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Incest मेरी बीवियां, परिवार..…और बहुत लोग…

prkin

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Congrats for reaching 1 Lakh milestone in such a short time.
 
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karan77

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Disclaimer: This is purely a fictional story based on writers thoughts and imagination and nothing to do with reality. This story is just for entertainment purposes..so, story padhiye aur mazaa lijiye..nothing more nothing less. All the names are fictitious and plucked out of thin air.

ये कहानी एकदम काल्पनिक है और इसका वास्तविकता से कोई लेना देना नहीं है. ये कहानी लेखक की सोच है और इसको इसी उद्देश्य से देखना और लेना है. नाम भी पूरे काल्पनिक है और लेखक के मन में जो नाम याद आये उसे इस कहानी में लिया गया है. ये कहानी सिर्फ और सिर्फ मनोरंजन के लिए है और इसके अलावा और कुछ नहीं. धन्यवाद.
One more thing:

I am a bit busy now a days with my work. So, I can post only 1 update in a week due to my work constraints. Incase my work load reduces, I will try to post more updates..but as of now pls expect 1 update per week. Hope you all understand. Thank you.


Intro and 1st update

ये एक ऐसे लड़के की रंगीन कहानी है जिसपर उपरवाले का आशीर्वाद उनपर बहुत था..

याने लड़का एकदम स्मार्ट, होशियार, एकदम गोरा और हसमुख चेहरा और सब को प्यार से देखने वाला..और सब से बड़ी बात…उसका लंड जो एकदम लम्बा और मोटा था…जो भी (औरत/लड़की) एक बार उसको देख ले..उसपर मर मिट्टी थे…

तो चले..चलते है रोमांस और सेक्स से भरपूर कहानी की और..


पात्र परिचय



बाप - नहीं है

वसुधा - ४२ Yrs (हीरो की माँ)..लेकिन लगती ३५ के आस पास..एकदम अपने आप को मेन्टेन किये हुए है…

Fig : ३४/३०/४०…एकदम कामुक औरत लेकिन एकदम संस्कारी..और अपने बच्चो से बहुत प्यार करती है..

(लोग इसे प्यार से वसु बुलाते है)

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निशा - २३ Yrs (बेटी/हीरो की बेहन) …अपनी माँ पर गयी है..तगड़ा माल..हसमुख चेहरा…और सब से ख़ास बात..उसकी एकदम ठोस और कड़क बूब्स और उठी हुई गांड..जो किसीको भी दीवाना बना दे…और अपने हीरो को भी.. और वो भी अपने भाई पे मरती है …Fig: ३४/३०/४०

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दीपक - २० Yrs…हीरो…अपनी माँ और बेहन को बहुत प्यार करने वाला…स्मार्ट हैंडसम…लंड साइज: 8.5 inch और बहुत मोटा…जो औरतों और लड़कियों को खुश करने में एकदम माहिर है.. घर वाले इसे प्यार से दीपू बुलाते है



दिव्या - ३५ Yrs (हीरो की मौसी) (वसु की छोटी बेहन) …लेकिन लगती ३० के आस पास....रंग थोड़ा सावला है…इसकी कुंडली में थोड़ा दोष है..जिसकी वजह से अब तक इसकी शादी नहीं हुई है और वसुधा के साथ ही रहती है..एकदम कड़क माल…मस्त उभरे हुए चूचे और उठी हुई गांड …अपनी जवानी को लुटाने के लिए तैयार है..लेकिन अब तक कोई उसे लूटने वाला (पति) नहीं मिला..ये भी अपनी बेहन की तरह कामुक है लेकिन अपनी वासना को दबा के राखी हुई है..फिग: ३२/३०/३८

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और भी बहुत पात्र आएंगे स्टोरी में..जिनका जीकर बाद में होगा..



और इन सब में एक ख़ास बात…(जो इनको बाद में पता चलता है)..इन तीनो की कमर पे..नाभि से थोड़ा हटके..इनको सब को एक तिल था …जो उनको बहुत आकर्षक और कामुक बनाता था..


ये कहानी जब शुरू होती है जब वसु १८ साल की थी और पढाई करते वक़्त उसे एक लड़के से प्यार हो गया था…दोनों में सच्चा प्यार था…लेकिन दोनों के घर वालों को ये पसंद नहीं था…तो दोनों ने घर से भाग कर शहर आकर शादी कर ली और अपना घर बसा लिया..वसु के माँ बाप अच्छे पैसे वाले थे. उन्हें लगा था की वो लड़का वसु को बेहला फुसला कर पैसे की वजह से उसे भगा ले गया है.

दोनों में बहुत प्यार था…वक़्त बीत-ता गया और और शादी के तीन साल में ही वसु ने पहले लड़की (निशा) और फिर एक लड़का (दीपू) को जनम दिया …

जब दोनों के घर वालों को पता चला तो फिर भी वो खुश नहीं थे..लेकिन वक़्त के साथ उन्होंने समझौता कर लिया था…और उहने ख़ास कर के वसु के माँ बाप जिन्हे समझ आया की दोनों में सच्चा प्यार था और नाकि पैसों के लिए और उन्हें माफ़ कर दिया था और दोनों को अपना भी लिया था… आखिर में दोनों के माता पिता जो दादा, दादी और नाना, नानी जो बन गए थे.

वसु के सास ससुर उम्र के चलते भगवान के घर चल दिए. उनके जाने से दोनों बहुत दुखी थे लेकिन क्या कर सकते थे. ये तो एक दिन सब के साथ होना ही है.

वसु और उसका परिवार (जिसमें उसके माँ, बाप, भाई, बेहन, भाभी थे …उनका परिचय बाद में दिया जाएगा.) बहुत खुश थे..और अपनी ज़िन्दगी ख़ुशी से जी रहे थे..

Flashback..

दीपू जब जब छोटा था ..तो वो बहुत बीमार पढ़ गया…काफी इलाज भी करवाया था..लेकिन उसकी हालत में सुधार नहीं था..

वसु और उसके पति (पति का नाम नहीं ले रहा हूँ…क्यूंकि उसका इस कहानी में ज़्यादा रोल नहीं है) ने डॉक्टर्स को भी दिखाया और इलाज करवाया लेकिन दीपू की हालत में सुधार नहीं हुआ.. उसकी हालत बहुत ख़राब हो गयी थी और उसके बचने की उम्मीद भी काम नज़र आ रही थी.

वसु के पति को उसके एक दोस्त ने बताया था की शहर से बाहर थोड़ी दूर में एक खंडहर है जहाँ एक ग्यानी बाबा रहते है..लोग उन्हें बहुत मानते है…लोग उन्हें ग्यानी इसीलिए कहते थे की उन्हें सच में बहुत ज्ञान था और हमेशा लोगों का भला ही करते थे ..और कभी कभी लोग ऐसी हालत में उनके पास भी जाते है..

वसु को लगता है की उन्होंने दीपू के इलाज के लिए सब को दिखाया है…कुछ सुधार नहीं हुआ..तो वो वहां पर जाकर उस बाबा को एक बार दिखाने में कोई हर्ज़ नहीं है…क्या पता..शायद वो ही कुछ उपचार बता दे..

वसु का पति अपने काम में बहुत व्यस्त रहता है तो वो वसु को ही उस बाबा के पास जाने को कहता है. तो वसु दीपू को लेकर उस खंडहर जाती है जहाँ बाबा अपनी आँख बंद कर के ध्यान में रहते है. वसु उनको देख कर प्रणाम करती है और फिर जब बाबा उनको देखते है और वहां आने का कारण पूछते है. वसु उसे बताती है की उसका बेटा बहुत बीमार है और उन्होंने डॉक्टर्स को भी दिखाया है लेकिन फिर भी वो ठीक नहीं हो रहा है.

बाबा दीपू को अपनी गोद में लेकर उसे देखता है तो उसकी आँखों में एक चमक दिखती है जो उसने बहुत काम लोगों में देखा था. बाबा उसकी ओर देखते हुए कुछ मंत्र पढता है और फिर कुछ जड़ी बूटी देते है और कहता है की ये जड़ी बूटी उसे खिला देना.. वो जल्दी ही ठीक हो जाएगा..

बाबा दीपू को वसु को देते वक़्त हस्ते है तो वसु पूछती है की आप क्यों हस रहे हो?

बाबा: अगली बार जब आओगी तो बताऊंगा.. हो सके तो इस बार उसकी कुंडली लाना और ऐसा कहते हुए फिर से वो बाबा अपने ध्यान में लग जाते है.

वसु: हमारे पास तो उसकी कुंडली है नहीं और ना ही बनवाया है…क्यों? कुछ गड़बड़ लग रहा है क्या?

बाबा: नहीं…तो एक काम करो..मुझे इसके जनम का टाइम और डेट दे दो..मैं ही कुंडली बनवाता हूँ..

वसु: एक बात पूछूं?

बाबा: हां पूछो..

वसु: मेरी एक बेटी भी है और मैं चाहती हूँ की आप मेरी बेटी का भी जनम कुंडली बना दो..

वसु बाबा को दोनों का टाइम और तारिक दे देती है और फिर उनसे विदा हो कर जल्दी ही उनसे फिर से मिलने का वादा कर के घर के लिए निकल जाते है..

एक हफ्ते के अंदर बाबा की दी हुई जड़ी बूटियों से दीपू की हालत में सुधार होता है और फिर एक और हफ्ते के अंदर ही दीपू पूरा ठीक हो जाता है.. और वह हर बच्चे की तरह जो इस उम्र में होते है खेलने में और शरारत करने लगता है

वसु और उसके पति दोनों बहुत खुश हो जाते है और वसु कहती है की उन्हें बाबा से मिलना है. .. वसु का पति कहता है की वो काम में व्यस्त है वो आज भी उसके साथ नहीं जा पायेगा तो वो ही खुद दीपू को बाबा के पास ले जाए

वसु बाबा से अकेले ही मिलने जाती है..क्यूंकि उन्होंने कहा था की अगर दीपू ठीक हो जाएगा तो वो उनसे ज़रूर मिलने आएंगे..

वसु फिर से खँडहर जाती है तो देखती है की बाबा अपनी आँखें बंद कर के अपने ध्यान में एकदम मगन है. जब उनकी आँखें खुलती है तो सामने वसु को पाते है तो फिर से उनके चेहरे पे हसी आ जाती है.

वसु: बाबा जब मैं पिछली बार आयी थी तो आप तब भी हसे थे और आज मुझे देख कर फिर से हस रहे हो. कुछ गड़बड़ है क्या?

बाबा: नहीं ऐसा कुछ नहीं है

वसु फिर उन्हें दीपू के बारे में बताती है और उनका बहुत धन्यवाद करते है की उन्होंने दीपू को ठीक कर दिया है..

बाबा दोनों को आशीर्वाद देते है और फिर कहते है.. जब से तुम यहाँ से गयी हो तो मैंने दोनों की कुंडली बनायी है और तब से तुम्हारे लड़के के बारे में ही सोच रहा हूँ.

वसु: ऐसा क्यों? कुछ बात है क्या जो आप इसपर इतना ध्यान दे रहे हो और सोच रहे हो?

बाबा: मेरे पास बहुत लोग आते है लेकिन इसके चेहरे पे जो आकर्षक है वो आज तक मैंने किसी में नहीं देखा.

वसु: उनको प्रणाम करके ऐसा क्या है उसके चेहरे पे?? कुछ गलत है क्या? क्या लिखा है उसकी कुंडली में?

बाबा : तुम बहुत भाग्यशाली हो …तुम्हारा लड़का आगे जा कर बहुत होनहार होगा …..लोगों के काम आएगा…और लोग भी उसकी बहुत मदत करेंगे..

बाबा: लेकिन…

End of Flashback..
good
 
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kas1709

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दिव्या: क्या? तूने उसका लंड भी देखा और मुझे तूने बताया भी नहीं (उन दोनों में बहुत करीब रिश्ता था और दोनों एक दुसरे को सब बाते share करते है )और ऐसा कहते हुए दिव्या वसु को आँख मार देती है. वसु भी थोड़ा हल्का सा हस्ते हुए... चुप कर और फिर दोनों अपना काम करने में लग जाते है.

अब आगे ....

5th Update: माँ और बेटे का नोक झोक जारी..

उधर कॉलेज में निशा भी अपने दोस्तों के साथ गप्पे मारते रहती है तो वहां दीपू आ जाता है. उसे देख कर उसकी दोस्त सब आहें भर्ती है जो निशा देख लेती है और अपनी कोहनी से उनको हल्का मार देती है. निशा भी दीपू को देख कर मन में सोचती है.. मेरे दोस्त गलत नहीं है. कितना हैंडसम और प्यारा लग रहा है.

कॉलेज में शाम को घर आते वक़्त निशा दीपू से पूछती है.. कल मैंने जो तुझे दिया था.. पता किया क्या?

दीपू: कहाँ टाइम ही नहीं मिला तो कहाँ से पता चलता.. और ऐसे ही छेड़खानी बातें करते हुए दोनों घर आ जाते है. घर आने के बाद दिव्या आज पहली बार दीपू को एक “मर्द” के रूप में देख रही थी (वसु की बात याद कर के). वो भी देखती है की दीपू भी काफी बड़ा हो गया है और कितना स्मार्ट एंड हैंडसम है. वो मन में सोचती है की काश कोई ऐसा लड़का/ आदमी भी उसकी ज़िन्दगी में होता तो कितना अच्छा होता.

वसु दिव्या को देख लेती है और समझ जाती है की दिव्या क्या सोच रही है. रात को जब सब अपने कमरे में होते है तो वसु दिव्या से कहती है

वसु: मैंने देखा है आज तो दीपू को कैसे देख रही है. तू चिंता मत कर.. तू अब तक अकेली है.. शायद ऊपर वाले ने तेरे लिए एक अच्छा आदमी सोच रखा है. पता है तेरी उम्र हो रही है.. लेकिन क्या पता.. देर आये सो दुरुस्त आये.. ये बात सुन कर दिव्या की आँखों में भी आंसूं आ जाते है तो वसु उसे अपने सीने से लगा लेती है.

दिव्या के रोने से उसके आंसूं गिर कर वसु के ब्लाउज पे गिर जाते है जिससे उसका ब्लाउज थोड़ा गीला हो जाता है. जब वसु को थोड़ा गीला पैन महसूस होता है तो देखती है की उसका ब्लाउज सच में ही गीला हो गया है. वसु दिव्या को छेड़ते हुए.. देख तूने क्या किया? मेरा ब्लाउज गीला कर दिया. दिव्या उसे देख कर है देतीं है और कहती है ठीक है मैं सूखा देतीं हूँ.

वसु: कैसे?

दिव्या: ऐसे.. और कहते हुए अपनी जीब से उसकी ब्लाउज को चाट लेती है. ऐसा करने से वसु के मुँह से हलकी सिसकारी निकल जाती है और दिव्या से कहती है की वो क्या कर रही है.

दिव्या: तुम्हारा ब्लाउज सूखा रही हूँ.

वसु: कोई ऐसे करता है क्या?

दिव्या: क्या करूं?

दिव्या: तुम्हारी बड़ी और भारी चूचियां देख कर रहा नहीं गया और ऐसा कहते हुए दिव्या अपने दोनों हाथ को वसु की चूची पे रख कर उनको मसलते हुए अपनी जीभ से ब्लाउज को चाट लेती है. वसु भी आहें भरने लगती है और दिव्या का सर अपनी चूचियों पे दबा देतीं है.

और ठीक उसी वक़्त दीपू भी वसु से कुछ बात करने के लिए उसके कमरे में आता है तो दोनों की बात सुनकर वो दरवाज़े पे ही रुक जाता है और उनकी बातें सुनता है.

वसु: तुझे पता है.. मुझे तुम्हारे जीजाजी का खालीपन महसूस होता है. काश आज वो यहाँ होते तो इनका पूरा रस निचोड़ लेते. वो तो इसपर खूब मरते थे.. कहते थे की इनमें बहुत रस है और चूस चूस कर हम दोनों को बहुत मज़ा देते थे वसु फिर से दिव्या का सर अपने सीने पे दबा देतीं है. आहें भरते हुए वसु पाती है की उसकी पैंटी भी भीग रही है लेकिन वो दिव्या को कुछ नहीं बताती. ५ मिनट बाद जब दिव्या अपना सर उठा कर वसु को देखती है और कहती है तेरे चूचक तो बहुत नुकीले और खड़े हो गए है.

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वसु: होंगे नहीं क्या? तू जो इनको चूसे और चाटे जा रही है.

दोनों की फिर से आँख मिल जाती है जिनमें बहुत प्यार, तरस और आस भरी हुई थी और अब वसु से भी रहा नहीं जाता और दोनों एक दुसरे को देखते हुए अपने होंठ जोड़ लेते है और एक गहरे प्रगाढ़ चुम्बन में जुड़ जाते है.

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वसु: तू चिंता मत कर. तुझे भी अच्छे और ऐसे प्यारे दिन मिलेंगे भले ही थोड़े देर से ही. ऊपर वाले पे भरोसा रख

दिव्या: उसी उम्मीद से तो जी रही हूँ.

वहीँ बाहर दीपू निशा की दी हुई पैंटी (जो उसके पयजामे की जेब में थी ) को फिर से निकल कर सूंघते रहता है और सोचता है की वो जालीदार पैंटी किसकी होगी (उसके मन में एक बार ये ख्याल भी आता है की ये उन दोनों में से किसीकी भी हो सकती है )और फिर कमरे में बातें सुन कर और पैंटी को देख कर फिर से अपना लंड हिलाने लगता है और इस बार वो बहुत उत्तेजित हो जाता है और अपना रस वहीँ दरवाज़े पे ही निकल देता है और कुछ बूंदे वही ज़मीन पर भी गिर जाती है ..वो इतना खोया हुआ था की बाथरूम जाने का भी टाइम नहीं था. जब वो झड़ जाता है तो उसे अपने गलती का एसएस होता है तो वो जल्दी से एक पुराना कपडा लाकर साफ़ दरवाज़ा साफ़ कर देता है लेकिन अँधेरे में उसे पता नहीं था की कुछ बूंदे वहां ज़मीन पर भी गिरी हुई है.

वहां से फिर अपने कमरे में चले जाता है और मीठी यादों में सो जाता है. और वही वसु और दिव्या भी सो जाते है.

अगले दिन सुबह वसु उठ कर फ्रेश हो कर अपने कमरे से निकलती है तो दरवाज़े पे उसके पैर पे कुछ सूखा और गाढ़ा चीज़ उसे लगता है. वो झुक कर उसे देखती है तो सोचती है की ये क्या है.. उसे समझ मैं नहीं आता है. अब तक घर में सब सो रहे थे तो वो लाइट जला कर देखती है की वो क्या चीज़ है जो अब तक उसके घर में कभी नहीं हुआ था. लाइट जला कर देखती है तो उसे सब समझ में आ जाता है की ये तो वीर्य की बूंदे है. उसे भी इस बारे में काफी ज्ञान था क्यूंकि वो भी अपने पति का लंड मुँह में लेकर उसे भी मस्त कर देती थी और ऐसा करते वक़्त वैसे ही बूंदे ज़मीन पे गिर जाती थी.

वसु सोच में पड़ जाती है की ये बूंदे वहां कैसे आयी और उसे ये बात सोचने में ज़्यादा वक़्त नहीं लगता की ये काम दीपू का ही होगा क्यूंकि इस घर में सिर्फ वो ही तो एक मर्द था..

वो अपने माथे पे हाथ रख कर सोचती है की क्या करूँ इस लड़के का जो रोज़ ऐसे काम कर रहा है..

दीपू उठ कर फ्रेश हो कर किचन में जाता है तो वसु वहां चाय बना रही होती है. दरवाज़े पे खड़े हो कर दीपू वसु को निहारता रहता है. वसु उसे देख कर कुछ नहीं कहती और उसको फिर भी गुस्सा आ रहा था. दीपू वसु के पास जा कर.. क्यों माँ.. अभी भी गुस्से में हो क्या?

वसु: नाराज़गी से.. तू जो काम कर रहा था तो गुस्सा नहीं होउंगी क्या?

दीपू: मैंने ऐसा क्या किया की आप इतना गुस्सा कर रहे हो? वसु कुछ नहीं कहती तो दीपू कुछ सोचता है और वसु के पास आकर धीरे से उसके कान में कहता है.. मैं करू तो बुरा और आप करो तो एकदम ठीक?

वसु को ये बात समझ नहीं आती तो पलट कर दीपू की तरफ देखती है. दीपू अपने आप को थोड़ा सँभालते हुए कहता है.. मैं २ दिन पहले रात को पानी पीने यहाँ आया था और जब वापस अपने कमरे में जा रहा था तो आपके कमरे से कुछ आवाज़ आयी. दीपू जब ये बात कहता है तो वसु की आँखें बड़ी हो जाती है. उसे समझ आ जाता है की दीपू क्या कहने वाला है फिर भी वो कुछ नहीं कहती.

दीपू फिर आगे कहता है.. मैं कमरे में झाँक कर देखा आपको.. और ऐसा कहते हुए रुक जाता है क्यूंकि वो वसु का रिएक्शन देखना चाहता था.

वसु अपनी आँखें बड़ी करती हुई दीपू को देखे जा रही थी. वसु को समझ आ जाता है की दीपू ने क्या देखा है.

वसु: तुझे शर्म नहीं आयी की तू मेरे कमरे में झाँक रहा था. दीपू भी हस्ते हुए.. शर्म कैसे? मैंने जो देखा तो उससे तो मैं और भी उत्तेजित हो गया और नतीजा ये हुआ जो आपने अगले दिन देखा था. वैसे वो पैंटी किसकी थी?

वसु अब दीपू से आँखें नहीं मिला पा रही थी. दीपू समझ जाता है और कहता है..

वैसे कल रात को मैं आपके पास आ रहा था कुछ बात करने के लिए लेकिन फिर से दरवाज़े पे रुक गया और अंदर की बातें भी सुन ली. आप और मौसी धीरे से बात कर रही थी लेकिन सन्नाटा होने की वजह से मुझे सब सुनाई दिया. दीपू ऐसा कहते हुए रुक जाता है और वसु को देखता है. वसु अब दीपू से आँखें नहीं मिला पा रही थी.

दीपू: आप जो कर रही थी.. उसमें कोई बुराई नहीं है. मैं तो अभी अपनी जवानी के देहलीज़ पे कदम रखा है.. आप तो अपनी जवानी के चरम में हो.. तो आपने जो किया है उसमें कोई गलत नहीं है. आप अपने आप को ही देखो.. जो भी आपको देखेगा तो बावला हो जाएगा. इतना कैसा हुआ बदन है आपका.. और दीपू उसको आँख मार देता है.

दीपू: वैसे एक बात पूछूं?

वसु अपनी आँख उठा कर दीपू को देखती है तो दीपू कहता है जैसे आपने कहा था की आपको भी एक साथी की ज़रुरत महसूस हो रही है तो अगर आप चाहो तो फिर से शादी कर सकते हो. मुझे और निशा को कोई समस्या नहीं होगी. मैं उसे समझा दूंगा.

दीपू के ये बात सुनकर वसु एकदम दांग रह जाती है और कहती है की तूने ऐसे बात कैसे की?

दीपू: क्यों नहीं? कल जो आप दोनों बात कर रहे थे तो मेरी बात में बुरा क्या है?

वसु अपने आप को थोड़ा ठीक करते हुए कहती है की उसकी ऐसी कोई सोच नहीं है और वो उन दोनों (दीपू और निशा) से बहुत खुश है और उन दोनों को छोड़ कर कहीं और नहीं जाना चाहती.

वसु को भी लगता है की अब बात आगे जा चुकी है और वो बात बदलने की कोशिश करती है. इतने में निशा और दिव्या भी आ जाते है और दोनों को देख कर.. क्या बातें हो रही है माँ बेटे के बीच? दोनों एक दुसरे को देखते है और कुछ नहीं कहते. फिर सब चाय पी कर अपने काम में लग जाते है और फिर दीपू और निशा कॉलेज के लिए निकल जाते है और वसु और दिव्या घर में अपना काम करती रहती है.

कॉलेज में सब नार्मल ही रहता है और निशा की सहेलियां दीपू पे डोरे डालती रहती है तो निशा दिनेश पे डोरे डालती रहती है.

रात को जब सब खाने पे मिलते है तो निशा कहती है की दीपू का जन्मदिन जल्दी ही आने वाला है.

निशा: कैसे उसका जन्मदिन मनाया जाए?

दीपू इस बात पे कुछ नहीं कहता लेकिन वसु और दिव्या कहती है की कुछ सोच कर मनाते है. इससे आगे और बात नहीं होती और सब खाना खा कर अपने कमरे में सोने चले जाते है. दीपू भी अपने मोबाइल में कुछ देखता रहता है तो इतने में निशा फिर से उसके कमरे में आती है और इस बार वो अपने दोनों पैर दीपू के बगल में रख कर उसकी गोद में बैठ जाती है और फिर उसके गाल को चूमते हुए कहती है.. क्या चाहिए तुझे तेरे जन्मदिन पर?

दीपू: कुछ नहीं (लेकिन उसके मन में बहुत सारी बातें चल रही थी आज सुबह उसके और वसु के बीच जो बातें हुई थी)

निशा फिर से एक बार उसको चूम के कमरे से निकल जाती है और जब वो अपने कमरे में जा रही होती है तो देखती है की उसकी माँ के कमरे से रौशनी आ रही है. जिज्ञासा वर्ष वो उसकी माँ के कमरे में झाँक कर डेक्टि है तो उसकी आँखें बड़ी हो जाती है और मुँह खुला का खुला रह जाता है. अंदर का नज़ारा देख कर निशा अपना हाथ अपने पैंटी में दाल के ऊँगली करने लग जाती है क्युकी अंदर नज़ारा ही कुछ ऐसा था. जहाँ दिव्या सोई हुई थी वसु इस वक़्त अपनी तन की आग में जल रही थी और वो ना चाहते हुए भी दीपू के लंड के बारे में सोच कर अपनी चूत में ऊँगली कर रही होती है और धीरे से बड़बड़ाते रहती है. निशा ये दृश्य देख कर उसके चेहरे पे हसीं आ जाती है और मन में सोचती है “जैसी माँ वैसी बेटी “..

फिर वापस अपने कमरे में जा कर वो भी ऊँगली करते हुए सो जाती है.

अगले दिन सुबह वसु किचन में चाय बना रही होती है तो दीपू आकर उसको पीछे से बाहों में भर कर उसके गले को चूमता है और कहता है की अब भी वो दीपू से नाराज़ है. उस वक़्त दीपू का सुबह में खड़ा लंड सीधा वसु के गांड में चुबता है तो वसु धीरे से सिसकी लेते हुए कहती है दीपू क्या कर रहा है... थोड़ा पीछे हटना

दीपू को पता था लेकिन फिर भी पूछता है क्यों..

वसु कुछ नहीं कहती और थोड़ा शर्मा जाती और जब दीपू उसके गले को चूमता है तो एक हलकी से सिसकी लेते हुए कहती है.. क्या कर रहा है तू.. मत कर.. मैं तेरी माँ हूँ.

दीपू: हाँ जानता हूँ.. लेकिन उसके पहले आप एक औरत हो जिसकी ज़रूरतें भी है और ऐसा कहते हुए दीपू वसु को अपनी तरफ घुमा कर उसकी आँखों में देखते हुए कहता है.. आप अभी भी बहुत सुन्दर हो.. ये बात आपको भी पता है.. अभी भी आप बहार जाओगी तो लोगों की लाइन लग जायेगी आपको निहारते हुए.. वसु कुछ नहीं कहती और अपनी आँखें नीचे करते हुए शर्मा जाती है.

वसु: तू जल्दी से अपनी पढाई पूरी कर ले और एक अच्छी नौकरी देख ले.. तेरे लिए जल्दी ही लड़की ढूंढ कर तेरी शादी कर दूँगी.

दीपू: नहीं. .. दीपू उसकी आँखों में गहरी तरह से देख कर कहता है की मैंने लड़की देख ली है शादी के लिए और शादी उसी से ही करूंगा. वसु थोड़ा आश्चर्य होते हुए..

दीपू: वो बात छोडो. .. मेरी शादी से पहले निशा की शादी भी करनी है. याद है ना..

दीपू फिर से वसु की तरफ देख कर इसमें शर्माने की क्या बात है? जो कह रहा हूँ सही तो कह रहा हूँ . वसु का चेहरा पकड़ कर उसको देखते हुए अपने होंठ बढ़ाता है तो वसु उसे रोक देती है और कहती है की ऐसा ना करे और अपना चेहरा घुमा लेती है.

दीपू: अरे मैं तो आपके गाल चूम रहा था. आपको क्या लगा? वसु कुछ नहीं कहती तो दीपू कहता है की जो आप सोच रहे हो (होंठों पे किस करना) वो करू क्या?

वसु कुछ नहीं कहती और उसे कुछ याद आता है और उसे थोड़ा अलग कर के कहती है की उसे हमेशा उसकी बेहन दिव्या की फ़िक्र है की अभी तक उसकी शादी नहीं हुई है. जब उसकी शादी हो जायेगी तो वो दीपू के बारे में सोचेगी और ये भी कहती है की वो पढाई कर के पहले एक अच्छी नौकरी कर ले. दीपू कुछ नहीं कहता और वहां से जाने लगता है तो वसु फिर सोच कर कहती है..

वसु: सुन दीपू

दीपू: हाँ कहो..

वसु: सुन गाँव के बाहर एक खंडहर है और वहां एक बाबा रहते है जिसे मैं और तेरे पिताजी बहुत मानते है. हम दोनों जा कर एक बार छोटी (दिव्या) की कुंडली एक बार दिखा कर आते है और पूछते है की उसकी ज़िन्दगी में क्या लिखा है क्यूंकि अब तक उसकी शादी नहीं हुई है और मुझे भी थोड़ी चिंता है. अगर उसकी शादी हो जाती भले ही उसकी उम्र थोड़ा ज़्यादा है तो मेरे मन को बहुत शांति मिलेगी. और तेरे नाना और नानी भी अपनी बाकी ज़िन्दगी शान्ति से बिता पाएंगे.

(वसु और उसके परिवार का परिचय जल्दी ही आएगा)

दीपू इस बात से कुछ नाराज़ हो जाता है की वो अभी भी उन जैसे लोगों की बात मानते है लेकिन फिर भी वो मान जाता है उसकी माँ को दुखी ना करे और कहता है की जब भी जाना है तो उसे बता देना और वो उसे वहां ले जाएगा.

वसु को अभी ये पता नहीं था की बाबा के पास जाने के बाद एक बड़ा बम फटने वाला है....
Nice update....
 
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