मेरी माँ रेशमा -1
ये कहानी मेरी माँ और मेरे सफर की है, कैसे मेरी घरेलु संस्कारी माँ बहक गई थी एक सफर मे.
पाठक कहानी पढ़ते वक़्त विवेक से काम ले.
कहानी मेरी है यानि की मैं अमित एक छोटे से गांव का रहने वाला हूँ,
नौकरी पैसे ने गॉव कबका छुड़वा दिया था, मैं नॉएडा मे एक अच्छी कम्पनी मे नौकरी करता हुआ, पढ़ने लिखने मे होनहार था, एयर कुछ घर की जिम्मेदारियां जिस वजह से मैंने जल्द ही नौकरी पकड़ ली, मेरी age मात्र 22 साल है,
हम लोग उत्तरप्रदेश के एक छोटे से गांव के रहने वाले है जो की पूर्वांचल मे पड़ता है,
मेरे अलावा मेरे घर में पिताजी - रामशंकर शर्मा (50) मेरी माँ रेशमा जो की अभी 40 साल की ही है, पहले के समय मे शादी मे 10,15 साल का गेप होना आम बात थी,
वैसे मेरी माँ देखने मे बहुत सुन्दर है, जैसा नाम वैसा रूप, कमला कमल की तरह ही खूबसूरत और नाजुक थी.
संस्कारी घरेलु महिला कभी कहीं किसी को गलत नजर से नहीं देखा, पापा को सालो से दमे की बीमारी थी, उनकी सेवा सत्कार सब मेरी माँ के जिम्मे था किसे वो भली भांति निभाती भी थी.
गॉव मे अक्सर लोग मेरी माँ को घूरते थे, उसकी काया ही ऐसी थी लम्बी चौड़ी, गद्दाराया जिस्म, तने हुए, भारी स्तन, कमर पर बिल्कुल सटीक मांस.
नितांब सारी मे कसे हुए हिलते थे, थिरकते थे, इसी थिरकन को देखने के लिए पूरा गॉव मरता था
हालांकि मेरी नजर मैं माँ सिर्फ माँ ही थी, FB-IMG-1738910364973 मैं अक्सर शहर ही रहता था तो ज्यादा ध्यान भी नहीं देता था, गांव के लोग साले होते ही दकियानुसी ख्याल के होते है, मेरा ऐसा मानना था.
खेर मुझसे बड़ी एक बहन भी है जिसकी शादी मेरठ मे हो गई है.
मेरे पापा को दमे की बीमारी है, खेल खलिहन अक्सर मम्मी ही संभाला करती है, वैसे हमारे घर मे कोई कमी नहीं थी,
मैं ही पढ़ने शहर निकल गया था तो वापस गांव जा कर खेती बाड़ी करना मेरी शान के खिलाफ ही था.
खेतो मे मजदूर काम किया करते थे, मम्मी सिर्फ निर्देश दे दिया करती थी, पापा तो धूल मिट्टी देखते ही खासने लगते थे.
सो मैंने गॉव की मिट्टी से दूर रहता ही उचित समझा.
और पढ़ाई के बाद नौकरी भी पकड़ ली.
पूरा गांव मुझपे गर्व करता था, आखिर मैं ही था जो पढ़ लिख कर नौकरी कर रहा था शहर मे.
नॉएडा मे मैंने एक फ्लैट ले रखा था हिसाब मे कुछ मित्रो के साथ रहता था जो की मेरे साथ मेरी ही कम्पनी मे काम करते थे.
उम्र मे मैं ही सबसे छोटा था. अब नॉएडा जयश्री शहर मे अकेले फ्लैट लेना मेरे बस की बात तो नहीं थी.
तो ऐसे ही एक दिन मैं ऑफिस से शाम को घर लौटा, की मम्मी का फ़ोन बज उठा.
करररर.... करर....
हाँ मम्मी प्रणाम, कैसी है आप?" मैंने अभिवादान किया.
"ठीक हूँ बेटा, वो तेरे भाई नवीन की शादी है " मम्मी ने बताया
नवीन मेरे मामा का लड़का जो देहरादून मे रहते थे.
"अरे वाह मम्मी क्या बात कर रही हो, साले ने मुझे बताया भी नहीं "
मैं और नवीन भाई से ज्यादा दोस्त थे बचपन से ही तो मैं उसकी शादी मिस नहीं कर सकता था.
"कब है शादी?" मैंने उत्सुकता से पूछा.
"अगले सप्ताह ही है "
"आप पापा जा रहे है?" मैंने पूछा
"अरे तेरे पापा को तो खासने से ही फुर्सत नहीं है, वो कहाँ जा पाएंगे, सर्दी का मौसम है तबियत ख़राब हो जाएगी तो और दिक्कत हो जाएगी " माँ ने अपनी व्यथा कह सुनाई.
"तो फिर?" मैंने सर खुजाते हुए पूछा.
"तू आ जा ना गांव यही से चलते है " माँ ने सुझाव दिया
"मैं... मैं कैसे आ सकता हूँ माँ, नॉएडा से देहरादून पास ही है, आप आ जाओ यहाँ से हम दोनों साथ चल चलेंगे, मैं आऊंगा फिर वहाँ से जाऊंगा 2,4 दिन तो ऐसे ही निकल जायेंगे "
माँ कुछ सोचने लगी, उधर पापा से कुछ बात करने की आवाज़ आने लगी, जिसका आखरी शब्द था "ठीक है खो... खो... खाऊ..."
मैं समझ गया मम्मी पापा से बात कर रही थी.
"ठीक है बेटा मैं आ जाती हूँ, आज 5 नवंबर है, शादी 11 तारीख की है तो मैं काल रात की ट्रैन पकड़ लेती हूँ"
"वाह... मम्मी मजा आएगा आ जाओ" मैं बहुत खुश था मेरी माँ आने वाली थी, मैं माँ को करीबन एक साल बाद देखने वाला था, नयी नौकरी के चककर मे घर जा ही नहीं पाया था, सिर्फ फ़ोन पर बात हो जाया करती थी,
ज्यादा खुशी मामा के घर जाने की थी, मुझे बचपन से मामा का घर पसंद था.
वैसे भी मेरी नवीन से खूब पटती थी.
"क्या बे इतना क्यों दांत निपोर रहा है किसका फ़ोन था "
अचानक आई आवाज़ मे चौंक गया पीछे देखा आदिल खड़ा था.
मैं बताना भूल गया, जिस फ्लैट मे मैं रहता हूँ वहाँ मेरे साथ 2 दोस्त और भी रहते है,
आदिल, मोहित और प्रवीण, तीनो की age मुझसे बड़ी ही है करीबन 24, 26 साल के है.
"अरे कुछ नहीं यार माँ का फ़ोन था, मामा के लड़के की शादी है देहरादून मे उसी के लिए यहाँ आ रही है " मैंने ख़ुशी का कारण बताया.
तब एक प्रवीण और मोहित भी आ चुके थे कमरे मे.
"क्या.... क्या बे अकेला अकेला देहरादून जायेगा, वहाँ आस पास तो कितनी अच्छी जगह है घूमने की " मोहित ने कहाँ
"हाँ भाई मसूरी पास ही है, हरिद्वार है, गंगा है" प्रवीण चहक रहा था.
"प्लीज भाई हम भी चलते है ना, शादी के बहाने घूम आएंगे "
आदिल ने भी आग्रह कर दिया.
अब मैं कैसे मना करता, वैसे भी खरचा सिर्फ वहाँ जाने का था, रुकने मा इंतेज़ाम तो था ही शादी मे.
मैंने हामी मे सर हिला दिया, आखिर दोस्तों के साथ सेर सपाटा कौन मिस कर सकता था,
हम चारो मे वैसे भी कभी अच्छी पटती थी.
"कब चलना है? आंटी कब आ रही है?" आदिल ने पूछा.
"देख परसो सुबह मम्मी आ जाएगी, तो रात की ट्रैन देख लेते है " मैंने कहा
"ओके आज 5 तारीख है, परसो मतलब 7 की सुबह आंटी आ जाएगी, रात की ट्रैन... ओह... Shit.. यार ये तो एक भी ट्रैन मे टिकट नहीं है " मोहित irctc की वेबसाइट खोले बैठ था.
"अब?" सभी के मुँह से एक साथ निकला.
जबकि मेरे माथे पर परेशानी की लकीरें थी, क्यूंकि मैंने ही माँ को यहाँ आने का सुझाव दिया था,
"8 तारीख की देख ले ना बे " मैंने कहाँ
"अगले 10 दिन मे कहीं टिकट नहीं है यार, देख ही रहा हूँ, शादी का सीजन है सब फुल है " मोहित लैपटॉप मे आंखे गाढ़ाये बैठा था.
हम चारो सोच मे डूब गए थे
"एक आईडिया है, मैं एक कार का इंतेज़ाम कर सकता हुआ" आदिल ने चुटकी बजाते हुए कहा.
"क्या कार से, पागल है क्या इतनी दूर कार से " मैंने आंख भोहे चढ़ा ली.
"अबे सिर्फ 250km ही तो है, मामूली दुरी है, ऊपर से कार रहेगी तो मन मर्ज़ी से जा सकेंगे "
आदिल की बात सभी को हजम हो गई, रुक रुक भी गए तो 5,6 घंटे का सफर है सिर्फ.
हम लोग निश्चित थे, फैसला हो गया था की कार से जायेंगे, लेकिन मैंने माँ को नहीं बताया था, सोचा की आएंगी तो मज़बूरी बता दूंगा.
माँ कौनसा मना करने वाली है.
अगला दिन बीत गया, मम्मी से बात हुई उन्होंने रात की ट्रैन पकड़ ली थी, अगली सुबह 7 बजे मैं और आदिल स्टेशन पर मौजूद थे.
प्लेटफार्म no.5 पर पूर्वांचल एक्सप्रेस धीमी होती जा रही थी,
छरररर...... च्छीहिई..... ट्रैन रुक गई, मेरा दिल धाड़ धाड़ कर बज रहा था, मुझे माँ को देखने उनसे मिलने का उत्साह सा हो रहा था.
ट्रैन रुक गई थी, सामने s5 डब्बे से माँ उतर रही थी, शुद्ध घरेलु भारतीय नारी लाल साड़ी मे लिपटी, लाल लिपस्टिक से रंगे हुए होंठ, गोरी रंगत ली हुई मेरी माँ सामने ही खड़ी थी, ट्रैन रुकी तो माँ समान उठाने के लिए थोड़ा झुकी, माँ के स्तन लगभग पुरे ही बाहर को आ गिरे थे, मैं एकदम से सन्न रह गया,शायद आदिल की भी यही हालात रही होगी, 20211008-213656
मैंने भाग कर माँ के हाथ से बेग ले लिया.
"माँ प्रणाम " और पैरो को छू लिया मैं करीबन एक साल बाद माँ को देख रहा था.
मुझे बहुत आश्चर्य सा हो रहा था माँ को इतना सजा धाजा देख कर, या फिर यूँ कहु मैंने माँ को हमेशा घर के काम धाम, खेतो मे ही उलझा देखा था.
माँ का मैं जैसे कोई नया ही अवतार देख रहा था, माँ साड़ी मे लिपटी हुई थी लेकिन, जिस्म फिर भी अपनी छटा दिखा रहा था, मैंने आज से पहले माँ को कभी स्लीवलेस ब्लाउज मे नहीं देखा था,. लेकिन आज माँ डीपनैक, स्लीवलेस ब्लाउज पहने खड़ी थी, पल्लू भी सीने से हटा हुआ था
एक बार को तो मैंने अपना थूक निगल लिया था.
मैं हैरान था की गांव को औरत इस कद्र सुन्दर भी हो सकती है.
"उफ्फ्फ.... अमित... कैसा है तू " माँ ने मुझे अपने सीने से भींच लिया.
असीम शांति थी इस आलिंगन मे, एक ममता थी अपने बेटे के लिए.
"ठीक हूँ माँ " एक पल को मुझे अपनी सोच पर पछतावा हुआ.
माँ की नजरें मेरे पीछे खड़े आदिल पर गई.
"माँ ये मेरा दोस्त है, आदिल मेरे साथ ही रहता है "
मैंने आदिल की तरफ देखा, जिसकी आंखे माँ पर ही टिकी हुई थी वो अपनी जगह से हिल भी नहीं रहा था, जैसे लकवा मार गया हो.
"आदिल ये मेरी माँ है " मैंने आदिल के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा.
"ननन... नमस्ते आंटी जी "
माँ ने आदिल कर नमस्ते का कोई जवाब नहीं दिया, कारण मैं समझ गया था माँ की रूडीवाड़ी सोच, गांव का कल्चर. अभी भी धर्म जाती मे भेद करता था.
खेर मैं माँ का बेग ले के आगे चल पड़ा, माँ मेरे पीछे और आदिल माँ के पीछे जैसे किसी रस्सी से बंधा खींचता चला आ रहा था.
मैंने आदिल की हरकत मे कोई तावज्जो नहीं दी.
हम लोग फ्लैट पर आ गए थे, हमें आज रात ही निकलता था.
मोहित और प्रवीण से मैंने माँ का परिचय करवाया, माँ उनसे मिल कर ख़ुश हुई, बस आदिल से माँ का व्यवहार थोड़ा रुखा था.
मैंने महसूस किया प्रवीण और मोहित भी माँ को देखते ही रह गए थे, जैसे एक नजर मे माँ को भर लेना चाहते हो.
मैं खुद भी माँ को कुछ अलग सा महसूस कर रहा था,
सजी सवरी मेरी माँ को साड़ी ढकने से ज्यादा जिस्म दिखा रही थी,
कभी बेग उठाने, सैंडल खोलने को झुकती तो सभी की नजर माँ की तरफ ही जाती, मेरी भी नजर गई माँ के गहरे ब्लाउज से स्तन बहत गिर आने को आतुर दिख रहे थे.
लेकिन मेरी माँ के चेहरे पे कोई भाव नहीं था, वो सिर्फ मुस्कुरा के दूसरे कमरे मे चल दी.
आदिल कार का इंतेज़ाम करने चला गया था. माँ फ्रेश हो के आराम कर रही थी.
मैंने माँ को बता दिया था की कार से चलेंगे, माँ ने मज़बूरी समझते हुए हाँ कर दी थी.
ट्रिन... ट्रिन... कुछ ही समय मे मेरे फ़ोन की घंटी बज उठी
"हाँ आदिल बोल?"
"भाई कार का इंतेज़ाम तो नहीं हो पाया, वो कार वाला दोस्त बाहर गया हुआ है " आदिल ने जैसे बम फोड़ दिया हो.
"साले मदरचोद... अब क्या होगा, माँ को क्या बोलूंगा " मैं गुस्से से उखाड़ गया था क्यूंकि सारा आईडिया आदिल का ही था अब बोल रहा है कार का इंतेज़ाम नहीं हो सकता.
तभी प्रवीण बोला "मेरे पहचान का एक ड्राइवर है, उसके पास गाड़ी है, लेकिन वो खुद ही चलाता है कार रेंट पे नहीं देता "
मरता क्या ना करता " लगा फोर उसे " मैंने हामी भर दी
प्रवीण ने फ़ोन लगाया...
कुछ बात हुई.
"यार अमित ब्रेज़्ज़ा है उसके पास, कार मे स्पेस भी है, लेकिन कार वही चलाएगा, आना जाना 8000 मांग रहा है"
हम लोगो को यही सही लगा हमने बात फाइनल कर दी.
और आज रात 8 बजे कार लाने को बोल दिया.
हम सब लोग तैयार हो चुके थे, माँ भी लाल कलर की साड़ी पहने दिन से भी ज्यादा सुन्दर लग रही थी, प्रवीण और मोहित माँ के साथ हसीं मज़ाक कर रहे थे, जिसका जवाब माँ मुस्कुरा के ही दे रही थी.
करीबन 8.15 पर एक कार बिल्डिंग के बाहर आ कर रुकी.
"सलाम वालेकुम मियां " एक दाढ़ी वाले इंसान मे खिड़की से मुँह बाहर निकाल प्रवीण को सलाम किया.
सामने कार मे बैठा इंसान मुँह पे पान दबाये बैठा था, जिसका सबूत था की उसकी लार मुँह के कोने से टपक रही थी.
अब्दुल कादिर इस कार का मालिक था, देखने मे काफ़ी लम्बा चौड़ा था.
जेसे ही अब्दुल की नज़र मेरी मम्मी पे पड़ी उसकी तो मानो ख़ुशी का कोई ठिकाना ही नहीं था, वो बुरी तरह मम्मी को ताड़े जा रहा था, मेरे लास खड़ी माँ मॉर्निंग उसने ऊपर से नीचे कई बार देखा, अब्दुल की उमर लगभाग 36 साल होगी
"माँ ये अब्दुल है " मैंने माँ से उसका परिचय कराया क्यूंकि अब्दुल से हम लोग पहले भी मिल चूके थे.
"नमस्ते आंटी जी " अब्दुल के लहजे मे एक अलग ही अंदाज था.
उसकी नजरें माँ के ब्लाउज से झाँकते स्तनों पर थी, शायद माँ के स्तन थे ही इतने कठोर और बड़े की ब्लाउज मे समाते ही ना थे,गॉव मे मैंने कभी इन सब बातो पे ध्यान दिया ही नहीं था या फिर मेरी उम्र ही नहीं थी तब ये सब देखने की.
लेकिन आज अब्दुल की नजर का पीछा किया तो मैं खुद हैतान था, माँ के स्तन वाकई मे बाहर गोरे और बड़े थे, जिसकी छाप ब्लाउज मे साफ जान पडती थी.
मम्मी ने भी हल्का मुस्कुरा कर, झुकते हुए नमस्ते किया और मेरा हाथ पकड़ कर मेरे कान में धीरे से बोली " ये मुल्ले की ही गाड़ी मिली थी तुमको"
"क्या मम्मी आप भी ना, भरोसे का आदमी है अब्दुल " मैंने मम्मी को दिलाशा दिया.
लेकिन मैं हैरान था माँ ने अपने पल्लू को बिल्कुल भी ठीक नहीं किया, ऊपर से झुकते हुए जमीन पर रखे बेग को उठाने लगी, 20231116-124459 जैसे की जो अब्दुल देखना चाह रहा था उसे दिखा रही हो. अब्दुल के चेहरे के भाव शून्य थे, गुटके से भरा मुँह खुला रह गया था, जैसे कोई भूत देख लिया हो
लेकिन माँ के चेहरे के भाव और कुछ कह रहे थे,
माँ मुझे देख बुरा सा मुँह बनाती कार मे पीछे की सीट पर जा बैठी, मैं माँ के साथ बैठे ही वाला था की एकदम से आदिल कूद के माँ के पास जा बैठा,
मुझे थोड़ा अजीब लगा लेकिन मैंने कोई रिएक्शन नहीं दिया और आदिल के बगल मे जा बैठा, मोहित दूसरी तरफ से माँ के बाजु मैं बैठ गया और प्रवीण आगे की सीट पर जा बैठा.
पीछे चार लोगो के बैठे की वजह से जगह तंग हो गई थी, सभी लोग एक दूसरे के साथ चिपके हुए थे.
हम सभी दोस्तों ने कम्फर्टेबले शॉर्ट्स पहने हुए थे, जो की तंग जगह पर आराम का अनुभव दे रहा था.
"तो फिर चले, भाभी जी बैठ गए ना अच्छे से, कुछ छूट तो नहीं गया?" अब्दुल ने कार के अंदर मिरार को सेट करते हुए कहा, जिसमे शायद मेरी माँ का गोरा खूबसूरत चेहरा दिखाई पढ़ रहा था.
"ना भैया चलो, देर क्यों करनी सब रख लिया है" माँ ने भी सामने कांच मे देखते हुए कहा, जहाँ अब्दुल और माँ की आंखे आपस मे मिल गई थी.
तुरंत ही कार स्टार्ट हुई और हम सडक पे दौड़ चले,
मोहित खिड़की से बाहर की और देख रहा था, जबकि मैंने गाने सुनने के लिए ईरफ़ोन लगा लिए थे,
तभी मेरी नजर आदिल पर गई, जिसकी नजरें कुछ खास देख रही थी, जैसे खुश टटोल रही हो.
मैंने देखा आदिल माँ के पास बैठा उनके सीने की तरफ मुँह झुकाये उनके बाहर निकले स्तन देख रहा था, जो की एक लकीर के रूप मे शुरू होती हुई ब्लाउज तक एक घाटी की शक्ल बना रही थी, गोरी उजली घाटी जो की लाल ब्लाउज मे एक अलग ही छटा बिखेर रही थी.
एकदम से मेरी नजर उस पर पड़ी तो मेरा टन बदन गुस्से जस सुलग उठा लेकिन फिर भी ना जाने क्यों मैं कुछ बोला नहीं,
मन तो कर रहा था अभी साले का टेटुआ दबा दू, लेकिन मेरी नजर भी ना चाहते हुए माँ के ब्लाउज मे कसे हुए स्तन पे चली जा रही थी, जो की कार की थिरकन के साथ ब्लाउज के बाहर थिराक रहे थे, मैंने आगे देखा तो अब्दुल ड्राइवर भी कांच मे वही नजारा देख रहा था जो आदिल और मैं देख रहे थे,
ना जाने मेरी माँ कहाँ खोई हुई थी, उसे तीन जवान लड़के घूर रहे थे उसे पता ही नहीं है, वो सामने देखे जा रही थी, पल्लू ब्लाउज से कबका सरका हुआ था,
इन सब के बीच मैं माँ को कैसे कहता की पल्लू ठीक कर लो.
मैं गुस्से और दुविधा के बीच फसा हुआ था, ऊपर से आदिल तो बिल्कुल ही माँ से चिपका हुआ था, मुझे कुछ अच्छा नहीं लग रहा था, क्या गाना चल रहा था मुझे पता ही नहीं, बस खून खोल रहा था जिस्म मे एक अजीब सी गर्मी उठ रही थी.
खैर मैंने इस बात को अब ज्यादा नोटिस नहीं किया और सफर का मजा लेने लगा, मुझे लगा माँ गॉव की देहाती है इन सब बातो से ज्यादा मतलब नहीं रखती है,.
हमको चलते-चलते 1.30घंटा हो गया था और बैठे बैठे सबके शरीर अकड़ने लगे थे, मेरी माँ भी रह रह के इधर उधर हो रही थी, माँ को बैठने में दिक्कत हो रही थी क्योंकि पीछे हम 4 लोग थे और ब्रेज़्ज़ा मे इतनी भी जगह नहीं होती है, ऊपर से माँ ने कसी हुई साड़ी पहन रखी थी, इसलिए ज्यादा दिक्कत हो रही थी,
"क्या भाभीजी जी दिक्कत हो रही है क्या बैठने मे " आगे से अब्दुल ने माँ बेचैन देख पूछा.
"हाँ माँ कोई तकलीफ है " मैंने भी अब्दुल की आवाज़ सुन माँ को देख पूछा.
"हाँ बेटा साड़ी भारी पहन ली मैंने भी, तो गर्मी और पसीना आ रहा है, अच्छे से बैठा नहीं जा रहा " माँ ने अपनी परेशानी बताई
"अभी तो देहरादून आने मे टाइम है, आप परेशान हो जाओगी " जवाब अब्दुल ने दिया
सभी की निगाहेँ माँ पर ही थी, वाकई माँ के गले से पसीना टपकता हुआ ब्लाउज तक आ गया था, जिसे आदिल बड़ी गैर से देख रहा था
f9b8e6aa979f011ff43e5a1cc83d394d मैंने भी देखा माँ के स्तन पूरी तरह पसीने से भीगे चमक रहे थे.
"तो माँ कोई हल्का कपड़ा पहन लो ना, कार रुकवा लेते है किसी होटल पर " मैंने कहा.
"अरे जाने तो बेटा, हम औरोतो को आदत होती है इन सब की, अब कहाँ बदलने बैठु कपडे " माँ ने बड़ी ही सहजता से कहाँ.
लेकिन मेरे मन मे एक गिलानी सी आ गई, औरतों को कितना सहन करना पड़ता है, हम लड़को का क्या है कहीं भी कुछ भी पहन लो.
"अरे आंटी हम से क्या शर्माना, अपने अमित जैसे ही है हम भी " आदिल ने माँ के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा.
आदिल के आग्रह मे जैसे जादू था " ठीक है बेटा तुम लोग कहते हो तो बदल लेती हूँ "
माँ और आदिल एक दूसरे को देख मुस्कुरा दिए.
"अब्दुल भाई कार कहीं होटल पे रोक लो "
"अमित भाई होटल तो बहुत दूर है अभी "
"कोई नी यार गाड़ी कहीं साइड लगा दे, आंटी जी अंदर ही चेंज कर लेगी हम लोग नीचे उतर जायँगे, क्यों आंटी जी?" मोहित ने कहा.
"मैं... मैं... ऐसे कैसे... " माँ थोड़ा घबरा गई इतने लड़को के सामने कैसे?
"कोई बात नहीं माँ, परेशान होने से अच्छा है कार मे चेंज कर लो"
"और क्या आंटी हम आपके बच्चे जैसे ही तो है" आगे से प्रवीण ने पीछे माँ को देखते हुए कहा.
माँ अब क्या कहती, कहने के लिए बचा ही क्या था.
"ठीक है रुका लो गाड़ी " माँ ने हामी भर दी थी.
शायद माँ ने यही वो गलती कर दी थी जो नहीं करनी चाहिए थी, मुझे भी इस बात का अहसास नहीं था की मैं इस गलती का भागीदार बन जाऊंगा.
अपने बहुमूल्य कमेंट जरूर दे.
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