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"" हां बाबा सब याद है मुझे.....मेरे पति एक खोजकर्ता थे.....वह विज्ञान के लिए प्रकृति की दुर्लभ चीजों की खोज करने अक्सर बाहर जाया करते थे , उस दिन उन्हें हिमालय के लिए निकलना था ओर उस वक़्त में तीन महीने के गर्भ से थी.........
अब आगे....
"" कॉलेज की पढ़ाई के वक़्त से ही मुझे अडवेंचर का भरपूर शौक था , इसीलिए मैंने शादी भी एक ऐसे इंसान से करी जो ऐसे रोमांच को अपनी ज़िंदगी बनाये बैठा रहा....लेकिन सुदीप ( राज के पिता ) को ऐसा लगता था जैसे मुझ से शादी करके उन्होंने कोई गलती कर दी हो....मेरी वजह से उनका रिसर्च पर आना जाना काफी कम हो गया था.....शादी के बाद वह मुझे अकसर बाहर जरूर ले जाया करते थे लेकिन सिर्फ ऐसी जगह जहां खतरा ना के बराबर हुआ करता था.....""
कुछ याद करते हुए सुमन ने दुबारा बोलना शुरू किया....
""शादी के तकरीबन दो साल बाद सुदीप को हिमालय में उगने वाले एक खास की तरह के पुष्प के बारे मे पता चला....उस वक़्त में तीन माह के गर्भ से थी और मुझे सुदीप अपने साथ ले जाना नही चाहते थे......लेकिन मेरी ज़िद्द से वह जल्दी ही मुझे ले चलने के लिए भी मान गए.....जब हम उस जगह पहुँचे तो मालूम पड़ा कि आगे जाने के लिए रास्ते पर कोई नई नदी बन गयी है जिस वजह से आगे मार्ग अवरुद्ध हो गया था और उस घाटी तक जाने का अब सिर्फ एक रास्ता था और वह पहाड़ की सीधी चढ़ाई करके ही तय किया जा सकता था....सुदीप ने मुझे फिर समझाया कि मुझे यही रुक जाना चाहिए क्योंकि आगे का सफर खतरो से भरा होगा ....लेकिन शायद मेरी ज़िद्द या मेरी बदकिसमती ही थी जो मैंने किसी तरह सुदीप को वहां ले चलने के लिए मना लिया था.....""
"" ये सब कुछ नही जानना मुझे बेटी..... मुझे जानना है कि वहां पहुंच का तुम्हारे साथ ऐसा क्या हुआ था जिसकी वजह से तुम आज मेरे सामने हो ???""
पुजारी जी की बाद सुन सुमन की आंखे एक बार फिर से आंसुओ से डबडबा गयी.....और उसने कहना शुरू किया....
"" जब हम दोनों उस घाटी मैं पहुँचे तो वहां का नज़ारा बड़ा खुशनुमा था.....हर तरफ रंग बिरंगे फूलों की चादर फैली हुई थी , मैंने अपने पूरे जीवन में उस तरह के फूल नहीं देखे थे इसलिए दिल को एक अलग तरह का सुकून मिलने लगा था.......""
सुदीप - सुमन ये फूल यहां खिले देख पाना हमारी खुशकिस्मती को दर्शाता है.....तुम्हे पता है जिस फूल को हम ढूंढने आये है वह दशकों का समय लेता है खिलने के लिए....""
सुदीप की बात सुन सुमन ख़ुशी से झूमते हुए सुदीप से लिपट जाती है और अपने सुर्ख लाल होंठों से सुदीप के होठ चूसने लगती है.....
कुछ पलों की होठ चुसाई के बाद दोनों अलग होते है और जुट जाते है उस काम में जिसके लिए वह घर से इतना दूर हिमालय की घाटियों में आए है...
इतने फूलों के बीच उस फूल को पहचान पाना किसी अनजान के लिए असंभव बात थी और सुदीप सिर्फ उस पुष्प की खूबी और रंग जानता था इसके अलावा और कुछ नहीं....इसलिए उसने सुमन से कहा....
"" सुमन ... यहां एक खास तरह का फूल होगा जिसका रंग गुलाबी और बैंगनी रंग के किनारे होंगे.....उस पुष्प की एक खास बात ये है कि पुष्प के बीचों बीच एक आकृति बनी होगी जैसे किसी राजा का ताज.....हमे उस पुष्प को ही ढूंढना है....
सुदीप की बात सुनकर सुमन ने कहा...
"" लेकिन जान यहां इतने सारे पुष्प उगे है और जैसा आपने रंग बताया है उस रंग के तो लाखों फूल खिले हुए है यहां.....इतने सारे फूलों मै से किसके बीच मै राजा का ताज बना हुआ है ये ढूंढने मै तो हमे काफी ज्यादा वक्त लग जाएगा.....""
सुदीप सुमन के कंधे पर अपना हाथ रखते हुए कहता है...
"" हमे ज्यादा फूल नहीं चाहिए.....इसलिए जितने भी फूल हम ढूंढ सकेंगे हमारी खुशकिस्मती ही होगी....""
सुदीप की बात सुनकर सुमन फूल ढूंढने के काम मै लग जाती है....काफी देर की मशक्कत के बाद सुमन को कुछ दिखाई देता है....सुदीप सुमन से काफी दूर निकल चुका था इसलिए उसने खुद ही निरीक्षण करने का फैसला लिया....
जहां सुमन अभी देख रही थी वहां कुल 5 फूल खिले हुए थे जिनके बीच मै राजा के ताज की आकृति बनी हुई थी लेकिन उन पांचों फूलों के मध्य एक फूल और खिला हुआ था जिसमें से एक अजीब तरह की सुगंध निकल रही थी....सुमन ने उन पांचों फूलों के साथ उस फूल को भी तोड़ लिया जो दिखने में पूरा का पूरा जामुनी रंग का था....
सुमन ने तोड़े हुए सभी फूलों को अपने बैग में रखा और उस विशेष जामुनी पुष्प को सूंघने लगती है....
तभी पुजारी अपनी चुप्पी तोड़ कहते है....
"" वहीं जामुनी पुष्प तेरे पुत्र के प्राण संकट में ले आया है.... उसे वंश नाशक पुष्प भी कहा जाता है....उस पुष्प के रस को अगर किसी व्यक्ति को पिला दो तो उसके खून से जुड़े सभी व्यक्तियों की मृत्यु निश्चित है, और अगर कोई उसकी खुशबू सूंघ ले तो अपने रक्त के प्रति ही आसक्त हो जाता है....लेकिन तुमने सिर्फ उसकी गंध सुंघी और जिसका असर तुम्हारे गर्भ मै पल रहे राज के भ्रूण पर पड़ा, चूंकि उस वक्त तुम्हारे गर्भ में दो शिशु पल रहे थे लेकिन दोनों मै से सिर्फ एक राज ही था जो जागृत अवस्था में था....और इसी वजह से राज के दिमाग के एक हिस्से में उस गंध का तीक्ष्ण प्रभाव पड़ा जिस वजह से उसके दिमाग के उस हिस्से में रक्त जम गया और अब उसी जमे हुए रक्त ने एक गांठ का रूप ले लिया है जिसे तुम्हारी भाषा में ट्यूमर कहते है....""
पुजारी की बात सुनकर सुमन अपना माथा पीट पीट कर रोने लगती है जबकि प्रिया सुमन को खुद से चिपकाए उसके हाथो को पकड़ने कि नाकाम कोशिश करने लगती है.....
पुजारी - बेटी घबराओ नहीं और ना ही इस तरह व्यथित हो कर स्वयं को कष्ट दो.... जो होनी है वह हो कर रहेगी तुम्हारे बेटे को बचाने को अब एक ही रास्ता है....
पुजारी की बात सुनकर सुमन बिना समय गवाए बोल उठी...
"" आप जो बोलेंगे में वो करूंगी बाबा....आप जो बोलेंगे में वो करूंगी , बस मेरे बच्चे को बचा लो...मेरे बच्चे को बचा लो ....""
पुजारी ने एक क्षण विचार किया फिर सुमन से कुछ कहना शुरू किया....
"" वही पुष्प तुम्हारे बच्चे के प्राण बचा सकता है बेटी.....तुम्हे उस पुष्प की गंध राज को सुंघानी होगी तभी राज जिएगा...""
पुजारी की बात सुन सुमन के हृदय में यकायक कई प्रश्न उमड़ पड़े और जिनमें से एक प्रश्न वह पुजारी से अपने आंसू पोंछते हुए पूछ भी लेती है....
"" बाबा वह फूल तो मुझे हिमालय की घाटियों मै मिला था इतने कम समय में भला में कैसे वह फूल यहां ला सकूंगी...??""
"" बेटी तुम्हे उस पुष्प को ढूंढने कहीं भी जाने की आवश्यकता नहीं है....वह पुष्प इस द्वीप पर भी मौजूद है यहां तक कि इस गुफा के अंदर भी वह पुष्प मौजूद है लेकिन इस गुफा के अंदर लगे किसी भी पुष्प को तोड़ना पूरी तरह से वर्जित है ,इस लिए द्वीप के दक्षिणी किनारे पर तुम्हे वह पुष्प ढूंढना चाहिए तुम्हे थोड़ी मुश्किल होगी लेकिन अगर तुम सच्चे दिल से राज को बचाना चाहोगी तो तुम्हे वह पुष्प अवश्य मिल जाएगा....""
एक क्षण रुक पुजारी ने फिर से अपनी बात कहना जारी रखा...
"" प्रिया...तुम्हे भी अपनी मां की मदद करनी होगी क्योंकि तुम्हारे बिना इस कार्य का संपन्न होना मुमकिन नहीं होगा.....अब तुम लोग अपने निवास की तरफ प्रस्थान करो क्योंकि सुबह होते ही तुम्हे उस पुष्प की खोज करनी है ""
प्रिया - पुजारी जी क्या मैं आपसे कुछ सवाल पूछ सकती हूं..??
पुजारी - जरूर बेटी...पूछो क्या जानना है तुम्हे....
प्रिया - हमे लग रहा था कि इस कबीले में सिर्फ एक नोखा ही है जो हमारी भाषा जानता है लेकिन आपकी हिंदी इतनी अच्छी है कि यकीन ही नहीं हो पा रहा की आप इस कबीले कें है...!!
पुजारी ने मुस्कुराते हुए प्रिया के सवाल का जवाब दिया.....
पुजारी - बेटी तुम चाहती तो मुझ से कुछ भी पूछ सकती थी अपने भविष्य के बारे में अपने लक्ष्य के बारे में लेकिन तुमने एक बड़ा ही सरल सवाल पूछा जो शायद तुम्हारे अंतर्मन में कब से भटक रहा था.....बेटी में सभी भाषाएं जानता हूं क्योंकि मैं अभी प्रकृति की गोद में बैठा हूं....और जो व्यक्ति प्रकृति के इतना करीब हो उसे किसी भी प्रकार की भाषा सीखने में ज्यादा समय नहीं लगेगा.....अब तुम जाओ और आराम करो क्योंकि कल तुम दोनो मां बेटी के लिए एक बड़ा दिन होने वाला है ...।।
पुजारी को प्रणाम कर सुमन और प्रिया वहां से उठ कर बाहर के लिए निकल गए जबकि नोखा की झोपडी के बाहर बैठे राज और नेहा अजब सी कश्मकश से गुजर रहे थे.....
नोखा की मां के स्तन हवा में झूल रहे थे और बार बार राज की निगाह उसी तरफ जाए जा रही थी जबकि नेहा राज को किसी दूसरी स्त्री के स्तन देखते हुए देख बुरी तरह से जल उठी थी....
तभी नोखा की मां उन दोनों के सामने आकर जमीन पर बैठ जाती है और अपने साथ लाया कावा उन दोनों को देते हुए कुछ कहती है ....
""तकास्लुह बलैहरज सर्थल नमा जी कप्र""
उसने क्या कहा ये राज और नेहा के सर के ऊपर से गया लेकिन तभी रुचि की आवाज राज के हाथ में पहनी घड़ी में से गूंज उठी....
"" ये कह रही है कि ये तुम्हे कुछ ऐसा देना चाहती है जिस से तुम्हारी शारीरिक दुर्बलता हमेशा के लिए खतम हो जाएगी , तुम किसी अश्व के समान ताकतवर हो जाओगे...क्या मैं नोखा की माताजी को आपके लिए वह वस्तु लाने के लिए कहूं...??
राज - अगर सच में ऐसा हो सकता है तो रुचि इनसे कहो की उनका आभार होगा मुझ पर !!
रुचि ने कबीले की भाषा में नोखा की मां को समझाया जिसे सुन वह अपनी जगह से उठ कर तेजी से झोपडी में घुस गई....
कुछ मिनट बात जब वह वापस लौटी तो उसके हाथ में एक चमड़े की थैली थी जो कि एक छोटे बटुए जितनी ही बड़ी थी....
उसने वह चमड़े की थैली राज के हाथ मै देते हुए कहा....
"" कंट्रोजग सडाइट जाकिवलब्लों सतियकन चमपो नाती टर्मद्रा ""
माताजी की बात सुन रुचि का स्वर पुनः उस घड़ी में से गूंजा....
"" ये कह रही है कि इस थैली में से चार पुड़िया नेहा को भी दे देना ताकि इसके शरीर में भी थोड़ी जान आए...""
नेहा ने इतना सुनते ही मेरे हाथ पर झपट्टा मार मुझ से वह थैली छीन ली और अपने हिस्से की चार पुड़िया निकाल कर वह थैली मुझे फिर से दे दी....
नेहा - रुचि प्लीज़ मेरी तरफ से माताजी को शुक्रिया कहना ...
अभी नेहा ने इतना ही कहा था कि सामने से आती हुई मां और प्रिया मुझे दिखाई दे गई....इस वक्त मां का चेहरा खुशी से चमक रहा था जबकि प्रिया मुझे और नेहा को इस तरह बैठा देख कुढ़ उठी थी.....
अपडेट देरी से देने के लिए क्षमा प्रार्थी हूं कुछ परेशानियां हमेशा पीछा करती रहती है बस इसी वजह से में भी उनसे लड़ने में व्यस्त हो जाता हूं