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Incest मेरी मां और परिवार की चुदाई कहानी (incest + adultery)

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अध्याय १

चंदनपुर की शाम धीरे-धीरे गहराती जा रही थी। गाँव की गलियाँ अब खाली हो चुकी थीं, सूरज खेतों के पीछे डूब चुका था, और हवा में ठंडक फैल रही थी और घरों से चूल्हों का धुआँ उठता हुआ दिख रहा था। चंदनपुर में दिन की मेहनत के बाद लोग अपने घरों में लौट आते थे अलोकनाथ और लीलावती का घर अभी भी गर्माहट से भरा था उनका कमरा, घर के पीछे की तरफ, छोटा लेकिन आरामदायक था। दीवारों पर पुरानी तस्वीरें लटकी हुई थीं उनकी शादी की, बच्चों के जन्म की और परिवार की खुशियों की। कमरे में एक बड़ा सा पलंग था, जिस पर सूती चादर बिछी हुई थी, और पास में एक छोटी सी मेज पर लालटेन जल रही थी, जो कमरे में हल्की-हल्की रोशनी फैला रही थी। बाहर दूर जंगल से आती हवा की सनसनाहट लेकिन अंदर का माहौल पूरी तरह अलग था, कमरे की हवा में एक मादक खुशबू थी जो लीलावती के शरीर से आ रही थी पलंग के नीचे पुरानी लकड़ी की आलमारी थी जिसमें परिवार की यादें भरी हुई थीं और खिड़की से हल्की हवा आ रही थी, जो पर्दों को हिला रही थी।

अलोकनाथ और लीलावती पलंग पर लेटे हुए थे। उनकी शादी को 25 साल हो चुके थे, लेकिन आज भी उनका प्यार वैसा ही था जैसे पहले दिन का, दोनों का प्यार समय के साथ और गहरा हो गया था शुरुआत के सालों की मासूमियत से शुरू होकर अब एक गहरी समझ और आपसी लगाव में बदल गया था।

अलोकनाथ, 46 साल का तगड़ा किसान, अपनी पत्नी लीलावती को अपनी मजबूत बाहों में कसकर पकड़े हुए था। उसकी छाती नंगी थी, और उसकी धोती नीचे सरक गई थी जिससे उसका मजबूत, तनावपूर्ण लिंग दिख रहा था उसकी बाजूएँ, जो दिनभर खेतों में काम करने से कड़ी हो गई थीं, लीलावती की कमर पर लिपटी हुई थीं। उसका चेहरा, जो दिनभर की थकान से भरा था अब प्यार की गर्माहट से चमक रहा था उसकी आँखें, जो आमतौर पर गाँव की पंचायत में सख्त रहती थीं, अब लीलावती के चेहरे पर टिकी हुई थीं और उसकी साँसें तेज़ हो रही थीं। उसकी मूंछ और दाढ़ी में हल्की सफेदी थी लेकिन उसकी त्वचा अभी भी जवान थी, और उसके शरीर की गंध पसीने और मिट्टी की मिली हुई लीलावती को हमेशा आकर्षित करती थी। अलोकनाथ का शरीर उसके उम्र से काफी ज्यादा ताकतवर था और उसकी छाती पर हल्के बाल उसे और भी मर्दाना बनाते थे।

लीलावती, 43 साल की, अलोकनाथ की पत्नी, अर्धनग्न अवस्था में थी उसकी साड़ी का पल्लू सरक चुका था और ब्लाउज के बटन खुल गए थे जिससे उसके मोटे मोटे चूचे उजागर हो रहे थे उसकी मोटी गांड पलंग की चादर पर दबी हुई थी और उसकी कमर अलोकनाथ की बाहों में कसी हुई थी उसका सांवला रंग कमरे की हल्की रोशनी में चमक रहा था, और उसके लंबे काले बाल पलंग पर बिखरे हुए थे उसकी आँखें बंद थीं और उसके होंठ अलोकनाथ के होंठों से मिले हुए थे लीलावती का बदन बेहद गदराया हुआ था उसकी भारी छाती जो अलोकनाथ के स्पर्श से उभर रही थी और उसकी जांघें जो अलोकनाथ की जांघों से रगड़ खा रही थीं उसकी त्वचा नर्म थी और उसके शरीर से आने वाली सुगंध कमरे में फैली हुई थी। लीलावती की साँसें तेज़ थीं और उसकी उंगलियाँ अलोकनाथ की पीठ पर फिसल रही थीं जैसे वो हर स्पर्श को महसूस कर रही हो।

दोनों एक-दूसरे को चूम रहे थे, उनकी साँसें मिल रही थीं और कमरे में एक गर्म, अंतरंग माहौल था। अलोकनाथ ने लीलावती के होंठों पर अपने होंठ दबाए, और उसकी गर्दन पर चूमते हुए नीचे की तरफ बढ़ा उसकी उंगलियाँ लीलावती की कमर पर फिसल रही थीं और वो उसके शरीर की हर वक्र को महसूस कर रहा था। लीलावती की सिसकारी निकली, "आज फिर से वो पुराना प्यार महसूस हो रहा है। 25 साल हो गए लेकिन ऐसा लगता है जैसे कल की बात है।" उसकी आवाज़ में एक मिठास थी और उसकी आँखों में प्यार की चमक थी। अलोकनाथ ने मुस्कुराकर कहा, "लीला, तू मेरी जान है। इन 25 सालों में हमने कितनी मुश्किलें देखीं खेतों का सूखा, डेयरी फॉर्म की परेशानियाँ, बच्चों की परवरिश लेकिन हमारा प्यार कभी कम नहीं हुआ। तू मेरी ताकत है" लीलावती ने उसकी छाती पर हाथ फेरा, और उसके निप्पल्स को सहलाया। "उफ्फ आपकी ये मजबूत छाती, ये बाजूएँ मुझे हमेशा सुरक्षित महसूस कराती हैं। याद है, शादी के पहले दिन जब आप मुझे रात में ऐसे ही बाहों में लिए थे?" अलोकनाथ ने हँसते हुए कहा, "हाँ लीला, वो रात याद है तब हम जवान थे, और अब भी हैं। समय ने हमें और करीब ला दिया है।"

दोनों की बातें पुरानी यादों में खो गईं। लीलावती ने अलोकनाथ की गर्दन पर चूम लिया, और उसकी उंगलियाँ उसकी पीठ पर खरोंच मारने लगीं। अलोकनाथ की साँसें तेज़ हो गईं, और वो लीलावती की साड़ी की गांठ खोलने लगा। "लीला, तू कितनी सुंदर है, तेरी ये कमर मुझे पागल कर देती है।" लीलावती ने अपनी आँखें बंद कर लीं, और उसकी सिसकारी कमरे में गूँजने लगी। "आप मुझे चूमो और ज्यादा करीब आओ।" अलोकनाथ ने उसकी साड़ी पूरी तरह उतार दी और उसका नंगा बदन उसके सामने था उसके मोटे मोटे चूचे, मोटी गांड़ सब अलोकनाथ को ललचा रहे थे। वो उसकी छाती पर चूमने लगा और उसके निप्पल्स को मुँह में ले लिया। लीलावती की सिसकारी और तेज़ हो गई, "आह, धीरे से... कितना मजा आ रहा है।" उसकी उंगलियाँ अलोकनाथ के बालों में फँसी हुई थीं, और वो उसके सिर को अपनी छाती पर दबा रही थी। अलोकनाथ की जीभ उसके निप्पल्स पर घूम रही थी, और उसका हाथ उसकी योनि की तरफ बढ़ रहा था। "लीला, तू गीली हो गई है," वो बोला, और उसकी उंगली उसकी योनि में डाल दी। लीलावती की आह निकली, "आह और अंदर डालो"

अलोकनाथ ने अपनी धोती उतार दी, और उसका तनावपूर्ण लिंग बाहर आ गया उसका लिंग मोटा और लंबा था, और वो लीलावती की जांघों पर रगड़ने लगा। लीलावती ने उसे पकड़ लिया, और सहलाने लगी। "आपका कितना सख्त है जल्दी से मुझे ये अंदर चाहिए।" अलोकनाथ ने लीलावती की टांगें फैलाईं, और अपना लिंग उसकी योनि में घुसेड़ दिया। लीलावती की चीख निकली, "आह, जोर से चोदो मेरे राजा" दोनों की साँसें तेज़ हो गईं, और अलोकनाथ ने धक्के लगाने शुरू किए। पलंग की चरमराहट कमरे में गूँज रही थी, और उनकी सिसकारियाँ मिलकर एक संगीत बना रही थीं। लीलावती की आँखें बंद थीं, और वो अलोकनाथ की पीठ पर नाखून गड़ा रही थी, अलोकनाथ की गति बढ़ी, और वो लीलावती की छाती को चूमते हुए बोला, "लीला, तू मेरी जिंदगी है।" कमरे में पसीने की महक फैल गई थी, और दोनों का शरीर एक-दूसरे से चिपका हुआ था। अलोकनाथ की बाजूएँ लीलावती की कमर पर कसी हुई थीं, और उसकी जांघें उसकी जांघों से रगड़ खा रही थीं। लीलावती की सिसकारियाँ और तेज़ हो गईं, "आह, मैं आने वाली हूँ... और जोर से... रुकना मत" अलोकनाथ ने अपनी रफ्तार और बढ़ाई, और दोनों का शरीर काँपने लगा।

चुदाई के बीच में, जब दोनों का उत्साह चरम पर था, अलोकनाथ ने लीलावती के कान में फुसफुसाया। "लीला, सुनो मेरी एक ख्वाहिश है, मैं तुझे दो लंड का सुख देना चाहता हूँ।" लीलावती, जो अभी गर्मी में डूबी थी, ने हँसते हुए कहा, "आप पागल हो गए हो? ये क्या बात कर रहे हो?" अलोकनाथ ने अपनी गति जारी रखते हुए कहा, "नहीं लीला, मैं सच कह रहा हूँ। मैं चाहता हूँ कि किसी और मर्द के साथ तेरी दोहरी चुदाई करूँ। तुझे वो सुख दूँ जो तू कभी नहीं महसूस की।" लीलावती की आँखें बड़ी हो गईं, और वो थोड़ा पीछे हटी लेकिन अलोकनाथ की गति से वो रुक नहीं पाई। "आपको क्या हो गया है? ऐसी बातें क्यों कर रहे हो?" अलोकनाथ ने उसके चेहरे को अपने हाथों में लिया, "लीला, शादी को 25 साल हो गए, हम हमेशा एक ही तरह से जीते आए हैं। अब कुछ नया करना चाहिए, जीवन में थोड़ा रोमांच लाना चाहिए।"

लीलावती ने सिर हिलाया लेकिन उनकी अंतरंगता जारी थी। "लेकिन हम रोलप्ले में तो सब कुछ करते हैं वो कल्पनाएँ उसमें तो मजा आता है लेकिन असलियत में ऐसा जोखिम उठाना ठीक नहीं है।" अलोकनाथ ने पूछा, "जोखिम कैसा?" लीलावती ने सोचते हुए कहा, "इस बात की क्या गारंटी है कि कल को कोई हमें ब्लैकमेल नहीं करेगा? या गाँव में किसी को बता दिया तो? हमारी इज्जत क्या रह जाएगी? और हमारे बच्चे नंदिनी और बलवान अगर उन्हें पता चल गया तो क्या होगा? वो हमें कभी माफ नहीं करेंगे, हमारा घर टूट जाएगा।" अलोकनाथ ने उसकी बात सुनी, और थोड़ा सोचा, लेकिन उसकी गति धीमी नहीं हुई। "लीला, तू ठीक बोल रही है लेकिन अगर सब कुछ गुप्त तरीके से हो, कोई बाहर का मर्द न हो, तो क्या तू तैयार है?" लीलावती ने थोड़ा सोचा और फिर बोली, "गुप्त तरीके से भी मुझे नहीं लगता कि मेरा शरीर एक अंजान मर्द के लिए तैयार हो पाएगा।"

अलोकनाथ ने मुस्कुराकर कहा, "और अगर घर का कोई मर्द हो तो?" लीलावती चौंक गई, "घर का मर्द? मतलब मैं किसी घर के मर्द के साथ ऐसा करूँ? ये क्या कह रहे हो?" अलोकनाथ ने कहा, "घर का मर्द होगा तो न ब्लैकमेल का डर, न बदनामी का, सब कुछ गुप्त रहेगा।" लीलावती ने पूछा, "आप किसकी बात कर रहे हो?" अलोकनाथ ने कहा, "मैं अपने छोटे भाई अजय की बात कर रहा हूँ।" लीलावती बोली, "अजय? लेकिन अगर ममता(अजय की पत्नी) को पता चल गया तो? या पायल(अजय और ममता की बेटी) को? और अजय को तैयार कैसे करोगे आप?"


अलोकनाथ ने हँसते हुए कहा, "लीला, अजय जितना शरीफ दिखता है, उतना ही बड़ा चोदू है वो अपनी साली के साथ खूब मस्ती करता है।" लीलावती बिलकुल हैरान हो गई, "क्या? आपको कैसे पता? सच में?" अलोकनाथ ने कहा, "वो बाद में बताऊँगा लेकिन तू सोच, अगर अजय हो तो?" दोनों फिर से एक-दूसरे में डूब गए, उनकी साँसें तेज़ हुईं और वो चरम तक पहुँच गए फिर थककर एक-दूसरे से लिपटकर सो गए।
बहुत ही गरमागरम कामुक और उत्तेजक प्रारंभ हैं भाई कहानी के प्रथम अध्याय का
मजा आ गया
अगले रोमांचकारी धमाकेदार और चुदाईदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
 
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अध्याय २

चंदनपुर की दोपहर गर्मी से तप रही थी और गंगा के किनारे का तालाब एक शांत मगर मादक माहौल में डूबा था। तालाब का पानी सूरज की किरणों में चमक रहा था और हवा में मछलियों की हल्की-सी गंध के साथ मिट्टी की सोंधी खुशबू मिल रही थी। आसपास के पेड़ों की छाँव में पक्षियों की चहचहाहट थी और तालाब के किनारे झाड़ियाँ हवा में सरसरा रही थीं और पानी की सतह पर छोटी-छोटी लहरें उठ रही थीं। तालाब का पानी इतना साफ था कि नीचे तैरती मछलियाँ दिख रही थीं और किनारे पर कुछ कंकड़-पत्थर बिखरे हुए थे। यहीं, तालाब के एक किनारे, एक बड़े पत्थर पर बलवान और उसका सबसे पसंदीदा दोस्त राहुल बैठे मछलियाँ पकड़ रहे थे। उनके हाथों में पुरानी डोर और काँटे थे और एक टोकरी में कुछ छोटी-मोटी मछलियाँ तड़प रही थीं।

बलवान, 21 साल का तगड़ा जवान, काली टी-शर्ट और पजामा में था उसका बदन पसीने से तर था, और टी-शर्ट उसकी चौड़ी छाती और मांसल बाजुओं से चिपकी हुई थी जिससे उसकी मांसपेशियाँ साफ उभर रही थीं उसकी आँखों में एक शरारती चमक थी और उसके होंठों पर हल्की मुस्कान थी। राहुल, 21 साल का, पतला लेकिन फुर्तीला, सफेद शर्ट और पजामा में था उसका चेहरा हँसमुख था और उसकी आँखें बार-बार तालाब के पानी की तरफ जा रही थीं, दोनों दोस्त गपशप में डूबे थे, और उनकी हँसी तालाब के शांत माहौल में गूँज रही थी।

बलवान और राहुल की दोस्ती गहरी थी, शाम को मछली पकड़ने तालाब पर आना उनका रिवाज था लेकिन जंगल का डर दोनों के दिल में था और वो सूरज डूबने से पहले घर लौटने का ख्याल रखते थे। राहुल की माँ सुधा, 43 साल की विधवा, गाँव की सबसे आकर्षक औरतों में से थी वो घर संभालती थी राहुल और उसकी मां सुधा उसके नाना प्यारेलाल और मामा बृजेश के साथ रहते थे।

तभी तालाब के दूसरे किनारे से सुधा आती दिखी उसकी कमर पर मिट्टी का घड़ा था वो पानी भरने आई थी, सुधा की साड़ी क्रीम रंग की थी जो उसके गोरे रंग पर चमक रही थी उसका भारी–भरकम बदन साड़ी में निखर रहा था उसकी बड़ी-बड़ी चूचियां ब्लाउज में कसी हुई थीं जो साड़ी के पल्लू से ढकी थीं और उसकी मोटी गांड साड़ी में लहरा रही थी उसकी मोटी कमर उसके बदन को और आकर्षक बना रही थी और उसका चेहरा सादा लेकिन मादक था और उसकी आँखों में एक मासूम शरारत थी। वो तालाब के किनारे पहुँची और घड़े को पानी में डुबोया, पानी की छलछलाहट तालाब में गूँज रही थी।और सुधा झुककर घड़ा भर रही थी उसकी साड़ी का पल्लू हल्का सा सरक गया और उसकी गहरी दरार की झलक दिखी, बलवान की नजर उस पर पड़ी।

जैसे ही सुधा ने घड़ा भरा और उसे अपनी कमर पर रखने लगी तो घड़े से पानी छलक गया। पानी की धारा सीधे उसकी छाती पर गिरी और उसकी ब्लाउज पूरी तरह गीली हो गई, सूती के कपड़े की ब्लाउज उसकी छातियों से चिपक गई और उसके भूरे निप्पल्स उभर आए जैसे ब्लाउज पारदर्शी हो गया हो, सुधा की त्वचा गोरी और नर्म थी उसकी साँसें तेज थीं और उसकी छातियाँ ऊपर-नीचे हो रही थीं जिससे उसके निप्पल्स और उभर रहे थे।

बलवान की आँखें सुधा पर टिक गईं और वो उसे देखता रह गया उसकी नजर उसकी ब्लाउज पर थी, जहाँ उसके निप्पल्स सख्त होकर उभरे हुए थे और पानी की बूँदें उसकी छातियों पर मोतियों की तरह चमक रही थीं बलवान का दिल तेज़ धड़कने लगा, और उसकी पैंट में एक उभार बन गया उसका लंड सख्त हो गया और पैंट में तंबू बनकर धड़कने लगा उसकी साँसें तेज़ हो गईं और उसका शरीर गरम हो गया वो अपनी जांघों को सटा रहा था लेकिन उसका लंड अब दर्द करने लगा था उसकी आँखें सुधा के बदन पर जमी थीं उसकी गीली भारी छातियाँ, उसकी लहराती गांड, और उसकी कमर की मोड़, वो शर्मा गया और अपनी नजर हटाने की कोशिश की लेकिन सुधा की छवि उसके दिल में आग की तरह सुलग रही थी। राहुल ने अपनी माँ को देखा और बोला, "माँ, तुम यहाँ?"

सुधा गीली साड़ी में अपना पल्लू ठीक करती हुई दोनों की तरफ आई उसकी चाल में एक मादक अदा थी, और उसका भारी–भरकम बदन गीली साड़ी में और आकर्षक लग रहा था उसकी छातियाँ हर कदम पर हिल रही थीं और गीली ब्लाउज से उसके भूरे निप्पल्स दिख रहे थे वो राहुल के पास आई और बोली, "हाँ बेटा, घर में पानी खत्म हो गया था इसलिए पानी भरने आई हूं, तू घर कब आएगा" उसकी आवाज़ में ममता थी लेकिन उसकी आँखों में एक हल्की-सी शरारत थी राहुल ने कहा, "माँ, थोड़ी देर और! मैं और बलवान कुछ मछलियाँ और पकड़ लें, फिर आता हूँ।" सुधा ने हँसते हुए सिर हिलाया और फिर बलवान की तरफ देखा। "बलवान, तू कैसा है बेटा?"

बलवान ने शर्माते हुए सिर नीचे किया उसका लंड धड़क रहा था वो अपनी पैंट में बने तंबू को छुपाने की कोशिश कर रहा था, वो बोला, "मौसी, मैं ठीक हूँ। आप... आप कैसी हो" उसकी आवाज़ में हल्की-सी हिचक थी और उसकी आँखें सुधा की बड़ी–बड़ी चूचियों पर टिकी थीं सुधा ने बलवान की पैंट की तरफ हल्की-सी नजर डाली और एक शरारती मुस्कान उसके होंठों पर आ गई वो जानती थी कि उसका गीला बदन बलवान को उत्तेजित कर रहा था उसने धीरे से अपना पल्लू ठीक करने के बहाने उसे और सरकाया जिससे उसकी भारी छातियों की झलक बलवान को मिल गई, पानी की बूँदें उसकी छातियों से नीचे सरक रही थीं और उसके निप्पल्स सख्त होकर ब्लाउज से बाहर आने को बेताब थे। बलवान की साँसें रुक गईं और उसका लंड और सख्त होकर पैंट में दर्द करने लगा।

सुधा ने अदा से अपना पल्लू ठीक किया और फिर चली गई अपनी कमर मटकाते हुए, हर कदम पर उसकी मोटी गांड थरथरा रही थी और बलवान की आँखें उस पर जमी रही, राहुल ने बलवान को कोहनी मारी, "अरे बलवान, क्या देख रहा है मछली पकड़!" बलवान शर्मा गया लेकिन उसके दिल में सुधा की मादक छवि बस गई थी उसका लंड अभी भी सख्त था और उसकी साँसें तेज़ थीं।

सुधा के जाने के बाद, बलवान और राहुल ने मछली पकड़ना जारी रखा लेकिन राहुल का दिल कहीं और था, वो बार-बार इधर-उधर देख रहा था जैसे किसी का इंतज़ार कर रहा हो। बलवान ने पूछा, "क्या बात है, राहुल? तू इतना बेचैन क्यों है?" राहुल ने हँसकर टाल दिया, "कुछ नहीं, बस थोड़ा थक गया हूँ।" लेकिन उसकी आँखों में एक शरारत थी।

तभी तालाब के पास की झाड़ियों से एक हल्की-सी सरसराहट सुनाई दी और नंदिनी वहाँ से निकली। नंदिनी, 24 साल की, लाल सलवार-कमीज में थी उसका गोरा चेहरा चमक रहा था और उसकी आँखें उत्साह और शरारत से भरी थीं उसकी सलवार-कमीज उसके मादक जिस्म पर फिट थी और उसकी कमर की हल्की-सी झलक दिख रही थी उसकी छातियाँ सलवार में कसी हुई थीं और उसकी चाल में एक कामुक अदा थी।

बलवान ने नंदिनी को देखा और चौंक गया, "दीदी! तू यहाँ क्या कर रही है?" नंदिनी ने हँसते हुए कहा, "बलवान, मैं बस थोड़ा घूमने आई थी।" तभी राहुल बोला "बलवान, मेरा घर जाने का समय हो गया है मैं चलता हूं" बलवान ने सिर हिलाया, राहुल ने टोकरी से कुछ मछलियां उठाकर अपनी पोटली में रखीं और वो तालाब के पास एक बरगद के पेड़ की छांव में चला गया जहाँ झाड़ियाँ घनी थीं और कोई देख नहीं सकता था, फिर बलवान ने भी टोकरी से मछलियां निकालकर अपनी पोटली में भरी और बोला "दीदी, तू मेरे साथ चलेगी या थोड़ी देर और रुकेगी?" नंदिनी के एक तिरछी नजर झाड़ियों की तरफ मारी और बोली "तू चल मैं आती हूं थोड़ी देर में" बलवान के जाने के बाद नंदिनी ने इधर-उधर देखा और चुपके से झाड़ियों के पीछे चली गई जहां राहुल उसका इंतजार कर रहा था "राहुल, तू तो बोल रहा था कि मछली पकड़ने के बाद घर जाएगा? फिर यहाँ रुका क्यों?" उसकी आवाज़ में शरारत थी और उसकी आँखें राहुल पर टिकी थीं। राहुल ने उसकी कमर की तरफ देखा और बोला, "नंदिनी, तू बुलाए और मैं न आऊँ? बलवान को बहाना बनाकर छोड़ा क्योंकि मेरा दिल तुझसे मिलने को मचल रहा था।" उसने नंदिनी का हाथ पकड़ा, और उसे अपनी तरफ खींच लिया। नंदिनी की साँसें तेज़ हो गईं और उसका चेहरा लाल हो गया उसकी छातियाँ कमीज़ में ऊपर-नीचे हो रही थीं और उसकी सलवार से उसके मादक बदन की आकृति उभर रही थी।

"राहुल, तू बहुत बदमाश हो गया है," नंदिनी ने हँसते हुए कहा लेकिन उसकी आँखों में एक गहरी चाहत थी। राहुल ने उसकी कमर पर हाथ रखा और उसे पेड़ की जड़ की तरफ ले गया। "नंदिनी, तू इतनी खूबसूरत है, मैं तुझसे नजर नहीं हटा पाता," राहुल ने फुसफुसाते हुए कहा, उसने नंदिनी को अपनी बाहों में खींच लिया और उसकी कमर को कसकर पकड़ लिया। नंदिनी की साँसें और तेज़ हो गईं और उसकी छातियाँ राहुल की छाती से टकरा रही थीं और राहुल की उंगलियाँ उसकी कमर पर फिसलीं और उसने उसकी त्वचा को सहलाया। नंदिनी की सिसकारी निकली, "राहुल... कोई देख लेगा।"

राहुल ने नंदिनी की आँखों में देखा और बोला, "नंदिनी, यहां कोई नहीं आता" उसने नंदिनी के चेहरे को अपने हाथों में लिया और उसके होंठों की तरफ झुका। नंदिनी ने एक पल के लिए हिचकिचाया लेकिन फिर उसकी आँखें बंद हो गईं। राहुल के होंठ नंदिनी के नर्म गुलाबी होंठों से मिल गए, नंदिनी की साँसें रुक गईं और उसका शरीर राहुल की बाहों में कांपने लगा, राहुल ने अपनी जीभ नंदिनी के होंठों पर फिराई और उसकी मिठास को चखा। नंदिनी ने भी जवाब दिया और उसकी जीभ राहुल की जीभ से उलझ गई, दोनों के होंठ चिपके हुए थे और उनकी साँसें एक-दूसरे में मिल रही थीं। चुंबन गहरा होता गया और राहुल की उंगलियाँ नंदिनी की कमर से उसकी पीठ की तरफ बढ़ीं, उसने नंदिनी की सलवार कमीज़ के नीचे से उसकी त्वचा को छुआ और उसकी गर्माहट महसूस की।

नंदिनी की चूचियां राहुल की छाती से दब रही थीं उसकी चूचियां कसी हुई थीं और राहुल की उंगलियाँ उसकी चूचियों की तरफ बढ़ीं, उसने हल्के से उसकी चूची को दबाया और नंदिनी की सिसकारी निकली, "राहुल... धीरे..." उसकी आवाज़ में उत्तेजना थी और उसका शरीर गर्म हो रहा था। राहुल ने नंदिनी के गले पर चूमा, और उसकी जीभ उसकी गर्दन पर फिसली, नंदिनी की साँसें तेज़ हो गईं और उसने राहुल की शर्ट को कसकर पकड़ लिया। "राहुल, ये गलत है... लेकिन इतना अच्छा लग रहा है," नंदिनी ने फुसफुसाते हुए कहा। राहुल ने नंदिनी के होंठों पर फिर से चूमा, और इस बार चुंबन और गहरा था उनकी जीभें एक-दूसरे से उलझ रही थीं और दोनों के शरीर एक-दूसरे से चिपके हुए थे। नंदिनी की चूचियां राहुल की छाती से रगड़ खा रही थीं और उसकी जांघें राहुल की जांघों से टकरा रही थीं। राहुल का लंड भी सख्त हो गया था और उसकी पैंट में उभार आ गया था, नंदिनी ने उसे महसूस किया और उसकी साँसें और तेज़ हो गईं।

राहुल की उंगलियाँ नंदिनी की सलवार की डोर की तरफ बढ़ीं और उसने हल्के से उसकी चूची को सहलाया। नंदिनी ने उसे रोका, "राहुल, बस... अब नहीं..." लेकिन उसकी आँखों में चाहत थी और उसने राहुल को फिर से चूमा। दोनों का चुंबन और गहरा हो गया और उनकी साँसें एक-दूसरे में मिल रही थीं। बरगद के पेड़ की छाँव में, दोनों का प्यार एक आग बनकर सुलग रहा था। तभी दूर से कुत्तों के भौंकने की आवाज़ आई, नंदिनी ने राहुल को धक्का देकर पीछे हटाया और बोली, "राहुल, छोड़... अब मुझे घर जाने दे" उसकी साँसें अभी भी तेज़ थीं और उसका चेहरा लाल था। राहुल ने मुस्कुराकर कहा, "नंदिनी, आई लव यू फिर मिलेंगे?" नंदिनी ने शरमाते हुए सिर हिलाया और दोनों अलग-अलग रास्तों से घर की तरफ चल पड़े।
 
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बहुत ही गरमागरम कामुक और उत्तेजक प्रारंभ हैं भाई कहानी के प्रथम अध्याय का
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अगले रोमांचकारी धमाकेदार और चुदाईदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
Thanks Bhai for this wonderful comment ☺️
 
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