अंकित कपड़े धोते समय अपनी मां की चड्डी को देखकर अत्यधिक उत्तेजना का अनुभव करने लगा था और वह अपनी मां की चड्डी के साथ मनमानी कर चुका था उसके छोटे से छेद को अपने लंड की मोटाई की रगड़ से उसे और भी बड़ा बना दिया था,,,, और इस समय सुगंधा की चड्डी उसे कुंवारी लड़की की बुर तरह हो गई थी जो सुहागरात से पहले एकदम कसी हुई होती है लेकिन सुहागरात की रात के बाद से ही ढीली हो जाती है,,,, अंकित इस बात को अच्छी तरह से जानता था कि उसकी मां उसकी चड्डी के छोटे से खेत को बड़ा छेद हुआ देखकर जरूर उससे पूछे कि यह क्या हुआ है और इसके लिए उसने अपने मन में जवाब भी ढूंढ लिया था,,,।
Sugandha ki kalpna
सुगंधा अपने कमरे में ही थी जिस तरह का नजारा उसने अपने बेटे को दिखाई थी वह जानती थी कि उसकी जवानी का जलवा देखकर उसका बेटा चारों खाने चित हो गया है,, वह अपने मन में बहुत खुश थी क्योंकि आज के दिन वह कुछ ज्यादा ही अपने बेटे से खुल गई थी,,, बातचीत में अभी इतना नहीं खुली थी लेकिन अपने बेटे के सामने कपड़े उतारना बदलना नहाना इन सब में वह धीरे-धीरे खुलती चली जा रही थी,,, और उसे पूरा यकीन था कि एक दिन जिस तरह से वह अपने बेटे के सामने खुलती चली जा रही है एक दिन जरूर उसका बेटा अपने हाथों से उसकी दोनों टांगें खोलेगा और उस दिन का उसे बेसब्री से इंतजार भी था,,,,,, सुगंधा अपने बदन में उत्तेजना का संचार होता हुआ महसूस कर रही थी आज बाथरूम के अंदर जो कुछ भी हुआ वह उसकी सोच से बिल्कुल पड़े था वह कभी सोची भी नहीं थी कि हालात इस कदर से उसके पक्ष में आ जाएंगे कि जो वह चाहती है वह खुद अपने बेटे की आंखों के सामने करेगी वह कभी सोची नहीं थी कि बाथरूम के अंदर वह अपने बेटे की आंखों के सामने ही अपने बदन से धीरे-धीरे अपने कपड़े उतरेगी नहाएगी उसके सामने अपनी चड्डी उतारेगी यह सब सो कर ही उसके बदन में गर्मी छा रही थी,,,।
Sugandha ki kalpna apne bete k sath
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अपने बेटे के सामने संपूर्ण रूप से नंगी हो जाने का ख्याल उसके मन में बिल्कुल भी नहीं था वह सिर्फ इतना चाहती थी कि उसके बेटे के सामने वह नहाएगी,,, उसकी सोने से तो सब कुछ सामान्य लग रहा था लेकिन जैसे-जैसे वहां अपने बदन से कपड़े उतारती गई वैसे-वैसे उसकी टांगों के बीच की गली गीली होती चली गई,,, अपने बेटे की आंखों के सामने अपनी चड्डी उतरना उसे और भी ज्यादा मदहोशी से भरता चला गया था,,, और अपने बदन से अपने बेटे की आंखों के सामने चड्डी उतारते हुए उसके मन में यही ख्याल आ रहा था कि क्यों ना वह अपने बेटे के सामने पूरी तरह से नंगी हो जाए लेकिन इस समय तो वह ऐसा कर नहीं सकती थी क्योंकि वह अपनी पेटीकोट को अपने बदन के नंगेपन को ढकने का सहारा जो बना रखी थी अगर वह उसी समय अपनी बदन पर से पेटीकोट भी उतार कर फेंक देती तो उसका बेटा क्या समझता है वह यही समझता कि फिर उसे अब तक बदन पर चढ़ाई रहने का क्या फायदा है उतार कर ही नहरी होती जब उतारने का ही था तो,,,, वह किसी और बहाने से अपनी बेटी के सामने नंगी हो जाना चाहती थी अपनी खूबसूरत बदन के हर एक हिस्से को दिखा देना चाहती इसलिए टॉवल से अच्छा कारण उसे कोई दिखाई नहीं दे रहा था,,,।
Kalpna me chudai karta hua ankit
इसलिए कपड़े उतार कर टावल को लपेटकर,, वह अपने मन में दृढ़ निश्चय कर ली थी कि आज वह अपने बेटे की आंखों के सामने पूरी तरह से नंगी हो जाएगी ऐसा नहीं था कि वह अपने बेटे के सामने पहली बार नंगी हो रही थी ऐसा वह बाथरूम के अंदर पहले भी कर चुकी थी लेकिन उसे समय उसकी जवानी का जलवा उसका एक खूबसूरत हमको का नजारा उसका बेटा बाथरूम के दरवाजे के छोटे से छेद से देख रहा था लेकिन वह अपने बेटे के सामने बिना किसी रूकावट के नंगी हो जाना चाहती थी ताकि उसके बेटे की आंखों में पूरी तरह से वासना उतर जाए वह उसे देखा ही रह जाए उसकी जवानी का रस अपनी आंखों से पीने के लिए मजबूर हो जाए,,, इसलिए टावल लपेटकर जैसे ही अपने कमरे की तरफ आगे बढ़ने लगी वह बड़ी सफाई से अपने बदन पर से टावल को एकदम से ढीला कर दी और टॉवल भी उसकी बात मानते हुए एकदम से उसके बदन से भर भरा कर नीचे उसके कदमों में जा गिरा और उसके खूबसूरत बदन को उजागर कर दिया,,, उस समय सुगंधा भी पूरी तरह से उत्तेजना और मदहोशी में डूब चुकी थी वह प्यासी आंखों से अंकित की तरफ देखने लगी अंकित उसे ही देख रहा था,,,। सुगंधा को अपने बेटे की आंखों में अपनी जवानी के लिए वासना एकदम साफ नजर आ रही थी और यह देखकर सुगंधा अंदर ही अंदर बहुत खुश हो रही थी,,,। सुगंधा को इस बात का एहसास बड़े अच्छे से हो रहा था, वह जानती थी कि जिस तरह की वासना उसे अपने बेटे की आंखों में दिखाई दे रही है अगर वह उसे इशारा करके अपने कमरे में बुला ले तो उसका बेटा खुशी-खुशी उसके कमरे में आ जाएगा और उस पर चढ़े बिना नहीं रह पाएगा,,, लेकिन अभी इतनी जल्दी वह ऐसा करना नहीं चाहती,,,।
Sugandha or ankit
ऐसा लग रहा था की सुगंधा के जीवन में यह बुखार बहुत बड़ा बदलाव लेकर आई थी ना तो इससे पहले कभी सुगंध इस तरह से बीमार पड़ी थी और ना ही उसे मौका मिला था अपने बेटे के सामने इस तरह से खुलने का,,, और उसका बेटा भी इस मौके का बहुत अच्छे से फायदा ले रहा था,,,, इस बात को सोचकर उसके तन-बदन में अजीब सी हलचल मच जाती थी की दवा खाने के बाथरूम में उसका बेटा उसकी चड्डी उतारते समय क्या-क्या सोच रहा होगा,,, भले ही उसे समय वह ज्यादा बीमार थी उसे कुछ होश नहीं था लेकिन उसका बेटा तो पूरे हो तो हवास में था वह तो अपने होश में ही उसकी चड्डी अपने हाथों से उतार रहा था चड्डी उतारने में एक मर्द को कितना आनंद आता है इस बात को सुगंधा अच्छी तरह से जानती थी,,, भले ही इस सुख को उसके पति ने ना भोगा हो लेकिन मर्दों की फितरत से वह धीरे-धीरे अच्छी तरह से वाकिफ हो गई थी,,,।
sugandha ki chudai
छत पर कपड़े सूखने के लिए डालने के बाद अंकित अपनी मां के कमरे में नहीं गया था,,,, वह कुछ हद तक शर्मिंदा भी था इसलिए अपनी मां से नजर मिलाने से कतरा रहा था और इस समय वह क्यों शर्मा महसूस कर रहा है इस बात को वह भी नहीं जानता क्योंकि उसके और उसकी मां के बीच बहुत कुछ हो चुका था कपड़ों का उतारना,, उसको नहीं लाना,,, उसके कपड़े धोना उसे नग्न अवस्था में देखना सब कुछ लेकिन फिर भी वासना का बहुत सर से उतर जाने के बाद उसे थोड़ी बहुत शर्मिंदगी का एहसास हो रहा था क्योंकि वह जानता था कि जो कुछ भी वह अपनी मां के बारे में सोच रहा है या उसके बारे में उसके मन में गलत भावना जाग रही है यह सब कहीं ना कहीं गलत है ऐसा मां बेटे के बीच बिल्कुल भी नहीं होना चाहिए लेकिन फिर भी यह सब करने में उसे बहुत मजा आ रहा था आनंद आ रहा था और इसीलिए वह इस बारे में घर के बाहर इधर-उधर घूमते हुए सोच रहा था,,,।
Sugandha ki adhbhut kalpna
वह यह सोचकर हैरान हो रहा था कि क्या मां बेटे के बीच जिस्मानी ताल्लुकात सही है या गलत,, क्या बेटे को चाहिए कि वह अपनी मां के साथ संभोग करे उसके साथ शरीर संबंध बनाए ,,, यह सब किस हद तक सही है,,,, क्या कोई मां होगी जो अपने बेटे के साथ चुदवाना चाहेगी,,,,,, बरसों से अपनी प्यासी जवानी की प्यास बुझाना चाहेगी,,,,, राहुल और उसकी मां के बीच उन्हें देखकर तो ऐसा ही लगता है कि उन दोनों के बीच ऐसा ही संबंध है राहुल की बातें सुनकर ऐसा ही लगता है कि वह अपनी मां को जरूर चोदता होगा उसकी मां भी तो उससे बहुत खुश रहती है,,, यह सब सो कर उसका दिमाग काम करना बंद कर दिया था उसे समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करना चाहिए,,,,, अपने ही सवाल का जवाब अपने मन में ही देते हुए वह बोला अगर चार दिवारी के अंदर मां बेटे के बीच इस तरह का रिश्ता कायम हो जाता है तो भला किसे पता चलने वाला है ऐसा तो है नहीं की औरतों को मर्द की जरूरत नहीं होती,, मां को भी एक मर्द की जरूरत है और वह जरूरत वह पूरी कर सकता है,,,,,, लेकिन क्या इसके लिए मन तैयार होगी,,,,? जरूर होगी क्यों नहीं होगी,,,, यही सब सो कर उसका दिमाग खराब हुआ जा रहा था उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था,,,, वह अपने मन में यही सोच रहा था कि भले वह कुछ भी सोच लेकिन हालात तो दोनों के बीच इस तरह से बनते चले जा रहे हैं कि एक नई दिन जरूर दोनों के सब्र का हाथ टूट जाएगा और दोनों एक हो जाएंगे और उसे दिन का उसे भी बड़ी बेसब्री से इंतजार था लेकिन जिस तरह का सफर जारी था उसका आनंद वह पूरी तरह से लेना चाहता था इसीलिए इधर-उधर टहलते हुए जब शाम ढलने लगी तो वह घर पहुंच गया,,,,।
घर पर पहुंच कर देखा तो उसकी मां कुर्सी पर बैठकर आराम कर रही थी,,,, अपनी मां को देखते ही अंकित के चेहरे पर प्रश्ननता के भाव नजर आने लगे और वह एकदम से उसके पास जाकर उसके माथे पर अपना हाथ रखकर बोला,,,।
आप कैसी तबीयत है तुम्हारी मम्मी,,,।
ठीक है इसलिए तो यहां पर बैठी हूं नहीं तो बिस्तर पर पड़ी रहती,,,।
चलो अच्छा है कि आराम हो गया बिस्तर पर बीमार होकर पड़े रहने से अच्छा है कि इधर-उधर घूमते रहो,,,, अच्छा तुम यहीं बैठो तब तक में कपड़े उतार कर लाता हूं,,,।
रुक मैं भी चलती हूं थोड़ा सा हवा भी लग जाएगा छत पर,,,,।
चलो ठीक है,,,, सहारा देना पड़ेगा,,,,
नहीं नहीं अब आराम है मैं चल लूंगी,,,
ठीक है,,, लेकिन तुम आगे आगे चलो मैं पीछे-पीछे चलता हूं,,,, कहीं चक्कर आ गया तो संभाल लूंगा,,,,।
(अपने बेटे की बात सुनकर सुगंधा के चेहरे पर मुस्कान तैरने लगी और वह मुस्कुराते हुए बोली,,)
तू मेरा कितना ख्याल रख रहा है,,, तू सच में बहुत बड़ा हो गया है मुझे तुझे कर सके एकदम बच्चा ही समझती थी लेकिन जिस तरह से तूने मुझे संभाला है,,,, मुझे तो यकीन ही नहीं हो रहा है,,,।
यह तो मेरा फर्ज है मम्मी,,,,
तेरा फर्ज तो बहुत कुछ बनता है अभी तो बहुत फर्ज निभाना बाकी है,,,,(इतना कह कर वह सीढ़ियां चढ़ने लगी,,, और अंकित उसके पीछे-पीछे सीढियां चढ़ता हुआ आश्चर्य जताते हुए बोला,,,)
कौन सा फर्ज मम्मी,,,,।
Sugandha ki tadap
अरे बहुत सब फर्ज है बेटा यह तो बीमार होने पर का फर्ज निभाया है तुने ,,, ऐसे छोटे-बड़े बहुत से फर्ज हैं जो समय आने पर तुझे खुद ही पता चल जाएगा,,,।
(सुगंधा बातों ही बातों में अंकित को इशारा दे रही थी लेकिन की समझ नहीं पा रहा था वह सीढ़ियां चढ़ती हुई अपनी मां के गोलाकार नितंबों की खूबसूरती में और फर्ज निभाने के उलझन में उलझ कर रह गया था और अपनी मां के कहने के असली मकसद को समझ नहीं पा रहा था,,,, सीढ़ीया चढ़ती हुई उसकी मां इस समय बहुत ज्यादा खूबसूरत लग रही थी उत्तेजक बदन की महिला होने के साथ-साथ बड़ी गांड वाली औरत की थी और सीढ़ियां चढ़ते समय उसकी गांड की दोनों फाके आपस में इस कदर ऊपर नीचे होकर रगड़ खा रही थी कि कसी हुई साड़ी में उसके उभार एकदम साफ नजर आ रहे थे,,, अभी कुछ घंटे पहले वह अपनी मां को पूरी तरह से नंगी देख चुका था लेकिन फिर उसकी प्यास थी कि खत्म नहीं हो रही थी की साड़ी में भी अपनी मां के नितंबों को देखकर वह उत्तेजित हुआ जा रहा था,,, देखते ही देखते दोनों छत पर पहुंच गए,,,।
Ankit apni ma k sath
छत पर पहुंच कर सुगंधा देखी कि उसके बेटे ने धुले हुए कपड़ों को बड़े अच्छे से रस्सी पर डाल कर रखा था ऐसा लगी नहीं रहा था कि जैसे वह पहली बार रस्सी पर कपड़े सुखाने के लिए डाला हो,,, कैसा लग रहा था कि मानो जैसे यह उसका रोज का काम है लेकिन हकीकत यही था कि वह पहली बार कपड़ों को रस्सी पर सूखने के लिए डाला था,,,, यह देखकर सुगंधा खुश होते हुए बोली।
बहुत अच्छे चलो एक काम से तो मुझे छुटकारा मिल जाएगा,,,।
कौन से काम से मम्मी,, (ऐसा कहते हुए वह दूसरे छोर पर पहुंचकर वहां से धीरे-धीरे कपड़े उतारने लगा और उसकी मां एक किनारे से कपड़े को उतारने लगी)
यही कपड़े सुखाने के काम से,,,।
Ankit apni ma k sath
कोई बात नहीं मुझे तो अच्छा लगता है तुम्हारे काम में हाथ बंटाना,,,।
तो पहले क्यों नहीं बंटाता था,,,।
पहले कभी मौका ही नहीं मिला वैसे भी दीदी सारा काम कर देती थी तो मुझे कुछ करने को रहता ही नहीं था,,,,.।
चल अब तो करेगा ना,,,(धीरे-धीरे रस्सी पर से कपड़े उतारते हुए सुगंधा बोली धीरे-धीरे दोनों करीब आते जा रहे थे दोनों के बीच के दूरी तकरीबन डेढ़ मीटर जितनी ही रह गई थी मौसम सुहावना होता जा रहा था सूरज धीरे-धीरे ढल रहा था और दूर पंछियों का झुंड अपने घर की तरफ लौट रहा था यह सब देखना बहुत ही अच्छा लग रहा था,,,, और कपड़े उतारते समय अंकित मौसम के इससे खूबसूरत वातावरण का आनंद भी ले रहा था लेकिन इस समय उसके मन में कुछ और चल रहा था वह अपनी मां की तरफ पूरी तरह से आकर्षित हो चुका था.. इसलिए हाथ बंटाने वाली बात पर अंकित बोला,,)
Apni ma k sath ankit
जरूर मम्मी,,,,(इतना कहता कि दोनों बेहद करीब आ गए थे कि दोनों के बीच केवल दो फीट की ही दूरी रह गई थी और तभी सुगंधा के हाथ में उसकी चड्डी लग गई और उसकी नजर चड्डी में बने बड़े से छेद पर चली गई यह देखकर तो अंकित के होश उड़ गए क्योंकि वह भूल चुका था कि उसकी मां की चड्डी उसने ही बड़ा किया है और इस समय वह चड्डी उसकी मां के हाथ में आ चुकी है,,,,।
मादकता भरे वातावरण और एक दूसरे के प्रति आकर्षण के पहले सुगंधा कभी भी अपने बेटे की नजर में अपनी पहनी हुई चड्डी या साफ सुथरी चड्डी आने नहीं देती थी कपड़े सुखाने के लिए डालती भी थी तो साड़ी के नीचे छुपा कर रखती थी,,, लेकिन 2 दिन में जिस तरह की हालात दोनों के बीच बदले थे उसे देखते हुए सुगंधा अपने बेटे की आंख के सामने से अपनी चड्डी को छुपाने की बिल्कुल भी कोशिश नहीं कर रही थी क्योंकि इस बात को वह भी अच्छी तरह से जानती थी की चड्डी को धोया भी उसके बेटे नहीं है और सूखने के लिए डाला भी उसी में इसलिए अब उसकी आंख के सामने से अपने अंतर्वस्त्र को छुपाना बिल्कुल भी ठीक नहीं था,,,।
Ankit or sugandha
सुगंधा अपनी चड्डी को इधर-उधर घूमा कर उसे बड़े से छेद को देख रही थी उसकी चड्डी में छोटा सा छेद था इस बात को अच्छी तरह से जानती थी लेकिन इतना बड़ा कैसे हो गया उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था और अंकित यह देखकर लेकिन फिर भी जिस तरह का आकर उसने अपनी मां की चड्डी में बनाया था उसे देखकर उसके होश उड़ गए थे,, चड्डी में वह छेद एकदम गोलाकार आकार में तब्दील हो चुका था अच्छा खासा गोलाकार जिसमें से अंकित का लंड बड़े आराम से गुजर चुका था,,,, अपनी चड्डी के उसे छोटे से छेद को जो किया बड़ा हो चुका था उसे अंकित की तरफ आगे बढ़ाकर उसे दिखाते हुए बोली,,,,।
अंकित यह कैसे हो गया यह तो बहुत छोटा था,,,,।
हां मम्मी छोटा तो था लेकिन मुझे अच्छा नहीं लग रहा था क्या तुम्हारे पास नई चड्डी नहीं है पहनने को जो इस तरह की फटी हुई चड्डी पहनती हो,,,,(अंकित अपनी मां के सवाल के घेरे में आता है इससे पहले ही वह अपनी मां को ही घेरे में लेते हुए बोला,,,, अपने बेटे की बात सुनकर सुगंधा की शर्म के मारे हालत खराब हो रही थी वह सर में से पानी पानी में जा रही थी और उसकी दोनों टांगों के बीच की दरार में से वह शर्म का पानी बहने लगा था,,,, अपने बेटे की बात सुनकर वह बोली,,,)
तुझे क्या लगता है,,,?
मुझे तो लगता है कि सच में तुम्हारे पास पहनने को चड्डी नहीं है,,,,(अंकित अब तक के हालात को देखते हुए हिम्मत जुटाकर बोला,,,)
ऐसा क्यों कह रहा है तु,,,(चड्डी के छेद में जानबूझकर उंगली डालकर उसे अंदर बाहर करते हुए बोली यह देखकर अंकित के पेट में तंबू बनने लगा,,,, क्योंकि जिस तरह से उसकी मां चड्डी के छेद में उंगली बाहर कर रही थी कुछ घंटे पहले वहां उंगली की जगह अपने लंड को अंदर बाहर कर चुका था और सुगंध भी जानबूझकर अपनी हरकत को अंजाम दे रही थी वह अपने बेटे को उकसाना चाहती थी वह इसके मतलब को बताना चाहती थी,,,,, अपनी मां की बात सुनकर उसकी हरकत को देखकर अंकित बोला,,,)
Ankit or sugandha
क्योंकि मैं पहले भी देख चुका हूं,,(गहरी सांस लेते हुए अंकित बोला)
पहले भी देख चुका है क्या देखचुका है,,,!(सुगंधा आश्चर्य जताते हुए बोली)
उसे दिन मार्केट में जब मार्केट से वापस लौट रहे थे शाम हो चुकी थी और तुम्हें बड़े जोर की पेशाब लगी थी यादहै तुम्हें,,,,(पेशाब वाली बात एकदम से अंकित भूल गया था और उसके मुंह से पेशाब वाली बात सुनकर सुगंधा को सब कुछ याद आ गया था और उसका भी जोरों से धड़कने लगा था अंकित का जवाब देते हुए वह हां में सिर हिला दी,,,)
तुम पेशाब करने के लिए बैठ रही थी कि अचानक मेरी नजर तुम पर चली गई थी और मैं देखा था तुम चड्डी नहीं पहनी थी बस साड़ी उठाकर बैठ गई थी पेशाब करने के लिए,,,,(अंकित पर सुरूर जा रहा था वह मदहोश हुआ जा रहा था वह अपनी मां से इस तरह की बातें करना नहीं चाहता था लेकिन वक्त और हालात को देखकर अपने आप ही उसके मुंह से इस तरह की गंदी बातें निकल रही थी और सुगंधा तो अपने बेटे के मुंह से इस तरह की बातें सुनकर एकदम से मदहोश हो जा रही थी उत्तेजित हुए जा रही थी उसे अच्छा लग रहा था अंकित के मुंह से इस तरह की बातें सुनने में,,,,, अंकित की बात को सुनकर सुगंधा को सब कुछ याद आ गया था,,, उसे अच्छे से याद था,,वह जानबूझकर चड्डी नहीं पहनी थी,, क्योंकि मार्केट में पेशाब करने के लिए वह पहले से ही सोच कर रखी थी यह उसके प्लान का ही भाग था चक्की ना पहनना क्योंकि वहां जानबूझकर अपने बेटे को यह दिखाना चाहती थी अपने आप को पेशाब करते हुए दिखाना चाहती थी और उसके बेटे ने देखा भी था और यह वह जानबूझकर बोल रहा था कि वह अनजाने में देख लिया था,,, फिर भी अपने बेटे की बात सुनकर आश्चर्यजताते हुएबोली,,,)
बाप रे तू मुझे देख रहा था,,,।
Sugandha
नहीं नहीं देखा नहीं रहा था बस अनजाने में मेरी नजर पहुंच गई थी,,,।
लेकिन तू कितना समझदार है देख कर भी तुझे मेरी तकलीफ के बारे में पता चल गया,,, सच में मेरे पास चड्डी नहीं है,,,,। तु खरीद कर लाएगा,,,,!
(इतना सुनते ही ऐसा लग रहा था जैसे अंकित के कानों में कोई रस घोल रहा हो वह मदहोश हुआ जा रहा था,,,, उसे बहुत अच्छा लग रहा था उसकी मां उसे अपने इसलिए चड्डी खरीदने के लिए बोल रही थी लेकिन फिर भी वह औपचारिकता निभाते हुए बोला,,)
मम्मी में कैसे लाऊंगा मुझे तो इसका अनुभव भी नहीं है दीदी को बोल देना ना,,,,।
नहीं दीदी को नहीं मैं भी तो देखूं तु मेरी कितनी फिक्र करता है,,,(सुगंधा जानबूझकर अपनी बेटी से नहीं मांगना चाहती थी क्योंकि महीना पहले ही वह अपनी बेटी से अपने लिए चार पेटी मंगवाई थी इसलिए अगर वह अपनी बेटी से कहती तो वह क्या कहती कि अभी-अभी तो चार पेंटी खरीद कर दी थी वह कहां गई और अंकित तो इस बारे में कुछ जानता भी नहीं है,,, अंकित अपनी मां की बात सुनकर बोला,,,)
लेकिन मुझे तो कुछ पता ही नहीं है कि कैसे खरीदी जाती है,,,।
अरे इसमें क्या हुआ बड़ा तो तू हो ही गया है इतना तो तुझे समझ में आ जाना चाहिए की औरतों की पेंटिं कैसे खरीदी जाती है,,, बोल खरीदेगा ना,,,,।
अगर रहती हो तो जरूर खरीद दूंगा मुझे अच्छा नहीं लगता है तुम इस तरह की फटी चड्डी पहनती हो,,,।
ठीक है तो खरीद कर देगा तो नहीं पहनूंगी फटी चड्डी,,,,,। लेकिन हां अपनी बहन को कुछ भी मत बताना नहीं तो वह क्या समझेगी,,,।
बिल्कुल नहीं बताऊंगा,,,,।
(पेंटिं खरीदवाने के चक्कर में सुगंधा वह छोटा सा छेद बड़ा कैसे हो गया इस बारे में पूछना भूल ही गई थी,,, और दोनों सूखे हुए कपड़े उतार कर नीचे आ गए थे तब तक तृप्ति भी घर पर आ चुकी थी,,,,)