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Incest मा का दीवाना बेटा। (Completed)

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शहनाज थोड़ी देर खाना बनाने के लिए उपर चली गई। वो जानती थी कि अगर उसे अपने बेटे को इन चुड़ैल औरतों से बचाना हैं तो उसे अपने साथ ही रखना होगा और सही गलत का फर्क मैं खुद समझाऊंगी। तभी शहनाज़ के होंठ मुस्करा उठे क्योंकि उस एहसास हुआ कि वो क्या अपने बेटे को सही गलत का पाठ पढ़ाएगी वो तो खुद ही उसे देखते ही सब कुछ भूलकर बहक जाती है। तभी शहनाज़ का दिल तड़प उठा और उसके विचार आया कि ये ही तो हैं वो तेरे सपनो का शहजादा जिसके री दिन रात सपने देखा करती थी। अब जब तेरे सामने हैं तो क्यों खुद को रोक रही हैं, बस तेरा बेटा हैं सिर्फ इसलिए। तुझे याद रखना चाहिए कि वो पहले एक मर्द हैं और जवान हो चुका हैं जिसे देखकर लड़कियां ही नहीं बल्कि औरतें भी तड़प रही है। रेशमा तो उसे अपने साथ ही ले जाना चाहती थी ताकि उसे फसा ले। उफ्फ कल वो दो औरतें कितनी गंदी गंदी बाते कर रही थी मेरे बेटे के बारे में और वो तो उसका नंबर भी लेकर गई है। मुझे ध्यान रखना होगा कि वो रेशमा के साथ उन सब से भी बच सके, इसलिए लिए मुझे क्या करना होगा!!

क्या मुझे अपने बेटे को अपनी तरफ आकर्षित करना चाहिए, क्या मैं इस उम्र में ऐसा कर पाऊंगी, उफ्फ मै ये क्या सोचने लगी। ये बात सोचते ही उसका चेहरा एक बार फिर से शर्म से लाल हो उठा। उसकी सांसे फिर से तेजी से चलने लगी जिससे उसकी चूचियां अपना आकार दिखाते हुए नजर आने लगी।
शहनाज़ ने गौर से अपनी चूचियों को देखा तो उसे आज पहली बार अपनी चुचियों पर घमंड हुआ। उफ्फ आज भी कैसी तनी हुई और ठोस हैं मेरी चूचियां, रेशमा के मुकाबले तो कहीं ज्यादा अच्छी हैं। वो शीशे के सामने खड़ी खड़ी हो गई और अपने आपको आज पहली बार जी भर कर निहारने लगी तो उसकी खुद की आंखे ही शर्म से झुक गई। उसने एक बार अपने हाथ को अपने सूट के गले में डाल कर हल्का सा चौड़ा किया तो उसकी चूचियों की गोरी खाई साफ नजर आने लगी, चूचियां एक दूसरे से ऐसे मिली हुई थी मानो एक दूसरे को दबाने की कोशिश कर रही हो। शहनाज की आंखे ये सब देखकर लाल सुर्ख हो उठी और उसने एक बार शीशे में अपनी खुद से नजरे मिलाई तो शर्म के मारे घूम गई जिससे उसकी भारी भरकम गांड़ शीशे के सामने अा गई। वैसे तो इसके जिस्म का हर हिस्सा एक से एक खूबसूरती लिए हुआ था लेकिन शहनाज़ की गांड़ उसके शरीर का सबसे खूबसूरत और सेक्सी हिस्सा थी। उसके मन में एक बार शीशे में अपनी गांड़ को देखने की इच्छा जाग उठी तो उसका दिल तेजी से धड़का और शर्म के मारे उसकी आंखे बंद हो गई। उसने बड़ी मुश्किल से बंद आंखो के साथ ही शीशे की तरफ अपना मुंह किया और कांपते हुए अपनी आंखो को हल्का सा खोला तो उसकी नजर अपनी गांड़ पर पड़ी और शर्म और उत्तेजना के मारे उसकी आंखे फिर से बंद हो गई। उसका दिल इतनी तेजी से धड़क रहा था मानो फट ही जाएगा और उसकी चूचियां कपडे फाड़ कर बाहर निकल जाएगी। उसने अपनी उछलती हुई चूचियों को काबू करने के लिए अपने दोनो हाथ अपने सीने पर टिका दिए और हिम्मत करके फिर से अपनी आंखो को खोलते हुए गांड़ को देखा तो उसकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा। उसे अपनी गांड़ देख कर ऐसा लग रहा था मानो उसकी सलवार में दो गोल गोल फुटबाल जबरदस्ती घुसा दी गई है।उसकी गांड़ रेशमा के मुकाबले कहीं ज्यादा ठोस और बड़ी थी। सच पूछो तो उसने आज तक किसी की भी इतनी तगड़ी गांड़ नहीं देखी थी। शहनाज आज बहुत खुश हुई क्योंकि आज उसे सच में पहली बार पता चल रहा था कि वो एक जीती जागती क़यामत हैं जिसके एक इशारे पर दुनिया का कोई भी मर्द उसके तलवे चाटने पर मजबूर हो जाएगा फिर मेरा बेटा क्या चीज़ है।
शहनाज़ के दिल में एक और सोच उभरी और उसके होंठो पर एक कातिल मुस्कान तैर गई और वो खुद ही अपने आप से शर्मा गई और उसने दोनो हाथो से शर्म के मारे अपने चेहरे को ढक लिया।
और मन ही मन मैं सोचने लगीं

" उफ्फ हाय अल्लाह मैं ये क्या गंदा सोच रही थी, कैसे आखिर कैसे मैं खुद ही अपनी वो वो क्या कहते हैं उसको उफ्फ मुझसे से नाम भी नहीं लिया जाएगा देख पाऊंगी जो मेरी टांगो के बीच में छिपी हुई है। शादाब के अब्बू बोलते थे कि मेरा असली खजाना तो वो ही हैं। लेकिन मैं कभी शर्म के मारे उन्हें नहीं दिखा पाई। खुद कैसे देखू !!

तभी उसे उपर किसी के आने की आहट हुई तो वो अपने ख़यालो से बाहर अाई और उसने देखा कि उसका बेटा शादाब उपर अा गया हैं जो कुछ उदास लग रहा था।

शहनाज़:" बेटा क्या हुआ ? कुछ परेशान लग रहे हो?

शादाब:" अम्मी गांव में मेरा एक भी दोस्त नहीं हैं, मेरा कैसे मन लगेगा यहां अकेले, इससे अच्छा तो आपने बुआ के साथ जाने दिया होता।

शहनाज़ अपने बेटे की पीड़ा समझ गई क्योंकि सचमुच गांव में उसका कोई दोस्त नहीं था। उसने अपने बेटे को समझाते हुए कहा:"

" बेटा दोस्त भी बन जाएंगे तेरे यहां, बस मेरा मन नहीं किया तुझे इतनी जल्दी अपने से जुदा करने का। इसलिए तुझे नहीं जाने दिया। क्या तेरा इतनी बड़ी अपनी अम्मी से मन भर गया क्योंकि ऐसी बाते कर रहा हैं।

इतना बोलकर शहनाज का फूल सा नाजुक चेहरा उदास हो गया तो शादाब को अपनी गलती का एहसास हुआ और बोला:" गलती हो गई अम्मी माफ कर दो,!!

इतना कहकर वो दौड़ता हुआ अपनी अम्मी के गले लग गया और उसे अपनी बांहों में भर लिया, शहनाज ने भी अपनी बांहे अपने बेटे की कमर पर कस दी।

शहनाज़:" बेटा मुझे कभी छोड़ कर मत जाना, मैं तेरे बिना नहीं जी पाऊंगी मेरे लाल क्योंकि अब तेरे सिवा मेरा कोई नहीं है।

शहनाज़ ने ये सब पूरी तरह से भावुक होकर कहा और अपना चेहरा अपने बेटे के सीने में छुपा लिया। शादाब भी अपनी अम्मी के साथ भावनाओ में बहता चला गया और शहनाज़ के बालो में उंगली फिराने लगा। अपने बेटे का इतना प्यार देख कर शहनाज की आंखे छलक उठी और जैसे ही शादाब को उसके आंसुओ का एहसास हुआ तो वो तड़प उठा और अपनी अम्मी के चेहरे को उपर उठा कर उसके आंसू अपनी जीभ से चाटने लगा और उसका चेहरा साफ करने के बाद बोला:"

" बस अम्मी, मत रोओ आप, आपके सिर की कसम मैं सब आपको छोड़कर कहीं नहीं जाऊंगा। अब स्माइल करो जल्दी से प्यारी सी आप।

शहनाज़ ने अपने आंखे खोलकर अपने बेटे को देखा तो खुशी के मारे उसकी आंखो से फिर से एक आशू टपक पड़ा तो शादाब ने उसका चेहरा अपने दोनो हाथों में थाम लिया और बोला:"

" अम्मी आपके इस चांद से खूबसूरत मुखड़े पर आंसू अच्छे नहीं लगते, आपको मेरी कसम अब आप नहीं रोएगी।

शहनाज ने बड़ी मुश्किल से अपने आंसू रोके और बोली:"
" चल झूठा कहीं का, जब देखो मेरी तारीफ़ करता रहता हैं, तुझे तो तेरी बुआ ज्यादा खुबसुरत लगती हैं तभी तो अपनी मा को छोड़कर उसके साथ जा रहा था।।
शादाब:"नहीं अम्मी, ऐसा कुछ भी नहीं हैं, वो तो आपके सामने कुछ भी नहीं हैं, आपसे हसीन से पूरी दुनिया में कोई हो ही नहीं सकती। बस मेरा दोस्त नहीं हैं यहां कोई इसलिए शहर जा रहा था।

शहनाज अपने बेटे की बाते सुनकर खुश हो गई और उसके कंधे को सहलाते हुए बोली:"

" मैं समझती हूं कि तेरा यहां कोई दोस्त नहीं हैं, क्या तू अपनी मा से दोस्ती करेगा बेटा ?

शहनाज़ ये बाते जाने किस आवेश में आकर बोल गई और जब उसने अपने शब्दो पर ध्यान दिया तो लाज शर्म के मारे उसका चेहरा लाल हो गया और वो अपने से पूरी जोर से चिपक गई उसका सीना बहुत तेजी से धड़कने लगा।

शादाब अपनी अम्मी की बात सुनकर खुश हो गया कि जरूर अम्मी भी मुझसे रेशमा बुआ की तरह दोस्ती करना चाहती हैं, लेकिन मेरी सगी मा हैं इसलिए मुझे धैर्य और प्यार से काम लेना होगा।

शादाब:" सच अम्मी क्या आप सचमुच आप अपने बेटे से दोस्ती करेंगी ?
शहनाज़ की तो जैसे बोलती बंद हो गई, उसने अपने बेटे के कंधे पर अपने हाथो का दबाव बढ़ा दिया मानो उसे इशारा कर रही हो कि हा मैं तुझसे दोस्ती करने के लिए तैयार हूं। शादाब समझ तो सब कुछ गया लेकिन फिर वो जानता था कि उसकी अम्मी एक दम फूल की तरह नाजुक और शर्मीली हैं इसलिए वो उसके मुंह से फिर से सुनना चाहता था ताकि उसकी शर्म और घबराहट कुछ कम हो सके।

शादाब ने अपनी अम्मी के चेहरे को हाथ से पकड़ कर उपर की तरफ उठाया तो उसका चेहरा अपने आप उपर उठता चला गया। शर्म और डर के मारे उसकी आंखे बंद हो गई थी और गाल आज कुछ ज्यादा ही गुलाबी होकर दमक रहे थे। उसके गुलाब की पंखुड़ियों के जैसे नाजुक और रसभरे होंठ अपने आप खुल और बंद हो रहे थे।

शादाब अपनी अम्मी के चांद से सुंदर मुखड़े को जी भर कर देख रहा था और अपने एक हाथ से शहनाज़ के गाल सहलाते हुए बोला:" मेरी चांद सी प्यारी अम्मी प्लीज़ अपनी आंखे खोल दीजिए एक बार बस!!

शहनाज ने बड़ी मुश्किल से अपनी आंखो को खोल दिया तो शादाब उसकी आंखो में झांकने लगा जहां सिर्फ उसे अपने और अपने लिए बेशुमार मोहब्बत नजर आईं। ऐसा पहली बार हुआ था कि शहनाज ऐसे अपने बेटे की आंखो में झांक रही थी जिस असर ये हुआ कि वो उसकी आंखो में पूरी तरह से खोल गई।
शादाब अपने अम्मी के बालो के गाल को हल्का सा सहला कर बोला:"
" अम्मी एक बार मेरी आंखो में देख कर बोलिए ??

शहनाज़ को अपने बेटे की आंखो में अपने लिए सिर्फ प्यार नजर आया और भावनाओ में बहकर उसने हाथ आगे बढ़ा कर अपने बेटे का चेहरा थाम लिया।

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शहनाज़ उसकी आंखो में पूरी तरह से खोते हुए बोली:"

" बेटा तेरी ये मा शहनाज़ तुझसे दोस्ती करना चाहती है, क्या तुम मेरे दोस्त बनोगे?

शादाब के हाथ अपने आप अपनी अम्मी की पतली और नाजुक कमर पर पहुंच गए और उसकी कमर को सहलाते हुए बोला:"

" अम्मी मुझसे आपकी दोस्ती कुबूल हैं! आपका ये बेटा आपकी दोस्ती में अपनी जान भी लुटा देगा आपकी कसम!!

अपने बेटे की बात सुनकर शहनाज को यकीन हुआ कि उसका बेटा पूरी तरह से अब सिर्फ उसका हैं इसलिए उसने आगे बढकर अपने बेटे का मुंह चूम लिया। शादाब भी अपनी अम्मी से पूरी तरह से कस कर गया और उनकी कमर को जोर से अपनी तरफ खींच लिया जिससे मा बेटे के बीच की सारी दूरी खत्म हो गई जिससे कपड़ों के ऊपर से ही उनके जिस्म एक दूसरे से मिल गए। जैसे ही शहनाज़ ने अपने बेटे का गाल छोड़ा तो उसका बेटा पूरे जोश के साथ उसके गुलाबी गाल पर टूट पड़ा और मुंह में भर कर जोर जोर से चूसने लगा। अपने बेटे के प्रहार से शहनाज़ बुरी तरह से कसमसाने लगी और उसके हाथ को जोर जोर से दबाने लगी। शादाब ने अपनी अम्मी के गाल पर हल्के से अपनी जीभ को फिराया तो शहनाज़ के मुंह से एक मस्ती भरी सिसकी निकल पड़ी जिसके उसके बेटे ने सुन लिया और उसकी कमर को जोर जोर से सहलाने लगा। उत्तेजना के मारे शहनाज़ की हालत खराब होने लगी और उसकी गर्म गर्म सांसे शादाब की गर्दन पर पड़ने लगी तो शादाब ने पूरी तरह से मदहोश होकर अपनी अम्मी के गाल पर जोर से दांत गड़ा दिए जिसकी उम्मीद को शहनाज़ को बिल्कुल भी नहीं थी जिस करण उसके मुंह से एक हल्की दर्द भरी चींखं निकल पड़ी तो शादाब ने डर के मारे उसका गाल छोड़ दिया। शहनाज़ का गला दांतो के निशान से पूरी तरह से लाल पड़ गया था।

शादाब को अपनी गलती का एहसास हुआ तो उसने अपनी अम्मी को छोड़ते हुए अपने दोनो कान पकड़ लिए और उठक बैठक लगाने लगा। ये सब देखकर शहनाज की हंसी छूट गई और बोली:"
" बस कर मेरे बच्चे, मैं नाराज नहीं हूं तुझसे!

शादाब " अम्मी मैं जानता हूं कि मुझसे गलती हुई है इसलिए एक दोस्त होने के नाते माफी मांगना मेरे फ़र्ज़ हैं।

शहनाज़ ने आगे बढ़कर अपने बेटे को गले लगा लिया और उसके गाल को खींचती हुई बोली:" चल जा माफ किया तुझे तू भी क्या याद रखेगा !!

शहनाज़ को अब खाना बनाना था क्योंकि दोपहर होने वाली थी और उसके दादा दादी को भूख दोपहर को थोड़ा जल्दी लग जाती थी। इसलिए वो बोली:"
" अच्छा बात सुन मुझे अब खाना बनाना होगा तब तुम कहीं घूम कर आना चाहो तो जा सकते हो!

शादाब अपनी अम्मी की तरफ देखते हुए शिकायती लहजे में बोला:" इतनी जल्दी अपने दोस्त से उब गई क्या जो बाहर जाने के लिए बोल रही हो??

शहनाज थोड़ा स्माइल करते हुए:" अरे बेटा ऐसी कोई बात नहीं है, मेरा ऐसा मतलब नहीं था।
शादाब:" अम्मी मैं चाहता हूं कि मैं खाना बनाने में आपकी मदद करूं !!
शहनाज़ को खुशी हुई कि उसका बेटा उसकी कितनी फिकर कर रहा हैं इसलिए वो बोली:"

" ठीक हैं बेटा, तुम एक काम करो सब्जी धोकर ले आओ तब तक मैं मसाले तैयार कर लेती हूं।

शहनाज़ अपनी मा की बात सुनते ही सब्जी धोने के लिए किचन में चला गया जबकि शहनाज़ ने एक पीतल की औखली निकाल ली जिसमें वो अक्सर मसाला कूटा करती थी। जल्दबाजी में उसने एक दूसरी बड़ी औखली का मूसल निकाल लिया। शहनाज़ ने मसाले को औखलीं में डाल दिया और जैसे ही उसने मसाला कूटने के लिए पीतल का मोटा मूसल उठाया तो मूसल हाथ में लेते ही उसे अपने बेटे का लंड याद आ गया तो उसका चेहरा गुलाबी हो उठा। उसने एक बार ध्यान से मूसल को उपर से नीचे तक निहारा और उसे एहसास हो गया था कि उसके बेटे का लंड किसी भी तरह से इस मूसल से कम नहीं, ना लंबाई में और ना ही मोटाई में बिल्कुल उसके जैसा हैं बल्कि उससे कहीं ज्यादा ठोस हैं अगर कठोरता की बात करू तो।

शहनाज़ की सांसे अपने आप उपर नीचे होने लगी और उसकी चूत में चीटियां सी दौड़ने लगी, उसने मूसल को औखलीं से बाहर निकाल लिया और उस पर अपनी उंगलियां फिराने लगी तो उसकी आंखे मस्ती से बंद हो गई । शहनाज़ को लगा जैसे वो अपने बेटे के तगड़े और कठोर लंड पर उंगलियां फिरा रही है । बीच बीच में वो मूसल को दबाने की कोशिश कर रही थी लेकिन वो कहां दबता तो उसके होंठो फड़क उठे और वो मन ही मन में बोली कि मेरे बेटा का तो बिल्कुल इतना ही कठोर हैं, ना ये दब रहा हैं और ना ही वो दबा था मुझसे।

शहनाज़ पूरी तरह से मस्ती में डूबी हुई अपनी बंद आंखो के साथ उस पर हाथ फेर रही थी। शादाब सब्जी धोकर वापिस आ रहा था और जैसे ही उसकी नजर अपने अम्मी पर पड़ी तो उसकी आंखे हैरत से फैलती चली गई। उफ्फ मम्मी कैसे मूसल पर हाथ फिरा रही है। वो दबे पांव आगे बढ़ा और शहनाज़ के बिल्कुल पास पहुंच गया जिसकी शहनाज़ को बिल्कुल भी खबर नहीं थी कि उसका बेटा ठीक उसके सामने आ चुका हैं। शहनाज़ की सांसे तेज हो रही थी और होंठ अपने आप मस्ती से आधे खुल बंद हो रहे थे।
शादाब धीरे से अपने मुंह को उसके कान के पास ले गया और अपनी आवाज को पूरी मधहोश बनाकर धीर से बोला:"

" क्या कर रही हो अम्मी?

अपने बेटे की आवाज सुनते ही शहनाज़ एक झटके के साथ कांप उठी और मूसल उसके हाथ से छूट गया। उसका पूरा शरीर इतनी बुरी तरह से कांप रहा था मानो वो चोरी करती हुई रंगे हाथों पकड़ ली गई हो। एक बार के लिए उसकी आंखे खुली और उसने मूसल को उठा लिया और अपने बेटे को देखते ही शर्म के मारे फिर उसकी आंखे झुक गई। उसकी चूत टप टप करने लगी और चूचियां बगावत पर उतर आई। उसने बड़ी मुश्किल से खुद को संभाला और धीरे से मूसल को औखलि में डाल दिया तो मूसल पूरा फस कर उसमे चला गया तो शहनाज़ धीरे धीरे मसाला कूटने लगी जिससे उसका पूरा शरीर हिलने लगा और चूचियां किसी रबड़ की मोटी बॉल की तरह उछलने लगी और शहनाज़ अपना मुंह नीचे किए ही मसाला कूटने लगी।


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डर और शर्म के मारे उसके हाथ कांप रहे थे और उसकी होंठो पर हल्की सी स्माइल आ रही थी , वो सफाई देती हुई बड़ी मुश्किल से बोली:"

" मसाला कूट रही हूं बेटा,

शादाब ने देखा कि मूसल पूरी तरह से फस कर जा रहा हैं और उसकी अम्मी की चूचियां पूरी तरह से उछल रही है। उसकी आंखे अपने आप उन दूध से गोरे चिकने ठोस कबूतरों पर जम गई और उसने पूछा

"अम्मी आपको नही लगता हैं कि ये मूसल इस औखलीं के हिसाब से कुछ ज्यादा बड़ा नहीं है?

शाहनाज की अपने बेटे की बात सुनकर हालत खराब हो गई और उस बात से बेखबर कि उसका बेटा उसे देख रहा है उसने एक बार मूसल की तरफ देखा और ना चाहते हुए भी उसकी निगाहें अपनी जांघो के बीच में चली गई मानो अपनी चूत की उस औखलीं से तुलना कर रही हो।

शादाब अपनी अम्मी की इस हरकत से पागल सा हो उठा और अपने चेहरे को उसके पास लाते हुए शहनाज़ के कंधे थाम लिए और मुंह को उसकी गर्दन के पास लाते हुए अपनी गर्म सांसे उसकी सुराहीदार गर्दन पर छोड़ने लगा। शहनाज पूरी तरह से मस्ती से भर उठी।

शादाब ने उसके कंधे पर अपने हाथ का हल्का सा दबाव बढ़ाया तो शहनाज की चूत में खुजली और बढ़ने लगी । शादाब ने फिर से अपना सवाल दोहराया:"

" अम्मी क्या ये मूसल इस औखलीं के हिसाब से बड़ा नहीं हैं कुछ ?

शहनाज़ अब पूरी तरह से मस्ती से बहक चुकी थी इसलिए बोली:"

" बड़ा तो जरूर हैं मेरे राजा बेटा लेकिन देख ना कैसे रगड़ रगड़ कर घुस रहा है हर बार, मसाला जल्दी कुट जाएगा!!

शहनाज के हाथ उत्तेजना से कांप रहे थे जिससे बार बार मूसल हाथ से स्लिप हो रहा था। ये देखकर शादाब बोला:"

" ओह अम्मी आपसे तो ये ठीक से उठ भी नहीं पा रहा हैं, ऐसे कैसे मसाला कुट जाएगा ? ये तो ठीक से अंदर भी नहीं घुस रहा है

शहनाज़:" बेटा फिर तू ही मेरी मदद कर दे इसे अंदर घुसाने में शादाब!

शादाब:" अम्मी ये इतना मोटा है कि अगर अंदर ही गया तो औखली की दीवारें रगड़ देगा और मसाले को जोर जोर से मारकर बिल्कुल बारीक पीस देगा।

शहनाज़ को लगा जैसे शादाब बोल रहा है कि वो अगर उसका मोटा तगड़ा लंड उसकी चूत में घुस गया तो चूत की दीवारों का रगड़ रगड़ कर सत्यानाश कर देगा। शहनाज़ का पूरा जिस्म कांप उठा और चूत गीली हो गई। शहनाज़ का गला सूख गया और शादाब की तरफ देखते हुए आपके सूखे होंठो पर जीभ फिराते हुए बोली:"

" शादाब मसाला तो बना ही जोर जोर से कूटे जाने के लिए हैं बेटा, आ जा मेरी मदद कर ले देख मेरी औखली में कितना मसाला हैं !!

इतना कहकर शहनाज़ शर्मा गई और मूसल की गति थोड़ा सा बढ़ा दी जिससे उसकी चूंचियों की उछाल थोड़ी और ज्यादा होने लगी तो शादाब ने अब अपनी अम्मी के ठीक पीछे आते हुए अपने चेहरे को उसकी गर्दन पर टिकाते हुए आगे की तरफ झुका दिया जिससे शहनाज़ की उछलती हुई चूचियों और उसके मुंह में बस थोड़ा सा फासला रह गया था। शहनाज़ अपने बेटे की इस हरकत से मजे से झूम उठी और उसने अपने जिस्म को हल्का सा ढीला छोड़ दिया जिससे शादाब का खड़ा लंड उसकी कमर पर अपना प्रभाव डालने लगा तो शहनाज़ के मुंह से हल्की हल्की मस्ती भरी सिसकारियां निकल रही थीं जिन्हें वो बड़ी मुश्किल से दबा रही थी। शादाब ने अपना हाथ आगे बढ़ाते हुए अपना मा के हाथ पर रख दिया जिससे शहनाज़ का रोम रोम कांप उठा और चूत से अमृत रस की कुछ बंदे बाहर टपक पड़ी। अब मूसल जरूर शहनाज़ के हाथ में था लेकिन शहनाज़ का हाथ अब पूरी तरह से उसके बेटे के कब्जे में था जिस पर वो हलके हलके अपनी उंगलियां फिरा रहा था और शहनाज़ की गर्दन और उसकी चूचियों के बीच पड़ती शादाब की गर्म गर्म सांसे उस पर और ज्यादा ज़ुल्म कर रही थी जिसका नतीजा ये हुआ कि शहनाज़ के हाथ पूरी तरह से कांप उठे और मूसल उससे छूट गया। शादाब धीरे से अपनी अम्मी को बोला:"
" अम्मी आपको अगर इतने बड़े मूसल से अपना मसाला कुटवाना हैं तो आपको ताकत की जरूरत पड़ेगी ताकि आप ठीक से मूसल को थाम सको।

अपने बेटे की बात सुनकर शहनाज़ शर्म से पानी पानी हो गई तो शादाब थोड़ा सा आगे को हुआ जिससे उसका लंड पूरी तरह से शहनाज़ की कमर से सट गया और उसने अपनी अम्मी का हाथ पकड़े हुए अपना हाथ नीचे झुकाया और शहनाज़ ने मूसल को उठा लिया। शादाब ने मूसल को तेजी से नीचे की तरफ मारा तो वो एक झटके के अंदर घुस गया, जितनी जोर से मूसल अंदर घुसा इतनी ही जोर से शादाब का लंड शहनाज की कमर पर लगा जिससे शहनाज़ के जिस्म को एक तेज झटका लगा जिससे उसकी चूचियां रबड़ की बॉल की तरह उछली और शादाब के मुंह से जा टकराई जिससे दोनो मा बेटे के मुंह से मस्ती भरी आह निकल पड़ी। फिर क्या था देखते ही देखते शादाब ने पूरी स्पीड पकड़ ली और बिजली की गति से मूसल अंदर बाहर होने लगा। शहनाज़ फैसला नहीं कर पा रही थी कि उसके बेटा का लंड ज्यादा ठोस हैं या मूसल क्योंकि जैसे ही लंड उसकी कमर पर लगता तो एक झटके के साथ वो आगे को झुक जाती और जैसे ही मूसल बाहर आता था तो वो शादाब के हाथ के साथ साथ थोड़ा सा पीछे को खींच जाती। जब भी मूसल अंदर की तरफ घुसता तो औखलीं से घरर घरर की आवाज निकलने लगती। शहनाज़ को लग रहा था जैसे ये धक्के औखलीं में नहीं बल्कि उसकी चूत में पड़ रहे हैं इसलिए उससे बर्दाश्त नहीं हुआ और शर्म लिहाज छोड़कर अपनी एक अंगुली को अपनी जांघो के बीच में घुसा दिया और अपनी चूत को सलवार के ऊपर से रगड़ने लगी। मूसल के हर झटके पर शहनाज़ के हाथ तेजी से उपर नीचे हो रहे थे जिसका नतीजा ये हुआ कि आगे से उसके सूट का गला चरर की आवाज करते हुए फट गया जिससे उसकी काले रंग की ब्रा में कैद चूचियां पूरी तरह से खिल उठी। मूसल के शोर के कारण और मस्ती में डूबी हुई होने के कारण शहनाज़ को इसका आभास नहीं हुआ क्योंकि उसका पूरा ध्यान तो अपने कमर पर पड़ रहे अपने बेटे के लंड और औखली से निकलती हुई आवाज पर था। उसे लग रहा था जैसे ये औखली की नहीं बल्कि उसकी चूत की आवाज हैं। मसाला तो कब का कुट चुका था और हर झटके पर मसाला बाहर गिर रहा था जिसकी दोनो मा बेटे को खबर नहीं थी। अम्मी की चूचियां देखते ही शादाब सब कुछ भूलकर पूरी ताकत से मूसल को ठोकने लगा। अपने बेटी के लंड की कमर पर पड़ती मार की वजह से वो अपनी जगह से कम से कम दो फुट खिसक चुकी थी। शादाब अपनी अम्मी के कान में बहुत सेक्सी आवाज में बोला:"

" मूसल लंबा मोटा ठोस होने से कुछ नहीं होता, उससे ठोकने के लिए दम भी होना चाहिए।

अपने बेटे की बात सुनकर शहनाज़ की सांसे पूरी तरह से बेकाबू हो गई और उसने जोर से अपनी क्लिट को दबा दिया जिससे उसके मुंह से एक तेज मस्ती भरी सिसकी निकल पड़ी जिसे सुनकर शादाब ने अपनी जीभ को अपनी अम्मी की चूचियों पर फेर दिया तो शहनाज़ ने अपनी चूत को जोर से मसल दिया और उसका पूरा बदन अकड़ता चला गया और उसके मुंह से एक जोरदार मस्ती भरी सिसकी निकल पड़ी

" हाय अल्लाह मर गई मैं तो, उफ्फ आह मा बचा ले मुझे एसआईआईआईआईआई आह नहीं आईआईआई हाय सीई उफ्फ

शहनाज़ का शरीर एक दम बेजान सा होकर पीछे झुक गया जिससे शादाब का मुंह पूरी तरह से अपनी अम्मी की चुचियों में घुस गया। शादाब से ये कामुक और मस्ती भरा एहसास बर्दाश्त नहीं हुआ और उसने पूरी ताकत के साथ मूसल को जोर से औखली में ठोक दिया। जितनी जोर से मूसल औखलि में घुसा उससे कहीं ज्यादा जोर से शादाब का लंड आगे की तरफ आया और शहनाज़ की कमर में घुसा। शहनाज़ एक बार फिर दर्द से कराह उठी और उसने दर्द को दबाने के लिए अपने बेटे के हाथ को पूरी जोर से दबा दिया। इस धक्के के साथ ही शादाब के लंड ने अपने वीर्य की पहली बरसात अपनी अम्मी की कमर पर दी। शादाब इस एहसास से पूरी तरह से बहक गया और शादाब ने मस्ती में आकर अपनी अम्मी की चूची के उभार पर दांत गडा दिए और उसके ऊपर ढेर हो गया जिससे शहनाज़ उसके भारी भरकम शरीर का वजन नहीं झेल पाई और आगे की तरफ गिर पड़ी और शादाब भी कटे हुए पेड़ की तरह अपनी अम्मी की कमर पर गिर गया जिससे एक बार फिर से शहनाज़ के होंठो से आह निकल पड़ी।

शहनाज़ की चूत से अभी भी गर्म गर्म रस निकल रहा था और वो अपनी दोनो आंखे बंद किए हुए पूरी तरह से मदहोश पड़ी हुई थी। शादाब के लंड से निकलता हुआ वीर्य शहनाज़ की कमर को हल्का हल्का भिगो रहा था और वो अभी भी मस्ती में डूबा हुआ अपनी अम्मी की गर्दन जीभ से चाट रहा था जिससे शहनाज़ एक अलग ही मस्ती महसूस कर रही थी। थोड़ी देर के बाद जैसे ही उसकी चूत से रस टपकना बंद हुआ तो अपनी हालत का एहसास हुआ तो वो शर्म के मारे लाल हो गई और उसकी नजर औखली पर पड़ी जो कि पास में पड़ी हुई थी और उसमें से सारा मसाला कूटकर जमीन पर बिखर गया था और औखली पूरी तरह से खाली पड़ी हुई थी जिसका मूसल की मार से डिजाइन बिगड़ गया था। उसने धीरे से अपनी चूत को छुआ तो उसे एहसास हुआ कि उसकी चूत से सारा रस बहकर जमीन पर बिखर गया था और उसकी चूत औखलीं की तरह से एक दम खाली हो चुकी थीं। उफ्फ मेरा बेटा ऐसे ही मेरी चूत की भी हालत औखली की तरह बिगाड़ देगा ये सोचते ही वो एक बार फिर से कांप उठीं।

अब उससे अपने शरीर पर अपने बेटे का भारी भरकम शरीर बर्दाश्त नहीं हो रहा था इसलिए बोली:"

" बेटा हट जा मेरे उपर से मुझे बहुत वजन लग रहा है , उफ्फ कितना तगड़ा है तू!

शादाब अपनी अम्मी की बात सुनकर उसके उपर से हट गया और जैसे ही शहनाज़ खड़ी हुई तो पहली बार उसकी नजर अपने फटे हुए सूट से बाहर झांकती अपनी ब्रा पर पड़ी जिसमे से उसके चूचियां आधे से ज्यादा बाहर झांक रही थी। शहनाज़ शर्म के मारे जमीन में गड़ गई और उसने दोनो हाथो से अपना मुंह ढक लिया और बोली:"

" उई मा, ये क्या हो गया,उफ्फ

शहनाज़ तेजी से भागती हुई अपने कमरे में घुस गई।
 
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