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Erotica मेरी बीवी अनुश्री

आपकी पसंदीदा कौन है?

  • अनुश्री

    Votes: 193 72.0%
  • रेखा

    Votes: 44 16.4%
  • अंब्दुल

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  • मिश्रा

    Votes: 18 6.7%
  • चाटर्जी -मुख़र्जी

    Votes: 28 10.4%
  • फारुख

    Votes: 12 4.5%

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119
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Bhai likhte toh acha ho aap bss perfect se pics or gif bhi jrur add kiye kro hr moment pe story m , sirf suggestion h baki as u wish , bss add krte pics or gif toh jyda behtar rhta
 
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Rishiii

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Bahi update q nahi aatey pehle jaise , bahot chote aur bade bade gap kay baad update aa rahe hai . 😐🥲
 

Tiger 786

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मेरी बीवी अनुश्री

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प्रस्तावना



दोस्तों आप लोगो के सामने एक छोटी कहानी प्रस्तुत कर रहा हूँ जिसमे मै और मेरी पत्नी की पूरी यात्रा का व्रणन है.
मेरी बीवी अनुश्री एक क़यामत है एक दम पटाखा
बदन ऐसा की अच्छे अच्छे फिसल जाये कामुक हसीन औरत, उम्र मात्र 24 साल, ना ज्यादा मॉर्डन है ना ज्यादा संस्कारी मतलब साड़ी पहनने से भी बचती है और बदन दिखाऊ कपड़ो को ना भी करती है.
34-24-36 का जानलेवा साइज है.
मेरी शादी को 4साल जो गए है.
पैसो की तंगी कक वजह से हम लोग कभी हनीमून पे नहीं जा पाए.
लेकिन आज मेरा धंधा सेट हो गया था,पैसा भी आ गया था तो सोचा चला जाये कही घूमने.
पैसो की तंगी की वजह से हमने कभी बच्चा पैदा करने का भी नहीं सोचा तो घर वालो की सलाह से पूरी जाने का प्लान फिक्स हुआ ..... जगन्नाथ जी से जो मांगो तो मिलता है.
मेरे मन मे भी यही था.
बात मेरी सेक्स जीवन की तो शादी के शुरुआती दिनों मे मैंने अनुश्री को खूब भोगा खूब पेला,जैसा की आमतौर पे सब करते है परन्तु समय के साथ साथ सम्भोग की इच्छा ख़त्म सी हो चली.. मै अपना धंधा ज़माने मे व्यस्त हो गया.
इस व्यस्तता मै कब मै अपनी पत्नी को खो बैठा बता ही ना चला..लेकिन आम भारतीय नारी की तरह उसने कभी कोई शिकायत नहीं की ना कोई गिला किया जो था जैसा था चलने दिया.
तो ये कहानी है मेरी और मेरी पत्नी अनुश्री की.
Nice shuruaat
 

hotshot

The things you own, end up owning you
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अपडेट -35

बाहर बदस्तूर तूफान जारी था और अंदर झोपडीनुमा मांगीलाल के होटल मे भीगी अनुश्री के तन बदन मे भी एक तूफान सा उठने लगा था,
अनुश्री इस कद्र भीगी थी कि साड़ी उसके बदन पे ना के बराबर ही थी उसके कामुक जिस्म का एक एक कटाव अपनी नुमाइश कर रहा था.

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उसे हमराही मिल गए थे, वो इस सुनसान निर्जन जगह पे किसी को तो जानती थी,
वो यहाँ अकेली नहीं थी इन दो बूढ़ो पे भी वही मुसीबत थी जो अनुश्री पे थी.
"फिर भी ये लोग कैसे बेफिक्र है मै ही जोर जबरजस्ती प्राण त्यागे जा रही थी " अनुश्री का दिल उसे लगातार सांत्वना दे रहा था उसे मुसीबत से बाहर निकाल रहा था परन्तु इस बदन का क्या करे जो उसे एक अलग ही मुसीबत मे डालने के लिए आतुर हुए जा रहा था.
"क्या मेरी जवानी ऐसी ही निकल जाएगी? कल तो चली ही जाउंगी मै फिर वही जिंदगी " अनुश्री अपने बदन से सोच रही थी,हवस उसके दिमाग़ को लगातार विचलित कर रही थी
"क्या सोचने लगी अनु?,तुम सोचती बहुत हो " चाटर्जी का हाथ अनुश्री कि जाँघ पे इस तरह चला कि उसकी साड़ी रगड़ खाती हुई जाँघ और पेट के जोड़ पे इक्कठी हो गई
"इस्स्स्स.....अंकल....ये....ये...क्या कर रहे है आप ." अनुश्री सिर्फ इतना ही बोल सकी.
गोरी सुडोल मोटी जाँघ अपनी खूबसूरती कि नुमाइश करने लगी.
"इतनी तो खूबसूरत हो तुम.अनु,क्या फायदा एक बार जवानी निकल गई तो" चाटर्जी के शब्द लगातार अनुश्री कि जवानी को धिक्कार रहे थे.
चाटर्जी कि इस हरकत ने अनुश्री के बदन मे एक झुरझुरी सी घोल दि ऊपर से बाहर से आती हवा ने अपना काम करना शुरू कर दिया,अनुश्री के रोंगटे खड़े हो गए.
"अरे अनु तुम्हे तो सर्दी लगने लगी " मुखर्जी ने धीरे से अपने हाथ को अनुश्री कि बाह पर खड़े रोंगटे पे चला दिया
"अअअअअ...आउच " अनुश्री के मुँह से इस बार जरा तीखी आवाज़ निकली
इस आवाज़ को वहाँ मौजूद सभी लोगो ने सुना
मांगीलाल ने भी, वो रह रह के गर्दन उठा के अनुश्री के भीगे बदन को देख लेता परन्तु इस आवाज़ से उसके बदन मे चिंगारी सी लगी.
उसके लिए तो ये किसी सपने जैसा ही था जैसे मरने के बाद स्वर्ग पंहुचा हो ओर सामने एक सुंदर सुडोल अप्सरा अपना जलवा बिखेर रही हो.
अनुश्री का भीगा जवान जिस्म मांगीलाल को आकर्षित कर रहा था
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उसकी नजर अनुश्री कि सुडोल जांघो पर ही थी "कितनी सुन्दर है ये लड़की, कितनी गोरी जाँघ है " मांगीलाल मन ही मन अनुश्री कि कामुक काया कि प्रशंसा कर उठा.
ना जाने आज उसके बूढ़े शरीर मे कितने बरसो बाद इस चिंगारी का अनुभव किया,सामने का दृश्य ही ऐसा था
अनुश्री चारपाई पे बैठी कसमसा रही थी.
"अंकल प्लीज......"
"क्यों क्या हुआ अनु बस मे भी तो गर्मी दि थी हम लोगो ने भूल गई क्या " मुखर्जी ने इस बार जरा हिम्मत और दिखाते हुए अपने हाथ कि एक ऊँगली अनुश्री कि कांख मे घुसा दि
"ईईस्स्स्स......नहीं...." अनुश्री को बस का वाक्य याद आते ही उसके जिस्म ने बगावत शुरू कर दी.
"अरे चाटर्जी अनु कि कांख तो पसीने से भीगी हुई है और ऊपर से इसे ठण्ड लग रही है," मुखर्जी ने अनुश्री कि कांख से ऊँगली बाहर निकाल के चाटर्जी और अनुश्री के चेहरे के सामने लहरा दि
मुखर्जी के चेहरे पे घोर आश्चर्य था.
वही अनुश्री को काटो तो खून नहीं,हालांकि ये पहली बार नहीं था परन्तु आज उसे कोई तीसरा शख्स देख रहा था उसके दादा कि उम्र का मांगीलाल
अनुश्री को दोनों बंगलियों से परहेज नहीं था परन्तु किसी तीसरे कि उपस्थिती उसे सहज़ नहीं होने दे रही थी.
"अरे हाँ मुखर्जी तू तो सच बोल रहा है बाहर से अनु को ठण्ड लग रही है और कांख मे पसीना आ रहा है " चाटर्जी अपने काम.मे जूटा हुआ था वो लगातार अनुश्री कि भीगी जाँघ को सहलाये जा रहा था.
अनुश्री शर्म से गडी जा रही थी "हे भगवान फिर से नहीं " अनुश्री ने अपने बदन को समेट लिया जहाँ जहाँ जिस्म का जोड़ था उन्हें आपस मे कस के भींच लिया.
"वाह कितना टेस्टी है " अभी अनुश्री खुद पे नियंत्रण कर ही रही थी उसकी आंखे फटी रह गई
साइड मे बैठा मुखर्जी उसके पसीने से भीगी उंगली को मुँह मे भर के चूस लिया.
अनुश्री का दिल बैठा जा रहा था,ऊँगली चूसने कि आवाज़ उसके दिल मे नाश्तर कि तरह उतर गई.
"वाह मजा आ गया किसी ने सही कहा है जवान लड़की के पसीने मे नशा होता है " मुखर्जी आंख बंद किये उसके नमकीन पानी का आनंद ले रहा था
इधर अनुश्री के कसबल मुखर्जी कि हरकत से ढीले पड़ गए
"आआआहहहह......"एक मीठी से सिसकारी उसके मुँह से फुट पड़ी
अनुश्री वापस से काम सागर के मुहाने खड़ी थी कब गोता लगा जाये पता नहीं.
"क्या हुआ अनु किसी ने बताया नहीं कि तुम्हारा पसीना कितना टेस्टी है? " चाटर्जी ने दूसरा हाथ भी अनुश्री कि दूसरी जाँघ पे रेंगने लगा
अनुश्री का पेट और सीना कांप रहे थे,थरथरा रहे थे.
वो नहीं उलझना चाहती थी इन सब मे लेकिन ना जाने क्यों हर बार इन बूढ़ो कि बातो मे बहक जाती. "नननननन.....हाँ हाँ..."
अनुश्री के हलक से निकलती ना हाँ मे तब्दील हो चली उसे याद आ गया ट्रैन मे मिश्रा ने भी उसके पसीने कि तारीफ कि थी.
वो पल याद आना ही था कि उसके जिस्म के जोड़ ढीले पढ़ते चले गए.
"किसने तारीफ कि अनु तुम्हारे पसीने कि?" मुखर्जी ने वापस से अपनी एक ऊँगली अनुश्री कि कांख मे घुसेड़ दी.
"वो...वो.....मि...मि.....मिस....मंगेश ने " अनुश्री ने अचानक से खुद को संभाल लिया वो ये राज नहीं खोल सकती थी
मुखर्जी कि ऊँगली अनुश्री के ठन्डे जिस्म को दहका रही थी,कांख से होती झुरझुरी पुरे जिस्म मे समाहित हो रही थी.
अनुश्री आनंद के सागर मे कूद चुकी थी,आखिर वो कब से इस आग मे जल रही थी उसे अब राहत चाहिए थी फिर भले सामने उसे कोई देख ही क्यों ना रहा हो.
आंख बंद किये अनुश्री गहरी गहरी सांस खिंच रही थी जैसे उसे किसी चीज का इंतज़ार हो....
उसकी कांख अपने आप ही हल्की सी खुल गई,जैसे किसी को निमंत्रण दे रही हो साफ सुथरी पसीने से भीगी कांख.
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मुखर्जी ने भी मौके कि नजाकत को भापते हुए अपना चेहरा आगे बड़ा दिया...
नीचे चाटर्जी के हाथ बदस्तूर अनुश्री कि जांघो पर रेंग रहे थे, अनुश्री को अपनी कांख के बीच गर्म गरम साँसो का आभास होने लगा,उसे चीज पल का इंतज़ार था बस वो होने ही वाला था...
"आआआआहहहहहह.....इसससससस.....अनुश्री के मुँह से कामुक सिसकारी तूफान को चिरती हुई वहाँ गूंज उठी.
अनुश्री कि आंखे बंद थी एक गर्म लेकिन लीज़लिज़ी चीज उसकी कांख मे चलने लगी.
अनुश्री एक बार फिर असीम आनन्द के सफर पे निकल पड़ी,आसपास कौन है क्या सोचेगा किसी बात कि फ़िक्र नहीं..उसे चीज चीज को तलाश थी वो उसे मिलने लगा था.
उसकी कामुकता कि शुरुआत इसी पसीना छोड़ती कांख कि वजह से हुई थी,मिश्रा ने उसकी इस खूबसूरती को ही कमजोरी बना के रख दिया था उसी का परिणाम था कि अनुश्री के हाथ खुद बा खुद उठते चले गए.
उसे उसी सुख कि चाहत थी जो ट्रैन मे मिला था ओर इस चाहत मे मुखर्जी खरा उतर रहा था.
"वाह...वाह......अनु तुम्हारा पसीना कितना कामुक है जैसे 1बोत्तल शराब पी ली हो " मुखर्जी लगातार अपनी जबान को उसकी कांख मे चलाये जा रहा था.
"आअह्ह्ह....आउच अंकल " अनुश्री का सर पीछे को झुकता चला गया,हाथ खुद ही उठ के सर को सहारा देने लगे.
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दोनों बूढ़े अपनी कामयाबी का जश्न मना रहे थे.
इधर मांगीलाल सिसकारी सुन सामने का नजारा देख दंग रह गया,वो अपनी जगह जाड़ावस्था मे खड़ा था जैसे उसे लकवा मार गया हो.
ऐसा अद्भुत कामुक नजारा शायद वो 7जन्म ले लेता फिर भी ना देख पाता लेकिन आज इंद्र देव कि मेहरबानी से उसके भाग्य खुल गए थे.
"हे भगवान.....ये ये....घरेलु संस्कारी लड़की " मांगीलाल हैरान था परेशान था लेकिन उसका जिस्म इस पल को एन्जॉय कर रहा था उसका सबूत उसकी गन्दी धोती मे होती हलचल थी.
स्टोव पे रखी चाय उबाल मार रही थी.
यहाँ अनुश्री कि जवानी भी उफान ले थी,वो अपनी जवानी को जीना सीख रही थी.
"कैसा रस है रे मुखर्जी " चाटर्जी से राहा नहीं जा रहा था
"तू खुद चाट के देख ना " मुखर्जी ने तुरंत वापस अनुश्री कि कांख मे मुँह चिपका दिया,वो एक पल को भी इस मौके को नहीं खोना चाहता था.
अनुश्री तो जैसे यही चाहती थी उसका दिल धाड़ धाड़ कर चल रहा था वो पहली बार इतना खुल के पेश आ रही थी वो भी तब जब एक बूढ़ा उसे देख रहा है और दो उसके जिस्म से खेल रहे है.
अनुश्री ने खुद ही दूसरा हाथ उठा अपने सर के पीछे रख दिया.
शरीर कि गर्मी उसके काबू मे नहीं थी उसकी कांख मे ओर भी ज्यादा पसीना निकलने लगा जिसकी गंध वहाँ मौजूद हर शख्स के नाथूनो को भिगो रही थी.
"काफ़ी समझदार हो गई हो अनु " चाटर्जी ने भी तुरंत ही अनुश्री कि दूसरी कांख मे सर दे मारा
"आआआहहहहह.....इसससससस......उफ्फ्फ्फ़ग....." अनुश्री अपने बालो को खींचने लगी उसके लिए ये बिल्कुल ही नया अनुभव था.
चाटर्जी मुखर्जी किसी बच्चे कि तरह उसकी कांख चाटे जा रहे थे.
उस झोपडी मे भी एक तूफान आ गया था हवस ओर वासना का तूफ़ान.
अनुश्री अपनी जांघो को आपस मे रगड़े जा रही थी
"Aaaahhhh.....अंकल "
अनुश्री उन्माद कि चरम सीमा पे थी.
उसकी सारी का पल्लू कबका नीचे जमीन चाटने लगा उसे पता ही नहीं.
एक चमकती गोल चीज उसकी ब्लाउज से बाहर निकलने के लिए मरी जा रही थी,
सांस लेने के साथ हूँ वो लगभग बाहर आती फिर वापस समा जाती.
सामने मांगीलाल को भी ये दृश्य बर्दाश्त नहीं थी,उसका हाथ अपने आप ही अपनी धोती मे किसी चीज को टटोलने लगा.
"हे प्रभु....ये...ये....क्या?" उसके हाथ मे जो चीज पड़ी उसके अहसास से वो हैरानी से भर गया.
उसका लंड धोती मे बेमिसाल खड़ा था
"ये...ये....इतने सालो बाद " मांगीलाल को खुद पे ही यकीन नहीं हो रहा था.
सामने अनुश्री बेकाबू बोखलाई किसी पागल स्त्री कि तरह सर पटके जा रही थी.
"आअह्ह्ह.....उफ्फफ्फ्फ़.....अंकल "
दोनों बूढ़े उसकी कांख को जैसे नोंचने पे आतुर थे,थूक से गीली कांख बाहर से आती हवा ओर हवस से गर्म हुआ जिस्म सब कुछ अजीब सा आनंद पैदा कर रहे थे.
इस आनंद सीढिया अनुश्री लगातार चढ़ रही थी उसे सामने मजिल दिखाई पड़ने लगी.
दोनों बूढ़े उसके बेचैनी को समझ रहे थे,
अनुश्री कि जाँघ आपस मे भींचती चली गई,उसे किसी जवालमुखी के फटने का अहसास हो रहा था.कभी भी लावा फुट सकता था...
कांख पे होते खुर्दरे अहसास से उसका सम्पूर्ण बदन झंझनाने लगा.
"ओर....आअह्ह्ह......अंकल...आउच "
वो बस मंजिल पे पैर रखने ही वाली थी कि.....
ठाक....ठाक...ठाक.....ढाड़....धाअद.....कि आवाज़ न साथ ही तीनो का ध्यान भंग हुआ,अनुश्री तो जैसे किसी आसमान से नीचे गिरी हो
"उफ्फ्फ्फ़....हमफ्घगफ.....हमफ़्फ़्फ़..." उसकी सांसे फूल गई थी
तीनो कि नजर उसके आवाज़ कि दिशा मे दौड़ गई..
"ठाक....ठाक...धाड़....धाड़....अदरक डाल दू ना साहब " मांगीलाल अदरक कूट रहा था
अदरक कूटने कि आवाज़ अनुश्री को ऐसे लगी जैसे किसी ने उसके कलेजे पे हथोड़ा दे मारा हो उसकी सांसे उखड़ रही थी.
एक एक प्रहार अनुश्री को अपनी जांघो के बीच महसूस हुआ.
परन्तु वहाँ कोई नहीं था,मांगीलाल के अलावा,ये जान कर अनुश्री कि सांसे दुरुस्त होने लगी.
उसने तुरंत अपनी बाह नीचे कर ली, "मैं क्या कर रही थी,?"
इस सवाल का जवाब सिर्फ अनुश्री का जिस्म ही जानता था.
एकदम से सन्नाटा छा गया,बाहर से आती तूफान कि आवाज़ साय साय करती अनुश्री के मन मस्तिष्क को झकझोर रही थी.

"साहब चाय तैयार है "
पल भर मे ही सब कुछ सामन्य हो चला सभी के हाथो मे एक एक चाय का कप था.
मांगीलाल सबसे ज्यादा हैरान था तीनो इस तरह से चाय पी रहे थे जैसे कुछ हुआ ही नहीं.

तो क्या ये हवस का खेल यही थम गया?
या फिर अब शुरू हुआ है?
मिलते है चाय के बाद.
बने रहिये कथा जारी है
:pepenice:
 
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