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भाग 0 : प्रस्ताव
उसकी सांसे तेज थी लेकिन अब तक ऐसा नहीं लग रहा था कि वो रुकने के मूड में है, बाहर तेजी से बारिश आ रही थी और अंदर कार के शीशे ओस की चादर से ढक गए थे। सारे शीशे बंद होने के बावजूद भी बादल के जोर से गरजने की आवाज साफ़ आ रही थी, अंदर हमारे नंगे जिस्म के टकराव की और बाहर बारिश की, इसके अलावा वहां कुछ सुनाई नहीं दे रहा था। पिछली सीट पर जमाल अपने पैर खोल कर बैठा था, उसके दोनों हाथ मेरी नंगी पीठ को सहला रहे थे, मैं अपनी ही वासना मैं उसके मोटे लंड पर उछले जारी थी। पता नहीं कितनी देर से हम ऐसे ही अवस्था मैं थे, 'ओह रश्मि, ज़रा और जोर से उछल' , ये फरमान सुनते ही मैंने अपने चुतड़ उसके लंड के उपर घेर कर सिकुड़ लिए, और ज़ोर ज़ोर से उसके कंधों पर हाथ रख कर आगे पीछे होने लगी, उसके चेहरे के भाव देख कर साफ़ लग रहा था कि उसे अचानक से हुई मेरी तंग चुत मैं मज़ा आ रहा था, मैं वासना के नशे मे सब कुछ भूल कर उसका लंड तेजी से रगड़ रही थी, "आहहह रश्मी, आहहह चुद मेरी जान, मेरी रानी, मेरी रंडी' , मैने जल्दी से अपने होंठ उसके होठों पर रख दिए और मदमस्त होकर उससे चूमने लगी, वो शायद कुछ और कहना चाहता था पर मैं उस समय कुछ कहने सुनने के मूड में नहीं थी।
मेरे अंदर बस एक एहसास था उसके मस्त मोटे लंड का, जिसपर मैं खुद उछल उछल कर अपनी प्यारी सी चुत फडवा रही थी, उस पल में सारी दुनिया भुला कर मुझे बस उस एक एहसास मैं जीना था, मैं अपनी ही धुन में उसे चूमती जारी रही थी, वो अपने दोनो हाथों से मेरे चुतड फैला रहा था, उसे लंड आगे पीछे होने मे आसानी हो रही थी, थोड़ी देर में ही उसकी टांगे तंग होने लगी और वो जोर जोर से अपने वीर्य की पिचकारी मेरे अंदर ही छोड़ने लगा, मैं तब तक उसके लंड पर उछलते जा रही थी जब तक मैंने उसे पूरा निचोड़ नहीं डाला।
ये तो मुझे खुद नहीं पता ना जाने कितनी बार मैंने उसका वीर्य अपने अंदर लिया होगा, पर हर बार मुझे वही जादुई एहसास होता था, मैं आखें बंद करके उसकी बांहों मे समा गई, और कई मिनिटों तक उसी अवस्था में उसके उपर चढ़ी रही, मेरी चुत उसके वीर्य से पूरी तरह भर गयी थी, उसका लंड अब भी मेरी चुत मे ही था, और धीरे-धीरे उसका आकार कम हो रहा था, मै सारी दुनिया भुला कर सिर्फ और सिर्फ उसके वीर्य को मेहसूस कर रही थी, उसका गाढ़ा और गर्म वीर्य मेरी चुत में ऐसे घुल जाता जैसे पानी मैं शक्कर, अंदर वो भी शायद बाहर निकलने का रास्ता खोजते हुए हर कोने से बेह रहा था, अपने अंदर जमाल के वीर्य की हलचल से मेरे अंदर एक अजीब सी मस्ती छाने लगी। उसके ऊपर से उठ कर मैं फॉरन पास पड़े टिशू पेपर से अपनी चुत साफ़ करने लगी, जमाल ने मेरी और देख मुस्कुरा कर मुझे चूमा और वो भी अपने कपड़े तलाशने लगा, बाहर अभी भी तेजी की बारिश शुरू थी, कुछ समय मैं ही हमने अपने कपड़े पहने और कार के अंदर से ही आगे की सीट पर आ गए। शाम 6 बजे से ही हम ऑफिस से निकल गए थे, और अब समय देखा तो रात के करीब 9 बज कर 40 मिनिट हो रहे थे, 'यार जमाल आज तो मर गई, बहोत देर हो गई आज तो, मैं घर पर अब क्या बहाना बताऊ? ' , वो बिना किसी फ़िक्र के हसने लगा, कहा कि 'बहाना क्या बनाना है, कहना की इतनी बारिश मैं भला कैसे आती!' , कभी-कभी मैं उसकी बेफिक्री पर हैरान रहती पर ये भी उसमे एक बात थी जो मुझे उसके और आकर्षित करती थी। और आईने अपना रंग रूप सवार कर हम वहां से निकल पड़े। यहां से भी मेरा घर करीब 1 घंटे की दूरी पर था , हम अकेले मैं साथ समय बिताने दूर शहर के बाहर हाई-वे के पास के जंगलों में आते और वहां कार लगा कर समय बिताते थे। हालांकि यह एक बहोत फेमस जगह थी खास कर के प्रेमी जोड़ों के लिए और शहर के कयी सारे कपल्स यहां आते थे अपनी अपनी कारों मैं। जमाल और मुझे एक ही ऑफिस में काम करते हुए करीब 3 साल हो गये थे, वो 29 साल का लंबा चौड़ा और काफी मस्त किस्म का नौजवान हैं , मेरी ही तरह वो भी UP का रहने वाला है और कुछ साल पहले ही दिल्ली अपना कैरियर बनाने आया था, इस 3 साल के समय में हम काफी अछे दोस्त, हमराज़ और कुछ समय बाद हम मे जिस्मानी सम्बन्ध भी हो गये, और करीबन साल से हम जब भी मौका मिलता चुदाई करते। जमाल के साथ सेक्स मुझे बहोत भाता था और उसके साथ समय बिताने के बाद मै हमेशा अछे मूड में रहती, मै अपनी सोच मैं खोई हुई खिड़की के बाहर बारिश का नजारा देखने मे व्यस्त थी कि पता ही नहीं चला कब हमारे ऑफिस के पार्किंग में हम पहुच गए, जमाल और मैंने आखिरी बार फिर एक दूसरे को गले लगाया और एक छोटा सा किस करके मैं उसकी कार से निकल कर अपनी कार की और चली गई। रात करीब 11 बज गय थे जब मैं अपने घर के दरवाजे पर आई, मुझे तो समझ नहीं आ रहा था आज क्या ही कहूँगी मैं, दरवाजे की बेल जैसे बजाई तो एक पल में ही अंदर से दरवाजा खोलने की आवाज आने लगी, मानो कोई दरवाजे के पास ही बैठा हो। दरवाजा खोलते ही मेरे पति हरीश सामने खड़े थे, जी हां। मेरे पति, कुछ समय के लिए मैं खुद भूल जाती हूँ कि मैं शादी शुदा हूँ, और इसलिए आपको बताना भी भूल गई।
"अरे यार ये कोई समय हैं आने का घर? , मैं कबसे तुम्हें फोन पर फोन कर रहा था, जब फोन उठाना ही नहीं तो इस्तमाल क्यूँ करती हो? फेंक दो उसे कही " हरीश गुस्से में बड़बड़ाता हुआ अंदर चला गया, मैं भी इतनी बड़ी गधी हु ऑफिस से निकलते ही अपना फोन मैंने अपने पर्स मे रख दिया था और हरीश का गुस्सा जायज था,मैने फोन पर्स से निकाला तो मुझे हरीश के करीब करीब 8 मिसकॉल दिखे , अब जल्दी से बातघुमाने के लिए मैं भी थोड़ी गुस्सा हो गई, "हरीश आप बाहर देख नहीं रहे क्या कितनी बारिश हो रही हैं, मैं कबसे अपनी कार में ही फ़सी रही ", मेरे मन में से आवाज आयी हाँ, रंडी कार में तो थी, पर जमाल के लंड पर फ़सी हुई। मैं अंदर ही अंदर गुदगुदाने लगी और अपने आप को संभाला और जैसे तैसे हरीश को भी मना लिया। मुझे इतनी रात हुई इसलिए हरीश ने खुद ही बाहर से खाना ऑर्डर कर दिया था। मैं जब तक कपड़े बदल कर वापिस आयी तो हरीश का भी मूड ठीक होने लगा था। हमने साथ खाना खाया और साथ मैं सोफा पर बैठ कर टीवी देखने लगे , अगला दिन शनिवार था तो हम दोनों को ही अपने ऑफिस से छुट्टी रहती, अक्सर हरीश शुक्रवार की रात को देर रात तक जागते।
मेरी और हरीश की शादी करीब ढ़ाई साल पहले हमारे घर वालों की मर्जी से हुई थी। उनकी उम्र इस समय कुछ 38 साल की हैं, और वो केंद्रीय सरकारी अधिकारि हैं। इंसान के तौर पर वो काफी अछे स्वभाव के, साधारण और सुलझे हुए व्यक्तित्व के इंसान है , पर साथ ही साथ वो थोड़े से घमंडी, पुराने ख़यालात और गुस्सैल भी हैं। शादी के बाद से ही हम दोनों मे कभी कुछ खास नहीं बन पाई, हालाकि समय के साथ-साथ हम दोनों को ही अपने अपने विपरीत स्वभाव की आदत हो गई, अब जैसा आप सब जानते है शादी का दूसरा नाम है समझोता, तो हमने भी अपनी जिंदगी से अपने माता-पिता की खुशी चाहते हुए इस शादी को स्वीकार किया। हमारे स्वभाव और जीवन शैली बिल्कुल अलग होने के बावजूद हमने एक दूसरे का बखूबी खयाल रखा है, हम एक दूसरे के काम की, एक दूसरे के विचारो की इज़्ज़त करते है। मै ऐसा काम कभी नहीं करती जिससे उन्हें कोई दिक्कत हो,या करूँ भी तो उन्हें उस बात का पता ना चले इसका पूरा ख्याल रखती हूँ और वो भी ध्यान रखते हैं कि उनकी किसी हरकत से मैं नाराज ना हू। इन 3 सालों में हमने एक पति पत्नी की तरह रहना तो सीख लिया है पर अफसोस के साथ हम अब तक एक दूसरे के दोस्त नहीं बन सके। हालाकि इसके वजह से हमारी सेक्स लाइफ में कुछ खास फर्क नहीं पड़ा, हम अक्सर एक दूसरे के साथ सेक्स का मज़ा लेते रहते हैं पर आपको ये भी सच बता दु की उसमे वो शिद्दत और वो जुनून नहीं मेहसूस होता जो आप सिर्फ और सिर्फ अपने किसी करीबी प्रेमी या दोस्त के साथ मेहसूस कर सकते हो। बहोत से लोग जिनकी अरेंज मैरेज होती है, उनको अक्सर यह बात खटकते रहती है कि बिस्तर पर ज्यादा खुलने से हो सकता है वो आपको शायद कुछ और नजर से देखे, आप अपने साथी से ना जाने अपनी पिछली जिंदगी के राझ छुपाये रहते हो और आप कभी नहीं चाहते कि उन्हें वो सब कभी पता ना चले। अगर मैं अपनी बात करूँ तो जैसे मैंने बताया, अपने पति से मेरा स्वभाव एकदम अलग था, मैं कानपुर के पास के एक छोटे गाँव से थी और 18 साल की उम्र में अपनी आगे की पढ़ाई पूरी करने दिल्ली आ गई थी। तबसे अब तक मैंने इसी शहर को अपना घर कहा है, इस समय मेरी उम्र 32 साल हैं और करीब 14 साल से मैं दिल्ली में रह रही हूँ। रंग रूप से मैं उपर वाले की शुक्रगुज़ार हूँ, कि उसने मुझे आकर्षित जिस्म और रूप से नवाजा। मेरी ऊंचाई 5 फिट 8 इंच की हैं, और रेग्युलर जिम जाने से मैंने अपना फिगर भी काफी अछे से सवारा है। मेरी छाती 34c की हैं , कमर 30 की, और अछि सुडौल उभरी हुई 36 की गांड जो कि मेरे ऊँचे कद पर खूब जचति हैं, गोरा रंग होने के साथ-साथ, मैं अपने आप का बहोत खयाल रखती हूँ, हमेशा अछे कपड़े और पहनावे मैं रहती हूँ, जो कि मुझे रहना भी पडता है। मैंने अपना MBA भी दिल्ली से ही किया हैं और उसके बाद से ही मैं अब तक 3 बड़ी कॉर्पोरेट कंपनी के लिए काम कर चुकी हूं।
टीवी देखते देखते मुझे पता ही चला कब हरीश मेरी जांघों पर हाथ फेर रहे थे, मेरी तरफ से कोई भी प्रतिसाद नहीं आया तो वह मेरी और मूड कर मुझे देखने लगे, अचानक मुझे क्या चल रहा था उसका एहसास हुआ और मैंने उनके हाथ पर अपना हाथ रख कर उन्हें आँखों ही आँखों में आगे पढ़ने का अंदेशा दे दिया, उन्होंने मेरी कमर पकड़ कर मुझे अपनी और खींचा और मेरे होंठ से होंठ मिला कर मुझे चूमने लगे। सोफा पर ही वो मेरे ऊपर लेत गए और मैंने भी बाहें फैला कर उनका स्वागत किया, अक्सर सेक्स के दौरान हम बिना एक दूसरे कुछ कहे ही सब कर लेते थे , इतने साल साथ रहने के बाद हमारे बीच एक अलग सा बंधन था, जिससे हम बिना कुछ कहे ही एक दूसरे की बात समझ जाते। उपर लेट कर वो मेरा गाउन उपर की तरफ खिसकाने लगे, मैने भी उनकी मदद करते हुए उसे अपने कंधों से ऊपर किया और उतार कर जमीन पर फेंका, फिर उनका पजामा उतारने मे उनकी मदद करने लगी, पजामा उतारते ही वो घुटनों के बल सोफा पर मेरी कमर के पास आ गए और मैं थोडी सी उठ कर उनकी चड्डी के उपर से उनके लंड को चूमने लगी, उन्हें ये बहोत अछा लगता था और मेरा सिर पकड़ कर मेरा चेहरा अपने लौडे पर दबाने लगे, आपको बता दु उनका लंड मेरे गालों से लेकर मेरे माथे तक छू रहा था, और मुझे उसमे काफी मज़ा आ रहा था, मुझे हमेशा से ही लंड चूसना बहोत पसंद था, और शादी से पहले और जैसा कि आपको पता ही हैं शादी के बाद भी मैं इसका मज़ा लेना नहीं भूली हूँ।
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दोनों हाथों से मैंने उनकी चड्डी को नीचे उतारने लगी तो, चट्ट से उनका लंड मेरे चेहरे पर आ गिरा, उनका लंड उतना मोटा नहीं हैं पर लंबाई मैं अछा हैं, अपने हाथ मैं लेकर मैं उससे अपने पूरे चेहरे पर घुमाने लगी, मानो उनके लंड से मसाज कर रही हूँ, उनके लंड से थोड़ा थोड़ा पुर्व वीर्य का पानी टपक रहा था, जो मैं खुद अपने हाथ से लौडा पकड़ कर मेरे गालों पर, गर्दन पर, माथे पर फ़ेर रही थी। हाथ में पकड़े हुए मैने उनकी चमड़ी पीछे सरका दी तो उनके मुह से एक "आह" की आवाज आयी, ये दर्द की थी या मजे की ये सोचे बिना मैने उनका सूपाड़ा अपने मुह मे लिया और अंदर से अपनी जीभ से उनके लंड के टोपे को खूब चाटने लगी, सोफा से उठ कर मैंने उन्हें पीठ के बल लिटा दिया और नीचे सरकते हुए उनके घुटनों के पास आ गई, एक हाथ से मैं उनके गेंदों को सहला रही थी, और दूसरे हाथ उनका लंड हिलाते हुए उसे चूसें जारी थी, मैं जानती थी कि इसी रफ्तार से करती रहूंगी तो वो ज्यादा देर टिक नहीं पाएंगे, ऐसा नहीं कि मुझे उनसे चुदने मैं कोई आपत्ति है, पर मैं कुछ ही घंटे पहिले जमाल से पूरी मस्ती से अपनी चुत मरवा के आयी थी, और अब भी वो सूजन से भरी लाल हो रखी थी, सो आज अगर हरीश मुझे चोदते तो उन्हें कुछ ना कुछ फर्क तो जरूर मेहसूस होता, मर्दों मैं ये खासियत तो होती ही है, उनका जीवन चाहे पूरा बिखरा प़डा हो, पर अपनी हमेशा की चुत मे एक रत्ती भर का भी फर्क रहा तो वो उसे झट से पकड़ लेते हैं। अब आप मुझे समझदार कहे या कमिनी, पर हर इंसान अपना झूट छुपाने सारे पैंतरे तो आजमाता ही है। मैं दोनों हाथ से उनका लंड पकड़ कर हिलाने लगी और जैसा मैंने सोचा था, कुछ ही देर मैं वो सिसकारी लेते हुए मेरे हाथों मैं ही झड़ गए। उनका सारा वीर्य वो मेरे हाथ पर ही झड़ने लगे और मैं जोर जोर से उनके लंड को अब भी हिला रही थी। हरीश दोनों हाथों से अपना चेहरा छुपा कर मदमस्त लेते हुए ही थे, उनके करीब जा कर मैने उनके होंठ पर किस करते हुए पूछा "आपको मज़ा आया ना हरीश ", उन्होंने मेरी देखा पर कुछ बोले ही नहीं सो मै उनकी छाती पर सर रख कर लेत गयी, और उनके गिरे हुए वीर्य से अपने हाथ से खेलने लगी, तब उन्होंने नाराज होते हुए कहा, "क्या यार रश्मी, तुमने तो मेरा यही गिरा दिया, मुझे आज चोदने का मन था " , "सॉरी हरीश, मुझे नहीं पता था आप झड़ जाओगे" , मैने नाटक करते हुए फिर उनका लंड अपने मुह मैं ले लिया और उसे चूसना शुरू किया, " फिर खड़ा करो आप, और मुझे चोदलो हरीश " , "उम्म नहीं अब रहने दो रश्मी, मुझे नींद आने लगी अब , चलो बेडरूम मैं सोते हैं " हाहा मैं मन ही मन हसी और अपना गाउन पहन कर उनके पीछे पीछे बेडरूम मैं चली गई।
लेते हुए मैने देखा हरीश तो कुछ ही मिनटों मैं सो गए और खर्राटे लेने लगे, लेते हुए मुझे अब भी नींद नहीं आ रहीं थीं, और मैं पूरे दिन भर की चीजें सोचने लग गयी, खिड़की से बाहर देखा तो बारिश अब भी शुरू ही थी, बाप रे मैंने सोचा आज क्या ये रुकने का नाम नहीं ले रही। बारिश का सोच कर अपने आप मेरा मन आज जमाल से हुई मेरी चुदाई पर आ गया, और एक हाथ से मैं अपनी चुत सहलाने लगी, आह रश्मी तू बहोत ही बड़ी वाली चुदकक्ड हो गयी है, मेरा मन मुझसे ही बहस कर रहा था, अब तू शादी शुदा औरत हैं बेवकूफ अब तो ये सब बंद कर दे, किसी दिन पकडी जाएगी तो सब बर्बाद हो जाएगा। ये सब खयाल आते ही मैंने कुछ और सोचना शुरू कर दिया और सोने की कोशिश करने लगी।
करीब 1 घंटा करवटें बदलने के बाद भी नींद मुझ पर मेहरबान होने का नाम नहीं ले रही थी, मैंने आंख खोली और उपर बस छत्त की और बिना किसी वजह ही देखती रही। मेरे मन में अब भी कयी सारे सवाल और बातें एक साथ घूम रही थी जिसकी वजह से ना मैं ठीक से सो पा रही ना कुछ सोच पा रही थी।
यूँही ख़यालों मैं भटकते हुए, मुझे एहसास हुआ कि लाइफ कितनी अलग होती अगर मैं कानपुर से यहां आती ही नहीं, क्या मैं आगे की पढ़ाई करती? क्या जो मजे मैंने अब तक लिए वो ले पाती? "शाम 6 बजे से पहले तुम घर आ जाना रश्मी, वर्ना तुम्हें लेने मैं खुद आया करूंगा कल से ट्यूशन तुम्हारे " मेरे पिताजी बात मेरे दिमाग मैं आयी और मैं मन ही मन हस पड़ी, हाहा नही नही मैं वहां रहती तो कुछ नहीं कर पाती अपनी लाइफ में। मुझे मेरे घर से और घर वालों से बहोत प्यार हैं पर वहां रहना किसी जैल मैं रहने से कम थोड़ी था। शुक्र हैं मेरी सहेली नेहा का, जिसके माँ बाप ने आकर मेरे घर वालों को समझाया, कि दोनों को साथ दिल्ली भेजते हैं, आगे की पढ़ाई करेगी तो जिंदगी मैं कुछ हासिल करेगी, साथ रहेगी तो एक दूसरे का खयाल भी रखेगी , कितने ही दिन मेरे पिताजी इसके खिलाफ ही थे, मैने माँ से कह कह कर उन्हें जैसे तैसे अखिर मना ही लिया था। शुक्र हैं कि मुझे और नेहा को दिल्ली यूनिवर्सिटी में एक ही जगह दाखिला मिला, शुक्र हैं मेरे इतने अछे दोस्त बने, शुक्र है करमजीत का जिससे मुझे सेक्स का, प्यार का, एक दोस्ती से बढ़ कर एक रिश्ते का एहसास हुआ। ह्म्म करमजीत ! पता नहीं कहा और कैसा होगा वो, क्या वो भी मेरे बारे में सुनी रातों मैं सोचता होगा, क्या उसकी भी शादी हो गई होगी? हमारे रिश्ता जिस खूबसूरती से शुरू हुआ था उतनी ही बुरी तरह खत्म भी हुआ, सो करीब 12 साल से ना मैंने उसकी शक्ल देखी है ना उसके बारे मैं कभी जान ने जुर्रत, पर फिर भी उसे मिले 14 साल बाद भी वो मुझे आज भी याद आता है, ना जाने क्यूँ, उसके बाद कितने आए और गए पर उनमे से कभी कोई इतना याद नहीं आता। शायद इसीलिए क्यूंकि वो मेरा पहला था। मेरा पहला बॉयफ्रेंड, पहला प्यार, पहला लंड। आप जिंदगी मैं चाहे जितने मर्दों के नीचे आए , चाहे जितने लंड आपको चोद चुके हो। पर आप उससे शायद ही कभी भुला सकते हो जिसने पहली बार आपकी सील तोड़ी है। ये शायद सिर्फ मेरे साथ है या सबके साथ पता नहीं, पर पहले अनुभव को भुलाना साँस रोकने जैसा है।
पुरानी बातें याद करते हुए पता नहीं मुझे कैसे नींद आ गई, और देखते ही देखते मैं दिल्ली की एक 32 वर्षीय शादी शुदा ,कॉर्पोरेट कंपनी मे काम करने वाली प्रोफेशनल औरत से सीधा एक कानपूर के रेल्वे स्टेशन पर खड़ी, 18 साल की छोटे गाँव की लड़की बन गयी, जो आँखों मैं तेल लगा कर दिल्ली जाने वाली अपनी ट्रेन का इन्तेज़ार कर रही थी, हजारो सपनों के साथ एक नई शुरुआत करने। उसके अगल बगल मे उसके माँ बाप उसे ना जाने कितनी बाते बता रहे थे, "जा कर फोन करना", "अपना ठीक से खयाल रखना", "सिर्फ अपनी पढ़ाई पर ध्यान देना ", "देर रात नहीं घूमना", "लड़कों से दूर रहना " , और ना जाने क्या क्या।
पर उस लड़की का इनमे से एक भी बात पर जरा भी ध्यान नहीं था, उसे तो बस अपने आने वाले समय का इन्तेज़ार था । घर से दूर रहने का डर भी और पहली बार मिलने वाली आजादी का एहसास भी, ये सारी बातें उसे उत्तेजित कर रही थी और तभी ट्रेन के आने की आवाज आयी और वो लड़की खुशी से कूद उठी और अपनी माँ को गले लगा कर बोली "माँ देखो गाड़ी आ गयी" , उसकी माँ ने कहा "हाँ रश....." कितनी मासूम और खुश लग रहीं हैं वो। ना जाने कौन है, अचानक से मेरे मन में आवाज आयी, ये मैं ही तो हूँ ।
उसकी सांसे तेज थी लेकिन अब तक ऐसा नहीं लग रहा था कि वो रुकने के मूड में है, बाहर तेजी से बारिश आ रही थी और अंदर कार के शीशे ओस की चादर से ढक गए थे। सारे शीशे बंद होने के बावजूद भी बादल के जोर से गरजने की आवाज साफ़ आ रही थी, अंदर हमारे नंगे जिस्म के टकराव की और बाहर बारिश की, इसके अलावा वहां कुछ सुनाई नहीं दे रहा था। पिछली सीट पर जमाल अपने पैर खोल कर बैठा था, उसके दोनों हाथ मेरी नंगी पीठ को सहला रहे थे, मैं अपनी ही वासना मैं उसके मोटे लंड पर उछले जारी थी। पता नहीं कितनी देर से हम ऐसे ही अवस्था मैं थे, 'ओह रश्मि, ज़रा और जोर से उछल' , ये फरमान सुनते ही मैंने अपने चुतड़ उसके लंड के उपर घेर कर सिकुड़ लिए, और ज़ोर ज़ोर से उसके कंधों पर हाथ रख कर आगे पीछे होने लगी, उसके चेहरे के भाव देख कर साफ़ लग रहा था कि उसे अचानक से हुई मेरी तंग चुत मैं मज़ा आ रहा था, मैं वासना के नशे मे सब कुछ भूल कर उसका लंड तेजी से रगड़ रही थी, "आहहह रश्मी, आहहह चुद मेरी जान, मेरी रानी, मेरी रंडी' , मैने जल्दी से अपने होंठ उसके होठों पर रख दिए और मदमस्त होकर उससे चूमने लगी, वो शायद कुछ और कहना चाहता था पर मैं उस समय कुछ कहने सुनने के मूड में नहीं थी।
मेरे अंदर बस एक एहसास था उसके मस्त मोटे लंड का, जिसपर मैं खुद उछल उछल कर अपनी प्यारी सी चुत फडवा रही थी, उस पल में सारी दुनिया भुला कर मुझे बस उस एक एहसास मैं जीना था, मैं अपनी ही धुन में उसे चूमती जारी रही थी, वो अपने दोनो हाथों से मेरे चुतड फैला रहा था, उसे लंड आगे पीछे होने मे आसानी हो रही थी, थोड़ी देर में ही उसकी टांगे तंग होने लगी और वो जोर जोर से अपने वीर्य की पिचकारी मेरे अंदर ही छोड़ने लगा, मैं तब तक उसके लंड पर उछलते जा रही थी जब तक मैंने उसे पूरा निचोड़ नहीं डाला।
ये तो मुझे खुद नहीं पता ना जाने कितनी बार मैंने उसका वीर्य अपने अंदर लिया होगा, पर हर बार मुझे वही जादुई एहसास होता था, मैं आखें बंद करके उसकी बांहों मे समा गई, और कई मिनिटों तक उसी अवस्था में उसके उपर चढ़ी रही, मेरी चुत उसके वीर्य से पूरी तरह भर गयी थी, उसका लंड अब भी मेरी चुत मे ही था, और धीरे-धीरे उसका आकार कम हो रहा था, मै सारी दुनिया भुला कर सिर्फ और सिर्फ उसके वीर्य को मेहसूस कर रही थी, उसका गाढ़ा और गर्म वीर्य मेरी चुत में ऐसे घुल जाता जैसे पानी मैं शक्कर, अंदर वो भी शायद बाहर निकलने का रास्ता खोजते हुए हर कोने से बेह रहा था, अपने अंदर जमाल के वीर्य की हलचल से मेरे अंदर एक अजीब सी मस्ती छाने लगी। उसके ऊपर से उठ कर मैं फॉरन पास पड़े टिशू पेपर से अपनी चुत साफ़ करने लगी, जमाल ने मेरी और देख मुस्कुरा कर मुझे चूमा और वो भी अपने कपड़े तलाशने लगा, बाहर अभी भी तेजी की बारिश शुरू थी, कुछ समय मैं ही हमने अपने कपड़े पहने और कार के अंदर से ही आगे की सीट पर आ गए। शाम 6 बजे से ही हम ऑफिस से निकल गए थे, और अब समय देखा तो रात के करीब 9 बज कर 40 मिनिट हो रहे थे, 'यार जमाल आज तो मर गई, बहोत देर हो गई आज तो, मैं घर पर अब क्या बहाना बताऊ? ' , वो बिना किसी फ़िक्र के हसने लगा, कहा कि 'बहाना क्या बनाना है, कहना की इतनी बारिश मैं भला कैसे आती!' , कभी-कभी मैं उसकी बेफिक्री पर हैरान रहती पर ये भी उसमे एक बात थी जो मुझे उसके और आकर्षित करती थी। और आईने अपना रंग रूप सवार कर हम वहां से निकल पड़े। यहां से भी मेरा घर करीब 1 घंटे की दूरी पर था , हम अकेले मैं साथ समय बिताने दूर शहर के बाहर हाई-वे के पास के जंगलों में आते और वहां कार लगा कर समय बिताते थे। हालांकि यह एक बहोत फेमस जगह थी खास कर के प्रेमी जोड़ों के लिए और शहर के कयी सारे कपल्स यहां आते थे अपनी अपनी कारों मैं। जमाल और मुझे एक ही ऑफिस में काम करते हुए करीब 3 साल हो गये थे, वो 29 साल का लंबा चौड़ा और काफी मस्त किस्म का नौजवान हैं , मेरी ही तरह वो भी UP का रहने वाला है और कुछ साल पहले ही दिल्ली अपना कैरियर बनाने आया था, इस 3 साल के समय में हम काफी अछे दोस्त, हमराज़ और कुछ समय बाद हम मे जिस्मानी सम्बन्ध भी हो गये, और करीबन साल से हम जब भी मौका मिलता चुदाई करते। जमाल के साथ सेक्स मुझे बहोत भाता था और उसके साथ समय बिताने के बाद मै हमेशा अछे मूड में रहती, मै अपनी सोच मैं खोई हुई खिड़की के बाहर बारिश का नजारा देखने मे व्यस्त थी कि पता ही नहीं चला कब हमारे ऑफिस के पार्किंग में हम पहुच गए, जमाल और मैंने आखिरी बार फिर एक दूसरे को गले लगाया और एक छोटा सा किस करके मैं उसकी कार से निकल कर अपनी कार की और चली गई। रात करीब 11 बज गय थे जब मैं अपने घर के दरवाजे पर आई, मुझे तो समझ नहीं आ रहा था आज क्या ही कहूँगी मैं, दरवाजे की बेल जैसे बजाई तो एक पल में ही अंदर से दरवाजा खोलने की आवाज आने लगी, मानो कोई दरवाजे के पास ही बैठा हो। दरवाजा खोलते ही मेरे पति हरीश सामने खड़े थे, जी हां। मेरे पति, कुछ समय के लिए मैं खुद भूल जाती हूँ कि मैं शादी शुदा हूँ, और इसलिए आपको बताना भी भूल गई।
"अरे यार ये कोई समय हैं आने का घर? , मैं कबसे तुम्हें फोन पर फोन कर रहा था, जब फोन उठाना ही नहीं तो इस्तमाल क्यूँ करती हो? फेंक दो उसे कही " हरीश गुस्से में बड़बड़ाता हुआ अंदर चला गया, मैं भी इतनी बड़ी गधी हु ऑफिस से निकलते ही अपना फोन मैंने अपने पर्स मे रख दिया था और हरीश का गुस्सा जायज था,मैने फोन पर्स से निकाला तो मुझे हरीश के करीब करीब 8 मिसकॉल दिखे , अब जल्दी से बातघुमाने के लिए मैं भी थोड़ी गुस्सा हो गई, "हरीश आप बाहर देख नहीं रहे क्या कितनी बारिश हो रही हैं, मैं कबसे अपनी कार में ही फ़सी रही ", मेरे मन में से आवाज आयी हाँ, रंडी कार में तो थी, पर जमाल के लंड पर फ़सी हुई। मैं अंदर ही अंदर गुदगुदाने लगी और अपने आप को संभाला और जैसे तैसे हरीश को भी मना लिया। मुझे इतनी रात हुई इसलिए हरीश ने खुद ही बाहर से खाना ऑर्डर कर दिया था। मैं जब तक कपड़े बदल कर वापिस आयी तो हरीश का भी मूड ठीक होने लगा था। हमने साथ खाना खाया और साथ मैं सोफा पर बैठ कर टीवी देखने लगे , अगला दिन शनिवार था तो हम दोनों को ही अपने ऑफिस से छुट्टी रहती, अक्सर हरीश शुक्रवार की रात को देर रात तक जागते।
मेरी और हरीश की शादी करीब ढ़ाई साल पहले हमारे घर वालों की मर्जी से हुई थी। उनकी उम्र इस समय कुछ 38 साल की हैं, और वो केंद्रीय सरकारी अधिकारि हैं। इंसान के तौर पर वो काफी अछे स्वभाव के, साधारण और सुलझे हुए व्यक्तित्व के इंसान है , पर साथ ही साथ वो थोड़े से घमंडी, पुराने ख़यालात और गुस्सैल भी हैं। शादी के बाद से ही हम दोनों मे कभी कुछ खास नहीं बन पाई, हालाकि समय के साथ-साथ हम दोनों को ही अपने अपने विपरीत स्वभाव की आदत हो गई, अब जैसा आप सब जानते है शादी का दूसरा नाम है समझोता, तो हमने भी अपनी जिंदगी से अपने माता-पिता की खुशी चाहते हुए इस शादी को स्वीकार किया। हमारे स्वभाव और जीवन शैली बिल्कुल अलग होने के बावजूद हमने एक दूसरे का बखूबी खयाल रखा है, हम एक दूसरे के काम की, एक दूसरे के विचारो की इज़्ज़त करते है। मै ऐसा काम कभी नहीं करती जिससे उन्हें कोई दिक्कत हो,या करूँ भी तो उन्हें उस बात का पता ना चले इसका पूरा ख्याल रखती हूँ और वो भी ध्यान रखते हैं कि उनकी किसी हरकत से मैं नाराज ना हू। इन 3 सालों में हमने एक पति पत्नी की तरह रहना तो सीख लिया है पर अफसोस के साथ हम अब तक एक दूसरे के दोस्त नहीं बन सके। हालाकि इसके वजह से हमारी सेक्स लाइफ में कुछ खास फर्क नहीं पड़ा, हम अक्सर एक दूसरे के साथ सेक्स का मज़ा लेते रहते हैं पर आपको ये भी सच बता दु की उसमे वो शिद्दत और वो जुनून नहीं मेहसूस होता जो आप सिर्फ और सिर्फ अपने किसी करीबी प्रेमी या दोस्त के साथ मेहसूस कर सकते हो। बहोत से लोग जिनकी अरेंज मैरेज होती है, उनको अक्सर यह बात खटकते रहती है कि बिस्तर पर ज्यादा खुलने से हो सकता है वो आपको शायद कुछ और नजर से देखे, आप अपने साथी से ना जाने अपनी पिछली जिंदगी के राझ छुपाये रहते हो और आप कभी नहीं चाहते कि उन्हें वो सब कभी पता ना चले। अगर मैं अपनी बात करूँ तो जैसे मैंने बताया, अपने पति से मेरा स्वभाव एकदम अलग था, मैं कानपुर के पास के एक छोटे गाँव से थी और 18 साल की उम्र में अपनी आगे की पढ़ाई पूरी करने दिल्ली आ गई थी। तबसे अब तक मैंने इसी शहर को अपना घर कहा है, इस समय मेरी उम्र 32 साल हैं और करीब 14 साल से मैं दिल्ली में रह रही हूँ। रंग रूप से मैं उपर वाले की शुक्रगुज़ार हूँ, कि उसने मुझे आकर्षित जिस्म और रूप से नवाजा। मेरी ऊंचाई 5 फिट 8 इंच की हैं, और रेग्युलर जिम जाने से मैंने अपना फिगर भी काफी अछे से सवारा है। मेरी छाती 34c की हैं , कमर 30 की, और अछि सुडौल उभरी हुई 36 की गांड जो कि मेरे ऊँचे कद पर खूब जचति हैं, गोरा रंग होने के साथ-साथ, मैं अपने आप का बहोत खयाल रखती हूँ, हमेशा अछे कपड़े और पहनावे मैं रहती हूँ, जो कि मुझे रहना भी पडता है। मैंने अपना MBA भी दिल्ली से ही किया हैं और उसके बाद से ही मैं अब तक 3 बड़ी कॉर्पोरेट कंपनी के लिए काम कर चुकी हूं।
टीवी देखते देखते मुझे पता ही चला कब हरीश मेरी जांघों पर हाथ फेर रहे थे, मेरी तरफ से कोई भी प्रतिसाद नहीं आया तो वह मेरी और मूड कर मुझे देखने लगे, अचानक मुझे क्या चल रहा था उसका एहसास हुआ और मैंने उनके हाथ पर अपना हाथ रख कर उन्हें आँखों ही आँखों में आगे पढ़ने का अंदेशा दे दिया, उन्होंने मेरी कमर पकड़ कर मुझे अपनी और खींचा और मेरे होंठ से होंठ मिला कर मुझे चूमने लगे। सोफा पर ही वो मेरे ऊपर लेत गए और मैंने भी बाहें फैला कर उनका स्वागत किया, अक्सर सेक्स के दौरान हम बिना एक दूसरे कुछ कहे ही सब कर लेते थे , इतने साल साथ रहने के बाद हमारे बीच एक अलग सा बंधन था, जिससे हम बिना कुछ कहे ही एक दूसरे की बात समझ जाते। उपर लेट कर वो मेरा गाउन उपर की तरफ खिसकाने लगे, मैने भी उनकी मदद करते हुए उसे अपने कंधों से ऊपर किया और उतार कर जमीन पर फेंका, फिर उनका पजामा उतारने मे उनकी मदद करने लगी, पजामा उतारते ही वो घुटनों के बल सोफा पर मेरी कमर के पास आ गए और मैं थोडी सी उठ कर उनकी चड्डी के उपर से उनके लंड को चूमने लगी, उन्हें ये बहोत अछा लगता था और मेरा सिर पकड़ कर मेरा चेहरा अपने लौडे पर दबाने लगे, आपको बता दु उनका लंड मेरे गालों से लेकर मेरे माथे तक छू रहा था, और मुझे उसमे काफी मज़ा आ रहा था, मुझे हमेशा से ही लंड चूसना बहोत पसंद था, और शादी से पहले और जैसा कि आपको पता ही हैं शादी के बाद भी मैं इसका मज़ा लेना नहीं भूली हूँ।
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दोनों हाथों से मैंने उनकी चड्डी को नीचे उतारने लगी तो, चट्ट से उनका लंड मेरे चेहरे पर आ गिरा, उनका लंड उतना मोटा नहीं हैं पर लंबाई मैं अछा हैं, अपने हाथ मैं लेकर मैं उससे अपने पूरे चेहरे पर घुमाने लगी, मानो उनके लंड से मसाज कर रही हूँ, उनके लंड से थोड़ा थोड़ा पुर्व वीर्य का पानी टपक रहा था, जो मैं खुद अपने हाथ से लौडा पकड़ कर मेरे गालों पर, गर्दन पर, माथे पर फ़ेर रही थी। हाथ में पकड़े हुए मैने उनकी चमड़ी पीछे सरका दी तो उनके मुह से एक "आह" की आवाज आयी, ये दर्द की थी या मजे की ये सोचे बिना मैने उनका सूपाड़ा अपने मुह मे लिया और अंदर से अपनी जीभ से उनके लंड के टोपे को खूब चाटने लगी, सोफा से उठ कर मैंने उन्हें पीठ के बल लिटा दिया और नीचे सरकते हुए उनके घुटनों के पास आ गई, एक हाथ से मैं उनके गेंदों को सहला रही थी, और दूसरे हाथ उनका लंड हिलाते हुए उसे चूसें जारी थी, मैं जानती थी कि इसी रफ्तार से करती रहूंगी तो वो ज्यादा देर टिक नहीं पाएंगे, ऐसा नहीं कि मुझे उनसे चुदने मैं कोई आपत्ति है, पर मैं कुछ ही घंटे पहिले जमाल से पूरी मस्ती से अपनी चुत मरवा के आयी थी, और अब भी वो सूजन से भरी लाल हो रखी थी, सो आज अगर हरीश मुझे चोदते तो उन्हें कुछ ना कुछ फर्क तो जरूर मेहसूस होता, मर्दों मैं ये खासियत तो होती ही है, उनका जीवन चाहे पूरा बिखरा प़डा हो, पर अपनी हमेशा की चुत मे एक रत्ती भर का भी फर्क रहा तो वो उसे झट से पकड़ लेते हैं। अब आप मुझे समझदार कहे या कमिनी, पर हर इंसान अपना झूट छुपाने सारे पैंतरे तो आजमाता ही है। मैं दोनों हाथ से उनका लंड पकड़ कर हिलाने लगी और जैसा मैंने सोचा था, कुछ ही देर मैं वो सिसकारी लेते हुए मेरे हाथों मैं ही झड़ गए। उनका सारा वीर्य वो मेरे हाथ पर ही झड़ने लगे और मैं जोर जोर से उनके लंड को अब भी हिला रही थी। हरीश दोनों हाथों से अपना चेहरा छुपा कर मदमस्त लेते हुए ही थे, उनके करीब जा कर मैने उनके होंठ पर किस करते हुए पूछा "आपको मज़ा आया ना हरीश ", उन्होंने मेरी देखा पर कुछ बोले ही नहीं सो मै उनकी छाती पर सर रख कर लेत गयी, और उनके गिरे हुए वीर्य से अपने हाथ से खेलने लगी, तब उन्होंने नाराज होते हुए कहा, "क्या यार रश्मी, तुमने तो मेरा यही गिरा दिया, मुझे आज चोदने का मन था " , "सॉरी हरीश, मुझे नहीं पता था आप झड़ जाओगे" , मैने नाटक करते हुए फिर उनका लंड अपने मुह मैं ले लिया और उसे चूसना शुरू किया, " फिर खड़ा करो आप, और मुझे चोदलो हरीश " , "उम्म नहीं अब रहने दो रश्मी, मुझे नींद आने लगी अब , चलो बेडरूम मैं सोते हैं " हाहा मैं मन ही मन हसी और अपना गाउन पहन कर उनके पीछे पीछे बेडरूम मैं चली गई।
लेते हुए मैने देखा हरीश तो कुछ ही मिनटों मैं सो गए और खर्राटे लेने लगे, लेते हुए मुझे अब भी नींद नहीं आ रहीं थीं, और मैं पूरे दिन भर की चीजें सोचने लग गयी, खिड़की से बाहर देखा तो बारिश अब भी शुरू ही थी, बाप रे मैंने सोचा आज क्या ये रुकने का नाम नहीं ले रही। बारिश का सोच कर अपने आप मेरा मन आज जमाल से हुई मेरी चुदाई पर आ गया, और एक हाथ से मैं अपनी चुत सहलाने लगी, आह रश्मी तू बहोत ही बड़ी वाली चुदकक्ड हो गयी है, मेरा मन मुझसे ही बहस कर रहा था, अब तू शादी शुदा औरत हैं बेवकूफ अब तो ये सब बंद कर दे, किसी दिन पकडी जाएगी तो सब बर्बाद हो जाएगा। ये सब खयाल आते ही मैंने कुछ और सोचना शुरू कर दिया और सोने की कोशिश करने लगी।
करीब 1 घंटा करवटें बदलने के बाद भी नींद मुझ पर मेहरबान होने का नाम नहीं ले रही थी, मैंने आंख खोली और उपर बस छत्त की और बिना किसी वजह ही देखती रही। मेरे मन में अब भी कयी सारे सवाल और बातें एक साथ घूम रही थी जिसकी वजह से ना मैं ठीक से सो पा रही ना कुछ सोच पा रही थी।
यूँही ख़यालों मैं भटकते हुए, मुझे एहसास हुआ कि लाइफ कितनी अलग होती अगर मैं कानपुर से यहां आती ही नहीं, क्या मैं आगे की पढ़ाई करती? क्या जो मजे मैंने अब तक लिए वो ले पाती? "शाम 6 बजे से पहले तुम घर आ जाना रश्मी, वर्ना तुम्हें लेने मैं खुद आया करूंगा कल से ट्यूशन तुम्हारे " मेरे पिताजी बात मेरे दिमाग मैं आयी और मैं मन ही मन हस पड़ी, हाहा नही नही मैं वहां रहती तो कुछ नहीं कर पाती अपनी लाइफ में। मुझे मेरे घर से और घर वालों से बहोत प्यार हैं पर वहां रहना किसी जैल मैं रहने से कम थोड़ी था। शुक्र हैं मेरी सहेली नेहा का, जिसके माँ बाप ने आकर मेरे घर वालों को समझाया, कि दोनों को साथ दिल्ली भेजते हैं, आगे की पढ़ाई करेगी तो जिंदगी मैं कुछ हासिल करेगी, साथ रहेगी तो एक दूसरे का खयाल भी रखेगी , कितने ही दिन मेरे पिताजी इसके खिलाफ ही थे, मैने माँ से कह कह कर उन्हें जैसे तैसे अखिर मना ही लिया था। शुक्र हैं कि मुझे और नेहा को दिल्ली यूनिवर्सिटी में एक ही जगह दाखिला मिला, शुक्र हैं मेरे इतने अछे दोस्त बने, शुक्र है करमजीत का जिससे मुझे सेक्स का, प्यार का, एक दोस्ती से बढ़ कर एक रिश्ते का एहसास हुआ। ह्म्म करमजीत ! पता नहीं कहा और कैसा होगा वो, क्या वो भी मेरे बारे में सुनी रातों मैं सोचता होगा, क्या उसकी भी शादी हो गई होगी? हमारे रिश्ता जिस खूबसूरती से शुरू हुआ था उतनी ही बुरी तरह खत्म भी हुआ, सो करीब 12 साल से ना मैंने उसकी शक्ल देखी है ना उसके बारे मैं कभी जान ने जुर्रत, पर फिर भी उसे मिले 14 साल बाद भी वो मुझे आज भी याद आता है, ना जाने क्यूँ, उसके बाद कितने आए और गए पर उनमे से कभी कोई इतना याद नहीं आता। शायद इसीलिए क्यूंकि वो मेरा पहला था। मेरा पहला बॉयफ्रेंड, पहला प्यार, पहला लंड। आप जिंदगी मैं चाहे जितने मर्दों के नीचे आए , चाहे जितने लंड आपको चोद चुके हो। पर आप उससे शायद ही कभी भुला सकते हो जिसने पहली बार आपकी सील तोड़ी है। ये शायद सिर्फ मेरे साथ है या सबके साथ पता नहीं, पर पहले अनुभव को भुलाना साँस रोकने जैसा है।
पुरानी बातें याद करते हुए पता नहीं मुझे कैसे नींद आ गई, और देखते ही देखते मैं दिल्ली की एक 32 वर्षीय शादी शुदा ,कॉर्पोरेट कंपनी मे काम करने वाली प्रोफेशनल औरत से सीधा एक कानपूर के रेल्वे स्टेशन पर खड़ी, 18 साल की छोटे गाँव की लड़की बन गयी, जो आँखों मैं तेल लगा कर दिल्ली जाने वाली अपनी ट्रेन का इन्तेज़ार कर रही थी, हजारो सपनों के साथ एक नई शुरुआत करने। उसके अगल बगल मे उसके माँ बाप उसे ना जाने कितनी बाते बता रहे थे, "जा कर फोन करना", "अपना ठीक से खयाल रखना", "सिर्फ अपनी पढ़ाई पर ध्यान देना ", "देर रात नहीं घूमना", "लड़कों से दूर रहना " , और ना जाने क्या क्या।
पर उस लड़की का इनमे से एक भी बात पर जरा भी ध्यान नहीं था, उसे तो बस अपने आने वाले समय का इन्तेज़ार था । घर से दूर रहने का डर भी और पहली बार मिलने वाली आजादी का एहसास भी, ये सारी बातें उसे उत्तेजित कर रही थी और तभी ट्रेन के आने की आवाज आयी और वो लड़की खुशी से कूद उठी और अपनी माँ को गले लगा कर बोली "माँ देखो गाड़ी आ गयी" , उसकी माँ ने कहा "हाँ रश....." कितनी मासूम और खुश लग रहीं हैं वो। ना जाने कौन है, अचानक से मेरे मन में आवाज आयी, ये मैं ही तो हूँ ।
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