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Incest मुझे प्यार करो,,,

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rajeev13

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एक ऐसे शहर में, जहाँ पुरानी परंपराएँ और गहरे अंधविश्वास आपस में इस कदर गुँथे थे कि उन्हें अलग करना मुश्किल था, हमारे परिवार पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा। एक के बाद एक कई दुर्भाग्य ने हमें घेर लिया, और मेरे पिता, हताश होकर, एक ज्योतिषी की शरण में पहुँचे। वह ज्योतिषी, धूप और रहस्य में लिपटा एक अजीब सा शख्स, अपनी रहस्यमय आँखों से कुंडली को ऐसे घूर रहा था मानो ब्रह्मांड के सारे राज़ उसी में छिपे हों। अचानक उसकी आवाज़ गूँजी, "सितारों की यही पुकार है! परिवार की खुशहाली के लिए, बेटे को मंडप में अपनी ही कुलमाता से विवाह करना होगा।"
मेरे पिता, जो किस्मत के लिखे को कभी चुनौती नहीं देते थे, उनके पास इस अजीबोगरीब फरमान को मानने के अलावा और कोई चारा न था। यह विचार बेशक बेतुका था, लेकिन हमारे बुरे वक्त को खत्म करने की जल्दबाजी ने उनकी सारी शंकाओं को दबा दिया। उन्होंने बिना देर किए एक योजना बनाई। एक ऐसा समारोह रचा गया, जो मुझे मेरी माँ से एक ऐसे बंधन में बाँधने वाला था, जो शायद खुद सितारों जितना ही पुराना और रहस्यमय था।
शादी का दिन आया तो माहौल में एक अजीब सी बेचैनी थी, जो उम्मीद और अविश्वास के बीच झूल रही थी। मैं कॉलेज की अपनी सामान्य दुनिया से निकलकर अचानक रीति-रिवाजों और रस्मों के एक बवंडर में फँस गया था। मेरे पिता, जिनकी आँखों में अब बस एक दृढ़ संकल्प था, मुझे पवित्र मंडप की ओर ले चले। हवा में चंदन और गेंदे की महक घुली हुई थी, जो इस अलौकिक पल को और भी गहरा बना रही थी।
मैं वहाँ खड़ा था, पारंपरिक सफेद पोशाक में। उस पल का भारीपन मुझे कुचले जा रहा था। दुल्हन, जिसका चेहरा घूंघट में छिपा था, ऐसी अदा से चल रही थी कि वह एक पल में जानी-पहचानी लगती, तो अगले ही पल एक पहेली बन जाती। समारोह एक धुंध की तरह बीतता गया, हर हरकत प्रतीकों से भरी, हर कसम किस्मत की गूँज की तरह सुनाई देती।
जैसे ही मंगलसूत्र की गाँठ बंधी, एक गहरी और अंतिम भावना मुझ पर छा गई। रस्में पूरी हुईं, और मुझे फूलों से सजे एक कमरे में ले जाया गया, जहाँ गुलाब और चमेली की खुशबू हवा में घुली हुई थी। घड़ी की सुइयाँ धीरे-धीरे आधी रात की ओर बढ़ रही थीं, और मैं बिस्तर के किनारे बैठा था, मेरा दिल आशंका और जिज्ञासा के अजीब मिश्रण से धड़क रहा था।
उस पल में, मैं उस जानी-पहचानी दुनिया और सितारों द्वारा तय किए गए इस रहस्यमय रास्ते के बीच फँस गया था। मैं एक ऐसी यात्रा के मुहाने पर खड़ा था, जिसकी कल्पना करना भी मेरे लिए मुश्किल था।

My Story Idea!
 

rohnny4545

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पंखा साफ करते हुए जो कुछ भी हुआ था वह बेहद अद्भुत और अकल्पनीय था क्योंकि अंकित ने कभी सोचा नहीं था कि टेबल पर चढ़ी उसकी मां अपनी दूर से मदन रस की बूंद नीचे गिराएगी और वह उसे उंगली से लगाकर चाट जाएगा ना तो यह कल्पना अंकित ने किया था और ना ही उसकी मां सुगंधा ने हीं,,,, सुगंधा तो इस दृश्य को देखकर पानी पानी हो गई थी,,, वह कभी सोची नहीं थी कि उसके बेटे की लालच ईस कदर बढ़ जाएगी की,, वह उसके बुर से निकले नमकीन पानी को चाटने के लिए इस कदर व्याकुल हो जाएगा,,,, सुगंधा इतना तो समझ गई थी कि दोनों मां बेटे में एक दूसरे को पानी की जो चाहत थी वह काफी हद तक बढ़ चुकी थी आग दोनों जगह बराबर लगी हुई थी,,,, सुगंधा आज पूरी तरह से बेशर्म बन जाना चाहती थी इसीलिए तो उसने अपने बेटे से अलमारी साफ करने के लिए बोली थी और उस गंदी किताब को अपने बेटे के हाथ लगने दी थी जिसे वह पहले भी पढ़ चुका था लेकिन यह बात सुगंधा नहीं जानती थी।





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सुगंधा ही अपने बेटे को इस किताब की कहानी को पढ़कर सुनाने के लिए मजबूर की थीऔर भला अंकित कहां पीछे हटने वाला था वह भी किताब में लिखा है कि एक शब्द अपनी मां के सामने पढ़कर उसे सुना दिया जिसे सुनकर उसकी मां की बुर गीली होने लगी थी और अंकित का लंड पूरी तरह से अपनी औकात में आकर खड़ा हो चुका था जिसका एहसास सुगंधा को भी अच्छी तरह से हो रहा था,,,,और फिर अलमारी की सफाई के बाद जिस तरह से वह अपनी गांड दिखाते हुए झाड़ू लगाई थी वह भी सुगंधा की सोच से कई ज्यादा हिम्मत दिखा देने वाली बातें थी और फिर जिस तरह से उसने अपनी पैंटी निकाल कर एक तरफ रख दी थी और पंखा साफ करते हुए अपने बेटे को अपनी बुर के दर्शन कराई थी यह सब कुछ मां बेटे दोनों के लिए अकल्पनिय था जिनकी दोनों ने भी कल्पना नहीं किए थे,,,। अपने बेटे को अपनी जवानी के दर्शन करने के लिए जिस हद तक उसने अपनी हिम्मत और शौर्य दिखाई थी यह बेहद काबिले तारीफ थी जिसके लिए वह खुद अपने आप को ही बधाई दे रही थी और अपने ही मन में अपने ही हिम्मत की सराहना कर रही थी क्योंकि सुगंधा के लिए यह बहुत था अपने बेटे को पूरी तरह से अपनी तरफ ललाईत करने के लिए,,, वैसे भी अब दोनों मां बेटे के बीच कुछ ज्यादा बचा नहीं थाबस जरूरत थी अंकित को थोड़ा हिम्मत दिखाने की और सुगंधा को थोड़ा और बेशर्म बन जाने की,,, अपने बेटे के पेट में बने हुए तंबू को देखकर सुगंधा की भावनाएं बेकाबू हो रही थी सुगंधा किसी भी तरह से अपने बेटे के साथ हम बिस्तर होने के लिए तड़प रही थी,,, वह मचल रही थी अपने जीवन को दोबारा एक नई राह दिखाने के लिए अपनी जिंदगी की नई शुरुआत करने के लिएअपने पति के देहांत के बाद वह एक बार फिर से शरीर सुख प्राप्त करना चाहती थी वह देखना चाहती थी कि अपने बेटे से चुदवाकर उसे कैसा महसूस होता है,,, वह अपनी बुर की अंदरूनी दीवारों मेंअपने बेटे के मोटे-मोटे लंड की रगड़ को अच्छी तरह से महसूस करना चाहती थीअपना पानी झाड़ देना चाहती थी जो उसे काफी परेशान कर रहा था लेकिन शायद अभी भी इस पल के लिए कुछ पल और सबर करना था।


तृप्ति के जाने के बाद दोनों मां बेट आपस में बहुत ज्यादा खुलने लगे थे,,, दोनों के बीच ऐसी कई घटनाएं हुई थी जिससे दोनों बेहद करीब आ सकते थे लेकिन फिर भी दोनों में से कोई पहल करने को तैयार नहीं था लेकिन फिर भी मंजिल पर पहुंचने से ज्यादा मजा दोनों को सफर में आ रहा था दोनों बार-बार उत्तेजित हो रहे थे मदहोश हो रहे थे पानी निकाल रहे थे और ऐसा बहुत कुछ था जो मंजिल से पहले का सुख प्रदान कर रहा था,,,,,, सुगंधा और अंकित अपने मन में इस बात को लेकर बेहद खुश भी होते थे कि अच्छा हुआ की तृप्ति नानी की वहां चली गई है क्योंकि उसकी मौजूदगी में शायद दोनों इतना सुख और इतना खुलापन महसूस नहीं कर पाते। घर में मां बेटे दोनों अकेले थेपर दोनों ही प्यासे थे एक अपनी जवानी की पूरी उत्थान पर थी और एक अभी-अभी जवान हुआ था दोनों की आकांक्षाएं और महत्वाकांक्षा एक ही थी दोनों की मंजिल एक ही थी और रास्ता भी एक ही था दोनों एक दूसरे का साथ देते हुए साथ-साथ चल भी रहे थे इसलिए तो यह सफर बेहद मनमोहक और मदहोशी से भरा हुआ था। पंखा साफ करते हुए अंकित अपनी मां की बुर के दर्शन करके पूरी तरह से मस्त हो चुका था,,,,कुश्ती करते समय उसे अच्छी तरह से एहसास हुआ था कि उसकी मां चड्डी पहनी हुई थी लेकिन इस समय उसके बदन पर चड्डी नहीं थी,,,यह देखकर उसे अच्छी तरह से एहसास हो रहा था कि उसकी मां क्या चाहती है और अपनी मां की चालाकी पर उसे और ज्यादा मजा आ रहा था वह समझ गया था कि उसकी मां छिनार है ठीक अपनी मां की तरह ही बस खुलकर बोल नहीं पा रही है,,,।


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एक औरत होने की नाते उसे अच्छी तरह से मालूम था कि इस समय उसे क्या चाहिएलेकिन वह सिर्फ इशारे ही इशारे में समझ रही थी मुंह से कुछ बोल नहीं पा रही थी और इसके उल्टेखुद उसकी मां खुले शब्दों में अंकित से बता दी थी कि उसे क्या चाहिए और दो दिन उससे खुलकर मजा लेने के बाद ही वह अपने घर गई थी और अंकित को एक अद्भुत सुख और एक अनुभव देकर गई थी जो उसे अब काम आने वाला था। अंकित भी इस बात को अच्छी तरह से जानता था कि उसकी नानी उसे जो सुख प्रदान की है तो बेहद अद्भुत था जिसके बारे में वह सोचता भर था।लेकिन ऐसा कभी किया नहीं था इसलिए तो अपनी नानी का मन ही मन में बहुत धन्यवाद करता था। क्योंकि वह नहीं होती तो शायदचुदाई करना हुआ है इतनी जल्दी नहीं सीखा होता और उसकी नानी की ही बदौलत उसका आत्मविश्वास पूरी तरह से बढ़ गया था जिसके चलतेघर में चीनी मांगने आई सुमन की मां की भी उसने चुदाई कर दिया था और उसे पूरी तरह से संतुष्ट कर दिया था अब यही अनुभव उसे अपनी मां पर दिखाना था लेकिन कैसे या उसे भी समझ में नहीं आ रहा था।

घर की सफाई के साथ-साथ पंखे की भी सफाई हो चुकी थी,,,और अब सिर्फ कपड़े की सफाई रह गई थी,,,सुगंधा अपने बेटे को अद्भुत नजारा दिखाने के बाद मुस्कुराते हुए अपने बेटे से बोली,,,,।

बाहर कपड़े रखे हुए हैं उसे लेकर घर के पीछे रख दे वहीं पर उसे धो डालती हूं,,, तू जाकर रख दे मैं आती हूं,,,।

ठीक है मम्मी,,,,(और इतना कहकर अंकित अपनी मां के कमरे से बाहर निकल गया और कपड़ों का ढेर लेकर उसे पीछे की तरफ ले जाने लगा वहां पर भी नहाने और कपड़े धोने का अच्छा इंतजाम थाऔर वहीं पर सूखने के लिए कपड़े भी डाल दिए जाते थे इसलिए वहां ज्यादा समय व्यर्थ गवना ना पड़ता अंकित तो चला गया था लेकिन सुगंधा अपने कमरे में खड़े-खड़े मुस्कुरा रही थी,,,, वह टेबल पर देखी तो उसके बुरे से निकले नमकीन रस का धब्बा लगा हुआ था और उसे धब्बे को देखकर उसके बदन में गनगनी सी दौड़ने लगी,,, वह अपने मन में सोचने लगी कि उसका बेटा जब उसकी बुर के नमकीन रस को उंगली से लगाकर चाट सकता है तो बुर पर अपने होंठ लगाकर जब चाटेगा तब कितना मजा आएगा,,,,,, पहले भी एक बार उसके बेटे ने उसके नींद में होने का फायदा उठाते हुए पल भर के लिए अपने होठों को उसकी बुर से लगाया था लेकिन जब वह खुलकर उसकी बुर में उसकी जीभ डालकर चाटेगा तो कितना मजा आएगा ऐसी कल्पना करते ही उसके बदन में सिहरन सी दौड़ने लगी वह बेहद आनंदित हो उठी,,, उस पल का सुगंधा को बड़ी बेसब्री से इंतजार था। यह सब सोच कर बार-बार उसकी बुर गीली हो रही थी।

अंकित घर केपीछे पहुंच चुका था जहां पर उसे कपड़े धोने में उसकी मां की मदद करनी थी ऐसे तो इससे पहले अंकित अपनी मां की मदद कभी नहीं करता था बस थोड़ा बहुत हाथ बता देता था लेकिन तृप्ति के जाने के बाद वह अपनी मां का खुलकर साथ दे रहा था क्योंकि वह जानता था कि उसका साथ देने में ही उसकी भलाई थी जिसका फल उसे धीरे-धीरे मिल रहा था,,,,सुगंधा अपने कमरे से बाहर निकलने से पहले वह अपनी छतिया की तरफ देखने लगी जो की काफी उन्नत थी और उत्तेजना के मारे उसका जाकर थोड़ा बढ़ चुका था वह धीरे से ब्लाउज का ऊपर वाला बटन खोल दे और उस पर साड़ी का पल्लू लगा दीक्योंकि आगे क्या करना था उसे अच्छी तरह से मालूम था और वह धीरे से अपने कमरे से बाहर निकले और वह भी घर के पिछले हिस्से पर पहुंच गई,,,जहां पर पहले से ही अंकित टेबल पर बैठकर अपनी मां का इंतजार कर रहा था अपनी मां को देखते ही उसके चेहरे पर मुस्कान तैरने लगी और वह बोला,,,।

मैं भी कपड़े धोने में मदद कर देता हूं कपड़े बहुत ज्यादा है अकेले कब तक धोओगी,,,।

बात तो तु सही कह रहा है कपड़े कुछ ज्यादा ही है,,,, ऐसा करते हैं आधा कपड़ा तु धो दें और आधा कपड़ा में धो देती हूं,,,

हां यह ठीक रहेगा,,,।




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चल फिर जल्दी से टब में पानी भर दे,,,(बड़े से कपड़े धोने वाले तब को आगे की तरफ सरकाते हुए सुगंधा बोली,,,, और अंकित उसमें पानी भरने लगा और इसी बीच सुगंधा कपड़ों के ढेर को आधा करने लगी और जब उसने देखी कि उन कपड़ों के देर में उसकी पैंटी और ब्रा भी थी तो वह ब्रा और पेंटी को अपने बेटे के हिस्से वाले कपड़ों के ढेर में डाल दी,,,क्योंकि वह देखना चाहती थी कि उसका बेटा उसकी आंखों के सामने ही उसकी ब्रा और पैंटी को किस तरह से धोता हैजबकि वह जानती थी कि यह उसके लिए बेहद आम बात होगी क्योंकि वह खुद उसके लिए ब्रा पेंटी खरीद कर ला चुका था और उसे अपनी आंखों के सामने उसे पहनते हुए देखा भी चुका था लेकिन फिर भी एक अजीब सी चाह सुगंधा के मन में थी इसलिए वह ब्रा और पैंटी को अपने बेटे के हिस्से वाले कपड़ों में डाल दी,,,, देखते ही देखते अंकित पानी के टब को पानी से भर दिया था,,,, और सुगंधा कपड़े धोने की तैयारी करते हुए अपनी साड़ी फिर से घुटनों तक उठाकर उसे अपनी कमर में खोंस दी थी एक बार फिर से सुगंधा की मांसल पिंडलियां दिखाई देने लगी थी,,, जिसे देखकर अंकित के मुंह में पानी आ रहा था और वह कपड़े धोने के लिए एक लकड़ी का पाटी लेकर उस पर बैठ गई अपनी दोनों टांगें खोलकर,,,ताकि अंकित की नजर एक बार फिर उसकी साड़ी के अंदर तक पहुंच सके और वह उसकी बुर के दर्शन कर सके,,,,।

अंकित अपनी मां की हरकत को देखकर मस्त बज रहा था वह ठीक अपनी मां के सामने बैठकर कपड़े धोने लगा था कि वह भी उसे नजारे को देख सके जिसे दिखाने के लिए उसकी मां मचल रही थी। मां बेटे दोनों कपड़े धोने शुरू कर दिए थे,,, दोनों को बहुत मजा आ रहा था इससे पहले अंकित ने कभी कपड़े नहीं धोए थे लेकिन आज अपनी मां के साथ कपड़े धोने में उसे बेहद आनंद आ रहा था उसे मजा आ रहा थालेकिन इस बीच उसकी तिरछी नजर अपनी मां की साड़ी के अंदर ही थी लेकिन जिस तरह से उसकी मां बैठे थे साड़ी के अंदर अंधेरा ही था इसलिए अंकित को ठीक से कुछ नजर नहीं आ रहा था और सुगंधा को ऐसा ही लग रहा था कि उसका बेटा चोर नजरों से उसकी बुर कोई देख रहा है,,, वह कपड़े धोने में और अपनी बुर दिखाने में पूरी तरह से मस्त हो चुकी थी,,, कपड़ों से उठ रहे साबुन का झाग सुगंधा के हाथों में पूरी तरह से लगा हुआ था और उसके बालों की लट उसके गालों पर आकर बार-बार उसे परेशान कर रही थी,,,जिसे वह अपने हाथ से पकड़ कर उसे अपने कान के पीछे ले गई लेकिन इस बीच साबुन का ढेर सारा झाग उसके बालों पर लग चुका था जिसे देखकर अंकित मुस्कुरा रहा था,,,,। यह देख कर सुगंधा बोली।

क्या हुआ मुस्कुरा क्यों रहा है,,?

तुम्हारे बालों पर ढेर सारा झाग लगा हुआ है,,,।

तो क्या हो गया अभी नहाना तो है,,,, साबुन कम लगाना पड़ेगा,,,।

अच्छा तो एक साथ दो-दो कम कर ले रही हो कपड़ा भी धो ले रही हो और अपने बदन पर साबुन भी लगा ले रही हो,,,।

तो इसमें क्या हो गया साबुन से झाग तो निकलता ही है अगर झाग लगा ली तो और भी अच्छा है मेहनत काम करना पड़ेगा,,,,।

ओहहहह,,, तुम्हें साबुन लगाने मे भी मेहनत लगती है क्या,,,?

तो क्या सच कहूं तो मुझे साबुन लगाने में बहुत कंटाला आता है मुझे साबुन लगाना अच्छा नहीं लगता इसलिए मैं ठीक से नहा नहीं पाती,,, पूरे बदन में साबुन नहीं लगाती,,,(सुगंधा जानबूझकर अपने बेटे से यह बात बोल रही थी वह देखना चाहती थी कि उसका बेटा क्या कहता है)

कोई बात नहीं आज कहीं तुम्हारे बदन पर साबुन लगा दूंगा और वह भी एकदम अच्छे तरीके से तुम बिल्कुल भी चिंता मत करो,,,।

सच में,,,,।

तो क्या हुआ,,,

तब तो आज अच्छी तरह से नहाउंगी,,,, तु मेरा कितना ख्याल रखता है,,,(ऐसा कहते हुए एक बार वहतसल्ली करने के लिए अपनी दोनों टांगों के बीच अच्छी तो वाकई में उसे अंदर अंधेरा ही दिखाई दे रहा था इसलिए वह समझ गई कि उसके बेटे को कुछ नजर नहीं आ रहा होगा और वह बात ही बात मेंअपनी दोनों टांगों को हल्का सा और खोल दी और साड़ी को दोनों हाथों से ऊपर की तरफ खींच दी उसकी आधी जांघ के ऊपर साड़ी खींची हुई थी,,,,अंकित अपनी मां की सर को देख रहा था और अपने मन ही मन में बोल रहा था कि देखो कितनी छिनार है अपनी बुर दिखाने के लिए कितना तड़प रही हैलेकिन ऐसा नहीं कह रही है कि बेटा मेरी बुर में लंड डाल दे मेरी चुदाई कर दे,,,, बस तड़पा रही है। और ऐसा सोचते हुए उसकी नजर एक बार फिर से अपनी मां की साड़ी के अंदर गई तो इस बार उसे अपनी मां की बुर एकदम साफ दिखाई देने लगी और वह मन ही मनपसंद होने लगावह इस बात से और ज्यादा खुश था कि उसकी मां जो दिखाना चाह रही थी वह उसे दिखाने लगा था और अपने बेटे के चेहरे पर आए प्रसन्नता के भाव को देखकर वह समझ गई कि उसका काम बन गया है,,,,।

लेकिन सुगंधा अपनी हरकत से खुद ही गनगना गई थी। क्योंकि वह अच्छी तरह से जानती थी कि वह क्या कर रही है उसके होश उड़े हुए थे उसके चेहरे पर शर्म की लालीमा एकदम साफ दिखाई दे रही थी,,, सुगंधा का दिल जोरों से धड़क रहा थावाकई में एक मां के लिए यह कितना शर्मनाक बात होती है कि वह खुद ही अपने बेटे को अपनी बुर के दर्शन कारण उसे वह अंग देखने को मजबूर कर दे जिसे वह हमेशा ढक कर रखती है क्योंकि वह जानती थी कि कैसे हालात में एक औरत एक मर्द को अपनी बुर दिखाती हैक्योंकि एक औरत का एक मर्द को अपनी बुर दिखाने का मतलब साफ होता है कि वह उससे चुदवाना चाहती हैं,,,, और यही सुगंधा के मन में भी चल रहा था।

मां बेटे दोनों का दिल जोरो से दर्द रहा था कपड़े धोते समय अंकित अपनी मां की साड़ी के अंदर उसकी बुर को देख रहा था और पागल हुआ जा रहा था और सुगंध अपनी ही हरकत पर शर्मसार होकर मदहोश हो रही थी,,,,कुछ देर के लिए दोनों के बीच वार्तालाप एकदम से बंद हो चुकी थी दोनों के बीच खामोशी छा चुकी थी दोनों शांति से कपड़े धो रहे थे। और तभी अंकित के हाथ में उसकी मां की पेंटी आ गई जिसे देखकरअंकित के चेहरे पर भी उत्तेजना और प्रसन्नता दोनों के भाव साफ नजर आने लगे और जब सुगंधा ने अपने बेटे के हाथ में उसकी पेंटिं देखी तो उसका चेहरा भी खिल उठा।
 
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sunoanuj

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पंखा साफ करते हुए जो कुछ भी हुआ था वह बेहद अद्भुत और अकल्पनीय था क्योंकि अंकित ने कभी सोचा नहीं था कि टेबल पर चढ़ी उसकी मां अपनी दूर से मदन रस की बूंद नीचे गिराएगी और वह उसे उंगली से लगाकर चाट जाएगा ना तो यह कल्पना अंकित ने किया था और ना ही उसकी मां सुगंधा ने हीं,,,, सुगंधा तो इस दृश्य को देखकर पानी पानी हो गई थी,,, वह कभी सोची नहीं थी कि उसके बेटे की लालच ईस कदर बढ़ जाएगी की,, वह उसके बुर से निकले नमकीन पानी को चाटने के लिए इस कदर व्याकुल हो जाएगा,,,, सुगंधा इतना तो समझ गई थी कि दोनों मां बेटे में एक दूसरे को पानी की जो चाहत थी वह काफी हद तक बढ़ चुकी थी आग दोनों जगह बराबर लगी हुई थी,,,, सुगंधा आज पूरी तरह से बेशर्म बन जाना चाहती थी इसीलिए तो उसने अपने बेटे से अलमारी साफ करने के लिए बोली थी और उस गंदी किताब को अपने बेटे के हाथ लगने दी थी जिसे वह पहले भी पढ़ चुका था लेकिन यह बात सुगंधा नहीं जानती थी।

सुगंधा ही अपने बेटे को इस किताब की कहानी को पढ़कर सुनाने के लिए मजबूर की थीऔर भला अंकित कहां पीछे हटने वाला था वह भी किताब में लिखा है कि एक शब्द अपनी मां के सामने पढ़कर उसे सुना दिया जिसे सुनकर उसकी मां की बुर गीली होने लगी थी और अंकित का लंड पूरी तरह से अपनी औकात में आकर खड़ा हो चुका था जिसका एहसास सुगंधा को भी अच्छी तरह से हो रहा था,,,,और फिर अलमारी की सफाई के बाद जिस तरह से वह अपनी गांड दिखाते हुए झाड़ू लगाई थी वह भी सुगंधा की सोच से कई ज्यादा हिम्मत दिखा देने वाली बातें थी और फिर जिस तरह से उसने अपनी पैंटी निकाल कर एक तरफ रख दी थी और पंखा साफ करते हुए अपने बेटे को अपनी बुर के दर्शन कराई थी यह सब कुछ मां बेटे दोनों के लिए अकल्पनिय था जिनकी दोनों ने भी कल्पना नहीं किए थे,,,। अपने बेटे को अपनी जवानी के दर्शन करने के लिए जिस हद तक उसने अपनी हिम्मत और शौर्य दिखाई थी यह बेहद काबिले तारीफ थी जिसके लिए वह खुद अपने आप को ही बधाई दे रही थी और अपने ही मन में अपने ही हिम्मत की सराहना कर रही थी क्योंकि सुगंधा के लिए यह बहुत था अपने बेटे को पूरी तरह से अपनी तरफ ललाईत करने के लिए,,, वैसे भी अब दोनों मां बेटे के बीच कुछ ज्यादा बचा नहीं थाबस जरूरत थी अंकित को थोड़ा हिम्मत दिखाने की और सुगंधा को थोड़ा और बेशर्म बन जाने की,,, अपने बेटे के पेट में बने हुए तंबू को देखकर सुगंधा की भावनाएं बेकाबू हो रही थी सुगंधा किसी भी तरह से अपने बेटे के साथ हम बिस्तर होने के लिए तड़प रही थी,,, वह मचल रही थी अपने जीवन को दोबारा एक नई राह दिखाने के लिए अपनी जिंदगी की नई शुरुआत करने के लिएअपने पति के देहांत के बाद वह एक बार फिर से शरीर सुख प्राप्त करना चाहती थी वह देखना चाहती थी कि अपने बेटे से चुदवाकर उसे कैसा महसूस होता है,,, वह अपनी बुर की अंदरूनी दीवारों मेंअपने बेटे के मोटे-मोटे लंड की रगड़ को अच्छी तरह से महसूस करना चाहती थीअपना पानी झाड़ देना चाहती थी जो उसे काफी परेशान कर रहा था लेकिन शायद अभी भी इस पल के लिए कुछ पल और सबर करना था।


तृप्ति के जाने के बाद दोनों मां बेट आपस में बहुत ज्यादा खुलने लगे थे,,, दोनों के बीच ऐसी कई घटनाएं हुई थी जिससे दोनों बेहद करीब आ सकते थे लेकिन फिर भी दोनों में से कोई पहल करने को तैयार नहीं था लेकिन फिर भी मंजिल पर पहुंचने से ज्यादा मजा दोनों को सफर में आ रहा था दोनों बार-बार उत्तेजित हो रहे थे मदहोश हो रहे थे पानी निकाल रहे थे और ऐसा बहुत कुछ था जो मंजिल से पहले का सुख प्रदान कर रहा था,,,,,, सुगंधा और अंकित अपने मन में इस बात को लेकर बेहद खुश भी होते थे कि अच्छा हुआ की तृप्ति नानी की वहां चली गई है क्योंकि उसकी मौजूदगी में शायद दोनों इतना सुख और इतना खुलापन महसूस नहीं कर पाते। घर में मां बेटे दोनों अकेले थेपर दोनों ही प्यासे थे एक अपनी जवानी की पूरी उत्थान पर थी और एक अभी-अभी जवान हुआ था दोनों की आकांक्षाएं और महत्वाकांक्षा एक ही थी दोनों की मंजिल एक ही थी और रास्ता भी एक ही था दोनों एक दूसरे का साथ देते हुए साथ-साथ चल भी रहे थे इसलिए तो यह सफर बेहद मनमोहक और मदहोशी से भरा हुआ था। पंखा साफ करते हुए अंकित अपनी मां की बुर के दर्शन करके पूरी तरह से मस्त हो चुका था,,,,कुश्ती करते समय उसे अच्छी तरह से एहसास हुआ था कि उसकी मां चड्डी पहनी हुई थी लेकिन इस समय उसके बदन पर चड्डी नहीं थी,,,यह देखकर उसे अच्छी तरह से एहसास हो रहा था कि उसकी मां क्या चाहती है और अपनी मां की चालाकी पर उसे और ज्यादा मजा आ रहा था वह समझ गया था कि उसकी मां छिनार है ठीक अपनी मां की तरह ही बस खुलकर बोल नहीं पा रही है,,,।

एक औरत होने की नाते उसे अच्छी तरह से मालूम था कि इस समय उसे क्या चाहिएलेकिन वह सिर्फ इशारे ही इशारे में समझ रही थी मुंह से कुछ बोल नहीं पा रही थी और इसके उल्टेखुद उसकी मां खुले शब्दों में अंकित से बता दी थी कि उसे क्या चाहिए और दो दिन उससे खुलकर मजा लेने के बाद ही वह अपने घर गई थी और अंकित को एक अद्भुत सुख और एक अनुभव देकर गई थी जो उसे अब काम आने वाला था। अंकित भी इस बात को अच्छी तरह से जानता था कि उसकी नानी उसे जो सुख प्रदान की है तो बेहद अद्भुत था जिसके बारे में वह सोचता भर था।लेकिन ऐसा कभी किया नहीं था इसलिए तो अपनी नानी का मन ही मन में बहुत धन्यवाद करता था। क्योंकि वह नहीं होती तो शायदचुदाई करना हुआ है इतनी जल्दी नहीं सीखा होता और उसकी नानी की ही बदौलत उसका आत्मविश्वास पूरी तरह से बढ़ गया था जिसके चलतेघर में चीनी मांगने आई सुमन की मां की भी उसने चुदाई कर दिया था और उसे पूरी तरह से संतुष्ट कर दिया था अब यही अनुभव उसे अपनी मां पर दिखाना था लेकिन कैसे या उसे भी समझ में नहीं आ रहा था।

घर की सफाई के साथ-साथ पंखे की भी सफाई हो चुकी थी,,,और अब सिर्फ कपड़े की सफाई रह गई थी,,,सुगंधा अपने बेटे को अद्भुत नजारा दिखाने के बाद मुस्कुराते हुए अपने बेटे से बोली,,,,।

बाहर कपड़े रखे हुए हैं उसे लेकर घर के पीछे रख दे वहीं पर उसे धो डालती हूं,,, तू जाकर रख दे मैं आती हूं,,,।

ठीक है मम्मी,,,,(और इतना कहकर अंकित अपनी मां के कमरे से बाहर निकल गया और कपड़ों का ढेर लेकर उसे पीछे की तरफ ले जाने लगा वहां पर भी नहाने और कपड़े धोने का अच्छा इंतजाम थाऔर वहीं पर सूखने के लिए कपड़े भी डाल दिए जाते थे इसलिए वहां ज्यादा समय व्यर्थ गवना ना पड़ता अंकित तो चला गया था लेकिन सुगंधा अपने कमरे में खड़े-खड़े मुस्कुरा रही थी,,,, वह टेबल पर देखी तो उसके बुरे से निकले नमकीन रस का धब्बा लगा हुआ था और उसे धब्बे को देखकर उसके बदन में गनगनी सी दौड़ने लगी,,, वह अपने मन में सोचने लगी कि उसका बेटा जब उसकी बुर के नमकीन रस को उंगली से लगाकर चाट सकता है तो बुर पर अपने होंठ लगाकर जब चाटेगा तब कितना मजा आएगा,,,,,, पहले भी एक बार उसके बेटे ने उसके नींद में होने का फायदा उठाते हुए पल भर के लिए अपने होठों को उसकी बुर से लगाया था लेकिन जब वह खुलकर उसकी बुर में उसकी जीभ डालकर चाटेगा तो कितना मजा आएगा ऐसी कल्पना करते ही उसके बदन में सिहरन सी दौड़ने लगी वह बेहद आनंदित हो उठी,,, उस पल का सुगंधा को बड़ी बेसब्री से इंतजार था। यह सब सोच कर बार-बार उसकी बुर गीली हो रही थी।

अंकित घर केपीछे पहुंच चुका था जहां पर उसे कपड़े धोने में उसकी मां की मदद करनी थी ऐसे तो इससे पहले अंकित अपनी मां की मदद कभी नहीं करता था बस थोड़ा बहुत हाथ बता देता था लेकिन तृप्ति के जाने के बाद वह अपनी मां का खुलकर साथ दे रहा था क्योंकि वह जानता था कि उसका साथ देने में ही उसकी भलाई थी जिसका फल उसे धीरे-धीरे मिल रहा था,,,,सुगंधा अपने कमरे से बाहर निकलने से पहले वह अपनी छतिया की तरफ देखने लगी जो की काफी उन्नत थी और उत्तेजना के मारे उसका जाकर थोड़ा बढ़ चुका था वह धीरे से ब्लाउज का ऊपर वाला बटन खोल दे और उस पर साड़ी का पल्लू लगा दीक्योंकि आगे क्या करना था उसे अच्छी तरह से मालूम था और वह धीरे से अपने कमरे से बाहर निकले और वह भी घर के पिछले हिस्से पर पहुंच गई,,,जहां पर पहले से ही अंकित टेबल पर बैठकर अपनी मां का इंतजार कर रहा था अपनी मां को देखते ही उसके चेहरे पर मुस्कान तैरने लगी और वह बोला,,,।

मैं भी कपड़े धोने में मदद कर देता हूं कपड़े बहुत ज्यादा है अकेले कब तक धोओगी,,,।

बात तो तु सही कह रहा है कपड़े कुछ ज्यादा ही है,,,, ऐसा करते हैं आधा कपड़ा तु धो दें और आधा कपड़ा में धो देती हूं,,,

हां यह ठीक रहेगा,,,।

चल फिर जल्दी से टब में पानी भर दे,,,(बड़े से कपड़े धोने वाले तब को आगे की तरफ सरकाते हुए सुगंधा बोली,,,, और अंकित उसमें पानी भरने लगा और इसी बीच सुगंधा कपड़ों के ढेर को आधा करने लगी और जब उसने देखी कि उन कपड़ों के देर में उसकी पैंटी और ब्रा भी थी तो वह ब्रा और पेंटी को अपने बेटे के हिस्से वाले कपड़ों के ढेर में डाल दी,,,क्योंकि वह देखना चाहती थी कि उसका बेटा उसकी आंखों के सामने ही उसकी ब्रा और पैंटी को किस तरह से धोता हैजबकि वह जानती थी कि यह उसके लिए बेहद आम बात होगी क्योंकि वह खुद उसके लिए ब्रा पेंटी खरीद कर ला चुका था और उसे अपनी आंखों के सामने उसे पहनते हुए देखा भी चुका था लेकिन फिर भी एक अजीब सी चाह सुगंधा के मन में थी इसलिए वह ब्रा और पैंटी को अपने बेटे के हिस्से वाले कपड़ों में डाल दी,,,, देखते ही देखते अंकित पानी के टब को पानी से भर दिया था,,,, और सुगंधा कपड़े धोने की तैयारी करते हुए अपनी साड़ी फिर से घुटनों तक उठाकर उसे अपनी कमर में खोंस दी थी एक बार फिर से सुगंधा की मांसल पिंडलियां दिखाई देने लगी थी,,, जिसे देखकर अंकित के मुंह में पानी आ रहा था और वह कपड़े धोने के लिए एक लकड़ी का पाटी लेकर उस पर बैठ गई अपनी दोनों टांगें खोलकर,,,ताकि अंकित की नजर एक बार फिर उसकी साड़ी के अंदर तक पहुंच सके और वह उसकी बुर के दर्शन कर सके,,,,।

अंकित अपनी मां की हरकत को देखकर मस्त बज रहा था वह ठीक अपनी मां के सामने बैठकर कपड़े धोने लगा था कि वह भी उसे नजारे को देख सके जिसे दिखाने के लिए उसकी मां मचल रही थी। मां बेटे दोनों कपड़े धोने शुरू कर दिए थे,,, दोनों को बहुत मजा आ रहा था इससे पहले अंकित ने कभी कपड़े नहीं धोए थे लेकिन आज अपनी मां के साथ कपड़े धोने में उसे बेहद आनंद आ रहा था उसे मजा आ रहा थालेकिन इस बीच उसकी तिरछी नजर अपनी मां की साड़ी के अंदर ही थी लेकिन जिस तरह से उसकी मां बैठे थे साड़ी के अंदर अंधेरा ही था इसलिए अंकित को ठीक से कुछ नजर नहीं आ रहा था और सुगंधा को ऐसा ही लग रहा था कि उसका बेटा चोर नजरों से उसकी बुर कोई देख रहा है,,, वह कपड़े धोने में और अपनी बुर दिखाने में पूरी तरह से मस्त हो चुकी थी,,, कपड़ों से उठ रहे साबुन का झाग सुगंधा के हाथों में पूरी तरह से लगा हुआ था और उसके बालों की लट उसके गालों पर आकर बार-बार उसे परेशान कर रही थी,,,जिसे वह अपने हाथ से पकड़ कर उसे अपने कान के पीछे ले गई लेकिन इस बीच साबुन का ढेर सारा झाग उसके बालों पर लग चुका था जिसे देखकर अंकित मुस्कुरा रहा था,,,,। यह देख कर सुगंधा बोली।

क्या हुआ मुस्कुरा क्यों रहा है,,?

तुम्हारे बालों पर ढेर सारा झाग लगा हुआ है,,,।

तो क्या हो गया अभी नहाना तो है,,,, साबुन कम लगाना पड़ेगा,,,।

अच्छा तो एक साथ दो-दो कम कर ले रही हो कपड़ा भी धो ले रही हो और अपने बदन पर साबुन भी लगा ले रही हो,,,।

तो इसमें क्या हो गया साबुन से झाग तो निकलता ही है अगर झाग लगा ली तो और भी अच्छा है मेहनत काम करना पड़ेगा,,,,।

ओहहहह,,, तुम्हें साबुन लगाने मे भी मेहनत लगती है क्या,,,?

तो क्या सच कहूं तो मुझे साबुन लगाने में बहुत कंटाला आता है मुझे साबुन लगाना अच्छा नहीं लगता इसलिए मैं ठीक से नहा नहीं पाती,,, पूरे बदन में साबुन नहीं लगाती,,,(सुगंधा जानबूझकर अपने बेटे से यह बात बोल रही थी वह देखना चाहती थी कि उसका बेटा क्या कहता है)

कोई बात नहीं आज कहीं तुम्हारे बदन पर साबुन लगा दूंगा और वह भी एकदम अच्छे तरीके से तुम बिल्कुल भी चिंता मत करो,,,।

सच में,,,,।

तो क्या हुआ,,,

तब तो आज अच्छी तरह से नहाउंगी,,,, तु मेरा कितना ख्याल रखता है,,,(ऐसा कहते हुए एक बार वहतसल्ली करने के लिए अपनी दोनों टांगों के बीच अच्छी तो वाकई में उसे अंदर अंधेरा ही दिखाई दे रहा था इसलिए वह समझ गई कि उसके बेटे को कुछ नजर नहीं आ रहा होगा और वह बात ही बात मेंअपनी दोनों टांगों को हल्का सा और खोल दी और साड़ी को दोनों हाथों से ऊपर की तरफ खींच दी उसकी आधी जांघ के ऊपर साड़ी खींची हुई थी,,,,अंकित अपनी मां की सर को देख रहा था और अपने मन ही मन में बोल रहा था कि देखो कितनी छिनार है अपनी बुर दिखाने के लिए कितना तड़प रही हैलेकिन ऐसा नहीं कह रही है कि बेटा मेरी बुर में लंड डाल दे मेरी चुदाई कर दे,,,, बस तड़पा रही है। और ऐसा सोचते हुए उसकी नजर एक बार फिर से अपनी मां की साड़ी के अंदर गई तो इस बार उसे अपनी मां की बुर एकदम साफ दिखाई देने लगी और वह मन ही मनपसंद होने लगावह इस बात से और ज्यादा खुश था कि उसकी मां जो दिखाना चाह रही थी वह उसे दिखाने लगा था और अपने बेटे के चेहरे पर आए प्रसन्नता के भाव को देखकर वह समझ गई कि उसका काम बन गया है,,,,।

लेकिन सुगंधा अपनी हरकत से खुद ही गनगना गई थी। क्योंकि वह अच्छी तरह से जानती थी कि वह क्या कर रही है उसके होश उड़े हुए थे उसके चेहरे पर शर्म की लालीमा एकदम साफ दिखाई दे रही थी,,, सुगंधा का दिल जोरों से धड़क रहा थावाकई में एक मां के लिए यह कितना शर्मनाक बात होती है कि वह खुद ही अपने बेटे को अपनी बुर के दर्शन कारण उसे वह अंग देखने को मजबूर कर दे जिसे वह हमेशा ढक कर रखती है क्योंकि वह जानती थी कि कैसे हालात में एक औरत एक मर्द को अपनी बुर दिखाती हैक्योंकि एक औरत का एक मर्द को अपनी बुर दिखाने का मतलब साफ होता है कि वह उससे चुदवाना चाहती हैं,,,, और यही सुगंधा के मन में भी चल रहा था।

मां बेटे दोनों का दिल जोरो से दर्द रहा था कपड़े धोते समय अंकित अपनी मां की साड़ी के अंदर उसकी बुर को देख रहा था और पागल हुआ जा रहा था और सुगंध अपनी ही हरकत पर शर्मसार होकर मदहोश हो रही थी,,,,कुछ देर के लिए दोनों के बीच वार्तालाप एकदम से बंद हो चुकी थी दोनों के बीच खामोशी छा चुकी थी दोनों शांति से कपड़े धो रहे थे। और तभी अंकित के हाथ में उसकी मां की पेंटी आ गई जिसे देखकरअंकित के चेहरे पर भी उत्तेजना और प्रसन्नता दोनों के भाव साफ नजर आने लगे और जब सुगंधा ने अपने बेटे के हाथ में उसकी पेंटिं देखी तो उसका चेहरा भी खिल उठा।
Wah bahut hee kamuk update diya hai ab toh ankit ko thoda himmat karni chahiye or sungandha ko bhi thoda bold karke

Kahani ko aagey badhao mitr …
 

rajeev13

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Iron Man

Try and fail. But never give up trying
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पंखा साफ करते हुए जो कुछ भी हुआ था वह बेहद अद्भुत और अकल्पनीय था क्योंकि अंकित ने कभी सोचा नहीं था कि टेबल पर चढ़ी उसकी मां अपनी दूर से मदन रस की बूंद नीचे गिराएगी और वह उसे उंगली से लगाकर चाट जाएगा ना तो यह कल्पना अंकित ने किया था और ना ही उसकी मां सुगंधा ने हीं,,,, सुगंधा तो इस दृश्य को देखकर पानी पानी हो गई थी,,, वह कभी सोची नहीं थी कि उसके बेटे की लालच ईस कदर बढ़ जाएगी की,, वह उसके बुर से निकले नमकीन पानी को चाटने के लिए इस कदर व्याकुल हो जाएगा,,,, सुगंधा इतना तो समझ गई थी कि दोनों मां बेटे में एक दूसरे को पानी की जो चाहत थी वह काफी हद तक बढ़ चुकी थी आग दोनों जगह बराबर लगी हुई थी,,,, सुगंधा आज पूरी तरह से बेशर्म बन जाना चाहती थी इसीलिए तो उसने अपने बेटे से अलमारी साफ करने के लिए बोली थी और उस गंदी किताब को अपने बेटे के हाथ लगने दी थी जिसे वह पहले भी पढ़ चुका था लेकिन यह बात सुगंधा नहीं जानती थी।

सुगंधा ही अपने बेटे को इस किताब की कहानी को पढ़कर सुनाने के लिए मजबूर की थीऔर भला अंकित कहां पीछे हटने वाला था वह भी किताब में लिखा है कि एक शब्द अपनी मां के सामने पढ़कर उसे सुना दिया जिसे सुनकर उसकी मां की बुर गीली होने लगी थी और अंकित का लंड पूरी तरह से अपनी औकात में आकर खड़ा हो चुका था जिसका एहसास सुगंधा को भी अच्छी तरह से हो रहा था,,,,और फिर अलमारी की सफाई के बाद जिस तरह से वह अपनी गांड दिखाते हुए झाड़ू लगाई थी वह भी सुगंधा की सोच से कई ज्यादा हिम्मत दिखा देने वाली बातें थी और फिर जिस तरह से उसने अपनी पैंटी निकाल कर एक तरफ रख दी थी और पंखा साफ करते हुए अपने बेटे को अपनी बुर के दर्शन कराई थी यह सब कुछ मां बेटे दोनों के लिए अकल्पनिय था जिनकी दोनों ने भी कल्पना नहीं किए थे,,,। अपने बेटे को अपनी जवानी के दर्शन करने के लिए जिस हद तक उसने अपनी हिम्मत और शौर्य दिखाई थी यह बेहद काबिले तारीफ थी जिसके लिए वह खुद अपने आप को ही बधाई दे रही थी और अपने ही मन में अपने ही हिम्मत की सराहना कर रही थी क्योंकि सुगंधा के लिए यह बहुत था अपने बेटे को पूरी तरह से अपनी तरफ ललाईत करने के लिए,,, वैसे भी अब दोनों मां बेटे के बीच कुछ ज्यादा बचा नहीं थाबस जरूरत थी अंकित को थोड़ा हिम्मत दिखाने की और सुगंधा को थोड़ा और बेशर्म बन जाने की,,, अपने बेटे के पेट में बने हुए तंबू को देखकर सुगंधा की भावनाएं बेकाबू हो रही थी सुगंधा किसी भी तरह से अपने बेटे के साथ हम बिस्तर होने के लिए तड़प रही थी,,, वह मचल रही थी अपने जीवन को दोबारा एक नई राह दिखाने के लिए अपनी जिंदगी की नई शुरुआत करने के लिएअपने पति के देहांत के बाद वह एक बार फिर से शरीर सुख प्राप्त करना चाहती थी वह देखना चाहती थी कि अपने बेटे से चुदवाकर उसे कैसा महसूस होता है,,, वह अपनी बुर की अंदरूनी दीवारों मेंअपने बेटे के मोटे-मोटे लंड की रगड़ को अच्छी तरह से महसूस करना चाहती थीअपना पानी झाड़ देना चाहती थी जो उसे काफी परेशान कर रहा था लेकिन शायद अभी भी इस पल के लिए कुछ पल और सबर करना था।


तृप्ति के जाने के बाद दोनों मां बेट आपस में बहुत ज्यादा खुलने लगे थे,,, दोनों के बीच ऐसी कई घटनाएं हुई थी जिससे दोनों बेहद करीब आ सकते थे लेकिन फिर भी दोनों में से कोई पहल करने को तैयार नहीं था लेकिन फिर भी मंजिल पर पहुंचने से ज्यादा मजा दोनों को सफर में आ रहा था दोनों बार-बार उत्तेजित हो रहे थे मदहोश हो रहे थे पानी निकाल रहे थे और ऐसा बहुत कुछ था जो मंजिल से पहले का सुख प्रदान कर रहा था,,,,,, सुगंधा और अंकित अपने मन में इस बात को लेकर बेहद खुश भी होते थे कि अच्छा हुआ की तृप्ति नानी की वहां चली गई है क्योंकि उसकी मौजूदगी में शायद दोनों इतना सुख और इतना खुलापन महसूस नहीं कर पाते। घर में मां बेटे दोनों अकेले थेपर दोनों ही प्यासे थे एक अपनी जवानी की पूरी उत्थान पर थी और एक अभी-अभी जवान हुआ था दोनों की आकांक्षाएं और महत्वाकांक्षा एक ही थी दोनों की मंजिल एक ही थी और रास्ता भी एक ही था दोनों एक दूसरे का साथ देते हुए साथ-साथ चल भी रहे थे इसलिए तो यह सफर बेहद मनमोहक और मदहोशी से भरा हुआ था। पंखा साफ करते हुए अंकित अपनी मां की बुर के दर्शन करके पूरी तरह से मस्त हो चुका था,,,,कुश्ती करते समय उसे अच्छी तरह से एहसास हुआ था कि उसकी मां चड्डी पहनी हुई थी लेकिन इस समय उसके बदन पर चड्डी नहीं थी,,,यह देखकर उसे अच्छी तरह से एहसास हो रहा था कि उसकी मां क्या चाहती है और अपनी मां की चालाकी पर उसे और ज्यादा मजा आ रहा था वह समझ गया था कि उसकी मां छिनार है ठीक अपनी मां की तरह ही बस खुलकर बोल नहीं पा रही है,,,।

एक औरत होने की नाते उसे अच्छी तरह से मालूम था कि इस समय उसे क्या चाहिएलेकिन वह सिर्फ इशारे ही इशारे में समझ रही थी मुंह से कुछ बोल नहीं पा रही थी और इसके उल्टेखुद उसकी मां खुले शब्दों में अंकित से बता दी थी कि उसे क्या चाहिए और दो दिन उससे खुलकर मजा लेने के बाद ही वह अपने घर गई थी और अंकित को एक अद्भुत सुख और एक अनुभव देकर गई थी जो उसे अब काम आने वाला था। अंकित भी इस बात को अच्छी तरह से जानता था कि उसकी नानी उसे जो सुख प्रदान की है तो बेहद अद्भुत था जिसके बारे में वह सोचता भर था।लेकिन ऐसा कभी किया नहीं था इसलिए तो अपनी नानी का मन ही मन में बहुत धन्यवाद करता था। क्योंकि वह नहीं होती तो शायदचुदाई करना हुआ है इतनी जल्दी नहीं सीखा होता और उसकी नानी की ही बदौलत उसका आत्मविश्वास पूरी तरह से बढ़ गया था जिसके चलतेघर में चीनी मांगने आई सुमन की मां की भी उसने चुदाई कर दिया था और उसे पूरी तरह से संतुष्ट कर दिया था अब यही अनुभव उसे अपनी मां पर दिखाना था लेकिन कैसे या उसे भी समझ में नहीं आ रहा था।

घर की सफाई के साथ-साथ पंखे की भी सफाई हो चुकी थी,,,और अब सिर्फ कपड़े की सफाई रह गई थी,,,सुगंधा अपने बेटे को अद्भुत नजारा दिखाने के बाद मुस्कुराते हुए अपने बेटे से बोली,,,,।

बाहर कपड़े रखे हुए हैं उसे लेकर घर के पीछे रख दे वहीं पर उसे धो डालती हूं,,, तू जाकर रख दे मैं आती हूं,,,।

ठीक है मम्मी,,,,(और इतना कहकर अंकित अपनी मां के कमरे से बाहर निकल गया और कपड़ों का ढेर लेकर उसे पीछे की तरफ ले जाने लगा वहां पर भी नहाने और कपड़े धोने का अच्छा इंतजाम थाऔर वहीं पर सूखने के लिए कपड़े भी डाल दिए जाते थे इसलिए वहां ज्यादा समय व्यर्थ गवना ना पड़ता अंकित तो चला गया था लेकिन सुगंधा अपने कमरे में खड़े-खड़े मुस्कुरा रही थी,,,, वह टेबल पर देखी तो उसके बुरे से निकले नमकीन रस का धब्बा लगा हुआ था और उसे धब्बे को देखकर उसके बदन में गनगनी सी दौड़ने लगी,,, वह अपने मन में सोचने लगी कि उसका बेटा जब उसकी बुर के नमकीन रस को उंगली से लगाकर चाट सकता है तो बुर पर अपने होंठ लगाकर जब चाटेगा तब कितना मजा आएगा,,,,,, पहले भी एक बार उसके बेटे ने उसके नींद में होने का फायदा उठाते हुए पल भर के लिए अपने होठों को उसकी बुर से लगाया था लेकिन जब वह खुलकर उसकी बुर में उसकी जीभ डालकर चाटेगा तो कितना मजा आएगा ऐसी कल्पना करते ही उसके बदन में सिहरन सी दौड़ने लगी वह बेहद आनंदित हो उठी,,, उस पल का सुगंधा को बड़ी बेसब्री से इंतजार था। यह सब सोच कर बार-बार उसकी बुर गीली हो रही थी।

अंकित घर केपीछे पहुंच चुका था जहां पर उसे कपड़े धोने में उसकी मां की मदद करनी थी ऐसे तो इससे पहले अंकित अपनी मां की मदद कभी नहीं करता था बस थोड़ा बहुत हाथ बता देता था लेकिन तृप्ति के जाने के बाद वह अपनी मां का खुलकर साथ दे रहा था क्योंकि वह जानता था कि उसका साथ देने में ही उसकी भलाई थी जिसका फल उसे धीरे-धीरे मिल रहा था,,,,सुगंधा अपने कमरे से बाहर निकलने से पहले वह अपनी छतिया की तरफ देखने लगी जो की काफी उन्नत थी और उत्तेजना के मारे उसका जाकर थोड़ा बढ़ चुका था वह धीरे से ब्लाउज का ऊपर वाला बटन खोल दे और उस पर साड़ी का पल्लू लगा दीक्योंकि आगे क्या करना था उसे अच्छी तरह से मालूम था और वह धीरे से अपने कमरे से बाहर निकले और वह भी घर के पिछले हिस्से पर पहुंच गई,,,जहां पर पहले से ही अंकित टेबल पर बैठकर अपनी मां का इंतजार कर रहा था अपनी मां को देखते ही उसके चेहरे पर मुस्कान तैरने लगी और वह बोला,,,।

मैं भी कपड़े धोने में मदद कर देता हूं कपड़े बहुत ज्यादा है अकेले कब तक धोओगी,,,।

बात तो तु सही कह रहा है कपड़े कुछ ज्यादा ही है,,,, ऐसा करते हैं आधा कपड़ा तु धो दें और आधा कपड़ा में धो देती हूं,,,

हां यह ठीक रहेगा,,,।

चल फिर जल्दी से टब में पानी भर दे,,,(बड़े से कपड़े धोने वाले तब को आगे की तरफ सरकाते हुए सुगंधा बोली,,,, और अंकित उसमें पानी भरने लगा और इसी बीच सुगंधा कपड़ों के ढेर को आधा करने लगी और जब उसने देखी कि उन कपड़ों के देर में उसकी पैंटी और ब्रा भी थी तो वह ब्रा और पेंटी को अपने बेटे के हिस्से वाले कपड़ों के ढेर में डाल दी,,,क्योंकि वह देखना चाहती थी कि उसका बेटा उसकी आंखों के सामने ही उसकी ब्रा और पैंटी को किस तरह से धोता हैजबकि वह जानती थी कि यह उसके लिए बेहद आम बात होगी क्योंकि वह खुद उसके लिए ब्रा पेंटी खरीद कर ला चुका था और उसे अपनी आंखों के सामने उसे पहनते हुए देखा भी चुका था लेकिन फिर भी एक अजीब सी चाह सुगंधा के मन में थी इसलिए वह ब्रा और पैंटी को अपने बेटे के हिस्से वाले कपड़ों में डाल दी,,,, देखते ही देखते अंकित पानी के टब को पानी से भर दिया था,,,, और सुगंधा कपड़े धोने की तैयारी करते हुए अपनी साड़ी फिर से घुटनों तक उठाकर उसे अपनी कमर में खोंस दी थी एक बार फिर से सुगंधा की मांसल पिंडलियां दिखाई देने लगी थी,,, जिसे देखकर अंकित के मुंह में पानी आ रहा था और वह कपड़े धोने के लिए एक लकड़ी का पाटी लेकर उस पर बैठ गई अपनी दोनों टांगें खोलकर,,,ताकि अंकित की नजर एक बार फिर उसकी साड़ी के अंदर तक पहुंच सके और वह उसकी बुर के दर्शन कर सके,,,,।

अंकित अपनी मां की हरकत को देखकर मस्त बज रहा था वह ठीक अपनी मां के सामने बैठकर कपड़े धोने लगा था कि वह भी उसे नजारे को देख सके जिसे दिखाने के लिए उसकी मां मचल रही थी। मां बेटे दोनों कपड़े धोने शुरू कर दिए थे,,, दोनों को बहुत मजा आ रहा था इससे पहले अंकित ने कभी कपड़े नहीं धोए थे लेकिन आज अपनी मां के साथ कपड़े धोने में उसे बेहद आनंद आ रहा था उसे मजा आ रहा थालेकिन इस बीच उसकी तिरछी नजर अपनी मां की साड़ी के अंदर ही थी लेकिन जिस तरह से उसकी मां बैठे थे साड़ी के अंदर अंधेरा ही था इसलिए अंकित को ठीक से कुछ नजर नहीं आ रहा था और सुगंधा को ऐसा ही लग रहा था कि उसका बेटा चोर नजरों से उसकी बुर कोई देख रहा है,,, वह कपड़े धोने में और अपनी बुर दिखाने में पूरी तरह से मस्त हो चुकी थी,,, कपड़ों से उठ रहे साबुन का झाग सुगंधा के हाथों में पूरी तरह से लगा हुआ था और उसके बालों की लट उसके गालों पर आकर बार-बार उसे परेशान कर रही थी,,,जिसे वह अपने हाथ से पकड़ कर उसे अपने कान के पीछे ले गई लेकिन इस बीच साबुन का ढेर सारा झाग उसके बालों पर लग चुका था जिसे देखकर अंकित मुस्कुरा रहा था,,,,। यह देख कर सुगंधा बोली।

क्या हुआ मुस्कुरा क्यों रहा है,,?

तुम्हारे बालों पर ढेर सारा झाग लगा हुआ है,,,।

तो क्या हो गया अभी नहाना तो है,,,, साबुन कम लगाना पड़ेगा,,,।

अच्छा तो एक साथ दो-दो कम कर ले रही हो कपड़ा भी धो ले रही हो और अपने बदन पर साबुन भी लगा ले रही हो,,,।

तो इसमें क्या हो गया साबुन से झाग तो निकलता ही है अगर झाग लगा ली तो और भी अच्छा है मेहनत काम करना पड़ेगा,,,,।

ओहहहह,,, तुम्हें साबुन लगाने मे भी मेहनत लगती है क्या,,,?

तो क्या सच कहूं तो मुझे साबुन लगाने में बहुत कंटाला आता है मुझे साबुन लगाना अच्छा नहीं लगता इसलिए मैं ठीक से नहा नहीं पाती,,, पूरे बदन में साबुन नहीं लगाती,,,(सुगंधा जानबूझकर अपने बेटे से यह बात बोल रही थी वह देखना चाहती थी कि उसका बेटा क्या कहता है)

कोई बात नहीं आज कहीं तुम्हारे बदन पर साबुन लगा दूंगा और वह भी एकदम अच्छे तरीके से तुम बिल्कुल भी चिंता मत करो,,,।

सच में,,,,।

तो क्या हुआ,,,

तब तो आज अच्छी तरह से नहाउंगी,,,, तु मेरा कितना ख्याल रखता है,,,(ऐसा कहते हुए एक बार वहतसल्ली करने के लिए अपनी दोनों टांगों के बीच अच्छी तो वाकई में उसे अंदर अंधेरा ही दिखाई दे रहा था इसलिए वह समझ गई कि उसके बेटे को कुछ नजर नहीं आ रहा होगा और वह बात ही बात मेंअपनी दोनों टांगों को हल्का सा और खोल दी और साड़ी को दोनों हाथों से ऊपर की तरफ खींच दी उसकी आधी जांघ के ऊपर साड़ी खींची हुई थी,,,,अंकित अपनी मां की सर को देख रहा था और अपने मन ही मन में बोल रहा था कि देखो कितनी छिनार है अपनी बुर दिखाने के लिए कितना तड़प रही हैलेकिन ऐसा नहीं कह रही है कि बेटा मेरी बुर में लंड डाल दे मेरी चुदाई कर दे,,,, बस तड़पा रही है। और ऐसा सोचते हुए उसकी नजर एक बार फिर से अपनी मां की साड़ी के अंदर गई तो इस बार उसे अपनी मां की बुर एकदम साफ दिखाई देने लगी और वह मन ही मनपसंद होने लगावह इस बात से और ज्यादा खुश था कि उसकी मां जो दिखाना चाह रही थी वह उसे दिखाने लगा था और अपने बेटे के चेहरे पर आए प्रसन्नता के भाव को देखकर वह समझ गई कि उसका काम बन गया है,,,,।

लेकिन सुगंधा अपनी हरकत से खुद ही गनगना गई थी। क्योंकि वह अच्छी तरह से जानती थी कि वह क्या कर रही है उसके होश उड़े हुए थे उसके चेहरे पर शर्म की लालीमा एकदम साफ दिखाई दे रही थी,,, सुगंधा का दिल जोरों से धड़क रहा थावाकई में एक मां के लिए यह कितना शर्मनाक बात होती है कि वह खुद ही अपने बेटे को अपनी बुर के दर्शन कारण उसे वह अंग देखने को मजबूर कर दे जिसे वह हमेशा ढक कर रखती है क्योंकि वह जानती थी कि कैसे हालात में एक औरत एक मर्द को अपनी बुर दिखाती हैक्योंकि एक औरत का एक मर्द को अपनी बुर दिखाने का मतलब साफ होता है कि वह उससे चुदवाना चाहती हैं,,,, और यही सुगंधा के मन में भी चल रहा था।

मां बेटे दोनों का दिल जोरो से दर्द रहा था कपड़े धोते समय अंकित अपनी मां की साड़ी के अंदर उसकी बुर को देख रहा था और पागल हुआ जा रहा था और सुगंध अपनी ही हरकत पर शर्मसार होकर मदहोश हो रही थी,,,,कुछ देर के लिए दोनों के बीच वार्तालाप एकदम से बंद हो चुकी थी दोनों के बीच खामोशी छा चुकी थी दोनों शांति से कपड़े धो रहे थे। और तभी अंकित के हाथ में उसकी मां की पेंटी आ गई जिसे देखकरअंकित के चेहरे पर भी उत्तेजना और प्रसन्नता दोनों के भाव साफ नजर आने लगे और जब सुगंधा ने अपने बेटे के हाथ में उसकी पेंटिं देखी तो उसका चेहरा भी खिल उठा।
Mast sexy Update 👌
 

lovlesh2002

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कहानी लाजवाब है और अपडेट भी लेकिन आधे से ज्यादा अपडेट आत्म वार्ता में व्यतीत हो गया और बस इस अपडेट में नई घटना शुरू जरूर हो गई लेकिन शुरुआत में ही जैसे अपडेट खत्म हो गया थोड़ा बड़ा अपडेट देने की कोशिश करो कम से कम एक घटना तो पूरी हो सके
 

sunoanuj

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