रात को जो कुछ भी हुआ था उसे लेकर सुगंधा काफी उत्साहित थी क्योंकिउसे अच्छी तरह से एहसास हो रहा था कि उसका बेटा कुछ ज्यादा हिम्मत दिखाया था बस थोड़ा और हिम्मत दिखा देगा तो रात को ही काम बन जाता है इस बात को सोचकर होगा मन ही मन मुस्कुरा रही थी लेकिन अपने आप पर गुस्सा भी कर रही थी कि जब उसका बेटे ने इतनी हिम्मत दिखाई तो वह थोड़ी हिम्मत क्यों नहीं दिखा पाई उसे भी तो कुछ करना चाहिए थाआखिरकार वह भी तो एक औरत है उसकी भी तो चाहत है उसकी भी तो प्यास है जिस चीज की भुख उसके बेटे को है उसी चीज की भुख तो उसे भी है,,,, फिर क्यों नहीं आगे बढ़ पाई क्यों नहीं अपने बेटे का साथ दे पाई,,,, सुगंधा को अच्छी तरह से हिसाब सो रहा था कि उसका बेटा उसके साथ शारीरिक संबंध बनाने के लिए उत्साहित हो चुका था,,,वह तो शायद उसकी नादानी थी उसे औरत के गुलाबी छेद के बारे में कुछ ज्यादा मालूम नहीं था वरना वह अपने लंड को उसके गुलाबी छेद में डाल देता,,,, इस बात को सोच कर वह पूरी तरह से मदहोश हुए जा रही थी,,, उसी को समझ में नहीं आ रहा था मंजिल उसे ज्यादा दूर नजर नहीं आ रही थी,,, पवित्र रिश्ता की मर्यादा में भी अब उसे वासना की सुनहरी कीरन नजर आ रही थी।

उसे एहसास होने लगा था कि आप बहुत दिन ज्यादा दूर नहीं है जब उसके बेटे का लंड उसके गुलाबी छेद की गहराई नाप रहा होगा,,, रसोई घर मेंरोटी को तवे पर रखकर वह अपने बेटे के बारे में और रात को जो कुछ विवाह उसके बारे में सोच कर मदहोश रही थी गरम हो रही थी जिसका सीधा असर उसकी दोनों टांगों के बीच की पतली दरार पर पड़ रहा था। उसे अच्छी तरह से मालूम था कि उसका बेटापूरे शिद्दत के साथ उसकी बुर में लंड डालने की कोशिश कर रहा था इसलिए तो उसकी दोनों जांघों के बीच से अंदर तक ठेलने की कोशिश कर रहा था,,,और उसकी रात की उस कोशिश को याद करके इस समय सुगंधा के चेहरे पर मुस्कान तैर रही थी उसके होठों पर मुस्कुराहट थी,,इस बात के लिए नहीं कि उसका बेटा असफल कोशिश कर रहा था वहीं से बात से मुस्कुरा रही थी कि उसके बेटे को औरतों के बारे में भी कुछ ज्यादा ज्ञान नहीं है उसे यह भी नहीं मालूम की मर्द अपने लंड को औरत के किस अंग में डालता है शायद इसीलिए वहां असफल हो गया था वरना जिस तरह की उसकी कोशिश थी वह जरूर कामयाब हो जाता अगर उसे संभोग के बारे में जरा सा भी ज्ञान होता तो,,, अपने बेटे की इस अज्ञानता पर सुगंधा को ज्यादा गुस्सा नहीं आ रहा था वह इस बात से ज्यादा खुश थी की अगर दोनों के बीच कुछ हुआ तो उसे सीखाने में ज्यादा मजा आएगा,,,,।

सुगंधा तवे पर रोटी को चिमटी से पलट रही थी क्योंकि वह एकदम गरम हो चुकी थी और गर्म होकर फूल रही थी यह देखकर सुगंधा को एहसास होने लगा कि इसी तरह से हीऔरत की बुर का ध्यान होता है जब वह गर्म हो जाती है तो एकदम से कचोरी की तरह फूल जाती है उसमें से रस टपकने लगता है जिसे पीने के लिए दुनिया का हर एक मर्द तड़पता है ,,, सुगंधा अपने मन में सोच रही थी दुनिया के हर एक मर्द की तरह उसका बेटा भी औरत की बुर से मज़ा लेना चाहता होगा वह भी उसे चाटना चाहता होगा उसमें अपना लंड डालना चाहता होगा,,, बस थोड़ा डर अपनी मर्यादा और अज्ञानता की वजह से कुछ कर नहीं पा रहा है और जब कल रात कुछ करने की कोशिश किया तो औरत की बुर के भूगोल का ज्ञान न होने की वजह से कुछ कर नहीं पाया,,,, सुगंधा रोटी को तवे पर से उतारकर थाली में रखते हुए सोच रही थी कि अब उसे भी कुछ करना होगातृप्ति के गए 2 दिन गुजर चुके हैं लेकिन दोनों के बीच कुछ हो नहीं पाया है अगर इसी तरह से आंख मिचोली चलती रही तो तृप्ति भी घर पर आ जाएगी और फिर दोनों के बीच कुछ भी नहीं हो पाएगा,,, मां बेटे के बीच कुछ हो इसीलिए तो तृप्ति को गांव भेजी थी। अपने मन में यह सोचकर वह थोड़ा परेशान हो गई और अपने आप को ही दिलासा देते हुए बोली।

नहीं नहीं ऐसा नहीं होने दूंगी सुनहरा मौका में अपने हाथ से जाने नहीं दूंगी तृप्ति को जिस वजह से उसकी नानी के मन भेजी हूं उस वजह को पूरा जरूर करूंगी वरना मेरे जैसी बेवकूफ औरतकोई भी नहीं होगी आखिरकार इतना कुछ होने के बावजूद भी वह अभी भी प्यासी की प्यासी है लेकिन अब ऐसा नहीं होगा अब मुझे ही कुछ करना होगा अपने आप को ऐसा दिलासा देकर वह फिर से खाना बनाने में लग गई,,,,।खाना बनाते समय वह बार-बार दरवाजे की तरफ देख रही थी लेकिन वह जानती थी कि इस समय अंकित घर पर नहीं था नहाने के बाद नाश्ता करके वह तुरंत बाहर निकल गया था,,, वैसे तोसुगंधा अपने बेटे को रोकना चाहती थी लेकिन वह रोक नहीं पाई थी रात को जो कुछ भी हुआ था उसकी खुमारी अभी भी उसके चेहरे पर साफ दिखाई दे रही थी और वह अपने बेटे से नजर नहीं मिला पाती इसलिए वह कुछ बोल नहीं पाई,,,।
दोपहर में खाना खाने के बादसुगंधा घर की सफाई में लग गई थी और बर्तन साफ कर रही थी,,,, साफ सफाई कर लेने के बाद वह अंकित के कमरे के पास आई और दरवाजा खोलकर देखी तो अंदर अंकित नहीं था वह सोच में पड़ गई कि अंकित गया कहां,,,, सुगंधा थोड़ा परेशान हो रही थीक्योंकि सुबह भी वह अपने बेटे से बात नहीं कर पाई थी और इस समय भी वह घर पर मौजूद नहीं था इसलिए वह घर के दरवाजे तक आई और बाहर की तरफ देखने लगी दोपहर का समय होने की वजह से सड़के सुनसान थी। इक्का दुक्का वहां नहीं सड़क पर आते जाते दिखाई दे रहा हैगर्मी इतनी थी की सुगंधा का खुद का मन घर से बाहर निकलने को नहीं हो रहा था इसलिए वह सोच रही थी कितनी गर्मी में उसका बेटा बाहर कहां चला गया,,,फिर अपने मन में सोचने लगी कि शायद रात वाली घटना को लेकर उसके मन में जरूर कुछ चल रहा है इसलिए वह उस नजर नहीं मिला पा रहा है,,, अगर सच में रात वाली घटना से उसका जमीर जाग गया तो सारे किए कराए पर पानी फिर जाएगा,,, इतना जो कुछ भी वह बेशर्मी दिखाई थी अपने बेटे के सामने सब बेकार हो जाएगा अपनी मंजिल तक पहुंचाने के लिए जिस तरह का रास्ता उसने चुना था जिस तरह से बेशर्मी को अपनाया था अपने अंदर एक रंडी पन को जगाया था वह सब कुछ बेकार हो जाएगा,,,,अपने मन में उठ रहे इस तरह के ख्याल से सुगंधा परेशान हो रही थी विचलित हो रही थी उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था। फिर अपने आप से ही बोली नहीं नहीं ऐसा कुछ भी नहीं होगा,,,, और ऐसा वह अपने मन में सोचते हुए वह अपने कमरे की तरफ जाने लगी,,,,।

अपने कमरे पर पहुंचते ही दरवाजे पर खड़े होकर वह फिर से कुछ सोचने लगी और फिर धीरे से दरवाजा खोली जो कि सिर्फ बंद था उस पर सिटकनी नहीं लगी थी,,,और जैसे ही दरवाजा खुला सामने बिस्तर पर अंकित बैठा था उसे देखकर सुगंधा के चेहरे पर मुस्कुराहट तैरने लगी और वह राहत की सांस लेने लगी लेकिन अपनी मां को दरवाजे पर देखकर अंकित तुरंत असहज हो गया और बिस्तर के नीचे को छुपाने की कोशिश करने लगा यह देखकर सुगंधा बोली,,।
क्या हुआ अंकित क्या छुपा रहा है,,,( कमरे में प्रवेश करते हुए सुगंधा बोली,,,,अपनी मां को कमरे में प्रवेश करता हुआ देखकर अंकित थोड़ा घबरा गया था और घबराहट भरे स्वर में बोला)
ककककक,,, कुछ नहीं कुछ भी तो नहीं,,,,,
(तब तक सुगंध बिस्तर तक पहुंच चुकी थी और वह बिस्तर पर ;बिछे गद्दे को उठाकर देखने लगी तो उसके नीचे वही गंदी किताब थी जिस किताब ने दोनों को अपने मंजिल तक पहुंचने में मदद कर रहा था,,, उसे किताब को देखकर सुगंधा मुस्कुराने लगी और मुस्कुराते हुए अपने बेटे से बोली,,,)
ओहहहह तो यह बात है किताब पड़े बिना रहा नहीं जा रहा है क्यों ऐसा ही है ना,,,
नहीं नहीं मम्मी ऐसा कुछ भी नहीं है,,,

तो ईसे छुपा क्यों रहा था,,,,(किताब के पन्ने को पलटते हुए सुगंधा बोली,,,,,,सुगंधा जिस तरह से अपने हाथ से किताब का पन्ना पलट रही थी यह देखकर अंकित की हिम्मत बढ़ने लगी थी और वह अपने मन में सोचने लगा था कि इतना कुछ तो दोनों के बीच हो रहा है इतनी ढेर सारी गंदी बातें इस किताब को लेकर हो चुकी है तो अब क्यों अपनी मां से घबरा रहा है शर्मा रहा है,,,,,,, इसलिए वह थोड़ी हिम्मत दिखाते हुए बोला,,,)
नहीं ऐसा कुछ भी नहीं मम्मी वह तो किताब ऐसी है ना की,,,,, अब क्या बताऊं किताब ही ऐसी है कि तुम्हें दरवाजे पर देखकर मैं थोड़ा डर गया,,,,,
डरने की जरूरत नहीं हैतुझे अच्छी तरह से याद होना चाहिए कि मैं ही तुझे इस किताब को पढ़ने के लिए बोलीअगर ऐसा कुछ होता तो मैं तुझे यह किताब देती ही नहींऔर इस किताब को पढ़ने पर तुझे थप्पड़ लगा दी होती लेकिन मैं जानती हूं कि तू अब बड़ा हो चुका है समझदार हो चुका है,,,,, वैसे पढ़ क्या रहा था तू,,, मैं तो ठीक हूं की पूरी किताब ही गजब की कहानी से भरी हुई है,,,,(किताब के पन्ने को पालते हुए सुगंधा अपने होठों पर मादक मुस्कान बिखेरते हुए बोली अपनी मां को इस तरह से मुस्कुराता हुआ देखकर अंकित के भी हिम्मत बढ़ने लगी और वह बोला,,,)

तुम सच कह रही हो मम्मी पूरी किताब ही गजब की है एक बार पढ़ने बैठो तो पूरी किताब पड़े बिना उठ नहीं सकते मैं तो उसे दिन वाली कहानी के बारे में सोच रहा था और वही देखना चाहता था कि आगे क्या होता है जैसा कि तुम बताएं की हालत को देखकर दोनों में जरूर कुछ हुआ होगा और दोनों के बीच कुछ होने की आशंका दोनों के हालात पर निर्भर रखती है,,,।
अच्छा तो तूने क्या पढ़ा उन दोनों के बीच आगे कुछ हुआ कि नहीं,,,,,।
बहुत कुछ हुआ मम्मी मेरा तो पढ़ कर ही हालत खराब हो गई है,,,,,।
क्यों ऐसा क्या लिखा हुआ है कि तेरी हालत खराब हो गई और वह भी सिर्फ पढ़करअगर देखा होता है या कुछ उसे कहानी का हिस्सा होता तो मैं समझ सकती थी पढ़कर ही तेरी हालत कैसे खराब होने लगी,,,। मुझे भी तो बता,,,(ऐसा कहते हुए उसे किताब को अंकित की तरफ आगे बढ़ाते हुए) ले उस दिन की कहानी से आगे पढ़ कर बता,,,,।
(अपनी मां की बात सुनकर अंकित का दिल जोरो से धड़कने लगा क्योंकि उसे भी एहसास होने लगा था कि उसकी मां भी उत्सुक थी की मां बेटे के बीच आगे क्या हुआ,,,, और यह कहानी वाली घटना उन दोनों के लिए ही कारगर साबित होने वाली थी ऐसा अंकित को एहसास होने लगा था,,,,इसलिए वह भी तुरंत अपनी मां के हाथ से उस किताब को ले लिया उसकी मां ठीक उसके सामने खड़ी थीऔर अंकित नीचे बिस्तर पर बैठा हुआ था और धीरे-धीरे पन्नों को पलट रहा था कुछ पन्नों के बाद रंगीन चित्र थे जिसमेंमर्द और औरत के संभोग के बहुत सारे चित्र थे जिसमें औरत की बुर और मर्द का लंड एकदम साफ दिखाई दे रहा था,,,अंकित उसे चित्र को बड़े गौर से देख रहा था देख क्या रहा था वह अपनी मां को चित्र को दिखा रहा था क्योंकि वह जानता था कि उसकी मां भी उस किताब की तरफ ही देख रही थी,,, उस गरमा गरम चित्र को देखकर अंकित का लंड पेंट के अंदर अकड़ रहा था,,,खड़ा तो वह पहले से ही था लेकिन इस समय अब उसकी हालत और ज्यादा खराब हो रही थीतो दो तीन-तीन सेकंड तक उसे दृश्य पर अपनी नजर डालकर और अपनी मां को दिखाकर वह पन्ने को पलट दे रहा था हर एक पन्ने पर एक अद्भुत दृश्य था जिसे देखकर कोई भी मर्द और औरत चुदवासे हो जाए।

सुगंधा अपने बेटे की हरकत को देखकर मस्त हो रही थी वह भी उसी द्रशय को देख रही थी जिस दृश्य को उसका बेटा देख रहा था,,,, सुगंधा की बुर की पानी छोड़ रही थी क्योंकि चित्र था ही कुछ ऐसा मर्द बिस्तर पर पीठ के बल लेटा हुआ था और एक औरत जो कि एकदम गदराए बदन की थीवह उसे मर्द के ऊपर पूरी तरह से छाई हुई थी उसे मर्द का मोटा तगड़ा लंड उसकी बुर में घुसा हुआ था और औरत अपनी चूची को अपने हाथ से पड़कर उसे मर्द के मुंह में डालें हुई थी और वह मर्द उसकी दोनों चूचियों को पकड़े हुए था उसे मर्दों को देखकर ऐसा प्रतीत हो रहा था कि औरत की हरकत से उसकी काम कला से वह पूरी तरह से मस्त हो चुका था। तभी अंकित पन्ने को पलट दिया और दूसरे दृश्य को देखने लगा यह दृश्य भी गजब का था,,, इसमें एक औरत खेत में काम करते हुए अपनी फ्रॉक को कमर तक उठाई हुई थी और झुक कर घास को काट रही थी और पीछे से एक आदमी उसकी चुदाई कर रहा था,,,इस नजारे को भी उसकी मां प्यासी नजर से देख रही थी और अपने मन में सोच रही थी की खास उसे औरत की जगह वह खुद होती है और पीछे खड़ा मर्द उसका बेटा होता तो कितना मजा आता।।

अगले पन्ने को पलटते ही जो नजारा दिखाई दिया उसे देखकर सुगंधा की बुर मदन रस की बुंद नीचे टपका दी,,,, उस पन्ने पर चित्र छपा हुआ था जो बेहद मन मौत था और यह सुगंधा की भी ख्वाहिश थी,,,चित्र में एक मर्द बाथरूम के अंदर खड़ा था हो एक औरत अपने घुटनों के बल बैठकर उसकी कमर को दोनों हाथों से पकड़ कर उसके लंबे मोटे लंड को अपने मुंह में जड़ तक लेकर उसे कस रही थीऔर उसकी मोटाई और लंबाई से साफ पता चल रहा था कि उस औरत के गले तक पहुंच चुका था उस मर्द के लंड को मुंह में लेने पर उसे थोड़ी बहुत तकलीफ हो रही थी लेकिन फिर भी इस तकलीफ के आगे जो आनंद उसे प्राप्त हो रहा था वह उसकी तकलीफ को पूरी तरह से कम कर दे रहा था। यही चाहतसुगंधा के मन में भी थी वह भी इसी तरह से अपने बेटे के मोटे-तगडे लंड को अपने मुंह में उसे चूसना चाहती थी,,, दो-तीन सेकंड के बाद अंकित पढ़ने को पलट दिया और अब कहानी शुरू हो गई थी अंकित कहानी को वहीं से शुरू करना चाहता था जहां से उस दिन खत्म किया था।वही पन्ना आंख के सामने आते ही अंकित अपनी मां की तरफ देखने लगा और अंकित को अपनी मां की आंखों में वासना का तूफान दिखाई दे रहा था जिसमे वह खुद डूबना चाहता थाकहानी को आगे पढ़ने से पहले वह अपनी मां की इजाजत लेना चाहता था इसलिए वह धीरे से बोला,,,।
आगे पढ़ु,,,,,?

इसीलिए तो तुझे दी हूं,,,,,।
ठीक है,,,,,,, उस दिन अपने यहां तक पढे थे,,,,, अब आगे पढ़ कर बताता हूं,,,,(अंकित का इतना कहना था की सुगंधा पास में पड़ी कुर्सी को अपनी तरफ खींचकर उसे पर बैठ गई और ठीक अंकित के सामने बैठ गई थी वह अंकित के चेहरे के बदलते भाव को देखना चाहती थी,,)
मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा थावैसे तो मैं यह नजारा देखना नहीं चाहता था अपने आप ही मेरी आंखों के सामने यह नजारा दिखाई दे गया था लेकिन आज पहली बार या नजारा देखकर मुझे लग रहा था कि मैं अब तक एक खूबसूरत दृश्य को नहीं देख पाया था लेकिन आज शायद मेरी किस्मत में यही लिखा था और आज मुझे वह देखने को मिल रहा है जिसके बारे में मैं कभी सपने में नहीं सोचा था,,,मां की गांड वाकई में कुछ ज्यादा ही पड़ी थी कई हुई साड़ी में अक्सर मैंने अपनी मां की गांड को देखा थालेकिन कभी मेरे मन में गलत भावना नहीं जगी थी लेकिन आज पहली बार मन को पेशाब करता हुआ देखकर मेरे मन में न जाने कैसे-कैसे भाव पैदा हो रहे थे और यह भावएक बेटे के मन में तो बिल्कुल भी नहीं पैदा हो सकते थे एक मर्द के मन में ही पैदा हो सकते थे और इस समय मुझे ऐसा ही लग रहा था कि मेरी आंखों के सामने जो औरत पेशाब कर रही है वह मेरी मां नहीं बस एक औरत है और मैं एक मर्द हूं हम दोनों को एक दूसरे की जरूरत है।

मां की बुर लगातार सिटी की आवाज निकल रही थी और यह सिटी की आवाज किसी मधुर ध्वनि से बिल्कुल भी काम नहीं थी इस सिटी की आवाज सुनकर तो मेरा लंड एकदम से अपनी औकात में आ गया था,, अभी तक मां की नजर मेरे पर नहीं पड़ी थीवही तो ऐसा तक नहीं था कि बाहर दरवाजे पर खड़ा होकर में उन्हें पेशाब करता हुआ देख रहा हूं वरना अगर उन्हें एहसास हो गया होता तो वह कब सेमुझे जाने को कह देती और दरवाजा बंद कर देती और शायद गुस्सा भी करती लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हो रहा था लेकिन मा को पेशाब करतेहुए देख कर मेरी हिम्मत पड़ रही थी बार-बार मेरा हाथ अपने आप ही पेंट के ऊपर से लंड को सहला दे रहा था। इस समय मुझे कुछ और नहीं सुझ रहा था। वैसे भी मैं निश्चिंत था क्योंकि घर में मेरे और मां के सिवा और कोई नहीं रहता थाइसलिए किसी के देखे जाने का या किसी के आ जाने का डर मुझे बिल्कुल भी नहीं था डर इस बात का था की मां मुझे देख लेगी तो क्या सोचेगी।(कहानी के एक-एक शब्दों को पढ़कर अंकित की हालत खराब हो रही थी वह अपनी मां की तरफ भी देख ले रहा था,, उसे साफ दिखाई दे रहा था कि,,कहानी को सुनकर उसकी मां की भी हालत खराब हो रही थी पाल-पाल उसके चेहरे का रंग बदल रहा था और उसकी सांसों की गति भी ऊपर नीचे हो रही थी यह देखकर अंकित को मजा आ रहा था और वह वापस कहानी आगे पढ़ते हुए बोला।)
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सच कहूं तो इस समय मन कर रहा था कि बाथरूम में घुस जाऊं और मां की चुदाई कर दुं,,,,, क्योंकि जहां तक मेरा मानना था बरसो हो गए थे मां की बुर में लंड नहीं गया था,,, क्योंकि हम दोनों अकेले ही रहते थे बरसों पहले ही पिताजी किसी और औरत के साथ शादी करके दूसरे शहर चले गए थेजहां तक मेरा मानना था की मां का किसी के साथ गलत संबंध बिल्कुल भी नहीं थाक्योंकि अगर होता तो इतने दिनों में भनक लग जाती लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं था और इतना पक्का था की मां की बुर में लंड ना जाने की वजह से उसे भी दूसरी औरतों की तरह पुरुषकी जरूरत पड़ती होगी लेकिन न जाने क्यों हुआ अपनी भावना को दबाए रह गई थी शायद उसके परवरिश के लिए,,, मुझे एहसास हो रहा था कि शायद मा को भी ईसी चीज की जरूरत है,,,,और अब मेरा करते तो बनता है कि मैं अपनी मां की जवानी की प्यास अपने लंड से बुझाऊं क्योंकि उसे भी अपनी शौक पूरा करने का पूरा हक है। और शायद मेरी वजह से ही मन अपनी ख्वाहिश को पूरा नहीं कर पा रही थी और अंदर ही अंदर घुट रही होगी,,,क्योंकि अगर मैं नहीं होता तो शायद वह दूसरी शादी कर ली होती और एक औरत की जिंदगी की रही होती यह सब मेरी वजह से ही हो रहा है,,,, आज तो मैं अपनी मां की जरूरत को पूरा करके रहूंगा,,,,,।
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अरे यह क्या मां तो पेशाब कर चुकी है अब जल्दी ही उठकर खड़ी हो जाएगी,,, नहीं नहीं मैं क्या देख रहा हूं मां तो अपनी बुर में उंगली डाल रही है,,ओहहहह इसका मतलब है कि मेरा सोचना बिल्कुल सही था मा को भी जरूरत है,,,, अब तो मेरा रास्ता एकदम साफ हो गया है आज तो मैं अपनी भी और अपनी मां की भी इच्छा पूरी कर दूंगा,,,,,,(ऐसा पढ़करअंकित अपनी मां की तरफ देखने लगा उसकी मां मुस्कुरा रही थी क्योंकिकहानी कुछ उसके जीवन जैसी ही थी जिसका एहसास अंकित को भी हो रहा था अंकित गहरी सांस लेते हुए कहानी को आगे पढ़ते हुए बोला )
मुझे रहा नहीं गया और मैं दरवाजे पर खड़ा होकर बोला,,,।
बस करो मम्मी बहुत तुमने उंगली से अपनी प्यास बुझाने की कोशिश कर ली अब मैं जानता हूं कि तुम्हें क्या चाहिए,,,,(मेरी बात सुनकर मा एकदम से चौंक गई और,,,घबरा कर तुरंत अपनी बुर में से उंगली को बाहर खींच ली और एकदम से खड़ी हो गई और अपनी साड़ी को नीचे गिरा दि और अपनी गांड को ढंक ली और घबराहट भरे स्वर में बोली,,,)
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तततततत,,, तू यहां क्या कर रहा है,,,?
देख रहा हूं कि मेरी मां कितना तड़प रही है लंड के लिए,,,(ऐसा कहते हुए मैं बाथरूम में प्रवेश करके और अपने पेंट की बटन को खोलने लगा यह देखकर मा से घबरा गई और बोली,,,)
यह तु क्या कर रहा है,,?
वही जिसकी तुम्हें जरूरत है,,,,(ऐसा कहते हुए मैंने तुरंत अपने कपड़े उतार कर बाथरूम के अंदर एकदम नंगा खड़ा हो गया मां की हालत खराब हो रही थी वह थोड़ा गुस्से में भी थी लेकिन मेरे मोटे तगड़े लंबे लंड को देखकर वह एकटक उसे देखते ही रह गई,,,,, और धीरे से बोली)
यह गलत है,,,।
गलत क्या है सही क्या है यह हम दोनों जानते हैं और इस समय क्या सही है यह तुम भी अच्छी तरह से जानती हो इसलिए बिल्कुल भी दिखावा मत करो मैं अपनी आंखों से देख चुका हूं तुम अपनी उंगली से अपनी प्यास बुझाती हो,,,,,(ऐसा कहते हुए मैं मां के एकदम करीब पहुंच गया और उनका हाथ पकड़ कर तुरंत अपने लंड पर रख दिया जो कि एकदम गरम और एकदम कड़क था,,,पहले तो मन घबरा कर उसे पर से अपना हाथ हटाने की कोशिश करने लगी लेकिन मैं तुरंत अपने हाथ में मां की हथेली पकड़ कर उसे पैर दबा दिया तो थोड़ी ही देर मेंमां के बदन में लंड की गर्मी पूरी तरह से छाने लगी और वह मदहोश होने लगी और उनकी मदहोशी उनकी आंखों में दिख रही थी और वह धीरे से बोली,,,)
किसी को पता चल गया तो,,,,।
चार दिवारी के अंदर हम दोनों के बीच क्या हो रहा है यह बाहर किसी को कैसे पता चलेगा,,,,,,(मेरी बातें सुनकर मन मदहोश हो रही थी और धीरे-धीरे मेरे लंड को मुठीयाना शुरू कर दी थी जो कि उनकी तरफ से इशारा था आगे बढ़ने का,,,,मुझे बिल्कुल भी रहा नहीं यार मैं तुरंत ब्लाउज का बटन खोलने लगा देखते-देखते में अपनी मां की चूचियों को ब्लाउज की कैद से आजाद कर चुका था,,,, उनकी बड़ी-बड़ी चूचियांऔर भी ज्यादा खूबसूरत लग रही थी मैं दोनों हाथों से उसे पकड़ कर जोर-जोर से दबा रहा था और मां मेरे लंड को आगे पीछे करके मजा ले रहे थे देखते-देखते वह खुद मेरा सर पकड़ कर अपनी चूची पर कर दी और मुझेदूध पीने का इशारा करने लगी मैं भी मन का इशारा पाकर टूट पड़ा और बारी-बारी से दोनों चुचियों का रेस पीने लगा,,,, हम दोनों के बीच हालात पूरी तरह से बिगड़ रहे थे ऐसा लग रहा था कि बरसों के बाद मां के हाथों में उसका पसंदीदा खिलौना आ गया था जिससे वह जी भर कर खेल रही थी,,,देखते ही देखते मैं अपने घुटनों के बल बैठ गई और तुरंत मेरे लंड को अपने मुंह में लेकर चूसना शुरू कर दी कि हम मेरे लिए बेहद अद्भुत और अविस्मरणीय था क्योंकि मैंने ऐसा कभी सोचा नहीं था,,,,, कुछ देर तक मां इसी तरह से मजा लेती रही और मुझे मजा देती रही इसके बादमां तुरंत उठकर खड़ी हो गई और अपनी साड़ी को कमर तक उठाकर मुझे अपनी बुर चाटने के लिए बोली,,,, मैं कर भी जा सकता थामेरा तो यह सपना था मैं तुरंत अपने घुटनों के बल बैठ गया और अपनी मां का रस पीना शुरू कर दिया हम दोनों पागल हुए जा रहे थे बाथरुम के अंदर हम दोनों पूरी तरह से मां बेटे की जगह औरत और मर्द बन चुके थे,,,,।
Sugandha kinchahat

बाथरूम के अंदर ही मा पेट के बल लेट गई और अपने दोनों टांगें खोलकर मुझे बताने लगी कि आगे क्या करना हैयह मेरा पहला मौका था मां की बात मानते हुए मैं धीरे-धीरे अपने लंड को उसकी गुलाबी छेद में डालना शुरू कर दिया और उसके बाद अपनी कमर हिलाना शुरू कर दिया इतना मजा आ रहा था कि पूछो मत मां भी मस्त हो रही थी और उसके बाद है तो यह सिलसिला रोज का हो गया हम दोनों एक ही कमरे में कहीं बिस्तर पर पति-पत्नी की तरह सोने लगे,,,,,,
(इतना पढ़कर अंकित की हालत खराब हो गई थी अंकित गहरी सांस लेता हूं अपनी मां की तरफ देखने लगासुगंधा भी मदहोश हो चुकी थी उसके चेहरे पर भी उत्तेजना साफ झलक रही थी वह भी वासना भरी आंखों से अपने बेटे की तरफ देख रही थी)