भाग -----1
निशित जहाँ इस उधेड़बुन में था कि उसने नेहा को छेदी से चुदवा कर ठीक किया या नहीं। वही नेहा को भी चुदाई का खुमार उतर जाने के बाद खुद को दोषी महसूस कर रही थी। वो सोच रही थी कि कैसे वो पिछले कुछ दिनों में इतने गंदे-बदबुदार लोगों के साथ हमबिस्तर हो चुकी थी। जिनको हाथ लगाने के नाम से ही उसकी जैसी हाई क्लास मॉडर्न औरत को उल्टी आ जाए। इतना हैंडसम पति के होते हुए भी कैसे वो इतने गंदे लोगों की तरफ आकर्शित हुई.......? कैसे उसे बदबुदार बीड़ी पीने वाले होठों से होठ मिला कर चुम्बन लेने में आनंद आने के लगा? कैसा वो बार-बार इन लोगों के हाथों कि कठपुतली बनती जा रही है? नेहा की कुछ समझ में नहीं आ रहा था।
निशित ने कितने प्लान बनाए कैमरा भी फिट किया पर जब नेहा चुदी तो वो देख नहीं पाया। सावी ने भी संक्षिप्त में ही उसे बताया। क्योंकि जब ये कुछ हुआ था तब सावी ने भी नहीं देखा था। पर सिर्फ ये आप कल्पना करना से ही की नेहा का गोरा बेदाग जिस्म छेदी लाल के बड़े मोटे शरीर के नीचे उछल-उछल कर चुदवा रही है। इस कल्पना मात्र से ही निशित के लंड में हलचल होने लगी है। वो नेहा से प्यार करता था पर सेक्स के प्रति उसकी उदासीनता उसे पसंद नहीं थी। वो उसे हॉट और सेक्सी बनाना चाहता था और वो जनता था की कैसे उसने ही नेहा को सेक्स के दलदल में ढकेला था? इसलिये जो भी ये हुआ उसके लिए वो ना नेहा को कसूरवार मान रहा था ना उससे नेहा से कोई गिला था। उसे बस एक ही चिंता थी कि कहीं नेहा को ये पता न चल जाए कि इस सबके लिए वो ही जिम्मेदार था। उसका बस एक ही राजदार था और वो थी सावी...। उसे सावी से बात करनी पड़ेगी ये सोचते-सोचते निशित को नींद आ गई। नेहा भी ये सोचते हुए सो गई की, अब वो छेदी लाल से कभी नहीं मिलेगी।
छेदी लाल विवाहित महिलाओ के साथ संबंध बनाने के मामले में पुराना खिलाड़ी था, वो जनता था की नेहा है वक्त किस दौर से गुजर रही होगी? ऐसी चुदाई के फौरन बाद अपने को अपराध बोध मानना स्वाभाविक था और उसे यही सोच कर नेहा को कुछ दिन परेशान न करने का फैसला कर लिया था। आखिर इतने हसीन माल को चोदने का उसका ख्वाब तो पूरा हो गया था पर उसे पूरी तरह से अपने लंड पर नचाने के लिए उसे अब सब्र की जरूरत थी जो की उसमे काफी था।
सुबह जब सावी ने दरवाजा खटखटाया तो नेहा ने ही खोला। सावी उसे देख कर चहक कर मुस्कराई पर नेहा ने ठंडा सा प्रतिक्रिया दिया। सावी समझ गई की नेहा मैडम का मूड खराब है। उसे ज्यादा दखल देना सही नहीं समझा और वो अपने काम में लग गई। नेहा का सर दर्द हो रहा था इसलिय वो भी अपने बेडरूम में जा कर लेट गई। सावी जब किचन में बरतन साफ कर रही थी। तब निशित ने आ कर उसकी गांड़ पर जोर से चुँगटी काटी जिससे वो एक बार उछल पड़ी पर फिर निशित को देखकर शांत हो गई। निशित ने पीछे से उसे अपनी बाहों में भर लिया और अपने खड़े लण्ड को उसकी गांण की दरार में चुभाते हुए अपने हाथों से उसके दोनों चुची को ज़ोर से निचोड़ दिया
सावी- "क्या बात है साहब आज सुबह-सुबह ही तैयार हो गए हो क्या बात है?"
निशित- “अरे बात तो वही है जो तुने कल बतायी थी। विश्वास नहीं हो रहा की जो तुने कहा था वो सच था।”
सावी- "क्यों नहीं लग रहा?, क्या नेहा मैडम का मूड नहीं दिख रहा है?"
निशित- "हां पर ये तो उल्टा ही हो गया मैं हाॅट और सेक्सी बनाना चाहता था और वो तो एकदम ठंडी लग रही है आज।"
सावी मुस्कराई और अपना एक हाथ पीछे ले जा कर उसके लंड को सहलाते हुए बोली
सावी- “अरे साहब कुछ तो समझो.. नेहा मैडम कोई रण्डी नहीं है जो इतनी बड़ी बात से खुश होगी। अरे वो तो आपको बहुत प्यार करती है। अगर आपने और मैंने खुद से उनको छेदी की ओर ना ढकेला होता तो वो कभी भी उसके हाथ न लगती।”
निशित- "हां पर मैं गलत निकला जो ये सोचता था की नेहा ऐसा कभी नहीं कर सकती।"
सावी ने हस्ते हुई उसके लंड को ज़ोर से दबाया और बोली
सावी- "अरे साहब उसको अगर ऐसे ही भुखा रखोगे तो मौका मिलने पर ये कुछ भी कर गुजरेगी।"
निशित- "जो भी हो मुझे हाॅट और सेक्सी नेहा चाहिए। इस तरह से स्थिर और गंभीर नहीं।"
सावी- "आप चिंता मत करो साहब आज का दिन जाने दो। मैं मैडम को फिर से मूड में लेकर आऊंगी।"
निशित को ऑफिस जाना था इसलिये ज्यादा देर सावी के साथ नहीं खेल सका। सावी भी काम करके नेहा को आवाज लगा कर चल दी। नेहा सारे दिन अनमने भाव से काम करती रही। समय पास करती रही। रह-रह कर उसे अपने आप पर गुस्सा आ रहा था। शाम होते-होते वो थोड़ा बेहतर महसूस करने लगी और तब उसे अहसास हुआ की आज छेदी लाल ने फोन नहीं किया। वो तो सोच रही थी आज छेदी लाल उससे मिलने से रोक नहीं पाएगा और जब वो घर आएगा तो वो उसे साफ-साफ मना कर देगी। पर घर आना तो दुर उसने उसे फोन तक नहीं किया। खैर मुझे क्या ये सोच कर नेहा फिर से अपने काम में लग गई। शाम को निशित ने खाने के बाद उसे पान खाने के लिए चलने के लिए कहा तो उसने मना कर दिया और बेडरूम में जा कर लेट गई। निशित पान खाने चला गया। निशित को देख कर न-जाने क्यों आज छेदी लाल का दिल धड़क गया। यूं तो वो कई बार नेहा के साथ निशित के पीठ पीछे मस्ती कर चुका था पर अब जबकी वो उसकी बीवी को चोद चुका था। उसे लगा की अगर ये बात निशित को पता लगी तो वो न-जाने क्या करेगा?
छेदी- "आइये निशित बाबू आज अकेले?"
फिर भी अपने स्वर में बिना कोई परिवर्तन लाए अपने ही अंदाज में छेदी बोला
निशित- "अरे हां आज नेहा की तबियत कुछ ठीक नहीं थी।"
छेदी- "अरे बाबू क्या हुआ खैरियत तो है ना?"
निशित ने गहरायी से उसकी आंखों में देखा पर साला एकदम शातिर था उसे बिलकुल भी जाहीर ना होने दिया।
निशित- "अरे कुछ खास नहीं बस ऐसे ही।"
कहकर उसने छेदी से पान खाया। और बोला
निशित- "कल शनिवार है और भारत और वेस्टइंडीज का वनडे मैच भी है आ जाओ पार्टी करते हैं।" निशित ने पासा फेंका। छेदी खुश तो हुआ पर वो जनता था ये अभी उसके सब्र का इम्तेहान है, वो बोला
छेदी- “अरे नहीं साहब वो कुछ दिन पहले मेरी मां की तबियत खराब हो गई थी। कल उनको डॉक्टर के पास लेकर जाना है। चेकअप के लिए इसलिय गाँव जाऊँगा कल तो।
हां अगले मैच में अगर आपका मुड हुआ तो याद करना।”
निशित- "अच्छा ठीक है, अभी चलता हूं।"
निशित मायुस होकर घर लौट आया।
वो बेडरूम में नेहा की बगल में आकर लेट गया तो देखा की नेहा जग रही है। उसकी आंखें सूजी हुई लग रही थी। साफ लग रहा था की वो बहुत रोई थी। उसने देखकर भी अनदेखा किया वो नहीं चाहता था की नेहा इमोशनल होकर कुछ भी उसके सामने कबूल करे, वो बोला
निशित- "नेहा ये साला छेदी भी बहुत भाव खाने लगा है।"
छेदी का नाम सुन कर नेहा ने तुरंत उसकी ओर देखी फिर धीरे से बोली
नेहा- "क्यों क्या हुआ?"
निशित- "अरे साले को बोला की कल मैच है घर एक जाओ पार्टी करते हैं पर बोला मुझे गाँव जाना है।"
नेहा-“अरे तो इसमें क्या है? जाना होगा उसे गाँव। उसकी माँ की तबियत खराब थी ना।"
नेहा बोल कर अचानक से चुप हो गई।
निशित- "अच्छा तुम्हे मालुम है?"
निशित ने उसकी आँखों में झाँका
नेहा- "हां वो कुछ दिन पहले जब में सावी के घर गई थी तब उसने बताया था।"
निशित- "हम्म वैसा बोल रहा था अगले मैच में आ जाएगा.. ठीक है देखते हैं..वैसे साले का पान लाजवाब है। सॉरी तुम्हारे लिए नहीं लाया आज।"
नेहा- "कोई बात नहीं मेरा मूड नहीं है।"
निशित- "क्या हुआ है तुम्हें सुबह से देख रहा हूं .... किसी से कोई बात हुई क्या?"
नेहा- "नहीं बस ऐसे ही सुबह से सर में दर्द हो रहा है।"
निशित- "टैबलेट दू।"
नेहा- "नहीं शायद सो कर ठिक हो जाएगा।"
निशित- "ठीक है तो शुभ-रात्रि।"
ने
हा- "शुभ-रात्रि"
अगले दिन सावी निशित के जाने के बाद ही आई। नेहा को देख कर आज भी सावी जोर से मुस्कराई और बदले में नेहा ने भी उसका मस्कुरा कर अभिवादन स्वीकर किया। उसको काम बता कर नेहा नहाने चली गई और सावी अपने काम में व्यस्त हो गई। नेहा नहा कर पीले कलर के खूबसूरत गाउन में बहार आई। स्लीवलेस गाउन उस पर खूब खिल रहा था और वो बला की खूबसूरत लग रही थी।
सावी- "वाह मेमसाब आज तो आप बहुत खूबसूरत लग रही हो।"
नेहा- "चुप कर हर वक्त मसका लगाती रहती है।"
सावी- "नहीं मेमसाब वकाई में कसम ले लो।"
नेहा- "चल ठीक है। सुन.... उस दिन जो हुआ वो...।"
सावी ने आगे बढ़के उसके होठों पर उगली रख दी।
सावी- "मेमसाब ये सिर्फ आपके और मेरे बीच रहेगा आप चिंता न करें।"
नेहा उसके चेहरे को देखती रही फिर मुस्करा दी। सावी ने फिर कुछ देर काम करके अपने और नेहा के लिए चाय बनाई और वो साथ में बैठक रूम में बैठकर चाय पीन लगी।
सावी- "मेमसाब छेदी लाल की मां की तबियत फिर खराब हो गई है इसलिय वो आज गाँव जा रहा है।"
नेहा- "हां मुझे मालूम है निशित ने बताया था।"
सावी- "वो मैं कह रही थी की दो दिन आपके यहाँ रुचि आएगी तो चलेगा?"
नेहा- “क्यों तू कहा जा रही है?………. ओह तो तू भी छेदी लाल के गाँव जाएगी?”
नेहा को पता नहीं क्यों इस बात से हल्की सी जलन सी हुई।
सावी- "वो मेमसाब छेदी लाल मान ही नहीं रहा। कह रहा था कि आखिरी बार बोल रहा हूं। अगली बार नेहा मेमसाब को लेकर जाऊंगा।"
नेहा- "मैं क्यों जाने लगी उसके गाँव?"
नेहा तुनक कर बोली।
सावी-"अरे मेमसाब मस्त गाँव है उसका। शांति और सुकुन है, एक नदी बहती जिसमे खुब नहाओ नंगे होकर कोई देखने वाला भी नहीं.. ही ही ही।"
सावी के चेहरे पर कुछ सोचकर लाली आ गई।
नेहा- "हम्म तो ये बात है। माँ के इलाज के लिए जाता है की नंगा नहाने।”
इस बार सावी और छेदी लाल को नंगे नहाने का सीन की कल्पना करते हुये उसे थोड़ी ज्यादा जलन हुई, पर उसने सावी को ज़हीर नहीं होने दिया।
सावी- "अरे मेमसाब मां को ठीक देखने के बाद ही उसका मूड बन जाता है।"
नेहा- "ठीक है भेज देना रुचि को समय से।"
सावी- "धन्यवाद मेमसाब।"
नेहा अब नॉर्मल होने लगी थी। उसे लग रहा था कि अब उसे छेदी लाल से मिलने की कोई जरूरत नहीं थी पर वो कहां जानती थी कि जो स्वाद उसकी चुत को इन निचले होठों को लंड का लग गया है। अब वो उसे चेन से जीने नहीं देंगा, और इस चुत की भूख के आगे कैसे बार-बार बेबस हो जाएगी?
रुचि- "नेहा मैडम वो अकरम(छोटु) मिलने के लिए बोल रहा था।" रुचि अपना काम निपटाने के बाद डरते-डरते नेहा से बोली।
नेहा- "क्यों उसे और कोई जगह नहीं मिलती क्या?"
रुचि- "नहीं मैडम.. और आज छेदी लाल भी गाँव गया है और मां भी घर पर नहीं है। ऐसा मौका हम दोनों कभी-कभी ही मिलता है।"
उसकी मासुमियत भरी बात सुन कर नेहा को हँसी आ गई।
नेहा- "अच्छा आग तो तुझमें भी कम नहीं लगी है.. पर मुझे तेरा ये अकरम(छोटु) बिलकुल पसंद नहीं है।"
रुचि- “पता नहीं मैडम वैसा वो बहुत अच्छा है और मैडम वो तो आपको बहुत पसंद करता है। कहता है ऐसे मक्खन जैसे जिस्म वाली को तो हीरोइन होने चाहिए।”
नेहा- "अच्छा ज्यादा मसका न लगा।"
रुचि- “नहीं मैडम सच कह रही हूं आपकी बहुत तारिफ करता है और कहता है कि आपके पति बहुत भाग्यशाली है जो आप जैसी सेक्सी----- मतलाब खूबसूरत औरत उन्हे मिली है।"
नेहा- "चल-चल लेकिन देख समय से निकल जाना निशित के आने से पहले।"
नेहा ने रुचि का मन देखते हुए न चाहते हुए भी इजाजत दे दी।
थोड़ी ही देर बाद बेल बजी तो रूचि ने ही उठकर दरवाजा खोला। छोटू उर्फ अकरम अन्दर आया और बड़े ही सम्मान से उसे नेहा का अभिवादन किया।
छोटु- "क्या मेमसाब आजकल आप पान खाने नहीं आ रही?"
नेहा- "वो मेरा मूड नहीं है।"
छोटु- "मैडम आज आईयेगा ना क्योंकि उस्ताद गाँव गया है और आज मुझे मौका मिलेगा आपको पान खिलाने का।"
नेहा- "मेरा कोई मूड नहीं है फिर भी देखेंगे।" नेहा जनती थी की छोटू को जितनी बाते पता है उतनी तो सावी और छेदी लाल को भी नहीं पता इसलिये वो उससे ज्यादा बहस करके उसे गुस्सा नहीं दिलाना चाहती थी।
नेहा- "ठीक है मैं बेडरूम में जा रही हुँ। रुचि कुछ जरूरत हो तो बता देना।"
छोटू को भी लगा की नेहा थोड़ी सीरियस है इसलिय उसने भी कुछ मजाक करना ठिक नहीं समझा और नेहा अपने बेडरूम में आ गयी। दरवाजा उसने थोड़ा सा बन्द किया और वो आराम करने लगी।
रुचि- "अरे क्या कर रहा है इतनी जल्दी किसलिए?"
छोटु- “अरे उस दिन भी खड़े लंड पर धोखा हो गया था। आज जम के चोदुँगा तुझे।”
कहते हुये उसने रुचि को बाहों में भर लिया और उसके होठो को बेतहाशा चूमने लगा। रुचि के हाथ भी उसके सर के पीछे आ गए और वो भी उसके चुंबन उसका साथ देने लगी। दोनों की जिभ एक-दुसरे से कुस्ती लड़ने लगी। और दोनों किस करते-करते सोफे के पास आ गये। छोटु ने जल्दी से रुचि का टॉप उतार कर सोफे के पीछे फेंक दिया, और ब्रा का हुक भी खोल दिया। रूचि भी उतनी ही उतावली थी उसने भी झट से छोटू की पैंट के हुक और ज़िप खोल कर पैंट को नीचे की ओर सरका दिया। ये सब करते हुये भी उन दोनों ने एक-दुसरे को चुमना चालु रखा। छोटू ने अपनी पैंट को भी लात मार के दुर फेंक दिया और रुचि की स्कर्ट की जिप खोल दी। जिप खुलते ही उसकी स्कर्ट जमीन पर सरक गई, और दो कदम आगे बढ़कर रुचि ने स्कर्ट को आजाद कर दिया। अब रुचि सिर्फ एक पैंटी में थी, और छोटू अभी भी टी-शर्ट और अंडरवियर में था। दोनों का चुम्बन रुका तो दोनों की साँसे भारी हो रही थी। रुचि ने आगे बढ़कर छोटू की टी-शर्ट को उतारा और छोटू ने खुद को अपने अंडरवियर से आज़ाद कर दिया। उसका लंड तम्बु की तरह तन गया था। उसने फिर से रुचि से लिपट कर उसके होठों को चुसने लगा। और फिर उसकी शरीर को चुमते हुये नीचे की ओर बढ़ने लगा। रुचि के जवान और टाइट चुची को एक-एक कर दबाया। उसके दोनों निप्पल तन कर खड़े थे। उनको बारी-बारी से मुह में लेकर चुसा। जिससे की रुचि के मुह से सिसकारी निकल गयी। छोटु घुटनो के बल बैठ गया, और रुचि की नाभि को जीभ से कुरेदने लगा। फिर उसने उसकी चुत की महक को पैंटी के उपर से सूंघा और पीछे हाथ ले जा कर पैंटी के उपर से ही उसकी गाड़ को जोर से दबाया तो रूची की कराह निकल गई। उसने हल्के से छोटू के सर पर थप्पड़ मारा।
रुचि- "धीर नहीं कर सकता क्या?"
छोटु- "अरे गांड़ चीज ही ऐसी है, ना इसे धीरे दबाया जाता है और ना धीरे मारा जाता है।"
कहते हैं छोटू ने रुचि की पैंटी भी उतर दी जिससे उसके कोमल हल्के बालों वाली प्यारी सी चुत सामने आ गई। छोटू ने उसकी चुत को चुमा। और बोला
छोटु- “यार बहुत दिन हो गए तेरी चुत मारे अब रहा नहीं जाता।"
कहकर उसने रुचि को गोद में उठाकर सोफे पर लिटा दिया। दोनों बेतहाशा एक-दुसरे को चुमने लगे। दोनों की सिसकियाँ और आवाज नेहा को अन्दर बेडरूम तक सुनाई दे रही थी। काफ़ी देर तक बर्दाश्त करने के बाद नेहा में भी उत्सुकता जागी। दोनों की काम-क्रीड़ा देखने की। तो वो चुप-चाप दरवाजे के पीछे आ कर देखने लगी। छोटू की पीठ उसकी तरफ थी और रुचि अगर पूरी गर्दन घुमाती तो उसे देख शक्ति थी। मतलब उसके लिए वो नजारा देखना बेहद आसान था। छोटू उस वक्त रुचि की टाइट चूचियों को ज़ोरों से मसल रहा था। और रह-रह कर उसके निपल्स को भी मसल रहा था। जिससे उसकी सिसकारियाँ बढ़ती जा रही थी। तुरंत ही नेहा के रोंगटे खड़े हो गए और जो अपराधबोध की भावना अब तक उसके अंदर थोड़ी बहुत बची हुई थी, वो भी बिना डर के गायब हो गई। दो जवान नंगे जिस्म उसके ही बैठक वाले कमरे में मस्ती कर रहे थे। ये देख उसकी चुत फड़कने लगी। इस बीच छोटू नीचे से रुचि की दोनों टंगों के बीच आ गया था और उसकी चुत को बड़ी ही तन्मयता से जिभ से चाटने लगा।
“आआह कमीने ज़ोर से आह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह् और और या और और और या नहीं.
रूचि इतनी ज़ोर से चिल्लाई की छोटू चौंक गया, और मुड़कर बेडरूम के दरवाजे की ओर देखने लगा, पर नेहा ने तब तक अपने आप को छुपा लिया था।
छोटु- "पागल तेरी मेमसाब आ जाएगी और फिर हमारा खेल बिगाड़ देंगी।"
रुचि- "आह आज वो नहीं आएगी। आज उन्हे पता है ना कि हम क्या कर रहे हैं?"
कहते हैं उसने अपनी दोनों टांगे उठाकर उसकी गर्दन के इर्द-गिर्द लपेट दी, और उसके सर को अपनी चुत पर जोर से दबा दिया।
नेहा- "कैसी उतावली हो रही है ये रूचि भी?"
नेहा मन ही मन बुदबुदाई पर खुद उसका एक हाथ बार-बार उसकी चुत को कपड़ो के उपर से ही दबा रहा था। अब दोनों ही पूरी तरह एक्साइट हो चुके थे। छोटू ने रुचि को ठीक से सोफ़े पर लिटाया, और फिर अपनी पैंट ढुढ़ने लगा। पैंट से पर्स निकला और बोला
छोटु- "इसकी माँ को चोदु, कंडोम तो घर ही रह गया।"
रुचि- "घर में क्या तेरी मां के लिए रखा है...? जा फिर मैं नहीं करने देती?"
छोटू उसके पास आ गया और उसे चुमता हुआ बोला
छोटु- "अरे बेबी खड़े लंड पर धोखा मत दे, मैं तेरे अंदर पानी नहीं छोडुँगा वादा।"
रुचि- "नहीं अगर तुने गड़बड़ कर दी तो मुझे बापु जान से मार देगा।"
छोटु -"अरे कोई गड़बड़ नहीं होगी मैं सारा माल बहार ही निकालूंगा। चल जल्दी कर नहीं तो मेमसाब बाहर आ जाएगी।"
कहते हैं उसे अपने लंड को उसकी चुत की दरार पर टिकाया और लंड की टिप से चुत की दरार पर उपर से नीचे फिराने लगा।
रुचि- “आह कमीने अब देर क्यों कर रहा है? डाल दे ना जल्दी कहते हुये रुचि ने अपनी दोनो टांगे उठा कर उसकी कमर के पीछे जकड़ लिया पर इससे पहले की छोटू शॉट मारता दरवाजे की घंटा बज गई। उन दोनों के साथ-साथ नेहा भी चौंक गई और अपने आप को दरवाजे के पीछे चुप लिया।
छोटु- "अब कौन माँ चुदाने आ गया भोसड़ी का।"
बोलते हुए छोटू उठा और नंगा ही दरवाजे की तरफ बढ़ा। दरवाजा पर लगे एक-तरफा मिरर से उसे बाहर झाँका और तुरंत भागता हुआ रूचि के पास आया।”
छोटु- "इसकी मां को चोदु अब तेरा बाप यहाँ क्या गाण मराने आया है।"
रुचि- "क्या बाबा...? हे तुम बाबा के बारे में कुछ गलत मत बोलना।"
छोटु- “अरे बेबी पर आया क्यों है तुम्हारा बाबा? मैडम का इससे क्या लफड़ा है?''
नेहा का दिल धड़क उठा, पर
रुचि बोली- "अरे कुछ भी मत बोल होगा कोई काम पर अब हम क्या करें?"
तब तक घंटी तीन बार और बाज गई, और तभी नेहा दरवाजे के बहार आ गई। छोटू सोफे के पास नंगा खड़ा था और अब उसका लंड थोड़ा लटक गया था। रुचि नंगी हड़बड़ाकर सोफ़े से उठी और अपने को ढकने करने के लिए कुछ ढूंढ़ने लगी पर उसके आस पास कुछ भी नहीं था।
नेहा- "ये कपड़े कितना बिखरा रखे हो ये सब उठाओ और जल्दी से मेरे बेडरूम में जाओ जल्दी?"
कहते हैं नेहा दरवाजे की ओर बढ़ गई। छोटू और रुचि भी जैसे नींद से जागे और अपने कपड़े समेट कर बेडरूम के अंदर भाग गए।
नेहा ने दरवाजा खोला तो जग्या खड़ा था। हल्की सी मुस्कान के साथ बोला-
जग्या- "मेमसाब नमस्कार.....वो सावी कहीं काम से गई है इसलिये सोचा ..."
नेहा- "क्या सोचा तुमने... समझ क्या रखा है मुझे... जब मुह उठाया चले आए?"
नेहा ने इस तरह से बोला की अंदर छोटू और रुचि ना सुन पाए हैं।
जग्या- "अरे मेमसाब नाराज ना हो वो मैंने सोचा की इस गरीब को कुछ पल आपके साथ बिताने का मौका .."
नेहा- "सुनो जग्या अब यहां कभी मत आना... और इस वक्त तुम्हारी बेटी रुचि अन्दर काम कर रही है कहो तो बुलाओ यहाँ।"
रुचि का नाम सुनते ही जग्या का चेहरा पीला पड़ गया।
जग्या- "क्या अरे नहीं मेमसाब उसे न बताना की मैं यहां आया था नहीं तो दस सवाल करेगी।
नेहा- "तो चलो दफा हो जाओ और आगे से आने की जरूरत नहीं है।"
छोटू और रुचि अन्दर से सुनने की कोशिश कर रहे थे। पर उन्हे कुछ सुनाई नहीं दिया तो वो दोनों फिर से एक-दुसरे को चुमने लगे।