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अपडेट -22
"अनु.....अनु.....जान...क्या हुआ? चलो " मंगेश ने अनुश्री को झकझोर दिया.
"हहहह...हनन.हाँ..." अनुश्री अभी भी शून्य मे ही खोई हुई थी.
"अरे चलो भी कोणार्क मंदिर आ गया है दर्शन करते है,अब नहीं घूमना तुम्हे?"
अनुश्री ने नजर उठा के देखा बस पूरी खाली थी,उसका पति मंगेश उसका हाथ पकड़े था.
अनुश्री जैसे नींद से जागी हो पल भर मे ही उसे अभी हुए वाक्य याद आ गया था,अनुश्री खड़ी हो गई और मंगेश के पीछे पीछे चल दि.
उसका दिल दिमाग़ शांत नहीं था "ये क्या हो रहा है मुझे जब से यहाँ आई हू खुद पे काबू ही नहीं रख पा रही हू, मेरी वासना क्या इतनी बढ़ गई है,? नहीं...नहीं....मै ऐसा नहीं कर सकती " अनुश्री ने वापस निर्णय ले लिया था.
"अच्छे से घूमना मैडम,कही बहक ना जाना " बस से उतरते हुए उसकी कानो मे आवाज़ पड़ी.
अनुश्री पलटी तो पाया अब्दुल बस कि ड्राइविंग सीट पे बैठा दाँत निपोर रहा है,
अनुश्री के मन मे तो आया कि वही डांट दे लेकिन चुप रही " कही बहक ना जाना " उसके दिमाग़ मे यही शब्द गूंज रहे थे.
"नहीं बहकूंगी मै.....अब और नहीं " अनुश्री ने आगे बढ़ के मंगेश का हाथ पकड़ लिया.
पीछे अब्दुल अपनी पेंट मे लिंग को मसल के रह गया "क्या गांड है यार,एक बार मिल जाये बस " जीन्स मे कैद अनुश्री कि गांड आपस मे रगड़ खाती मटक रही थी.
सभी यात्री बस से परे इक्कठे हो गए.
गाइड जरुरी बाते और टिकट दे रहा था, हल्की हल्की बारिश जारी ही थी.
मंगेश :- लगता है आज का दिन ही ख़राब है ये बारिश बंद नहीं होंगी.
राजेश :- ठीक कहते है भैया ये लीजिये छतरी मिल गई है पास से ही. एक छतरी को मंगेश कि तरफ बढ़ा दिया.
"लेकिन लेकिन....ये तो सिर्फ एक है?" मंगेश ने छतरी को खोलते हुए कहा
राजेश :- दो ही मिली भैया,एक मै ले लेता हू एक आप और भाभी ले लीजिये, रोमांटिक रहेगा
तीनो मुस्कुरा दिये.
सभी यात्री मंदिर के अंदर चल पड़े,
सामने ही सूर्य मंदिर का भवन था,आलीशान खूबसूरत,भव्य
अनुश्री का मन भी हल्का हो चला था, वो इस अजूबे को देख रोमांचित हो गई थी. दिल अचम्भे से भर उठा था.
बारिश थोड़ी तेज़ हो चली थी, कई यात्री वापस बस कि ओर लौटने लगे थे.
कुछ नौजवन जोड़े इस बारिश का लुत्फ़ उठा रहे थे,इतना सुन्दर मनमोहक नजारा बार बार थोड़ी ना देखने को मिलता है.
मंगेश और अनुश्री भी इन्ही लुफ्तखोर जोड़ो मे शामिल थे,
मंगेश :- चलो अनु वापस चलते है बारिश तेज़ होने लगी है.
अनुश्री :- क्या मंगेश तुम भी इतना तो रोमांटिक मौसम है और तुम्हे जाने कि पड़ी है.
अनुश्री और मंगेश छाता होने के बावजूद हवा से उड़ती बारिश कि बूंदो से भीग रहे थे
अनुश्री के रोंगटे खड़े कर देने के लिए ये माहौल काफ़ी था,उसे अपने पति का गर्म अहसास चाहिए था.
परन्तु शायद इस आग कि सख्त कमी थी मंगेश मे उल्टा उसके हाथ पाँव ठन्डे होने लगे थे,
अनुश्री ने मंगेश का हाथ पकड़ा हुआ था फिर भी वो गर्म अहसास नहीं मिल पा रहा तो बस मे चाटर्जी के मात्र एक स्पर्श मे था.
करीबन आधे घंटे पूरी तरह से सूर्य मंदिर घूमने के बाद अनुश्री मंगेश भी बस कि तरफ लौट पड़े.
अनुश्री तो मस्त मौला थी खूब फोटो खिचाई अपनी, परन्तु इस मस्ती मे लगभग भीग गई थी उसका टॉप उसके स्तन से जा चिपका था जिस वजह से उसके उभार और खुल के सामने आ गए थे.
वाइट t shirt बुरी तरह जिस्म से जा चिपकी थी, सपाट पेट मे धसी खूबसूरत नाभि कि झलक, और स्तन पे उभरे खूबसूरत मोती अपनी चमक बिखेर रहे थे
देखने वालो कि नजर ही कहाँ हट रही थी उसकी छातियों से.
"आआआकककककक......छू......." मंगेश जोर से छिंका " देखा अनु तुम्हारी जिद्द से ठण्ड लग गई लगता है मुझे.
"क्या मंगेश इतने मे तुम्हे ठण्ड लग गई, मुझे देखो भीगने के बाद भी कुछ नहीं हुआ, तुम ना ठन्डे ही हो मंगेश हुँह...." अनुश्री ने गुस्से वाला मुँह बना के कहा.
कहाँ तो वो मंगेश के आगोश मे समाना चाहती थी,उल्टा यहाँ तो मंगेश को ही गर्मी कि आवश्यकता है.
दोनों इसी कहासूनी मे बस तक पहुंच गए थे,मंगेश तो भागता हुआ बस मे घुस बैठा,
उसने पाया कि राजेश पहले से ही वहाँ बैठा था.
अनुश्री भी पीछे पीछे बस मे आ गई थी,लगभग सभी यात्री आ गए थे.
मंगेश और राजेश अपनी सीट पे जा बैठे, मंगेश को कोई फ़िक्र नहीं थी उसे तो लगा था कि अनुश्री आराम से पीछे बैठ जाएगी.
"क्या मंगेश चलो ना पीछे बैठते है " अनुश्री ने आग्रह किया
"ना बाबा ना.....तुम ही जाओ एक तो तुम्हारी वजह से जुखाम हो गया लगता है अब पीछे बैठूंगा तो चक्कर भी आ जायेंगे " मंगेश ने बेरुखी से अनुश्री का प्रस्ताव ठुकरा दिया.
राजेश से तो उम्मीद भी नहीं कि जा सकती थी वो तो लड़कियों से भी ज्यादा नाजुक था.
" अरे बेटी कि कोरता है,चलो सीट पे आने दो अंदर " अनुश्री ने पीछे पलट के देखा तो धोती कुर्ता पहने मुख़र्जी और चाटर्जी खड़े थे
अनुश्री के तो होश फकता हो गए एक पल को, " नहीं नहीं....वहाँ नहीं जाना "
मंगेश :- अरे जाओ भी अनु, बस चलने को है उन लोगो को चढ़ने दो
अनुश्री को इस तरह कि कोई उम्मीद नहीं थी उसका पति ही उसे उस कुए मे धकेलना चाहता था जिस से वो बार बार निकल के भागती थी.
अनुश्री पैर पटकती गुस्से मे पीछे कि सीट पे ज़ा बैठी,उसका चेहरा गुस्से और पानी से भीगा हुआ था.
आज पहली बार उसके मन मे अपने पति के लिए खटास आई थी "कैसा आदमी है ये इसे कोई फ़िक्र ही नहीं है,इतना कितना नाजुक है बस जब देखो चिल्ला देता है " अनुश्री भूनभुनाती हुई खिड़की से बहार देखने लगी
"अरे बेटा अनु तुम तो पूरी भीग गई हो " चाटर्जी ने पास बैठते हुए कहा
"वैसे इस मौसम मे भीगने का ही मजा अलग है,क्यों अनु बेटा?" इस बार मुखर्जी भी जुड़ गया बातो के सिलसिले मे.
अनुश्री कुछ नहीं बोली वो बस बहार बारिश कि बूंदो को देखे जा रही थी उसका कोई इंट्रेस्ट नहीं था इन सब मे.
"लगता है मेरी हरकत से नाराज हो,क्या करता बेटी तुम हो ही इतनी सुन्दर और मै कवारा " चाटर्जी वापस वही आ गया जहाँ मुद्दा ख़त्म हुआ था
अनुश्री एक दम चौंक गई चाटर्जी कि बात सुन के "मेरी हरकत पे नाराज हो " थोड़ी देर पहले तो वो इन सब बातो को भूल ही गई थी लेकिन एक ही पल मे सब याद आ गया कैसे चाटर्जी का हाथ उसकी जांघो के बीच था.
वो किस्सा याद आते ही अनुश्री ने अपनी जांघो को आपस मे भींच लिया " ऐसी बात नहीं है,मै गुस्सा नहीं हू " अनुश्री अपने पति के व्यवहार से सख्त खफा थी उसने चाटर्जी कि बात पे ध्यान नहीं दिया.
"तो कैसी बात है बेटा?इतना गुस्सा क्यों हो?" बोलते हुए चाटर्जी ने वापस से अपना एक हाथ अनुश्री कि जाँघ पे रख दिया
इस बार अनुश्री ने उस हाथ को हटाने कि बिल्कुल भी कोशिश नहीं कि जैसे तो उसे कोई फर्क ही नहीं पड़ा हो.
उसकी आँखों मे अपने पति कि बेरुखाई थी.
"देखो बेटा इस जवान शरीर का इस्तेमाल अब नहीं करोगी तो क्या बुढ़ापे मे करोगी " चाटर्जी लगातार अनुश्री को बहका रहा था
जैसे वो उसकी मन कि बात जानता हो.
"कककक....क्या मतलब " अनुश्री का धयान इस बार टूटा,उसकी जाँघ पे होता गर्म अहसास उसे सकून दे रहा था
"देखो कितनी भीग गई हो " चाटर्जी ने ऊँगली से उसके स्तन कि ओर इशारा किया.
अनुश्री ने चाटर्जी कि ऊँगली का पीछा किया तो पाया कि उसका टॉप पूरी तरह से भीग के उसके स्तन को चिपका हुआ था इतना कि उसके निप्पल और उसके आस पास कि गोलाईया साफ साफ दिख रही थी.
अनुश्री एक दम से पानी पानी हो गई,पानी से भीगे चेहरे पे पसीने कि हल्की बुँदे तैर गई, पहले खुशी और अब गुस्से मे उसका ध्यान ही नहीं गया कि वो भीगी हुई है और वाइट t shirt पहने होने कि वजह से उसके स्तन कि झलक दिख रही होंगी.
उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि क्या करे साथ मे कोई स्कार्फ या तौलिया तो लाई ही नहीं थी,उसकी आंखे शर्म से झुक गई.
"अरे अनु शरमाती क्यों हो ये तो स्वाभाविक है,लगता है तुम्हे ठण्ड लग रही है भीगने कि वजह से " चाटर्जी ने अपनी धोती को हल्का सा उठाते हुए एक कौना अनुश्री को थमा दिया "लो पोछ लो "
अनुश्री मन्त्र मुग्ध सी चाटर्जी को देखे जा रही थी "कितनी फ़िक्र है एक अनजान आदमी को और एक मेरा पति है " अनुश्री के मन मे अपने पति के लिए रोष उत्पन्न हो रहा था,एक हिन् भावना पैदा हो रही थी,वो आज केयर का मतलब समझ रही थी.
"ठण्ड लग जाएगी अनु बेटा,फिर कैसे हनीमून मनाओगी,लो पोछ लो " चाटर्जी ने फिर से हनीमून का नाम ले लिया था,
वो हनीमून ही तो मनाने आई थी,लेकिन ये कैसा हनीमून जहाँ उसका पति ही बेरुखी से पेश आ रहा था.
"थैंक्स अंकल " अनुश्री ने धोती का कोना पकड़ के अपने स्तन पे लगा दिया और ऊपर से नीचे पोछने लगी.
दोनों बूढ़ो कि आंखे चौड़ी होने लगी, ऐसा अद्भुत नजारा उन्होंने कभी देखा हो याद नहीं था.
अनुश्री बेफिक्र धोती से अपने स्तन और गले के पानी को पोछे जा रही थी,उसके पोछने से स्तन दबते तो निप्पल के उभार निकल के बहार को आ जाते और अपनी छाप t shirt पे छोड़ देते.
इस एक नज़ारे ने दोनों बूढ़ो के सोये अरमानो को जगा दिया था,उनकी धोती मे हलचल पैदा होने लगी "आआहहहहहह.....ओती सुनदोर,खूब भालो....इससससस....." करते हुए दोनों ने अपनी अपनी जांघो के बीच हथेली रख दबा दिया जैसे किसी चीज को बहार आने से रोक रहे हो.
हल्की सी सिसकारी से अनुश्री का ध्यान भंग हुआ,उसने बूढ़ो कि तरफ देखा तो दोनों के मुँह खुले हुए थे,शरीर मे कोई हरकत नहीं थी " अंकल अंकल....लो हो गया " अनुश्री ने धोती को वापस से चाटर्जी कि तरफ सरका दिया.
लेकिन सामने से कोई जवाब नहीं,दोनों ही मुँह खोले आंखे फाडे कुछ देख रहे थे,अनुश्री ने उनकी आँखों का पीछा किया तो सन्न रह गई,उसकी T-shirt पूरी तरह से स्तन मे धसी हुई थी दो बड़े बड़े आकर साफ दिख रहे थे ऊपर से किसी अंगूर कि तरह उभरे हुए दो दाने,
दो बूढ़े बन्दर इसी अंगूर को निहार रहे थे,मुँह खुले होने कि वजह से उनके मुँह से लार तक टपक गई
अनुश्री बुरी तरह झेप गई,उसकी हालात बुरी हो चली थी, खुद को इस स्थति मे पा के एक बार फिर से कामवासना कि चिंगारी सुलगने लगी थी,परन्तु स्त्री सुलभ शर्म से उसे अपने बदन को छुपाने पे मजबूर कर दिया.
अनुश्री ने अपने बाल आगे कर स्तन पे रख दिये
अनुश्री कि हरकत से दोनों बूढ़े जैसे होश मे आये,उनके हाथ अभी भी अपनी अपनी जांघो के बीच ही धसे हुए थे,जिसपे अनुश्री का ध्यान कतई नहीं गया.
"बहुत सुनदोर हो अनु तुम " चाटर्जी कि आँखों मे लाल डोरे तेर रहे थे, बेटा से वापस सीधा अनु पे आ गया था.
"कककक....क्या अंकल आप भी " अनुश्री मंद ही मंद मुस्कुरा रही थी,कही ना कही वो अपनी तारीफ सुन के गदगद हुए जा रही थी
वो पहले से ही पति सुख और तारीफ कि भूखी थी लेकिन उसे ये सब अपने पति से नहीं दो अनजान बूढ़ो से मिल रहा था.
अनुश्री अभी भी सर नीचे झुकाये ही बात कर रही थी,उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी उनकी तरफ देखने कि.
"तुम शरमाती बहुत हो ऐसे शर्माओगी तो जवानी का मजा कैसे लूटोगी " मुखर्जी ने इस बार वापस से गोली दाग़ दि थी.
अनुश्री वासना के कुए से बहार निकलती ही थी कि ये लोग वापस से धक्का दे देते.
"जवानी का मजा?" अनुश्री के दिमाग़ मे यही शब्द गूंज रहे थे
"कहाँ लिया है मैंने अभी तक जवानी का मजा, मेरे पति को तो फ़िक्र ही नहीं है " आज पहली बार उसे अपने पति पे गुस्सा आ रहा था चिढ़ हो रही थी अपने पति से, भरी जवानी मे बूढ़ो जैसा बर्ताव कर रहा था और एक ये दोनों बूढ़े है जो मेरी तारीफ किये नहीं थक रहे"अनुश्री का दिमाग़ उसे और कुछ सोचने ही नहीं दे रहा था.
आखिर जवान कामवासना से भरा बदन सोचता भी क्या है.
"लगता है तुम्हे ठण्ड लग रही है,देखो फिर रोंगटे खड़े हो गए तुम्हारे " चाटर्जी ने वापस से अपना एक हाथ उसके बाजु पे रख दिया.
"इसससस.....अंकल " अनुश्री ने दबे होंठो से सिसकारी भरी उसे चाटर्जी कि बात सुन ध्यान आया कि भीगे होने कि वजह से उसे वाकई ठण्ड लग रही है.
परन्तु चाटर्जी का गरम स्पर्श उसके लिए राहत का विषय था,ना जाने क्यों उसे ये स्पर्श पसंद आ रहा था
"अअअअअ....हां...हाँ अंकल थोड़ी थोड़ी " अनुश्री ने पहली बार नजर उठा के जवाब दिया
दोनों बूढ़े बस देखते ही रह गए,क्या कामुक चेहरा था,गोरा मुखड़ा,काली कजरारी आंखे.
आज तो जान भी चली जाती तो परवाह नहीं थी दोनों को
"तो यहाँ आ जाओ मै खिड़की के पास बैठ जाता हू " चाटर्जी मे थोड़ा सा अनुश्री से चिपकते हुए कहाँ.
अनुश्री एक पल को सोच मे पड़ गई कैसे वो इन दो बूढ़ो के बीच बैठ जाये,लेकिन ये ठंडी हवा,गिला बदन,चाटर्जी का गरम.स्पर्श उसके हौसले बढ़ा रहा था.
अनुश्री ने सर उठा के आगे देखा किसी का ध्यान पीछे नहीं था,मंगेश राजेश तो जैसे सदियों के जगे थे उघने मे मस्त थे.
ना जाने किस शक्ति से अनुश्री सीट पकड़ के हल्की सी उठ बीच मे सरकने लगी.
चाटर्जी भी बैठे बैठे ही खिड़की कि तरफ सरकने लगा.
कि तभी चाटर्जी का घुटना अनुश्री कि जाँघ से जा टकराया अनुश्री का बैलेंस बिगड़ा कि वो चाटर्जी कि गोद मे जा गिरी.
"आऊंच........"
"आअह्ह्हब्ब......अनु "
दोनों के मुँह से एक साथ आह और सिसकारी निकल पड़ी
अनुश्री जैसे ही चाटर्जी कि गोद मे गिरी उसे एक भारी सी गोल चीज अपनी गांड के बीच चुभती सी महसूस हुई, उसे एक पल मे ट्रैन का वाक्य याद आ गया जब पीछे से अब्दुल का लंड उसकी गांड कि दरार मे ठोंकर मार रहा था.
इतना याद आना था कि उसकी सांसे चढ़ गई,एक पल को तो जैसे उसकी सांसे थम ही गई थी "नहीं....नहीं....फिर से नहीं..." अनुश्री तुरंत उठ खड़ी हुई और झट से सरकती हुई बीच मे जा बैठी.
जहाँ उसे अभी ठण्ड लग रही थी अब उसका चेहरा मात्र इस हादसे से पसीने से नहा गया.
उसकी हिम्मत नहीं हो पा रही थी कि वो कुछ बोले "ससस....सोरी अंकल " धम से वो अपनी सीट पे बैठ गई लेकिन उसका दिल धाड़ धाड़ कर चल रहा रहा उसे पता था को वो चुभने वाली चीज क्या थी..
"कोई बात नहीं अनु होता है,वैसे बहुत बड़ी है तुम्हारी गांड " चाटर्जी के ये शब्द अनुश्री के कान मे किसी तीर कि तरह पेवास्त हो गए ये तीर जा के लगा सीधा अनुश्री कि गांड पे.
"ये...ये...क्या बोल रहे है आप " अनुश्री ने हकलाते हुए अपनी गांड को जबरजस्त तरीके से भींच लिया जैसे तो कुछ उसमे घुस ना जाये.
"अरे मतलब तुम्हारा पीछे का हिस्सा भारी है बहुत,देखो मेरा नुन्नू दब के मर जाता " चाटर्जी ने अपनी धोती मे से ही अपने लंड को नीचे बैठने कि कोशिश कि.
अनुश्री ने तिरछी नजर से देखा,जैसे ही चाटर्जी ने हाथ हटाया भक्क से लंड वापस उठ के धोती मे उभार बना दिया.
"इससससस......करती अनुश्री ने अपनी जांघो को भी भींच लिया.
धोती मे हिलता उभार उसे अपनी जांघो के बीच महसूस हुआ.
ये अहसास उसके लिए नया नहीं था,ये अनुभव वो अब्दुल के साथ ले चुकी थी.
"क्या हुआ बेटा?" मुखर्जी ने पूछा इस बार
"कककक....कक्क...कुछ नहीं...कुछ भी तो नहीं " अनुश्री ने अपनी दिल कि धड़कन को थामते हुए साफ मुकर गई.
लेकिन उसके मुकरने से क्या होता है,काम वासना मे जलता बदन कहाँ मानता है.
दोनों बूढ़ो के एक एक शब्द उसके एक एक रोम को आनंदित कर दे रहे थे, उसका मन मना कर रहा था लेकिन बदन हाँ कि तरफ था.
वो वहाँ से उठ जाना चाहती थी,नहीं...नहीं.....लेकिन क्यों? किस लिए? किसे फ़िक्र है मेरी?
"बेटा तुम जैसी खूबसूरत लड़की बिना जवानी के मजे लिए ही लौट जाये तो दिक्कार है ऐसे बदन पे, ऐसा मौका बार बार नहीं आता"
बात आगे बढ़ती ही कि.....
कककककररररर......लेडीज़ एंड जेंट्स बहार मौसम ख़राब है तो लंच के पैकेट बस मे ही दे दिये जायेंगे.
माइक मे आवाज़ गूंज उठी.
अनुश्री को कुछ सुनाई नहीं दे रहा था वो गहरी सोच मे डूबी हुई थी.
आज काम कला,वासना का दिव्य ज्ञान उसे मिल रहा था.
एक संस्कारी पतीव्रता नारी अपने जवान कामुक बदन से वाकिफ हो रही थी.
गजब था कुदरत का करिश्मा भी.
दो बूढ़े किसी अवतार कि तरह प्रकट हो एक संस्कारी शादीशुदा स्त्री को वासना के कुएँ मे धकेल रहे थे..
लंच के पैकेट बटने लगे थे.....
कथा जारी है मिलते है लंच के बाद.....
बहुत बिंदास और मस्त थ्रेड है....अपडेट -22
"अनु.....अनु.....जान...क्या हुआ? चलो " मंगेश ने अनुश्री को झकझोर दिया.
"हहहह...हनन.हाँ..." अनुश्री अभी भी शून्य मे ही खोई हुई थी.
"अरे चलो भी कोणार्क मंदिर आ गया है दर्शन करते है,अब नहीं घूमना तुम्हे?"
अनुश्री ने नजर उठा के देखा बस पूरी खाली थी,उसका पति मंगेश उसका हाथ पकड़े था.
अनुश्री जैसे नींद से जागी हो पल भर मे ही उसे अभी हुए वाक्य याद आ गया था,अनुश्री खड़ी हो गई और मंगेश के पीछे पीछे चल दि.
उसका दिल दिमाग़ शांत नहीं था "ये क्या हो रहा है मुझे जब से यहाँ आई हू खुद पे काबू ही नहीं रख पा रही हू, मेरी वासना क्या इतनी बढ़ गई है,? नहीं...नहीं....मै ऐसा नहीं कर सकती " अनुश्री ने वापस निर्णय ले लिया था.
"अच्छे से घूमना मैडम,कही बहक ना जाना " बस से उतरते हुए उसकी कानो मे आवाज़ पड़ी.
अनुश्री पलटी तो पाया अब्दुल बस कि ड्राइविंग सीट पे बैठा दाँत निपोर रहा है,
अनुश्री के मन मे तो आया कि वही डांट दे लेकिन चुप रही " कही बहक ना जाना " उसके दिमाग़ मे यही शब्द गूंज रहे थे.
"नहीं बहकूंगी मै.....अब और नहीं " अनुश्री ने आगे बढ़ के मंगेश का हाथ पकड़ लिया.
पीछे अब्दुल अपनी पेंट मे लिंग को मसल के रह गया "क्या गांड है यार,एक बार मिल जाये बस " जीन्स मे कैद अनुश्री कि गांड आपस मे रगड़ खाती मटक रही थी.
सभी यात्री बस से परे इक्कठे हो गए.
गाइड जरुरी बाते और टिकट दे रहा था, हल्की हल्की बारिश जारी ही थी.
मंगेश :- लगता है आज का दिन ही ख़राब है ये बारिश बंद नहीं होंगी.
राजेश :- ठीक कहते है भैया ये लीजिये छतरी मिल गई है पास से ही. एक छतरी को मंगेश कि तरफ बढ़ा दिया.
"लेकिन लेकिन....ये तो सिर्फ एक है?" मंगेश ने छतरी को खोलते हुए कहा
राजेश :- दो ही मिली भैया,एक मै ले लेता हू एक आप और भाभी ले लीजिये, रोमांटिक रहेगा
तीनो मुस्कुरा दिये.
सभी यात्री मंदिर के अंदर चल पड़े,
सामने ही सूर्य मंदिर का भवन था,आलीशान खूबसूरत,भव्य
अनुश्री का मन भी हल्का हो चला था, वो इस अजूबे को देख रोमांचित हो गई थी. दिल अचम्भे से भर उठा था.
बारिश थोड़ी तेज़ हो चली थी, कई यात्री वापस बस कि ओर लौटने लगे थे.
कुछ नौजवन जोड़े इस बारिश का लुत्फ़ उठा रहे थे,इतना सुन्दर मनमोहक नजारा बार बार थोड़ी ना देखने को मिलता है.
मंगेश और अनुश्री भी इन्ही लुफ्तखोर जोड़ो मे शामिल थे,
मंगेश :- चलो अनु वापस चलते है बारिश तेज़ होने लगी है.
अनुश्री :- क्या मंगेश तुम भी इतना तो रोमांटिक मौसम है और तुम्हे जाने कि पड़ी है.
अनुश्री और मंगेश छाता होने के बावजूद हवा से उड़ती बारिश कि बूंदो से भीग रहे थे
अनुश्री के रोंगटे खड़े कर देने के लिए ये माहौल काफ़ी था,उसे अपने पति का गर्म अहसास चाहिए था.
परन्तु शायद इस आग कि सख्त कमी थी मंगेश मे उल्टा उसके हाथ पाँव ठन्डे होने लगे थे,
अनुश्री ने मंगेश का हाथ पकड़ा हुआ था फिर भी वो गर्म अहसास नहीं मिल पा रहा तो बस मे चाटर्जी के मात्र एक स्पर्श मे था.
करीबन आधे घंटे पूरी तरह से सूर्य मंदिर घूमने के बाद अनुश्री मंगेश भी बस कि तरफ लौट पड़े.
अनुश्री तो मस्त मौला थी खूब फोटो खिचाई अपनी, परन्तु इस मस्ती मे लगभग भीग गई थी उसका टॉप उसके स्तन से जा चिपका था जिस वजह से उसके उभार और खुल के सामने आ गए थे.
वाइट t shirt बुरी तरह जिस्म से जा चिपकी थी, सपाट पेट मे धसी खूबसूरत नाभि कि झलक, और स्तन पे उभरे खूबसूरत मोती अपनी चमक बिखेर रहे थे
देखने वालो कि नजर ही कहाँ हट रही थी उसकी छातियों से.
"आआआकककककक......छू......." मंगेश जोर से छिंका " देखा अनु तुम्हारी जिद्द से ठण्ड लग गई लगता है मुझे.
"क्या मंगेश इतने मे तुम्हे ठण्ड लग गई, मुझे देखो भीगने के बाद भी कुछ नहीं हुआ, तुम ना ठन्डे ही हो मंगेश हुँह...." अनुश्री ने गुस्से वाला मुँह बना के कहा.
कहाँ तो वो मंगेश के आगोश मे समाना चाहती थी,उल्टा यहाँ तो मंगेश को ही गर्मी कि आवश्यकता है.
दोनों इसी कहासूनी मे बस तक पहुंच गए थे,मंगेश तो भागता हुआ बस मे घुस बैठा,
उसने पाया कि राजेश पहले से ही वहाँ बैठा था.
अनुश्री भी पीछे पीछे बस मे आ गई थी,लगभग सभी यात्री आ गए थे.
मंगेश और राजेश अपनी सीट पे जा बैठे, मंगेश को कोई फ़िक्र नहीं थी उसे तो लगा था कि अनुश्री आराम से पीछे बैठ जाएगी.
"क्या मंगेश चलो ना पीछे बैठते है " अनुश्री ने आग्रह किया
"ना बाबा ना.....तुम ही जाओ एक तो तुम्हारी वजह से जुखाम हो गया लगता है अब पीछे बैठूंगा तो चक्कर भी आ जायेंगे " मंगेश ने बेरुखी से अनुश्री का प्रस्ताव ठुकरा दिया.
राजेश से तो उम्मीद भी नहीं कि जा सकती थी वो तो लड़कियों से भी ज्यादा नाजुक था.
" अरे बेटी कि कोरता है,चलो सीट पे आने दो अंदर " अनुश्री ने पीछे पलट के देखा तो धोती कुर्ता पहने मुख़र्जी और चाटर्जी खड़े थे
अनुश्री के तो होश फकता हो गए एक पल को, " नहीं नहीं....वहाँ नहीं जाना "
मंगेश :- अरे जाओ भी अनु, बस चलने को है उन लोगो को चढ़ने दो
अनुश्री को इस तरह कि कोई उम्मीद नहीं थी उसका पति ही उसे उस कुए मे धकेलना चाहता था जिस से वो बार बार निकल के भागती थी.
अनुश्री पैर पटकती गुस्से मे पीछे कि सीट पे ज़ा बैठी,उसका चेहरा गुस्से और पानी से भीगा हुआ था.
आज पहली बार उसके मन मे अपने पति के लिए खटास आई थी "कैसा आदमी है ये इसे कोई फ़िक्र ही नहीं है,इतना कितना नाजुक है बस जब देखो चिल्ला देता है " अनुश्री भूनभुनाती हुई खिड़की से बहार देखने लगी
"अरे बेटा अनु तुम तो पूरी भीग गई हो " चाटर्जी ने पास बैठते हुए कहा
"वैसे इस मौसम मे भीगने का ही मजा अलग है,क्यों अनु बेटा?" इस बार मुखर्जी भी जुड़ गया बातो के सिलसिले मे.
अनुश्री कुछ नहीं बोली वो बस बहार बारिश कि बूंदो को देखे जा रही थी उसका कोई इंट्रेस्ट नहीं था इन सब मे.
"लगता है मेरी हरकत से नाराज हो,क्या करता बेटी तुम हो ही इतनी सुन्दर और मै कवारा " चाटर्जी वापस वही आ गया जहाँ मुद्दा ख़त्म हुआ था
अनुश्री एक दम चौंक गई चाटर्जी कि बात सुन के "मेरी हरकत पे नाराज हो " थोड़ी देर पहले तो वो इन सब बातो को भूल ही गई थी लेकिन एक ही पल मे सब याद आ गया कैसे चाटर्जी का हाथ उसकी जांघो के बीच था.
वो किस्सा याद आते ही अनुश्री ने अपनी जांघो को आपस मे भींच लिया " ऐसी बात नहीं है,मै गुस्सा नहीं हू " अनुश्री अपने पति के व्यवहार से सख्त खफा थी उसने चाटर्जी कि बात पे ध्यान नहीं दिया.
"तो कैसी बात है बेटा?इतना गुस्सा क्यों हो?" बोलते हुए चाटर्जी ने वापस से अपना एक हाथ अनुश्री कि जाँघ पे रख दिया
इस बार अनुश्री ने उस हाथ को हटाने कि बिल्कुल भी कोशिश नहीं कि जैसे तो उसे कोई फर्क ही नहीं पड़ा हो.
उसकी आँखों मे अपने पति कि बेरुखाई थी.
"देखो बेटा इस जवान शरीर का इस्तेमाल अब नहीं करोगी तो क्या बुढ़ापे मे करोगी " चाटर्जी लगातार अनुश्री को बहका रहा था
जैसे वो उसकी मन कि बात जानता हो.
"कककक....क्या मतलब " अनुश्री का धयान इस बार टूटा,उसकी जाँघ पे होता गर्म अहसास उसे सकून दे रहा था
"देखो कितनी भीग गई हो " चाटर्जी ने ऊँगली से उसके स्तन कि ओर इशारा किया.
अनुश्री ने चाटर्जी कि ऊँगली का पीछा किया तो पाया कि उसका टॉप पूरी तरह से भीग के उसके स्तन को चिपका हुआ था इतना कि उसके निप्पल और उसके आस पास कि गोलाईया साफ साफ दिख रही थी.
अनुश्री एक दम से पानी पानी हो गई,पानी से भीगे चेहरे पे पसीने कि हल्की बुँदे तैर गई, पहले खुशी और अब गुस्से मे उसका ध्यान ही नहीं गया कि वो भीगी हुई है और वाइट t shirt पहने होने कि वजह से उसके स्तन कि झलक दिख रही होंगी.
उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि क्या करे साथ मे कोई स्कार्फ या तौलिया तो लाई ही नहीं थी,उसकी आंखे शर्म से झुक गई.
"अरे अनु शरमाती क्यों हो ये तो स्वाभाविक है,लगता है तुम्हे ठण्ड लग रही है भीगने कि वजह से " चाटर्जी ने अपनी धोती को हल्का सा उठाते हुए एक कौना अनुश्री को थमा दिया "लो पोछ लो "
अनुश्री मन्त्र मुग्ध सी चाटर्जी को देखे जा रही थी "कितनी फ़िक्र है एक अनजान आदमी को और एक मेरा पति है " अनुश्री के मन मे अपने पति के लिए रोष उत्पन्न हो रहा था,एक हिन् भावना पैदा हो रही थी,वो आज केयर का मतलब समझ रही थी.
"ठण्ड लग जाएगी अनु बेटा,फिर कैसे हनीमून मनाओगी,लो पोछ लो " चाटर्जी ने फिर से हनीमून का नाम ले लिया था,
वो हनीमून ही तो मनाने आई थी,लेकिन ये कैसा हनीमून जहाँ उसका पति ही बेरुखी से पेश आ रहा था.
"थैंक्स अंकल " अनुश्री ने धोती का कोना पकड़ के अपने स्तन पे लगा दिया और ऊपर से नीचे पोछने लगी.
दोनों बूढ़ो कि आंखे चौड़ी होने लगी, ऐसा अद्भुत नजारा उन्होंने कभी देखा हो याद नहीं था.
अनुश्री बेफिक्र धोती से अपने स्तन और गले के पानी को पोछे जा रही थी,उसके पोछने से स्तन दबते तो निप्पल के उभार निकल के बहार को आ जाते और अपनी छाप t shirt पे छोड़ देते.
इस एक नज़ारे ने दोनों बूढ़ो के सोये अरमानो को जगा दिया था,उनकी धोती मे हलचल पैदा होने लगी "आआहहहहहह.....ओती सुनदोर,खूब भालो....इससससस....." करते हुए दोनों ने अपनी अपनी जांघो के बीच हथेली रख दबा दिया जैसे किसी चीज को बहार आने से रोक रहे हो.
हल्की सी सिसकारी से अनुश्री का ध्यान भंग हुआ,उसने बूढ़ो कि तरफ देखा तो दोनों के मुँह खुले हुए थे,शरीर मे कोई हरकत नहीं थी " अंकल अंकल....लो हो गया " अनुश्री ने धोती को वापस से चाटर्जी कि तरफ सरका दिया.
लेकिन सामने से कोई जवाब नहीं,दोनों ही मुँह खोले आंखे फाडे कुछ देख रहे थे,अनुश्री ने उनकी आँखों का पीछा किया तो सन्न रह गई,उसकी T-shirt पूरी तरह से स्तन मे धसी हुई थी दो बड़े बड़े आकर साफ दिख रहे थे ऊपर से किसी अंगूर कि तरह उभरे हुए दो दाने,
दो बूढ़े बन्दर इसी अंगूर को निहार रहे थे,मुँह खुले होने कि वजह से उनके मुँह से लार तक टपक गई
अनुश्री बुरी तरह झेप गई,उसकी हालात बुरी हो चली थी, खुद को इस स्थति मे पा के एक बार फिर से कामवासना कि चिंगारी सुलगने लगी थी,परन्तु स्त्री सुलभ शर्म से उसे अपने बदन को छुपाने पे मजबूर कर दिया.
अनुश्री ने अपने बाल आगे कर स्तन पे रख दिये
अनुश्री कि हरकत से दोनों बूढ़े जैसे होश मे आये,उनके हाथ अभी भी अपनी अपनी जांघो के बीच ही धसे हुए थे,जिसपे अनुश्री का ध्यान कतई नहीं गया.
"बहुत सुनदोर हो अनु तुम " चाटर्जी कि आँखों मे लाल डोरे तेर रहे थे, बेटा से वापस सीधा अनु पे आ गया था.
"कककक....क्या अंकल आप भी " अनुश्री मंद ही मंद मुस्कुरा रही थी,कही ना कही वो अपनी तारीफ सुन के गदगद हुए जा रही थी
वो पहले से ही पति सुख और तारीफ कि भूखी थी लेकिन उसे ये सब अपने पति से नहीं दो अनजान बूढ़ो से मिल रहा था.
अनुश्री अभी भी सर नीचे झुकाये ही बात कर रही थी,उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी उनकी तरफ देखने कि.
"तुम शरमाती बहुत हो ऐसे शर्माओगी तो जवानी का मजा कैसे लूटोगी " मुखर्जी ने इस बार वापस से गोली दाग़ दि थी.
अनुश्री वासना के कुए से बहार निकलती ही थी कि ये लोग वापस से धक्का दे देते.
"जवानी का मजा?" अनुश्री के दिमाग़ मे यही शब्द गूंज रहे थे
"कहाँ लिया है मैंने अभी तक जवानी का मजा, मेरे पति को तो फ़िक्र ही नहीं है " आज पहली बार उसे अपने पति पे गुस्सा आ रहा था चिढ़ हो रही थी अपने पति से, भरी जवानी मे बूढ़ो जैसा बर्ताव कर रहा था और एक ये दोनों बूढ़े है जो मेरी तारीफ किये नहीं थक रहे"अनुश्री का दिमाग़ उसे और कुछ सोचने ही नहीं दे रहा था.
आखिर जवान कामवासना से भरा बदन सोचता भी क्या है.
"लगता है तुम्हे ठण्ड लग रही है,देखो फिर रोंगटे खड़े हो गए तुम्हारे " चाटर्जी ने वापस से अपना एक हाथ उसके बाजु पे रख दिया.
"इसससस.....अंकल " अनुश्री ने दबे होंठो से सिसकारी भरी उसे चाटर्जी कि बात सुन ध्यान आया कि भीगे होने कि वजह से उसे वाकई ठण्ड लग रही है.
परन्तु चाटर्जी का गरम स्पर्श उसके लिए राहत का विषय था,ना जाने क्यों उसे ये स्पर्श पसंद आ रहा था
"अअअअअ....हां...हाँ अंकल थोड़ी थोड़ी " अनुश्री ने पहली बार नजर उठा के जवाब दिया
दोनों बूढ़े बस देखते ही रह गए,क्या कामुक चेहरा था,गोरा मुखड़ा,काली कजरारी आंखे.
आज तो जान भी चली जाती तो परवाह नहीं थी दोनों को
"तो यहाँ आ जाओ मै खिड़की के पास बैठ जाता हू " चाटर्जी मे थोड़ा सा अनुश्री से चिपकते हुए कहाँ.
अनुश्री एक पल को सोच मे पड़ गई कैसे वो इन दो बूढ़ो के बीच बैठ जाये,लेकिन ये ठंडी हवा,गिला बदन,चाटर्जी का गरम.स्पर्श उसके हौसले बढ़ा रहा था.
अनुश्री ने सर उठा के आगे देखा किसी का ध्यान पीछे नहीं था,मंगेश राजेश तो जैसे सदियों के जगे थे उघने मे मस्त थे.
ना जाने किस शक्ति से अनुश्री सीट पकड़ के हल्की सी उठ बीच मे सरकने लगी.
चाटर्जी भी बैठे बैठे ही खिड़की कि तरफ सरकने लगा.
कि तभी चाटर्जी का घुटना अनुश्री कि जाँघ से जा टकराया अनुश्री का बैलेंस बिगड़ा कि वो चाटर्जी कि गोद मे जा गिरी.
"आऊंच........"
"आअह्ह्हब्ब......अनु "
दोनों के मुँह से एक साथ आह और सिसकारी निकल पड़ी
अनुश्री जैसे ही चाटर्जी कि गोद मे गिरी उसे एक भारी सी गोल चीज अपनी गांड के बीच चुभती सी महसूस हुई, उसे एक पल मे ट्रैन का वाक्य याद आ गया जब पीछे से अब्दुल का लंड उसकी गांड कि दरार मे ठोंकर मार रहा था.
इतना याद आना था कि उसकी सांसे चढ़ गई,एक पल को तो जैसे उसकी सांसे थम ही गई थी "नहीं....नहीं....फिर से नहीं..." अनुश्री तुरंत उठ खड़ी हुई और झट से सरकती हुई बीच मे जा बैठी.
जहाँ उसे अभी ठण्ड लग रही थी अब उसका चेहरा मात्र इस हादसे से पसीने से नहा गया.
उसकी हिम्मत नहीं हो पा रही थी कि वो कुछ बोले "ससस....सोरी अंकल " धम से वो अपनी सीट पे बैठ गई लेकिन उसका दिल धाड़ धाड़ कर चल रहा रहा उसे पता था को वो चुभने वाली चीज क्या थी..
"कोई बात नहीं अनु होता है,वैसे बहुत बड़ी है तुम्हारी गांड " चाटर्जी के ये शब्द अनुश्री के कान मे किसी तीर कि तरह पेवास्त हो गए ये तीर जा के लगा सीधा अनुश्री कि गांड पे.
"ये...ये...क्या बोल रहे है आप " अनुश्री ने हकलाते हुए अपनी गांड को जबरजस्त तरीके से भींच लिया जैसे तो कुछ उसमे घुस ना जाये.
"अरे मतलब तुम्हारा पीछे का हिस्सा भारी है बहुत,देखो मेरा नुन्नू दब के मर जाता " चाटर्जी ने अपनी धोती मे से ही अपने लंड को नीचे बैठने कि कोशिश कि.
अनुश्री ने तिरछी नजर से देखा,जैसे ही चाटर्जी ने हाथ हटाया भक्क से लंड वापस उठ के धोती मे उभार बना दिया.
"इससससस......करती अनुश्री ने अपनी जांघो को भी भींच लिया.
धोती मे हिलता उभार उसे अपनी जांघो के बीच महसूस हुआ.
ये अहसास उसके लिए नया नहीं था,ये अनुभव वो अब्दुल के साथ ले चुकी थी.
"क्या हुआ बेटा?" मुखर्जी ने पूछा इस बार
"कककक....कक्क...कुछ नहीं...कुछ भी तो नहीं " अनुश्री ने अपनी दिल कि धड़कन को थामते हुए साफ मुकर गई.
लेकिन उसके मुकरने से क्या होता है,काम वासना मे जलता बदन कहाँ मानता है.
दोनों बूढ़ो के एक एक शब्द उसके एक एक रोम को आनंदित कर दे रहे थे, उसका मन मना कर रहा था लेकिन बदन हाँ कि तरफ था.
वो वहाँ से उठ जाना चाहती थी,नहीं...नहीं.....लेकिन क्यों? किस लिए? किसे फ़िक्र है मेरी?
"बेटा तुम जैसी खूबसूरत लड़की बिना जवानी के मजे लिए ही लौट जाये तो दिक्कार है ऐसे बदन पे, ऐसा मौका बार बार नहीं आता"
बात आगे बढ़ती ही कि.....
कककककररररर......लेडीज़ एंड जेंट्स बहार मौसम ख़राब है तो लंच के पैकेट बस मे ही दे दिये जायेंगे.
माइक मे आवाज़ गूंज उठी.
अनुश्री को कुछ सुनाई नहीं दे रहा था वो गहरी सोच मे डूबी हुई थी.
आज काम कला,वासना का दिव्य ज्ञान उसे मिल रहा था.
एक संस्कारी पतीव्रता नारी अपने जवान कामुक बदन से वाकिफ हो रही थी.
गजब था कुदरत का करिश्मा भी.
दो बूढ़े किसी अवतार कि तरह प्रकट हो एक संस्कारी शादीशुदा स्त्री को वासना के कुएँ मे धकेल रहे थे..
लंच के पैकेट बटने लगे थे.....
कथा जारी है मिलते है लंच के बाद.....
Super updateअपडेट -22
"अनु.....अनु.....जान...क्या हुआ? चलो " मंगेश ने अनुश्री को झकझोर दिया.
"हहहह...हनन.हाँ..." अनुश्री अभी भी शून्य मे ही खोई हुई थी.
"अरे चलो भी कोणार्क मंदिर आ गया है दर्शन करते है,अब नहीं घूमना तुम्हे?"
अनुश्री ने नजर उठा के देखा बस पूरी खाली थी,उसका पति मंगेश उसका हाथ पकड़े था.
अनुश्री जैसे नींद से जागी हो पल भर मे ही उसे अभी हुए वाक्य याद आ गया था,अनुश्री खड़ी हो गई और मंगेश के पीछे पीछे चल दि.
उसका दिल दिमाग़ शांत नहीं था "ये क्या हो रहा है मुझे जब से यहाँ आई हू खुद पे काबू ही नहीं रख पा रही हू, मेरी वासना क्या इतनी बढ़ गई है,? नहीं...नहीं....मै ऐसा नहीं कर सकती " अनुश्री ने वापस निर्णय ले लिया था.
"अच्छे से घूमना मैडम,कही बहक ना जाना " बस से उतरते हुए उसकी कानो मे आवाज़ पड़ी.
अनुश्री पलटी तो पाया अब्दुल बस कि ड्राइविंग सीट पे बैठा दाँत निपोर रहा है,
अनुश्री के मन मे तो आया कि वही डांट दे लेकिन चुप रही " कही बहक ना जाना " उसके दिमाग़ मे यही शब्द गूंज रहे थे.
"नहीं बहकूंगी मै.....अब और नहीं " अनुश्री ने आगे बढ़ के मंगेश का हाथ पकड़ लिया.
पीछे अब्दुल अपनी पेंट मे लिंग को मसल के रह गया "क्या गांड है यार,एक बार मिल जाये बस " जीन्स मे कैद अनुश्री कि गांड आपस मे रगड़ खाती मटक रही थी.
सभी यात्री बस से परे इक्कठे हो गए.
गाइड जरुरी बाते और टिकट दे रहा था, हल्की हल्की बारिश जारी ही थी.
मंगेश :- लगता है आज का दिन ही ख़राब है ये बारिश बंद नहीं होंगी.
राजेश :- ठीक कहते है भैया ये लीजिये छतरी मिल गई है पास से ही. एक छतरी को मंगेश कि तरफ बढ़ा दिया.
"लेकिन लेकिन....ये तो सिर्फ एक है?" मंगेश ने छतरी को खोलते हुए कहा
राजेश :- दो ही मिली भैया,एक मै ले लेता हू एक आप और भाभी ले लीजिये, रोमांटिक रहेगा
तीनो मुस्कुरा दिये.
सभी यात्री मंदिर के अंदर चल पड़े,
सामने ही सूर्य मंदिर का भवन था,आलीशान खूबसूरत,भव्य
अनुश्री का मन भी हल्का हो चला था, वो इस अजूबे को देख रोमांचित हो गई थी. दिल अचम्भे से भर उठा था.
बारिश थोड़ी तेज़ हो चली थी, कई यात्री वापस बस कि ओर लौटने लगे थे.
कुछ नौजवन जोड़े इस बारिश का लुत्फ़ उठा रहे थे,इतना सुन्दर मनमोहक नजारा बार बार थोड़ी ना देखने को मिलता है.
मंगेश और अनुश्री भी इन्ही लुफ्तखोर जोड़ो मे शामिल थे,
मंगेश :- चलो अनु वापस चलते है बारिश तेज़ होने लगी है.
अनुश्री :- क्या मंगेश तुम भी इतना तो रोमांटिक मौसम है और तुम्हे जाने कि पड़ी है.
अनुश्री और मंगेश छाता होने के बावजूद हवा से उड़ती बारिश कि बूंदो से भीग रहे थे
अनुश्री के रोंगटे खड़े कर देने के लिए ये माहौल काफ़ी था,उसे अपने पति का गर्म अहसास चाहिए था.
परन्तु शायद इस आग कि सख्त कमी थी मंगेश मे उल्टा उसके हाथ पाँव ठन्डे होने लगे थे,
अनुश्री ने मंगेश का हाथ पकड़ा हुआ था फिर भी वो गर्म अहसास नहीं मिल पा रहा तो बस मे चाटर्जी के मात्र एक स्पर्श मे था.
करीबन आधे घंटे पूरी तरह से सूर्य मंदिर घूमने के बाद अनुश्री मंगेश भी बस कि तरफ लौट पड़े.
अनुश्री तो मस्त मौला थी खूब फोटो खिचाई अपनी, परन्तु इस मस्ती मे लगभग भीग गई थी उसका टॉप उसके स्तन से जा चिपका था जिस वजह से उसके उभार और खुल के सामने आ गए थे.
वाइट t shirt बुरी तरह जिस्म से जा चिपकी थी, सपाट पेट मे धसी खूबसूरत नाभि कि झलक, और स्तन पे उभरे खूबसूरत मोती अपनी चमक बिखेर रहे थे
देखने वालो कि नजर ही कहाँ हट रही थी उसकी छातियों से.
"आआआकककककक......छू......." मंगेश जोर से छिंका " देखा अनु तुम्हारी जिद्द से ठण्ड लग गई लगता है मुझे.
"क्या मंगेश इतने मे तुम्हे ठण्ड लग गई, मुझे देखो भीगने के बाद भी कुछ नहीं हुआ, तुम ना ठन्डे ही हो मंगेश हुँह...." अनुश्री ने गुस्से वाला मुँह बना के कहा.
कहाँ तो वो मंगेश के आगोश मे समाना चाहती थी,उल्टा यहाँ तो मंगेश को ही गर्मी कि आवश्यकता है.
दोनों इसी कहासूनी मे बस तक पहुंच गए थे,मंगेश तो भागता हुआ बस मे घुस बैठा,
उसने पाया कि राजेश पहले से ही वहाँ बैठा था.
अनुश्री भी पीछे पीछे बस मे आ गई थी,लगभग सभी यात्री आ गए थे.
मंगेश और राजेश अपनी सीट पे जा बैठे, मंगेश को कोई फ़िक्र नहीं थी उसे तो लगा था कि अनुश्री आराम से पीछे बैठ जाएगी.
"क्या मंगेश चलो ना पीछे बैठते है " अनुश्री ने आग्रह किया
"ना बाबा ना.....तुम ही जाओ एक तो तुम्हारी वजह से जुखाम हो गया लगता है अब पीछे बैठूंगा तो चक्कर भी आ जायेंगे " मंगेश ने बेरुखी से अनुश्री का प्रस्ताव ठुकरा दिया.
राजेश से तो उम्मीद भी नहीं कि जा सकती थी वो तो लड़कियों से भी ज्यादा नाजुक था.
" अरे बेटी कि कोरता है,चलो सीट पे आने दो अंदर " अनुश्री ने पीछे पलट के देखा तो धोती कुर्ता पहने मुख़र्जी और चाटर्जी खड़े थे
अनुश्री के तो होश फकता हो गए एक पल को, " नहीं नहीं....वहाँ नहीं जाना "
मंगेश :- अरे जाओ भी अनु, बस चलने को है उन लोगो को चढ़ने दो
अनुश्री को इस तरह कि कोई उम्मीद नहीं थी उसका पति ही उसे उस कुए मे धकेलना चाहता था जिस से वो बार बार निकल के भागती थी.
अनुश्री पैर पटकती गुस्से मे पीछे कि सीट पे ज़ा बैठी,उसका चेहरा गुस्से और पानी से भीगा हुआ था.
आज पहली बार उसके मन मे अपने पति के लिए खटास आई थी "कैसा आदमी है ये इसे कोई फ़िक्र ही नहीं है,इतना कितना नाजुक है बस जब देखो चिल्ला देता है " अनुश्री भूनभुनाती हुई खिड़की से बहार देखने लगी
"अरे बेटा अनु तुम तो पूरी भीग गई हो " चाटर्जी ने पास बैठते हुए कहा
"वैसे इस मौसम मे भीगने का ही मजा अलग है,क्यों अनु बेटा?" इस बार मुखर्जी भी जुड़ गया बातो के सिलसिले मे.
अनुश्री कुछ नहीं बोली वो बस बहार बारिश कि बूंदो को देखे जा रही थी उसका कोई इंट्रेस्ट नहीं था इन सब मे.
"लगता है मेरी हरकत से नाराज हो,क्या करता बेटी तुम हो ही इतनी सुन्दर और मै कवारा " चाटर्जी वापस वही आ गया जहाँ मुद्दा ख़त्म हुआ था
अनुश्री एक दम चौंक गई चाटर्जी कि बात सुन के "मेरी हरकत पे नाराज हो " थोड़ी देर पहले तो वो इन सब बातो को भूल ही गई थी लेकिन एक ही पल मे सब याद आ गया कैसे चाटर्जी का हाथ उसकी जांघो के बीच था.
वो किस्सा याद आते ही अनुश्री ने अपनी जांघो को आपस मे भींच लिया " ऐसी बात नहीं है,मै गुस्सा नहीं हू " अनुश्री अपने पति के व्यवहार से सख्त खफा थी उसने चाटर्जी कि बात पे ध्यान नहीं दिया.
"तो कैसी बात है बेटा?इतना गुस्सा क्यों हो?" बोलते हुए चाटर्जी ने वापस से अपना एक हाथ अनुश्री कि जाँघ पे रख दिया
इस बार अनुश्री ने उस हाथ को हटाने कि बिल्कुल भी कोशिश नहीं कि जैसे तो उसे कोई फर्क ही नहीं पड़ा हो.
उसकी आँखों मे अपने पति कि बेरुखाई थी.
"देखो बेटा इस जवान शरीर का इस्तेमाल अब नहीं करोगी तो क्या बुढ़ापे मे करोगी " चाटर्जी लगातार अनुश्री को बहका रहा था
जैसे वो उसकी मन कि बात जानता हो.
"कककक....क्या मतलब " अनुश्री का धयान इस बार टूटा,उसकी जाँघ पे होता गर्म अहसास उसे सकून दे रहा था
"देखो कितनी भीग गई हो " चाटर्जी ने ऊँगली से उसके स्तन कि ओर इशारा किया.
अनुश्री ने चाटर्जी कि ऊँगली का पीछा किया तो पाया कि उसका टॉप पूरी तरह से भीग के उसके स्तन को चिपका हुआ था इतना कि उसके निप्पल और उसके आस पास कि गोलाईया साफ साफ दिख रही थी.
अनुश्री एक दम से पानी पानी हो गई,पानी से भीगे चेहरे पे पसीने कि हल्की बुँदे तैर गई, पहले खुशी और अब गुस्से मे उसका ध्यान ही नहीं गया कि वो भीगी हुई है और वाइट t shirt पहने होने कि वजह से उसके स्तन कि झलक दिख रही होंगी.
उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि क्या करे साथ मे कोई स्कार्फ या तौलिया तो लाई ही नहीं थी,उसकी आंखे शर्म से झुक गई.
"अरे अनु शरमाती क्यों हो ये तो स्वाभाविक है,लगता है तुम्हे ठण्ड लग रही है भीगने कि वजह से " चाटर्जी ने अपनी धोती को हल्का सा उठाते हुए एक कौना अनुश्री को थमा दिया "लो पोछ लो "
अनुश्री मन्त्र मुग्ध सी चाटर्जी को देखे जा रही थी "कितनी फ़िक्र है एक अनजान आदमी को और एक मेरा पति है " अनुश्री के मन मे अपने पति के लिए रोष उत्पन्न हो रहा था,एक हिन् भावना पैदा हो रही थी,वो आज केयर का मतलब समझ रही थी.
"ठण्ड लग जाएगी अनु बेटा,फिर कैसे हनीमून मनाओगी,लो पोछ लो " चाटर्जी ने फिर से हनीमून का नाम ले लिया था,
वो हनीमून ही तो मनाने आई थी,लेकिन ये कैसा हनीमून जहाँ उसका पति ही बेरुखी से पेश आ रहा था.
"थैंक्स अंकल " अनुश्री ने धोती का कोना पकड़ के अपने स्तन पे लगा दिया और ऊपर से नीचे पोछने लगी.
दोनों बूढ़ो कि आंखे चौड़ी होने लगी, ऐसा अद्भुत नजारा उन्होंने कभी देखा हो याद नहीं था.
अनुश्री बेफिक्र धोती से अपने स्तन और गले के पानी को पोछे जा रही थी,उसके पोछने से स्तन दबते तो निप्पल के उभार निकल के बहार को आ जाते और अपनी छाप t shirt पे छोड़ देते.
इस एक नज़ारे ने दोनों बूढ़ो के सोये अरमानो को जगा दिया था,उनकी धोती मे हलचल पैदा होने लगी "आआहहहहहह.....ओती सुनदोर,खूब भालो....इससससस....." करते हुए दोनों ने अपनी अपनी जांघो के बीच हथेली रख दबा दिया जैसे किसी चीज को बहार आने से रोक रहे हो.
हल्की सी सिसकारी से अनुश्री का ध्यान भंग हुआ,उसने बूढ़ो कि तरफ देखा तो दोनों के मुँह खुले हुए थे,शरीर मे कोई हरकत नहीं थी " अंकल अंकल....लो हो गया " अनुश्री ने धोती को वापस से चाटर्जी कि तरफ सरका दिया.
लेकिन सामने से कोई जवाब नहीं,दोनों ही मुँह खोले आंखे फाडे कुछ देख रहे थे,अनुश्री ने उनकी आँखों का पीछा किया तो सन्न रह गई,उसकी T-shirt पूरी तरह से स्तन मे धसी हुई थी दो बड़े बड़े आकर साफ दिख रहे थे ऊपर से किसी अंगूर कि तरह उभरे हुए दो दाने,
दो बूढ़े बन्दर इसी अंगूर को निहार रहे थे,मुँह खुले होने कि वजह से उनके मुँह से लार तक टपक गई
अनुश्री बुरी तरह झेप गई,उसकी हालात बुरी हो चली थी, खुद को इस स्थति मे पा के एक बार फिर से कामवासना कि चिंगारी सुलगने लगी थी,परन्तु स्त्री सुलभ शर्म से उसे अपने बदन को छुपाने पे मजबूर कर दिया.
अनुश्री ने अपने बाल आगे कर स्तन पे रख दिये
अनुश्री कि हरकत से दोनों बूढ़े जैसे होश मे आये,उनके हाथ अभी भी अपनी अपनी जांघो के बीच ही धसे हुए थे,जिसपे अनुश्री का ध्यान कतई नहीं गया.
"बहुत सुनदोर हो अनु तुम " चाटर्जी कि आँखों मे लाल डोरे तेर रहे थे, बेटा से वापस सीधा अनु पे आ गया था.
"कककक....क्या अंकल आप भी " अनुश्री मंद ही मंद मुस्कुरा रही थी,कही ना कही वो अपनी तारीफ सुन के गदगद हुए जा रही थी
वो पहले से ही पति सुख और तारीफ कि भूखी थी लेकिन उसे ये सब अपने पति से नहीं दो अनजान बूढ़ो से मिल रहा था.
अनुश्री अभी भी सर नीचे झुकाये ही बात कर रही थी,उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी उनकी तरफ देखने कि.
"तुम शरमाती बहुत हो ऐसे शर्माओगी तो जवानी का मजा कैसे लूटोगी " मुखर्जी ने इस बार वापस से गोली दाग़ दि थी.
अनुश्री वासना के कुए से बहार निकलती ही थी कि ये लोग वापस से धक्का दे देते.
"जवानी का मजा?" अनुश्री के दिमाग़ मे यही शब्द गूंज रहे थे
"कहाँ लिया है मैंने अभी तक जवानी का मजा, मेरे पति को तो फ़िक्र ही नहीं है " आज पहली बार उसे अपने पति पे गुस्सा आ रहा था चिढ़ हो रही थी अपने पति से, भरी जवानी मे बूढ़ो जैसा बर्ताव कर रहा था और एक ये दोनों बूढ़े है जो मेरी तारीफ किये नहीं थक रहे"अनुश्री का दिमाग़ उसे और कुछ सोचने ही नहीं दे रहा था.
आखिर जवान कामवासना से भरा बदन सोचता भी क्या है.
"लगता है तुम्हे ठण्ड लग रही है,देखो फिर रोंगटे खड़े हो गए तुम्हारे " चाटर्जी ने वापस से अपना एक हाथ उसके बाजु पे रख दिया.
"इसससस.....अंकल " अनुश्री ने दबे होंठो से सिसकारी भरी उसे चाटर्जी कि बात सुन ध्यान आया कि भीगे होने कि वजह से उसे वाकई ठण्ड लग रही है.
परन्तु चाटर्जी का गरम स्पर्श उसके लिए राहत का विषय था,ना जाने क्यों उसे ये स्पर्श पसंद आ रहा था
"अअअअअ....हां...हाँ अंकल थोड़ी थोड़ी " अनुश्री ने पहली बार नजर उठा के जवाब दिया
दोनों बूढ़े बस देखते ही रह गए,क्या कामुक चेहरा था,गोरा मुखड़ा,काली कजरारी आंखे.
आज तो जान भी चली जाती तो परवाह नहीं थी दोनों को
"तो यहाँ आ जाओ मै खिड़की के पास बैठ जाता हू " चाटर्जी मे थोड़ा सा अनुश्री से चिपकते हुए कहाँ.
अनुश्री एक पल को सोच मे पड़ गई कैसे वो इन दो बूढ़ो के बीच बैठ जाये,लेकिन ये ठंडी हवा,गिला बदन,चाटर्जी का गरम.स्पर्श उसके हौसले बढ़ा रहा था.
अनुश्री ने सर उठा के आगे देखा किसी का ध्यान पीछे नहीं था,मंगेश राजेश तो जैसे सदियों के जगे थे उघने मे मस्त थे.
ना जाने किस शक्ति से अनुश्री सीट पकड़ के हल्की सी उठ बीच मे सरकने लगी.
चाटर्जी भी बैठे बैठे ही खिड़की कि तरफ सरकने लगा.
कि तभी चाटर्जी का घुटना अनुश्री कि जाँघ से जा टकराया अनुश्री का बैलेंस बिगड़ा कि वो चाटर्जी कि गोद मे जा गिरी.
"आऊंच........"
"आअह्ह्हब्ब......अनु "
दोनों के मुँह से एक साथ आह और सिसकारी निकल पड़ी
अनुश्री जैसे ही चाटर्जी कि गोद मे गिरी उसे एक भारी सी गोल चीज अपनी गांड के बीच चुभती सी महसूस हुई, उसे एक पल मे ट्रैन का वाक्य याद आ गया जब पीछे से अब्दुल का लंड उसकी गांड कि दरार मे ठोंकर मार रहा था.
इतना याद आना था कि उसकी सांसे चढ़ गई,एक पल को तो जैसे उसकी सांसे थम ही गई थी "नहीं....नहीं....फिर से नहीं..." अनुश्री तुरंत उठ खड़ी हुई और झट से सरकती हुई बीच मे जा बैठी.
जहाँ उसे अभी ठण्ड लग रही थी अब उसका चेहरा मात्र इस हादसे से पसीने से नहा गया.
उसकी हिम्मत नहीं हो पा रही थी कि वो कुछ बोले "ससस....सोरी अंकल " धम से वो अपनी सीट पे बैठ गई लेकिन उसका दिल धाड़ धाड़ कर चल रहा रहा उसे पता था को वो चुभने वाली चीज क्या थी..
"कोई बात नहीं अनु होता है,वैसे बहुत बड़ी है तुम्हारी गांड " चाटर्जी के ये शब्द अनुश्री के कान मे किसी तीर कि तरह पेवास्त हो गए ये तीर जा के लगा सीधा अनुश्री कि गांड पे.
"ये...ये...क्या बोल रहे है आप " अनुश्री ने हकलाते हुए अपनी गांड को जबरजस्त तरीके से भींच लिया जैसे तो कुछ उसमे घुस ना जाये.
"अरे मतलब तुम्हारा पीछे का हिस्सा भारी है बहुत,देखो मेरा नुन्नू दब के मर जाता " चाटर्जी ने अपनी धोती मे से ही अपने लंड को नीचे बैठने कि कोशिश कि.
अनुश्री ने तिरछी नजर से देखा,जैसे ही चाटर्जी ने हाथ हटाया भक्क से लंड वापस उठ के धोती मे उभार बना दिया.
"इससससस......करती अनुश्री ने अपनी जांघो को भी भींच लिया.
धोती मे हिलता उभार उसे अपनी जांघो के बीच महसूस हुआ.
ये अहसास उसके लिए नया नहीं था,ये अनुभव वो अब्दुल के साथ ले चुकी थी.
"क्या हुआ बेटा?" मुखर्जी ने पूछा इस बार
"कककक....कक्क...कुछ नहीं...कुछ भी तो नहीं " अनुश्री ने अपनी दिल कि धड़कन को थामते हुए साफ मुकर गई.
लेकिन उसके मुकरने से क्या होता है,काम वासना मे जलता बदन कहाँ मानता है.
दोनों बूढ़ो के एक एक शब्द उसके एक एक रोम को आनंदित कर दे रहे थे, उसका मन मना कर रहा था लेकिन बदन हाँ कि तरफ था.
वो वहाँ से उठ जाना चाहती थी,नहीं...नहीं.....लेकिन क्यों? किस लिए? किसे फ़िक्र है मेरी?
"बेटा तुम जैसी खूबसूरत लड़की बिना जवानी के मजे लिए ही लौट जाये तो दिक्कार है ऐसे बदन पे, ऐसा मौका बार बार नहीं आता"
बात आगे बढ़ती ही कि.....
कककककररररर......लेडीज़ एंड जेंट्स बहार मौसम ख़राब है तो लंच के पैकेट बस मे ही दे दिये जायेंगे.
माइक मे आवाज़ गूंज उठी.
अनुश्री को कुछ सुनाई नहीं दे रहा था वो गहरी सोच मे डूबी हुई थी.
आज काम कला,वासना का दिव्य ज्ञान उसे मिल रहा था.
एक संस्कारी पतीव्रता नारी अपने जवान कामुक बदन से वाकिफ हो रही थी.
गजब था कुदरत का करिश्मा भी.
दो बूढ़े किसी अवतार कि तरह प्रकट हो एक संस्कारी शादीशुदा स्त्री को वासना के कुएँ मे धकेल रहे थे..
लंच के पैकेट बटने लगे थे.....
कथा जारी है मिलते है लंच के बाद.....