अद्भुत मदहोशी भारी मादकता और रोमांचकता के बाद खाना बनकर तैयार हो चुका था,,, रसोई घर में जो कुछ भी हुआ थाइससे मां बेटे दोनों की उत्तेजना एकदम से बढ़ चुकी थी,,,सुगंधा अच्छी तरह से जानती थी कि आप उसके बेटे से उसके बाद उनका कोई हिस्सा छुपा नहीं रह सकता है उसके बेटे ने हर तरीके से उसके हर अंग को देख चुका था बस उसका सही उपयोग अभी तक नहीं कर पाया था लेकिन इस बात से भी सुगंधा को अचंबा हो रहा था कि वह खुद अभी तकअपने बेटे के साथ आगे नहीं बढ़ पाई थी इतने में दूसरी कोई औरत होती तो कब से अपनी प्यास बुझा ली होती बार-बार रिश्तो की मर्यादा उसे रोक ले रही थी,,,इस बात से उसे भी अपने आप पर गुस्सा आ रहा था की चारदीवारी के अंदर कैसी मर्यादा कैसा संस्कार या मर्यादा संस्कार भावनाएं चारदीवारी के बाहर ही अच्छे लगते हैं चार दिवारी के अंदरकेवल औरत और मर्द की जरूरत ही प्राथमिकता होती हैजो इस समय मां बेटे दोनों की प्राथमिकता थी लेकिन मां बेटे के बीच की पवित्र डोर अभी भी दोनों को भावनाओं से बंधी हुई थी हालांकि अब मां बेटे दोनों एक दूसरे को मर्द और औरत की नजर से देखने लगे थे लेकिन फिर भी कहीं ना कहीं यह है डोर उन दोनों को मां बेटे के पवित्र रिश्ते से दूर होने से रोक रही थी और यही बात सुगंधा को हैरान भी कर रही थी,,।
सुगंधा बार-बार अपने बदन पर अपने बेटेकी उंगलियों के हाथों का स्पर्श उसका मर्दन अच्छी तरह से महसूस कर रही थी यहां तक की सुबह नहाते हुए उसकी उंगली को अपनी बुर के अंदर बाहर भी अच्छी तरह से अनुभव कर चुके थे लेकिन फिर भी एक ऐसी झिझक थी जो आगे बढ़ने से उसे रोक रही थी,,, यह सब क्या था यह क्यों हो रहा था यह सब सुगंधा के भी समझ के परे था,,, लेकिन सुगंधा आप सारी दीवारों को तोड़कर आगे बढ़ना चाहती थी क्योंकि यह तड़प यह प्यास यह मदहोशी अब उसे बर्दाश्त नहीं हो रही थी और शायद जितना सुगंधा बर्दाश्त कर रही थी ऐसा कोई भी औरत नहीं बर्दाश्त कर पाती और अपनी प्यास की तृप्ति पूर्ण कर ली होती,,,उसे रह रहकर अपने बेटे पर भी गुस्सा आ रहा था क्योंकि वह तो एक मर्द था और मर्द औरत के साथ ज्यादातर मनमानी ही करते हैं और जब बात इतनी आगे बढ़ जाए तो कोई भी मर्द अपने आप पर काबू नहीं कर पता है औरत के अंदर अपने औजार को जानकर अपनी प्यास बुझाने सेलेकिन अंकित ना जाने कौन सी मिट्टी का बना था कितना कुछ हो जाने के बावजूद भी वह आगे नहीं बढ़ पा रहा थाइतना तो वह अगर किसी गैर मर्द को मौका दी होती तो आप तक न जाने कितनी बार एक औरत होने का सुख प्राप्त कर ली होती।लेकिन जैसी मां वैसा बेटा दोनों बस अपने-अपने तरीके से मजा लूट रहे थे आगे बढ़ने में दोनों की हीम्मत नहीं हो रही थी,,, सुगंधा खुद एकांत पाने के लिए ही अपनी बेटी को अपनी मां के वहां गांव भेज दी थी ताकि दोनों मां बेटे को एकांत मिल सके और एकांत में दोनों अपने मन की कर सकें,,,, लेकिनअभी तक कुछ नहीं हो पाया था और आप बेहद जरूरी था कि दोनों के बीच कुछ ऐसा हो कि दोनों मां बेटे के रिश्ते से बाहर आ सके,,,, वरना ऐसा ही चला रहा तोतृप्ति भी घर आ जाएगी और दोनों के बीच कुछ हो भी नहीं पाएगा यही सोचकर सुगंध हैरान हो रही थी और खुद ही को कुछ करना पड़ेगा यह सोचकर अपने आप को अगले पल के लिए तैयार कर रही थी।

आज गर्मी कुछ ज्यादा ही थी,,, खाना तैयार हो चुका था और सुगंधा खाने की दो थाली लग रही थी और अपने मन में आगे की युक्ति के बारे में सोच रही थी कि आगे की युक्ति पर कैसे अमल करना है वैसे तो जब-जब वह अपनी युक्ति पर अमल करने की सोचती थी तब तक उसके बदन में थरथराहट सी होने लगती थी और उत्तेजना से पूरा बदन मदहोश हो उठता था,,, अब तो आलम यह था कि हर पल उसकी बुर पानी छोड़ती थी इतनी उत्तेजनावह अपने पति के होने के दौरान भी नहीं महसूस की थी बार-बार उसकी बुर का पानी छोड़ने उसकी पेंटि को बार-बार गीली कर देता था इसी के चलते अब तो घर पर वह पेंटि पहनना ही छोड़ दी थी,,, क्योंकि उसे मालूम था कि उसके बेटे की मौजूदगी मेंउसकी बुर लगातार पानी बहती थी और ऐसे में उसकी पेंटि गीली हो जाती थी जिसे पहनने में उसे भी असहज महसूस होता था,,, वैसे भी घर में बिना पेंटि के कपड़े पहनने में उसे भी अच्छा लगने लगा था,,, पहले उसके जैसी आदत बिल्कुल भी नहीं थी पहले वह हमेशा स्कूल में हो या घर में हमेशा पैंटी पहन कर रखती थी लेकिन जब से मां बेटे के बीच का नजरिया बदला था तब से सुगंधा को घर पर बिना पेंटिंग के रहने की आदत बन चुकी थी बस कभी कभार वह पहन लेती थी। सुगंधा थाली लगाकर अपने बेटे को बुलाने के लिए उसके कमरे की तरफ गई कमरे का दरवाजा खुला हुआ था वहहल्के से खुले दरवाजे में से कमरे के अंदर झांक कर देखी तो दंग रह गईक्योंकि सामने बिस्तर पर अंकित पीठ के बल लेटा हुआ था और उसके पेंट में अच्छा खासा तंबू बना हुआ था,,, और वह कोई किताब पढ़ते हुए बार-बार अपने तंबू को सहला ले रहा था,,,, यह देखकर सुगंधा की बुर में भी खिंचाव होने लगावह मदहोश होने लगी मन तो उसका कर रहा था किसी समय अपने बेटे के कमरे में घुस जाए और अपने हाथों से उसकी पेंट उतार कर उसके टनटनाए हुए लंड पर अपना गुलाबी छेद रख दे,,, लेकिन यह सिर्फ उसके मन में उठ रही भावनाएं थी जिस पर वह अमल नहीं कर सकती थी इसके पीछे सिर्फ मां बेटे का पवित्र रिश्ता ही जो उसे इस तरह की मनमानी करने से रोक रहा था जबकि मन तो उसका हवाओं में उड़ रहा था,,,।
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अपने मन में उठ रही भावनाओं पर काबू करते हुए वह हल्के से दरवाजे पर दस्तक देते हुए बोली,,।
अंकित खाना लग गया है आकर खा ले,,,(सुगंधा यह कहकर देखना चाहती थी कि उसका बेटा अपनी स्थिति पर कैसे नियंत्रित करता है और जैसे ही उसके कानों में उसकी आवाज पहुंची वह तुरंत बिस्तर पर रखी अपनी टावल को अपने तंबू पर रखकर उसे छुपाने की कोशिश करने लगा,,, यह देख कर सुगंधा मन ही मन में प्रसन्न होने लगी और अपने आप से ही बोली,,, ऐसा करने की अब जरूरत नहीं है अब तो जरूरत है उसे बाहर निकालने की क्या तुझे नहीं समझ में आ रहा है कि तेरी मां कितना तड़प रही है हरामजादे,,,, अनायास ही अब मन में ही अपने बेटे के लिए इस तरह की गाली निकल गई और वह वापस रसोई घर की तरफ चल दी,,, अंकित बिस्तर पर बैठ चुका था और अपने लंड को नियंत्रित करने हेतु वह कुछ देर तक वहीं पर बैठा रहा था कि उसके पेट में बना तंबु शांत हो सके और थोड़ी ही देर मेंउसके लंड पर नियंत्रण आने लगा और वह धीरे-धीरे शांत होने लगा और देखते ही देखते उसके पेंट में बना तंबू एकदम सपाट मैदान हो गया। और फिर धीरे से वह अपने कमरे से बाहर निकल गया और फिर पानी से हाथ मुंह धो कर वह भी अपने मां के पास बैठ गयालेकिन अभी तक उसकी मां खाना शुरू नहीं की थी वह अंकित का इंतजार कर रही थीऔर यह भी देखने की कोशिश कर रही थी कि क्या अभी भी उसके पेंट में तंबू बना हुआ है लेकिनऐसा कुछ भी नहीं था तो अपने मन में समझ गई कि कमरे में उसके बेटे को इतना देर क्यों लगा कमरे से बाहर आने में और वह मन ही मन में मुस्कुराने लगी,,,,।

अंकित उसके ठीक सामने बैठ चुका था सुगंधा का दिल जोरो से धड़क रहा था उसके मन में कुछ और चल रहा था,,, अंकित खाना खाने लगा और यह देखकर सुगंधा भी निवाला हाथ में लेते हुए बोली,,, आज कुछ ज्यादा ही गर्मी है अंकित,,,।(और ऐसा कहते हुए वह एक तनु को मोड़कर जमीन पर सटा दी और दूसरे पर को घुटनों से मोड कर उठा रही जिससे उसकी साड़ी टांगों के बीच से एकदम से खुल गई,,, लेकिन अभी तक अंकित की नजर दोनों टांगों के बीच बना रही जगह पर बिल्कुल भी नहीं गई थी,,, वह दूसरा नहीं वाला भी मुंह में डालकर खाने लगा लेकिन तभीगर्मी की बात सुनकर उसकी नजर अपनी मां पर पड़े तो वह अपनी मां को देखकर दंग रह गया क्योंकि जिस तरह से वह अपनी टांगों को खोल रखी थीउसकी साड़ी भी बीच से एकदम से खुल गई थी जिससे उसकी दोनों टांगों के बीच का नजारा हल्का-हल्का देखने लगा था और यह देखकर उसके दिल की धड़कन बढ़ने लगी थी और अपनी मां की बात का जवाब देते हुए वह बोला,,,)

तुम सही कह रहे हो मम्मी आज कुछ ज्यादा ही गर्मी है मुझसे भी आज बर्दाश्त नहीं हो रहा है,,,,(ऐसा कहते हुए वहां अपनी नजरों को अपनी मां की दोनों टांगों के बीच उसके त्रिकोण आकार पर ले जाने की कोशिश करने लगा जो हल्का-हल्का नजर आ रहा था,,,, अपने बेटे की नजर देख कर सुगंधा भी मन ही मन में खुश होने लगीऔर अपने आप को ही शाबाशी देते हुए बोली की कर चाहे जैसे भी अपनी युक्ति को अमल में ले ही आती है,,,, सुगंधा को अच्छी तरह से मालूम था कि जिस तरह से वह बैठी है उसके बेटे को उसकी बुर की झलक जरूर दिखाई दे रही होगी,,,,और ऐसा ही था लेकिन पूरी तरह से तो नहीं लेकिन हल्की-हल्की बुर की झलक उसके बेटे को जरूर मिल रही थी लेकिन अंकित के लिए इतना भी काफी था खाना खाते समय इतना मदहोश कर देने वाला दृश्य देखकर खाने का मजा दुगना होता जा रहा था। सुगंधा भी उसी स्थिति में खाना खा रही थी,,,,, अपने बेटे की बात सुनकर वह खाना खाते हुए बोली,,)
अब गर्मी के आगे कर भी क्या सकते हैं,,,, मजबूरी बस इसे झेलना ही है,,,।
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हां सच कह रही हो इसके आगे कर भी कर सकते हैं पंखा देखो इतना तेज चल रहा है फिर भी पसीना टपक रहा है,,,, लेकिन हम लड़कों का तो ठीक है किकिसी भी तरह से बैठ जाते हैं घूम लेते हैं लेकिन औरतों को ज्यादा दिक्कत आ जाती है,,,,।
क्यों औरतों को ज्यादा दिक्कत आ जाती है,,,?(निवाला मुंह में डालते हुए अंकित की तरफ देखते हुए बोली)
अरे मेरा मतलब यह था की औरतों को तोसाड़ी पहनना पड़ता है और इतने सारे कपड़े पहनने पड़ते हैं,,,,,,, अब औरतें तो उन सबको उतार नहीं सकती ना,,,, और हम लोग तोशर्ट भी उतार सकते हैं पेंट भी उतार सकते हैं एक छोटा सा टावल लपेटकर भी रह सकते हैं,,,।
मन करे तो नंगा भी रह सकते हैं,,,,(हंसते हुए सुगंधा बोली तो उसकी बात पर अंकित भी हंसने लगा लेकिन मौका देखकर वह तपाक से जवाब देते हुए बोला)
वैसे तो देखा जाए तो तुम औरतें भी अपने सारे कपड़े उतार कर घर में नंगी घूम सकते हैं गर्मी के दिनों में या चाहे जब भी,,,(अंकित यह बात बहुत हिम्मत करके बोला था,,,लेकिन इस दौरान भी उसकी नजर अपनी मां की दोनों टांगों के बीच पर ही टिकी हुई थी जो कि ट्यूबलाइट की रोशनी में एकदम साफ नजर आ रही थी अपनी बेटी के मुंह से उसकी बात सुनकर सुगंधा के तन बदन में अजीब सी हलचल होने लगी और वह आंखों को नचाते हुए बोली,,,)

अच्छा तो तुझे क्या लगता है कि मैं अपने सारे कपड़े नंगी होकर घर में घूमु क्या मुझे कभी ऐसे देखा है क्या गर्मी में,,,,(सहज रूप से मुंह में निवाला डालते हुए वह बोली वह एकदम सहज होकर अपने बेटे से बातें कर रही थी ताकि उसका बेटा इसी तरह से खुल सके अपनी मां की बात सुनकर वह बोला)
नहीं ऐसा नहीं कह रहा मैं तो बता रहा हूं कि अगर ज्यादा गर्मी महसूस हो तो इस तरह से औरतें घर में रह सकती है लेकिन सबके मौजूदगी में नहीं,,,,।
फिर,,,,?
मतलब कि जब वह अकेले में रहे या फिर ऐसे इंसान के सामने जिसके सामने वह अपने आप को सहज महसूस करती हो जैसे की,,,,(इतना कहकर वह थोड़ा सा सोचने लगा तो उसे इस तरह से ख्यालों में खोया हुआ देखकर सुगंधा बोल पड़ी,,)
जैसे,,,?
जैसे अपने पति के सामने,,,,

वो,,,,,हहहहह,,, बात तो सही कह रहा है भले ही यह सब बातें मेरे सामने बोलने वाली नहीं है लेकिन फिर भी बात एकदम पक्की है औरतें अपने पति के सामने बिना कपड़ों के रह सकती हैं,,,,(सुगंधा भी रंग में रंग भर रही थी अपने बेटे की बात से वह मदहोश हो रही थी और बार बार अपनी टांगों को हल्का-हल्का इधर-उधर घूम कर अपने बेटे को उचित तरीके से अपने बुर के दर्शन करा रही थी,,,, अपनी मां की बात सुनते ही अंकित को मौका मिल गया और वह एकदम से अपनी मां से बोल बैठा,,,)
तो क्या मम्मी तुम भी पापा के सामने बिना कपड़ों के रहती थी,,,,,।
(अपने बेटे का सवाल सुनकर सुगंधा मुस्कुराने लगी और कोई पल होता तो वह शायद अपने बेटे को इस सवाल पर उसे थप्पड़ लगा दी होती लेकिनदोनों के बीच की दूरी जिस तरह से कम हो रही थी दोनों के बीच इस तरह का आकर्षण बढ़ता जा रहा था और दोनों के मन में जिस तरह की उमंगेउठ रही थी उसे देखते हुए सुगंधा अपने बेटे के सवाल पर गुस्सा करने की जगह मुस्कुरा रही थी और उसे भी मौका मिल गया था अपने बेटे से इस तरह से बातें को आगे बढ़ाने का वैसे तो उसके जीवन में ऐसा कोई पल नहीं आया था जो इस मुद्दे को सही साबित कर सके क्योंकि वह अपने पति के सामने अकेले होने के बावजूद भी बिना कपड़ों की कभी नहीं थी केवल अपनेबिस्तर को छोड़कर जब दोनों के बीच शारीरिक संबंध स्थापित होता था लेकिन फिर भी वह अपने बेटे की बात सुनकर झूठी कहानी बनाते हुए बोली,,,)

चल अब जाने दे इन सब बातों को कोई मतलब नहीं है,,,,(ऐसा हो जानबूझकर बोल रही थी क्योंकि उसे पूरा यकीन था कि उसका बेटा इस मुद्दे को यहीं खत्म नहीं करेगा वह बात गहराई को जानने की पूरी कोशिश करेगा,,, और ऐसा कहकर वह खाना खाने लगी और उसके सोने के मुताबिक ही उसका बेटा तुरंत बोल पड़ा,,)
नहीं नहीं मुझे बताओ ना क्या तुम भी पापा के सामने बिना कपड़ों के घूमती थी,,,।
अपनी मां से इस तरह का सवाल करते हुए तुझे शर्म नहीं आती,,,(यह बात वह एकदम मुस्कुरा कर बोली थी ताकि उसके बेटे को जरा भी एहसास ना हो कि वह गुस्से में है,,,, या इस तरह की बात नहीं करना चाहती वह जानबूझकर मुस्कुरा कर कह रही थी ताकि बात आगे बढ़ सके,,,, अपनी मां की बातें सुनकर वह अपनी मां की टांगों के बीच झांकते हुए बोला,,,)
हां शर्म तो आनी चाहिए लेकिनजिस तरह की बातचीत हम दोनों के बीच हो रही है मुझे नहीं लगता कि यह सवाल पूछने में किसी शर्म का एहसास होना चाहिए यह तो बात निकल पड़ी है तो इसका समाधान होना भी बेहद जरूरी है,,,। बताओ ना मम्मी,,,
अब क्या बोलूं मैं तुझे वैसे तो एक मां होने की नाते अपने बेटे से इस तरह की बात मुझे नहीं करना चाहिए लेकिन,,, जब पूछ ही लिया है तो बता देता हूं,,,,।

इसी तरह की गर्मी का महीना चल रहा था और शुरू शुरू का दिन था जब मैं शादी करके यहां पर आई थी सिर्फ मैं और तेरे पापा ही रहते थे और मुझे गर्मी बर्दाश्त नहीं हो रही थी तो उन्होंने ही मुझे बोला था कि दरवाजा बंद कर लो और घर में बिना कपड़ों के रहा करो तब गर्मी से राहत रहेगी,,,,।
क्या सच में पापा ने ऐसा कहा था,,,!
हां बिल्कुल क्योंकि मैं एकदम पसीने से तरबतर हो जाती थी मुझसे बर्दाश्त नहीं होती थी गर्मी,,,,।
तो तुमने क्या किया,,,?
करना क्या था तुम्हारे पापा की बात मुझे सही लगी और वैसे भी मेरे और तुम्हारे पापा के सिवा तो कोई रहता नहीं थाऔर मैं तुरंत दरवाजा बंद करके अपने सारे कपड़े उतार कर ऐसे ही घर में रहती थी खाना बनाना चाय बनाना करके सफाई करना सब कुछ में बिना कपड़ों के ही करती थी और मुझे अच्छा लगने लगा था शरीर एकदम हल्की लगती थी,,,।
शरीर तो एकदम हल्की लगती थी लेकिन पापा की तो हालत खराब हो जाती होगी,,,(अपनी आंखों में शरारत भरते हुए अंकित बोला तो उसकी बात सुनकर सुगंधा भी शरमाते हुए बोली,,,)
धत् बहुत शैतान हो गया है तू,,,,(और शर्म के मारे निवाला मुंह में डालकर खाने लगे तो उसकी हालत को देखकर अंकित भी खामोश नहीं रहा वह फिर से बोला,,,)
क्या हुआ मम्मी शर्मा क्यो रही हो बताओ ना,,, तुम्हें बिना कपड़ों के देख कर पापा की खराब हो जाती थी ना,,,,।

(सुगंधा को समझ में नहीं आ रहा था कि अपने बेटे का इस सवाल का क्या जवाब देंअपने बेटे के सवाल प्रभात शर्मा से पानी पानी हो जा रही थी और खास करके उसकी बुर की हालत खराब हो रही थी वह तवे पर रखी गरम रोटी की तरह एकदम से फूल चुकी थी और गर्मी की वजह से वह पसीने से तरबतर भी हो रही थी और साथ ही उसमें से मदन रस का रिसाव भी हो रहा था,,,,जोकि अंकित को साफ दिखाई दे रहा था अंकित भी अपनी मां की पानी से भरी हुई बुर को देखकर खुद पानी पानी हो रहा था उसका मन तो कर रहा था कि अपनी मां की दोनों टांगों के बीच मुह डालकर उसके मदन रस का रसपान कर ले,,, लेकिन यह भी उसके मन का ख्याली पुलाव था।सुगंधा कुछ बोल नहीं रही थी लेकिन अपनी टांगों को हल्का सा और खोल दी थी ताकि ट्यूबलाइट की रोशनी में उसके बेटे की नजर उसकी कचोरी जैसी फुली हुई बुर पर आराम से पड सके,,,,अंकित भी नजर भर कर अपनी मां की बुर को देख रहा था ऐसा मौका वैसे तो इस समय बार-बार आ रहा था कि वह अपनी मां की खूबसूरत बदन का कोई ना कोई अंग देख ले रहा था,,, लेकिन फिर भी अंकित हो या उसकी जगह कोई भी मर्द औरत की बर देखने का वह एक भी मौका छोड़ नहीं सकता भले ही वह उस बुर से बार-बार अपनी प्यास बुझाया हो,,,, अपनी मां को खामोश देखकर अंकित फिर से बात को छेड़ते हुए अपनी बात को दोहराया,,)
क्या हुआ मम्मी बोलो ना तुम बार-बार शर्मा जाती हो,,,।
तू बात ही ऐसी करता है कि शर्म तो आ ही जाएगी मैं क्या मेरी जगह कोई भी औरत होगी तो उसे शर्म आ जाएगी क्योंकि यह सब बात कोई अपने बेटे से थोड़ी ना करता है,,,।
तो क्या हो गया अपना दोस्त समझ कर बता दो,,,।
औरत का कोई लड़का दोस्त हो सकता है क्या औरत का दोस्त नहीं हो औरत की सहेली होती है और तू तो मरते हैं इस तरह की बात तेरे से करूंगी तो,,,, थोड़ा अजीब नहीं लगेगा,,,,।
हम दोनों तो दोस्त की तरह है अब मुझे सहेली समझो या दोस्त,,,,
बहुत चालाक है तू,,,,,चल अच्छा ठीक है तू पूछ रहा है तो बता देता हूं लेकिन यह सब बातें तो किसी को बताना नहीं कि हम दोनों के बीच इस तरह की बातें होती हैं,,,, तुझ पर भरोसा कर सकती हुं ना,,,।
बिल्कुल मैं भला यह सब बातें दूसरे को थोड़ी ना बताऊंगा,,,,।
(गहरी सांस लेते हुए,,,) सच कहूं तो मैं तोअपनी परेशानी की वजह से अपने सारे कपड़े उतार कर घर में रहते थे लेकिन यह बात सच है कि मुझे देखकर तेरे पापा की हालत खराब हो जाती थी और यहां तक कि वह दो-तीन दिन तक ऑफिस जाते ही नहीं थे..
तो क्या वह भी तुम्हारे साथ बिना कपड़ों के रहते थे,,,,(मौका देखकर चौका करने हेतु से अंकित बोल पड़ा इतना तो वह समझ सकता था कि अगर एक औरत घर में बिना कपड़ों के दिन भर रहती है तो भला मर्द कुछ किए बिना कैसे रह सकता है,,,,अंकित की बातें सुनकर वैसे तो सुगंधा शर्म से पानी पानी होने लगी लेकिन फिर भी वह अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बोली,,,)
पहले तो नहीं लेकिनमुझे जिस तरह से देखते थे उनसे रहा नहीं जाता था और वह भी अपने सारे कपड़े उतार कर बिना कपड़ों के ही घर में इधर-उधर घूमते थे,,,।
ओहहहहहहह,,,,, अगर तुम दोनों को कोई देख लेता तो,,,।
कौन देखता दरवाजा बंद करके रहते थे ऐसा थोड़ी ना कि दरवाजा खुला छोड़ कर घूमते थे,,,,
बाप रे मम्मी सच में तुम और पापा बहुत रंगीन मिजाज के थे,,,,, लेकिन अब बिना कपड़ों के नहीं रह सकती ना,,,।
पागल हो गया है क्या,,, अब क्या तेरे सामने कपड़े उतार कर घूमु,,,।
उतार दो,,,(एकदम से हंसते हुए अंकित बोल पल भर के लिए तो अपने बेटे की बात सुनकर सुगंधा को लगा कि यही उचित समय है अपने सारे कपड़े उतार कर नंगी हो जाने का लेकिन फिर वह कुछ सोच कर अपने आप को रोक ली लेकिन गहरी सांस लेते हुए अपने बेटे को अपनी दोनों टांगें खोलकर अपनी बुर का भरपूर दर्शन कराते हुए बोली,,,)
एकदम बेशर्म हो गया है तु,,,,,।
(दोनों खाना खा चुके थे और एक अद्भुत मादकता भरे वार्तालाप के साथ-साथ एक मदहोश कर देने वाले दृश्य पर भी पर्दा पड़ चुका था अपने आप को व्यवस्थित करके सुगंधा दोनों थाली उठा ली थी और सफाई करने लगी थी,,,, जिसमें अंकित भी अपनी मां का हाथ बंटा रहा था,,, थोड़ी ही देर में सफाई हो चुकी थी और दोनों बिस्तर और चटाई लेकर छत पर पहुंच चुके थे मां बेटे दोनों के मन में बहुत सारी भावनाएं उमड़ रही थी ,,,,)