Click anywhere to continue browsing...
Amazing update and nice storyमेरी माँ रेशमा -10
सूबह मेरी नींद खुली, सामने घड़ी मे टाइम देखा तो 8बज गए थे.
प्रवीण, मोहित और आदिल मेरे साथ ही बिस्तर पर सोये हुए थे.
कल रात मैं कब सो गया मुझे पता ही नहीं चला था,
आदिल मेरे पास सोया हुआ था इसका मतलब माँ स्टेशन से आ गई थी, यानि मेरी बहन भी आ गई होंगी.
मैं तुरंत उठ बैठा, बाहर जा कर फटाफट मुँह धोया और नीचे चल दिया.
"माँ... माँ... मामा " नीचे पंहुचा ही था की सामने डाइनिंग टेबल पर मेरी बहन अनुश्री बैठी थी.
दीदी... को देख के खुद को रोक ना सका भागता हुआ, उनके पास पंहुचा मेरी दीदी की भी शायद मेरी ही राह देख रही थी.
धप से.... मैं अनुश्री दीदी के गले जा लगा,
"उफ्फ्फ... दीदी कितने साल बाद आपको देखा "
दीदी ने मुझे पाने आगोश मे भींच लिया " अमित मेरे भाई कैसा है तू, अपनी दीदी की याद नहीं आती तुझे, कभी मिलने भी नहीं आया, कैसा है मेरे भाई "
दीदी ने एक साथ सवालों की बौछार कर दी, दीदी का स्नेह मेरे लिए सुकून भरा था,
मैं दीदी से अलग हुआ, सामने मेरी अनुश्री दीदी सलवार सूट पहने खड़ी थी, मैंने गोर किया दीदी बिल्कुल माँ जैसी हो गई है,सम्पूर्ण जिस्म भर गया है,
कुर्ता बिल्कुल जिस्म पर कसा हुआ था, इतना की दीदी के उभार साफ झलक रहे रहे, कमर का निचला हिस्सा काफ़ी बड़ा हो गया था.
छी.... ये मैं क्या सोच रहा हूँ, माँ को ले कर मेरी भावनाये बदल गई थी लेकिन ये तो मेरी बहन थी, साला मेरा औरतों को देखने का नजरिया बदलता जा रहा था.
"क्या सोच रहा है अमित?" दीदी ने मुझे ऐसी घूरते हुए देख पूछा..
"कक्क... ककम.. कुछ नहीं दीदी वो... वो... अब कितनी बदल गई हो " अनुश्री दीदी का चेहरा बिल्कुल खिला हुआ था, माथे पर लाल बिंदी, गले मे लटकता मंगलसूत्र, लाल होंठ
वाकई मेरी दीदी मेरी माँ से भी कहीं गुना सुन्दर थी.
"क्यों... ऐसा क्या बदल गया हाँ बदमाश " दीदी ने मेरे गाल पर प्यार से चपत लगाई.
"आप बहुत सुन्दर हो गई हो दीदी " मैंने बेहिचक बोल दिया
"धत्त... पागल... पहले नहीं थी क्या?" अनुश्री ने कमर पर हाथ रख खुद को इधर उधर हिला पूछा जैसे बता रही हो कहाँ क्या बदला है.
"सच्ची... दीदी... खेर जीजा जी कहाँ है? "
"थक गए है सो रहे है, और माँ भी सो रही है, बेचारी रात भर परेशान हो गई "
"क्यों क्या हुआ?" मैं थोड़ा हैरान हुआ.
"ट्रैन लेट हो गई थी यार, जबकि माँ तो 2 बजे ही स्टेशन पहुंच गई थी, ट्रैन आई 4 बजे, हम खुद 5बजे घर पहुचे है "
अनुश्री ने जम्हई लेते हुए कहाँ.
"कक्क... क्या... पुरे दो घंटा लेट " मेरे टन बदन मे आग लगना शुरू हो गया था,. मेरे दिमाग़ के घोड़े दौड़ने लगे, इसका मतलन माँ और आदिल के पास पुरे 2 घंटे म समय था, कहीं.. कहीं आदिल ने माँ को चोद तो नहीं दिया.
मैं बहुत ज्यादा फिम्रमंद ही चला.
"क्या हुआ क्या सोचने लगा "
"कक्क.... कुछ नहीं दीदी, वो.. वो आपको तकलीफ उठानी पड़ी ना "
"अरे कोई नी तकलीफ से तो पुराना नाता है मेरा " अनुश्री कहीं अपने ही विचार मे गुम थी.
"घर पर सब ठीक है ना दीदी? " मैंने आगे पूछा.
"हाँ... हनन... सब बढ़िया है अमित, मैं खुश हूँ मंगेश बहुत ध्यान रखते है मेरा" दीदी के बोल मे थोड़ी उदासी थी.
मैन कारण जानता था, क्यूंकि शादी के 2 साल बाद बहुत दीदी को बच्चा नहीं हुआ था.
"सारी बात अभी कर लोगे या मच काम भी करना है, बुला अपने मुस्तडे दोस्तों को, "
मामी चाय ले कर आ गई थी,
मामी को देखते ही मुझे कल रात का किस्सा याद आ गया, मामी क्या लग रही थी, कल की चुदाई के बाद खील गई थी बिल्कुल, silk साड़ी मे सजी धजी मेरी मामी आरती.
"ये लो चाय पीओ और अपने दोस्तों को बुला ला, बेटा अनुश्री तुम चलो मेरे साथ बहुत काम है, भाई बहन वाली बाते बाद मे कर लेना "
मामी और दीदी चल दी आज हल्दी का प्रोग्राम था, सब लोग तैयारी मे लगे थे.
लेकिन मेरे दिमाग़ मे एक ही बात चल रही थी, चाय को सुढकते सुढकते वही सोच रहा था मैं.
कल माँ और आदिल ने दो घंटे मे क्या क्या किया होगा, मुझे जानना ही था एक अजीब सी चूल मच रही थी दिल मे.
**************
खेर मैं ऊपर चल पड़ा दोस्तों को जगाने, अब्दुल तो सुबह उठ के मामा जी के साथ मार्किट चला गया था,
अंदर रूम मे आदिल, प्रवीण और मोहित सो रहे थे.
"अबे कल रात कहाँ था बे तू?" अंदर से मुझे मोहित की आवाज़ आई.
मैं वही दरवाजे पर रुक गया, मुझे उनकी बाते सुनने की चूल सी मच गई.
"अमित की बहन आई है उसे ही लेने गए थे आंटी और मैं " आदिल ने जवान दिया
"अबे भेनचोद, साला तुझे मौका मिल ही गया, पक्का आंटी ने चुदवा लिया होगा तुझसे " प्रवीण ने पूछा.
यही तो मुझे भी जानना था, मैं सांस रोके वही खड़ा हो गया.
"अब क्या बताऊ यार "
"साले हरामी बता ना, शुरुआत तो तूने ही की थी अमित की मम्मी के साथ, अब बड़ा भाव खा रहा है बताने मे" मोहित ने जोर दिया.
"बताना बे क्या हुआ कल रात, हम भी एक सीक्रेट बताएँगे तुझे " प्रवीण ने बोला
"क्या किया तुम लोगो ने, किसी को पेल दिया क्या?" आदिल ने हैरानी से पूछा.
जबकि मैं जानता था ये सीक्रेट मौसी को चोदने का ही है, जिसमे मेरे दोनों दोस्त बुरी तरह नाकामयाब हुए थे.
"पहले तू बता" मोहित ने कहा
"बताता हूँ बे... सुनो.
कल रात मैं वही महिलाओ के आस पास ही मंडरा रहा था, साला तुम दोनों तो दारू पी के लुढ़क गए थे, मामा ने मुझे धर लिया,
ऊपर से ये हरामी अमित भी गायब था कहीं.
रेशमा आंटी का फ़ोन आया, मालूम पड़ा अमित की बहन और जीजा भी आ रहे है, उनकी ट्रैन 2 बजे आने को थी.
हम लोगो ने अब्दुल और अमित को ढूँढा लेकिन मिले नहीं.
मैं तो चाहता ही था की साले ना मिले, हुआ भी यही.
"बेटा आदिल तुम ही चले जाओ स्टेशन अमित की बहन को लेने " मामा ने कहा.
"लल्ल... लेकिन मामा मैंने तो कभी देखा ही नहीं दीदी जीजा को मैं कैसे ले आऊंगा "
"अरे बुद्धू तुझे अकेले नहीं जाना है मैं चल रही हूँ साथ मे " रेशमा आंटी मुझे देख मुस्कुरा दी.
फिर क्या था पलभर मे ही मैं ड्राइविंग सीट पर था और रेशमा आंटी बाजु मैं बैठी थी.
"क्या मस्त लग रही हो आंटी आप, एकदम sexy, जवान लड़की भी फ़ैल है आपके सामने " मैंने तारीफ के पुल बांध दिए
"हट बदमाश, जब से ही पीछे लगा है तू मेरे "
"अब सच भी ना बोलू मैं " मैंने आंटी की जाँघ पर हाथ रख उसे सहलाने लगा.
"इस्स्स.... आंटी तो ना जाने कब से प्यासी थी वो भी शायद यही चाहती थी.
मैंने कार थोड़ी धीमे कर ली.
और रेशमा आंटी को घूरने लगा, ब्लैक कलर की साड़ी ब्लाउज मे उनका गोरा जिस्म चमक रहा था, सुर्ख लाल होंठो पर कामुक मुस्कान दिखाई दे रहु थी, ब्लाउज तो ऐसा पहना रहा मानो छुपाने के बदले दिखा ज्यादा रही हो.
गोल मटोल दूध बाहर को आने को मरे जा रहे थे.
मुझसे रहा नहीं गया, साड़ी के ऊपर से ही मेरा हाथ जांघो के बीच चला गया..
"आअह्ह्हम.... आदिल क्या कर रहा है, मत कर टाइम नहीं है कुछ हो नहीं पायेगा, फालतू मेरी रात मुश्किल हो जाएगी "
रेशमा ने एक नाकाम कोशिश की, उसके प्रतिरोध मे कोई ताकत नहीं थी.
मैंने अपनी उंगलियों को हरकत दी और साड़ी के ऊपर से ही चुत की लकीर को ढूंढ़ लिया, और उसे कुरेदने लगा.
"उउउउफ्फ्फ..... आदिल मत कर बेटे, जबकि रेशमा आंटी ने अपनी जांघो को फैला दिया था हल्का सा.
वो मुझे ही देख रही थी जैसे कुछ चाहती हो, लाल होंठ कांप रहे थे.
"ट्रिन... ट्रिन... ट्रिन.... पिंग... पिंग..." तभी आंटी का मोबाइल बज उठा.
"हाँ... हाँ.... इसस्स.... हैल्लो बेटा, "
"हाँ माँ निकल गए क्या? ट्रैन लेट हो गई है पिछले स्टेशन पर ही रुकी है अभी,3.30 बजे तक आएगी देहरादून " सामने से फ़ोन पर शायद अमित की बहन थी.
अंधे को क्या चाहिए दो आंख, और हवास मे डूबी औरत को क्या चाहिए, समय और जगह.
वो बिन मांगे मिल गया था.
"ठ... ठीक है बेटा मैं आ जाउंगी इसससस.... मेरी ऊँगली लगातार चुत की लकीर को कुरेद रही थी.
रेशमा आंटी ने झट से फ़ोन रख, मेरे हाथ को पकड़ अपनी जांघो के बीच दबा लिया..
इस्स्स.... आदिल हमारे पास 2 घंटे है, कार कहीं रोक ले.
मेरी तो मानो मुराद ही पूरी हो गई ही, वैसे भी रात के 1.30 बज रहे थे रोड पूरा सुनसान ही था, फिर भी मैंने थोड़ा आगे चल एक मोड़ पर कार को साइड लगा दिया,
आस पास दूर दूर तक खेत खलिहन ही थे, एक्का दुक्का घर थे जो की दूर दूर थे,.
ये सही जगह है.
कार का रुका ही था की... पच.... से आंटी ने अपने सुर्ख लाल होंठ मेरे होंठो पर रख दिए.
गुगु.... मैं कुछ समझता उस से पहले ही आंटी ने मेरे होंठो पर कब्ज़ा जमा लिया.
मैंने भी जवाबी हमला बोल दिया.
रेशमा आंटी के रशीले होंठो को चूसने लगा, आंटी बहुत गरम हो रही थी, आखिर कल रात से ही नाकाम कौशिशो के बाद अब अकेले मे मौका मिला था.
मैं भी बुरी तरह से आंटी के होंठो को चूसने लगा, आंटी ने अपनी जीभ मेरे मुँह मे घुसेड़ दी,
उउउफ्फ्फ्फ़.... क्या बताऊ यार क्या गरम अहसास था, मैं जम के उनकी जीभ को चूसने लगा,
आंटी तो जैसे पागल ही हो गई थी, मेरे मुँह से निकले थूक को चाटे जा रही थी, उनका एक हाथ मेरे पैंट पर बने उभार को सहला रहा था,
मुझसे भी नहीं रहा गया, मैंने भी आंटी के स्तन पर हाथ रख उन्हें दबोच लिया और जोर जोर से भींचने लगा.
(आदिल की बाते सुन मेरा लंड खड़ा होने लगा था, मेरी माँ इस कद्र हवास मे पागल हो चुकी है की किसी रंडी की तरह हरकत कर रही थी.
मैंने आगे सुनना जारी रखा.)
मैंने भी आंटी की जीभ को कस के चूसा, होंठो को चाटा.
"आअह्ह्ह.... आदिल.... उउउफ्फ्फ......"
मैंने रेशमा आंटी के गले पर अपनी जीभ टिका दी, पसीने और खुसबू मेरे जिस्म मे घुलने लगी,मेरा लंड फटने को आ गया था,.
मैंने तुरंत अपनी पैंट खोल घुटनो पर सरका दी,
"उउउउफ्फ्फ.... आदिल कितना बड़ा है, आअह्ह्ह...." आंटी ने तुरंत मेरे लंड को अपनी मुट्ठी मे पकड़ लिया, जैसे ना जाने कब से तड़प रही थी मेरे लंड के लिए.
ऊपर नीचे हिलाने लगी,मैंने भी एक एक कर आंटी के ब्लाउज के बटन खील दिया.
उउउफ्फ्फ.... दोस्तों क्या दूध थे अमित की मम्मी के एक दम गोल मटोल कसे हुए, निप्पल तो ऐसे तन गए थे जैसे किसी ने अंगूर चिपका दिए हो.
मुझसे रह नहीं गया, सुडप सुडप..... लप... लप कर मैंने आंटी के निप्पल को मुँह मे भर लिया.
"आअह्ह्ह... आउचम्म.. आदिल... खा जा इन्हे, चाट जोर जोर से, मसल मेरे मम्मो को " आंटी मेरे सर को पकड़ अपनी छाती मे दबा रही थी.
मैं कभी उनके निप्पल को कटता तो कभी कस कस कर भींचने लगता, मेरी उंगलियों के निशान रेशमा आंटी के स्तन पर छाप गए थे.
"आअह्ह्ह... आदिल.... धीरे नोच देगा क्या " आंटी मेरे लंड को कस कस के हिला रही थी. पच. पच... की आवाज़ से कार गूंज रही थी.
मैंने चाट चाट कर आंटी के
दोनों स्तन को भीगा दिया था, उनके दूध मेरे थूक और लार स सने हुए चमक रहे थे.
"आअह्ह्हम्म्म. उउउउफ्फ्फ.... आउच.... बस बेटा आदिल अब नहीं रहा जा रहा समय नहीं है जल्दी से अंदर डाल दे मेरे, कितने बरस बीत गए लंड के लिए.
रेशमा आंटी ने मुझे खुद से अलग किया, वो आज फॉर्मेलिटी के मूड मे नहीं लग रही थी, उन्हें आज किसी भी कीमत पर लंड चाहिए ही था.
"पीछे सीट पर चलते है आंटी यहाँ जगह नहीं है "
मैं और रेशमा आंटी तुरंत आगे से उतार पीछे चल दिए,
रेशमा आंटी ने तुरंत अपनी साड़ी को कमर तक उठा लिया और पेट के बाल पीछे सीट पर लेट गई.
मैं हैरान था एक औरत जब वासना मे आती है तो क्या नहीं कर सकती, हालांकि मैं खुद उन्ह्र चोदने के लिए मरे जा रहा था.![]()
क्या गोरी सुडोल गांड थी यार अमित की माँ की, एक दाग भी नहीं था. मुझे आंटी की सिकुड़ी हुई बंद गांड, और चुत के रूप मे एक लम्बी लकीर दिखाई पड़ रही थी.
मुझे अपना लक्ष्य दिखाई दे रहा था.
"जल्दी अंदर डाल दे बेटा आदिल, चोद मुझे, चोद दे आज अपने दोस्त की माँ ko" आंटी ने नीचे से अपनी चुत को सहलाते हुए बड़बड़ा रही थी,
मैंने भी देर ना करते हुए उनकी गांड की लकीर मे अपने लंड को घिस दिया.
"आआआह्हः..... ईईस्स्स.... बस अंदर डाल दे अपना बड़ा लंड "
मैंने हाथ से अपने लंड को पकड़ आंटी की चुत के मुहने पर लगा दिया,
आंटी ने आने वाले पल के इंतज़ार मे आंखे बंद कर ली थी,
मैंने कमर को थोड़ा आगे सरकाया, लेकिन लंड फिसल कर गांड पर दस्तक देने लगा.
"आअह्ह्ह.... आदिल.... क्या हुआ?"
"बहुत टाइट चुत है आंटी आपकी, स्लिप हो गया "
"ज़माने हो गए बेटा कोई लंड अंदर ही नहीं गया,
"मैंने वापस लंड को चुत पर सेट किया और कमर को आगे सरकाया ही था की.....
"धड... धड... दगद... धड....अबे कौन है वहाँ क्या हो रहा है......किसी बुलेट बाइक की रौशनी मेरे ऊपर पड़ने लगी.
एक कड़क आवाज़ से मेरा कलेजा कांप गया, साथ ही आंटी का भी.
जब तक मैं कुछ समझ पाता एक मोटा सा आदमी, मेरे मुँह ओर टॉर्च लिए खड़ा था.
"मदरचोद क्या हो रहा है यहाँ, " उसने पूछा.
मैं अभी भी वैसे ही जड़ खड़ा था, आंटी की चुत मे लंड सटाए,.
जबकि उस आदमी के टॉर्च की रौशनी मेरे मुँह से होती मेरे पेट तक पहुंची फिर मेरे लंड पर पड़ी मेरे लंड से जुडी रेशमा आंटी की गोरी गांड पर रौशनी पड़ते ही कार के पिछले हिस्से मे चमक फ़ैल गई.
"तो साला तू यहाँ सुनसान जगह पर रंडी चोद रहा है " उस आदमी ने कड़क के पूछा.
"मममम... ननन... मैं... नहीं.... मैं.. नाइ... मैं " मेरा तो गला ही सुख गया रहा.
शायद आंटी की हालात भी यही थी, आंटी तुरंत पलट गई, साड़ी को नीचे सरका लिया, लेकिन ब्लाउज अभी भी खुला ही हुआ था, टॉर्च की रोशनी आंटी के सुडोल स्तनों पर पड़ रही थी, फिर चेहरे पे.
"अबे कहा से लाया ये रांड, मस्त माल है बे "
"बबबब.... बदतमीज़ी कौन है ये " आंटी ने हिम्मत कर बोला और साड़ी से अपने सीने को ढक लिया.
"साली रंडी मुझे बोलती है, यहाँ खुद चुद रही है और बदतमीज़ मैं हो गया, बाहर निकल,
उस आदमी ने टॉर्च बंद कर दी, कार की धीमी रौशनी मे वो आदमी दिखाई पड़ा, शरीर पर खाकी वर्दी चढ़ी हुई थी, मुछे रोबदार ऊपर को घूमी हुई, शक्ल बिल्कुल काली, पकोड़े जैसी नाक.
लेकिन hight कोई 6फ़ीट रही होंगी, बलिष्ठ हष्ट पुष्ट तोंद बाहर को निकली हुई,
साला पुलिसया था.
"ससस.... ससस.... वो... वो.. हम स्टेशन जा रहे थे " मैंने सफाई दी.
रेशमा आंटी और मैं कार से निकल के उसके ठीक सामने खड़े थे, आंटी के माथे लार पसीना आ गया था, शायद उन्हें अहसास हो गया था की वो फस गई है.
"तो ये रांड कहा से ले आया " पुलिस वाले ने पूछा.
"वो... ये... ये... रांड नहीं है " मैंने मिम्याते हुए बोला, मेरा लंड तो कबका सिकुड़ के 2इंच का रह गया था.
"मादरचोद तो ये तेरी माँ है क्या " पुलिस वाले ने रोबदार आवाज़ मे कहा और आंटी को ऊपर ज़े नीचे तक घूरने लगा.
"नन.. नहीं... माँ नहीं है "
"साले ऐसी माल तेरी माँ हो भी नहीं सकती, ये रांड ही है कोई, तभी तो बीच रास्ते मे अपनी आधी उम्र के लड़के से चुदवा रही है ".
"ददद... देखिये सर इज़्ज़त से बात कीजिये, अच्छे घर से हूँ मैं " आंटी ने जबरजस्त हिम्मत दिखाते हुए बोला.
"साली बहुत बोलती है, तेरी जैसी रंडिया खूब देखी है मैंने, पैसो वालो की बिस्तर ही गर्म करती होंगी तू तो,
चल थाने सारी हेकड़ी निकलता हुआ अभी.
थाने का नाम सुनते है हमारी तो गांड ही फट गई, आंटी ने मेरा हाथ कस के पकड़ लिया,"
बेटा बहुत बदनामी ही जाएगी मैं तो मर ही जाउंगी " आंटी ने मेरे कान मे फुसफुस्सया.
"सर वाकई हम अच्छे घर से है, थाने जायेंगे तो प्रॉब्लम हो जाएगी, कुछ ले दे के....
"हट मादरचोद, मुझे रिश्वतखोर समझा है क्या, चलो थाने साली बहुत बोल रही थी अभी तो."
उस पुलिस वाले ने मुझे हड़का दिया.
"सर प्लीज बात को समझो... " रेशमा आंटी ने रिक्वेस्ट किया.
हाथ जोड़ने से आंटी का पल्लू थोड़ा हट गया, पुलिस वाले के सामने आंटी के boobs चमक उठे,
साला एकटक देखता ही रह गया, साले ने शायद ऐसी चीज देखी ना होंगी.
"साली तू है तो रंडी ही, अकड़ भी है तुझमे, चल पहले तेरी अकड़ निकलता हूँ फिर सोचूंगा क्या करना है " पुलिस वाले ने देखते ही देखते अपनी पैंट खोल दी, पैंट जमीन छत रही थी, और लंड हवा मे किसी काले नाग की तरह फंफाना रहा था.
उसका लंड देख एक बार को मैं भी हैरान रह गया, मैंने आंटी की तरफ देखा उनका भी मुँह खुला का खुला रह गया.
साला पुरे शबाब मे खड़ा था कोई 9,10 इंच का लम्बा, और बेहद मोटा लंड था हरामी का जैसे कोई छोटी लोकि लटका रखी हो.
लंड के नीचे मोटे मोटे आकर के तो बड़े बड़े टट्टे झूल रहे थे.
लटके हुए आलू लग रहे थे
"अजा इसे चूस, मैं ख़ुश हो गया तो जाने दूंगा वरना थाने ले जा के ठूस दूंगा रंडी और तेरे इस दल्ले को "
मैंने आंटी को देखा उनकी नजरें मुझ पर ही टिकी हुई थी,कभी मुझे देखती तो कभी उस पुलिस वाले के लंड को, हैरानी से उनकी आंखे फटी हुई थी.
"नाम क्या है तेरा रंडी " कड़क आवाज़ फिर गुंजी.
"ररर... रेशमा...."
"वाह रंडियो वाला ही नाम है, चल अब चूस इस लंड को टाइम नहीं है मेरे पास "
टाइम तो अब हमारे पास भी नहीं था, तभी मैंने देखा रेशमा आंटी आगे बढ़ गई, और घुटनो के बल झुकती चली गई, शायद हवास अभी भी उनके सर पर सावर थी, ऊपर से साले का भयानक लंड कोई औरत खुद को कैसे रोक लेती.
रेशमा के हाथ काँपते हुए आगे बढ़ गए,
ईईस्स्स.... आअह्ह्ह.... वाह क्या गरम नाजुक हाथ है तेरे "
आंटी ने पुलिस वाले के लंड को पकड़ लिया, बमुश्किल ही हथेली मे समा रहा था.
आंटी ने धीरे से अपने हाथ को पीछे की तरफ चलाया, लंड के सुपाड़े से चमड़ी हटने लगी, एक गंदी सी स्मेल मुझ तक आई, आंटी की नाक तो ठीक लंड के सामने थी, कैसेली गंध से आंटी का मुँह बिगड गया.
लेकिन मरती क्या ना करती, आंटी ने लंड की चमड़ी को पूरा पीछे की ओर खिंच दिया.
याकंम्म्म..... हरामी के लंड पर सफ़ेद सी पापड़ी जमीं हुई थी, पसीने की अजीब गंध ने आंटी के दिमाग़ को हिला दिया.
एक बार को आंटी ने सर साइड कर लिया.
"साली रंडी... चूसना इसे या ले के चलू थाने,
आंटी ने एक बार सर ऊपर उठा के उसे देखा फिर वापस अपनी नजरें लंड पर जमा ली.
वाकई उस पुलिस वाले के लंड की गंध बहुत गंदी थी, या सिर्फ मुझे ही ऐसा लग रह था.
"सससन्ननणीयफ्फ्फ्फफ्फ्फ़..... सससन्ननीफ्फ..... Iiisssz...." आंटी ने एक जोरदार सांस खिंच ली, वो गंदी कैसेली पसीने से भीगे लंड की बदबू रेशमा आंटी के जिस्म मे समा गई.
आंटी की तियोरिया चढ़ गई, आंखे लाल हो गई थी, आंटी ने अपने होंठ आगे बड़ा दिए
और एक चुम्बन सुपडे पर दे दिया, ना जाने उस गंदे लंड मे मया नशा था..
मैंने चुपके से अपने मोबाइल को जेब से निकाल विडिओ रिकॉर्डर ऑन कर मोबाइल हाथ मे पकड़ लिया.
साला मेरी किस्मत ही ख़राब थी, पटाया मैंने और खा ये हरामी पुलिस वाला रहा है.
सामने आंटी ने अपनी जीभ को बाहर निकाल पुलिस वाले के सुपडे पर रख दिया.
"आअह्ह्ह.... क्या गरम जीभ है तेरी रेशम " पुलिस वाले का हाथ आंटी के सर को सहलाने लगा.
आंटी ने एक बार फिर जीभ निकाल सुपडे के अंत से शुरू तक चाट लिया, जैसे उसे ये स्वाद पसंद आ रहा हो, यही काम आंटी ने 2,4 बार किया
उसका सूपड़ा थूक से सन गया था, आंटी के स्तन खुली हवा मे झुल रहे थे.
गुलप... गुप... गुप्प्प.... आंटी ने पूरा मुँह खोल सुपडे को मुँह मे भर लिया.
"आआआह्हः..... ईईस्स्स.... पुलिस वाले का सर ऊपर को उठ गया..
आंटी के लाल होंठ सुपाड़े पर कसते चले गए और पीछे को हटने लगे, अंत तक जा कर आंटी ने वापस गुलप से पुरे सुपडे को मुँह मे भर किया.
मेरा लंड वापस से तनाव खाने लगा, मैंने एक हाथ अपने लंड पर रख लिया.
लंड पर जमीं सफ़ेद पसीने की मेल आंटी के मुँह मे समाने लगी.
उउउउफ्फ्फ्फ़.... यार ये अमित की माँ वाकई मे बहुत प्यासी निकली साली, इतना गन्दा लंड आराम से मुँह मे लील गई.
पुलिस वाले के हाथ रेशमा के सर को सहला रहे थे जैसे शाबासी दे रहे हो.
आंटी मे ही वासना जबरजस्त भरी हुई थी, मुँह को और अगर धकेल दिया,
लंड वाकई मे बहुत मोटा और लम्बा था, लेकिन आंटी ने भी जितना हो सकता था उतना मुँह खोल लंड को अंदर आने दिया.
2,4 प्रयासों मे आधा लंड रेशमा के मुँह मे अठखेलिया कर रहा था..
रेशमा आंटी पच... ओच.... गु.. गु... गीच... कर लंड चूसे जा रही थी.
वेक... वेक... वेक... करती थूक नीचे गिर रहा था, लंड का मेल थूक के साथ धूल रहा था.
हर बार थोड़ा थोड़ा लंड और ज्यादा अंदर को चला जा रहा था.
"चूस साली रांड, क्या चूसती है तू लंड.... आअह्ह्ह.... उफ्फ्फ... और अंदर ले, चूस इसे, आज तक ऐसा किसी ने नहीं चूसा साली रंडी.
ना जाने क्यों जब जब वो पुलिस वाला आंटी को रंडी बोलता, आंटी और जोर लगा कर लंड को मुँह मे भर लेती.
वेक.. वेक... वेक.... गीच... गीच.... गोच.... गु.. गु... पच. पच... की आवाज़ गुजने लगी थी, रेशमा पूरी लगन से लंड चूस रहु थू.
थूक लंड से रिसता हुआ टट्टो को भीगो रहा था,
तभी रेशमा ने होने हाथो को बड़े बड़े टट्टो पर रख दिया और उसे सहलाने लगी.
"आअह्ह्हब..... साली.... गजब है रे तू, मर्द कैसे खुद होता है तुझे पता है" पुलिस वाला भी आंटी की तारीफ कर उठा.
थोड़ी देरअंडर चूसने और टट्टो को मसलने के बाद आंटी ने लंड को मुँह से बाहर निकाल तो थूक लार की एक लाइन सी बन गई, जिसने होंठो और लंड को आपस मे जोड़े हुआ था.
आंटी ने लंड को उसके पेट पर चिपका दिया और अपनी जीभ को ऊपर से नीचे चलाने लगी, पच.... सुडप सुडप..... थूक से सने टट्टे चमक रहे रहे..
आंटी से रहा नहीं गया, उसने टट्टो पर अटैक कर दिया, चाटने लगी जैसे गुलाब जामुन हो.
"आअह्ह्ह... चाट मेरे टट्टे,, खा जा इन्हे रेशमा रांड "
पुलिस वाले का उकसाना था की, आंटी ने सही मे उसके एक टट्टे को मुँह मे भर लिया, जिसे अंदर ही अंदर जीभ ज़े चुभलाने लगी,
फिर दूसरे टट्टे को.... फिर पुरे लंड को चाट लेती.
मैं पागल गए जा रहा था ये सब देख के, ऐसा तो मैंने सोचा भी नहीं था, गांव की सीधी साधी अपने अमित की माँ इतना अच्छा लंड चूसती होंगी.
रेशमा का चेहरा पूरा थूक से साना हुआ था, एक बार फिर आंटी ने लंड को मुँह मे भर लिया, लेकिन इस बात ज्यादा आक्रामक थी, पूरा लंड एक बार मे मुँह मे भर लेती फिर पूरा बाहर निकाल लेती, थूक का रेला निकल के बाहर आता, फिर वॉयस पुरे थूक को मुँह मे भरते हुए वापस लंड को लील जाती...
उउउफ्फ्फ्फ़.... आंटी हवास मे पागल हुए जा रहु थी.
वही पुलिस वाला अब कांप रहा था, उस से ये हमला सहा नहीं जा रहा था.
जबकि आंटी बदस्तूर लंड चूसे जा रही थी. पच...पच.... पचक.... फच..... गु.. गु.. गु.. वेक.. वेक.. वेक...
"आअह्ह्ह... रंडी बस मर मैं मरा अब... आह्हब.... रंडी रेशमा रंडी " पुलिस वाले ने शायद ऐसी औरत ना देखी हो.
आंटी बिल्कुल पागल हो गई थी, उसके टट्टो को मुट्ठी मे पकडे भींची जा रही थी,लंड कस कस के चूस रही थी.
वेक.. वेक.. वेक... आअह्ह्ह.... उउउफ्फ्फ्फ़... आअह्ह्ह
. मैं गया... आअह्ह्ह... फच.... फच... फाचक..... आअह्ह्ह... मर गया.
झटके से पुलिस वाला आंटी से अलग हुआ और उसके लंड ने ढेर सारे वीर्य की बौछार कर दी,
कुछ आंटी के मुँह मे गया तो कुछ उनके चेहरे पे, बाकि जमीन की भेंट चढ़ गया,
पुलिस वाला वही जमीन पर पसर गया, लेकिन मजाल की आंटी ने उसका लंड छोड़ा हो, वो अभी भी पीछे गिरे पॉलिसीए के लंड को हिलाये जा रही थी,.. बचा खुचा वीर्य रेशम आंटी की हथेली पर जमा हो गया था,
आंटी की आँखों मे अभी भी वासना थी.
बस मर रांड बस कर अब... हुम्म्मफ़्फ़्फ़... हमफ्फ्फ्फफ्फ्फ़....
ऐ लड़के चल निकल अब यहाँ से, और तू रंडी अगली बार दिखी तो बिना चोदे नहीं जाने दूंगा तुझे.
मैंने भी तुरंत पेंट ऊपर चढ़ी और आंटी को उठा कार मे बिठा लिया,
"उउउफ्फ्फ्फ़..... आंटी ये क्या था आपने तो उसकी हालात ही ख़राब कर दी." मैंने थोड़ा आगे जा कर आंटी को पानी पीने को दिया, आंटी ने पानी पिया और मुँह धोया.
आंटी अब कुछ कुछ होश मे थी.
लेकिन चेहरे पे काम वासना साफ दिख रही थी, एक अधूरा पन झलक रहा था.
"चलो स्टेशन मैं ठीक हूँ, और किसी से जिक्र ना करना इस बात का " आंटी के चेहरे पे गुस्सा, हताशा थी..
मैं खुद पहली बार रेशमा आंटी को इस हालात मे देख डर रहा था.
मैंने भलाई इसी मे समझी चुपचाप कार दौड़ा दी, आंटी ने तब तक अपना हुलिया ठीक कर लिया था.
कोई 15 मिनट मे हम स्टेशन आ गए थे, 3.45 हो चुके थे.
सामने ही अमित की बहन और जीजा खड़े थे.
उन्हें वापस ले कर हम वापस घर की ओर चल दिए, मंगेश जीजा आगे बैठे मुझसे बात कर रहे थे, पीछे आंटी और अनुश्री दीदी बतिया रहे थे,. आंटी अब बिल्कुल नार्मल हो चुकी थी जैसे कुछ हुआ ही ना हो.
"ले मादरचोद, मतलब तू भी नहीं चोद पाया आंटी को " मोहित मे पूरी कहानी सुनने मे बाद कहा.
बाहर दरवाजे की आड़ मे मेरे होश उड़े हुए थे, मेरी मा ने कल रात एक अनजान आदमी का लंड चूसा था, वो भी किसी रंडी की तरह.
साली मेरी माँ मे कितनी हवास भरी पड़ी थी,
"हाँ यार किस्मत ही ख़राब है, आंटी तो कब से चुदना चाह रही है, खेर छोड़ तुम लोगो का क्या किस्सा है" आदिल ने पूछा.
मेरे मन मे वो विडिओ देखने की ललक जाग उठी, जो कल रात आदिल ने बनाया था, मैं देखना चाहता था माँ का रंडीपना.
अब मेरे लिए यहाँ कुछ बचा नहीं था सुनने को, मैं बाथरूम की ओर चल दिया मेरा लंड दर्द से फटा जा रहा था.
फिलहाल इस लंड को आराम देना ज्यादा जरुरी था.
Contd.....
Beautiful updateमेरी माँ रेशमा -11
मैं अपने माँ के कारनामें सुन के गरम हो गया था, इस गर्मी को लंड के रास्ते निकाल वापस पंहुचा तो सभी लोग आंगन मे ही मौजूद थे.
आदिल, मोहित, प्रवीण और अब्दुल भी. सभी लोग नाश्ता कर रहे थे.
मेरी माँ, मौसी, मामी और दीदी सब सजे धजे बैठे थे.
मामा से कुछ बाते चल रही थी, मैंने देखा मामी रह रह के अब्दुल को देख ले रही थी, अब्दुल भी चाय सुढकते हुए कभी मेरी माँ को देखता तो कभी मामी को.
आज हल्दी का प्रोग्राम था सब इसी मे व्यस्त थे.
"अरे बच्चों सुनो हल्दी के लिए मार्किट चलना है, सजावट भी करनी है, फूल वगैरह लाने है " मामा ने हमारी तरफ देख बोला.
साले हम तो थे ही काम करने के लिए,
"मामा कल रात ठीक से सो नहीं पाया था मैं, थोड़ी नींद बाकि है आप मोहित और प्रवीण को भेज दो ना साले घोड़ा बेच के सोये है रात भर.
आदिल ने जमहाई लेते हुए कहा.
"इनके घोड़े बेचने लायक ही है, कुछ काम के नहीं ये अमित के दोस्त " मौसी ने एक टोंट कसा
"कक्क.... क्या मतलब मौसी " मैंने पूछा जबकि मैं जानता था मौसी क्या कह रही है.
मोहित और प्रवीण तो बेचारे शर्म से पानी पानी हो रहे थे, मुझे अंदर ही अंदर हसीं आ रही थी.
"मतलब सिर्फ सोने आये है," मौसी टेबल पर उन दोनों के सामने ही बैठी थी, और ना जाने क्यों मुझे ऐसा लगा की मौसी ने जानबूझ कर अपना पल्लू सरका दिया है.
मेरे दोस्तों के अरमान वापस से जगने लगे थे.
"वो... वो... मौसी सफर से थक गए थे ना, तो नींद आ गई थी " मोहित ने कहा
"अब पुरे मन और ताकत से काम करेंगे " प्रवीण ने मौसी के बड़े तरबूज के आकर के स्तन को घूरते हुए कहा.
"मैं भी चलती हूँ साथ,कहीं तुम कामचोरी ना करने लगो " मौसी के दिमाग़ मे कुछ तो चल रहा था.
सभी लोग मेरे दोस्तों की मासूमियत पर हस पड़े.
मामा जी ने उन दोनों को मार्किट का रास्ता और समान की लिस्ट दे दी.
सुबह के 9 बज चुके थे, शाम7 बजे से हल्दी का प्रोग्राम होना था.
मामी, और माँ सभी मेहमानों की खिदमत मे लग गई थी, खाने पीने की व्यवस्था,,
कुछ एक्का दुक्का मेहमानों का आना अभी भी जारी ही था,
मैं भी नहाने निकल पड़ा, मेरे दिमाग़ मे मौसी की हरकत ही चल रही थी, साले पक्का मौजी के मजे लेंगे. मुझे अफ़सोस था की मैं उन्हें देख नहीं पाउँगा.
मैं नहा के अपने रूम मे पंहुचा, जहाँ आदिल वापस से सो गया था, मेरी नजर उसके मोबाइल पर पड़ी,
मुझे याद आया आदिल ने कल रात की घटना को, कैमरे मे रिकॉर्ड किया था.
मैंने धीरे से आदिल का मोबाइल उठाया, मुझे पासवर्ड पता था, एक ही कमरे मे रहते थे हम लोग एक दूसरे के पासवर्ड जानते ही थे.
मैंने गैलरी मे जा कर वीडियो ओपन कर दी.
उउउउफ्फ्फ्फ़.... साला ये क्या था माँ के सामने जैसे कोई हैवान खड़ा था, बिल्कुल भद्दा काला मोटा लम्बा चौड़ा इंसान.
जिसका लंड मेरी माँ पूरी सिद्दत से चूस रही थी, टट्टे खा रही थी उस गंदे इंसान के, मैंने जितनक कल्पना की थी माँ ने उस से कहीं ज्यादा गंदे तरीके से उस पुलिस वाले का लंड चूसा था.
खेर मैंने उस वीडियो को अपने फ़ोन मे ट्रांसफर कर, मोबाइल वापस आदिल के पास रख दिया.
और नीचे चल पड़ा.
मेरे पास करने को कुछ खास था नहीं, दीदी जीजा से बात करते हुए टाइम बीत गया था लगभग 12 बज गए होंगे,
एक टेम्पो मे हलवाई वाला अपना समान ले कर आ गया था.
का भैया कहाँ रख दे ई समान, कहाँ लगा दे भट्टी.
"आओ मेरे साथ" मामा ने अपने साथ आने का इशारा किया.
हमारे सामने ही एक नाट सा, तोंद वाला शख्श गुजरता हुआ चला गया, सफ़ेद धोती और बनियान पहने,
या यूँ कहे कभी उसके कपडे सफ़ेद रहे होंगे, उसकी hight कोई 5,2 इंच ही रही होगी,
साथ मे एक दुबला पतला सा लड़का था
उन दोनों को देख हमारी हसीं छूट पड़ी, जैसे बचपन मे हम मोटू पतलू देखते थे, वही साक्षात् सामने आ गए थे.
हेहेहेहेहे.....
"मामा भी क्या नमूने ढूंढ़ के लाये है " अनुश्री ने कहाँ.
"हाहाहाहा... हाँ दीदी मेरी तो हसीं ही नहीं रुक रही "
ऐसे मज़ाक नहीं उड़ाते किसी का " जीजा मंगेश ने हम दोनों को डांटते हुए कहा.
" मैं थोड़ा सो लेता हूँ " जीजा जी चले गए अपने कमरे मे.
हम दोनों भाई बहन उठ के मामा और हलवाई के पीछे पीछे चल दिए.
उन्हें देखने का मजा आ रहा था.
हम दोनों भी पीछे गार्डन मे पहुंच गए, जहाँ टॉयलेट था उस के सामने दिवार से सट कर कोने मे उन्होंने अपना आसान लगा लिया था,
दो तरफ दिवार थी और एक तरफ कपडे का टेंट लग गया था, सामने ही पानी के दो ड्रम थे, पतलू ने फटाफट भट्टी लगा दी थी.
"हाँ जी साब बताइये कितनो का खाना बनाना है?" हलवाई ने पूछा.
"छेदीमल घर मे कुल 20 मेहमान है फिलहाल तो उनके लिए लंच बनान है, नाश्ता तो कर चुके सब, और शाम का बाद मे बताता हूँ, राशन का समान आने ही वाला है "
"ठीक है साब सब्जी अभी बना देता हूँ, जब खाना हो तो बोल देना पूड़ी बना देंगे "
"1 घंटे मे खाना सिर्फ आप दोनों " अनुश्री ने कोतुहाल से पूछा
"अरे काहे नहीं, ई हमार भतीजा चौथमल बहुत तेज़ी से काम करता है "
छेदीमल ने पतलू की तरफ इशारा कर कहा.
"अरे बेटा बहुत पुराने और मझे हुए कारीगर है ये चाचा भतीजे" मामा ने कहा
नाम भी गजब के थे इन मोटू पतलू के, मैं मन ही मन हस रहा था. कार्टून से दीखते थे.
पता नहीं मामा कहाँ से पकड़ लाये थे इन्हे.
खेर थोड़ी ही देर मे राशन वाले भी आकर समान रख गए, दोनों ने काम स्टार्ट कर दिया था, आलू गोभी छिलने का,
"लाओ मैं भी कुछ हेल्प कर देती हूँ " मेरी दीदी सामने चेयर पर बैठ गई
"अरे बिटवा काहे तकलीफ लेती हो रहने दो ना " छेदीमल ने विरोध किया.
"बोर हो रही हूँ, थोड़ा हाथ बटा देती हूँ "
मेरी बहन बहुत नरम दिल की इंसान थी, हेल्प करना उसके स्वभाव मे था.
तभी मामा के फ़ोन की घंटी बैन उठी "हाँ... अच्छा.. अच्छा....ठीक है आता हूँ अभी "
"चल अमित थोड़ा काम है आते है अभी "
मामा और मैं वहाँ से निकल गए, अनुश्री दीदी चाकू ले कर प्याज़ छिलने बैठ गई.
"बहुत अच्छी हो तुम बिटवा " दीदी के कुर्सी पर बैठने से उसकी जांघो का हिस्सा कुर्सी पर फ़ैल के और चौड़ा हो गया था, जिसे छेदीमल ने घूर कर देखा.
दीदी ने अपना दुप्पटा भी टेंट पर टांग दिया था, कुर्सी पर बैठी सामने को प्याज़ उठाने को झुकी तो दीदी के बड़े स्तन बाहर को लुढ़क आये, जिसे छेदीमल ने साफ साफ देखा, उसकी आँखों मे चमक आ गई थी.
और मेरे दिमाग़ मे कुछ कीड़ा सा दौड़ने लगा, मेरे साथ जो हो रहा था उसकी वजह से मैं कुछ सीधा सोच ही नहीं पा रहा था.
क्या दीदी ने ये जानबूझ के किया, नहीं.. नहीं... दीदी ऐसा क्यों करेगी साला मेरी सोच ही घटिया होती जा रही है.
छी कितना गन्दा सोचने लगा था मैं.
मैं मामा के पीछे पीछे चल दिया, मामा ने मोटरसाइकिल निकली और हम लोग चल दिए.
मामा को किसी से पैसे लेने थे, वो ले कर हम लोग कोई 15 मिनट मे आ गए थे, मामा पैसे ले कर अपने कमरे मे चले गए और मैं भागता हुआ घर के पीछे गार्डन मे पंहुचा.
गेट पर से ही दिख रहा था, भट्टी चढ़ गई थी, चौथमल कड़ाई मे पलटा चला रहा था.
लेकिन मेरी दीदी अनुश्री और छेदीमल नहीं दिख रहे थे, मेरे मन मे कुलबुलाहट सी होने लगी, ना जाने क्यों मैं कुछ गन्दा सा सोच रहा था, बहुत गन्दा.
ना जाने क्यों मैं चौथमल की नजर बचा कर टॉयलेट के पीछे से होता हुआ, टेंट के पीछे की दिवार के पास जा पंहुचा, यहाँ मेंहदी की झाड़िया लगी हुई थी,
मैं जैसे ही पास पंहुचा एक अजीब सी आवाज़ आई.. पुच.. पुच.. पच.. पच....
मेरे कान खड़े हो गए, मैं पिछले कई समय से इन अवज़ो को सुन रहा था, कौन था अंदर क्या मेरी दीदी अनुश्री?
क्या कर रही थी वो? नहीं.. नहीं... ऐसा कैसे हो सकता है, असंभव है, मेरी दीदी नहीं...
मैंने टेंट की दरार मे आंख डाल अंदर देखने की कोशिश की.
"ओह.. God नहीं... ऐसा नहीं हो सकता, मेरे पैरो के नीचे से जमीन सरक गई, मैंने सपने भी ऐसे दृश्य की कामना नहीं की थी,
उड़... ये क्या हो रहा है मेरे साथ, मेरा जिस्म तो जैसे सफ़ेद पड़ गया था,
अंदर मेरी दीदी अनुश्री उस मोटे हलवाई का लंड मुँह मे डाले चूस रही थी,
साला ये क्या ही रहा है मेरे घर मे सब के सब रंडी ही है क्या?
क्यों नहीं जब मेरी माँ कर सकती है तो बहन क्यों नहीं, मेरा तो दिमाग़ ही चकरा रहा था,
"आअह्ह्ह.... कितना बड़ा है, उउउफ्फ्फ..... छेदीमल, दिखने मे छोटे हो लेकिन ये.... उउउफ्फ्फ्फ़... कितना बड़ा है "
दीदी ने उसके लंड को बाहर निकाल हलवाई की तारीफ करने लगी, साले की धोती जमीन पर पड़ी थी, और लंड मेरी दीदी के हाथ मे था, दीदी के थूक से साना हुआ, जिसे दीदी जोर जोर से चूस रही थी.
मोटा, काला नसो से भरा लंड दीदी के मुँह मे खेल रहा था, जिसे दीदी खुद से मजे ले ले कर चूस रही थी.
"उउउउफ्फ्फ्फ़..... छेदीमल क्या लंड है, जब तुम पेशाब करने गए, तब मेरी नजर इस पर पड़ गई, उउउफ्फ्फ... खुद को रोक ना सकी मैं,
ऐसा क्या हो गया 15मिनट मे ही की मेरी दीदी एक अनजाने मर्द का लंड चूस रही थी, वो भी तब जबकि उसका भतीजा वही पास मे सब्जी बना रहा था..
इतनी कितनी आग थी दीदी के जिस्म मे, की डर भी ना लगा उसे.
मेरी तो सोचने समझने की शक्ति ही जवाब दे गई थी.
15मिनिट पहले
(मैं और मामा जी घर से बाहर निकल गए थे। मामा ने मोटरसाइकिल स्टार्ट की, और हम दोनों किसी से पैसे लेने के लिए चल पड़े। घर के पीछे गार्डन में अनुश्री दीदी, छेदीमल और चौथमल रह गए थे। दीदी कुर्सी पर बैठी प्याज छील रही थी, उसका ध्यान सब्जियों पर था। छेदीमल और चौथमल ने अपना काम शुरू कर दिया था—भट्टी चढ़ा दी थी, और चौथमल कड़ाही में कुछ हिलाने में व्यस्त था। छेदीमल पास में बैठा आलू छील रहा था, लेकिन उसकी नजर बार-बार दीदी की तरफ जा रही थी। दीदी ने अपना दुपट्टा टेंट पर टांग दिया था और कुर्सी पर आराम से बैठी थी, जिससे उसकी जांघें थोड़ी फैली हुई थीं। उसकी सलवार का कपड़ा जांघों पर चिपक गया था, और उसकी गोरी त्वचा हल्की-हल्की झलक रही थी।अनुश्री के बार बार झुकने से उसके उन्नत सुडोल स्तन कुर्ते से बाहर झाँक रहे थे, वैसे भी अनुश्री ने दीपनैक कुर्ता ही पहन रखा था, सामने छेदीलाल का हाल बुरा था, धोती ने ही उसका लंड खड़ा होने लगा था, होता भी क्यों ना शहरी सुडोल कामुक जिस्म की मालिकन उसके सामने अपने आधे से ज्यादा स्तन खोले बैठी थी,
तभी छेदीमल को पेशाब की तलब लगी। उसने आलू छीलना बंद किया और अपनी धोती को थोड़ा ऊपर उठाते हुए बोला, "अरे बिटिया, हम जरा बाहर होकर आते हैं।" उसकी आवाज में एक अजीब सी लापरवाही थी। वो उठा और टेंट के बाहर की तरफ चला दिया , दिवार के कोने लार जहाँ पेड़ की जड़ थी,और पास ही मेंहदी की झाड़ियां थीं, और वो उसी के पास खड़ा हो गया। उसने अपनी धोती को थोड़ा ऊपर किया और पेशाब करने लगा। उसकी पीठ दीदी की तरफ थी, लेकिन उसका मोटा, काला लंड साफ नजर आ रहा था, जो पेशाब की धार के साथ हल्का-हल्का हिल रहा था।
टेंट के छेद से छेदीलाल साफ दिख रहा था,
अनुश्री का ध्यान उस वक्त प्याज छीलने में था, लेकिन उसकी नजर अचानक छेदीमल की तरफ उठ गई। पहले तो उसने उसे अनदेखा करने की कोशिश की, लेकिन जब उसकी आंखें छेदीमल के लंड पर पड़ीं, वो ठिठक गई। उसका हाथ अपने आप रुक गया, चाकू प्याज पर अटक गया। वो उस गंदे, मोटे, नसों से भरे लंड को देखती रही—काला, लंबा, और एक अजीब सी ताकत से भरा हुआ। पेशाब की धार जमीन पर पड़ रही थी, और उसकी गंध हवा में फैल रही थी। अनुश्री की सांसें तेज होने लगीं, उसकी छाती ऊपर-नीचे होने लगी। उसने अपने होंठों को दांतों से दबाया,जैसे खुद को रोकने की कोशिश कर रही हो, लेकिन उसकी आंखों में एक चमक आ गई थी—वासना की चमक।
पहले तो उसने खुद को समझाने की कोशिश की। "ये क्या देख रही हूं मैं? छी, कितना गंदा है ये सब," उसका मन चिल्लाया। वो एक शादीशुदा औरत थी, जिसे अपनी मर्यादा का ख्याल था। लेकिन पिछले कुछ समय से उसकी जिंदगी में एक खालीपन सा था। शारीरिक सुख और आत्मा में एक प्यास सी थी—कुछ ऐसा जो उसे उत्तेजित करे, उसे जगा दे। और अब, छेदीमल का वो लंड उसके सामने था,
बस यही वो पल था जो उसे उत्तेजित करने के लिए काफ़ी था,
एक हिस्सा उसे रोक रहा था, कह रहा था कि ये गलत है, ये पाप है। लेकिन दूसरा हिस्सा, जो शायद लंबे समय से दबा हुआ था, उसे उकसा रहा था, "देख, कितना अलग है ये... कितना बड़ा, कितना मजबूत लंड है, असली मर्द का लंड ऐसा ही होता है,
छेदीमल ने पेशाब खत्म किया और अपने लंड को झटका देकर धोती नीचे कर ली।वो वापस टेंट की तरफ मुड़ा, लेकिन अनुश्री का चेहरा देखकर उसे कुछ अंदाजा हो गया। वो धीरे-धीरे चलता हुआ वापस आया
"क्या हुआ बिटिया, कुछ चाहिए का?" उसकी आवाज में एक चालाकी थी।
अनुश्री ने जल्दी से नजरें हटाने की कोशिश की, लेकिन उसकी आवाज कांप रही थी।
"न... नहीं, बस ऐसे ही..." उसने चाकू फिर से प्याज पर चलाने की कोशिश की, अनुश्री के हाथ वासना से कांप रहे थे।
उसका दिमाग उसी दृश्य को बार-बार दोहरा रहा था—छेदीमल का वो मोटा, गंदा लंड। उसके जिस्म में एक अजीब सी गर्मी दौड़ने लगी, उसकी जांघें आपस में रगड़ खाने लगीं। वो खुद को रोकना चाहती थी, लेकिन उसकी वासना अब हद पार कर चुकी थी।
चौथमल अभी भी भट्टी के पास व्यस्त था, उसे कुछ पता नहीं था। अनुश्री ने एक गहरी सांस ली और कुर्सी से उठ खड़ी हुई। उसने छेदीमल की तरफ देखा, उसकी आंखों में एक सवाल था, लेकिन शब्द नहीं निकले। छेदीमल ने उसकी हालत भांप ली। वो धीरे से मुस्कुराया और टेंट के अंदर की तरफ इशारा करते हुए बोला, "अरे बिटिया, इधर आओ ना, जरा हमारी मदद कर दो।"
अनुश्री का दिल जोर-जोर से धड़क रहा था। वो जानती थी कि ये गलत है, लेकिन उसके कदम अपने आप टेंट की तरफ बढ़ गए। चौथमल बाहर भट्टी संभाल रहा था, और टेंट के अंदर अब सिर्फ अनुश्री और छेदीमल थे। जैसे ही वो अंदर पहुंची, छेदीमल ने उसका हाथ पकड़ लिया। उसकी हथेली खुरदुरी थी, और उसकी पकड़ में एक अजीब सी ताकत थी। अनुश्री ने विरोध नहीं किया। "आअह्ह्हम... इस्स्स......उसकी सांसें और तेज हो गईं। मुँह से सिस्कारी फुट पड़ी,
"क्या देख लिया बिटिया?" छेदीमल ने धीमी आवाज में पूछा, उसकी आंखों में शरारत थी।
अनुश्री ने नजरें झुका लीं, लेकिन उसका चेहरा लाल हो गया। "वो... वो... मैं..." वो कुछ कह नहीं पाई। उसकी आवाज में हवस और शर्म दोनों घुल गए थे।
छेदीमल ने उसका हाथ छोड़ दिया और अपनी धोती को एक झटका दिया, धोती की गांठ खुल गई, सरसरसती धोती जमीन चाटने लगी,
छेदीलाल का लंड पूरी तरह से मुँह बाये खड़ा था—मोटा, काला, और नसों से भरा हुआ। अनुश्री की आंखें उस पर टिक गईं। उसकी सांसे ऊपर ही अटक गई मालूम पडती थी, वो खुद को रोक नहीं पाई। उसकी सारी शर्म, सारी मर्यादा उस एक पल में खत्म हो गई। वो धीरे-धीरे घुटनों के बल बैठ गई, उसका चेहरा छेदीमल के लंड के ठीक सामने था। उसने एक गहरी सांस ली और बोली, "उउउफ्फ्फ... ये... इतना बड़ा... मैंने पहले कभी ऐसा नहीं देखा।"
फिर उसने अपने होंठों को उसके लंड के सिरे पर रख दिया और धीरे-धीरे अपने लाल सुर्ख होंठो को खोल दिया, उसके होंठ छेदीलाल के सुपडे पर टिक गए, उसकी जीभ लंड की नसों पर फिसल रही थी, और वो उसे अपने मुंह में गहराई तक ले रही थी। छेदीमल ने एक सिसकारी भरी और अनुश्री के सिर पर हाथ रख दिया। टेंट के अंदर का माहौल अब पूरी तरह से वासना से भर गया था।)
वापस वर्तमान मे
मैं वहीं झाड़ियों के पीछे छिपा हुआ था, मेरे मन में उथल-पुथल मची थी। जो कुछ मेरी आंखों के सामने हो रहा था, उसे देखकर मेरा दिमाग सुन्न पड़ गया था। मेरी दीदी अनुश्री, जो हमेशा से मेरे लिए एक ममतामयी और सभ्य बहन की छवि थी, आज एक ऐसी औरत बन गई थी, जिसकी वासना की आग मेरे समझ से परे थी। मैंने टेंट की दरार से और करीब से देखने की कोशिश की, मेरे हाथ कांप रहे थे, लेकिन आंखें हटाने का मन नहीं कर रहा था।
अंदर का दृश्य और भी भयावह और उत्तेजक हो गया था। अनुश्री घुटनों के बल जमीन पर बैठी हुई थी, उसकी आंखों में एक अजीब सी चमक थी, जैसे कोई प्यासी औरत पानी की एक-एक बूंद के लिए तरस रही हो। छेदीमल, वो मोटा, नाटा, गंदा सा हलवाई, जिसकी सूरत देखकर कोई भी औरत शायद मुंह फेर ले, उसके सामने खड़ा था। उसकी धोती जमीन पर पड़ी थी, और उसका काला, मोटा, नसों से भरा लंड अनुश्री के मुंह के सामने हवा में लहरा रहा था। अनुश्री ने अपने हाथों से उसे पकड़ा, उसकी उंगलियां उसकी मोटाई को पूरी तरह से ढक भी नहीं पा रही थीं।
"उउउफ्फ्फ... छेदीमल, जब तुम पेशाब करने गए थे ना... मैं बस सब्जी छील रही थी... तभी मेरी नजर तुम पर पड़ी," अनुश्री की आवाज में एक कंपन था, जैसे वो अपने मन की गहराई से कुछ उगल रही हो। "तुम्हारा वो... इतना बड़ा, इतना गंदा, इतना मोटा... मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि ऐसा कुछ देखूंगी। मेरे अंदर कुछ टूट गया था... मेरे जिस्म में आग लग गई थी। मैं खुद को रोक नहीं पाई... मैंने बहुत समय बाद ऐसा लंड देखा है,
छेदीमल ने एक गंदी सी हंसी हंसी, उसके पीले दांत बाहर झांक रहे थे। "अरे बिटिया, हम तो बस पेशाब करने गए थे... सोचा नहीं था कि हमारा माल किसी रानी को इतना पसंद आ जाएगा।" उसने अपने हाथ से अनुश्री के सिर को सहलाया और फिर धीरे से अपने लंड को उसके होंठों की तरफ धकेला।
अनुश्री ने बिना किसी हिचक के अपना मुंह खोला और उसका लंड अपने मुंह में ले लिया।उसकी जीभ उसकी नसों पर फिसल रही थी, वो उसे चूस रही थी जैसे कोई भूखी शेरनी अपने शिकार को निगल रही हो। उसकी आंखें बंद थीं, और चेहरा लाल हो गया था। वो अपने घुटनों पर बैठी हुई आगे-पीछे हो रही थी, छेदीमल का लंड उसके मुंह में गहराई तक जा रहा था। उसकी सांसें तेज थीं, और हर बार जब वो लंड को बाहर निकालती, उसके थूक की एक पतली सी लकीर हवा में लटक जाती।
"आआह्ह... कितना बड़ा है... उउउफ्फ्फ... इसका स्वाद... इसका गंध... मुझे पागल कर रहा है," अनुश्री ने लंड को बाहर निकालकर कहा, उसकी आवाज में एक अजीब सी मादकता थी। वो फिर से उसे चूसने लगी, इस बार और जोर से, और गहराई तक। छेदीमल के हाथ उसके सिर पर थे, वो उसे अपने लंड की तरफ दबा रहा था।
साला मैं तो दीदी के मुँह से निकले शब्दों को सुन सुन कर हैरानी से मरा जा रहा था, कैसे वो किसी अनजान आदमी के लंड की तारीफ कर सकती है.
"चूसो बिटिया, पूरा लो... हमारा पूरा माल तुम्हारे लिए है," छेदीमल ने कहा और अपने कूल्हों को आगे-पीछे करने लगा। अनुश्री का मुंह अब पूरी तरह से उसके लंड से भर गया था,उसकी नाक छेदीमल की झांटों में दब रही थी। वो गों-गों की आवाजें निकाल रही थी, लेकिन रुकने का नाम नहीं ले रही थी।
"आअह्ह्ह.... गो... गो....गोच... गोचम.. पच... पच...
फिर छेदीमल ने उसे खींचकर पास के एक पुराने पलंग पर लिटा दिया, जो शायद टेंट में पहले से रखा हुआ था। उसने अनुश्री को पीठ के बल लेटाया और खुद उसके उसके मुँह के पास आकर खड़ा हो गया, और पच.... फच... से अपने पुरे लंड को एक बार मे अनुश्री के मुँह मे घुसेड़ दिया.
वेक.... वेक.... दीदी के गले तक उभार बन गया था, हलवाई के धक्को से साफ साफ गले मे नजर आ रहा था,
मेरी दीदी भी किसी रंडी की तरह उस लंड को अंदर लिए जा रही थी,
सामने ही बैठा उसका भतीजा कड़ाई मे पलटा चलाये उस दृश्य को देख रहा था, उसकी तरफ दीदी की टांगे थी जिसे उसने हवा मे फैला रखा था, सलवार अभी भी उसके जिस्म पर थी.।
अनुश्री के मुंह से गीली-गीली आवाजें निकल रही थीं—ग्लक... ग्लक... ग्लक।उसकी आंखों से आंसू बह रहे थे, लेकिन वो किसी रंडी की तरह चूस रही थी, जैसे उसकी जिंदगी इसी में बसती हो। थूक और लार से पूरा चेहरा साना हुआ था,थूक रिस रिस के गालो से होता हुआ जमीन पर गिर रहा था.
"आआह्ह... ले बिटिया... पूरा ले... हमारा पानी निकलने वाला है," छेदीमल ने जोर से कहा और अपने कूल्हों को और तेजी से हिलाने लगा। अनुश्री के हाथ उसके कूल्हों पर थे, वो उसे और अंदर धकेल रही थी। अचानक छेदीमल का शरीर अकड़ गया,, छेदीलाल ने टट्टो तक अपने लंड को दीदी के मुँह मे धसा दिया रहा, आआहहहहह..... मैं गया छेदीलाल ने एक जोरदार सिसकारी भरी, और उसके लंड से गर्म, गाढ़ा वीर्य अनुश्री के मुंह में उड़ेल दिया।
"आआआहहहहम्म... बिटवा हम तो गए आआहह.... उउउफ्फ्फ.... फच... फच.. फचका...
हमफ.... हमदफ़्फ़्फ़... उउउफ्फ्फ्फ़.... खी... खो... खो.. खाऊ.... करतई दीदी ने गर्दन ऊपर की, उसका पूरा मुँह और चेहरा वीर्य से भर गया था, काफ़ी सारा वीर्य अनुश्री के हलक से नीचे उतर गया था, उसके होंठों के किनारे से थोड़ा सा वीर्य बाहर बह रहा था। हमफ़्फ़्फ़.... हमफ़्फ़्फ़...वो हांफ रही थी, उसका चेहरा पसीने और थूक से चिपचिपा हो गया था।
दीदी किसी रंडी की तरह दिखाई पड़ रही थी, जिसका पूरा चेहरा गैर मर्द के वीर्य थूक पसीने से साना हुआ था, काजल पूरा चेहरे पे फ़ैल गया था.
उउउफ्फ्फ्फ़.... ये दृश्य मेरे लिए बहुत भयानक था, ऐसी मुँह चुदाई की मैंने कभी कल्पनाओ भी नहीं की थी.
बाहर मेरा लंड फटने को आ गया था, लेकिन मेरी दीदी अनुश्री अभी भी शांत नहीं हुई थी, उसके हाथ अपनी जांघो के बीच चल रहे थे, जैसे कुछ कुरेद रहे हो, मैंने ध्यान दिया उसके सलवार का बीच का हिस्सा पूरा गिला हो गया था, जैसे पेशाब कर दिया हो.![]()
किस कद्र प्यासी हूर हवस मे डूबी हुई थी मेरी बहन.
छेदीमल पलंग से हटकर एक तरफ बैठ गया, उसकी सांसें अभी भी तेज थीं। लेकिन तभी चौथमल, वो दुबला-पतला लड़का जो बाहर भट्टी चला रहा था, टेंट के अंदर आ गया। शायद उसे अपनी ही बारी का इंतज़ार था। उसकी आंखों में भी वही भूख थी जो छेदीमल में थी। अनुश्री अभी भी पलंग पर निढाल पड़ी थी, उसकी सलवार का नाड़ा ढीला हो गया था। चौथमल ने बिना कुछ कहे उसकी सलवार को नीचे खींच दिया। अनुश्री की गोरी, मांसल जांघें नजर आने लगीं, और उसकी काली पैंटी पूरी गीली दिख रही थी।
चौथमल ने बिना किसी देरी किये उसकी पैंटी को भी खिंच लिया और अनुश्री की चूत को देखकर एक गहरी सांस ली। उसकी चूत गुलाबी थी, गीली थी, और उसकी वासना की गर्मी से फूली हुई थी।![]()
ऐसी चुत शायद ही इन लोगो ने सपने मे देखी हो, बिल्कुल साफ सुथरी, गोरी, रस से भीगी हुई
अब भला ऐसी चुत देख के कोई खुद को कैसे रोक सकता था.
चौथमल भी नहीं रुका उसने अपने होंठ उसकी चूत पर रख दिए और जोर-जोर से चाटने लगा। उसकी जीभ अनुश्री की चूत के हर कोने को छू रही थी, वो उसकी भगनासा को चूस रहा था, और अपनी जीभ को अंदर तक डाल रहा था। अनुश्री की सिसकारियां फिर से शुरू हो गईं—"आआह्ह... उउउफ्फ्फ... चौथमल... और चाटो... मेरी आग बुझाओ...चाटो इसे खा जाओ.. उउउफ्फ्फ.... माँ... मर गई मैं... उउउफ्फ्फ...
अनुश्री आंखे बंद किये बड़बड़ा रही थी, अपने स्तनों को मसल रही थी, जाँघे और ज्यादा फ़ैल गई थी.
चौथमल ने अपनी जीभ को और तेजी से चलाया, उसकी चूत से निकलने वाला रस उसके मुंह पर लग रहा था। वो उसे चाट रहा था जैसे कोई भूखा कुत्ता हड्डी चाटता हो।
चौथमल यही नहीं रुका जी भर के चुत चाटने के बाद उसने अनुश्री को पलट दिया, अब वो अपने घुटनों और हाथों के बल थी। चौथमल ने उसकी गांड को फैलाया और अपनी जीभ उसकी गांड के छेद पर फेरने लगा। अनुश्री का पूरा शरीर कांप रहा था,
अनुश्री ने ऐसी उम्मीद भी नहीं की थी, वो किसी कुतिया की तरह उस पुराने टूटे फूटे पलंग पर थी, उसकी गांड हवा मे लहरा रही थी,
चौथमल की गंदी गीली जबान अनुश्री के गांड के छेद को कुरेदने लगी, आआहहहह..... उउउफ्फ्फ.... आउच.... मर गौ मैं... आअह्ह्ह....
वो जोर-जोर से चिल्ला रही थी—"उउउफ्फ्फ... हाय... मेरी गांड... चाटो इसे... और चाटो..."
चौथमल ने अपनी जीभ को उसकी गांड के अंदर तक डाला, उसका एक हाथ अनुश्री की चूत को सहला रहा था। उसकी उंगलियां अनुश्री की चूत में अंदर-बाहर हो रही थीं, और दूसरी तरफ उसकी जीभ उसकी गांड को चाट रही थी।अनुश्री का शरीर अकड़ने लगा, उसकी सांसें रुकने लगीं, और अचानक वो जोर से चिल्लाई—"आआह्ह्ह्ह... मैं झड़ रही हूं..."
आअह्ह्ह..... नहीं.... उफ्फ्फ्फ़..... आअह्ह्ह... इस्स्स..... उसकी चूत से गर्म रस की धार निकल पड़ी, चुत से निकला काम रस चौथमल के मुंह पर जा गिरा । जिसे उसने किसी अमृत के समान चाटता रहा, तब तक चाटता रहा जब तक अनुश्री पूरी तरह से निढाल होकर पलंग पर गिर नहीं गई।
अब कब आओगी बेटा हेल्प करने " पास बैठे छेदीमल ने पूछा.
"उउउउफ्फ्फ.... आअह्ह्ह... आज शाम को, लेकिन इस बार पूरी हेल्प लेनी होंगी मेरी " अनुश्री ने सलवार ऊपर चढ़ा ली और नाड़ा कसने लगी.
मैं बाहर खड़ा ये सब देख रहा था। मेरा दिमाग, मेरा शरीर, सब कुछ ठंडा पड़ गया था। मेरे घर में क्या हो रहा था? मेरी मां, मेरी बहन... सब कुछ एक सपने की तरह लग रहा था, लेकिन ये हकीकत थी। मैं चुपचाप वहां से हट गया, मेरे कदम लड़खड़ा रहे थे। आगे क्या होगा, ये सोचने की हिम्मत भी मुझमें नहीं बची थी।
मैं निढाल सा आंगन की तरफ आ गया, मेरा लंड वैसे ही खड़ा था, लेकिन दिल बैठ गया था.
मैं वही डाइनिंग टेबल पर बैठा, कोई 5 मिनट मे ही मेरी दीदी अनुश्री आ गई थी,.
"अरे अमित कब आया तू?" दीदी पास बैठ गई
"अभी आया दीदी " मैंने मरे हुए मन से कहाँ
"बड़ा थका थका सा लग रहा है क्या हुआ, रुक चाय बना लाती हूँ "
सही कहाँ मैं ही देख के थक गया था जबकि दीदी तो चुत चूसवाने के बाद और भी तारोंताज़ा लग रही थी.
और भी दमक रही थी, साला मैं ही चुतिया हूँ मुझे समझ आने लगा था.
खेर दीदी चाय बनाने चली गई थी, मैंने घड़ी देखी 2बज गए थे.
पो... पोम... पो....
तभी मोहित, प्रवीण और मौसी भी मार्किट से आ गए थे, उनकी कार की आवाज़ दरवाजे पे आ रही थी.
साला अब इन लोगो ने क्या काण्ड किया होगा इस बात की चूल मचने लगी थी.
Contd....