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"जो भी हो, मैं बाहर ये नहीं पहनूंगी. घर में तेरे सामने ठीक है, तुझे अच्छा लगता है ना"
"वैसे मां,
सिर्फ़ ब्लाउज़ और साड़ी ही नहीं, मुझे और भी चीजें नयीं लग रही हैं"
"चल बेशरम .... "
"अरे शरमाती क्यों हो मां? मेरे लिये पहनती भी हो और शरमाती भी हो"
"चल तुझे नहीं समझेगी मां के दिल की बात. वैसे तुझे कैसे पता चला?"
"क्या मां?"
"यही याने ... कैसा है रे ... खुद कहता है और भूल जाता है"
"अरे बोल ना मां, क्या कह रही है?"
"वो जो तू बोला कि सिर्फ़ साड़ी और ब्लाउज़ ही नहीं ... और भी चीजें नयी हैं"
"अरे मां, ये साड़ी शिफ़ॉन की है ... और ब्लाउज़ भी अच्छा पतला है
, अंदर का काफ़ी कुछ दिखता है"
"
हाय राम ... मुझे लगा ही ... ऐसे बेहयाई के कपड़े मैंने ..."
"सच में बहुत अच्छी लग रही हो मां ... देखो गाल
कैसे लाल हो गये हैं नयी नवेली दुल्हन
जैसे ... तू तो ऐसे शरमा रही है जैसे पहली बार है तेरी"
"तू चल नालायक ....
मैं अभी आती हूं सब साफ़ सफ़ाई करके .... फ़िर तुझे दिखाती हूं ... आज मार खायेगा मेरे हाथ की तू बेहया कहीं का"
"मां ... सिर्फ़ मार खिलाओगी ... और कुछ नहीं चखाओगी ..."
"तू तो ...अब इस चिमटे
से मारूंगी. और ये पुलाव
और ले, तू कुछ खा नहीं रहा है, इतने प्यार से मैंने बनाया है"
"मैं नहीं खाता ... तुमसे कट्टी"
"अरे खा ले मेरे राजा ... इतनी मेहनत करता है ... घर में और बाहर ... चल ले ले और ... फ़िर रात को बदाम का दूध पिलाऊंगी"
"एक शर्त पे खाऊंगा मां"
"
कैसी शर्त बेटा?"
"वैसे मां,
सिर्फ़ ब्लाउज़ और साड़ी ही नहीं, मुझे और भी चीजें नयीं लग रही हैं"
"चल बेशरम .... "
"अरे शरमाती क्यों हो मां? मेरे लिये पहनती भी हो और शरमाती भी हो"
"चल तुझे नहीं समझेगी मां के दिल की बात. वैसे तुझे कैसे पता चला?"
"क्या मां?"
"यही याने ... कैसा है रे ... खुद कहता है और भूल जाता है"
"अरे बोल ना मां, क्या कह रही है?"
"वो जो तू बोला कि सिर्फ़ साड़ी और ब्लाउज़ ही नहीं ... और भी चीजें नयी हैं"
"अरे मां, ये साड़ी शिफ़ॉन की है ... और ब्लाउज़ भी अच्छा पतला है
, अंदर का काफ़ी कुछ दिखता है"
"
हाय राम ... मुझे लगा ही ... ऐसे बेहयाई के कपड़े मैंने ..."
"सच में बहुत अच्छी लग रही हो मां ... देखो गाल
कैसे लाल हो गये हैं नयी नवेली दुल्हन
जैसे ... तू तो ऐसे शरमा रही है जैसे पहली बार है तेरी"
"तू चल नालायक ....
मैं अभी आती हूं सब साफ़ सफ़ाई करके .... फ़िर तुझे दिखाती हूं ... आज मार खायेगा मेरे हाथ की तू बेहया कहीं का"
"मां ... सिर्फ़ मार खिलाओगी ... और कुछ नहीं चखाओगी ..."
"तू तो ...अब इस चिमटे
से मारूंगी. और ये पुलाव
और ले, तू कुछ खा नहीं रहा है, इतने प्यार से मैंने बनाया है"
"मैं नहीं खाता ... तुमसे कट्टी"
"अरे खा ले मेरे राजा ... इतनी मेहनत करता है ... घर में और बाहर ... चल ले ले और ... फ़िर रात को बदाम का दूध पिलाऊंगी"
"एक शर्त पे खाऊंगा मां"
"
कैसी शर्त बेटा?"
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