथ में लेकर दबाने की इतनी जगहें हैं .... मुंह मारने की इतनी जगहें हैं .... तेरे इस खाये पिये बदन में जो सुंदरता है वो किसी मॉडल के बदन में कभी नहीं मिलेगी मां ... जरा आना मेरे पास ... ये देख ... कैसा हो गया है.


आ ना अम्मा, मेरे पास आ."
 
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Ravi pushpak

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"अभी नहीं बेटा


नहीं तो तू ठीक से खाना भी नहीं खायेगा और शुरू हो जायेगा.


चल खा जल्दी से."

"मां तू भी खा ले ना, नहीं तो फ़िर बाद में खाने बैठेगी और मुझे उतना इंतजार करवायेगी"

"मैं तो खा चुकी पहले ही शाम को बेटे.


मेरा उपवास था ना."

"उपवास सिर्फ़ खाने का है ना मां? और कुछ तो नहीं? मेरे साथ तो उपवास नहीं करेगी ना मां? या मुझसे तो नहीं करायेगी उपवास?"

"नहीं मेरे लाल,


तेरा तो मैं भोग लगाऊंगी. तुझे पकवान चखाऊंगी"

"ले मां, हो गया मेरा खाना"

"अरे और ले ना खीर, पूरा बर्तन भर के बनाई है तेरे लिये"

"अब नहीं मां, अब तो बस तू देगी वो प्रसाद लूंगा. खाना बहुत हो गया, अब तो मुझे पुलाव नहीं, वो फ़ूली फ़ूली डबल रोटी चाहिये जो तेरी टांगों के बीच है.


चल जल्दी आ, मैं इन्तजार कर रहा हूं बेडरूम में"

"आज इतना उतावला हो गया, रोज रात मैं इन्तजार करती हूं तब ...?"

"आज वसूल लेना अम्मा, रोज लेट आने का और तुझे तड़पाने का आज पूरा हिसाब चुकता कर देता हूं अम्मा, तू आ तो सही"

"ठीक है चल, मैं


पांच मिनिट में आयी"

..... कुछ देर के बाद ...
 
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Ravi pushpak

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"आज खाना कैसा था बेटे?


तूने बताया ही नहीं, बस मेरी ओर टुकुर टुकुर देख रहा था पूरे खाने के वक्त"

"बहुत अच्छा था अम्मा, ये भी पूछने की बात है? तेरी हर चीज अच्छी है, चल अब जल्दी से ये ब्रा और पैंटी भी उतार दे,


इनमें तू बहुत मस्त लगती है, मजा आता है इन्हें मसलने में पर अभी मेरे को टाइम नहीं है, बहुत जोर से खड़ा है अम्मा."

"सच उतार दूं?"

"नहीं अम्मा, मैं भूल गया कि आज अपने पास टाइम ही टाइम है, आज मैं जल्दी घर आ गया हूं, नौ ही तो बजे हैं, रोज तो ग्यारा बारा बज जाते हैं. मत उतार अम्मा, पर मेरे पास आ"

"अरे ये क्या ... चल छोड़"

"गोद में ही तो लिया है अम्मा,


कुछ बुरा तो नहीं किया है, ऐसे क्या बिचकती है. अब ये दिखा जरा ब्रा. क्या दिखती है अम्मा, साटिन की है लगता है, इतनी चिकनी मुलायम"

"अरे कैसे दबा रहा है रे ब्रा के ऊपर से ही,
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रोज तो ब्रा निकाल के दबाता है"

"आज बात और है मां, इस ब्रा ने सच में तेरी चूंचियों को निखार दिया है, लगता है कि इन गोलों में मीठा मुलायम खोवा भरा है


खोवा जिसे मैं गपागप खा जाऊं. और खाने के पहले देखूं कि कितना मुलायम खोवा है ... और ये डबल रोटी देख ... इतनी फूली फूली डबल रोठी और इस पर ये रेशमी जाल ..."

"बेटा, ये क्या कर रहा है, पैंटी के अंदर हाथ डाल रहा है बेशरम"



"तो ले, पैंटी निकाल दी,


अब तो बेशरम नहीं कहेगी!"

"कैसा हे रे तू ... और मुझे ऐसा क्यों लगता है कि मैं साइकिल के डंडे पर बैठी हूं"

"डंडा तो है मां पर तेरे बेटे की जवानी का डंडा है जो अपनी मां के जोबन को देखकर खुशी से उछल रहा है ... ये देख ... ये देख"

"अरे ... ये तो मेरे वजन को भी उठा लेता है


मेरे लाल ... कितना जोर है रे इसमें ... जादू सा लगता है"

"ये जादू है मां तेरे बदन का, तेरे हसीन नरम नरम शरीर का, चल मां .... अब सहन नहीं होता, निकाल ना ये ब्रा, इसका बकल कैसा है अजीब सा, मेरे से नहीं निकल
 
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