Aapne to bhuchal hi macha diya bhai.15......
इस वक़्त में नेहा और प्रिया मां को घेरे उनके पलंग के इर्द गिर्द बैठे थे.....मां लगातार अपने आंसू गिराए जा रही थी जिसे देख हम सभी काफी डरे हुए थे .....
प्रिया - मां आखिर हुआ क्या है ??? आप क्यों इस तरह से लगातार रोये जा रही हो.....??
नेहा - हां माँ जी प्लीज कुछ तो बोलिये....देखो ना आपके इस तरह रोने से सबका दिल बैठे जा रहा है....प्लीज कुछ बोलिये माँ जी...।
में थोड़ा सरक के मां के पास आ गया और उन्हें अपनी बाहों मैं भरते हुए कहने लगता हूँ.....
"" क्या बात है माँ ...?? आप इस तरह परेशान रहोगी तो हम सब को कौन संभालेगा.....एक आप ही तो है जिसने पापा के जाने के बाद हम सब को होंसला दिया था .....क्या किसी पुरानी याद ने आपको डरा दिया या इस द्वीप पर आपको अच्छा नही लग रहा ?? ""
मां इस वक़्त मुझ से किसी अमर बेल की तरह लिपटी हुई थी उनके आंसुओ से मेरा कंधा बुरी तरह से भीग चुका था.....पापा के जाने के बाद हम लोगो को संभालते संभालते वो कब डिप्रैशन की चपेट मैं आ गयी ये हमे भी काफी ज्यादा देर बाद पता चला था.....उनके उल जुलूल सवाल ये साफ दर्शाते थे कि वह किस कदर डिप्रैशन मैं खो चुकी है....
अचानक सुबकते सुबकते मां ने कहा....
"" बेटा मुझे कबीले के पुजारी के पास ले चल मुझे उनसे कुछ जरुरी बात करनी है ।""
मां की बात सुनकर मुझे एक झटका लगा ....आखिर मां पुजारी से क्यों मिलना चाहती है वो भी इस वक़्त.....मां का पुजारी से मिलने की बात कहना इस बात का घोतक था कि जरूर कोई न कोई ऐसी बात है जो मां हम सबसे छुपा रही हैं....
"" मां लेकिन इस वक़्त देखो कितना अंधेरा हो रहा है....क्या ये वक़्त सही है पुजारी जी से मिलने के लिए....आप खुद ही सोचो भला पुजारी क्यों हम लोगो से मिलना चाहेगा वो भी इस वक़्त...??""
मेरी बात सुनकर माँ का रोना अचानक से ओर बढ़ गया और वो रोते हुए कहने लगी....
"" मुझे अभी मिलना है पुजारी जी से.....अगर तुम सब मेरा इतना सा काम नही कर सकते तो मुझे अकेली छोड़ के चले जाओ अपने अपने कमरे में.....मैं ये समझ लुंगी की मेरी बात की किसी को परवाह नही है...""
इस वक़्त मैं खुद को एक दोराहे पर खड़ा महसूस कर रहा था.....अगर मां की बात मान भी लू तो क्या गारंटी है कि पुजारी हम लोगो से मिलेगा ही या अगर बात नही मानता तो हमेशा के लिए एक ऐसा बेटा बन जाऊंगा जिसने अपनी मां की छोटी सी मुराद पूरी नही करी.....
"" ठीक है माँ जैसा आप चाहे.....लेकिन इस जंगल में हम क़बीले तक जाने का रास्ता कैसे पता लगाएंगे.....आपकी तबियत वेसे ही खराब है ओर ज्यादा खराब हो जाएगी अगर आप इतनी दूर पैदल चलोगी तो ...""
मां ने मेरी बात का कोई जवाब नही दिया और बस सर झुकाए रोती रही....
तभी रुचि की आवाज इतनी देर में पहली बार गूंजी.....
"" राज अगर तुम कहो तो मैं नोखा से संपर्क करने की कोशिश करूँ..... उसके पास एक रेडियो हमेशा रहता है जिस पर उसे किसी के आने की सूचना दी जाती है....अगर आप कहें तो मैं उसे बुलवा लूं...""
रुचि ने एक अच्छे दोस्त होने का फर्ज पूरी तरह से निभाया.....मैंने रुचि को निर्देश दिया कि वह नोखा से संपर्क स्थापित करे.....
कुछ मिनटों की शांति के बाद रुचि का स्वर फिर से गूँज उठा.....
"" मेरी बात हो गयी है नोखा से.....वह कुछ ही देर में पहुचने वाला है.....मां जी आप चिंता मत करिए आपके मन मे जो चल रहा है मैं वह भली भांति जानती हूं.....सब कुछ ठीक होगा आप भरोसा रखिये ....""
तकरीबन 20 मिनट बाद रुचि ने हमे अवगत करवाया की ट्री हॉउस के बाहर नोखा हमारा इन्तेजार कर रहा है , इसलिए मैंने भी देर न करते हुए मां को सहारा देकर बिस्तर से उठाया और चल पड़ा बाहर की तरफ.....तभी रुचि की आवाज गुंजी....
"" राज वहां ड्रावर में एक स्मार्ट वॉच पड़ी है जिस से तुम मुझ से बाहर रह कर भी संपर्क कर सकते हो.....मेरी सीमा इसी जगह तक है और अगर तुम वह स्मार्ट वॉच पहनते हो तो मैं बाहर भी तुम्हारी कोई न कोई मदद जरूर कर पाऊंगी ""
मैं इस बात से हैरान था कि रुचि मेरी मदद करने का कोई भी मौका नही छोड़ना चाहती थी इसलिए मैंने प्रिया को ड्रावर में से वह स्मार्ट वॉच निकाल कर लाने को कहा और वह तुरंत मेरे पास ले भी आई....
फुर्ती के साथ मैंने वह वॉच अपनी कलाई पर बांधी और मां को सहारा देते हुए बाहर लगी लिफ्ट तक ले आया
इस वक़्त प्रिया और नेहा भी मेरे पीछे ही थी और मां की दशा देख वह भी बुरी तरह से घबराई प्रतीत हो रही थी.....लिफ्ट से निकल कर हम सब नोखा के सामने पहुंचे जो कि अपनी भैंसा गाड़ी साथ ही लेकर आया था.....नोखा ने हम सब को देखते ही कहा.....
"" साब पुजारी जी ने सिर्फ माता जी और आपकी छोटी बहन को मिलने बुलाया है......आप लोग यही रुकिये में माताजी ओर बहन को पुजारी जी से मिलवा कर सकुशल आपके पास ले आऊंगा.....""
भला में ऐसे कैसे अपनी मां और मेरी जान से प्यारी बहन को ऐसी जगह अकेले जाने दे सकता था जिसके बारे में मुझे जरा भी जानकारी न हो ना में इस जगह को अच्छे से जानता था और ना ही यहां के लोगो को.....भला कैसे में इन अजनबी क़बीले वालों और यकीन कर सकता था इसकिये नोखा को मैंने अपना जवाब सुनाया. ...
"" ठीक है नोखा हम पुजारी जी से नही मिलेंगे लेकिन तुम्हारे साथ तुम्हारे क़बीले तक तो चल ही सकते हैं.....इसमें न तुम्हे मिले आदेश की अवमानना होगी और ना ही मेरे दिल में मां और बहन को अकेले अनजान जगह भेजने का खोफ....""
नोखा ने सहमति में अपना सर हिलाया और फिर मैंने सहारा देकर मां को गाड़ी में बिठाया नेहा ओर प्रिया मां की अगल बगल बैठ गयी जबकि मैं ओर नोखा पैदल ही जंगल के उस वीरान रास्ते पर आगे बढ़ गए.....
लगभग आधे घण्टे बाद मुझे मशालों की रोशनी दिखाई देने लगी थी और कुछ ही देर बाद भैंसा गाड़ी क़बीले के बीचों बीच खड़ी हुई थी.....
गाड़ी को वहां आया देख नोखा की मां झोपड़ी से बाहर निकली और भैंसे की लगाम अपने हाथों में लेकर नोखा से कुछ कहने लगी जिसे नोखा बड़े ध्यान से सुन रहा था...
अपनी मां की बात सुनकर नोखा हमारी तरफ पलटा ओर इस दरम्यान मां नेहा ओर प्रिया उस गाड़ी से नीचे उतर चुके थे....
"" साब....आप दोनों उस झोपड़ी के सामने जल रही आग के समीप बैठ जाइए.... मेरी माँ आप लोगो के लिए कावा बना रही है.....जब त्तक आप कावा खत्म करेंगे में माँ जी और बहन को पुजारी जी से मिलवा कर ले आता हूँ.....""
अब वक्त ऐसा था कि मुझे नोखा की बात माननी ही पड़ेगी मैंने सवालियां निगाह से मां की तरफ देखा तो उन्होंने कहा....
"" मेरी और प्रिया की फ़िक्र मत कर बेटा..... मुझे यकीन है जिस काम से आज मैं यहां आई हूं वह जरूर पूरा होगा.....तुम दोनों नोखा की बात मानकर वहां हमारा इन्तेजार करो जब तक हम पुजारी जी से मिलकर आते है....""
अब मेरे पास और कोई रास्ता नही था इसलिए में बस मां और प्रिया को नोखा के पीछे पीछे जाता हुआ ही देखता रहा.....
मुझे इस तरह निराश में डूबा देख नेहा ने मुझ से कहा.....
""राज ... तुम फिक्र मत करो भले से हम इन लोगो को जानते नही लेकिन मेरा दिल कह रहा है कि ये लोग हमे किसी तरह का नुकसान नही पहुचाएंगे.....अब चलो नोखा की मां हमे पुकार रही है....""
उधर सुमन और प्रिया नोखा के पीछे पीछे क़बीले की सरहद से बाहर निकल चुके थे......
कुछ देर रास्ता तय करने के बाद नोखा ने सुमन ओर प्रिया को एक गुफा के बाहर छोड़ते हुए ये कहा.....
"" मां जी पुजारी बाबा अंदर आप दोनों का इंतजार कर रहे है.....में यही बाहर ही हूँ अगर मेरी कोई जरूरत महसूस तो बिना कुछ विचार किये आप मुझे पुकार लेना मैं उसी वक़्त चला आऊंगा....""
सुमन ने सहमति में अपना सर हिलाया ओर प्रिया का हाथ पकड़े गुफा के अंदर बढ़ गयी.....
गुफा काफी बड़ी थी और तकरीबन हर दस फ़ीट की दूरी पर एक मशाल रोशनी के लिए लगी हुई थी .....मशाल की रोशनी ओर साफ सुथरी गुफा ने काफी हद्द तक प्रिया के जहन से भी ये डर हटा दिया था कि यहां किसी तरह की गड़बड़ी होने की कोई गुंजाइश है ....
5 मिनट लगातार चलते रहने के बाद जब गुफा खत्म हुई तो वह नज़ारा देखने लायक था......
एक सुंदर झील जिसका पानी इतना साफ की तले में तैरती रंग बिरंगी मछलियां भी बिल्कुल साफ नजर आ रही थी.... झील के आस पास की भूमि पर हरे रंग की घास जहां विभिन्न प्रजाति के जीव अपनी क्रीड़ाओं में मग्न थे....हिरण , भेड़िये , जंगली कुत्ते , खरगोश , भालू यहां तक कि एक जोड़ा सिंह का भी वहां अपने नन्हे शावकों के साथ क्रीड़ा में मग्न था विभिन्न तरह के सरीसृप जैसे अजगर , सर्प , बड़ी छिपकलियां ( कोमोडो ड्रैगन ) , मगरमच्छ एवं घड़ियाल भी झील के उस तट के समीप ही आराम करते नज़र आ रहे थे.....
झील के बीचों बीच उसी तरह का पेड़ जो कि क़बीले के मध्य स्थित था जिसकी शाखाओ पर रक्त वर्ण की पत्तियां एवं अतिसुन्दर फलों के गुच्छे इस तरह विधमान थे जैसे ये कोई आम वृक्ष न हो कर पेड़ों का राजा हो ....
आसमान में रंग बिरंगे जुगनुओं का प्रकाश इस कदर फैला हुआ था जैसे प्रकृति ने अपने सभी रंग उन जुगनुओं को दे दिए हों.....
अभी प्रिया ओर सुमन प्रकृति के इस अदभुत नज़ारे को अपनी आंखों मै भर ही रहे थे कि पुजारी की आवाज ने उन दोनों का ध्यान भंग किया....
"" अद्भुत नजारा है ना पुत्री , बाहरी दुनिया मे ये सारे जीव एक दूसरे के किसी न किसी प्रकार से दुश्मन है लेकिन यहां प्रकृति की गोद में आते ही ये सभी एक संतान की तरह अपनी मां प्रकृति की तरह ही निश्छल हो जाते है.....प्रकृति अपने बच्चों में कभी भेद नही करती और न ही वो रहम करती है.... अगर पुत्र सक्षम हो तो प्रकृति उसे और भी ज्यादा सक्षम बनाने में लग जाती है और यदि पुत्र सक्षम नही हो तब भी वह उसे संघर्ष करना सीखाती है , प्रकृति के हिसाब से जो संघर्ष करना सीख लेता है वह प्रकृति का प्रिय भी हो जाता है.....ये जल ये हवा ये नभ सब प्रकृति ही तो है जो कभी किसी में भेद नही करती .....मेरे कहने का अर्थ तुम समझ पा रही हो बेटी ...??
पुजारी की आवाज की दिशा में जैसे ही सुमन और प्रिया ने देखा वो दोनों भौचक्का होने से खुद को रोक नही पाई....
पुजारी एक शिला पर अपने दोनों पैर लपेट कर बैठे हुए थे....उनके बिल्कुल पास एक मयूर अपने सारे पंख फैलाए इस तरह खड़ा था जैसे राजा के दरबार में पंखा झलने वाले कर्मचारी.....
प्रिया मूक हो कर उस दृश्य को देखती रही जबकि सुमन तेज़ी से भागकर पुजारी के पैरों मैं गिर गयी.....
"" मुझ में इतना ज्ञान नही पुजारी जी.....में प्रकृति की तरह अपने बच्चों के लिए कठोर नही हो सकती.....प्रकृति मेरी भी मां है तो कैसे वह मुझ दुखियारी को अपने बच्चों से अलग कर सकती है......कुछ करिए पुजारी जी मेरे राज को बचाइए....अगर उसे कुछ हो गया तो मैं यहीं इसी पत्थर पर अपना सर पटक पटक के जान दे दूंगी .....मेरे बच्चे को बचा लो बाबा मेरे बच्चे को बचा लो .....""
प्रिया हतप्रभ थी कि पुजारी उन लोगो की भाषा में किस तरह बात कर रहे थे और उसे ये सुनकर और भी तेज झटका लगा कि उसकी मां उसके भाई को बचाने के लिए पुजारी से गुहार लगा रही थी.....
अभी प्रिया ये सब सोच ही रही थी कि पुजारी की आवाज ने फिर से उसे विचारों के झंझावात से बाहर निकाला....
"" पुत्री में कौन होता हूँ तेरे पुत्र के प्राण बचाने वाला.....तेरे पुत्र की की जान अगर इस दुनियां मैं कोई बचा सकता है तो वह सिर्फ तू है......याद कर वह दिन जब राज और उसका जुड़वा तेरे गर्भ में पल रहा था.....क्या हुआ था उस दिन.....क्या इशारे मिले थे तुझे जब तू अपने पति के साथ हिमालय की ऊंचाई पर थी....""
पुजारी की बात सुनकर प्रिया का मुहँ खुला का खुला राह गया वह इस बात की कल्पना भी नही कर पा रही थी कि उसकी मां हिमालय कभी गयी भी होगी.....लेकिन सुमन ने अपने आंसू साफ करते हुए कहा.....
"" हां बाबा सब याद है मुझे.....मेरे पति एक खोजकर्ता थे.....वह विज्ञान के लिए प्रकृति की दुर्लभ चीजों की खोज करने अक्सर बाहर जाया करते थे , उस दिन उन्हें हिमालय के लिए निकलना था ओर उस वक़्त में तीन महीने के गर्भ से थी.........
कहानी का अगला अपडेट जल्दी ही आप लोगो के सामने होगा......दोस्तों ये एक नार्मल सेक्स स्टोरी न होकर बस एक कहानी है....सेक्स, अडवेंचर , सस्पेंस अगर कहानी के साथ चले तभी मजा आता है कहानी को जीने में.....अतएव आप सब से अनुरोध है की कहानी के साथ ऐसे ही बने रहें अपडेट देरी से जरूर आते हैं लेकिन आते जरूर है....कहानी पर अपना प्रेम ऐसे ही बनाए रखना क्योंकि अगला अपडेट और भी ज्यादा खास होने वाला है....या कुछ यु कहे तो जो आप अभी तक इस कहानी में ढूंढ रहे थे उसकी शुरुवात होने वाली है.....दोस्तो कमैंट्स काफी जरूरी होते है कहानी को रुचिकर बनाये रखने के लिए इसलिए कहानी को लेकर किसी भी तरह के सवाल या सुझाब आपके दिल में हो तो जरूर पूछे....जल्दी ही नए अपडेट के साथ आता हूं....।
Bhai, aap ne sahi kha ke kahani ki jarorat ke hisabse sex aaye to Bariya mein bhi is ka samarthan karta Ho sex for the sake of sex mein majja khanik hota hai.15......
इस वक़्त में नेहा और प्रिया मां को घेरे उनके पलंग के इर्द गिर्द बैठे थे.....मां लगातार अपने आंसू गिराए जा रही थी जिसे देख हम सभी काफी डरे हुए थे .....
प्रिया - मां आखिर हुआ क्या है ??? आप क्यों इस तरह से लगातार रोये जा रही हो.....??
नेहा - हां माँ जी प्लीज कुछ तो बोलिये....देखो ना आपके इस तरह रोने से सबका दिल बैठे जा रहा है....प्लीज कुछ बोलिये माँ जी...।
में थोड़ा सरक के मां के पास आ गया और उन्हें अपनी बाहों मैं भरते हुए कहने लगता हूँ.....
"" क्या बात है माँ ...?? आप इस तरह परेशान रहोगी तो हम सब को कौन संभालेगा.....एक आप ही तो है जिसने पापा के जाने के बाद हम सब को होंसला दिया था .....क्या किसी पुरानी याद ने आपको डरा दिया या इस द्वीप पर आपको अच्छा नही लग रहा ?? ""
मां इस वक़्त मुझ से किसी अमर बेल की तरह लिपटी हुई थी उनके आंसुओ से मेरा कंधा बुरी तरह से भीग चुका था.....पापा के जाने के बाद हम लोगो को संभालते संभालते वो कब डिप्रैशन की चपेट मैं आ गयी ये हमे भी काफी ज्यादा देर बाद पता चला था.....उनके उल जुलूल सवाल ये साफ दर्शाते थे कि वह किस कदर डिप्रैशन मैं खो चुकी है....
अचानक सुबकते सुबकते मां ने कहा....
"" बेटा मुझे कबीले के पुजारी के पास ले चल मुझे उनसे कुछ जरुरी बात करनी है ।""
मां की बात सुनकर मुझे एक झटका लगा ....आखिर मां पुजारी से क्यों मिलना चाहती है वो भी इस वक़्त.....मां का पुजारी से मिलने की बात कहना इस बात का घोतक था कि जरूर कोई न कोई ऐसी बात है जो मां हम सबसे छुपा रही हैं....
"" मां लेकिन इस वक़्त देखो कितना अंधेरा हो रहा है....क्या ये वक़्त सही है पुजारी जी से मिलने के लिए....आप खुद ही सोचो भला पुजारी क्यों हम लोगो से मिलना चाहेगा वो भी इस वक़्त...??""
मेरी बात सुनकर माँ का रोना अचानक से ओर बढ़ गया और वो रोते हुए कहने लगी....
"" मुझे अभी मिलना है पुजारी जी से.....अगर तुम सब मेरा इतना सा काम नही कर सकते तो मुझे अकेली छोड़ के चले जाओ अपने अपने कमरे में.....मैं ये समझ लुंगी की मेरी बात की किसी को परवाह नही है...""
इस वक़्त मैं खुद को एक दोराहे पर खड़ा महसूस कर रहा था.....अगर मां की बात मान भी लू तो क्या गारंटी है कि पुजारी हम लोगो से मिलेगा ही या अगर बात नही मानता तो हमेशा के लिए एक ऐसा बेटा बन जाऊंगा जिसने अपनी मां की छोटी सी मुराद पूरी नही करी.....
"" ठीक है माँ जैसा आप चाहे.....लेकिन इस जंगल में हम क़बीले तक जाने का रास्ता कैसे पता लगाएंगे.....आपकी तबियत वेसे ही खराब है ओर ज्यादा खराब हो जाएगी अगर आप इतनी दूर पैदल चलोगी तो ...""
मां ने मेरी बात का कोई जवाब नही दिया और बस सर झुकाए रोती रही....
तभी रुचि की आवाज इतनी देर में पहली बार गूंजी.....
"" राज अगर तुम कहो तो मैं नोखा से संपर्क करने की कोशिश करूँ..... उसके पास एक रेडियो हमेशा रहता है जिस पर उसे किसी के आने की सूचना दी जाती है....अगर आप कहें तो मैं उसे बुलवा लूं...""
रुचि ने एक अच्छे दोस्त होने का फर्ज पूरी तरह से निभाया.....मैंने रुचि को निर्देश दिया कि वह नोखा से संपर्क स्थापित करे.....
कुछ मिनटों की शांति के बाद रुचि का स्वर फिर से गूँज उठा.....
"" मेरी बात हो गयी है नोखा से.....वह कुछ ही देर में पहुचने वाला है.....मां जी आप चिंता मत करिए आपके मन मे जो चल रहा है मैं वह भली भांति जानती हूं.....सब कुछ ठीक होगा आप भरोसा रखिये ....""
तकरीबन 20 मिनट बाद रुचि ने हमे अवगत करवाया की ट्री हॉउस के बाहर नोखा हमारा इन्तेजार कर रहा है , इसलिए मैंने भी देर न करते हुए मां को सहारा देकर बिस्तर से उठाया और चल पड़ा बाहर की तरफ.....तभी रुचि की आवाज गुंजी....
"" राज वहां ड्रावर में एक स्मार्ट वॉच पड़ी है जिस से तुम मुझ से बाहर रह कर भी संपर्क कर सकते हो.....मेरी सीमा इसी जगह तक है और अगर तुम वह स्मार्ट वॉच पहनते हो तो मैं बाहर भी तुम्हारी कोई न कोई मदद जरूर कर पाऊंगी ""
मैं इस बात से हैरान था कि रुचि मेरी मदद करने का कोई भी मौका नही छोड़ना चाहती थी इसलिए मैंने प्रिया को ड्रावर में से वह स्मार्ट वॉच निकाल कर लाने को कहा और वह तुरंत मेरे पास ले भी आई....
फुर्ती के साथ मैंने वह वॉच अपनी कलाई पर बांधी और मां को सहारा देते हुए बाहर लगी लिफ्ट तक ले आया
इस वक़्त प्रिया और नेहा भी मेरे पीछे ही थी और मां की दशा देख वह भी बुरी तरह से घबराई प्रतीत हो रही थी.....लिफ्ट से निकल कर हम सब नोखा के सामने पहुंचे जो कि अपनी भैंसा गाड़ी साथ ही लेकर आया था.....नोखा ने हम सब को देखते ही कहा.....
"" साब पुजारी जी ने सिर्फ माता जी और आपकी छोटी बहन को मिलने बुलाया है......आप लोग यही रुकिये में माताजी ओर बहन को पुजारी जी से मिलवा कर सकुशल आपके पास ले आऊंगा.....""
भला में ऐसे कैसे अपनी मां और मेरी जान से प्यारी बहन को ऐसी जगह अकेले जाने दे सकता था जिसके बारे में मुझे जरा भी जानकारी न हो ना में इस जगह को अच्छे से जानता था और ना ही यहां के लोगो को.....भला कैसे में इन अजनबी क़बीले वालों और यकीन कर सकता था इसकिये नोखा को मैंने अपना जवाब सुनाया. ...
"" ठीक है नोखा हम पुजारी जी से नही मिलेंगे लेकिन तुम्हारे साथ तुम्हारे क़बीले तक तो चल ही सकते हैं.....इसमें न तुम्हे मिले आदेश की अवमानना होगी और ना ही मेरे दिल में मां और बहन को अकेले अनजान जगह भेजने का खोफ....""
नोखा ने सहमति में अपना सर हिलाया और फिर मैंने सहारा देकर मां को गाड़ी में बिठाया नेहा ओर प्रिया मां की अगल बगल बैठ गयी जबकि मैं ओर नोखा पैदल ही जंगल के उस वीरान रास्ते पर आगे बढ़ गए.....
लगभग आधे घण्टे बाद मुझे मशालों की रोशनी दिखाई देने लगी थी और कुछ ही देर बाद भैंसा गाड़ी क़बीले के बीचों बीच खड़ी हुई थी.....
गाड़ी को वहां आया देख नोखा की मां झोपड़ी से बाहर निकली और भैंसे की लगाम अपने हाथों में लेकर नोखा से कुछ कहने लगी जिसे नोखा बड़े ध्यान से सुन रहा था...
अपनी मां की बात सुनकर नोखा हमारी तरफ पलटा ओर इस दरम्यान मां नेहा ओर प्रिया उस गाड़ी से नीचे उतर चुके थे....
"" साब....आप दोनों उस झोपड़ी के सामने जल रही आग के समीप बैठ जाइए.... मेरी माँ आप लोगो के लिए कावा बना रही है.....जब त्तक आप कावा खत्म करेंगे में माँ जी और बहन को पुजारी जी से मिलवा कर ले आता हूँ.....""
अब वक्त ऐसा था कि मुझे नोखा की बात माननी ही पड़ेगी मैंने सवालियां निगाह से मां की तरफ देखा तो उन्होंने कहा....
"" मेरी और प्रिया की फ़िक्र मत कर बेटा..... मुझे यकीन है जिस काम से आज मैं यहां आई हूं वह जरूर पूरा होगा.....तुम दोनों नोखा की बात मानकर वहां हमारा इन्तेजार करो जब तक हम पुजारी जी से मिलकर आते है....""
अब मेरे पास और कोई रास्ता नही था इसलिए में बस मां और प्रिया को नोखा के पीछे पीछे जाता हुआ ही देखता रहा.....
मुझे इस तरह निराश में डूबा देख नेहा ने मुझ से कहा.....
""राज ... तुम फिक्र मत करो भले से हम इन लोगो को जानते नही लेकिन मेरा दिल कह रहा है कि ये लोग हमे किसी तरह का नुकसान नही पहुचाएंगे.....अब चलो नोखा की मां हमे पुकार रही है....""
उधर सुमन और प्रिया नोखा के पीछे पीछे क़बीले की सरहद से बाहर निकल चुके थे......
कुछ देर रास्ता तय करने के बाद नोखा ने सुमन ओर प्रिया को एक गुफा के बाहर छोड़ते हुए ये कहा.....
"" मां जी पुजारी बाबा अंदर आप दोनों का इंतजार कर रहे है.....में यही बाहर ही हूँ अगर मेरी कोई जरूरत महसूस तो बिना कुछ विचार किये आप मुझे पुकार लेना मैं उसी वक़्त चला आऊंगा....""
सुमन ने सहमति में अपना सर हिलाया ओर प्रिया का हाथ पकड़े गुफा के अंदर बढ़ गयी.....
गुफा काफी बड़ी थी और तकरीबन हर दस फ़ीट की दूरी पर एक मशाल रोशनी के लिए लगी हुई थी .....मशाल की रोशनी ओर साफ सुथरी गुफा ने काफी हद्द तक प्रिया के जहन से भी ये डर हटा दिया था कि यहां किसी तरह की गड़बड़ी होने की कोई गुंजाइश है ....
5 मिनट लगातार चलते रहने के बाद जब गुफा खत्म हुई तो वह नज़ारा देखने लायक था......
एक सुंदर झील जिसका पानी इतना साफ की तले में तैरती रंग बिरंगी मछलियां भी बिल्कुल साफ नजर आ रही थी.... झील के आस पास की भूमि पर हरे रंग की घास जहां विभिन्न प्रजाति के जीव अपनी क्रीड़ाओं में मग्न थे....हिरण , भेड़िये , जंगली कुत्ते , खरगोश , भालू यहां तक कि एक जोड़ा सिंह का भी वहां अपने नन्हे शावकों के साथ क्रीड़ा में मग्न था विभिन्न तरह के सरीसृप जैसे अजगर , सर्प , बड़ी छिपकलियां ( कोमोडो ड्रैगन ) , मगरमच्छ एवं घड़ियाल भी झील के उस तट के समीप ही आराम करते नज़र आ रहे थे.....
झील के बीचों बीच उसी तरह का पेड़ जो कि क़बीले के मध्य स्थित था जिसकी शाखाओ पर रक्त वर्ण की पत्तियां एवं अतिसुन्दर फलों के गुच्छे इस तरह विधमान थे जैसे ये कोई आम वृक्ष न हो कर पेड़ों का राजा हो ....
आसमान में रंग बिरंगे जुगनुओं का प्रकाश इस कदर फैला हुआ था जैसे प्रकृति ने अपने सभी रंग उन जुगनुओं को दे दिए हों.....
अभी प्रिया ओर सुमन प्रकृति के इस अदभुत नज़ारे को अपनी आंखों मै भर ही रहे थे कि पुजारी की आवाज ने उन दोनों का ध्यान भंग किया....
"" अद्भुत नजारा है ना पुत्री , बाहरी दुनिया मे ये सारे जीव एक दूसरे के किसी न किसी प्रकार से दुश्मन है लेकिन यहां प्रकृति की गोद में आते ही ये सभी एक संतान की तरह अपनी मां प्रकृति की तरह ही निश्छल हो जाते है.....प्रकृति अपने बच्चों में कभी भेद नही करती और न ही वो रहम करती है.... अगर पुत्र सक्षम हो तो प्रकृति उसे और भी ज्यादा सक्षम बनाने में लग जाती है और यदि पुत्र सक्षम नही हो तब भी वह उसे संघर्ष करना सीखाती है , प्रकृति के हिसाब से जो संघर्ष करना सीख लेता है वह प्रकृति का प्रिय भी हो जाता है.....ये जल ये हवा ये नभ सब प्रकृति ही तो है जो कभी किसी में भेद नही करती .....मेरे कहने का अर्थ तुम समझ पा रही हो बेटी ...??
पुजारी की आवाज की दिशा में जैसे ही सुमन और प्रिया ने देखा वो दोनों भौचक्का होने से खुद को रोक नही पाई....
पुजारी एक शिला पर अपने दोनों पैर लपेट कर बैठे हुए थे....उनके बिल्कुल पास एक मयूर अपने सारे पंख फैलाए इस तरह खड़ा था जैसे राजा के दरबार में पंखा झलने वाले कर्मचारी.....
प्रिया मूक हो कर उस दृश्य को देखती रही जबकि सुमन तेज़ी से भागकर पुजारी के पैरों मैं गिर गयी.....
"" मुझ में इतना ज्ञान नही पुजारी जी.....में प्रकृति की तरह अपने बच्चों के लिए कठोर नही हो सकती.....प्रकृति मेरी भी मां है तो कैसे वह मुझ दुखियारी को अपने बच्चों से अलग कर सकती है......कुछ करिए पुजारी जी मेरे राज को बचाइए....अगर उसे कुछ हो गया तो मैं यहीं इसी पत्थर पर अपना सर पटक पटक के जान दे दूंगी .....मेरे बच्चे को बचा लो बाबा मेरे बच्चे को बचा लो .....""
प्रिया हतप्रभ थी कि पुजारी उन लोगो की भाषा में किस तरह बात कर रहे थे और उसे ये सुनकर और भी तेज झटका लगा कि उसकी मां उसके भाई को बचाने के लिए पुजारी से गुहार लगा रही थी.....
अभी प्रिया ये सब सोच ही रही थी कि पुजारी की आवाज ने फिर से उसे विचारों के झंझावात से बाहर निकाला....
"" पुत्री में कौन होता हूँ तेरे पुत्र के प्राण बचाने वाला.....तेरे पुत्र की की जान अगर इस दुनियां मैं कोई बचा सकता है तो वह सिर्फ तू है......याद कर वह दिन जब राज और उसका जुड़वा तेरे गर्भ में पल रहा था.....क्या हुआ था उस दिन.....क्या इशारे मिले थे तुझे जब तू अपने पति के साथ हिमालय की ऊंचाई पर थी....""
पुजारी की बात सुनकर प्रिया का मुहँ खुला का खुला राह गया वह इस बात की कल्पना भी नही कर पा रही थी कि उसकी मां हिमालय कभी गयी भी होगी.....लेकिन सुमन ने अपने आंसू साफ करते हुए कहा.....
"" हां बाबा सब याद है मुझे.....मेरे पति एक खोजकर्ता थे.....वह विज्ञान के लिए प्रकृति की दुर्लभ चीजों की खोज करने अक्सर बाहर जाया करते थे , उस दिन उन्हें हिमालय के लिए निकलना था ओर उस वक़्त में तीन महीने के गर्भ से थी.........
कहानी का अगला अपडेट जल्दी ही आप लोगो के सामने होगा......दोस्तों ये एक नार्मल सेक्स स्टोरी न होकर बस एक कहानी है....सेक्स, अडवेंचर , सस्पेंस अगर कहानी के साथ चले तभी मजा आता है कहानी को जीने में.....अतएव आप सब से अनुरोध है की कहानी के साथ ऐसे ही बने रहें अपडेट देरी से जरूर आते हैं लेकिन आते जरूर है....कहानी पर अपना प्रेम ऐसे ही बनाए रखना क्योंकि अगला अपडेट और भी ज्यादा खास होने वाला है....या कुछ यु कहे तो जो आप अभी तक इस कहानी में ढूंढ रहे थे उसकी शुरुवात होने वाली है.....दोस्तो कमैंट्स काफी जरूरी होते है कहानी को रुचिकर बनाये रखने के लिए इसलिए कहानी को लेकर किसी भी तरह के सवाल या सुझाब आपके दिल में हो तो जरूर पूछे....जल्दी ही नए अपडेट के साथ आता हूं....।
gazab ki update mitr15......
इस वक़्त में नेहा और प्रिया मां को घेरे उनके पलंग के इर्द गिर्द बैठे थे.....मां लगातार अपने आंसू गिराए जा रही थी जिसे देख हम सभी काफी डरे हुए थे .....
प्रिया - मां आखिर हुआ क्या है ??? आप क्यों इस तरह से लगातार रोये जा रही हो.....??
नेहा - हां माँ जी प्लीज कुछ तो बोलिये....देखो ना आपके इस तरह रोने से सबका दिल बैठे जा रहा है....प्लीज कुछ बोलिये माँ जी...।
में थोड़ा सरक के मां के पास आ गया और उन्हें अपनी बाहों मैं भरते हुए कहने लगता हूँ.....
"" क्या बात है माँ ...?? आप इस तरह परेशान रहोगी तो हम सब को कौन संभालेगा.....एक आप ही तो है जिसने पापा के जाने के बाद हम सब को होंसला दिया था .....क्या किसी पुरानी याद ने आपको डरा दिया या इस द्वीप पर आपको अच्छा नही लग रहा ?? ""
मां इस वक़्त मुझ से किसी अमर बेल की तरह लिपटी हुई थी उनके आंसुओ से मेरा कंधा बुरी तरह से भीग चुका था.....पापा के जाने के बाद हम लोगो को संभालते संभालते वो कब डिप्रैशन की चपेट मैं आ गयी ये हमे भी काफी ज्यादा देर बाद पता चला था.....उनके उल जुलूल सवाल ये साफ दर्शाते थे कि वह किस कदर डिप्रैशन मैं खो चुकी है....
अचानक सुबकते सुबकते मां ने कहा....
"" बेटा मुझे कबीले के पुजारी के पास ले चल मुझे उनसे कुछ जरुरी बात करनी है ।""
मां की बात सुनकर मुझे एक झटका लगा ....आखिर मां पुजारी से क्यों मिलना चाहती है वो भी इस वक़्त.....मां का पुजारी से मिलने की बात कहना इस बात का घोतक था कि जरूर कोई न कोई ऐसी बात है जो मां हम सबसे छुपा रही हैं....
"" मां लेकिन इस वक़्त देखो कितना अंधेरा हो रहा है....क्या ये वक़्त सही है पुजारी जी से मिलने के लिए....आप खुद ही सोचो भला पुजारी क्यों हम लोगो से मिलना चाहेगा वो भी इस वक़्त...??""
मेरी बात सुनकर माँ का रोना अचानक से ओर बढ़ गया और वो रोते हुए कहने लगी....
"" मुझे अभी मिलना है पुजारी जी से.....अगर तुम सब मेरा इतना सा काम नही कर सकते तो मुझे अकेली छोड़ के चले जाओ अपने अपने कमरे में.....मैं ये समझ लुंगी की मेरी बात की किसी को परवाह नही है...""
इस वक़्त मैं खुद को एक दोराहे पर खड़ा महसूस कर रहा था.....अगर मां की बात मान भी लू तो क्या गारंटी है कि पुजारी हम लोगो से मिलेगा ही या अगर बात नही मानता तो हमेशा के लिए एक ऐसा बेटा बन जाऊंगा जिसने अपनी मां की छोटी सी मुराद पूरी नही करी.....
"" ठीक है माँ जैसा आप चाहे.....लेकिन इस जंगल में हम क़बीले तक जाने का रास्ता कैसे पता लगाएंगे.....आपकी तबियत वेसे ही खराब है ओर ज्यादा खराब हो जाएगी अगर आप इतनी दूर पैदल चलोगी तो ...""
मां ने मेरी बात का कोई जवाब नही दिया और बस सर झुकाए रोती रही....
तभी रुचि की आवाज इतनी देर में पहली बार गूंजी.....
"" राज अगर तुम कहो तो मैं नोखा से संपर्क करने की कोशिश करूँ..... उसके पास एक रेडियो हमेशा रहता है जिस पर उसे किसी के आने की सूचना दी जाती है....अगर आप कहें तो मैं उसे बुलवा लूं...""
रुचि ने एक अच्छे दोस्त होने का फर्ज पूरी तरह से निभाया.....मैंने रुचि को निर्देश दिया कि वह नोखा से संपर्क स्थापित करे.....
कुछ मिनटों की शांति के बाद रुचि का स्वर फिर से गूँज उठा.....
"" मेरी बात हो गयी है नोखा से.....वह कुछ ही देर में पहुचने वाला है.....मां जी आप चिंता मत करिए आपके मन मे जो चल रहा है मैं वह भली भांति जानती हूं.....सब कुछ ठीक होगा आप भरोसा रखिये ....""
तकरीबन 20 मिनट बाद रुचि ने हमे अवगत करवाया की ट्री हॉउस के बाहर नोखा हमारा इन्तेजार कर रहा है , इसलिए मैंने भी देर न करते हुए मां को सहारा देकर बिस्तर से उठाया और चल पड़ा बाहर की तरफ.....तभी रुचि की आवाज गुंजी....
"" राज वहां ड्रावर में एक स्मार्ट वॉच पड़ी है जिस से तुम मुझ से बाहर रह कर भी संपर्क कर सकते हो.....मेरी सीमा इसी जगह तक है और अगर तुम वह स्मार्ट वॉच पहनते हो तो मैं बाहर भी तुम्हारी कोई न कोई मदद जरूर कर पाऊंगी ""
मैं इस बात से हैरान था कि रुचि मेरी मदद करने का कोई भी मौका नही छोड़ना चाहती थी इसलिए मैंने प्रिया को ड्रावर में से वह स्मार्ट वॉच निकाल कर लाने को कहा और वह तुरंत मेरे पास ले भी आई....
फुर्ती के साथ मैंने वह वॉच अपनी कलाई पर बांधी और मां को सहारा देते हुए बाहर लगी लिफ्ट तक ले आया
इस वक़्त प्रिया और नेहा भी मेरे पीछे ही थी और मां की दशा देख वह भी बुरी तरह से घबराई प्रतीत हो रही थी.....लिफ्ट से निकल कर हम सब नोखा के सामने पहुंचे जो कि अपनी भैंसा गाड़ी साथ ही लेकर आया था.....नोखा ने हम सब को देखते ही कहा.....
"" साब पुजारी जी ने सिर्फ माता जी और आपकी छोटी बहन को मिलने बुलाया है......आप लोग यही रुकिये में माताजी ओर बहन को पुजारी जी से मिलवा कर सकुशल आपके पास ले आऊंगा.....""
भला में ऐसे कैसे अपनी मां और मेरी जान से प्यारी बहन को ऐसी जगह अकेले जाने दे सकता था जिसके बारे में मुझे जरा भी जानकारी न हो ना में इस जगह को अच्छे से जानता था और ना ही यहां के लोगो को.....भला कैसे में इन अजनबी क़बीले वालों और यकीन कर सकता था इसकिये नोखा को मैंने अपना जवाब सुनाया. ...
"" ठीक है नोखा हम पुजारी जी से नही मिलेंगे लेकिन तुम्हारे साथ तुम्हारे क़बीले तक तो चल ही सकते हैं.....इसमें न तुम्हे मिले आदेश की अवमानना होगी और ना ही मेरे दिल में मां और बहन को अकेले अनजान जगह भेजने का खोफ....""
नोखा ने सहमति में अपना सर हिलाया और फिर मैंने सहारा देकर मां को गाड़ी में बिठाया नेहा ओर प्रिया मां की अगल बगल बैठ गयी जबकि मैं ओर नोखा पैदल ही जंगल के उस वीरान रास्ते पर आगे बढ़ गए.....
लगभग आधे घण्टे बाद मुझे मशालों की रोशनी दिखाई देने लगी थी और कुछ ही देर बाद भैंसा गाड़ी क़बीले के बीचों बीच खड़ी हुई थी.....
गाड़ी को वहां आया देख नोखा की मां झोपड़ी से बाहर निकली और भैंसे की लगाम अपने हाथों में लेकर नोखा से कुछ कहने लगी जिसे नोखा बड़े ध्यान से सुन रहा था...
अपनी मां की बात सुनकर नोखा हमारी तरफ पलटा ओर इस दरम्यान मां नेहा ओर प्रिया उस गाड़ी से नीचे उतर चुके थे....
"" साब....आप दोनों उस झोपड़ी के सामने जल रही आग के समीप बैठ जाइए.... मेरी माँ आप लोगो के लिए कावा बना रही है.....जब त्तक आप कावा खत्म करेंगे में माँ जी और बहन को पुजारी जी से मिलवा कर ले आता हूँ.....""
अब वक्त ऐसा था कि मुझे नोखा की बात माननी ही पड़ेगी मैंने सवालियां निगाह से मां की तरफ देखा तो उन्होंने कहा....
"" मेरी और प्रिया की फ़िक्र मत कर बेटा..... मुझे यकीन है जिस काम से आज मैं यहां आई हूं वह जरूर पूरा होगा.....तुम दोनों नोखा की बात मानकर वहां हमारा इन्तेजार करो जब तक हम पुजारी जी से मिलकर आते है....""
अब मेरे पास और कोई रास्ता नही था इसलिए में बस मां और प्रिया को नोखा के पीछे पीछे जाता हुआ ही देखता रहा.....
मुझे इस तरह निराश में डूबा देख नेहा ने मुझ से कहा.....
""राज ... तुम फिक्र मत करो भले से हम इन लोगो को जानते नही लेकिन मेरा दिल कह रहा है कि ये लोग हमे किसी तरह का नुकसान नही पहुचाएंगे.....अब चलो नोखा की मां हमे पुकार रही है....""
उधर सुमन और प्रिया नोखा के पीछे पीछे क़बीले की सरहद से बाहर निकल चुके थे......
कुछ देर रास्ता तय करने के बाद नोखा ने सुमन ओर प्रिया को एक गुफा के बाहर छोड़ते हुए ये कहा.....
"" मां जी पुजारी बाबा अंदर आप दोनों का इंतजार कर रहे है.....में यही बाहर ही हूँ अगर मेरी कोई जरूरत महसूस तो बिना कुछ विचार किये आप मुझे पुकार लेना मैं उसी वक़्त चला आऊंगा....""
सुमन ने सहमति में अपना सर हिलाया ओर प्रिया का हाथ पकड़े गुफा के अंदर बढ़ गयी.....
गुफा काफी बड़ी थी और तकरीबन हर दस फ़ीट की दूरी पर एक मशाल रोशनी के लिए लगी हुई थी .....मशाल की रोशनी ओर साफ सुथरी गुफा ने काफी हद्द तक प्रिया के जहन से भी ये डर हटा दिया था कि यहां किसी तरह की गड़बड़ी होने की कोई गुंजाइश है ....
5 मिनट लगातार चलते रहने के बाद जब गुफा खत्म हुई तो वह नज़ारा देखने लायक था......
एक सुंदर झील जिसका पानी इतना साफ की तले में तैरती रंग बिरंगी मछलियां भी बिल्कुल साफ नजर आ रही थी.... झील के आस पास की भूमि पर हरे रंग की घास जहां विभिन्न प्रजाति के जीव अपनी क्रीड़ाओं में मग्न थे....हिरण , भेड़िये , जंगली कुत्ते , खरगोश , भालू यहां तक कि एक जोड़ा सिंह का भी वहां अपने नन्हे शावकों के साथ क्रीड़ा में मग्न था विभिन्न तरह के सरीसृप जैसे अजगर , सर्प , बड़ी छिपकलियां ( कोमोडो ड्रैगन ) , मगरमच्छ एवं घड़ियाल भी झील के उस तट के समीप ही आराम करते नज़र आ रहे थे.....
झील के बीचों बीच उसी तरह का पेड़ जो कि क़बीले के मध्य स्थित था जिसकी शाखाओ पर रक्त वर्ण की पत्तियां एवं अतिसुन्दर फलों के गुच्छे इस तरह विधमान थे जैसे ये कोई आम वृक्ष न हो कर पेड़ों का राजा हो ....
आसमान में रंग बिरंगे जुगनुओं का प्रकाश इस कदर फैला हुआ था जैसे प्रकृति ने अपने सभी रंग उन जुगनुओं को दे दिए हों.....
अभी प्रिया ओर सुमन प्रकृति के इस अदभुत नज़ारे को अपनी आंखों मै भर ही रहे थे कि पुजारी की आवाज ने उन दोनों का ध्यान भंग किया....
"" अद्भुत नजारा है ना पुत्री , बाहरी दुनिया मे ये सारे जीव एक दूसरे के किसी न किसी प्रकार से दुश्मन है लेकिन यहां प्रकृति की गोद में आते ही ये सभी एक संतान की तरह अपनी मां प्रकृति की तरह ही निश्छल हो जाते है.....प्रकृति अपने बच्चों में कभी भेद नही करती और न ही वो रहम करती है.... अगर पुत्र सक्षम हो तो प्रकृति उसे और भी ज्यादा सक्षम बनाने में लग जाती है और यदि पुत्र सक्षम नही हो तब भी वह उसे संघर्ष करना सीखाती है , प्रकृति के हिसाब से जो संघर्ष करना सीख लेता है वह प्रकृति का प्रिय भी हो जाता है.....ये जल ये हवा ये नभ सब प्रकृति ही तो है जो कभी किसी में भेद नही करती .....मेरे कहने का अर्थ तुम समझ पा रही हो बेटी ...??
पुजारी की आवाज की दिशा में जैसे ही सुमन और प्रिया ने देखा वो दोनों भौचक्का होने से खुद को रोक नही पाई....
पुजारी एक शिला पर अपने दोनों पैर लपेट कर बैठे हुए थे....उनके बिल्कुल पास एक मयूर अपने सारे पंख फैलाए इस तरह खड़ा था जैसे राजा के दरबार में पंखा झलने वाले कर्मचारी.....
प्रिया मूक हो कर उस दृश्य को देखती रही जबकि सुमन तेज़ी से भागकर पुजारी के पैरों मैं गिर गयी.....
"" मुझ में इतना ज्ञान नही पुजारी जी.....में प्रकृति की तरह अपने बच्चों के लिए कठोर नही हो सकती.....प्रकृति मेरी भी मां है तो कैसे वह मुझ दुखियारी को अपने बच्चों से अलग कर सकती है......कुछ करिए पुजारी जी मेरे राज को बचाइए....अगर उसे कुछ हो गया तो मैं यहीं इसी पत्थर पर अपना सर पटक पटक के जान दे दूंगी .....मेरे बच्चे को बचा लो बाबा मेरे बच्चे को बचा लो .....""
प्रिया हतप्रभ थी कि पुजारी उन लोगो की भाषा में किस तरह बात कर रहे थे और उसे ये सुनकर और भी तेज झटका लगा कि उसकी मां उसके भाई को बचाने के लिए पुजारी से गुहार लगा रही थी.....
अभी प्रिया ये सब सोच ही रही थी कि पुजारी की आवाज ने फिर से उसे विचारों के झंझावात से बाहर निकाला....
"" पुत्री में कौन होता हूँ तेरे पुत्र के प्राण बचाने वाला.....तेरे पुत्र की की जान अगर इस दुनियां मैं कोई बचा सकता है तो वह सिर्फ तू है......याद कर वह दिन जब राज और उसका जुड़वा तेरे गर्भ में पल रहा था.....क्या हुआ था उस दिन.....क्या इशारे मिले थे तुझे जब तू अपने पति के साथ हिमालय की ऊंचाई पर थी....""
पुजारी की बात सुनकर प्रिया का मुहँ खुला का खुला राह गया वह इस बात की कल्पना भी नही कर पा रही थी कि उसकी मां हिमालय कभी गयी भी होगी.....लेकिन सुमन ने अपने आंसू साफ करते हुए कहा.....
"" हां बाबा सब याद है मुझे.....मेरे पति एक खोजकर्ता थे.....वह विज्ञान के लिए प्रकृति की दुर्लभ चीजों की खोज करने अक्सर बाहर जाया करते थे , उस दिन उन्हें हिमालय के लिए निकलना था ओर उस वक़्त में तीन महीने के गर्भ से थी.........
कहानी का अगला अपडेट जल्दी ही आप लोगो के सामने होगा......दोस्तों ये एक नार्मल सेक्स स्टोरी न होकर बस एक कहानी है....सेक्स, अडवेंचर , सस्पेंस अगर कहानी के साथ चले तभी मजा आता है कहानी को जीने में.....अतएव आप सब से अनुरोध है की कहानी के साथ ऐसे ही बने रहें अपडेट देरी से जरूर आते हैं लेकिन आते जरूर है....कहानी पर अपना प्रेम ऐसे ही बनाए रखना क्योंकि अगला अपडेट और भी ज्यादा खास होने वाला है....या कुछ यु कहे तो जो आप अभी तक इस कहानी में ढूंढ रहे थे उसकी शुरुवात होने वाली है.....दोस्तो कमैंट्स काफी जरूरी होते है कहानी को रुचिकर बनाये रखने के लिए इसलिए कहानी को लेकर किसी भी तरह के सवाल या सुझाब आपके दिल में हो तो जरूर पूछे....जल्दी ही नए अपडेट के साथ आता हूं....।