Badhiya Romanchak update ke sath shuruaat. Pratiksha agle rasprad update ki
Congratulations for new story.bindas likho or story complete karna
Congratulations waiting for next update
Nice
Congrats for new story
Fantastic update
Congratulations for new thread
शानदार शुरुआत
Awesome, fantastic update bhai
NICE START
Badhiya Romanchak update ke sath shuruaat. Pratiksha agle rasprad update ki
Khule mein pyar nahi jataata hain tho ab dedega pyara sa hug.
Badiya tha.. Ek hi dine main ajnabi aurat aur maa ki chhati ke maje lenliye
Bhaut hee behtarin shuruaat hai …
Waiting for blockbuster story!
Nice story bro...bas adhura Matt chodna
ThanksNice start
Nice update and beautiful storyUpdate 02
मां आपने गीले बालों पर एक टॉवल लपेट कर मेरे सामने खड़ी थी... में मां को इस हालत में काफ़ी समय बाद देख रहा था और मेरी दिल की धड़कने तेज रफ्तार से चल रही थी...में उनके पास जाके खड़ा हो गया और एक भी पल की राह देखे बिना अपनी जान से प्यारी मां को अपनी बाहों में भर के उन्हें प्यार से सहलाने लगा...मेरे हाथ उनकी कमर से लेके उनकी अर्ध नंगी पीठ पे चल रहे थे...मां के लिए ये नई बात नही थी लेकिन मां की अंदर की औरत को ऐसा प्यार भरा स्पर्श बहोत कम मिलता था या कहूं की सिर्फ में ही उन्हें इसे स्पर्श किया करता था इस की वजह आगे पता चलेगी... मां का तो मेरे इसे सहलाने से थोड़ा उचल गई.. लेकिन जाति कहा भाग के बेटे की पकड़ थी पति की नही की भाग जाई...बोले तो बोले क्या और करे तो करे क्या.. ऐसी परिस्थिति एक मां बस बेटे को अपनी मन मानी करने देने के अलावा भला क्या करे... मेने मां के गले के पास कंधे पे अपने होठ रख कर चुंबन किया...मां इस से थोड़ा सहम सी गई..मां को मेने इस पहले कभी इतना जज्दी चूमा नही था वो भी इसे...हम दोनों के बीच एक आग सी लगी थी.. लेकिन दोनो के दिल और मन कुछ और ही बोल रहे थे..एक और में मां को बस अपनी मां और पत्नी की मान्यता देते हुए प्यार जाता रहा था वही मां बस मुझे अपने बेटे की तरह प्यार दे रही थी और मुझे नाराज़ नहीं करना चाहती थी...लेकिन मां के यौन अंग उन्हे बार बार उत्तेजित कर के मां की परेशानी को दोगुना कर देते...
मां ने आखिर में मुझे ये बोल के दूर किया की..."बस सारा प्यार आज ही करेगा क्या...चल हट" और मां रसोई घर में जाने लगी... जब मां जा रही थी..उनके दो गठीले नितंभ इस लचल रहे थे की कोई हिरनी अपने मादा साथी को लुभा रही हो...कमर खेतों में काम करने से इसी पतली और सुडौल... बहोट साधारण ब्लाउज में भी मां का यौवन देख में मां का आज फिर से दीवाना बन गया...इतने दिनो बाद मां को इसे देख में खुसी से पागल हो रहा था...की मां बोली.."बेटा सब्जी तो नही लाया लगता है या बस बाहर से खाना खा रहा है में दाल चावल बना दुंगी..में अभी सारी पहन के आई"
में कमरे की और जा रही मेरी मां को पकड़ के पीछे से अपनी बाहों में भर के अपने हाथो से मां के मुलायम पेट को सहलाते हुए उनके कानों में धीरे से बोला..."मेरी प्यारी मम्मा खाना पहले ही बना दिया था तुम खा लो"
मां खुशी से बोली "ठीक से अभी आती हूं पहले सारी पहन लेने दे"
मां जाने के लिए मेरी कपड़ से आजाद होने के लिए किसी मछली के जैसे चट पटा रही थी ये देख मेने मां को अपनी गोद ने उठा लिया...और उनके गालों को चूम लगा..मां तो पानी पानी हो गई...बेटे से ऐसा प्यार मिल रहा था जो पति भी कभी नही दे पाया...और ये सब इतना ज्यादा पहली बार था पहले तो मैं पापा के डर से और गांव में कोई देख लेगा सोच के इतना आग नही बड़ पाता था...मां तो शर्म से लाल हो गई..
में मां को लेकर डाइनिंग टेबल पे ले आया...और बड़े प्यार से थोड़ी भारी आवाज में उनके कानों में गूंजती हुए आवाज के साथ बोला..."मिस लीलावती यहां दूर दूर तक कोई नहीं आप जेसे चाहे रहिए जैसे आप गांव में रहती है.." में थोड़ा मर्दाना अंदाज में मां के कामों को चूमता हुआ बोला....मां तो जैसे कुछ पल के लिए तो डर गई होगी की ये कोनसा मर्द मेरे कानो में बोल रहा है लेकिन वो तुरत होस ने आई और मेरे कान को मरोड़ के बोली..."खबरदार जो फिर से मुझे नाम से बुलाया हे.. चल खाना ले आ क्या बनाया हे"
मां के कान मरोड़ देने से दर्द तो हुआ लेकिन भायदा ये हुआ की मां ने जाने अंजाने में मेरी ये बात मान ली की घर में बिलकुल अपने गांव वाले घर ने रहती थी वैसे रहे..और मां का ऐसा था की उनको एक बार आदत लग गए फिर वो इस ही रहने वाली थी.. हा गांव से ही तो थोड़ी कम ख्याल रखती है की ब्लाउज पेटीकोट में उसके दो उरोज और सुडौल शरीर उसके जवान बेटे का क्या हाल करते...
मैने पूरी तरह से सोच के ही ये घर लिया था मुझे पास के शहर में ही एक बड़ा और अच्छा घर मिल रहा था कंपनी से लेकिन मैने नही लिया और ये छोटा सा घर पसंद किया..जिस से जब मां मेरे साथ आने को मान जाए हम दोनो पूरी तरह से खुले के रह पाई..जो भीड़ भाड़ वाले इलाके एम कभी मुनकिन नहीं होता...
में मां को बहुत अच्छे से समझ गया था की उनको क्या क्या करने से उत्तेजित किया जा सकता है और वो कहा तक मेरा साथ देगी और कहा पे रुकना हे... और किस हालत में मां ज्यादा खुल के मुझे प्यार करने देगी...
आज पहली रात थी तो मैने उन्हे ज्यादा परेशान नहीं किया... क्यों की में उन्हें सब खुसी धीरे धीरे देना चाहता था नही तो वो मेरा प्यार समझ नही पाती..एक गांव की पतिव्रता स्त्री एक दिन में अपने पति के अलावा किसी और की कभी नहीं होगी लेकिन ये काम सूज भुज के साथ सही समय पे सही मौका देख उसे पहले थोड़ा थोड़ा कर के आने वाले समय की कुछ अनुभूत करा दी जाय तो उस रात को उसके बेटे को नाराज कभी न करे...
घर में एक बड़ा सा आंगन था जो चार दीवारों से घिरा हुआ था और पीछे रसोई घर था और वहा से भी बाहर निकल सकते थे जहा आगे खेत था छोटा सा और चारो और दीवार थी...नीचे दो कमरे थे.. लेकिन मैने एक कमरे को होम थिएटर और एक में बाकी सामान रखा था और सोने के लिए जान बूझ के एक ही कमरा रखा था जो उपर था और ऊपर बड़ी सी चत और एक कमरा था...मेने बहोत सोच के ये कमरा मेरे और मां के मिलन के लिए पसंद किया था.. अगर गलती से कोई आ भी जाता घर पे तो भी वो हमे कभी देख नही पता.. और इस से मां जैसी औरत थोड़ा खुल के मेरा बिस्तर में साथ देगी..मेरी मनमानी ज्यादा खुल के बर्दास्त करती...हम खुल के खिड़की खुल रख के सो सकते थे जो मेरी मां के लिए बहुत जरूरी था क्यू की उन्हे खुली हवा चाहिए होती है और कमरा नीचे होता खुली खिड़की के साथ मुझे भी के बदन को चुने में डर लगता और मां तो और डर के मारे मुझे पास भी न आने दे...
हम अब ऊपर वाले कमरे में सो गई लेकिन मुझे निंद ही कहा आनी थी...आज जैसे मेरी इतने साल की कड़ी मेहनत रंग लाई थी... जैसा मेने सोचा था..मां को अपना बनाने के लिए उन्हें घर से और पापा के बंधन से कोसो दूर ले आया था..आज वो जैसे पापा के साथ सोती थी बस ब्लाउज पेटीकोट ने बिना किसी अतिरिक्त तनाव के इस आज मेरे बगल मे लेट के सो रही थी...ये दिन मां और मेरे रिश्ते में नई रंग भरने का प्रारंभ था... मुझे आज लग रहा था की जैसे मां मेरी पत्नी हो.. अब मां पर मेरा पूरा हक होगा...मेने मां के गले में पापा के नाम का मंगलसूत्र और मांग में सिन्दूर देखा और में मां देख धीरे से बोला.."मां अब देख में तुजे वो सब खुसी प्यार दूंगा जो पापा कभी नही दे पाई....मां मुझे हक हे...
मुझे हक़ है
तुझको जी भर के मैं देखूँ मुझे हक़ है
बस यूँ ही देखता जाऊँ मुझे हक़ है....
और में हसीन सपनों की दुनिया में खो गया...
मां का सावला रंग चांद की चांदनी में जैसे किसी सुनहरे सोने से अधिक चमक रहा था...दिल तो हुआ अभी उनके गुलाबी होंठ चूम लू...अपनी मां को अपनी बाहों में भर लूं...अपनी मां को चांद पूनम का दिखा दूं...लेकिन अभी तो मिलन से पहले मां को इतना तड़पाना था की मां को पता चले कि औरत का यौवन कभी खत्म नहीं होता....और इस योवन को इस जाया नहीं करते...
To be continued...