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"" नेहा - राज ....कहां हो तुम दोनों..?? ""
सुमन लगातार नेहा और राज को पुकारे जा रही थी जबकि नेहा अपने रूम के बाथरूम मैं थी और राज इस वक्त अपनी लेब के अंदर....
"" मम्मी मैं इधर बाथरूम मैं हूं....बस एक मिनट मै आती हूं..""
नेहा का जवाब सुमन ने सुन जरूर लिया लेकिन एक बेसब्र मां कैसे सबर कर सकती थी जबकि उसका बेटा जिंदगी और मौत के दोराहे पर खड़ा हो....
"" बेटा मुझे बस बता दे की राज कहां हैं...?? मुझे उस से कुछ जरूरी काम है बाकी और कुछ भी नही...!""
अपनी मां को इतना बेसब्र होता देख प्रिया ने सुमन को रोका....
"" मां भाई भी यही ही होगा , एक बार नेहा को.... आई मीन भाभी को बाथरूम से बाहर तो आ जाने दो....""
प्रिया की बात सुन सुमन वहीं पलंग पर ही बैठ गई और कुछ ही पलों में नेहा भी बाथरूम का दरवाजा खोल कर रूम में आ जाती है...
नेहा - मम्मी सॉरी मैं बाथरूम मैं थी इसलिए आपको जवाब नही दे पाई....राज के लिए कुछ सामान आया था जिसे लेकर वह अपने रूम में चला गया....रूम अंदर से बंद है और मैंने उसे नाश्ते के लिए कई बार आवाज भी दी लेकिन उसका कोई जवाब नही आया.....राज का इस तरह जवाब ना देने की वजह से मुझे घबराहट होने लगी थी बस इसी लिए बाथरूम मैं आ गई थी ताकि वोमेट कर सकूं....!
सुमन - ओह मेरी बच्ची मुझे माफ करना , मुझे नहीं पता ये सब कुछ क्या हो रहा है लेकिन मुझे राज से अभी इसी वक्त मिलना है....!
प्रिया - चलो एक बार हम सब भाई के रूम का दरवाजा बजाते है क्या पता वो फिर से सो गया हो???
कुछ ही पलों मै तीनों राज वाले रूम के दरवाजे के सामने थे....उधर नीचे लेब मैं राज आश्चर्य के सागर में गोते लगा रहा था.....
मेरी आंखों के सामने से वो तेज़ प्रकाश हट चुका था लेकिन जो कुछ भी मुझे इस वक्त दिखाई दे रहा था उसका वर्णन कर पाना असम्भव था....
इस वक्त मेरे सामने पीटर के रूप में एक इंसानी जिस्म खड़ा था लेकिन वो रूप इंसानी जरूर था लेकिन असली नही क्योंकि कुछ ही पलों में मुझे सारा माजरा समझ आ चुका था की पीटर के जिस्म की जो आकृति बनी थी वो एक होलोग्राफिक 3डी प्रोजेक्शन था और इसका पता मुझे तब पड़ा जब मैंने लेब की छत पर लगे उस स्वचलित प्रोजेक्टर को देखा जो पीटर के साथ साथ ही आगे पीछे चल रहा था.....
बड़ी ही एडवांस टेक्नोलॉजी थी क्योंकि ऐसा कुछ होते हुए मैने बस फिल्मों में ही देखा था असल जिंदगी मै आज पहली बार मैं ये सब कुछ देख पा रहा था....
अभी मैं आश्चर्य के सागर में गोते ही लगा रहा था की मेरे सामने खड़े पीटर की आवाज मुझे सुनाई पड़ी....
पीटर - सर आपकी फैमिली आपको पुकार रही है.....में उन्हे आपके बारे में जानकारी नहीं दे सकता क्योंकि अभी मैं इसी लेब तक ही सीमित हूं लेकिन मैं उन सभी की आवाज यहां तक सुन पा रहा हूं....मेरे ख्याल से आपको एक बार उन्हे बता के आजाना चाहिए....
में हतप्रभ सा अभी पीटर का झुर्रिदार चेहरा ही देखे जा रहा था लेकिन उसके आखिरी शब्दों ने मेरा सम्मोहन भंग किया....
में - ठीक है पीटर मैं एक बार सबसे मिलकर आता हूं उसके बाद ही हम अपना काम शुरू करेंगे....
पीटर - ठीक है सर जैसा आप ठीक समझे , लेकिन क्या आप ये रेड स्विच ऑन करके चले जाएंगे.....दरअसल मुझे सिस्टम को चार्ज भी करना होता है इसलिए अगर आप स्विच ऑन कर देंगे तो मैं ज्यादा अच्छे से काम कर पाऊंगा....
मुझे स्विच ऑन करने में कोई बुराई नजर नहीं आई इसलिए मैने एक झटके में उस लीवर नुमा स्विच को ऊपर की तरफ घुमा दिया......और वहां से निकल कर लिफ्ट की तरफ बढ़ गया...
उधर दरवाजे पे मम्मी नेहा और प्रिया लगातार मुझे आवाजें लगाए जा रही थी....
"" भैया दरवाजा खोलो प्लीज .....क्या हुआ प्लीज कोई तो जवाब दो....""
एक हल्की सी आवाज के साथ मैने दरवाजे पे लगा लॉक खोला और दरवाजा खोल कर बाहर देखा तो मम्मी प्रिया और नेहा इन तीनों के चेहरे पे हवाइयां उड़ रही थी....
"" क्या हुआ मां ....क्या हुआ प्रिया तुम लोग इतने परेशान क्यों नजर आ रहे हो..?""
सुमन - तू कहां चला गया था बेटा देख ना कब से तुझे आवाजे लगाए जा रहें हैं लेकिन तू कुछ सुन ही नही रहा था....??
"" लेकिन मां नेहा को पता था में काम के सिलसिले में व्यस्त था इसीलिए मैंने अपना रूम बंद कर दिया था....अब मैं यहां पिकनिक पर तो आया नहीं हूं जो सारे दिन आप लोगो के साथ ही बैठा रहूं....""
मैने अपनी बात काफी रुड तरीके से कही जिसका मुझे अहसास तब हुआ जब नेहा ने मुझे लताड़ा....
नेहा - तुम कहना क्या चाहते हो राज...??? यानी की तुम अचानक कहीं गायब हो जाओ और हम तुमसे सवाल भी ना करें.....तुम अंदर क्या कर रहे थे तुम्हारे अलावा यहां मौजूद किसी भी को भी इस बात से कोई मतलब नही हैं , लेकिन कम से कम हमे इतना पता होना चाहिए की तुम ठीक हो....मेरे हिसाब से तुम्हे मां से इसी वक्त माफी मांगनी चाहिए क्योंकि अगर तुम्हे जरा भी इनकी फिकर होती तो इस तरह से तुम बात नही करते ....
सुमन - नहीं नहीं नेहा....ऐसा कुछ भी करने की जरूरत नहीं हैं.....राज बिजी होगा इसीलिए इसका ध्यान हम पर नहीं गया होगा.....में तो बस कुछ पलों के लिए इस से बात करना चाहती थी बस और कुछ नही....
इतनी देर से जहां प्रिया खामोश खड़ी थी वहीं अब उसके चेहरे पर भी चिंता की लकीरें साफ देखी जा सकती थी लेकिन मैंने प्रिया से अपना ध्यान हटाते हुए मां से कहा....
"" बोलो मां क्या बात है.....मुझे अगर पता होता की आपको मुझ से कोई जरूरी बात करनी है तो मैं अपना काम बाद मैं निपटा लेता ..... वैसे आई एम सॉरी....में काम के चक्कर में बिल्कुल भूल ही गया की में उस औरत से बात कर रहा हूं जिसने क्या क्या कुर्बानियां नही दी मुझे कामयाब बनाने के लिए....मुझे माफ कर दो मां....""
बिना एक पल की देरी किए मैंने तुरंत अपनी मां को बाहों में भर लिया शायद इतना अफसोस और ग्लानि इस से पहले मुझे कभी नहीं हुई थी....ना जाने कब एक आंसू का कतरा मेरी आंखों से होता हुआ मां के कंधे पर टपक गया....
सुमन - देख ना प्रिया इतना बड़ा हो गया लेकिन आंसू गिराने में एक पल भी नही लगाता ये पागल.....मेरे प्यारे राज भला मैं तुझ से क्यों नाराज होने लगी....एक तू ही तो है जिस पर में खुद से भी ज्यादा भरोसा करती हूं....चल अब रोना धोना बंद कर और जो में कहने जा रही हूं मेरी बात सुन....
मां ने मुझे खुद से अलग करते हुए प्यार से मेरे गालों पर थपकी मारी और उसी हाथ से मेरी भीगी हुई पलकें भी साफ करी ....
सुमन - चल अब सब ठीक है लेकिन मैंने अभी तुझे माफ नही किया....तू ये मत सोचना की तू दो आंसू गिरा देगा तो तेरी मां पिघल जाएगी ये सब कुछ तब चला करता था जब तू छोटा था.....अब जमाना मॉडर्न हो गया है इसलिए कुछ लेना हो तो बदले में कुछ देना भी पड़ता है...।
जहां मां की बात सुनकर मेरा चेहरा फिर से उतर चुका था वहीं पास में खड़ी प्रिया खिलखिला उठी.... मां के होठों पे भी एक रहस्यमई मुस्कान थिरक रही थी जबकि नेहा अभी भी ये समझने की कोशिश मैं लगी हुई थी की आखिर ये सब हो क्या रहा है...?
"" बोलो मां क्या चाहिए आपको.... आप जो कहोगी वो बिना शर्त के पूरा हो जाएगा , और वैसे भी आपने आज तक हमे बस दिया ही है बदले में कभी कुछ नही मांगा....आज आप मुझ से मेरी जान भी मांगोगी तो हंसते हंसते दे दूंगा....""
मेरी बात सुनकर मां थोड़ी भावुक जरूर हुई लेकिन अपनी बात उसी अंदाज में कहीं जो में कभी सोच भी नहीं सकता था...
सुमन - देख बेटा तेरी जान भी तू बिना मुझ से पूछे नही दे सकता किसी को क्योंकि उस पर तुझ से कहीं ज्यादा हक हैं मेरा....अब अगर तेरी फिल्मी बातें पूरी हो गई हो तो मैं कुछ बोलूं...??
मां का इस तरह से कभी भी बात नही करती थी....अब या तो कोई बेहद ही जरूरी बात है जिसके लिए मां मुझे मानना चाहती है या फिर इस आइलैंड की हवा ही कुछ ऐसी है की मां आज इस तरह से बात कर रही हैं इसलिए मैने बिना अपना मुंह खोले अपना सर हिला के मां को स्वीकृति दे दी....
सुमन - में जो करने को कहूंगी उसे तू बिना कोई सवाल किए करेगा....ना कोई कारण पूछेगा और ना ही ऐसा कुछ करने की वजह....जितना मैं कहूं बस तुझे उतना ही करना है बिना कोई सवाल जवाब किय्येये ...ये ये ये....
अभी मां की बात पूरी भी नही हुई थी की दीवार पे लगे प्लास्टर को फाड़ते हुए दो मशीनी हाथो ने मां के दोनो हाथ पकड़ के हवा में लटका दिया ....
क्या हुआ कैसे हुआ कुछ भी समझ नही आया मां जोर जोर से चीखे जा रही थी और मां की चीखे सुन जैसे मैं बेहोशी से जागा....में तुरंत मां को उन मशीनी हाथो से बचाने के लिए लपका लेकिन तभी छत का प्लास्टर उखाड़ते हुए एक मशीनी हाथ और बाहर निकला जिसके हाथ में पंजे की जगह गोलाकर कटर लगा हुआ था जो द्रुत गति से लगातार घूमे जा रहा था.....
तभी एक आवाज गूंजी जो उन स्पीकर्स से आ रही थी जहां से हम रुचि को सुना करते थे....
**""" अगर तुम इस औरत की भलाई चाहते हो तो इस से दूर रहो.....तुम्हारी एक गलती इस औरत को दो टुकड़ों में बदल सकती है.....देखना चाहोगे कैसे...??""**
अभी स्पीकर से आवाज आनी बंद ही हुई थी की गोल घूमता हुआ कटर मां की तरफ तेजी से बढ़ा और एक झटके में ब्लाउज और ब्रा को बीच में से काटता चला गया.....